Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
07-20-2019, 09:58 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
तभी सूमी और सोनल दोनो कमरे में आ जाती हैं. सोनल के हाथ में डाइमंड रिंग थी.

सोनल सुनील को डाइमंड रिंग देती है और कहती है : ये ली जिए और पहना दीजिए सवी को.

सुनील हैरानी से सोनल की तरफ देखता है.

सोनल के चेहरे पे खुशी के भाव थे. 'जी हां दिल से कह रही हूँ अब और मत तड़पाओ मेरी दीदी को'

सवी का चेहरा ये सुन खिल उठता है.

लेकिन सुनील का सवाल जारी रहा

सुनील : सवी कहीं ऐसा तो नही कि तुम्हारे मन में ये बात घर कर गयी हो कि जो सूमी को मिला वो तुम्हें भी मिलना चाहिए, शायद इसीलिए तुम.

सवी : बस सुनील, मेरा और अपमान मत करो. प्यार किया नही जाता हो जाता है. जो इंसान तुम्हारे अंदर है वैसा मुझे कभी नही मिला और जब मिला तो तुम मिले, अब ये दिल काबू में ना रहा तो मैं क्या करूँ. ये भी नियती का खेल है कि तुमने पहले माँ और बहन से शादी करी और भी नियती ही अपना खेल खेल रही है जब तुम फिर से एक और माँ और उसकी बेटी से शादी करोगे फरक इतना है कि मैं रिश्ते में तुम्हारी मासी लगती थी और अब तो साली लगती हूँ और आज के बाद बीवी. मुझे मेरा प्यार दे दो सुनील.

सवी की आवाज़ उसके दिल से निकल रही थी जिसमें वो तड़प थी जो बस एक दिल से प्यार करने वाले के मुँह से ही निकल सकती है. सुनील के मन में चल रहा अंतर द्वंद ख़तम हो गया और उसने सोनल के हाथ से रिंग ले कर सवी को पहना दी. रिंग पहनते ही सवी फफक फफक के रोने लगी.

सूमी : बस कर मेरी बन्नो, अब तो तुझे तेरा प्यार मिल गया, जी भर के बटोर इस प्यार को.

सूमी वहीं कमरे में बने मंदिर के पास जा हाथ जोड़ कुछ प्रार्थना करती है और वहाँ पड़ी दो वर मालाएँ उठा एक सुनील को देती है और दूसरी सवी को.

दोनो एक दूसरे को माला पहनाते हैं और फिर सूमी सवी को दूसरे कमरे में ले गयी जहाँ उसकी सुहाग्सेज सजी हुई थी.

सुहाग सेज पे बात सवी के अरमान मचलने लगे और वो बेसब्री से सुनील का इंतेज़ार करने लगी.

सुनील ने सवी को स्वीकार तो कर लिया पर वो खुद से बहुत सवाल कर रहा था उसे सबसे बड़ी चिंता थी कि क्या वो 4 बीवियों को संभाल पाएगा कहीं ऐसा ना हो कि चारों चार अलग रास्ते पे चलने की ठानें और वो पिसता चला जाए.

औरत के मन में कब क्या आ जाए ये कोई नही जान सकता और अब सुनील को अपना वक़्त इस तरहा बाँटना था के उसकी चारों बीवियाँ खुश रहें किसी को ये ना महसूस हो कि किसी को ज़्यादा वक़्त दिया और किसी को कम.

सोनल जो उसके पास ही थी वो उसके मन के भावों को समझ चुकी थी.

सोनल : क्यूँ इतना परेशान हो रहें हैं, तसल्ली रखिए हम चारों में कोई झगड़ा नही होगा. जाइए अब दुल्हन को इतना इंतेज़ार नही करवाया जाता.

सोनल ने सुनील के होंठों को चूम लिया - लव यू जान -जाओ और सवी को फिर से एक महकता हुआ फूल बना दो.

सुनील उठ के जाने लगा तो सोनल उसके साथ चिपक गयी.

सोनल :सुनो सवी और रूबी दोनो को हनिमून के लिए मालदीव ले जाओ और वहाँ पे शादी भी रिजिस्टर करा लेना, यहाँ दीदी है मेरे साथ. आप मेरी चिंता मत करना.

सुनील : देखते हैं इतनी जल्दी भी क्या है.

सोनल : कह दिया ना जाओ बस आगे कुछ नही और अब जाओ अपनी दुल्हन के पास.

सुनील सोनल के होंठों को अच्छी तरहा चूस्ता है और फिर वो उस कमरे की तरफ बढ़ जाता है जहाँ सवी उसका इंतेज़ार कर रही थी.

सुनील जब सवी के कमरे में पहुँचा तो कमरा महक रहा था चारों तरफ फूलों की लाडियाँ और सुहाग्सेज पे गुलाब की पत्तियाँ सजी हुई थी जिनके बीच सवी बैठ हुई थी, पास खड़ी सूमी उसे कुछ समझा रही थी.

सुनील को अंदर घुसते देख सूमी उसके पास गयी और गले लगा के होंठों पे छोटा सा चुंबन जड़ते हुए बोली - एक और जीवन साथी मुबारक हो, खूब प्यार करना सवी को.

और सुनील को हाथ से पकड़ सवी के पास ले जा कर बिठा दिया.

'सुहागरात मुबारक हो तुम दोनो को' इतना कह वो कमरे से बाहर चली गयी सोनल के पास.

औरत जब रति का रूप धारण कर लेती है तो मर्द चाहे किसी भी मानसिक अवस्था में क्यूँ ना हो कामदेव के बान से वंचित नही रहता. कुछ यही हाल इस वक़्त सुनील का हो रहा था.

सूमी कमरे में बिस्तर के पास चाँदी के ग्लास में गरमा गरम बादाम से भरा हुआ दूध रख गयी थी.

सुनील अभी सोच रहा था कि कैसे बात शुरू करे के सवी उठी और चाँदी का ग्लास उठा सुनील की तरफ बढ़ी कमरे में उसकी पायल की रुनझुन फैल गयी जो महॉल को और भी कामुक बना रही थी.

सुनील का दिमाग़ एक खाली स्लेट की तरहा सॉफ हो गया - बस सागर की एक बात लिखी रह गयी - प्यार बाँटने से कम नही होता.

सवी रुनझुन पायल छनकाती हुई सुनील के करीब आई और दूध का ग्लास उसके आगे कर दिया.

सुनील - ऐसे नही ..

सवी कुछ घबरा सी गयी कि अब उसने कोई ग़लती तो नही कर दिल ज़ोर से धड़कने लगा और वो सवालियाँ नज़रों से सुनील को देखने लगी.

सुनील ने एक हाथ सवी का पकड़ा और जैसे ही उसने उस हाथ को छुआ जिसमे दूध का ग्लास था - एक परछाई सी सवी के जिस्म से निकली और दूध का ग्लास उसके हाथ से उछल के सामने दीवार पे जा लगा और दीवार पे दूध की जगह खून फैलता चला गया ...ये देख सवी चीख मार बेहोश हो गयी.
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07-20-2019, 09:58 PM,
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कमरे में धुआँ धुआँ सा छा गया वो परछाई सुनील की तरफ बढ़ने लगी और तभी बीच में एक और परछाई आ गयी जो बिल्कुल सुनील ही लग रही थी.

दोनो परछाईयों में एक युद्ध सा छिड़ गया कमरे की चीज़ें उछल उछल के इधर उधर गिरने लगी . जो परछाई सुनील जैसी दिख रही थी वो काफ़ी तकलीफ़ में दिख रही थी पर हिम्मत नही हार रही थी. तभी एक दम एक सवेरा सा छा घाया सवी के जिस्म से निकली परछाई फिर उसके जिस्म में समा गयी.

सुनील तो पत्थर सा बन गया था. वो सुनील जैसी परछाई ने एक दर्द भरी मुस्कान से सुनील को देखा और लुप्त हो गयी.

उसी वक़्त सुनेल जो अपनी साधना में बैठा हुआ था भरभराता हुआ गिर पड़ा.

मिनी जो दूसरे कमरे में थी सुनेल के आदेश की अवहेलना करते हुए कमरे में घुसी और सुनेल को यूँ गिरा देख उसकी तरफ लपकी पास ही एक लोटा पानी का पड़ा था और मिनी उसके मुँह पे पानी की छींटे करने लगी. कुछ देर में सुनेल होश में आ गया. उसकी आँखें लाल सुर्ख थी जैसे उनमें खून भर गया हो.

होश में आते ही सुनेल बस इतना बोला हम कल सुनील के पास चल रहे हैं उसकी जान ख़तरे में है.

सुनेल ने जैसे ही अपनी मानसिक तरंगों के विकास में कुछ सफलता प्राप्त करी थी वो सुनील से मिलने वहाँ पहुँच गया था पर नज़ारा कुछ दूसरा था और सुनेल को उस साए से युद्ध करना पड़ा. सुनेल के पास इतनी शक्ति नही थी अभी इसलिए उसका बल कमजोर पड़ता जा रहा था कि अचानक उस साए ने स्वयं ही युद्ध बंद किया और फिर से सवी के जिस्म में विलीन हो गया. सुनेल के चेहरे पे दर्द भरी लकीरें खिच गयी थी उसने एक मुस्कान से सुनील को देखा और वहाँ से गायब हो गया.

सुनेल जब अपने जिस्म में वापस पहुँचा तो उसमें इतनी शक्ति नही बची थी कि वो अपनी आँखें खोल पाता और साधना के उसी पोज़ में बेहोश सा गिर पड़ा जिसकी आवाज़ सुन मिनी की नींद खुल गयी और वो हैरान परेशान सुनेल के चेहरे पे पानी की छींटे मारने लगी. कुछ देर बाद सुनेल होश में आ गया और धीमी आवाज़ में बोला - हिन्दुस्तान चलने की तायारी करो हम कल ही निकलेंगे.

मिनी हैरानी से उसे देखने लगी.

सुनेल : जानता हूँ अभी सोनल के बच्चे पैदा नही हुए, पर सुनील की जान ख़तरे में है हमे जाना ही पड़ेगा.

मिनी चुप रह गयी और पॅकिंग में लग गयी.

सुनेल बैठा बैठा सोचने लगा, अगर वो सही वक़्त पे ना पहुँचता तो ना जाने क्या हो जाता. पर ये रूह किसकी थी जो सवी के जिस्म में रह रही थी और वो सुनील को क्यूँ मारना चाहती थी. सुनेल की आँखों के सामने कमरे का महॉल घूमने लगा तो उसे कमरे में सुहाग सेज दिखाई दी. ओह सुनील ने सवी मासी से भी शादी कर ली.

शायद वो रूह बहुत दिनो से सवी के जिस्म में रह रही थी पर सवी को कोई नुकसान नही दे रही थी, पर सवी की शादी उससे बर्दाश्त नही हुई और वो सुनील को मारने बाहर निकल पड़ी - वो रूह नही चाहती थी कि सवी किसी और की बने. पर क्यूँ? आख़िर ये रूह है किसकी? इन सवालों का जवाब तो हिन्दुस्तान पहुँचने पे ही मिलना था. सुनेल ने एक मेसेज मोबाइल से प्रोफ़ेसर. सिद्धेश्वर को भेज दिया, जिसे वो अपना गुरु मानता था, जिसकी वजह से आज वो अपनी मानसिक तरंगों के विकास में सफल हुआ था. वो अकेला सब नही कर पाएगा और प्रोफ़ेसर की बहुत ज़रूरत पड़ेगी. प्रोफ़ेसर. से सुनेल की मुलाकात उसी दोरान हुई थी मुंबई में जब वो मिनी से मिला था, और जब उसे प्रोफ़ेसर. के बारे में डीटेल में पता चला तो उसने पीछे पड़ के उनको अपना गुरु बना लिया था.

यहाँ सुनील हैरान परेशान पलकें झपका के समझने की कोशिश कर रहा था कि जो हुआ वो महज एक दिमागी खलल था या वाक़ई में हुआ था. कमरे की सारी चीज़ें जो पहले उथल पुथल हो गयी थी वो अपनी जगह इस तरहा सही सलामत थी जैसे कुछ हुआ ही ना हो. दीवार से खून के दाग गायब थे और दूध का भरा ग्लास वहीं उसी जगह पे था जहाँ से सवी ने उठाया था. सुनील का दिमाग़ चकराने लगा. फिर उसका ध्यान सवी पे गया - वो वाक़ई में बेहोश थी. तब जा के सुनील को यकीन हुआ कि जो हुआ वो एक भयानक सच था. उसकी नज़रों के सामने उसका ही वो अक्स उभर आया जो उस रूह से लड़ रहा था. ये कैसे हो सकता है? क्या उसकी अपनी आत्मा ने जिस्म से बाहर निकल ये सब किया? नही नही ऐसा कैसे हो सकता है? दिमाग़ में हज़ारों सवाल उमड़ने लगे जिनका उसे कोई जवाब नही मिल रहा था.

तभी सर झटक वो यथार्थ में आया और सवी की तरफ लपका उसे उठा के बिस्तर पे लिटाया तो पता चला वो बुखार से तप रही थी. शायद डर की वजह से उसे बुखार चढ़ गया.

सुनील सूमी के कमरे की तरफ भागा, दरवाजा खुला था वो धीमे से अंदर घुस्स गया. सोनल गहरी नींद सोई पड़ी थी. और सूमी करवट पलट रही थी, उसे सुनील से चुदने की इतनी आदत पड़ गयी थी की उसे नींद नही आ रही थी.

सुनील धीरे से उसके पास गया और प्यार से उसके सर पे हाथ फेरा. सूमी ने फट से आँखें खोली और देखा के सुनील अभी भी उन्हीं वस्त्रों में था यानी कि अभी कुछ नही हुआ दोनो के बीच, इससे पहले वो कोई सवाल करती सुनील ने उसे इशारे से चुप रहने को कहा और अपने साथ बाहर ले आया.

