Hindi Antarvasna - काला इश्क़
07-14-2020, 12:59 PM,
#61
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 54

दिन बीतते गए और क्रिसमस का दिन आया, पर ऑफिस की छुट्टी तो थी नहीं और ना ही मैं छुट्टी ले सकता था| हरसाल मैं आज के दिन चर्च जाया करता था और वहाँ mass अटेंड किया करता था| वापसी में वहाँ से केक खरीद लेता और फिर घर आ जाता था| अब अकेला इंसान था तो टाइम पास हो जाता था और इसी बहाने गॉड जी से भी मन ही मन कुछ बातें कर लिया करता था| पर इस बार मेरे पास Pray करने का कारन था, मैं ऑफिस से सीधा ऋतू के पास हॉस्टल पहुँचा| आज आंटी जी घर पर ही थीं, मैंने उनसे ऋतू को थोड़ी देर ले जाने को कहा तो उन्होंने पुछा की कहाँ जा रहे हो? तो मैंने उन्हें सच बता दिया; "वो आंटी जी दरअसल मैं हरसाल क्रिसमस पर चर्च जाता हूँ, सोचा इस बार ऋतू को भी ले जाऊँ?" ये सुन कर आंटी अचरज करने लगीं; "चर्च? पर क्यों?" उनका इशारे मेरे धर्म से था; "आंटी जी मैं सब धर्मों को मानता हूँ| भगवान् तो एक ही हैं ना?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो आंटी जी ने हाँ में सर हिला दिया| उन्होंने ऋतू को आवाज दी और ऋतू मुझे देखते ही खिल गई| "चल जल्दी से तैयार हो जा, चर्च जाना है!" मैंने कहा तो ऋतू तुरंत तैयार होने चली गई| "मैं आधे-पौने घंटे में ऋतू को छोड़ जाऊँगा|" मैंने आंटी जी से कहा| "कोई बात नहीं बेटा! तेरे साथ जा रही है इसलिए जाने दे रही हूँ!" आंटी जी ने मुस्कुराते हुए कहा| ऋतू तुरंत तैयार हो कर आ गई और हम दोनों चर्च की तरफ चल दिए| जब मैंने बाइक चर्च के पास रोकी और उसे उतरने को कहा तो ऋतू भी अचरज से मुझे देखने लगी| "मुझे तो लगा की आपने ये झूठ सिर्फ इसलिए बोलै ताकि हम बाहर मिल सकें? पर आप तो सच में चर्च ले आये!"

"तुम्हें पता नहीं है पर कॉलेज के दिनों से मैं साल में एक बार आज ही के दिन यहाँ आता हूँ| याद है तेरा वो दसवीं का रिजल्ट वाला काण्ड? तेरा रिजल्ट आने से पहले ही मैं जानता था की कोई तुझे आगे पढ़ने नहीं देंगे, तब यहीं मैंने तेरे लिए Pray किया था की तुझे आगे अच्छे से पढ़ने को मिले और देख दुआ क़बूल भी हुई| आज के दिन तुझे साथ इसलिए लाया हूँ ताकि आज तू भी गॉड को शुक्रिया अदा कर दे|"

ऋतू का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा, उसने अपने दुपट्टे से अपना सर ढका जैसे की वहाँ सब लड़कियों और औरतों ने ढक रखा था और हम चर्च में घुसे| ऋतू को कुछ नहीं पता था की वहाँ कैसे पूजा की जाती थी, इसलिए अंदर जाने से पहले ही वो चर्च के बाहर अपनी चप्पल उतारने लगी| पर मैंने उसे मना किया और हम दोनों ही अंदर घुसे, अब ऋतू को बस मुझे देख रही थी| हम दोनों वहाँ सबसे पीछे वाली लाइन में सब के साथ बैठ गए| आगे की तरफ था स्टैंड था जहाँ लोग अपने घुटने मोड़ कर टिका कर pray करते थे| ऋतू मुझे देखते हुए वैसे ही करने लगी, पता नहीं कैसे पर उस दिन वहाँ उस तरह बैठे हुए Pray करते हुए मेरी आँख से आँसू बह निकले| ऋतू ये देख रही थी पर वो उस समय खामोश रही, Pray कर के हम दोनों बाहर आये और मैंने वहाँ से Candles खरीदीं और बाहर Mother Mary के पास जलाने लगा, ऋतू ने भी ठीक वैसे ही किया| जब हम बाहर आये तो वहाँ से मैंने cake खरीदा और ऋतू को खाने को दिया|

आज पहलीबार ऋतू ने ऐसा केक खाया था और उसे ये बहुत टेस्टी भी लगा था| "एक और करना था तुझे यहाँ लाने का, वो ये की तुझे आज तक पता नहीं होगा की क्रिसमस पर होता क्या है? पर आज तुझे एटलीस्ट आईडिया होगया की आज के दिन की relevance क्या है?"

"आज तक मैंने क्रिसमस ट्री मैंने सिर्फ किताब में देखा था पर आज पता चला की वो कितना सुंदर होता है! चर्च को किस तरह सजाया जाता है और वो जो वहाँ बच्चों ने जीसस क्राइस्ट के बचपन को दिखने के लिए खिलौने सजाया था उसे देख कर मुझे मेरे बचपन की याद आ गई जब मैं गुड़ियों के साथ खेलती थी|"

"चलो अब तुझे हॉस्टल छोड़ दूँ|" ये कहते हुए मैंने जैसे ही बाइक स्टार्ट की तो ऋतू बोली: "थोड़ी देर और रुकते हैं ना?"

"यार मैंने आंटी जी को बोला था की मैं आधे-पौने घंटे में आ जाऊँगा, ज्यादा देर रुकना ठीक नहीं| कहीं आंटी जी कुछ सोचने लगीं तो?
"आपके बारे में उनके मुँह से सिर्फ तारीफ ही निकलती है| इतने महीनों में मैंने बस ये ही सुना है की मानु बेटा ऐसा है मानु बेटा वैसा है, ईमानदार है, मेहनती है और पता नहीं क्या-क्या! कई बार तो लगता है की वो आपको दमाद बनाने के चक्कर में हैं| पर मोहिनी दीदी का शायद कोई चक्कर चल रहा है, तभी तो वो हर बार अपनी शादी की बात टाल जातीं हैं| कुछ दिन पहले तो वो शराब पी कर आईं थीं, मैंने दरवाजा खोला और वो चुप-चाप अपने कमरे में जा कर सो गईं|"

"उसे आंटी जी से प्रॉब्लम है, आंटी जी उस पर रोक-टोक लगतीं हैं और इसे तो अपनी लाइफ एन्जॉय करनी है|"

हम दोनों ऐसे ही बात करते हुए हॉस्टल पहुंचे और मैं अंदर आ गया और आंटी जी को केक दिया| हैरानी की बात ये थी की जहाँ वो कुछ देर पहले कह रहीं थीं की मैं क्यों क्रिसमस पर चर्च जा रहा हूँ वहीँ अब बड़े चाव से केक खा रही थीं| तभी मोहिनी भी आ गई; "अरे मानु जी आप?! और केक!!!!! वाओ!!! ये आप ही लाये होंगे.... माँ तो...." वो आगे आंटी जी के डर से कुछ नहीं बोली और केक खाने लगी|

"मानु जी एक बात सच-सच बताना, आप मुझ से ही रोज-रोज मिलने के लिए बहाना कर के आते हो ना?" मोहिनी बोली| उस समय आंटी जी किचन में थी और हम तीनों बैठक में बैठे केक खा रहे थे| उसके ये कहते ही मुझे खाँसी आ गई और ऋतू को शायद गुस्सा आने लगा था|

ऋतू भाग कर गई और मेरे लिए पानी ले आई| एक घूँट पानी पीने के बाद मैं बोला; "यार क्या कुछ भी बोल देते हो आप? इसने (ऋतू ने) अगर घर में बता दिया ना तो गाँव वाले भला ले कर यहाँ आ जायेंगे| बतया था न आपको हमारे गाँव में प्यार करना पाप है!" ये सुन कर मोहिनी चुप हो गई| तभी आंटी जी खाना परोस कर ले आईं और बिना खाये उन्होंने जाने नहीं दिया| चलो इसी बहाने घर जा कर खाना बनाने से तो छुट्टी मिली! कुछ दिन और बीते और 29 दिसंबर आ गया, ऑफिस वाले लड़कों ने पार्टी का प्लान बनाया और मुझे भी उसमें शामिल होना था| सब लड़के अपनी-अपनी बीवियों या गर्लफ्रेंड के साथ आने वाले थे तो जाहिर था की मैं भी ऋतू के ले जाने वाला था| इसी बहाने ऋतू को आज पता चल जाता की New year की पार्टी में क्या होता है?!

मैंने ऋतू को सारा प्लान समझा दिया, 30 दिसंबर की शाम को मैं ऋतू के कॉलेज पहुँचा और उसे वहाँ से पिक कर के घर ले आया| उस दिन सुभाष अंकल के घर जन्मदिन की पार्टी थी तो मैं और ऋतू उसमें शरीक हो गए, पार्टी के बाद हम घर आये और एक दुसरे पर टूट पड़े|

दरवाजा बंद होते ही ऋतू मेरी गोद में चढ़ गई और उसका निशाना मेरे होंठ थे| मैंने भी ऋतू के कूल्हों को कस कर पकड़ लिया और खुद से चिपका लिया| मैं उसके होठों को चूसते हुए पलंग पर आया और उसे अपनी गोद से उतार कर बिस्तर पर पटक दिया| मैंने फटाफट अपने कपडे निकाल फेंके और ऋतू ने भी लेटे-लेटे अपने कपडे उतार दिए| मैं उस पर चढ़ने लगा तो ऋतू ने अपने हाथ के इशारे से मुझे रोक दिया| वो उठ कर बिस्तर पर खड़ी हुई, अपने थूक से चुपड़ी उँगलियाँ अपनी बुर पर मलने लगी| फिर अगले ही पल वो मेरी गोद में चढ़ गई| मैंने बाएँ हाथ को उसके कूल्हे के नीचे ले जा कर उसे सपोर्ट दिया और दाएँ हाथ से अपने लंड को पकड़ के उसकी बुर से सटा दिया| मेरे झटका मारने से पहले ही ऋतू ने अपनी बुर मेरे लंड पर दबानी शुरू कर दी| कुछ ही सेकंड में लंड पूरा का पूरा ऋतू की बुर में समा गया पर मुझसे नीचे से झटके लगाना मुश्किल हो रहा था| मैं बिस्तर की तरफ पीठ कर के खड़ा हो गया, जिससे ऋतू को अपने पंजे टिकाने का सहारा मिल गया| ऋतू ने अपने पंजों को गद्दे से टिकाया और अपनी बाहों को मेरे गर्दन से लपेटे उसने अपनी बुर उछालनी शुरू की| अब मेरा लंड बड़े आराम से सटा-सट अंदर बाहर होने लगा| हम दोनों ही लय से लय मिलाते हुए अपनी कमर आगे-पीछे हिला रहे थे| ऋतू की बुर पनियाती चली गई और मेरा लंड अंदर बड़े आराम से फिसलने लगा था| “आईईईईईईई ....आहनननननन...धीरे....जानू....!!!!” ऋतू कराही|

मेरी गति इस कदर तेज थी की ऋतू के लिए सहन कर पाना मुश्किल हो गया था, वो ज्यादा देर टिक न पाई और झड़ने लगी; “सससस...आह!...मााााााााााा ...हम्म्म.....नननन” पर मैं अभी और देर तक उसे भोगना चाहता था| मैंने उसे अपनी गोद से उतारा और उसे पलट दिया| मैं उसके पीछे आ कर खड़ा हो गया, ऋतू को आगे की तरफ झुकाया जिससे उसकी बुर उभर कर पीछे आ गई| मैंने पहले तो दोनों हाथों को ऋतू के love handles पर जमा दिया और फिर अपना लंड पीछे से ऋतू की बुर में पेल दिया और तेजी से झटके मारने लगा| मेरी गति इतनी तेज थी की हर झटके से ऋतू का बुरा जिस्म बुरी तरह हिलने लगा था, उसके स्तन तेजी से झूलने लगे थे|

ऋतू से ये सब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल था क्योंकि उसके झड़ने के बाद मैंने उसे जरा सा समय भी नहीं दिया था की वो अपनी सांसें तक दुरुस्त कर ले| ऋतू अब मेरी पकड़ से छूटने के लिए कुलबुलाने लगी थी| "ससस...जााााााााााााााााााााआनननन नननननननुउउउऊऊऊऊऊऊऊऊऊ..... प्लीज...ईइइइइइ ...रुक्खक्क....!!!" इससे आगे उससे बोला ही नहीं गया! अपने आखरी झटके के साथ मैंने अपना वीर्य ऋतू की बुर में भर दिया और लंड बाहर खींच कर मैं पीछे कुर्सी पर फैल गया| ऋतू भी औंधे मुँह बिस्तर पर गिर गई और अपनी साँसों पर काबू करने लगी| दोनों ही पिछले कुछ दिनों से बहुत प्यासे थे तो ये तूफ़ान आना तो तय था, पर इस तूफ़ान के शांत होने के बाद जब मैं उठा तो ऋतू ने कराहते हुए कहा; "आह! हहहहमममम... जानू! मेरी कमर!!!!" तब मुझे एहसास हुआ की ऋतू की कमर में मोच आ चुकी है| मैंने किसी तरह से ऋतू को सीधा कर के उसे बिठाया; "सॉरी...सॉरी....सॉरी....सॉरी यार ...." मैंने कान पकड़ते हुए ऋतू से कहा, पर वो मुस्कुराते हुए बोली; "जान निकाल दी थी आपने मेरी! पर.......... मजा बहुत आया!!!!" ये कहते हुए ऋतू की हँसी निकल गई| मैंने तुरंत पानी गर्म करने को रखा और ऋतू की पीठ पर लगाने के लिए Iodex निकाली| ऋतू को बाथरूम जाना था तो उसे बड़ी मुश्किल से मैंने सहारा दे कर खड़ा किया और उसे बाथरूम ले गया| सहारा दे कर मैंने ऋतू को कमोड पर बिठाया, पिशाब की पहली धार के साथ मेरा और ऋतू का माल बाहर आया और फिर ऋतू की बुर हलकी हुई| मैंने पानी से खुद उसकी बुर को धीरे-धीरे साफ़ किया, पर ऋतू की बुर को छूते ही ऋतू ने सिसीकी ली; "स्स्स्सस्साः!!!" ऋतू मुस्कुराती हुई मुझे अपनी आँखों से इशारे करने लगी की उसे अब अंदर जाना है|

मैंने उसे इस बार गोद में उठाया पर बहुत संभाल कर! मैंने ऋतू को बहुत आहिस्ते से बिस्तर पर लिटाया और उसे पेट के बल लेटने को कहा| फिर मैंने उसकी कमर पर Iodex लगाई और गर्म पानी की बोतल रख कर उसे सेंक देने लगा| कमरे में ब्लोअर चल रहा था जिससे कमरे गर्म था| मैं ऋतू की बगल में लेट गया और हम दोनों के ऊपर रजाई डाल ली| ऋतू ने औंधे लेटे हुए ही मेरी तरफ गर्दन घुमा ली, माने भी ऋतू की तरफ करवट ले ली; "So सॉरी जान!" ऋतू ने प्यार से अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाते हुए कहा; "इस कमर दर्द को छोड़ दो तो मजा बहुत आया!"

"तू सच में पागल है!" मैंने ऋतू के गाल को चूमा और हम दोनों सो गए|
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07-14-2020, 12:59 PM,
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update 55

अगली सुबह मैं जल्दी उठ गया क्योंकि मुझे ऑफिस जाना था| मैं उठ कर तैयार होने लगा तो ऋतू आँख मलते-मलते उठी: "आप कहाँ जा रहे हो?"

"ऑफिस और कहाँ?"

"आह! पर आज तो 31st है? आज तो छुट्टी होती है?" ऋतू ने सम्भल कर बैठते हुए कहा|

"जान आज कोई सरकारी छुट्टी नहीं है? ये सब छोडो और ये बताओ की तुम्हारा कमर का दर्द कैसा है?"

"पहले से ठीक है.... मैं चाय बना देती हूँ|" ऋतू उठी पर चाय तो पहले से ही तैयार थी, बस उसे कप में छानना था| ऋतू ने चाय छनि और मुझे कप दे कर फ्रेश होने चली गई| मैं कपडे पहनने लगा तो उसने नाश्ता बनाना शुरू कर दिया| "अरे छोडो ये नाश्ता!" मैंने कहा|

"रोज आप बिना खाये ऑफिस जाते हो?" ऋतू ने हैरानी से पुछा|

"हाँ! कभी-कभी कुछ बना लेता हूँ|"

"तभी इतने कमजोर हो रहे हो! आप बैठो मैं नाश्ता बनाती हूँ|" ये कह कर ऋतू बेसन घोलना शुरू किया| पर मैं कहाँ चैन लेने वाला था, मैंने ऋतू को पीछे से जा कर पकड़ लिया और अपनी ठुड्डी को में ऋतू की गर्दन पर रखे हुए उसके गाल को चूम रहा था| ऋतू ने फटाफट ब्रेड पकोड़े बनाये और मैंने ऐसे ही खड़े-खड़े उसे भी खिलाये और खुद भी खाये| नाश्ता क्र के चलने को हुआ तो ऋतू बोली; "आप कुछ भूल नहीं रहे?" मैंने फटाफट अपना रुमाल, पर्स और मोबाइल चेक किया पर वो मुझे प्यार भरे गुस्से से घूरने लगी| "ओह! सॉरी!" मैंने ऋतू को अपने आगोश में लिए और उसके होंठों को चूम लिया| ऋतू ने तुरंत अपने हाथों को मेरी गर्दन पर लॉक कर दिया और मेरे होठों को चूसने लगी| मेरा उस वक़्त बहुत मन था की मैं उसे गोद में उठा लूँ और बिस्तर पर लिटा कर खूब प्यार करूँ, पर जानता था की उसकी कमर का दर्द उसे और परेशान करेगा| दो मिनट तक इस प्यार भरे चुंबन के बाद तो जैसे मन ही नहीं था की कहीं जाऊँ की तभी फ़ोन बज उठा| मेरा colleague मेरा बस स्टैंड पर इंतजार कर रहा था, जैसे मैंने जाने के लिए मुदा की ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली; "जानू! वो....मुझे कुछ पैसे चाहिए थे!" मैंने फ़ौरन बटुए में हाथ डाला और ऋतू की तरफ देखते हुए पुछा; "कितने?" ऋतू झट से बोली; "1,000/-" और मैंने उसे 2,000/- दे दिए और फटाफट निकल गया|

ऑफिस पहुँच कर मैंने ऋतू को कॉल किया और उसे volini spray लगा कर गर्म पानी का सेक करने को कहा वर्ण हम रात को पार्टी में नहीं जा पाते| वो दिन कैसे बीता कुछ पता ही नहीं चला, शाम को जब निकलने का समय हुआ तो सारे लड़के बाहर इकठ्ठा हो गए| सर ने सब का जमावड़ा देखा तो वो भी वहीँ आ गए और पूछने लगे की हम सब यहाँ खड़े क्या कर रहे हैं| हम सब में जो सबसे ज्यादा 'चटक चूतिया' था वो बोला; "सर वो रात को हम सारे पार्टी कर रहे थे तो उसी की बात हो रही थी की कहाँ जाना है?" अब हमारे सर ठहरे चटोरे तो वो कहने लगे की ब्रेक पॉइंट ढाबा चलते हैं| अब सब उस चूतिये को मन ही मन गाली देने लगे, कहाँ तो सब सोच रहे थे की पब जायेंगे मस्ती करेंगे और कहाँ सर ने ढाबे जाने का सुझाव दे दिया| "सर BBQ Nation चलते हैं, पैर हेड 1,500/- आएगा और अनलिमिटेड खाना मिलेगा|” मैंने कहा| अब सब का मन फीका हो गया क्योंकि वो सब दारु पीना चाहते थे और सब मेरी ही तरफ देख रहे थे| मैंने आँख मारते हुए हाँ में गर्दन हिलाई तो वो समझ गए अब उसी चटक चूतिये की ड्यूटी लगाईं गई की वो हम सब के लिए टेबल बुक करेगा| सब के दबाव में आ कर उसने हाँ कर दी और ऑफिस से सीधा वहीँ चला गया और बाकी सब अपने-अपने घर चल दिए| मैं अभी आधे रस्ते पहुँचा था की ऋतू का फ़ोन आ गया, वो पूछने लगी की मैं कबतक आ रहा हूँ? मैंने उसे कहा की मैं अभी रास्ते में हूँ तो उसने कॉल काट दिया| मैंने इस बात पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बाइक स्टार्ट कर फिर से चल पड़ा| जैसे ही मैं घर पहुँचा और दरवाजा खटखटाने लगा की दरवाजा अपने आप खुल गया, मैं धीरे से अंदर आया और सोचा शायद की कहीं ऋतू दरवाजा बंद करना तो नहीं भूल गई?! पर जब नजर सामने खिड़की पर पड़ी तो मैं अपनी आँख झपकना ही भूल गया|

अब मुझे समझ आ गया की ऋतू ने वो पैसे क्यों मांगे थे? ऋतू इठला कर चलते हुए मेरे पास आई और बोली; "क्या देख रहे हो जानू?!" मेरे मुंह से बस; "WOW!!!" निकला और ऋतू मुस्कुराने लगी| "ये मैंने उसी दिन आर्डर किया था जब आपने मुझे बताया था की 31st को पार्टी में जाना है| आज अगर मुझे देख कर आपके सारे colleagues आपसे जलने ना लगें तो कहना?" मैं हैरानी से ऋतू की बात सुनता रहा, कहाँ तो ये लड़की इतनी शर्मीली थी और कहाँ ये आज इस कदर मॉडर्न हो गई है? मुझे ऋतू वाक़ई में सूंदर लग रही थी पर मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी की वो इस कदर के कपड़े भी पहन सकती है| मैं अपने ख्यालों में गुम था की ऋतू ने मुझे वो शादी वाला ब्लैज़र और शर्ट उठा के दी; "और ये आप पहनोगे? मेरे hubby को देख आज उन सारी लड़कियों की जलनी चाहिए|" अब मरते न क्या करते मुझे वो पहनना ही पड़ा क्योंकि अगर मैं प्लैन कपडे पहनता तो सब कहते हूर के संग लंगूर! मैं जानता था की कल ऑफिस में मेरी बहुत खिचाई होगी! पर ऋतू ये भूल गई थी की ये दिसंबर का महीना है और बाहर ठंड है, उसने इस ड्रेस के चलते कोई गाउन तो आर्डर किया नहीं था! "मैडम जी! बहार की ठंडी हवा में ये पहन के जाओगी तो 'कुक्कड़' बन जाओगी!" ये सुन कर ऋतू सोच में पड़ गई| मैंने फ़ोन निकाला और कैब बुक करी और अपना ब्लैज़र उसे उतार के दिया| "पर ये इसके साथ कैसे चलेगा?" ऋतू ने मायूस होते हुए कहा| "अरे बुद्धू! ये बस कैब आने तक अपने कन्धों पर रख ले और वहाँ पहुँच कर मुझे दे दिओ, वापसी में फिर ऐसे ही करेंगे|" ये सुन कर उसका चेहरा फिर से खिल गया|

आखिर कैब आई और हम BBQ Nation पहुँचे और जैसा की होना चाहिए था सब ऋतू को देख कर ताड़ने लगे| सब के सब मुझे आँखों से इशारे कर के पूछने लगे की ये कौन है? "My girlfriend ऋतू!" ये कहते हुए मैंने उसका इंट्रो एक-एक कर सबसे कराया| तभी पीछे से सर और मैडम आये और उन्होंने भी ऋतू से Hi-Hello की! वहाँ पर कोई बड़ा फॅमिली टेबल नहीं था बल्कि चार लोगों के लिए बैठने वाले छोटे बूथ थे| मैंने फटाफट ऋतू का हाथ पकड़ा और खाली बूथ में बैठ गया, सब ने फटफट बूथ पकडे और सर के साथ उसी चटक चूतिये को अपनी बंदी के साथ बैठना पड़ा| सारे लौंडे अपनी-अपनी बंदियों को साथ बैठ गए, मेरे सामने वही लड़का बैठा जो मेरे साथ एकाउंट्स में था| उस हरामी की नजर ऋतू पर उसकी बंदी की नजर मुझ पर थी| मेरा बायाँ हाथ और ऋतू का दायाँ हाथ टेबल के नीचे था और हम एक दूसरे के हाथ को सहला रहे थे| खाने के लिए जब वेटर आया तो उसने हम से पुछा की हम Veg या Non-Veg लेंगे? हमने तीन Non-Veg और एक Veg का आर्डर दिया| फिर दूसरा बंदा एक मिनी तंदूर ले कर आया और हमारे सामने टेबल के बीचों बीच बने छेड़ में फिट कर दिया| ये ऋतू के लिए फर्स्ट टाइम था और वो हैरानी से देख रही थी| फिर एक-एक कर 'सीकें' लगनी शुरू हो गईं फिर मैं और वो लड़का बारी-बारी से उन सीकों को रोल करते और उस पर चटनी लगाने लगे| मैंने वहाँ रखे झंडे को ऊँचा कर दिया; "ये क्यों किया?" ऋतू ने पुछा| "अब जबतक हम इस झंडे को नीचे नहीं करते ये लोग तंदूरी आइटम serve करते रहेंगे|" ये सुन कर मेरे सामने बैठी लड़की बोली; "मतलब हम अनलिमिटेड खा सकते हैं?"

