Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
12-07-2020, 12:16 PM,
#51
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#47

मेघा- मेरा नसीब मैं खुद लिखूंगी, मेरे नसीब की इबारत तो उसी दिन से लिखनी शुरू हो गयी थी जब से मैंने उस डोर को पूरा करने की ठानी थी ,

वो- जिंदगी की डोर का सोच

मेघा- सोच लिया मैंने जो सोचना था ,

वो- राह बड़ी कठिन, चलना और मुश्किल , तेरी मंशा क्या है बता जरा, किस सिद्धि को पाना चाहती है तू

मेघा- मैं बस अपने प्यार को पाना चाहती हु,

वो- झूठ , फिर झूठ

मेघा- आपको झूठ लगे तो झूठ ही सही , कबीर जानता है किस हद तक प्यार करती हु मैं उस से

वो- तेरे प्रेम में सच्चाई होती तो उसे बताती तेरी असलियत क्यों छुपी, तूने तो प्रेम की नींव ही झूठ पर रखी

मेघा- आपने तो कह दिया, और कह लो , ज़माने का काम ही है कहने का , क्या बताती मैं उसे , किन हालातो में करीब आये हम , हम दोनों हि जानते है , दुश्मनी के बीच मोहब्बत की लौ जलाई है , कोशिश कर रहे है उसे मुकाम तक ले जाने की , आप क्या जाने मोहब्बत, कभी आपने प्यार किया किसी से तो समझ पाती , मेरे दर्द को जब मैं उसके उन जख्मो को देखती हु तो मेरे आंसू गिरते है

“मेरी मोहब्बत, मेरी मोहब्बत, ”उसने मेघा की बातो को जैसे अनसुना कर दिया .

“सुन रहे हो सरकार ये छोरी मुझसे पूछती है मोहब्बत के बारे में , ” पागलो की तरह वो हंसने लगी ,

“जा चली जा, जा ” उसने मेघा से बस इतनाही कहा .

मेघा बस उसे देखती रह गयी, पर वो गयी नहीं, और न उसने मेघा की मोजुदगी की परवाह की , रात धीरे धीरे बढ़ने लगी थी , ये मैं था जो उस जगह पर पहुच गया था ,

“क्या ये तुम हो मेघा, ” मैंने आहिस्ते से पूछा

मेरी आवाज सुन कर जैसे होश में आयी वो , सीधा मेरे सीने से आ लगी, रोने लगी,

मैं- क्या हुआ, ठीक तो हो

मेघा-कबीर, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हु, बहुत प्यार करती हु तुमसे

मैं- जानता हु पर हुआ क्या

मेघा- कबीर मैंने तुमसे झूठ बोले, तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार मैं हु

मैं-जानता हु ,

मेघा- नहीं तुम नहीं जानते, कुछ भी नहीं जानते

मैं- जानता हु तुम पुजारी की बेटी नहीं हो.

मेघा चुप हो गई.

मैं- दुःख इस बात का हैं की तुमने इतना हक़ नहीं दिया की तुम्हे जान सकू

मेघा- मैं डरती थी कबीर, सोचती थी की जब समय आएगा तब बता दूंगी

मैं- हाँ तो ठीक हैं न , जब समय आये बता देना, फ़िलहाल तो मुझे भूख लगी है और मैं तुम्हारे हाथ का बना कुछ खाना चाहता हु

मेघा- चलते है तुम्हारे घर वहीँ बनाती हु खाना

मैं- देखो जरा चाँद, को चांदनी को और इस मेहरबान रात को . और हम दोनों इस पल यहाँ

मेघा- सो तो है , तो क्या इरादे है जनाब के

मैं-तुम्हे प्यार करने का , तुम्हे अपना बनाने का तुम्हारी मांग को इन सितारों से भरने का . मैं तुमसे ब्याह करना चाहता हु

मेघा- वो दिन जल्दी ही आएगा मेरे राजा , मै भी तुमसे दूर नहीं रहना चाहती , तुम्हारी बाँहों के साए तले अब जीना है मुझे,

उसने मेरी गोद में सर रक्खा और लेट गयी . मैं उसकी जुल्फे सुलझाने लगा.

“जानते हो कबीर कभी कभी लगता है मैंने जोग ले लिया है, जैसे जोगन हुई मैं ” मेघा ने कहा

मैं- मैं भी यही मानता हु, तुम हो तो ये जिन्दगी जिन्दगी लगती है , तुम नहीं थी तो कुछ भी नहीं था , ये तमाम रंग जो मैंने देखे है सिर्फ तुम्हारी वजह से,

मेघा- कभी कभी सोचती हूँ अपनी मोहब्बत का अंजाम क्या होगा

मैं- शुरुआत हुई तो अंजाम भी देख ही लेंगे, एक बार रतनगढ़ वाली बात सुलट जाए,

मेघा- पर तुमने नहीं मारा उसे

मैं- उन लोगो को कौन समझाए, जब आँखों पर नफरत का पर्दा लगा हो तो सच कैसे दिखे

मेघा- बहुत चिंता रहती है तुम्हारी, हर पल बस तुम्हारे बारे में ही सोचती हूँ, ये तो मेरा बस नहीं चलता वर्ना एक पल तुम्हे ओझल न होने दूँ आँखों आगे से

मैं- नसीब , पर मैं तुम्हे किसी से मिलवाना चाहता हूँ

मेघा- अपने घरवालो से

मैं- हाँ वो ही है मेरा परिवार, जब तुम उनसे मिलोगी तो जानोगी, बहुत अहसान है उनके मेरे ऊपर

मेघा- जरुर,

मैं- कब समय होगा तुम्हारे पास

मेघा- दो- तीन दिन बाद जब तुम चाहो.

मैं- ठीक है ,

मैं भी उसके पास ही लेट गया , मुझे सुख इसलिए नहीं मिल रहा था की मेरे पास मेघा थी , मेरे सुख का कारण थी ये धरती की गोद जो बस नसीब वालो को मिलती है , मेघा ने अपना सर मेरे सीने पर टिका दिया मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया. रात थी न जाने कब बीत गयी .

सुबह मेरी नींद टूटी तो देखा वो उसी तरह मेरी बाँहों में थी,

“उठो सुबह हुई ” मैंने कहा तो उसने आँखे खोली

वो उठ ही रही थी की उसकी जुल्फे मेरे लॉकेट में उलझ गयी

“उफ़, क्या है ये ” उसने कहा

मैं- रुको मैं निकालता हु,

मैंने लॉकेट से बालो को अलग किया .

मेघा- ये क्या पहना है तुमने

मैं- बस यूँ ही

वो- दिखाओ जरा

मैं- हाँ

मैंने लॉकेट मेघा को दिया उतार के .

मेघा- बहुत खूबसूरत है ये, एक मिनट एक मिनट कबीर तुमने देखा ये

मैं- क्या मेरी जान

मेघा- देखो , ये नक्काशी कोई मामूली नक्काशी नहीं है ये दुआए है ,

मैंने गौर से देखा , कुछ तो था पर मुझे समझ नहीं आया

मैं- तुम ही जानो , मेरे बस की नहीं ये सब

मेघा- कहाँ से मिला तुम्हे ये

मैं- जंगल में

मेघा- कबीर, तुम भी न

मैं- तुम्हे पसंद है तो तुम रख लो, पहन के देखो जरा , जंचेगा तुम पर

मैंने लॉकेट मेघा के गले में पहनाया, और जैसे गजब ही हो गया

वो चीख पड़ी ,”बहुत भारी है ये कबीर, मेरी गर्दन ”

इस से पहले की उसकी बात पूरी हो पाती मेघा के बदन में आग लग गयी, सुनहरी आग ने उसके बदन पर कब्ज़ा कर लिया, चीखने लगी वो , एक पल मैं हक्का बक्का रह गया , पर तभी न जाने क्या सुझा मुझे , मैंने आग में हाथ दिया और मेघा के गले से लॉकेट उतार लिया.

