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RE: Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी
काकी की विशाल जंघे, गोरी गोरी कमर पर कसी लेग्गींग , हल्का सा बाहर निकला पेट, कमर के दोनो और के उठाव और घुमाव, उनकी विशाल नाभि पर पड़ी पत्दर्शी सफेद टी -शर्ट.
और उसी टी -शर्ट से झँकते दो पपीते. काकी सच्ची मे पॉर्न स्टार लग रही थी मामू .
बस साला ये पॉर्न पिक्चर न्ही थी.
काकी फिर बोली, “ अरे लल्ला……चाय पिएगा क्या….?”
अब बोलना पड़ा.
“ह…ह….हन….काकी…..”
भेनचोद ठरक के मारे मेरा गला सुख गया था. कौए जैसी आवाज़ निकली.
काकी बोली, “ हैं…..बेटा….क्या हुआ….”
मैने गला सॉफ किया और बोला “ ब…ब….ब्ना दो….काकी….”
काकी वहीं पर बनी रसोई की तरफ बढ़ी और मैं उनके पिछवाड़े की लचक देखता रहा.
वहाँ पर एक छोटा स्टूल था…काकी टटोल कर उस पर बैठ गइ. साला इतने से स्टूल पर काकी की विशाल गांड कैसे टिक गइ ?
काकी ने धीरे से गॅस को टटोला और अंदाज़े से बर्तन उठाया. एक बात थी, अंधी काकी को अंदाज़ा और अपने आसपास्स का पूरा ज्ञान था.
वो धीरे से हाथ बढाती मगर चीनी चाहिए तो चीनी ही उठती, चाय पत्ती चाहिए तो चाय पत्ती .
चाय गॅस पर उबलने लगी. काकी बोली, “ लल्ला….वहाँ बर्तन पड़े होंगे….एक ग्लास ले आ…”
मैने ग्लास उठाया और मेरे होश तीतर बटेर हो गये.
ग्लास मेरे हाथ से छूट गया और मेरी साँस ही रुक गयी.
काकी स्टूल पर पैर चौड़े किए बैठी थी. उनकी मुनिया के ठीक उपर लेगिंग ने साँस छोड़ दी थी.
वहाँ की सिलाई उधड़ गयी थी और जन्नत का दरवाज़ा ठीक मेरे सामने……
काकी एक दम से चौंकी
“हाय राम क्या हुआ….”
इधर मेरी आँखें नही हट रही, बाबूराव फंनफना रहा. गिरा हुआ ग्लास फर्श पर गोल गोल घूम रहा और मेरी नज़रें…
काकी की लेगिंग बेचारी काकी के नरम गरम गुदाज गदराये भरे बदन के आगे हार गयी थी.
क्या है बेटे अपनी किस्मत तो कामदेव भगवान ने लिखी थी न .
मर्जानी लेगिंग फटी भी तो कहाँ से….
हा..हा..हा
अपने अंदर का प्रेम चोपड़ा, पापा रंजीत और शक्ति कपूर तीनो एक साथ आउ बोल पड़े.
काकी की मुनिया पर घमासान झांटे थी.
झांट वाली या सफाचट हो, पर प्यारे चूत तो चूत होती है
काकी घबरा गइ थी इस लिए एकदम उठने को हुई तो उन्होने अपने पैर सिकोडे और अपना शो बंद.
परदा गिरा तो अपुन को होश आया.
“अरे…क्या हुआ…लल्ला…..ग्लास कैसे गिर गया….अरे राम तू फिसल तो न्ही गया….?’
“अरे न…न….नही….काकी…..वो….थोड़ा ..फिसल…गया..”
“हाय राम…..लगी तो न्ही….” ये कहकर काकी उठने लगी. मैं बोला “अरे न्ही….न्ही…काकी….मैं ठीक हूँ पर पैर मूड गया”
काकी बोली “ आ इधर आ…मोच आ गइ क्या..?”
