Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
07-01-2018, 12:07 PM,
#11
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --11

गतान्क से आगे........................

तभी काका उठ खड़े हुए. अब रूपाली को कल्लो की फेली हुई टाँगें और उसकी टाँगो के बीच का होल दिखाई दे रहा था जो बहुत गीला सा हो रखा था. काका उसकी टाँगो के बीच खड़े थे और रूपाली को सिर्फ़ उनके पावं दिख रहे थे.

"क्या हुआ?" कल्लो ने पुछा

"ऐसे ठीक से हो नही रहा" काका ने कहा "जगह कम है इसलिए मैं लेट नही पा रहा"

"तो फिर?" कल्लो ने पुछा

"एक काम कर" काका बोले "तू इधर दरवाज़े के साथ लेट जा. फिर मैं आराम से तेरे उपेर चढ़ सकता हूँ"

कल्लो हिली और लेटी लेटी ही सरक्ति हुई दरवाज़े के साथ हो गयी. अब रूपाली को उसका जिस्म साइड से दिखाई दे रहा था. काका ने फिर कल्लो की टाँगें पकड़कर उपेर उठाई और अपनी चीज़ पकड़कर उसकी टाँगो के बीच बैठ गये.

"आआहह" कल्लो के मुँह से आवाज़ आई

रूपाली समझ गयी के काका ने फिर से कल्लो के अंदर अपना घुसाया है. आगे या पिछे वो ये अब देख नही पा रही थी.

तभी रूपाली ने कोशिश करके अपनी नज़र कल्लो की टाँगो से हटाकर उसके चेहरे पर डाली और उसका दिल एकदम धक से रह गया. वो फ़ौरन उठ खड़ी हुई और घर की तरफ वापिस चल दी.

कल्लो सीधा दरवाज़े में बनी उस दरार की तरफ देख रही थी. रूपाली जानती थी के कल्लो समझ गयी थी के कोई वहाँ से अंदर देख रहा था. वैसे तो कल्लो को बस अंदर झाँकति एक आँख ही दिखाई दी होगी पर जाने क्यूँ रूपाली को लग रहा था के कल्लो ने उसकी चोरी पकड़ ली है, वो समझ गयी है के अंदर रूपाली ही झाँक रही थी.

उस पूरी शाम रूपाली अपने कमरे से बाहर नही निकली. खाना भी उसने जल्दी जल्दी ख़तम किया और सोने चली गयी ताकि कल्लो से सामना ना हो. चोरी असल में कल्लो और शंभू की पकड़ी गयी थी, डरना उन्हें चाहिए थे के रूपाली किसी को कह ना दे पर हो उल्टा रहा था. रूपाली को लग रहा था के उसकी चोरी पकड़ी गयी है और अगर कल्लो ने किसी से कह दिया के रूपाली देख रही थी तो जाने क्या होगा.

रात को रूपाली को पता ही नही चला के वो कब सो गयी.

सुबह दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया तो रूपाली की आँख खुली. उसने उठकर अपने कमरे का दरवाज़ा खोला तो सामने कल्लो खड़ी थी. रूपाली की साँस आधी उपेर और आधी नीचे रह गयी.

"कमरा साफ करना है बीबी जी" कल्लो बोली.

रूपाली का कमरा वो हमेशा सबसे आख़िर में सॉफ किया करती थी क्यूंकी रूपाली को देर तक सोने की आदत थी. फिर आज इतनी सुबह? रूपाली ने घड़ी पर नज़र डाली. 8 बज रहे थे.

"इतनी सुबह?" उसने कल्लो से पुछा

"हां मुझे जल्दी घर जाना है इसलिए सब काम निपटा रही हूँ" कल्लो बोली तो रूपाली ने दरवाज़े से हटकर उसको अंदर आने की जगह दे दी.

कल्लो कमरा सॉफ करने लगी और खुद रूपाली फिर बिस्तर पर लेट गयी पर आँखों में नीद कहाँ थी. कल्लो से नज़र बचाने के लिए उसने अपने चेहरे पर चादर डाल ली थी.

"बीबी जी" थोड़ी देर बाद कल्लो की आवाज़ आई

"ह्म्‍म्म्म" रूपाली ने चादर चेहरे से हटाए बिना ही कहा

"आप किसी से कहेंगी तो नही ना?" कल्लो धीरे से बोली

रूपाली का दिल जैसे फिर धक से रह गया.

"क्या नही कहूँगी?" वो थूक निगलते हुए बोली. चेहरे पर अब भी चादर पड़ी हुई थी.

कल्लो कुच्छ नही बोली. थोड़ी देर कमरे में खामोशी रही.

"मैं जानती हूँ के कल आप ही थी स्टोर रूम के बाहर. मैने देख लिया था. आप अकेली ही हो घर में जिसकी आँखें भूरी हैं और मैने दरार में से आपको झाँकते देख लिया था.

कमरे में कुच्छ देर तक पूरी तरफ सन्नाटा रहा.

"आप किसी से कहोगी तो नही ना?" कल्लो ने फिर पुचछा.

रूपाली जानती थी के उसकी चोरी पकड़ी गयी है. उसके दिमाग़ में जो सवाल उठ रहा था के क्या शंभू भी जानता है के रूपाली अंदर झाँक रही थी? अगर जानता है तो?

"हे भगवान" रूपाली जैसे शरम से गड़ गयी

अचानक उसको एक तरीका सूझा. कल्लो अब भी उसके कमरे की सफाई करती उसके जवाब का इंतेज़ार कर रही थी.

"कौन था तुम्हारे साथ?" उसने चादर के अंदर से पुछा. वो जानती थी के ये सवाल पुच्छ कर उसने इस बात का इक़रार कर लिया है के वही स्टोर रूम के अंदर झाँक रही थी.

"वो आप छ्चोड़िए ना मालकिन" कल्लो बोली "था कोई. उसने आपको नही देखा"

खुद कल्लो ने भी राहत की साँस ली के रूपाली को नही पता था के अंदर उसके साथ मर्द कौन था.

"अगर मैं मम्मी पापा को बता दूं तो?" रूपाली ने पुछा. चादर अब भी उसने ओढ़ रखी थी पर महसूस हो गया था के कल्लो ने उसके पावं पकड़ लिए हैं.

"ऐसा ज़ुल्म मत करना मालकिन" कल्लो की रोटी हुई आवाज़ आई सुनकर रूपाली ने अपने चेहरे से चादर हटाई और उठकर बैठ गयी "अगर किसी को पता चल गया तो मालिक मुझे नौकरी से निकाल देंगे और मेरा घरवाला तो मुझे जान से ही मार डालेगा"

रूपाली खामोशी से बैठी रही.

"आप किसी से कहेंगी तो नही ना मालकिन? कल्लो फिर बोली "आप जो कहेंगी मैं करने को तैय्यार हून. बस इसका ज़िक्र किसी से मत करना"

"ठीक है" आख़िर कार रूपाली बोली "मैं किसी से नही कहूँगी. अब कमरा साफ करके बाहर जाओ और मुझे सोने दो"

कल्लो का चेहरा खुशी से चमक उठा. वो फ़ौरन हाथ जोड़कर गर्दन हिलाती खड़ी हो गयी और अपने काम में लग गयी.

रूपाली चादर ओढकर फिर लेट गयी पर उसके चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी. डर जाता रहा. कल्लो ने जिस तरह से उसके पावं पकड़े थे, जिस तरह से वो गिड़गिदा रही थी उससे रूपाली को ये भरोसा हो गया था के उसे खुद को डरने के कोई ज़रूरत नही. बल्कि डर तो उससे दूसरे रहे थे, वो तो डरा सकती थी.

उसके चेहरे पर मुस्कुराहट और गहरी हो गयी.

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शर्मा और ख़ान दोनो ही खाने की टेबल पर बैठे थे.

"सर एक बात कहूँ?" शर्मा बोला "बुरा तो नही मानेंगे?"

"जनता हूँ क्या कहने वेल हो" ख़ान बोला "खाना बहुत बकवास बनाता हूँ मैं"

शर्मा हस पड़ा

"आपको कैसे पता चला?

"अर्रे तुम पहले नही हो यार. बहुतो ने कहा है ये" ख़ान ने कहा. उस रात खाना उसने ही बनाया था.

ख़ान ने शर्मा को अपने घर खाना खाने के लिए बुलाया था. वो चाहता था के केस पर वो दोनो बैठकर थोड़ी देर बात करें क्यूंकी गाओं और गाओं के लोगों के बारे में एक शर्मा ही था जो अच्छी तरह से जानता था. जब सारा दिन सुकून से बात करने का मौका नही मिला तो ख़ान शर्मा को लेकर अपने घर ही आ गया.

दोनो ने खाना खाया और सिगरेट जलाकर आराम से बैठ गये.

"सर आप शादी क्यूँ नही कर लेते?" शर्मा बोला

"अर्रे मैं तो काब्से तैय्यर बैठ हूँ यार पर कोई कम्बख़्त मुझे शादी करने को राज़ी तो हो" ख़ान ने कहा

"कैसी बात करते हैं सर, आपको तो 56 मिल जाएगंगी. कहो तो मैं ही बात चलाऊं? शर्मा ने सिगरेट का कश लगाया.

