Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
06-21-2018, 11:58 AM,
#1
Lightbulb  Hindi Chudai Kahani मैं और मेरी स्नेहल चाची
जब स्नेहल चाची काफ़ी सालों के बाद हमारे घर कुछ दिन रहने को आयीं तब मैंने सपनों में भी नहीं सोचा था कि उनकी उस विज़िट में कुछ ऐसे मोड़ मेरी जिंदगी में आयेंगे जो मुझे कहां से कहां ले जायेंगे. बात यह नहीं है कि जो कुछ हुआ, वह एकदम असंभव था; कुछ परिस्थितियों में और कुछ खास व्यक्तियों के बीच ऐसा कुछ ऐसा जरूर हो सकता था पर ऐसा हमारे यहां, मेरे साथ और वो भी स्नेहल चाची के कारण होगा, ये मैं कभी सोच भी नहीं सकता था, मेरे लिये ये एकदम असंभव सी बात थी. याने स्नेहल चाची जैसी वयस्क, संभ्रांत, हमारे रिश्ते में की और मेरी मां से भी बड़ी महिला मेरे जीवन में ऐसी उथल पुथल पैदा कर देंगी, ये अगर उस समय कोई मुझे कहता तो मैं उसे पागल कहता. अब हमारे यहां आते वक्त स्नेहल चाची के मन में क्या था यह मुझे नहीं मालूम, शायद उनसे पूछें तो वे भी यही कहेंगी कि हमारे यहां आते यह सब होगा ऐसा उन्होंने नहीं सोचा था.

मेरा नाम विनय है. जब यह सब शुरू हुआ उसी समय मैंने इंजीनीयरिंग पास की थी. हमारा घर पूना में है और मेरा सारा एजुकेशन वहीं हुआ है. घर में बस मां और पिताजी हैं. मैं इकलौता हूं इसलिये वैसे काफ़ी लाड़ प्यार में पला हूं. दिखने में साधारण एवरेज और बदन से जरा दुबला पतला सा हूं. याने वीक नहीं हूं, तबियत फ़र्स्ट क्लास है, बस दिखने में जरा नाजुक सा और छोटा लगता हूं. पढ़ाई लिखाई में मैं काफ़ी आगे रहा हूं पर मेरा स्वभाव पहले से शर्मीला सा रहा है. इसलिये लड़कियों से ज्यादा घुलमिल कर बात करने में हिचकिचाता हूं. गर्ल फ़्रेंड वगैरह भी कोई नहीं है.

स्नेहल चाची याने मेरे पिताजी के चचेरे भाई माधव चाचा की दूसरी पत्नी. उनका पूरा नाम स्नेहलता है पर सब स्नेहल ही कहते हैं. अभी उमर करीब पचास के आस पास होगी, शायद एकाध साल कम, मुझे ठीक पता नहीं है. उनका घर गोआ में है. माधव चाचा काफ़ी पहले जो ऑस्ट्रेलिया गये, वो वहीं रह गये. बाद में स्नेहल चाची भी गई थीं पर दो महने रह कर वापस आ गयीं. उन्हें वहां बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. उसके बाद वे एकाध दो बार और गयीं, वो भी बेमन से, उसके बाद वहां न जाने की जैसे उन्होंने कसम खा ली. माधव चाचा साल में एक बार दो हफ़्ते को छुट्टी लेकर आते थे. फ़िर वे दो साल में एक बार आने लगे और बाद में उन्होंने भी यहां आना करीब करीब बंद ही कर दिया.