कहने को तो ये छोटी से घटना थी , पर जैसे मेरी जिन्दगी छीन लेता ये छोटा सा पल. लोकेट उतारते ही मेघा सामान्य हो गयी. जैसे कुछ हुआ ही नहीं था, मैंने उसे बाँहों में भर लिया . हम दोनों ही हकीकत से नजरे चुराने की कोशिश कर रहे थे .
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12-07-2020, 12:16 PM,
#52
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#48

न वो कुछ बोल रही थी न मैं बस एक दुसरे के आगोश में इस वाकये को भूलने की कोशिश कर रहे थे , कोई छोटी मोटी बात हो तो भूल भी जाये, पर मेघा मरते मरते बची थी , एक पल की ही बात थी और वो ख़ाक हो जाती, मेरी धडकने ये सोच कर ही घबरायी हुई थी , मैंने उसकी गर्दन पर देखा निशान थे जलने के

मैं-दर्द हो रहा है

वो- नहीं , बस तभी था

मैं- पर वो क्या था

मेघा- शायद ये लोकेट शापित है ,

मैं- तो फिर मैंने कैसे पहना हुआ है

मेघा- क्या मालूम तुम्हारा कोई नाता हो इस से

मैं- पर ये मेरा भी नहीं है , बस मैं इसके बोझ को उठा पा रहा हूँ

मेघा- कैसा बोझ कबीर,

मैं- यही तो नहीं मालूम

वो- मुझे लगने लगा है कबीर ये सब तुमसे जुड़ा है , वो औरत को ही देख लो उसने बस मुझे रोका तुम्हे नहीं , वक़्त के पन्नो में जो कुछ भी दफ़न है वो तुमसे जुड़ा है

मैं- पर कैसे , मेरा क्या लेना देना

मेघा ने अपने झोले से कागज निकाले और आड़ी टेढ़ी रेखाए खीचने लगी ,

मैं- क्या कर रही हो

“दो मिनट रुको बस ” उसने कहा

कुछ देर बाद उसने कागज पर एक नक्शा सा उकेर लिया था

मेघा- देखो ये नक्शा उस पुरे एरिया का हैं जो हम से सम्बंधित है , मंदिर, चबूतरा, ये जगह , तुम्हारा खेत और तुम्हारे गाँव की वो जगह जहाँ मैंने दिया जलाया था .

मैं- पर इनमे क्या समानता है

मेघा- गौर से देखो कुछ तो होगा ही , अगर एक छोटी मोटी जानकारी भी मिल पाए तो हम बहुत आगे बढ़ जायेंगे

मैं- छोड़ इन बातो को मुझे भूख लगी है, रात को भी कुछ नहीं खाया था चल चलते है

मेघा- हाँ

हम दोनों चोर रस्ते से घूमते फिरते खेत पर आये, मेघा हाथ पांव धोने लगी, उसके चेहरे पर गिरते पानी से इर्ष्या होने लगी मुझे

मेघा- यूँ न देखा करो, ये नजरे दिल में उतरती है

मैं- आदत डाल लो , ये नजरे अब बस तुम्हे ही देखा करेंगी, बार बार देखा करेंगी

मेघा- मेरी खुशनसीबी मेरे सरकार , चाय बनाऊ

मैं- नहीं, रोटी ही खाते है ,

कहने को तो बस ये हमारी बाते थी पर हम कहाँ जानते थे की हम बस वो लम्हे जी रहे थे , या किरदार निभा रहे थे, ये डोर जो हम बाँध रहे थे ये कहाँ हमारी थी . चूल्हे पर रोटी बनाती मेघा को बस जैसे देखते रहू, कोई तो बात थी जो मुझे उसके इतने करीब ले आई थी

“सामान नहीं है न इसलिए चटनी ही खानी पड़ेगी, तुम तो जानती हो न आजकल मैं इधर रहता नहीं तो खाने पीने की चीज़े कम है ” मैंने कहा

वो- क्या फर्क पड़ता है, तुम साथ हो , हम साथ खा रहे है ये बड़ी बात है, और फिर ये दिन भी बीत जायेंगे , सुख अपने भाग में भी आएगा

मैं- सो तो है ,

मेघा- तो फिर क्या शिकवा करना, खाओ खाना

मैं- हाँ

कुछ तो भूख थी कुछ उसके हाथ से बनी रोटियों का स्वाद , खाने के बाद उसने फिर से वो नक्शा उठा लिया, कुछ देर बाद बोली-” इन तमाम जगहों में एक समानता है कबीर ”

मैं- क्या

मेघा- ये आपस में एक तारा बनाते है देखो

उसने कुछ बिंदु को रेखा बनाई और यक़ीनन ये एक तारे की शक्ल बन रही थी .

मैं- यानि माँ तारा , यानि मंदिर से कोई सम्बन्ध है

मेघा-और देखो हम लगभग तमाम जगहों पर घूम रहे है सिवाय इस एक के .

मेघा ने उस जगह पर ऊँगली रखी ये वो जगह थी जो हमारी सरहद में थी ,

मैं- पर तुम यहाँ गयी थी न

मेघा-हाँ पर किसी और प्रयोजन से , मुझे लगता है हमें वहां दुबारा जाना चाहिए,

मैं- ठीक है चलते है ,

मेघा- एक काम और कबीर, कुदाली, फावली भी ले चलते है शयद जरुरत पड़ जाये.

मैंने सामान साइकिल पर लादा और वहां चल दिए, ये दोपहर का समय था , धुप पूरी थी, पर हम आखिरकार पहुँच ही गयी, बरसात के बीते मौसम ने यहाँ का नक्शा ही पलट दिया था . मेघा ने अपना माथा पीट लिया , जंगल की यही तो परेशानी थी ये न जाने कैसे किधर फ़ैल जाए

“अब क्या करे,” मैंने पूछा

मेघा- अंदाजा ही लगा सकते है

मैं- मेघा एक बात याद है तुम्हे जहाँ तुमने दिया जलाया था वहां पर सूखी मिटटी वाली धरती थी , घास भी नहीं थी वहां

मेघा- अरे हाँ ये तो मैं भूल ही गयी थी

घंटे भर की मेहनत के बाद आखिर हम कुछ कामयाब हुए ,

“यहाँ हो सकती है शयद वो जगह ” मैंने कहा

मेघा- लग तो यही रही है

हमने वहां पर खुदाई करनी शुरू की, उमस में मेहनत का काम करना अपने आप में जैसे सजा था ऊपर से ये बस हमारा अंदाजा था , पर कौन जानता था अज तक़दीर हम पर थोड़ी मेहरबान थी , कुछ घंटो की खुदाई के बाद हमें कुछ निशानिया दिखने लगी थी .

“कबीर ये श्याद कोई कमरा रहा होगा ” मेघा ने कहा

मैं- नहीं, ये घर था .

मेघा- काश, हम खुदाई की मशीने मंगा पाते तो आसानी होगी

मैं- और फिर लोगो की नजर में आ जाते उसका क्या,

मेघा- ठीक कहते है .

दोपहर कब रात में ढल गयी और रात न जाने कब अगले दिन में पर हम लगे रहे, कुछ छोटी मोटी चीज़े मिली, पुराने बर्तन, आदि पर करार जब आया जब हमको वो बक्सा मिला. एक बड़ा सा संदूक जो ऐसा था की जैसे अभी अभी रखा हो किसी ने

“खोल के देखो ” मेघा ने कहा

मैंने उसे खोला और हम दोनों की आँखे हैरत से जैसे फट गयी
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12-07-2020, 12:16 PM,
#53
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#49

बाक्स में कुछ कपडे थे, जो जार जार थे, पर हमारी हैरानी थी उस लाल जोड़े की वजह से, जैसे अभी अभी ख़रीदा हो दुकान से, लाल रंग का दुल्हन का जोड़ा जिस पर चांदी की तारो से सजावट थी,

“नहीं तुम मत छूना मैं देखता हु ” मैंने मेघा से कहा . लॉकेट वाले हादसे के बाद मैं रिस्क नहीं लेना चाहता था

मैंने उस जोड़े को उठाया, बस एक लिबास था ,

मेघा ने उसे अपने हाथो में लिया सब ठीक था,

मेघा- बहुत , बहुत खूबसूरत है

मैं- पर किसका है

मेघा- फिलहाल इसे रखते है और खुदाई करते है

मैं- ठीक है .

हमने फिर शाम तक खुदाई की पर और कुछ खास नहीं मिला , कभी तो किसी का घर रहा होगा ये पर समय ने छुपा लिया था इसे , और बहुत मुश्किल था इसकी सम्पूर्ण खुदाई करना म जितना हमसे हुआ हमने कोशिश की ,

“अब और नहीं होगी मुझसे ” मैंने कहा

मेघा- ठीक है चलते है कल फिर आयेंगे,

मैं- हाँ

मेघा- पर मैं ये लिबास ले चलूंगी

मैं- मिली चीजो पर हमारा हक़ नहीं होता मेघा

मेघा- कबीर, मेरा मन है

मैं- पर ये हमारा नहीं है

मेघा- मान जाओ न

अब मैं उसे न न ही कह पाया, एक बार फिर हम मेरे आशियाने पर थे,

“तुम चलो मैं नाहा कर आता हु ” मैंने कहा

मेघा- वैसे नहाना तो मुझे भी है, हाल बेहाल है

मैं ठीक है पहले तुम नहालो मैं बाद में नहाता हु

मेघा- बाथरूम किधर है तुम्हारा

मैं- मैं तो यही नहाता हु नलके पर , मैं मोटर चलाता हु, वैसे भी अँधेरा है यही नहा लो .

