Hindi Antarvasna - आशा (सामाजिक उपन्यास)
10-12-2020, 01:30 PM,
#41
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
आशा का मन अमर से न मिल पाने के कारण इतना उदास हो गया कि उससे मिलने फिल्म इन्डस्ट्री के माने हुए डायरेक्टर विनोद तिवारी आए । उन्होंने आशा को उनकी नई फिल्म में हीरोईन का रोल करने का आफर दिया मगर चूंकि आशा का मूड इतना बिगड़ा हुआ था । अंत उसने उनसे भी सीधे मुंह बात नहीं की । अंत में हारकर वे आशा के घर का पता लेकर चले गए और यह चेतावनी भी देते गए कि वह आगे बात करने उसके घर पहुंचेगे ।
सारे दिन में एक बार भी सिन्हा ने आशा को डिक्टेशन के लिये नहीं बुलाया ।
शाम को सिन्हा अपने आफिस से बाहर निकला ।
आशा ने उसे देखा और वह उठकर खड़ी हो गई ।
“अरे, बैठो, बैठो, बाबा ।” - सिन्हा जल्दी से बोला ।
आशा सकुचाती हुई बैठ गई ।
सिन्हा उसकी मेज के सामने की कुर्सी पर आकर बैठ गया ।
“जेपी सेठ से तो सब तुम्हारी अक्सर मुलाकात हुआ करेगी ।” - सिन्हा बोला ।
“जी नहीं...”
“अब नहीं तो शादी के बाद तो हुआ ही करेगी ।”
“लेकिन शादी...”
“देखो ।” - सिन्हा उसकी बात काटता हुआ बोला - “मेरी बड़ी पुरानी इच्छा है कि जेपी की कोई फिल्म हमें मिल जाए । उसकी फिल्में सब हिट जाती हैं । उसकी एक फिल्म इतना बिजनेस देती है जो दूसरी कोई नहीं देती । अगर तुम चाहो तो मेरी बरसों पुरानी इच्छा पूरी हो सकती है ।”
“मै चाहूं तो ?” - आशा हैरानी से बोली ।
“हां । तुम अगर कभी मौका लगने पर जेपी सेठ के सामने मेरे इन्टरेस्ट का जिक्र भी कर दोगी तो मेरा काम बन जायेगा ।”
“जेपी सेठ भला मेरी बात क्यों मानेंगे ?”
“क्यों नहीं मानेंगे ? तुम उनकी होने वाली बहू हो । तुम्हारे लिये तो वे आसमान के तारे तोड़कर मंगवा देंगे । यह तो बड़ी मामूली बात है । जेपी ने किसी को तो फिल्म देनी ही है । किसी दूसरे को दी या मुझे दी उन्हें क्या फर्क पड़ता है ।”
“आप मेरा मतलब नहीं समझे ।” - आशा विनम्र स्वर से बोली - “मैं यह कहना चाहती थी कि मैं उसकी बहू नहीं बनने वाली हूं । मै अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
“यह तो टालने वाली बात हो गई ।”
“आप गलत समझ रहे हैं, सर । मेरा वाकई अशोक से शादी करने का कोई इरादा नहीं ।”
“अच्छा छोड़ो । मान लो तुम्हारा अशोक से शादी करने का इरादा बन गया और तुमने उससे शादी कर लो, तब तुम मेरा काम कर दोगी ?”
आशा चुप रही ।
“अच्छी बात है ।” - सिन्हा कुर्सी से उठता हुआ बोला - “वैसे मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि तुम और लोगों की तरह मुझ से भी झूठ बोलकर पीछा छुड़ाने की कोशिश करोगी कि तुम अशोक से शादी नहीं कर रही हो ।”
“लेकिन सर” - आशा परेशान स्वर से बोली - “मैं आप को कैसे विश्वास दिलाऊं कि मैं आपसे झूठ नहीं बोल रही हूं ।”
“खैर, छोड़ो ।” - सिन्हा बोला - “मैं फिर बात करूंगा तुमसे ।”
और वह लम्बे डग भरता हुआ अपने आफिस में प्रविष्ट हो गया ।
हे भगवान ! - आशा ने सिर थाम लिया और मन ही मन बड़बड़ाई - यह किस झमेले में फंस गई मैं ।
पांच बजने से थोड़ी देर पहले टेलीफोन की घन्टी घनघना उठी ।
आशा ने रिसीवर उठाकर कान से लगा लिया और बोली - “हल्लो ।”
“आशा !” - दूसरी ओर से एक स्त्री का स्वर सुनाई दिया ।
“यस, मैडम ।”
“मैं अर्चना माथुर बोल रही हूं ।”
“नमस्ते जी, सिन्हा साहब से बात करवाऊं आपकी...”
“अरे नहीं । ऐसा मत करना । मैंने तुम्हीं से बात करने के लिये फोन किया है ।”
“मुझ से !” - आशा आश्चर्यपूर्ण स्वर से बोली ।
“हां । देखो, मैं तुम्हारे पास दफ्तर में नहीं आ सकती क्योंकि इस वक्त मैं सिन्हा से मिलने के मूड में नहीं हूं । मैं नीचे अपनी कार में बैठी तुम्हारा इन्तजार कर रही हूं । तुम फौरन नीचे आ जाओ ।”
“लेकिन...”
“अरे आओ न, बाबा ।”
“अच्छा जी । आती हूं ।”
“मैं इन्तजार कर रही हूं । फेमससिने बिल्डिंग से सौ सवा सौ गज दूर जेकब सर्कल की ओर मेरी कार खड़ी है । नम्बर है ब्यालीस चौवालीस । तलाश कर लोगी ?”
“कर लूंगी ।”
“ओके।”
सम्बन्ध विच्छेद हो गया ।
आशा ने भी रिसीवर क्रेडिल पर रख दिया ।
पांच बजे वह दफ्तर से बाहर निकल आई ।
इमारत के मुख्य द्वार से बाहर निकलते समय उसके कानों में एक स्वर पड़ा - “अबे यही है वो लड़की जिसकी आज फिल्मी धमाका में अर्चना माथुर के साथ फोटो छपी है । जेपी सेठ के लड़के अशोक से शादी हो रही है इसकी । और सुना है जेपी की अगली फिल्म में देवानन्द के साथ हीरोइन आ रही है ।”
आशा ने घूमकर पीछे नहीं देखा । वह इमारत से बाहर निकला और तेज कदमों से जेकब सर्किल की दिशा में चल दी ।
अर्चना माथुर बड़े बड़े शीशों वाला चश्मा लगाये कार की ड्राइविंग सीट पर बैठी थी ।
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10-12-2020, 01:30 PM,
#42
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“नमस्ते जी ।” - आशा उसके समीप पहुंचकर शिष्ट स्वर से बोली ।
“आओ ।” - माथुर हाथ बढाकर दूसरी ओर का द्वार खोलती हुई बोली ।
आशा हिचकिचाई ।
“अरे आओ न ।” - अर्चना माथुर आग्रहपूर्ण स्वर से बोली - “घर तो जाओगी न !”
आशा कार के सामने से घूमकर दूसरी दिशा में आई और कार में अर्चना माथुर की बगल में आ बैठी ।
अर्चना माथुर ने कार स्टार्ट कर दी ।
कार जेकब सर्कल की ओर बढ गई ।
“तुम तो कोलाबा रहती हो न ?”
“जी हां ।”
“अशोक से दुबारा मुलाकात हुई तुम्हारी ?”
“नहीं ।”
“तुम्हारी बहुत तारीफ करता है ।”
आशा चुप रही ।
“तुम से बहुत मुहब्बत करता है । जेपी के सामने अड़ गया कि अगर शादी करूंगा तो आशा से नहीं तो उम्र भर कुंआरा बैठा रहूंगा । अशोक जेपी का इकलौता लड़का है । जेपी ने आज तक अशोक की अच्छा नहीं टाली लेकिन फिर भी जेपी यह नहीं चाहता था कि अशोक किसी कामगर [साधारण लड़की] से शादी करे । लेकिन अब वह खुश मालूम होता है । तुम्हारी सूरत भर देख लेने से, लगता है, उसकी सारी शिकायतें मिट गई हैं, सारे एतराज खतम हो गये हैं । तुम वाकेई बहुत खुशकिस्मत हो ।”
आशा चुप रही ।
“तुम बोलती बहुत कम हो ।” -अर्चना माथुर एक उचटती हुई दृष्टि उस पर डालकर बाहर सड़क पर झांकती हुई बोली ।
“नहीं तो ।” - आशा शिष्ट स्वर से बोली ।
“मुझ से नाराज हो ?”
