Hindi Antarvasna - काला इश्क़
07-14-2020, 01:08 PM,
#81
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 70 (2)

सीने में जितनी भी जलन थी, अगन थी वो सब ठंडी हो रही थी! आँख बंद किये मैं उस आनंद के सागर में डूब गया..... मेरे सीने की तपन पा कर वो बची भी जैसे मुझ में अपने पापा को ढूँढ रही थी| मैंने उसे अपने सीने से अलग किया और उसके मस्तक को चूमा| अपने दाहिने हाथ से उसके गाल को सहलाया! आँखें जैसे प्यासी हो चली थीं और उसके मासूम चहरे से हटती ही नहीं थी| आज मैं खुद को दुनिया का सबसे खुशकिस्मत इंसान समझ रहा था! मेरा जीवन जैसे पूरा हो चूका था! आज तक सीने में बीएस एक आशिक़ का दिल धड़कता था पर आज से एक बाप का दिल धड़कने लगा था| मैंने एक बार फिर से उसके माथे को चूमा, दिवार का सहारा ले कर मैं बैठा और अपने ऊपर चादर दाल ली और वो चादर मैंने मेरी बेटी के इर्द-गिर्द लपेटी| कुछ इस तरह से की उसे गर्माहट मिले पर सांस भी पूरा आये| नेहा की छोटी सी प्यारी सी नाक... उसके छोटे-छोटे होंठ.... गुलाब जामुन से गुलाबी गाल... तेजोमई मस्तक.... उसके छोटे-छोटे हाथ .... मैं मंत्र मुग्ध सा उसे देखता ही रहा| धौंकनी सी चलती उसकी सांसें जैसे मेरा नाम ले रही थी.... उसके छोटे-छोटे पाँव जिनमें एक छोटी सी जुराब थी| वो पूरी रात मैं बस नेहा को निहारता रहा और एक पल के लिए भी अपनी आँखें नहीं झपकाईं! सुबह कब हुई पता नहीं, कौन आया और कौन गया मुझे जैसे कोई फर्क ही नहीं पद रहा था| आँखें बस उसी पर टिकी थीं और मैं उम्मीद करने लगा था की वो अभी अपने छोटे से मुँह से 'पापा' कहेगी! सुबह जब उसकी आँख खुली तो उसने मुझे देखा और मुझे ऐसा लगा जैसे की वो मुस्कुराई हो| मैंने उसके माथे को चूमा और उसने अपने नन्हे-नन्हे हाथ ऊपर उठा दिए| मैंने जब उन्हें पकड़ा तो उसने एक दम से मेरी ऊँगली पकड़ ली| "मेरा बच्चा उठ गया?" मैंने उसकी मोतियों जैसी आँखों में देखते हुए कहा| "मैं आपका पापा हूँ!" मैंने कहा और उसके गाल को हुमा और वो मुस्कुराने लगी| मैं उठा क्योंकि मन ने कहा की उसे दूध चाहिए होगा और नीचे आया| मेरी गोद में नेहा को देख ताई जी बोलीं; "मिल लिए?" तभी रितिका सामने आई और उसके चेहरे पर एक मुस्कान थी| ये मुस्कान इसलिए थी की मैं आज अपनी बेटी को पा कर बहुत खुश था| "जानता था तू नेहा की वजह से रितिका को माफ़ कर देगा!" ताऊ जी बोले| "माँ-बाप के किये की सजा बच्चों को कभी नहीं देते और फिर ये तो मेरी बेटी है, मैं भला इससे गुस्सा कैसे हो सकता हूँ|" मैंने नेहा का कमाता चूमते हुए कहा| उस पल एक बाप बोल रहा था और उसे कुछ फर्क नहीं पद रहा था की कोई क्या सोचेगा| अगर उस समय कोई मुझसे सच पूछता तो भी मैं सब सच बोल देते! मेरे मुँह से 'मेरी बेटी' सुन कर रितिका फिर से मुस्कुरा दी, वो सोच रही थी की मैंने उसे माफ़ कर दिया है| पर मेरा दिल उसके लिए अब पत्थर का बन चूका था! उसने मेरे हाथ से नेहा को लिया और युपर उसे दूध पिलाने चली गई| मैं इधर अपनी माँ के पास आया और उनका हाल-चाल पुछा| चाय पी और मेरा दिल फिर से नेहा के लिए बेकरार हो गया मैं उसे ढ़ुडंछ्ता हुआ ऊपर पहुँचा| रितिका ने उसे दूध पिलाना बंद किया था और वो अपने ब्लाउज का हुक बंद कर रही थी| मैं वहाँ रुका नहीं और छत पर चला गया| वो मेरे पीछे-पीछे नेहा को गोद में ले कर आई और फिर मेरी तरफ बढ़ाते हुए बोली; "आपकी लाड़ली!" मैंने उसकी तरफ देखा भी नहीं और मुस्कुराते हुए नेहा को अपनी जो में उठा लिया| मैं नेहा की पीठ सहलाते हुए छत पर घूमने लगा| फिर अचानक से मुझे याद आया की अनु को कॉल कर के खुशखबरी दे दूँ| मैंने तुरंत उसे कॉल मिलाया और कहा की जल्दी से वीडियो कॉल पर आओ| मैं छत पर पैरापिट वॉल से पीठ लगा कर नीचे बैठा| मेरी दोनों टांगें जुडी थीं और नेहा उसी का सहारा ले कर बैठी थी, इतने में अनु का वीडियो कॉल आ गया; "आपको पता है आज है ना, मैं हैं ना, आपको है ना एक प्याली-प्याली, गोलू-गोलू princess से मिलवाना है!" मैंने तुतलाते हुए कहा| मेरी ऐसी भाषा सुन कर अनु हँसने लगी और बोली; "अच्छा जी? मुझे भी मिलवाओ ना!" मैंने फ़ोन साइड में रखा और नेहा को अपने सीने से लगा कर बिठाया और फिर फ़ोन दुबारा उठाया| नेहा को देखते ही अनु बोल पड़ी; "ये प्यालि-पयाली छोटी सी गुड़िया कौन है?" नेहा भी फ़ोन देख कर मुस्कुराने लगी| "मेरी बेटी नेहा!" मैंने गर्व से कहा| ये सुन कर अनु को एक झटका लगा पर उसने ये बात जाहिर नहीं की और मुस्कुराते हुए कहा; "छो छवींट!" मैंने नेहा के सर को चूमा और तभी अनु ने पुछा; "माँ कैसी हैं अब?"

"कल IV चढ़ाया था और दवाइयाँ दी हैं| कल सब कह रहे थे की शादी कर ले, तो मैंने कहा की माँ की तबियत ठीक हो जाये फिर| वैसे मैंने सब को तुम्हारे बारे में थोड़ा-थोड़ा बता दिया है|"

"क्या-क्या बताया?" अनु ने उत्सुकता से पुछा|

"यही की तुम ने मुझे मरने से बचाया और फिर मुझे अपने बिज़नेस में भी पार्टनर बनाया, बस तुम्हारा नाम नहीं बताया!" मैंने कहा|

"हाय! कितना wait करना होगा!" अनु ने साँस छोड़ते हुए कहा|

"यार जैसे ही माँ ठीक हो जाएंगी मैं उन्हें सब कुछ बता दूँगा| तब तक मैं तुम्हारा परिचय मेरी बेटी से करा देता हूँ| बेटा (नेहा) ये देखो ...मैं है ना... इनसे है ना... शादी करने वाला हूँ! फिर ये है ना आपकी मम्मी होंगी!" मैंने तुतलाते हुए कहा| पर मेरी ये बात शायद अनु को ठीक नहीं लगी|

"तुम बुरा न मानो तो एक बात पूछूँ?" अनु बोली| उसी आवाज में गंभीरता थी इसलिए मैंने पूरा ध्यान नेहा से हटा कर अनु पर लगाया और हाँ में सर हिलाया| "Are you sure!" अनु ने डरते हुए कहा| ये डर जायज था क्योंकि अगर किसी बाप से पूछा जाए की ये उसका बच्चा है तो गुस्सा आना लाज़मी है|

"हाँ ये मेरा ही खून है! तुम तो जानती ही हो की रितिका के कॉलेज के दिनों में हम बहुत नजदीक आ गए थे और रितिका की लापरवाही की वजह से उसके पीरियड्स मिस हो गए! तब मैं उसे डॉक्टर के ले गया था और उन्होंने कहा था की वो physically healthy नहीं है इसलिए उस टाइम कुछ भी नहीं हो सकता था| उन्होंने उसे कुछ दवाइयां दी थीं ताकि वो अपनी pregnancy को delay करती रहे! शादी के बाद रितिका ने वो गोलियाँ खानी बंद कर दी होंगी!" मैंने कहा| अनु को विश्वास हो गया की ये मेरा ही बच्चा है पर अब मेरे दिल में एक सवाल पैदा हो चूका था; "अगर तुम बुरा ना मनो तो मैं एक सवाल पूछूँ?" मैंने कहा पर अनु जान गई थी की मैं क्या पूछने वाला हूँ और वो तपाक से बोली; "हाँ... मैं इस प्यारी सी गुड़िया को अपनाऊँगी और अपनी बेटी की तरह ही प्यार करूंगी!" इस जवाब को सुन मेरे पास अब कोई सवाल नहीं था और मुझे मेरा परिवार पूरा होता दिख रहा था| "thank you!" मैंने नम आँखों से कहा|

"Thank you किस बात का? अगर तुम मेरी जगह होते तो मना कर देते?" अनु ने मुझे थोड़ा डाँटते हुए कहा| मैंने अपने कान पकड़े और दबे होठों से सॉरी कहा| "नेहा देख रहे हो अपने पापा को? पहले गलती करते हैं और फिर सॉरी कहते हैं? चलो नेहा को मेरी तरफ से एक बड़ी वाली Kissi दो!" अनु ने हुक्म सुनाते हुए कहा| मैंने तुरंत नेहा के दाएँ गाल को चूम लिया, नेहा एक दम से मुस्कुरा दी| उसकी मुस्कराहट देख कर हम दोनों का दिल एक दम से ठहर गया| "अब तो मुझे और भी जल्दी आना है ताकि मैं मेरी बेटी को खुद Kissi कर सकूँ!" अनु ने हँसते हुए कहा| तभी नीचे से मुझे पिताजी की आवाज आई और मैं bye बोल कर नेहा को गोद में लिए नीचे आ गया| नाश्ता तैयार था तो रितिका ने नेहा को गोद में लेने को हाथ आगे बढाए, पर मैंने उसे कुछ नहीं कहा और नेहा को गोद में ले कर माँ के कमरे में आ गया| मेरा और माँ का नाश्ता ले कर पिताजी कमरे में ही आ गए| "अच्छा बीटा अब तो नेहा को यहाँ लिटा दे और नाश्ता कर ले|" पिताजी बोले पर मेरे पास उनकी बात का तर्क मौजूद था| "आज माँ मुझे खिलाएँगी!" मैंने कहा तो माँ ने बड़े प्यार से मुझे परांठा खिलाना शुरू किया और मैंने नेहा के साथ खेलना जारी रखा| नाष्ते के बाद मैंने माँ को दवाई दी और फिर उन्हीं के बगल में बैठ गया, क्या मनोरम दृश्य था! एक साथ तीन पीढ़ी, माँ के बगल में उनका बेटा और बेटे की गोद में उसकी बेटी!

कुछ देर बाद रितिका आई और चेहरे पर मुस्कान लिए बोली; "नेहा को नहलाना है!" अब मुझे मजबूरन नेहा को रितिका की गोद में देना पड़ा पर मेरा दिल बेचैन हो गया था| नेहा से एक पल की भी जुदाई बर्दाश्त नहीं थी मुझे! माँ सो चुकी थी इसलिए मैं एक दम से उठा और ताऊ जी से कहा की मैं बजार जा रहा हूँ तू उन्होंने एक काम बता दिया| मैं पहले संकेत के घर पहुँचा और उससे चाभी माँगी और बजार पहुँचा| वहां मैंने माँ के लिए फल लिए और अपनी बेटी के लिए कुछ समान खरीदने लगा| गूगल से जो भी जानकारी ले पाया था वो सब खरीद लिया, दिआपेरस, बेबी पाउडर, बेबी आयल, बेबी वाइप्स, एक सॉफ्ट टॉवल, एक छोटा सा बाथ टब और बहुत ढूंढने के बाद हीलियम गैस वाले गुब्बारे! सब समान बाइक के पीछे बाँध कर मैं घर पहुँचा| समान मुझसे उठाया भी नहीं जा रहा था इसलिए माने भाभी को आवाज दी और वो ये सब देख कर हँस पड़ी| सारा समान ले कर हम अंदर आये, फल आदि तो भाभी ने रसोई में रख दिए और बाकी का समान ले कर मैं माँ वाले कमरे में आ गया| ये सारा समान देख सब हँस रहे थे की मैं क्यों इतना सामान ले आया| नेहा आंगन में चारपाई पर लेटी थी, मैंने सब समान छोड़ कर पहले गुब्बारे उसके नन्हे हाथों और पैरों से बाँध दिए| वो हवा में उड़ रहे थे और नेहा अपने हाथ-पैर हिला रही थी, ऐसा लगता था मानो ख़ुशी से हँसना छह रही हो! सारा घर ये देख कर खुश था और हँस रहा था| मैंने फ़ौरन एक वीडियो बनाई और अनु को भेज दी! उसने जवाब में; "Awwwwwwwwwwww" लिख कर भेजा, फिर अगले मैसेज में बोली; "मुझे भी आना है अभी!" उसका उतावलापन जायज था पर मैं मजबूर था क्योंकि घर वालों को अभी इतना बड़ा झटका नहीं देना चाहत था| माँ अकेली कमरे में थीं तो मैंने उन्हें उठा कर बिठाया और उन्हें भी कमरे के भीतर से ही ये नजारा दिखाया| उन्होंने तुरंत कहा; "जल्दी से बच्ची को टिका लगा, कहीं नजर ना लग जाए!" ताई जी ने फ़ौरन नेहा को टीका लगा दिया| पूरा घर नेहा की किलकारियों से भर चूका था और आज बरसों बाद जैसे खुशियाँ घर लौट आई हों! दोपहर खाने के बाद मैं नेहा को अपने सीने से सटाये था और माँ की बगल में लेटा था| कुछ देर बाद नेहा उठ गई क्योंकि उसने सुसु किया था| मैंने पहले बेबी वाइप्स से उसे साफ़ किया, पॉउडर लगाया और फिर उसे डायपर पहनाया| फिर रितिका का कमरे से दूसरे कपडे निकाल कर पहनाया, रितिका हाथ बाँधे मुझे ऐसा करते हुए बस देखती रही और मुस्कुराती रही, पर मेरा ध्यान सिर्फ नेहा पर था| जब नेहा को भूख लगी तो मजबूररन मुझे उसे रितिका के हवाले करना पड़ा, पर मेरा मन जानता है की उस टाइम मुझे कितना बुरा लग रहा था| तभी अनु का फ़ोन आया और उसने मुझे किसी से बात करने को कहा| मैं अपना फ़ोन ले कर आंगन में बैठ गया और पार्टी से बात कर रहा था, सारी बात अंग्रेजी में हो रही थी और मुझे ये नहीं पता था की घर के सारे लोग मुझे ही देख रहे हैं| जब मेरी बात खत्म हुई तब मैंने देखा की सब मुझे ही देख रहे हैं और गर्व महसूस कर रहे हैं|

रात को रितिका ने दूध पिला कर नेहा को मुझे दे दिया, मैंने नेहा को फिर से अपनी छाती से चिपकाया और लेट गया| अपने ऊपर मैंने एक चादर डाल ली ताकि नेहा को सर्दी ना लगे| नींद तो आने से रही और ऐसा ही हाल अनु का भी था| उसने मुझे एक miss call मारी और मैंने तुरंत कॉल बैक किया और उससे बात करने लगा| जब से हमारी शादी की तारिख तय हुई थी हम दोनों रात को एक दूसरे के पहलु में ही सोते थे और अब तो ऐसी हालत थी की उसे मेरे बिना और मुझे उसके बिना नींद ही नहीं आती थी| देर रात तक हम बस ऐसे ही खुसर-फुसर करते हुए बातें करते रहे| अनु तकिये को अपने से दबा कर सो गई और मैंने अपनी बेटी नेहा को खुद से चिपका लिया और उसके प्यारे एहसास ने मुझे सुला दिया| सुबह 6 बजे ताई जी ने मेरे सर पर हाथ फेरा तब मैं उठा और उनके पाँव छुए! फिर सब के साथ चाय पी और नहाने का समय हुआ तो रितिका फिर से नेहा को लेने आ गई पर मैंने उसकी तरफ देखे बिना ही "नहीं" कहा और राजसी में पानी गर्म करने रख दिया| नेहा अब तक उठ गई और अब उसे शायद मेरी आदत हो गई थी इसलिए उसकी किलकारियाँ शुरू हो गईं| पानी गर्म करके मैंने उसे नेहा के लिए लाये हुए टब में डाला और फिर उसमें ठंडा पानी डाला और जब वो हल्का गुनगुना हो गया तब मैंने नेहा को उसमें बिठाया| पानी बिलकियल कोसा था इसलिए उसे ठंड नहीं लगी पर पानी का एहसास पाते ही उसने हिलना शुरू कर दिया| ताऊ जी, ताई जी, पिताजी, भाभी और रितिका सब देखने लगे की मैं कैसे नेहा को नहलाता हूँ| मैंने धीरे-धीरे पानी से उसे नहलाया और साबुन लगा कर अच्छे से साफ़ किया| फिर उसे तौलिये से धीर-धीरे साफ किया, अच्छे से तेल की मालिश की और फिर उसे कपड़े पहनाये| मैंने ये भी नहीं ध्यान दिया की सब घरवाले मुझे ही देख रहे हैं और मुस्कुरा रहे हैं| अच्छे से तेल-पाउडर लगा कर नेहा एक सुन्दर गुड़िया की तरह तैयार थी! मैंने खुद उसके कान के पीछे टीका लगाया और उसके माथे को चूमा फिर उसे अपने सीने से लगा कर मैं पलटा तो देखा सब मुझे देख रहे हैं; "चाचा जी, मानु की बीवी बड़ी किस्मत वाली होगी! उसे कुछ नहीं करना पड़ेगा, सब काम तो मानु कर ही लेता है|" भाभी बोलीं और सब हँस पड़े, जो नहीं हँसा था वो थी रितिका क्योंकि उसे अब एहसास हुआ था की उसने किसे खो दिया! उस दिन से नेहा मुझसे एक पल को भी जुड़ा नहीं होती थी, दिन में बस उसे मुझसे दूर तब ही जाना पड़ता जब उसे भूख लगती और पेट भरने के बाद वो सीधा मेरे पास आती| हफ्ता बीत गया और मेरा नेहा के लिए प्यार दिनों-दिन बढ़ता जा रहा था| हम दोनों बाप-बेटी एक दूसरे के बिना नहीं रह पाते!

सोमवार को ताऊ जी ने कहा की आज चन्दर भैया को लाने जाना है तो मैं और वो साथ निकले| जब चन्दर से मिले तो वो काफी कमजोर होगया था और मुझे देखते ही वो मेरे गले लग गया| आज बरसों बाद मुझे उसके दिल में भाई वाला प्यार नजर आया, मैं बाहर आया और टैक्सी की और हम तीनों साथ घर लौटे| ताऊ जी आगे थे और मैं चन्दर के साथ उसका समान ले कर चल रहा था| जैसे ही मैं अंदर घुसा मैंने देखा की रितिका नेहा को डाँट रही है और उसे मारने के लिए उसने हाथ उठाया है, ये देखते ही मेरे जिस्म में आग लग गई और मैं जोर से चिल्लाया; "रितिका! तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी को मारने की!" मैंने उसे धक्का दिया और नेहा को अपने सीने से लगा लिया और उसके सर को चूमने लगा और इधर से उधर तेजी से चलने लगा ताकि वो रोना बंद कर दे| "ताई जी आप भी कुछ नहीं बोल रहे इसे?" मैंने ताई जी से शिकायत की!

"बेटा ये दूध पीने के बाद भी नहीं चुप हो रही थी, इसलिए रितिका को गुस्सा आ गया!" ताई जी बोलीं|

"इतनी छोटी बच्ची को कोई मारता है?" मैंने गुस्से से रितिका को झाड़ते हुए कहा, रितिका डरी सहमी सी अपने कमरे में चली गई और मैं नेहा की पीठ सहलाता हुआ आंगन में एक कोने से दूसरे कोने घूमता रहा| पर उसका रोना बंद नहीं हो रहा था, मुझे पता नहीं क्या सूझी मैंने गुनगुनाना शुरू कर दिया;

"कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे
क्यूँ तु बांधे, मन के मन से धागे
बस चले ना क्यूँ मेरा तेरे आगे
कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे
क्यूँ तु बांधे, मन के मन से धागे

ढूंढ ही लोगे मुझे तुम हर जगह
अब तो मुझको खबर है
हो गया हूँ तेरा
जब से मैं हवा में हूँ तेरा असर है
तेरे पास हूँ एहसास में, मैं याद में तेरी
तेरा ठिकाना बन गया अब सांस में मेरी

कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे
क्यूँ तु बांधे, मन के मन से धागे
बस चले ना क्यूँ मेरा तेरे आगे
कौन मेरा, मेरा क्या तु लागे
क्यूँ तु बांधे, मन के मन से धागे|"

इस गाने के एक-एक बोल को मैं महसूस कर पा रहा था, ऐसा लगा जैसे मैं अपने मन की बात को उस छोटी सी बच्ची से पूछ रहा हूँ! कुछ देर बाद नेहा मुझसे लिपट कर सो गई| एक बार फिर सब मुझे ही देख रहे थे; "बेटा तेरे जैसा प्यार करने वाला नहीं देखा!" ताऊ जी बोले|

"इतना प्यार तो मैंने तुझे नहीं किया!" पिताजी बोले|

"चाचा जी, सच में मानु नेहा से सबसे ज्यादा प्यार करता है|" भाभी बोली|

"भाभी सिर्फ प्यार नहीं बल्कि जान बस्ती है मेरी इसमें और आप में से कोई इसे कुछ नहीं कहेगा|" माने सब को प्यारसे चेतावनी दी| ये मेरी पैतृक वृत्‍ति (Paternal Instincts) थी जो अब सबके सामने आ रही थी| खेर चन्दर भैया का बड़ा स्वागत हुआ क्योंकि वो सच में एक जंग जीत कर आये थे| जब नेहा को भूख लगी तो मैंने भाभी से कहा की वो नेहा को रितिका के पास ले जाएँ; "तुम ही ले जाओ! जाके अपनी लाड़ली को भी मना लो तब से रोये जा रहे है!" उनका मतलब रितिका से था; "मेरी सिर्फ एक लाड़ली है और वो है मेरी बेटी नेहा!" इतना कहता हुआ मैं ऊपर आ आया और देखा रितिका फ्रेश पर उकड़ूँ हो कर बैठी है, उसका चेहरा उसके घटनों के बीच था और मुझे उसकी सिसकने की आवाज आ रही थी| मैंने उसके कमरे के दरवाजे पर खटखटाया तो उसने मेरी तरफ देखा, उसकी आँखें लाल थीं और वो जैसे मुझे कस कर गले लगाना चाहती थी| पर मेरा व्यवहार अभी भी उसके लिए नरम नहीं हुआ था, अब भी वही सख्ती थी जो मुझे उससे दूर खड़ा किये हुए थी| रितिका ने अपने आँसू पोछे और नेहा को प्यार से अपनी गोद में लिया और मैं छत पर चल दिया| बड़ी बेसब्री से मैं एक कोने से दूसरे कोने के चक्कर लगा रहा था और इंतजार कर रहा था की कब नेहा मेरे पास वापस आये| कुछ देर बाद रितिका नेहा को ले कर आई और मुस्कुराते हुए मुझे गोद में वापस दिया, वो पलट के जाने को हुई पर फिर कुछ सोचते हुए रुक गई| "आपने मुझे माफ़ कर दिया ना?" रितिका ने मेरी तरफ घूमते हुए पुछा| पर मैंने उसकी किसी बात का जवाब नहीं दिया और नीचे जाने लगा| रितिका ने एकदम से मेरी बाजू पकड़ी, "प्लीज जवाब तो दे दो?" उसने मिन्नत करते हुए कहा|

"किस बात की माफ़ी चाहिए तुझे? मेरा दिल तोड़ने की? या फिर नेहा पर हाथ उठाने की?" मैंने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा|

"दोनों की!" रितिका ने सर झुकाते हुए कहा|

"नहीं!" इतना कह कर मैं नीचे आ गया|
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07-14-2020, 01:08 PM,
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RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 71

अगले दिन की बात है, सुबह मैं अपनी बेटी के साथ माँ के पास बैठा था की ताऊ जी आये और मुझे एक काम सौंपा| "ताऊ जी मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊँ? अभी नेहा सोइ नहीं है, मैं नहीं हूँगा तो ये फिर से रोने लगेगी! इसे सुला कर चला जाता हूँ!" मैंने कहा तो ताऊ जी मुस्कुरा दिए और ठीक है कहा| कुछ देर बाद नेहा सो गई तो मैंने सोचा की मैं उसे रितिका को दे दूँ पर वो मुझे घर में कहीं नहीं मिली| मैंने नेहा को माँ की बगल में लिटाया और उन्हें बता कर ताऊ जी का कहा काम करने चल दिया| हमारे गाँव में एक कुँआ है जिसका लोग अब इस्तेमाल नहीं करते और ना ही वहाँ कोई आता-जाता है क्योंकि सब ने हैंडपंप लगवा लिया है| मैं उसी के पास से गुजर रहा था की मेरी नजर वहाँ एक लड़की पर पड़ी जो बड़ी तेजी से उसकी तरफ जा रही थी| साडी का रंग देख मुझे समझते देर ना लगी की ये रितिका ही है, मैं तुरंत उसके पीछे भागा| वो अंदर कूदने के लिए अपना एक पाँव बढ़ा चुकी थी की मैंने उसका हाथ पीछे से पकड़ा और जोर से पीछे जमीन पर गिरा दिया| "मरने का इतना शौक है तो किसी ऐसे कुँए में कूद जिसमें पानी हो! इसमें मुश्किल से 4 फुट पानी होगा और उसमें तू डूब के नहीं मारेगी! जान देने के लिए कलेजा चाहिए होता है, एक चाक़ू ले और अपनी कलाई पर vertically ऊपर की तरफ काट और गहरा काट! है हिम्मत?" मैंने रितिका पर चिल्लाते हुए कहा| "तुझे क्या लगता है तेरे जान देने से तेरे पाप कम हो जाएंगे?" मैंने उसे डाँटते हुए कहा|

"कम नहीं होंगे पर मुझसे आपकी ये बेरुखी नहीं देखि जाती!" रितिका ने रोते हुए कहा|

"मेरी ये बेरुखी कभी खत्म नहीं होगी! कम से कम मेरे जीते जी तो नहीं! और तुझे क्या पड़ी है मेरी बेरुखी की? अभी तेरा परिवार होता तो तुझे घंटा कोई फर्क नहीं पड़ता! ना ही कोई मुझे यहाँ बुलाता, तुझे क्या लगता है की मैं नहीं जानता की मुझे यहाँ क्यों बुलाया गया है? आखिर अचानक से कैसे सब के मन में मेरे लिए प्यार जाग गया| जहाँ कुछ महीनों पहले तक सब मेरे बिना त्यौहार मना रहे थे और मैं वहाँ सब को याद कर के मरा जा रहा था| जब दूसरों को उनके परिवार से मिलते देखता था तो टीस उठती थी मन में! बुरा लगता था की परिवार होते हुए भी मैं एक अनाथ की जिंदगी जी रहा था, मेरा मन मेरे परिवार से दूर नहीं रहना चाहता| अपना परिवार ...उसके प्यार के लिए स्वार्थी बन गया हूँ!" इतना कह कर मैं वहाँ से चल दिया| शाम को जब मैं वापस पहुँचा तो रितिका आंगन में सर झुकाये बैठी सब्जी काट रही थी| मैं माँ के पास पहुँचा और नेहा को अपनी छाती से लगा लिया और उसके माथे पर चुम्मियों की झड़ी लगा दी| "बड़ी मुस्किल से चुप हुई है!" माँ ने कहा| मैंने नेहा को गोदी में ऊपर उठाया, उसका मुँह मेरी तरफ था, मैं तुतलाती हुई जुबान में उससे बोला; "मेला बेटा दादी को तंग करता है! उनकी बात नहीं सुनता?" ये सुन कर नेहा की किलकारी गूंजने लगी|

मैंने उसे फिर से अपने सीने से लगाया और माँ के पास बैठ गया| माँ की तबियत में अब सुधार था पर अभी तक वो कमरे से बाहर नहीं आईं थी| कमजोरी अब भी थी, पर चूँकि मैं उनके पास रहता था और उन्हें समय पर दवाई देता था अपने हाथ से खाना खिलाता था इसलिए उनकी तबियत में अब सुधार था| रितिका जब घर आई तो मुझसे नजरें चुराती फिर रही थी, उसे डर था की कहीं मैं सबका ना बोल दूँ की वो खुदखुशी करने गई थी! खेर रात हुई और खाना खाने के बाद मैं और नेहा ऊपर मेरे कमरे में थे| नेहा को नींद नहीं आ रही थी, तो मैंने उसे अपनी जाँघों के सहारे बिठाया और उससे बात करने लगा| मुझे उस छोटी सी बच्ची से बात करना बहुत अच्छा लगता था? भले ही वो मेरी बात नहीं समझती थी पर जब वो किलकारियाँ मैं सुनता था तो दिल को एक अजीब सुकून मिलता था| रितिका का कमरा मेरे बगल में ही था तो वो चुप-चाप मेरी बातें सुना करती| जब काफी देर बात करने के बाद भी नेहा नहीं सोइ तो मैंने सोचा की उसे लोरी सूना दूँ|

"चंदनिया छुप जाना रे
छन भर को लुक जाना रे
निंदिया आँखों में आए
बिटिया मेरी मेरी सो जाए
हुम्म…निंदिया आँखों में आए
बिटिया मेरी मेरी सो जाए
लेके गोद में सुलाऊँ
गाउँ रात भर सुनाऊँ
लोरी लोरी लोरी लोरी लोरी...."