"अर्रे नही यार" ख़ान ने हस्कर कहा "मुझे मेरे हाल पर ही छ्चोड़ दो तुम. ऐसे ही ठीक हूँ. वैसे तुम्हारी तो शादी हो चुकी है ना?

"2 बच्चे भी हैं सर" शर्मा ने जवाब दिया

"गुड वेरी गुड" कहते हुए ख़ान ने अपनी डाइयरी उठाई.

"बचपन से मेरी आदत रही है के जब कुच्छ मेरी समझ से बाहर होता है तो मैं उसको लिख लेता हूँ. समझ आने में काफ़ी आसानी होती है. ऐसा ही कुच्छ मैने इस केस के साथ भी किया है. फिलहाल जो मैने लिखा हूँ वो ये है" कहते हुए ख़ान ने डाइयरी खोलकर शर्मा की तरफ बढ़ा दी.

शर्मा ने डाइयरी पर नज़र डाली. सामने पेज पर कुच्छ पायंट्स लिखे हुए थे.

1. क़त्ल की रात ठाकुर ने अपने कमरे में ही डिन्नर किया था. उनको अपने कमरे के बाहर आखरी बार 8 बजे देखा गया था, ड्रॉयिंग हॉल में टीवी देखते हुए.

2. 8:15 के करीब वो अपने कमरे में चले गये थे और उसके बाद उनकी नौकरानी पायल खाना देने कमरे में गयी.

3. 8:30 के आस पास नौकरानी ठाकुर के बुलाने पर वापिस उनके कमरे में पहुँची. ठाकुर ने ज़्यादा कुच्छ नही खाया था और उसको प्लेट्स ले जाने के लिए कहा.

4. इसके बाद 9:15 के आस पास उनकी बहू रूपाली कपड़े लेने के लिए हवेली की पिछे वाले हिस्से में गयी जहाँ ठाकुर के कमरे की खिड़की खुलती थी और खिड़की से ठाकुर उसको अपने कमरे में खड़े हुए दिखाई दिए. वो अकेले थे.

5. उसके बाद तकरीबन 9.30 बजे तेज अपने बाप के कमरे में उनसे बात करने पहुँचा था. क्या बात करनी थी ये उसने नही बताया. सिर्फ़ कुच्छ बात करनी थी.

6. 9:40 के करीब सरिता देवी अपने पति के कमरे में पहुँची. उनके आने के बाद तेज वहाँ से चला गया.

7. 9:45 के करीब ठाकुर ने भूषण को बुलाकर गाड़ी निकालने को कहा. कहाँ जाना था ये नही बताया और खुद सरिता देवी भी ये नही जानती थी के उनके पति कहाँ जा रहे हैं.

8. 10:00 बजे के करीब भूषण वापिस ठाकुर के कमरे में चाबी लेने गया. ठाकुर उस वक़्त कमरे में अकेले थे और सरिता देवी बाहर कॉरिडर में बैठी थी.

9. 10:00 के करीब ही जब भूषण ठाकुर के कमरे से बाहर निकला तो पायल कमरे में गयी ये पुच्छने के लिए के ठाकुर को और कुच्छ तो नही चाहिए था. ठाकुर ने उसको मना कर दिया.

10. 10:05 के करीब जब भूषण कार पार्किंग की ओर जा रहा था तब उसने और ठकुराइन ने जै को हवेली में दाखिल होते हुए देखा.

11. 10:15 पर जब पायल किचन बंद करके अपने कमरे की ओर जा रही थी तब उसने ठाकुर के कमरे से जै को बाहर निकलते देखा. वो पूरा खून में सना हुआ था जिसके बाद उसने चीख मारी.

12. उसकी चीख की आवाज़ सुनकर जै को समझ नही आया के क्या करे. वो पायल को बताने लगा के अंदर ठाकुर साहब ज़ख़्मी हैं और इसी वक़्त पुरुषोत्तम और तेज आ गये. जब उन्होने जै को खून में सना देखा और अपने बाप को अंदर नीचे ज़मीन पर पड़ा देखा तो वो जै को मारने लगे.

13. जै भागकर किचन में घुस गया और अंदर से दरवाज़ा बंद कर लिया.

14. 10:45 के करीब ख़ान को फोन आया था के ठाकुर का खून हो गया है जिसके बाद वो हवेली पहुँचा.

"सही है सर" शर्मा ने कहा "टाइम का अंदाज़ा तो बहुत सही लगाया है आपने. अब?"

"अब मेरे दोस्त ज़रा उन लोगों पर नज़र डालें जो उस रात हवेली में थे" कहते हुए ख़ान ने शर्मा से डाइयरी वापिस ली और पेन निकालकर लिखने लगा.

"ठाकुर की बीवी से ही शुरू करते हैं

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:07 PM,
#12
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खूनी हवेली की वासना पार्ट --12

गतान्क से आगे........................

1. सरिता देवी - पूरी शाम अपने कमरे में थी. बीमारी की वजह से अपने पति से अलग सोती थी. रात का खाना कमरे में ही खाया. हर रात सोने से पहले वो अपने पति के कमरे में जाती थी और थोड़ी देर बात करके वापिस अपने कमरे में ही आकर सो जाती थी. उस रात भी 9.40 के करीब वो ठाकुर साहब के कमरे में पहुँची और तकरीबन 10 बजे तक रही. इस बात की गवाही घर के 2 नौकर दे सकते हैं. पहले बिंदिया जो ठकुराइन की व्हील चेर को धकेल कर यहाँ से वहाँ ले जाती है. वो ही ठकुराइन को व्हील चेर पर बैठाती और उतारती है. उसने उस रात ठकुराइन को कमरे से ठाकुर के कमरे तक छ्चोड़ा और करीब 15-20 मिनट बाद कमरे से बाहर लाकर कॉरिडर में छ्चोड़ा. दूसरी गवाही भूषण दे सकता है जिसने ठकुराइन को पहले ठाकुर के कमरे में बात करते देखा और फिर बाद में कॉरिडर में बैठी देखा. इस पूरे वक़्त के दौरान ठाकुर साहब ज़िंदा थे याकि की क़ातिल अब तक सिर्फ़ मौके की तलाश में था. सरिता देवी के कमरे से बाहर आते ही उसको मौका मिला और ठाकुर का काम ख़तम.

2. पुरुषोत्तम सिंग - शाम को तकरीबन 6 बजे घर वापिस आया था. अपने कमरे में गया और रात 8 बजे तक वहीं रहा. उसके बाद वो ऐसे ही थोड़ा घूमने के लिए बाहर निकला, शराब की दुकान से शराब खरीदी, नहर के किनारे बैठकर पी और 9 बजे के करीब घर वापिस आया और उसके बाद अपने कमरे में ही चला गया. इन साहब की गवाही इनकी बीवी दे सकती हैं जो 8 से पहले और 9 के बाद इनके साथ कमरे में थी.

3. तेजविंदर सिंग - इन साहब की कहानी की गवाह इनकी माँ हैं. कहते हैं कि पहले कहीं दोस्तों के साथ शराब पी रहे थे, तकरीबन 9.30 बजे वापिस आए. पिता के कमरे में गये. 10 मिनट वहाँ रुके और ठकुराइन के आने के बाद अपने कमरे में चले गये.

4. कुलदीप सिंग - ख़ास कुच्छ नही. बीमार थे इसलिए सारा दिन पड़े सोते रहे. क़त्ल की शाम और क़त्ल के वक़्त भी अपने कमरे में ही दवाई खाकर सो रहे थे. इनकी गवाह इनकी बेहन है जिसका कमरा इनके कमरे के साथ ही है. इनके हिसाब से कुलदीप पूरी शाम और रात सोता रहा. उसको तो क़त्ल का पता भी खून होने के 2 घंटे बाद चला.

5. कामिनी - इनकी कहानी का कोई गवाह नही. कहती हैं के पूरी शाम अपने कमरे में ही थी और चीख की आवाज़ सुनकर ही कमरे से निकली थी. ना किसी ने इनको देखा और ना कोई गवाही दे सकता है. इनकी बीच बीच की गवाही रूपाली का भाई ईन्देर दे सकता है जिसके मुताबिक वो 2-3 बार थोड़ी थोड़ी देर के लिए कुच्छ किताबें लेने कामिनी के कमरे में गया था

6. भूषण - घर के छ्होटे मोटे काम करता रहा. रात 9 बजे वापिस अपने कमरे में पहुँचा. ठाकुर के बुलाने पर उनके कमरे में गया और फिर गाड़ी निकाली. इसकी गवाही ठकुराइन और खुद जै दे सकता है जिन्होने इसको खून के टाइम हवेली के बाहर खड़ा देखा.

7. बिंदिया - पूरा दिन ठकुराइन के साथ थी. बस क़त्ल के वक़्त अपने बेटी के साथ थी. इसकी गवाही इसकी बेटी दे सकती है.