मेघा- हम्म , अब जाओ भी ,

मैंने मोटर चलाई

मैं- जब तक तुम नहाओगी मैं गाँव हो आता हु, कुछ सामान ले आता हु

मेघा- जल्दी आना

मैं- हाँ बस यु गया यु आया

मैंने साइकिल उठाई और गाँव की तरफ बढ़ गया, सब्जिया, छोटा मोटा खाने पीने का सामान ख़रीदा , वापसी में घर से पास से गुजर रहा था की भाभी मिल गयी दरवाजे पर

“देवर जी, ”

मुझे रुकना पड़ा

मैं- फिर मिलता हु भाभी अभी थोड़ी जल्दी है

भाभी तब तक सड़क पर आ चुकी थी , मेरे सामान को देखा और बोली- क्या बात है , बड़ी जल्दी में हो और ये कपडे कैसे सने है धुल मिटटी से

मैं- मजदूरी मिल गयी थी , अभी वही से आया था पैसे ठीक मिले थे सोचा थोडा राशन ले लू

मैंने तो बस ये बात भाभी को टालने के लिए कही थी पर वो थोडा महसूस कर गयी थी

भाभी-क्यों करते हो ये सब ,हम सब के जी को जलने के लिए न

मैं- भाभी मुझे थोड़ी जल्दी है , कभी फुर्सत हुई तो आपसे ढेर सी बाते करुँगी

वो मुझे आवाज देती रह गयी पर मैं रुका नहीं क्योंकि मेरे हालात ऐसे नहीं थे की मेघा को मैं अकेला छोड़ दू, रतनगढ़ वाले न जाने कब आ जाये उधर, खैर मैं पंहुचा तब तक मेघा नाहा चुकी थी , मैंने उसे सामान दिया वो खाना बनाने लगी मैं नहाने लगा, ठन्डे पानी में उतर के बड़ा सकूं मिला, बदन पर कुछ छाले थे उन्हें आराम मिला ठन्डे पानी से.

मैंने आँखे मूँद ली और थोड़ी देर के लिए सबसे जैसे दूर हो गया .
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12-07-2020, 12:16 PM,
#54
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
खैर ये एक और रात थी जब मेरी दिलरुबा मेरे पास थी , आशिक लोग समझ सकते है दिल का क्या हाल होता है जब वो साथ होती है , खाने के बाद हम बाहर आके बैठ गयी आसमान में चाँद था तारे थे,

मेघा- जानते हो कबीर, मैंने कभी नहीं सोचा था इतने खुस्किस्मत दिन भी होंगे मेरे जीवन में

मैं- सब मेहरबानी है तुम्हारी , तुम मेरा हाथ नहीं पकडती तो मुझे ये मुकाम नहीं मिलता

मेघा- यही बात मुझे कहनी चाहिए

मैं- देखो इन हवाओ को , रश्क होता है जब तुम्हे छूती है ये

मेघा- बहाने ढूंढ रहे हो

मैं- बहाने क्या, मैं तो कभी भी छू सकता हूँ तुम्हे

मेघा- सो तो है मेरे दिलबर , पर ऐसी बाते न करो कुछ होता है मुझे

मैं - - क्या होता है बताओ जरा

मेघा- बस होता है कुछ

मैंने उसका हाथ पकड़ा , “क्या होता है बताओ ” पूछा

मेघा- मुझसे ही कहलवाना चाहते हो , बड़े शरराती हो तुम

मैं ठीक है न बताओ .

वो हौले से मेरे आगोश में आई और लिपट गयी मुझ से उसकी सांसे मेरे होंठो पर टकराने लगी, बहुत कम दुरी थी हमारे होंठो के बीच , इतनी कम की जरा भी होंठ हिले तो छू जाये आपस में , पर फिर वो अलग हो गयी .

मैं- सोते है .

उसने सर हिलाया . बड़े सकूं वाली रात थी वो, पर रात थी बीत गयी, सुबह उठ कर बस दातुन ही कर रहा था मैं , मैंने एक गाड़ी आते देखा ये हमारे घर की गाड़ी थी , मेरी नींद की खुमारी टूटी भी नहीं थी और ये इधर आ रही थी , मैंने मुह धोया तब तक गाड़ी आ चुकी थी , मैंने देखा मेरी माँ और भाभी थे,

“इतनी सुबह सुबह आप लो ग , सब ठीक तो है न ” मैंने पूछा

माँ- तुम्हे हमेशा शिकायत रही है न की मैं तुमसे मिलने नहीं आई लो मैं आ गयी और आज तुम्हे वापिस घर लेके ही जाउंगी

मैं- भाभी आपने बताया न कल माँ को

मैंने शिकायत करते हुए कहा

माँ- ये नहीं बताती तो भी मुझे मालूम नहीं है क्या , मुझे नहीं मालूम क्या जीने के लिए कितनी मेहनत करते हो तुम , पर अब ये नहीं चलेगा मेरा बेटा ये दुःख नहीं उठाएगा , तुम अभी घर चलोगे

मैं- आप जानती हो माँ, वो अब मेरा घर नहीं है

माँ- मैं बस इतना जानती हु की तुम मेरे बेटे हो ,स समझ रहे हो न तुम

मैं इस से पहले की जवाब देता अन्दर से मेघा की आवाज आई “कबीर, चाय बन गयी है ”

और उस पल मुझे भान हुआ की मैं बिलकुल भूल गया था की मेघा भी है मेरे साथ , ये बहुत अत्यप्र्त्याषित स्तिथि थी ,

“चाय कबीर, ” अपने हाथो में कप लिए मेघा बाहर आई , हम तीनो ने उसे देखा , उसने हमें देखा , अजीब सी स्तिथि थी हम सबके लिए , अब कहे तो क्या कहे, करे तो क्या करे.

“अच्छा तो ये कारण था देवर जी ” भाभी ने हस्ते हुए कहा

मेघा ने कप निचे रखा और सर पर चुन्नी ओढ़ी .

मैं - आओ

मेघा पास आई ,

मैं- ये मेघा है , मेघा ये मेरी माँ है और ये भाभी

मेघा ने माँ के पांव छुए,

मैं- तो बात ये हा माँ

मैं- रहने दे, तू कह नहीं पायेगा तेरी माँ हु समझ गयी

मै बस मुस्कुरा दिया.

मेघा- मैं चलती हु कबीर,

माँ- रुको बेटी, मुझे देखने तो दो जरा

माँ मेघा के पास आई और बोली- बेटी, आई तो इसे लेने थी पर अब चाहूंगी की इसके साथ साथ अपनी छोटी बहु को भी ले जाऊ,

मेघा- मांजी

माँ- कुछ कहने की जरुरत नहीं माँ हु सब मालूम है मुझे ,
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12-07-2020, 12:16 PM,
#55
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#50

माँ- कुछ कहने की जरुरत नहीं सब मालूम है मुझे, तुम दोनों एक दुसरे को पसंद हो तो मुझे और क्या चाहिए, कम से कम तुम्हारे बहाने ही सही घर तो लौटेगा ये,

मैं- आप जानती हो मैं वहां कभी नहीं जाऊंगा

माँ-अपनी माँ के लिए इतना तो कर ही सकता है कम से कम मेरे जिन्दा रहने तक तो .

मैं- अब मजबूर करोगी मुझे

माँ- मजबूर तो तब भी नहीं किया था जब तुमने घर छोड़ा था .

मैं- कम से कम मेघा के सामने तो ये सब मत करो माँ

माँ- ठीक है ठीक है , पहले तू बता कब आएगा घर ,

मैं- क्या मालूम

भाभी ने एक बैग मेरी तरफ बढाया

मैं- क्या है ये

भाभी- रख लो देवर जी

मैंने बैग खोला पूरा पैसो से भरा था .

मैं- इतने बुरे दिन भी नहीं आये है , की ठाकुरों के टुकडो पर जीना पड़े.