लोरी सुनते-सुनते ही मेरी बेटी नींद की आगोश में चली गई! मैंने खुद को कंबल से लपेट लिया ताकि मेरी बेटी ठंड से ना उठ जाए! सुबह हुई और धुप अच्छी थी, मैं नेहा को ले कर छत पर आ गया और पीठ टिका कर नीचे बैठ गया| नेहा अंगड़ाई लेते हुए उठी और मुझे अपने सामने देख कर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उसके माथे को चूम कर Good Morning कहा! तभी रितिका ऊपर आ गई, उसके हाथ में कपड़ों से भरी एक बाल्टी थी| रितिका कपड़े सुखाने के लिए डाल रही थी और मैं नेहा के साथ खेलने में व्यस्त था| "सॉरी कल जो भी मैं करने जा रही थी! पागल हो गई थी, दिमाग काम नहीं कर रहा था!" रितिका बोली पर मैंने उसका कोई जवाब नहीं दिया और नेहा को गोद में ले कर नीचे जाने लगा| तभी रितिका ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे रोक दिया! "इन कुछ दिनों में मैं सपने सजाने लगी थी, वो सपने जिसमें सिर्फ हम दोनों और नेहा थे! क्या हम दोनों फिर से एक नहीं हो सकते? प्यार तो आप अब भी मुझसे करते हो, तो क्या हम इस बार घर से नहीं भाग सकते?" आँखों में आँसू लिए रितिका बोली|

"प्यार और तुझसे? 'बेवकूफ' समझा है मुझे? एक बार 'गलती' कर चूका हूँ तुझ पर भरोसा करने की, दुबारा नहीं करने वाला! तब तुझे ऐशों-आराम की जिंदगी चाहिए थी, अब मुझे चैन की जिंदगी चाहिए!" इतना कह कर मैंने रितिका का हाथ जतक दिया और नीचे आने लगा|

"तो आप ही बोलो की आपकी माफ़ी पाने के लिए, भरोसा वापस पाने के लिए क्या करूँ?" रितिका ने चीखते हुए कहा| उसकी आवाज नीचे तक गई और आंगन में बैठी ताईजी और भाभी ने साफ़ सुन लिया| मैं भी चिल्लाते हुए बोला; "Just leave me alone!" मेरे चिल्लाने से नेहा रोने लगी तो मैं उसे प्यार से पुचकारने लगा और बिना किसी को कुछ बोले घर से निकल गया| कुछ दूर तक पहुँचते-पहुँचते नेहा चुप हो गई; "सॉरी बेटा मैं इतनी जोर से चिल्लाया, पर आपकी मम्मी जबरदस्ती मेरे नजदीक आना चाहती है और मैं उसे जरा भी पसंद नहीं करता|" नेहा बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखने लगी जैसे पूछ रही हो की क्या मैं उससे भी नफरत करता हूँ; "आप तो मेरी प्याली-प्याली राजकुमारी हो, आप में तो मेरी जान बस्ती है! मैं आपसे बहुत-बहुत प्याल करता हूँ!" ये सुन कर नेहा का चेहरा फिर से मुस्कुराने लगा| कुछ देर बाद मैं घर आया और माँ को दवाई दी और उनके पास बैठ गया| "बेटा माफ़ कर दे उसे! उसने बहुत कुछ भोगा है!" ताई जी पीछे से आईं और बोलीं| मैंने बस ना में गर्दन हिलाई और नेहा को लेके एक बार फिर से घर से बाहर आ गया| नेहा को गोद में लिए मैं ऐसे ही टहल रहा था की पिताजी का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे जल्दी से घर बुलाया| मैं घर पहुंचा तो देखा बाहर एक पुलिस की जीप खड़ी है| अंदर पहुँच कर देखा तो थानेदार और काला कोट पहने वकील एक चारपाई पर बैठे थे और बाकी सब उनके सामने दूसरी चारपाई पर बैठे थे| पिताजी ने मुझे अपने पास बैठने को कहा, थानेदार कुछ बोल रहा था पर मुझे देखते ही चुप हो गया| "थानेदार साहब ये मेरा बेटा है, कुछ दिन पहले ही आया है|" पिताजी बोले और थानेदार ने अपनी बात आगे बढ़ाई; "काफी मशक्कत के बाद हमें वो लोग हाथ लगे जिन्होंने मंत्री साहब के घर पर हमला किया था! हमारी अच्छी खासी खातिरदारी के बाद उन्होंने सब कबूल कर लिया है| इस सब का मास्टरमाइंड राघव नाम का आदमी है जिससे मंत्री साहब की पुरानी दुश्मनी थी! उसी ने वो आदमी भेजे थे मंत्री साहब के पूरे परिवार को मरने के लिए! फिलहाल उसकी तलाश जारी है, हमे लगता है कि या तो वो सरहद पार कर नेपाल निकल गया है या फिर कहीं अंडरग्राउंड हो गया है| जैसे ही कुछ पता चलेगा हम आपको खबर कर देंगे|"

"पर साहब हमारे परिवार को तो कोई खतरा नहीं है?" ताऊ जी ने पुछा|

"नहीं कोई घबराने की बात नहीं है! राघव की दुश्मनी सिर्फ मंत्री जी से थी, हमें नहीं लगता की वो आप पर या रितिका पर कोई जानलेवा हमला करेगा|!" थानेदार ने आश्वसन दिया| अब बारी थी वकील साहब के बोलने की, पर उनके कुछ कहने से पहले ही मेरा फ़ोन बज उठा| कॉल अनु का था और मैं उस वक़्त बात नहीं कर सकता था इसलिए मैंने; "थोड़ी देर में बात करता हूँ" कह कर काट दिया|

"देखिये अब जो मैं कहने जा रहा हूँ वो आप सभी के फायदे की है! मंत्री जी तो अब रहे नहीं, नाही उनके खानदान का अब कोई बचा, ले दे कर एक रितिका उनकी बहु और उसकी बेटी बची है| ऐसे में उनकी सारी जायदाद पर रितिका का हक़ बनता है, मुझे आपकी आज्ञा की जर्रूरत है और मैं कोर्ट में claim का केस बना देता हूँ...." आगे वकील साहब कुछ भी कहते उसके पहले ही ताऊ जी बोल पड़े; "नहीं वकील साहब हमें कुछ नहीं चाहिए! मुझे और मेरे परिवार को इन कानूनी पचड़ों से दूर रखो|"

"भाई साहब आप दिल से नहीं दिमाग से सोचिये, कल को रितिका की बेटी बड़ी होगी उसकी पढ़ाई-लिखाई, शादी-दहेज़ का खर्चा और आप लोग जो अभी इस चार कमरों के घर में रह रहे हो उसकी जगह आलिशान महल में रहोगे! आप claim नहीं करोगे तो इसे पार्टी वाले खा जाएन्गे? फिर आपको क्या मिलेगा? कम से कम ये तो सोचिये की रितिका का सुहाग उजड़ा है!" वकील साहब ने अपनी तरफ से सारे तर्क एक थाली में परोस कर हमारे आगे रख दिए पर ताऊ जी का निर्णय अडिग था; "वकील साहब मेरा जवाब अब भी ना है, नेहा की परवरिश मैं और मेरा परिवार अच्छे से कर सकता है| उसके लिए हमें किसी की सहायता नहीं चाहिए! इसी दौलत के चलते ये हत्याकांड हुआ है और अब हम इसमें दुबारा पड़ कर फिर से कोई खतरा नहीं उठाना चाहते!" ताऊ जी ने हाथ जोड़ दिए और वकील साहब आगे कुछ न बोल पाए| ताऊ जी कहना सही था क्योंकि ये दौलत मंत्री ने खून से कमाई थी और अब इसे अपना लेना ऐसा था की गरीबों की हाय लेना! वकील साहब और थानेदार के जाने के बाद सब आंगन में बैठ गए|

भाभी ने सब के लिए चाय बनाई और सब कौरा तापने लगे| (कौरा = bonfire) रितिका सब को चाय देने लगी और ताऊ जी ने उसे वहीं बैठने को कहा| "देख बेटी तुझे चिंता करने की कोई जर्रूरत नहीं है| हम सब हैं यहाँ तेरे लिए!" ताऊ जी ने रितिका के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| इतने में उसका रोना छूट गया और चन्दर भैया ने उसे अपने पास बिठाया और उसके आँसू पोछे| सब उसे दिलासा देने लगे और मैं नेहा को अपनी छाती से चिपकाए खामोश बैठा रहा| ताऊ जी ने जब मुझे खामोश देखा तो वो बोले; "बेटा माफ़ कर दे इसे! तू तो इसका बचपन से इसका ख्याल रखता आया है, तूने इसकी ख़ुशी के लिए हर वो चीज की जो तू कर सकता था और अब देख इसकी आँखें हमेशा नम रहती हैं! इतनी जिद्द ठीक नहीं!"

"माफ़ करना ताऊ जी, पर मैं इसे माफ़ नहीं कर सकता! इसने मुझे पुछा-नहीं, बताया नहीं और उस लड़के से प्यार करने लगी! मैं शहर में ही रहता था ना, क्या इसने मुझे बताया की ये किसी से प्यार कर रही है? आप ही कह रहे हो की मैं इसका सबसे बड़ा हिमायती था तो इसे तब मेरी याद नहीं आई? चुप-चाप इसने सब कुछ तय कर लिया! ये सब जानती थी, उस मंत्री के बारे में अपनी माँ के बारे में और फिर भी इसने वो कदम उठाया| इसे नहीं पता की उस मंत्री के घर में इसे खून में डूबी रोटियाँ खानी पड़ेंगी? पर नहीं तब तो मैडम जी को इश्क़ का भूत सवार था! जब आप सब मुझे घर से निकाल रहे थे तब ये कहाँ थी? तब बोली ये कुछ आपसे? इसने एक बार भी कहा की 'मानु चाचा' को मत निकालो? मैं आप सब के सामने झूठा बना ताकि इसे पढ़ने को मिले और इसे इश्क़ लड़ाना था तो लड़ाओ भाई!" मैंने आग बबूला होते हुए कहा|

"बेटा जो हुआ उसे छोड़ दे...." पिताजी बोले पर उनकी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही मेरा गुस्सा फिर फूटा;

"छोड़ दूँ? आप सब मुझे एक बात बताओ अगर ये हादसा नहीं हुआ होता, ये अपनी जिंदगी सुख से गुजार रही होती तो क्या मैं आज यहाँ बैठा होता? क्या जर्रूरत रहती इस घर को मेरी! मुझे माफ़ करना ताऊजी, पिताजी, ताई जी और माँ (जो अंदर बैठीं सब देख और सुन रहीं थीं!) पर आप सब तो मुझे घर निकला दे कर 'इसकी' खुशियों में लग गए, आप सब ने त्यौहार भी बड़े अच्छे से मनाये पर आप में से किसी ने भी मेरे बारे में सोचा? मानता हूँ की मैं इसे idiot की शादी मैं काम करने की बजाए अपनी जॉब और विदेश जाने के बारे में सोचा जो गलत था पर क्या इसकी इतनी बड़ी सजा होती है? आप सब को इसका गम दिखता है मेरा नहीं? पूरा एक साल मैंने आप सब को याद कर के कैसे गुजारा ये मैं जानता हूँ! दिवाली पर मैं रो रहा था की मेरा परिवार मुझसे दूर है! नए साल में मैं अपने माँ-बाप के पाँव छूना चाहता था, उनका आशीर्वाद लेना चाहता था पर मेरे परिवार ने तो जिन्दा होते हुए भी मुझे अनाथ बना दिया था! ऐसी भी क्या बेरुखी थी की आप सब ने मुझे इस कदर काट के खुद से अलग कर दिया जैसे मेरी आपको कोई जर्रूरत ही नहीं थी! आपको क्या लगा की संकेत आपके पास क्यों आया था? क्यों वो शादी ब्याह का काम देख रहा था? उसे पड़ी ही क्या थी पर उसने सिर्फ मेरे कहने पर ये सब किया! मैं तो ना रहते हुए भी आपको सहारा दे गया और मुझे क्या मिला? ताऊ जी के मुँह से बीएस चार शब्द सुन कर लौट आया क्यों? क्योंकि मुझे मेरा परिवार प्यारा है!" मैंने कहा तो सब के सर झुक गए| अब मैं क्या कहता इसलिए उठ कर ऊपर अपने कमरे में जाने लगा तो माँ ने अंदर से मुझे इशारे से अपने पास बुलाया, मैं नेहा को ले कर उनके पास आया तो उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया और रोने लगीं; "मुझे माफ़ कर दे बेटा! मैं तेरी गुनहगार हूँ...सब की तरह मैं भी स्वार्थी हो गई और अपने ही खून से मुँह मोड़ लिया| मैं तेरे पाँव पड़ती हूँ!" माँ ने मेरे पाँव छूने चाहे तो मैंने उन्हें रोक दिया; "क्यों मुझे पाप का भागी बना रहे हो माँ! जो कुछ भी हुआ मैं उसे भूलना चाहता हूँ पर मुझे जब जबरदति रितिका से बात करने को कहा जाता है तो ये सब बाहर आ जाता है! इस घर में मेरे अलावा और 6 लोग हैं जो 'अब' उसे प्यार करते हैं तो फिर मेरे प्यार की उसे क्या जर्रूरत है?" मैंने कहा तो पीछे से ताई जी आ गईं और बोलीं; "ठीक है बेटा! आज के बाद तुझे उससे बात नहीं करनी ना कर पर हम सब को माफ़ कर दे! हम सब ने बहुत बड़ी गलती की, बल्कि पाप किया है!" ताई जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा| माँ और मेरी बात सब बाहर सुन रहे थे और मैं अब किसी को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने ताई जी के गले लग कर उन्हें माफ़ कर दिया| एक-एक कर सारे मेरे गले लगे और दुबारा माफ़ी मांगी, अब मैं क्या करता वो मेरा परिवार था और दिल से माफ़ी मांग रहा था| बदला तो ले नहीं सकता था इसलिए उन्हें माफ़ कर दिया! रात में अनु से बात हुई और उसे सब कुछ बताया तो वो मेरे दिल का हाल समझ गई और कोशिश करती रही के मैं उन बातों को दिल से लगा कर फिर गलत रास्ते पर ना भटक जाऊँ|

अगली सुबह फिर रितिका ने काण्ड किया! नेहा को दूध पिला कर उसने मुझे दिया और बोली; "अब से ये आपकी जिम्मेदारी है!" उसकी ये बात ताई जी, भाभी, माँ, चन्दर भैया और पिताजी ने सुन ली| ताऊ जी उस टाइम घर पर नहीं थे, इतना कह कर रितिका दौड़ती हुई बाहर चली गई| "मानु रोक उसे कहीं कुछ गलत ना कर ले!" पिताजी चिल्लाये मैंने नेहा को माँ के पास लिटाया और मैं उसके पीछे दौड़ा| पिताजी और सब लोग जल्दी से बाहर आये, मैंने करीब 100 मीटर की दूरी पर जा कर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे खींच कर नीचे पटक दिया| मैंने रितिका को कंधे पर उठाया और वो रोते हुए छटपटाने लगी| मैं बस अपने आपको उसे मारने से रोकता रहा वर्ण मन तो किया अभी उसे एक झापड़ रसीद करूँ! सब ने मुझे उसे कंधे पर लाते हुए देखा तो सब अंदर चल दिए| एक-दो जन मुझे रितिका को ऐसे ले जाते हुए देखने लगे तो घर की इज्जत बचने के लिए मैंने हँसता हुआ चेहरा बना लिया ताकि उन्हें लगे की यहाँ मजाक चल रहा है| शुक्र है किसी ने कुछ कहा नहीं और वो अपने-अपने रस्ते चले गए| अंदर आंगन में आते ही मैंने उसे जमीन पर पटक दिया और उस पर जोर से चिल्लाया; "खत्म नहीं हुआ तेरा ड्रामा?" फिर मैं इधर-उधर डंडा ढूँढने लगा, रसोई में मुझे एक पतली सी लकड़ी मिली तो मैं उससे रितिका की छिताई करने को उठा लाया| मेरे हाथ में डंडा देख कर पिताजी बीच में आ गए और मेरा हाथ पकड़ लिया; "छोड़ दो पिताजी, आज तो मैं इसके सर से ये खुदखुशी का भूत उतार देता हूँ! आपको बताया नहीं पर कुछ दिन पहले ये कुँए में कूदने गई थी, वो तो मैं सही समय पर पहुँच गया और इसे रोक लिया और आज फिर इसने वही ड्रामा किया|" मैं गरजते हुए बोला| "पागल मत बन! वो दुखी है...." पिताजी बोले पर उनकी बात पूरी होने से पहले ही मैं चिल्लाया; "कुछ दुखी-वुखी नहीं है ये! इतना ही दुखी होती और सच में मरना चाहती तो उस दिन उस सूखे कुँए में कूदने ना जाती और आज भी मुझे बता कर, ढिंढोरा पीट कर जाने की क्या जर्रूरत पड़ी इसे?" माने रसोई से चाक़ू उठाया और रितिका को दिखाते हुए बताया की कैसे करते हैं खुदखुशी| "उस दिन बोला था न, ऐसे चाक़ू ले, यहाँ कलाई में घुसा और चीरते हुए ऊपर की तरफ ले जा!" मैं उस टाइम बहुत गुस्से में था और नहीं जानता था की क्या बोल रहा हूँ, तभी पिताजी ने मुझे एक थप्पड़ मारा और मेरा होश ठिकाने लगाया| रितिका जमीन पर पड़ी रोटी जा रही थी और मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था सो मैं नेहा को ले कर बाहर चला गया| दोपहर को खाने के समय आया, तब तक ताऊ जी भी आ चुके थे और सब आंगन में ही बैठे थे| मैंने नेहा को माँ के पास लिटाया और पिताजी से हथजोड़ कर अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी| ताऊ जी ने मुझे अपने पास बिठाया और प्यार से समझाया की मैं अपने गुस्से पर काबू रखूँ पर जब मैंने उन्हें सारी बात बताई तो सब को समझ आ गया की ये सब रितिका का ड्रामा है! वरना अगर उसे मरना ही होता तो 36 तरीके हैं जान देने के, वो बस सब का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहती थी| सबसे जर्रूरी बात जो केवल मैं जानता था वो ये की रितिका मुझ पर मानसिक दबाव बना रहे थी ताकि मैं उसके बहकावे में आ जाऊँ और फिर से उससे प्यार करने लग जाऊँ| पर अब सबकुछ साफ़ हो चूका था और वो ये नहीं जानती थी की ताऊ जी के मन में क्या चल रहा है! वो पूरा दिन सभी उदास थे और चिंतित थे क्योंकि किसी के पास इसका कोई इलाज नहीं था पर ताऊ जी कुछ और सोच रहे थे| दोपहर को सब ने चुप-चाप खाना खाया और मैं माँ के पास बैठा हुआ था और उनके पाँव दबा रहा था| नेहा सो रही थी और पूरे घर में एक दम सनाटा पसरा हुआ था| मेरा फ़ोन साइलेंट था और उसमें एक के बाद एक अनु के फ़ोन आने लगे थे| फ़ोन कब switched off हुआ ये तक नहीं पता चला मुझे! रात में ताऊ जी ने भाभी को रितिका के पास सोने को कहा ताकि वो फिर से कुछ ना करे!

अगली सुबह चाय पीने के बाद सब आंगन में बैठे थे, मैंने भी सोचा की मुझे आये हुए डेढ़ महीना हो गया है और माँ अब तक उसी कमरे में हैं| मैंने आज उन्हें बाहर सब के साथ बैठने की सोची| पिछले कुछ दिनों से मैं माँ की रोज मालिश कर रहा था जिसका असर दिखा और माँ मेरा सहारा लेते हुए बाहर आंगन में आईं| माँ ने सबसे पहले सूरज भगवान को नमस्कार किया और फिर चारपाई पर बैठ गईं| नाश्ता होने के बाद ताऊ जी ने सब को आंगन में धुप में बैठने को कहा और बात शुरू की; "मैं तुम सबसे एक बात करना चाहता हूँ! भगवान् ने रितिका के साथ बड़ा अन्याय किया है, इतनी सी उम्र में उसके सर से उसका सुहाग छीन लिया! वो कैसे इतनी बड़ी उम्र अकेली काटेगी! इसलिए मैं सोच रहा हूँ की उसकी शादी कर दी जाए!" ताऊ जी की बात सुन कर सब हैरान हुए, पहला तो उनकी बात सुन कर और दूसरा की ताऊ जी आज सबसे उनकी राय लेना चाह रहे थे जबकि आज तक वो सिर्फ फैसला करते आये हैं!
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07-14-2020, 01:08 PM,
#83
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 72

"भैया आप जो कह रहे हैं वो सही है, अभी उम्र ही क्या है बच्ची की!" पिताजी बोले और घर में मौजूद सब ने ये बात मान ली| मैं अपनी इसमें कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मैं तो नेहा के साथ खेलने में व्यस्त था| मेरा मन में बीएस यही था की मैं नेहा को खुद से दूर नहीं जाने दूँगा फिर चाहे मुझे जो करना पड़े| "मानु तू भी बता बेटा?" ताऊ जी ने मुझसे पुछा| "ताऊ जी आप का फैसला सही है! एक नै जिंदगी की शुरुआत करना ही सही होता है|" मैंने कहा| पर मेरा ये जवाब रितिका को जरा भी नहीं भाया, वो तेजी से मेरी तरफ आई और नेहा को मेरे हाथ से लेने लगी| नेहा ने मेरी ऊँगली पकड़ी हुई थी और वो मेरी गोद में खेल रही थी| "क्या कर रही है?" मैंने थोड़ा गुस्सा होते हुए कहा| "ये मेरी बेटी है!" रितिका ने गुस्से से कहा और उसका ये गुस्सा देख मैं अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाया| "जन्म देने से कोई माँ नहीं बन जाती| तेरी शादी हो रही है ना? जा के अपनी नै जिंदगी की शुरुरात कर| क्यों नेहा को उसका हिस्सा बना रही है?" मैंने नेहा को उससे दूर करते हुए कहा| "अच्छा? नेहा मेरी बेटी है, मैं चाहे जो करूँ उसके साथ तुम होते कौन हो कुछ बोलने वाले?" रितिका बोली और उसकी बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया| मैंने एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर मारा दूसरा तमाचा भी उसके गाल पर पड़ता इसके पहले ही चन्दर भैया ने मेरा हाथ पकड़ लिया और सिका फायदा उठा कर रितिका नेहा को मुझसे छीन कर ऊपर ले गई| अभी वो ऊपर की कुछ ही सीढ़ियां चढ़ी होगी की नेहा का रोना शुरू हो गया और उसका रोना सुन कर मेरा खून खोल गया| मैंने रितिका को रोकना चाहा पर सबने मुझे जकड़ लिया, मैं खुद को सबकी पकड़ से छुड़ाने लगा और छूट कर ऊपर भागना चाहता था ताकि आज रितिका की गत बिगाड़ दूँ! "छोड़ दो मुझे पिताजी! आज तो मैं इसे नहीं छोड़ूँगा!" पर किसी ने मुझे नहीं छोड़ा, सब के सब बस यही कह रहे थे की शांत हो जा मानु! पर मेरे जिस्म में तो आग लगी थी ऐसी आग जो आज रितिका को जला देना चाहती थी| जब मैं किसी के काबू में नहीं आया तो ताई जी ने नीचे से चिल्लाकर रितिका को आवाज मारी और उसे नीचे बुलाया| "मानु देख शांत हो जा...हम बात करते हैं!" ताई जी ने कहा पर मैं तो गुस्से से पागल हो चूका था और किसी की नहीं सुन रहा था| आखिर में माँ ही धीरे-धीरे उठीं और मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोली; "बेटा....मान जा....शांत हो...जा...!" माँ ये कहते-कहते थोड़ा लडख़ड़ाईं तो मैंने एक जतके से खुद को छुड़ाया और उन्हें गिरने से थाम लिया| उन्हें सहारा दे कर बिठाया और गुस्से में उठा पर माँ ने मेरा हाथ पकड़ लिया; "तुझे मेरी कसम बेटा...बैठ यहाँ पे!" इतने में रितिका नीचे आ गई और मेरी तरफ देखने लगी| मेरी आँखों में गुस्से की ज्वाला उसे साफ़ नजर आ रही थी जिसे देख कर उसके मन में एक अजीब सी ख़ुशी मह्सूस हुई| वो अच्छे से जानती थी की मेरा दिल नेहा के बिना जल रहा है और वो इसी बात पर अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी| उसकी मुस्कराहट उसके चेहरे पर आ रही थी और मुझे न जाने क्यों नेहा को खो देने का डर सता रहा था! मेरा गुस्सा मरता जा रहा था और एक पिता का पानी बेटी के लिए प्रेम बाहर आ रहा था| आज चाहे रितिका मुझसे जो मांग ले मैं सब उसे दे दूँगा, बस बदले में मुझे मेरी बेटी दे दे! पर वो दिल की काली औरत आज मुझे ऐसा तड़पता देख कर खुश हो रही थी! आखिर एक बाप अपना गुस्सा पीते हुए, आँखों में आँसू लिए बोल पड़ा; "तु चाहती थी न मैं तुझे माफ़ कर दूँ? ठीक है...मैं तुझे दिल से माफ़ करता हूँ पर प्लीज मेरे साथ ऐसा मत कर! नेहा मेरी जान है, उसे मुझसे मत छीन!" मैंने मिन्नतें करते हुए कहा| "मुझे अब किसी की माफ़ी-वाफी नहीं चाहिए!" रितिका अकड़ कर बोली| "तो बोल तुझे क्या चाहिए? जो चाहिए वो सब दूँगा तुझे बस मुझे नेहा से अलग मत कर!" मैंने घुटनों पर आते हुए हाथ जोड़े पर रितिका का कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि वो क्रूरता भरी हँसी हँसने लगी! "अब पता चला की कैसा लगता है जब कोई आपसे आपकी प्यारी चीज छीन ले? You cursed me that day and I lost everything.... fucking everything! This was the payback! बहुत प्यार करते हो न नेहा से? अब तड़पो उसके लिए जैसे मैं तड़प रही हूँ अपने पति के लिए!" मैं हैरानी से उसकी तरफ देख रहा था, क्योंकि मेरा दिल कह रहा था की रितिका ने नेहा को मुझे अपने पाप के प्रायश्चित के रूप में सौंपा था पर ये तो....!!! मैं अभी अपने ख्याल को पूरा भी नहीं कर पाया की रितिका बोल पड़ी; "जो सोच रहे हो वो सही है! ये सब मेरा प्लान था.... मैंने ही आपको नेहा के इतना करीब धकेला और अब मैं ही उसे आप से दूर कर के ये यातना दे रही हूँ! जीयो अब साड़ी उम्र इस दर्द के साथ, वो सामने होते हुए भी आपकी नहीं हो सकती!" जैसे ही उसकी बात पूरी हुई चन्दर भैया ने उसे एक जोरदार तमाचा मारा| उसके सम्भलने से पहले ही भाभी ने भी एक करारा तमाचा उसे दे मारा| "हरामजादी! इतना मेल भरा हुआ है तेरे मन में? तू पैदा होते ही मर क्यों ना गई? इतनी मुश्किल से ये परिवार सम्भल रहा था पर तुझे सब कुछ जला कर राख करना है!" चन्दर भैया बोले! इस सच का खुलासा होते ही मेरे अंदर तो जैसे जान ही नहीं बची थी, सांसें जैसे थम गईं और मैं जमीन पर गिर पड़ा| उसके बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा की क्या हुआ....