8. पायल - घर के काम करती रही सारा दिन. 8.15 ठाकुर को खाना देके आई, फिर 10 बजे दोबारा ठाकुर से कुच्छ ज़रूरत को पुच्छने गयी और उसके बाद 10.15 पर खून होता देखकर चिल्लाई. क़त्ल के वक़्त की इसकी गवाही इसकी माँ दे सकती है.

9. रूपाली - इनकी सारे वक़्त की गवाही है. घर के नौकर या इनके पाती, किसी ना किसी के ये साथ थी. खून होने के टाइम तक. सिर्फ़ एक टाइम पर ये अकेली थी और वो जब ये हवेली के पिछे से कुच्छ कपड़े लेने के लिए गयी.

10. इंद्रासेन राणा - अपने कमरे में बैठे हॅरी पॉटर सीरीस देख रहे थे. इन साहब की बस थोड़े से टाइम की गवाही है. एक तो तब जब पायल इनके कमरे में इनको चाइ देने गयी और दूसरा जब ये कामिनी के कमरे में बुक्स लेने गये.

11. चंदर - शाम से ही गेट पर बैठा हुआ पहरा दे रहा था. इसकी गवाही तो तेज ही दे सकता है जिसने इसको हवेली के अंदर दाखिल होते हुए इसको गाते के पास बैठे देखा था. "

"यहाँ तो हर किसी का गवाही कोई ना कोई दे रहा है सर" शर्मा बोला

"पर कोई ना कोई तो यहाँ झूठ बोल रहा है" ख़ान ने कहा "सवाल ये है के कौन"

जहाँ रूपाली एक और जवानी के खेल अभी खेलना सीख ही रही थी वहीं दूसरी और बिंदिया जवानी के एक ऐसे मोड़ पर खड़ी हुई थी जहाँ उसको समझ नही आ रहा था के क्या करे. समाज के क़ानून, भगवान का डर, धरम की बंदिश, एक औरत की मर्यादा, और कई साल से जिस्म की ना मिटी भूख उसके दिल और दिमाग़ को जैसे पागल कर रहे थे.

दिन के कोई 12 बज रहे थे. उसकी 12 साल की बेटी पायल अपनी सहेलियों के साथ खेलने बाहर गयी थी और घर पर सिर्फ़ बिंदिया और उसका बेटा चंदर थे. ठाकुर साहब के खेतों के बीच बनी अपनी छ्होटी से झोपड़ी में जो की बिंदिया का घर थी उस वक़्त वो दोनो अकेले ही थे.

झोपड़ी के बीच बिंदिया खामोशी से खड़ी थी. वो जानती थी के चंदर भी झोपड़ी के अंदर ही है.

बिंदिया ने अपनी आँखें खोली और चंदर की तरफ देखा.. चंदर की आँखें वासना से भरी हुई थी और अपनी माँ के शरीर को उपेर से नीचे तक देख रही थी. कभी वो उस पुराने से ब्लाउस में उपेर नीचे होती बिंदिया की छातियों देखता तो कभी नज़र नीचे करके बिंदिया की कमर और उठी हुई गांद देखने लगता. बिंदिया ये जानती थी के कुच्छ होने वाला है और उसकी साँस उखाड़ने लगी थी. वो जानती थी के अब जो भी होगा वो चंदर और खुद उसकी मर्ज़ी दोनो से होगा क्यूंकी वो दोनो ही ऐसा चाहते थे पर फिर भी हासिल करने से डरते थे.

चंदर ने आगे बढ़कर बिंदिया का हाथ पकड़ा. बिंदिया ने फिर अपनी आँखें बंद कर ली. कुच्छ देर तक वो बिंदिया का हाथ ऐसे ही पकड़े खड़ा रहा और जाने क्या करता रहा. आँखें बंद किए खड़ी बिंदिया कपड़ो की आवाज़ सुनकर सिर्फ़ इतना अंदाज़ा लगा पाई के शायद चंदर दूसरे हाथ से अपने कपड़े उतार रहा है. फिर भी जाने क्यूँ ना तो वो कुच्छ कर पाई और ना ही कह पाई. ना तो उसने अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश की और ना ही चंदर को रोकने की.

कुच्छ देर बाद चंदर के हाथ ने हरकत की और बिंदिया के हाथ को पकड़कर आगे की ओर करने लगा. एक मदहोशी के से आलम में बिंदिया ने उसको जो चाहा करने दिया. उसने अपना हाथ वापिस लेने या रोकने की कोई कोशिशी नही की. अगले ही पल उसके हाथ में एक मोटी सी डंडे जैसी चीज़ आ गयी. फरक सिर्फ़ ये था के ये चीज़ किसी डंडे की तरफ सख़्त तो थी पर डंडे के जैसे ठंडी नही थी. ये चीज़ बहुत गरम थी, जैसे कोई लोहे की सलाख जो अभी अभी आग से निकली गयी हो.

बिंदिया की साँस फिर उखाड़ने लगी और दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. वो जानती थी के ये गरम डंडा कुच्छ और नही बल्कि चंदर का लंड था.

उसको अपनी उंगलियाँ चंदर के लंड पर महसूस हुई और अगले ही पल चंदर ने अपने हाथ से बिंदिया की उंगलियों को बंद करते हुए एक मुट्ठी बना दिया.

मुट्ठी में चंदर का लंड था.

बिंदिया की मुट्ठी में चंदर का लंड फूल रहा था जैसे वो भी अलग से साँस ले रहा हो और बिंदिया को उसकी लंबाई और मोटाई का सॉफ अंदाज़ा हो रहा था. ना चाहते हुए भी उसकी मुट्ठी लंड के गिर्द और कसति चली गयी और अगले ही पल उसके कानो में चंदर की आह की आवाज़ सुनाई दी. वो जानती थी के ये आह दर्द नही बल्कि मज़े की वजह से निकली है. वो मज़ा जो एक जवान औरत के लंड पकड़ने पर हर मर्द को आता है.

बिंदिया ने अपनी आँखें खोली और चंदर की तरफ देखा और फिर बड़ी ही बेशर्मी से उसकी आँखें उसके चेहरे से सीधा लंड पर गयी.

बिंदिया इस लंड को पहले भी देख चुकी थी और अपने शरीर पर महसूस भी कर चुकी थी पर आज पहली बार इतने करीब से देख रही थी. ना चाहते हुए भी उसके वासना की आग जैसे अचानक से दुगुनी हो गयी. उसने अपने जीवन में ये दूसरा लंड देखा था. पहला अपने पति का और दूसरा चंदर का.

और उसके पति का लंड उसके हाथ में पकड़े लंड का आधा भी नही था.

बिंदिया के दिमाग़ ने जैसे काम करना बंद कर दिया था. बिना कुच्छ और सोचे उसका हाथ चंदर के लंड पर कसता चला गया और उपेर नीचे होने लगा. चंदर उसके बिल्कुल ठीक सामने खड़ा था. कद काठी में वो बिंदिया के बराबर ही था इसलिए सीधा बिंदिया से नज़र मिलाए उसकी आँखों में देख रहा था. खुद वो भी बड़ी बेशर्मी सी उससे नज़र मिलाए उसका लंड हिलाने लगी.

पहले उसका हाथ धीरे धीरे उपेर नीचे हो रहा था पर फिर बहुत तेज़ी से चंदर का लंड हिलाने लगी. अब आँखें बंद करने की बारी चंदर की थी. जहाँ उसके मुँह से हल्की हल्की आह आह की आवाज़ निकल रही थी वहीं खुद बिंदिया भी अपनी आवाज़ को दबा नही पाई. उसके साँस भारी थी और वो भी धीरे धीरे मज़े में कराह रही थी.

बिंदिया ने लंड हिलाना जारी रखा और तभी चंदर ने अपना एक हाथ उतारा बिंदिया की छाती पर रख दिया. उसका हाथ गीला था और गीलापन बिंदिया को अपने ब्लाउस के उपेर से भी सॉफ महसूस हुआ. हाथ की ठंडक ने इस बार उसके मुँह से निकलती धीमी आवाज़ो को और तेज़ कर दिया.

बिंदिया मज़े में कराहती रही, लंड हिलाती रही और चंदर बे अपना दूसरा हाथ भी उठाकर उसकी दोनो चूचियों को रगड़ना शुरू कर दिया.

"नही," अचानक बिंदिया ने कहा. "ओह्ह्ह, नही, रुक जा. ये ग़लत है ... ओह, चंदू!"

जवाब में चंदर के गले से सिर्फ़ एक आवाज़ निकली, जैसे कोई कुत्ता गुर्रा रहा हो और उसका एक हाथ बिंदिया की छाती से होता हुआ उसकी गांद पर आ गया.

उसका हाथ बिंदिया की गांद में घाघरे के उपेर से धस्ता चला गया. और यहाँ पर आकर बिंदिया का बचा हुआ सब्र भी जवाब दे गया.

उसने फ़ौरन आगे बढ़कर अपने होंठ चंदर के होंठों पर टीका दिए.