"हाँ जी! पर इसी से पेट न भर लीजियेगा, वहाँ main कोर्स का बुफे लगा है और वो भी अनलिमिटेड है|" ये सुन कर वो लड़की और ऋतू एक को देखने लगे और उनके चेहरे से वही लड़कियों ख़ुशी झलकने लगी| ये वही ख़ुशी है जो लड़कियों को फ्री के खाने को देख कर होती है| वेटर फिर से आया और ड्रिंक्स के लिए पूछने लगा पर मैंने मना कर दिया| उन दोनों ने बहुत फाॅर्स किया पर मैं और ऋतू अड़े रहे की हम नहीं पीयेंगे| शायद ऋतू जान गई थी की मेरा खींचाव नशे की तरफ कुछ ज्यादा है! मैं अपनी लिमिट जानता था पर पिछले कुछ महीनों में ये दारु मेरी आदत बनने लगी थी| वैसे भी 31st को ड्रिंक्स बहुत ज्यादा ही महंगी थीं तो ना पीना ही economical था! खेर अच्छे से दबा कर खाना पीना हुआ और समय हुआ विदा लेने का तो सब को Happy New Year कह कर हम दोनों कैब कर के घर लौट आये| रात के ग्यारह बजे थे और हम अपने कपडे बदल रहे थे| ऋतू ने हमेशा की तरह मेरी टी-शर्ट पहनी और नीचे उसने सिर्फ अपनी पैंटी पहन राखी थी, मैं पजामा और टी-शर्ट पहन कर रजाई में घुस गया| फिर मुझे याद आया की ऋतू को दवाई लगा देता हूँ तो मैं वापस उठा और ऋतू की कमर पर Iodex लगा दिया| ऋतू सेधी लेटी थी पीठ के बल, और मैं उसकी तरफ करवट ले कर लेटा था| ऋतू ने मेरा बायाँ हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और वो छत की तरफ देखते हुए कुछ सोच रही थी|

"क्या हुआ? क्या सोच रही है?" मैंने ऋतू से पुछा|

"गाँव में रहते हुए ना तो कभी मुझे ये पता था की क्रिसमस क्या होता है और ना ही की 31st दिसंबर की पार्टी क्या होती है! आप की वजह से मैं यहाँ आई और ये सब देखने को मिला, एक नई जिंदगी जीने का मौका मिला| वरना अब तक तो मेरी शादी हो गई होती और मैं वहां तिल-तिल मर रही होती!"

"बस! नए साल का आगाज इस तरह रोते हुए नहीं करना!" ये कहते हुए मैंने ऋतू के गाल को चूम लिया| ऋतू मेरी तरफ पलटने लगी तो उसकी कमर का दर्द उसे परेशान करने लगा, मैं उठ कर पानी गर्म करना चाहता था पर ऋतू ने मुझे रोक दिया और मेरा सर अपने सीने पर रख कर मेरे बालों में उँगलियाँ फेरने लगी| मैं ऋतू के दिल की बेकाबू धड़कनें सुन पा रहा था और उसके मन में उठ रहे प्यार को महसूस कर पा रहा था| "कल सुबह पहले डॉक्टर के चलेंगे फिर मैं तुम्हें कॉलेज छोड़ दूँगा और वहाँ से मैं ऑफिस निकल जाऊँगा|" मैंने कहा और ऋतू ने बस 'हम्म्म' कहा| घडी ने टिक-टिक कर रात के बारह बजाये और मैं उठ कर बैठा, पर ऋतू की आँखें बंद थी| मैंने झुक कर ऋतू के होठों को बड़ा लम्बा kiss किया और कहा; "Happy New Year मेरी जान!" ऋतू ने अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन के पीछे ले जाकर लॉक कर दिया और मुस्कुराते हुए बोली; "Happy New Year जानू! I Love You!!!" पर उसे मेरा जवाब सुनने की जर्रूरत नहीं थी, उसने मुझे अपने ऊपर झुका लिया और मेरे होठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगी|

हम इसी तरह एक दूसरे को चूमते हुए सो गए| सुबह उठ कर मैंने ऋतू के माथे को चूमा और उसे नए साल की नई सुबह की मुबारकबाद दी| ऋतू अब भी लेटी हुई थी, मैंने उठ कर सबसे पहले उसके लिए bed tea बनाई और फिर उसे प्यार से जगाया| ऋतू आँखें मलते हुए उठी और उसने जब मेरे हाथ में चाय का कप देखा तो मुस्कुराने लगी| "मुझे लगा था की ये सब आप शादी के बाद करोगे!" ऋतू ने कहा| "अरे हम तो साल के पहले दिन से ही आपके गुलाम हो गए!" मैंने हँसते हुए कहा| "इस गुलाम को तो मैं अपने दिल में बसा कर रखूँगी!" ऋतू ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा| ऋतू उठ कर फ्रेश होने चली गई और मैं उसके लिए ऑमलेट बनाने लगा| ऋतू ऑमलेट की खुशबु सूंघ कर फटाफट बाहर आ गई और कुर्सी पर बैठ गई| मैंने उसे गर्म-गर्म ऑमलेट परोस कर दिया और उसके सर को चूम कर मैं बाथरूम फ्रेश होने चला गया| तैयार हो कर, खा-पी कर हम दोनों निकले| मैंने बाहर से ऑटो किया और पहले ऋतू को एक डॉक्टर के पास ले गया| डॉक्टर ने बताया की कोई गंभीर बात नहीं है, मोच ही है पर चूँकि सर्दी है इसलिए ज्यादा दर्द कर रही है| उसने एक पैन किलर दी और गर्म पानी की सिकाई करने को कहा| फिर ऋतू को मैंने उसके कॉलेज छोड़ा और मैं ऑफिस निकल गया| ऑफिस मैं पहले ही कॉल कर के बता चूका था की में थोड़ा लेट होजाऊंगा इसलिए बॉस ने कुछ नहीं कहा|

समय बीतने लगा और मार्च आ गया... कुछ दिन बाद कॉलेज का एनुअल डे था! ऋतू को जैसे ही ये पता चला उसने मुझे तुरंत फ़ोन किया; "जानू! नेक्स्ट वीक हमारा एनुअल डे है!" मैंने थोड़ा मजाक करते हुए कहा; "हमारा एनुअल डे?" ये सुन कर रितु की भी हँसी निकल गई; "मेरा मतलब...कॉलेज का एनुअल डे! तो नेक्स्ट वीक आप छुट्टी ले लेना|" अब चूँकि मैंने अभी तक एक भी छुट्टी नहीं ली थी तो मुझे पता था की बॉस छुट्टी दे देंगे, उसी दिन मैंने शाम को सर से बात की तो उन्होंने हाँ कह दिया| इधर ऋतू ने अपने लिए और मेरे लिए ड्रेस सेलेक्ट करना शुरू कर दिया और मुझे मैसेज करना शुरू कर दिया| ऑफिस में हर कुछ मिनट मेरा फ़ोन बजता रहता और सब कहते की 'क्या बात है? गर्लफ्रेंड बड़ी बेचैन हो रही है|' ऋतू ने अपनी ड्रेस फाइनल करने से पहले मेरे कपडे फाइनल कर दिए और मुझे बता कर आर्डर भी कर दिए| उसने अपना आर्डर अपने फ़ोन से किया ताकि मुझे पता न चल जाए की उसने क्या आर्डर किया है, हाँ डिलीवरी एड्रेस मेरा घर ही था| संडे को उसका आर्डर डिलीवर हुआ पर मेरे वाले में और टाइम लगना था| ऋतू ने मुझे अपने कपडे दिखाए भी नहीं और शाम को अपने साथ हॉस्टल ले गई|

आखिर एनुअल डे का दिन आ ही गया, मैं रेडी हो कर ऋतू के हॉस्टल पहुँचा क्योंकि मुझे उसे वहीँ से पिक करना था| ऋतू जब मेरे सामने आई तो मैं हाथ बाँधे प्यार से उसे देखने लगा|

उसकी वो लट जो उसके चेहरे पर आ गई थी, वो उसकी साडी.... हाय मन करने लगा की ऋतू को अभी मंदिर ले जाऊँ और उससे अभी शादी कर लूँ| इधर ऋतू की नजर मुझ पर जम गई थी और मुँह खोले मुझे देखते हुए नजदीक आई|

“यार अभी मेरे साथ भागना है?" मैंने ऋतू से पुछा तो उसने एक दम से अपनी मुंडी हाँ में हिलाई, उसका ये उतावलापन देख मैं हँसने लगा| "आज तो आप मुझे जहाँ कहो वहाँ चलने को तैयार हूँ?" ऋतू ने इतराते हुए कहा| ऋतू को पीछे बिठा कर आज मनो ऐसा लग रहा था की एक नव-विवाहित जोड़ा किसी शादी में जा रहा हो| जैसे ही हम कॉलेज के नजदीक पहुँचे तो हमें loud music की आवाज आने लगी| बाइक पार्क कर के हम दोनों अंदर आये तो मेरी नजर सबसे पहले सोमू भैया पर पड़ी| सबसे पहले उनसे जा कर गले लगे और HI-Hello हुई! उन्हीं के पास मेरे साथ के सभी दोस्त मिले और तब मुझे ध्यान आया की यहाँ तो मोहिनी भी आई होगी! मैं मन ही मन तैयारी करने लगा की उससे क्या कहूँगा? ऋतू को समझ नहीं आया की मैं अचानक से इतना गंभीर क्यों हो गया| फिर वही हुआ जिसका मुझे डर था, मोहिनी जो की हम दोनों से पहले ही आ चुकी थी वो अंशुल के मुँह से मेरे और ऋतू के बारे में सब सुन चुकी थी, हमारी ही तरफ चल कर आ रही थी|

ऋतू अब भी समझ नहीं पाई थी की भला मैं क्यों परेशान हूँ?!
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07-14-2020, 12:59 PM,
#63
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 56

आज पहलीबार मैं किसी शक़्स के चेहरे को नहीं पढ़ पा रहा था! शायद ये घबराहट थी या फिर ऋतू को खो देने का डर! मोहिनी मेरे सामने आकर खड़ी हुई और कुछ बोलने को हुई पर उसे एहसास हुआ की हमारे इर्द-गिर्द बहुत से लोग हैं इसलिए उसने मेरा और ऋतू का हाथ पकड़ा और हमें एक कोने में ले आई| अभी उसने कुछ कहा नहीं था और इधर मेरा दिल कह रहा था की आज रात ही मैं ऋतू भगा कर ले जाऊँगा|

"मानु जी! ये सच है की आप रितिका से प्यार करते हो?" मोहिनी की बात सुन ऋतू घबरा गई और जल्दीबाजी में बीच-बचाव करने को कूद पड़ी|

"हाँ दीदी...ये...ये तो सब जानते हैं!"

"मैं उस प्यार की बात नहीं कर रही?" मोहिनी ने गंभीर होते हुए कहा| मोहिनी का ये रूप देख ऋतू का सर झुक गया तो मैंने एक गहरी साँस ली और पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा; "हाँ! बहुत प्यार करता हूँ मैं ऋतू से?"

"ये जानते हुए की आपका उससे रिश्ता क्या है?" मोहिनी की आँखों मुझे अब एक चिंगारी नजर आने लगी थी|

"खून के रिश्ते से बड़ा प्यार का रिश्ता होता है!" मैंने कहा|

"और आगे क्या करोगे?" मोहिनी ने पुछा|

"शादी और क्या?!" मैंने सरलता से जवाब दिया|

"Really? भाग कर? क्योंकि यहाँ तो ये सुनने के बाद आप दोनों को कोई जिन्दा नहीं छोड़ेगे|" मोहिनी ने ताना मारते हुए कहा|

"हम दोनों यहाँ से दूर अपनी नई जिंदगी बसायेंगे|" ऋतू ने भी आत्मविश्वास दिखते हुए कहा|

"रहोगे तो इसी दुनिया में ना? भूल गए आपने ही बताया था की आपके गाँव वाले प्रेमियों को जिन्दा जला देते हैं!" मोहिनी ने ऋतू को डाँटते हुए कहा|

"सब याद है, वो ऋतू की ही माँ थी जिन्हें खेत के बीचों बीच जिन्दा जला दिया गया था|" मैंने मोहिनी की आँखों में देखते हुए कहा| अब ये सुन कर तो मोहिनी के होश ही उड़ गए!

"क्या? और फिर भी आप?" मोहिनी ने हैरान होते हुए कहा|

"प्यार होना था, हो गया कोई इसे माने चाहे ना माने हम तो इस प्यार पर विश्वास करते हैं ना?! जानता हूँ ये लड़ाई बहुत लम्बी है और शायद भागते-भागते जमीन भी कम पड़े पर हम अलग होने से रहे! ज्यादा से ज्यादा हमें मार ही देंगे ना? इससे ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकते?"

"आपको ये इतना आसान लग रहा है? दिमाग-विभाग है या इसके (ऋतू के) प्यार में पड़ कर सब खो दिया आपने? तुझमें (ऋतू में) अक्ल नहीं है क्या? क्यों अपनी अच्छी खासी जिंदगी ख़राब करना चाहते हो? क्या अच्छा लगता है तुम्हें एक दूसरे में? सेक्स करो खत्म करो! ये शादी-वादी का क्या चक्कर है?!" मोहिनी की ये बात मुझे बहुत बुरी लगी, ऐसा लगा मानो उसने मेरे प्यार को गाली दी हो| मैंने उसकी कलाई पकड़ी और उसे गुस्से से दिवार के सहारे खड़ा करते हुए उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा; "तुझे क्या लगता है की मैं इसके जिस्म का भूखा हूँ? या फिर ये सिर्फ मेरे साथ सेक्स करना चाहती है और इसलिए हम शादी कर रहे हैं? शादी हम इसलिए नहीं कर रहे ताकि दिन रात बस सेक्स कर सकें, शादी हम इसलिए कर रहे हैं ताकि ताउम्र हम एक दूसरे के साथ गुजार सकें| अपना परिवार बसा सकें, जहाँ हमें एक साथ देख कर कोई हमारे रिश्ते को नहीं प्यार की तारीफ करे| अगर सेक्स ही करना होता तो ये प्यार नहीं वासना होती! हमारे अंदर वासना कतई नहीं, सिर्फ एक दूसरे के लिए प्यार है|

हम दोनों एक घर में पैदा हुए क्या ये मेरी गलती है? या फिर ये मेरी भतीजी बन कर पैदा हुई ये इसकी गलती है? हम अपनी मर्जी से अपने माँ-बाप नहीं चुनते और अगर चुन सकते तो कभी एक परिवार में पैदा नहीं होते| I don't give a fuck what this society thinks of this relationship, what matters to me is what she thinks of this relationship and she’s bloody danm proud of it. Throughout her childhood she has suffered a lot, you have no idea what it feels to be the unwanted child in a family. जब ये अपना दर्द भरा बचपन काट रही थी तब तो किसी ने आ कर इसके दिल पर मरहम नहीं लगाया ना? अगर मेरे प्यार से इसके जख्मों को आराम मिलता है तो दुनिया को कोई हक़ नहीं की वो हमें अलग करे| मेरा प्यार सच्चा है और तुझे कोई हक़ नहीं की मेरे प्यार को गाली दे!” मेरी बातें सुन कर मोहिनी हैरान थी और जब वो बोली तो बातें बहुत हद्द तक साफ़ हो गईं| “I’m sorry! मेरा वो उदेश्य नहीं था.....मैं बस जानना चाहती थी की आप कितना प्यार करते हो ऋतू को| I’m happy for you guys!” मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर ऋतू का हाथ पकड़ कर उसे अपने गले लगा लिया| ऋतू रउवाँसी हो गई थी और उसे ये चिंता सता रही थी की अगर ये राज मोहिनी ने खोल दिया तो क्या होगा? पर उसकी चिंता का निवारण मोहिनी ने खुद ही कर दिया; "रितिका रो मत! Your secret is safe with me. पर हाँ शादी में जर्रूर बुलाना!” मोहिनी ने हँसते हुए कहा| ऋतू की आँख से आँसू की एक धार बह निकली थी, मोहिनी ने खुद उसके आँसू पोछे और उसे वाशरूम जाने को कहा| ऋतू के जाने के बाद मोहिनी बोली; "वैसे मैंने आज एक बहुत बड़ा सबक सीखा है! अगर किसी से प्यार करो तो उसे बता देना चाहिए, ज्यादा इंतजार करने से वो शक़्स आपसे बहुत दूर चला जाता है!" वो इतना कह कर जाने लगी, मुझे ऐसा लगा जैसे उसके अंदर कोई दर्द छुपा है और वो उसे छुपा रही है| मैंने उसका हाथ थामा और उसे अपनी तरफ घुमाया तो पाया की उसकी आँखें नम हैं! मुझे उससे पूछना नहीं पड़ा की उसकी बात का मतलब क्या है क्योंकि उसके आँसू सब ब्यान कर रहे थे| पर मोहिनी अपने मन में कुछ रखना नहीं चाहती थी इसलिए बोल पड़ी; "कॉलेज के लास्ट ईयर मुझे आपसे प्यार हुआ पर कहने की हिम्मत नहीं पड़ी| फिर हमारा साथ छूट गया और शायद मैं भी आपको भूल गई थी, फिर उस दिन आपने मेरे दिल में दुबारा एंट्री ली और क्या एंट्री ली! वो सोया हुआ प्यार फिर जाग गया पर फिर हिम्मत नहीं हुई आपसे कहने की और जब कहना चाहा तो आपने ये बोल कर डरा दिया की आपके गाँव में डॉम प्यार करने वालों को मार दिया जाता है| जैसे-तैसे खुद को संभाल लिया ये सोच कर क्या पता की आगे चल कर हालात सुध जाएं और तब मैं आपसे अपने प्यार का इजहार करूँ! पर सच्ची मैंने बहुत देर कर दी!!!"

"प्यार तो फर्स्ट ईयर से मैं तुम्हें करता था पर लगता था की तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड होगा ही| फिर जब टूशन पढ़ाने आया तो पता चला की तुम तो वेल्ली हो पर कुछ कह पाता उससे पहले ही मुझे मेरे ही घर की ये बात पता लगी और फिर रही सही हिम्मत भी टूट गई! फिर ऋतू से प्यार हुआ और मैंने ये रिस्क लेने की सोची!" मैंने मोहिनी को सब सच बता दिया|

"तो ये सब आपके गाँव वालों की वजह से हुआ! कोई बात नहीं ....शायद मेरे नसीब में प्यार था ही नहीं!" मोहिनी ने नकली हँसी हँसते हुए कहा| मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही ऋतू आ गई और ठीक उसी समय स्टेज पर से सोमू भैया ने मेरे नाम की अनाउंसमेंट की और मुझे स्टेज पर बुलाया| हम तीनों स्टेज की तरफ चल दिए; "भाई आज तक हमारे वो गुमनाम शायर जिन्होंने आजतक हमारे कॉलेज के नोटिस बोर्ड पर टोपर की शोभा बधाई है उनसे दरख्वास्त करूँगा की वो कुछ लाइन आपको सुनायें| मैं स्टेज पर चढ़ा और सोमू के कान के पास जा कर बोलै; "कहाँ फँसा दिया भैया आपने!" मैंने ये ध्यान नहीं दिया की उनके हाथ में जो माइक है वो ऑन है| जब सब ने मेरी ये बात सुनी तो सब लोग हँसने लगे|

"दोस्तों एक शायर की चंद लाइन्स याद आती हैं.....

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं कहीं आसमान नहीं मिलता

तमाम शहर में ऐसा नहीं खुलूस न हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता

कहाँ चराग़ जलाएं कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन माकन नहीं मिलता

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
ज़बान मिली है मगर हम-ज़बान नहीं मिलता

चराग़ जलते ही बिनाई बुझने लगती है
खुद अपने घर में ही घर का निशान नहीं मिलता "

ये लाइन्स सिर्फ और सिर्फ मोहिनी के लिए थीं ताकि उसे उसकी कही बात का जवाब मिल जाये| तालियों की गड़गड़ाहट और सीटियों से सब ने अपनी ख़ुशी जाहिर की| मैं स्टेज से उतरा और अब मेरा मन शांत था और कोई डर नहीं था पर शायद ऋतू को अब भी घबराहट थी| मैं उसके और मोहिनी के पास पहुंचा और तभी मोहिनी हम दोनों को छोड़ कर अपनी किसी दोस्त के पास चली गई| "वो किसी से कुछ नहीं कहेगी! मुँह-फ़ट है पर चुगली करना उसकी आदत नहीं|" मैंने कहा और फिर ऋतू को सारी बात बता दी| वो सब सुन कर उसे इत्मीनान हुआ और वो मुस्कुरा दी| कुछ देर में गाने फिर से बजने लगे, हम दोनों एक चाट वाले स्टाल के पास खड़े थे की तभी वहाँ राहुल नाम का एक लड़का आया| ये ऋतू की क्लास में कुछ महीने पहले ही ट्रांसफर ले कर आया था| साल के बीचों बीच आया है मतलब जर्रूर कोई नामी बाप की औलाद होगा| पहनावा उसका बिलकुल अमीरों जैसा पर वो रोहित की तरह चूतिया नहीं था| स्टाइलिश था और जब से हम आये थे उसकी नजर ऋतू पर ही टिकी थी| राहुल ने आते ही ऋतू से पुछा; "Shall we dance?" पर ऋतू ने एक दम से जवाब दिया; "नहीं!" वो हैरानी से उसकी तरफ देखने लगा और इससे पहले की कुछ बोलता ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे डांस फ्लोर पर ले आई|

"क्या हुआ?" मैंने पुछा|

"I Hate that guy! ये उसी मंत्री का बेटा है जो उस दिन हमारे घर पर आया था|" ऋतू ने चिढ़ते हुए कहा| अब पहले से ही उसका मूड थोड़ा ऑफ था और मैं उसे और ख़राब नहीं करना चाहता था| मैंने ऋतू को उसकी कमर से पकड़ा और अपने जिस्म से सटा कर थिरकने लगा|

"जानू! अगर दीदी (मोहिनी) ने आपसे पहले इजहार किया होता तो?" ऋतू ने पुछा| अब मैं उससे इस बारे में बात नहीं करना चाहता था, शायद ऋतू खुद समझ गई; "तो आज आप उनके साथ होते .... और मैं अपनी किस्मत को कोस रही थी!" मैंने ऋतू के सर को चूमा और कहा; "जान! हमारी किस्मत में एक होना लिखा था, इसलिए आज हम यहाँ हैं|" ऋतू को मेरी बात से इत्मीनान हुआ और अब वो फिर से मुस्कुराने लगी| उस दिन मुझे इस बात का एहसास हुआ की मेरे अंदर इस जमाने से लड़ने की कितनी शक्ति है और ऋतू भी जान गई की मैं उससे कितना प्यार करता हूँ| प्रोग्राम खत्म हुआ तो मैं और ऋतू बाहर आये और अभी मैं बाइक को किक कर ने वाला था की ऋतू के कुछ दोस्त आये और मुझे Hi बोल कर उससे कुछ बात करने लगे| उनकी बात होने तक मैंने बाइक घुमा ली थी, फिर ऋतू को हॉस्टल छोड़ कर मैं अपने घर आ गया|

समय का चक्का घूमने लगा और ऋतू के exams आ गए, मुझे कहने की जर्रूरत नहीं की उसने फर्स्ट ईयर में टॉप किया| घर वाले उसकी इस उपलब्धि से बहुत खुश थे और रिजल्ट ले कर हम घर पहुँचे तो उसे इस बार बहुत प्यार मिला| परिवार के प्यार की खुशियाँ देर से ही सही पर उसे अब मिलने लगीं थीं|

रिजल्ट की ख़ुशी मना कर मैं और ऋतू शहर वापस जा रहे थे की रास्ते में मेरी बाइक ख़राब हो गई| बाइक को धक्का लगाते-लगाते हम एक मैकेनिक तक पहुँचे और मैं वहाँ उससे बाइक बनवाने लगा की ऋतू बोर हो रही थी और ऐसे ही चलते-चलते कुछ आगे चली गई| वहाँ उसने एक झोपडी देखि जहाँ एक बच्चा धुल में खेल रहा था| उसके पास ही उसकी माँ बैठी थी जो सर झुका कर कुछ सोच रही थी| उसका ध्यान जरा भी अपने बच्चे पर नहीं था, उसका पति कहीं मजदूरी करने गया था, चूल्हा ठंडा था और शायद उन बेचारों के पास खाने को भी कुछ नहीं था| ऋतू वहीँ कड़ी उस बच्चे और उसकी माँ को देख रही थी, माँ की उम्र ऋतू से कुछ 1-2 साल ही ज्यादा थी और बच्चा करीब 1 साल का होगा| बाइक ठीक होने के बाद मैं ऋतू को ढूँढता हुआ आया तो मैंने देखा की ऋतू वहाँ उस बच्चे की माँ से बात कर रही है| मुझे वहाँ खड़ा देख उसने मुझसे पैसे मांगे और उस औरत को देने लगी| कुछ न-नुकुर के बाद उसने पैसे ले लिए उसके बाद जब ऋतू मेरे पास चल के आई तो उसकी आँखें नम थी| वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे कुछ दूर लाई और आ कर मेरे गले लग गई| आज पहली बार उसने गरीबी देखि थी, गाँव में उसका घर से निकलना कम होता था और जो गरीबी उसने गाँव में देखि थी वो थी मिटटी के घर और हमारे खेतों में काम करने वाले मजदूर!! ऋतू के लिए तो जिसका घर मिटटी का है या जो दूसरों के खेतों में काम करता है वही गरीब और जिसका घर पक्का बना है या जो अपने खेतों में दूसरों से काम करवाता है वो अमीर| शहर आ कर उसने जब लोगों को भीख मांगते हुए देखा तो उसने सोचा की शायद ये गरीबी होती है पर जब उसे पता चला की इनमें से ज्यादातर एक 'रैकेट' का हिस्सा हैं तो उसके मन के विचार बदलने लगे| भला कोई काम न कर के जानबूझ कर भीक मांगे तो वो काहे का गरीब? पर आज जब उसने उस औरत से उसकी कहानी सुनी तो उसे एहसास हुआ की गरीबी क्या होती हैं!