सुनील उसे सवी के पास ले गया, सवी को बेहोश और उन्हीं वस्त्रों में देख वो लगभग गुस्से से सुनील की तरफ देखी.

सुनील : सब बताता हूँ पहले इसे देखो.

सूमी ने सवी को चेक किया 105 बुखार फट से गीली पट्टियाँ करनी शुरू की और बुखार कम होने का इंजेक्षन दिया.

पर ये क्या आधे घंटे की अंदर ही सवी पसीना पसीना हो गयी जिस्म सूखे पत्ते की तरहा काँपने लगा और एक दम बर्फ की तरहा ठंडा पड़ गया.

तभी सुनील के मोबाइल में एक मेसेज आया. सुनील ने देखा किसी अंजान नंबर से था. बस इतना लिखा था घबराओ नही मैं आ रहा हूँ.

सुनील ने वो मेसेज सूमी को दिखाया और जो हुआ वो सब बता दिया. जैसे जैसे सूमी सुनती गयी वैसे वैसे उसकी आँखें फटती चली गयी मुँह खुलता चला गया और एक चीख मार वो गिर पड़ी उसके मुँह से बस इतना निकला - वो जिंदा है.

सूमी का ये रियेक्शन देख सुनील के हाथों के तोते उड़ गये. एक तरफ सवी की ये हालत और दूसरी तरफ सूमी भी बेहोश ....पर कॉन जिंदा है? ऐसा क्या है सूमी की जिंदगी में जिसे वो नही जानता. अबी जो सवी और उसके साथ हुआ उसमें सूमी कहाँ से आ गयी.

सोनल को जगा नही सकता था. वो रूबी को उठा के ले आया ताकि एक सवी को देख सके और दूसरा सूमी को.
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07-20-2019, 09:59 PM,
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सुनील के दिमाग़ में नगाड़े बज रहे थे. सवाल पे सवाल उठ रहे थे. पर जवाब कहीं से मिलता नज़र नही आ रहा था.

सुनेल मिनी को देख रहा था पॅकिंग करते हुए. और उसके दिमाग़ में जलजले उठ रहे थे. एक तरफ एक भाई का प्यार उसे खींच रहा था जिसके लिए वो जान पर खेल गया था वहीं दूसरी तरफ दिल ,में चुबी हुई फाँस उसे जला रही थी, नफ़रत हो रही थी उसे सुनील से- कैसे उसने सवी से शादी कर ली, शादी और मासी से. ये ये सब क्या चल रहा है.

जब सुनेल मुंबई में था तब उसने उड़ती हुई बातें कुछ सुनी थी जब सवी, विजय और मिनी बात कर रहे थे जिन से ये लग रहा था कि सुनील उसकी और अपनी माँ सुमन से शादी कर चुका था, और तो और बड़ी बहन सोनल से भी. लेकिन उसने इस बात को अपने कानो का वेहम समझ उड़ा डाला था. लेकिन कल जो उसने कमरे में देखा वो उसकी रूह को अंदर से हिला गया था. कैसे एक भांजा अपनी मासी से शादी कर सकता है ? ये बात उसका दिल कबुल करने को तयार नही था. पर उस कमरे की तस्वीरें और दोनो के दूल्हा दुल्हन के हुलयए कुछ और दास्तान बता रहे थे.

सुनेल के कानो में वो बातें फिर गूंजने लगी. जब उसे कुछ ऐसा महसूस हुआ था कि सुनील ने माँ और दीदी दोनो से शादी कर ली है. नही नही ये ये कभी नही हो सकता. उसका दिल किसी भी तरहा इस बात को मानने को तयार नही था.

ये बच्चे क्या सुनील और सोनल के हैं. क्या ये सच है. नही ये नही हो सकता.

मुझ से कहा गया था कि सोनल गर्भवती है और मुश्किल से गर्भ ठहरा है, इसलिए जब तक बच्चे नही पैदा हो जाते मुझे उन लोगो से दूर रहना चाहिए.

लेकिन ये नही बताया था कि सोनल का पति कॉन है.

क्या जो मैं सोच रहा हूँ वो सच है? हे उपरवाले काश ये सब झूठ निकले.

मेरा जुड़वा मेरा पिता कैसे हो सकता है? मेरी दीदी, मेरी भाभी कैसे बन सकती है? नही ये सब मेरा वेहम है ये नही हो सकता. ज़रूर कोई खांस वजह होगी जो सुनील ने सवी से शादी की. ओह! कहीं ये उस रूह से निदान पाने के लिए तो नही किया गया था.

बवंडर मच रहे थे सुनेल के दिमाग़ में और जवाब उसे हिन्दुस्तान पहुँच के ही मिलने थे.

मिनी पॅकिंग तो कर रही थी पर अंदर ही अंदर वो हिली पड़ी थी उस वक़्त के बारे में सोच - जब सुनेल के सामने एक भयानक सच्चाई आएगी - उसका जुड़वा भाई उसकी माँ और बड़ी बहन से शादी कर चुका है. क्या सुनेल इस सच को बर्दाश्त कर पाएगा.? एक अंजाना सा डर मिनी को घेर बैठा था.

सुनेल ने काई बार सोचा क्यूँ ना मिनी से सच के बारे में पूछ ले और जो सवाल उसकी जान पे बने हुए थे उनका जवाब हासिल कर ले, पर जैसे ही मुँह खोलने की सोचता ज़ुबान तालू से चिपक जाती, क्या सोचेगी मिनी मेरे बारे में अगर मैने ये सवाल उठाए. नही नही मैं तो बस पगला गया हूँ. आधा अधूरा ज्ञान बड़ा ख़तरनाक होता है इसलिए सिर्फ़ कुछ फुसफुसाती आवाज़ों के दम पे मैं कोई ख़याल नही उत्पन्न कर सकता, क्या पता क्या बातें हो रही थी और मैं क्या सोचने लग गया.

ऐसा कभी होता है कि एक बेटा माँ से शादी करे और तो और बड़ी बहन से भी शादी कर डाले. तभी एक धमाका उसके दिमाग़ में हुआ एक ज़ोर का बॉम्ब फूटा और वो तिलमिला के रह गया.

उसकी आँखों के सामने वो मंज़र आ गया जब वो दरवाजे के बाहर खड़ा सुनील और समर की चल रही लड़ाई को सुन रहा था. क्या कहा था सुनील ने ...कुछ कहा था...क्या क्या...हां सुनील समर को गालियाँ दे रहा था कि समर ने माँ को ये सीखाने की कोशिश करी थी कि वो सुनील को सेक्स लेसन्स दे. कैसा भड़का हुआ था सुनील उस वक़्त. तो ये तो हो ही नही सकता कि सुनील माँ से शादी कर ले. ज़रूर कोई और बात चल रही होगी जिसे मैं ढंग से सुन नही पाया जब सवी, मिनी और विजय बात कर रहे थे.

वाह रे इंसान तू और तेरा दिमाग़, पता नही क्या क्या सोच डालता है. सुनेल खुद पे ही हंस पड़ा और अपना सर झटक वो मिनी की मदद करने लगा पॅकिंग में.

यहाँ सुनील परेशान था सवी और सूमी दोनो बेहोश थी. सवी का जिस्म कभी गरम होता तो कभी ठंडा. रूबी घबराई हुई सी सुनील को देख रही थी अपनी माँ की ये हालत उससे बर्दाश्त नही हो रही थी, सुनील सूमी को होश में लाने की कोशिश कर रहा था, पर शायद सूमी कोई कोई गहरा सदमा पहुँचा था.

आसमान पे काले काले बादल छाने लगे दिन का उजाला गहरी रात का रूप इख्तियार करने लगा, बादलों की गड़गड़ाहट शुरू हो गयी यूँ लग रहा था जैसे बादल आपस में लड़ रहे हों. बीच बीच में बिजली चमकना लगती, महॉल ख़तरनाक होता चला जा रहा था और कमरे में सुनील सूमी को होश में लाने का प्रयत्न कर रहा था.

रूबी सवी के पास बैठी आँसू बहा रही थी, कभी उसके हाथ रगड़ती तो कभी पैर, सवी का जिस्म कभी ठंडा पड़ जाता तो कभी जलते हुए शोले की तरहा भाबकने लगता. रूबी से सवी की हालत देखी ना जा रही थी, कहाँ तो आज उसकी सुहागरात थी और कहाँ ये सब हो गया. रूबी को अभी ये नही मालूम था कि असल में हुआ क्या था, वो तो बस ये समझ रही थी कि सवी अचानक बीमार पड़ गयी.

धीरे धीरे सवी का जिस्म नॉर्मल हो गया, पर वो अभी तक बेहोश थी, अब उसका जिस्म ठंडा गरम नही हो रहा था. इतने में सूमी भी होश में आ जाती है और कस के सुनील से लिपट जाती है. सुनील उसे कुछ नही कहता ना कुछ पूछता है, उसे पूरी तरहा संभलने का मौका देता है. सुनील चाहता था कि सूमी जो दिल में है वो खुद उससे बोले. आख़िर सारी बात सुनने के बाद सूमी - वो जिंदा है बोल के बेहोश क्यूँ हुई थी. सवाल पे सवाल सुनील के दिमाग़ में घूम रहे थे और उन सवालों का अहसास सूमी को हो गया था. सूमी ने खुद को संभाला और सुनील से अलग हो उसके साथ चिपकी बैठी रही और अपना सर उसके कंधे पे रख दिया.

सूमी बहुत धीरे से बोली ताकि रूबी को सुनाई ना दे : क्या तुमने वाक़ई में देखा था कि दूसरा साया बिल्कुल हूबहू तुम्हारी तरहा था.

सुनील : हां पर मुझे कुछ समझ नही आ रहा ये सब क्या है.

सूमी : मुझे लगता है सवी पे किसी आत्मा ने क़ब्ज़ा कर लिया है, शायद काफ़ी पहले और वो नही चाहता कि सवी की शादी हो, तभी वो आज सुहागरात वाले दिन उसके जिस्म से निकल के बाहर आया और तुम्हें मारने की कोशिश करी.

सुनील : तुम ये सब मानती हो.

सूमी : ये जिंदगी का कड़वा सच है सुनील, मैने इस बारे में काफ़ी पढ़ा है, और अब तो पूरा यकीन हो गया है.

सुनील : वो दूसरा साया जो मेरी तरहा दिखता था वो फिर कैसे.

सूमी : वो और कोई नही तुम्हारा जुड़वा भाई है. लगता है तुम भूल गये, मैने तुम्हें बताया तो था,जब तुम दोनो पैदा हुए थे तो मुझे यही कहा गया कि वो मरा हुआ पैदा हुआ था. पर तुम्हारी बात सुन के यकीन हो गया कि मुझसे झूठ बोला गया था. वो हम तक पहुँच चुका है तभी कल वो तुम्हें बचाने बीच में कूद पड़ा, शायद उसने अपनी मानसिक तरंगों को विकसित कर लिया है. सुनील मेरा दिल तड़प रहा है उससे मिलने को, इतने साल मैं अंजान इस धोखे में रही कि वो मर चुका है.

सुनील हैरानी से सूमी को देखने लगा. उसका जुड़वा भाई और ये बात वो भूल कैसे गया, उसे अपने उपर गुस्सा सा छाने लगा.

सूमी : नाराज़ मत हो, हो जाता है, जब कोई साथ ना हो पल भर के लिए भी तो यादें धुंधली पड़ जाती हैं. मैं भी उसे भूल गयी थी, पर ये बात मेरे दिल के किसी कोने में दफ़न ही रहती थी. पर वो जिंदा है तो मुझ से इतना बड़ा झूठ क्यूँ बोला गया. क्यूँ किया किसीने ऐसा मेरे साथ. और सागर तक को पता ना चला, ये कैसे हो सकता है.

तभी रूबी पुकार उठी , सुनिए दीदी का जिस्म तो अब नॉर्मल हो गया है पर अब भी बेहोश हैं, प्लीज़ देखो ना इन्हें.

सुनील और सुमन होश में आते हैं और सवी की तरफ लपकते हैं.

सुनील जैसे ही सवी को . है उसे एक तेज झटका लगता है और सवी के मुँह से एक डरावनी सी आवाज़ निकलती है ' हाथ मत लगाना मेरी सवी को जान से मार डालूँगा.हुउऊुुुुउउन्न्ञनननणणन् (एक गुर्राहट सी निकलती है सवी के मुँह से)

सूमी : कॉन हो तुम क्यों मेरी बहन को परेशान कर रहे हो.

लेकिन अब सवी शांत सी लेटी रही और कोई जवाब ना निकला उसके मुँह से.
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07-20-2019, 09:59 PM,
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मिनी और सुनेल सुमन के घर पहुँच जाते हैं, जहाँ एक तरफ मिनी अंदर से घबराई पड़ी थी कि सच जानने के बाद सुनेल की क्या प्रतिक्रिया होगी, वहीं सुनेल के दिल की धड़कने बढ़ी हुई थी आज वो अपनी असली माँ से मिलनेवाला था, अपने जुड़वा भाई से मिलने वाला था, अपनी उस दीदी से मिलने वाला था जिसका पता उसे बहुत बाद मे चला था. आँखों में नमी समा चुकी थी, बाँहें अपनो को सीने से लगाने को बेताब हो रही थी.
मिनी डोर बेल बजाती है और सुनेल उसके पीछे छुप जाता है.

दरवाजा सुमन खोलती है और सामने मिनी को देख एक पल तो उसे यकीन नही होता. सुमन का मुँह हैरानी से खुला रह जाता है.

मिनी मुस्काती हुई "क्या हुआ माँ भूल गयी क्या मुझे" और झुकती है सुमन के पैर छूने के लिए और सुमन की नज़र उसके पीछे खड़े सुनेल पे पड़ती है - रत्ती भर भी फराक नही सुनील और सुनेल में बस सुनेल ने फ़्रेच कट रखी हुई थी और लंडन में रहने की वजह से थोड़ा और गोरा हो गया था सुनील के मुक़ाबले.