अब कुछ न्ही सूझा तो मैने बोल दिया “ह…ह….हाँ ....हाँ …मोच आ गइ”
“आ मेरे पास बैठ, . दिखा पैर…कहाँ पर आई….”
लौड़ा क्या मांगे....चूत.
मैं झट से उनके सामने बैठ गया. अब वो बैठी थी स्टूल पर और मैं ज़मीन पर. पास आते ही उनके गीले टी शर्ट मे से मम्मे और सॉफ सॉफ दिखने लगे. काकी के झुकने से मम्मे मस्ती से झूल रहे थे और उनके साथ ही मेरा बाबूराव भी झूम रहा था.
जैसे की मम्मे बीन और अपने बाबूराव सपोला
काकी ने अपने पैरों को फैलाया और झुकी. मैं तुरंत आगे आया की चलो दरवाजा खुला.
काकी का सर झुकना और मेरा आगे होना एक साथ हुआ और मेरा सर उनके कंधे से जा टकराया. काकी बोली, “ हाय राम….दिखता नही क्या…..मैं तो आँधी हूँ…तू तो आँख वाला है”
आबे अपनी आँखे कहा है क्या बोलू…
“पीछे सरक……ला तेरा पैर बता….”
मैने अपने पैर उठा कर काकी की नाज़ुक नरम हथेली पर रख दिया….इसकी माँ की आँख..... काकी की तो हथेली भी गद्देदार थी. जब काकी मेरे बाबूराव को अपनी मुठ्ठी मे लेकर मसलेगी…
“अरे….कहाँ खो गया रे…..”
“हैं….ह…हन….हन…..क…क्या ….काकी…”
“अरे मैं पूछ रही हूँ कहाँ मोच आई, तलवे मे…..कहाँ….घुटने पर ?”
मैने बगैर सोचे समझे हाँ बोल दिया….काकी का गुदज हाथ मेरे पैरों पर फिसलता हुआ मेरे घुटनो पर आ गया. उन्होने मेरे घुटने की कटोरी टटोली और बोली,
“ मामूली सी मोच लगती है….ज़्यादा दर्द है क्या….?”
“न…न….नही….हल्का सा….”
“ला तेल लगा दूं………”
उन्होने स्टूल पर बैठे बैठे ही पीछे मूड कर तेल की बरनी टटोली.
वो सफेद टी शर्ट इन सब मे और उपर चड गया था और काकी का मांसल पेट और कमर पूरी नंगी मेरे सामने थी.
जिस औरत की मुँह दुनिया ने कभी पूरा नही देखा था मैं उसको ऐसे आधी नंगी हालत मे देख रहा था ये सोच सोच कर मेरे गोटों मे उबाल आने लगा. काकी की दोनो जाँघे तो अब जुड़ चुकी थी मगर मेरी नज़र उनकी घुमावदार कमर के कटाव पर थी.
काकी ने सरसो का तेल उठाया और थोड़ा सा हाथ मे ले कर आगे झुकी….आगे झुकने की लिए उनको फिर से अपनी टाँगें खोलनी पड़ी……
वो मारा पापड़ वाले को..
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RE: Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी
लेगिंग थोड़ी सी और उधड़ गयी थी. ऐसा लग रा था की काकी की मुनिया ही लेगिंग को फाड़ कर बाहर आ गइ हो….लेगिंग का बचा हुआ हिस्सा काकी की मुनिया को चारो और से दबा रहा था और इस कारण उनकी मोटी गददर मुनिया और फूल कर पाव रोटी जैसी निखर आ रही थी.
अभी अगर मैं अपने बाबूराव को छू भी लेता तो वो अपने प्राण छोड़ देता…दे पिचकारी पे पिचकारी मारता की काकी को नहला देता.
काकी मेरे घुटने को रगड़ते हुए कुछ बोल र्ही थी….
“तेरे पैर तो बड़े तगड़े है छोरे….दौड़ लगाता है क्या……?”
