Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
12-09-2019, 12:06 PM,
#1
Information  Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
लेखक:- राजवीर/सतीश

मेरा अपने नये पाठकों से विनम्र निवेदन है कि कहानी से ठीक से तारतम्य बिठाने के लिए पहले मेरी पुरानी कहानि को एक बार पढ़ लें. कहानि पहले पढ़ लेने से आप को नयी कहानी का ज्यादा आनंद आयेगा, यूं नहीं भी पढ़ेंगे तो भी चलेगा.

!!अस्तु!!
!इति श्री पुरानी-कथा पुराण!

ख़ुशगवार अहसासों के जादुई रेशमी स्पर्श के बाद, हक़ीक़त की ख़ुरदरी सच्चाइयों का सामना करना वाकई में बहुत ही बेचैनी भरा होता है लेकिन इन सब के बीच जिंदगी मुतवातर अपने रास्ते पर आगे बढ़ती रहती है, मेरी भी बढ़ रही थी. जिंदगी के इस अनवरत प्रवाह में अभी बहुत सारे नए किस्सों ने आकार लेना है, अभी जाने कितने नये अफ़सानों की बुनियाद रखी जानी है, अभी कितनी जानी-अनजानी प्रेमगाथाओं ने मानव-इतिहास में अमर होना है लेकिन ये सब तो अभी नियति की कोख में भविष्य में सृजन होने की प्रक्रिया की कसौटी पर कसे जा रहे हैं.

प्रस्तुत कहानी ऐसी ही एक कथा का वर्णन है जिसका बीजारोपण तो अनजाने में कई साल पहले ही हो गया था लेकिन उस बीज़ को प्राणवायु प्रिया की शादी-समारोह में ही मिली. मेरी इस रचना में नायक-नायिका के मिलते ही काम-क्रिया में लिप्त हो जाना पसंद करने वाले पाठकों को वैसा ना हो पाने के सारांश में कोफ़्त तो बहुत होगी लेकिन जो पाठक काम-कथा में भावनात्मक और रचनात्मक आवेगों के गुण-ग्राहक हैं उन्हें ये कहानी खूब भायेगी … ऐसा मेरा विश्वास है.

एक बार फिर से अपने अफ़साने के सच्चा-झूठा होने का फैसला मैंने अपने पाठकों के विवेक पर छोड़ दिया है, अगर आप का मन इस को सच मानता है तो इसे सच जानें, अगर आपका मन इसको काल्पनिक मानता है तो इसे काल्पनिक ही मानें.
पेशे-ख़िदमत है एक अद्धभुत प्रेम-कथा के बीज के सालों पहले धूल-धूसरित होने और फिर कालांतर में उसमें से अंकुर पल्लवित होने से लेकर फ़ल के पकने और उस फ़ल की अद्धभुत लज़्ज़त चखने तक की … कच्चे-पक्के जज़्बातों और आधे-अधूरे अहसासों की पूरी दास्तान......सतीश


प्रिया से सपनों के साकार होने जैसे हसीन मिलन की रात के बाद से तो दिन ऐसे पंख लगा कर उड़े कि कब प्रिया की शादी सर पर आन पहुंची … पता ही नहीं चला. चूँकि मेरा घर प्रिया के मायके और ससुराल वाले घर के ऐन सेंटर में पड़ता था और शादी वाला होटल-कम-बैंक्वेट हॉल जोकि मेरे ही एक जानकार का था और जिसे मैंने बहुत कम पैसों में बुक करवा कर दिया था, वो भी मेरे घर से सिर्फ कोई एक-डेढ़ किलोमीटर दूर था. लिहाज़ा! प्रिया की शादी में सेंट्रल-पॉइंट मेरा ही घर था.

यूं तो मैं भाग-भाग कर जिम्मेवारी से प्रिया की शादी के काम निपटा रहा था लेकिन बार-बार मेरे दिल में प्रिया के मुझ से दूर चले जाने का सोच कर ही हूक़ सी उठती थी पर प्यार की रिवायत तो यही थी कि दिल का दर्द, दिल ही में रखना पड़ता है.
बकौल शायर ज़नाब सुदर्शन फ़ाकिर साहब
“होठों पे तबस्सुम हल्का-सा, आंखों में नमी सी ऐ ‘फ़ाकिर’ …
हम अहले-मुहब्बत पर अकसर ऐसे भी ज़माने आए हैं.”

प्रिया और मेरे सम्बन्धों के बारे में मेरी कहानी

हसीन गुनाह की लज्जत
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12-09-2019, 12:06 PM,
#2
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2

में पढ़ें!

ख़ैर! प्रिया के पापा, यानि मेरे साढू भाई के स्वर्गीय ताऊ जी के एक बेटे बहुत सालों से शिमला में सेटल्ड थे. उम्र थी कोई पैंसठ साल लेकिन खूब तंदरुस्त और हट्टे-कट्टे. मिलिट्री से अर्ली रिटायरमेंट लेकर शिमला में ही सरकारी ठेकेदारी में जम कर पैसे कूट रहे थे.
उनके दो बेटे थे (दोनों शादीशुदा) और एक अविवाहित बेटी थी … कोई पैंतीस-छत्तीस साल की और नाम था वसुन्धरा! वसुन्धरा सुधा से दो-एक साल छोटी थी.

प्रिया के पापा के ये फर्स्ट कज़न साहब अपनी पत्नी और बेटी वसुन्धरा समेत प्रिया की शादी से तीन दिन पहले से ही मेरे ही घर में अड्डा जमाये हुए थे.
सुधा तो इन लोगों से पहले भी एक-आध बार मिल चुकी थी लेकिन मैं इन सबको पहली बार ही मिल रहा था. वसुन्धरा पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगड़ से इंग्लिश लिट्रेचर में पी एच डी थी और डगशाई में किसी हाई-फ़ाई इंग्लिश स्कूल में वाईस-प्रिंसिपल थी.

डगशाई शिमला से कोई 60-62 किलोमीटर दूर सोलन ज़िले में एक छोटा सा, शांत सा हिल-स्टेशन है. चंडीगढ़-शिमला रोड पर धरमपुर से दायीं ओर साइड-रोड जाती है डगशाई को.

वहीं डगशाई में वसुन्धरा अकेली ही रहती थी. दीगर तौर पर महीने, डेढ़ महीने बाद वो शिमला चक्कर मार तो लेती थी लेकिन रहती डगशाई में ही थी … वो भी अकेली. पहाड़ी लोगों के विपरीत वसुन्धरा वैसे तो खुले-खुले हाथ-पैरों वाली, करीब 5’6″ लम्बी, गोरी-चिट्टी, क़दरतन एक खूबसूरत स्त्री थी लेकिन बन कर ऐसे रहती थी कि खुदा की पनाह! चेहरे पर कोई मेकअप नहीं, कोई क्रीम नहीं, होंठों पर कोई लिपस्टिक नहीं, भवों की कोई थ्रेडिंग नहीं, कोई नेल-पालिश नहीं, कोई मैनीक्योर-पैडीक्योर नहीं. शैम्पू-कंडीशनर से वसुन्धरा के सिर के बालों का शायद ही कभी वास्ता पड़ा हो.

वो सर में ढेर सारा तेल उड़ेल कर सारे बाल इस क़दर पीछे खींच कर चोटी करती थी कि … तौबा तौबा! माथे की सारी खाल दोनों भौहों समेत पीछे खिंच जाती थी. वसुन्धरा की दोनों कलाईयों पर ढ़ेरों बाल नुमाया थे तो यक़ीनन टांगों का भी यही हाल होगा. लगता था वसुन्धरा के लिए वैक्सिंग तो जैसे अभी ईज़ाद ही नहीं हुई थी … रही-सही कसर बोरीनुमा कपड़े की ड्रैस पहन कर निकलती थी.