सुमन को झटका लगता है आँखों पे विश्वास नही होता 'सुनील!!!!!!!' वो ज़ोर से चिल्लाती है और लहराती हुई गिरने लगती है - सुनेल फट से आगे बढ़ उसे संभाल लेता है ' माँ' सुनेल चीख सा पड़ता है और सुमन को गोद में उठा अंदर सोफे पे लिटा देता है. सुमन की चीख सुन सुनील दौड़ा हुआ आता है, रूबी भी पहुँच जाती है और सुनील अपने सामने सुनेल को देख पत्थर का बूट सा बना खड़ा रह जाता है.

सुनेल : अबे बुत क्यूँ बन गया इधर आ माँ को संभाल.

मिनी थर थरा सी गयी, पत्नी सुनील सूमी को कैसे पुकरेगा कहीं अभी ही बॉम्ब ना फट जाए. मन ही मन उपरवाले से दुआ माँगने लगी.

सुनील होश में आया और लपका सूमी की तरफ और उसे अपनी बाँहों में उठा लिया सोफे से. ' सूमी क्या हुआ? होश में आओ'

सुनेल को अपने कानो पे यकीन ना हुआ बोखला गया वो. एक बेटा अपनी माँ को निक नेम से बुला रहा था.

इससे पहले कि सुनेल कुछ बोलता मिनी ने उसे चुप रहने का इशारा किया.

मिनी रूबी से : रूबी इन्हे सवी मासी के पास ले जाओ

रूबी जो सुनेल को देख खोई हुई थी होश में आई ' आइए भाई, देखिए पता नही क्या हो गया उनको'

सुनेल और मिनी रूबी के साथ सवी के कमरे में गये.

सुनेल चल के सवी के पास बैठ गया. अपनी आँखें बंद कर ध्यान लगाने लगा.

तभी एक दम सुनेल को झटका लगा और वो उड़ता हुआ दीवार से जा टकराया.
सवी उठ के बैठ गयी उसकी आँखें लाल सुर्ख थी. उसके मुँह से एक मर्द की आवाज़ निकली ' आ गया तू फिर से, जा चला जा, नही तो अब नही बचेगा, खबर दार कोई मेरी सवी के नज़दीक आया'
आवाज़ ऐसी थी जैसे कोई गुर्रा रहा है हो, रूबी और मिनी तो डर के मारे काँपने लगी.

सुनेल उठा और सवी के सामने खड़ा हो गया ' कॉन हो तुम, क्यूँ तुमने मेरी मासी को क़ब्ज़े में रखा है'

कोई जवाब ना आया.

सुनेल ने दो बार सवाल और दोहराया. पर कोई जवाब नही. तभी सवी का जिस्म हिला तेज़ी से और शांत हो गया. उसने फिर अपनी आँखें खोली. अब तक सुनील सूमी को लेकर आ गया था.

सवी सुनील को देख शरमा गयी. तभी उसकी नज़र सुनेल पे पड़ी और बेसकता उसके मुँह से निकल गया. ' तुम ! तुम कब आए और क्यूँ इतनी जल्दी'

सूमी ने ये सुना तो फट पड़ी.

'मिनी तू जानती थी कि ये जिंदा है, फिर भी इतने सालों तक इसे मुझ से दूर रखा.हरामजादी तेरे लिए मैं सब करने को तयार हो गयी, अपना सुनील भी तेरी झोली में डाल दिया और तू इतनी बड़ी दगाबाज़'

अब सुनेल के कानो में धमाके होने लगे उसे सुनील का सुमन को सूमी बोलने का मतलब समझ आने लगा.

आआआआआआआआआअ सवी फिर चीखी और बेहोश हो गयी.

सवी की परवाह ना करते हुए सूमी सुनेल की तरफ लपकी और उससे लिपट गयी ' मेरा बच्चा जिंदा है, मेरा बच्चा जिंदा है और पागलों की तरहा उसके चेहरे को चूमने लगी उसकी आँखों से गंगा जमना बह रही थी.

सुनेल भी उससे लिपट गया ' माँ! ओह माँ! कितना दूर रहा तुझ से मैं'

सूमी : अब तुझे कहीं नही जाने दूँगी, अब तू मेरे पास रहेगा मेरे साथ रहेगा.

माँ बेटे के इस मिलन को देख सबकी आँखें भर आई, पल भर को सब सवी को भूल गये.

कुछ पल बाद सुनील : माँ से ही मिलेगा क्या! इस भाई से भी तो मिल' सुनील ने अपनी बाँहे फैला दी.

सुनेल सूमी से अलग हुआ और दोनो भाई गले लग गये. यूँ चिपके जैसे कभी अलग ना होंगे.

और मिनी जहाँ इस मिलन को देख खुश थी, वहीं आनेवाले तूफान के बारे में सोच घबरा भी रही थी.

कुछ देर बाद दोनो अलग गुए और सूमी फिर सुनेल से चिपक गयी. 'चल तुझे तेरी दीदी से मिलाऊ'

सुनेल ' सोनल दीदी बड़ी तमन्ना थी उनसे मिलने की मिनी ने बहुत बताया था उनके बारे में'

सुनील : चल.

सब सोनल के कमरे की तरफ बढ़ गये और सवी को तो जैसे भूल ही गये.

सब सोनल के कमरे में घुसे, सुनेल और मिनी अभी पीछे थे जो सोनल को नज़र नही आए.

सोनल उठ चुकी थी और थोड़ा नाराज़ सी थी आज गूडमॉर्निंग किस जो नही मिला था.

सोनल : जान नयी बीवी क्या मिली मुझे भूल गये.

सुनील : अपनी जान को कैसे भूल सकता हूँ

सोनल : देखो ना तुम्हारे बच्चे कितना तंग करने लग गये हैं. ओउच लात मारी दोनो ने

सुनील : शिकायत करोगी तो ऐसा ही करेंगे. देखो तुम से कॉन मिलने आया है.

सुनेल तो ये सब सुन पत्थर बन चुका था

सुनील और सुमन साइड हुए और पीछे खड़े सुनेल और मिनी सोनल की नज़रों के सामने आ गये.

सोनल की नज़रें जब सुनेल पे पड़ी तो उसकी आँखें फटी रह गयी दुनिया का आठवाँ अजूबा जैसे उसके सामने था.

मिनी : ऐसे क्या देख रही हो सोनल, ये सुनील के जुड़वा सुनेल हैं तुम्हारा दूसरा छोटा भाई, वक़्त ने इन्हें तुमसे जुदा कर दिया था.

सोनल : सुनील का जुड़वा, मेरा छोटा भाई........(बहुत धीरे से बोली सोनल)

सूमी : हां जान ये सच है, अपनो ने ही मुझे धोका दिया और मेरे बच्चे को सालों मुझ से दूर रखा पर खून खून से ज़्यादा दिन दूर नही रहता.

सोनल : लेकिन मेरे लिए तो अब ये देवर हुए भाई कैसे बोलूं.

सुनेल जो अब तक पत्थर था चिल्ला उठा : ककककक्क्क्यययययययययाआआआआआअ

सुनील : हां भाई जिंदगी बहुत खेल खेलती है हमारे साथ भी खेल गयी...

सुनेल : चिल्ला उठा चुप कर हरामजादे ....अपनी बड़ी बहन के साथ शादी कर डाली .....

सोनल : चिल्ला पड़ी ...सुनेल खबरदार अगर इनकी बेज़्जती करी. तुम्हें क्या मालूम क्या क्या हुआ तुम तो सामने नही थे ना.

सुनेल ...ओह! तो तुम भी इस रंग में रंग चुकी हो ....ये सुअर इतना भी नही जानता था कि माँ और बहन की पूजा की जाती है उनसे शादी नही की जाती.

सुनील चुप रहा ..कैसा समझाता जो हुआ क्यूँ हुआ कैसे हुआ. जो दर्द उसने सहा उसे वो फिर से नही जीना चाहता था.

सूमी : चुप सुनेल, मैं सुनील के खिलाफ कुछ नही सुनूँगी...अभी तुम बोखला रहे हो थोड़ा आराम करो सब समझा दूँगी.

सुनेल एक पल को दीवार से सट गया उसकी आँखों में आँसू थे....सब कुछ छीन लिया इसने मुझ से..काश मैं इसकी जान नही बचाता.... और लपक के उसने सुनील की गर्दन जकड ली... आज ही मार दूँगा तुझे तू इंसान नही....

न्न्लआआणन्नाआअहहिईीईईईईईईईई मिनी चिल्लाई ....

सुनेल जो उसके साथ बैठा था ...अरे क्या हुआ कोई सपना देख रही थी क्या.

मिनी का पूरा जिस्म पसीने से तरबतर था...उसकी साँस तेज चल रही थी. कहीं भाई भाई के बीच खून ख़राबा ना हो जाए.

दोनो इस वक़्त फ्लाइट में थे और आसपास बैठे पॅसेंजर भी हैरानी से मिनी को देख रहे थे.

सुनेल ..क्या हुआ जान...सपने सपने होते हैं..क्यूँ परेशान हो रही हो.
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07-20-2019, 09:59 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
अब मिनी में हिम्मत नही थी वो सुनेल को इस सपने के बारे में बताती, आँखें बंद कर सुनेल के कंधे पे सर टिका लिया.

और इधर सूमी और सुनील सवी के कमरे में बिस्तर से थोड़ी दूर साइड काउच पे बैठे हुए थे. सूमी का सर सुनील के कंधों पे था. रूबी वहीं बिस्तर के दूसरी तरफ एक कुर्सी पे बैठी सोच रही थी कि ये सब क्या हो रहा है.

सूमी : सुनील वो हमारे सच को स्वीकार तो कर लेगा ना.

सुनील : अगर अकल्मंद हुआ तो कर लेगा, थोड़ा झटका तो लगेगा ही, क्यूंकी हमारा रिश्ता समझ कभी स्वीकार नही करेगा. क्या पता वो किस महॉल में पला बढ़ा है. आने दो फिर देखते हैं. मैं हूँ ना. क्यूँ परवाह कर रही हो सब ठीक हो जाएगा.
और सुनील ने सूमी के होंठों पे अपने होंठ जड़ दिए.

जब दो प्यार करनेवाले एक ही वजह से परेशान होते हैं तो शायद कुदरत उन्हें और करीब ले आती है...यही इस वक्त सुनील और सूमी के साथ हो रहा था. दोनो इस वक़्त सवी को भी भूल गये और भूल गये कि सामने बैठी रूबी भी सब देख रही है. दोनो इस वक़्त एक दूसरे में खोते चले जा रहे थे दिल दिल को समझा रहा था जैसे कह रहा हो ...आने दो इस तूफान को भी झेल लेंगे.....कोई और होता तो इस वक़्त परेशानी के आलम में कमरे में इधर उधर चक्कर काट रहा होता, लेकिन इन्दोनो का प्यार इतना मजबूत था जो अब हर बाधा हर तूफान से लड़ने की शक्ति पा चुका था.

और शायद यही वक़्त का तक़ाज़ा भी था.

दीन दुनिया से बेख़बर दोनो एक दूसरे में खोते चले जा रहे थे उसी वक़्त कमरे में एक नशीला सा धुआँ फैलने लगा और रूबी की आँखें बंद होती चली गयी. सवी की आँखें खुल गयी और वो अपनी नज़रों के सामने सुनील और सूमी को एक दूसरे से लिपटे देख रही थी...उसकी आँखों से आँसू टपकने लगे...सुहाग रात उसकी लेकिन हो क्या रहा था.

वो नशीला धुआँ सिमटने लगा और एक गोलाकार बन कर सवी के सामने आ गया , एक रोशनी सी कमरे में फैली जिसका आभास सुनील और सूमी को ना हुआ. और एक आकृति जिस्म का रूप इकतियार कर सवी के सामने बैठ गयी. सवी की नज़रें उसपे पड़ी तो आँखें फटी की फटी रह गयी....तुउुुुउउम्म्म्मममममम! उसके मुँह से बस इतना निकला.

उस आकृति के चेहरे पे असीम दर्द था, एक तड़प थी, उसकी नज़रों में एक अन्भुजि प्यास थी.

वो आकृति बोली - सवी अब तो मेरा प्यार कबुल कर लो - देखो उन दोनो को (वो सूमी और सुनील की तरफ इशारा करता है ) ये है असली प्यार. क्यूँ इनके प्यार के बीच आ रही हो. क्यूँ खुद को दॉखा दे रही हो? सागर गया! समर गया! विजय तुम्हें पहले ही छोड़ गया था. और मैं जिसने तुम्हारे गम में दुनिया छोड़ दी...क्या अब भी मुझे तड़पना पड़ेगा.

उसकी आवाज़ सिर्फ़ सवी के कानो तक पहुँच रही थी.

सवी : तुमने जो किया उसके ज़िम्मेदार तुम खुद हो. मैने कभी नही कहा कि मैं कभी भी तुम से प्यार करूँगी. चले जाओ मेरी जिंदगी से, मैं सुनील से बहुत प्यार करती हूँ. मेरी रूह तक उसकी हो चुकी है. कोई हमारे बीच नही आ सकता. मिट जाओगे तुम . क्यूँ खुद को तकलीफ़ दे रहे हो. चले जाओ, वरना तुम्हारा वजूद ख़तम हो जाएगा.

'मेरा वजूद ख़तम हो जाएगा.....हाहहाहा..'.वो बड़ी भयानक हँसी हंसा

उसकी हँसी से सवी बूरी तरहा हिल गयी पर कोशिश करते हुए हिम्मत रखी ' मैं सुनील की हूँ वो मेरे रूम रोम में बस चुका है किसी और की नही हो सकती, मैने तुम्हें कभी प्यार नही किया, जाओ और अपनी मुक्ति का रास्ता खोजो'

'एक साल से मैं तुम्हारे जिस्म में रह रहा हूँ पर मैने तुम्हें कभी कोई तकलीफ़ नही होने दी मैं अपना प्यार पा के रहूँगा अब कुछ भी करना पड़े मैं किसी और को अब तुम्हें छूने नही दूँगा.'