भाभी- ऐसा क्यों कहते है , आपका ही है सब

मैं- भाबी, आप नहीं जानती कुछ बातो को आपकी भावनाओ की कद्र करता हु पर मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो

माँ- बेटी तुम ही समझाओ इसे कुछ

अब मेघा क्या बोले,

मेघा- कबीर, रख लो

मैं- तुम जानती हो न मेघा, मुझे दौलत की जरुरत नहीं होती

मेघा- जानती हु, मांजी कह रही है तो रख लो फिर भी

न चाहते हुए भी मैंने भाभी के हाथ से वो बैग ले लिया

माँ और भाभी कुछ देर बाद चली गयी इस बात के साथ की मैं उन्हें मेघा के घर का पता दू ताकि वो रिश्ते की बात कर सके, पर वो कहाँ जानती थी की ये इतना भी आसान नहीं था

मेघा- बता नहीं सकते थे क्या तुम्हारी माँ और भाभी आने वाले थे,

मैं- मुझे कहाँ मालूम था पर ठीक ही है न एक न एक दिन तो आमना सामना होना ही था

मेघा- पता नहीं वो क्या सोचेंगे,ऐसे हम तुम अकेले उनके सामने

मैं- छोड़ो अब इस बात को

मेघा- मुझे जाना होगा मैं निकलती हु थोड़ी देर में जल्दी ही मिलूंगी या तो यहाँ या फिर अपनी उसी जगह पर

मैं- यहाँ सुरक्षित नहीं है वही मिलेंगे

मेघा- ठीक है

कुछ देर बाद वो चली गयी, मैंने कुछ देर इधर उधर टाइम पास किया और फिर वापिस आ गया. दिमाग में वाही सब घूम रहा था , इस जंगल में न जाने क्या क्या छुपा हुआ था . जो नक्शा मेघा यही छोड़ गयी थी मैंने उसे फिर से देखना शुरू किया, , हर जगह आपस में जुड़ रही थी पर किस वजह से ये मालूम नहीं था , वो जोड़ा किसका था , वो घर किसका था , वो जंगल वाला कमरा किसका था , वो सोना, लॉकेट, टूटे चबूतरे से क्या सम्बंध था और सबसे बड़ी बात माँ तारा का मंदिर इन सब में क्या रोल लिए था.

वो औरत जो कई बार मिली थी मुझे वो कौन थी , मेरा क्या रिश्ता था उस से , वो कैसे जुडी थी मुझसे . तमाम बातो को सोचते सोचते दिमाग ख़राब हो गया , एक पल लगता था की बस ढूंढ लिया और अगले ही पल एक नयी डोर हाथ लग जाती थी . लगता था की डोर में तो हम बंधे है और कोई अपने हिसाब से खिला रहा है खेल हमें.

अपने बिस्तर पर लेटे मेघा गहरी सोच में डूबी थी, उसे कैसे मालूम था मेरी सप्त सिद्दी के बारे में, उसने बस एक बार में ही सब जान लिया था , उसने कैसे जान लिया मेरी गलती के बारे में , उसे मालूम था ६ दिशाओ की आन के बारे में .

और क्यों उसने मुझे चेतावनी दी की मैं इस रस्ते पर आगे न चलू, वैसे तो बात सही थी , कबीर का जीवन दांव पर लग गया था उस दिन, मेघा के होंटो से एक आह निकल गयी. वो उठी और उसने उस लाल जोड़े को झोले से निकाला

“अद्भुद है ये, इसकी नक्काशी ये चांदी के तार, मुझे लगता है महज ये लिबास नहीं है, ये चांदी , चांदी शीतलता का प्रतीक होती है , पर हमें सोना भी मिला ये कैसा संजोग है फिर आग पानी एक साथ , कैसे मुमकिन है या फिर मैं इस काबिल नहीं की इस गूढ़ रहस्य को समझ सकू. ” मेघा ने अपने आप से कहा

“पर सबसे बड़ा सवाल ये है की कबीर को कैसे जानती है वो औरत, उसने दो बार कबीर की जान बचाई, एक बार टूटे चबूतरे पर और दूजी बार खेत में, मैं तो मान रही थी की मेरी सिद्धि काम आई पर उसने एक पल में मुझे बौनी साबित कर दिया. आखिर क्या नाता है उसका कबीर से ” मेघा ने फिर से खुद से सवाल किया

इधर प्रज्ञा मंदिर के पुनर्निर्माण का प्रयत्न कर रही थी , राणा अपने काम से बाहर था तो प्रज्ञा पर दुनी जिम्मेदारी थी , और उसकी परेशानी को और बढ़ा रहा था पुजारी

पुजारी- मालकिन, तक़रीबन मलबा हटा दिया है पर वो माता की मूर्ति

प्रज्ञा- क्या हुआ मूर्ति को

पुजारी- जी वो अपने स्थान से हट नहीं रही है

प्रज्ञा- अपने आप हटेगी क्या , मजदूरो से बोलके हटाओ उसे

पुजारी- जी बहुत कोशिश की पर वो स्थान से खिसक ही नहीं रही

प्रज्ञा - क्या दिक्कत है

पुजारी- बहुत भारी है वो

प्रज्ञा- तो मजदुर बढ़ा दो न , छोटी सी बात के लिए मेरा समय ख़राब कर रहे हो

पुजारी- तीस तीस मजदुर मिलके नहीं सरका पा रहे है

प्रज्ञा का माथा और ख़राब हो गया . ये सुनकर

प्रज्ञा- कल आती मैं फिर देखती हु

सबकी अपनी अपनी कहानी थी , फ़साने थे सब उलझे थे पर कोई तो डोर थी जो सबको साथ बांधे थी, रात जैसे तैसे बीत गयी पर अगली सुबह अपने साथ एक तूफ़ान लायी थी ऐसा तूफ़ान जो सब कुछ बदल के रख देने वाली थी .

मेघा के लिए सबसे पहली खबर थी की वो जोड़ा उसके कमरे से गायब था .
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12-07-2020, 12:16 PM,
#56
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#51

न जाने आज ये कैसी सुबह हुई थी, हलकी सी ठंडी शुरू हो गयी थी पर आज सब गर्माने वाला था, मेघा का माथा घुमा हुआ था , बड़े चाव से लायी थी वो उस लिबास को ,जी भर कर देखा भी नहीं था उसे की वो गायब .

“हो न हो ये उसी का काम है,आखिर उसे मेरे से परेशानी क्या है , मैंने क्या किया है उसका, समझाना पड़ेगा उसे ” मेघा गुस्से से बोली

इधर प्रज्ञा सुबह ही मंदिर आ पहुची थी , पुजारी की बातो ने उसे सकते में डाला हुआ था , एक सामान्य सी मूर्ति को खिसका क्यों नहीं पा रहे थे लोग मिलकर, उसने भी कोशिश की पर बेकार, पूरी शक्ति लगाकर भी नाकाम रही प्रज्ञा,

“हे माँ, क्यों परीक्षा ले रही हो , ” उसने जैसे विनती करते हुए कहा पर वो मूर्ति खामोश थी जैसे वो हमेशा से थी .

पुजारी- मुझे लगता है किसी सिद्ध तांत्रिक की सहायता लेनी चाहिए, क्या मालूम कोई भूल हुई हो

प्रज्ञा- मालूम करो , बुलाओ जिसे भी बुलाना है , खंडित मंदिर अशुभ है गाँव वैसे ही मुसीबत में है , एक तो इन मोरो को उडाओ यहाँ से कितना बोल रहे है ये, न जाने क्या करवाके मानेंगे ये

प्रज्ञा का दिल आज बहुत जोर से धडक रहा था न उसके चेहरे का रंग उड़ा हुआ था , जैसे किसी अनिष्ट की आशंका हो रही हो उसे, दूसरी तरफ मेघा की आँखों में अंगारे उतर रहे थे, अपना झोला टाँगे तेज तेज कदमो से चलते हुए वो उसी खामोश जगह की तरफ जा रही थी ,जंगल में आज अजीब सी ख़ामोशी थी ,बेशक थोड़ी ठण्ड थी पर सब पेड़ जैसे कुम्हला गए थे .

मेघा ने जैसे ही सीढियो पर पैर रखा उसे झटका सा लगा वो गिर गयी .

वो उठी फिर पैर रखा और फिर गिर गयी .

“मैं देखती हु तेरे बंधन को ” मेघा के होंठ कुछ बुदबुदाये और एक हवा सी चल पड़ी .

अब उसने पैर रखा कुछ नहीं हुआ , वो आगे बढ़ने लगी .सब कुछ पहले जैसा ही था , जैसा वो पिछली बार आई थी , कमरे का दरवाजा खुला था मेघा जब दरवाजे पर पहुंची तो कुण्डी में उसकी बांह उलझ गयी और उसकी नजर दीमक खाए दरवाजे पर पड़ी, एक छोटा सा दिल था जो किसी ने उकेरा था ,

मेघा ने बड़ी गौर से देखा उसे , अब इश्क वाले तो समझ ही लेते है जज्बातों की कहानी को

“कोई प्रेम कहानी तो यहाँ भी बनी है, ”उसने अपने आप से कहा

मेघा- पर ये किसके नाम है, इस दीमक को भी इधर ही लगना था , क्या लिखा है ये, शायद न है या कुछ और मेघा देख ही रही थी की उसकी आँखों में एक चमक पड़ी , छत पर किसी छेद से रौशनी उस जोड़े की चांदी पर पड़ी थी जो वहां उस टूटी खाट पर पड़ा था .