शाम को जब मेरी आँख खुली तो सब मुझे घेर कर बैठे थे, मैं उठ के बैठा तो माँ की जान में जान आई| पर मेरा मन मेरी बेटी के लिए व्याकुल था और मैं प्यासी नजरों से उसे ढूँढ रहा था| "नेहा....?" मेरे मुँह से निकला तो भाभी ऊपर नेहा को लेने गईं, पर रितिका ने उसे उन्हें सौंपने से मना कर दिया| वो चिल्लाते हुए बोली ताकि मैं भी सुन लूँ; "मेरे साथ जबरदस्ती मत करना वरना मैं पुलिस बुला लूँगी!" ये कहते हुए उसने भाभी को डराने के लिए अपना फ़ोन उठा लिया पर बहभी को कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने पहले तो उसके गाल पर एक झन्नाटे दार तमाचा मारा और फिर उसकी गोद से नेहा को छीनते हुए बोलीं; "जो करना है कर ले!" नीचे आ कर उन्होंने नेहा को मेरी गोद में दिया| नेहा रो रही थी और जैसे ही मैंने उसे अपनी छाती से लगाया तो मेरे जोरों से धड़कते हुए दिल को चैन मिला| मिनट भी नहीं लगा नेहा को चुप होने में, मैंने उसके छोटे से हाथों में अपनी ऊँगली थमाई और उसे ये इत्मीनान हो गाय की उसके पापा उसके पास हैं| पर रितिका का दिमाग सनक चूका था, उसने पुलिस कंप्लेंट कर दी और नीचे आकर दरवाजा खोल दिया| कुछ ही देर में वही थानेदार आ गया जो उस दिन आया था, पुलिस की जीप का साईरन सुन सब बाहर आ गए थे| मैं और माँ कमरे में अब भी बैठे थे, नेहा मेरी छाती से चिपकी किलकारियाँ निकाल रही थी, ऐसा लगता था जैसे मानो कह रही हो की प्लीज पापा मुझे अपने आप से दूर मत करो! पर मैं उस वक़्त खुद को बेबस महसूस कर रहा था!

मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही एक महिला पुलिस कर्मी और उनके साथ एक हवलदार कमरे में घुस आये और मेरी गोद से नेहा को लेने को अपने हाथ खोल दिए| मैंने ना में सर हिलाया तो पीछे से थानेदार की आवाज आई; "ये रितिका की बेटी है और तुम जबरदस्ती इसे इसकी माँ से छीन कर रहे हो!" मैं उसी वक़्त बोलना चाहता था की ये मेरी भी बेटी है पर मेरे मन में नेहा को खो देने के डर ने मेरे होंठ सिल दिए थे! "थानेदार साहब ये रितिका का चाचा है!" ताऊ जी बोले| "मौर्या साहब आप रितिका को समझाइये, कंप्लेंट इसी ने की है और हमारा काम है करवाई करना!" थानेदार बोलै और उसने महिला पुलिस कर्मी को इशारा किया की वो नेहा को मुझसे छीन ले| वो पुलिस कर्मी भी समझ सकती थी की मैं नेहा से कितना प्यार करता हूँ, फिर भी उसने जबरदस्ती नेहा को मेरी गोद से ले लिया पर नेहा अब भी मेरी ऊँगली पकडे हुए थी जिसे उसने अपने दूसरे हाथ से छुड़वाया! उसने नेहा को रितिका को सौंप दिया और रितिका मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी और ऊपर चली गई| मैं बस आँखों में आँसू लिए घुट कर रह गया, मेरा दर्द वहाँ समझने वाला कोई नहीं था| नेहा के रोने की आवाज सुन मैं आज फिर से टूटने लगा था, जिस्म में जैसे जान ही नहीं बची थी! मैं सर दिवार से टिका कर चुप-चाप बैठा रहा और हिम्मत बटोरने लगा|

थानेदार के जाने के बाद भाभी ने नीचे से रितिका को गालियाँ देनी शुरू कर दी थीं| ताऊ जी भी गुस्से में भरे थे, घर का हर एक सदस्य रितिका के पागलपन के कारन सख्ते में था और उसे कोस रहा था| माँ मेरे सर पर हाथ फेर रहीं थीं पर मेरा दिमाग सुन्न हो गया था उसे सिवाए नेहा के रोने के और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था| "भाभी मुझे समझ नहीं आता की आखिर हो क्या रहा है? क्यों मानु ऐसी हरकतें कर रहा है? नेहा उसकी बेटी नहीं है फिर भी वो इतना मोह में क्यों बहे जा रहा है?" मेरे पिताजी ताई जी से बोले| पर ताऊ जी मेरे इस मोह को कुछ और ही समझ रहे थे; "तुम सब जानते हो की मानु रितिका से कितना प्यार कृते आया है! बचपन से एक वही है जो उसकी हर फरमाइश पूरी करता था इतना सब कुछ करने के बाद जब रितिका ने उसे बिना बताये शादी की तो वो बहुत गुस्सा हुआ और फिर उस दिन हमने उसे घर से निकाल दिया वो बेचारा टूट गया था! इस कुलटा (रितिका) ने नेहा को जानबूझ कर आगे किया और जबरदस्ती मानु के मन में उसके लिए प्यार पैदा किया और जब मानु का लगाव उससे बढ़ गया तो जानबूझ कर नेहा को उससे दूर कर दिया| सब कुछ इसने जानबूझ कर किया, हमारे लड़के को इसी ने बरगलाया है! अँधा-लूला जो कोई भी मिलता है बांधो इसे उसके गले और छुट्टी पाओ इस मनहूस से! रही मानु की बात तो उसे कुछ टाइम लगेगा पर वो ठीक हो जाएगा|" ताऊ जी ये कहते हुए कमरे के अंदर आये और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोले; "बेटा...तू चिंता ना कर! हम सब यहाँ हैं तेरे लिए! और सुनो कोई भी उसे इसके आस-पास भटकने मत देना|" ताऊ जी ने सबको आगाह किया और भाभी से कहा की वो खाना परोसें| भाभी खाना परोस कर लाइन पर मैं बस सामने की दिवार को घूर रहा था, मुझे उसमें नेहा का अक्स दिख रहा था| भाभी ने मेरा हाथ पकड़ कर झिंझोड़ा तो मैं अपने ख़्वाबों की दुनिया से बाहर आया| आँखें आँसू बहने से लाल हो चुकी थीं, भाभी के हाथ में खाना देख कर समझ ही नहीं आया की क्या कहूं? पर फिर माँ की तरफ देखा जो आस कर रहीं थीं की मैं खाना खाऊँ, मैंने एक नकली मुस्कान अपने चेहरे पर चिपकाई और माँ की तरफ थाली ले कर घूम गया| मैंने उसी नकली मुस्कराहट से माँ को खाना खिलाया, माँ बार-बार मना कर रही थीं की पहले मैं खाऊँ पर मैंने जबरस्ती करते हुए उन्हें खिलाने लगा| उनके खाने के बाद मैं थाली ले कर बाहर आया, सब को लगा की मैंने खा लिया पर भाभी जानती थी की मैंने माँ को खिला दिया है, उन्होंने मेरे लिए दूसरी थाली में खाना परोसा पर मैंने गर्दन हिला कर मना कर दिया| "मानु ऐसे मत करो! क्यों उस हरामजादी के लिए खाना छोड़ रहे हो? उसने तो पेट भर के धकेल लिया, तुम क्यों...." भाभी खुसफुसाती हुए बोलीं| "भाभी बिलकुल इच्छा नहीं है..... आप बस किसी को कुछ मत कहना!" इतना कह कर मैं घर के बाहर आया और कुछ दूर तक जेब में हाथ डाले चल दिया| मैं जान बुझ कर घर से निकला था ताकि थोड़ी देर बाद जब मैं घर में घुसूँ तो माँ को लगे की मैं खाना खा रहा था| अकेले चलते हुए मुझे मेरी बेबसी का एहसास कचोटे जा रहा था! नेहा मेरी बेटी है और जो रितिका ने आजतक मेरे साथ किया उससे उसका नेहा पर कोई हक़ नहीं बनता! नेहा को उसने एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर के मेरे कलेजे को छलनी किया था, उसका बदला तो हो चूका था पर मेरा अभी बाकी था! मेरी बेबसी अब गुस्से में तब्दील हो गई थी| मुझे उसे जवाब देना था.....पर अभी नहीं!

कुछ देर बाद मैं घर लौटा और माँ के सामने ऐसे जताया जैसे मैंने खाना खा लिया हो! माँ को दवाई दी और सोने ऊपर जाने लगा, पर पिताजी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया; "तू आज अपनी माँ के पास सो जा, वो बहुत उदास थी पूरा दिन|" मैंने पिताजी की बात मान ली और माँ के पास लेट गया| रात के 1 बजे मैं उठा, अपने गुस्से को निकालने का यही सही समय था| मैं दबे पाँव ऊपर गया और देखा की रितिका के कमरे का दरवाजा खुला है, मैंने धीरे से उसे खोला और अंदर पहुँचा| दरवाजे की आहट से रितिका उठ गई और उसने लाइट जला दी; "अब क्यों आये हो यहाँ?" रितिका अकड़ते हुए बोली| मैंने उसके बाल उसकी गुद्दी से पकडे और उसकी आँखों में झांकते हुए गुस्से से बोला; "बहुत शौक है ना तुझे बदला लेने का? अब देख तू मैं क्या करता हूँ! याद है माने तुझे क्या curse किया था? 'Every fucking day will be like hell for you!' याद राख इस बात को!" इतना कह कर मैंने उसके बाल झटके से छोड़े और अपने कमरे से फ़ोन का चार्जर ले कर मैं नीचे उतर आया| फ़ोन चार्जिंग पर लगाया और लेट गया, पर नींद नहीं आई! मन में बस नेहा को पाने की ललक लिए पूरी रात जागते हुए काटी| सुबह उठ कर मैंने अपना फ़ोन देखा जो पूरा चार्ज हो चूका था| जैसे ही फ़ोन ऑन हुआ उसमें अनु की 50 मिस्ड कॉल्स दिखीं, ये देखते ही मेरी हवा टाइट हो गई! मैं नेहा को तो लघभग खू ही चूका था, अनु को नहीं खो सकता था| मैंने तुरंत उसके नंबर पर कॉल करना शुरू किया पर उसका फ़ोन स्विच ऑफ था! मैंने ढ़ढ़ढ़ कॉल करने जारी रखे और उम्मीद करता रहा की वो उठा लेगी, पर उसका फ़ोन स्विच ऑफ ही रहा| माँ मुझे ऐसे कॉल करता देख परेशान हो रही थी, मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा बस चुपचाप टिकट बुक करने लगा| इतने में डैडी जी (अनु के डैडी) का फ़ोन आ गया| मैं फ़ोन उठा कर आंगन में एक कोने में खड़ा हो गया; "मानु बेटा सब ठीक तो है? तुम्हारी अनु से कोई लड़ाई हुई? परसों जब से आई है बस रोये जा रही है?" ये सुनते ही मेरी हालत खराब हो गई; "डैडी जी....मैं आ रहा हूँ...3-4 घंटे में पहुँच रहा हूँ!" इतना कहते हुए मैंने फ़ोन काटा और अपना पर्स उठाने भागा; "क्या हुआ? इतना परेशान क्यों है?" पिताजी ने पुछा| "वो मेरा बिज़नेस पार्टनर यहाँ है....मुझे जल्दी जाना होगा ....!" इतना कहते हुए मैं बिना मुँह-हाथ धोये घर से निकल गया| दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल खड़े, रात के टी-शर्ट और पजामा पहने ही मैं निकल गया| मन में बुरे विचार आ रहे थे की कहीं अनु कुछ कर ना ले?! अगर उसे कुछ हो गया तो मैं भी मर जाऊँगा! ये सोचते हुए मैं बस में चढ़ा| पूरे रास्ते उसका नंबर मिलाता रहा पर अब भी उसका नंबर बंद था|

कॉलोनी के गेट से अनु के घर तक दौड़ता हुआ पहुँचा और घंटी बजाई, दरवाजा मम्मी जी ने खोला और मेरी हालत देख कर वो हैरान थीं| मैंने अपनी साँसों को काबू किये बिना ही हाँफते हुए कहा; "अनु.....कहा...?" मम्मी जी ने मुझे अंदर की तरफ इशारा किया| मैं तेजी से अंदर पहुँचा और देखा तो अनु दूसरी तरफ मुँह कर के लेटी है और अब भी रो रही थी| उसकी पीठ मेरी तरफ थी इसलिए वो मुझे नहीं देख पाई| उसे जिन्दा देख आकर मुझे चैन मिला, मैंने अपनी सांसें काबू की और उसके पास पहुँचा और उसे पुकारा; "अनु'| ये सुनते ही अनु बिजली की रफ्तार से उठ बैठी और मेरे गले लग गई| मुझे उसकी शक्ल देखना का भी मौका नहीं मिला| अनु का रोना और भी तेज हो गया था और मैं बस उसके सर पर हाथ फेर कर उसे चुप कराना चाह रहा था| "बस-बस...मेरा बच्चा....बस!" मैंने खुद को तो रोने से रोक लिया था पर अनु को रोक पाना मुश्किल था| "मुझे.....लगा.....आप.... अब....कभी नहीं....आओगे!" अनु ने रोते-रोते कहा| "पागल! ऐसे मत बोलो! I love you! ऐसे कैसे तुम्हें छोड़ दूँगा?" ये सुनने के बाद ही अनु ने रोना बंद किया| पीछे डैडी जी और मम्मी जी ने सब सुना और बोले; "देखा? मैं कहता था न मानु अनु से बहुत प्यार करता है!" डैडी जी बोले और हमने पलट कर देखा तो वो हमें इस तरह लिपटे हुए देख कर मुस्कुरा रहे थे| जब अनु ने मुझे ठीक से देखा तो उसकी आँखें फिर से भर आईं; "ये क्या हालत बना ली है 'आपने'? " अनु बोली| मैं चुप रहा क्योंकि मैं मम्मी जी और डैडी जी के सामने कुछ कहना नहीं चाहता था| उन्हें भी इस बात का एहसास हुआ और दोनों बाहर चले गए| "मेरी छोड़ो और ये बताओ तुमने कैसे सोच लिया की मैं तुम्हें छोड़ कर हमेशा के लिए गाँव रहूँगा? मैंने तुम्हें प्रॉमिस किया था ना की मैं वापस आऊँगा... फिर?" मैंने अनु के आँसू पोछते हुए कहा|

"मैं यहाँ आपको सरप्राइज देने के लिए आई थी, मैंने आपको कितने काल किये पर आपने एक भी कॉल नहीं उठाया! फिर फ़ोन स्विच ऑफ हुआ....मुझे लगा आपने मुझे ब्लॉक कर दिया और अब आप मुझसे शादी करने अब कभी नहीं आओगे!"

"It was a rough day .... very bad ....." मैंने सर झुकाते हुए कहा|

"क्या हुआ? Tell me?" अनु बोली पर यहाँ कुछ भी कहना मुझे ठीक नहीं लगा और अनु ये समझ भी गई| इतने में मम्मी जी चाय ले कर आ गईं और डैडी जी भी आ गए और वहाँ बैठ गए| "बेटा ये क्या हालत बना रखी है तुमने?" डैडी जी ने पुछा|

"वो दरअसल डैडी जी घर से फ़ोन आया था, सब ने मुझे वापस बुलाया और वहाँ जा कर पता चला की मेरा परिवार बड़े बुरे हाल से गुजर रहा था| मेरी भतीजी के ससुराल वालों को दुश्मनी के चलते किसी ने सब को जान से मार दिया! बस मेरी भतीजी जैसे-कैसे बच गई| तो अभी पूरा घर बहुत परेशान है!" ये सुनते ही मम्मी और डैडी जी को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने सब से मिलने की इच्छा जाहिर की; "जी मैं पहले अनु को सबसे मिलवाना चाहता हूँ!" मैंने कहा पर उन्हें एक डर सता रहा था की कहीं मेरे घरवालों ने शादी के लिए मना कर दिया तो? "ऐसा कुछ नहीं होगा डैडी जी! वो मान जाएंगे!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा पर ये तो मैं ही जानता था की ये कितनी बड़ी टेढ़ी खीर है! इधर अनु मुझसे मेरी हालत का कारण जानने को बेकरार थी, पर यहाँ तो मैं उसे कुछ बताने से रहा इसलिए वो उठ कर खड़ी हुई और मेरी तरफ अपने बैग से निकाल कर एक तौलिया फेंका; "Get ready!" मैं तथा मम्मी-डैडी उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे क्योंकि जो इंसान पिछले 48 घंटों से बस रोये जा रहा था उसमें अचानक इतनी शक्ति कैसे आ गई? हम सब को हैरानी से उसे देखते हुए वो हँसते हुए बोली; "क्या? हम दोनों घूमने जा रहे हैं!" ये सुन कर मम्मी-डैडी हंस पड़े और मई भी मुस्कुरा दिया| अनु के इसी बचपने का तो मैं दीवाना था! मैं उठा और तभी मेरा फ़ोन आ गया, "जी पिताजी! नहीं सब ठीक है... जी ...नहीं कोई घबराने की बात नहीं है! मैं परसों आऊँगा? हांजी...कुछ जर्रूरी काम है!" मैंने जर्रूरी काम है बहुत धीरे से बोला जिसे कोई सुन नहीं पाया| उसके बाद मैं नहाया और अनु मेरे कुछ कपडे ले आई थी वो पहने और हम घूमने निकले| अनु जानती थी की मैंने कुछ नहीं खाया होगा इसलिए पहले उसने जबरदस्ती मुझे कुछ खिलाया और फिर आंबेडकर पार्क ले आई| वहाँ एक शांत जगह देख कर हम बैठे और अनु ने मेरा दायाँ हाथ अपने हाथ में लिया और सारी बात पूछी| मैंने रोते-रोते उसे सारी बात बताई और ये सब सुन कर उसका पारा चढ़ गया| वो एकदम से उठ खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मुझे खड़ा किया और बोली; "चलो घर, आज इसे मैं जिन्दा नहीं छोडूँगी!" मैंने अनु के दूसरे हाथ को पकड़ लिया और उसे अपने गले लगा लिया| "आप क्यों..... मार दो उसे जान से! बाकी सब मुझ पर छोड़ दो!" अनु ने कहा|

"मन तो मेरा भी यही किया था पर उसकी जान ले कर मैं तुम्हें भी खो दूँगा!" मैंने अनु से अलग होते हुए कहा| ये बात सच भी थी क्योंकि फिर मुझे जेल हो जाती और हम दोनों हमेशा-हमेशा के लिए जुदा हो जाते| "तो फिर क्या करें? हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे?" अनु ने गुस्से से कहा|

"शादी करेंगे!" मैंने कहा और अनु कुछ सोचते हुए बोली; "ठीक है! चलो आज ही घर चलते हैं!"

"नहीं...आज नहीं.... कल पहले तुम्हारा बर्थडे सेलिब्रेट करते हैं|" मैंने कहा|

"पर क्यों? वहाँ जा कर सेलिब्रेट करेंगे!" अनु ने कहा|

"घरवाले इतनी आसानी से हमारी शादी के लिए नहीं मानेंगे और मैं नहीं चाहता की तुम्हारा जन्मदिन खराब हो!" मैंने अनु को फिर से अपने सीने से लगा लिया| अनु मेरी बात समझ गई थी और उसने कल के लिए सारा प्लान भी बना लिया था| पर मैं तो बस उसे अपने सीने से चिपकाए नेहा की कमी को पूरा करना चाह रहा था| पर जो गर्म एहसास मुझे नेहा को गले लगाने से मिलता था वो मुझे अनु को गले लगाने से नहीं मिल रहा था| नेहा की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता था!
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07-14-2020, 01:10 PM,
#84
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 74

सुबह नाहा धो कर तैयार हुए और नाश्ता कर के मैं और अनु मम्मी-डैडी का आशीर्वाद ले कर निकले| मम्मी-डैडी ने कहा था की अगर मेरे घर वाले नहीं माने तो वो खुद चल कर बात करेंगे और हम दोनों बस मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिला कर रह गए थे| घर के बाहर से ऑटो किया और ऑटो मैंने बैठते ही अनु ने मेरा हाथ थाम लिया, आज अनु की पकड़ में कठोरता थी और डर भी छलक रहा था| ऑटो से हम बस स्टैंड उतरे और फिर बस में बैठ गए| बस में भी अनु ने हाथ पकड़ा हुआ था, मैंने अनु का हाथ एक बार चूमा और अनु के चेहरे पर मुस्कराहट आ गई| कुछ देर बाद जब बस हॉल्ट के लिए रुकी तो मैंने घर फ़ोन कर दिया; "जी पिताजी.... मैं बस रास्ते में हूँ....हाँ जी...मेरे साथ ही है... जी एक बजे तक पहुँच जाऊँगा| आप सब घर पर ही हैं ना? जी ठीक है... ओके जी!" मैंने कॉल काटा और अनु बोली; "क्या कहा पिताजी ने?"

"वो पूछ रहे थे की अपने बिज़नेस पार्टनर को साथ ला रहा है ना? और फिर मैंने पुछा की सब घर पर ही हैं ना तो उन्होंने खा की सब हमारा ही इंतजार करा रहे हैं|" ये सुन कर अनु के दिल की धड़कनें तेज हो गईं, उसके हाथ काँपने लगे थे| मैंने अनु को कस कर अपने गले लगा लिया और अनु ने जैसे-तैसे खुद को संभाला| कुछ समय बाद बस ने हमें बस स्टॉप उतारा और वहाँ से 15 मिनट की वॉक थी| मैं और अनु हाथ पकडे चल रहे थे और हर एक कदम आगे बढ़ाते हुए दोनों के दिलों की धड़कनें तेज होती जा रही थी| जब मुझे घर दूर से दिखाई देने लगा तो मैंने बात शुरू की; "बेबी! अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप दोगे?"