ऊपर से कोढ़ में खाज़ की सी बात कि बला की दबंग, खुद-पसंद और बेहद बदतमीज़ थी. वसुन्धरा की भृकुटि हर वक़्त यूं तनी रहती कि जैसे उस की पेशानी पर स्थायी तौर पर 111 लिखा गया हो. हर किसी से उलझती थी. हर किसी को हर काम में “करो इसे नहीं तो …” वाली धौंस.
हर बात में मीन-मेख निकालना, हर शख़्स को बात-बात पर नीचा दिखाना वसुन्धरा का फुल-टाइम शुगल था.

यहां तो शादी वाला घर था, सौ तरह के काम थे. अब घरवाले हर मेहमान की पूंछ से चौबीसों घंटे तो नहीं बंधे रह सकते थे और वसुन्धरा थी कि बात-बात पर मुंह फुला लेती थी, हंगामा खड़ा कर देती थी.
उसकी मां उसको समझाती भी थी पर वसुन्धरा माने तब ना. एक मसला सुलझा नहीं कि दूसरा तैयार!

अब चूंकि घर मेरा था तो क़रीब-क़रीब सब बातों का नज़ला मुझ पर ही गिरता था. एक तो मुझ पर प्रिया की शादी के कामों की जिम्मेवारी, तिस पर प्रिया के मुझ से सदा के लिए दूर चले जाने का सदमा, ऊपर से इस वाहियात औरत के मुतवातार उलाहनों ने मेरा काफिया तंग कर रखा था.
पानी की टंकी खाली है, पिछली रात किसी ने मोटर नहीं चलाई तो जिम्मेवार मैं, प्रैस ठीक से गर्म नहीं हो रही तो जिम्मेवार मैं, बाथरूम में टूथ-पेस्ट नहीं मिल रही तो जिम्मेवार मैं, केटरर ने लंच लेट कर दिया तो जिम्मेवार मैं, किचन में कैचअपकी बॉटल में कैचअप ख़त्म हो गया है तो जिम्मेवार मैं, कॉफ़ी में चीनी कम/ज्यादा तो जिम्मेवार मैं.
मेरे 9 साल के लड़के को चेकोस्लोवाकिआ के स्पैलिंग नहीं आते है तो जिम्मेवार मैं.
और तो और … एक दोपहर को एक घंटे का पावर-कट लग गया तो भी जिम्मेवार मैं …
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12-09-2019, 12:06 PM,
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RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
हे भगवान! ऐसी खब्ती औरत मैंने जिंदगी में पहले न देखी थी. मेरे ही बैडरूम में, मेरे ही बेड पर अपनी माँ समेत अंदर से दरवाज़े लॉक कर के अगले दिन 8 बजे तक सोती थी और मैं बेचारा, सुबह-सबेरे बाथरूम जॉब्स निपटाने के लिए कभी बच्चों के रूम का दरवाज़ा खटखटाता, कभी गेस्ट रूम का. ऊपर से मोहतरमा तहज़ीब से ऐसी कोरी कि मैं और सुधा जैसे ही एकांत में बैठते तो घड़ी-घड़ी बिना दरवाज़ा नॉक किये दनदनाती हुयी बिना मतलब कमरे में आ घुसती. यूं तो मेरी और सुधा, दोनों की अंतरंग होने की ना तो कोई इच्छा होती, ना ही भरे-पूरे घर में ऐसा करने का कोई मौका होता लेकिन फिर भी वसुन्धरा का हम पति-पत्नी के बीच में बार-बार ऐसे काबिज़ होना तो अव्वल दर्ज़े का क़ाबिले-ऐतराज़ कुकर्म था. आते-जाते जब-जब मेरी निगाह उस से मिलती तो पूरी बेबाकी से मुझ से नज़र मिलाती और मुंह बिचका कर यूं होंठ चलाती जैसे मुझे कोस रही हो. दो दिन में ही मेरी बस करवा दी थी … उस कम्बख़्त सड़ी औरत ने.

प्रिया की शादी वाले दिन, 19 नवंबर वाली शाम को करीब 5 बजे सब घर-परिवार वाले होटल जाने को तैयार थे. जैसे ही घर से निकल कर सब अपनी-अपनी गाड़ियों में बैठे, वसुन्धरा मैडम ने हंगामा खड़ा कर दिया. मोहतरमा को पहले ब्यूटी-पॉर्लर जाना था … तैयार होने के लिए. यूं ब्यूटी-पॉर्लर था तो करीब एक किलोमीटर ही दूर लेकिन था शादी वाले होटल की एकदम उलटी दिशा में. दो घंटे पहले जब घर की बाकी की औरतें ब्यूटीपॉर्लर जा रही थी तो मैडम अपने लैपटॉप पर बिज़ी थी. अब इन्हें ब्यूटी-पॉर्लर जाना था और वहां जाने के लिए … मेमसाहब को एक शोफ़र-ड्रिवन कार चाहिए थी.

कारें तो कई खड़ी थी लेकिन समस्या ड्राईवर की थी, ड्राइवर कोई नहीं था. और कोई रास्ता न देख कर मैंने सुधा और बच्चों को किसी और की कार में एडजस्ट कर के होटल भेजा और खुद मैडम को ब्यूटीपॉर्लर ले जाने की कमांड संभाल ली. जब सुधा वाली कार नज़रों से ओझल हुई तो मैंने अपनी कार गेट पर लाकर खड़ी की और पोर्च में खड़ी वसुन्धरा को कार में बैठने को कहा और खुद घर में ताले लगाने अंदर चला गया. जी में तो आ रहा था कि तबियत से झाड़-झपड़ करूँ इसकी … लेकिन मेहमान थी, सो तहज़ीब का तकाज़ा था इसलिये चुप ही रहा मैं.

हालांकि मैं अंदर ही अंदर गुस्से में उबल रहा था लेकिन ऊपर से शांत दिखने की भरपूर कोशिश कर रहा था पर लगता था कि वसुन्धरा ने मेरा मूड भांप लिया था तो हाथ में शादी में पहनने वाले कपड़ों वाला मीडियम साइज़ का अटैची-केस ले कर चुपचाप कार की फ्रंट-पैसेंजर सीट पर आ बैठी. मैंने घर में तमाम जरूरी जगह ताले लगा कर मेनगेट बंद किया और कार की ड्राइविंग सीट संभाली.

अब हम दोनों को शादी वाले होटल की बिल्कुल उलटी दिशा में जाना था. पहली बार मैं और वसुन्धरा दोनों एकांत में इकट्ठे थे. मैंने कनखियों से वसुन्धरा की ओर देखा. गज़ब! वसुन्धरा के चेहरे पर तो हवाईयां उड़ रहीं थीं और जाने क्यों उसकी पेशानी पसीने से तर-ब-तर थी, नज़रें सहमी हुई हिरणी के मानिंद इधर-उधर भटक रही थी, कार की सीट के परले सिरे पर सिमट कर बैठी वसुन्धरा ने गोद में रखे हुऐ अटैची-केस का हैंडल दोनों हाथों से कस कर थाम रखा था.

सौ लोगों के हुज़ूम में अकेली दहाड़ने वाली शेरनी, ऐसे सहमी सी बैठी थी जैसे अदालत में एक ऐसा मुजरिम सहमा बैठा हो जिस को अभी … बस अगले ही पल सज़ा सुनाई जानी बाकी हो.