उसका नाम फुलवा है, वो एक बंजारन है| उसे एक दूसरे कबीले के लड़के से प्यार हुआ और जब उसने ये बात अपने घर में बताई तो उन्होंने उसे और उस लड़के को कबीले से निकाल दिया| तब से दोनों दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, इसी बीच उसका ये बेटा पैदा हुआ और अब इन दोनों की जिंदगी तबह हो गई| उसका पति काम के तलाश में रोज निकलता है और शाम को खाली हाथ लौटता है| क्या प्यार करने वालों के साथ ऐसा ही होता है? क्यों ये लोग उन्हें चैन से जीने नहीं देते? और हमारा क्या होगा? अगर हमारे साथ ऐसा हुआ तो?" ऋतू ने रोते-रोते पुछा|

"हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं होगा! मैंने सब कुछ प्लान कर रखा है| मैं ये जॉब क्यों कर रहा हूँ? इसीलिए ना की जब हम घर से भागें तो हम एक नई जिंदगी शुरू कर सकें| हाँ मैं मानता हूँ की ये इतना आसान नहीं होगा पर failure is not an option for us! We've to fight till the last breath and we will succeed! तुझे बस मुझ पर विश्वास रखना है|" मैंने पूरे आत्मविश्वास से कहा| उस टाइम तो ऋतू ने मेरी बात मान ली पर अब उसके मन में ये चिंता पैदा हो चुकी थी|
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07-14-2020, 12:59 PM,
#64
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 57

उस दिन के बाद से ऋतू में अचानक ही बहुत बदलाव आने लगे, उसने बिना मुझे पूछे-बताये एक जॉब ढूँढी और संडे को मुझे चौंकाते हुए बोली; "जानू! मैंने एक पार्ट टाइम जॉब ढूँढ ली है! नेक्स्ट सैटरडे से ज्वाइन कर रही हूँ|" अब ये सुन कर मैं चौंक गया; "क्या? क्या जर्रूरत है तुझे जॉब करने की?"

"जर्रूरत है.... बहुत जर्रूरत है!" ऋतू ने कुछ सोचते हुए कहा|
"किस बात की जर्रूरत है?" मैंने ऋतू से प्यार से पुछा|

"आप कहते हो ना की हमें फ्यूचर के बारे में सोचना चाहिए, तो मैं भी वही कर रही हूँ| इस पार्ट टाइम जॉब से मुझे ऑफिस का एक्सपीरियंस मिलेगा, कल को जब मैं फुल टाइम जॉब के लिए जाऊँगी तो ये एक्सपीरियंस वहाँ मेरे काम आएगा|" जो वो कह रही थी वो सही भी था|
"पर कॉलेज और जॉब कैसे मैनेज करेगी?" मैंने चिंता जताते हुए कहा|

"वो सब मैं देख लूँगी! आपको कोई शिकायत नहीं मिलेगी|" ऋतू ने आत्मविश्वास से कहा|

"अच्छा एक बात बता, तेरे जॉब ज्वाइन करने के बाद हम सैटरडे-संडे कैसे मिलेंगे?" मैंने पुछा| ऋतू के पास मेरी इस बात का कोई जवाब नहीं था!

“We’ll figure out something?” ऋतू बोली|

“NO YOU’VE TO FIGURE OUT SOMETHING!” मैंने हँसते हुए सारी बात ऋतू पर डाल दी, ऋतू भी मुस्कुराने लगी और उसने जिम्मेदारी ले ली|

मैंने ऋतू का माथा चूमा और उसने मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़ लिया| मैं खुश था की वो अब जिम्मेदारी उठाना चाहती है, पर वो ये नैन जानती थी की ये फैसला इतना आसान नहीं जितना वो सोच रही है| पिछलीबार जब उसने अनु मैडम का प्रोजेक्ट ज्वाइन किया था तब वहाँ मैं भी काम करता था और ऋतू के लिए मैं सहारा था, पर नए ऑफिस में नए लोगों के साथ एडजस्ट करना इतना आसान नहीं था| कम से कम ऋतू के लिए तो बिलकुल आसान नहीं होगा, मैं चाहता तो ये बात मैं ऋतू को समझा सकता था पर वो शायद इस बात को नहीं मानती| जब खुद एक्सपीरियंस करेगी तब मानेगी!

उसके ऑफिस का पहले दिन मैं उसे खुद छोड़ने गया, main gate पर उसे 'all the best' कहा और ऋतू मुस्कुराते हुए अंदर चली गई| उस दिन ऋतू ने मुझे 100 बार फ़ोन किया, कुछ न कुछ पूछने के लिए| वो बहुत nervous थी और छोटी-छोटी चीजें जैसे की file कैसे save करते हैं पूछने लगी| मैं उसकी nervousness समझ सकता था और मैं उससे आज बहुत ज्यादा ही प्यार से बात कर रहा था| 4-5 दिन लगे ऋतू की nervousness खत्म होने में, पर अब हमारा सैटरडे-संडे मिलने का प्रोग्राम कम होने लगा था| ऋतू कई बार weekdays में भी ऑफिस जाने लगी थी, हमारा प्यार बस फ़ोन कॉल और वीडियो कॉल तक ही सिमट कर रह गया था| अब इसका कोई न कोई इलाज तो निकालना ही था तो मैंने सर से रिक्वेस्ट की ओवरटाइम करने की| पर उन्होंने साफ़ मना कर दिया|

इधर महीना भर हुआ की ऋतू का मन मुझे मिलने के लिए बेचैन होने लगा था| एक दिन की बात थी हम दोनों रात को वीडियो कॉल कर रहे थे, ऋतू अचानक से रो पड़ी| "जानू! मुझसे नहीं हो रहा ये सब! आपके बिना मेरा हाल बहुत बुरा है... काम करने का मन नहीं कर रहा| मैं सच में idiot हूँ, आपने कहा था की हम नहीं मिल पाएंगे पर फिर भी मैंने जिद्द की! प्लीज जानू!....मुझे ये जॉब नहीं करनी....प्लीज......"

"अरे जान तो छोड़ दो ना!" मैंने कहा|

"पर....?" ऋतू कुछ सोच में पड़ गई|

"यार कोई भी बहाना बना दे और रिजाइन कर दे!" मैंने सरलता से कहा और ऋतू का चेहरा फिर से खिल गया| अगले ही दिन उसने ऑफिस में ये कह दिया की उसकी शादी तय हो गई है और इसलिए उसे जॉब छोड़ने पड़ रही है| शाम को जब उसने मुझे ये बात बताई तो मुझे बड़ी हँसी आई| चलो ऋतू को ये बात समझ आ गई की जिंदगी में कोई भी फैसला लेने से पहले उसके Pros and Cons सोच लेने चाहिए| उस दिन के बाद से ऋतू ने अपना ध्यान पढ़ाई में लगा दिया, सैटरडे-संडे हम दोनों के लिए होते थे| इस डेढ़ दिन में हम एक दूसरे को खूब प्यार करते और दिन बस एक दूसरे की बाहों में ही बीतता| दिन-महीने बीते और फिर ऋतू का जन्मदिन आ गया और मैं तो छुट्टी के लिए पहले से ही बोल चूका था इसलिए कोई दिक्कत नहीं हुई| इस बार हम लॉन्ग ड्राइव पर निकले और फिर बाहर ही खाना-पीना हुआ, फिर घर वालों से बात कराई और सब ने इस बार बड़े प्यार से उसे आशीर्वाद दिया| अगले दिन चूँकि ऑफिस था तो इसलिए हम वो रात साथ नहीं गुजार पाए पर ऋतू को इसका जरा भी गिला नहीं था क्योंकि उसने पूरा दिन बहुत एन्जॉय किया था|

कुछ महीने और बीते फिर मेरा जन्मदिन आया और इस दिन की तैयारी ऋतू ने करनी थी| रात को ठीक बारह बज कर एक मिनट पर उसने मुझे कॉल किया और birthday wish किया, फिर अगली सुबह मैं उसे लेने पहुँचा और ऋतू ने सीधा शॉपिंग जाने को कहा| ऋतू ने अपनी पूरी एक महीने की सैलरी बचाई थी, थी तो वो चिल्लर ही पर उसका मन था मेरे लिए कुछ खरीदने को इसलिए हम दोनों मॉल आ गए| Shirts की प्राइस देख कर ऋतू को उसकी सैलरी पर हँसी आ गई और वो बोली; "इतने में तो मुश्किल से एक शर्ट-पैंट आएगी|"

"वो भी नहीं आएगी!" मैंने हँसते हुए कहा| ऋतू ने पर्स से एक लॉलीपॉप निकाली और उसे चूसते हुए बोली; "हाँ पर एक तरीका है? आप मुझे उधार दे दो, मैं आपको 'In Kind' वापस कर दूँगी!" ऋतू ने मुझे आँख मारते हुए कहा|

मैं ऋतु का मतलब समझ गया की घर जा कर मुझे In Kind में क्या मिलेगा| उसने मुझे 2 शर्ट और पैंट दिन तरय करने को, इधर मेरा ध्यान उसके लॉलीपॉप चूसते होठों से हट ही नहीं रहा था| ऋतू भी समझ गई थी की मैं क्या देख रहा हूँ, उसने जबरदस्ती मुझे trial room में धकेल दिया और शर्ट try कर के दिखाने को कहा| मैंने पहले एक शर्ट और पैंट try कर के ऋतू को दिखाई तो वो लॉलीपॉप चूसते हुए नॉटी तरीक से बोली; "हाय!!!!" अब मुझसे उसका ये रूप बर्दाश्त नहीं हो रहा था| मैंने इधर-उधर देखा की कोई हमें देख तो नहीं रहा और फिर ऋतू का हाथ पकड़ कर उसे अंदर खींच लिया| ऋतू ने अपने मन से लॉलीपॉप निकाल दी और मैंने अपने दोनों हाथों से उसका चेहरा थामा और उसके गुलाबी होठों को चूम लिया| ऋतू के मुंह से मुझे स्ट्रॉबेर्री की खुशबु आ रही थी| मैंने अपनी जीभ को ऋतू के मुंह में दाखिल किया और स्ट्रॉबेर्री फ्लेवर को चखने लगा| पर मेरा लंड नीचे बेकाबू होने लगा और उसमें दर्द हो रहा था| ऋतू का हाथ अपने आप ही उस पर आ गया और वो उकडून हो कर नीचे बैठ गई| उसने पैंट की ज़िप खोली और मैंने पैंट का बटन खोला| फिर ऋतू ने अपनी पतली-पतली उँगलियों से मेरे लंड को कच्छे से आजाद किया और चमड़ी पीछे खींच कर सुपाडे को मुँह में भर लिया| जैसे ही सुपाडे ने ऋतू के मुँह में प्रवेश किया और वो ऋतू के ऊपर वाले तालु से टकराया मेरी सिसकारी निकल गई; "स्स्सस्स्स्स....ऋतू!!!" और इधर ऋतू ने अपने मुँह को आगे-पीछे करना शुरू कर दिया| मैं अपने दोनों हाथ पीछे बांधे अपनी कमर आगे-पीछे करने लगा| मैं और ऋतू बिलकुल एक लय के साथ काम में लगे थे| जब ऋतू अपना मुँह पीछे खींचती ठीक उसी समय मैं अपनी कमर पीछे खींचता और फिर जैसे ही ऋतू अपना मुँह आगे लाती मैं भी अपनी कमर उसके मुँह की तरफ धकेल देता| फिर ऋतू को क्या सूझा की उसने मेरा लंड अपने मुँह से निकाला और उसके हाथ में जो लॉलीपॉप थी उसे चूसने लगी| फिर अगले ही पल उस लॉलीपॉप को निकाल उसने फिर से मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया| अब वो मेरे लंड को चूसने लगी जैसे की वो लॉलीपॉप हो, अब मेरी हालत ख़राब होने लगी थी| मैंने अपना लंड उसके मुँह से निकला और हिलाते हुए अपना सारा माल उसके मुँह में उतार दिया|

घी सा गाढ़ा मेरा माल उसकी जीभ पर निकला और साथ-साथ थोड़ा उसके होठों और नाक पर फ़ैल गया| ऋतू सब चाट कर पी गई और फिर अपने पर्स से टिश्यू निकाल कर अपना मुँह साफ़ किया|

"Now we're even!" ऋतू ने मुस्कुराते हुए कहा| मैंने ऋतू के गाल पर प्यार से चपत लगाईं और फिर वो मेरे गले लग गई| अपने कपडे दुरुस्त कर हम दोनों बाहर आये, वो तो शुक्र है किसी ने हमें देखा नहीं| वो शर्ट और पैंट खरीद कर हम दोनों घर आ गए|

घर पहुँचे ही थे की ऋतू ने किसी को फ़ोन कर के बुला लिया| "कुछ नहीं, बस आपके लिए एक सरप्राइज है!" ऋतू ने मुझसे पर्स लिया और उसमें से 500 रूपए निकाल कर पर्स वापस दे दिया| इतने में घर से फ़ोन आ गया और सब ने बड़े बधाइयाँ दी और ऊपर से ताई जी ने शादी की भी बात छेड़ दी! जैसे-तैसे उन्हें टाल कर मैंने कॉल काटा की दरवाजे पर दस्तक हुई| ऋतू ने खुद दरवाजा खोला और पैसे दे कर कुछ बॉक्स जैसा ले लिया| फिर उस बॉक्स को टेबल पर रख कर बोली; "Happy Birthday जानू!" उस बॉक्स में केक था और केक पर भी हैप्पी बर्थडे जानू लिखा था! मैंने कैंडल बुझा कर एक पीस काटा और ऋतू को खिलाया, ऋतू ने केक के ऊपर की क्रीम अपनी ऊँगली से निकाली और मेरे होठों पर लगा दी और उचक कर मेरी गोद में चढ़ कर मेरे होठों को चूसने लगी| केक का स्वाद अब मुझे ऋतू के मुँह से आ रहा था|

ऋतू की बुर की हालत अब खराब होने लगी थी, मैंने ऋतू को नीचे उतारा और हम दोनों ने अपने-अपने कपडे निकाल फेंके! ऋतू पलंग पर अपनी टांगें खोल कर
बैठ गई और तब मुझे उसकी बुर से रस टपकता हुआ दिखाई दिया|

इससे पहले की मैं आगे बढ़ कर वो रस चख पाता, ऋतू पलट गई और अपनी गांड मेरी ओर घुमा दी| अब उसकी गांड देख कर तो लंड नाचने लगा और ठुमके मार के मुझे उस तरफ चलने को कहने लगा| इधर ऋतू नीचे को झुक गई और अपनी गांड ओर ऊपर की तरफ उठा दी|

अब तो मुझे उसकी गांड और भी बड़ी दिखने लगी| मैंने पीछे से अपना लंड उसकी बुर में पेल दिया ओर पूरे-पूरे धक्के मारने लगा| हर धक्के के साथ लंड जड़ समेत पूरा अंदर उतर जाता, मेरे हर धक्के से ऋतू की कराह निकलने लगी थी| "आह...जानू!...उम्म्म...आअह्ह्ह!!!!" दस मिनट की दमदार चुदाई और ऋतू के साथ मैं उसकी बुर में ही झड़ गया|

"थैंक यू जान! ये वाला बर्थडे सबसे बेस्ट था!" मैंने सांसें कण्ट्रोल करते हुए कहा| ऋतू उठी और मेरे पास आ कर मेरे ऊपर चढ़ कर लेट गई| हम घंटे भर तक ऐसे ही पड़े रहे और तब उठे जब पेट में 'गुर्र्ररर' की आवाज आई| ऋतू ने कुछ खाने के लिए आर्डर किया और हम दोनों मुँह-हाथ-लंड-बुर धो कर, कपडे पहन कर फिर से एक दूसरे के आगोश में बैठ गए| कुछ देर बाद ऋतू बोली; "जानू! आपकी 'अनु' का फ़ोन आया था?" मैं ये सुन कर थोड़ा हैरान हुआ क्योंकि वाक़ई में इतने महीनों में उन्होंने मुझे कोई कॉल/मैसेज नहीं किया था| मैं चुप रहा क्योंकि उस टाइम मैं क्या कहता?! "यही दोस्ती होती है क्या? जब उनकी इज्जत उस ट्रैन के डिब्बे में खतरे में थी तब आप उनके साथ थे ना? उनके डाइवोर्स के वक़्त में आप उनके साथ थे ना? उनके कारन ही आपका नाम कोर्ट केस में घसींटा गया और उन्हीं के कारन आपने वो जॉब छोड़ी और उन्होंने आज तक आपको कभी कॉल या मैसेज किया? वो तो बैंगलोर चली गईं और वहाँ मजे कर रहीं हैं, ते देखो..." ये कहते हुए ऋतू ने अपने फ़ोन में उनकी फेसबुक प्रोफाइल दिखाई जिसमें वो कहीं घूमने गईं थीं और अपने दोस्तों के साथ 'चिल' कर रहीं थीं| "जब इंसान का काम निकल जाता है तो वो उस इंसान को भूल जाता है जो उसके बुरे वक़्त में उसके साथ था|" ऋतू ने बहुत गंभीर होते हुए मुझे कहा ऐसा लगा जैसे वो मुझे जिंदगी का पाठ पढ़ा रही हो! "यार! मैं मानता हूँ जो तुम कह रही हो वो सही है पर मैंने सिर्फ दोस्ती निभाई थी उसके बदले में अगर उन्होंने मुँह मोड़ लिया तो इसमें मेरी क्या गलती है?" मैंने कहा पर ऋतू आज मेरी क्लास लेने के चक्कर में थी; "इसका मतलब ये तो नहीं की लोग आपका फायदा उठाते रहे? Mr. कुमार को एक बलि का बकरा चाहिए था तो उन्होंने आपको चुना, इनको अपने पति से प्यार नहीं मिला तो आपसे दोस्ती कर ली और जब दोनों का काम निकल गया तो आप को छोड़ गए! ये कैसी दोस्ती?" ऋतू की बात सुन मैं मुस्कुरा दिए और मेरी ये मुस्कराहट देखते ही ऋतू पूछने लगी; "आप क्यों मुस्कुरा रहे हो?"

"जान! मैंने सिवाय तुम्हारे कभी किसी से कुछ expect ही नहीं किया! राखी, मोहिनी, अनु सब जानती थीं की आज मेरा जन्मदिन है पर मुझे इनके कॉल नहीं आने का जरा भी दुःख नहीं| हाँ तुमने जो कहा वो सही है और मैं मानता हूँ की मैं लोगों की कुछ ज्यादा ही मदद कर देता हूँ या ये कहूँ की मैं उन्हें ना नहीं कह पाता| आज से मैं खुद को चेंज करूँगा और किसी की भी मदद करने से पहले देख लूँगा की कहीं उसके चक्कर में मेरा नुक्सान ना हो जाये|" ये सुन कर तो जैसे ऋतू को लगा की उसका पढ़ाया हुआ सबक मेरे पल्ले पड़ गया और वो खुश हो गई| तभी खाना आ गया और हमने पेट भर के खाया और शाम को मैं ऋतू को हॉस्टल छोड़ आया|

कुछ दिन बीते और फिर पता चला की कुमार की कंपनी बंद हो गई और मेरे दो colleagues अरुण और सिद्धार्थ की जॉब छूट गई| सिद्धार्थ ने तो नई जॉब जुगाड़ से ढूँढ ली थी पर अरुण के पास अब भी जॉब नहीं थी| मैंने अपनी कंपनी में बात की और सर से उसकी थोड़ी सिफारिश की और सर मान गए पर उसे पोस्टिंग बरेली में मिली|

फिर एक दिन पता चला की मोहिनी की शादी तय हो गई है, शायद अब उसने Move on करने का तय किया था| उसकी शादी बड़े धूम-धाम से हुई, पता नहीं मुझे ऐसा लगा की कहीं मेरे सामने जाने से मोहिनी का जख्म हरा न हो जाए| पर चूँकि शादी का बुलावा हमारे पूरे घर को गया था तो मजबूरन मुझे भी सब के साथ जाना ही पड़ा| अब सब के सब सबसे पहले मेरे घर आने वाले थे तो एक दिन पहले मुझे और ऋतू को मिल कर ढंग से सफाई करनी पड़ी| ऋतू की सारी चीजें मैंने उसे दे दी, उसकी पैंटी, ब्रा, टॉप्स, एयरिंग्स, कंघी, मंगलसूत्र, चूड़ियाँ, साड़ियाँ सब! पूरे घर को इस कदर साफ़ किया की वहाँ ऋतू का एक DNA तक नहीं बचा| "हाय! मेरे जिस्म की पूरी महक आपने भगा दी!" ऋतू मुझे छेड़ते हुए बोली| मैंने ऋतू को बाहों में भरा और कहा; "घर से ही गई है ना? मेरे जिस्म से तो तेरी महक नहीं गई ना?" ये सुन कर ऋतू शर्मा गई और मेरे सीने में अपना सर छुपा लिया| जब सब लोग घर आये तो चकाचक घर को देख कर सब ने बड़ी तारीफ की, माँ और ताई जी तो घूम-घूम कर निरक्षण करने लगीं की कहीं कोई गलती निकाल सकें| फिर वहाँ से सब ऋतू के हॉस्टल पहुँचे और वहाँ आंटी जी ने बड़े अच्छे से सब का स्वागत किया| वो पूरा दिन ना तो मैं मोहिनी से मिल पाया ना ही कोई मौका मिला था| रात को जब बरात आई और खाना-पीना हुआ उसके बाद सब लोग एक-एक कर अपनी फोटो खिंचवाने स्टेज पर चढ़ने लगे| अब हमें भी चढ़ना था और शगुन देना था, मैं सबसे आखिर में खड़ा था पर मोहिनी ने फोटो खींचने के बाद मुझे आवाज दे कर बुलाया; 'अरे मानु जी! आप कहाँ जा रहे हो? मेरे हस्बैंड से तो मिल लो?" ये कहते हुए उसने मेरा intro अपने हस्बैंड से करवाया| "ये हैं मेरे गुरु जी! कॉलेज में यही मुझे 'एकाउंट्स की शिक्षा देते थे!!!'" मोहिनी ने हँसते हुए कहा| उसके पति को लगा की मैं उसका टीचर हूँ; "यार इतना भी बुड्ढा मत बना, अभी तो मेरी शादी भी नहीं हुई?" ये सुन कर हम तीनों हँस दिए|

"Anything special that I should know?" मोहिनी के पति ने पुछा|

"बहुत बोलती है ये... प्लीज इसे बोलने मत देना वरना ये ऐसा रेडियो है जो शुरू हो जाए तो बंद नहीं होता|" मैंने मोहिनी का मजाक उड़ाते हुए कहा| मोहिनी ने मुझे प्यार से एक घूँसा मारा| "देख लिया मारती भी है! Insurance करवाया है ना अपना? कहीं टूट-फूट जाओ तो!" हम तीनों खूब हांसे और मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई की मोहिनी इस शादी से बहुत खुश है| पूरी शादी में ऋतू मुझसे दूर रही थी और माँ और ताई जी के साथ बैठी रहती| एक पल के लिए तो मैं भी सोच में पड़ गया की इतनी समझदार कैसे हो गई?
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07-14-2020, 12:59 PM,
#65
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 58

शादी अच्छे से निपट गई और घर वाले अगले दिन वापस गाँव चले गए| फिर वही त्योहारों की झड़ी और इस बार घर वालों ने जबरदस्ती हमें घर पर बुला लिया तो सारे त्यौहार उन्हीं के साथ हँसी-ख़ुशी मनाये गए| अब घर पर थे तो अकेले में बैठने का समय नहीं मिलता था, इसलिए मैं कई बार देर रात को ऋतू के पास जा कर बैठ जाता और वो कुछ देर हम एक साथ बैठ कर बिताते| घर से बजार जाने के समय मैं कोई बहाना बना देता और ऋतू को साथ ले जाता| दिवाली की रात हम सारे एक साथ बैठे थे तो ताऊ जी ने मुझे अपने पास बैठने को बुलाया;

ताऊ जी: वैसे मुझे तेरी तारीफ तेरे सामने नहीं करनी चाहिए पर मुझे तुझ पर बहुत गर्व है| इस पूरे परिवार में एक तू है जो अपनी सारी जिम्मेदारियाँ उठाता है| मुझे तुझ में मेरा अक्स दिखता है....!