मेघा कमरे में गयी , जोड़े को देखते ही उसकी आँखे चमक गयी, और नारी मन देखिये, उसने बिन कुछ सोचे समझे उसे उठा लिया, उस जोड़े ने जैसे मन्त्र मुग्ध कर दिया था मेघा को .

“अब लेके दिखाए इसको मुझसे वो ” मेघा ने वापिस उस जोड़े को अपने झोले में डाला और वहां से निकलने को बाहर आई , पर सामने वो बैठी थी , मेघा के कदम ठिठक गए.

“मैंने तुझसे कहा था छोरी, इस राह न मुडियो ”

मेघा- मैंने भी कहा था न की आउंगी , कोई रोक के दिखाए , और तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे इस लिबास को चुराने की ,

वो- तुम्हारे लिबास की , तुम्हारे, बेशर्म लड़की तू मुझे कह रही है , जबकि चुराया तूने इसे,

मेघा- पाया है मैंने इसे , पसीना बहाया , खुदाई की तब मिला मुझे ये

वो- चोरी चोरी होती है, और एक बार फिर तू फिर वही गलती कर रही है , मैं तुझे माफ़ी दे दूंगी इसे वापिस रख दे, और मुड जा

मेघा- मैंने कहा न ये मेरा है और लेके जाउंगी इसे, कुछ दिनों में ब्याह करने वाली हु मैं, और जब मैं फेरे लुंगी तो इस जोड़े में ही लुंगी

वो- किस अधिकार से

मेघा- हक़ से , मेरे हक़ से

वो- नादान है तू,

मेघा- नादानी ही सही, पर इसे तो मैं ले जाउंगी ही

वो- उफ्फ्फ ये अहंकार

मेघा- राजपूतानी हु, नसों में खून की जगह अहंकार ही दौड़ता है

वो- हम्म्म, ये बात है तो जा फिर , जा लेके जा इसे

उसने इतना कहा और अपना मुह दूसरी दिशा में कर लिया. मेघा के चेहरे पर एक दंभ का भाव आ गया , वो तन कर चली पर क्या वो सीढिया पर कर पाई, नहीं,

“ये बंधन लगा कर तुम रोक नहीं पाओगी मुझे यूँ तोड़ दूंगी मैं इन्हें ” मेघा गुस्से से चिल्लाई

पर वो शांत रही , उसने देखा भी नहीं मेघा की तरफ ,

मेघा ने प्रयास किया पर असफल, फिर कोशिश फिर नाकामी मेघा का चेहरा क्रोध से जलने लगा ,

मेघा- मुझे मजबूर न करो, जाने को मुझे खोल ये बंधन

वो- राजपूतानी , क्या हुआ तेरे अहंकार में इतनी शक्ति भी न रही की एक छोटे से बंधन को खोल सके

उसकी वो उपहास पूर्ण बात मेघा को अन्दर तक चीर गयी.

मेघा- ठीक है फिर, आज फैसला कर ही लेते है तुम्हे लगता है न की ये सब तुम्हारा है , रहा होगा किसी ज़माने में पर ये दौर, ये वक्त ये आज मेरा है , और मेरा आज मुझसे कोई नहीं छीन सकता . न जाने तुम क्या सोचती हो , पर मैं तुम्हे आमंत्रित करती हु, मैं जीती तो ये जोड़ा मेरा और तुम यहाँ इस जगह पर कदम नहीं रखोगी, ये मेरा होगा

उसने आसमान की तरफ देखा और बोली- क्यों गुस्ताखी करती है लाडो ,एक लिबास के लिए इतनी बड़ी बाद क्यों कहती है , ये तो तेरी उद्द्नता है , हाथ जोड़ कर मांग लेती मैं दुआ के साथ देती पर तेरी नसों में बहता अहंकार बेताब है इस धरती की प्यास बुझाने को , जा ले जा ये जोड़ा और चली जा ,

मेघा- तुम्हे शौक है न आजमाइश करने का आज मैं करुँगी तुम्हारी आजमाइश, माँ तारा की सौगंध मैं पीछे नहीं हटूंगी,

मेघा ने अपनी तलवार खींच ली
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12-07-2020, 12:16 PM,
#57
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#52

हवाए थम गयी थी पर जंगल में जानवरों, पक्षियों ने ऐसा शोर मचाया हुआ था की दूर दूर तक उस कोलाहल को सुना जा सकता था , पर मेघा उसके सामने खड़ी थी , उसे चुनोती देते हुए

मेघा- क्या हुआ मेरी चुनोती स्वीकार नहीं तुम्हे, या भय है तुम्हे इस धार का .

“नादानी मत कर छोरी, मैं हर समय सरल नहीं रहती, तू उस रेखा को मत लांघ , तूने जो अपमान किया मेरा मैं माफ़ी दे रही हूँ तुझे , चली जा ”उसने मेघा को टालते हुए कहा

मेघा- ये क्यों नहीं कहती की इन तमाम बातो के पीछे खौफ है, तुम भी जानती हो तुम मुझे पार नहीं कर पाओगी, बेह्सक तुम्हारी सिद्धिया मुझसे ज्यादा है पर मैं आज आजमाइश करुँगी तुम्हारी,

वो- सिद्धिया, मुर्ख, कुछ नहीं जानती तू, चली जा

मेघा- जाउंगी जरुर पर तुमसे जीत कर ही

वो- प्राणों का भय नहीं है तुझे

मेघा- होता तो यहाँ नहीं खड़ी होती

वो- ये घडी ठीक नहीं है जा चली जा

मेघा- चली जाउंगी , ठीक जाती हु, तुम पैर पकड़ लो मेरे , अपनी नाक रगड़ मेरे कदमो में

मेघा न जाने क्या क्या कह रही थी उसको, गुस्से में अनाप शनाप बोल रही थी , और फिर न जाने क्या घडी आयी

“देख रहे हो सरकार देख रहे हो नादानीया. ये मुझे नाक रगड़ने को कह रही है , मेरी ममता का ये सिला है सुन रहे हो न तुम, नफरत देखनी है न तुझे , ठीक है ,, देख ले, तेरी इच्छा पूरी करुँगी जरुर करुँगी, और हाँ मुकाबला बराबरी का होगा, तेरी और मेरी तलवार , बाकि कुछ नहीं , ” उसने बस इतना ही कहा और अपना पैर धरती पर जोर से पटका

दोनों के बीच की जगह में दरार आ गयी उसने अपना हाथ धरती में डाला और एक तलवार को खींच लिया

“आजा ”

अगले ही पल दो तलवार बहुत जोरो से टकराई, मेघा न पूरा जोर लगा दिया पर फिर भी उसे अपने कंधे बोझ के मरे झुकते हुए महसूस हुए,

“बस इतना जोर है ” उसने मेघा का उपहास उड़ाया

मेघा फुर्ती से घुटनों पर बैठी और फिर निचे होते हुए उसके पैरो पर लात एक पल वो लड़खड़ाई पर जल्दी ही संभल गयी, बार बार दोनों की तलवारे टकराती , मेघा को भी जनून था और उसके बारे में क्या कहूँ,इतनी कुशलता, इतनी प्रवीणता , उसके दांव पेंच ऐसे की क्या फुर्ती, क्या बिजली की गति. मेघा को भी ये अहसास जब हुआ जब वो तलवार मेघा की बांह चीर गयी . बरसो से प्यासी तलवार ने जैसे ही ताजे रक्त का पान किया उसकी प्यास और बुझ गयी .

“आह्ह ” चीखी मेघा

“क्या हुआ छोरी एक चीरे से घबरा गयी, अभी तो शुरुआत है , अभी तो इस धरती की प्यास बुझते देखना है तुझे तेरे ही रक्त से इस धरा का अभिषेक होगा. ” उसने कहा

मेघा- देखेंगे,हम देखेंगे

अगले ही पल मेघा ने जैसे अपने जख्म का हिसाब चुकता कर दिया, उसकी पीठ पर मेघा की तलवार ने अपने निशाँ छोड़ दिए थे

“बढ़िया, और कोशिश कर ”

दोनों की सांसे फूलने लगी थी , कदम एक समय के बाद थकने लगे थे पर हार कोई कैसे माने , पर मेघा ये नहीं जानती थी , की जिसके सर पर खुद शिव ने हाथ रखा था उस से पार कैसे पाती वो, मेघा के बदन पर अब निशान ही निशान थे , रक्त से बदन भीगा था . पर फिर भी उसका हठ था की तलवार थामे हुए थे वो सामने बेरहम कातिल था पर मेघा थी की मान ही नहीं रही थी .