तभी मेरे दिमाग में बिजली सी कौंधी और एक ही पल में वसुन्धरा की झगड़ालू तबियत, सारी दबंगई, सारी बदतमीज़ी और इस वक़्त सहमी और छुई-मुई हो कर बैठी होने का राज़ समझ में आ गया. वसुन्धरा अहसास-ऐ-कमतरी का शिकार थी. अंग्रेज़ी भाषा में इन्फ़ीरियरिटी काम्प्लेक्स. इसी वजह से वो हर किसी को नीचा दिखाने की कोशिश करती रहती थी.
ख़ासी पढ़ी-लिखी थी तो अक्सर कामयाब भी रहती थी. यूं समझिये जैसे कि घोंघा … घोंघे का उपरी कवच बहुत सख़्त होता है, अक्सर दूसरे शिकारी जानवर घोंघे का कवच नहीं भेद पाते लेकिन बहुत सख़्त कवच के अंदर घोंघा बहुत ही नाज़ुक, बहुत ही कोमल होता है. यही हाल वसुन्धरा का था. रफ़-टफ़ अपीयरेंस, झगड़ालू तबियत, तमाम दबंगई, बदतमीज़ी और ब्रिटिश एक्सेंट में धारा-प्रवाह अंग्रेज़ी बोलना, ये सब वो सख़्त कवच थे जिनके पीछे एक नाज़ुक, छुई-मुई और सहमी सी वसुन्धरा विराजती थी और इस अलामत का कारण यक़ीनन वसुन्धरा का शादीशुदा ना होना था.
!
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12-09-2019, 12:06 PM,
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RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
आज भी हमारे देश में अक्सर शादी के बाज़ार में जहां लड़कों की अहमियत का पैमाना सिर्फ उनकी पैसा कमाने की क़ूवत से नापा जाता है, वहीं लड़की की सिर्फ़ शारीरिक सुंदरता को तरज़ीह दी जाती है. लड़का चाहे +2 पास/फेल हो लेकिन अगर बिज़नेस में दो तीन लाख़ रुपया महीना कमाता हो तो उसको सी ए, एम बी ए, कॉलेज की प्रोफ़ेसर, यहां तक कि आई ए एस, पी सी एस लड़की भी आम मिल जाती है.

वर-वधू की कुंडलियाँ तो मिलाई जाती हैं लेकिन वर-वधू की मानसिक-अनुकूलता की किसी को कोई परवाह नहीं रहती. जो लड़कियां समझौता कर लेती हैं वो सारी उम्र अंदर ही अंदर कुढ़ती रहती हैं और जो लड़कियां विद्रोह करती हैं, उन लड़कियों की अमूमन शादी देर से या बहुत देर से होती है. बहुत ज़हीन, बहुत ज़्यादा पढ़ी-लिखी और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर लड़कियों की ये प्रॉब्लम बहुत आम है.

अक्सर शादी में हो रही देर लड़कियों के मन में एहसास-ऐ-कमतरी यानि हीन भावना को जन्म देती है जो लड़कियों को या तो डिप्रेशन में ले जाती है या फिर दबंग और बद्तमीज़ बना देती है. वसुन्धरा को कुदरत ने या फिर खुद वसुन्धरा ने, दबंग और बद्तमीज़ बना दिया था लेकिन इस में एक लोचा था. जिन लोगों को ऐसी लड़कियों का अवचेतन मन पसंद करता है या जिन लोगों की ख्वाहिश करता है, उनको सबके बीच तो नीचा दिखाती है लेकिन उन लोगों के आगे एकांत में, बे-ध्यानी में ऐसी लड़कियों की सारी दबंगई और बदतमीज़ी का कवच एक ही क्षण में खील-खील हो जाता है.
सीधी-सादी भाषा में इस का यही मतलब निकलता था कि वसुन्धरा मन ही मन मुझे पसंद करती थी. पिछले तीन दिन में वसुन्धरा की मेरे साथ की सारी बद्तमीज़ियां और उनके कारण अब मुझे आईने की तरह साफ़ थे.

“हाँ … हाँ यही बात है!” वसुन्धरा के बारे में सोचते हुए और ख्यालों में उलझे हुए मेरे मुंह से ये शब्द निकल गए.
“आपने मुझसे कुछ कहा?” वसुन्धरा पहली बार मुझ से सीधे मुख़ातिब थी. हालांकि वसुन्धरा की पलकें तो झुकी हुई थी लेकिन आवाज़ में हल्की सी सत्तात्मक लरज़ बता रही थी कि शेरनी वापिस चैतन्य हो रही थी.
“जी नहीं! मैं कुछ सोच रहा था, बेख्याली में मेरे मुंह से कुछ लफ्ज़ निकल गए … सॉरी!” मुझे खुद ही अपनी आवाज़ बहुत नर्म, बहुत कोमल सी लगी.

मामले की जड़ समझ में आने पर अब मेरा वसुन्धरा के प्रति गुस्सा कम हो चुका था … कम क्या हो चुका था, ख़त्म ही हो चुका था.
मेरे लहज़े की असाधारण कोमलता को वसुन्धरा ने भी महसूस किया और चौंक कर मेरी ओर देखा. क्षण भर को निगाहों से निगाहें मिली, तत्काल ही वसुन्धरा ने अपनी आँखें झुका ली. मैंने भी अपनी निगाहें वापिस सामने सड़क पर जमा ली.

यूं मेरा इरादा मेरे हक़ में पलटी इन परिस्थितियों का कोई फायदा उठाने का क़तई नहीं था लेकिन किसी लड़की का … किसी गैर लड़की का अपने प्रति ऐसा अनुरागात्मक रवैया मन में कहीं गुदगुदी सी तो कर ही रहा था.
पुरुष दम्भ … ये तो है ही!
यक-बा-यक बिला-वज़ह ही फिज़ा खुशगवार सी हो चली थी और वसुन्धरा भी कुछ सहज़ सी दिखने लगी. वसुन्धरा के हाथ अब अटैची-केस के हैंडल से हट चुके थे और अब वो सहजता से सीट की पुश्त से पीठ लगाए, गोदी में रखे अटैची-केस पर अपने दोनों हाथ टिकाये बाएं हाथ की तर्जनी उंगली पर दायें हाथ से दुपट्टा लपेट-खोल रही थी.

“आई ऍम सॉरी!” अचानक ही सर नीचा कर के बैठी वसुन्धरा ने सरगोशी सी की.
“किस लिए?” मैंने पूछा, हांलाकि मुझे बिल्कुल ठीक-ठीक अंदाज़ा था कि वसुन्धरा किस बारे में बात कर रही थी.
“मैंने रंग में भंग डाला.” वसुन्धरा की आवाज में कंपन था.
“आप ऐसा क्यों सोचती हैं?” मैंने पूछा.
“क्योंकि … ऐसा ही है. मुझे पता है और मेरे कारण आप भी सज़ा भुगत रहें हैं.” कहते-कहते वसुन्धरा की नम आँखें ऊपर कार की छत की ओर उठ गयी और आवाज़ भर्रा गयी.
“वसुन्धरा जी! आप गलत सोच रहीं हैं. मैं कसम खा के कहता हूँ कि … आपका साथ मेरे लिए सज़ा नहीं, मस्सर्रत का वाईज़ है.”
वसुन्धरा ने बड़ी हैरतभरी नज़रों से मेरी ओर देखा और आँख मिलते ही मैं निर्दोष भाव से मुस्कुराया.