'ह्म्म ख्वाब देखते रहो,मेरा जिस्म मेरी रूह सुनील की है और उसकी रहेंगी तुम कुछ नही कर पाओगे.'

'मेरे सब्र का इम्तिहान मत लो वरना जो तबाही होगी उसकी ज़िम्मेदार तुम होगी'

'बस यही प्यार है तुम्हारा, प्यार दूसरे को सुख देता है दुख नही और तुम मुझे मेरे प्यार से दूर रखना चाहते हो'

' ये सब मैं नही जानता मैं अपना प्यार पा के रहूँगा तुम्हारी रूह अब मेरे क़ब्ज़े में रहेगी और अमावस्या की रात को मैं तुम्हें अपने साथ ले जाउन्गा'

'ह्म्म तब तक तो तुम्हारा विनाश हो जाएगा, मेरा प्यार मुझे कुछ नही होने देगा, तुम अभी सुनील को जानते नही.'

'सुनील....हाहहहाहा, उसे तो जब चाहूं मसल के रख दूं'

इन बातों के चक्कर में वो आकृति ये भूल गयी कि सुबह की पहली किरण कमरे में प्रवेश करने वाली थी जो उसके लिए घातक थी उसकी शक्ति कम होजाति और वो सवी के जिस्म में फिर ना समा पाता.

सूमी ने सवी के पास शिव त्रिशूल का लॉकेट रखा हुआ था जो इस वक़्त सवी के हाथ में आ गया था. सूरज की पहली किरण जैसे ही उस आकृति पे पड़ी वो चीखा और सवी में सामने की कोशिश करने लगा पर सवी के हाथ में पड़े त्रिशूल ने ये ना होने दिया तो वो रूबी के जिस्म में समा गया. उसे इंतेज़ार था रात होने का जब वो रूबी के जिस्म से निकल सवी के जिस्म में दुबारा प्रवेश कर पाता.

वो धुआँ एक दम गायब हो गया और रूबी की नींद और भी गहरी हो गयी. सवी की नज़र अब सुनील और सूमी पे पड़ी जो एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे में खोए पड़े थे.

सवी बिस्तर से उठ उन दोनो के पास गयी और सुनील की गोद में अपना सर रख दिया.

उसी पल रूबी की कुर्सी सरक्ति हुई कमरे के उस कोने में पहुँच गयी जहाँ सूरज की किर्ने नही पड़ रही थी और रूबी की आँखें खुल गयी गहरी लाल सुर्ख और सवी को यूँ लगने लगा जैसे उसे कोई खींच रहा हो और सुनील से दूर कर रहा हो. सवी ने कस के सुनील को पकड़ लिया और उसकी इस हरकत से सुनील और सूमी होश में आए .

सवी : सुनील मुझे बचाओ.....मुझे बचाओ

सवी सुनील से चिपकी बार बार यही दोहरा रही थी और उसके बाल ऐसे पीछे हो गये थे मानो उसे कोई बालों से पकड़ के खींच रहा हो.

तबी सूमी ने कमरे के सारे पर्दे हटा दिए और कमरे में सूरज की किर्ने चारों तरफ फैल गयी. रूबी के मुँह से चीख निकली और उसकी गर्दन लूड़क गयी.

सूमी ने झट से सुनील और सवी को कमरे से बाहर निकलने को कहा और फट से घर में बने अपने मंदिर गयी हाथ जोड़ वहाँ से हुनूमान और शिव की प्रतिमा उठा के उसने उस कमरे में रख दी और रूबी को बिस्तर पे लिटा कमरे से बाहर निकल आई और कमरे को बाहर से बंद कर दिया.

कमरे से बाहर निकलते ही सवी के अंदर जो बोखलाहट थी वो ख़तम हो गयी थी और अब वो नॉर्मल थी.

ये रात किस तरहा गुज़री तीनो अपने अंदर सोच रहे थे. सूमी उठ के किचन चली गयी उसका दिमाग़ ये सोचने में व्यस्त था कि इस बला से कैसे छुटकारा पाया जाए.

किचन में चाइ बनाती सूमी रात में हुई घटनाओं के बारे में सोच रही थी कि अचानक उसके दिमाग़ में सुनील का जुड़वा आ गया जो घर आ रहा था और वो सर से पाँव तक हिल गयी. जब उसे घर की कड़वी सच्चाइयों का पता चलेगा तब क्या होगा.

अब दो बवाल उसके सामने थे एक उसका बरसों से बिछड़ा बेटा क्या सोचता है और दूसरा वो आत्मा जो इस वक़्त रूबी के जिस्म में समा चुकी थी.

सूमी को अभी तक नही मालूम था कि उसके जुड़वा बेटे का नाम सुनेल है, चाइ बनाते बनाते उसका दिल बार बार धड़क रहा था कैसा दिखता होगा वो, क्या बिल्कुल सुनील की कॉपी होगा, या कुछ अंतर होगा. अगर बिल्कुल एक जैसा हुआ तो क्या वो दोनो में फरक रख सकेगी , ना जाने क्या क्या सूमी सोचती जा रही थी. चाइ उफनने लगी तब जा कर उसका ध्यान टूटा. सर झटका और चाइ ले कर पहले सोनल के पास गयी, उसे चाइ दी और फिर हॉल में चली गयी जहाँ सुनील और सवी दोनो सोचों में गुम थे.

सवी का चेहरा उतरा हुआ था, खुशियाँ उसके दामन तक आई पर वो उन्हें हासिल ना कर सकी, अभी तक वो दुल्हन के लिबास में थी. चाइ ख़तम करने के बाद.

सवी : दीदी अपने कुछ कपड़े दो में फ्रेश हो जाउ, मेरे तो कमरे में बंद हैं जहाँ इस वक़्त रूबी है.

सूमी : चल, .......उसे अपने साथ अपने कमरे में ले गयी, जहाँ इस वक़्त सोनल भी सोती थी.

सोनल फ्रेश हो चुकी थी. पेट उभर के सामने आ चुका था 7 वाँ महीना ख़तम होने को आया था. इस वक़्त वो ढीले कपड़े ही पहनती थी.

सूमी ने अपने कुछ कपड़े दिए सवी को और वो बाथरूम में घुस गयी.

सोनल ने सवालिया नज़रों से सूमी को देखा तो सूमी ने उसे बाद में बात करने का इशारा किया और हॉल में सुनील के पास चली गयी.
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07-20-2019, 10:00 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सूमी ने सुनील से सुनेल के बारे में कोई बात ना करी. लेकिन सवी और रूबी के साथ जो हो रहा था वो बड़ी चिंता की बात थी, उसे याद आ गया कि बहुत साल पहले उसका एक साथी डॉक्टर इस विषय पे काफ़ी रूचि रखता था और वो मरीजों को पिछले जन्मों तक ले जाया करता था उनका इलाज करने के लिए.

सूमी उसका नाम याद करने की कोशिश करने लगी. बहुत सोचने के बाद उसे नाम याद आ गया सिद्धेश्वर. कहाँ होगा इस वक़्त. सूमी अपना मोबाइल ले उसका नंबर खोजने लगी और मिल भी गया. एक पल की देरी ना करते हुए उसने फोन मिला डाला.

सिड : हेलो.

सूमी : हाई सिड, सुमन कैसे हो.

सिड : श्श्श्शुउउउउउम्म्म्म्म्माआअन्न्न्न्न वाउ लोंग टाइम. कैसी हो, माफ़ करना मैं आ नही पाया जब सागर........

सागर का नाम सुनते ही सूमी के दिल में एक हुक सी उठी. पर खुद को संभाल लिया.

सिड : सॉरी यार!!!!!

सूमी : जो होना होता है वो तो होता ही है, इसमे किसका क्या बस.

सिड : अरे तुमने सही टाइम पे फोन किया, तुम्हारे घर पहुँच रहा हूँ आज शाम, तुम्हारे बेटे का मेसेज आया था. पर तुमने उसका नाम सुनील से सुनेल कब कर दिया.

सूमी को समझते देर ना लगी कि उसके जुड़वा बेटे का नाम सुनेल है और सिड सुनेल से मिला था.

सूमी : तुम कब मिले उससे, अरे जब वो मुंबई आया था एक्सचेंज प्रोग्राम में. उसने मुझे सारी परेशानी बता दी है. चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा.

सिड : अच्छा सुनो जैसा कह रहा हूँ वैसा करो ......

कुछ देर तक सिड सूमी को कुछ बताता रहा और सूमी ध्यान से सुनती रही. जब कॉल कट हुई तो सूमी ने सब कुछ सुनील को बताया. कुछ समान लाना था सुनील उसे लेने निकल पड़ा.

सूमी सिड की बातों के बारे में सोचने लगी. सुनेल एक दम सुनील जैसा दिखता है. सूमी सुनील की यादों में सुनेल को देखने लगी और उसके मातृत्व को कुछ सकुन सा मिला पर दिल में बहुत दर्द उठा उसका बचपन, उसकी अल्हाड़ता, उसके नखरे सब कुछ तो खो दिया था सूमी ने. सूमी मन ही मन उस इंसान को कोसने लगी जिसने सुनेल को उससे दूर किया.

सुनील से शादी के बाद सूमी के अंदर की माँ कहीं किसी कोने में दबी रह गयी थी आज उसमें जान आ गयी, वो सर उठाने लगी, उसका मातृत्व उसे वापस मिलने वाला था, उसका बेटा सुनेल उसके पास आ रहा था. दिल तड़पने लगा, बांहें आतुर हो गयी उसे अपने सीने से लगाने को, ये दर्द वो औरत ही समझ सकती है जिससे उसके बच्चे को जुदा कर दिया गया हो, जिसे ये बताया गया हो कि वो मर चुका है और सालों बाद उसे पता चले कि वो जिंदा है.

माँ की ममता खुद को रोक ना पाई और सूमी फुट फुट के रोने लगी. यही वो वक़्त था जब सवी नहा धो के कपड़े बदल हॉल में दाखिल हुई.

सवी को नही मालूम था कि एक बड़ा तूफान आ चुका है और वो उस में फसने वाली है. सालों पहले सागर को सब बता उसने अपने दिल का बोझ तो हल्का कर लिया था पर एक बहन को जो धोखा दिया अब वो सामने आने वाला था. वो बहन जिसने अपने पति को उसके साथ बाँट लिया था, जो दिल से उसे माफ़ कर चुकी थी, वो एक औरत थी, पर एक माँ जब घायल हो जाती है उसकी ममता पे जब चोट पड़ती है वो कभी माफ़ नही करती.

ये तूफान जाने क्या क्या करवाने वाला था.

सवी यही सोच रही थी कि सूमी रात जो हुआ उसकी वजह से टूट गयी है.

इस से पहले सवी कुछ बोलती कुदरत ने रंग दिखाना शुरू किया.

आसमान पे काले काले बदल छाने लगे, सूरज बादलों के पीछे छुप गया. दिन रात में बदल गया. और तभी रूबी की ज़ोर दार चीख सुनाई दी...मम्मीयीईयीयैआइयैयाइयैआइ

रूबी की चीख ने सूमी के आँसुओं को रोक लिया और वो उछल के खड़ी हो गयी. सुनील अभी तक समान लेकर नही आया था.

रूबी की चीख सुन सवी और सूमी उस कमरे की तरफ दौड़ी और यही ग़लती हो गयी दोनो से.

जैसे ही सूमी ने दरवाजा खोला रूबी जो छत से लटकी हुई थी नीचे गिरी और और उसके अंदर से एक सफेद धुआँ निकल सवी के अंदर समा गया और सवी खींचती हुई बेड पे जा गिरी और उसका जिस्म उपर नीचे उछलने लगा.

सूमी ये सब देख घबरा गयी और रूबी को किसी तरहा उठा कमरे से बाहर निकली और कमरा बंद कर दिया.

कमरे के बंद होते ही सवी का उछलना गिरना बंद हो गया.

रूबी की चीख सोनल के कानो में भी पड़ी और वो घबरा गयी. बिस्तर से हिलना उसे मना किया गया था सिर्फ़ बाथरूम ही जा सकती थी. सोनल की तबीयत बिगड़ने लगी शायद शॉक की वजह से जो रूबी की चीख से उसे मिला था या फिर कुदरत अपना कोई दूसरा करिश्मा खेल रही थी. सुनेल और मिनी की फ्लाइट लॅंड कर चुकी थी और वो टॅक्सी में सूमी के घर की तरफ आ रहे थे. जैसे जैसे उनकी टॅक्सी नज़दीक आती जा रही थी, सोनल के पेट में दर्द बढ़ना शुरू हो गया था. सुनेल कोई 100 कदम के फ़ासले पे जब रह गया तो सोनल का दर्द तीव्र और असहनीय हो चुका था सॉफ निशानी थी लेबर पेन की . अब सुनील समान घर ले के पहुँच चुका था और गाड़ी निकल रहा था सोनल को हॉस्पिटल ले जाने के लिए जो बस 5 मिनट की दूरी पे था.

सुनेल की टॅक्सी ट्रॅफिक में फस गयी और जब तक ट्रफ़िक खाली हुआ सुनील सोनल को हॉस्पिटल ले जा चुका था और सोनल को ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया.

यहाँ जैसे ही सुनेल के कदम घर की लॉबी पे पड़े वहाँ सोनल ने दो प्यारे बच्चों को जनम दिया. एक लड़का और एक लड़की - लड़का सोनल और सुनील का था क्यूंकी उसमे सोनल की छवि ज़्यादा थी और लड़की सुनील और सुमन की थी क्यूंकी उसमे सुनील की छवि के साथ सुमन की भी छवि थी. दोनो बच्चों को इंक्यूबेट्र में रखना पड़ा क्यूंकी समय से पहले पैदा हो गये थे. सोनल की हालत ठीक थी. बच्चों के जनम से सुनील बहुत खुश हुआ था बस दुआ माँग रहा था कि सही सलामत रहें.
यहाँ सुनील ने सूमी को फोन कर खुशख़बरी दी उसी वक़्त मिनी ने घर की बेल बजा दी.