“दम नहीं रहा क्या हाथो में ” मेघा ने उसे और क्रोध दिलाते हुए कहा

“देखेगी छोरी तू ऐसा देखेगी , की तू दुआ करेगी रब से की अगला जन्म चाहे किसी का भी देना इन्सान न बनाना ” कहते हुए उसने अपनी तलवार की नोक मेघा के सीने पर रख दी

और वो मेघा थी की पागलो की तरह हंसने लगी थी, इतना जोर जोर से हंस रही थी

“पागल हो गयी क्या, मौत को दरवाजे पर देख कर अक्सर लोग पागल हो जाते है ” उसने मेघा की तरफ देखते हुए कहा

मेघा- मौत का क्या है एक न एक दिन आनी ही हैं , आज ही सही

“अंतिम इच्छा ”

मेघा- प्रीत की डोर से तुम्हे आजाद करना , टूटी डोर जोड़ना

जब तक मेघा की मे बात पूरी होती तलवार मेघा के सीने को चीरते हुए आगे बढ़ने लगी . मेघा के मुह से हिचकी निकली खून भरी .

उसने तलवार से अपने हाथ हटाये, ,

“मेरी अंतिम इच्छा यही है की मैं जान सकू कौन हो तुम , तुम्हारा क्या रिश्ता है कबीर से, मैं तुम्हे वो दिलाना चाहती हु जिसकी तुम हक़दार हो ”

मेघा ने अपने हाथ जोड़ दिए, ”

मेघा- जो भी मैंने तुम्हे उकसाने को कहा बेटी समझ कर माफ़ करना, और कोई रास्ता भी नहीं था मेरे

वो- ये क्या पाप करवा दिया तूने ,

उसकी आँखों से आंसू गिरने लगे, डूबती आँखों से मेघा ने देखा उसे जलते हुए, राख होते हुए.

क़यामत आ चुकी थी , पर मैं बेखबर बढ़ रहा था मेघा से मिलने को दिल में अरमान लिए, एक नयी दुनिया सजाने को , मेरे प्यार से मिलने उसका दीदार करने , पर कहते है न आशिको की किस्मत में रब ने न जाने क्या क्या लिखा है , मेरी तमाम खुशिया जैसे बिखर गयी जब मैंने उसे देखा, रक्त से सने , दुनिया जैसे थम गयी मेरी

“मेघा ,,,,,,,,,,, मेघा ” मैंने उसे गोद में उठाया .

आँखे बंद थी सांसे श्याद बाकि थी , मेरे आंसू उसके चेहरे पर गिरने लगे,

“हे, मेघा आंखे खोल , देख मुझे, देख तेरा कबीर आया है देख मुझे ” मैं रोता रहा ,

“डॉक्टर के पास ले जाता हु इसे , हाँ डॉक्टर के पास ”

मैंने मेघा को कंधे पर उठाया और दौड़ पड़ा, दिमाग जैसे सुन्न हो गया था , कुछ समझ नहीं आ रहा था,

“सांसे थामे रखना , मेरी जान जब तक मैं हूँ तुझे कुछ नहीं होगा ”

मैं उसे टूटे चबूतरे तक ले आया था की तभी वो मेरे आगोश से गिर पड़ी
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12-07-2020, 12:16 PM,
#58
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#53
मैं करू तो क्या करू, जाऊ तो कहाँ जाऊ, कुछ न सूझे मुझे, मेरी दुनिया मेरे सामने मेघा के रूप में बिखरी पड़ी थी , उसकी आँखे बंद थी , खून बह रहा था, उसे जगाऊ पर वो जागे न , ये कैसी घडी थी कैसा आलम था, हम था और छूटता दामन था,

उसे होस्पिटल लेके जाना था मैंने उसे उठाया पर मेघा ने मेरा हाथ पकड़ लिया.

“कबीर, ”

“हा, मेघा , तू फ़िक्र मत कर कुछ नहीं होने दूंगा मैं तुझे , कुछ नहीं होने दूंगा , मैं लेके चल रहा हूँ होस्पिटल कुछ नहीं होगा तुझे ” मैंने कहा

मेघा- कबीर, मेरी बात सुनो ,

मैं- हां,

मेघा- ये पल बहुत थोड़े है , और इन पलो में मैं तुम्हारे साथ रहना चाहती हु

मैं तुम जिंदगी भर मेरे साथ रहोगी , मेरी प्रीत हो तुम और मेरे होते ये प्रीत टूट जाये, हो नहीं सकता मैं होने ही नहीं दूंगा.

मेघा- मेरी एक बात पूरी करोगे कबीर

मैं- कहो,

मेघा-मैं सुहागन मरना चाहती हूँ कबीर , मुझे पूरी कर दो कबीर, अपनी बना दो मुझे,

मेरी आँखों से आंसू गिरने लगे,

“तुम थोड़ी हिम्मत रखो मेघा, थोड़ी कोशिश करो मैं कुछ नहीं होने दूंगा तुम्हे, मैं ले चलता हु तुम्हे ” मैंने रोते हुए कहा

मेघा- डॉक्टर का मर्ज नहीं है ये कबीर, ,और इतना समय भी नहीं मेरे पास ,

मेघा ने अपने हाथ मेरे आगे जोड़ दिए,

उपरवाले ने न जाने किस कलम से प्रेमियों का नसीब लिखा था, न जाने कैसी हाय थी प्रेम कहानियो को , आखिर क्यों प्रेमियों को ही हर परीक्षा देनी पड़ती थी

“मैं तुझे कुछ नहीं होने दूंगा, तुझे जीना होगा मेरे साथ, मेरे लिए, आने वाले कल के जो खूबसूरत सपने देखे है वो मैं तेरे बिना नहीं जिऊंगा मैं ” मैंने कहा

मेघा- मेरी मांग भर दो, इतनी साँसे तो बाकी है मेरे अन्दर फेरे ले सकू . मैं सुहागन मरूंगी कबीर, तुम्हारी सुहागन

मैं क्या कहता उसे , जैसे तैसे करके उठी वो. कभी सोचा नहीं था की जब वो मेरी बनेगी तो हालात ऐसे होंगे, जिस चेहरे पर नूर होना था, जो बदन सजा होना था खुशियों से बहारो से , वो रक्त से सना था . मैंने उसे अपनी बाँहों में थामा , दिल रोने लगा था , जिन्दगी दूर जो जा रही थी मुझसे , पास पड़े पत्थर से ऊँगली को फोड़ा मैंने और अपनी ऊँगली से उसकी मांग भर दी मैंने,

जिस मांग को मैं चादं तारो से , इस जहाँ की हर ख़ुशी से भर देना चाहता था उसे ऐसे भरना पड़ा था मुझे, उसने मेरी तरफ देखा . उसकी आँखों में फेरो का सपना था . हथेली मेरी जेब पर पड़ी तो भान हुआ मेरी जेब में दिया था ,

मेरे दादा वाला दिया जिसे मैंने जेब में रख लिया था ताकि उस रुबाब वाली से कुछ पूछ सकूँ . मैंने वो बाहर निकाला, मैं जानता था की वो जलता नहीं है पर मेघा के लिए मैं एक कोशिश कर ही सकता था .

पर नसीब देखो, वो कहते है न की समय से पहले कुछ नहीं होता , शायद आज ही वो समय था , वो समय जिसकी चाह थी , मेरी उंगलियों से टपकता खून जैसे ही उस दिए पर पड़ा वो झप्प से फदाफड़ाने लगा. बिन बाती के रोशन होने लगा . मैंने ऊँगली को निचोड़ा उस दिए में, रक्त से भर दिया उसे पूरा . वो रोशन हो गया था, बिन बाती के ही रोशन था वो.