ये कहते हुए ताऊ जी की आँखें नम हो गईं|

पिताजी: भाई साहब सही कहा आपने| पिताजी के गुजरने के बाद सब कुछ आप ने ही तो संभाला था|

ताऊ जी: मानु बेटा, जब तूने घर लेने की बात कही तो मैं बता नहीं सकता की मुझे कितना गर्व हुआ तुझ पर| तू अपनी मेहनत के पैसों से अपना घर लेना चाहता है, सच हमारे पूरे खानदान में कभी किसी ने ऐसा नहीं सोचा|

मेरी तारीफ ना तो चन्दर भैया के गले उतर रही थी और ना ही भाभी के और वो जैसे-तैसे नकली मुस्कराहट लिए बैठे थे| पर मेरे माता-पिता, ताई जी और ख़ास कर ऋतू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था|

पिताजी: बेटा थोड़ा समय निकाल कर खेती-किसानी भी सीख ले ताकि बाद में तुम और चन्दर ये सब अच्छे से संभाल सकें| तेरी और रितिका की शादी हो जाए तो हम सब तुझे और चन्दर को सब दे कर यात्रा पर चले जायेंगे|

ताई जी: बेटा मान भी जा हमारी बात और कर ले शादी!

मैं: माफ़ करना ताई जी मैं कोई जिद्द नहीं कर रहा बस घर खरीदने तक का समय माँग रहा हूँ|

ताऊ जी: ठीक है बेटा!

तो इस तरह मुझे पता चला की आखिर घर वाले क्यों मुझे अचानक इतनी छूट देने लगे थे| अगले दिन मैं और ऋतू वापस चेहर लौट आये और फिर दिन बीतने लगे| क्रिसमस पर हम दोनों सुबह चर्च गए और वो पूरा दिन हम ने घूमते हुए निकाला| पर अगले दिन घर से खबर आई की ताऊ जी की तबियत ख़राब है, ये सुन कर ऋतू ने कहा की उसे घर जाना है| उसकी अटेंडेंस का कोई चक्कर नहीं था तो मैं उसे घर छोड़ आया| उसके यहाँ ना होने के कारन मैंने 31st दिसंबर नहीं मनाया और घर पर ही रहा| जब मैं उसे लेने घर पहुँचा तो ऋतू बोली; "जानू! जब से मैं पैदा हुई हूँ तब से हमने कभी होली नहीं मनाई|"

"जान! दरअसल वो .... 'काण्ड' होली से कुछ दिन पहले ही हुआ था| इसलिए आज तक इस घर में कभी होली नहीं मनाई गई| पर कोई बात नहीं मैं बात करता हूँ की अगर ताऊ जी मान जाएँ|"

"ठीक है! पर अभी नहीं, अभी उनकी तबियत थोड़ी सी ठीक हुई है और वैसे भी अभी तो दो महीने पड़े हैं|" ऋतू ने कहा| ताऊ जी की तबियत ठीक होने लगी थी इस लिए उन्होंने खुद ऋतू को वापस जाने को कहा था|

जनवरी खत्म हुआ और फिर कॉलेज का एनुअल डे आ गया| पर मुझे दो दिन के लिए बरेली जाना था, जब मैंने ये बात ऋतू को बताई तो वो रूठ गई और कहने लगी की वो भी नहीं जायेगी| मैंने बड़ी मुश्किल से उसे जाने को राजी किया ये कह कर की; "ये कॉलेज के दिन फिर दुबारा नहीं आएंगे|" ऋतू मान गई और मैंने ही उसके लिए एक शानदार ड्रेस सेलेक्ट की| ऋतू ये नहीं जानती थी की मेरा प्लान क्या है! अरुण चूँकि पहले से ही बरेली में था तो मैंने उससे मदद मांगी की वो काम संभाल ले और मैं एक ही दिन में अपना बचा हुआ काम उसे सौंप कर वापस आ गया| एनुअल डे वाले दिन ऋतू कॉलेज पहुँच गई थी, मैंने गेट पर से उसे फ़ोन किया और पुछा की वो गई या नहीं? ऋतू ने बताया की वो पहुँच गई है| ये सुनने के बाद ही मैं कॉलेज में एंटर हुआ और ऋतू को ढूंढता हुआ उसके पीछे खड़ा हो गया| मैंने उसकी आँखिन मूँद लीं और वो एक दम से हड़बड़ा गई और कहने लगी; "प्लीज... कौन है?... प्लीज…छोड़ो मुझे!" मैंने उसकी आँखों पर से अपने हाथ उठाये और वो मुझे देख कर हैरान हो गई|

हैरान तो मैं भी हुआ क्योंकि ऋतू आज लग ही इतनी खूबसूरत रही थी

और मैं उम्मीद करने लगा की वो आ कर मेरे गले लग जाएगी पर ऐसा नहीं हुआ| मुझे लगा शायद ऋतू शर्मा रही है पर तभी राहुल अपने दोनों हाथों में कोल्ड-ड्रिंक लिए वहाँ आ गया| उसने एक कोल्ड ड्रिंक ऋतू की तरफ बढ़ाई और ऋतू ने संकुचाते हुए वो कोल्ड-ड्रिंक ले ली| मुझे देख कर राहुल बोला; "Hi!" पर मैंने उसकी बात को अनसुना कर दिया|

तभी ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ा और राहुल को 'excuse us' बोल कर मुझे एक तरफ ले आई|

"आज तो बड़े dashing लग रहे हो आप?" ऋतू बोली|

"थैंक यू ... but .... I thought you didn’t like him!” मैंने कहा क्योंकि फर्स्ट ईयर के एनुअल डे पर ऋतू ने यही कहा था|

“I…realized that we should’nt blame children because of their parents. It wasn’t his fault?” ऋतू ने सोचते हुए कहा|

“Fair enough…. Anyway you’re looking faboulous today!” मैंने ऋतू को कॉम्पलिमेंट देते हुए कहा|

“Thank you! वैसे आपने तो कहा था की आपको बहुत काम है और आप नहीं आने वाले?" ऋतू ने मुझसे शिकायत करते हुए कहा|

"भाई अपनी जानेमन को मैं भला कैसे उदास करता?" मैंने ऋतू का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा|

"मैंने सोच लिया था की मैं आप से बात नहीं करुँगी!" ऋतू ने कहा|

"इसीलिए तो भाग आया!" मैंने हँसते हुए कहा और ऋतू भी ये सुन कर मुस्कुरा दी| इस बार कुछ डांस पर्फॉर्मन्सेस थीं तो मैं और ऋतू खड़े वो देखने लगे और लाउड म्यूजिक के शोर में एन्जॉय करने लगे| ऋतू की कुछ सहेलियाँ आई और वो भी हमारे साथ खड़ी हो कर देखने लगीं| ये देख कर मैंने सोचा की चलो ऋतू ने नए दोस्त बना लिए हैं. काम्य के जाने के बाद ऋतू की जिंदगी में दोस्त ही नहीं थे!

खेर दिन बीते और होली आ गई....

हर साल की तरह इस साल भी हम दोनों होली से एक दिन पहले ही घर आ गए| शाम को होलिका दहन था, जिसके बाद सब घर लौट आये| रात का खाना बन रहा था और आंगन में मैं, चन्दर भय, पिताजी और ताऊ जी बैठे थे|

मैं: ताऊ जी...आप बुरा ना मानें तो आपसे कुछ माँगूँ? (मैंने डरते हुए कहा|)

ताऊ जी: हाँ-हाँ बोल!

मैं: ताऊ जी ... इस बार होली घर पर मनाएँ?

मेरे ये बोलते ही घर भर में सन्नाटा पसर गया, कोई कुछ नहीं बोल रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा की मैंने कुछ ज्यादा ही माँग लिया क्या? ताऊ जी उठे और छत पर चले गए और पिताजी मुझे घूर कर देखने लगे और फिर वो भी ताऊ जी के पीछे छत पर चले गए| कुछ देर बाद मुझे ताऊ जी ने ऊपर से आवाज दी, मैं सोचने लगा की कुछ ज्यादा ही फायदा उठा लिया मैंने घर वालों की छूट का| छार पर पहुँच कर मैं पीछे हाथ बांधे खड़ा हो गया|

ताऊ जी: तुझे पता है की हम क्यों होली नहीं मनाते?

मैंने सर झुकाये हुए ना में गर्दन हिलाई, कारन ये की अगर मैं ये कहता की मुझे पता है तो वो मुझसे पूछते की किस ने बताया और फिर संकेत और उसके परिवार के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ जाते|

ताऊ जी: तुझे नहीं पता, चन्दर की पहली बीवी रितिका जिससे हुई वो किसी दूसरे लड़के के साथ घर से भाग गई थी| उस टाइम बहुत बवाल हुआ था, गाँव में हमारी बहुत थू-थू हुई| उस समय गाँव के मुखिया जो आजकल हमारे मंत्री साहब है उन्होंने ......फरमान सुनाया की दोनों को मार दिया जाए| इसलिए हम ....होली नहीं मनाते| (ताऊ जी ने मुझे censored बात बताई|

मैं: तो ताऊ जी हम बाकी त्यौहार क्यों मनाते हैं?

पिताजी: ये घटना होली के आस-पास हुई थी इसलिए हम होली नहीं मनाते| (पिताजी ने ताऊ जी की बात ही दोहराई और 'होली नहीं मनाते' पर बहुत जोर दिया|)

मैं: जो हुआ वो बहुत साल पहले हुआ ना? अब तो सब उसे भूल भी गए हैं! गाँव में ऐसा कौन है जो हमारी इज्जत नहीं करता? हम कब तक इस तरह दब कर रहेंगे? ज़माना बदल रहा है और कल को मेरी शादी होगी तो क्या तब भी हम होली नहीं मनाएँगे?

शायद मेरी बात ताऊ जी को सही लगी इसलिए उन्होंने खुद ही कहा;

ताऊ जी: ठीक है...लड़का ठीक कह रहा है| कब तक हम उन पुरानी बातों की सजा बच्चों को देंगे| तू कल जा कर बजार से रंग ले आ|

मैं उस समय इतने उत्साह में था की बोल पड़ा; "जी कलर तो मैं शहर से लाया था|" ये सुन कर ताऊ जी हंस दिए और मुझे पिताजी से डाँट नहीं पड़ी|

मुझे उस रात एक बात क्लियर हो गई की मुझ पर और ऋतू पर जो बचपन से बंदिशें लगाईं गईं थीं वो भाभी (ऋतू की असली माँ) की वजह से थी| ऋतू को तो उसकी माँ के कर्मों की सजा दी गई थी| उसकी माँ के कारन ही ऋतू को बचपन में कोई प्यार नहीं मिला| घर वालों को डर था की कहीं हम दोनों ने भी कुछ ऐसा काण्ड कर दिया तो? पर काण्ड तो होना तय था, क्योंकि ताऊ जी के सख्त नियम कानूनों के कारन ही मैं और ऋतू इतना नजदीक आये थे|

खेर जब ताऊ जी का फरमान घर में सुनाया गया तो सबसे ज्यादा ऋतू ही खुश थी| इधर भाभी को मुझसे मजे लेने थे; "मेरी शादी के बाद इस बार मेरी पहली होली है, तो मानु भैया मुझे लगाने को कौन से रंग लाये हो?"

"काला" मैंने कहा और जोर से हँसने लगा| ऋतू भी अपना मुँह छुपा कर हँसने लगी, ताई जी की भी हंसी निकल गई और माँ ने हँसते हुए मुझे मारने के लिए हाथ उठाया पर मारा नहीं|

"तो मानु भैया, पहले से प्लानिंग कर के आये थे लगता है?" चन्दर ने खीजते हुए कहा|

"मैंने कोई प्लानिंग नहीं बल्कि रिक्वेस्ट की है ताऊ जी से, जो उन्होंने मानी भी है| कलर्स तो मैं इसलिए लाया था की अगर ताऊ जी मान गए तो होली खेलेंगे वरना इन से हम दिवाली पर रंगोली बनाते|" ये सुन कर वो चुप हो गए| अब मुझे कोई और बात छेड़नी थी ताकि माहौल में कोई तनाव न बने| "ताई जी ये कलर्स प्रकर्तिक हैं, इनमें जरा सा भी केमिकल इस्तेमाल नहीं हुआ है| हमारे त्वचा के लिए ये बहुत अच्छे हैं|" मैंने कलर्स की बढ़ाई करते हुए कहा|

"हे राम! इसमें भी मिलावट होने लगी?" ताई जी ने हैरान होते हुए कहा|

"दादी जी आजकल सब चीजों में मिलावट होती है, खाने की हो या पहनने की|" ऋतू ने अपना 'एक्सपर्ट ओपिनियन' देते हुए कहा|

"सच्ची ज़माना बड़ा बदल गया, लालच में इंसान अँधा होने लगा है|" माँ ने कहा| घर की औरतों को बात करने को एक टॉपिक मिल गया था इसलिए मैं चुप-चाप वहाँ से खिसक लिया| मैं छत पर बैठ कर सब को होली के मैसेज फॉरवर्ड कर रहा था की चन्दर ऊपर आ गया और मुझसे बोला; "अरे रंग तो ले आये! भांग का क्या?"

"ताऊ जी को पता चल गया ना तो कुटाई होगी दोनों की!" मैंने कहा|

"अरे कुछ नहीं होगा? सब को पिला देते हैं थोड़ी-थोड़ी!" चन्दर ने खीसें निपोरते हुए कहा|

"दिमाग खराब है?" मैंने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

"अच्छा अगर पिताजी ने हाँ कर दी फिर तो पीयेगा ना?" चन्दर ने कुछ सोचते हुए कहा|

मैंने मना कर दिया क्योंकि एक तो मैं ऋतू को वादा कर चूका था और दूसरा कॉलेज में एक बार पी थी और हम चार लौंडों ने जो काण्ड किया था की क्या बताऊँ| पर चन्दर के गंदे दिमाग में एक गंदा विचार जन्म ले चूका था|

अगले दिन सब जल्दी उठे और जैसे मैं नीचे आया तो सब से पहले ताऊ जी ने मेरे माथे पर तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए| फिर पिताजी, उसके बाद ताई जी और फिर माँ ने भी मुझे तिलक लगाया और मैंने उनके पाँव छुए| चन्दर भैया घर से गायब थे तो भाभी ही मुट्ठी में गुलाल लिए मेरे सामने खड़ी हो गई, पर इससे पहले वो मुझे रंग लगाती ऋतू एक दम से बीच में आ गई और फ़टाफ़ट मेरे दोनों गाल उसने गुलाल से चुपड़ दिए| वो तो शुक्र है की मैंने आँख बंद कर ली थी वरना आँखों में भी गुलाल चला जाता| मुझे गुलाल लगा कर वो छत पर भाग गई, मैंने थाली से गुलाल उठाया और छत की तरफ भागा| ऋतू के पास भागने की जगह नहीं बची थी तो वो छत के एक किनारे खड़ी हुई बीएस 'सॉरी..सॉरी...सॉरी' की रट लगाए हुए थी| मैं बहुत धीरे-धीरे उसकी तरफ बढ़ा और दोनों हाथों को उसके नरम-नरम गालों पर रगड़ कर गुलाल लगाने लगा| मेरे छू भर लेने से ऋतू कसमसाने लगी थी और उसकी नजरें नीचे झुकी हुई थीं| छत पर कोई नहीं था तो मेरे पास अच्छा मौका था ऋतू को अपनी बाहों में कस लेने का| मैंने मौके का पूरा फायदा उठाया और ऋतू को अपनी बाहों में भर लिया| ऋतू की सांसें भारी होने लगी थी और वो मेरी बाहों से आजाद होने को मचलने लगी| तेजी से सांस लेते हुए ऋतू मुझसे अलग हुई, मानो जैसे की उसके अंदर कोई आग भड़क उठी हो जिससे उसे जलने का खतरा हो| मैं ऋतू की तेज सांसें देख रहा था की तभी भाभी ऊपर आ गईं; "अरे मानु भैया! हम से भी गुलाल लगवा लो!" पर मेरा मुँह तो ऋतू ने पहले ही रंग दिया था तो भाभी के लगाने के लिए कोई जगह ही नहीं बची थी| "तुम्हारे ऊपर तो रितिका का रंग चढ़ा हुआ है, अब भला मैं कहाँ रंग लगाऊँ?" भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"माँ ...गर्दन पर लगा दो?" ऋतू हंसती हुई बोली और ये सुन कर भाभी को मौका मिल गया मुझे छूने का| उन्होंने मेरी टी-शर्ट के गर्दन में एकदम से हाथ डाला और उसे मेरे छाती के निप्पलों की तरफ ले जाने लगी| मुझे ये बहुत अटपटा लगा और मैंने उनका हाथ निकाल दिया| भाभी समझ गई की मुझे बुरा लगा है और ऋतू भी ये सब साफ़-साफ़ देख पा रही थी| मैं उस वक़्त कहने वाला हुआ था की ये क्या बेहूदगी है पर ऋतू सामने खड़ी थी इसलिए कुछ नहीं बोला| मैं वापस नीचे जाने लगा तो भाभी पीछे से बोली; "अरे कहाँ जा रहे हो? मुझे तो रंग लगा दो? आज का दिन तो भाभी देवर से सबसे ज्यादा मस्ती करती है और तुम हो की भागे जा रहे हो?" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और संकेत से मिलने निकल पड़ा| उसके खेत में जमावड़ा लगा हुआ था और वहां सब ठंडाई पी रहे थे और पकोड़े खा रहे थे| मुझे देखते ही वो लड़खड़ाता हुआ आया और गले लगा फिर तिलक लगा कर मुझे जबरदस्ती ठंडाई पीने को कहा| अब उसमें मिली थी भाँग और मैं ठहरा वचन बद्ध! इसलिए फिर से घरवालों के डर का बहाना मार दिया| कुछ देर बाद ताऊ जी और पिताजी भी आ गए और वो ये देख कर खुश हुए की मैंने भाँग नहीं पि! पर ताऊ जी और पिताजी ने एक-एक गिलास ठंडाई पि और फिर हम तीनों घर आ गए| चन्दर का अब भी कुछ नहीं पता था| घर पहुँच कर सबसे पहले भाभी मुझे देखते हुए बोली; "सारे गाँव से होली खेल लिए पर अपनी इकलौती भाभी से तो खेले ही नहीं?"

"छत पर ऋतू के सामने मेरी पूरी गर्दन रंग दी आपने और कितनी होली खेलनी है आपको?" मैंने जवाब दिया| फिर मैंने अचानक से झुक कर उनके पाँव छूए और भाभी बुदबुदाते हुए बोली; "पाँव की जगह कुछ और छूते तो मुझे और अच्छा लगता!" मैं उनका मतलब समझ गया पर पिताजी के सामने कहूँ कैसे? इसलिए मैं नहाने के लिए जाने को आंगन की तरफ मुड़ा तो भाभी ने लोटे में घोल रखा रंग पीछे से मेरे सर पर फेंका| ठंडा-ठंडा पानी जैसे शरीर को लगा तो मेरी झुरझुरी छूट गई| "अब तो गए आप?" कहते हुए मैंने ताव में उनके पीछे भागा, भाभी खुद को बचाने को इधर-उधर भागना चाहती थी पर मैंने उनका रास्ता रोका हुआ था| इतने में उन्होंने ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे मेरी तरफ धकेला, मैंने ऋतू के कंधे पर हाथ रख कर उसे साइड किया और भाभी का दाहिना हाथ पकड़ लिया और उन्हें झटके से खींचा| भाभी को गिरने को हुईं तो मैंने उन्हें गिरने नहीं दिया और गोद में उठा लिया| उनका वजन सच्ची बहुत जयदा था ऊपर से वो मुझसे छूटने के लिए अपने पाँव चला रही थीं तो मेरे लिए उन्हें उठाना और मुश्किल हो गया था| आंगन में एक टब में कुछ कपडे भीग रहे थे मैंने उन्हें ले जा कर उसी टब में छोड़ दिया| जैसे ही भाभी को ठन्डे पानी का एहसास अपनी गांड और कमर पर हुआ वो चीख पड़ी; "हाय दैय्या! मानु तुम सच्ची बड़े खराब हो! मर गई रे!" उन्हें ऐसे तड़पता देख मैं और ऋतू जोर-जोर से हँसने लगे और भाभी की चीख सुन माँ और ताई जी भी उन्हें टब में ऐसे छटपटाते हुए देख हँसने लगे| इससे पहले की माँ कुछ कहती मैंने खुद ही उन्हें साड़ी बात बता दी; "शुरू इन्होने किया था मेरे ऊपर रंग डाल कर, मैंने तो बस इनके खेल अंजाम दिया है|" इधर भाभी उठने के लिए कोशिश कर रहीं थीं पर उनकी बड़ी गांड जैसे टब में फँस गई थी| आखिर मैंने और ऋतू ने मिल कर उन्हें खड़ा किया और भाभी की चेहरे पर मुस्कराहट आ गई क्योंकि आज जिंदगी में पहली बार मैंने उन्हें इस कदर छुआ था|

मैंने उनकी इस मुस्कराहट को नजरअंदाज किया और अपने कपडे ले कर नहाने घुस गया| करीब पाँच मिनट हुए होंगे की चन्दर घर आया और उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था| उसने सब को डिब्बे से लड्डू निकाल कर दिए और मुझे भी आवाज दी की मैं भी खा लूँ पर मैं तो बाथरूम में था तो माने कह दिया की आप रख दो मैं नहा कर खा लूँगा| मेरे नहा के आने तक सबने लड्डू खा लिए थे और पूरा डिब्बा साफ़ था| जैसे ही मैं नहा के बाहर आया तो पूरे घर में सन्नाटा पसरा हुआ था.... आंगन में चारपाई पर ताई जी और माँ लेटे हुए थे, भाभी शायद अपने कमरे में थीं और ऋतू रसोई के जमीन पर बैठी थी और दिवार से सर लगा कर बैठी थी| ताऊ जी और पिताजी अपने-अपने कमरे में थे और चन्दर आंगन में जमीन पर पड़ा था| सब की आँखें खुलीं हुईं थीं पर कोई कुछ बोल नहीं रहा था| ये देखते ही मेरी हालत खराब हो गई, मुझे लगा कहीं सब को कुछ हो तो नहीं गया? मैंने एक-एक कर सब को हिलाया तो सब मुझे बड़ी हैरानी से देखने लगे| अब मुझे शक हुआ की जर्रूर सब ने भाँग खाई है और खिलाई भी उस कुत्ते चन्दर ने है!!! मैं पिताजी के कमरे में गया तो उन्हें भी बैठे हुए पाया और उन्हें जब मैंने हिलाया तो वो शब्दों को बहुत खींच-खींच कर बोले; "इसमें.....भांग.....थी.....!!!" अब मैं समझ गया की चन्दर बहन के लोडे ने भाँग के लड्डू सब को खिला दिए हैं! मैंने पिताजी को सहारा दे कर लिटाया और वो कुछ बुदबुदाने लगे थे| मैं ताऊ जी के कमरे में आया तो वो पता नहीं क्यों रो रहे थे, मैं जानता था की इस हालत में मैं उन्हें कुछ कह भी दूँ टब भी उनका रोना बंद नहीं होगा| मैंने उन्हें भी पुचकारते हुए लिटा दिया| इधर जब मैं वापस आंगन में आया तो माँ और ताई जी की आँख लग गई थी और चन्दर भी आँख मूंदें जमीन पर पड़ा था| मैंने भाभी के कमरे में झाँका तो वहां तो अजब काण्ड चल रहा था, वो अपनी बुर को पेटीकोट के ऊपर से खुजा रही थीं और मुँह से पता नहीं क्या बड़बड़ा रही थीं| मैंने फटाफट उनके कमरे का दरवाजा बंद किया और कुण्डी लगा कर मैं ऋतू के पास आया, तो पता नहीं वो उँगलियों पर क्या गईं रही थी? मैंने उसे हिलाया तो उसने मेरी तरफ देखा और फिर पागलों की तरह अपनी उँगलियाँ गिनने लगी| "जानू! I Love ......"इतना बोलते हुए वो रुक गई| अब मेरी फटी की अगर किसी ने सुन लिया तो आज ही हम दोनों को जला कर यहीं आंगन में दफन कर देंगे| मैंने उसे गोद में उठाया और ऊपर उसके कमरे में ला कर लिटाया| मैं उसे लिटा के जाने लगा तो उसने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया और Pout की आकृति बना कर मुझे Kiss करना चाहा| मैं उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा रहा था क्योंकि मैं जानता था की अगर कोई ऊपर आ गया तो हम दोनों को देख कर सब का नशा एक झटके में टूट जायेगा! पर ऋतू पर तो प्यार का भूत सवार हो गया था| पता नहीं उसे आज मेरे अंदर किसकी शक्ल दिख रही थी की वो मुझे बस अपने ऊपर खींच रही थी| "ऋतू मान जा...हम घर पर हैं! कोई आ जाएगा!" मैंने कहा पर उसने मेरी एक न सुनी और अपने दोनों हाथों के नाखून मेरे हाथों में गाड़ते हुए कस कर पकड़ लिए| ऋतू के गुलाबी होंठ मुझे अपनी तरफ खींच रहे थे और अब मेरा सब्र भी जवाब देने लगा था| मैंने हार मानते हुए उसके होठों को अपने होठं से छुआ पर इससे पहले की मैं अपनी गर्दन ऊपर कर उठता ऋतू ने झट से अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे लॉक कर दिया और अपने होठों से मेरे होंठ ढक दिए| ऋतू पर नशा पूरे शबाब था और वो बुरी तरह से मेरे होंठ चूसने लगी| मेरे हाथ उसके जिस्म की बजाये बिस्तर पर ठीके थे और मैं अब भी उसकी गिरफ्त से छूटने को अपना जिस्म पीछे खींच रहा था|
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07-14-2020, 01:00 PM,
#66
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
मुझे डर लग रहा था की अगर कोई ऊपर आ गया तो, इसलिए मैंने जोर लगाया और ऋतू के होठों की गिरफ्त से अलग हुआ| पर ये क्या ऋतू ने "I Love You" रटना शुरू कर दिया| वो तो अपनी आँख भी नहीं झपक रही थी बस लेटे हुए मुझे देख रही थी और I Love You की माला रट रही थी| मैंने उस के कमरे को बाहर से कुण्डी लगाईं और रसोई में गया और वहाँ से कटोरी में आम का अचार निकाल लाया| ऋतू के कमरे की कुण्डी खोली तो छत पर देखते हुए अब भी I Love You बड़बड़ा रही थी| मैंने कटोरी से एक आम के अचार का पीस उठाया और ऋतू के सिरहाने बैठ गया| मुझे अपने पास देखते ही उसने मुझे अपनी बाहों में कस लिया| मैंने आम का पीस उसकी तरफ बढ़ाया तो अपने होंठ एक दम से बंद कर लिए| पर मैंने भी थोड़ा उस्तादी दिखाते हुए पीस वापस कटोरी में रखा और अपनी ऊँगली ऋतू को चटा दी| ऊँगली में थोड़ा अचार का मसाला लगा था, ऋतू ने खटास के कारन अपना मुँह खोला और मैंने फटाफट अचार का टुकड़ा उसके मुँह में डाल दिया| ऋतू एक दम से मुँह बनाते हुए उठ बैठी और उसने वो अचार का पीस उगल दिया| मुझे उसका ऐसा मुँह बनाते हुए देख बहुत हँसी आई पर वो मेरी तरफ सड़ा हुआ मुँह बना कर देखने लगी| "सो जा अब!" मैंने ऋतू को कहा और उठ कर नीचे आ गया| बारी-बारी कर के सब को अचार चटाया और सब के सब ऋतू की ही तरह मुँह बना रहे थे और मुझे बहुत हँसी आ रही थी| सबसे आखिर में मैंने चन्दर को अचार चटाया तो उस पर जैसे फर्क ही नहीं पड़ा, वो तो अब भी बेसुध से पड़ा था| अब मैं इससे ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था तो उसे ऐसे ही छोड़ दिया| बाकी सब के सब नशा होने के कारन सो रहे थे, इधर मुझे भूख लग गई थी| वो तो शुक्र है की घर पर पकोड़े बने थे जिन्हें खा कर मैं अपने कमरे में आ कर सो गया|

शाम को चार बजे उठा तो पाया की घर वाले अब भी सो रहे हैं| मैंने अपने लिए चाय बनाई और फिर रात के लिए खाना बनाने लगा| मैं यही सोच रहा था की बहनचोद चन्दर ने ऐसी कौन सी भाँग खिला दी की सब के सब सो रहे हैं? पर फिर जब मुझे अपने कॉलेज वाला किस्सा याद आया तो मुझे याद आया की जब पहली बार मैंने भाँग खाई थी तो मैंने सुबह तक क्या काण्ड किया था! खेर खाना बन गया था और मेरे उठाने के बाद भी कोई नहीं उठा था| सब के सब कुनमुना रहे थे बस| एक बात तो तय थी की कल चन्दर की सुताई होना तय है!