बिंदिया की जीभ उसके मुँह से निकलकर सीधा चंदर के मुँह में जा घुसी जिससे एक पल के लिए चंदर भी चौक गया और लड़खड़ा गया. उसकी माँ की जीभ उसके मुँह के अंदर घूम रही थी, वो अजीब भूखे अंदाज़ में उसके होंठों को कभी चाट रही थी तो कभी काट रही थी. बिंदिया आगे बढ़कर चंदर से चिपक गयी थी जिसके वजह से खड़ा हुआ लंड घाघरे के उपेर से सीधा चूत से टकरा रहा था.

बिंदिया ने अपनी टाँगें थोड़ा खोली और लंड को सीधा कपड़े के उपेर से ही अपनी जाँघो के बीच फसा लिया. लंड बीच में आते ही उसने अपनी टांगे दोबारा बंद की और अपनी गांद आगे पिछे हिलाने लगी. कपड़े के उपेर से ही उसकी चूत लंड पर घिसने लगी और वासना से बिंदिया का सर चकरा गया.

उसके घुटने कमज़ोर पड़ गये और वो वहीं नीचे ज़मीन पर गिरती चली गयी. पहले वो बैठी और अगले ही पल पीठ के बल नीचे लेटकर अपनी टांगे फेला दी. चंदर का लंड अब भी उसके हाथ में था जिसकी वजह से चंदर भी उसके उपेर गिरता चला गया.बिंदिया ने एक पागलपन के अंदाज़ में अपने घाघरे का नाडा खोला और बाकी काम चंदर ने कर दिया. एक पल घाघरा उसके जिस्म पर था और अगले पल नाडा खुलते ही नीचे को खींचा और हवा में उड़ता हुआ कमरे के एक कोने में जा गिरा.

बिंदिया ने फ़ौरन हाथ आगे बढ़ा कर चंदर का लंड पकड़ लिया.

"जल्दी कर!" उसने एक प्यासी शेरनी के से अंदाज़ में कहा. "हे भगवान ... जल्दी कर ना, चंदू!"

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:08 PM,
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खूनी हवेली की वासना पार्ट --13

गतान्क से आगे........................

चंदर अपनी माँ पर चढ़ता चला गया और उसको सिर्फ़ इतना ही करना पड़ा. बिंदिया ने उसके लंड को हाथ में पकड़ा और सीधा अपनी चूत पर रख कर अंदर लेने की कोशिश की. चंदर इशारा समझ गया और उसने भी एक हल्का सा धक्का मारा. वो बिंदिया की टाँगो के बीच बैठा हुआ था. बिंदिया ने अपने पैरों पर ज़ोर डाला और जैसे ही लंड चूत के अंदर गया, पैरों और कंधो के बल पर उसकी गांद हवा में उठती चली गयी.

जैसे जैसे बेटे का लंड माँ की चूत में घुसा, बिंदिया के आनंद की कोई सीमा ना रही. उसने लंड को अपनी चूत में महसूस करते हुए अपनी टाँगो के बीच के हिस्से को अपने बेटे के लंड पर धकेलना शुरू कर दिया. कभी उसकी गांद अपने पैरों और कंधे के बल पर उपेर नीचे होती, कभी आगे पिछे होती और कभी ऐसे गोल गोल घूमती जैसे हवा में कुच्छ घोत रही हो. उसके खुद के लिए ये कहना मुश्किल था के चंदर उसे चोद रहा था या वो चंदर को चोद रही थी.

चंदर अब बिंदिया के उपेर पूरी तरह लेटा हुआ धक्के लगा रहा था. बिंदिया ने अपनी टांगे हवा में उठाई और हाथ चंदर की कमर पर ले जाकर उसकी गांद को पकड़ लिया और उसको और अपनी तरफ खींचने लगी. नीचे से वो खुद अपनी गांद उठाते हुए चंदर के हर धक्के का जवाब दे रही थी. चंदर के हाथ उसको अपने पूरे शरीर पर महसूस हो रहे थे, उपेर से नीचे तक, जैसे वो एक औरत के नंगे शरीर का हाथों हाथों से जायज़ा ले रहा हो. कभी वो उसकी ब्लाउस के उपेर से ही चूचियाँ पकड़ता तो कभी नीचे ले जाकर उसकी नंगी गांद पर हाथ फिराने लगता.

"हे, भगवान! हे, भगवान!" जैसे जैसे धक्को में रफ़्तार आ रही थी, वैसे वैसे ही बिंदिया की आवाज़ भी तेज़ होती जा रही थी.

लंड अब बिंदिया की चूत में इतनी ज़ोर से घुस रहा था के नीचे उसका शरीर सख़्त ज़मीन पर घिसने लगा, उसका सर पिछे दीवार से टकराने लगा पर बिंदिया को कोई फरक नही पड़ा. उल्टा वो अभी भी नीचे से अपनी गांद हिलाती रही, एक पागलपन में चुदवाती रही. उसका दिमाग़ वासना और उस वासना से जुड़े पाप की गहराई में एक अजीब आनंद प्राप्त कर रहा था. चंदर का लंड उसकी चूत की वो गहराई नाप रहा था जो अब तक अछूती थी, जहाँ उसके पति का लंड कभी पहुँच ही नही पाया था. चूत की दीवारो में ऐसे गर्मी उठने लगी थी के बिंदिए को लगने लगा के उसकी चूत में आग लग जाएगी.

हर धक्के के साथ नीचे उसको अपनी गांद पर चंदर के टटटे टकराते हुए महसूस हो रहे थे. उसने अब भी चंदर की गांद को सख्ती से पकड़ रहा था और ज़्यादा से ज़्यादा लंड अपनी चूत में धकेलने की कोशिश कर रही थी. वो पूरी ताक़त से चंदर के हर धक्के का जवाब दे रही थी, बिना ये परवाह किए के उसकी चूत कई सालों से नही मारी गयी थी और उसको चोट पहुँच सकती थी. उसको उस वक़्त सिर्फ़ ये चाहिए था के चंदर का लंड ज़्यादा से ज़्यादा उसकी चूत में जाए, जितना ज़ोर से हो सके उसको चोदे.

"आआआः, चोद मुझे!" बिंदिया अपना सर पटकते हुए चिल्लाई और उसके बॉल बिखर गये. "चोद मुझे, बेटा! ज़ोर से चोद! ओह्ह्ह, चंदू ... ओह, चंदू! चोद मुझे, चोद मुझे!"

चंदर ने अपना सर नीचे झुकाते हुए उसके कंधे पर रख दिया और बिंदिया के बिखरे हुए बालों में दबा दिया. नीचे से उसने अपने दोनो हाथों से बिंदिया की गांद को मज़बूती से पकड़ रखा था ताकि पूरी ताक़त से धक्के मार सके.

बिंदिया की चूत पूरी खुल चुकी थी और लंड के चारो और एक रब्बर बंद की तरह लिपट गयी थी.

"ऊऊओ! ओह!" बिंदिया चिल्लाई. "मैं तो गयी .... गयी ! आहह, चंदू बेटे,! आज तूने अपनी माँ को चोद्कर झाड़ दिया! हे, राम! मेरी चूत ... मेरी चूत ... गयी मैं .... निकल गया!"

बिंदिया की चूत चंदर के लंड पर कस्ति चली गयी और पानी की एक धार बह चली.

उसने अपनी चूत को और सिकोड़ना शुरू कर दिया और अपनी गांद फिर हवा में उठाकर नीचे से हिलाने लगी. जैसे जैसे उसकी चूत से पानी छूट रहा था, उसकी मुँह से निकलती आवाज़ें और भी तेज़ होती जा रही थी.

और उसी पल चंदर के लंड से भी पानी बह चला.

बिंदिया ने उसको अपनी बाहों में समेटकर अपने आप से लपेट लिया और चूत में भरते हुए वीर्य को महसूस करने लगी. और जब लंड से वीर्य निकलना बंद हो गया, बिंदिया ने अपनी गांद को फिर नीचे ज़मीन पर टिकाकर कर सीधी लेट गयी और लंबी लंबी साँसें लेने लगी.

चंदर उसके उपेर लेटा हुआ भारी साँसें ले रहा था. बिंदिया ने अपने हाथों से कभी उसकी नंगी कमर को सहलाने लगी.

पायल मुश्किल से 2 साल की थी जब बिंदिया का पति खेत में साँप के काट लेने से मर गया था. ठाकुर साहब ने उसपर रहम करते हुए उसके पति की जगह बिंदिया को ही खेतों की देख रेख का काम सौंप दिया था. वो वहीं खेत के बीच बनी एक झोपड़ी में पायल के साथ रहने लगी थी.

एक दिन गाओं के एक बानिए के घर में आग लगी और काफ़ी सारे लोग जलकर मर गये. उन्ही में चंदर के माँ बाप भी थी जिनके मरने के बाद वो बिल्कुल अनाथ हो गया था. उस वक़्त वो कोई करीब 7 साल का था. बिंदिया उसपर तरस खाकर उसको अपने घर ले आई और फिर वो उसी के पास रह गया. बिंदिया को हमेशा से एक बेटे की चाह थी और चंदर को ही उसने अपना वो बेटा मान लिया.