अब क्या बोलू की मेरे कंजूस बाप ने बाइक तक नहीं दिलाई. चप्पल घिस घिस के ये तगड़ी हो गइ.
काकी ज़ोर लगा लगा कर मेरे घुटने को मसल रही थी …..वो तो भला हो की मैने चड्डी पह्न ली थी वरना कही काकी का हाथ थोड़ा उपर आ जाता तो….इतनी ही देर मे काकी के उकड़ू होकर ज़ोर लगाने से और तेल की चिकनाई से काकी का हाथ फिसला और काकी के हाथ सीधे मेरे बाबूराव तक ही आ गये….
“हाय राम……अरे मेरा हाथ ही फिसल गया…..”
काकी पीछे होकर उठी और स्टूल पर जा बैठी. उन्होने फिर से टाँगे चौड़ी की और अपने गले से पसीना पोंछने लगी….
शायद अंधी काकी की मुनिया की नज़रे बाबूराव पर पड़ गयी थी….काकी ने धीरे से अपनी मुनिया को खुजाना चाहा और नीचे हाथ ले गइ. जैसी उनका हाथ अपनी नंगी झांटों पर पड़ा उनका मुँह हैरत से गोल हो गया और वो अपनी फटी लेगिंग से झाँकी मुनिया को टटोलने लगी.
काकी ने तुरंत अपने टाँगे बंद कर ली.
काकी ने कुछ लंबी साँसें ली और नॉर्मल होने की कोशिश करने लगी…
“य…….यह….कपड़े भी बहुत ही छोटे है ……पुराने भी है…..उधड़ उधड़ जा रहे है…..?”
अपुन ने मौके की नज़ाकत समझी और बोला, “ क…क….कहाँ से उधड़ा …..मुझे तो नहीं दिखा..”
काकी बोली “ अरे राम …मैं बोली उधड़ ना जाए….”
अपुन ने हिम्मत बटोरी और बोले “ अरे नही.....हो... काकी…..कुछ नहीं होगा….थोड़ा बहुत कुछ हो गया तो अपन लोग तो घर मे ही है ना…..आप के कपड़े सूखे तब तक भले पह्न के रख लो….”
“हाय राम…मुझे तो शरम आ र्ही है….बहुत तंग है ये….”
“न…न….नही……काकी……इसमे…क….क….क्या शरम…….”
“हाय राम तो क्या तेरी तरह नंगी घूमू घर मे बेसरम……..हैं…..लल्ला…….एक बात बता……तू……नंगा क्यू सोता है रे…..”
अपनी......फटफटी चल पड़ी
“क…क….क्या……काकी ?”
“और नहीं तो क्या, सुबह मैं तेरी खाट के पास आई थी, तू नंगा ही पड़ा था….बेटा अब तू बड़ा हो गया है…..”, काकी समझाने के अंदाज़ से बोली.
“व् ….व् ....वो क्या है की काकी….मुझे…..तंग कपड़ो मे नींद नही आती और फिर इतनी गर्मी थी….इसलिए….म…म…मैं…..”
“हाय राम तो मैने तो तुझसे कहा ही था की अंदर मेरे कमरे मे सोया कर, कूलर है, पंखा है….मुझे तो रात को ठंड लगने लगती है…..”
अब मैं कैसे मना करता. मेरा तो दिल ही कुछ ऐसा है.
“सच बता लल्ला….यह कपड़े बहुत झीने है क्या…..?”
मैने सोचा की अगर हाँ बोला तो ये कहीं कुछ और ना पहन ले.
“न…न…नही…काकी….ऐसे तो झीना नही है….मगर आप बाहर मत जाना….इन कपड़ो मे….”
“लो बताओ…..मैं अंधी क्या करूँगी बाहर जा के…..हाँ मगर…..मंदिर मे पूजा थी…..वो भोलेनात जी के मंदिर मे आज अभिषेक था…..प्रसाद भी चड़ना था…..