मैंने अपना खाना खाया और ऊपर आ गया, रात के 1 बजे होंगे की मुझ नीचे से आवाज आई; "मानु!" मैं फटाफट नीचे आया तो देखा ताई जी और माँ चारपाई पर सर झुकाये बैठे हैं| मैंने उन्हें पानी दिया और फुसफुसाते हुए पुछा; "ताई जी भूख लगी है?" उन्होंने हाँ में सर हिलाया तो मैं माँ और उनके लिए खाना परोस लाया| फिर मैंने पिताजी और ताऊ जी को उठाया और उन्हें भी खाना परोस कर दिया| इधर ऋतू भी नीचे आ गई और उसे देखते ही मैं मुस्कुराया और उसे माँ के पास बैठने को कहा| उसका खाना ले कर उसे दिया और मैं सीढ़ियों पर बैठ गया| तभी भाभी ने दरवाजा खटखटाया, क्योंकि उनके कमरे का दरवाजा मैंने बंद कर दिया था इस डर से की कहीं ताऊ जी और पिताजी उठ गए और उन्हें ऐसी आपत्तिजनक हालत में देख लिया तो! भाभी बाहर आईं और सीधा बाथरूम में घुस गईं| वो वपस आईं तो उन्हें भी मैंने ही खाना परोस के दिया| सब ने फटाफट खाना खाया और कोई एक शब्द भी नहीं बोला| खाना खाने के बाद ताऊ जी अपने कमरे से बाहर आये और उन्होंने चन्दर को जमीन पर पड़े हुए देखा तो उनका खून खौल गया| उन्होंने ठन्डे पानी की एक बाल्टी उठाई और पूरा का पूरा पानी उस पर उड़ेल दिया| इतना पानी अपने ऊपर पड़ते ही चन्दर बुदबुदाता हुआ उठा और ताऊ जी ने उसे एक खींच कर थप्पड़ मारा| चन्दर जमीन पर फिर से जा गिरा; "हरामजादे! तेरी हिम्मत कैसे हुई सब को भाँग के लड्डू खिलाने की? वो तो मानु यहाँ था तो उसने सब को संभाल लिया वरना यहाँ कोई घुस कर क्या-क्या कर के चला जाता किसी को पता ही नहीं चलता| तुझे जरा भी अक्ल नहीं है की घर में औरतें हैं, तेरी बीवी है, बच्ची है?” पर चन्दर को तो जैसे फर्क ही नहीं पड़ रहा था| मैंने भाभी को कहा की इन्हें अंदर ले कर जाओ, तो भाभी ने उन्हें सहारा दे कर उठाया और कमरे में ले गईं| इधर पिताजी ताऊ जी की गर्जन सुन कर बाहर आये और मुझे इशारे से अपने पास बुलाया| मैं उनके पास गया और पिताजी का शायद सर घूम रहा था इसलिए मैंने उन्हें सहारा दे कर बैठक में बिठा दिया| सब के सब बैठक में आ कर बैठ गए और मुझसे पूछने लगे की आखिर हुआ क्या था? मैंने उन्हें सारी बात विस्तार से बता दी और अचार वाली बात पर सारे हँसने लगे| पर तभी पिताजी ने पुछा; "तुझे कैसे पता की अचार चटाना है?" अब ये सुन कर मैं फँस गया था| पहले तो सोचा की झूठ बोल दूँ, फिर मैंने सोचा की मेरा किस्सा सुन कर सब हंस पड़ेंगे और घर का माहौल हल्का हो जायेगा इसलिए मैंने अपना किस्सा सुनाना शुरू किया|

"कॉलेज फर्स्ट ईयर था और होली पर घर नहीं आ पाया था क्योंकि असाइनमेंट्स पूरे नहीं हुए थे| होली के दिन सुबह दोस्त लोग आ गए और मुझे अपने साथ कॉलेज ले आये जहाँ हमने खूब होली खेली! फिर दोपहर को हम वापस हॉस्टल पहुँचे और नाहा धो कर खाना खाने आ गए| आज हॉस्टल में पकोड़े बने थे जो सब ने पेट भर कर खाये| जब वापस कमरे में आये तो मेरा एक दोस्त कहीं से भाँग की गोलियाँ ले आया था| उसने सब को जबरदस्ती खाने को दी ये कह कर की ये भगवान का प्रसाद है| अब प्रसाद को ना कैसे कहते, जब सब ने एक-एक गोली खा ली तो वो सच बोला की ये भाँग की गोली है| हम टोटल 4 दोस्त थे, अमन, मनीष और कुणाल| कुणाल को छोड़ कर बाकी तीनों डर गए थे की अब तो हम गए, पता नहीं ये भाँग का नशा क्या करवाएगा| हम ने सुना था की भाँग का नशा बहुत गन्दा होता है और आज जब पहलीबार खाई तो डर हावी हो गया| पर 15 मिनट तक जब किसी ने कोई उत-पटांग हरकत नहीं की तो हम तीनों ने चैन की साँस ली! हमें लगा की किसी ने बेवकूफ बना कर कुणाल को मीठी गोलियाँ भाँग की गोलियाँ बोल कर पकड़ा दीं| ये कहते हुए अमन ने हँसना शुरू किया और उसकी देखा-देखि मैं और मनीष भी हँसने लगा| कुणाल को ताव आया की हम तीनों उसे बेवकूफ कह रहे हैं तो उसने हमें चुनौती दी; 'हिम्मत है तो एक-एक और खा के दिखाओ|' हम तीनों ने भी जोश-जोश में एक-एक गोली और खा ली| और फिर से उस पर हँसने लगे| हम तीनों ये नहीं जानते थे की भाँग का असर हम पर शुरू हो चूका था, तभी तो हम हँसे जा रहे थे| उधर कुणाल बिचारा छोटे बच्चे की तरह रोने लगा था और उसे देख कर हम तीनों पेट पकड़ कर हँस रहे थे| 15 मिनट तक हँसते-हँसते पेट दर्द होने लगा था और बड़ी मुश्किल से हँसी रोकी और तब मनीष ने सब को डरा दिया ये कह कर की हमें भाँग चढ़ गई है| अब ये सुन कर हम चारों एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे की अब हम क्या करेंगे? अमन तो इतना डर गया था की कहने लगा मुझे हॉस्पिटल ले चलो, मैं मरने वाला हूँ| तो कुणाल बोला की कुछ नहीं होगा थोड़ी देर सो ले ठीक हो जायेगा, पर मनीष को बेचैनी सोने नहीं दे रही थी| इधर मनीष को गर्मी लगने लगी और वो सारे कपडे उतार कर नंगा हो गया और उसने पंखा चला दिया| मुझे भी डर लगने लगा की कहीं मैं मर गया तो? इसलिए मैंने सोचा की ये हॉस्पिटल जाएँ चाहे नहीं मैं तो जा रहा हूँ| अभी मैं दरवाजे के पास पहुँचा ही था की कुणाल ने हँसते हुए रोक लिया और बोला; 'कहाँ जा रहा है? बड़ी हँसी आ रही थी ना तुझे? और खायेगा?' मैं उस हाथ जोड़ कर मिन्नत करने लगा की भाई माफ़ कर दे, आज के बाद कभी नहीं खाऊँगा ये भाँग का गोला! मैं जैसे-तैसे बाहर आया और घडी देखि ये सोच कर की कहीं हॉस्पिटल बंद तो नहीं हो गया? उस वक़्त बजे थे रात के 2, यानी हम चारों शाम के 4 बजे से रात के दो बजे तक ये ड्रामा कर रहे थे| अब हमारा कमरा था चौथी मंजिल पर, इसलिए मैं हमारे कमरे के दरवाजे के सामने लिफ्ट और सीढ़ियों के बीच खड़ा हो कर सोचने लगा की नीचे जाऊँ तो जाऊँ कैसे? अगर लिफ्ट से गया और दरवाजा नहीं खुला तो मैं तो अंदर मर जाऊँगा? और सीढ़ियों से गया तो पता नहीं कितने दिन लगे नीचे उतरने में? मैं खड़ा-खड़ा यही सोच रहा था की हमारे हॉस्टल के वार्डन का लड़का आ गया और मुझे ऐसे सोचते हुए देख कर मुझे झिंझोड़ते हुए पुछा की मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैंने उसे बताया की मैं हिसाब लगा रहा हूँ की सिढीयोंसे जाना सही है या लिफ्ट से? ये सुन कर वो बुरी तरह हँसने लगा| क्योंकि वहाँ लिफ्ट थी ही नहीं और जिसे मैं लिफ्ट समझ रहा था वो एक पुरानी शाफ़्ट थी जिसमें बाथरूम की पाइपें लगी थी| पर मैं अब भी नहीं समझ पाया था की हुआ क्या है और ये क्यों हँस रहा है? वो मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे कमरे में ले आया और अंदर का सीन देख कर हैरान हो गया| मनीष पूरा नंगा था और उसने अपने गले में तौलिया बाँध रखा था जैसे की वो सुपरमैन हो और एक पलंग से दूसरे पर कूद रहा था| अमन बिचारा एक कोने में बैठा अपना सर दिवार में मार रहा था और बुदबुदाए जा रहा था; 'अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा....अब नहीं खाऊँगा...' कुणाल फर्श पर उल्टा पड़ा था और चूँकि उसे मछलियां बहुत पसंद थी तो वो खुद को मछली समझ कर फड़फड़ा रहा था और मैं रात के 2 बजे से सुबह के 6 बजे तक बाहर खड़ा हो कर हिसाब लगा रहा था की सीढ़यों से जाऊँ या फिर लिफ्ट से!

उसी लड़के ने एक-एक कर हमें आम चटाया और हमारा नशा उतारा| इसलिए उस दिन से कान पकडे की कभी भाँग नहीं खाऊँगा|"

मेरी पूरी राम-कहानी सुन कर सारे घर वाले खूब हँसे और शुक्र है की किसी ने मुझे भाँग खाने के लिए डाँटा नहीं! बात करते-करते सुबह के चार बज गए थे इसलिए ताऊ जी ने कहा की सब कुछ देर आराम कर लें पर मुझे तो सुबह ही निकलना था| पर ताऊ जी ने कहा की आराम कर लो और 7 बजे उठ जाना, इसलिए सारे लोग सो गए और सुबह सात बजे जब मैं उठा तो ताई जी, भाभी और माँ रसोई में नाश्ता बना रहे थे| फ्रेश हो कर नाश्ता किया और ताई जी ने रास्ते के लिए भी बाँध दिया की भूख लगे तो खा लेना| शहर हम 11 बजे पहुँचे और पहले ऋतू को कॉलेज छोड़ मैं ऑफिस पहुँचा| सर ने थोड़ा डाँटा पर मैंने जाने दिया क्योंकि आधा दिन लेट था मैं! दिन गुजरते गए और ऋतू के Exams आ गए और उसने फिर से क्लास में टॉप किया! ये ख़ुशी सेलिब्रेट करना तो बनता था, तो संडे को मैं उसे लंच पर ले जाना चाहता था पर उसके कॉलेज के दोस्त भी साथ हो लिए और सब ने कॉन्ट्री कर के लंच किया|

कुछ महीने और बीते और ऋतू का जन्मदिन आया, मैंने उसे पहले ही बता दिया था की एक दिन पहले ही मैं उसे लेने आऊंगा पर ऋतू कहने लगी की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और अपने दोस्तों के साथ उसने कुछ क्लास बंक की थीं तो वो भी कवर करना है उसे! तो मेरा प्लान फुस्स हो गया! पर वो बोली की शाम को उसके सारे दोस्त उसके पीछे पड़े हैं की उन्हें ट्रीट चाहिए तो हम शाम को मिलते हैं| अब कहाँ तो मैं सोच रहा था की उसका बर्थडे हम अकेले सेलिब्रेट कर्नेगे और कहाँ उसके दोस्त बीच में आ गए| पर मैं ये सोच कर चुप रहा की कॉलेज के दोस्त कभी-कभी करीब होते हैं और मुझे ऋतू को थोड़ी आजादी देनी चाहिए वरना उसे लगेगा की मैं Possessive हो रहा हूँ! अब मैं भी इस दौर से गुजरा था इसलिए दिमाग का इस्तेमाल किया और ऋतू के बर्थडे को खराब नहीं किया, बल्कि उसी जोश और उमंग से मनाया जैसे मनाना चाहिए| ऋतू के चेहरे की ख़ुशी सब कुछ बयान कर रही थी और मेरे लिए वही काफी था| दिन बीतने लगे और ऋतू के कॉलेज के दोस्तों ने कोई ट्रिप प्लान कर लिया, मुझे लगा की शायद मुझे भी जाना है पर मुझे तो इन्विते ही नहीं किया गया क्योंकि वैसे भी मैं कॉलेज वाला नहीं था| ऋतू ने मुझसे मिन्नत करते हुए जाने की इज्जाजत मांगी तो मैंने उसे मना नहीं किया| इस ट्रिप पर बनने वाली यादें उसे उम्र भर याद रहेंगी| जितने दिन वो नहीं थी उतने दिन मैं रोज उसे सुबह-शाम फ़ोन करता और उसका हाल-चाल लेता रहता| जब वो वापस आई तो बहुत खुश थी और मुझे उसने ट्रिप की सारी pictures दिखाईं और वो संडे मेरा बस ऋतू की ट्रिप की बातें सुनते हुए निकला| दिन बीत रहे थे और काम की वजह से कई बार मुझे सैटरडे को बरेली जाना पड़ता और इसलिए हम सैटरडे को मिल नहीं पाते पर संडे मेरा सिर्फ और सिर्फ ऋतू के लिए था| उस दिन वो आती तो मेरे लिए खाना बनाती और कॉलेज की सारी बातें बताती और कई बार तो हम संडे को पढ़ाई भी करते!
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07-14-2020, 01:00 PM,
#67
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 59

दिन बीते...महीने बीते...और सब कुछ सही चल रहा था...... कम से कम मुझे तो यही लग रहा था! मेरे अकाउंट में लाख रुपये कॅश और बाकी के 4 लाख की मैंने FD करा दी थी जो अगले साल मार्च में mature होने वाली थी| इधर मैंने बैंगलोर में लोकैलिटी फाइनल कर ली थी, ऋतू के डाक्यूमेंट्स जैसे PAN Card, Aadhaar Card और Election Card सब मेरे ही एड्रेस से तैयार हो गए थे| ऋतू का बैंक अकाउंट भी खोला जा चूका था जिसके बारे में मेरे और ऋतू के आलावा किसी को कोई भनक नहीं थी| हमारे गायब होते ही सब मेरा अकाउंट चेक करते पर किसी को तो पता नहीं की ऋतू का भी कोई बैंक अकाउंट है! मुझे बस भागने से कुछ दिन पहले अपने अकाउंट से सारे पैसे निकाल कर ऋतू के बैंक में कॅश जमा करने थे| बस एक ही काम बचा था वो था ट्रैन की टिकट, जिसे मैंने पहले बुक नहीं कर सकता था| कारन ये की जिस दिन हम भागते उस दिन के चार्ट में हमारा नाम होता और सब को पता चल जाता की ये दोनों कहाँ भागे हैं| इसलिए जिस दिन भागना था उससे एक दिन पहले मुझे तत्काल टिकट लेनी थी, वो भी कुछ इस तरह की लखनऊ से वाराणसी पहुँचने के बाद आधे घंटे के अंदर ही दूसरी ट्रैन चाहिए थी जो हमें मुंबई उतारती और वहाँ से फिर आधे घंटे में दूसरी टिकट जो बैंगलोर छोड़ती! मैंने एक बैक-आप प्लान भी बना रखा था की अगर ट्रैन लेट हो गई तो हमें बस लेनी होगी| लखनऊ में कहाँ से ट्रैन पकड़नी थी वी जगह भी तय थी, स्टेशन से ट्रैन पकड़ना खतरनाक था क्योंकि सब सबसे पहले हमें ढूंढते हुए वहीँ आते| इसलिए मैंने रेलवे फाटक देख रखा था, इस फाटक पर हमेशा जाम रहता था और हरबार ट्रैन यहाँ स्लो होती और फिर करीब मिनट भर बाद ही आगे जाती थी| किसी भी हालत में कोई भी हमें ढूंढता हुआ यहाँ नहीं आ सकता था! मतलब प्लान बिलकुल सेट था और मैंने उसमें कोई भी लूपहोल नहीं छोड़ा था!!!!

खेर ये तो रही प्लान की बात, पर अब तो मेरा जन्मदिन आ ने वाला था और क्योंकि इस बार जन्मदिन वीकडे पर पड़ना था तो मैंने पहले ही छुट्टी ले ली थी| प्लान तो था की ऋतू को में एक दिन पहले ही उसके हॉस्टल से ले आऊंगा पर जब उसने बताया की उसके असाइनमेंट्स पेंडिंग हैं और कुछ lectures भी हैं तो मैंने उससे कहा की अगले दिन वो हाल्फ डे में इधर भाग आये|

दो तारिक आई, मेरा जन्मदिन अगले दिन था और घडी में रात के साढ़े बारह बजने को आये थे पर अभी तक ऋतू ने मुझे कॉल करके wish नहीं किया था| हर साल वो ठीक बारह बज कर एक मिनट पर मुझे काल किया करती थी पर इस बार इतनी लेट कैसे हो गई?! फिर मैंने सोचा की शायद कॉलेज से थक कर आयी होगी और सो गई होगी, कोई बात नहीं कल wish कर देगी ये सोचते हुए मैंने फ़ोन को तकिये के नीचे रख दिया और तभी मेरे फ़ोन पर बर्थडे के wish वाला मैसेज आया जिसे देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गई और मैंने जवाब में उसे ढेर सारी चुम्मियों वाली स्माइली के साथ थैंक यू का मैसेज भेजा पर उसके बाद वो ऑफलाइन हो गई, मैंने बात को दरगुज़र किया और मुस्कुराते हुए सो गया| सुबह से ऑफिस के सभी दोस्तों के मैसेज आने लगे थे, घर से भी फ़ोन पर बधाइयाँ आने लगी थी| ऋतू के आने तक मैं बस यही सोच रहा था की घर से भागने से पहले ये मेरा आखरी जन्मदिन होगा और फिर अगले जन्मदिन पर मैं और ऋतू एक साथ बैंगलोर में अपनी नई जिंदगी शुरू कर रहे होंगे|

अरुण और सिद्धार्थ ने इस बार जर्रूर कहा था की पार्टी करते हैं पर मैंने उन्हें ये कह कर टाल दिया की अगर ऋतू को पार्टी दिए बिना तुम्हारे साथ पार्टी की तो वो नराज हो जाएगी| दोनों ने मिल कर मेरा बड़ा मजाक उड़ाया की देखो शादी से पहले ये हाल है तो शादी के बाद क्या होगा?!

खेर मैं फ्रेश हो कर नाश्ता बना रहा था की तभी ऋतू का मैसेज आया की वो बारह बजे आएगी और मैं इस ख़ुशी में अपने फोन पर गाने लगा कर कुछ ख़ास बनाने की तैयारी करने लगा और नाचता हुआ इधर से उधर घर में घूम रहा था| साढ़े बारह बजे दरवाजे पर दस्तक हुई, तो मैंने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला और ऋतू को प्यार से घर के अंदर आने का निमंत्रण दिया| ऋतू भी अंदर आ गई और उसने मेरे फ़ोन में बज रहे गानों को एकदम से बंद कर दिया, मैंने आगे बढ़ कर उसे गले लगाना चाहा तो उसने अपने हाथ को मेरी छाती पर रख के रोक दिया| मुझे उसका ये व्यवहार बड़ा अजीब लगा पर जब उसके चेहरे पर नजर गई तो वो बहुत सीरियस थी|

"आपसे कुछ बात करनी है|" इतना कह कर उसने मेरे दोनों हाथ पकड़ कर मुझे पलंग पर बिठाते हुए कहा| वो ठीक मेरे सामने खड़ी हो गई और मेरी आँखों में देखते हुए बोली;
ऋतू: मैंने बहुत सोचा… ह....हमारा ये....घर से भागने .....का प्लान सही नहीं!

ऋतू ने बहुत डरते-डरते कहा, पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया पर फिर मुझे एहसास हुआ की जब हम कोई खतरनाक कदम उठाते हैं तो दिल में एक डर होता है और मुझे ऋतू के इसी डर का निवारण करना होगा|

मैं: अच्छा पहले ये बता की तुझे क्यों लगता है की ये फैसला गलत है? (मैंने बहुत प्यार से पुछा|)

ऋतू: कोई स्टेबल लाइफ नहीं होगी हमारी.... दरबदर की ठोकरें खाना... और फिर हर पल डर के साये में जीना....

मैं: जान! थोड़ा स्ट्रगल है पर वो हम मिल कर एक साथ करेंगे! लाइफ में हर इंसान को थोड़ा-बहुत स्ट्रगल तो करना ही पड़ता है ना? फिर तु अकेली नहीं हो, मैं हूँ ना तुम्हारे साथ|

ऋतू: पर मुझसे ये स्ट्रगल नहीं होगा! एक महीने की जॉब में मेरा मन ऊब गया और मैं ही जानती हूँ की ये पार्ट टाइम जॉब मैंने कैसे किया, तो फुल टाइम जॉब कैसे करुँगी?

मैं: तुझे कोई जॉब करने की जर्रूरत नहीं है| मैंने तुम्हें जब शादी के लिए उस दिन प्रोपोज़ किया था, तब तुमसे वादा किया था की मैं तुझे पलकों पर बिठा कर रखूँगा, कभी कोई तकलीफ नहीं होने दूँगा! ये देख 4 लाख की FD और आज की डेट में मेरे पास 1 लाख रुपया कॅश में है, हमारे भागने तक अकाउंट में कम से कम 7 लाख होंगे! इतने पैसों से हम नै जिंदगी शुरू कर सकते हैं!

मैंने ऋतू को FD की रिसीप्ट और बैंक की पास बुक दिखाई पर उसे तसल्ली अब भी नहीं हुई थी|

मैं: अच्छा ये देख, बैंगलोर में हमें किस लोकैलिटी में रखना है, वहाँ तक कैसे पहुँचना है और job ऑफर्स सब लिखे हैं इसमें|

ये कहते हुए मैंने ऋतू को अपनी डेरी दिखाई जिसमें मैंने सब कुछ फाइनल कर के रेडी कर रखा था| पर मुझे ये जानकर हैरानी हुई की ऋतू का डायरी देखने में जरा भी इंटरेस्ट नहीं था| मतलब की बात कुछ और थी और अभी तक वो बस बहाने बना रही थी|

मैं: देख ऋतू, तो कुछ छुपा रही है मुझसे| यूँ बहाने मत बना और सच-सच बता की बात क्या है? (मैंने ऋतू के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामते हुए कहा|)

ऋतू की नजरें झुक गेन और उसने सच बोलने में पूरी शक्ति लगा दी;

ऋतू: मैं किसी और को चाहने लगी हूँ?

