Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 10:01 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील के दिमाग़ में जितने सवाल उठ रहे थे वो पल में धराशायी हो गये. रूबी की परिपक्व सोच ने सुनील को और आतम्बल दे दिया. उसके चेहरे पे मुस्कान दौड़ गयी और रूबी का चेहरा भी खिल उठा, रूबी की बात सुन सवी भी यथार्थ में वापस आ गयी और उसकी दुविधाएँ भी जैसे दूर हो गयी थी. रिश्ते बदल चुके थे चाहे उनकी बुनियाद अब भी बाकी थी, यही बुनियाद इन्हें और भी करीब लाएगी, सवी के चेहरे पे भी मुस्कान आ गयी.

सवी : आप जा के दीदी के पा सो जाइए, उन्हें आपकी ज़्यादा ज़रूरत है.

सुनील ने दोनो को चूमा और सूमी के पास चला गया. सोनल सो चुकी थी, पर सूमी जाग रही थी, जैसे वो जानती थी कि सुनील आएगा.

सुनील उसकी बगल में लेट गया और उसे अपनी बाँहों में भर लिया.

सूमी उसके होंठों से अपने होंठ रगड़ते हुए बोली, 'सुनो हमे मुंबई छोड़ के तुम सवी और रूबी के साथ मालदीव चले जाओ, वहीं शादी भी रजिस्टर करवा लेना.और अच्छी तरहा हनिमून मना के वापस आना.'


सुनील : लेकिन सुनेल ....

सूमी : उसके लिए हम सब हैं ना, तुम जाओ मुझे कुछ वक़्त उसका साथ मिल जाएगा, उसे सब समझा दूँगी, ताकि उसके दिमाग़ में जो गुत्थियाँ हैं वो सुलझ जाए.

सुनील : ह्म्म शायद तुम ठीक ही कह रही हो. तो कल सुबह ज़रूरी पॅकिंग कर लेना शाम की फ्लाइट से चलते हैं.

दोनो एक दूसरे की बाँहों में सिमट के सो गये.

अगले दिन, सभी ज़रूरी समान के साथ विजय के घर मुंबई पहुँच गये. विजय और आरती ने दिल खोल के सबका स्वागत किया.
राजेश और कविता भी पीछे नही रहे , कविता तो बस बच्चों के साथ चिपक सी गयी.

सुनील एक बार सुनेल और मिनी से हॉस्पिटल में मिला और फिर वो सवी और रूबी को ले मालदीव के लिए निकल गया.
उसके जाते ही आरती के मन में जो आस का एक दिया अब भी जल रहा था वो भुज गया. सब होनी का खेल था जिसके आगे कोई कुछ नही कर सकता था.

सुनील वगेरह जब मालदीव पहुँचे तो रात हो चुकी थी और लगातार सफ़र की वजह से तीनो थक भी गये थे, सुनील ने इस बार एक दूसरा होटेल ही बुक किया था पर वो भी 5* लग्षुरी और वॉटर बंग्लॉ था, सवी और रूबी तो बंगलो पहुँच खिल गयी थी, उनके लिए तो ये दिन में जैसे ख्वाब देखना था.

इस बार भी सुनील ने दो बेडरूम वाला वॉटर बंग्लॉ बुक किया था, जिसका अपना स्विम्मिंग पूल भी था.

अगले दिन, जब तीनो उठे तो ब्रेकफास्ट के बाद सुनील ने दोनो को शॉपिंग पे चलने के लिए कहा पर रूबी ने मना कर दिया, कि वो बाद में जाएगी, आज तो वो अपनी देख रेख में सवी की सुहाग्सेज सजवाना चाहती थी, सवी के गाल लाल सुर्ख हो गये जब रूबी ने एक दम ये बात बोली, सुनील दूसरी तरफ मुँह कर मुस्कुराने लगा था.
खैर ये दोनो शॉपिंग के लिए निकल गये और रूबी ने अपने सामने अपनी देख रेख में बंग्लॉ को सजवाया.

जब सुनील और सवी वापस पहुँचे उस वक़्त रूबी पूल में मचलती हुई शॅंपेन के घूँट लगा रही थी और दूर तक फैले समुद्र को निहार रही थी.