मैंने वो दिया चबूतरे पर रखा, उस हैरानी के लिए मेरे पास अब समय नहीं था मैंने मेघा का हाथ पकड़ा वो मुझे देख कर मुस्कुराई, मैं रो पड़ा. हम फेरे लेने लगे, और जैसे ही हमारे फेरे बस होने को ही थे एक तेज धमाका हुआ हम दोनों गिर गए चबूतरे से निचे, तक़दीर न जाने इस मुश्किल घड़ी में भी मुझे न जाने क्या क्या दिखाना चाहती थी ,

धुआ छंटा तो मैंने देखा , चबूतरा टुकड़े टुकड़े होकर बिखरा था और उसकी तली में कुछ था, खांसते हुए मैंने देखा , वो शायद एक मजार थी , एक मजार जिस पर चबूतरा बना दिया गया था. .वो दिया उस मजार के पास रोशन था , धमाके का उस पर कुछ भी असर नहीं हुआ था .
अद्भुद मंजर था , कोई और समय होता तो मेरे लिए कोतुहल का विषय जरुर होता पर फिलहाल मेरी प्राथमिकता मेघा थी , मैं दौड़ कर गया उसे अपनी बाँहों में लिया, बेहोश थी , नब्ज़ चल रही थी, थोड़ी राहत हुई,

मैंने देखा मजार के पास एक छोटी सी मटकी थी, मटकी के ढक्कन पर एक धागा था , मैंने उसे हाथ में उठाया , मटकी में थोडा सा पानी था ,

“तुम जो भी , जो भी तुम्हारी कहानी है, मैं विनती करता हु, ये तुम्हारे दर पर असाह्य है, मैं इतना तो जान गया हु, की इस दिए से तुम्हारा सम्बन्ध है और दिए से है तो मेरे से भी है, यदि तुम मेरे कुछ लगते हो तो, ये मेरी पत्नी है अब, इसे बचा लो. बचा लो ” मैंने विनती की

तभी खांसते हुए मेघा की आँख खुली , “पानी , पानी थोडा पानी ” वो बस इतना ही कह सकी ,
मैंने तुरंत वो मटकी उसके होंठो से लगा दी, वो धागा मेरे हाथ से उसके हाथ पर गिरा और ठीक तभी ऐसा कुछ हुआ जिसकी मुझे बिलकुल उम्मीद नहीं थी, मेघा के गले से जैसे ही पानी की घूँट निचे उतरी, उसका बदन चमकने लगा, जैसे चांदी सुलग गयी हो, धुआ धुँआ होने लगा. और फिर मेरे हाथ में बस खाल सी ही रह गयी, एक अजीब सी खाल जो बहुत बड़ी थी , चांदी सी चमकती हुई .

धीरे धीरे सब जैसे ठहर गया, सब कुछ यहाँ तक शायद मेरी धडकने भी, बस मैं था , वो मजार थी पर वो चली गयी थी,, न जाने कहाँ पर वो चली गयी थी ..............
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12-07-2020, 12:16 PM,
#59
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#54

“मैं हर कदम साथ चलूंगी,तेरे साथ रहूंगी, तेरी बाँहों में जीना है मुझे ” मेरे कानो में मेघा के कहे शब्द गूँज रहे थे, बस वो ही नहीं थी, कहने को बहुत कुछ था मेरे पास पर शब्द नहीं थे, और भला कहता भी किस से बदनसीबो की कौन सुनता , इस जालिम दुनिया में जब सब दुबे थे अपने अपने स्वार्थ में, जब सब हर रिश्ते-नाते को केवल फायदे के लिए इस्तेमाल करते थे, मैं किस काँधे की बाट देखता.

मैंने मेघा का झोला उठाया, वो खाल जो मेरे हाथो में थी मैंने उसे झोले में डाला और चल पड़ा वहां से, पर जाना कहाँ था किसे खबर थी, मेरी जिन्दगी अभी अभी रूठ जो गयी थी मुझसे, न जाने किस घडी में मैं इन सब उलझनों में पड़ा था, होना तो ये चाहिए था की जिंदगी मेघा के साथ राजी-ख़ुशी बितानी थी पर भाग ने ये दुःख दिखाना था मुझे.

अपने आप को कोसने के सिवाय मैं कर भी क्या सकता था, एक तरफ मेघा के जाने का गम तो दूजी तरफ ये हैरते , वो दिया मेरे खून से ही क्यों जला, मेरे खून में क्या बात थी, दादा ने क्यों छोड़ा था उसे मेरे लिए, क्या करवाना चाहते थे मुझसे वो, वो औरत कौन थी मेरा क्या रिश्ता था उस से , वो एक बड़ी बेदर्द रात थी ,

कुछ दिन ऐसे ही बीत गये , मेरा जी कहीं नहीं लगता था, दुनिया खत्म हो गयी थी मेरे लिए जैसे, रात रात भर मैं उसी मजार के पास बैठा रहता, राह देखता की कोई तो आएगा जो मेरे लिए कुछ करेगा, कोई राह दिखायेगा. पर जैसे आँखे तरस सी गयी थी, हर रात मैं उस दिए को सींचता मेरे रक्त से, हर रात बस मैं एक ही दुआ मांगता की कोई लौटा दे मेरे दिलबर को.

उस रात भी मैं वाही सोया था की झांझर की आवाज से मेरी आँख खुल गयी ,अलसाई आँखों से मैंने देखा वही औरत मजार पर बैठी है, मैंने सोचा देखता हु ये क्या करती है पर वो बैठी ही रही ,

“उठो कबीर, ” उसने जैसेआदेश दिया.

“रोटी रखी है खा लो ” उसने कहा

मैं- भूख नहीं है

वो- थोड़ी बहुत जितनी भी इच्छा हो खा लो . कब तक इस हाल में रहोगे,

मैं- मेरे हाल की किसे परवाह , किसे होगी भला अपनों में बेगाना हु मैं , परिवार के नाम पर बस मेघा ही तो थी वो भी चली गयी .

वो- समझती हु जुदाई की तकलीफ को , आओ रोटी खाओ ,

उसने थाली मेरे आगे की , पानी का गिलास रखा भर के ,

चाह कर भी उसे मना नहीं कर पाया , दो चार निवाले खा लिए

वो- जानते हो , जीवन में सबसे मुश्किल क्या होता है

मैं- क्या

वो - इंतज़ार , इंसानों ने अपने रिश्ते-नाते में लालच, वासना, भर के उनको इतना जटिल कर दिया है की सम्मान, स्नेह की मूल भावना बस एक ढकोसला रह गयी,

मैं- मुझे क्यों बता रही हो

वो- तुम भी तो इन सब से गुजर रहे हो. अब देखो खुद को सब कुछ तो है तुम्हारे पास फिर भी कुछ नहीं है

मैं- फर्क नहीं पड़ता

वो- क्यों नहीं पड़ता , फर्क अवश्य पड़ता है

मैं- मेरे पास कारण था वो घर छोड़ने का और अब वो तमाम बीती बाते भुला चूका हु मैं

वो- तो उसे भी भुला दो और बढ़ो आगे

मैं- कैसे भुला दू उसे

वो- जब और सब को भुला दिया तो उसे भी भुला दो

मैं- कैसे , कैसे भुला दू, उस सपने को जो बस ऐसे ही टूट गया .

वो- जानते हो इस जगह का क्या महत्व है , यहाँ जिसने भी सच्चे मन से दुआ की वो कबूल हुई है , एक ज़माना था जब हर शाम यहाँ लोग आते थे दिया जलाते थे, अब देखो एक ज़माना हुआ इसे वीरान हुए

मैं- आपको मालूम था तो आपने क्यों नहीं रोशन किया इसे वापिस से

वो- बंधन, सबकी अपनी अपनी मजबुरिया , कभी तुम मजबूर कभी हम

मैं- मेरे दादा के उस दिए का क्या सम्बन्ध है आपसे

वो- वो दिया तुम्हारे दादा का नहीं है, वो तो उसे मिला था जैसे तुम्हे मिला

ये एक और अजीब बात थी .