"हाँ" अनु ने एक दम से कहा|

"प्रॉमिस?" मैंने पुछा|

"प्रॉमिस!" अनु ने आत्मविश्वास से कहा|

"अगर अभी हालात बिगड़े और बात मरने-मारने की आई तो आप यहाँ से भाग जाओगे! मैं जितनी देर तक हो सकेगा सब को रोकूँगा पर आप बिना पीछे मुड़े भागोगे! मेरे अल्वा यहाँ आपको कोई नहीं जानता, आपके घर का पता कोई नहीं जानता तो आप यहाँ बिलकुल नहीं रुकोगे! समझे?" मैंने एक साँस में कहा| ये सुनते ही अनु एकदम से ठिठक कर रुक गई, उसकी आँखें भर आईं और वो ना में गर्दन हिलाने लगी| "अनु आपने अभी प्रॉमिस किया था ना?" पर अनु अब भी ना में गर्दन हिला रही थी| मैंने अनु के दोनों कंधे पकडे और उसे समझाया; "बेबी...मैंने मम्मी-डैडी को प्रॉमिस किया था.... मेरा परिवार कैसे react करेगा मुझे नहीं पता ये सिर्फ एक contingency plan है! कम से कम आप भाग कर मेरे लिए मदद तो ला पाओगे ना? प्लीज... इस सब में आपको कुछ नहीं होना चाहिए! प्लीज....मेरी बात मानो! आपको मेरी कसम!" मेरे पास जो भी तर्क थे मैंने वो सब दे डाले पर अनु नहीं मानी! "मरना है तो साथ मरेंगे!" अनु ने रोते हुए कहा| अनु की बात सुन कर मुझे उस पर गर्व हो रहा था, वो पीठ दिखा के भागना नहीं चाहती थी बल्कि मेरे साथ कंधे से कन्धा मिला कर हालात से लड़ना चाहती थी! मैंने अनु के आँसू पोछे और उसका हाथ पकड़ कर फिर से घर की ओर चल दिया|

जब घर करीब 50 कदम की दूरी पर रह गया तो अनु ने मेरा हाथ छोड़ दिया ताकि हमें कोई ऐसे ना देख ले| आखिर घर पहुँच कर मैंने दरवाजा खटखटाया और दरवाजा ताऊ जी ने खोला, जहाँ मुझे देख कर उन्हें ख़ुशी हुई वहां जैसे ही उनकी नजर अनु पर पड़ी उनके ख़ुशी फ़ाख्ता हो गई! वो बिना कुछ बोले अंदर आ गए और आंगन में सब के साथ बैठ गए| "ताऊ जी, ताई जी, माँ, पिताजी, भाभी और भैया ये हैं अनुराधा कश्यप, मेरी बिज़नेस पार्टनर जिसने मेरे मुश्किल समय में मुझे संभाला और फिर अपने साथ बिज़नेस में पार्टनर की तरह काम करने का मौका दिया|" ये सुनने के बाद ताऊ जी को इत्मीनान हुआ, उन्हें लगा था की मैं और अनुराधा शादी कर के यहाँ आये हैं!

अनु ने सब को हाथ जोड़ कर नमस्कार किया और एक-एक कर सब के पाँव छुए| सब ने उसे आशीर्वाद दिया और ख़ास कर माँ ने उसे अपने गले लगा लिया! "बेटी...मेरे पास शब्द नहीं है..... तेरा बहुत बड़ा एहसान है!" माँ ने रुंधे गले से कहा| "माँ एहसान कह कर मुझे शर्मिंदा मत करो!" अनु ने बड़े प्यार से माँ से कहा| रितिका उस वक़्त सबसे पीछे खड़ी थी और चूँकि मैं ने रितिका से अनु का तार्रुफ़ नहीं कराया था इसलिए वो सड़ी हुई सी शक्ल ले कर पीछे खड़ी रही| अनु उसके पास नहीं गई और चन्दर भैया से नमस्ते कर के वापस मेरे साथ खड़ी हो गई| "बहु बेटा चाय रखो!" ताऊ जी ने भाभी से कहा पर मैंने भाभी को रोक दिया; "भाभी रुक जाओ, आप बैठो कुछ बात करनी है!" मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा| "पिताजी कुछ दिन पहले आप ने कहा था ना शादी कर ले! तो मैंने अनु से शादी करने का फैसला किया हैं!" मैंने एक गहरी सांस ली और पूरी हिम्मत जुटाते हुए कहा| घर वाले कुछ कहते उसके पहले ही रितिका पीछे से बोल पड़ी; "अच्छा? ये तो वही हैं ना जिनके पति के यहाँ आप पहले ऑफिस में काम करते थे! फि उसी पति ने कोर्ट में डाइवोर्स का केस किया था और कहा था की तुम्हारे इनके साथ नाजायज तालुकात हैं!" ये सुनते ही मैं गुस्से से उठने लगा तो अनु ने मेरा हाथ पकड़ के रोक दिया, उसे भी जानना था की रितिका के मन में कितना ज़हर भरा हैं! "और हाँ...वो बंबई जाना, ट्रैन में इनका आपकी गोद में सर रख कर लेटना संकेत भैया के चाचा ने भी तो देखा था ना? फिर एक ही होटल में, एक ही कमरे में Mr. and Mrs. Manu Maurya बन कर रात बिताना! ये सब भी तो बताओ!" रितिका बोली और फिर वही घिनौनी हँसी उसके होठों पर आ गई! ये सब सुन कर सारे घर वाले अवाक मुझे देखने लगे|

"ये सच हैं की मैं अनुराधा के पति के ऑफिस में ही काम करता था पर तब हमारा रिश्ता सिर्फ एक मालिक और नौकर का था, मुंबई जाने का प्लान बॉस ने बनाया था और मुझे फँसाने के लिए उसने मुझे इनके साथ भेजा था| ट्रैन में कुछ नहीं हुआ, वहाँ मेरी गोद में इनका सर रख कर लेटना सिर्फ और सिर्फ इसलिए था क्योंकि हमारी बोगी में दो गुंडे जैसे लड़के थे जो अनुराधा को गन्दी नजर से देख रहे थे| हम ने बीएस मिल के नाटक किया ताकि वो कोई गलत हरकत न करें! मुंबई पहुँचते-पहुँचते हमें देर रात हो गई थी, वहाँ कोई होटल नहीं मिला तो मजबूरन हमें एक कमरे में रात गुजारनी पड़ी वो भी अलग-अलग बिस्तर पर! पिताजी, ताऊ जी आप तो मुझे जानते हैं क्या आपको लगता हैं की मैं कभी किसी की मजबूरी का कोई फायदा उठाऊँगा? या कोई ऐसी हरकत करूँगा? वो आदमी बहुत नीच था और इनसे छुटकारा पाना चाहता था, उसने इन्हें कभी कोई सुख नहीं दिया, पत्नी होने का कोई एहसास नहीं दिलाया और दिलाता भी कैसे उसका खुद बाहर चक्कर चल रहा था!" मैंने घर वालों को सारी सफाई दी|

"कमाल है! अब तक तो सुना था की काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय एक लीक काजल की लागे है तो लागे है, पर यहाँ तो सब के दामन दूध के धुले हैं!" रितिका फिर बोली और ये सुनते ही मैं भुनभुना गया और जोर से चिल्लाया; "SHUT THE FUCK UP!" मेरी गर्जन सुन ताऊ जी गुस्से में दहाड़े; "तेरा दिमाग ख़रक़ाब हो गया है? होश में है या नशा कर के आया है? ये लड़की ना हमारी ज़ात की, ऊपर से तलाकशुदा!"

"उम्र में भी बड़ी है!" रितिका फिर चुटकी लेते हुए बोली पर इस बार ताऊ जी ने उसे गुस्से से चुप करा दिया; "मुँह बंद कर अपना!"

क्या ज़ात-पात देख रहे हैं आप ताऊ जी? हमारी कौन से ज़ात वाले ने आज तक मदद की है? जब घर के हालात खराब थे तब किसने आ कर पुछा था?" मैंने ताऊ जी से पुछा| मेरा आत्मविश्वास देख उनका गुस्सा भड़क उठा और वो अपने कमरे में तेजी से घुसे और दिवार पर टंगी दुनाली ले आये| दुनाली का मुँह अनु की तरफ था और हालाँकि अभी तक ताऊ जी ने बन्दूक अनु पर तानी नहीं थी पर मुझे अनु के लिए डर लगने लगा था| इधर अनु भी बहुत घबरा गई थी, मैं तुरंत अनु के आगे आ गया ताकि अगर गोली चले भी तो पहले मुझे लगे अनु को नहीं| घरवाले सब डरे-सहमे खड़े थे, माँ, ताई जी और भाभी रो रही थीं और पिताजी सर झुकाये खड़े थे| वो आज तक अपने बड़े भाई के खिलाफ नहीं गए थे| "ताऊ जी किसे गोली मारेंगे आप? इस लड़की को जिसने मेरी जान बचाई! मर गया होता मैं और आपको तो मेरी लाश देखना भी नसीब नहीं होती अगर ये लड़की ना होती तो!" मैंने कहा पर ताऊ जी पर इसका तर्री भर भी असर नहीं हुआ| वो फिर से गुस्से से चिंघाड़ते हुए बोले; "तुझे शहर जाने देना मेरी सबसे बड़ी भूल थी, ना तू वहाँ जाता ना इस लड़की की बातों में आता!"

"मैं किसी की बातों में नहीं आया! आपको इस शादी से समस्या क्या है? आपने रितिका की शादी के समय तो कुछ नहीं कहा? वो मंत्री कौन सा हमारी ज़ात का था? उसने तो सारे काम ही गंदे किये थे, कितने लोगों के खून से हाथ रेंज थे उसके! अनु के माँ-बाप तो सीधे-साढ़े पढ़े लिखे लोग हैं!" मैंने कहा|

"वो ऊँची ज़ात का था...." ताऊ जी गुस्से से बोले और उनकी बात पूरी होती उससे पहले ही मैं बोल पड़ा; "तो ये कौन सी किताब में लिखा है की अपने से ऊँची ज़ात में शादी करो पर नीची ज़ात में नहीं! और आपको क्या लगता है की मंत्री ने अपने बेटे की शादी रितिका से क्यों की? अपने बेटे के प्यार के आगे झुक कर और अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए वो आपके घर आया था!" मैंने एकदम सच बात कही जो ताऊ जी को बहुत चुभी और उन्होंने फ़ौरन बन्दूक मेरे ऊपर तान दी! माँ, ताई जी और भाभी सब ताऊ जी से गुहार करते रहे की वो ऐसा ना करें पर ताऊ जी के कान उनकी गुहार नहीं सुन सकते थे! पिताजी भी उन्हें रोकने को दो कदम बढे पर ताऊ जी की आँख में अंगारे देख रुक गए और सर झुका कर खड़े हो गए| इधर मैं और अनु समझ चुके थे की आज के दिन हम दोनों ही आज मार दिए जायेंगे और शायद इसके बारे में किसी को पता भी ना चले! अनु पीछे खड़े रोने लगी थी और उसके रोने की आवाज सुन कर मेरा दिल बहुत दुःख रहा था, मुझे कैसे न कैसे करके अनु को यहाँ से निकालना था| पर मुझे ताऊ जी के सामने अडिग खड़ा देख कर अनु में हिम्मत आ गई और वो पीछे से निकल कर मेरे सामने खड़ी हो गई और बोली; ताऊ जी रुक जाइये! आपको जान लेनी है तो मेरी ले लीजिये, इनकी (मनु की) जान ले कर आप सारी उम्र खुद को माफ़ नहीं कर पाओगे| मैं तो वैसे भी इस घर की नहीं हूँ तो मेरी जान ले कर आपको उतना दुःख नहीं होगा!" मैं ने अनु का हाथ पकड़ लिया और उसे पीछे करने जा रहा था की ताऊ जी बोल पड़े; "मुझे तेरी जान लेने का भी कोई शौक नहीं है! निकल जा इस घर से भी और मानु की जिंदगी से भी!" ये सुनते ही अनु ने अपना हाथ मेरे हाथ से छुड़ा लिया और रोती हुई जाने को पलटी, पर मैंने उसका हाथ एक बार फिर पकड़ लिया; "मर तो मैं वैसे भी जाऊँगा!" मैंने कहा तो अनु एक पल को रुकी और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "मैं यहाँ आपको आपके परिवार के हाथों मरवाने नहीं आई थी, मैं तो यहाँ सब का आशीर्वाद लेने आई थी! पर अगर ताऊ जी नहीं चाहते की ये शादी ना हो तो, मैं बस उनसे आपको माँग सकती हूँ छीन नहीं सकती! अपने परिवार के बिना आप कितना तड़पे हो ये मैंने देखा है और फिर उसी तरह तड़पते हुए नहीं देखना चाहती!" अनु ने रोते हुए कहा| "तो तुम भी मुझे छोड़ दोगी? फिर उसी हाल में जिससे बाहर निकाला था?" अब तो मेरे आँसूँ भी बह निकले थे! "मजबूर हूँ!" अनु ने बिलख कर रोते हुए कहा| मैंने तेजी से अनु को अपने पास खींचा और उसे अपने गले लगा लिया और आँखों में गुस्सा लिए ताऊ जी को देखा और जोर से चिल्लाया; "मार दो हम दोनों को! और इसी आंगन में गाड़ देना! रोज हमारी कबर पर बैठ कर अपनी इज्जत और शानोशौकत की पीपड़ी बजाते रहना|" इतना कह कर मैं अनु को खुद से समेटे हुए बाहर की तरफ बढ़ने लगा| ताऊजी मेरी गर्जन सुन कर काँप गए थे पर उनका अहम उनके ऊपर हावी था! उन्होंने दुनाली मेरी पीठ पर तान दी, सेफ्टी लॉक खोला और ट्रिगर दबाया......... धाँय!!! गोली चली और छत पर जा लगी| पिताजी ने आगे बढ़ कर ताऊ जी की बन्दूक की नाली छत की तरफ कर दी थी जिससे गोली छत में जा घुसी! मैं और अनु एक दम से रुक गए, अनु को लगा की वो गोली मेरे जिस्म में घुसी है और उसके प्राण सूख गए, पर जब उसने मुझे ठीक ठाक देखा तो उसकी जान में जान आई| इधर रितिका को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे उसे उसके हिस्से की ख़ुशी लगभग मिल ही गई हो!

हम दोनों पलटे और देखा की पिताजी जीवन में पहलीबार अपने बड़े भाई की आँखों में आँखें डाल कर देख रहे हैं और तेजी से सांस ले रहे हैं|

"ये आप क्या करने वाले थे भाईसाहब? मेरे बेटे पर गोली चलाई आपने? मेरे बेटे पर?" इतना कहते हुए पिताजी ने झटके से उनके हाथ से बन्दूक छीन ली और दूर फेंक दी| "रुक जा मानु, तू कहीं नहीं जाएगा! आजतक मैने हर वो काम किया है जो इन्होने (ताऊ जी ने) कहा, चाहे सही या गलत अपने बड़े भाई का हुक्म समझ मैं वही करता आया| इन्होने उस दिन कहा की मानु को घर से निकाल दे तो मैंने वो भी किया पर आज इन्होने तुझ पर बन्दूक तान दी और गोली चलाई, ये मैं नहीं सहन करूँगा!" पिताजी बोले और ताऊ जी बस पिताजी को घूरते रहे| इधर मेरी माँ भाभी का सहारा ले कर आगे बढ़ी और ताऊ जी से बोली; "ब्याह के बाद मैंने आपको और दीदी को अपने माँ-बाप माना और आप दोनों ने भी मुझे बेटी की तरह प्यार दिया| बेटे को खो देने का गम मैं जानती हूँ, भले ही पिछली बार मैं कुछ बोल नहीं पाई पर मानु की कमी मुझे हमेशा खलती थी! आप भी तो जानते हो की बेटा जब घर नहीं होता तो घर का क्या ख्याल होता है? चन्दर जब अस्पताल में था तब आप ने दीदी की हालत देखि थी ना? मुझ में अब अपने बेटे को दुबारा खोने की ताक़त नहीं है, आजतक मैंने आपसे कुछ नहीं माँगा.....आज पहली और आखरी बार माँगती हूँ..." माँ ने अपना आँचल ताऊ जी के सामने फैला दिया और बोलीं; मेरी झोली में मेरे बेटे का प्यार डाल दो, उसे इसी लड़की से शादी करने दीजिये!" माँ की हिम्मत देख ताई जी और भाभी भी माँ के साथ खड़े हो गये| "मानु की हालत देखि थी न उस दिन? क्या करेंगे हम जी कर हमारे बच्चे ही खुश नहीं हैं तो?" ताई जी रोती हुई बोलीं| "पिताजी मानु भैया अब बच्चे नहीं हैं, सोच समझ कर फैसला लेते हैं! आप ने कितनी बड़ाई की है मानु की और आज आप गुस्से में कैसी अनहोनी करने जा रहे थे?" चन्दर भैया बोले| भाभी कुछ बोल ना पाइन क्योंकि वो ताऊ जी से बहुत डरती थीं इसलिए उन्होंने केवल ताऊ जी के आगे हाथ जोड़ दिए| घर के सारे लोग मेरी तरफ आ चुके थे, खुद को यूँ अकेला देख ताऊ जी की आँखें झुक गई| उन्हें एहसास हुआ की उनका झूठा घमंड लगभग हमारे परिवार का अंत कर देता| ताऊ जी आँखों से पछतावे के आँसूँ बह निकले, उन्होंने अपनी बाहें खोल कर मुझे और अनु को अपने पास बुलाया| हम दोनों जा कर ताऊ जी के गले लग गए और ताऊ जी ने हम दोनों के सर चूमे और बोले; "मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चों! मैं गुस्से से अँधा हो चूका था! तुम सब ने आज मेरी आंखें खोल दीं! तुम दोनों की शादी बड़े धूम धाम से होगी और तुम दोनों को वो हर एक ख़ुशी मिलेगी जो मिलनी चाहिए| इतना कहते हुए ताऊ जी पिताजी के पास गए और उनके सामने हाथ जोड़े| पिताजी ने एक दम से ताऊ जी के दोनों हाथ पकड़ लिए और उनके गले लग गए और बोले; "नहीं भैया ...मैं आपसे छोटा हूँ...आज जो जुर्रत की उसके लिए माफ़ कर देना!" पिताजी रोते हुए बोले; "नहीं बेटा...तूने आज मेरी आँखें खोल दी!" ताऊ जी रोते हुए बोले| फिर ताऊ जी ने भाभी से कहा की वो नेहा को ले कर आएं और जैसे ही भाभी सीढ़ी की तरफ गईं रितिका उनके सामने खड़ी हो गई और उनका रास्ता रोक लिया| भाभी कुछ बोलती उससे पहले ही ताऊ जी तेजी से रितिका के पास पहुंचे और एक जोरदार थप्पड़ उसे मारा; "आग लगाने आई थी तू यहाँ? मंथरा!!!! जा बहु ले कर नेहा को!" रितिका डरी-सहमी सी एक कोने में खड़ी हो गई! जैसे ही भाभी ने ऊपर जा कर रितिका के कमरे का दरवाजा खोला की उन्हें नेहा के रोने की आवाज सुनाई दी! गोली की आवाज से नेहा जाग गई थी और जोर-जोर से रो रही थी! मैंने जैसे ही ये आवाज सुनी मैं तुरंत ऊपर दौड़ता हुआ पहुँचा| भाभी अभी नेहा को गोद में उठाने ही वाली थीं की मैंने उसे उनसे पहले उठा लिया और उसे एक दम से अपनी छाती से चिपका लिया| "मेरा बच्चा......!!!" इतना ही कह पाया| आज कई दीं बाद एक पिता को उसकी बेटी मिली थी और अंदर से आँसूँ बह निकले| जब मैं नीचे आया तो ताऊ जी रितिका को डाँट रहे थे; "कैसी माँ है तू? अपनी नन्ही सी बेटी को कमरे में बंद रखती है? जा बुला ले जिस मर्जी कोतवाल को में देखता हूँ की क्या करता है!" ताऊ जी ये कहते हुए मेरी माँ के सामने आये और हाथ जोड़ते हुए बोले; "मुझे माफ़ कर दे बहु! मैं तेरा कसूरवार हूँ, तुझे तेरे बच्चे से दूर करने का पाप किया है मैंने!"

"भाईसाहब जो हुआ सो हुआ, अब बस इस घर में फिर से खुशियां गूंजने लगे मैं बस यही चाहती हूँ!" माँ बोली| तब तक मैं नेहा को ले कर नीचे आ गया था और मेरी गोद में आते ही नेहा का रोना बंद हो गया था और उसकी किलकारियाँ शुरू हो गईं थी| "देख रहे हो आप (ताऊ जी), आज दो दिन बाद इस घर में नेहा की किलकारियाँ गूँज रही हैं? तेरे जाने के बाद मानु ये एकदम से गुमसुम हो गई थी!" ताई जी बोलीं| मैंने नेहा के माथो को चूमा तो उसने एकदम से मेरी ऊँगली पकड़ ली और उसकी किलकारी की आवाज पूरे घर में गूंजने लगी| अनु हसरत भरी आँखों से मुझे नेहा से प्यार करते हुए देख रही थी, जब मेरा ध्यान अनु पर गया तो मैंने उसे नेहा को दिया| नेहा को गोद में लेते ही अनु को उसकी ममता का एहसास जीवन में पहली बार हुआ| उसकी आँखें एक दम से भर आईं और उसने नेहा को अपनी छाती से लगा लिया| जहाँ मैं ये देख कर अंदर ही अंदर ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था वहीँ दूसरी तरफ रितिका जलक के राख हो चुकी थी| उसकी नफरत उसके चेहरे से दिख रही थी पर वो ताऊ जी के डर के मारे कुछ नहीं कर पा रही थी| वो गुस्से में पाँव पटकते हुए ऊपर अपने कमरे में चली गई| इधर अनु नेहा को अपनी छाती से लगाए हुए माँ और ताई जी के पास बैठ गई| वहीँ ताऊजी, पिताजी और चन्दर भय ने मुझे अपने पास बिठा लिया| फिर जो बातें शुरू हुईं तो मैंने घरवालों को सब कुछ बता दिया| अब जाहिर था की ताऊजी ने अनु के घरवालों से मिलने की ख्वाइश प्रकट करनी थी| मुझे उसी वक़्त कहा गया की परसों ही सब को मिलने बुलाओ और चूँकि आज शाम होने को है तो कल मैं अनु को सुबह छोड़ने जाऊँ| मैंने फ़ोन मिलाया और ताऊ जी ने बात करने के लिए मुझसे फ़ोन लिया| उन्होंने बड़े प्यार से डैडी जी से बात की और उन्हें परसों आने का न्योता दिया, साथ ही ये भी कह दिया की अभी समय बहुत हो गया है तो आज 'अनुराधा बिटिया' यहीं रुकेगी और कल मानु आपके पास छोड़ आएगा| चाय बनने लगी तो अनु ने भाभी की मदद करनी चाही पर भाभी मजाक करने से बाज नहीं आईं और बोलीं; "अरे पहले शादी तो कर लो! उसके बाद ये सब तुम्हें ही करना है!" ये सुन कर सारे लोग हँस पड़े और घर में हँसी का माहौल बन गया| कोई अगर दुखी था तो वो थी रितिका जो ऊपर अपने कमरे में बैठी जल-भून रही थी! माँ और ताई जी ने अनु से बहुत से सवाल पूछे और मेरी बताई गई बातों को verify किया गया, तथा मेरी बचकानी हरकतों के बारे में भी अनु को आगाह किया गया| कुल मिला कर कहें तो आज हमारे घर में खुशियाँ लौट आईं थी!

हम दोनों ही बहुत खुश थे और हमारी ख़ुशी दुगनी हो गई थी नेहा को पा कर...... पर हम छह कर भी नेहा को माँ-बाप वाला प्यार नहीं दे सकते थे क्योंकि नेहा की माँ यानी रितिका ये कभी नहीं होने देती!
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07-14-2020, 01:10 PM,
#85
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 75

रात का खाना बनने तक मैं नेहा को अपनी छाती से चपकाये रहा और घर के सब मर्दों के बीच रह कर बातें करता रहा| चूँकि ये घर के एकलौते कुंवारे लड़के की शादी थी और वो भी परिवार की आखरी शादी तो सब के मन में उत्साह भरा हुआ था| रितिका की दूसरी शादी की तरफ किसी ने तवज्जो नहीं दी थी क्योंकि अब घर वालों को रितिका के पागलपन से पीछा छुड़ाना था| ताऊ जी ने पूरे घर का रंग-रोगन का काम चन्दर भैया को सौंप दिया, और परसों के दिन जो अनु के मम्मी-डैडी का स्वागत होना था उसकी जिम्मेदारी उन्होंने पिताजी और अपने सर ले ली थी| "बेटा एक बात तो बता?" पिताजी थोड़ा हिचकते हुए बोले| "हाँ जी बोलिये?" मैंने नेहा से अपना ध्यान उनकी तरफ करते हुए कहा| "बेटा....तू हमारा रहन-सहन तो जानता है| अब बहु के घरवाले वो क्या सोचेंगे? क्या उन्हें ये रंग-ढंग जमेगा? मेरा मतलब ....वो ठहरे शहर में रहने वाले और हम ठहरे देहाती!" पिताजी बोले और ताऊ जी ने उनकी बात का समर्थन करते हुए हाँ में गर्दन हिलाई| "ताऊ जी, पिताजी वो लोग बस आपका अपनी बेटी के लिए प्यार देखना चाहते हैं| बाकी उन्हें हमारे रहन-सहन से कोई परेशान नहीं होगी| वो लोग जमीन से जुड़े लोग हैं और किसी भी तरह का कोई दिखावा नहीं करते|" मैंने सब सच ही कहा था, क्योंकि जितने भी दिन मैं वहां रहा था उतने दिन मुझे मम्मी-डैडी के बर्ताव में कोई भेदभाव या घमंड नजर नहीं आया था|

उधर माँ ने अनु को अपने साथ बिठा रखा था और उससे उसकी पसंद-नापसंद पूछी जा रही थी| जो सवाल मुझसे यहाँ पुछा गया था वही सवाल अनु से माँ ने पुछा| मेरे माँ-बाप खुद को अनु के मम्मी-डैडी के सामने कम आंक रहे थे| "माँ कोई अंतर् नहीं है? बस बुलाने का फर्क है, मैं मम्मी-डैडी कहती हूँ और 'ये' (अर्थात मैं) माँ-पिताजी कहते हैं!" अनु ने माँ के सवाल का जवाब देते हुए कहा| पर भाभी को अनु की टांग खींचने का मौका फिर से मिल गया; "ये? भला 'ये' कौन है?" भाभी ने थोड़ा जोर से कहा ताकि मैं भी सुन लूँ| "भाभी नाम नहीं ले सकती ना इसलिए!" अनु ने शर्माते हुए कहा| अनु का जवाब सुन सभी हँस पड़े| "बहु तू ज्यादा टाँग न खींच!" ताई जी प्यार से भाभी को डाँटा| "माँ एक बात बताओ, जब देवर भाभी का रिश्ता हंसी-मजाक का हो सकता है तो देवरानी और भाभी का रिश्ता ऐसा क्यों नहीं हो सकता?" भाभी ने पुछा तो अनु बोल पड़ी; "बिलकुल भाभी!" अनु का जवाब सुन माँ ने अनु के सर पर हाथ फेरा|

यहाँ ये हँसी मजाक चल रहा था और वहाँ ये हँसी-मजाक रितिका के दर्द का सबब बन चूका था| जब रितिका मानु के साथ थी तब भी उसे अनु से चिढ होती थी और अब तो मानु उससे शादी कर रहा है तो उसका जल भून कर राख होना तय था! मानु को चाचा कहने में उसे मौत आती थी और अनु को चाची कहने के बारे में वो सोच भी नहीं सकती थी! वो बेसब्री से इससे बाहर निकलने का रास्ता ढूंढने लगी, पर उसके लिए अब सारे दरवाजे बंद हो चके थे! जिस दर्द से मानु ने विदेश जाने के बहाने खुद को बचा लिया था अब वही दुःख रितिका को अपने आगोश में लेने को मचल रहा था! वो तो आत्महत्या भी नहीं कर सकती थी, क्योंकि ऐसा करने से मानु और अनु नेहा को अपना लेते और मरने के बाद भी रितिका को शान्ति नहीं मिलती! वो तो बस यही चाहती थी की मानु भी उसी की तरह आग में जले, तड़पे और मर जाए! जहाँ एक तरफ नीचे सारा परिवार नई खुशियों के साथ नई उमंग में मानु और अनु के लिए नई जिंदगी की दुआ कर रहा था, वहीँ ऊपर बैठी रितिका बस मानु की मनोकामना कर रही थी| "मुझसे तो तूने सब कुछ छीन लिया? कम से कम मेरे दुश्मन को तो चैन से मत रहने दे? कुछ दिन पहले ही मैंने उसे इतना तड़पाया था और जो सुकून मुझे मिला उसे तो मैं ब्यान भी नहीं कर सकती| आज भी वो मौत के इतने करीब था पर तूने उसे मरने नहीं दिया! क्या बिगाड़ा है मैंने तेरा?" रोती बिलखती रितिका भगवान् से मानु की मौत माँग रही थी| "बस एक मौका मिल जाए और मैं खुद इस आदमी को तेरे पास भेज दूँगी! कम्भख्त पैसे भी नहीं मेरे पास वरना इसे मरवा देती!" रितिका ने अपनी किस्मत को कोसते हुए कहा|

इधर इस सब से बेखबर मैं अपनी और अनु की शादी को ले कर खुश था और अब तो मेरे पास नेहा भी थी! मैं जानता था की अब रितिका में इतनी हिम्मत नहीं की वो ताऊ जी के सामने कुछ बोलने की हिम्मत करे, वरना ताऊ जी की दुनाली में अभी भी एक गोली loaded थी और उन्हें वो रितिका को आशीर्वाद स्वरुप देने में जरा भी हिचक नहीं होती! खेर रात का खाना हुआ और आज बरसों बाद सब ने एक साथ बैठ कर खाया| माँ, ताई जी और भाभी ने मिलकर अनु को इतना खिलाया जितना उसने आज तक नहीं खाया था| रितिका अपना खाना ले कर राजसी में बैठी थी और सब को इस तरह अनु को प्यार देते देख जलन से मरी जा रही थी पर बेबस थी और कुछ कह नहीं सकती| खाने के बाद उसने नेहा को दूध पिलाया और नेहा को ले कर ऊपर जाने लगी तो ताई जी ने उसे रोका और नीचे ही सब के साथ सोने को कहा पर वो अपनी अकड़ी गर्दन ले कर ऊपर जाने लगी| "नेहा को दे यहाँ!" ताई जी ने उससे रूखे स्वर में कहा तो ताऊ जी के डर के मारे उसने बेमन से नेहा को ताई जी को दे दिया| सब जानते थे की रितिका का दिमाग सनका हुआ और वो गुस्से में कहीं नेहा के साथ कुछ गलत ना करे| ताई जी ने नेहा को मेरी गोदी में दिया और मैं उसे ले कर ताऊ जी वाले कमरे में अंगीठी के सामने बैठ गया| वहाँ अभी भी मेरी शादी की बातें हो रही थीं और शादी के लिए मेरे कमरे में खरीदारी करने की चर्चा चल रही थी|

इधर अनु के मन में नेहा के लिए प्यार उमड़ पड़ा था| इन कुछ घंटों में ही उसका मन नेहा ने मोह लिया था; "माँ.... आज नेहा को मैं अपने साथ सुला लूँ?"