रूबी को पूल में मचलता देख सुनील को सोनल के साथ बिताए पल याद आ गये, होंठों पे मुस्कान लिए उसने शॉपिंग बॅग्स वहीं हाल में पटके और कपड़े उतार अंडरवेर में पूल में कूद गया, रूबी जिसका ध्यान समुद्र की तरफ था एक दम चोन्कि और चीख पड़ी.

सुनील ने उसे अपने बाँहों में ले लिया 'अरे अरे मैं हूँ'

रूबी का दिल जोरों से धड़क रहा था.

'हाई राम कितने गंदे हो, मेरी तो जान निकाल दी'

'शॅंपेन अकेले नही पी जाती जानेमन' सुनील ने उसके हाथ से जाम ले लिया और एक घूँट में खाली कर दिया.

रूबी : आह छोड़ो बहुत काम करना है, आपकी दुल्हन को सजाना भी तो है.

सुनील : दुल्हन तो दोनो ही हैं तुम भी सज जाओ( बोलते हुए सुनील ने आँख मार दी)

रूबी : छी बेशर्म, आज की रात सवी के नाम है आपकी मेरे तो नज़दीक भी ना आना.

सुनील ने उसकी गर्दन पे अपनी ज़ुबान फेरी ' सच में यही चाहती हो'

रूबी : प्लीज़ क्यूँ मेरी हालत बिगड़ रहे हो.

सुनील : तुम भी रेडी हो जाओ, मैं कुछ नही सुनूँगा.

तभी वहाँ होटेल से दो ब्यूटीशियन पहुँच गयी थी सवी को तयार करने.

सुनील : दो और बुलवा लो, सारा समान बॅग्स में है मैं अभी कुछ देर में आता हूँ.

रूबी भौचक्की सी सुनील को देखती रह गयी और सवी को दोनो लड़कियाँ अंदर ले गयी. सवी ने ही उन्हें कह दो लड़कियाँ और बुलवा ली.

सुनील ने कपड़े पहने और वो बोट से होटेल की लॉबी की तरफ चला गया, अगले दिन उसने रिजिस्ट्रार के ऑफीस में सवी के साथ शादी की रिजिस्ट्री का जुगाड़ किया और काफ़ी देर तक वो सूमी और सोनल से बात करता रहा, सोनल उसे बात बात पे छेड़ रही थी और सुनील दोनो को मालदीव आने की दुहाई दे रहा था. दोनो ने ही सॉफ मना कर दिया , ये हनिमून सवी और रूबी का था इसमें वो नही आएँगी , अगली छुट्टी सभी साथ मिलके बिताएँगे.

सुनील ने सुनेल और मिनी की भी खैर खबर ली और जब वो अपने बंग्लॉ वापस पहुँचा तो चारों लड़कियाँ तभी बाहर निकली थी, सुनील ने दोनो को देखा तो पलकें झपकाना भूल गया.

'कैसी हसीन आज बहारों की रात है, एक चाँद आसमान पे है दो मेरे साथ हैं' अपने आप ही सुनील के मुँह से ये अल्फ़ाज़ निकल गये, आँखें थी कि हुस्न को पिए ही जा रही थी, अजीब सी मुश्किल थी एक शोला थी और एक शबनम, शोला उमँगो का जवरभाटा उन्फान ला रही थी और शब नाम नशे के आलम में पहुँचा रही थी. किसके पहलू में पहले जाए ये नोबत आ जाएगी ये तो उसने ख्वाब में भी नही सोचा था.

उसकी दुवीधा को भाँप रूबी ही बोली, 'आपके हुकुम का मान रख लिया' मैं चली दूसरे कमरे में ये रात सवी की है प्लीज़ और कुछ मत बोलना.

सुनील जैसे ख्वाबों की दुनिया से ज़मीन पे आ गिरा. जहाँ सवी में सूमी की परछाई थी वहीं रूबी में सोनल का पुट था.

'हाई वो कतल भी करते हैं और हाथ में तलवार भी नही, कहाँ चली मेरी जान' सुनील ने जाती हुई रूबी का पल्लू पकड़ लिया.