चंदर बचपन से ही गूंगा था. कुच्छ भी बोल नही पाता था. बस गून गून की एक घुटि सी आवाज़ निकाल पता था.

ज़िंदगी फिर एक ढर्रे पर चल पड़ी. बिंदिया खेतों की चौकीदारी करती और थोड़ा बहुत जो मिलता उससे अपना और अपने 2 बच्चो का पेट भरती. ज़िंदगी से ना तो उसको कोई शिकायत थी और ना कोई चाह बाकी रह गयी थी. ज़िंदगी ने उसकी ज़िंदगी का बस एक ही रूप छ्चोड़ा था, एक माँ का रूप, और कोई रूप नही.

और बिंदिया अपनी ज़िंदगी से समझौता कर चुकी थी.

उसका पति हमेशा कहता था के बिस्तर पर आते ही वो किसी भूखी शेरनी के जैसी हो जाती है. बहुत कम ऐसा होता था के उसका पति शुरुआत करता. शुरुआत भी खुद बिंदिया ही करती थी और चुदाई के दौरान अक्सर वो ही सब कुच्छ कर रही होती थी. और हर बार यही होता था के उसका पति झाड़ जाता और उसके बाद बिंदिया अपनी चूत में उंगली चलाकर अपने आपको ठंडा करती. उसकी इन हरकतों की वजह से उसके पति ने उसको प्यार से अकेले में रंडी कहना शुरू कर दिया था.

बिंदिया अच्छी तरह जानती थी के उसके पति में कोई कमी नही थी. वो एक आम आदमी थी, आम सा डील डौल और साधारण सा स्टेमीना. वो बिस्तर पर वही करता था जो कोई आम आदमी करता है और अगर बिंदिया की जगह कोई और औरत होती तो शायद इतने से खुश रहती. पर बिंदिया को आम आदमी नही चाहिए था. उसको बिस्तर पर कोई ऐसा चाहिए था जो उसको अच्छी तरह से रगड़ सके. रात में कम से कम भी तो उसको 2-3 बार चोद सके.

एक दिन बिंदिया खाना बनाकर अपनी पति को खाना देने के लिए खेतों की तरफ जा रही थी. रास्ते में उसको एक घोड़े एक कार खड़ी दिखाई थी. कार वो जानती थी के ठाकुर खानदान की है पर वो अक्सर दोपहर को गर्मी की वजह से खेतों की तरफ नही आते थे. क्या हुआ होगा सोचकर बिंदिया कार की तरफ बढ़ी.

वो कार के नज़दीक पहुँची ही थी के उसके पावं ठिठक गये और वो फ़ौरन एक पेड़ के पिछे छुप गयी. कार की अगली सीट पर ठाकुर का भतीजा जै बैठा हुआ था. कार के दरवाज़े बंद थे और खिड़की से बिंदिया को सिर्फ़ जै के शरीर का उपरी हिस्सा नज़र आ रहा था. जिस बात की वजह से बिंदिया रुक कर छुप गयी थी वो ये थी के जै का शरीर उपेर से नंगा था. उसकी गर्दन पिछे को लुढ़की हुई थी और आँखें बंद थी. उसका एक हाथ उपेर नीचे हिल रहा था.

बिंदिया जानती थी के जै क्या कर रहा था. वो अपना लंड हिला रहा था. लड़के अक्सर खुद को ठंडा करने के लिए ऐसा करते हैं ये उसके पति ने उसको बताया था, बल्कि एक दिन करके भी दिखाया था.

बिंदिया मुस्कुराइ और वापिस जाने के लिए पलटी.

बिंदिया मूड ही रही थी के कुच्छ ऐसा हुआ के उसका पावं अपनी जगह पर जम गये.

एक पल के लिए जै की गोद में एक सर उपेर को उठा और फिर नीचे झुक गया. बिंदिया को समझने में एक पल नही लगा के सर किसी औरत का था. वो फिर वहीं रुक कर देखने लगी.

अगले कुच्छ पलों में वो सर कई बार उपेर को आया और फिर नीचे चला गया. बिंदिया देख चुकी थी के जै ने उस सर को पकड़ रखा था और क्यूंकी वो सर उपेर नीचे हो रहा था, इसलिए जै के हाथ भी हिल रहे थे. मतलब वो अपना हिला नही रहा था. कार में उसके साथ कोई और भी थी पर कौन? और क्या कर रही थी?

पहले सवाल का जवाब बिंदिया ने खुद अपने आपको दे दिया. ठाकुर के खेतों में कई सारी गाओं की औरतें काम करती थी तो ये कोई हैरत की बात नही थी के उनमें से कोई एक जै के साथ लगी हुई थी. पर दूसरा सवाल अब भी बाकी था. कार में वो औरत कर क्या रही थी? इसका जवाब उसको जै ने दे दिया.

"पूरा मुँह में लो ... ज़ोर से चूसो" जै की आवाज़ आई.

और बिंदिया सोच में पड़ गयी.

जै की आवाज़ धीरे धीरे तेज़ होने लगी और उसका शरीर काँपने लगा. बिंदिया आँख जमाए पेड़ के पिछे खड़ी सब देख रही थी

"बस बस" जै ने कहा "रूको नही तो मेरा निकल जाएगा. कपड़े उतारो"

बिंदिया एक औरत थी और बातें करना तो कुद्रत ने खुद उसकी फ़ितरत में शामिल किया था. वो ये जानने के लिए मरी जा थी थी के गाओं की कौन सी औरत

जै के साथ मुँह काला कर रही थी. उसने गौर से देखने की कोशिश की कार में कौन थी ताकि बाद में बातें बना सके.

तभी जै आगे को हुआ और उसने कार का दरवाज़ा खोला.

"कपड़े उतारो" उसने अपने साथ कार में बैठी औरत से कहा

इससे पहले के जै उसको वहाँ देखता, बिंदिया फ़ौरन घूमी और चुप चाप वहाँ से निकल ली. वरना जै अगर उसको देख लेता तो बिंदिया की खैर नही थी. ये जानना के कार में कौन चुद रही थी इतना ज़रूरी नही था के बिंदिया अपनी जान की बाज़ी लगाए और पकड़े जाने का ख़तरा मोल ले.

पर जाते जाते एक लम्हे के लिए, और सिर्फ़ एक लम्हे के लिए, बिंदिया को कुच्छ ऐसा नज़र आया जिसने उसको सोचने पर मजबूर कर दिया.

जै उस औरत को उठाने की कोशिश कर रहा था और जहाँ से बिंदिया देख रही थी वहाँ से उसको जै नज़र आ रहा था. क्यूंकी वो उठकर सीधा बैठ गया था तो कार में जो भी औरत थी वो उसके पिछे छुप सी गयी थी. बिंदिया को नज़र आई सिर्फ़ उसकी सारी.

सारी देखकर ही बिंदिया समझ गयी थी के वो काफ़ी महेंगी टाइप की थी, रेशमी सारी, जो पहेन्ने की खेत में काम करने वाली किसी औरत की औकात नही थी.

बिंदिया खाने का डब्बा लिए उस तरफ बढ़ी जहाँ उसका पति काम कर रहा था. पूरे रास्ते उसके कानो में बस एक ही बात गूँझ रही थी. जै के शब्द.

"पूरा मुँह में लो ... ज़ोर से चूसो"

थोड़ी देर बाद वो अपने पति के पास पहुँची.

"आ गयी तुम" उसके पति ने कहा "बड़ी भूख लगी हुई थी. आज इतना वक़्त कैसे लग गया?"

बिंदिया ने कोई जवाब नही दिया और अपने पति का हाथ पकड़कर उस पेड़ की तरफ चल पड़ी जहाँ वो रोज़ाना उसको खाना परोसा करती थी.

"अर्रे क्या हो गया? हाथ तो धो आऊँ" उसके पति ने पास चल रहे ट्यूब वेल की तरफ इशारा किया पर बिंदिया ने ये बात अनसुनी कर दी और उसको लेकर पेड़ के नीचे पहुँची. खाने का डब्बा एक तरफ रखकर उसके अपने पति को धकेल कर पेड़ के सहारे खड़ा कर दिया और खुद उसके सामने अपने घुटनो पर बैठ गयी.

"क्या कर रही हो?" उसके पति ने पुछा पर बिंदिया ने उसकी बात का जवाब उसकी लूँगी को खोलकर दिया. अगले ही पल लूँगी ज़मीन पर पड़ी थी और पातिदेव पेड़ के सहर पूरे नंगे खड़े थे.

"अर्रे कोई देख लेगा" उसने झुक कर लूँगी उठाने की कोशिस की पर बिंदिया ने धक्का देकर उसको सीधा खड़ा कर दिया.

"सस्शह" हाथ अपने होंठों पर रख कर उसने अपने पति को चुप रहने का इशारा किया और उसके लंड पर नज़र डाली.

छ्होटा सा लंड मुरझाया पड़ा था.