“आप से क्यों नाराज होने लगी भला मैं ।”
“अरी, बहना, मेरी किसी बात का बुरा मत मानना । ऊपर से मैं तुम्हें कुछ भी दिखाई दूं लेकिन दिल की बड़ी साफ औरत हूं मैं । यह तो कम्बख्त फिल्म लाइन ही ऐसी है कि हर वक्त आदमी का भेजा फिरा रहता है । व्यस्तता इतनी रहती है कि दो घड़ी चैन से सांस लेने की फुरसत नहीं मिलती । हर समय दिमाग डिस्टर्ब रहता है और उसी झुंझलाहट में मुंह से पता नहीं किसके लिये क्या निकल जाता है । अगर मैंने तुमसे कभी कोई ऊल-जलूल बात कह दी हो या भविष्य में कभी कह दूं तो मुझे माफ कर देना ।”
“आप तो शर्मिन्दा कर रही हैं मुझे ।” - आशा धीरे से बोली । एकाएक वह बड़ी बेचैनी का अनुभव करने लगी थी ।
अर्चना माथुर कुछ नहीं बोली । कितनी ही देर वह चुपचाप गाड़ी चलाती रही ।
“तुम मेरा एक काम करो, बहना ।” - एकाएक वह बोली ।
“क्या ?” - आशा ने संशक स्वर से पूछा ।
“करोगी ?”
“अगर मेरे करने लायक हुआ तो जरूर करूंगी ।”
“तुम्हारे करने लायक है ।”
“बताइये ।”
“मैंने लोनावला में एक फार्म खरीदा है । फार्म के साथ मैंने एक छोटा सा बंगला बनवाया है । कल मैं वहां पहली बार जा रही हूं । वहां मैंने एक पार्टी का आयोजन किया है । फिल्म इंडस्ट्री के लगभग सभी जाने-माने लोग कल शाम को वहां आ रहे हैं । जेपी सेठ और अशोक भी आ रहे हैं । कल तुम भी वहां आना । आओगी न ?”
“लेकिन लोनावला तों बहुत दूर है ।”
“तुम फासले की चिन्ता मत करो । तुम्हें वहां पहुचने में या वहां से लौटने में तकलीफ न हो, इस बात का इन्तजाम मैं कर दूंगी ।”
“लेकिन मैं ऑफिस से छुट्टी नहीं लेना चाहती ।”
“वैसे तो तुम्हें चाहिये कि अब तुम आफिस को भाड़ में झोंक दो लेकिन अगर कोई टैक्नीकल दिक्कत है तो तुम्हें छुट्टी लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । पांच बजे के बाद या अशोक तुम्हें लेने आ जायेगा या मैं गाड़ी भेज दूंगी ।”
“अच्छा !” - आशा अनिच्छापूर्ण स्वर से बोली ।
“लोनावला में मैं किसी बहाने से जेपी के सामने उसकी नई फिल्म सपनों की दुनिया का जिक्र शुरू करवा दूंगी । उस सन्दर्भ में तुम एक बार जेपी के सामने यह कह देना कि इतने ऊंचे बजट पर बनने वाली फिल्म में अर्चना माथुर ही हीरोइन होनी चाहिए ।”
आशा चुप रही ।
“फिर कभी एक बार तुम मेरे इन्टरेस्ट की बात जेपी से या अशोक से अकेले में कह देना । बस, मेरा काम बन जायेगा ।”
उसी क्षण अर्चना माथुर की गाड़ी वेलिंगटन सर्कल पर पहुंची और स्ट्रेंड सिनेमा के लिये भगतसिंह रोड पर जाने के स्थान पर अपोलो पायर रोड की ओर घूम गई ।
“इधर कहां ?” - आशा ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“ताजमहल होटल में चलते हैं” - अर्चना माथुर बोली - “कुछ चाय वाय पियंगे ।”
“लेकिन...”
“जल्दी क्या है तुम्हें ? घर जाकर भी क्या करोगी ?”
आशा चुप हो गई ।
“फिर ठीक है न ? कल लोनावला आ रही हो न ?”
आशा ने उत्तर नहीं दिया ।
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10-12-2020, 01:30 PM,
#43
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
अगली सुबह तिवारी जी सचमुच ही आशा के घर पहुंच गये । आशा उन्हें देखकर हैरान हो गई ।
“आप यहां कैसे पहुंच गये ?” - आशा बोली ।
“बस, ढूंढता चला आया ।” - तिवारी जी मुस्कराकर बोले ।
“आइये ।” - आशा घर से एक ओर हटती हुई बोली ।
तिवारी जी चेहरे पर विनयपूर्ण मुस्कराहट लिये भीतर प्रविष्ट हो गये ।
“तशरीफ रखिये ।” - आशा ने एक कुर्सी की ओर संकेत किया ।
“धन्यवाद ।” - तिवारी जी निर्दिष्ट कुर्सी पर बैठते हुए बोले ।
“आप चाय पियेंगे ?”
“पी लूंगा !”
उसी क्षण सरला चाय को केतली और दो प्याले लेकर किचन में से निकली ।
“आहा, तिवारी जी हैं ।” - सरला तिवारी जी पर दृष्टि पड़ते ही बोली ।
तिवारी जी मुस्कराये ।
“आप इधर कैसे भूल पड़े, तिवारी जी !” - सरला हाथ का सामान मेज पर रखती हुई बोली ।
“आशा से मिलने आया हूं ।” - तिवारी जी तनिक नर्वस स्वर से बोले - “तुम भी आशा के साथ ही रहती हो ?”
“हां । अरसा हो गया ।”
“तुम तिवारी जी को जानती हो, सरला ?” - आशा ने पूछा ।
“अरे, खूब अच्छी तरह से जानती हूं ।” - सरला बोली - “आज तक जो मुझे फिल्मों में सबसे लम्बा रोल मिला है, उसकी टोटल ड्यूरेशन दस मिनट थी और वह रोल लगभग एक साल पहले मुझे तिवारी जी ही ने दिया था अपनी फिल्म में क्यों तिवारी जी ?”
“हां ।” - तिवारी जी स्वीकृतिसूचक ढंग से सिर हिलाते हुए बोले ।
“चाय तिवारी जी भी पियंगे ।” - आशा ने बताया ।
“जरूर पियेंगे ।” - सरला बोली । उसने दो प्यालों में चाय डालकर आशा और तिवारी जी के सामने रख दी । और फिर किचन में जाकर एक कप और एक प्लेट और ले आई ।
सरला ने भी अपना कप भरा और गर्म-गर्म चाय का एक लम्बा घूंट से नीचे उतारने के बाद आशा से सम्बोधित हुई - “बहुत भले आदमी हैं, तिवारी जी । बहुत ऊंचे दर्जे की फिल्म बनाते हैं लेकिन तकदीर की मार है फिल्म बाक्स आफिस पर पिट जाती है । पिछले साल इन्होंने तीन फिल्में बनाईं, तीनों का यही हाल हुआ । अखबार में फिल्मों की तारीफ छपी, प्रशंसा पत्र भी मिले लेकिन फिल्मों ने बिजनेस नहीं किया । अब हालत यह है कि कोई इनकी नई फिल्म पर पैसा लगाने के लिये तैयार नहीं है । बेचारे बड़े परेशान हैं आजकल ।”
आशा ने आश्चर्यपूर्ण ढंग से तिवारी जी की ओर देखा ।
तिवारी जी के चेहरे की रंगत बदल गई थी । सरला की वाकचलता ने उन्हें आशा के सामने एक्सपोज करके रख दिया था ।
कितनी ही देर कोई कुछ नहीं बोला ।
अन्त में तिवारी जी ने चाय पीकर खाली कप मेज पर रख दिया और आशा से बोले - “फिर तुमने सोचा कुछ ?”