"बेटी कोशिश कर ले! ना तो मानु नेहा को गोद से उतारेगा और ना ही नेहा उसकी गोद से उतरेगी! दोनों में बिलकुल बाप-बेटी वाला प्यार है!" माँ ने मुस्कुराते हुए कहा| पर अनु कहाँ हार मानने वाली थी, वो माँ के कमरे से बाहर आई पर उसकी हिम्मत नहीं हुई ताऊ जी कमरे में घुसने की, क्योंकि वहाँ सब मर्द बैठे थे और ताऊ जी और पिताजी से उसकी शर्म उसे अंदर नहीं आने दे रही थी| वो कमरे के बाहर ही चक्कर लगाने लगी, तभी भाभी ने बाहर से मुझे आवाज दी और मैं उठ कर कमरे के बाहर आया| अनु ने पहले भाभी को देखा और थैंक यू कहा और फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली; "आज मुझे भी मेरी बेटी के साथ सोने दो?" अनु की बात सुन कर मैं मंत्र-मुग्ध सा उसे देखने लगा| इतनी जल्दी अनु ने नेहा को अपना लिया था इसकी कल्पना भी मैंने नहीं की थी! मैंने एक बार नेहा के मस्तक को चूमा और उसे अनु की तरफ बढ़ा दिया, पर नेहा के नन्हे हाथों ने मेरी कमीज पकड़ ली थी| मैंने धीरे से उसके कान में खुसफुसाते हुए कहा; "बेटा आज रात आपको मम्मी के पास सोना है!" मेरा इतना कहाँ था की नेहा ने मेरी कमीज छोड़ दी और अनु ने उसे अपनी छाती से लगा लिया| अनु की आँखें बंद हो गईं, ऐसा लगा जैसे उसके जलते माँ के कलेजे को सुकून मिल गई हो| मेरी आँखें अनु के चेहरे पर टिकी थीं और मैं उस सुकून को महसूस कर पा रहा था| जब अनु ने आँखें खोली और मुझे खुद को देखते हुए पाया तो शर्म से उसके गाल लाल हो गये| उसने मुस्कुरा कर मुझे थैंक यू कहा और माँ के कमरे में चली गई| मैं मुस्कुराता हुआ वापस ताऊ जी के कमरे में आ गया और उधर जैसे ही माँ ने अनु की गोद में नेहा को देखा वो बोल पड़ीं; "लो भाई! आज पहलीबार मानु ने किसी को नेहा की जिम्मेदारी दी है वरना रात को तो नेहा उसी के पास सोती थी|" ये सुन कर अनु को खुद पर गर्व होने लगा! रात को सोने का इंतजाम कुछ ऐसा था की माँ के कमरे में साड़ी औरतें सोने वाली थीं और ताऊ जी के कमरे में सारे मर्द| मेरा बिस्तर आज ताऊ जी और पिताजी के बीच था, देर रात तक हमारी बातें चलती रहीं| अगली सुबह सब जल्दी उठे, अनु भी आज सब के साथ उठी और नेहा को ले कर मेरे पास आई जो रो रही थी| "मेरा बच्चा क्यों रो रहा है?" उस समय मैं अकेला ताऊ जी के कमरे में बिस्तर ठीक कर रहा था और मौके का फायदा उठाते हुए मैंने अनु का हाथ पकड़ लिया; "आप कहाँ जा रहे हो? नेहा बेटा आपने मम्मी को तंग तो नहीं किया?" मैंने कहा|

"रात में तो बड़े आराम से सोई पर सुबह उठते ही रोने लगी!" अनु बोली और मेरे थोड़ा नजदीक आ गई| हम दोनों की नजरें बस एक दूसरे पर टिकी थीं; "वो क्या है ना सुबह होते ही नेहा को पापा की गुड मॉर्निंग वाली kissi चाहिए होती है!" मैंने कहा|

"अच्छा? और नेहा के पापा को मेरी गुड मॉर्निंग वाली kissi नहीं चाहिए होती?" अनु ने शर्माते हुए मुझे उस दिन वाली kissi याद दिलाई!

"चाहिए तो होती है.....पर .....!!!" मैं आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही भाभी आ गईं जो बाहर से हमारी बातें सुन रही थीं|

"हाय राम! तुम दोनों तो बड़े बेशर्म हो? शादी से पहले ही किस्सियाँ कर रहे हो? रुको अभी बताती हूँ सबको!" भाभी बोलीं और बाहर जाने लगीं की अनु ने उनका हाथ पकड़ लिया; "नहीं भाभी प्लीज!!!" अनु घबरा गई थी और ये देख कर भाभी हँस पड़ी तब जा कर अनु को पता चला की वो बस उसकी टाँग खींच रही हैं! "अच्छा सच्ची-सच्ची बता तुझे kissi चाहिए?" भाभी ने मुझसे पुछा और ये सुन कर मेरे गाल लाल हो गए और गर्दन झुक गई| "समझ गई! चलो अब भाभी हूँ तो कुछ तो करना पड़ेगा! हम्म्म्म...." ये कहते हुए भाभी कुछ सोचने लगी| "रहने दो भाभी! अभी इन्हें मुझे छोड़ने भी तो जाना है|" अनु ने कहा|

"हाय राम! तो तुम दोनों क्या बाहर खुले में सबके सामने....... लाज नहीं आती तुम्हें!" भाभी मुँह पर हाथ रखते हुए बोलीं|

"नहीं नहीं भाभी... क्या बात कर रहे हो?" मैंने अनु का बचाव किया तब जा कर अनु को एहसास हुआ की वो क्या बोल गई थी!

"भाभी मेरा मतलब था की हम अभी थोड़ी देर में निकलने वाले हैं!" अनु ने बात संभालनी चाही|

"अरे रहने दे! तू मुझे उल्लू समझती है!" भाभी ने अनु की पीठ पर प्यार से थपकी मारते हुए कहा|

"सच भाभी आपकी कसम हमने आजतक वैसा कुछ नहीं किया.... बस कुछ दिन पहले से ही ये 'kissi' शुरू हुई है|" मैंने कहा| भाभी जानती थी की मैं कभी झूठी कसम नहीं खाता था इसलिए उन्होंने अनु की टाँग और नहीं खींची| तभी बाहर से ताई जी की आवाज आई; 'अरे तुम तीनों अंदर कौन सी खिचड़ी पका रहे हो?" उनकी बात सुन कर हम सब बाहर आये और भाभी बोलीं; "माँ मैं तो नजर रख रही थी की ये दोनों क्या बातें कर रहे हैं!" भाभी बोलीं और खिलखिला कर हँस पड़ी और इधर हम दोनों के गाल लाल हो गए|

नाश्ता कर के हम निकलने लगे तो ताऊ जी बोले; "वहाँ पहुँच कर हमें कॉल करना और कल निकलने से पहले भी कॉल करना|" अनु ने सब के पाँव छुए और हम दोनों मुस्कुराते हुए घर से निकले| जहाँ कल आते हुए हमारे प्राण सूख रहे थे की नजाने क्या होगा वहीँ आज हम इतने खुश थे की उसे व्यक्त करने के लिए हम ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया| बस स्टैंड पहुंचे तो अनु ने बात शुरू की;

अनु: तो घर पर क्या बोलना है?

मैं: जो हुआ वो सब बताना है|

अनु: पर इतनी डिटेल की क्या जर्रूरत है? हम बस इतना कह देते हैं की सब राज़ी हैं| वैसे भी माँ का कल शाम को फ़ोन आया था और मैंने उन्हें बता दिया था की यहाँ सब शादी के लिए राज़ी हैं और हम कल आ रहे हैं|

मैं: बेबी बात को समझो! कल को ये बात अगर सामने आई तो पता नहीं डैडी जी कैसे रियेक्ट कर्नेगे! फिर वो चुड़ैल (रितिका) भी है जो इस बात को मिर्च-मसाला लगा कर कहेगी!

अनु: ये सुन कर डैडी डर जायेंगे और फिर उन्होंने शादी के लिए मना कर दिया तो?

मैं: कुछ नहीं होगा....मैं उन्हें समझा दूँगा|

अनु को मुझ पर तो विश्वास था पर वो अपने डैडी को भी जानती थी, इसीलिए वो मना कर रही थी|

पर एक बात थी जो सब से छिप्पी थी, वो थी मेरा और रितिका का रिश्ता जो अगर सबके सामने आता तो सब कुछ तहस-नहस हो जाता| बस आई और हम दोनों बैठ गए, मेरे मन में जो बात चल रही थी उससे मेरी शक्ल पर बारह बज रहे थे|

अनु: क्या सोच रहे हो?

मैं: यही की क्या हमारे घरवालों को सब कुछ पता होना नहीं चाहिए?

अनु: सब कुछ.....नहीं! थोड़ा बहुत...हाँ! आप जब गाँव आये हुए थे तब मम्मी ने मुझसे आपके पास्ट के बारे में पुछा था| तो मैंने बता दिया पर रितिका का नाम और आपसे रिश्ता नहीं! इतना ही उनके लिए जानना काफी है, इससे ज्यादा कुछ भी बताना मतलब सब कुछ खत्म कर देना और मुझ में आपको खोने की ताक़त नहीं है| ना तो मैं उन्हें कुछ बताऊँगी और ना ही आपको बताने दूँगी!

मैं: पर क्या ये सही है?

अनु: सही है...बिलकुल सही है| सच मुझे जानना जर्रूरी था उन्हें नहीं, जिंदगी हमें साथ बितानी है उन्हें नहीं! जो बात दबी है उसे दबी रहने दो!

अनु ने मुझे आगे कुछ कहने नहीं दिया पर वो भूल रही थी की दुनिया में और भी लोग हैं जो मेरे और रितिका के रिश्ते के बारे में सब जानते हैं| अब चूँकि हमारा (मेरा और अनु का) रिश्ता सब के सामने आ रहा था तो ऐसे में रितिका और मेरे रिश्ते को ले कर कीचड उछलना स्वाभाविक था|

पर अभी के लिए हम दोनों अपने आँखों में शादी के सपने लिए बस के झटके खाते हुए घर पहुँचे| वहाँ मैंने डैडी जी को साड़ी बात बताई और सब सुन कर उन्हें ख़ुशी तो हुई पर साथ ही उन्हें चिंता भी हुई! ख़ुशी का कारन हमारी शादी के लिए मेरे घर वालों का मान जाना था और चिंता मेरे ताऊ जी का गुस्सैल स्वभाव था! "डैडी जी आप को घबराने की कोई जर्रूरत नहीं है, जो होना था वो स्वाभविक था| उसके पीछे का कारन है हमारे ही गाँव और मेरे ही घर में घाटी एक घटना|" फिर मैंने उन्हें भाभी वाले काण्ड की सारी बात बता दी; "अब उनकी जगह आप होते तो आप भी शायद नाराज होते| पर अब ताऊ जी का दिल साफ़ है| उन्होंने अनु को हमारे घर की बहु के रूप में स्वीकार लिया है| मेरी माँ तो अनु से मुझसे भी ज्यादा प्रेम करती है और सिर्फ वे ही नहीं बल्कि घर के सब लोग अनु से बहुत प्यार करते हैं!" मैंने कहा और फिर अनु ने उन्हें मेरी माँ से हुई सारी बातें बताईं, तब जा कर उनके दिल को सुकून मिला| "डैडी जी मैं आप से वादा करता हूँ की अनु हमेशा खुश रहेगी और मैं उस पर कोई आंच नहीं आने दूँगा!" मेरी बात सुन कर डैडी जी की चिंता दूर हुई और उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया| डैडी जी से बात होने के बाद मैंने घर फ़ोन कर के कल आने का समय बता दिया और ये सुनते ही मेरे घर में तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं| तम्बू-कनात वालों को बुला लिया गया, घर में कालीन बिछ गया, रसोइयों को ख़ास पकवानों की फरमाइश कर दी गई, घर पर लाइटें लग गईं, छत पर और आंगन की क्यारियों में नए-नए पौधे लगा दिए गए| बैठने-उठने के लिए कुर्सियाँ-टेबल साफ़ करा दिए गए, घर के सारे कमरों की सफाई ढंग से हुई और सब कुछ सजा-धजा के रखा गया| पेंट नहीं हो पाया क्योंकि समय नहीं था पर घर इतना चमक गया था की पेंट ना होने पर किसी का ध्यान ही ना जाये| वहाँ बस हमारा इंतजार हो रहा था|

इधर मैं, अनु और मम्मी-डैडी निकले, बस की जगह हमने डैडी जी की गाडी ही ली| ड्राइविंग सीट पर मैं था और मेरे साथ डैडी जी थे, पीछे मम्मी जी और अनु बैठे थे| पूरे रास्ते हम सब बस बातें करते रहे, इधर हर एक घंटे में मेरे घर से फ़ोन आ रहा था| वो तो फ़ोन अनु के पास था जो पिताजी को हमारी एक्सएक्ट लोकेशन बता रही थी| मैंने गाडी सीधा अपने घर के बाहर रोकी और इधर मेरे सारे घर वाले स्वागत करने के लिए बाहर खड़े हो गए| मैंने सब का परिचय करवाया और वहीँ खड़े-खड़े सब ने एक दूसरे को गले लगाना और आशीर्वाद देना शुरू कर दिया| आस-पड़ोस वाले जो इतनी तैयारी देख कर हैरान थे वो ये मिलनी का सीन देख के समझ गए थे की यहाँ मेरे रिश्ते की बात चल रही है| फिर सब अंदर आये और आंगन में बैठ गए और बातों का सिलसिला शुरू हुआ| दाद्दी जी और ताऊ जी ने एक दूसरे से कोई बात नहीं छुपाई और दोनों परिवार एक दूसरे की गलतियों और खामियों को समझ चुके थे| जहाँ एक तरफ डैडी जी ने अपनी गलती मानी की उन्होंने अनु के साथ ज्यादती करते हुए उसे घर से निकाल दिया वहीँ मेरे पाटजी ने मेरा अमरीका जाने पर मुझे घर से निकालने की बात कबूली|

डैडी जी ने मेरी बड़ाई करनी शुरू की; "भाईसाहब आपका लड़का सच में हीरा है, पहली नजर में ही हमारे दिल में घर कर गया| जिस तरह से इसने अनु को हम से फिर से मिलाया वो काबिले तारीफ है!" ये सुन कर मेरे ताऊ जी भी अनु की बधाई करने से नहीं चूके; "भाईसाहब इसका सारा श्रेय सिर्फ अनुराधा बेटी को ही जाता है| जिस तरह उसने मानु को संभाला वो भी तब जब हम उसके पास नहीं थे....मेरे पास तो उसे धन्यवाद देने के लिए शब्द नहीं हैं! बल्कि मैं तो उसका कसूरवार हूँ!" ताऊ जी ने अनु के आगे हाथ जोड़े तो अनु ने फ़ौरन उठ कर उनके हाथ पकड़ लिए; "ताऊ जी कोई कसूरवार नहीं हैं आप! क्या बड़ों को बच्चों को डांटने या मारने का हक़ नहीं होता?" अनु को ताऊ जी की हिमायत करते देख ताई जी संग सभी की आँखें नम हो गईं, अब मुझे सब का मूड ठीक करना था सो मैं उठ कर ऊपर गया तो देखा रितिका छत पर अकेली बैठी है और अपना सर परपेट वॉल से टकरा रही है| नीचे मिलनी होने के बाद वो ऊपर आ गई थी, पर मैं यहाँ उसे नहीं बल्कि अपनी बेटी को लेने आया था| मैंने नेहा को गोद में उठाया जो अकेली कमरे में लेटी छत की ओर देख कर अपने हाथ-पाँव हिला रहे थी| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझसे शिकायत कर रही हो की पापा आप मुझे बहूल गए| मैंने तुरंत उसे अपनी गोद में उठाया ओर उससे बोला; "मेरा बच्चा! मैं आपको नहीं भूला, चलो आपको सब से मिलवाता हूँ|" मैं फटाफट नेहा को ले कर नीचे उतरा और उसे मम्मी-डैडी से मिलवाया; "ये है हमारे घर की सबसे छोटी ओर प्यारी सदस्य, नेहा!" उसे देखते ही मम्मी-डैडी ने उसे बड़ा प्यार दिया और फिर पूरे घर का माहौल वापस से खुशनुमा हो गया|

शादी की तारीक तो पहले से ही तय थी 23 फरवरी तो घर में सब के पास काफी समय था तैयारी के लिए| जैसे ही डैडी जी ने दहेज़ की बात राखी तो ताऊ जी ने इस बात को सिरे से नकार दिया; "भाईसाहब ऐसी गुणवान बहु के इलावा हमें और कुछ नहीं चाहिए!" ये सुन कर तो मैं भी हैरान था, क्योंकि गाँव-देहात में आज भी ये प्रथा चलती है और गाँव क्या शहर में भी यही प्रथा चल रही है| बाद में जब मैं ताऊजी से इसका कारन पुछा तो वो बोले; "बेटा मैंने तेरा और अनुराधा का प्यार देखा है और इसके चलते मैं या हमारे परिवार से कोई भी ऐसी कोई हरकत नहीं करेगा जिससे इस शादी में कोई बाधा आये| फिर हमें दहेज़ की क्या जर्रूरत है? तेरे और बहु के लिए सारी तैयारी मैं कर रहा हूँ, तू बस देखता जा!" ताऊ जी ने इतने गर्व से कहा की मैं उनके गले लग गया| खेर खाने का समय हुआ और फिर इतने मजेदार पकवान परोसे गए की क्या कहूँ! खाने के बाद ताऊ जी डैडी जी के साथ सब को हमारी जमीन दिखाने निकले और रास्ते में जो कोई भी मिला उससे डैडी जी का तार्रुफ़ अपने समधी के रूप में करवाया| सब कुछ देख कर हम सब ऊपर छत पर बैठे, शाम की चाय भी सब ने ऊपर पी| इस दौरान रितिका अपने कमरे में छुपी रही और इन खुशियों से जलती रही! इधर पिताजी ने एक अलाव ऊपर जलवाया और सब उसके इर्द-गिर्द बैठ गए| हँसी-मजाक हुआ और फिर डैडी जी ने मँगनी करने की बात की| हमारे गांव में ऐसी कोई रस्म नहीं थी, इसकी जगह हम 'बरेछा' की रस्म करते हैं| इस रस्म में दुल्हन के घर वाले दूल्हे का तिलक कर उसे कुछ उपहार देते हैं और इसी के साथ शादी की बात पक्की मानी जाती है| मुझे लगा की ताऊ जी मना कर देंगे पर पिताजी और ताऊ जी दोनों ही इस बात के लिए तैयार हो गए और चन्दर भैया से पंडित जी को बुलाने को कहा| पंडित जी अपनी पोथी-पटरी ले कर आये और गुना-भाग कर 10 दिन बाद का मुहुरत निकाल दिया|
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07-14-2020, 01:10 PM,
#86
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 76

मुहूरत निकला तो सब को फिर से मुँह मीठा करने का मौका मिल गया| ताऊ जी ने रसोइये को गर्म-गर्म जलेबियाँ लाने को कहा| फटाफट गर्म-गर्म जलेबियाँ आईं और ठंडी की शाम में, अलाव के सामने बैठ के सब ने जलेबियाँ खाईं! 7 बजते-बजते ठण्ड प्रचंड हो गई इसलिए सब नीचे आ गए और नीचे बरामदे में बैठ गए| रसोइयों ने खाना बनाना शुरू कर दिया था जिसके खुशबु सब को मंत्र-मुग्ध किये हुए थी| मैं यहाँ सब मर्दों के साथ बैठा था और अनु वहाँ सब औरतों के साथ| नेहा मेरी गोद में थी और अपनी पयाली-प्याली आँखों से मुझे देख रही थी| अब अनु जब से आई थी तब से उसने नेहा को गोद में नहीं लिया था और उसकी ममता अब रह-रह कर टीस मारने लगी थी| आखिर वो भाभी को ले कर कमरे से बाहर निकली और उस कमरे की तरफ देखने लगी जहाँ मैं सब के साथ बैठा था| भाभी चुटकी लेने से बाज़ नहीं आईं और बोलीं; "बेकरारी का आलम तो देखो?" ये सुन कर दोनों खी-खी करके हँसने लगी| इधर कल सुबह जाने की बात हो रही थी तो मैंने कहा की मैं सब को घर छोड़ दूँगा पर डैडी जी बोले; "बेटा तुम्हें तकलीफ करने की कोई जर्रूरत नहीं है!" पर चन्दर भैया जानते थे की मेरा असली मकसद क्या है और वो बोल पड़े; "चाचा जी! मानु इसलिए जाना चाहता है ताकि अनुराधा के साथ रह सके!" चन्दर भैया ने बात कुछ इस ढंग से कही की सब समझ गए और हँस पड़े| "अब तो तुमने बिलकुल नहीं जाना! अब तुम दोनों शादी के बाद ही मिलोगे!" डैडी जी बोले| "सही कहा समधी जी आप ने! भाई थोड़ा रस्मों-रिवाजों की भी कदर करो!" ताऊ जी बोले| इधर अनु और भाभी ने साड़ी बात सुन ली थी और ये ना मिलने वाली बात सुन अनु का दिल बैठा जा रहा था| उसने बड़ी आस लिए हुए भाभी की तरफ देखा और भाभी सब समझ गईं| "मानु...जरा इधर आना!" भाभी ने मुझे आवाज दी और मैं नेहा को ले कर बाहर आया| मेरी शक्ल पर बारह बजे देख वो समझ गईं की आग दोनों तरफ लगी है| भाभी कुछ कहती उसके पहले ही मेरी नजर ऊपर गई और देखा तो रितिका नीचे झाँक रही है| "भाभी कुछ करो ना? देखो कल मुझे 'इन्हें' छोड़ने भी नहीं जाने दे रहे!" मैंने मुँह बनाते हुए कहा| भाभी एक मिनट कुछ सोचने लगी और फिर ऊँची आवाज में बोलीं; "अरे मानु तुमने अनुराधा को अपना कमरा तो दिखाया ही नहीं?" उनकी बात सुन कर हम दोनों समझ गए और दोनों सीढ़ियों की तरफ जाने लगे| "अरे नेहा को तो देते जाओ, इसका वहाँ क्या काम?" भाभी ने फिर से दोनों की चुटकी लेते हुए कहा| मैंने एक बार देख लिया की कोई देख तो नहीं रहा और ये भी की रितिका देख ले, फिर मैंने झट से अनु का हाथ पकड़ा और हम दोनों ऊपर आ गए| रितिका जल्दी से अपने कमरे में छिप गई और दरवाजा बंद कर लिया| हम दोनों मेरे कमरे में घुसे, अनु आगे थी और मैं पीछे| मैंने दरवाजा हल्का से चिपका दिया और जैसे ही पलटा अनु ने मुझे कस कर गले लगा लिया| "I love you baby!" मैंने कहा और कुछ इतनी आवाज से कहा की रितिका सुन ले| अनु एक दम से मेरा मकसद समझ गई और बोली; "सससस... अब तो इंतजार नहीं होता!" ये सुन कर मेरी हँसी छूट गई पर मैंने कोई आवाज नहीं निकाली और अपने मुँह पर हाथ रख कर हँसने लगा| तभी अनु को एक शरारत सूझी और वो बोली; "कितने दिन हुए मुझे आपको वो गुड मॉर्निंग वाली kissi दिए हुए!" अनु ने मेरी कमीज के ऊपर के दो बटन खोले, मेरी गर्दन को बाईं तरफ झुकाया और अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिए| मेरे हाथ उसकी कमर पर सख्त हो गए और मैंने उसे कस कर अपने से चिपका लिया| इधर अनु ने अपनी जीभ से मेरी गर्दन की muscle पर चुभलाना शुरू कर दिया| फिर अनु ने जितना हिस्सा उसके मुँह से घिरा हुआ था उसे अपने मुँह में suck कर लिया और दांतों से धीरे से काटा| मेरा लंड एक दम से फूल कर कुप्पा हो गया, अनु को उसके उभार से अच्छे से एहसास भी हुआ और डर के मारे उसने वो kissi तोड़ दी! उसकी आँखें झुक गईं और अनु मुझसे दूर चली गई| मैं समझ गया की उसे अपने इस डर के कारन शर्म आ रही है| मैं धीरे से उसके पास बढ़ा और उसे अपनी तरफ घुमाया, उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उसकी आँखों में देखते हुए धीमे से बोला ताकि रितिका न सुन ले; "Baby ....its okay! Don't blame yourself!" ये सुन कर अनु को तसल्ली हुई वरना वो रो पड़ती| मैंने उसके माथे को चूमा और अनु ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया और फिर से अपने होंठ मेरी गर्दन पर रख दिए|

इधर भाभी एकदम से धड़धड़ाती हुई अंदर आईं और हम दोनों को ऐसे गले लगे देख फिर से चुटकी लेने लगीं; "मुझे तो लगा यहाँ मुझे कुछ अलग देखने को मिलेगा पर तुम दोनों तो गले लगने से आगे ही नहीं बढे? तुम्हें और कितना टाइम चाहिए होता है?"