ख़ैर! बात ज्यादा हुई नहीं. मैंने वसुन्धरा को ब्यूटी-पार्लर के गेट पर उतारा और उसको “जैसे ही आप तैयार हो जायें, मुझे सैल पर कॉल कर दें, मैं आप को लेने आ जाऊंगा.” की हिदायत देकर वापिस शादी वाले होटल की ओर उड़ चला.
सब उलझनें सुलझ गयी थी लेकिन एक गिरह अभी भी नहीं खुली थी. क्या भा गया था वसुन्धरा को मुझमें? क्यों वसुन्धरा मुझे पसंद करने लगी थी? अभी जुम्मा-जुम्मा कुल दो ही दिन की तो मुलाक़ात थी हमारी और कोई मर्द चाहे कितने भी आकर्षक व्यक्तित्व का मालिक क्यों न हो, इतनी जल्दी तो कोई लड़की उस पर फ़िदा नहीं होती. ऊपर से मैं शादीशुदा, बाल-बच्चेदार आदमी, अपनी पत्नी के सिवा न तो किसी और स्त्री को किसी भी तरह के भविष्य की गारंटी दे सकता था और न ही किसी भी तरह के भावनात्मक-सम्बंध निभा सकता था. ये बात वसुन्धरा बड़ी अच्छी तरह से जानती थी … तो भी? चक्कर क्या था? कोई न कोई तो ऐसी बात जरूर थी जिस का अभी मुझे इल्म नहीं था, इसी उधेड़-बुन में डूबता-उतरता मैं शादी वाले होटल वापिस पहुँच गया.

लम्बी कहानी कई भागों में जारी रहेगी.
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12-09-2019, 12:06 PM,
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RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
लड़की की शादी में अचानक ढेरों काम ऐसे निकल आते हैं जिनका पहले से पता नहीं होता, जिनकी कोई तैयारी नहीं होती.

सात बजते- न बजते किसी को ध्यान आया कि अभी तक फ़्लोरिस्ट दोनों जय-मालायें समेत मिलनी वाले हार नहीं दे कर नहीं गया है. दुल्हन की मां ने ‘अभी तक जय-मालाएँ नहीं आयीं हैं, कुछ कीजिये.” का नारा मुझे सुना कर अपने कर्तव्य की पूर्णाहूति दे ली.

अब शादी प्रिया की हो रही थी, मेरे शहर में हो रही थी ऊपर से मेरी रहनुमाई में हो रही थी और मैंने अपने जान-पहचान वाले फ़्लोरिस्ट से जय-मालाएं और बाकी हार बुक किये थे, इसलिए अब यह कार-सेवा तो मुझे ही करनी थी.
मैंने आनन-फ़ानन गाड़ी उठायी और फ़्लोरिस्ट की तरफ निकल पड़ा.

अभी मैं फ़्लोरिस्ट को जय-मालाएँ लेकर पैसे दे ही रहा था कि ब्यूटी-पार्लर से वसुंधरा का मैसेज आ गया. मैं लगभग उड़ता हुआ ब्यूटी-पार्लर पहुंचा. वहां पहुँच कर जैसे ही मैंने एक बार हॉर्न बजाया, तत्काल वसुंधरा ब्यूटी-पार्लर से बाहर निकल आयी. मैंने वसुंधरा की ओर देखा. हे भगवान! ये मैं क्या देख रहा था? या तो मैं पहले अंधा था या अब हो गया था. वसुंधरा का तो कायाकल्प हो गया था.

ढ़ाई-तीन इंच ऊँचे जूड़े पर पिन की हुई ओढ़नी के साथ लगभग 5’9″ की दिख रही वसुंधरा साक्षात रति का अवतार लग रही थी.
चेहरे के दोनों तरफ़ कन्धों तक लहराती दो घूँघरदार काली लटें, माथे पर सोने का टीका, कमानदार तराशी हुई भवें, पेशानी पर गुलाबी बिंदी के बीच दहकते हुए लाल रंग की बिंदी, बड़ी-बड़ी भावपूर्ण आंखें, गुलाबी कपोल, गुलाब की पंखुड़ी जैसे तराशे हुए सुडौल होंठों पर गहरी लाल रंग की लिपस्टिक, रोम-विहीन दोनों बाजुओं में भरी-भरी लाल-गुलाबी चूड़ियाँ, दोनों हाथों पर ताज़ी लगी मेहँदी, सभी नाखूनों पर गुलाबी नेल पॉलिश, जड़ाऊ काम और डीप-कट वाली बेबी-पिंक गुलाबी चोली पहने, जिसमें वसुंधरा के दोनों उरोज़ असाधारण तौर पर उन्नत प्रतीत हो रहे थे.

भारी सलमा-सितारों से झिलमिलाती बेबी-पिंक चुनरी पर दबके के काम वाले प्योर सिल्क के बेबी-पिंक लहंगे और लाल-गुलाबी तिल्ले की कढ़ाई वाली पिंक रंग की बिना हील की फ़्लैट बैली में, मेरे अंदाज़े मुताबिक़ 38-28-38 फ़िगर के साथ अपने दोनों हाथों से अपने कूल्हों के दोनों तरफ से एक ऊंगली और अँगूठे की चुटकियों में लहंगा थोड़ा ऊपर उठाये एक मुजस्सिम हुस्न की मल्लिका अपनी शाही चाल से मेरी ओर बढ़ी चली आ रही थी और मैं टिकटिकी लगाए वसुंधरा को निहार रहा था.

अब पता नहीं एक मिनट बीता या एक घंटा या एक युग. जरूर योग में ऐसी ही अवस्था को समाधि कहते होंगे जहां ना खुद की खबर होती है, न जग की. जहां योगी परम-आनंद में लिप्त रहता है, न दीन, न दुनिया … न दुःख, न सुख … न आत्मा, न परमात्मा … जहां सिर्फ़ आनंद विराजता है … केवल आनंद!

“क्या देख रहे हैं?” मुदित भाव से वसुंधरा ने कार के करीब आकर ड्राइवर साइड थोड़ा झुक कर मुझ से पूछा.
यह एक ऐसा सवाल है जिसका ज़वाब हर स्त्री को पहले से ही अच्छे से पता होता है लेकिन फिर भी वो अपने चाहने वाले से पूछती है … बार-बार पूछती है.
लेकिन यहां तो मैं अपनेआप को वसुंधरा का चाहने वाला भी तस्लीम नहीं कर सकता था.

मेरे परवरदिगार! तू क्यों मुझे बार-बार झंझट में डाल देता है. माना कि दीदार-ऐ-हुस्न की रहमत तो तूने इस नाचीज़ पर दोनों हाथों से लुटाई है लेकिन दीद से तो प्यास जगती है, बुझती नहीं. अब प्यास बुझने की दुआ मांगू तो बेसब्र, लालची और नाशुक्रा कहलाऊँ. अब तो तू ही कोई रास्ता निकाले तो निकले.

“क्या हुआ?” वसुंधरा ने दोबारा शोख़ अदा से पूछा.
वसुंधरा के जिस्म से उठती हुई नशीली गंध मेरे होश उड़ाये दिए जा रही थी.

“आप नहीं समझेंगी.” मैंने हल्का सा उच्छश्वास लेते हुए नोट किया कि ऐसा सुनते ही वसुंधरा की आँखें चंचल हो उठी और होंठों के कोरों पर हल्की सी मुस्कान आ गयी थी. औरतों की छठी इंद्री उन्हें सब बता देती है. मेरी ज़ेहनी हालत की बाबत वसुंधरा को सब कुछ ठीक-ठीक पता था और वो मेरी हालत पर मन ही मन आनंदित हो रही थी.

तभी ब्यूटी-पार्लर के दरबान ने कार की पिछली सीट पर वसुंधरा का पुराने कपड़ों से भरा अटैची-केस रख कर दरवाज़ा बंद कर, फ्रंट का पैसेंजर साइड का दरवाज़ा खोल दिया और वसुंधरा भी कार के आगे से घेरा निकाल कर फ्रंट पैसेंजर सीट पर आ कर बैठ गयी.