“तिवारी जी” - आशा गम्भीर स्वर से बोली - “मैं...”
“किस बारे में ?” - सरला बीच में बोल पड़ी - “किस्सा क्या है ?”
“तिवारी जी मुझे अपनी नई फिल्म में हीरोइन का रोल देना चाहते हैं ।” - आशा ने बताया ।
“पैसे का इन्तजाम हो गया तिवारी जी ?” - सरला ने पूछा - “कोई फाइनेन्सर भिड़ गया क्या ?”
तिवारी जी बगलें झांकने लगे । उन्होंने उत्तर नहीं दिया ।
“किस्सा क्या है तिवारी जी ?” - सरला आग्रहपूर्ण स्वर से बोली - “देखिये, अगर पटड़ी कहीं बैठ रही है तो मेरे लिये भी बड़ा सा रोल निकालियेगा इस बार ।”
तिवारी जी कुछ क्षण चुप रहे और फिर गहरी सांस लेकर बोले - “वह सब तो तभी होगा जब तुम्हारी सहेली हां करेगी ।”
“आशा ?”
“हां !”
“आशा की हां का फिल्म के लिये फाइनान्स से क्या सम्बन्ध है ?”
“बड़ा गहरा सम्बन्ध है” - तिवारी जी धीरे से बोले - “अगर आशा मेरी फिल्म की हीरोइन बनना स्वीकार कर लेगी तो फाइनान्स मैं जेपी सेठ से हासिल कर लूंगा । मेरी फिल्म में पैसा लगाना जेपी सेठ के लिये मामूली बात है । जितने पैसे में उसकी ऊंचे बजट वाली फिल्म का एक सैट तैयार होता है उतने में तो मेरी फिल्म बन जाती है । मुझे विश्वास है अगर आशा मेरी फिल्म में थोड़ी सी दिलचस्पी जाहिर कर देगी तो जेपी सेठ इनकार नहीं करेंगे । मेरी खातिर नहीं, आशा की खातिर इनकार नहीं करेंगे ।”
“तो यह बात है ।” - आशा के मुंह से निकल गया ।
तिवारी जी चुप रहे ।
“कल जब आप मेरे पास आये थे” - आशा बोली - “तो मुझे इतनी समझ तो आ गई थी कि आप मेरे और अशोक के सम्बन्ध की चर्चा सुन कर ही मेरे पास खिंचे चले आये हैं लेकिन मुझे यह समझ नहीं आ रहा था कि उस सम्बन्ध के सन्दर्भ में मुझे अपने फिल्म की हीरोइन बनाकर आपको फायदा क्या होगा ? मुझे अब समझ में आया ।”
तिवारी जी सिर झुकाये चुपचाप बैठे रहे ।
“तिवारी जी ।” - आशा एकदम बदले स्वर से बोली - “अभिनेत्री बनने का शौक न मुझे पहले था, न अब है । जो बात मैंने कल दफ्तर में आपसे कही थी, वही बात मैं दुबारा आपके सामने दोहरा रही हूं । फिलहाल मेरा अशोक से शादी करने का कोई इरादा नहीं है । भविष्य में अगर मेरा इरादा बदल गया और कभी मैं ऐसी स्थिति में हुई कि मैं किसी की सहायता कर सकूं तो मैं आपसे वादा करती हूं कि आपकी सहायता जरूर करूंगी ।”
“लेकिन बेटी ।” - तिवारी जी बोले - “तुम ऐसा महसूस नहीं करती हो कि अशोक जैसे लड़के से शादी न करने का इरादा करके तुम भारी गलती कर रही हो । अगर तुम अशोक से शादी...”
“तिवारी जी” - आशा तनिक कठोर स्वर से बोली - “यह मेरा निजी मामला है, इसमें मुझे किसी की राय की जरूरत नहीं । मैं अपने भविष्य का फैसला खुद ही करना चाहती हूं ।”
तिवारी जी क्षमा याचना करते हुए चुप हो गये ।
सरला ने कुछ कहने के लिये मुंह खोला लेकिन फिर होंठ भींच लिये ।
एकाएक तिवारी जी उठ खड़े हुए और बोले - “अच्छा, मैं चलता हूं ।”
“नमस्ते ।” - आशा बोली ।
तिवारी जी भारी कदमों में चलते हुए कमरे से बाहर निकल गये ।
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10-12-2020, 01:32 PM,
#44
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
आशा बस की लाइन में खड़ी बस की प्रतीक्षा कर रही थी ।
एक शेवरलेट गाड़ी आशा के सामने आकर रुकी और किसी ने उसे आवाज दी - “आशा !”
आशा ने घूमकर कार के भीतर देखा । शेवरलेट की ड्राइविंग सीट पर जेपी बैठा था ।
“दफ्तर जा रही हो ?” - जेपी ने पूछा ।
आशा ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
“मैं बाहर जा रहा हूं । आओ तुम्हें रास्ते में छोड़ता आऊंगा ।”
आशा हिचकिचाई ।
“अरे आओ न ।” - जेपी बोला और उसने कार का आशा की ओर वाला द्वार खोल दिया ।
आशा ने अपने दाये बायें देखा । लाइन में खड़ा हर व्यक्ति बड़े विचित्र नेत्रों से उसे घूर रहा था । आशा को लगा जैसे वह भारी परेशानी का अनुभव कर रही थी ।
“और क्या हाल है ?” - जेपी बोला ।
“ठीक है, जी ।” - आशा सकुचाती हुई बोली ।
“अशोक मिला ?”
“जी नहीं ।”
“अभी तुमने सिन्हा की नौकरी नहीं छोड़ी ?”
“जी नहीं ।”
“अब तो तुम एक ग्रैंड स्टैण्ड की खातिर, लोगों में चर्चा का विषय बनने की खातिर ही नौकरी कर रही हो, वैसे तुम्हें नौकरी करने की जरूरत तो है नहीं अब ।”
आशा ने उत्तर नहीं दिया ।
“अशोक तुम्हारी बहुत तारीफ करता है ।”
“.........।”
“तुमसे बहुत मुहब्बत करता है ।”
“.....।”
“तुमने क्या तो जादू कर दिया है उस पर ।”
“.....।”
“अगर तुम इसे अपना प्रोफेशनल सीक्रेट न समझो तो एक बात पूछं ?”
“पूछिये ।”
“तुमने अशोक को फंसाया कैसे ?”
आशा जल उठी । वह अपने स्वर को सन्तुलित रखने का भरसक प्रयत्न करती हुई बोली - “मैंने अशोक को नहीं फंसाया है ।”
“ओह ! अशोक ही तुम्हारे पीछे पड़ा हुआ है । और वही जिद कर रहा है कि आशा मुझसे शादी कर लो । आशा मुझसे शादी करलो । हैं ?”
आशा चुप रही ।
“मतलब यह कि तुमने ऐसी तरकीब भिड़ाई है कि अशोक यह समझे कि वह ही तुम्हारा दीवाना है । तुम्हें उसकी कोई विशेष परवाह नहीं है । तुम तो उसकी शादी का प्रपोजल स्वीकार करके, उसकी हीरे की अंगूठी स्वीकर करके उस पर अहसान कर रही हो ।”
“ऐसी बातें करने का क्या फायदा है, सेठ जी ?” - आशा दुखित स्वर से बोली ।
जेपी चुप हो गया ।
“अच्छा एक बात बताओ ।” - थोड़ी देर बाद जेपी फिर बोला ।
“पूछिये ।”
“जिस उद्देश्य की खातिर तुम अशोक से शादी कर रही हो अगर तुम्हारा वह उद्देश्य न पूरा हुआ तो ?”