लोग उनकी इस अजीब मैरिड लाइफ़ के बारे में पीठ पीछे बहुत कुछ कहते थे. कोई कहता कि उनमें बिलकुल नहीं बनती और उन्होंने एक दूसरे का मुंह न देखने की ठान ली है. कोई कहते कि उनका डाइवोर्स हो गया है पर किसी को बताया नहीं है. कोई कहता कि वहां ऑस्ट्रेलिया में माधव चाचा ने दूसरी शादी कर ली है, वगैरह वगैरह. धीरे धीरे लोगों ने इस बारे में बात करना छोड़ दिया, पर शायद इन सब बातों की वजह से स्नेहल चाची ने किसी के यहां आना जाना ही छोड़ दिया. लोग भी उनके बारे में दस तरह की बातें करते कि बड़े तेज स्वभाव की हैं, बहुत घमंड है वगैरह वगैरह. अब करीब छह सात साल बाद वे मां के आग्रह पर दस दिन के लिये हमारे यहां आयी थीं. इस बीच में दो तीन बार परिवार में शादी ब्याह के मौकों पर मिली थीं. मेरा और मां और पिताजी का तो यही अनुभव है कि वे जब भी मिलतीं तो बड़े प्रेम से बातें करती थीं. मुझे तो उनके स्वभाव में ऐसा कुछ दिखा नहीं कि जिससे लोग उनसे कतराते हों. पिछली बार जब मैं उनसे मिला था तब से चाची के बारे में मेरा दृष्टिकोण जरा सा बदल गया था. उसके बारे में आगे फिर बताऊंगा.

उनका बेटा अरुण दो साल से नाइजीरिया में था. अरुण असल में उनका सौतेला बेटा था, माधव चाचा की पहली पत्नी का बेटा जो स्नेहल चाची की मौसेरी बहन थीं. उनके दिवंगत होने के बाद चाची की शादी माधव चाचा से हुई थी, तब अरुण चार साल का था. चाची ने उसे बड़े लाड़ प्यार से अपने सगे बेटे जैसा पाल पोसकर बड़ा किया था. जहां तक मुझे मालूम है, अरुण को भी उनसे बहुत लगाव था. बाकी लोग उनके बारे में कुछ भी कहें, इस पर सबका एकमत था कि अरुण को उन्होंने बड़े प्रेम से पाला पोसा था.

अरुण ने काफ़ी दिन शादी नहीं की. लोग पूछ पूछ कर थक गये. आखिर अभी अभी एक साल पहले ही उसकी शादी हुई. उसकी पत्नी नीलिमा करीब करीब अरुण की ही उमर की थी, याने तैंतीस चौंतीस के आस पास की होगी. वह चाची के पास याने अपनी सास के पास गोआ में रहती थी. शादी के बाद वह नाइजीरिया गयी थी पर दो माह में ही लौट आयी, उसे वहां बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वैसे अरुण की इच्छा थी कि नीलिमा और स्नेहल चाची, दोनों उसके साथ नाइजीरिया में रहें. अच्छी नौकरी थी, बड़ा बंगला था. पर उसने ज्यादा जोर नहीं दिया, वहां राजनीतिक अस्थिरता के साथ साथ लॉ एंड ऑर्डर का भी प्रॉब्लम था. स्नेहल चाची का भी यही विचार था कि फ़ैमिली का वहां रहना ठीक नहीं. इसलिये नीलिमा के वहां न जाने के निर्णय से वे सहमत थीं. अरुण का प्लान किसी तरह अमेरिका पहुंचने का था. पर वीसा वगैरह कारणों से वह प्लान बस आगे सरकता रहा. अब शायद एक साल और लगेगा ऐसा चाची कहती थीं.

मुझे ये सब डीटेल्स मालूम हैं इसका कारण यह नहीं है कि मैं चाची के सम्पर्क में रहा था. सब सुनी सुनाई बातें हैं. मैं तो अब तक उनके यहां गोआ वाले घर भी नहीं गया था. बाकी रिश्तेदार भले उनसे कतराते हों, मां से उनके बहुत अच्छे संबंध हैं इसलिये मां को सब जानकारी रहती है. नीलिमा भाभी से - अब चाची की बहू याने मुझे भाभी ही कहना होगा - मैं कभी मिला नहीं था, हां शादी के ग्रूप फोटॊ में देखा था.
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