"कर क्या रही हो?" उसके पति ने पुछा

बिंदिया आगे को बढ़ी और अपने पति की जाँघो को चूमा. वो अब भी अपना मंन नही बना पा रही थी के क्या वो ऐसा कर सकती है. उसने कभी ये काम किया नही था. किया क्या उसने तो सुना भी नही था. आज पहली बार ज़िंदगी में इस बात का अंदाज़ा हुआ था के ऐसा भी होता है .....

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:08 PM,
#14
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --14

गतान्क से आगे........................

एक हाथ से उसने लंड पकड़ा और धीरे से हिलाया. वो जानती थी के उसके पति को उसका लंड हिलाना बहुत पसंद है और ये नज़र भी आ गया. लंड पकड़ते ही पातिदेव की आँखें बंद हो गयी और वो पेड़ के सहर कमर टीका कर खड़ा हो गया.

"ओह रांड़ साली ....." आवाज़ आई "हर जगह चुदने को तैय्यार रहती है. पर नीचे बैठी क्या कर रही है चल घाघरा उठा, जल्दी से चोद देता हूँ तुझे. फिर मुझे काम है बहुत"

"स्शह," बिंदिया ने फिर इशारा किया. "खड़े रहो और चुप चाप मज़े लो."

वो उसका लंड हिलाती रही और अपनी होंठों से उसकी जाँघो को चूमती रही. खुद नीचे उसकी अपनी चूत भी गीली हो चुकी थी और लंड के लिए तैय्यार थी पर इस वक़्त बिंदिया के दिमाग़ में कुच्छ और था. वो एक ऐसा काम करने जा रही थी जो उसने अपनी शादी शुदा ज़िंदगी में कभी नही किया था.

लंड अब अकड़ना शुरू हो गया था. बिंदिया का हाथ तेज़ी से उपेर नीचे हो रहा था.

"हिलाके ही निकाल देगी क्या?" उसके पति की आवाज़ आई पर बिंदिया अपने काम में मगन थी.

धीरे धीरे बिंदिया ने अपना मुँह आगे करना शुरू किया. लंड उसके चेहरे से बस कुच्छ ही दूर था. हाथ अब भी लंड पर उपेर नीचे हो रहा था और लंड के साथ साथ नीचे लटके टटटे भी झूल रहे थे. बिंदिया के हलक से आह की आवाज़ निकली और उसने लंड को और तेज़ी से हिलाया ताकि वो अच्छी तरह से खड़ा हो सके. उसके पति के मुँह से आती आवाज़ों से वो अच्छी तरह जानती थी के उसको बहुत मज़ा आ रहा है.

कैसी शुरू करूँ सोचते हुए बिंदिया ने अपनी जीभ एक बार अपने होंठों पर घुमाई और नीचे हिलते टट्टो पर धीरे से फिराई. जीभ पर अजीब सा नमकीन टेस्ट आ गया. उसके एक बार फिर अपनी जीभ बाहर निकाली और फिर वही काम किया.

हाथ अब भी तेज़ी से लंड हिला रहा था.

उसने अब लगातार टट्टो पर जीभ घुमानी शुरू कर दी. सामने खड़े उसके पति ने अपनी आँखें खोलकर देखा और चौंक पड़ा.

"क्या कर रही हो?" वो हिलने लगा पर एक हाथ से बिंदिया ने फिर उसको पेड़ के सहारे धकेल दिया.

जब वो फिर चुप चाप खड़ा होकर बिंदिया को हैरत से देखने लगा तो बिंदिया ने अपना एक हाथ उसकी टाँगो के बीच से पिछे घुमाया और उसकी गांद को पकड़ लिया. टट्टो को वो अब भी चाट रही थी और जिस तरह से लंड उसके हाथ में अकड़ रहा था वो जानती थी के बहुत जल्द खेल ख़तम हो जाएगा और उसका हाथ वीर्य से भर जाएगा.

अब भी उसको समझ नही आ रहा था के आगे क्या करे. करे या ना करे?

पर अब तक खुद उसके दिल में भी ये भावना जाग चुकी थी के लंड को एक बार मुँह में लेके देखे. देखे के कैसा लगता है लंड चूसना. बिस्तर पर हमेशा

वो कुच्छ नया करने को तैय्यार रहती थी और ये तो पूरी तरह नया था.

अगर कार में वो औरत जै का चूस सकती है तो मैं भी अपनी पति का चूस ही सकती हूँ, उसने सोचा. उसका लंड, छ्होटा सा ज़रूर था पर कितना अकड़ गया था.

एक आह की आवाज़ के साथ बिंदिया ने अपनी जीभ टट्टो पर पूरी तरह से घुमाई, उन्हें अच्छे से चॅटा और दोनो बॉल्स को अपने मुँह में भर लिया.

"आआहह" उसके पति की आवाज़ आई पर उसने बिंदिया को रोकने की कोई कोशिश नही की.

मुँह में दोनो बॉल्स को लेटे ही बिंदिया के शरीर में एक अजीब सा करेंट दौड़ गया जो उसके सर से होता हुआ सीधा उसकी टाँगो के बीच जाकर रुका. अगले ही पल उसकी

चूत से भी पानी बह चला. उसके मुँह से अजीब सी आवाज़ निकल पड़ी जो मुँह में भरे हुए टट्टो की वजह से पूरी तरह बाहर ना आई. हाथ अब भी तेज़ी के साथ लंड हिला रहा था.

अब उसके हाथ के साथ साथ उसके पति ने भी अपनी गांद हिलानी शुरू कर दी थी जैसे बिंदिया के हाथ को ही चोद रहा था. बिंदिया ने अपना मन पक्का किया और उसके टट्टो को मुँह से निकाला.

वो लंड मुँह में लेने की सोच ही रही थी के एक वीर्य की तेज़ धार सीधी उसके मुँह पर आकर गिरी.

दूसरी उसके सर पर.

तीसरी सीधी उसके होंठो पर.

वो थोड़ी पिछे को हुई और उसके बाद उसके पति का वीर्य लंड से निकलता हुआ सीधा उसके ब्लाउस पर गिरने लगा. कुच्छ ब्लाउस के उपेर गले के पास गिरा और बहता हुआ नीचे उसकी छातियो के बीच चला गया.

बिंदिया मन मसोस कर रह गयी. जो काम वो करना चाह रही थी वो पूरा कर नही पाई.

उस दिन के बाद बिंदिया की दोनो ख्वाहिश सिर्फ़ ख्वाहिश ही रह गयी.

उस दिन के बाद उसके पति ने कभी उसको अपना मुँह में नही लेने दिया. जब भी

बिंदया ऐसी कोशिश करती , वो उसको ये कहके रोक देता के ऐसा करना ग़लत है. बिंदिया मन मारकर रह जाती.

दूसरा जब भी वो अपने पति से ये बात करती के उस दिन कार में जै के साथ कौन औरत हो सकती थी, वो हर बार ये कहकर बात टाल जाता ले उन्होने ठाकुर खानदान का नमक खाया है और उनके खिलाफ बोलना ठीक नही है.

और कुच्छ दिन बाद ही उसका पति साँप के काट लेने से इस दुनिय से चलता हुआ.

कुच्छ दिन तक बिंदिया अपने उस झोपड़ी में अपनी बेटी के साथ रही और फिर चंदर को गोद ले आई. चंदर को वो प्यार से चंदू कहकर बुलाती थी. वो बचपन से ही गूंगा था. कुच्छ बोल नही सकता था पर दिमाग़ का बहुत तेज़ था. हर काम बड़ी तेज़ी से सीखता और बहुत मेहनत से करता. बिंदिया के साथ साथ वो भी ठाकुर के खेतों में काम करने लगा.

एक दिन बिंदिया को खबर मिली के ठकुराइन को सीढ़ियों से गिरने की वजह से बहुत चोट आई है और वो बिस्तर पर हैं. ठाकुर साहब का बड़ा बेटा पुरषोत्तम उन दिनो विदेश में था. इलाज करने के लिए ठकुराइन को भी अपने बेटे के पास विदेश भेज दिया गया. ठाकुर साहब की तरफ से बिंदिया को फरमान मिल चुका था के जैसे ही ठकुराइन वापिस आए, वो उनकी देखभाल के लिए हवेली में ही आकर रहना शुरू कर दे.

इन दिनो के आस पास ही ऐसा कुच्छ हुआ के बिंदिया का अपने मुँह बोले बेटे चंदू के साथ रिश्ता बदल गया.

चंदर तब करीब 17 साल का था. बिंदिया दोपहर के करीब खाना लेकर खेत के उस तरफ चली जहाँ चंदर काम कर रहा था. ये उसकी बहुत पुरानी आदत आज भी वैसे ही थी. कई साल पहले वो अपनी पति के लिए खाना लेकर जाती थी और अब अपने बेटे के लिए.

वो खेत में पहुँची तो चंदर कहीं दिखाई नही दिया. उसको ढूँढती बिंदिया ट्यूब वेल की तरफ गयी तो चंदर मिल गया पर वो अकेला नही था.

उसके साथ सुनीता थी.

सुनीता गाओं की ही एक लड़की थी और चंदर से करीब 3 साल बड़ी थी. वो उस वक़्त ट्यूब वेल के नीचे बैठी नहा रही थी. चंदर किनारे पर बैठा उसको देख रहा था.