सूमी ने दरवाजा खोला और सामने मिनी थी, सूमी की नज़रें शायद सुनेल को ढूंड रही थी, क्यूंकी उसे नही पता था कि मिनी सुनेल की पत्नी है. मिनी को यूँ अचानक देख सूमी हैरान हुई और हॉल में बैठी रूबी सकते में आ गयी. अभी वो उसके और सवी के साथ हुए घटनाकरम को नही समझ पाई थी, मिनी का यहाँ आना उसे एक भुंचाल का संकेत देने लगा.




सूमी को शायद इस वक़्त मिनी का आना पसंद नही आया था वो इस वक़्त भाग के अपने बच्चे को अपनी गोद में लेना चाहती थी, पर जैसे ही मिनी उसके पैर छूने को झुकी तो पीछे खड़ा सुनेल उसे नज़र आ गया.

एक बेटा जो बरसों से बिछड़ा हुआ था वो सामने था और एक बेटी जिसने अभी जनम लिया था वो इंतेज़ार कर रही थी माँ की गोद में समाने को, सूमी के उरोजो से दूध रिसने लगा था और पल भर तो वो पत्थर बनी खड़ी सुनेल को देखती रही ये भी भूल गयी कि मिनी झुकी उसके आशीर्वाद का इंतेज़ार कर रही थी.

भावनाओं के समुंदर में फसि सूमी अपने अश्रु रोक ना पाई लड़खड़ाने को हुई तो उसके हाथ अपने आप मिनी के सर पे चले गये जैसे आशीर्वाद ही दे रहे हों.

'माँ!' एक दर्द था सुनेल की पुकार में जिसे सिर्फ़ वही माँ पहचान सकती थी जिसने उस आवाज़ को जनम दिया हो.

सूमी के कान तरसने लगे फिर से उस आवाज़ को सुनने को

'माँ!'

सुनेल मेरा बच्चा - सूमी जैसे चीख ही पड़ी और सुनेल को बाँहों में ले उसके चेहरे को बोसो से दागने लगी - 'माँ! - ओह माँ'

दोनो माँ बेटे एक दूसरे की बाँहों में समाए अपने आँसुओं से उन सालों की दूरी को मिटा रहे थे.

सुनील फिर फोन करता है तो मोबाइल की बेल दोनो माँ बेटे को होश में लाती है.

सूमी अपना मोबाइल उठा कॉल रिसीव करती है.

'हां जी बस आ रही हूँ....ओह कितना दिल तरस रहा है अपनी बेटी को सीने से लगाने को, कैसे हैं मेरे दोनो बच्चे, उनको कहना मम्मी आ रही है बस थोड़ी देर में'

नयी नयी बनी माँ ये भूल गयी थी कि सामने खड़े सुनेल पे वज्रपात हो गया था.

उसकी माँ फिर से कैसे माँ बन सकती है ....क्या हो रहा है यहाँ.......ओह गॉड कहीं जो ख़यालात उस दिन मन में आए थे कहीं वो सच तो नही.....ना ही...नही...नही...ये ये नही हो सकता.

सूमी - सुनेल चल तुझे तेरे भाई बहन से मिलाती हूँ'

सुनेल तो कहीं खो चुका था.

सुनेल दीवार से सट गया था. मिनी की नज़रें उसपे ही गढ़ी हुई थी, सुनेल को जैसे सूमी की आवाज़ सुनाई ही ना दे रही थी - यूँ लग रहा था जैसे बरसों बाद माँ मिली और पल भर में छिन भी गयी. बड़ी मुश्किल से उसने अपने आँसू रोके और खुद को समझने लगा कि जो सोच रहा है ग़लत सोच रहा है.

माँ नानी या दादी भी होगी और वो भी तो मम्मी ही होती है.

मिनी ने उसे हिलाया.

सूमी : अरे मैं भी कितनी बेवकूफ़ हूँ. तुम लोग थक गये होगे. मिनी तू इसे सुनील के कमरे में ले जा मैं कुछ देर मे आती हूँ. तब तक तुम लोग आराम कर लो.

सुनेल जो सच तक जल्दी पहुँचना चाहता था, बोला 'माँ मैं भी साथ चलूँगा'

मिनी ने इशारे से उसे रुकने को कहा पर सुनेल गुस्से से उसे देखने लगा तो मिनी बस सर झुका के रह गयी.

सूमी : अच्छा चलो, सुनील और सोनल तुम लोगो से मिल बहुत खुश होंगे, मिनी को तो जानते ही हैं पर असली खुशी तो सुनेल से मिल के होगी.

तीनो हॉस्पिटल की तरफ निकल गये घर में रूबी रह गयी, रास्ते में भी सूमी को इस बात का ख़याल ना आया कि सुनेल के सामने उनकी कड़वी सच्चाई यकायक खुल जाएगी, वो तो बस अपने बच्चों को अपने गोद में लेने को आतुर थी, उन्हें अपना दूध पिलाने को तड़प रही थी.

सुनेल रास्ते भर दुआएँ माँगता रहा जो महसूस वो कर रहा है वो सच ना निकले.

जैसे ही ये लोग हॉस्पिटल पहुँचे सूमी के कदम तेज हो गये जैसे उसे मालूम था कहाँ जाना है - सुनेल और मिनी उसके पीछे थोड़ी दूरी बना चल रहे थे. सूमी ने एक दरवाजे पे नॉक किया सुनील ने खोला और उसे अपनी बाँहों में समेट लिया जैसे कोई अपनी बीवी को समेटता है - बस पीछे आते सुनेल के कदम वहीं जाम हो गये, आँखों के आगे अंधेरा छा गया - ये नज़ारा उसके दिल के टुकड़े टुकड़े कर गया .

मिनी ने उसे हिलाया सुनेल की ये हालत देख वो भी दुखी हो रही थी.

मिनी : सुनो जिस काम के लिए आए हो उसपे ध्यान दो, बाकी सब पे नही.

सुनेल ने भीगी आँखों से उसे देखा - बरसों बाद माँ मिली पर लगता है खो चुका हूँ मैं अपनी माँ को .

मिनी : देखो, इंसान की बहुत मजबूरियाँ होती हैं. तुम्हें क्या पता पीछे क्या हुआ, क्यूँ हुआ, कैसे हुआ, कोई ग़लत धारणा मन में मत पालो. माँ माँ ही होती है.

तभी सुनील की नज़र सुनेल पे पड़ती है वो सूमी को छोड़ देता है...सूमी भी जैसे यथार्थ में वापस आती है.

सूमी : देखो कॉन आया है और सुनेल और मिनी की तरफ इशारा करती है.

सुनील के कदम सुनेल की तरफ खुद ब खुद बाद जाते हैं और सुनेल भी खुद को रोक नही पाता. एक भाई की कशिश एक भाई को पुकार रही थी.

दोनो भाई एक दूसरे के गले लग गये और दोनो एक दूसरे को अपने आँसुओं से भिगोने लगे. आह दिल दिल को पहचानने लग गया और सुनील को सुनेल के दर्द का अहसास हो गया.

सुनील चुप ना रह पाया और बोल ही पड़ा 'तेरा दर्द समझता हूँ मैं भी इसी दर्द से गुजरा था पर होनी ने हो कर रहना था, डॅड के हुकुम को नही टाल सका.'

सुनेल उससे अलग हो गया और गुस्से से उसे देखने लगा.

सुनील : भाई आराम से घर पे बात करेंगे चल सोनल से मिल.
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07-20-2019, 10:00 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सोनल से मिलने की ललक सुनेल को फट पड़ने से रोक लेती है. और वो सुनील के साथ कमरे में चला जाता है.

सोनल के सामने जब दोनो आते हैं तो वो तो पलकें झपकना भूल जाती है और फटी आँखों से दोनो को देखने लगती है.

अगर सुनेल की फ़्रेच कट हटा दो तो दोनो में कॉन सुनील और कॉन सुनेल कोई नही पहचान पाएगा.

सूमी : देख सोनल तेरा बिछड़ा भाई आ गया. किस्मत ने खून से खून को मिला ही दिया.

तभी नर्स अंदर आती है. सोनल को लेने बच्चों को दूध पिलाने का वक़्त हो गया था. सूमी साथ जाती है.

और सुनेल दोनो को जाते देखता रहता है.

सुनेल से रहा नही जाता और पूछ ही लेता है ---- ये ये क्या....

सुनील : वक़्त की मार कह या हालत, कुछ भी कह सोनल मुझ से प्यार करने लगी थी. मैं दूर भागता था पर वो नही मानती थी....एक दिन सूमी के कहने पे मुझे सोनल से शादी करनी पड़ी. रिश्ते स्वाहा हो गये और नये रिश्ते जनम ले बैठे.

सुनेल : वाह क्या सीन है पहले माँ से शादी फिर बहन से शादी इतने पे भी बस नही किया और अब मासी से भी शादी. बड़े अच्छे गुल खिलाए तूने. लानत है तुझे तो इंसान बोलने में भी शरम आती है, पता नही किस मनहूस घड़ी में तू मेरा भाई बना.दिल तो करता है गाढ दूं तुझे ज़मीन में.

मिनी घबरा गयी उसका सपना उसकी आँखों के सामने आ गया.

मिनी : चुप करिए आप, जब कुछ पता ना हो तो मर्यादा के रक्षक मत बानिए. मैं जानती हूँ सुनील भाई कैसे हैं. जब मैं इन्हे आप समझती थी, इन्होने मेरा कोई फ़ायदा नही उठाया मुझ से दूर ही रहते थे.

सुनेल : गुस्से से मिनी को...यानी तुम सब जानती थी बहुत पहले से और मुझे भनक भी नही लगने दी.

मिनी : इसमें मेरा दोष नही आपने ही मना किया था आप कुछ नही जानना चाहते थे क्या हुआ मेरा साथ क्यूँ हुआ.ये सब भी तो उसका हिस्सा ही था क्यूंकी मेरा रिश्ता इनसे तब बना जब रमेश से मेरी शादी हुई थी.

मिनी भी कुछ ज़ोर से ही बोल बैठी.

सुनील : चुप करो दोनो यहाँ तमाशा करने की ज़रूरत नही घर चलके बात करेंगे.

सुनील गुस्से में पैर पटक कमरे से बाहर निकल गया.

सुनील के बाहर जाते ही

मिनी : देखो इतना भड़कने की ज़रूरत नही भाई ने कहा ना घर पे बात करेंगे, उनकी पूरी बात सुनना फिर किसी नतीजे पे पहुँचना. और आप तो उनकी जान बचाने आए थे ना. तो पहले वो काम करो जो सबसे ज़रूरी है.

मिनी की बात सुन सुनेल को अपना वो फ़ैसला याद आता है जिसके लिए वो यहाँ आया था, बात सिर्फ़ सुनील की होती तो शायद वो यहीं से वापस चला जाता पर माँ का मोह और सवी मासी जिसने उसके लिए बहुत कुछ किया था इन दो बातों ने उसे रोक दिया.

सुनेल : चलो घर चलें सवी मासी पता नही किस हालत में होगी.

दोनो किसी को बिना कुछ कहे घर की तरफ निकल पड़े. गलियारे में एक तरफ खड़े सुनील ने उन्हें जाते हुए देख लिया पर रोका नही. इस वक़्त वो भी गुस्से में था और यहाँ बात नही बढ़ाना चाहता था.

कुछ देर बाद सूमी और सोनल दोनो आ जाती हैं, सुनील पे नज़र पड़ते ही सूमी को समझते देर ना लगी कि दोनो भाइयों में कहा सुनी हो गयी है. सोनल भी उसके दिल का हाल समझ जाती है.

सोनल में अभी कमज़ोरी थी इसलिए उसे व्हील चेयर पे लाया ले जाया जा रहा था, उसे अभी भरपूर आराम और खुराक की ज़रूरत थी, सोनल ने सूमी की तरफ देखा और सूमी ने सुनील को आवाज़ लगा दी.

सूमी की आवाज़ सुन सुनील ख़यालों की दुनिया से वापस आया और चेहरे पे मुस्कान लाते हुए दोनो की तरफ बढ़ गया जो कमरे में चली गयी थी, सोनल को बिस्तर पे लिटा दिया गया था.

कमरे में घुसते ही सुनील ने दरवाजा अंदर से बंद कर दिया और सोनल के पास जा के बैठ गया, उसके चेहरे को हाथों में ले उसके लबों पे चुंबन करते हुए बोला 'लव यू डार्लिंग तुमने मुझे जीवन की सबसे बड़ी खुशी दे दी.'

सूमी : और मुझे भी आज मेरी बेटी और बेटा फिर से मेरे पास आ गये, माँ बनने का ये सुख, अब तुम समझ गयी होगी.

सोनल : हाँ दीदी, आज पता चला, माँ क्या होती है, ओह आइ आम सो हॅपी.

तीनो एक दूसरे से लिपट गये जैसे कभी जुदा ना होंगे और तीनो के जिस्म एक दूसरे में घुल जाएँगे. पति और पत्नियों का ये मिलन भी अनोखा था क्यूंकी अब उनके बीच कभी ना टूटने वाला पुल बन गया था एक नया रिश्ता जनम ले चुका था, एक नया अहसास जनम ले चुका था मातृत्व और पितृित्व का. एक प्यार भरी ज़िम्मेदारी नये जीवन को राह दिखाने की.

कुछ देर बाद सुनील दोनो से अलग हुआ अब वो कुछ सीरीयस सा हो गया था.

सुनील : सोनल तुम्हारे लिए सुनेल भाई ही रहेगा, कभी उसे देवर मत बुलाना.

सोनल ने चोंक के उसकी तरफ देखा.