अब ये सुनते ही मेरा खून खोल गया और मैंने ऋतू के चेहरे पर से अपने हाथ हटाए और एक जोरदार तमाचा उसके बाएँ गाल पर मारा|

मैं: कौन है वो हरामी?

मैंने गरजते हुए कहा, पर ऋतू डर के मारे सर झुकाये रोने लगी और कुछ नहीं बोली| मैंने ऋतू के दोनों कन्धों को पकड़ कर उसे झिंझोड़ा और उससे दुबारा पुछा;

मैं: बोल कौन है वो?

ऋतू सहम गई और डरते हुए बोली;

ऋतू: र....राहुल

ये नाम सुन कर मैंने उसके कन्धों को अपनी पकड़ से आजाद कर दिया और सर झुका कर बैठ गया| मेरा मन मान ही नहीं रहा था की ये सब हो रहा है! तभी ऋतू ने हिम्मत बटोरी और बोली;

ऋतू: वो भी मुझसे बहुत प्यार करता है और शादी करना चाहता है!

ये सुन कर मैंने ऋतू की आँखों में देखा तो मुझे उसकी आँखों में वही आत्मविश्वास नजर आया जो उस दिन दिखा था जब ऋतू ने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया था| मेरी आँखों में आँसू आ गए थे क्योंकि मेरे सारे सपने चकना चूर हो चुके थे और रह-रह कर मेरे दिल में गुस्सा भरने लगा था, ऐसा गुस्सा जो कभी भी फुट सकता था| पर ऋतू इस बात से अनजान और मेरी आँखों में आँसू देख उसमें हिम्मत आने लगी थी, आज तो जैसे उसने इस रिश्ते को हमेशा से खत्म कर देने की कसम खा ली थी इसलिए वो आगे बोली; "कॉलेज ट्रिप पर हम बहुत नजदीक आ गए! उसने मुझसे ना केवल अपने प्यार का इजहार किया बल्कि मुझे शादी के लिए भी प्रोपोज़ किया! मैं उसे मना नहीं कर पाई क्योंकि वो मुझे एक स्टेबल लाइफ दे सकता है! फिर आप ये भी तो देखो की आपकी और मेरी age में कितना फासला है?!

ऋतू को एहसास नहीं हुआ की जोश-जोश में वो असली सच बोल गई जिसे सुनते ही मेरा गुस्सा फुट पड़ा और मैंने एक जोरदार झापड़ उसके गाल पर मारा और उसे जमीन पर धकेल दिया| मैं बहुत जोर से उस पर चिल्लाया; "ये था ना तेरा प्यार? तुझे सिर्फ ऐशों-आराम की जिंदगी जीनी थी ना? मन भर गया न तेरा मुझसे? तो साफ़-साफ़ बोल देती ये उम्र का फासला कहाँ से आगया? ये तब याद नहीं आया था जब मुझसे पहली बार अपने प्यार का इज़हार किया था तूने? Fuck बहनचोद! मैं ही चूतिया था जो तेरे चक्कर में पड़ गया|” ऋतू का बायाँ हाथ उसके गाल पर था और वो सर झुकाये वहीँ खड़ी थी, पर उसे देख कर मेरा गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था| मैंने एक आखरी बार कोशिश की और अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को थामा, उसकी आँखों में झांकते हुए कहा: "प्लीज बोल दे तू मजाक कर रही थी? प्लीज .... प्लीज .... मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ|" पर उसकी आँखों में आँसूँ बाह निकले थे और उसकी आंखें सब सच बता रहीं थी की अब तक जिस दिल पर मेरा नाम लिखा था उसे तो वो कब का अपने जिस्म से निकाल कर कचरे में डाल चुकी है| "तू...तू जानती है वो लड़का किसका बेटा है? और उसके बाप ने तेरे....." मेरे आगे कहने से पहले ही ऋतू ने हाँ में सर हिलाया और अपने आँसूँ पोछते हुए बोली; "जानती हूँ... उसके पापा ने पंचायत में मेरी माँ को मौत की सजा सुनाई थी|"

"और ये जानते हुए भी तू उससे प्यार करती है?"

"गलती मेरी माँ की थी, उसने शादीशुदा होते हुए भी किसी और से प्यार किया|" ऋतू ने सर झुकाये हुए कहा, जैसे की उसे अपनी माँ के किये पर शर्म आ रही थी|

"गलती? और जो तूने की वो क्या थी?" मेरा मतलब हम दोनों के प्यार से था|

"उसी गलती को तो सुधारना चाहती हूँ|" उसका जवाब सुनते ही मेरे तन बदन में आग लग गई और मैंने उसके गाल पर एक और तमाचा जड़ दिया| "तो ये प्यार तेरे लिए गलती था? उस टाइम तो तू मरने के लिए तैयार थी और अब तुझे वही प्यार गलती लग रहा है?" ऋतू फिर चुप हो गई थी| अब मेरे अंदर कुछ भी नहीं बचा था, मैं हार मानते हुए अपने घुटनों के बल आ गिरा और अपने दोनों हाथों से अपने सर को पकड़ा| मेरी आँखों से खून के आँसूँ बह निकले थे; "क्यों? .... क्यों किया तूने ऐसा मेरे साथ? क्यों मुझ जैसे पत्थर दिल को प्यार करने पर मजबूर किया और जब तेरा दिल भर गया तो मुझे छोड़ दिया| मैंने मना किया था...कहा था ....पर..." मैंने फूटफूटकर रोते हुए कहा| ऋतू खड़ी होकर मेरे पास आई मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए बोली; "हम अच्छे दोस्त तो रह सकते हैं?" ये सुनते ही मैंने उसका हाथ झिड़क दिया; "Fuck you and fuck your dosti! Now get the fuck out of my house! And I curse you…. I curse you that you’ll be never be happy… you’ll suffer… so bad that every day… every fucking day will be like hell for you! You’ll beg for this misery to end but it’ll get worse ….worse till everything you love is lost forever!” इतना सुन के ऋतू रोती-बिलखती हुई दरवाजा जोर से बंद कर के चली गई| उसके जाने के बाद तो जैसे मेरे जिस्म में अब जान ही नहीं बची थी और मैं निढाल होकर उसी जमीन पर गिर पड़ा और रोता रहा| रह-रह कर ऋतू की सारी बातें याद आने लगी जिससे दिमाग में और गुस्सा आता और गुस्से में आ कर मैं जमीन में मुक्के मारने लगता पर मेरे दिल का दर्द बढ़ता ही जा रहा था| शाम 5 बजे तक मैं जमीन पर पड़ा हुआ यूँ ही रोता रहा, पर जब फिर भी दिल का दर्द कम नहीं हुआ तो मैं उठा और अपने दिल के दर्द को कम करने के लिए दारु लेने निकल पड़ा|

जेब में जितने पैसे थे सबकी दारु खरीद ली और घर लौट आया| जैसे ही दारु की बोतल खोलने लगा तो वो दिन याद आया जब ऋतू से वादा किया था की मैं कभी शराब को हाथ नहीं लगाऊँगा| जैसे ही ऋतू की याद आई अंदर गुस्सा भरने लगा और जोश में आ कर मैंने बोतल सीधा मुँह से लगाईं और एक बड़ा घूँट भरा, जैसे ही घूँट गले से निकला तो गाला जलने लगा| पर ये जलन उस दर्द से तो कम थी जो दिल में हो रहा था| अगला घूँट भरा तो वो दिन याद आने लगा जब ऋतू से मैंने अपने दिल की बात की कही, वो हमारा रोज फ़ोन पर बात करना ... उसका बार-बार मेरी बाहों में सिमट जाना.... उसका बार-बार मुझे Kiss करना और बेकाबू हो जाना.... वो हर एक पल जो मैंने उसके साथ बिताया था उसे याद कर के मैं पूरी की पूरी बोतल गटक गया और फिर बेसुध वहीँ जमीन पर लेट गया| मुझे कोई होश-खबर नहीं थी की मैं कहाँ पड़ा हूँ, सुबह कब हुई पता ही नहीं चला| सुबह के ग्यारह बजे मेरे फ़ोन की घंटी ताबड़तोड़ बजने लगी और मैं कुनमुनाता हुआ उठा और बिना देखे ही फ़ोन अपने कान पर लगा लिया;

मैं: हम्म्म...

बॉस: कहाँ पर है?

मैं: ममम...

बॉस: ग्यारह बज रहे हैं! तू अभी तक घर पर पड़ा है? शर्मा जी की फाइल कौन देगा? जल्दी ऑफिस आ!

ये सुनकर मुझे थोड़ा होश आया पर सर दर्द से फटा जा रहा था और बॉस की जोरदार आवाज कानों में दर्द करने लगी थी, इसलिए मैंने उनका फ़ोन ऐसे ही जमीन पर रख दिया और अपनी ताक़त बटोर के उठने को हुआ तो लड़खड़ा गया| फिर मैंने दुबारा उठने की कोशिश नहीं की और फिर से सो गया| करीब 1 बजे फिर से बॉस का फ़ोन आया पर मैं ने फ़ोन नहीं उठाया और फ़ोन ही बंद कर दिया| उस समय मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था बस मुझे नशे में सोना था और ये भी होश नहीं था की मैं फर्श पर ही नींद में मूत रहा हूँ| 5 बजे आँख खुली और मैं उठा, कमर से नीचे के सारे कपडे मेरे ही मूत से गीले थे| मैं उठा और जैसे-तैसे खड़ा हुआ और बाथरूम में गया और अपने सारे कपडे उतार दिए और बाल्टी में फेंक दिए और नंगा ही कमरे में आया| अलमारी की तरफ गया और उसमें से एक कच्छा निकाला और एक बनियान निकाली और उसे पहन के किचन से वाइपर उठा के फर्श पर पड़े अपने पिशाब को बाथरूम की तरफ खींच दिया और वाइपर वहीँ पटक दिया| कमरे की खिड़कियाँ खोली और तभी याद आया की ऋतू वहीँ खड़ी हो कर बहार झाँका करती थी| फिर से मन में गुस्सा भरने लगा और शराब की दूसरी बोतल निकाली पर इससे पहले की उसे खोलता बाजु वाले अंकल ने घंटी बजाई| मैंने दरवाजा खोला तो उन्होंने मुझसे अपने घर की चाभी माँगी और मेरी हालत देख कर समझ गए की मैंने बहुत पी रखी है| उनहोने कुछ नहीं कहा बस 'एन्जॉय' कहते हुए निकल गए| मैंने दरवाजा ऐसे ही भेड़ दिया पर दरवाजा लॉक नहीं हुआ| मैं आकर उसी खिड़की के सामने जमीन पर बैठ गया, पीठ दिवार से लगा कर दारु की बोतल खोली और सीधा ही उसे अपने होठों से लगाया और एक बड़ा से घूँट पी गया| आज मुझे उतनी जलन नहीं हुई जितनी कल हुई थी| पास ही फ़ोन पड़ा था उसे उठाया, फिर याद आया की सुबह बॉस ने कॉल किया था और फिर फ़ोन वापस स्विच ऑफ ही छोड़ दिया| अगला घूँट पीते ही दरवाजा खुला और मेरे ऑफिस का कॉलीग अरुण अंदर आया और मुझे जमीन पर बैठे दारु पीते देख बोला; "अबे साले! बॉस की वहाँ जली हुई है तेरी वजह से और तू यहाँ दारु पी रहा है?" मैंने उसकी तरफ देखा पर बोला कुछ नहीं बस दारु का एक और घूँट पिया| "अबे दिमाग ख़राब हो गया है क्या तेरा?" उसने मुझे झिंझोड़ते हुए कहा पर मैं अब भी कुछ नहीं बोल रहा था बस एक-एक घूँट कर के दारु पिए जा रहा था| अरुण मुझे बहुत अच्छे से जानता था की मैं कभी इतनी नहीं पीता, हमेशा लिमिट पि है मैंने और आज इस तरह मुझे बिना रुके पीता हुआ देख वो भी परेशान होगया| मेरे हाथ से बोतल छीन ली और बोला; "अबे रुक जा! बहनचोद पिए जा रहा है, बता तो सही क्या हुआ?" मैंने अब भी उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया बस उससे बोतल लेने लगा तो उसने बोतल नहीं दी और दूर खिड़की के पास खड़ा हो कर पूछने लगा| जब मैं कुछ नहीं बोला तो वो समझ गया की ये दिल का मामला है| इधर मैं भी ढीठ था तो मैं उठ के उससे जबरदस्ती बोतल छीन के ले आया और वापस नीचे बैठ के पीने लगा| "यार पागल मत बन! उस लड़की के चक़्कर में ऐसा मत कर! बीमार पढ़ जायेगा|"उसने फिर से मेरे हाथ से बोतल खींचनी चाही तो मैं बुदबुदाते हुए बोला: "मरूँगा तो नहीं ना?"

"पागल हो गया है तू?" उसने गुस्से से मुझे डाँटते हुए कहा| "ये सब छोड़... ये बता ... माल है तेरे पास?" मैंने अरुण से पूछा तो वो गुस्सा करने लगा| "यार है तो दे दे वरना मैं बहार से ले आता हूँ|" ये कह कर मैं उठा तो अरुण ने मुझे संभाला| वो जानता था ऐसी हालत में मैं बाहर गया तो पक्का कुछ न कुछ काण्ड हो जायेगा| "ये ले" इतना कह कर उसने मुझे एक गांजे की पुड़िया दी और मैंने उसी से सिगरेट माँगी और लग गया उसे भरने| पहला कश लेते ही मैं आँखें बंद कर के सर दिवार से लगा कर बैठ गया| "बॉस को कह दियो की मैं तुझे घर पर नहीं मिला|" मैंने आँखें बंद किये हुए ही कहा|

"अबे तेरी सटक गई है क्या? साले एक लड़की के चक्कर में आ कर कुत्ते जैसे हालत कर ली तूने अपनी! बहनचोद पूरे घर से बदबू आ रही है और तू चढ्ढी में बैठा शराब पिए जा रहा है? अबे होश में आ साले चूतिये?!" वो सब गुस्से में कहता रहा पर मेरे कान तो ये सब सुनना ही नहीं चाहते थे, वो तो बस उसी की आवाज सुन्ना चाहते थे जिसने मेरा दिल तोडा था| अगर अभी वो आ कर एक बार मुझे I love you कह दे तो मैं उसे फिरसे सीने से लगा लूँगा और उसके सारे गुनाह माफ़ कर दूँगा, पर नहीं.... उसे तो अब कोई और प्यारा था! जब अरुण का भाषण खत्म हुआ तो उसने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और कश लेने लगा; "तू साले....छोड़ बहनचोद! अच्छा ये बता कुछ खाया तूने?" मैंने अभी भी उसकी बात का जवाब नहीं दिया और वो दिन याद किया जब वो मेरे कॉल न करने से नाराज हो जाया करती थी और मैं उसे कॉल कर के पूछता था की कुछ खाया?" ये याद करते हुए मेरी आँख से आँसूँ बह निकले, उन्हें देखते ही अरुण को मेरे दिल के दर्द का एहसास हुआ और उसने मेरे कंधे पर थपथपाया और मुझे ढांढस बँधाने लगा|मैंने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया और बोला; "थैंक्स भाई!!!" फिर अपने आँसूँ पोछे; "अब तू घर जा, भाभी चिंता कर रही होंगी| कल मैं ऑफिस आ जाऊँगा|" उसे मेरी बात पर भरोसा हो गया पर जाते-जाते भी वो मेरे लिए खाना आर्डर कर गया|

अगली सुबह उठा और सबसे पहले माल फूँका! फिर मुँह धोया और अपनी लाश को ढोता हुआ ऑफिस आया| मुझे देखते ही बॉस ने इतना सुनाया की पूछो मत पर मैंने उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया| जवाब देता भी कैसे गांजे के नशे से मेरा होश गायब था और मैं बस सर झुकाये सब सुनने का दिखावा कर रहा था| जब उसका गुस्सा हो गया तो वो अपने केबिन में चला गया और मैं अपने टेबल पर आ कर बैठ गया| अरुण मेरे पास आया और मेरे कंधे पर हाथ रखा, जब मैंने सर उठाया तो मेरी आँखों की लाली देख कर वो समझ गया की मैंने गांजा पी रखा है और वो हँस दिया, उसे हँसता देख मेरी भी हँसी निकल गई| खेर इसी तरह दिन निकलने लगे, रोज बॉस की गालियाँ सुनना और फिर घर आकर दारु पीना और सो जाना| हर शुक्रवार घर से फ़ोन आता की मैं ऋतू को ले कर घर आ जाऊँ पर मैं कोई न कोई बहाना बना के बात टाल देता|

पूरा एक महीना निकल गया और अब हालातों ने मुझे एक मुश्किल दोराहे पर ला कर खड़ा कर दिया| फ़ोन बजा जब देखा तो पिताजी का नंबर था और उन्होंने मुझे और ऋतू को कल घर बुलाया था| ऋतू की शादी के लिए मंत्री साहब के लड़के का रिश्ता आया था| ये सुन कर खून तो बहुत उबला पर मैं कुछ कह नहीं सका| "आप ऋतू.............रितिका के हॉस्टल फोन कर दो वो मुझे कॉल कर लेगी|" इतना कह कर मैंने कॉल काट दिया| मैं ऑफिस की छत पर चला गया और सिगरेट जला कर फूँकता रहा और ये सोचता रहा की कल कैसे उस बेवफा की शक्ल बर्दाश्त करूँगा! रात को रितिका का कॉल आया और उसका नंबर स्क्रीन पर फ़्लैश होते ही गुस्सा बाहर आ गया| पर मुझे अपना गुस्सा थोड़ा काबू करना था; "कल सुबह दस बजे बस स्टैंड|" इतना कह कर मैंने फ़ोन काट दिया| उस रात 2 बजे तक मैं पीता रहा और मन ही मन उसे कोसता रहा और सुबह मेरी आँख ही नहीं खुली| सुबह 10:30 बजे रितिका के धड़ाधड़ कॉल आये तब नींद खुली पर आँखें अब भी नहीं खुल रही थी|मैंने बिना देखे ही फ़ोन अपने कान पर लगा दिया; "आप कहाँ हो?" ये जानी पहचानी आवाज सुन कर आँख खुली और याद आया की मुझे तो दस बजे बस स्टैंड पहुँचना था| "आ रहा हूँ!" इतना कह कर मैंने फोन काटा और बिना मुँह धोये ही निकल गया| बाल बिखरे हुए, दाढ़ी बढ़ी हुई और जिस्म से ही दारु की तेज महक आ रही थी| जब मैं बस स्टैंड पहुँचा तो मुझे ऋतू इंतजार करती हुई दिखी, आज पूरे एक महीने बाद देख रहा था और मन में जिस प्यार को मैं दफना चूका था वो अब उभर आया था| मैंने जेब से फ्लास्क निकला और दारु का एक घूँट पिया और फिर रितिका की तरफ चलने लगा| रितिका की नजर जब मुझ पर पड़ी तो वो आँखें फाड़े बस मुझे ही देखे जा रही थी| आज तक उसने मुझे जब भी देखा था तो clean shaven और well dressed देखा था और आज मुझे इस कदर देख उसका अचरज करना लाजमी था| उसके पास आ कर मैं रुका और जेब में हाथ डाल कर सिगरेट निकाली और जला कर उसका धुआँ उसके मुँह पर फूँका! वो थोड़ा खांसते हुए बोली; "आपने तो कसम खाई थी की आप कभी दारु और सिगरेट को हाथ नहीं लगाओगे?"

"तुमने भी तो कसम खाई थी की मेरा साथ कभी नहीं छोड़ोगी?! But here we are!" ये कह कर मैंने उसे ताना मारा और फिर नजरें इधर-उधर घुमाने लगा| मैं टिकट काउंटर पर पहुँचा तो पता चला की आखरी बस जा चुकी है जो शायद रितिका भी जानती थी| बस एक लेडीज स्पेशल बस थी जो अभी आने वाली थी, मैंने मन ही मन सोचा की इसे अकेले ही भेज देता हूँ| इसलिए मैं टहलता हुआ वापस उसके पास आया; "लेडीज स्पेशल बस आने वाली है, उसमें चली जा! मैं घर फोन कर देता हूँ कोई आ कर ले जाएगा|"

"अकेले...पर ...मैं तो...." वो नजरें झुकाये डरते हुए बोलने लगी|

"तो बुला ले अपने 'राहुल' को! वो छोड़ देगा तुझे गाँव|" मेरा फिर से ताना सुन कर वो चुप हो गई और तभी मुझे लालू नजर आया| ये लालू उन्ही कल्लू भैया का छोटा भाई था और वो मुझे अच्छे से जानता था| उसने मुझे देखते ही हाथ दिखा कर रुकने को कहा और मेरे पास ही बाइक दौड़ाता हुआ आ गया|

लालू: अरे साब! आप यहाँ कैसे?

मैं: बस गाँव जा रहा था, पर बस निकल गई|

लालू: अरे तो क्या हुआ साब, ये रही बस मैं भी उसी रास्ते जा रहा हूँ|

लालू एक प्राइवेट बस का कंडक्टर था और अपने भाई की ही तरह मेरी बहुत इज्जत करता था| रितिका ने हम दोनों की सारी बातें सुन ली थी और वो थोड़ा हैरान भी थी की मैं कैसे लालू को जानता था| मैंने उसे बैठने का इशारा किया और खुद बाहर ही रुक गया और दूकान से एक परफ्यूम की बोतल ली और एक काला चस्मा| घर पर कोई नहीं जानता था की मैं दारु पीता हूँ और इस हालत में घर जाता तो काण्ड होना तय था| मैंने परफूम अच्छे से लगाया और लालू से माल माँगा उसने भी मुस्कुराते हुए अपनी भरी हुई सिगरेट मुझे दे दी और बदले में मैंने उसे पैसे दे दिए| बस के पीछे खड़ा मैं चुप-चाप सिगरेट पीता रहा और जब बस भर गई तो मैं बस में चढ़ गया|ऋतू खिडक़ीवाली सीट पर बैठी थी और उसकी साथ वाली सीट खाली थी पर मैं वहाँ नहीं बैठा बल्कि लास्ट वाली सीट पर पहुँच गया जो अभी भी खाली थी| मैंने उस पर पाँव पसार के लेट गया और सोने लगा| गांजे ने दिमाग तो पहले ही सन्न कर दिया था| एक बजा होगा और मुझे मूत आ रहा था तो मैं उठ कर बैठ गया| बस रुकने वाली थी और मैं ने उठ कर देखा तो अब भी ऋतू के बगल वाली सीट खाली ही थी| इतने में एक लड़का जो मेरे दाईं तरफ बैठा था वो उठा और जा कर रितिका के साथ बैठ गया और उसके साथ बदसलूकी करने लगा| वो जानबूझ कर उससे चिपक कर बैठा था और जबरदस्ती उससे बात करने लगा| रितिका उसके साथ बहुत uncomfortable थी और बार-बार उससे कह रही थी की; "मुझे आपसे बात नहीं करनी!" पर वो हरामी बाज़ ही नहीं आ रहा था|
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07-14-2020, 01:00 PM,
#68
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
मैं धीरे-धीरे आगे बढ़ा और उस लड़के की गद्दी पर जोरदार थप्पड़ मारा| मेरा थप्पड़ लगते ही वो पलट के मुझे देखने लगा, मैंने ऊँगली के इशारे से उसे उठने को कहा: "निकल बहनचोद!" मैंने गरजते हुए कहा और ये सुनते ही लालू पीछे की तरफ देखने लगा और उसे समझते देर न लगी की माजरा क्या है| उसने एक कंटाप उस लड़के के मारा और लात मार के बस से उतार दिया और चिल्लाता हुआ बोला; "भोसड़ी के दुबारा अगर दिख गया न तो गंडिया काट डालब!" ऋतू की आँखें भर आईं थीं और उसने मेरी तरफ देखा और 'थैंक यू' कहना चाहा पर मैंने उससे नजर ऐसे फेर ली जैसे की वो यहाँ थी ही नहीं! मैं आगे चला गया और कंडक्टर के बाजू वाली सीट पर बैठ गया| नशे का झोंका आ रहा था और मुझे नींद आ रही थी तो मैं बैठे-बैठे ही सोने लगा| दस मिनट बाद बस रुकी और मैं मूत कर आ गया और वापिस पीछे की सीट पर लेट गया| जब हमारा बस स्टैंड आया तो लालू मुझे जगाने आया और वापस जाते समय रितिका से माफ़ी माँगने लगा; "दीदी...वो माफ़ करना आपको उस हरामी की वजह से तकलीफ हुई|" रितिका ये सुन के सन्न रह गई और मेरी तरफ देखने लगी पर मैंने कुछ नहीं कहा और बस से नीचे उतर आया| बस स्टैंड से हम दोनों गज भर की दूरी पर चल रहे थे, मैंने जेब से फ्लास्क निकला और शराब पीने लगा| मन में बहुत दुःख था और घर जाने से मैं कतरा रहा था| दरअसल मैं रितिका का रिश्ता अपने सामने होते हुए नहीं देखना चाहता था और इसीलिए जब घर दूर से नजर आने लगा तो मैंने रितिका से अकेले जाने को कहा| "आप घर नहीं...." वो बस इतना ही बोल पाई की में बोल पड़ा; "घर में बोल दिओ कल मेरा ऑफिस था इसलिए मैं यहीं से चला गया|" इतना कह कर मैं पलट कर वापस बस स्टैंड की तरफ चल पड़ा| रितिका मेरे दर्द को महसूस कर रही थी पर उसने कहा कुछ नहीं और चुप-चाप सर झुकाये घर चली गई| मैं बस स्टैंड पहुँचा और वहाँ बैठा बस का इंतजार करने लगा, अगली बस आने में आधा घंटा था तो मैं वहीँ लेट गया और कैसे भी कर के अपने दर्द को कम करने की सोचने लगा| रितिका की शादी में मैं खुद को कैसे सम्भालूंगा बस यही सोच रहा था की बस आ गई और मैं फिर से सबसे पीछे वाली सीट पकड़ के लेट गया| तभी घर से फ़ोन आया और पिताजी चिल्लाने लगे की मैं घर क्यों नहीं आया, मैंने फ़ोन उठा कर सीट पर दूसरी तरफ रख दिया और खुद खिड़की की से बाहर देखने लगा| जब मैंने फ़ोन देखा तो कॉल काट चूका था पर इसका मुझे जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ा, मैंने फिर से जेब से फ्लास्क निकाली और आखरी घूँट पिया और शहर आने का इंतजार करने लगा| सात बजे हम शहर पहुँचे और उतारते ही पेट में दारु की ललक जाग गई| ठेके से दारु ली और एक सब्जी वाले से ककड़ी ली और घर आ गया और पीने लगा| आज रितिका की शक्ल देख कर कोफ़्त हो रही थी पर मुझे मेरी समस्या का अब तक कोई रास्ता नहीं मिला था| जमाने से तो विश्वास उठ चूका था मेरा, मेरा दिमाग कह रहा था की सब के सब मतलबी हैं यहाँ! सब मुझसे कुछ न कुछ चाहते थे, मोहिनी पढ़ना चाहती थी तो राखी ऑफिस के काम में मेरी हेल्प और तो और अनु मैडम ने भी मेरे जरिये अपना डाइवोर्स ले लिया था| ये डाइवोर्स Final वाली बात मुझे अरुण ने ही बताई थी और अब ये सब बातें मुझे कचोटने लगी थीं| क्या मैं इस दुनिया में सिर्फ दूसरों के लिए जीने आया हूँ? क्या मुझे मेरी ख़ुशी का कोई हक़ नहीं? क्या माँगा था मैंने जो भगवान से दिया न गया? बस एक रितिका का प्यार ही तो माँगा था और उसने भी मुझे धोका दे दिया! ये सब सोचते-सोचते मेरी आँख से आँसू बहने लगे और मैं अपनी आँख से बहे हर एक कतरे के बदले शराब को अपने जिस्म में उतारता चला गया| कब नींद आई मुझे कुछ होश नहीं था, आँख तब खुली जब सुबह का अलार्म तेजी से बज उठा|
Reply
07-14-2020, 01:00 PM,
#69
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 60