वसुंधरा चौदहवीं के चाँद के मानिंद चमक-दमक रही थी लेकिन जैसे चाँद में भी दाग होता है वैसे ही इस मुज्जसिम हुस्न में भी एक कमी थी और वसुंधरा को शायद इसका एहसास नहीं था लेकिन मैंने वो कमी पकड़ ली थी.
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12-09-2019, 12:07 PM,
#6
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
वैसे तो वसुंधरा मेहँदी-लगे हाथों से एक उंगली और अँगूठे की चुटकियों से दायें-बाएं से अपना लहंगा उठाये हुए थी लेकिन जैसे ही वो मेरी कार की जलती हेड-लाइट के आगे से गुजरी तो मैंने नोट किया कि वसुंधरा के लहँगे के सामने ज़रा सा बायीं ओर, जहां से लहंगे का नाड़ा बाँधते या खोलते हैं, वो झिर्री कम से कम छह-सात इंच लम्बी थी. आमतौर पर लहंगों की ऐसी झिर्रियों में टिच-बटन या हुक-बटन लगे रहतें हैं जिन्हें सुविधा अनुसार बंद कर लिया या खोल लिया जाता है पर लगता था कि वसुंधरा के लहँगे में कुछ गड़बड़ थी और जैसे ही वसुंधरा अपना दायां पैर आगे बढ़ाती तो वो छह-सात इंच की झिर्री का मुंह खुल जाता जिस से वसुंधरा के बायीं ओर बैठे या खड़े व्यक्ति को वसुंधरा की पेंटी की झलक समेत वसुंधरा की दायीं दूधिया जांघ दूर तक नग्न दिखाई देती, जैसे मुझे दिखाई दी थी.

सूरत-ऐ-हाल बहुत तफ्तीशनाक थी और वसुंधरा को इस का क़तई इल्म नहीं था. ऐसे तो शादी के फ़ंक्शन में वसुंधरा का जलूस निकल जाता जो मुझे मंज़ूर नहीं था.
“ये आपकी मेहँदी?” मैंने वसुंधरा से पूछा.
“साढ़े आठ-पौने नौ बजे धो दूँगी.” मैंने घड़ी देखी, पौने आठ हुए थे.

मैंने तत्काल फैसला ले लिया और कार घर की ओर भगा दी. आन की आन में हम घर पहुँच गए. घर की चाबियां मेरी जेब में ही थी. मैंने मेनगेट का ताला खोला और कार पोर्च में ले जा कर खड़ी की और कार का वसुंधरा वाली साइड का दरवाज़ा खोला और उससे कहा- आइये.
“हम घर क्यों आये हैं … कुछ रह गया क्या?” वसुंधरा ने कार से उतरते हुए उलझन भरे स्वर में पूछा.
“जी! दो मिनट का काम है.”

अब समस्या यह थी कि वसुंधरा की सच्चाई से कैसे अवगत करवाया जाए? तब तक हम ताला खोल कर लिविंग रूम में आ चुके थे. मैं वसुंधरा से आँख नहीं मिला पा रहा था. तभी मुझे एक तरीका सूझा. मैंने अपने बैडरूम के ड्रेसिंगरूम में ड्रेसिंग-टेबल की जगह मैंने एक दीवार पर 6′ x 6’ का आइना लगवाया हुआ था और अगर वसुंधरा उस आईने में खुद को निहारती तो यक़ीनन उस ने अपने लहंगे की उस कमी को पकड़ ही लेना था.

“आइये.” मैंने बैडरूम की तरफ बढ़ते हुए मुड़ कर वसुंधरा से कहा.
“लेकिन … इधर कहाँ?” एकांत में दबंगई और अहंकार का कवच फिर से टूट गया था और एक बार फिर से डरी-सहमी वसुंधरा मेरे रु-ब-रु थी.

“घबराइये नहीं! प्लीज़ आइये.” मेरे लफ़्ज़ों में बला का आत्म-विश्वास पा कर वसुंधरा बिना कुछ बोले मेरे पीछे-पीछे मेरे बैडरूम में आ गयी. ड्रेसिंगरूम में आ कर मैंने ड्रेसिंगरूम की सभी लाइट्स ऑन कर दी और वसुंधरा को बहुत आहिस्ता से कंधे से पकड़ कर आईने के सामने कर दिया.
“मैं बेडरूम में हूँ, आप यहां खुद को अपनी ही पारखी नज़र से एक नज़र निहारिये, ख़ास तौर पर अपने लहंगे को आगे से … बायीं ओर से. ” कह कर मैं बाहर निकल आया.
एक मिनट में ही वसुंधरा ड्रेसिंगरूम से बेडरूम में आ गयी.
“अब क्या करें?” एक डरी-सहमी सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी.

ये सवाल ही बताता था कि वसुंधरा ने लहंगे की कमी पकड़ ली थी. मैंने नज़र उठा कर देखा तो वसुंधरा की नज़रें अपने ही पैरों पर थी. सारे हालात पर गौर करने के बाद यक-बा-यक मेरी हंसी छूट गयी. वसुंधरा ने चौंक कर सर उठाया और गिला करती आँखों से मेरी ओर देखा.

“आप मेरा मज़ाक उड़ा रहे हैं?” शिकायती लहज़े में वसुंधरा ने मुझ से पूछा.
” न … न वसुंधरा जी! बिल्कुल नहीं. दरअसल मुझे हँसी इस बात पर आयी कि इस सब में … न तो गलती आप की, न ही मेरी और हम दोनों एक दूसरे से आँखें चुरा रहे हैं … भगवान् जाने क्यों. बस! यही सोच कर मुझे हंसीं आ गयी.” अचानक ही सारा वातावरण सहज़ हो गया और वसुंधरा के होठों पर भी मुस्कान आ गयी.

“आप के पास कोई दूसरी फ़्रेश ड्रेस है?” मैंने पूछा.
“शादी के फ़ंक्शन में पहनने लायक तो नहीं.”
“ओके! तो इसी को ठीक करना होगा. आप एक काम कीजिये! मैं बाहर जाता हूँ … आप कैसे भी कर के अपना लहंगा उतार कर मुझे बाहर दे दीजिये, मैं सीऊंग मशीन पर इसको दो सिलाइयाँ मार देता हूँ , आप पहनिए और फिर हम चलें.” कह कर मैं बैडरूम से बाहर आ गया. मुझे पता था कि सुधा अपनी सिलाई-मशीन बच्चों के कमरे में रखती है. दो सीधी सीधी सिलाइयाँ हो तो मारनी हैं, इसमें कौन सी रॉकेट-साइंस है.

लेकिन अभी तक तो लहंगा भी बाहर नहीं आया था.
“वसुंधरा जी! सब ठीक है?” मैंने बाहर से गुहार लगाई.
“आप एक मिनट! ज़रा अंदर आयें … प्लीज़!” वसुंधरा की धीमी सी इल्तज़ा मुझे सुनाई दी.
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12-09-2019, 12:07 PM,
#7
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
मैंने झिझकते-झिझकते बैडरूम में कदम रखा. वसुंधरा परेशान सी मेरी ओर पीठ कर के खड़ी थी और अभी पूरे कपड़ों में ही थी.
“जी … कहिये?”

हुआ क्या था कि जल्दी-जल्दी करने की हड़बड़ी में वसुंधरा ने लहंगे के नाड़े में गाँठ लगा ली थी. एक तो उसके हाथों में मेहँदी लगी हुई थी, ऊपर से लहंगे का नाड़ा रेशमी. जैसे-जैसे वसुंधरा ने जोर लगा कर नाड़ा खोलने की कोशिश की, वैसे-वैसे गाँठ और कसती गयी और अब तो हालात पूरी तरह वसुंधरा के काबू से बाहर हो गए थे.