चल मेरी साडी सुख जाएगी तो….”
“अरे म.म.म…..मैं चला जाता हूँ काकी….”
“हैं…..अरे…..हाँ यह हीक रहेगा. बेटा तू ही चला जा. आज धन्नो भी नहीं आएगी और मैं थोड़ा समान ठीक कर लूँगी….देख तो बेटा मेरा पेटीकोत सूखा की नही….यह मरा पाजामा तो बहुत ही तंग है….बैठा नही जा रहा…”
बैठा तो क्या नही जा रहा. काकी की लेगिंग मे खिड़की खुली थी. इसीलिए काकी को लेगिंग बदलनी थी. अपुन गये और ईमानदारी से एक लोटा पानी काकी के सारे कपड़ो पे डाल दिया और चिल्लाया “ काकी…..कपड़े तो अभी भी भीगे हुए है..”
काकी ने ठंडी साँस ली और बोली, “ठीक है बेटा…..कपड़े थोड़े धूप मे कर दे….अब क्या करू…इन्ही कपड़ों मे मरना पड़ेगा….”
मैं जाके तुरंत काकी के सामने बैठ गया. काकी आटा लगा रही थी. धीरे धीरे उनके पैर फिर खुल गये और नज़ारा ए जन्नत अपने सामने.
तंग कपड़ो मे कसा हुआ काकी का बदन धीरे धीरे पसीने मे नहा गया. उनके गले से पसीने की एक धार उनके विशाल मम्मो के बीच की खाई मे उतर गयी और उनके मांसल पेट पर से होती हुई उनके लेगिंग के एलास्टिक को भिगोने लगी.
धीरे धीरे काकी का पूरा बदन पसीने मे नहा गया.
अब प्यारे तू मेरी हालत सोच.
मेरे से 3 हाथ की दूरी पर एक मांसल ग़ददर गुदाज़ बदन की मलिका पसीने मे नहाई अधनंगी बैठी थी और उसके खाना बनाने से उसके मम्मी कभी झूलते कभी तन जाते…कभी टाँगे चौड़ी होती…विशाल जांघों के बीच मे काले बालों में गुलाब सी काकी की मुनिया दिखती…..
बाबू…काकी को पता था उनकी लेगिंग उधड़ चुकी है, उनके कपड़े अर्धपारदर्शी है फिर भी वो बड़ी मस्ती से वहाँ बैठ खाना बना ने मे लगी थी. अब अपुन लल्लू हो मगर चूतिये तो नही है ना…
कुछ कदम बढ़ाना पड़ेगा प्यारे…
“क…..क…..काकी….” अपुन टर्राए.
काकी आटा लगाते हुए बोली, “ हाँ लल्ला…..”
“आ…आ….आप का अकेले मन कैसे लगता है….”
काकी ने ठंडी साँस ली और बोली, “ बेटा अब किस्मत मे जो लिखा सो लिखा है……तेरे काका यूँह भी साल मे दो बार आते थे मगर ये घर भरा पूरा था इस लिए उनकी इतनी कमी नही खलती थी…..रूपा की देखभाल और घर खेत खलिहान मे ही दिन काट जाता था…..रात को ज़रूर उनकी बड़ी याद आती थी…..उनकी चिट्ठियें सीने से लगा की सोती थी बेटा…..”
“काका भी जल्दी चले गये…..काकी”
“हन बेटा….अभी उनकी उमर ही क्या थी…..45 पूरे ही हुए थे…”
“आप तो उनसे कितनी छोटी है काकी…..”
“हैं….बेटा…..मैं तो……अब मेरी उमर…देख जब रूपा हुई थी तो मैं थी 17 की……और रूपा हो गयी है 20 की तो देख ले मेरी उमर…..”
“काकी आ….आ….आप 17 साल की उमर मे ही मा बन गयी थी ?”