सुनील : और सूमी तुम्हारे लिए वो बेटा ही रहेगा और मेरे लिए भाई. हमारे बदले रिश्तों की परछाई भी उसपर नही पड़नी चाहिए, वरना वो बिखर जाएगा. मैं महसूस कर चुका हूँ उस दर्द को जिसे वो अब झेल रहा है, बिल्कुल वही जो कभी मैने झेला था. वो अपनी माँ, भाई और बहन के पास आया है, उसे वही अहसास दो, ये बदले रिश्तों का थप्पड़ उसके मुँह पे मत मारो.

सूमी : सुनील को देखती रही, गर्व हो गया उसे और भी सुनील पर, मन ही मन सागर को धन्यवाद देने लगी, जिसने उसके लिए एक नायाब हीरे को जीवन साथी के रूप में चुना था.

सोनल : ये क्या कह रहे हो आप, कैसे मुमकिन है ये, जो कड़वी सच्चाई है उसका असर तो रिश्तों पे पड़ेगा ही ......मान लिया मैं उसके लिए बहन और दीदी माँ का रूप रखें गे पर आप कैसे भाई रह पाओगे क्या वो कोई दूध पीता बच्चा है जो सच को सहन नही कर पाएगा.

सुनील : मेरा वजूद चाहे उसके लिए ख़तम हो जाए, पर मैं उससे उसकी माँ और बहन को नही छीनना चाहता.

सोनल : सब कितना कॉंप्लिकेटेड हो गया ना अचानक. कल तक सब सही चल रहा था, आज एक नया रिश्ता उभर आया और एक सैलाब साथ ले आया.

सुनील : शायद यही जिंदगी का असली रूप है, खैर तुम आराम करो सूमी तुम्हारे पास रहेगी, मैं घर चलता हूँ...रूबी और सवी अकेली पड़ रही होंगी.

सोनल और सूमी दोनो के होंठों को चूम सुनील घर की तरफ बढ़ गया.

सुनेल और मिनी जब घर पहुँचे तो देख रूबी हॉल में एक कोने में सहमी और दुब्कि बैठी थी, घर का मेन दरवाजा खुला था.

मिनी दौड़ के रूबी के पास गयी जो थर थर कांप रही थी.

मिनी : क्या हुआ रूबी तुम ऐसे क्यूँ.....

रूबी मिनी से लिपट गयी और बिलख पड़ी ' भाभी वो वो आवाज़ें कमरे से.....'

रूबी की ये हालत देख सुनेल अपने मन में बसे दर्द को भूल गया. उसके चेहरे पे कठोरता आती चली गयी, जैसे उसने कुछ निर्णय ले लिया हो. वो सोफे पे एक जगह बैठ गया और आँखें बंद कर ली. इस वक़्त वो प्रोफ़ेसर. सीद्देश्वर से रब्ता करने की कोशिश कर रहा था और रब्ता हो भी गया. उसे मानसिक तरंगों के द्वारा प्रोफ़ेसर. ने कुछ समझाया कि सूमी से भी उनकी बात हुई थी और वो शाम तक पहुँच जाएँगे. कुछ समान जो उन्होंने मँगवाया था उसे कैसे इस्तेमाल करना है वो समझाया.

सुनेल ने जब आँखें खोली उसकी आँखें भट्टी की तरहा दहक रही थी.

सुनेल : रूबी घबराओ मत मैं आ गया हूँ ना. अच्छा ये बताओ सुनील जो समान लाया था वो कहाँ है.

रूबी ने सुनील के कमरे की तरफ इशारा किया जो इस वक़्त तीनो का कमरा था (सुनील/सोनल/सूमी) . सुनेल उस कमरे में घुसा तो उसके कदम जम गये. सामने हँसती हुई तस्वीरें थी सुनील और उसकी दोनो बीवियों की .......एक में सुनील ने सूमी को गले लगाया हुआ था और एक में सुनील सोनल के गाल पे किस कर रहा था.

दिल यूँ धड़का जैसे अभी जिस्म से बाहर निकल पड़ेगा. अपने आप को संभाला और सुनील का लाया हुआ समान जो एक कोने में पड़ा था उसे खोल कर देखने लगा.

उसमें से उसने एक डिबिया निकाल जिसमें हुनमान का सिंदूर था और ले कर बाहर आ गया फिर उसने उस कमरे के बाहर उस सिंदूर से एक लकीर बना दी, ऐसा उसने हर कमरे के दरवाजे के बाहर किया और फिर उस कमरे के पास पहुँचा जहाँ सवी अंदर थी, वहाँ उसने उस सिंदूर से तीन लकीरें खेंच डाली,

फिर वो रूबी और मिनी के पास गया.

सुनेल : तुम्हें अब चाहे कैसी भी आवाज़ आए चाहे तुम्हें ये लगे कि मैं पुकार रहा हूँ या किसी और अपने की आवाज़ सुनाई दे तुम दोनो उस कमरे के पास नही आओगी.

सुनेल दोनो को हॉल में छोड़ सवी के कमरे के पास गया अंदर से आवाज़ें आना शुरू हो गयी ......हाहहाहा हीही ही ही उूुउउऊऊऊऊओउुुुउउ अजीब अजीब आवाज़ें कभी किसी औरंत के रोने की आवाज़ें, काबी जंगल में सियार के रोने की आवाज़ें

और कभी सवी की चीखती हुई आवाज़ें.

सुनेल ने सिंदूर से सवी के कमरे की खिड़की के चारों तरफ लकीर खींच दी और खिड़की के बीच एक कोने से दूसरे कोने तक क्रॉस बना डाला.

फिर सुनेल ने दराज के आगे झुक वहाँ खिसी गयी लकीरों को प्रणाम किया और कमरे के अंदर घुस्स गया.

आवाज़ें एक दम बंद और सवी बिस्तर पे ऐसी लेटी हुई थी जैसे गहरी नींद सो रही हो.

कमरे में बिस्तर के पास सूमी ने शिव की एक तस्वीर रख दी थी. सुनेल ने उसे प्रणाम किया और बिस्तर के चारों तरफ उसने हनुमान के सिंदूर से रेखा खींच डाली कुछ दूरी बना के रखते हुए ताकि कोई अंदर जाए तो रेखा पे पैर ना पड़े.

अब सुनेल को सवी के गले में एक रुद्राक्ष की अभिमंत्रित माला डालनी थी, जैसे ही सुनेल सवी के करीब पहुँच तो सवी की दाहकती हुई आँखें खुली और और कमरे में एक ज़लज़ला आ गया.

सुनेल उड़ता हुआ सामने दीवार से टकराया.

सवी के हाथ इधर उधर घूमने लगे और कमरे की एक एक चीज़ उड़ उड़ के सुनेल पे गिरने लगी . सुनेल खुद को बचाते हुए बिस्तर की तरफ बढ़ने लगा जैसे ही उसने सवी को छूने की कोशिश करी सवी किसी छिपकली की तरह से उछल के छत से चिपक गयी .

सुनेल हार मान गया और कमरे से बाहर निकल आया. चीज़ों के गिरने से उसे काफ़ी चोट भी आई थी.

उसने उस रूह को सवी के साथ कमरे में बंद कर डाला था. पर वो उस रूह का कुछ बिगाड़ नही पा रहा था.

जब वो हाल में आया तो उसकी हालत देख मिनी दौड़ती हुई उसके पास आई उसे सोफे पे लिटाया और उसकी तिमार दारी शुरू कर दी.

कुछ देर ही हुई थी कि सूमी का फोन रूबी को आया सूमी ने कुछ कपड़े मँगवाए थे जो सूमी के कमरे में थे. रूबी ने सारा समान जमा किया जो सूमी ने कहा था और हॉस्पिटल निकल पड़ी.

वहाँ पहुँच उसने देखा कि सुनील बहुत ही गंभीर मुद्रा में एक कोने में खड़ा था, रूबी ने कभी सुनील का ये रूप नही देखा था, एक टीस सी उठी उसके दिल में जो केवल एक प्रेमिका के दिल में ही उठ सकती है. सूमी को सारा समान देने के बाद वो सुनील के पास गयी.

'आप इतने परेशान अच्छे नही लगते, सब ठीक हो जाएगा.'

उसकी बात से सुनील यथार्थ में वापस आया.

रूबी का सुनील से बात करने का तरीका बदल चुका था अब वो एक बीवी की तरहा ही बात करती थी और उसी तरहा उसके दिल में सुनील के लिए चिंता रहती थी. सुनेल और सुनील के बीच अब क्या होगा ये सोच सोच कर वो भी परेशान थी, पर अपनी तरफ से सुनील को हिम्मत दे रही थी, क्यूंकी जानती थी कि सुनील ग़लत नही ग़लत हालत हुए थे और वो उन हालातों में पिसता चला गया था.

क्या एक बिछड़ा बरसों बाद मिला भाई अपने भाई के दिल की हालत समझेगा या फिर मर्यादा को रोना रोएगा. माना रूबी और सुनील की अभी शादी नही हुई थी लेकिन वो दिल से सुनील की थी और अब तो उसके दिल पे सुनील की ना मिटने वाली मोहर लग चुकी थी.



काश सवी के साथ ये सब ना होता तो उसकी अपनी सुहागरात भी जल्द होती. कितने सपने सज़ा रखे थे उसने और कितनी बेसबरी से उस रात का इंतजार कर रही थी जब दो बदन एक दूसरे में खो कर दो रूहों का मिलन करवा देते हैं. और अब तो ये एक ना टूटने वाला प्यार का अमित सागर बन जाएगा जहाँ सूमी,सोनल,सवी और रूबी अपने प्यार की बरसात से सुनील को सराबोर करती रहेंगी. रूबी को उस पल का इंतजार था.

सुनील : तुम घर जाओ, सुनेल और मिनी को तुम्हारी ज़रूरत पड़ सकती है. यहाँ सूमी है ना मैं भी कुछ देर में आ जाउन्गा.

तभी सूमी के फोन पे प्रोफ़ेसर. का फोन आता है कि वो एक घंटे में पहुँच जाएगा.

सूमी - सुनील और रूबी को वापस घर भेज देती है ताकि प्रोफ़ेसर को सुनील रिसीव कर सके और सारी बात डीटेल में बता सके. सुनील रूबी के साथ घर चले जाता है.
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07-20-2019, 10:00 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी

इधर सुनील घर पहुँचा वहीं उसी वक़्त प्रोफ़ेसर. सिद्धेश्वर भी पहुँच गया. उसे सुनील कुछ बदला सा लगा लेकिन घर के अंदर जा जब उसने सुनेल को देखा तो अचम्भित रह गया. उसे समझने में देर ना लगी कुदरत ने क्या खेल खेला.

प्रोफ़ेसर. को सुनील ने एक कमरा दे दिया जहाँ वो आराम कर अपनी थकान उतार सके.

दोनो भाइयों के बीच जो बारूद फटना था वो कुछ समय के लिए टल गया था, क्यूंकी सुनेल भी नही चाहता था कि ढिंढोरा पीटे.

सुनील काफ़ी टेन्स था वो अपने कमरे में चला गया. रूबी ने उसके लिए कॉफी बनाई और उसके पास चली गयी. सुनेल और मिनी हॉल में ही बैठे थे. मिनी बार बार सुनील को इशारों से शांत रहने को बोल रही थी.

रूबी जब सुनील के पास पहुँची तो वो कुर्सी पे टेक लगाए आँखें बंद किए कुछ सोच रहा था.

रूबी ने कॉफी वहीं साइड टेबल पे रखी, और सुनील के सर पे प्यार से हाथ फेरती हुई बोली ' आप इतना परेशान क्यूँ हो रहे हो, सब ठीक हो जाएगा, सुनेल भाई कोई बुरे नही हैं समझ जाएँगे और नियती के इस खेल को स्वीकार कर लेंगे'

सुनील ने अपनी आँखें खोली उसमें दर्द का सागर लहरा रहा था.

रूबी ने अपने लरजते होंठ उसकी आँखों पे रख दिए और चूम लिया ' बस और मत तडपाइये खुद को - कॉफी पियो तब तक में बाथरूम रेडी कर देती हूँ, फ्रेश हो जाना'

सुनील इस वक़्त खुद को बहुत अकेला महसूस कर रहा था, उसे सोनल और सूमी की बहुत याद आ रही थी दिल कर रहा था के उनके पास चला जाए पर घर में प्रोफ़ेसर. आ चुका था और वो उनकों यूँ अकेला नही छोड़ सकता था, सवी की भी उसे चिंता थी, जाने क्या होगा.

रूबी ने बाथरूम रेडी कर दिया और सुनील फ्रेश होने बाथरूम चला गया, कॉफी उसकी आधी ही रह गयी थी, रूबी ने वो कप उठा लिया और जहाँ सुनील के होंठों के निशान थे वहीं अपने होंठ रख कॉफी सीप करने लगी, उसे यूँ महसूस हो रहा था जैसे असल में ही उसके होंठ सुनील के होंठों से चिपक गये हों, जिस्म में चिंगारियाँ फूटने लगी और आँखें बंद कर वो खुद को सुनील की बाँहों में लरज़ता हुआ महसूस करने लगी.

प्रोफ़ेसर. कमरे में जा कर आराम नही कर रहा था, पर कुछ समान निकाल अपने सामने रख वो ध्यान में लग गया था. करीब एक घंटे बाद उसका ध्यान टूटा और उसके जिस्म में कुछ परिवर्तन आ चुका था, यूँ लग रहा था जैसे कोई रोशनी उसके जिस्म से निकल रही हो, माथे पे तेज चमकने लगा था.

