RE: Hindi Porn Story हसीन गुनाह की लज्जत - 2
वसुन्धरा की मां ने अभी-अभी वसुन्धरा को फोन लगा कर आपके यहां होने की खबर दी तो वसुन्धरा ने कहा है कि वो कल सवेरे 12 बजे तक यहां पहुँच जायेगी. आपके लिए वसुन्धरा का संदेसा है कि आप हरगिज़ भी उससे मिले बिना ना जाएँ.
इतना सुनकर मेरे पेट में तितलियाँ सी उड़ने लगी. साल पहले की वसुन्धरा की पिंक चोली और पिंक पेंटी में मेरी ओर चली आने वाली क़ामायनी छवि मेरी आँखों के सामने मूर्त हो उठी.
वो रात मुझ पर बहुत भारी गुज़री. बहुत देर तक पुरानी यादें बड़ी शिद्दत से मेरे ज़ेहन में मंडराती रही. बहुत रात गए मुझे नींद आयी.
अगले दिन हमें मिनिस्ट्री में अनुमान से ज्यादा ही टाइम लग गया. करीब साढ़े तीन बजे थे जब हम दोनों फ़ारिग हो कर वापिस घर पहुंचे. सुबह से ही आसमान में काली घटाओं का आना-जाना लगा हुआ था और तेज़ हवाओं के कारण धूप-छाँव की आँख-मिचौली जारी थी. लगता था कि एक-आध रोज़ में बारिश होगी.
जैसे ही पोर्च में कार घुसी, सामने सीढ़ियों पर वसुन्धरा खड़ी थी. एक पल को तो मेरे दिल की धड़कन जैसे थम सी ही गयी. दुल्हन के जैसी सजी हुयी तो नहीं लेकिन पहले के जैसी किसी बोरिंग और सड़ियल नन के रूप में भी नहीं थी.
पिछले साल की बनिस्पत वसुन्धरा ने कोई छह-सात किलों वज़न कम कर लिया था लिहाज़ा उसके चेहरे के तमाम नैन-नक्श … ख़ासकर उसकी सुतवां नाक और होंठ ज्यादा कातिल दिख रहे थे. उस के बदन की तमाम गोलाइयाँ, गहराइयाँ और ऊंचाइयां पहले के मुकाबिले कहीं ज़्यादा शिद्दत से उजाग़र हो रहीं थीं. कमर का पहले से ज्यादा गहरा ख़म तो सरासर क़ातिल दिख रहा था. वही सरु सा ऊँचा कद, वही कमान सा तना हुआ सुडौल गोरा बदन, वही रौशन पेशानी, माथे पर हवा में कुछ-कुछ उड़ती ज़ुल्फ़ें, तीखा सुतवां नाक, सुडौल गुलाब सी कलियों से होठों का अर्ध-चन्द्रात्मक ख़म, नाभि से ज़रा नीचे बंधी शिफ़ौन की प्लेन महरून साड़ी में से पारे की तरह थिरकती लम्बी पुष्ट जाँघें.
मैं अपने तस्सुवर में वसुन्धरा के नंगे जिस्म की कल्पना करने लगा. अपने दोनों हाथों को अपने सीने पर क्रास बांधे हुए, काली कजरारी आँखों में सैंकड़ों सलाम और सवाल लिए वसुन्धरा की वही अदा. कहीं कोई रत्ती भर भी फर्क नहीं. या तो समय रुक गया था या एक ही पल में सदियाँ गुज़र गयीं. लगा … जैसे अभी कल की ही तो बात है, जुदा हुये. एक आह सी मेरे दिल से निकल गयी.
पोर्च में वसुन्धरा के पापा ने कार रोक कर मुझे उतारा और खुद कार गैरेज़ में पार्क करने के लिए आगे बढ़ा ले गए. जैसे ही मैं कार से उतरा तत्काल ही वसुन्धरा सीढ़ियों से नीचे उतर कर बिल्कुल मेरे पास आ गयी.
“वसुन्धरा जी … नमस्कार!” मैंने अपने दोनों हाथ वसुन्धरा की ओर जोड़े.
वसुन्धरा ने बिना कुछ बोले आगे बढ़ कर मेरे दोनों हाथ थाम लिए और सर उठा कर तरसी आँखों में हज़ारों शिकायतों का भाव लेकर मेरी ओर निहारा. एक सिहरन की लहर मेरे तन-बदन से गुज़र गयी.
मैंने फ़ौरन अपना बायां हाथ उसके दोनों हाथों में से निकाल कर उसके दायें हाथ के पृष्ठ भाग पर जमा दिया और अपने दायें हाथ की चारों उंगलियां वसुन्धरा के दायें हाथ की उँगलियों में पिरो दी.
अब सिहरने की बारी वसुन्धरा की थी.
“एक साल बाद हाल पूछ रहे हैं आप!”
“आप मिली ही साल बाद हैं.”
“फ़ोन कर सकते थे?”
“आपने अपना नंबर देने लायक ही नहीं समझा हमें … फोन कहाँ करते?”
वसुन्धरा ने एक तिरछी नज़र से अपने पापा की ओर देख कर … जोकि गैरेज में कार पार्क कर रहे थे अभी … अपनी पेशानी पर सिलवट डाल कर मेरी तरफ़ फ़र्ज़ी गुस्से से आँख तरेरी और अपने हाथ मेरे हाथों से छुड़वा लिए.
“अजी छोड़िये! ढूंढने वाले तो भगवान ढूंढ लेते हैं.”
“जी … जी! ढूंढ ही तो लिया है.”
अब वसुन्धरा लाज़वाब थी. तभी उसके पापा यह कहते हुए घर के अंदर जा घुसे- चलो चलो! अंदर चलो यार! बहुत भूख लगी है.
वसुन्धरा आगे-आगे और मैं पीछे पीछे डाइनिंग हाल में जा कर डाइनिंग टेबल पर जा बैठे.
खाना खाते वक़्त वसुन्धरा ने मुझसे मेरा अगला प्रोग्राम पूछा. मैंने तो घर के लिए वापिस निकलना था लेकिन अभी तो वसुन्धरा से अलैक-सलैक ही हुई थी, कोई ढ़ंग की बात तो हुई ही नहीं थी.
“जैसा आप कहें!” मैंने वसुन्धरा का मन टटोला.
“अगर आप को दिक्कत न हो तो मैं आपके साथ ही चलती हूँ. आप मुझे धर्मपुर उतार दीजियेगा, वहां से मैं डगशाई चली जाउंगी और आप आगे अपने शहर चले जाना.”
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