रूबी लरजती हुई सुनील की बाँहों में सिमट गयी और सवी पलकें झुकाए सुहाग्सेज पे बैठी धड़कते दिल से आनेवाले पलों का इंतजार कर रही थी.

सुनील ने रूबी की गर्दन पे अपने होंठ रख दिए तो रूबी तड़प सी गयी अपनी सुहाग रात के लिए उसने बहुत कल्पनाए कर रखी थी, बहुत से सपने सॅंजो के रखे थे, उसे यूँ लगा जैसे उसके सारे सपने आज धूल में मिल जाएँगे.

रूबी : आह ! सिसकते हुए बोली 'प्लीज़ कुछ मांगू आज आपसे'

सुनील उसकी गर्दन पे अपनी ज़ुबान रगड़ते हुए बोला ' तुम्हें पूछने की ज़रूरत कब्से पड़ गयी, दिल खोल के बोलो'

रूबी कुछ पल सोचती रही कि बोले या ना बोले, कहीं सुनील नाराज़ ना हो जाए, फिर हिम्मत कर बोल ही बैठी...

'प्लीज़ आज की रात सिर्फ़ सवी के नाम कर दो ना' रूबी ये ना बोल पाई कि वो अपनी सुहागरात अपने साजन के साथ अकेले मानना चाहती थी लेकिन सुनील उसका इशारा समझ गया.

सुनील उससे अलग हुआ उसका चेहरा अपने हाथों में थाम उसे देखने लगा.

रूबी ने अपनी पलकें झुका ली लेकिन उन पलकों के झुकने से पहले रूबी की आँखों ने सुनील को उसकी आँखों में बसे सपनों से रूबरू करवा दिया, उन आँखों में एक इल्तीज़ा थी, एक आस थी, एक पुकार थी, एक तड़प थी.

सुनील : जो तुम चाहती हो वैसा ही होगा, मैं खुद को तुम पर थोपना नही चाहता.

तड़प के रह गयी रूबी उसकी पलकें यूँ उठी जैसे कमरे में भूचाल आ गया हो....'ये ये...आप...आप ...' आँसू टपक पड़े रूबी के.


सुनील : पगली मैं तो बस इतना ही कह रहा था जैसे तुम चाहो, क्या सोचने लग गयी.

सुनील ने रूबी के आँसू चाट लिए, उसके कानों में सूमी की वो आवाज़ घूम गयी - सुहागरात लड़की के अपने ख़ास पॅलो की ख़ान होती है उसमें वो बटवारा बर्दाश्त नही कर पाती चाहे मुँह से कुछ ना कहे.

सुनील : जाओ तुम दूसरे कमरे में जा के सो जाओ, वैसे दिल तो नही चाहता कि तुम दूर जाओ, पर तुम्हारी इच्छा का मैं आदर करता हूँ.

रूबी ने नज़रों ही नज़रों में पूछा, नाराज़ तो नही हो ना.

सुनील ने भी नज़रों से ही जवाब दिया यहाँ प्यार ही प्यार है और किसी बात का तो स्थान ही नही फिर कैसी नाराज़गी और कैसा शिकवा.

रूबी को अपनी उपर नाज़ होने लगा, उसने ग़लत फ़ैसला नही लिया था, उसकी जिंदगी की नाव को कोई किनारे लगा सकता था तो बस सुनील. वो सुनील जो सोनल का दिल जीत गया था, वो सुनील, जिसे सागर ने सूमी की जिंदगी में अपना स्थान दिया, उस सुनील से बेहतर और कॉन हो सकता है, कभी कभी उसे सवी पे गुस्सा आता था कि क्यूँ वो सुनील के पीछे पड़ी है, पर आज सब कुछ शीशे की तरहा सॉफ हो गया, सवी ने सुनील के साथ अपनी बाकी जिंदगी बिताने का जो फ़ैसला लिया था वो ग़लत नही था. ये तो किस्मत का खेल था जिसने माँ और बेटी दोनो को एक ही इंसान से प्यार करवा दिया, अब उससे क्या गिला.
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