"चंदू चल खाना खा ले बेटा" कहती हुई बिंदिया नज़दीक आई. चंदू ने उसकी आवाज़ सुनी तो फ़ौरन पलटकर उसको देखा. वो एक पल के लिए खड़ा होने लगा पर फिर अपनी जगह पर बैठ गया.

सुनीता भी ट्यूब वेल के नीचे से निकल कर बाहर आ गयी. उसने उस वक़्त एक हल्के गुलाबी रंग की सलवार कमीज़ पहेन रखी थी और पूरी तरह भीगी हुई थी.

"आजा तू भी खा ले" बिंदिया ने सुनीता से कहा. सुनीता ने फ़ौरन हां में सर हिला दिया.

"आप चलो, मैं हाथ मुँह धोके आता हूँ" चंदू ने इशारे से बिंदिया को कहा.

"जल्दी आना" बिंदिया ने उसको जवाब दिया और सुनीता को साथ लेकर उस तरफ चल पड़ी जहाँ वो खाना छ्चोड़ कर आई थी.

उनके पिछे पिछे ही चंदू भी आ गया और उसके आते ही बिंदिया समझ गयी के वो उनके साथ क्यूँ नही आया था. उसका पाजामा सामने की तरफ से अजीब तरह उठा हुआ था.

बिंदिया समझ गयी के ऐसा क्यूँ है और क्यूँ चंदू सुनीता के पास बैठा हुआ था. सुनीता शरीर से पूरी तरह औरत थी और चंदू उसके भीगे हुए शरीर को निहार रहा था.

बिंदिया को शरम भी आई और हैरत भी हुई. जिस चंदू को वो बच्चा समझती थी वो कब इतना जवान हो गया था उसको खबर ही ना हुई थी..

वो तीनो ही खाना खाने के लिए बैठ गये. बिंदिया ने महसूस किया के खाने खाते हुए भी चंदू नज़र बचा कर बार बार सुनीता की तरफ देख रहा था जो अभी भी भीगी हुई थी. गुलाबी रंग के उसके सूट में से उसके शरीर का हर अंग सॉफ सॉफ नज़र आ रहा था.

बिंदिया ने दिल ही दिल में चंदू को दोष नही दिया. सुनीता शकल से खूबसूरत थी और शरीर पूरी तरह भरा हुआ था. पर चंदू अभी काफ़ी छ्होटा था, कम से कम बिंदिया को तो ऐसा ही लगता था.

कुच्छ देर बाद खाना खाकर चंदू उठ गया और सुनीता भी चली गयी. बिंदिया बर्तन समेट कर वापिस घर आने लगी तो चंदू ने इशारे से कहा के वो भी घर जाकर थोड़ी देर सोना चाहता है. वो दोनो साथ साथ वापिस झोपड़ी में पहुँचे.

चंदू झोपड़ी में पड़ी चारपाई पर आँखें मूंद कर लेट गया. दोपहर का वक़्त था. थोड़ी देर बाद बिंदिया भी आराम करने के इरादे से ज़मीन पर चादर बिच्छा कर लेट गयी और उसकी आँख लग गयी.

थोड़ी देर बाद उसकी आँख खुली तो चंदू चारपाई पर नही था. शायद खेत पर चला गया हो, बिंदिया ने सोचा. वो उठी और उसको ढूँढती झोपड़ी के पिछे आई तो हैरत से उसकी आँखें खुली रह गयी.

झोपड़ी के पिछे बैठा चंदू अपना लंड हिला रहा था.

बिंदिया के आने की आवाज़ सुनकर वो उठा और खड़ा हो गया पर अपना लंड च्छुपाने की कोई कोशिश नही की. बिंदिया को भी जाने क्या सूझा पर वो भी वहीं खड़ी एकटूक चंदर की तरफ देखती रही. उसका लंड अब भी उसके हाथ में था जिसको वो बेशर्मी से बिंदिया के सामने ही हिला रहा था.

बिंदिया को अपनी और चंदू की हालत का अंदाज़ा तब हुआ जब उसकी खुद की टाँगो के बीच उसे गीला पन महसूस हुआ. उस गीलेपन ने बिंदिया को एहसास दिलाया के वो अपने मुँह बोले बेटे को देखकर ही गरम हो रही थी.

वो फ़ौरन ही पलटी और झोपड़ी के अंदर आ गयी.

पीछे पीछे ही चंदू भी अंदर आ गया और उस दिन मुँह बोली माँ और मुँह बोले बेटे का रिश्ता ख़तम होकर दोनो के बीच एक आदमी और औरत का रिश्ता बन गया.

........................

ख़ान जानता था के उसके पास टाइम बहुत कम था. जै की पोलीस रेमांड ख़तम होने वाली थी मतलब उसपर मुक़दमा

शुरू होने के दिन काफ़ी नज़दीक आ गये.

और ख़ान ये भी जानता था के ये मुक़दमा ज़्यादा दिन नही चलने वाला. जल्द से जल्द केस को निपटाया जाएगा और जै को फाँसी पर टंगा दिया जाएगा.

"मुझे समझ नही आ रहा के कहाँ से शुरू करूँ यार" वो जै से मिलने जैल आया हुआ था "जिधर से भी घूमके देखूं, हर किसी का कोई ना कोई अलीबी है. हर कोई क़त्ल के वक़्त या तो किसी और के साथ था या उसको कहीं और किसी

ना किसी ने देखा था. क़त्ल के वक़्त ठाकुर साहब के वक़्त तुम्हारे सिवा कोई भ उनके आस पास नही था"

"बाकी लोगों से बात की आपने?" जै ने पुछा

"कहाँ यार" ख़ान ने साँस छ्चोड़ते हुए कहा "साला पोलीस इन्वेस्टिगेशन के लिए भी ऐसे बुलाना पड़ता है जैसे कहीं शादी में बुला रहे हों और फिर साले आते भी नही. ठाकुर ना हुए राजा हो गये यहाँ के"

"उनका रुतबा इस इलाक़े में राजा से कम नही है ख़ान साहब" जै ने कहा "मेरी मानिए तो पुच्छने का काम नौकरों से

शुरू कीजिए"

उसी दिन शाम को ख़ान अपने घर में बैठा फिर से पहेली सुलझाने की कोशिश कर रहा था. सामने डाइयरी थी और हाथ में पेन.

वो बड़ी खुशी खुशी ये थेओरी अपना लेता के ठाकुर को बाहर के किसी आदमी ने मारा है. ऐसा हो सकता था. ख़ान ने हवेली का पूरा जायज़ा लिया था. चारों तरफ एक तकरीबन 15 फुट ऊँची दीवार थे जिसपर बिजली के तार थे. उन तारों में 24 घंटे करेंट रहता था यानी किसी का भी दीवार कूदकर आ पाना ना-मुमकिन था.

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:08 PM,
#15
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --15

गतान्क से आगे........................

पर फिर भी अगर दिमाग़ लगाया जाए तो मुश्किल भी नही था. एक सीढ़ी लगाकर उपेर चढ़े, कोई चमड़े या लकड़ी की चीज़ से तारों को दबाना और अंदर कूद जाना मुश्किल नही था. बाउंड्री वॉल और हवेली के आस पास काफ़ी सारी ज़मीन खाली थी जिसमें गार्डेन बनाया हुआ था और काफ़ी सारे पेड़ थे. ये मुमकिन था का कोई पहले ही वहाँ आकर च्छूपा बैठा हो, मौका मिलने पर खिड़की से ठाकुर साहब के कमरे के अंदर गया हो और क़त्ल करने के बाद फिर वहीं से निकल कर बाहर आ गया हो. जब खून का पता चला तो हर कोई हवेली में ठाकुर साहब के कमरे पर पहुँच गया था. यानी बाहर कोई नही था और उस आदमी के लिए हवेली के कॉंपाउंड से निकल कर भागना बहुत आसान था.

पर उसकी इस थियरी को सिर्फ़ एक ही बात नाकाम कर देती थी. और वो बात ये थी के ठाकुर के कमरे की खिड़की अंदर से बंद थी. यांकी वहाँ से कोई निकल कर नही भागा था.

ख़ान ने ठंडी आह भारी और फिर अपनी पुरानी थियरी पर आ गया के खून किसी घर के आदमी ने ही किया है.

उसके सामने ठाकुर की पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट की एक कॉपी रखी थी. ख़ान ने वो फिर खोली और इस उम्मीद से पढ़ने लगा के शायद कुच्छ यहाँ से समझ आ जाए पर ऐसा भी नही हुआ.

ठाकुर का क़त्ल एक स्क्रूड्राइवर से किया गया था जो किसी भी घर में बड़ी आसानी से मिल जाता है. उनके राइट आर्म के नीचे 2 वार किए गये थे. पहला हल्का और दूसरा पूरी ताक़त के साथ. दूसरा वार जानलेवा साबित हुआ था.