मैंने मामले की नज़ाकत समझी और वसुंधरा के निकट एक घुटना ज़मीन पर टेक कर बड़े सब्र से, धीरे-धीरे एक-एक रेशा खींच कर नाड़े की गाँठ खोलनी शुरू की. वसुंधरा तो अपने दोनों हाथों पर ताज़ी मेहँदी लगी होने के कारण मेरी कुछ भी मदद करने में सर्वथा असमर्थ थी.
बीच में मैंने दो-एक बार सर उठा कर ऊपर देखा तो वसुंधरा की आँखों को बंद पाया. यदा-कदा मेरी उंगलियां वसुंधरा की नंगी कमर को छू जाती तो मेरे और वसुंधरा के पूरे बदन में कंपकपी की एक लहर दौड़ जाती.

मेरी आँखों की सीध में तीन-चार इंच दूर वसुंधरा की नाभि थी. मैंने नोट किया कि वसुंधरा का पूरा गोरा पेट बिल्कुल सपाट और अंदर को धंसा हुआ था, जरूर वसुंधरा नियमित तौर पर जिम जाती थी या प्राणायाम जैसा कोई योगा करती थी, नहीं तो … कोई नियमित कसरत नहीं करने वाले पतले लोगों में भी अक्सर नाभि के नीचे पेट थोड़ा सा बाहर को निकला ही रहता है.
हल्के रेशमी रोमों की एक रेखा वसुंधरा की नाभि से नीचे की ओर बढ़ती हुई लहंगे के नाड़े के नीचे जाकर अदृश्य हो गयी थी. अचानक ही मेरे मन में एक वहशी ख़्याल आया कि आज वसुंधरा ने वैक्सिंग करवाते हुए क्या प्यूबिक एरिया की वैक्सिंग भी करवाई होगी या नहीं?

वसुंधरा की बालों रहित योनि का तस्सवुर करते ही अचानक से मेरे लिंग में भयंकर तनाव आ गया. मैंने अचकचा कर ऊपर देखा तो पाया कि वसुंधरा की आँखें तो अभी भी बंद ही थी, उल्टे अब तो वसुंधरा की सांसें भी कुछ-कुछ भारी हो चली थी और उस का निचला होंठ रह-रह कर लरज़ रहा था.

उसके जिस्म से उठती सौंधी-सौंधी मादक सी ख़ुश्बू मेरी कल्पना की परवाज़ को किसी और ही धरातलों पर लिये जा रही थी. दो सुलग़ते हुऐ जवां ज़िस्म, ये नज़दीकियां और सबसे क़ातिल तो यह तन्हाई … आसार अच्छे नहीं थे.
मैंने और वसुंधरा दोनों ने इस बाबत एक-दूजे से एक भी लफ़्ज़ सांझा नहीं किया था लेकिन आदिमकाल से चली आ रही आदम और हव्वा की एक-दूजे के लिए प्यास, एक-दूजे से बराबर राब्ता कायम किये हुए थी और दोनों जिस्मों को अपनी-अपनी जरूरतों का अच्छे से पता था. पर हम मानव, सभ्य समाज में रहते हैं और समाज की कुछ वर्जनायें, कुछ बंदिशें होती हैं जोकि सबको माननी ही पड़ती हैं. सारे घर वाले शादी अटेण्ड करने को होटल में, घर का मालिक बंद घर में … घर की मेहमान स्त्री के साथ बैडरूम की गहन तन्हाई में, मेहमान स्त्री के लहंगे का नाड़ा खोल रहा हो तो कोई क्या समझेगा? तत्काल मेरी तमाम काम-विकलता जाती रही.

हे दाता! ये किस झँझट में फंस गया मैं? अब तो यहां से जल्दी से जल्दी निकल भागने में ही भलाई थी पर नाड़े की गाँठ तो अभी भी नहीं खुली थी.
“वसुंधरा!” मैंने उसको पुकारा और बेख़ुदी ऐसी कि मैं उसके उस के नाम के साथ ‘जी’ लगाना ही भूल गया.
“जी!” पल भर में ही सपनों की दुनिया से वसुंधरा भी तत्काल हक़ीक़त के कठोर धरातल पर आ गयी.
“ये तो इशू हो गया है, नॉट तो खुल ही नहीं रही … क्या करें?”

“ऑप्शंस?” वसुंधरा का तेज़ दिमाग अपनी पूरी बानगी में आता जा रहा था.
“ऑप्शंस भी लिमिटेड ही हैं “. मैं तेज़ी से दिमाग दौड़ा रहा था. किसी भी क्षण होटल से कोई आ सकता था, सुधा या किसी और का फ़ोन आ सकता था.
” लाईक?”
“चेंज द ड्रैस ”
“रुल्ड-आउट!”
“कीप ऑन ट्राइंग टू अन-डन दी नॉट.”
“से समथिंग बैटर देन दैट.”
“फिर तो एक ही चारा बचा है और मुझे पता नहीं कि यह आप को पसंद आएगा या नहीं. ” मैंने झिझकते-झिझकते कहा.
“अरे! बोल भी दीजिये …” आवाज़ में सत्ता की गूंज बराबर थी.
“नाड़ा काट देते हैं, लहंगा रिपेयर कर के नया नाड़ा डालते हैं और चलते हैं. कुल पांच मिनट का काम है. कहिये! क्या कहती हैं आप?”

क्षणभर के लिए जैसे सारी कायनात में चुप्पी सी छा गयी.
“यू श्योर दैट्स द बेस्ट आईडिया वी हैव?”
“अनटिल यू सज़ेस्ट समथिंग बैटर!”
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12-09-2019, 12:07 PM,
#8
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
“फिर तो एक ही चारा बचा है और मुझे पता नहीं कि यह आप को पसंद आएगा या नहीं.” मैंने झिझकते-झिझकते कहा.
“अरे! बोल भी दीजिये …” आवाज़ में सत्ता की गूंज बराबर थी.
“नाड़ा काट देते हैं, लहंगा रिपेयर कर के नया नाड़ा डालते हैं और चलते हैं. कुल पांच मिनट का काम है. कहिये! क्या कहती हैं आप?”

क्षणभर के लिए जैसे सारी कायनात में चुप्पी सी छा गयी.
“यू श्योर दैट्स द बेस्ट आईडिया वी हैव?”
“अनटिल यू सज़ेस्ट समथिंग बैटर!”
वसुंधरा ने सारे हालात पर कुछ क्षण सोचा, फिर बोली- नया नाड़ा कहाँ से मिलेगा? नाड़ा कौन काटेगा? आप रिपेयर कर के मुझे लहंगा कितने समय में लौटायेंगे? मैं लहंगे के बिना कहाँ रहूंगी?”
हे भगवान्! फिर से वही पुरानी सड़ियल वसुंधरा जागने क़ो थी.

“नया नाड़ा तो मैं अभी अपने वॉर्डरोब में से निकाल लाता हूँ और साथ में कैंची भी. मैं खुद बैडरूम से बाहर चला जाता हूँ. आप अपने लहंगे के नाड़े की गाँठ काट दें और अपना लहँगा ज़मीन पर ही छोड़ कर ड्रेसिंगरूम में चली जाएँ और मुझे वहीं से आवाज़ दें. मैं आकर नया नाड़ा और आपका लहंगा उठा कर ले जाऊंगा, बच्चों के कमरे में जा कर लहंगे पर सुइंग मशीन से दो सीधी सलाईयां मार कर, नया नाड़ा लहंगे में पिरो कर, लँहगा बैडरूम में रख कर कर वापिस बाहर चला जाऊंगा. आप अपना लहंगा पहनिये और हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी वापिस.”