“क्या उद्देश्य है मेरा ?” - आशा ने कठिन स्वर से बोला ।
“जब कोई गरीब लड़की किसी अमीर लड़के को इस हद तक अपनी खूबसूरती और जवानी से प्रभावित कर लेती है कि लड़का उससे शादी करने के लिये तैयार हो जाये को उद्देश्य एक ही होता है । दौलत और रुतबा हासिल करना ।”
“मैंने ऐसी घृणित बात कभी नहीं सोची है ।” - आशा तनिक क्रोधित स्वर में बोली ।
“ऐसी बात सोचने की जरूरत ही नहीं पड़ती ये तो अपने आप दिमाग में पनपती हैं । देखो, अशोक एक रईस बाप का बेटा जरूर है लेकिन खुद रर्ईस नहीं है । उसके अपने नाम एक नया पैसा भी नहीं है । अपनी मामूली से मामूली जरूरत के लिये उसे मेरे सामने हाथ फैलाना पड़ता है । मैंने आज तक अशोक को जिन्दगी की किसी भी सुख-सुविधा से वंचित नहीं रखा है । मैंने उसकी हर इच्छा पूरी की है । उसने जो मांगा है मैंने उसे दिया है । इसी वजह से वह दोनों हाथों से मेरा पैसा उड़ाता है लेकिन क्योंकि मुझे पैसे की कमी नहीं है । इसिलये मैंने कभी परवाह नहीं की है । अशोक मेरा इकलौता बेटा है । मैं मर जाऊंगा तो मेरी करोड़ों की सम्पत्ति का वह अकेला वारिस होगा । इसीलिये तुम्हारे जैसी लड़कियां उसके साथ यूं चिपकी रहती हैं जैसे गुड़ के साथ मक्खियां । बहुत लड़कियों ने अशोक से विवाह के लिये हां करवाने के लिये अपना बहुत कुछ कुर्बान कर दिया है लेकिन अशोक कभी भी किसी के साथ बन्ध जाने के लिये राजी नहीं हुआ है । तुम पहली लड़की हो जो अशोक को शादी के लिये तैयार करने में सफल हो गई है । जब अच्छी खासी रर्इस लड़कियों की नजर मेरी दौलत पर थी तो मैं कैसे मान लूं कि तुम केवल मुहब्बत की खातिर अशोक से मुहब्बत कर रही हो ।”
“मैं अशोक से मुहब्बत नहीं कर रही हूं ।”
“हां, हां मुहब्बत तो तुम किसी और से, किसी अपने ही वर्ग के लड़के से कर रही होगी, अशोक से तो तुम केवल शादी कर रही हो ।”
“मैं अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
“मुझसे झूठ बोलने का क्या फायदा होगा जबकि अशोक मुझे पहले ही सब कुछ बता चुका है ।”
“मैं आप से झूठ नहीं बोल रही हूं और आप मेरी नीयत पर शक करके मुझे अपमानित कर रहे हैं । सेठ जी, भगवान कसम मैं वैसी लड़की नहीं हूं ।” - आशा का गला भर आया ।
“अच्छा, मान अपमान की भावना है तुममें ?” - जेपी व्यंग्यपूर्ण स्वर से बोला ।
आशा चुप रही ।
“अच्छा एक बात बताओ ।” - जेपी कुछ क्षण रूक कर बोला ।
“फरमाइये ।”
“अगर मैं तुम्हें वैसे ही ढेर सारा रुपया दे दूं तो क्या तुम अशोक का पीछा छोड़ दोगी ?”
आशा ने उत्तर नहीं दिया ।
“मतलब यह है कि अशोक का पीछा तुम नहीं छोड़ोगी । ठीक भी है । जब सारी दौलत पर नजर हो तो उनके एक भाग का लालच तुम्हें कैसे लुभा सकता है ।”
आशा के लिये और सहन कर पाना कठिन हो गया ।
“सेठ जी ।” - वह कठिन स्वर से बोली - “जरा गाड़ी रोकिये ।”
“क्यों ?” - जेपी बोला - “अभी तो महालक्ष्मी बहुत दूर है ।”
“जी हां, मुझे मालूम है ।” - लेकिन मुझे यहीं उतरना है ।
“अच्छी बात है ।” - जेपी बोला और उसने गाड़ी को मोटर ट्रेफिक में से निकाल कर एक ओर रोक दिया ।
“अब शायद तुम अशोक को जाकर बताओगी” - जेपी बोला - “कि किस प्रकार मैंने तुम्हारा अनादर किया है, तुम्हारी नीयत पर शक किया है, तुम्हारे पवित्र प्यार की उससे भी पवित्र भावनाओं की खिल्ली उड़ाई है, तुम पर गोल्ड डिगर होने का लांछन लगाया है वगैरह... वगैरह...”
आशा कार का द्वार खोलकर बाहर फुटपाथ पर आ खड़ी हुई और द्वार को दुबारा बन्द करती हुई सुसंयत स्वर से बोली - “नमस्ते सेठ जी, लिफ्ट के लिये धन्यवाद ।”
“धन्यवाद कैसा ।” - जेपी सहज स्वर से बोला - “गाड़ी तम्हारी है । अभी नहीं है तो कुछ दिनों में हो जायेगी । वैसे शादी जल्दी ही कर रही हो या बिल्ली चूहे को मारने से पहले अभी थोड़ी देर और खिलायेगी ।”
आशा जेपी की बात अनसुनी करती हुई फुटपाथ पर चलने लगी । कुछ क्षण जेपी की गाड़ी पीछे फुटपाथ के साथ लगी खड़ी रही, फिर गाड़ी स्टार्ट हुई और सर्र से आशा की बगल में से निकल गई और सड़क पर दौड़ती हुई अनगिनत मोटर गाड़ियों की भीड़ में कहीं गुम हो गई ।
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10-12-2020, 01:32 PM,
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RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
आशा दफ्तर में बैठी अशोक के टेलीफोन काल का इन्तजार करती रही ।
लगभग साढे बारह बजे सिन्हा अपने आफिस में से निकला और आशा से बोला - “मैं जा रहा हूं । शाम को मैंने एक जरूरी काम से लोनावला जाना है, इसलिये अब लौट कर नहीं आऊंगा । तुम भी चाहो तो आज जल्दी छुट्टी कर लेना ।”
“राइट, सर ।” - आशा बोली ।
सिन्हा चला गया ।
शाम को तीन बजे के करीब अशोक का टैलीफोन आया ।
“हाय, बेबी ।” - टेलीफोन पर अशोक का उत्साहपूर्ण स्वर सुनाई दिया ।
“अशोक ।” - आशा व्यग्र स्वर में बोली - “तुम कहां से बोल रहे हो । मैं कल से तुम्हारे टैलीफोन का इन्तजार कर रही हूं ।”
“कोई खास बात हो गई है क्या ?”
“मैं तुम एक बहुत जरूरी बात करना चाहती हूं । तुम अभी यहां आ सकते हो ?” - आशा ने एक उचटती हुई दृष्टि हीरे की अंगूठी पर डालते हुए प्रश्न किया ।
“इस वक्त तो आ पाना असम्भव है आशा । देखो, अर्चना माथुर मुझसे मिली थी । उसने लोनावला में एक फार्म खरीदा है और वहां एक छोटा सा बंगला भी बनवाया है । आज वह कुछ फिल्मी लोगों को वहां पार्टी दे रही है । अर्चना ने मुझे बताया है कि लोनावला वाली पार्टी के लिये तुम्हें पहले ही आमन्त्रित कर चुकी है मैं पांच बजे तुम्हारे लिये गाड़ी भेज दूंगा । शोफर तुम्हें लोनावला ले जायेगा । फिर वहीं बातें होगी ।”
“तुम खुद नहीं आ सकते ?”
“नहीं, आशा । मैं बहुत बहुत माफी चाहता हूं । मैं यहां एक बहुत जरूरी काम से जेपी के साथ फंसा हुआ हूं ।”
“लेकिन मैं लोनावाला नहीं जाना चाहती ।”
“अरे, चलो । बहुत मजा आयेगा ।”
“तुम वाकई यहां नहीं आ सकते ।”
“नहीं । अगर आ सकता होता तो तुम से झूठ बोलता ?”
