RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
अब तक आपने पढ़ा कि कैसे समीर ने दिन में ही मौका देख कर अपनी बहन को चोद दिया था। उसे नेहा और राजन के रिश्ते के बारे में पता नहीं था इसलिए उसने सोनिया से ये वादा भी करवा लिया था कि वो अपने पति और उसकी बहन की चुदाई करवाने में समीर की सहायता करेगी।
अब आगे…
बाकी का दिन यूँ ही ख्यालों में गुज़र गया। नेहा ने तो हल्की फुल्की छेड़-छाड़ से मना कर दिया था, लेकिन जब भी समीर को मौका मिलता, तो सोनिया के उरोजों या नितम्बों को मसल देता, या फिर अपना लंड उसकी चूत में डाल के एक दो शॉट मार लेता। आखिर शाम हो गई और राजन पार्टी का सारा सामान लेकर आ गया। स्कॉच तो घर में रहती ही थी, तो लड़कियों के लिए वोड्का और साथ में खाने के लिए कुछ नमकीन वग़ैरा ले आया था।
राजन- देखो सोना, मैं तो अपनी तरफ से सब ले आया हूँ। तुम्हारी क्या तैयारी है?
सोनिया- यार, अब इतनी पार्टी-शार्टी करना है, तो खाना तो ज्यादा खाने का कोई मतलब ही नहीं है। तुम पिज़्ज़ा आर्डर कर दो, और फ्रेश हो जाओ, फिर करते हैं शुरू! बाकी सब तैयारी मैंने कर ली है।
राजन (धीरे से)- और कॉन्डोम्स? भाई-बहन की चुदाई में बच्चा होने का खतरा बिल्कुल नहीं होना चाहिए।
सोनिया- चिंता न करो, जब से हमारा प्लान बना था, नेहा और मैं दोनों ही गोलियां खा रही हैं।
राजन- वाओ यार! डॉक्टर मैं हूँ और मेरी बहन को गोलियां तुम खिला रही हो। गुड जॉब!
इतना कह कर राजन अंदर चला गया, पहले उसने पिज़्ज़ा आर्डर किया, फिर फ्रेश होने चला गया।
जब राजन फ्रेश होकर वापस आया, तो सब टीवी पर कोई कॉमेडी प्रोग्राम देख रहे थे, और खिलखिला कर हँस रहे थे। उसका ध्यान सोनिया की ड्रेस पर गया, वैसे तो उसका पूरा बदन लगभग ढका हुआ ही था, लेकिन उसका एक चूचुक (निप्पल) ड्रेस की पट्टियों से बाहर झाँक रहा था।
दरअसल ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि पूरे दिन समीर इधर-उधर से आ कर मौका मिलते ही कुछ ना कुछ छेड़खानी कर रहा था, जिसकी वजह से सोनिया बहुत उत्तेजित हो चुकी थी। उसकी चूत गीली और उसके चूचुक खड़े हो गए थे। इधर ठहाके लगा कर हँसने से ड्रेस हिल रही थी जिससे एक खड़ा हुआ कड़क चूचुक पट्टियों के बीच से बाहर निकल आया था।
राजन ने कुछ कहे बिना, सीधे आ कर उसको अपने होठों में दबा लिया। सोनिया अचानक से सकपका गई और नेहा-समीर का ध्यान भी उनकी ही तरफ चला गया। नेहा को तो जैसे तुरंत समझ आ गया और वो उनको देख कर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी।
सोनिया ने तुरंत राजन को हटाया और अपनी ड्रेस ठीक की- आप सच में बहुत बेशरम हो।
राजन- अब वो बेचारा इतनी मेहनत करके बाहर आया और कोई उसे चूमे भी नहीं? ये तो बड़ी नाइंसाफी हो जाती ना, इसमें बेशर्मी की क्या बात है?
सोनिया- ठीक है, ठीक है… रहने दो।
तभी पिज़्ज़ा आ गया। रात के कुछ नौ बजे होंगे; सब ने मिलकर फैसला किया कि पहले वहीं पिज़्ज़ा खा लेते हैं, फिर अंदर बेडरूम में जा कर पीने और ताश खेलने का कार्यक्रम शुरू करेंगे।
लेकिन ताश कैसे खेलना है वो अभी तय नहीं हुआ था, इसलिए पिज़्ज़ा खाते-खाते ही इस बात पर विचार-विमर्श होने लगा।
समीर- मुझे ताश खेलने का कोई अनुभव नहीं है इसलिए कोई आसान सा खेल होना चाहिए, जो मैं बिना अनुभव के भी खेल सकूँ।
राजन- सत्ती सेंटर कैसा रहेगा?
सोनिया- लेकिन जब तक कुछ दाव पर ना लगाया जाए मजा नहीं आएगा।
नेहा- लेकिन हमारे पास तो पैसे ही नहीं हैं, हम क्या लगा पाएंगे दाव पर।
समीर ने भी नेहा का साथ दिया। काफी बातें करने के बाद राजन ने आखिर एक हल निकाला।
राजन- एक काम करते हैं, सत्ती सेंटर ही खेलते हैं। दाव पर कोई कुछ नहीं लगाएगा लेकिन जीतने वाला हारने वालों से जो चाहे करवा सकता है। मतलब कोई भी टास्क। जैसे वो टीवी पर दिखाते हैं ना एक मिनट में कोई टास्क करने को बोलते हैं।
समीर- लेकिन खेलना कैसे है वो तो बता दो; मुझे तो कुछ भी नहीं आता।
राजन- अरे, बहुत सरल है, देखो! सबको बराबर पत्ते बाँट देते हैं फिर जिसको लाल-पान की सत्ती मिली हो वो उसको बीच में रख देता है और अगले की चाल आती है। उसके पास लाल-पान का अट्ठा या छक्की हो तो वो
इस सत्ती के ऊपर या नीचे रख सकता है। नहीं तो किसी और रंग की सत्ती बाजू में रख सकता है। और वो भी नहीं तो पास बोल दो। अगले वाले कि चाल आ जाएगी। सबसे पहले जिसके पत्ते ख़त्म हुए वो जीत गया समझो।
नेहा- फिर जिसके पास जितने पत्ते बचते हैं उनका जोड़ लगा कर नंबर मिलते हैं।
सोनिया- ठीक है। जिसको सबसे ज्यादा नंबर मिलेंगे उसको सबसे कठिन काम देंगे और सबसे कम नंबर वाले को आसान काम।
राजन- हम्म! और अगर किसी को टास्क नहीं करना हो, तो गेम छोड़ के जा सकता है। कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं है; ठीक है?
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