“हाँ तो बेटा……मेरी शादी तो कम उमर मे हो गयी थी….वो तो मांजी ने 2 साल मुझे इनसे अलग सुलाया नही तो ……”
“म….म….म…..मतलब काकी…..?”
काकी के चेहरे पर एक तिरछी मुस्कान खेल गयी, “अरे लल्ला….इतना भी नही समझे हो क्या…..राम शहर के छोकरे..यूँ तो बड़ा ज्ञान बघरे है…..है पूरे निख्खटू ….”
भेनचोद काकी ने अपुन को निख्खटू बोल दिया अभी बताता हूँ की कैसी मैं नीलू चाची की दरार को सुरंग बना रहा हूँ…
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RE: Hindi Porn Kahani फटफटी फिर से चल पड़ी
काकी ने हाथ छुड़ाने की कोशिश की मैने आगे झुक कर ज़ोर लगाया. काकी के पसीने से भीगे बदन से ऐसी खुश्बू आ रही थी की भेन चोद मेरा तो रोम रोम खड़ा हो गया. यह किसी सेंट की खुश्बू नही थी यह महक थी एक मादा की......जो गरमी में आयी हुयी है....वो खुशबु जो उसके पूरे बदन से उड़ उड़ कर आसपास के हर मर्द को बावला कर देती है.
मेरे नथुने गली की कुत्ते जैसे फड़कने लगे…बाबूराव तो एकदम तन्ना के पूरा सरिया हो गया,
इधर काकी ज़ोर लगाए जा रही थी की अचानक उनका बॅलेन्स बिगड़ा और वो मुड़े से फिसल कर पीछे की और गिर पड़ी . अब अपुन फुल ज़ोर लगा रहे थे और उनके दोनो हाथ पकड़ रखे थे, उनके पीछे गिरते है मेरा भी बॅलेन्स बिगड़ा और मैं उनके उपर ही आ गिरा.
अब सीन ऐसा की इधर काकी फर्श पर टाँगे चौड़ी किए गिरी हुई और उनके उपर अपुन.
अपना मुँह टी शर्ट मे फँसे उनके विशाल मॅमन पर……अपुन सिर्फ़ चड्डी पहने.
काकी चिल्लाई…..
“हाय राम……..उठ…….राम राम……छोकरे तूने….मुझे ही….”
एकदम से काकी चुप हो गयी……चड्डी मे तंबू बनाए अपना बाबूराव उनके पेट के निचले हिस्से पर गड़ रहा था. काकी खेली खाई औरत थी उनके ये समझने मे देर नही लगी की यह कड़क चीज़ क्या है.
काकी के बोबे तो नरम थे मगर उनके निप्पल फूल कर कुप्पा हो गये थे. अपना पूरा ध्यान उनके नरम मम्मो और कड़क निप्पल पे था और उनका ध्यान उनके पेट पर चुभ रहे मेरे सरिये पर….
काकी की साँसे तेज़ तेज़ चल रही थी और मेरी तो रेल के एंजिन जैसी चल रही थी. काकी अपना हाथ छुड़ा कर सीधे अपने पेट पर ले गयी और उनका हाथ सीधे मेरे सवा सात इंची लौड़े से जा टकराया.
“हाय राम………” वो चिल्लाई….
उनकी उंगलियाँ धीरे से मेरे बाबूराव पर कस गयी और वो फिर से बोली मगर अबकी बार उनकी आवाज़ फुसफुसाते हुए निकली थी….
“हाय……..राम…….”
“हाय राम….” काकी का यह फुसफुसाहट वाला हाय राम बहुत सेक्सी था ईमान कसम मेरे रोए रोए मे करेंट दौड़ गया.
काकी की उँगलियाँ अभी भी पाजामा मे तंबू बनाए मेरे बाबूराव को पकड़े थी. उन्होने अचानक बाबूराव को भींच लिया और मेरे मुँह से सिसकारी निकल पड़ी.