प्रोफ़ेसर. को जब भी कुछ इस तरहा का काम करना होता था वो एक अच्छी आत्मा को अपने जिस्म के अंदर आहवान कर लेता था. इस आत्मा ने अपने मानवीय जीवन में त्याग ही त्याग किया था और जिनके लिए सब कुछ किया वही उसकी मोत का कारण बने, लेकिंग आत्मा के रूप में आने के बाद उसके अंदर कोई द्वेष की भावना नही थी. एक दिन प्रोफ़ेसर. एक शमशन में साधना कर रहा था वहीं प्रोफ़ेसर और उस आत्मा की जान पहचान हुई, अभी उस आत्मा की मुक्ति का समय नही आया था और वो प्रोफ़ेसर. को उसके अच्छे कार्यों में मदद करने को तयार हो गयी थी. परंतु प्रोफ. ने कभी अति नही करी, जब बहुत ही जटिल कार्य होता था तभी वो उसका आत्मा को बुलाता था, और सवी के जिस्म में रहने वाली आत्मा भी धीरे धीरे ताकतवर बन चुकी थी.

प्रोफ़ेसर. कमरे से बाहर निकला और सब को हिदायत देने के बाद वो सवी के कमरे में चला गया. उसके कमरे के अंदर घुसते ही सवी उछल के बिस्तर पे खड़ी हो गयी और लाल आँखों से प्रोफ़ेसर. को घूर्ने लगी.

'कॉन हो तुम क्यूँ आए यहाँ' ये आवाज़ प्रोफ़ेसर के मुँह से निकली पर आवाज़ बदली हुई थी.

'तुझे इस से मतलब ये मेरी महबोबा है मैं इसे पा कर रहूँगा'

'तुम अपना जीवन त्याग चुके हो क्यूँ इसे दुखी कर रहे हो, अगर प्यार करते हो इससे तो इसे छोड़ दो जीने दो इसे अपना जीवन. प्यार तो बलिदान का नाम होता है क्या तुम्हारा प्यार इतना कमजोर है.'

'बहुत तडपा हूँ इसके लिए मैं अब इसे अपने साथ ले जाउन्गा'

'ये तो तुम कभी नही कर पाओगे, तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम इसे छोड़ दो'

'हूँ देखता हूँ कॉन मुझे रोकेगा'

'इतना घमंड'

प्रोफ़ेसर के जिस्म में बसी आत्मा ने उस आत्मा को अपने साथ उलझा लिया था और प्रोफ़ेसर. अपनी मानवीय तरंगों से सवी के मस्तिष्क में घुस गया और उसे उस आत्मा के विषय में सब पता चल गया.

इसके बाद प्रोफ़ेसर. उस कमरे से बाहर निकल आया. उसे अब मुंबई जाना था जल्द से जल्द.

प्रोफ़ेसर. ने हॉल में पहुँच सब को बता दिया कि सवी को लेकर मुंबई जाना पड़ेगा. फ्लाइट से पासिबल नही था तो उसे कार में ही ले जा सकते थे. सोनल की अभी हुई डेलिवरी की वजह से सुनील जा नही सकता था उसे छोड़ कर तो फ़ैसला ये हुआ कि सुनेल, मिनी और प्रोफ़ेसर ड्राइव करते हुए जाएँगे. सवी को रात को किसी पहर हाथों और पाँवों से बाँध दिया जाएगा, साथ में एक तावीज़ भी बाँधा जाएगा ताकि वो हिलडुल ना सके और रास्ते में कोई उत्पात ना कर सके.

रात करीब 2 बजे ये लोग निकल गये और घर में रह गये थे सुनील और रूबी.

सबके जाने के बाद, रूबी सुनील से बोली - कुछ चाहिए क्या आप को.

सुनील : नही कुछ नही.

वो विस्की की बॉटल ले कर बैठ गया. आज बड़े दिनो बाद उसने विस्की को हाथ लगाया था.

रात के इस वक़्त सुनील का शराब ले कर बैठना रूबी को अच्छा नही लगा, पर जानती थी कि सुनील बहुत परेशान है, वो इस वक़्त शायद सवी के बारे में सोच रहा था या फिर अपने बच्चों के बारे में जिनके पास वो कोई वक़्त खांस नही गुजर पाया. रूबी अच्छी तरहा जानती थी जो जगह सुनील के दिल में सूमी और सोनल के लिए है वो जगह वो शायद कभी नही ले पाएगी, पर उसे अपने प्यार पे भरोसा था. जब सोनल और सूमी ने दिल से उसे अपनी सौतेन बनाना कबुल कर लिया था तो एक दिन उसकी आत्मा भी इन सब की आत्मा के साथ रस जाएगी, बस जिस्म अलग होंगे पर रूहों का बंधन अमिट होगा.

वो सुनील के लिए बरफ और सोडा ले आई. और उसके पास जा कर बैठ गयी.

नींद तो दोनो की आँखों से दूर थी. रूबी कुछ बोलते डर रही थी पर हिम्मत कर बोल ही बैठी.'जो नशा प्यार में है वो इस शराब में कहाँ, आप क्यूँ परेशान हो रहे हैं' और रूबी सुनील की गोद में बैठ गयी.

सुनील ने ख्वाब में भी नही सोचा था कि रूबी यूँ इस तरहा खुल जाएगी, जो कल तक शर्मीली नज़रों से देखती थी आज यूँ एक दम गोद में आ कर बैठ गयी.
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07-20-2019, 10:00 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनील : रुबययी ये तूमम्म्ममम ( सुनील ने रूबी को हटाना चाहा)

रूबी : श्ह्ह्ह्ह्ह ( सुनील के मुँह पे उंगली रख दी और उसे चुप करा दिया) मैने सोनल से वादा किया है तुम्हें कभी दुख के सागर में नही डूबने दूँगी. और हमारी मँगनी भी हो चुकी है. अब कुछ मत बोलना ( और रूबी ने अपने होंठ सुनील के होंठों से चिपका दिए.)

रूबी के होंठ तो जैसे जल रहे थे ना जाने कब से उनमें प्यास भरी पड़ी हो जो सुनील के होंठों के रस से ही भुज सकती थी.

सुनील ने रूबी को अलग करने की कोशिश करी तो रूबी भड़क गयी. 'क्यूँ मैं अच्छी नही लगती क्या. हम कोई पाप तो नही कर रहे, कल शादी होगी हमारी, क्या मैं तुम्हें दो पल का सुख भी नही दे सकती.'

सुनील : उफ़फ्फ़ तुम तो, शादी से पहले ही.....

रूबी : सच कसम से तुम्हारी इन ही अदाओं ने तो सबको तुम्हारा दीवाना बना रखा है. यार कॉन सी सुहागरात मनाने जा रहें है बस कुछ पल मस्ती ताकि तुम्हें चैन की नींद आ जाए.

सुनील : ये तुम को आज हो क्या गया है.

रूबी : अपने प्यार को खुश देखना चाहती हूँ बस, तुम्हें जिंदगी के हर दर्द से दूर रखना चाहती हूँ. यही सोच रहे होगे ना कि रूबी कितनी बेशर्म बन गयी है, तुम्हारे लिए तो कुछ भी करूँगी, चाहे रंडी का रूप धारण कर तुम्हें खुश क्यूँ ना करना पड़े. सूमी दीदी होती तो चिंता नही थी, तुम्हें उनकी बाँहों में ज़्यादा सकुन मिलता. पर मेरा प्यार भी बुरा नही एक बार महसूस तो करो.

सुनील रूबी की तड़प के आगे पिघल गया, उसे रूबी में एक पल को सूमी दिखी और अगले ही पल सोनल. सुनील ने रूबी के चेहरे को अपने हाथों में थाम लिया और और अपने होंठ उसके होंठों से सटा दिए.

अफ, रूबी की आत्मा तो ऐसे नाची जैसे बारिश में मोर. उसे उसका प्यार पूरे रूप में मिल गया था, बस जिस्मों का मिलन बाकी था, रूह ने रूह को कबुल कर लिया था.

उधर सुनील के बिना सोनल को नींद आ रही थी ना ही सूमी को. दोनो बिस्तर पे लेटी एक दूसरे को ही देख रही थी, यहाँ जैसे ही सुनील ने रूबी के होंठों को चूसना शुरू किया सोनल की आँखें बंद होती चली गयी और सूमी के अंदर एक कशिश जाग उठी सोनल के लबों को चूमने की और सूमी खुद को ना रोक पाई और दोनो के होंठ आपस में मिल गये- दो जिस्म यहाँ और दो जिस्म वहाँ तीन आत्माएँ एक दूसरे में में विलीन और चोथी आत्मा बाकी दो से मिलने को आतुर, पर ये संगम सुनील और रूबी के जिस्मों के संगम के बाद ही मुमकिन था.

सोनल और सूमी धीरे धीरे नींद के आगोश में चली गयी और यहाँ सुनील ने रूबी के होंठ चूस चूस कर उसके जिस्म में कामग्नी की ज्वाला भड़का दी थी जिसपर रूबी ने बड़ी मुस्किल से काबू रखा हुआ था.

जिस्म में बढ़ती हुई अग्नि रूबी से बर्दाश्त ना हुई और और सुनील से लिपट के रोने लगी. सुनील घबरा गया कि इसे हुआ क्या. इस पहले सुनील खुद कुछ बोलता रूबी बोल पड़ी - अब ये दूरी बर्दाश्त नही होती, मैं मर जाउन्गि - बरसा दो अपने प्यार की फ़ुआर, भुजा दो मेरे जिस्म की अग्नि.

शादी से पहले सुनील आगे नही बढ़ना चाहता था, पर उसे कुछ तो करना ही था जिससे रूबी की छुधा शांत हो जाए. उसके हाथ रूबी के कपड़ों में उलझ गये और रूबी के जिस्म से एक एक कपड़ा साथ छोड़ने लगा और उसका मदमाता हुस्न सुनील की आँखों को जलाने लगा.,

जैसे जैसे रूबी के जिस्म से कपड़े उतर रहे थे वैसे वैसे उसकी साँसे अटकती जा रही थी. ये ये क्या हो गया सुनील को क्या आज ही सब कुछ, नही मेरा सुनील ऐसा नही है, तो फिर वो सारे कपड़े क्यूँ उतार रहे हैं.

रूबी के मन में एक भाव आता एक भाव जाता, दिल, दिमाग़ और रूह तीनो ही अलग दिशा में जा रहे थे और रूबी इन तीन के बीच पिस्ति अपनी सही भावना को नही पहचान पा रही थी.

जिस्म अपना ही राग अलापने लग गया था जो सुनील की हर छुअन के साथ सिहर रहा था और उसके जिस्म के और करीब होने को आतुर होता जा रहा था. रूबी भूल चुकी थी वो कहाँ है, घर में कुछ देर पहले क्या हुआ, किस हालत में सवी को ले जाया गया. याद रहा तो बस इतना ही के उसका जिस्म सुनील की बाँहों में पिघल रहा था.

रूबी के जिस्म से वस्त्र अलग हो चुके थे और सुनील की नज़र जब उसके उरोजो पे पड़ी तो कुछ पल को उसे यूँ लगा जैसे सोनल उसके सामने हो. जहाँ सोनल सागर और सुमन के संगम का परिणाम थी वहीं रूबी सागर और सवी के संगम का और रूबी के जिस्म में सुनील को सागर की वही छाप दिख रही थी जो उसने सोनल में देखी थी.

दो जिस्मो में शायद एक ही रूह के अंश विद्यमान थे - जिस्म ने दिमाग़ को और तर्क वितर्क नही करने दिया और सुनील के होंठ रूबी के निपल को अपने क़ब्ज़े में ले बैठे.

अहह ऊऊओह म्म्म्मा आआआअ सिसक पड़ी रूबी ...

सुनील भूल गया था कि कुछ देर पहले वो क्यूँ परेशान था इस वक़्त उसके अंदर बस रूबी की छवि ही दिखाई दे रही थी जो आँखों के ज़रिए दिल की गहराइयों में उतर चुकी थी.

सुनील ने तेज़ी से रूबी के निपल को चूसना शुरू कर दिया और दूसरे को अपनी उंगलियों में मसल्ने लगा.

आह आह धीरे धीरे उफफफ्फ़ उम्म्म्म रूबी के मुँह से लगातार सिसकियाँ फूटने लगी.

ना चाहते हुए भी रूबी सुनील और रमेश की तुलना करने लगी और जिस तरहा सुनील उसे प्यार कर रहा था जैसे कोई धीरे धीरे फूल की कोंप्ले सूंघ रहा हो - सुनील ने रूबी के अंदर बसी बची कूची कड़वी यादें रमेश की छिन्न भिन्न कर डाली और रूबी भूल गयी के रमेश का कोई अस्तित्व भी था उसकी जिंदगी में अब बस एक ही नाम था जो दिल, दिमाग़ और होंठों पे छप गया था - सुनील.

दो जिस्मों के टकराव में जब रूह तक सम्मलित हो जाए तो उस समय जिस्म में जो प्रगाढ़ प्रेम की तरंगें उठती हैं उनका कोई मुकाबला नही - यही रूबी के साथ हो रहा था....उसके जिस्म का पोर पोर संगीत की लय में बजने लगा था- जो अहसास वो इस समय महसूस कर रही थी वो अनोखा था, एक दम निराला और इस अहसास की ताब वो ज़्यादा देर ना झेल सकी और भरभरा के जल बिन मछली की तरहा थिरकते हुए झड़ने लगी. साँसों की गति यकायक एक दम तीव्र हो गयी जैसे कई मीलों का सफ़र दौड़ के किया हो.

धीरे धीरे जिस्म शीतल पड़ने लगा और सुनील की बाहों में झूल गया. सुनील ने रूबी को आराम से बिस्तर पे लिटाया और चद्दर से ढँक वो धीरे से कमरे से बाहर निकल गया.

सुनेल तेज़ी से कार चलता हुआ मुंबई की तरफ बढ़ रहा था. रास्ते में एक बार सवी के जिस्म में कुछ हलचल हुई तो प्रोफ़ेसर. ने नींद का इंजेक्षन दे डाला.

इसके बाद कभी मिनी कार चला ती और कभी प्रोफ़ेसर. बार बारी वो ड्राइव करते हुए तेज़ी से मंज़िल की तरफ बढ़ रहे थे.