आशा चुप रही ।
“तो फिर लोनावला चल रही हो न ?” - अशोक ने व्यग्र स्वर में पूछा ।
“अच्छा ।” - आशा बोली ।
“फाइन । ड्राइवर पांच बजे गाड़ी से घर पहुंच जायेगा । मैं तुम्हें लोनावला में ही मिलूंगा । तब तक के लिये बाई ।”
“बाई ।” - आशा बोली और उसने रिसीवर रख दिया ।
पूरे पांच बजे शोफर आशा को लेने पहुंच गया ।
पौने सात बजे शोफर ने लोनावला में अर्चना माथुर के फार्म हाउस के सामने ला खड़ी की ।
बंगले के सामने गाड़ियों का ताता लगा हुआ था । काफी मेहमान आ चुके थे और काफी अभी चले आ रहे थे । भीतर रेडियोग्राम में से फूटती स्वर लहरियों के साथ मेहमानों के गगन भेदी अट्टाहास गूंज रहे थे । जिनमें जेपी की आवाज सबसे ऊंची थी ।
“आ गई तुम ?” - अर्चना माथुर ने एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट के साथ आशा का स्वागत किया ।
“हां ।” - आशा बोली - “अशोक कहां है ?”
“अशोक अभी नहीं आया है ।” - अर्चना माथुर ने बताया - “तुम भीतर चलो । अशोक भी अभी आता ही होगा । ज्यों ही वह आयेगा मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगी ।”
“अच्छा ।” - आशा अनमने स्वर से बोली ।
“आओ तुम्हें भीतर छोड़ आऊं ।” - अर्चना उसका हाथ थामती हुई बोली ।
भीतर शराब के दौर चल रहे थे । क्या औरतें क्या आदमी सब पी रहे थे, खा रहे थे और बेतहाशा हंस रहे थे । एक कोने में जेपी अपनी अलग महफिल जमाये बैठा था ।
“जेपी, आशा आई है ।” - अर्चना माथुर उसे जेपी के सामने ले जाकर बोली ।
“अच्छा !” - जेपी आशा को देखता हुआ बोला - “बड़ी खुशी की बात है ।”
जेपी ने अपनी बगल में से एक लड़की को दूसरी ओर धकेल दिया और खाली स्थान को अपनी हथेली से थपथपाता हुआ बोला - “आओ, आशा, बैठो ।”
आशा एक क्षण हिचकिचाई और फिर निश्चयपूर्ण स्वर से बोली - “मैं इधर बैठती हूं सेठ जी ।”
और वह जेपी की महफिल के झुंड से हटकर रेडियोग्राम के समीप पड़े एक खाली सोफे पर बैठ गई ।
जेपी सेठ ने एक आह भरी और बोला - “मर्जी तुम्हारी । अशोक अभी आता होगा ।”
अशोक द्वार के समीप खड़ा अर्चना माथुर से बातें कर था । आशा उसके समीप पहुंच गई ।
“हल्लो, आशा ।” - अशोक प्रसन्न स्वर से बोला ।
“हल्लो ।” - आशा के होंठों पर एक फीकी सी मुस्कराहट आ गई ।
“मैं हटूं यहां से ।” - अर्चना माथुर बोली - “मैं क्यों कबाब में हड्डी बनूं ।”
और अर्चना वहां से हट गई ।
अशोक ने आशा का हाथ थामा और इमारत से बाहर निकल आया । इमारत के सामने फार्म की हद के पास एक पेड़ के नीचे एक बेच पड़ा था । दोनों उस बेच पर आ बैठे ।
“क्या बात थी ?” - अशोक मुस्कराता हुआ बोला - “क्या जरूरी बात करना चाहती थी तुम मुझसे ?”
अशोक के आने से पहले जिस बात को वह कम से कम एक हजार बार अपने मन में दोहरा चुकी थी, वह एकाएक उसकी जुबान पर नहीं आई ।
“क्या बात है ?” - अशोक ने फिर पूछा ।
“अशोक ।” - आशा जी कड़ा करके बोली - “मैं तुम्हारी अंगुठी तुम्हें लौटाना चाहती हूं ।”
और उसने अंगूठी को ऊंगली में से उतारने का उपक्रम किया ।
अशोक ने उसका हाय थाम कर उसे अंगूठी उतारने से रोक दिया ।
“क्या बात हो गई है ?” - अशोक ने पूछा ।
“अशोक ।” - आशा भर्राये स्वर से बोली - “मैं तमसे मुहब्बत नहीं करती । मैं तुमसे शादी कर नहीं सकती । इसलिये मैं तुम्हारी अंगूठी तुम्हें लौटाना चाहती हूं ।”
“कोई नई बात हो गई है क्या ?”
“नहीं ।”
अशोक एक क्षण चुप रहा और फिर बोला - “एक बात बताओ ।”
“क्या ?”
“तुम्हारी जेपी से तो कोई बात नहीं हुई ? इस विषय में तुम्हारी जेपी से तो कोई झड़प नहीं हो गई है ?”
“नहीं ।” - आशा कठिन स्वर से बोली ।
“तो फिर एकाएक इतनी बेरुखी क्यों दिखा रही हो ?”
“मैं बेरूखी नहीं दिखा रही हूं । मैं यह बात तुम्हें इसलिये कह रही हूं क्योंकि मैं तुम्हें किसी गलतफहमी में नहीं रखना चाहती ।”
“मुझे कोई गलतफहमी नहीं है, आशा लेकिन, जैसा कि मैं तुम्हें पहले भी कह चुका हूं, मैं कहना चाहता हूं कि तुम इतनी गम्भीर बात का फैसला इतनी जल्दबाजी में ना करो ।”
“मैंने यह फैसला जल्दबाजी में नहीं कया है । मैंने बहुत सोच समझकर यह निर्णय किया है कि मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती ।”
“लेकिन क्यों ? क्या तुम मुझ से मुहब्बत नहीं करती, इसलिये या तुम किसी और से मुहब्बत करती हो ?”
“मैं किसी और से मुहब्बत करती हूं ।” - आशा धीरे से बोली ।
एकाएक अशोक ने आशा का हाथ छोड़ दिया । उसने विस्फरित नेत्रों से आशा की ओर देखा ।
“किससे ?” - उसने पूछा - “कौन है वो ?”
“अमर ।” - आशा के मुंह से केवल एक शब्द निकला ।
“अमर कौन है ? कहां है ? क्या करता है ?”
“तुम अमर को नहीं जानते । वह कहां है और क्या करता है यह मुझे नहीं मालूम । मैंने अभी उसे अभी तलाश करना है और अगर तुम्हारी यह अंगूठी मेरी उंगली में रही तो मैं उसे कभी तलाश नहीं कर पाऊंगी ।”
अशोक कर्ई क्षण चुप रहा ।
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10-12-2020, 01:33 PM,
#46
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“तो फिर” - अन्त में वह बोला - “यह तुम्हारा आखिरी फैसला है ?”