"क्या भाभी? अभी तो इंजन गर्म हुआ था और आपने उस पर ठंडा पानी डाल दिया!" मैंने चिढ़ने का नाटक करते हुए कहा|

"हाय! माफ़ कर दो देवर जी पर नीचे आपके ससुर जी बुला रहे हैं!" भाभी की बात सुन कर मैंने अपनी कमीज के सारे बटन बंद किये और ये देख कर भाभी की हँसी छूट गई; "तुम दोनों जिस धीमी रफ़्तार से काम कर रहे हो उससे तो तुम्हें एक रात भी कम पड़ेगी!" भाभी ने फिर से दोनों का मज़ाक उड़ाया| मैंने जा कर भाभी को गले लगाया और उन्हें थैंक यू कहा तो भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा; "देख रही है? जब से मेरी शादी हुई है आज पहलीबार है की मानु ने मुझे ऐसे गले लगाया है! क्यों नई बहु को जला रहे हो?" ये सुन कर अनु ने भी पीछे से आ कर भाभी को गले लगा लिया| अब हम दोनों ही भाभी के गले लगे हुए थे की तभी ताई जी हमें ढूढ़ती हुई आ गईं; "अरे वाह! देवर-देवरानी और भाभी तीनों एक साथ गले लगे हुए हो?" हम दोनों ताई जी को देख कर अलग हुए और भाभी ने अपनी बात फिर से दोहराई तो ताई जी ने उनके सर पर प्यार से एक चपत लगाई और बोलीं; "जब उस दिन घर आया था तब गले नहीं लगाया था?" तब भाभी को याद आया की जब मैं पहलीबार घर आया था तब मैंने सब को गले लगाया था|

खेर रात के खाने का समय हुआ और सब ने एक साथ टेबल-कुर्सी पर बैठ कर खाना खाया, फिर जैसे ही गाजर का हलवा आया तो सारे खुश हो गए| डैडी जी ने ताऊ जी के इंतजाम की बड़ी तारीफ की, फिर खान-पान के बाद सब सोने चल दिए| ताऊ जी वाले कमरे में डैडी जी, पिताजी और ताऊ जी लेटे, चन्दर भैया वाले कमरे में भाभी और अनु सोने वाले थे और मेरे कमरे में मैं और चन्दर भैया सोने वाले थे| बाकी बची माँ, मम्मी जी और ताई जी तो वो माँ वाले कमरे में लेट गए| रसोइये जा चुके थे और बरामदे में बस मैं, चन्दर भैया, अनु और भाभी आग के अलाव के पास बैठे थे| नेहा मेरी गोद में थी और मेरी ऊँगली पकड़ कर खेल रही थी| "आपको क्या जर्रूरत थी मानु के छोड़ने जाने पर कुछ कहने की?" भाभी ने चन्दर भैया की क्लास लेते हुए कहा| "अरे मैं तो...." भैया कुछ कह पाते इससे पहले मैं बोल पड़ा; "सही में भैया एक दिन हमें साथ मिल जाता!"

"हाँ भैया ....अब देखो ना 10 दिन तक...." जोश-जोश में अनु ज्यादा बोल गई और फिर एकदम से चुप हो गई| ये देख कर हम तीनों ठहाका मार के हँसने लगे! "चिंता मत कर बहु! मैंने बात बिगाड़ी है तो मैं ही सुधारूँगा भी! दो एक दिन रुक जा फिर हम तीनों (यानी मैं, भैया और भाभी) शहर आएंगे| हम दोनों काम में लग जाएंगे और तुम दोनों अपना घूम लेना!" भैया की बात सुन मैंने उन्हें झप्पी दे दी! कुछ देर हँस-खेल कर हम सब अपने-अपने कमरों में सोने चल दिए| अगली सुबह हुई और सब नहा-धो कर तैयार हुए और नाश्ता-पानी हुआ| फिर आया विदा लेने का समय तो ताऊ जी और पिताजी सबसे पहले अपने होने वाले समधी जी से गले मिले और ठीक ऐसा ही माँ और ताई जी ने अपनी होने वाली समधन जी के साथ किया| ताऊ जी ने चन्दर भैया को कुछ इशारा किया और वो अपने कमरे से मिठाइयाँ और कपडे का एक गिफ्ट पैक ले कर निकले; "समधी जी ये हमारी तरफ से प्यारभरी भेंट! अब हम अपनी समझ से जो खरीद पाए वो हमने आप सब के लिए बड़े प्यार से लिया|" ताऊ जी बोले और उधर डैडी जी बोले; "अरे समधी जी इसकी तकलीफ क्यों की आपने? हम तो यहाँ रिश्ता पक्का करने आये तो और आपने तो...." डैडी जी का मतलब था की वो तो जल्दी-जल्दी में खाली हाथ आ गए थे और ऐसे में उन्हें शर्म आ रही थी| पर डैडी जी की बात पूरी होने से पहले ही ताऊ जी ने उन्हें एक बार और गले लगा लिया और बोले; "समधी जी कोई बात नहीं!" ताऊ जी ने डैडी जी को इतने कस कर गले लगाया की वो कुछ आगे नहीं कह पाए और मैंने खुद ये समान गाडी में रखवाया| मैंने मम्मी-डैडी जी के पाँव छुए और उधर अनु सब से मिलने और पाँव छूने लगी| "अगली बार तुझे मैं बहु कह कर गले लगाऊँगी!" माँ बोली और फिर सब ने ख़ुशी-ख़ुशी अनु और मम्मी डैडी को विदा किया| उनके जाने के बाद सब घर में आये और ताऊ जी ने चन्दर भैया से मंगनी की रस्म की साड़ी तैयारियाँ शुरू करने को कहा| जिन लोगों ने कल मम्मी-डैडी को आते हुए देखा था वो अब सब आ कर पूछ रहे थे और ताऊ जी और पिताजी बड़े गर्व से मेरी शादी की बात बता रहे थे| दोपहर के खाने के बाद मैंने बात छेड़ते हुए कहा;

मैं: मैं सोच रहा था की शादी में और मँगनी के लिए सारे आदमी सूट पहने!

माँ: और हम लोग?

मैं: आप सब साड़ियाँ.... पर साड़ियाँ मेरी पसंद की होंगी!

ताई जी: ठीक है बेटा जैसा तू ठीक समझे|

ताऊ जी: पर बेटा हम ने कभी सूट नहीं पहना? सारी उम्र हमने धोती और कुर्ते में काटी है तो अब कहाँ हमें पतलून पहना रहा है?

मैं: ताऊ जी थोड़ा तो मॉडर्न बन ही सकते हैं? आप तीनों सूट में बहुत अच्छे लगोगे! फिर ये भी तो सोचिये की हमारे गाँव में आप अकेले होंगे जिसने सूट पहना है!

मेरी बात सुन कर ताऊ जी मान गए, और अगले दिन सुबह-सुबह जाने का प्लान सेट हो गया| कुछ देर बाद अनु का फ़ोन आया की वो घर पहुँच गए हैं और मम्मी-डैडी मेरे घर वालों से बहुत खुश हैं| मैं उस वक़्त नेहा को गोद में ले कर बैठा था और उसकी किलकारी सुन अनु का मन उससे बात करने को हुआ पर वो नन्ही सी बच्ची क्या बोलती? मैंने वीडियो कॉल ऑन की और अनु ने नेहा को अपनी ऊँगली चूसते हुए देखा और वो एकदम से पिघल गई| फिर मैंने अनु को बताया की पिताजी कजी, ताऊ जी और चन्दर भय सूट पहनने के लिए मान गए हैं तो उसने कहा की मैं उसे कलर बता दूँ ताकि वो उस हिसाब से अपने डैडी का सूट सेलेक्ट करे| इसी तरह बात करते हुए और नेहा की किलकारियां देखते हुए हमारी बात होती रही| अगले दिन सुबह हम सब दर्जी के निकल लिए और मैंने वहाँ जा कर हम चारों क सूट का कपडा और डिज़ाइन सेलेक्ट करवाया, दर्जी ने साथ ही साथ सबका मांप भी लिया| शादी के लिए कपडे सेलेक्ट करना फिलहाल के लिए टाल दिया गया था| फिर हम सारे मर्द एक साडी की दूकान में घुसे और वहाँ मैंने एक-एक कर साड़ियों का ढेर लगा दिया| घंटा भर लगा कर मैंने माँ, भाभी और ताई जी के लिए साड़ियाँ ली" उसके बाद ताऊ जी हम सब को सुनार की दूकान में ले गए और वहाँ मुझसे ही अनु के लिए अंगूठी पसंद करने को कहा गया, दुकानदार को हैरानी तो तब हुई जब मैंने उसे अनु की ऊँगली का एक्सएक्ट साइज बताया! खेर खरीदारी कर के हम घर लौट रहे थे और ताऊ जी ने मुझे कोई पैसा खर्च करने नहीं दिया था|

बजार में मोटरसाइकिल का एक नया शोरूम खुला था और मैं बातों-बातों में चन्दर भय से जान चूका था की उन्हें बाइक चलानी आती है| वो तो उनके नशे के चलते ताऊ जी बाइक लेने नहीं देते थे| मैंने सोचा की घर में एक बाइक तो होनी ही चाहिए, इसलिए मैंने चन्दर भैया का हाथ पकड़ा और एक बाइक के शोरूम में घुस गया| "बताओ भैया कौनसी पसद आई आपको?" मैंने खुश होते हुए पुछा|

"बेटा इसकी क्या जर्रूरत है?" ताऊ जी बोले|

"ताऊ जी आज तक मैं सब के लिए कुछ न कुछ लाया हूँ, भैया के लिए बस शर्ट-पैंट ही ला पाया, आज तो एक तौहफा देने दो! मैंने कहा तो ताऊ जी मुस्कुरा दिए और मेरे पिताजी की पीठ पर हाथ रखते हुए उन्हें अपने गर्व का एहसास दिलाया| इधर चन्दर भैया भी भावुक हो गए और मेरे गले लग गए| फिर मैं उनका हाथ पकड़ कर अंदर ले आया और उनसे पुछा तो उन्होंने HF Deluxe सेलेक्ट की पर मेरा मन Hero Passion Pro पर था, माने उन्हें जब उसकी तरफ इशारा किया तो वो एकदम से खुश हो गए और लाल रंग में वही सेलेक्ट की गई| जब मैं पैसे देने लगा तो ताऊ जी ने बड़ी कोशिश की पर मैं जिद्द पर अड़ गया और मैंने उन्हें पैसे नहीं देने दिए| किस्मत से डिलीवरी भी उसी वक़्त मिल गई, मैं और चन्दर भैया फरफराते हुए पहले निकले| ताऊ जी और पिताजी बाद में आये, जैसे ही बाइक घर के बाहर रुकी भैया ने पी-पी हॉर्न की रेल लगा दी| सबसे पहले भाभी निकली और बाइक देख कर एकदम से अंदर भागीं और आरती की थाली ले आईं, ताई जी और माँ भी आ कर बाहर खड़े हो गए और भैया ने बड़े गर्व से कहा की ये मैंने उन्हें तौह्फे में दी है| रितिका ऊपर छत से नीचे झांकते हुए देख रही थी पर उसे ये देख कर जरा भी ख़ुशी नहीं हुई थी| पूजा हुई और मैंने भाभी और भैया को जबरदस्ती ड्राइव पर भेज दिया और मैं, माँ ताई जी सब अंदर आ गए| ताई जी ने हलवा बनाना शुरू किया और मैंने नेहा को गोद में ले कर खेलना शुरू किया| कुछ देर बाद ताऊ जी और पिताजी लौट आये और उनके आने के एक घंटे बाद भैया और भाभी भी लौट आये|

शाम को मैं और अनु वीडियो कॉल पर बात कर रहे थे की तभी भाभी आ गईं और उन्होंने भी अनु से बात करना शुरू कर दिया और आज के तौह्फे के बारे में बताया| तभी भाभी ने इशारे से भैया को ऊपर बुला लिया और उनसे बोली; "देखो मैं कुछ नहीं जानती कल के कल ही दोनों को मिलवाओ!" अनु उस वक़्त वीडियो कॉल पर ही थी और शर्मा रही थी की तभी भैया मुझसे बोले; "तू कपडे पहन मैं अभी ले चलता हूँ तुझे!" ये सुन मैं तो एकदम से खड़ा हुआ पर भाभी बोली; "अभी टाइम ही कहाँ बचा है? कल सुबह चलते हैं, मैं भी इसी बहाने लखनऊ घूम लूँगी|" तो बात तय हुई की कल का दिन हम चारों लखनऊ घूमेंगे, रही ताऊ जी से बात करनी तो वो भी भैया ने खुद कर ली| अगले दिन हम लखनऊ के लिए निकले और पूरे रास्ते भाभी मेरी टाँग खींचती रहीं, "आज तो अपनी होने वाली दुल्हनिया से मिलने जा रहे हो!" अनु हमें लेने बस स्टैंड पहुँच गई थी और वहाँ से हम अलग हो गए| भैया-भाभी घूमने चले गए और मैं और अनु कहीं और निकल लिए| घुमते-घुमते बात चली लोगों को invite करने की तो मैं और अनु नाम गिनने लगे की किस किस को बुलाना है|

मैं: यार मेरे कॉलेज से तो कोई नहीं आ सकता, reason obvious है सब रितिका को जानते हैं!

अनु: मेरा तो कॉलेज ही कॉरेस्पोंडेंस था! कुछ स्कूल के दोस्त हैं पर उनसे मेरी कोई ख़ास-बात चीत नहीं है| एक दोस्त है शालू जिस के घर मैं रुकी थी वो मेरी बहुत अच्छी दोस्त है तो वो जर्रूर आएगी|

मैं: अरुण-सिद्धार्थ ...... उन्हें .....

मैं आगे कुछ नहीं बोल पाया|

अनु: उन्हें बुला तो लें पर वो भी रितिका के बारे में जानते हैं|

मैं: उन्हें सच बता दूँ?

अनु: आप को विश्वास है उन पर?

मैं: बहुत विश्वास है! आपके आने से पहले वही थे जो मुझे थोड़ा-बहुत संभाल पा रहे थे| ज्यादा से ज्यादा क्या होगा की वो loud react करेंगे और दोस्ती टूट जायेगी!

अनु: जितना मैं उन्हें जानती हूँ वो शायद ऐसा कुछ न कहें!

मैंने फ़ोन निकाला और अरुण-सिद्धार्थ को कॉन्फ्रेंस कॉल पर लिया; "यार कुछ बहुत जर्रूरी बात करनी है, अभी मिलना है! प्लीज!!!" आगे मुझे कुछ बोलना नहीं पड़ा और उन्होंने फ़ौरन जगह और टाइम फिक्स किया|

मैं: मेरी कॉलेज की एकलौती दोस्त है जिसे मैं बुलाना चाहता हूँ|

अनु: मोहिनी? पर उसे भी तो पता है?

मैं: वो अकेली ऐसी दोस्त है जो सब जानते हुए भी मेरे खिलाफ नहीं थी|

मैंने मोहिनी को कॉल मिलाया और उसे सब बताया, रितिका के बारे में सुन कर उसे बहुत गुस्सा आया और वो उसे गाली देने लगी; "हरामजादी कुतिया! इसकी वजह से .....हम दोनों........" वो आगे कुछ नहीं कह पाई| पर मैं उसका मतलब समझ गया था, अगर ऋतू नहीं होती तो आज मैं और मोहिनी साथ होते! "सॉरी....तो कब आना है मुझे?" मोहिनी बोली| "आप मेरी तरफ से आजाओ! मेरे नाते-रिश्तेदार कम हैं!" अनु बोली और उसकी बात सुन मोहिनी को एहसास हुआ की कॉल स्पीकर पर था और अनु ने उसकी सारी बात सुन ली थी इसलिए वो एकदम से खामोश हो गई!

"हेल्लो? मोहिनी?" अनु बोली और तब जा कर मोहिनी ने हेल्लो कहा| "यार its okay .... I know everything ...." ये सुन कर भी मोहिनी कुछ नहीं बोली तो मजबूरन मुझे ही बोलना पड़ा; "अच्छा बाबा आप 20 फरवरी को मेरे घर पहुँच जाना और अपना एड्रेस text कर दो मैं कार्ड भेज देता हूँ!" तब जा कर उसके मुँह से 'सॉरी' निकला और मैंने बाय बोल कर कॉल काट दिया|

मुझे भी थोड़ा awkward फील हुआ पर अनु एकदम नार्मल थी| कुछ देर बाद अरुण और सिद्धार्थ भी मिलने आ गए और मैं उन्हें एकदम से सारी बात नहीं बता सकता था इसलिए मैंने बात घुमाते हुए कहा;

मैं: यार अगर तुम लोगों को मेरे बारे में कोई ऐसी बात पता चले जिससे मेरा करैक्टर खराब हो तो क्या तुम मुझसे दोस्ती रखोगे? या फिर तुम्हारी नजरों में दोस्ती की अहमियत कम हो जाएगी? और फिर तुम सब की तरह मुझे judge करोगे?

अरुण: तू पागल हो गया है क्या?

सिद्धार्थ: हम दोनों हमेशा तेरे साथ हैं, तुझे इतने सालों से जानते हैं तू कभी कोई गलत काम कर ही नहीं सकता!

अरुण: अगर किया भी तो उससे हमारी दोस्ती में फर्क नहीं आएगा? तूने जब ये दारु पीना शुरू किया था तब हम तेरे साथ ही थे ना? तुझे समझाते थे, रोकते थे पर तूने बात नहीं मानी!

सिद्धार्थ: अच्छा अब बता भी क्या बात है?

उनकी बात सुन कर ये साफ़ हो गया था की वो मेरा साथ नहीं छोड़ेंगे| मैंने उन्हें सारी बात बता दी, मुझे पता था की वो मुझे कुछ ज्ञान की बात कहेंगे!

अरुण: यार अब तो तू अनु से प्यार करता है ना?

मैं: हाँ

सिद्धार्थ: तो प्रॉब्लम क्या है? तुम दोनों की शादी कब है?

मैं: 23 फरवरी

अरुण: ठीक है ...तो अब ये सड़ी हुई सी शक्ल क्यों बना रखी है तूने?

सिद्धार्थ: अबे साले! जो हुआ वो तेरा पास्ट था, तेरा इस्तेमाल किया उसने| अब वो सब भूल कर नई जिंदगी शुरू कर!

मैं: पर यार तुम लोगों को .....

अरुण: (मेरी बात काटते हुए) सुन मेरी बात! अगर ये सारा रायता उस लड़की ने ना फैलाया होता और तू तब हमें ये सारी बात बताता तब भी हम तेरा साथ देते, तुझे ताना नहीं मारते! तूने प्यार किया उससे... वो भी सच्चा वाला!

अब ये बात सुन कर सब साफ़ हो चूका था की मेरे दोस्त मेरे साथ हैं और उन्हें जरा भी मतलब नहीं की मेरा और रितिका का रिश्ता क्या था! मेरे दिल पर से आज बहुत बड़ा पत्थर उतर गया था! उनसे ख़ुशी-ख़ुशी विदा ले कर हम दोनों वापस बस स्टैंड आये, जहाँ भैया-भाभी पहले से खड़े थे! भाभी ने हम दोनों के मजे लिए और फिर हम सब अपने-अपने घर लौट आये|

अगले दिन की बात है, दूध पीने के बाद नेहा सो रही थी और मुझे ऑफिस का एक जर्रूरी काम करना था| तो मैं अपना लैपटॉप ले कर छत पर आ गया था और वहाँ बैठा अपना काम कर रहा था की वहाँ पीछे से रितिका आ गई| मेरा ध्यान स्क्रीन पर था और वो मेरे पीछे खड़ी थी, वो पीछे से ही बोली; "ये सब जान बूझ कर रहे हो ना?"
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07-14-2020, 01:10 PM,
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RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 77

अब तक आपने पढ़ा:

अगले दिन की बात है, दूध पीने के बाद नेहा सो रही थी और मुझे ऑफिस का एक जर्रूरी काम करना था| तो मैं अपना लैपटॉप ले कर छत पर आ गया था और वहाँ बैठा अपना काम कर रहा था की वहाँ पीछे से रितिका आ गई| मेरा ध्यान स्क्रीन पर था और वो मेरे पीछे खड़ी थी, वो पीछे से ही बोली; "ये सब जान बूझ कर रहे हो ना?"

‘अनु से जब प्यार हुआ तब तो मुझे तेरे साथ हुए हादसे के बारे में पता तक नहीं था, ये तो मेरी किस्मत थी जो मुझे वापस इस घर तक खींच लाई! तो ये जानबूझ कर कैसे हुआ?' मन ये सफाई देना चाहता था पर फिर एहसास हुआ की ना तो रितिका मेरी ये सफाई सुनने के लायक है और ना ही मेरे कुछ कहने से वो बात समझेगी इसलिए मैंने उसे वही जवाब दिया जो वो सुन्ना चाहती थी; "अभी तो शुरुआत है!" इतना कह मैं अपना लैपटॉप ले कर नीचे आने लगा तो वो पीछे से बोली; "मैं तुम्हारी अनु से कितना नफरत करती हूँ ...... ये जानते हुए .....तुमने ये चाल चली?" ये कहते हुए वो पीछे खड़ी ताली मारती रही और मैं चुप-चाप नीचे आ गया| नीचे आ कर मैंने खुद को नेहा के साथ व्यस्त कर लिया| उसी शाम को रितिका ने अपनी चाल चली, रात को सब खाना खा रहे थे की वो ताऊ जी के सामने कान पकड़ कर खड़ी हो गई; "दादाजी.... मैं माफ़ी के लायक तो नहीं पर क्या आप सब मुझे एक आखरी बार माफ़ कर देंगे? मैं ईर्ष्या में जलकर जो कुछ भी किया मैं उसके लिए बहुत शर्मिंदा हूँ और वादा करती हूँ की आज के बाद ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी! इस परिवार की इज्जत मेरी इज्जत होगी और मैं इस पर कोई आँच नहीं आने दूँगी!" इतना कहते हुए रितिका ने घड़ियाली आँसू बहाने शुरू कर दिए| ख़ुशी का मौका था और डैडी-मम्मी जी भी कई बार रितिका के बारे में पूछ चुके थे, हरबार झूठ बोलना ताऊ जी को भी अच्छा नहीं लग रहा था| इसलिए उन्होंने रितिका को माफ़ कर दिया और उनके साथ-साथ घर के हर एक सदस्य ने उसे माफ़ कर दिया| पर रितिका न मेरे पास माफ़ी मांगने आई और ना ही मैं उसे माफ़ करने के मूड में था| खेर रंग-रोगन का काम शुरू हो चका था और इस बार रंग मेरे पसंद का करवाया गया था, मेरे कमरे में तो कुछ ख़ास ही म्हणत करवाई जा रही थी और उसका रंग ताऊ जी ने ख़ास कर अनु से पूछ कर करवाया था| घर भर तैयारियों में लगा था पर मुझे कोई काम नहीं दिया गया था, कारन ये की पिछले कई दिनों से मैं ऑफिस नहीं जा पा रहा था और काम बहुत ज्यादा पेंडिंग था तो मेरा सारा समय Con-Call पर जाता| अब तो नेहा भी मुझसे नराज रहने लगी थी क्योंकि मैं ज्यादातर लैपटॉप पर बैठा रहता था| वो ज्यादा कर के माँ के पास रहती और जब मैं उसे लेने जाता तो मेरे पास आने से मना कर देती; "Sorry मेरा बच्चा!" में कान पकड़ कर उससे माफ़ी मांगता तो वो मुस्कुराते हुए माँ की गोद से मेरे पास आ जाती|

सगाई से दो दिन पहले की बात है, मैं छत पर बैठा काम कर रहा था और नेहा नीचे सो रही थी की रितिका कपडे बाल्टी में भर कर आ गई| "एक बात पूछूँ? तुमने ऐसा क्या देख लिया उसमें जो तुम्हें उससे प्यार हो गया? कहाँ वो 33 की और कहाँ मैं 23 की! उसकी जवानी तो ढल रही है और मेरी तो अभी शुरू हुई है! याद है न वो दिन जो हमने एक दूसरे के पहलु में गुजारे थे? तुम तो मुझे छोड़ते ही नहीं थे! हमेशा मेरे जिस्म से खेलते रहते थे! वो पूरी-पूरी रात जागना और पलंगतोड़ सेक्स करना! सससस.... कितनी बार किया तुमने उसके साथ सेक्स? उतना तो नहीं किया होगा जितना मेरे साथ किया था? अरे वो देती ही नहीं होगी! राखी कहती थी की mam को सेक्स वाली बातें करना पसंद नहीं! जिसे बातें ही पसंद ना हो वो सेक्स कहाँ करने देगी? अभी भी मौका है.... मैं अब भी तैयार हूँ!!!!" रितिका ने ये बातें कुछ इस तरह से कहीं के मेरे बदन में आग लग गई| मैं एक दम से उठ खड़ा हुआ और बोला; "तेरी सुई घूम-फिर कर सेक्स पर ही अटकती है ना? नहीं किया मैंने उसके साथ सेक्स और अगर सारी उम्र ना करने पड़े तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा! पता है क्यों? क्योंकि वो मुझसे प्यार करती है और मैं भी उससे प्यार करता हूँ! तेरे लिए प्यार की परिभाषा होती होगी सेक्स हमारे लिए नहीं! हमारे लिए बस साथ रहना ही प्यार है!" इतना कह कर मैं पाँव पटककर वहाँ से चला गया| उस दिन रात को जब अनु का फ़ोन आया तो मैंने उससे ये बात छुपाई! आमतौर पर मैं अनु से कोई बात नहीं छुपाता था पर मैंने ये बात उसे नहीं बताई!