काकी ने एकदम से झटका खाया और बोली, “ उठ……जा……..उठ……”
और फिर ज़ोर से चिल्लई, “ अरे हट परे….निगोड़े …उठ……”
मेरी तो फटफटी चल पड़ी भाई
मैं तुरंत बबुआ जैसे उठ खड़ा हुआ. काकी कुछ पल ज़मीन पर ही पड़ी रही और उनकी साँसे धोंकनी जैसी चल रही थी, चेहरा लाल भभूक हो गया था. उनकी टाँगे अभी भी खुली हुई थी और फटे लेगिंग मे से झांकता झांटों का जंगल मुझे मुँह छिड़ा रहा था. मेरी नज़रें अभी भी काकी के बदन पर ही चिपकी थी. कसी हुई लेगिंग और मम्मो पर चिपकी शर्ट मे काकी कामदेव की लुगाई लग रही थी.
अपुन की हालत गैस पर उबलते दूध के जैसी थी की बस अब उफना. बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोक रखा था इच्छा तो हो रही थी की भेन चोद मा चुदाए दुनिया काकी के कपड़े तार तार कर दूं मगर …..
बस…..फटफटी
काकी ज़मीन पर लेटे लेटे बोली, “ ला….हाथ दे….”
मैने अपने हाथ आगे किया और काकी को उठाने लगा. काकी ज़ोर लगाकर उठी और झोंक झोंक मे मुझसे फिर टकरा गयी. बाबूराव फिर उनके जांघों पर रग़डी खा गया.
कसम उड़ान छल्ले की बाबू….चिंगारियाँ उड़ी चिंगारियाँ.
काकी ने लंबी लंबी साँसें ली और बोली, “ छोरे……तू…..क्या…….अरे राम….क्या बोलू………सुन…..यह सब…………ये…….. ठीक ना है…..तू आपे मे रह….”
और धीरे धीरे टटोलते हुए अपने कमरे मे चली गयी. अपुन को काटों तो खून नही. सारी ठरक उतार गयी भेन चोद .
मैने जैसे तैसे अपने आप को संभाला. मुझे भी लगा की यह तो चोद हो गयी यार….बिचारी अंधी …विधवा……मेरे बाप की काकी……मेरी दादी हुई रिश्ते मे……ये ग़लत है.
बुरा लगा यार.
फिर अपने अंदर का क्राइम मास्टर गोगो बोला की अगर ये सब ग़लत लगा तो काकी ने जो दो दो बार ग़लती से तेरा लौड़ा पकड़ा…..और वो खाट के नीचे जो माल ढोला उस पर काकी का हाथ लगा था क्या उनको नही पता की वो क्या था…..और जो सुबह सुबह फिर से लौड़े पर हाथ लगा दिया……अभी फिर लौड़ा पकड़ लिया….मसल दिया.
बाबू….सीन तो है मगर इतना सीधा नही.
अब क्या करू समझ नही आ रहा था तभी किवाड़ बजा. मैं तुरंत चिल्लाया “ कौन….?”
“छोटे बाबू….हम है हरिया…”
“हाँ ….बोलो….क्या काम है…?”
“अरे बाबू वो मालकिन तो ले जाने आए है……महादेव मंदिर मे अभिषेक रखे है ना अपने तरफ से…मालकिन ने दक्षिणा डी है तो परसाद…..और दर्शन….”
मैं गया काकी के कमरे के बाहर….और आवाज़ लगाई, “ काकी…….वो हरिया आया है मंदिर जाने का पूछ रहा है….”
अंदर से काकी की घुटि घुटि आवाज़ आई,” तू चला जा…….”
काकी रो रही थी शायद. मा की चूत यार ये क्या हो गया.
मैने खिड़की से झाँका काकी औंधे मुँह बिस्तर पर पढ़ी थी और उनका पूरा बदन हिल रहा था.