“हां ।” - आशा कठिक स्वर से बोली ।
“ओके ।” - अशोक गहरी सांस लेकर बोला - “ओके मैडम । जैसी तुम्हारी इच्छा ।”
आशा चुप रही ।
अनजाने में ही अशोक ने आशा की अंगूठी वाला हाथ दुबारा थाम लिया । वह एकाएक बेहद गम्भीर हो गया था ।
आशा ने अपना हाथ अशोक के हाथ से खींचने का प्रयत्न नहीं किया ।
“देखो, मैं तुम्हें एक बात बताता हूं ।” - एकाएक वह बोला ।
आशा ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी ओर देखा ।
“मैं उम्र में छोटा जरूर हूं ।” - अशोक उसकी उंगलियों से खेलता हुआ बोला - “लेकिन जहां तक सैक्स का सवाल है, मैंने बहुत दुनिया देखी है । जेपी - मेरा बाप - एक बेहद ऐय्याश आदमी है, जैसा कि जेपी जैसा हर पैसे वाला आदमी होता है । पचास साल से ज्यादा उसकी उम्र हो गई है, शरीर बूढा हो चला है लेकिन दिल अभी भी जवान है और शायद कब्र में पांव पहुंच जाने तक रहेगा लेकिन अब भी जेपी को अपना बिस्तर गर्म करने के लिये बीस साल से कम उम्र की लड़की चाहिये । आजकल के जमाने में पैसे वाला आदमी जो चाहता है, उसे हासिल हो जाता है । जेपी भी पैसे वाला है, वह जो चाहता है, उसे हासिल होता है और बिना एक उंगली भी हिलाये हासिल होता है । बचपन से लेकर आज तक मैं जेपी के विलासी जीवन के हर पहलू के दर्शन करता चला आ रहा हूं । नतीजा यह हुआ कि जल्दी ही मैंने भी वही कुछ करना आरम्भ कर दिया, जो मैंने अपने बाप को करते देखा ।”
अशोक एक क्षण रुका और फिर बोला - “पन्द्रह साल की उम्र में जिस औरत ने पहली बार मुझे मुहब्बत का सबक सिखाया था, वह उम्र में मुझसे कम से कम दुगनी बड़ी थी और जेपी के हरम की स्थायी सदस्या थी । उस दिन से लेकर आज तक मैंने अनगिनत लड़कियों से मुहब्बत की है । अनगिनत लड़कियों ने अपनी इच्छा से या अपने मां बाप की शह पाकर मेरे बैडरूम की शोभा बढाई है लेकिन मैंने आज तक किसी के साथ ईमानदारी से पेश आने की कोशिश नहीं की । सैकड़ों लड़कियां समुद्र की लहरों की तरह मेरे कदमों से टकराकर बिखर गई लेकिन मैं एक विशाल चट्टान की तरह अडिग खड़ा रहा । मुझ पर अपनी जवानी लुटा कर कंगाल हो चुकी लड़कियों के सिर धुनने का कोई असर नहीं हुआ । मैंने आज तक किसी लड़की को अच्छी निगाहों से नहीं देखा । जो भी लड़की मेरे सम्पर्क में आती है मैं उस पर अपनी झूठी मुहब्बत डाल देता हूं और एक बेरहम डाकू की तरह उसका सब कुछ लूट लेता हूं ।”
अशोक ने एक गहरी सांस ली और फिर बोला - “आशा, तुम पहली लड़की थी जिसकी सूरत देख कर मैंने उसके नंगे शरीर को कल्पना नहीं की बल्कि उस खूबसूरत दिल की कल्पना की जो अपनी जिन्दगी में आप किसी एक पुरुष से बेइन्तहा मुहब्बत कर सकता है, उसे दुनिया भर की खुशियां दे सकता है । मैंने तुम्हें देखा और पहली बार मेरे मन में एक अच्छी भावना ने एक अच्छे विचार ने जन्म लिया । तुम्हें देखकर मुझे यूं लगा, जैसे मैं अपनी जिन्दगी की बेहद पेचीदी और दुखदाई राह पर लगातार चलते रहने रहने के बाद एकाएक म‍ंजिल पर पहुंच गया हूं । मैंने सच्चे दिल से तुमसे मुहब्बत की और एकाएक अपनी जिन्दगी की ढेर सारी आशायें तुम्हारी जिन्दगी के साथ जोड़ दी थी । जो थोड़े से क्षण मैंने तुम्हारे साथ गुजारे हैं, वे मेरी जिन्दगी के खूबसूरत, सबसे सुखद क्षण थे लेकिन शायद भगवान ने मेरी जिन्दगी के में इतना ही सुख लिखा था ।”
अशोक चुप हो गया ।
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10-12-2020, 01:33 PM,
#47
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“खैर ।” - उसने आखिरी बार आशा का हाथ थपथपाया और उठता हुआ बोला - “आई विश यू गुड लक ।”
“अशोक ।” - आशा बोली - “यह अंगूठी...”
“इसे तुम अपने पास रख लो । उपहार के रूप में । मैं मित्र तो रह सकता हूं न !”
“नहीं, मैं इसे नहीं रख सकती ।”
“क्यों ?”
“इस अंगूठी को मेरी उंगली में देखकर बहुत से लोगों के मन में बहुत गलतफहमियां पैंदा हो जाती हैं ।”
“अच्छी बात है । लाओ ।”
आशा ने अंगूठी निकाल कर अशोक को थमा दी ।
उसी क्षण एक वेटर उधर से गुजरा ।
“ऐ... यहां आओ ।” - अशोक ने उसे आवाज दी ।
वेटर समीप आ गया और विनम्र स्वर से बोला - “हां, साब ।”
“क्या नाम है तुम्हारा ?”
“सदाशिव राव, साब ।”
“शादीशुदा हो ?”
“नहीं, साब ।”
“किसी से मुहब्बत करते हो ?”
“हीं हीं हीं, साब ।” - वेटर खींसे निपोर कर शर्माता हुआ बोला ।
“तुम्हारी प्रेमिका का क्या नाम है ?”
“ईंटा बाई ।”
“मुझे जानते हो ?”
“हां साब । आप अशोक साब है ।”
“हाथ बढाओ ।”
वेटर ने झिझकते हुए हाथ बढा दिया ।
अशोक ने अंगूठी उसके हाथ पर रख दी और बोला - “यह मेरी ओर से अपनी ईंटा बाई को उपहार दे देना ।”
“साब ।” - वेटर एकदम बौखला गया ।
“सलाम करो ।”
वेटर ने ठोककर सलाम दे मारा ।
“अब भागो यहां से ।”
“सलाम साब, सलाम साब ।” - वेटर बोला और लड़खड़ाता हुआ वहां से भाग खड़ा हुआ ।
आशा हक्की-बक्की सी वह तमाशा देख रही थी । वेटर के दृष्टि से ओझल होते ही उससे कहना चाहा - “अशोक,यह तुमने...”
“आओ भीतर चलें ।” - अशोक उसकी बात काट कर गम्भीर स्वर से बोला ।
दोनों फिर हाल में आ गये ।
“मैं वापिस जाना चाहती हूं ।” - आशा धीरे से बोली ।
“चली जाना । जल्दी क्या है ।” - अशोक ने उत्तर दिया ।
“लेकिन मैं...”
“खाना वगैरह खा लो फिर मैं तुम्हारे जाने का इन्तजाम कर दूंगा । ओके ?”
“ओके ।” - आशा अनमने स्वर से बोली ।
“तुम यहां बैठो ।” - अशोक कोने में पड़े एक सोफे की ओर संकेत करता हुआ बोला - “मैं जरा जेपी के पास जा रहा हूं ।”
आशा ने स्वीकृति सूचक ढंग से सिर हिला दिया ।
वह सोफे पर जा बैठी ।
एक वेटर उसे स्कवाश और तले हुये काजू सर्व का गया ।
हाल में मौजूद मेहमान मस्ती के उस दौर में से गुजर रहे थे जहां लेाग आपा भूल जाते हैं । किसी को किसी व्यक्ति विशेष में दिलचस्पी लेने की फुरसत नहीं रहती । लोग शराब पी रहे थे और अट्टाहास कर रहे थे, और शराब पी रहे थे ।
रात के बारह बजे गये । अशोक लौट कर नहीं आया । आशा परेशान हो गई । थकान और नींद से उसकी आंखें बन्द होती जा रही थीं । पार्टी थी कि खतम होने का नाम ही नहीं ले रही थी । हंगामा बढता जा रहा था । अभी तक खाने का किसी ने जिक्र भी नहीं किया था ।
आशा अपने स्थान से उठी और मेहमानों की भीड़ में अशोक को तलाश करने लगी ।
“हे बेबी ।” - नशे में धुत्त एक युवक उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया ।” - कम आन... लैट्स हैव् सम फन ।”
“होश में आ बेवकूफ ।” - एक अन्य युवक उसको आशा के सामने से एक ओर घसीटता हुआ बोला - “यह अशोक की मंगेतर है ।”
पहले युवक को जैसे झटका सा लगा । उसने एक बार पूरी आंखें खोलकर आशा को देखा फिर बड़े सम्मानपूर्ण ढंग से कमर से झुकता हुआ शांत स्वर से बोला - “सारी, मैडम । प्लीज डोंट माइन्ड मी । आई एम ए ड्रंकन पिग ।”
आशा आगे बढ गई ।
मेहमान की भीड़ में उसे न अशोक दिखाई दिया और न अर्चना माथुर ।
उसने एक वेटर को रोक कर पूछा - “अशोक साहब को देखा है कहीं ?”
“नहीं, मेम साहब ।”
“अर्चना, माथुर को ?”