उस दिन के बाद से रितिका मुझसे कोई बात नहीं करती, हाँ उसकी घरवालों के साथ अच्छी बनने लगी थी| घर के सभी कामों में वो हिस्सा ले रही थी और उसने सब को ये विश्वास दिला दिया था की वो वाक़ई में बहुत खुश है| एक बदलाव जो मैं अब उसमें देख पा रहा था वो ये था की रितिका ने अब मुझे प्यासी नजरों से देखना शुरू कर दिया था| वो भले ही मुझसे दूर रहती पर किसी न किसी तरीके से मुझे अपने जिस्म की नुमाइश करा देती, कभी जानबूझ कर मेरे पास अपना क्लीवेज दिखाते हुए झाड़ू लगाती तो कभी साडी को अपनी कमर पर ऐसे बांधती जिससे मुझे उसका नैवेल साफ़ दिख जाता| उसकी इन हरकतों का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था पर बड़ा अजीब सा लग रहा था, ऐसा लगता मानो मुझे उससे घिन्ना आने लगी थी|

आखिर मेरी सगाई का दिन आ ही गया और मम्मी-डैडी और अनु सब गाडी से आ गए| मैं उस वक़्त तैयार हो रहा था इसलिए मैं नीचे नहीं आ पाया, घर के सभी लोगों ने उन्हें रिसीव किया और उन्हें अंदर लाये| इधर अनु की नजरें पूरे घर में घूम रही थीं की मैं दिख जाऊँ, पर भाभी ने उनकी नजरें पकड़ ली थीं और वो उसके कान में खुसफुसाते हुए बोलीं; "आपके मंगेतर अभी तैयार हो रहे हैं!"ये सुन कर अनु शर्मा गई, तभी उसकी नजर रितिका पर पड़ी जो चेहरे पर नकली मुस्कान चिपकाए सब को देख रही थी| डैडी जी ने भी जब उसे देखा तो अपने पास बिठाया और उन्हें उस पर बड़ा तरस आया| "बेटी पिछली बार तुमसे ज्यादा बात नहीं हो पाई, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं थी! अब कैसी है तुम्हारी तबियत?" डैडी जी ने पुछा और रितिका ने नकली हँसी हँसते हुए कहा; "जी अंकल अब ठीक है!" अभी आगे वो कुछ बोलते की मैं सूट पहने हुए नीचे उतरा| अनु ने मुझे पहले देखा और उसकी आँखें चौड़ी हो गईं! उसकी ठंडी आह भाभी ने सुन ली और वो बोलीं; "माँ आप कहो तो मानु को काला टीका लगा दूँ!" भाभी की आवाज सुन कर सब मेरी तरफ देखने लगे|

इधर मेरी नजर अनु पर पड़ी और मैं आखरी सीढ़ी पर रुक गया और आँखें फाड़े उसे देखने लगा| घर में सब का ध्यान अब हम दोनों पर ही था और सब चुप हो गए थे| आज अनु को साडी में देखा मेरा मन बावरा हो गया था| आखिर भाभी चल के मेरे पास आईं और मेरा हाथ पकड़ कर मेरी तन्द्रा भंग की! मैं बैठक में आ कर ताऊ जी और पिताजी के बीच बैठ गया| "क्या हुआ था बेटा?" डैडी जी ने पुछा और मेरे मुँह से अचानक निकल गया; "वो बहुत दिनों बाद देखा ना....." ये बोलने के बाद मुझे एहसास हुआ और मैंने शर्म से मुस्कुराते हुए सर झुका लिया| यही हाल अनु का भी था और उसके भी मेरी तरह शर्म से हजाल लाल थे और ये सब देख कर रितिका की आँखें गुस्से से लाल थी|

खेर मँगनी की रस्म शुरू हुई और पहले अनु ने मुझे अंगूठी पहनाई जो थोड़ी loose थी और फिर जब मैंने उसे अंगूठी पहनाई तो वो उसे एकदम फिट आई| सबका मुँह मीठा हुआ और खाना-पीना शुरू हुआ, मैंने भाभी को इशारा किया और वो समझ गईं| भाभी ने अनु को कहा की वो उनके साथ चल कर कमरा देख ले जिसमें पेंट हुआ है| उनके जाते ही दो मिनट बाद मैंने फ़ोन निकाला और ऐसे जताया की मैं फ़ोन पर बात कर रहा हूँ और फिर आंगन में आ गया और धीरे-धीरे सीढ़ी चढ़ कर ऊपर पहुँच गया| भाभी और अनु मेरे कमरे में खड़े मेरा ही इंतजार कर रहे थे| मुझे देखते ही अनु बोली; 'तो आपने भाभी को सब पहले से ही समझा दिया था की उन्हें क्या बहाना कर के मुझे वहाँ से निकालना है?" अनु बोली|

"और क्या?" मैंने कहा और भाभी ये देख कर हँस पड़ी| "यार आपका (भाभी का) काम हो गया, आप जाओ!" मैंने कहा|

"अच्छा जी? ठीक है चल अनुराधा!" भाभी ने एकदम से उसका हाथ पकड़ लिया और नीचे जाने को निकलीं| "Sorry...Sorry...Sorry.... माफ़ कर दो... !!!" मैंने अपने कान पकड़ते हुए कहा| ये देख कर भाभी और अनु दोनों हँस पड़े| "वैसे भाभी आपको नहीं लगता की अनु आज बहुत ज्यादा सुन्दर लग रही है?" मैंने पुछा| मैं तो बस भाभी के जरिये अनु को ये बताना चाहता था की आज वो बहुत सूंदर लग रही है| भाभी के सामने हम दोनों थोड़ा शर्म किया करते थे!

"वो तो तुम्हारा बिना पलके झपकाए देखने से ही पता चल गया था!" भाभी ने मेरी टाँग खींचते हुए कहा|

"वैसे भाभी क़यामत तो आज आपके देवर जी ढा रहे हैं!" अनु ने मेरी तारीफ करते हुए कहा|

"मेरे देवर जी? मैं चली नीचे, वर्ण तुम दोनों मेरी शर्म कर के बार-बार मेरा ही नाम ले-ले कर बातें करोगे|" भाभी बोलीं और हँसते हुए नीचे चली गईं| उनके जाते ही मैंने अनु का हाथ पकड़ लिया; "यार सच्ची आज आप इतने सेक्सी लेग रहे हो की मन करता है आज ही शादी कर लूँ!" मैंने कहा और अनु शर्माते हुए मेरे सीने से आ लगी और बोली; "हैंडसम तो आज आप लग रहे हो!" हम दोनों ऐसे ही गले लग कर खड़े थे की तभी वहाँ हमें बुलाने के लिए रितिका आ गई| हमें इस तरह गले लगे देख उसके जिस्म में बुरी तरह आग लग गई, उसने बड़े जोर से मेरे कमरे के दरवाजे पर हाथ मारा और चिल्लाई; "अभी शादी नहीं हुई है तुम दोनों की!" उसे देखते ही हम दोनों हड़बड़ा गए और अलग हुए पर उसके इस कदर चिल्लाने से मुझे गुस्सा आ गया; "तेरी....... !!!" मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही अनु ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया| "बोलने दो बेचारी को! तकलीफ हुई है!!!" अनु ने मुस्कुराते हुए कहा| अनु ने आज उसी अंदाज में कहा जिस अंदाज में उस दिन रितिका ने मेरा मजाक उड़ाया था जब मैं उससे नेहा को माँग रहा था| अनु की बात सुन कर रितिका जलती हुई नीचे चली गई, "मत लगा करो इसके मुँह! ये जानबूझ कर आपको उकसाने आती है!" अनु बोली, मैंने सर हिला कर उसकी बात मान ली और फिर उसे दुबारा अपने पास खींच लिया; "आपको Kiss करने की गुस्ताखी करने का मन कर रहा है!" मैने अनु की आँखों में देखते हुए कहा तो जवाब में अनु ने अपनी आँखें बंद कर लीं| मैंने अभी अनु के होठों पर अपने होंठ रखे ही थे की भाभी आ गई और अपनी कमर पर हाथ रखते हुए बोलीं; "शर्म करो!" उनकी आवाज सुनते ही हम दोनों अलग हो गए| "भाभी हमेशा गलत टाइम पर आते हो!" मैंने शिकायत करते हुए कहा, इधर अनु के गाल शर्म से सुर्ख लाल हो चुके थे! भाभी ने मेरे कान पकड़ लिए; "बेटा ज्यादा ना उड़ो मत! शादी हो जाने दो उसके बाद मैं आस-पास भी नहीं भटकूँगी!" अनु भाभी के पीछे छुप गई और बोली; "तो मुझे बचाएगा कौन?" ये सुन कर तो हम तीनों हँस पड़े और भाभी ने हम दोनों को अपने गले लगा लिया| तभी पीछे से मम्मी जी आ गईं मेरा कमरा देखने और हमें ऐसे गले लगे देख मुस्कुराते हुए बोलीं; "लो भाई! यहाँ तो देवर-देवरानी और भाभी का प्रेम मिलाप चल रहा है!" ये सुन कर हम अलग हुए; "बेटा (भाभी) इसका ख्याल रखना, कभी-कभी ये मनमानी करती है!" मम्मी जी बोलीं| "आप चिंता ना करो मैं अनुराधा का ध्यान अपनी दोस्त जैसा ख्याल रखूँगी|" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा| आखिर हम नीचे आ गए, फिर खाना-पीना हुआ और इस दौरान रितिका कहीं भी नजर नहीं आई! समय से मम्मी-डैडी और अनु चले गए, पर जाते-जाते अनु ने नेहा को अपनी गोद में लिया और उसके कान में फुसफुसाते हुए कहा; "अब जब आपसे मिलूँगी तो आपको अपने साथ ही रखूँगी!" ये सुन कर नेहा मुस्कुराने लगी और अनु ने उसके माथे को चूमा और मुझे दे दिया|

दिन गुजरने लगे और शादी में अभी एक महीना रह गया था, शादी के कार्ड छप कर आये| मेरे दोस्तों को कार्ड मैंने भेज दिए और ऑफिस स्टाफ को भी कार्ड भेज दिए| रंजीथा को कार्ड अनु ने भेजा और साथ ही उसे टिकट भी भेज दी| इधर घरवालों ने जब नाते-रिश्तेदारों को कार्ड भेजा तो सभी ने पूछना शुरू कर दिया| ताऊ जी ने सब से यही कहा की लड़की सब की पसंद की है और उन्हें बाकी डिटेल नहीं दी, मैं तो वैसे भी इन सब बातों से अनविज्ञ था! शादी से ठीक 15 दिन पहले तक मेरा घर रिश्तेदारों से खचाखच भर चूका था| मैं उन दिनों काम के चलते बहुत ज्यादा बिजी था तो घर में जो कोई भी बात होती वो मेरे सामने नहीं होती थी| दिन में मैं छत पर अपना लैपटॉप ले कर बैठा होता था, रात में मुझे देर तक जागने की मनाही थी| मेरे कुछ cousins कभी-कबार आ कर मेरे पास बैठ जाते और उनके साथ हँसी-मजाक होता| इतने लोग तो रितिका की शादी में भी नहीं आये थे!

एक दिन की बात है की घर में घमासान खड़ा हो गया, बात शुरू की मौसा जी ने! "भाईसाहब! आपकी अक्ल पर पत्थर पड़ गए हैं जो एक तलाकशुदा लड़की की शादी, उम्र में मानु से 5 साल बड़ी की शादी अपने लड़के से करवा रहे हो?" उनकी बात सुनते ही पिताजी और ताऊ जी भड़क उठे, पिताजी के कुछ कहने से पहले ही ताऊ जी बोल उठे; "यहाँ तुम से कुछ पुछा गया? शादी में बुलाया है, चुप-चाप आशीर्वाद दो और निकल जाओ!" मौसा जी ताऊ जी से उम्र में छोटे थे और उनका बड़ा मान करते थे, वैसे तो सभी मान करते थे या ये कहूँ की डरते थे! इसलिए जब ताऊ जी चिल्लाये तो मौसा भीगी बिल्ली बन कर चुप हो गए| बड़ी हिम्मत कर के छोटी मौसी बोलीं; "भाईसाहब लड़की तो हमारी ज़ात की भी नहीं!" उनकी बात का जवाब ताई जी ने दिया; "काहे की ज़ात? जब हम मुसीबत में थे तो कौन से ज़ात वाले सामने आये थे? सब के सब पुलिस के डर के मारे अपने घर में छुपे हुए थे!" ताई जी की बात सुन कर सब के सब चुप-चाप खड़े हो गए| "मेरी बात गौर से सुन लो सारे! तुम में से अगर किसी ने भी इस शादी में विघ्न डाला या कोई ऐसी हरकत की जिससे हमारी मट्टी-पलीत हुई तो उसे गोली से उड़ा दूँगा! तुम में से किसी ने अगर समधी-समधन को या बहु को कुछ भी ताना मारा या कहा ना तो अंजाम तुम्हें मैं बता चूका हूँ! एक आरसे बाद इस घर में खुशियाँ आ रही हैं!" ताऊ जी की दहाड़ सुन सब के सब चुप हो गए| अब मुझे कहने की तो कोई जर्रूरत नहीं की ये लगाई-बुझाई रितिका की थी, एक वही तो थी जो सब कुछ जानती थी! इसलिए मैं इंतजार करने लगा की मुझे कब मौका मिले जब वो अकेली हो| रात को जब मैं नेहा को उससे लेने के बहाने उसके कमरे में पहुँचा तो मुझे वो अकेली अपना बिस्तर ठीक करते हुए दिखी; "मिल गई तेरे कलेजे को ठंडक? लगा ली ना आग?" ये सुनते ही रितिका बोली; "मैंने क्या किया?" उसने अनजान बनने का नाटक किया पर मेरे सामने उसका ये रंग नहीं चल सकता था| "ज्यादा अनजान बनने की कोशिश मत कर! तेरे आलावा यहाँ और कोई है जिसे मेरी खुशियां देख कर आग लग रही हो! दुबारा तूने ऐसा कुछ किया ना तो दुर्गत कर दूँगा तेरी!" मैंने रितिका को हड़काया और नेहा को ले कर अपने कमरे में आ गया| अगले दिन सुबह-सुबह एक बड़ा सा ट्रक घर के आगे खड़ा हो गया, ताऊ जी ने सारे मर्दों को आवाज दी| सभी हैरान थे सिवाए उनके और पिताजी के, जब ट्रक पर से तिरपाल हटा तो उसमें पड़ा सामान देख सब समझ गए| उसमें सारा फर्नीचर था जो ताऊ जी ने स्पेशल आर्डर दे कर बनवाया था| जब सामान उतारने के लिए मैंने हाथ लगाना चाहा तो ताऊ जी ने मना कर दिया| मैं ख़ुशी-ख़ुशी ऊपर आया की एक और टेम्पो की आवाज सुनाई दी, मैंने छत से नीचे झाँका तो पता चला की डैडी जी ने भी कुछ सामान भेजा था| घर में जितने भी रिश्तेदार आये थे सब के सब सामान उतारने में लग गए और पिताजी और ताऊ जी ये ध्यान रख रहे थे की कहीं कुछ टूट ना जाये| मेरा कमरा इतना बड़ा था पर उसमें सामान के नाम पर मेरा सिंगल बेड और एक टेबल था बाकी उसमें ट्रंक रखे हुए थे जिनमें गर्म कपडे होते थे| आज जा कर मेरे कमरे को एक डबल बेड, ड्रेसिंग टेबल, छोटा सोफा, अलमारी और स्टडी टेबल का सुख मिल रहा था| मैं ने अनु को वीडियो कॉल कर के सामान ऊपर चढ़ते हुए दिखाया और वो बहुत खुश हुई|
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07-14-2020, 01:10 PM,
#88
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 78 (1)

शादी में एक हफ्ता रह गया था और पिताजी ने मंदिर में पूजा रखवाई थी| सारा परिवार वहीँ जमा था, में भी वहीँ था और काम में मदद कर रहा था| ताऊ जी ने मुझे कुछ सामान लाने के लिए घर भेजा| जब मैं घर पहुँचा तो वहाँ पर सिर्फ रितिका थी, उसके अल्वा वहाँ कोई नहीं था| मैं सामान लेने अपने कमरे में पहुँचा तो रितिका चुपके से मेरे कमरे के बाहर खड़ी हो गई| जैसे ही मैं सामान ले कर पलटा की रितिका ने अचानक से मेरा हाथ पकड़ लिया और मुझे खींच कर सीधा छत पर ले आई| मैं उसके साथ नहीं जाना चाहता था पर आज उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी और उसमें बहुत ज्यादा ताक़त आ गई थी| छत पर आ कर उसने मेरा हाथ छोड़ दिया और वो घुटनों के बल खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथ जोड़ लिए; "प्लीज ....प्लीज मुझे माफ़ कर दो!" रितिका की आँखें छल-छला गईं थी, पर मेरा मन तो जैसे पत्थर का हो चूका था, जिस पर उसके रोने का कोई असर नहीं हो रहा था उल्टा गुस्सा आ रहा था; "किस लिए माफ़ कर दूँ? मेरा दिल तोडा उसके लिए? या फिर मुझे मेरे ही बेटी से दूर किया उसके लिए?" मैंने गुस्से से कहा|

"सबके लिए....मैंने बहुत पाप किये हैं! तुम्हारे दिल के साथ खेल खेला.... जानते-बूझते तुम्हें बहुत दुःख दिया........" इतना कहते हुए रितिका ने मेरे पैर पकड़ लिए और बिलख-बिलख कर रोने लगी| मैंने उसके हाथों की पकड़ खोलनी चाही पर उसने मेरा दाहिना पैर अपनी छाती से जकड़ रखा था| "मैं तुम से बहुत प्यार करती हूँ और तुम्हारे बिना नहीं रह सकती!.....मैं तुम्हें अपनी आँखों के सामने किसी और का होता हुआ नहीं देख सकती! प्लीज....एक मौका दो मुझे" रितिका ने बिलखते हुए कहा| उसकी बात सुन कर एक पल को मेरा दिल पसीज गया, इसलिए मैंने उसे समझाते हुए कहा; "देख हमारे बीच जो कुछ भी था वो सब उसी दिन खत्म हो गया था जब तूने राहुल से शादी की थी| अब मैं अनु से प्यार करता हूँ और वो भी मुझसे बहुत प्यार करती है, हमारी शादी होने वाली है| अब ये पागलपन छोड़ दे और अपने मन से ये बात निकाल दे की मैं अब दुबारा तुझसे प्यार कर सकता हूँ|" मैंने फिर से अपने पाँव को छुड़ाने की कोशिश की|

"नहीं...पहले भी तुम ने मना किया था की तुम मुझसे प्यार नहीं करते पर मेरे प्यार ने तुम्हारे मन में मेरे प्यार की लौ जला दी थी! इस बार भी मैं ऐसा कर सकती हूँ...बस एक मौका दे दो! एक आखरी मौका.....अबकी बार मैंने कुछ भी गलत किया तो मेरी जान ले लेना...मैं उफ़ तक ना करुँगी!...... हम दोनों और नेहा कहीं दूर एक सुकून भरी जिंदगी जियेंगे! मेरा नहीं तो कम से कम नेहा का सोचो? यहाँ से दूर आप उसे कितना प्यार दे सकोगे? .... उसे भी तो अपने पापा का प्यार चाहिए! कल को वो बोलने लगेगी तो आपको क्या कहेगी?" रितिका की नेहा वाली बात सुन कर मैं चुप हो गया था| पर मैं अनु के साथ ये धोका नहीं कर सकता था, इसलिए मैंने ना में सर हिलाया और रितिका की पकड़ से अपना पाँव छुड़ा लिया| मैं नीचे आने को दो ही कदम चला हूँगा की रितिका जमीन से उठ खड़ी हुई और बोली; "अपनी हालत याद है न उस दिन क्या हुई थी? क्या कहा था तुमने उस दिन मुझसे?...... 'तो बोल तुझे क्या चाहिए? जो चाहिए वो सब दूँगा तुझे बस मुझे नेहा से अलग मत कर!'... यही कहा था ना उस दिन ..... ठीक है... आज माँगती हूँ..... इस शादी का ख्याल अपने मन से निकाल दो, मिटा दो अनु की सारी यादें और मैं तुम्हें नेहा दे दूँगी! ये सिर्फ मुँह से नहीं कह रही, बल्कि कानूनी रूप से तुम्हें नेहा की कस्टडी दे दूँगी! फिर बुलवा लेना उसके मुँह से पापा, मैं कुछ नहीं कहूँगी!" रितिका ने फिर से वही जहरीली हँसी हँसते हुए कहा और मुस्कुराते हुए मेरे सामने से गुजरी| मैंने उसका हाथ बड़ी जोर से पकड़ा और उसे झटके से रोका और पीछे की तरफ खींचा, मेरी आँखें आँसुओं से लाल हो गई थी; "दिखा दी ना तूने अपनी ज़ात! नेहा के नाम पर अनु की जिंदगी का सौदा करना चाहती है? तू चाहती है मैं भी उसके साथ वही करूँ जो तूने मेरे साथ किया था? पर मैं तेरी तरह मौका परस्त नहीं हूँ, मैं नेहा से बहुत प्यार करता हूँ पर उसके लिए मैं अनु को नहीं छोड़ सकता! वो मेरे बिना मर जायेगी.....तुझसे कई गुना ज्यादा उससे प्यार करता हूँ!" मैंने रोते हुए कहा, अगले ही पल मेरे आँसू सूख गए और एक बाप का प्यार बाहर आया| मैंने रितिका गाला पकड़ लिया और उसकी आँखों में देखते हुए बोला; "तू अपनी गांड का जोर लगा दे, देखता हूँ कैसे तू नेहा को मुझसे अलग रख पाती है!" मेरे आँखों में गुस्सा देख रितिका आगे कुछ नहीं बोल पाई क्योंकि वो भी जानती थी की वो चाहे कुछ भी कर ले वो ताऊ जी के रहते नेहा को मुझसे दूर नहीं कर सकती थी| "तेरे पास कोई रास्ता नहीं है! तुझे इसी घर में रहना होगा.... तेरी शादी तो उस हत्यकांड के बाद होने से रही! यहाँ रहते हुए तू नेहा को मुझसे कभी अलग नहीं कर पाएगी!" मैंने रितिका की सारी हिम्मत तोड़ दी थी, उसने जो घरवालों का प्यार जीतने के लिए जो कुछ दिन पहले ड्रामा किया था उसके चलते अब वो बुरी नहीं बन सकती थी वरना ताऊ जी समेत सारे घर वाले उसकी जान ले लेते! इतना कहते हुए मैं मंदिर लौट आया और पूजा में शामिल हो गया| पर मैं ये नहीं जानता था की वो कमिनी औरत किसी भी हद्द तक गिर सकती है!

इधर मैं पूजा में बैठा था और उधर उसने अनु को फ़ोन कर दिया| अनु का नंबर वो पहले ही भाभी के फ़ोन से निकाल चुकी थी और आज उसने अपनी गन्दी चाल चली| "हेल्लो! अनु? मैं रितिका बोल रही हूँ!" अनु रितिका की आवाज सुन कर एकदम से चौंक गई और इसके पहले वो कुछ कहती रितिका बोल पड़ी; "कैसी औरत हो तुम? तुम्हारी वजह से मानु अपनी बेटी को छोड़ कर तुमसे शादी कर रहा है! मैंने उससे आज पुछा की क्या वो नेहा के साथ रहना चाहता है या तुम्हारे साथ शादी करना चाहता है तो उसने तुम्हें चुना! शर्म आनी चाहिए तुम्हें, तुम एक बाप को उसी की बेटी से छीन रही हो! वो तुमसे को प्यार नहीं करता बल्कि वो तुम्हारी जानबचाने के लिए तुमसे शादी कर रहा है!" इतना बोल कर रितिका ने कॉल काटा और अनु को एक व्हाट्सअप्प भेजा जिसमें उसने कुछ देर पहले मेरी कही बात का ऑडियो भेजा| उसने बड़ी ही चालाकी से मेरी "तुझसे कई गुना ज्यादा उससे प्यार करता हूँ!" वाली बात को काट दिया और बाकी की बात ऐसे के ऐसे ही उसे भेज दी थी| ये ऑडियो सुन कर अनु एक दम से सन्न रह गई और उसे लगा की मैं उससे कम प्यार करता हूँ और नेहा से ज्यादा प्यार करता हूँ| मेरे इस त्याग के बारे में सोच कर अनु टूट गई, वो कतई नहीं चाहती थी की मैं नेहा को छोड़ूँ बल्कि वो अपने प्यार की कुर्बानी देने को तैयार हो गई थी! अनु ने फ़ौरन एक मैसेज टाइप किया; "I'm calling this wedding off!" और मुझे भेज दिया| मैं उस वक़्त पूजा में था तो उसका मैसेज नहीं देख पाया, पूजा रात नौ बजे तक चली और पूजा के बाद जब मैंने अनु का मैसेज पढ़ा तो मेरे होश उड़ गए, मैंने उसे कॉल करना शुरू किया पर वो फ़ोन नहीं उठा रही थी| मैंने डैडी-मम्मी को कॉल किया तो पता चला की वो बाहर किसी रिश्तेदार के आये हैं! अब मेरी हालत ख़राब हो गई क्योंकि वहाँ अनु अकेली थी और वो कुछ गलत ना कर ले इसलिए मैंने चन्दर भय से बाइक की चाभी माँगी| मेरी शक्ल देखते ही वो समझ गए की कुछ तो बात है, "भैया दोस्त का accident हो गया इसलिए मैं लखनऊ जा रहा हूँ|" इतना कह कर मैं बाइक पर बैठा और अनु के घर की तरफ निकल पड़ा| 4 घंटे का रास्ता मैंने 3 घंटों में पूरा किया, बाइक हवा से बातें कर रही थी और चूँकि मैंने कपडे कम पहने थे सो ठंड से मेरा हाल बुरा था| ये तो मेरे जिस्म में अनु को खो देने का डर था जो मुझे संभाले हुए था वरना इतनी ठंड में बाइक फुल स्पीड से चलाना?!