रो ही रही थी. अरे यार एक मिनट.....उनका हाथ उनके शरीर के निचे था और.......अबे वो हिल क्यों रही थी इतनी ज़ोर ज़ोर से....
मैं कंफ्यूज टाइप बाहर आया और किवाड़ खोला. हरिया उल्लू जैसा मुँह बनाए खड़ा था.
“मालकिन को देर है क्या…..?”
“ मालकिन की तबीयत ठीक नही है….वो नही आएगी…”
हरिया का मुँह लटक गया फिर एकदम खुश होकर बोला “ तो मलिक आप चलेंगे ……..चलिए खेत भी ले चलू…”
इसकी मा के भोस्डे मे घुस गया खेत…ये गांडू पागल है क्या…जब देखो खेत खेत.
मैने गुस्से से कहा, “ म….म….मंदिर चलो…..”
“जी भैया जी….”
मंदिर काफ़ी बड़ा और पुराना था. बढ़िया पूजा पाठ चल रहा था. हरिया ने पंडित जी से पूछा और बताया की अभी थोड़ा समय है पूजा ख़त्म होने मे. वो जाक्र 2-3 गाओं वालों के साथ बैठ गया जो सिला-लौड़ी पर कुछ हरा हरा पीस रहे थे.
मैने थोड़ी देर बैठा रहा. मारे गर्मी के गला सूखा जा रहा था. कुछ ही देर मे तो पसीने से भीग गया. मैने हरिया को आवाज़ लगाई और ठंडे पानी का पूछा.
“अरे छोटे भैया आप रुकिये तो सही…..ठंडाई बन जा रही है….गर्मी वर्मी सब गायब हो जाएगा…”
मैने पूछा, “ क्या….कैसी ठंडाई……?”
“ अरे छोटे भैया…..देखे नही सामने घोंट रहे है ना…..एकदम ठंडा ठंडा फ़ील करेंगे….”
वो चटपट एक ग्लास ले आया. ग्लास मे एक दो बर्फ के टुकड़े तैर रहे थे मैने थोड़ा सा सुड़का.
मस्त हरियाली छा गयी. ठंडी ठंडी ठंडाई मेरे गले को तर बतर करते करते नीचे उतरी. मानो जनम जनम की प्यास एक घूँट मे बुझ गयी. मैं सुड़क सुड़क कर पूरा ग्लास पी गया और हरिया से और माँगी.
हरिया खि खि करके बोला, “ नही….भैया…..अब आप रहने दीजिए…..ये गांव का ठंडाई बहुत भारी होता है….”
मैं मन मसोस के बैठ गया. ठंडाई इतनी शानदार थी के पूरे बदन मे चंचलाई आ गयी. मैं हाथ पीछे टेक कर आराम से पैर फैला कर बैठ गया. थोड़ी देर मे ठंडी ठंडी हवा के झोंके आने लगे. आंखे भारी भारी से होने लगी.
मैं कब तक ऐसे बैठा रहा मुझे याद न्ही. मैने आसमान देखा तो ऐसा मस्त झक नीला ..जैसा मैने आज तक नही देखा…..मेरा गला फिर से सूखने लगा.मैने पानी पीया और इधर उधर देख कर मुस्कुराने लगा. अचानक से मेरा मूड अच्छा हो गया था. मंदिर से आते मंत्र पूजा की आवाज़ ऐसी मधुर लग रही थी. मैने सोचा यार आज तक ना कभी आसमान इतना नीला दिखा और ना ही पूजा पाठ इतना अच्छा लगा.
मैने हरिया को आवाज़ दी भेन चोद …मेरी आवाज़ मेरे ही कानों में गूंजने लगी. मैने चोंक कर इधर उधर देखा. हरिया सामने बैठा बैठा मुस्कुरा रहा था.
“हम न बोले थे बाबू…..सहर की ठंडाई से बहुत अलग है गांव का ठंडाई ..”
इस भेन के लौड़े ने मेरेको भांग पीला दी मादरचोद
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