मैं कुनमुनाया और अलार्म बंद कर दिया पर ठीक पांच मिनट बाद फिर अलार्म बजा और मैं बड़े गुस्से के साथ उठा और जमीन पर फिर से बैठ गया| खिड़की से आ रही ठंडी हवा और उजाले ने मेरी नींद थोड़ी तोड़ दी थी| मेरा मन अब ये जॉब करने का बिलकुल नहीं था, क्योंकि अब मुझे इसकी कोई जर्रूरत नजर नहीं आ रही थी| ऊपर से ये घर जिसमें रितिका के लिए मेरा प्यार बस्ता था अब मुझे अंदर ही अंदर खाने लगा था| मैं उठा और नहाने चला गया, फिर बाहर आते ही मैंने लैपटॉप पर रेंट पर मकान देखने शुरू किये और तब मुझे याद आया की कहाँ तो मैं अपने और रितिका के लिए बैंगलोर में मकान ढूँढ रहा था और कहाँ लखनऊ में ढूंढने लगा| मन में एक खेज सी उठी .....

लिस्ट में जो नाम सबसे ऊपर था उसी पर कॉल किया और अपनी requirement और budget उसे बता दिया, उसने ग्यारह बजे मुझे मिलने बुलाया| मैंने तुरंत बॉस को फ़ोन किया की मुझे घर शिफ्ट करना है इसलिए मैं आज नहीं आ पाउँगा, ये बोल कर मैं दलाल के पास चल दिया| एक-एक कर उसने मुझे 3-4 options दिखाए पर मुझे जो जच्चा वो था ठेके के पास| एक gated society थी और रेंट 15,000/- था| 2 BHK था बस ऑफिस से बहुत दूर था, पर हाईवे के पास था| वैसे भी मुझे कौन सा ऑफिस जाना था अब, मुझे तो जल्द से जल्द उस घर से निकलना था जहाँ अब मेरा दम घुटने लगा था| मकान मालिक ने मुझसे मेरे काम-धंधे के बारे में पुछा तो मैंने उसे सब कुछ बता दिया और अपने documents भी दिखा दिए| सब बात फाइनल कर मैं ने उनकी बैंक डिटेल्स ले ली और उसी वक़्त उन्हें साड़ी पेमेंट कर दी| दलाल ने सारे कागज बनवाने थे, मैं सीधा घर आया और दो suitcase में अपना समान भरा और घर की चाभी सुभाष अंकल जी को देने चल दिया| उन्हें मैंने ये कहा की मेरी पोस्टिंग अब बरेली में जयदा रहती है इसलिए मैंने नया घर हाईवे के पास लिया है ताकि आने-जाने में आसानी हो| घर की ad मैंने ऑनलाइन डाल दी है और नंबर उन्हीं का डाला है| तो वो खुश हुए की उन्हें नया किरायदार ढूंढने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ेगी|

अपनी बुलेट रानी पर पीछे सारा समान बाँध कर मैं नए फ्लैट पर आ गया और समान रख कर सीधा कुछ समान खरीदने निकल पड़ा| Glass का एक सेट, दारु की बोतल और कुछ चखना ले कर मैं घर लौट आया| अभी मैंने सोचा ही था की मैं पीना शुरू करूँ की दलाल और मकान मालिक कागज ले कर आ गए| उन्होंने देख लिया की बिस्तर पर शराब की बोतल राखी है पर किसी ने कुछ नहीं कहा, क्योंकि उनका मुँह-माँगा रेंट जो दे रहा था| कागज साइन कर के उन्होंने एक काम करने वाली दीदी से मिलवाया जो सब के यहाँ झाड़ू-पोछा और बाकी के काम करती थीं| मेरे लिए तो ये ऐसा था जैसे अंधे को आँखें मिल गई हों| मैंने उनसे सारे काम की बात कर ली, झाड़ू-पोछा, कपडे, बर्तन और दिन में एक बार खाना बनाना| उन्होंने डरते हुए 5,000/- कहा और मैं जानता था की ये कम है पर मैंने इस डर से कुछ नहीं कहा की कहीं मकान मालिक इससे commission में पैसे ना लेता हो| मैंने सोचा जब ये काम करने आएँगी तो मैं इन्हें पैसे बढ़ा कर दे दूँगा| मकान मालिक ने जाते-जाते बस इतना कहा; "बेटा प्लीज कोई बखेड़ा खड़ा मत करना|" मैं उनका मतलब समझ गया| "अंकल जी मैं बहुत शांत स्वभाव का आदमी हूँ, यहाँ किसी से मेरी कोई बात-चीत नहीं होगी और न ही आपको कोई शिकायत आएगी|" मैंने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा| दीदी भी कह गईं की वो कल सुबह 7 बजे आएँगी, अब मुझे तंग करने वाला कोई नहीं था| मैंने अपना पेग बनाया और बालकनी में फर्श पर बैठ गया और सड़क को देखते-देखते घूँट भरने लगा| आज पता नहीं पर मेरा मन कह रहा था की शायद....शायद कुछ अच्छा हो जाए!

पर नहीं जी..... ऊपर वाला तो मुझसे आज कल बहुत खफा था| पास में पड़ा फ़ोन जिमें अभी नुसरत फ़तेह अली का गाना बज रहा था वो अचानक से बंद हुआ और पिताजी का कॉल आ गया|

मैं: जी

पिताजी: बेटा रितिका का रिश्ते पक्का हो गया है, दिवाली के दूसरे दिन ही शादी है!

पिताजी ने हँसते हुए कहा और ये सुन कर मेरा हाल बेहाल था! आँख से एक कटरा एक आँसूँ निकला और बहता हुआ मेरी गोद में गिरा| जिसके दिल पर मेरा नाम लिखा था आज वो किसी और के नाम की मेहँदी रचवाने वाली थी! जो कल तक मेरा नाम लिया करती थी वो अब किसी और की होने जा रही थी| मैं अपने इन्हीं ख्यालों में गुम था और इधर पिताजी उम्मीद कर रहे थे की मैं ख़ुशी से उछाल जाऊँगा|

पिताजी: हेल्लो? मानु? हेल्लो?

मैं: हाँ जी! इधर ही हूँ मैं|

पिताजी: बेटा हम लोगों को तुझसे बात करनी है तू कल के आ जा|

अब में घर जा कर उस बेवफा की सूरत नहीं देखना चाहता था, उससे मेरा गम बढ़ना ही था कम नहीं होना था!

मैं: जी...वो....मैं नहीं आ पाऊँगा| आप बताइये की क्या काम था?

पिताजी: बेटा इतनी ख़ुशी की बात है और तू वहाँ अकेला है? देख भाई साहब भी कह रहे थे की तू कल आ जा वरना हम तुझे लेने आ जाते हैं|

मैं: मैं लखनऊ में नहीं हूँ! मैं.....नॉएडा में हूँ!

पिताजी: क्या? पर क्यों?

मैं: जी वो काम....काम के सिलिसिले में आना पड़ा|

पिताजी: तो कब वापस आ रहा है?

मैं: जी टाइम लगेगा.... 20-25 दिन....

उस टाइम मेरे मुँह में जो झूठ आ रहा था मैं वो सब बोले जा रहा था| मेरी शायद ये बात ताऊ जी भी सुन रहे थे इसलिए अगली आवाज उनकी थी जो बहुत गुस्से में थी;

ताऊ जी: मानु! रितिका के लिए इतना अच्छा रिश्ता आया है और तू बहाने बनाने में लगा है! मैं कहे देता हूँ की ये रिश्ता हाथ से जाना नहीं चाहिए, मंत्री जी सामने से रिश्ता ले कर आये हैं! रितिका की शादी से पहले मैं चाहता हूँ की तेरी शादी हो जाए| अच्छा लगता है की चाचा कुंवारा बैठा है और भतीजी की शादी हो रही है?! कल पहुँच यहाँ!

मैं: ताऊ जी मैं आपको पहले ही कह चूका ही की मुझे अभी शादी नहीं करनी तो फिर आप बार-बार मेरे पीछे क्यों पड़ जाते हैं? जिसका रिश्ता आया है उसकी चिंता करिये पहले! शादी के लिए वो मरी जा रही है मैं नहीं!

मैंने थोड़ा गुस्से में कहा क्योंकि कोई नहीं जानता था की मेरे दिल में क्या आग लगी है! हर किसी को अपनी करनी है तो करो, मैं भी अब वही करूँगा जो मुझे करना है|

ताऊ जी: जुबान लड़ाता है? तुझे जरा सी छूट क्या दी तू तो हमारे सर पर नाचने लगा?

मैं: आप को ये रिश्ता अपने हाथ से नहीं जाने देना ना तो आप करो उसकी शादी| मेरे लिए कौन सा प्रधान मंत्री का रिश्ता आया है जो आप एक दम से शादी-शादी करने लगे?

दारु का नशा अब मुझसे सब बुलवा रहा था|

पिताजी: (चिल्लाते हुए) तू होश में है? क्या बोले जा रहा है? नशा-वषा किया है क्या? ऐसे बदतमीजी से बात करेगा तू भाई साहब से?

मैं: मैं इतनी बार तो आप सब से कह चूका हूँ की मुझे अभी शादी नहीं करनी तो फिर हर 6 महीने बाद आप लोग क्यों मेरे पीछे पड़ जाते हैं? आपको समाज की क्यों इतनी चिंता है? शादी के बाद बीवी को खिलाऊँगा क्या? या ये दुनिया वाले रोज 3 टाइम का खाना देने आएंगे मुझे?

शायद ताऊ जी को मेरी बात समझ आई और वो नरम होते हुए बोलने लगे;

ताऊ जी: ठीक है, तुझे शादी नहीं करनी ना? पर अपनी भतीजी की शादी में तो आ जा!

उनकी नरमी देख मुझे मेरी गलती का एहसास हुआ की उन्होंने तो मेरा दिल नहीं तोडा ना?

मैं: ताऊ जी मुझे माफ़ कर देना, मुझे आपसे इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी! मैं अभी शहर में नहीं हूँ, नॉएडा आया हूँ काम के सिलसिले में| कम्पनी के कुछ लिकनेसेस का काम है, इसलिए उसमें टाइम लगेगा| रही रितिका की शादी की बात तो मैं आ जाऊँगा, आप निश्चिन्त रहिये| अभी तो तकरीबन 2 महीने हैं ना हमारे पास?

मैंने बड़ी हलीमी से बात की और ताऊ जी मान भी गए| फ़ोन कटते ही मैंने एक लार्ज पेग बनाया और उसे एक सांस में गटक गया| मैं कैसे उसकी शादी में जाऊँगा? कैसे उसे अपनी आँखों के सामने विदा होते हुए देखूंगा? काश ये सब देखने से पहले मैं मर जाता! ये सोचते-सोचते मैं पूरी बोतल पी गया पर कोई हल नहीं मिला| दिल और दिमाग को चैन नहीं मिल रहा था, अब तो दारु भी खत्म हो गई थी तो कुछ तो चाहिए था मुझे? मैं लड़खड़ाता हुआ उठा और गाँजा ढूँढने लगा, सारा समान उथल-पुथल करने के बाद मुझे वो मेरी ही पैंट की जेब में मिला| ठीक से दिख भी नहीं रहा था, इसलिए बड़ी मुश्किल से उसे सिगरेट में भरा और पहला कश लेते ही मैं वापस जमीन पर बैठ गया| दारु की खाली बोतल में मुझे एक आखरी बूँद दिखाई दी, मैंने उसे मुँह से लगाया और वो आखरी बूँद भी पी गया| ऐसा लगा मानो सबसे जयदा स्वाद उसी आखरी बूँद में था| फटाफट मैंने सिगरेट पी ताकि उसका नशा मेरा दिमाग जल्दी से सुन्न कर दे और मैं चैन से सो सकूँ| हुआ भी वही अगले दस मिनट में ही मेरी आँख लग गई और फिर सुबह खुली जब दीदी ने बेल्ल बजा-बजा कर मेरी नींद तोड़ी| मैंने बड़ी मुश्किल से उठ कर दरवाजा खोला, दरवाजा खुलते ही दीदी को दारु का एक बहुत तेज भभका सूंघने को मिला| उन्होंने ने एक दम से अपनी नाक सिकोड़ ली और मुझे ये देख कर एहसास हुआ की मैंने क्या छीछालेदर किया है! मैं बिना कुछ कहे बाथरूम में घुसा और नहा-धो कर तैयार हुआ, अब घर में बर्तन तो थे नहीं की मुझे चाय मिलती| घर की सफाई हो चुकी थी और मुझे तैयार देख दीदी कहने लगीं की वो कपडे शाम को कर देंगी| मुझसे उन्होंने पुछा की मैं कितने बजे लौटूँगा तो मैंने उन्हें 6 बजे बोल दिया और फिर मैं ऑफिस के लिए निकल गया| आज मैंने सोच लिया था की सर को अपना रेसिग्नेशन दे दूँगा| ऑफिस आ कर जब मैंने जॉब छोड़ने की बात कही तो सर ने मुझे अपने सामने बिठाया और पुछा;

बॉस: पहले तो तू ये बता की ये क्या हालत बना राखी है अपनी? और क्यों ये जॉब छोड़ना चाहता है? कहीं कोई और जॉब मिल गई?

मैं: सर कुछ पर्सनल कारन हैं!

बॉस: जॉब छोड़ने के लिए पर्सनल करना है या फिर ये दाढ़ी उगाने की वजह पर्सनल है?

सर बार-बार कारन जानने के लिए कुरेदते रहे क्योंकि पिछले कुछ महीनों में उन्होंने under staffing की थी और एकाउंट्स में सिर्फ दो ही लोग बचे थे, यानी मैं और अरुण और हम दोनों ही पूरा एकाउंट्स का काम देख रहे थे, हेडोफ़्फ़िस का भी और यहाँ ब्राँच का भी| अब मुझे सर को कुछ न कुछ बहाना मारना था तो मैंने कहा;

मैं: सर मैं बोर हो गया हूँ! इतनी दूर से आना पड़ता है!

बॉस: अरे भाई अभी तो तुम्हारी उम्र ही क्या है जो बोर हो गए? अभी तो साड़ी उम्र पड़ी है! दूर से आना पड़ता है तो यहाँ कहीं नजदीक घर देख ले!

मैं: सर यहाँ कहाँ बजट में घर मिलेगा?

बॉस: तो अब तो मेट्रो शुरू हो गई उससे आ जाया कर!

पर मैं तो मन बना चूका था की मुझे जॉब छोड़नी है इसलिए सर ने कहा;

बॉस: ठीक है यार अब तेरा मन बन ही चूका है तो, पर देख एक महीना रुक जा और ये काम निपटा दे फिर बाकी का अरुण संभाल लेगा|

मैं: जी ठीक है पर सर सुबह के टाइम में थोड़ा relaxation दे दो! रात को आप जितनी देर बोलो उतनी देर बैठ जाऊँगा!

सर मान गए और मैंने सोचा की अब महीना तो शुरू हो ही चूका है तो रो-पीट कर दिन पार कर लेता हूँ! इधर जब ये खबर अरुण को पता चली तो उसने चुप-चाप सिद्धार्थ को फ़ोन कर दिया और शाम को जबरदस्ती मेरे साथ मेरा घर देखने के बहाने से मेरे साथ आ गया| रास्ते में ही उसने सिद्धर्थ को भी पिक करने को कहा| जैसे ही सिद्धार्थ ने मेरी हालत देखि तो वो गाली देते हुए कहने लगा; "बहनचोद क्या हालत बना राखी है अपनी?" पर मेरे जवाब देने से पहले ही अरुण बोल पड़ा; "साहब आज कल मजनू हो गए हैं!" मैं बीएस झूठी हँसी हँस कर रह गया, दोनों को एक मिनट छोड़ कर मैं कुछ लेने चला गया, वापस आया तो मेरे पास चिप्स, नमकीन और सोडे की बोतल थी|

हम तीनों दारु लेते हुए घर आ गए, बालकनी में तीनों जमीन पर बैठ गए और मैंने तीनों के लिए small-small पेग बनाये| इधर सिद्धार्थ ने खाना आर्डर कर दिया, उन दोनों ने एक सिप ही ली थी और मैं एक साँस में गटक गया| "अबे साले! आराम से, तू तो कतई देवदास हो रखा!" सिद्धार्थ बोलै पर आगे बात होने से पहले ही दीदी आ गईं और मैंने दरवाजा खोला| वो चुप-चाप बाथरूम में कपडे धोने लगीं| अरुण ने बात शुरू करते हुए कहा; "जनाब नौकरी छोड़ रहे हैं!" ये सुनते ही सिद्धार्थ चौंक पड़ा और बोला; तू पागल हो गया क्या? एक लड़की के चक्कर में पड़ कर इतनी अच्छी नौकरी छोड़ रहा है? होश में आ और life में practical बन जा| देख तुझे मैं एक Sure shot तरीका बताता हूँ उस लड़की को भूलने का| घर के अंदर बैठेगा तो इसी तरह ऊल-जुलूल हरकतें करेगा, घर से बाहर निकल और पेल दे किसी लड़की को! मेरे ऑफिस में है एक लड़का मैं उससे किसी लड़की का नंबर माँगता हूँ, उससे मिल और घापा-घप्प कर और Move- On कर! वो भी लड़की तो move-on कर गई होगी तू क्यों उसके चक्कर में अपना नास (नाश) कर रहा है!

"देख भाई, तेरे ये आईडिया तू अपने पास रख| मेरा गम बीएस मैं ही जानता हूँ और उसका ये इलाज तो कतई नहीं है|" मैंने दूसरा पेग बनाते हुए कहा|

"अच्छा तू ये बता की हुआ क्या एक्साक्ट्ली?" अरुण ने पुछा|

"कुछ नहीं यार, उसे कोई और पसंद आ गया| पैसे वाला था और वो उसे अच्छी जिंदगी दे सकता था|" मैंने जयदा डिटेल ना देते हुए कहा|

"तो Gold Digger थी वो?" सिद्धार्थ ने पुछा|

"ऐसी थी तो नहीं पर ......छोड़ ना! तू देख आर्डर कहाँ पहुँचा|" मैंने बात बदलते हुए कहा क्योंकि अब मुझे रितिका के बारे में कोई बात नहीं करनी थी| सिद्धार्थ भी समझ गया और उसने आगे कुछ नहीं बोला पर अरुण पर शराब का नशा चढ़ने लगा था और अब उसके मन में 'भाई के लिए प्यार' जाग गया था|

"बहनचोद! साला अगर उसने तुझे छोड़ा है तो वो किसी की सगी नहीं हो सकती! साले 1...2...3...4...5 साल से जानता हूँ तुझे!

अरुण ने उँगलियों पर गिनते हुए कहा और उसे ऐसा करता देख मैं और सिद्धार्थ हँस दिए|

"इसे और मत दे! साला रास्ते में ड्रामे छोड़ेगा और घर पर भाभी हमारी खाट खड़ी कर देगी!" सिद्धार्थ ने अरुण को और पेग देने से मना किया, मैंने उसका पेग हम-दोनों में आधा-आधा बाँटना चाहा तो उसने एक डीएम से पेग छीन लिया और गटक गया|

"ओ भोसड़ी के!" सिद्धार्थ चिल्लाया पर तब तक अरुण पेग पी चूका था और हम दोनों फिर से हँसने लगे| तभी खाना आ गया, मैं दरवाजा खोलने गया तो दीदी भी कपडे धो कर निकल आईं, अब उन्हें कपडे डालने थे बालकनी में और वहां तो हम महफ़िल जमा कर बैठे थे|

"दीदी रहने दो मैं दाल दूँगा बाद में! अच्छा आप नॉन-वेज खाते हो ना?" मैंने पुछा तो वो एक दम से हैरान हो गईं और हाँ में गर्दन हिलाई| मैंने उनके लिए भी एक प्लेट नूडल मंगाए थे जो मैंने उन्हें दे दिए| पहले तो वो मना करने लगीं फिर मैंने थोड़ी जबरदस्ती कर के उन्हें दे दिया| वो मुस्कुरा कर चली गईं और मैं हम तीनों के लिए खाना ले कर बालकनी में बैठ गया| एल्युमीनियम के डिब्बे में नूडल्स आये थे तो प्लेट की जर्रूरत नहीं थी| हम तीनों ने खाना शुरू किया पर अरुण मियाँ पर नशा फूल शबाब पे था; "साला लड़कियाँ होती ही ऐसी हैं? मेरे गऊ जैसे दोस्त को छोड़ कर चली गई.... तू...तू चिंता मत कर....मैं...बहनचोद....तेरी शादी कराऊँगा.... उससे भी अच्छी लड़की से.... रुक अभी तेरी भाभी को कॉल करता हूँ|" इतना कह कर वो फ़ोन मिलाने को हुआ तो मैंने उसके हाथ से फ़ोन छीन लिया|

"अबे चूतिया हो गया है क्या? चुप-चाप खाना खा|" मैंने कहा और आगे किसी को भी पीने नहीं दी| आज बहुत दिनों बाद मुझे खाना खाने में मजा आ रहा था| खाना खाने के बाद सिद्धार्थ बोला; "देख यार! मेरी बात मान जा और ये जॉब मत छोड़| मैं मानता हूँ तुझे थोड़ा टाइम लगेगा और तू उसे भूल जायेगा|" मैंने बस हाँ में सर हिलाया पर ये तो मेरा मन ही जानता था की मैं अंदर से बिखरने लगा हूँ|