करीब 2 किमी का फासला रह गया था उस जगह से जो प्रोफ़ेसर ने सुनेल को बताई थी मुंबई से कोई 15 किमी बाहर जहाँ कभी किसी बिल्डर ने एक कॉलोनी बनाने की सोची थी लेकिन अब सिर्फ़ वहाँ खंडहर ही रह गये थे ...उँची खाली इमारतें जो जगह जगह से टूट रही थी.

अचानक सवी के जिस्म में तेज़ी से हल चल हुई और वो कार का पिछला सीसा तोड़ती हुई पीछे जा गारी और उसी वक़्त खड़ी भी हो गयी. उसके हाथ पाँव खुल चुके थे और उसने अपने दोनो हाथ फैला कर कार को जैसे जाकड़ लिया और हाथों को यूँ हिलाया कि कार उड़ती हुई 4 किमी पीछे जा कर गिरी. इसके बाद सवी लहराती हुई गिर पड़ी और उसके जिस्म से एक धुआँ निकलता हुआ वीलिन हो गया.

जिस तेज़ी से कार की गति रुकी और वो पीछे को उछली मिनी एक ज़ोर दार चीख मार बेहोश हो गयी. प्रोफ और सुनेल ने किसी तरहा गिरने पे चोट कम लगे उसके बारे में सोचा पर इतना समय ही कहाँ था. जिस तरह कार गिरी प्रोफ़ेसर सीट और स्टीरिंग के बीच फस गया. उसकी पसलियां टूट के दिल में जा घुसी और मुँह से खून निकलने लगा.

शायद कुछ पल ही बचे थे प्रोफ़ेसर के पास. सुनेल मिनी के नीचे दब गया था और एक बॅग जो खुल गया था उसके अंदर से निकले कपड़े कूश्षन का काम कर गये जिससे सुनेल और मिनी बच तो गये पर सुनेल के बाएँ हाथ की हड्डिती टूट गयी, मिनी को भी काफ़ी चोटें आई. सुनेल को जब कुछ होश आया वो प्रोफ़ेसर की तरफ लपका रेंगता हुआ. प्रोफ़ेसर शायद इसी पल तक के लिए साँसे बचा के बैठा था उसके मुँह से बस इतना निकला - मेरी डाइयरी - और उसकी जीवन लीला वहीं समाप्त हो गयी.
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07-20-2019, 10:00 PM,
RE: Hindi Kamuk Kahani वो शाम कुछ अजीब थी
सुनेल ने किसी तरहा खुद को और मिनी को कार से बाहर निकाला. कार की पेट्रोल टंकी लीक कर रही थी. सुनेल फिर कार में घुसा और प्रोफ का बॅग निकाल ने की कोशिश करने लगा.

जैसे ही सुनेल प्रोफ़ेसर का बॅग निकाल कार से कुछ दूर ही हुआ था कि कार में धमाके के साथ आग लग गयी और सुनेल उड़ता हुआ दूर जा गिरा और गिरते ही बेहोश हो गया.

तभी वहाँ ज़ोर की आँधी सी चली और और उस आँधी में सवी गायब हो गयी.

अब एक तरफ सुनेल लहू लुहान बेहोश पड़ा था और दूसरी तरफ मिनी. प्रोफ़ेसर की लाश तो कार के साथ ही जल गयी.

रात धीरे धीरे सरक्ति रही और सुबह हो गयी.

सुनेल का बहुत खून बह चुका था.

करीब सुबह के 6 बजे कुछ लोग पास के गाँव से उधर को निकले जो दिशा मैदान की तरफ जाते थे उनकी नज़र सुनेल पे पड़ी और कुछ दूर बेहोश पड़ी मिनी पे भी, सब उनकी तरफ लपके, और जाँचने पे पता चला दोनो में जान बाकी थी. गाँव वाले दोनो को उठा गाँव ले गये और गाँव के वैद्य को बुला लिया.

वाइड ने दोनो की मरहम पट्टी तो कर दी, पर खून बहने की वजह से सुनेल को हॉस्पिटल ले जाना ज़रूरी था.

उस गाँव में एक ही आदमी था जिसके पास बाइक थी, वो अपनी बाइक से शहर की तरफ चल पड़ा और कोई घंटे बाद आंब्युलेन्स ले कर पहुँचा और सुनेल और मिनी को हॉस्पिटल में भरती करवा दिया.

गाँव वाले परेशान थे कि ये दोनो कॉन हैं और इनके परिवार तक खबर कैसे पहुँचाई जाए.

कुदर्तन सुनेल का मोबाइल उसकी जेब में ही था जो डॉक्टर्स के हाथ लगा और डॉक्टर्स ने विजय को फोन कर डाला क्यूंकी वो मुंबई का नंबर था.

विजय खबर मिलते ही हॉस्पिटल की तरफ भागा और वहाँ पहुँच उसने जो हालत सुनेल की देखी तो हिल गया पर खुद को संभाल कर उसने सुनेल और मिनी को उसी वक़्त एक बड़े हॉस्पिटल में शिफ्ट करवा दिया.

काफ़ी सोचने के बाद विजय ने सुनील को फोन कर डाला.

विजय की जब कॉल आई सुनील को उस वक़्त वो बस रूबी को साथ ले सोनल और सूमी के पास पहुँचा ही था. कॉल सुनते वक़्त सुनील की पेशानी पे जो चिंता की रेखाएँ उभरी वो देख तीनो -सूमी/सोनल और रूबी परेशान हो गयी, तीनो के दिल किसी आशंका की वजह से ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगे. सुनील के माथे पे पसीना तक झलकने लगा और सोनल वो देख बिस्तर से एक दम उठ के बैठ गयी, जबकि डॉक्टर्स ने उसे एक दम बिस्तर पे लेटे रहने को कहा था.

सुनील के मुँह से जब ये निकला कि वो इसी वक़्त मुंबई के लिए निकल रहा है तो सूमी खुद को ना रोक पाई, बातों से उसे लग गया था कि सुनील विजय से बात कर रहा है.

रूबी को कुछ अंदेशा हो गया कि सवी आदि के साथ कुछ बुरा हुआ है, उसका चेहरा सख़्त होता चला गया.

रूबी : दीदी जाने दो इनको, मैं हूँ ना यहाँ आप लोगो की सेवा के लिए, इन्हें इनका काम करने दो.

सूमी : विजय जी क्या बात हुई है ये सुनील को .....

विजय : सुमन जी घबराने की कोई बात नही सुनील ऐसे ही परेशान हो रहा है, मैं हूँ ना, उसे यहाँ आने की कोई ज़रूरत नही.

सूमी : पर हुआ क्या है....

विजय : बाद में आपसे बात करता हूँ अभी ज़रा सुनील को फोन दो.

सूमी : आप कुछ छुपा रहे हैं, प्लीज़ मुझे सब कुछ सच सच बताइए.

सुनील का पारा टूट गया वो लगभग चिल्ला पड़ा.

सुनील : सुमन मुझे फोन दो, सवी की जान ख़तरे में है, मुझे जाना होगा

सुनील ने सूमी के हाथ से फोन खींच लिया - विजय जी मैं आ रहा हूँ ये बताइए प्रोफ़ेसर अंकिल कैसे हैं.

अब विजय चक्कर खा गया.

विजय : मुझे तो बस सुनेल और मिनी मिले घायल आक्सिडेंट से

सुनील : ओह! यानी सवी भी नही मिली

विजय : क्याआआ?

सुनील : हां वो भी साथ थी, मैं आ रहा हूँ वहीं पहुँच के सारी बात करूँगा, फोन पे नही हो सकती आप पोलीस से उस इलाक़े की छान बीन करवाइए जहाँ आप को सुनेल और मिनी मिले.

विजय : मैं देखता हूँ लगाता हूँ अपनी पूरी फोर्स उनको ढूँडने में.

सुनील : ठीक है मैं शाम तक पहुँच जाउन्गा.




प्यार का कोई भी रूप क्यूँ ना हो वो इम्तिहान लेने से बाज नही आता - आज फिर इम्तिहान की घड़ी आ गयी थी - एक ऐसा इम्तिहान जो अगर सफल ना हो पाया तो शायद रिश्तों में कड़वाहट ले आए - एक इम्तिहान सोनल दे रही थी अपने प्यार को जिंदगी की ख़तरनाक जंग में भेज के एक इम्तिहान सूमी दे रही थी - एक माँ होने के नाते अपने सुनेल की सलामती के लिए, एक बीवी होने के नाते अपने खाविंद को मोत के मुँह में भेज के, एक इम्तिहान रूबी दे रही थी - पर कॉन सा - अपने प्यार को भेजने का - अपनी माँ उर्फ अपनी सौत की सलामती का और सबसे बड़ा इम्तिहान तो वो बच्चे दे रहे थे जो अभी तक अपने पिता को पहचानने के काबिल भी नही हुए थे.

रिश्ता कोई भी हो उसे कोई भी नाम दे दो इस वक़्त वो बस इम्तिहान दे रहा था. और सुनील इन सभी इम्तिहानो का केन्द्र बिंदु था जिसकी सफलता और असफलता पे आगे की जिंदगी का रुख़ मुनस्सर था.

सूमी : जाइए जीत के लोटिए हमारा प्यार तुम्हारी रक्षा करेगा.

रूबी : आप इनकी चिंता मत करना मैं इन्हें कोई तकलीफ़ नही होने दूँगी बस जल्दी फ़तेह हाँसिल कर के लोटिए.

सब की आँखें नम थी. सुनील ने जी कड़ा कर सबको प्यार किया और निकल पड़ा अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जंग लड़ने.

यहाँ विजय को प्रोफ़ेसर. और सवी का कोई सुराग नही मिल रहा था. पोलीस भी घटना स्थल पे जाँच पे लगी हुई थी. कोई सोच भी नही पा रहा था कि प्रोफ़ेसर तो कार में ही जल गया था.

विजय जली हुई कार को बड़े ध्यान से देख रहा था. ड्राइविंग सीट के पास उसे कुछ ऐसा महसूस हुआ कि किसी की खोपड़ी के कुछ टुकड़े हैं. विजय ने पोलीस के सुप्रिडेंट को जो उसके साथ आया था उसे उस जगह का इशारा किया - एसपी. ने फोर्सेनिक टीम जो साथ आई थी उन्हें कहा और इस बात की पुष्टि हो गयी कि वो टुकड़े किसी की खोपड़ी के थे ...विजय का दिल दहल उठा किसके - प्रोफ़ेसर. या सवी.

शाम तक सुनील मुंबई पहुँच चुका था और सीधा विजय के बताए हॉस्पिटल गया जहाँ सुनेल और मिनी दोनो आइसीयू में थे.

सुनील के वहाँ पहुँचते ही सुनेल के जिस्म में कुछ हरक़त हुई, लेकिन फिर वो उसी अवस्था में हो गया. डॉक्टर्स हैरान थे कि जब उसमे चेतना लोटने लगी तो फिर यकायक वो फिर उसी अवस्था में कैसे पहुँच गया. असल में ये एक इशारा था सुनेल का सुनील के लिए कि वो उसके और करीब आए जिसे सुनील समझ ना पाया और आइसीयू की खिड़की के बाहर खड़ा भरे मन से दोनो को देखता रहा.

सुनील ने विजय को फोन किया और बताया कि वो हॉस्पिटल पहुँच चुका है. विजय ने उसे वहीं रुकने को बोला और कुछ देर में आने का कहा.

सुनील सुनेल को ही देख रहा था अचानक सुनेल की आँख खुली - दोनो भाइयों की आँखें चार हुई - सुनील फट से आइसीयू के अंदर भागा और जैसे ही उसने सुनेल का हाथ अपने हाथ में लिया उसके जिस्म में एक भूचाल शुरू हो गया .....सुनील की काया रूप बदलने लगी चेहरे पे एक तेज आ गया और सुनेल का जिस्म एक दम शीतल पड़ गया जैसे किसी योगी ने योग समाधी ले ली हो.

सुनील फट से सुनेल से अलग हुआ पर अब तक जो होना था वो हो चुका था. सुनेल की आत्मा सुनील के अंदर समा चुकी थी - दोनो में युद्ध सा चल रहा था और सुनील के चेहरे का रंग पल पल बदल रहा था आइसीयू में माजूद सारा स्टाफ हैरान था कि हो क्या रहा है सुनील की हालत देख कोई उसके नज़दीक जाने का साहस ना कर रहा था पर अंत में सुनेल विजयी हुआ और उसने सुनील के जिस्म से उसकी आत्मा को बाहर निकाल फेंका जिसके पास और कोई चारा नही था कि वो सुनेल के जिस्म में आश्रय ले.

जैसे ही सुनील की आत्मा ने सुनील के जिस्म को छोड़ा दो लोगो के दिल को बहुत पीड़ा हुई - सूमी और सोनल, दोनो के जिस्म पसीने पसीने हो गये दिल की धड़कन बढ़ गयी सुनील के साथ किसी अनिष्ट की सूचना उनकी आत्मा को मिल चुकी थी और दोनो एक दूसरे को देख जैसे कोई फ़ैसला लेने चाहती थी.

सूमी : नही सुनेल ये नही कर सकता, क्या मक़सद है उसका वो इस तरहा आत्माओं की अदला बदली नही कर सकता.

रूबी : ये ये क्या कह रही हो आप.

सोनल : हां रूबी सुनील की आत्मा का संदेशा हम तक पहुँच गया है, पता नही इस सबके पीछे सुनेल का मक़सद क्या है - लेकिन मैं ऐसा नही होने दूँगी अगर सुनेल ये सोचता है कि आत्माओं की अदला बदली कर वो हमें पा सकता है तो ये उसकी बहुत बड़ी भूल है वो सब कुछ खो देगा और नितांत अकेला रह जाएगा जैसे पहले था. सुनेल मेरे लिए एक भाई है और कोई दूसरा रूप नही ले सकता है, उसकी आत्मा कितने भी चोले बदल ले वो मेरे निकट नही आ सकता जल के भस्म हो जाएगा.

इस वक़्त सोनल एक घायल नागिन की तरहा फुफ्कार रही थी.
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