“नहीं नहीं! मेरे तो हाथों में मेहँदी लगी हुई है, मैं कैंची कैसे हैंडल करुँगी, नाड़े की नॉट कैसे बांधूगी?” वसुंधरा ने सवाल दागे.
” तब तो एक ही चारा है.”
” न न … बिल्कुल नहीं.” मेरा मंतव्य समझ कर वसुंधरा कुछ-कुछ विरोध-भरे स्वर में बोली, हालांकि उस विरोध में ‘न’ की मात्रा तो बस नाममात्र ही थी.
“तो आप ही बताएं … क्या करें?” इसके आगे बहस बंद थी क्योंकि इस बात का कोई जवाब था ही नहीं.

मैंने वॉर्डरोब से कैंची उठायी और सुधा के एक सूट की सलवार में से नया नाड़ा खींच कर अपने कंधे पर लटकाया और वसुंधरा के सामने आ खड़ा हुआ.

“आप अपनी आखें बंद कीजिये पहले!” वसुंधरा ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा.
“अरे! कमाल करती हैं आप! मुझे कैंची चलानी है और आप हैं कि मुझे आखें बंद करने को कह रही हैं, आखें बंद करके मैं नाड़ा कैसे काटूंगा? कहीं कैंची आपको लग गयी तो?”
” तो … तो मैं क्या करूँ? ऐसे तो मुझे शर्म लगती है.” अपनी आला ज़ेहनी-कूव्वत से दुनिया-जहान की सिटी-पिट्टी गुम कर देने वाली एक पढ़ी-लिखी, आला दिमाग की मालिक़, वॉइस-प्रिंसिपल साहिबा को अपनी छोटी सी समस्या का कोई कारआमद हल नहीं सूझ रहा था.

इधर काम-संवेदनाएँ फिर सिर उठाने लगी थी और मेरे लिंग में फिर से तनाव आना शुरू हो गया था.

“आप ऐसे करें कि आप अपनी आँखें बंद कर लें और मुझे अपना काम करने दें.” कह कर मैंने अपने बाएं हाथ से वसुंधरा के लहंगे के नाड़े को उठा कर जरा सा अपनी ओर खींचा ताकि लहंगे का नाड़ा, गिरह के एकदम पास से कैंची के खुले मुंह की निचली बाजू और कैंची की ऊपर वाली बाजू के बीच में आ जाए लेकिन इस चक्कर में वसुंधरा बिल्कुल ही मेरे साथ आ सटी.

वसुंधरा के गर्म जनाना जिस्म से उठती गर्मी को मैं अपने पूरे शरीर में महसूस कर रहा था. वसुंधरा के तने हुये दोनों उरोजों के बीच की घाटी मेरी नासिका से ऐन नीचे थी. मेरे पूरे बाएं बाज़ू को वसुंधरा के शरीर ने दबा रखा था. बायीं बाज़ू पर, कंधे से थोड़ा नीचे वसुंधरा के उरोजों का अतिरिक्त दवाब पड़ रहा था. अब चूंकि मेरे बाएं हाथ ने लहंगे के नाड़े वाला हिस्सा छोड़ दिया था तो मेरा बायां हाथ लटक कर वसुंधरा की दोनों जांघों के बीच आ गया था और मैं अपनी बायीं हथेली के पृष्ट भाग पर वसुंधरा की योनि से निकलती ऊष्मा स्पष्ट महसूस कर रहा था.

मैंने देखा कि वसुंधरा के जिस्म के सारे रोएं अचानक ख़ड़े हो गए थे. वसुंधरा के चेहरे की ओर देखा तो पाया कि वसुंधरा की दोनों आँखें बंद थी, भृकुटि में हल्की सी एक सिलवट थी, लिपस्टिक लगे होंठों में रह-रह कर थरथराहट हो रही थी. मेहँदी-रचे दोनों हाथों से दोनों साइडों पर अंगूठे और तर्जनी की चुटकियों में से लहँगा रह-रह कर छूट-छूट सा जा रहा था और उसके पूरे जिस्म में बार-बार एक झुरझुरी सी उठ रही थी.

माना कि साफ़ साफ़ ‘हाँ’ नहीं थी लेकिन साफ़ साफ़ ‘न’ तो बिल्कुल भी नहीं थी और आधी-अधूरी ‘न’ तो नखरे वाली ‘हाँ’ ही होती है … यह मैं जानता था.

देवराज इन्द्र के दरबार की इक प्यासी अप्सरा, किसी अंजाम की परवाह किये बिना, वर्जित फल चखने को कमर कसे बैठी थी लेकिन मेरे खुद के कुछ जुदा मुद्दे थे.

पहली बात! यह समय ठीक नहीं था, कम से कम आज के दिन तो ऐसा कुछ होना ठीक नहीं था. आज मेरी प्रिया की शादी थी और मेरी पहली आकांक्षा प्रिया की ‘शादी में सबकुछ ठीक-ठाक रहे’ की थी और मेरे जाती नज़रिये से आज के दिन ऐसा कुछ होना ठीक नहीं था.
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12-09-2019, 12:07 PM,
#9
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
दूजे! यह मौका ही ठीक नहीं था, प्यार सहज़ भाव से किया जाता है और जल्दी-जल्दी योनि-भेदन कर स्खलित होना तो निरी पशुता है.
तीसरी बात! जैसे बिना नारी की सहमति के, नारी शरीर भोगना बलात्कार होता है वैसे ही बिना प्यार के किसी भी नारी-शरीर को भोगना भी केवल वासना है, वो भी निकृष्ट वासना. ऐसी वासना का अंत हमेशा पछतावा होता है और मैं पछताना तो हर्गिज़ नहीं चाहता था.

मैं एक कदम पीछे हटा, तत्काल वसुंधरा ने आँखें खोली और मुझे सीधे अपनी आँखों में झांकते पा कर झट से अपनी आँखें वापिस बंद ली.
“आप बहुत कठोर हैं.” अधमुंदी आँखों वाली यूनानी मूर्ती के तराशे हुए होंठों ने मेरे कानों के करीब सरगोशी सी की.
“कठोर नहीं, मज़बूर!” मैंने कहा.
“मज़बूर … कैसे?” वसुंधरा ने चौंक कर आँखें खोली और सीधे मेरी आँखों में झांका.
“आप नहीं समझेंगी.” कहते हुए मैंने लहंगे का नाड़ा काट दिया.

बस! कयामत ही बरपा हो गयी. ज़रुर वसुंधरा ने साइडों से अपना लहँगा ढीले हाथों से पकड़ रखा होगा, नाड़ा कटते ही लहँगा वसुंधरा के पैरों में ऐसे गिरा जैसे किसी मूर्ति के अनावरण समारोह में मूर्ति का पर्दा नीचे गिरता है.

वसुंधरा की केले के पेड़ के तने सी चिकनी दोनों टाँगें और घुटनों के ऊपर दो मरमरी दूधिया जांघें, दोनों जाँधों के ऊपरी जोड़ पर छोटी सी, गुलाबी जाली वाली साटन की डिज़ाईनर पेंटी जिस के जाली के बाद वाले गुलाबी साटन के कपड़े में ठीक बीच में से उठे हुए धरातल का एक त्रिभुज का आकार और उसके बीचों-बीच से शुरू होकर एक नीचे की ओर घुमाव लेती एक रेखा … सबकुछ साफ़-साफ़ नुमाया हो रहा था.

वसुंधरा का छोटी सी पेंटी के इलास्टिक तक सपाट और साफ़-सुथरा गोरा पेट और पेंटी के इलास्टिक के बाद जाली में से झलक दिखाती कुंदन सी साफ़-सुथरी गोरी त्वचा इस बात की चीख-चीख कर गवाही दे रही थी कि वसुंधरा ने आज प्युबिक एरिया की भी वैक्सिंग करवाई है.