रात सवा बारह बजे मैं अनु के घर पहुँचा और ताबड़तोड़ घंटियां बजाईं, अनु ने मुझे magic eye से देख लिया था और वो दरवाजे से अपनी पीठ टिकाये रो रही थी पर दरवाजा नहीं खोल रहे थी| इधर मैंने दरवाजा पीटना शुरू कर दिया था, मुझे अभी तक नहीं पता था की अनु दरवाजे से पीठ लगा कर बैठी रो रही है| "अनु....प्लीज दरवाजा खोलो....I know .... तुम घर पर हो....प्लीज....." आखिर अनु बोली; "नहीं...मुझे कोई बात नहीं करनी! Its over!" अनु ने बड़ी मुश्किल से ये कहा था और उसकी आवाज में दर्द महसूस कर मैं टूटने लगा था| "प्लीज....तुम्हें मेरे प्यार का वास्ता! बस एक बार दरवाजा खोल दो! प्लीज...." मैंने काँपते हुए कहा क्योंकि ठंड अब जिस्म पर हावी हो चुकी थी| अनु उठ कर खड़ी हुई, अपने आँसूँ पोछे और दरवाजा खोला और इससे पहले वो कुछ कहती मैं ही उस पर बरस पड़ा: "तुम्हें लगता है की तुम इतनी आसानी से कहोगी की this wedding is off और सब कुछ खत्म हो जाएगा? आखिर मैंने किया क्या है जिसकी सजा मुझे दे रही हो? तुम रितिका की तरह निकलोगी की ये मैं कतई नहीं मान सकता|" मैंने जब ये कहा तो अनु ने अपना फ़ोन निकाला और मुझे वो trimmed रिकॉर्डिंग सूना दी! वो सुनने के बाद मैं समझ गया की ये किसकी कारस्तान है पर अभ के लिए मुझे अनु को संभालना था, उसे सच से रूबरू कराना था| "ये पूरी बात नहीं है!" इतना कह कर मैंने अनु को सब सच बता दिया और अनु आँखें फाड़े सब सुनती रही; "आपने सोच भी कैसे लिया की मैं ऐसा कर सकता हूँ? ये सब उस हरामजादी का किया धरा है और आज मैं उसे जिन्दा नहीं छोड़ूँगा|" इतना कह कर मैं वापस निकलने को पलटा तो अनु ने मेरा हाथ पकड़ लिया और तब उस एहसास हुआ की मेरा पूरा जिस्म बर्फ सा ठंडा हो चूका है| "आप ऐसा कुछ नहीं करोगे! वो यही तो चाहती है.....गलती मेरी है, मुझे आपसे पहले पूछ लेना चाहिए था! पर मैं नहीं चाहती थी की आप नेहा के प्यार से वंचित रहो!" अनु रोते हुए बोली और मुझे अपने गले लगा लिया| उसके गर्म जिस्म का एहसास मुझे मेरे ठन्डे जिस्म पर होने लगा था| "Listen to me! नेहा मेरी बेटी है और इस बात को कोई झुटला नहीं सकता| मैं उससे प्यार करता रहूँगा फिर चाहे हम यहाँ रहे या बैंगलोर में! पहले तो मैं सोच रहा था की मैं नेहा को गोद ले लूँ पर घरवाले इसके लिए कभी नहीं मानेंगे! फिर आज नहीं तो कल हमारा अपना बच्चा भी तो होगा ना?! ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनका जवाब अभी ढूंढा नहीं जा सकता, फिलहाल मेरे लिए ये शादी जर्रूरी है, उसके बाद मैं नेहा के बारे में सोचूँगा!" मैंने कहा और अनु मेरी बात समझ गई, साथ ही उसके मन में रितिका को सबक सिखाने की आग भी जल उठी!

हम दोनों ऐसे ही गले लगे हुए खड़े रहे और फिर थोड़ी देर बाद घर से फ़ोन आ गया; "हाँ जी....सब ठीक है जी...कोई घबराने की बात नहीं! जी... मैं सुबह तक निकलता हूँ!" मैंने कहा और ये सुन अनु भी हैरान हो गई| "घर की पूजा खत्म हुई तब मैंने आपका मैसेज देखा और जिस हालत में था उसी हालत में भाग आया| चन्दर भय से ये कहा की दोस्त का एक्सीडेंट हो गया है! उसी के लिए डाँट पड़ रही थी की बता कर नहीं जा सकता था!” मैंने अनु को सच बताया तो उसने कान पकड़ कर मुझे Sorry कहा! फिर उसने कॉफ़ी बनाई जिसे पीने के बाद मेरे जिस्म में गर्मी आई| सुबह 6 बजे तक मैं वहीँ रहा और फिर बाइक से निकला, जाते-जाते- अनु ने मुझे अपनी शाल दी ताकि मैं ठंड से खुद को बचा पाऊँ| अब उसके कपडे तो मुझे आते नहीं और डैडी जी वाले कपडे भी नहीं आते इसलिए! मैं घर पहुँचा और कहानी बना कर सुना दी पर भाभी ने जब शॉल देखि तो वो सब समझ गई की बात कुछ और है| कुछ देर बाद उन्होंने मुझसे शाल के बारे में पुछा तो मैंने उन्हें ये कहा की हॉस्पिटल के बाद मैं अनु से मिलने गया था और उसी ने ये शॉल दी है| भाभी बस मुस्कुरा दी और चली गईं, अब रितिका मुझसे छुपती फिर रही थी| मेरी भी मजबूरी थी की घर में सब मौजूद थे और उनके सामने मेरा उसे कुछ कहना लाखों सवाल खड़े कर देता| हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो रितिका डरी-डरी सी रहती थी| अब इस पर सवाल उठना तो तय था.....
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07-14-2020, 01:10 PM,
#89
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
update 78 (2)

अब तक आपने पढ़ा....

हम दोनों चूँकि कई दिनों से बात नहीं कर रहे थे और जब से मैं घर पहुँचा था तब से तो रितिका डरी-डरी सी रहती थी| अब इस पर सवाल उठना तो तय था.....

अब आगे....

"क्यों भाई मानु क्या बात है? जब से हम लोग आये हैं देख रहे हैं की रितिका और तुम बात भी नहीं करते? कहाँ तो पहले तुम उसका इतना ख्याल रखते थे, घर-परिवार की मर्जी के खिलाफ जा कर उसे पढ़ा रहे थे! और तो और उसकी शादी में भी तुम विदेश चले गए? क्या नाराजगी है, हमें भी बताओ?" मौसा जी बोले|

"मौसा जी जिस उल्लू को पढ़ाने के लिए इतने पापड़ बोले वो कमबख्त पढ़ाई-लिखाई छोड़ कर इश्क़-मोहब्बत करती फ़िरे, ऐसे एहसान फरामोश इंसान से क्या बात करना? यहाँ तक की मैं तो शहर में रहता था, मुझे तक इस बात की खबर नहीं की ये इश्क़ लड़ा रही हैं! जिस इंसान को मैं हमेशा डाँट से बचाता था वही इंसान जब मुझे सबसे डाँट पड़ रही थी खामोश था, यही नहीं इसने मुझे शादी के लिए रुकने तक को नहीं बोला तो मैं क्यों रुकता? मुझे इतना अच्छा मौका मिला अमेरिका जाने का, काम सीखने का, एक बिज़नेस से जुड़ने का अपना हमसफ़र चुनने का तो ऐसा मौका मैं कैसे छोड़ देता!" मेरा जवाब सुन कर मौसा जी बस मुस्कुरा दिए और बोले; "ठीक है बेटा पर अब तो सब सही हो गया ना? अब तो माफ़ कर दे इसे?!"

"नहीं मौसा जी! इतने कम पाप नहीं किये इसने की इसे माफ़ी दे दी जाए! फिर मेरे अकेले के ना बात करने से इसे क्या फर्क पड़ेगा? आप सब तो हो ना इससे बात करने को?!"

"चलो भाई, जैसी तुम्हारी मर्जी! पर ये बताओ सारा समय ये कम्प्यूटर ले कर बैठे रहते हो, शादी तुम्हारी है थोड़ा काम-वाम देखा करो!" मौसा जी शिकायत करते हुए बोले पर इसका जवाब ताऊ जी ने ही दे दिया;

"तुम्हें पता भी है ये क्या काम करता है? अमेरिका की कंपनी का काम है ये! वहाँ हमारे देश की तरह लोग छुट्टियाँ नहीं मारते, कमाई डॉलरों में होती है! $1 मतलब 70 -75 रुपये! इस काम के इसे 1 लाख डॉलर मिल रहे हैं!!!!" ताऊ जी के मुँह से इतनी बड़ी रकम सुन कर सब के कान खड़े हो गए थे और पूरे घर में मेरी तारीफें शुरू हो गई थीं! इधर मुझे रितिका की क्लास लेनी थी पर वो किसी न किसी सदस्य के साथ चिपकी हुई थी, पर आखिर वो कब तक मुझसे भागती! रात को मैं सोने जल्दी चला गया, नेहा मेरे साथ ही चिपकी सो रही थी| मेरा कमरा सब समान से भरा था और वहाँ जाने की किसी को भी इज़ाजत नहीं दी गई थी| ताऊ जी का कहना था की जब तक नई बहु नहीं आ जाती तब तक उस सामान को कोई नहीं छुएगा! रात को ग्यारह बजे नेहा ने सुसु किया और उसके डायपर के साथ उसके कपडे भी खराब हो गए| मेरी बेटी ने मुझे उसकी माँ की क्लास लेने का मौका दे दिया था| मैंने पहले तो नेहा का माथा चूमा और किलकारियां मारते हुए अपने हाथ पाँव चलाने लगी| मानो उसे भी मजा आ रहा हो की आज उसकी माँ की क्लास लगने वाली है! फिर मैंने उसके सारे कपडे निकाले और उसे कंबल ओढ़ा दिया, कमरे में हीटर चालु किया ताकि कमरा गर्म बना रहे| मैं अपने कमरे से बाहर निकला और जा कर रितिका के कमरे का दरवाजा खटखटाया| वो घोड़े बेच कर सोइ थी, इसलिए दस मिनट तक खटखटाने के बाद उसने दरवाजा खोला| जैसे ही उसने मुझे देखा उसकी फ़ट गई और आँखें अपने आप झुक गईं| एक तो बाहर ठंड में 10 मिनट से खड़ा होना पड़ा और ऊपर से अनु की हालत देख कर जो गुस्सा आया था उससे मेरा जिस्म जलने लगा| मैंने रितिका का गला पकड़ लिया और उसे ढकेलते हुए अंदर आया और उसे उसी के बिस्तर पर गिरा दिया| रितिका छटपटा रही थी ताकि मैं उसका गाला छोड़ दूँ; "कल अगर अनु को कुछ हो जाता ना तो आज मैं तुझे जिन्दा जला देता! आज आखरी बार तुझे बताने आया हूँ, अगर तूने कोई भी लगाईं-बुझाई की ना तो अपनी खेर मना लियो फिर! मुझे मिनट नहीं लगेगा तेरी जान लेने में!" मेरी पकड़ रितिका के गले पर तेज थी और अगर दो मिनट और उसका गला नहीं छोड़ता तो वो पक्का मर जाती| मैंने जैसे ही उसका गाला छोड़ा वो साँस लेने की कोशिश करते हुए छटपटाने लगी! मैंने नेहा के कपडे लिए और वापस अपने कमरे में आ गया| नेहा अब भी जाग रही थी और कंबल के अंदर अपने हाथ-पैर मार रही थी| कुछ देर पहले जो मुझे गुस्सा आ रहा था वो रितिका को देख कर गायब हो गया था| नेहा को अच्छे से कपडे पहना कर मैं उसे अपनी छाती से चिपका कर सो गया|

अगली सुबह मोहिनी आ गई और चूँकि सब उसे सब जानते थे तो सब ने उसका बड़ा अच्छा स्वागत किया और बाकी रिश्तेदारों से मिलवाया| रितिका तो जैसे उसे देख कर वहीँ जम गई, उसकी साँस ही अटक गई! वो जानबूझ कर आगे नहीं आई और काम करने की आड़ में छिपी रही| आखिर मोहिनी को ही उसका नाम ले कर उसे बाहर बुलाना पड़ा, रितिका उसके सामने सर झुकाये खड़ी हो गई| मोहिनी ने आगे बढ़ कर उसे गले लगाया ताकि किसी को कुछ शक ना हो और उसके कान में खुसफुसाई; "तेरी जैसी गिरी हुई लड़की मैंने आज तक नहीं देखि! अगर तुझे यही खेल खेलना था तो बता देती, कम से कम मैं शादी तो ना करती और आज मैं और मानु जी एक होते! सच में तुझे मेरी भी हाय लगेगी!" इतना कहते हुए, अपने चेहरे पर जूठी मुस्कान लिए मोहिनी ऋतू से अलग हुई| "तो ताऊ जी, दूल्हे मियाँ कहाँ है?" मोहिनी ने चहकते हुए पुछा| मैं उस वक़्त छत पर नेहा को गोद में लिए कॉल पर बात कर रहा था| ताऊ जी ने जब उसे छत पर मेरे होने का इशारा किया तो मोहिनी कूदती हुई ऊपर आ गई| दरअसल मोहिनी घर के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ थी क्योंकि वो मेरी गैरहाजरी में रितिका की शादी में आई थी| मैंने कॉल disconnect किया और जैसे ही पलटा की मोहिनी मुस्कुराती हुई मुझे दिखी| फिर उसकी नजर नेहा पर गई और वो सोचने लगी शायद किसी रिश्तेदार की बेटी है इसलिए वो सीधा मेरे पास आई; "दूल्हे मियाँ! कितना काम करोगे?" मोहिनी ने हँसते हुए पुछा|

"यार वो थोड़ा काम ज्यादा है, अनु भी बहुत बिजी है!" मैंने कहा|

"चलो मैं आ गई हूँ तो मैं यहाँ काम संभाल लूँगी!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोले|

"मेरी बेटी से तो मिलो?" मैंने मोहिनी का परिचय नेहा से कराते हुए कहा पर ये सुन कर वो सन्न रह गई और आँखें फाड़े मुझे देखने लगी!

"ये.....तुम्हारी बेटी......सच में?" मोहिनी हैरानी से बोल भी नहीं पा रही थी|

"हाँ जी!.... मेरी बेटी!" मैंने आत्मविश्वास से कहा| मेरा आत्मविश्वास देख उसकी हैरानी गायब हुई और मैंने उसे सब सच बता दिया| मोहिनी ने नेहा को मेरे हाथ से लेना चाहा पर नेहा ने मेरी कमीज पकड़ रखी थी| "बेटा ये मोहिनी आंटी हैं, पापा की बेस्ट फ्रेंड!" मैंने तुतलाते हुए नेहा से कहा तो वो मुस्कुराने लगी और मोहिनी की गोद में चली गई| "पापा की सारी बातें मानती है? Good girl!! वैसे इसकी नाक बिलकुल तुम्हारी जैसी है!" मोहिनी ने नेहा की नाक पकड़ते हुए कहा| मोहिनी के मन के विचार मैं पड़ग पा रहा था, उसके दिल में अब मेरे लिए प्यार था| वो बस इस प्यार को दबाये हुए थी और किसी के भी सामने उसे नहीं आने देती थी| पर आज नेहा को गोद में लेने के बाद उसके मन में एक टीस उठी! टीस मुझे ना पाने की, टीस मेरे साथ एक छोटा संसार न बसा पाने की और टीस एक बच्चे के ना होने की! मोहिनी की आँखें छलछला गईं और वो नेहा को पाने गले से चिपकाते हुए रो पड़ी| मैंने मोहिनी को गले लगा लिया और उसे के सर पर हाथ फेरते हुए उसे चुप कराया| मैं समझ सकता था की उसे रितिका की करनी का कितना दुख है और अभी तो वो उसके काण्ड से अपरिचित थी वर्ण वो उसकी खाट खड़ी कर देती! "Hey...Hey....Hey calm down! शायद हमारा मिलना नहीं लिखा था!" मैंने कहा और मोहिनी के आँसूँ पोछे| "लिखा तो था पर ..... रितिका नाम के ग्रहण ने मिलने नहीं दिया!" मोहिनी ने खुद को गाली देने से रोकते हुए कहा| अब मैंने बात बदलने के लिए उससे उसके और उसके पति के बारे में पुछा और ये भी की वो कब खुशखबरी दे रही है| उसने बताया की उसके पति को गल्फ में जॉब मिल गई इसलिए वो शादी के बाद वहाँ चला गया| महीने-दो महीने में उसका भी पासपोर्ट आ जायेगा और फिर वो भी चली जायेगी! मुझे ये जानकार बहुत ख़ुशी हुई और हम छत पर खड़े बातें कर रहे थे की तभी वहाँ भाभी आ गई; "लगता है अनु को बोलना पड़ेगा की उसका दूल्हा यहाँ कुछ ज्यादा ही 'फ्री' हो गया है!" भाभी ने मजाक करते हुए कहा| "भाभी मैं अपनी होने वाली बीवी से कुछ नहीं छुपाता| वो तो मोहिनी से मिली भी है|" फिर मैंने भाभी को उस दिन का सारा किस्सा सुना दिया| "देखा भाभी मुझे तो शुरू से ही शक था!" मोहिनी मुस्कुराते हुए बोली| "तो मुझे क्यों नहीं बताया?" भाभी ने कहा और फिर हम सारे हँसने लगे|

अब चूँकि मोहिनी आ गई थी तो घर में मुझे एक दोस्त मिल गया था| जब कभी मैं काम में बिजी होता तो नेहा उसी के पास होती| मोहिनी अपनी बातों से सभी का मन लगाए हुए थी और बाकी दिन कैसे निकले पता ही नहीं चला| जो भी रस्में शादी वाले दिन से पहले निभाई जानी थीं वो सभी प्रेमपूर्वक निभाईं गईं और मोहिनी ने बहुत सारी फोटो क्लिक करीं| हमारे गाँव में शादी के एक दिन पहले पूजा होती है और उसमें दूल्हे को हल्दी लगाई जाती है| जब ये समरोह शुरू हुआ तो मुझे एक सफ़ेद पजामा-कुरता पहना कर पहले पूजा में बिठाया गया और उसके बाद हल्दी लगना शुरू हुई| मैंने कुरता उतार दिया और आलथी-पालथी मार कर आंगन में बैठ गया| सबसे पहले माँ, ताई जी और भाभी ने मुझे हल्दी लगाई| भाभी को तो मेरी मस्ती लेने का मौका मिल गया और उन्होंने मेरा गाला और छाती हल्दी से लबेड दिया! उसके बाद सभी औरतों ने मेरे हल्दी लगाईं| इस समारोह की एक-एक फोटो और वीडियो मोहिनी ने ही शूट की! फोटोग्राफर वाला भाई भी कहने लगा दीदी मुझसे अच्छी फोटो तो आप खींच रही हो और उसकी इस बात पर सब ने मोहिनी की बड़ी तारीफ की|

शादी वाले दिन सुबह-सुबह ताऊ जी किसी को फ़ोन पर बहुत डाँट रहे थे, जब मैंने पुछा तो उन्होंने बात टाल दी| कुछ ही घंटों बाद घर के आगे एक चम-चमकती हुई रॉयल ब्लू फोर्ड इकोस्पोर्ट खड़ी हो गई| (दरअसल वो डिलीवरी लेट होने के लिए मैनेजर को डाँट रहे थे!)

ताऊ जी ने मुझे आवाज मार के नीचे बुलाया और गाडी देख मेरी आँखें चौंधियाँ गई! "ताऊ जी????..... ये आपने???? ....... पर क्यों???" मैंने पुछा|

"तो हमारी बहु क्या फटफटी के पीछे बैठ कर आती?" ताऊ जी ने सीना ठोक कर कहा और चाभी मुझे दी; "ये ले बेटा! तेरा शादी का तौहफा .... बड़ी मुश्किल हुई इसे ढूंढने में! बजार में इतनी गाड़ियाँ हैं की समझ ही नहीं आया की कौन सी खरीदूँ? फिर हमने मोहिनी बिटिया से पुछा तो उसने बताया की ये वाली मानु को पसंद है!" मैंने पलट के मोहिनी की तरफ देखा तो वो नेहा को गोद में लिए बहुत हँस रही थी! मैंने ताऊ जी और पिताजी के पाँव छुए और उन्होंने मुझे गले लगा लिया| घर में आया हर एक इंसान खुश था सिवाय एक के!

खेर शाम चार बजे तक सब तैयार हो गए थे और घर के बाहर एक के पीछे एक 3 बसें भी खड़ी थीं ताकि बाराती venue तक पहुँच सकें| मेरे दोस्त यानी अरुण-सिद्धार्थ डायरेक्ट हमें वहीँ मिलने वाले थे| ताऊ जी ने सब को जल्दी बैठने को कहा, अभी मैं पूरा तैयार नहीं हुआ था इसलिए जैसे ही मैंने ताऊ जी की आवाज सुनी तो मैं बनियान पहने ही नीचे आया| "ताऊ जी आप सब को भेज दीजिये बस, आप, मैं, पिताजी, माँ और ताई जी गाडी से जायेंगे| आज पहली ride मैं आप सब के साथ चाहता हूँ!" ताऊ जी को मेरी बात जच गई इसलिए उन्होंने सब को भेज दिया बस हम लोग ही रह गए| जब मैं तैयार हो कर नीचे आया तो जो लोग बच गए थे वो सब मुझे देखने लगे और उनकी आँखें नम हो गईं|

माँ ने फ़ौरन मुझे काजल का टीका लगाया| फिर एक-एक कर सब ने मुझे गले लगाया और आखिकार हम निकले! बसें पहले पहुँचीं और फिर हुई हमारी Grand Entry! गाडी ठीक Wedding Hall के सामने रुकी और हमें गाडी से उतरता देख मम्मी-डैडी समेत उनके सारे रिश्तेदार हैरान हो गए| सब की नजर बस मेरे ऊपर ही टिकी थी क्योंकि मैं शेरवानी में लग ही इतना हैंडसम रहा था की क्या कहें! मेरे दोनों दोस्त अरुण-सिद्धार्थ मेरे साथ खड़े हो गए थे और उन्हीं के साथ मोहिनी भी अपनी लेहंगा चोली में बड़े रुबाब के साथ खड़ी हो गई| "हमारा दूल्हा आ गया अपनी दुल्हन को लेने!" सिद्धार्थ जोर से बोला और सभी ने शोर मचाना शुरू कर दिया| पीछे-पीछे बैंड-बाजा शुरू हो चूका था, इधर मम्मी-डैडी जी हाथ में आरती की थाली लिए खड़े हुए थे| मेरी आरती उतारी गई और फिर सबकी मिलनी हुई| यहाँ मैं बेसब्र हो रहा था क्योंकि मुझे अनु को देखना था पर सारे मिलनी में ही लगे हुए थे| बड़ी देर बाद एंट्री हुई! (वैसे बस 15 मिनट ही लगे थे पर मुझे तो ये समय घंटों का लग रहा था!)

मुझे तो podium पर बिठा दिया गया और एक-एक कर अनु के सभी रिश्तेदारों से मिलवाया गया पर मेरी नजर तो अनु को ढूँढ रही थी| वैसे ज्यादा लोगों की gathering नहीं हुई थी करीब 100 एक आदमी आये होंगे, जिसमें ज्यादातर मेरे परिवार से ही थे! गाना बज रहा था: 'तेरे इश्क़ में जोगी होना!' और इधर मैं जोगी बने-बने ऊब गया था! कुछ देर बाद आखिर मुझे विवाह वेदी पर बैठने को कहा गया जहाँ पंडित जी मंत्र जाप कर रहे थे! मैं बार-बार गर्दन इधर-उधर घुमा कर अनु के आने का रास्ता देख रहा था| अब दोस्तों को मजे लेने थे सो वो आ गए और मेरे पीछे बैठ गए; "भाई थोड़ा सब्र रख, भाभी बस आने वाली है!" अरुण बोला| "यार ये औरतों का तैयार होना कसम से बहुत बड़ा ड्रामा है! यहाँ इंतजार कर-कर के हालत बुइ है और इन्हें कोई होश ही नहीं!" मैंने कहा| सही मायने में उस दिन मुझे एहसास हो रहा था की औरतें कितना टाइम लगाती हैं तैयार होने में! पर जब अनु की एंट्री हुई तो मैं पलकें झपकना भूल गया, मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, आँखें जितनी फ़ट कर बाहर आ सकती थी उतनी फ़ट चुकी थीं!
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07-14-2020, 01:10 PM,
#90
RE: Hindi Antarvasna - काला इश्क़
मैं उठ कर खड़ा हुआ और इधर अनु शर्माते हुए नजरें झुकाये आई और उसके साथ उसकी वो बेस्ट फ्रेंड भी आई| पर मेरी नजरें तो अनु पर गड़ी थीं, उसकी नजरें झुकी हुई थीं| उसने अभी तक मुझे नहीं देखा था| "क्यों भाई अब तो चैन मिल गया तुझे?" सिद्धार्थ बोला| "यार जितना भी टाइम लिया पर जो खूबसूरती दिख रही है उसके आगे ये इंतजार भी सोखा लग रहा है!" मैंने कहा जिसे सुन कर अरुण-सिद्धार्थ दोनों हँसने लगे| "जानेमन! जरा नजर उठा कर हमें भी देख लो, हम भी आपकी नजरों से घायल होना चाहते हैं|" मैंने अनु से खुसफुसाते हुए कहा| तब जा कर अनु ने अपनी नजरें उठाई और मुझे देखा, ये सब इतने स्लो मोशन में हुआ की लगा मानो ये पल यहीं रुक गया हो| "हाय! कहीं मेरी ही नजर आपको ना लग जाए!" अनु ने खुसफुसाते हुए जवाब दिया|

मैंने सिद्धार्थ से माइक माँगा और उसने मुझे माइक ला कर दिया;

"क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये|"

मैंने अनु की इबादत में जब ये शेर पढ़ा तो ये सुन सारे लोग तालियाँ बजाने लगे| ये शोर सुन अनु को बहुत गर्व हुआ और उसने मुझसे माइक माँगा और जवाब में एक शेर पढ़ा;

"जर्रूरत नहीं है मुझे घर में आइनों की अब,
उनकी निगाहों में हम अपना अक्स देख लेते हैं...."

अनु का शेर सुन तो पूरे हॉल में शोर गूँज गया| हमारे माता-पिता हम पर बहुत गर्व कर रहे थे| तभी मोहिनी मेरे पीछे खड़े होते हुए बोली; "एक शायर को उसकी कविता मिल गई!" ये सुन कर अनु की नजर मोहिनी पर पड़ी और उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी की वो हम दोनों के लिए कितनी खुश है|

खेर विधि-विधान से शादी की सारी रस्में हुईं और इस पूरे दौरान हम दोनों बहुत खुश दिख रहे थे| उसके बाद खाना-पीना हुआ, फोटो खिचवाने का काम हुआ और ये सब निपटाते-निपटाते रात के 3 बज गए| घर आते-आते सुबह हो गई थी, बड़े रस्मों-रिवाज के साथ अनु का गृह प्रवेश हुआ| भाभी ने मेरा कमरा सजा दिया था और अनु को अंदर बिठा दिया गया था| मुझे अब भी नीचे रोक कर रखा हुआ था, कुछ देर बाद जब भाभी नीचे आईं तो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे मेरे कमरे तक ले गईं और बाहर चौखट पर खड़े हो कर बोलीं; "मेरी देवरानी का ख्याल रखना!" भाभी ने बड़े naughty अंदाज में ये कहा| पहले कुछ सेकंड तो मैं इसे समझने की कोशिश करने लगा और जब समझ आया तब तक भाभी का खिल-खिलाकर हँसना शुरू हो चूका था| "मेरे बुद्धू देवर! जाओ जल्दी अंदर तुम्हारी पत्नी इंतजार कर रही है!" इतना कहते हुए उन्होंने मुझे अंदर धकेला और दरवाजा बाहर से बंद कर दिया| इधर मैंने भी सेफ्टी के लिए अंदर से कुण्डी लगा दी की कहीं वो दुबारा अंदर ना आ जाएँ! हा...हा...हा...हा!!!
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