“मैडम अभी अभी उस सामने वाले कमरे में गई हैं !” - वेटर हाल से सटे हुए एक कमरे की ओर संकेत करता हुआ बोला ।
आशा उस कमरे की ओर बढ गई ।
वह एक डबल बैडरूम था । एक नौकर बिस्तर की चादरें बदल रहा था । अर्चना माथुर एक और खड़ी थी ।
“आओ ।” - अर्चना माथुर उसे देखकर मुस्कराती हुई बोली - “यह बैडरूम मैं तुम्हारे लिये ही तो तैयार करवा रही हूं । तुम्हारे और अशोक के लिये ।”
और वह बड़े अर्थ पूर्ण ढंग से मुस्कराई ।
नौकर चादरें ठीक करके कमरे से बाहर निकाल गया ।
“नीन्द आ रही है ?” - अर्चना माथुर बड़े अश्लील स्वर से बोली - “अशोक को भेजूं !”
“अशोक कहां है ?” - आशा ने पूछा ।
“यहीं कहीं होगा ।”
“मुझे तो कहीं दिखाई नहीं दिया ।”
“आ जायेगा । जल्दी क्या है । अभी तो बहुत रात बाकी है ।”
“अर्चना जी, दर असल मैं... मैं जाना चाहती हूं ।”
“जाना चाहती हो । कहां ?”
“वापिस । बम्बई ।”
“लेकिन जल्दी क्या है ?”
“देखिये अगर आप मेरे वापिस जाने का कोई इन्तजाम करवा सकें तो बड़ी मेहरबानी होगी ।” - आशा विनयपूर्ण स्वर से बोली ।
“वह तो हो जायेगा लेकिन...”
अर्चना माथुर एकाएक चुप हो गई । वह एकटक आशा के बायें हाथ को घूर रही थी ।
“आशा ।” - अर्चना माथुर बदले स्वर से बोली - “तुम्हारी उंगली में अशोक की अंगूठी नहीं है । कहीं गिरा दी क्या ?”
“नहीं, जी ।” - आशा धीरे से बोली ।
“तो ?”
“मैंने अशोक की अंगूठी उसे वापिस कर दी है ।”
अर्चना माथुर के माथे पर बल पड़ गये ।
“क्यों ?” - उसने पूछा ।
“क्योंकि मैं अशोक से शादी नहीं कर रही हूं ।”
“ओह !” - अर्चना माथुर जैसे एक दम सब कुछ समझ गई ।
आशा चुपचाप खड़ी रही ।
अर्चना माथुर द्वार की ओर बढी ।
“मेरे लौटने का कोई इन्तजाम करवा रही हैं आप ।” - आशा ने व्यग्र स्वर से पूछा ।
“अभी कोई साहब जायेंगे तो तुम्हें उनके साथ भेज दूंगी ।” - अर्चना माथुर कर्कश स्वर से बोली - “नहीं तो यहीं सो जाना । सुबह तो सभी वापिस जायेंगे ।”
“लेकिन... लेकिन... मैं इस कमरे में नहीं सो सकती ।”
“क्यों !” - अर्चना माथुर व्यंग्य पूर्ण स्वर से बोली - “तुम्हें डर है कि रात को अशोक कहीं तुम्हारी इज्जत न लूट ले ?”
“अर्चना जी...”
“अगर यहां नहीं सोना है तो बाहर हाल में किसी सोफे पर पड़ी रहना ।”
और वह द्वार की ओर बढी ।
“मुझे आपसे ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी ।” - आशा दुखित स्वर से बोली ।
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10-12-2020, 01:33 PM,
#48
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
अर्चना एक दम घूम पड़ी । शालीनता का नकाब उसके चेहरे से उतर गया था । वह हाथ नचाकर आशा के स्वर की नकल करती हुई बोली - “मुझे आप से ऐसे व्यवहार की आशा नहीं थी ! तुम साली दो कौड़ी की स्टैनोग्राफर । तुम्हारी औकात क्या है ? बेवकूफ लड़की तुम्हारी कीमत तभी तक थी जब तक अशोक की अंगूठी तुम्हारी उंगली में थी । उस अंगूठी के बिना तुम कुछ भी नहीं हो । अब मुझे तुममें और अपने नौकरों चाकरों में कोई फर्क दिखाई नहीं देता है । समझी ।”
और अर्चना माथुर एक अन्तिम घृणापूर्ण द्दष्टि आशा पर डालकर कन्धे झटकती हुई बैडरूम से बाहर निकल गई ।
आशा कुछ क्षण सकते की हालत में वहीं खड़ी रही और फिर भारी कदमों से चलती हुई बाहर हाल में आ गई ।
इस बार उसने अशोक को तलाश करने की कोशिश नहीं वह उसी प्रकार धीरे धीरे कदम उठाती हुई हाल से बाहर निकल गई, इमारत से बाहर निकल गई और फार्म की बगल में से गुजरती हुई सड़क पर चल पड़ी ।
रात अन्धेरी थी । आशा को रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन उसने एक बार भी घूमकर रोशनियों से जगमगाती हुई उस इमारत की ओर नहीं देखा जहां लोग बाहर के घने अन्धकार से बेखबर ठहाके लगा रहे थे ।
“नमस्ते, जी ।” - उसके कानों में चिर-परिचित स्वर पड़ा ।
आशा चिहुंक पड़ी ।
हे भगवान कहीं यह सपना तो नहीं ।
उसने एक दम घूमकर पीछे देखा । नहीं, वह सपना नहीं था । अमर का मुस्कराता हुआ चेहरा उसके नेत्रों के सामने था ।
“अमर ।” - आशा के मुंह से निकल गया और फिर एक बड़ी ही स्वाभाविक क्रिया के रूप में उसके दोनों हाथ अमर की ओर बढे । लेकिन फिर झिझक ने अन्तर्मन के उल्लास पर विजय पाई और हाथ आगे नहीं बढ पाये ।
“नमस्ते जी ।” - अमर फिर बोला ।
“नमस्ते ।” - आशा के मुंह से स्वंय ही निकल गया - “तुम यहां ?”
“जी हां । जब से सिन्हा साहब ने मुझे नौकरी से निकाला है, मैं तो तभी से यहीं हूं । मैं यहां अर्चना माथुर के फार्म में केयर टेकर हूं ।”
“ओह !”
“लेकिन इतनी अंधेरी रात में आप कहां जा रही हैं ?”
“स्टेशन ।” - आशा ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया ।
“क्यों ?”
“बम्बई जाऊंगी ।”
“अभी ?”
“हां ।”
“लेकिन इस समय तो बम्बई कोई गाड़ी नहीं जाती है ।”
“कभी तो जाती होगी । तब तक प्लेटफार्म पर बैठी रहूंगी ।”
“आपको डर नहीं लगेगा ।”
“डर तो लगेगा लेकिन अपमानित होने से भयभीत होना ज्यादा अच्छा है ।”
“बात क्या हो गई है ?” - अमर उलझनपूर्ण स्वर से बोला - “आप तो अर्चना माथुर की सम्मानित अतिथि हैं । आप एक बहुत बड़े आदमी की होने वाली पत्नी हैं । आपका अपमान कौन कर सकता है ?”
“मैं किसी बड़े आदमी की होने वाली पत्नी नहीं हूं और क्योंकि मैं किसी बड़े आदमी की होने वाली पत्नी नहीं हूं इसलिये मैं किसी के आतिथ्य का सम्मान प्राप्त करने की भी अधिकारिणी नहीं हूं ।”
“क्या मतलब !”
“यह देखो ।” - आशा बोली और उसने अपना बायां हाथ अमर की आंखों के सामने कर दिया जिसकी दूसरी उंगली में से अंगूठी गायब थी ।
“क्या ?” - अमर उलझनपूर्ण नेत्रों से उसके हाथ को घूरता रहा और फिर एकाएक बात उसकी समझ में आ गई - “ओह ! अंगूठी ! कहां गई ?”
“जिसकी थी उसे लौटा दी ।”
“क्यों ?”