इस लहंगा गिरने वाले हादसे पर क्षण भर के लिए वसुंधरा ने अपनी आँखें खोली और मेरी आँखें अपने तन के निचले भाग (जोकि करीब-करीब निर्वस्त्र था) पर जमी पाकर फ़ौरन दोबारा बंद कर ली और जल्दी से मेरी तरफ़ पीठ कर ली.

वसुंधरा का इस तरह मेरी तरफ़ पीठ करना तो और भी कहर बरपाने वाला साबित हुआ. वसुंधरा की हवा में झूलती ओढ़नी, जो उसके जूड़े के साथ पिन की गयी थी, वसुंधरा के तेज़ी से गोल घूमने के कारण बार-बार दाएं-बाएं हो रही थी और इसी प्रक्रिया में वसुंधरा के आकर्षक, भरे-भरे और करीब-करीब अनावृत, गोरे-चिट्टे नितम्बों की मुझे रह-रह झलक मिल रही थी.

उसकी छोटी सी पेंटी की बैक-स्ट्रिंग तो दोनों नितम्बों की दरार में घुसी हुई थी.
“सी..ई..ई..ई … ई … ई … ई … ई … ई!!” अनजाने में ही मेरे मुंह से एक तीख़ी सिसकारी निकल गयी. तीव्र कामोत्तेजना के कारण मेरे लिंग में भयंकर तनाव आ गया था. हालांकि वसुंधरा की पीठ थी मेरी ओर लेकिन उसे इस बात का बाखूबी अंदाज़ा था कि मेरे ज़ेहन पर क्या गुज़र रही थी.

मेरी हस्ती अब आकण्ठ संकट में थी. कामदेव मुझ पर रह-रह कर काम-बाण चला कर मुझे पीड़ित किये जा रहे थे और वसुंधरा साक्षात मेनका के समकक्ष मुझ से रति-दान लेने पर उतारू थी और मैं बेचारा, काम के इस भयावह बवण्डर में तिनके की तरह कभी इधर (कभी हाँ), कभी उधर (कभी न) डोल रहा था.

शारीरिक भूख एक चीज़ है और प्यार बिल्कुल दूसरी चीज़. वसुंधरा से प्यार करने जैसी भावना तो अभी तक मेरे मन में थी नहीं और रही बात शारीरिक भूख की … तो मैं शादीशुदा आदमी इस लानत से कोसों परे था लेकिन वसुंधरा के कुंदन से दमकते जिस्म की शोख़ कशिश … वक़्ती तौर पर इतनी प्रबल थी कि मेरे सारे असूल एक ही झटके में तिनकों की तरह छिन्न-भिन्न हो रहे थे. अब तो मुझे यह डर सताये जा रहा था कि कहीं मैं खुद ही भूखे भेड़िये की तरह वसुंधरा पर टूट ना पडूँ.

“हे परवरदिगार! तू ही कोई चमत्कार कर … अब तो तू ही मुझे, मेरी अपनी नज़रों में गिरने से बचा सकता है.”
और फिर चमत्कार ही हो गया, मालिक ने मेरे दिल से उठी दुआ कबूल कर ली. मेरे सेल की घंटी बज़ी. सुधा लाइन पर थी.
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12-09-2019, 12:07 PM,
#10
RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
“कहाँ हो आप?”
“वसुंधरा जी को ले आने के लिए ज़रा सा डायवर्ट होना पड़ा … बस आ ही रहा हूँ.”
“जल्दी कीजिये … उधर से बारात चल पड़ी है.”
“दस-पंद्रह मिनट में पहुंचा … बस.”

कामविह्ल मन थोड़ा ठिकाने आया और रूह को ज़रा सा क़रार आया, उधर वसुंधरा भी लपक कर ड्रेसिंग रूम में चली गयी थी. मैंने लहंगा उठाया और जैसे-तैसे उस को रिपेयर किया और नया नाड़ा पिरो के वापिस बैडरूम में ले आया. वसुंधरा अभी भी ड्रेसिंगरूम में ही थी.
“वसुंधरा जी!” मैंने हल्के से वसुंधरा को पुकारा.
“जी!” तत्काल ड्रेसिंगरूम से वसुंधरा की प्रतिक्रिया आयी.
“आप का लहंगा … लीजिये, संभालिये.”
मैंने लहंगा कुर्सी पर रखा और बाहर जाने के लिए मुड़ा.
“सुनिए!” वसुंधरा की आवाज़ आश्चर्यजनक रूप से कोमल थी.
“जी! ” जाते जाते मेरे कदम थमे.
“मेरे हाथ … मेहँदी … मैं … कैसे नाड़ा … ” कुछ टूटे-फूटे लफ़्ज़ मुझे सुनाई दिए लेकिन मैं उन का मतलब समझ गया.
“ओके … आइये.”

वो दिलक़श नज़ारा आज भी मेरी आखों के सामने मूर्त हो उठता है.

उजला माथा, सुतवां नाक, गुलाब की पंखुड़ियों से तराशे होंठ, लम्बी गर्दन, बेहद उन्नत गोरा वक्ष और नाभि से छह इंच ऊपर तक बेबी-पिंक रंग की चोली पहने, जूड़े पर वही भारी जुड़ाऊ काम वाली चुनरी पिन किये हुए, दोनों जाँघों के जोड़ को मुश्किल से ढक पा रही नन्ही सी गुलाबी पेंटी, केले से तने सी पुष्ट और रोम-रहित सुडौल टाँगें, शर्म से झुकी नीची नज़र के साथ जैसे अजन्ता की कोई मूरत बेहद सधे हुये क़दमों से मेरी ओर बढ़ी चली आ रही वसुंधरा सर झुका कर मुझ से नज़र चुराते हुए मुझ से दो कदम दूर आकर ठहर गयी.

एक नशीली सी, होश उड़ा देने वाली सुगंध उस के शरीर से फ़ूट रही थी. मुझ पर फिर से एक बेख़ुदी सी तारी होने लगी. एक बार फिर से कामदेव ने मुझ पर आक्रमण कर दिया था और एक बार फिर से मेरे कामध्वज में कामज्वाला का प्रवेश हो गया था लेकिन इस बार मैंने विवेक का दामन हाथ से नहीं जाने दिया.

“आप उधर कुर्सी पर बैठ जाएँ और मैं लहंगा आप के पैरों में रख देता हूँ. आप अपने दोनों पैर उठा कर लंहगे के बीच में रख दीजिये और खड़ी हो जाएँ और मैं लहंगा ज़मीन से उठा कर आपकी कमर तक लाकर एडजस्ट कर के नाड़ा बाँध देता हूँ … ठीक है?”
वसुंधरा ने सर नीचा किये-किये ‘हाँ’ में सर हिलाया, अपने पैरों से बैली उतारी और जाकर कुर्सी पर बैठ गयी. मैंने लहंगा गोल करके, कुएं की सी शेप बना कर कुर्सी के आगे ज़मीन पर वसुंधरा के पैरों के पास रखा और हाथ बढ़ा कर वसुंधरा के दोनों पांव उठा कर लहंगे के बीचोंबीच रख दिए.

वसुंधरा के पैरों के तलवे गहरे गुलाबी रंग के, गद्दीदार और वलय वाले थे और पैरों की सारी उंगलियां रोमरहित एवं समानुपात में थी. वात्सायन के अनुसार ऐसे पैरों वाली स्त्रियां बौद्धिक रूप से अत्यंत विकसित, प्राकृतिक तौर पर संकीर्णयोनि अर्थात तंग योनि वाली, पति को सुख देने वाली प्राण-प्रिया और उत्तम संतान को जन्म देने वाली होती हैं.

कहानी जारी रहेगी.
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