मैं- दुनिया विरासत में न जाने क्या क्या छोडती है और मेरे लिए बस एक दिया

वो- सब मिटटी ही तो है , ये दौलत, ये शोहरत , ये तमाम चीजे जिनके पीछे स्वार्थी हो रहा है इन्सान

उसने बस एक चुटकी बजायी और आस पास की जमीन से सोना बाहर आ गया, बहुत ज्यादा सोना जैसे भंडार हो वहां पर उसका

वो- कभी सोचा है जब ये जंगल नहीं रहा होगा, मेरा मतलब इस तरह से नहीं रहा होगा तो क्या था यहाँ पर

मैं- नहीं जानता

वो- लालच तब भी था , आज भी है, पर प्रेम तब भी था आज भी है, तुम्हारे रूप में, ये तमाम मुश्किलें तब भी थी आज भी है

मैं- मेरी समझ में नहीं आ रहा आप क्या कह रही है ,

वो- तुम्हे समझने की जरुरत भी नहीं है, तुमने पूछा था न की मेरा तुमसे क्या नाता है , मैं तुम हूँ तुम मैं हूँ, तुम्हारे दुःख को अपने अन्दर देखा है मैंने पर इतना कहूँगी तुमसे प्रेम सच्चा हो तो वो उपरवाला पिघल जाता है , करिश्मे होते है , तेरी मोहब्बत सच्ची हुई तो इस मजार वाले पर विश्वास रखना , तेरे नसीब की ख़ुशी तुझे मिल ही जाएगी,

हर कोई जो भी मुझे मिलता था , बस ये इशारे ही करता था कभी खुल कर कोई बात नहीं करता था ,

“पंचमी को इस मजार की राख उठाना और उसके पास ले जाना जो सबकी सुनता है , उसने कभी मेरी सुनी थी तेरी भी सुनेगा , दूध प्रिय है उसे, इस राख से अभिषेक करना उसका और एक कटोरी दूध रखना , आगे तेरा भाग ”

वो उठी और जंगल की तरफ चल पड़ी, मैं रह गया अकेला इस नयी पहेली के साथ .
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12-07-2020, 12:17 PM,
#60
RE: Hindi Antarvasna - प्रीत की ख्वाहिश
#55

कहने को तो कोई कुछ भी कह सकता है, कहने वाले कहाँ कुछ सोचते है, पर दर्द को वही समझता है जिस पर वो बीतता है ,मेघा सच ही कहा करती थी की इस जंगल ने न जाने अपने अंदर क्या क्या छुपाया हुआ है , ये मजार भी उदाहरण थी, ये वो पल थे जब भूत ने अपनी आहट से वर्तमान और भविष्य से सवाल पूछ लिए थे .

मुझे हर हाल में अपने सवालो का जवाब चाहिए था , पर वो जवाब थे कहाँ , हर एक सिरा जो मुझे मिला था अधुरा था , इतनी बड़ी दुनिया में ऐसा कोई नहीं जो मुझे मेरे सवालो के जवाब दे सके, अगले दिन मुझे अगर किसी से मिलना था तो वो थी प्रज्ञा ,मैंने उसे फ़ोन किया

प्रज्ञा- कबीर,

मैं- मिलना है बेहद जरुरी है , अभी के अभी

प्रज्ञा- क्या हुआ ऐसा

मैं- मिलोगी तो सब बताऊंगा

प्रज्ञा- फ़िलहाल तो मैं मंदिर पर पहुचने वाली हूँ तुम बताओ किधर हो

मैं- टूटे चबूतरे पर आ जाओ

प्रज्ञा- पहुचती हु

मैं उसका इंतज़ार करने लगा. थोड़ी देर बाद मुझे उसकी गाडी आते दिखी, सबसे पहले उसने मुझे बाँहों में भर लिया

“ओह, कबीर, ” बोली वो

मैं- इसके बारे में कुछ जानती हो

मैंने मजार की तरफ इशारा करते हुए कहा

प्रज्ञा- ये ऐसे कैसे, मेरा मतलब

मैं- टूटे चबूतरे ने ढका हुआ था इसे

प्रज्ञा- पर क्यों

मैं- मुझे मालूम होता तो तुमसे थोड़ी न पूछता

प्रज्ञा- तुम न जाने किन किन चक्करों में पड़े हो,

मैं- प्रज्ञा, मेरा इसके बारे में जानना बहुत जरुरी है , ये समझ लो मेरी जान दांव पर लगी है

प्रज्ञा- किसकी मजाल जो मेरे होते हुए तुम्हारी जान का दांव खेले , अब तुमने कहा है तो मालूमात करनी ही होगी ,

मैं- आभार तुम्हारा

प्रज्ञा- तुम तो जानते ही हो की मंदिर का दुबारा निर्माण करवा रहे है ,

मैं- बताया था तुमने

प्रज्ञा- एक समस्या है

मैं- मैंने कहा था न की मैं मदद करूँगा

प्रज्ञा- वो बात नहीं है कबीर, बात कुछ और है

मैं- बताओ

प्रज्ञा- मैंने सारा मलबा हटवा दिया है , पर माता की मूर्ति सरक नहीं है अपने स्थान से

मैं- क्या कहा

वो- सही सुना तुमने, वो मूर्ति को बहुत से मजदूर मिलकर भी नहीं सरका पा रहे है ,

मैं- आजकल बहुत अजीब घटनाये हो रही है . खैर, तुम्हारी इजाजत हो तो मैं देखू चल कर

प्रज्ञा- दिन में तो नहीं , हाँ रात को

मैं- ठीक है

बातो बातो में मैंने महसूस किया की प्रज्ञा के चेहरे पर वैसी रोनक नहीं है , कुछ बुझी सी लगी वो मुझे

मैं- सब ठीक है न,

प्रज्ञा- हाँ बिलकुल

मैं- झूठ बोल रही हो न

वो- नहीं

मैं- फिर कहो जरा

प्रज्ञा- क्या कहूँ तुम्हे कुछ समझ ही नहीं आ रहा ,

मैं- हम दोनों एक दुसरे से जुड़े है , तुम्हारे मन की व्यथा समझता हु ,

प्रज्ञा- राणाजी के जीवन में कोई दूसरी स्त्री है कबीर,

ये एक और बम था ,

मैंने उसके चेहरे की तरफ देखा

प्रज्ञा- हाँ कबीर, हाँ , शहर की एक बड़ी हस्ती है, पहले तो मुझे लगता तह की बिजनेस के चक्कर में पर पिछले कुछ समय से राणाजी का सारा समय उसके साथ ही व्यतीत होता है , मेरी छोड़ो गाँव की परवाह भी नहीं करते आजकल, गाँव में हालत ठीक नहीं है जब उन्हें यहाँ होना चाहिए तब भी वो शहर में ही है,

मैं- समझता हु

प्रज्ञा- वो बात नहीं है , मुझे उनकी रंग रेलियो से दिक्कत नहीं है, हमारे समाज में ये जैसे अब आम सी बात हो गयी है और फिर मैं खुद चाह कर भी उन्हें रोक नहीं सकती , क्योंकि मैं भी तो नेक नहीं हु न,

यही तो खूबी थी उसमे, अपनी कमियों को भी स्वीकार करती थी वो

मैं- तो क्या दिक्कत है

प्रज्ञा- हाल ही में उन्होंने कुछ खरीदारी की है , कुछ बड़ी खरीदारी

मैं- क्या

वो- सोना, उन्होंने कई करोडो का सोना खरीदा है

मेरे लिए भी ये एक हैरानी वाली खबर थी

मैं- सोना, इतना सारा

प्रज्ञा- माना की निवेश के लिए ठीक है , पर इतना सारा सोना किसलिए

मैं- ठाकुरों को हमेशा से दो ही चीजों का शौक रहा है औरते और शराब , पर ये हमारे वाले है की इनकी रूचि सोने में है , तुम मेरे साथ चलो तुम्हे कुछ दिखाता हु ,

प्रज्ञा- किधर

मैं- आओ तो सही

गाड़ी मैंने चलाई और उसे हमारे गुप्त स्थान पर ले आया. प्रज्ञा की आँखे फटी रह गयी उस जगह को देख कर

प्रज्ञा- क्या क्या छुपा है इस जंगल में

मैं- अभी तुमने देखा ही क्या है आओ मेरे साथ

मैं उसे कमरे में लाया और वो संदूक दिखाए, सोने से भरे

प्रज्ञा के मुह से बोल न फूटे

मैं- कितने किलो होगा , यहाँ तो केवल दो संदूक है मुझे तो सोने के भंडार का मालूम है

प्रज्ञा- पर इतने सोने का यहाँ होने का मतलब क्या है

मैं- तुम विचार करो

प्रज्ञा- लूट का हिस्सा हो सकता है

मैं- हाँ भी नहीं भी , किसी ने मुझे बताया था की तंत्र में सोने का प्रयोग होता है और जिस तरह से हमारे साथ ये अजीबो गरीब घटनाये हो रही है मुझे नहीं लगता ये लूट का हिस्सा होगा.

प्रज्ञा- मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा

मैं- एक सम्भावना ये भी है की राणाजी ने भी किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही सोना ख़रीदा हो

प्रज्ञा- पर क्या, कभी जिक्र नहीं किया ऐसा कुछ

मैं- कुछ बाते छुपाई भी जाती है .और यहाँ तो सब कुछ ही छुपा है वैसे मैं चाहता हु इसमें से थोडा तुम ले लो, मंदिर के लिए मेरा योगदान

प्रज्ञा- पर ये तुम्हारा नहीं है ,

मैं- फिर क्या हुआ

प्रज्ञा- आओ चले यहाँ से

प्रज्ञा ने मुझे वापिस वही पर छोड़ा इस वादे के साथ की वो मालूमात करेगी , और रात को हम मिलने वाले थे माँ तारा के खंडित मंदिर में
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