“क्योंकि उस अंगूठी की वजह से किसी के मन में इतनी भारी गलतफहमी पैदा हो गई थी कि उसने फेमससिने बिल्डिंग तक आकर भी मुझसे मिलना जरूरी नहीं समझा, केवल मुझे अपमानित करने के लिये एक खत भेज दिया जिसमें मुझे एक ऐसे काम के लिये मुबारक दी गई थी जो कभी होने वाला ही नहीं था और समझ लिया कि कहानी खतम हो गई ।”
“आशा ।” - अमर व्यग्र स्वर से बोला - “आशा, भगवान कसम मेरा यह मतलब नहीं था ।”
“तुम्हारा यही मतलब था । तुम लोग केवल ड्रामा करना जानते हो, केवल अलंकारिक शब्द ही प्रयोग करना जानते हो, जो तुम्हारी जुबान पर होता है, वह तुम्हारे मन में नहीं होता ।”
“तुम मुझ पर एकदम गलत इलजाम लगा रही हो ! मैं...”
“तुम सिन्हा की नौकरी छोड़ने के बाद मुझसे मिले क्यों नहीं ?”
“मैं मिलना चाहता था ! कम से कम एक बार तो तुम से जरूर मिलना चाहता था । लेकिन उन दिनों मैं बहुत परेशान था । सिन्हा साहब ने एकाएक मुझे नौकरी से निकालकर मेरे सर पर बम सा गिरा दिया था । मैं सारा सारा दिन नई नौकरी की तलाश में घूमा करता था । मैं चाहता था कि पहले कहीं सैटल हो जाऊं और फिर आप से सम्पर्क स्थापित करूं । शनिवार को मुझे नौकरी मिली । सोमवार को केवल तुमसे मिलने की नीयत से मैं बम्बई गया तो मुझे मालूम हुआ कि तुम्हारी अशोक से शादी होने वाली है । मैंने अखबार में तुम्हारी तस्वीरें देखी, तुम्हारी उंगली में जगमगाती हुई हीरे की अंगूठी देखी, तुम्हारे और अशोक के सम्बन्ध का विवरण पढा और फिर मेरा हौसला टूट गया । तुमसे मिलने की मेरी हिम्मत नहीं हुई । मैंने होटल के छोकरे के हाथ तुम्हें चिट्ठी भेजी और उल्टे पांव लोनावला लौट आया ।”
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10-12-2020, 01:33 PM,
#49
RE: Hindi Antarvasna - Romance आशा (सामाजिक उपन्यास)
“तुम चिट्ठी में कम से कम अपना पता तो लिख सकते थे ?”
“क्या फायदा होता ?”
“यह फायदा होता कि तुम्हारा भरम मिट जाता । तुम्हें हकीकत की जानकारी फौरन हो जाती ।”
“लेकिन मैं तो उसे ही हकीकत समझता था, जो मैंने देखा सुना था ।”
आशा चुप रही ।
“फिर शाम को मैंने तुम्हें अर्चना माथुर की पार्टी में देखा लेकिन तुम्हारे पास आकर तुमसे बाते करने का मेरा हौसला नहीं हुआ । अभी मैंने तुम्हें अन्धेरी रात में यूं अकेले बाहर जाते देखा तो मुझसे रहा नहीं गया और मैं तुम्हारे पीछे पीछे चला आया ।”
उसी क्षण मोड़ से एक कार घूमी और हैड लाइट्स की रोशनी आशा और अमर के ऊपर पड़ी । उनकी आंखें चौंधया गई और वे चुपचाप खड़े कार के गुजर जाने की प्रतीक्षा करने लगे ।
लेकिन कार गुजरी नहीं । एकदम उनके सामने आकर खड़ी हो गई ।
फिर स्टियरिंग के पीछे से अशोक निकला और उनके सामने आकर खड़ा हो गया ।
“मैं तुम्हें ही तलाश करने जा रहा था ।” - अशोक अमर को एकदम नजरअन्दाज करता हुआ आशा से बोला - “मुझे अभी अभी एक नौकर ने बताया था कि उसने तुम्हें अकेले बाहर जाते देखा था । आशा, गलती सरासर मेरी थी और उसके लिये मैं तुमसे माफी चाहता हूं । मैं पार्टी के हंगामे में ऐसा खो गया था कि यह बात मैं एकदम भूल गया था कि तुमने बम्बई वापिस जाने की बात की थी । तुम्हारी असुविधा के लिये मैं फिर माफी चाहता हूं तुम से ।”
फिर आशा के उत्तर की प्रतीक्षा लिये बिना वह अमर की ओर आकर्षित हुआ । उसने कार की हैड लाइट्स की रोशनी में एक बार सिर से पांव तक अमर को देखा और फिर बोला - “आप कौन हैं ?” - फिर उसने एक उड़ती हुई दृष्टि आशा पर डाली और जल्दी से बोला - “नहीं, नहीं, तुम मत बताना तुम कौन हो । मैं बताता हूं । तुम अमर हो ।”
“आपने कैसे जाना ?” - अमर हैरानी से बोला ।
“ताड़ने वाले कयामत की नजर रखते हैं ।” - अशोक अट्टाहास करता हुआ बोला - “मेरा दिल कह रहा था, तुम अमर हो । आशा के चेहरे पर लिखा था, तुम अमर हो । मेरा नाम अशोक है ।”
और उसने बेतकल्लुफी से अमर की ओर हाथ बढा दिया ।
अमर ने झिझकते हुए अशोक से हाथ मिलाया और धीरे से बोला - “मैं आपको जानता हूं ।”
“अभी क्या जानते हो ? अभी आगे आगे जानोगे ।” - और अशोक एकदम गम्भीर हो गया - “एक बात बताओ ।”
“पूछिये ।”
“जितनी मुहब्बत आशा तुमसे करती है । तुम भी आशा से उतनी मुहब्बत करते हो ?”
अमर ने सिर झुका लिया ।
“जवाब दो भई ?”
“मैं... मैं..” - अमर असुविधापूर्ण स्वर से बोला ।
“मैं मैं क्या ? साफ साफ बोलो । अच्छा जाने दो । और बात बताओ ।”
“फरमाइये ।”
“तुम्हें मालूम है, आशा का कोई सगा सम्बन्धी इस दुनिया में नहीं है, सब भूकम्प की भेंट हो गये थे ।”
“मुझे आशा ने नहीं बताया है” - अमर धीरे से बोला - “लेकिन मैं जानता हूं कि आशा इस संसार में बिल्कुल अकेली है ।”
“कौन कहता है, आशा संसार में बिल्कुल अकेली है ।” - अशोक गर्जकर बोला - “मैं, आशा का सौ फीसदी जीता-जागता छोटा भाई तुम्हारे सामने खड़ा हूं और तुम कहते हो आशा इस संसार में बिल्कुल अकेली है । नान सैन्स ।”
अमर आश्चर्य से अशोक का मुंह देखने लगा ।
आशा ने भी अशोक की ओर देखा और फिर न जाने क्यों एकाएक उसके नेत्रों से टपाटप आंसू टपकने लगे ।
“अब तुम लोग यहां क्यों खड़े हो ?” - अशोक फिर बोला
“आशा बम्बई लौटने के लिये स्टेशन पर जा रही थी । इस समय तो बम्बई कोई गाड़ी जाती नहीं । मैं आशा से यह कहने वाला था कि अगर उसे कोई एतराज न हो तो वह रात भर के लिये मेरे घर चली चले । मेरी मां आशा से मिलकर बहुत खुश होगी ।”
“नानसेंस ।” - अशोक बोला - “मुझे एतराज है । आशा शादी से पहले तुम्हारे घर कैसे जा सकती है । और फिर कौन कहता है कि इस वक्त बम्बई कोई गाड़ी नहीं जाती ।” - अशोक कार के हुड पर एक जोरदार घूंसा जमाता हुआ बोला - “यह गाड़ी जाती है बम्बई ।”
“चलो दीदी ।” - अशोक कार का दरवाजा खोलता हुआ बोला - “जीजा जी तो पागल हैं । अभी से तुम इनके घर कैसे जा सकती हो ।”
आशा का गला रुंध गया । वह अवरिल बहते हुए आंसुओं को साड़ी के पल्लू से रोकने का असफल प्रयत्न करती हुई गाड़ी में जा बैठी ।
अशोक ने अमर की ओर हाथ बढा दिया । अशोक मुंह से कुछ नहीं बोला लेकिन अमर की आंखों से अशोक की आंखों में तैरते हुए आंसू छुप न सके !


समाप्त
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