घडी में अभी बस 10 बजे थे और अरुण भैया तो लौटने लगे थे और अब उन्हें घर छोड़ना अकेले सिद्धार्थ के बस की बात नहीं थी| मैंने कैब बुलाई और फिर हम ने मिलकर अरुण को कैब में बिठाया और पहले उसे घर छोड़ा और भाभी से माफ़ी भी मानगी की मेरे बर्थडे ट्रीट की वजह से भाई को थोड़ी जयदा हो गई| फिर सिद्धार्थ को छोड़ मैं उसी कैब में वापस आया और रस्ते में ठेके से एक और बोतल ली| घर आते ही मैं बालकनी में बैठ गया और फिर से उसी दर्द की आगोश में चला गया| लार्ज बना के जैसे ही होठों से लगाया तो रितिका की शक्ल याद आ गयी और उसी के साथ गुस्सा भी खूब आया| एक सांस में पूरा पेग खींच गया और फटाफट दूसरा पेग बनाया, तभी याद आया की माल भी तो तैयार है! मैंने जेब से फेमस मलना की क्रीम की छोटी सी पुड़िया निकाली और लग गया पूरा सेटअप बनाने| पूरी Heisenberg वाली फीलिंग आ रहे थी और मैं अपने इस बचकाने ख्याल पर मुस्कुराने लगा| आज पहली बार था की मैं अपने ही इस तरह के बचकाने ख्याल पर हँस रहा था| पर मेरे मन ने मुझे ये ख़ुशी जयदा देर तक एन्जॉय नहीं करने दी और मुझे अचानक से रितिका का हँसता हुआ चेहरा याद आ गया, मैं ने तैयार सिगरेट वहीँ जमीन पर छोड़ दी क्योंकि मेरा मन मुझे इस गम से बाहर नहीं जाने देना चाहता था| मैं पेग ले कर उठा और बालकनी में खड़ा हो कर ऊपर आसमान में देखने लगा| एक पल के लिए आँख मूँदि तो रितिका मुझे शादी के जोड़े में दिखी और फिर मेरी आँख से आँसू बह निकले और एक कटरा मेरे ही पेग में गिरा| मैंने सोचा की चलो आज अपने आंसुओं का स्वाद भी चख के देखूँ! झूठ नहीं कहूँगा पर ये वो स्वाद था जिसने दिल को अंदर तक छू लिए था! पेग खत्म हुआ और मैं वापस आ कर निचे बैठ गया पर अब दिल बगावत करने लगा था, उसे अब बस ऋतू चाहिए थी! चाहे जो करना पड़े वो कर पर उसे अपने पास ले आ! और अगर तू इतना ही बुजदिल है की अपने प्यार को ऐसे छोड़ देगा तो धिक्कार है तुझ पर! मर जाना चाहिए तुझे!!! मन ने ये suicidal ख्याल पैदा करना शुरू कर दिए थे| ऋतू को अपने पास ला सकूँ ये मेरे लिए नामुमकिन था और मरना बहुत आसान था! तभी नजर कमरे में घूम रहे पंखे पर गई.....
Reply
07-14-2020, 01:00 PM,
#70
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 61

पर जान देना इतना आसान नहीं होता...वरना कितने ही दिल जले आशिक़ मौत की नींद सो चुके होते! मैं कुछ लड़खड़ाता हुआ उठा और रस्सी ढूँढने लगा, नशे में होने के कारन सामने पड़ी हुई रस्सी भी नजर नहीं आ रही थी| जब आई तो उसे उठाया और फिर पंखे की तरफ फेंकी और फंदा बना कर पलंग पर चढ़ गया| गले में डालने ही वाला था की दिमाग ने आवाज दी; "अबे बुज़दिल! ऐसे मरेगा? दुनिया क्या कहेगी? मरना है तो ऐसे मर की रितिका की रूह तुझे देख-देख कर तड़पे!" ये बात दिल को लग गई और मैं बिस्तर से नीचे उतरा और वापस जमीन पर बैठ गया| समानेभरी सिगरेट भरी पड़ी थी, वो उठाई और पीने लगा| घडी में 12 बजे थे और नशे ने मुझे दर्द के आगोश से खींच कर अपने सीने से चिपका लिया था और मैं चैन की नींद सो गया| सुबह दीदी के आने के बाद आँख खुली और मैं आँख मलता हुआ बाथरूम में घुस गया, जब बाहर आया तो दीदी घर से चाय ले आईं थी| मैंने उन्हें Thank you कहा और उनसे कहा की वो मेरी मदद करें ताकि मैं कुछ घर का समान खरीद सकूँ| पुराना समान तो मैं पुराने वाले घर में छोड़ आया था| दीदी की मदद से ऑनलाइन कुछ बर्तन मँगाए और कुछ कपडे अपने लिए मंगाए| दीदी उठ कर कमरे में सफाई करने गईं तो उन्हें वहाँ पंखे से लटकी रस्सी दिखाई दी और वो चीखती हुईं बाहर आईं|

"आप खुदखुशी करने जा रहे थे साहब?" दीदी ने हैरानी से पुछा, तो मैंने बस ना में सर हिला दिया| "तो फिर ये रस्सी अंदर पंखे से झूला झूलने को लटकाई थी?!" दीदी ने थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा, पर मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं चुप रहा|

"क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद करने पर तुले हो?" दीदी ने खड़े-खड़े मुझे अपनापन दिखाते हुए कहा| मैं उस समय फर्श पर दिवार का सहारा ले कर बैठा था और वहीँ से बैठे-बैठे मैंने दीदी की आँखों में देखा और उनसे पुछा; "आपने कभी प्यार किया है?"

"जिससे शादी की उसी से प्यार करना सीख लिया|" दीदी ने बड़ी हलीमी से जवाब दिया, उनका जवाब सुन कर एहसास हुआ की मजबूरी में इंसान हालात से समझौता कर ही लेता है|

"फिर आप मेरा दुःख नहीं समझ सकते!" मैंने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा|

"शराब पीने से ये दर्द कम होता है?" दीदी ने पुछा|

"कम तो नहीं होता पर उस दर्द को झेलने की ताक़त मिलती है और चैन से सो जाता हूँ!"

"कल आपका दोस्त कुछ कह रहा था ना की आप........." इसके आगे उनकी बोलने की हिम्मत नहीं हुई और उन्होंने अपना सर झुकाया और अपने सीन पर से साडी का पल्लू खींच कर नीचे गिरा दिया| उनका मतलब कल रात सिद्धार्थ की कही हुई बात की कोई लड़की पेल दे से था| इधर मेरी नजर जैसे ही उनके स्तनों पर पड़ी मैं तुरंत बोला:

"प्लीज ऐसा मत करो दीदी! मैं आपको सिर्फ जुबान से दीदी नहीं बोलता!" इतना सुनते ही दीदी जमीन पर घुटनों के बल बैठ गईं और अपना चेहरा अपने हाथों में छुपा लिया और रोने लगी| मैं अब भी अपनी जगह से हिला नहीं था, मेरा उन्हें सांत्वना देना और छूना मुझे ठीक नहीं लग रहा था| "साहब....." वो आगे कुछ बोलतीं उससे पहले ही मैं बात काटते हुए बोला; "दीदी आपसे छोटा हूँ कम से कम 'भैय्या' ही बोल दो!" ये सुन कर वो मेरी तरफ आँखों में आँसू लिए देखने लगी और अपनी बात पूरी की; "भैय्या.... मैंने आज तक ऐसा कुछ नहीं किया! पर आप से मिलने के बाद कुछ अपनापन महसूस हुआ और आपकी ये हालत मुझसे देखि नहीं गई इसलिए मैंने....." आगे वो शर्म के मारे कुछ नहीं बोलीं|

"दीदी प्लीज कभी किसी के भी मोह में आ कर फिर कभी अपनी इज्जत को यूँ न गिरा देना! मेरा दोस्त तो पागल है!" आगे मेरा कुछ कहने का मन नहीं हुआ क्योंकि उससे दीदी और शर्मिंदा हो जातीं| मैं तैयार हुआ और तब तक दीदी ने पूरा घर साफ़ कर दिया था और वो मेरे कल के बिखेरे हुए कपडे संभाल रहीं थी|

"दीदी वो...बर्तन तो कल आएंगे ... आप कल से खाना बना देना!" इतना कह कर मैं ने अपना बैग उठाया, दीदी समझ गईं की मेरे जाने का समय है तो वो पहले निकलीं और मैं बाद में निकल गया| वो पूरा दिन ऐसे ही बीता और रात को 10 बजे मैं घर पहुँचा| फिर वही पेग बनाया और बालकनी में बैठ गया| पर आज Suicidal Tendencies पैदा नहीं हुईं क्योंकि दिमाग में कुछ और ही चल रहा था और जबतक सो नहीं गया तब तक पीता रहा| सुबह वही दीदी के आने के बाद उठा, वो आज भी मेरे लिए चाय ले आईं थी| चाय पीता हुआ मैं अभी भी सर झुकाये बैठा था, दीदी भी चुप-चाप अपना काम कर रही थीं| बात शुरू करते हुए मैंने पुछा; "दीदी आपके घर में कौन-कौन हैं?"

"मैं, मेरा पति और एक मुन्ना|" दीदी ने बड़ा संक्षेप में जवाब दिया, वो अब भी कल के वाक्या के लिए शर्मिंदा थीं|

"कितने साल का है मुन्ना?" मैंने बात को आगे बढ़ाने के लिए पुछा|

"साल भर का|" दीदी के जवाब से लगा की शायद वो और बात नहीं करना चाहतीं, इसलिए मैंने उठ खड़ा हुआ और बाथरूम जाने लगा| तभी दीदी को पता नहीं क्या सूझी वो आ कर मेरे गले लग गईं और बिफर पड़ीं; "भैया ....मुझे .... गलत ......न समझना|" उन्होंने रोते-रोते कहा| मैंने उन्हें अपने सीने से अलग किया और उनके आँसू पोछते हुए कहा; "दीदी मैं आपके जज्बात महसूस कर सकता हूँ और मैं आपके बारे में कुछ भी बुरा नहीं सोच रहा| जो हुआ उससे पता चला की आपका मेरे लिए कितना मोह है| अब भूल भी जाओ ये सब. जिंदगी इतनी बड़ी नहीं होती की इतनी छोटी-छोटी बातों को दिल से लगा कर रखो|" मेरी बात सुन कर उन्हें इत्मीनान हुआ और वो थोड़ा मुस्कुराईं और मैं बाथरूम में फ्रेश होने चला गया| मेरे रेडी होने तक उनका काम खत्म हो चूका था, मेरे बाहर आते ही वो बोल पड़ीं; "भैया आप सुबह पूछ रहे थे ना की मेरे बारे में पूछ रहे थे, मेरे पति सेठ जी के यहीं पर ड्राइवर हैं, माता-पिता की मृत्यु मेरे बचपन में ही हो गई थी| फिर मैं यहाँ अपनी मौसी के पास आ गई और उनके साथ रह कर मैंने घर-घर काम करना शुरू किया| दो साल पहले मेरी शादी हुई और शादी के बाद मेरे पति दुबई निकल गए पर कुछ ही महीनों में उनकी नौकरी चली गई| मौसी की जानकारी निकाल कर यहाँ नौकरी मिली और सेठ जी ने भी मुझे पूरी सोसाइटी का काम दे दिया| अब यहाँ के सारे घरों का काम मेरे जिम्मे है|" दीदी ने बड़े गर्व से कहा|

"सारी सोसाइटी का काम आप अकेली कर लेती हो?" मैंने मुस्कुराते हुए पुछा|

"यहाँ 20 फ्लैट हैं और अभी बस 10 में ही लोग रहते हैं| एक आपको छोड़ कर सब शादी-शुदा हैं और वहाँ पर सिर्फ झाडू-पोछा या कपडे धोने का ही काम होता है|"

"आप तो यहाँ सारा दिन होते होंगे ना? तो मुन्ना का ख्याल कौन रखता है?"

"भैया मैं तो यही रहती हूँ पीछे सेठ जी ने क्वार्टर बना रखे हैं| दिन में 20 चक्कर लगाती हूँ घर के ताकि देख सकूँ की मुन्ना क्या कर रहा है? कभी-कभी उसे भी साथ ले जाती हूँ|"

"तो मुझे भी मिलवाओ छोटे साहब से!" मैंने हँसते हुए कहा|

"संडे को ले आऊँगी|" उन्होंने हँसते हुए कहा|

उसके बाद दीदी निकल गईं और मैं भी अपने काम पर चला गया| शाम का वही पीना और नशे से चूर सो जाना| ऐसे करते-करते संडे आ गया और आज मैं तो जैसे उस नन्हे से दोस्त से मिलने को तैयार था| सुबह जल्दी उठा और तैयार हो कर बैठ गया, शराब की सारी बोत्तलें एक तरफ छुपा दीं| दीदी आईं तो दरवाजा खुला हुआ था और वो मुझे तैयार देख कर हैरान हो गईं| उनकी गोद में मुन्ना था जो बड़ी हैरानी से मुझे देख रहा था| "मुन्ना ...देखो तेरे मामा|" दीदी ने हँसते हुए कहा|

पर वो बच्चा पता नहीं क्यों मुझे टकटकी बांधे देख रहा था, जैसे की अपने नन्हे से दिमाग में आंकलन कर रहा हो और जब उसे लगा की हाँ ये 'दाढ़ी वाला' आदमी सही है तो वो मेरी तरफ आने को अपने दोनों पँख खोल दिए| मैंने उस बच्चे को जैसे ही गोद में लिया वो सीधा मेरे सीने से लग गया| जिस सीने में नफरत की बर्फ जम गई थी वो आज इस बच्चे के प्यार से पिघलने लगी थी| मेरी आँखें अपने आप ही बंद होती गईं और मैं रितिका के प्यार को भूल सा गया.... या ये कहे की उस बच्चे ने अपने बदन की गर्मी से रितिका के लिए प्यार को कहीं दबा दिया था| उसका सर मेरे बाएँ कंधे पर था और वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से जैसे मुझे जकड़ना चाहता था| उसकी तेज चलती सांसें ...वो फूल जैसी खुशबु.... उनके नन्हे-नन्हे हाथों का स्पर्श.... उस छोटे से 'पाक़' दिल की धड़कन... वो फ़रिश्ते सी आभा.... इन सब ने मेरे मन में जीने की एक ख्वाइश पैदा कर दी थी| मन इतना खुश कभी नहीं हुआ था, की आज मुझे अपने अंदर एक नई ऊर्जा महसूस होने लगी थी| मन ने जैसे एक छोटी सी दुनिया बना ली थी जिसमें बस मैं और वो बच्चा था|

इस बात से बेखबर की दीदी मुस्कुराती हुई मुझे अपने बच्चे को सीने से लगाए देख रही हैं| मुझे होश तब आया जब उस बच्चे ने 'डा...डा..डा' कहना शुरू किया| मैंने आँखें खोलीं और दीदी को मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए पाया| मैंने उसे नीचे उतारा तो वो अपने चरों हाथों-पैरों पर रेंगता हुआ बालकनी की तरफ जाने लगा| "भैया सच्ची तुम मुन्ना के साथ कितने खुश थे! ऐसे ही खुश रहा करो!"

"तो फिर आप रोज मुन्ना को यहाँ ले आया करो|" मैंने मुस्कुराते हुए कहा और फिर मुन्ना के पीछे बालकनी की तरफ चल दिया| वो बालकनी के शीशे के सहारे खड़ा हुआ और नीचे देखने लगा| उसके चेहरे की ख़ुशी ब्यान करने लायक थी, उस नन्ही से जान को किसी बात की कोई चिंता नहीं थी, वो तो बस अपनी मस्ती में मस्त था! कितना बेबाक होता है ना बचपन! दीदी काम करने में व्यस्त हो गईं और मैं मुन्ना के साथ खेलने लगा| कभी वो रेंगता हुआ इधर-उधर भागता... कभी हम दोनों ही सर से सर भिड़ा कर एक दूसरे को पीछे धकेलने की कोशिश करते, में जानबूझ कर गिर जाता और वो आ कर मेरे ऊपर चढ़ने की कोशिश करता| मैं उसे उठा कर अपने सीने पर बिठा लेता और उसके नन्हे-नन्हे हाथों से खुद को मुके पढ़वाता| कभी उसे गोद में ले कर पूरे कमरे में दौड़ता तो कभी उसे अपनी पीठ पर बिठा के उसे घोड़े की सवारी कराता| पूरा घर मुन्ना की किलकारियों से गूँज रहा था और आज इस घर में जैसे जानआ गई हो, छत-दीवारें सब खुश थे! काम खत्म कर दीदी मुन्ना को मेरे पास ही छोड़ कर चली गईं, फिर कुछ देर बाद आईं और तब तक दोपहर के खाने का समय हो गया था| उसे उन्होंने दूध पिलाया और मेरे लिए गर्म-गर्म रोटियाँ सेंकीं जो मैंने बड़े चाव से खाईं! आज तो खाने में ज्यादा स्वाद आ रहा था इसलिए मैं दो रोटी ज्यादा खा गया| मेरे खाने के बाद दीदी ने भी खाना खाया और वो काम करने चलीं गई| मुन्ना सो गया था तो मैं उसकी बगल ही लेट गया और उसे बड़ी हसरतें लिए देखने लगा और फिर से अपने छोटी सी ख़्वाबों की दुनिया में खो गया| मुन्ना के चेहरे पर कोई शिकन कोई चिंता नहीं थी, उसके वो पाक़ चेहरा मुझे सम्मोहित कर रहा था| कुछ घंटों बाद मुन्ना उठा तो मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उसे गोद में लिया और फिर पूरे घर में घूमने लगा| उसने बालकनी में जाने का इशारा किया तो मैं उसे ले कर बालकनी में खड़ा हो गया और वो फिर से सब कुछ देख कर बोलने लगा| अब उसके मुँह से शब्द नहीं निकल रहे थे पर मेरा मन उसकी आवाजों को ही शब्दों का रूप देने लगा| मैंने भी उससे बात करना शुरू कर दिया जैसे की सच में मैं उसकी बात समझ पा रहा हूँ| घर का दरवाजा खुला ही था और जब दीदी ने मुझे पीछे से मुन्ना से बात करते हुए देखा तो वो बोलीं; "सारी बातें मामा से कर लेगा? कुछ कल के लिए भी छोड़ दे?" मैं उनकी तरफ घूमा और हँसने लगा| मैं समझ गया था की वो मुन्ना को लेने आईं है पर मन मुन्ना से चिपक गया था और उसे जाने नहीं देना चाहता था| बेमन से मैंने उन्हें मुन्ना की तरफ बढ़ाया पर वो तो फिर से मेरे सीने से चिपक गया| मैंने उसके माथे को चूमा और तुतलाते हुए उससे कहा; "बेटा देखो मम्मी आई हैं! अभी आप घर जाओ हम कल सुबह मिलेंगे!" पर उसका मन मुझसे अलग होने को नहीं था, ये देख दीदी भी मुस्कुरा दीं और बोलीं; "भैया सच ये आपसे बहुत घुल-मिल गया है| वरना ये किसी के पास जयदा देर नहीं ठहरता, मुझे देखते ही मेरे पास भाग आता है|" तभी उनका पति भी आ गया और उसने दीदी की बातें सुन भी लीं| अरे चल भी साहब को क्यों तंग कर रही है!" दीदी उसकी आवाज सुन चौंक गईं और मेरे हाथ से जबरदस्ती मुन्ना को लिया और घर चली गईं|

अब मैं फिर से घर में अकेला हो गया था, पर मन आज की खुशियों से खुश था इसलिए आज मैंने नहीं पीने का निर्णय लिया और खाना खा कर लेट गया| पर नींद आँखों से गायब थी, गला सूखने लगा और मन की बेचैनी बढ़ने लगी| मैंने करवटें लेना शुरू किया ताकि सो सकूँ पर नींद कम्भख्त आई ही नहीं| कलेजे में जलन महसूस होने लगी जो दारू ही बुझा सकती थी| मैं एक दम से खड़ा हुआ और दारु की बोतल निकाली और उसे अपने होठों से लगा कर पीने लगा| पलंग पर पीठ टिका कर धीरे-धीरे सारी बोतल पी गया और तब जा कर नींद आई| एक बात अच्छी हुई थी, वो ये की मुन्ना के प्यार ने मुझे उस दर्द की जेल से बाहर निकाल लिया था| सुबह जल्दी ही आँख खुल गई, शायद मन में मुन्ना से मिलने की बेताबी थी! मैं फ्रेश हो कर कपडे बदल कर बैठ गया की तभी बैल बजी| मैंने दरवाजा खोला और मुझे देखते ही मुन्ना मेरी बाहों में आने को मचलने लगा| उसे गोद में लेते ही जैसी बरसों पुराणी प्यास बुझ गई और मैं उसे ले कर ख़ुशी-ख़ुशी बालकनी में आ गया और वहाँ कुर्सी पर बैठ उससे फिर से बातें करने लगा| फिर मैंने अपना फ़ोन उठाया और मुन्ना को कुछ कपडे दिखाने लगा और उससे 'नादानी' में पूछने लगा की उसे कौन सी ड्रेस पसंद है? अब वो बच्चा क्या जाने, वो तो बस फ़ोन से ही खेलने लगा| वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से फ़ोन को पकड़ने लगा| आखिर मैंने उसके लिए एक छोटा सा सूट आर्डर किया और Early Delivery select कर मैंने उसे अगले दिन ही मँगवा लिया| दीदी को इस बारे में कुछ पता नहीं था, इधर अरुण का फ़ोन आया और वो पूछने लगा की मैं कब आ रहा हूँ? अब मन मारते हुए मुझे ओफिस जाना पड़ा और मुझे जाते देख मुन्ना रोने लगा| दीदी ने उसे बड़े दुलार से चुप कराया और मैं उसके माथे को चूम कर ऑफिस निकला| मेरी ख़ुशी मेरे चेहरे से झलक रही थी जिसे देख मेरा दोस्त अरुण खुश था| सर दोपहर को ही निकल गए थे और मैं शाम को जल्दी भाग आया, सोसाइटी के गेट पर ही मुझे दीदी और मुन्ना मिल गए और मुझे देखते ही वो मेरी गोद में आने को छटपटाने लगा| दीदी ने हँसते हुए उसे मुझे दिया और खुद बजार चली गईं, इधर मैं गार्ड से कल का आर्डर किया हुआ पार्सल ले कर घर आ गया| मैंने मुन्ना को खुद वो कपडे पहनाये जो उसे बिलकुल परफेक्ट फिट आये, कहीं उसे नजर न लग जाए इसलिए मैंने उसे एक काला टीका लगाया| ये कला टीका मैंने तवे के पेंदे से कालक निकाल कर लगाया था| फिर उसे गोद में लिए हुए मैंने बहुत सारी फोटो खींची| कुछ देर बाद जब दीदी आईं तो अपने बच्चे को इन कपड़ों में देख उनकी आँखें नम हो गईं| उन्होंने अपनी आँख से काजल निकल कर उसे टिका लगाना चाहा तो देखा की मैं पहले ही उसे टिका लगा चूका था| "भैया ये टिका तुमने कैसे लगाया?" उन्होंने अपने आँसू पोछते हुए पुछा| "दीदी मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरी ही नजर न लग जाए मुन्ना को तो मैंने तवे के पेंदे से कालक निकाल कर ये छोटा सा टिका लगा दिया|" मैंने जब ये कहा तो दीदी हँस दी|

"पर भैया ये तो बहुत महँगा होगा?"

"मेरे भांजे से तो महँगा नहीं ना?!" फिर मैं मुन्ना को ले कर बालकनी में बैठ गया| रात होने तक मुन्ना मेरे साथ ही रहा, फिर दीदी उसे लेने आईं और मुन्ना फिर से नहीं जाने की जिद्द करने लगा| पर इस बार मैंने उसे बहुत प्यार से दुलार किया और उसे दीदी के हाथों में दे दिया| दीदी जाने लगी तो मैं हाथ हिला कर उसे बाय-बाय करने लगा और वो भी मुझे देख कर पाने नन्हे हाथ हिला कर बाय करने लगा| खाना खा कर लेता पर शराब ने मुझे सोने नहीं दिया, अब तो मेरे लिए ये आफत बन गई थी! मैंने सोच लिया की धीरे-धीरे इसे छोड़ दूँगा क्योंकि अब मेरे पास मुन्ना का प्यार था| पर उन दिनों मेरी किस्मत मुझसे बहुत खफा थी, क्यों ये मैं नहीं जानता पर मुझे लगने लगा था की जैसे वो ये चाहती ही नहीं की मैं खुश रहूँ! अगली सुबह मैं फटाफट उठा और फ्रेश हो कर दरवाजे पर नजरे टिकाये मुन्ना के आने का इंतजार करने लगा| आमतौर पर दीदी 7 बजे आ जाये करती थीं और अभी 9 बजने को आये थे उनका कोई अता-पता ही नहीं था| मन बेचैन हुआ और मैं उन्हें ढूँढता हुआ नीचे आया तो देखा की वहाँ पुलिस खड़ी है, गार्ड से पुछा तो उसने बताया की आज सुबह दीदी का पति उन्हें और मुन्ना को ले कर भाग गया| उसने रात को सेठजी के पैसे चुराए थे और उन्ही ने पुलिस बुलाई थी|

मुझे सेठ के पैसों से कोई सरोकार नहीं था मुझे तो मुन्ना के जाने का दुःख था! भारी मन से मैं ऊपर आया और दरवाजा जोर से बंद किया| शराब की बोतल निकाली और उसे मुँह से लगा कर गटागट पीने लगा| एक साँस में दारु खींचने के बाद मैंने बोतल खेंच कर जमीन पर मारी और वो चकना चूर हो गई, कांच सारे घर में फ़ैल गया था! मैं बहुत जोर से चिल्लाया; "आआआआआआआआआआआआआ!!" और फिर घुटनों के बल बैठ कर रोने लगा| "क्या दुश्मनी है तेरी मुझसे? मैंने कौन सा सोना-चांदी माँगा था तुझसे? तुने 'ऋतू' को मुझसे छीन लिया मैंने तुझे कुछ नहीं कहा, पर वो छोटा सा बच्चा जिससे प्यार करने लगा था उसे भी तूने मुझसे छीन लिया? जरा सी भी दया नहीं आई तेरे मन में? क्या पाप किया है मैंने जिसकी सजा तू मुझे दे रहा है? सच्चा प्यार किया था मैंने!!!! कम से कम उस बच्चे को तो मेरे जीवन में रहने दिया होता! दो दिन की ख़ुशी दे कर छीन ली, इससे अच्छा देता ही ना!" मैं गुस्से में फ़रियाद करने लगा|
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