ख़ान ने रिपोर्ट बंद की और फिर से अपनी डाइयरी में सबके नाम लिखे. हर क़त्ल एक मकसद से किया जाता है और इस खून की पिछे भी एक मकसद तो होगा ही.

1. पुरुषोत्तम - क्या मकसद हो सकता है? उसके बाप ने सब कुच्छ उसको ही सौंप रखा था. सारा काम वो खुद ही देखता था.... अपने बाप को मारकर इसको क्या मिलेगा?

2. रूपाली - ससुर को मारने की इसके पास भी कोई वजह नही. एक शादी शुदा औरत जिसके पास खुला पैसा था. ये क्यूँ मारेगी ???????

3. तेज - इसके पास मोटिव है. ठाकुर इसको जायदाद के मामलो से अलग ही रखता था और वजह थी इसकी अययाशी की आदत. जायदाद के लिए हो सकता है के इसने गुस्से में अपने बाप का काम कर दिया हो.

4. कुलदीप - फॉरिन में पढ़ता है. ब्राइट फ्यूचर है. छुट्टी में आया हुआ है. ये क्यूँ मारेगा ????

5. कामिनी - घर की सीधी सादी बेटी. शादी करके एक अमीर घर से दूसरे घर में चली जाती. इसके पास क्या वजह हो सकती है ???

6. सरिता देवी - व्हील चेर पर बैठी एक बीमार औरत जिसका नीचे का शरीर हिलता ही नही. पहली बात तो ये के अपने पति को मारकर ये जाए भी तो कहाँ और दूसरा ये के अगर मारना चाहे भी तो इसके बस का नही के ठाकुर

जैसे हत्ते कत्ते आदमी को मार सके. और जिस वक़्त खून हुआ ये बाहर बैठी हुई थी इस बात की गवाही कई लोग दे रहे हैं. कोई मकसद नही ......

7. भूषण - बुड्ढ़ा ड्राइवर. फिर वही बात. ठाकुर इसके जैसे 10 को अकेला संभाल लेता. ये भला ठाकुर को कैसे मारेगा. और दूसरा ये के जब खून हुआ तो ये बाहर गाड़ी निकाल रहा था इसकी गवाही भी कई लोग दे रहे हैं. कोई

मक़सद नही ....

8. बिंदिया - घर की नौकरानी. दूर दूर तक कोई मकसद नही ......

9. पायल - घर की नौकरानी. दूर दूर तक कोई मकसद नही ......

10. चंदर - ये चाहता तो खून कर सकता था. लंबा चौड़ा जवान है. ठाकुर को संभाल सकता था. पर ये हवेली के मैन गेट पर ये पहरा दे रहा था इस बात की गवाही भी कई लोग दे रहे हैं. और इसके पास भला क्या मकसद हो सकता है .....

ख़ान ने अपनी लिस्ट को ख़तम किया और सिगरेट जलाई. अचानक उसको ध्यान आया के वो एक नाम भूल गया.

11. इंद्रासेन राणा - ये खून की रात एग्ज़ॅक्ट्ली हवेली में कर क्या रहा था? पर अपनी बहेन के ससुर को मारकर उसका घर उजाड़ने की इसके पास भी क्या वजह होगी?????

ख़ान ने लिस्ट को फिर देखा और परेशान होकर सर खुजाने लगा.

बिस्तर पर चंदर कंबल ओढ़े पढ़ा था. उसी कंबल में उसके साथ उसके साथ बिंदिया थी, पूरी की पूरी नंगी. चंदर ने उसको थोड़ी देर पहले ही चोदा था ज्सिके बाद वो फ़ौरन ही सो गयी थी. बिंदिया का सर चंदर की छाती पर था और वो उससे लिपटी हुई सो रही थी.

चंदर ने एक नज़र बिंदिया के चेहरे पर डाली और मुस्कुरा उठा.

इस औरत ने उसको वो सब दिया था जो एक औरत किसी भी मर्द को दे सकती है.

बिंदिया उसके लिए कभी माँ बनी, तो कभी बड़ी बहेन, कभी एक अच्छी दोस्त की तरह उसके साथ बातें की और आज बीवी बनी उसकी बाहों में नंगी पड़ी थी. एक औरत एक ही साथ इतने रूप निभा सकती है, ये चंदर कभी सोच भी नही सकता था.

बिंदिया ने उसको हमेशा ही अपने सगे बेटे की तरह माना था.उसने कभी चंदर और अपनी बेटी पायल में कोई फरक नही किया. जो पायल को दिया, वही और उतना ही चंदर को भी दिया. पर ना जाने क्यूँ चंदर कभी उसको अपनी माँ के रूप में नही देख पाया. चंदर के लिए वो सिर्फ़ एक औरत थी जिसने उसको उस वक़्त सहारा दिया था जब उसके माँ बाप मर चुके थे.

ऐसा नही था के चंदर ने उस एहसान का बदला नही चुकाया था. बड़ा होने के बाद घर की सारी ज़िम्मेदारी उसने उठा ली थी. इस वक़्त भी खेतों में मज़दूरी करके वही कमाकर लाता था जिससे बिंदिया और रूपाली का भी पेट भरता था.

वो एक बेटे होने के पूरे फ़र्ज़ तो निभा रहा था पर कभी एक बेटा नही बन पाया. बिंदिया में कभी उसको अपनी माँ नज़र नही आई.

माँ ... चंदर को अपनी माँ आज भी याद थी. वो छ्होटा ज़रूर था पर माँ की कुच्छ यादें आज भी उसके साथ थी. और उन में से एक वो याद भी थी जब उसने अपनी माँ को ज़िंदा जलते देखा था.

गाओं के एक बानिए के घर में पूजा थी. उसके माँ बाप दोनो बानिए के घर काम करने गये थे. चंदर छ्होटा था और बोल नही पता था इसलिए उसको साथ ले गये थे. ठीक से तो चंदर को याद नही था पर फिर रात में कोई हंगामा मचा, गोलियों की आवाज़ सुनाई दी और हर तरफ आग लग गयी.

चंदर भाग दौड़ में अपने माँ बाप से अलग हो गया. और जब वो थोड़ी देर बाद उसको मिले तो उसके बाप की लाश ज़मीन पड़ी थी और उससे लिपटी उसकी माँ रो रही थी.

और फिर कमरे की छत भरभरा कर नीचे आ पड़ी.

उसकी माँ के उपेर.

वो जानता था के अंदर उसकी माँ ज़िंदा जल रही थी. उसकी चीख की आवाज़ वो आज भी सुन सकता था. और फिर उसको वो इंसान नज़र आया जो इस सबका ज़िम्मेदार था. काले घोड़े पर बैठा वो आदमी जिसके हाथ में एक बड़ी सी बंदूक थी.

वो आदमी जिसने चेहरे पर एक कपड़ा बाँध रखा था और कपड़ा एक पल के लिए हटा था.

वो आदमी जिसका चेहरा चंदर ने उस रात देखा था पर जानता नही था के कौन है.

वो आदमी जो उसको बाद में पता चला था के ठाकुर शौर्या सिंग था.

उसी दिन से वो ठाकुर से नफ़रत करने लगा. जैसे जैसे वो बड़ा होता गया, ये नफ़रत बदले की भावना में बदल गयी. और जाने कब ये बदले की भावना ठाकुर का खून करने के इरादे में तब्दील हो गयी.

किस्मत ने उसका साथ दिया था और बिंदिया ने उसको गोद ले लिया, वो बिंदिया जो खुद ठाकुर के यहाँ काम करती थी. हवेली में घुसना चंदर के लिए नामुमकिन था. वो ठाकुर के कहीं आस पास नही फाटक सकता था, उसको मारना तो दूर की बात थी. वो सही मौके के इंतेज़ार में ही था के एक दिन जैसे उसकी उपेरवाले ने सुन ली.

बिंदिया ने उसको बताया के वो हवेली में ही रहेगी क्यूंकी ठकुराइन को बहुत चोट आ गयी है. चंदर खुश हो उठा.

वो जानता था के बिंदिया का हवेली में रहना मतलब उसका और पायल का भी हवेली में ही रहना. इस तरह से वो 24 घंटे हवेली में ठाकुर के आस पास रह सकता था और मौका मिलने पर उसका काम तमाम कर सकता था. दिल ही दिल में उसने पूरा एक प्लान तक बना डाला था.

पर किस्मत को कुच्छ और ही मंज़ूर था.

बिंदिया ने उसको बताया के वो अकेली ही हवेली में रहेगी. ठाकुर साहब ने कहा था के वो चंदर को खेतों में ही रहने को छ्चोड़ दे ताकि वो खेतों की रखवाली कर सके.

चंदर को उस दिन अपना बना बनाया प्लान बिखरता नज़र आया. उसने बिंदिया से लाख ज़िद की के वो अकेला नही रहेगा और हवेली जाएगा पर बिंदिया ने उसकी एक नही सुनी. चंदर दिन रात इसी कोशिश में रहता के बिंदिया को इस बात के लिए मना ले के वो उसे अपने साथ हवेली ले जाए.

और ये मौका भी किस्मत ने अपने आप ही उसकी झोली में डाल दिया.

उस दिन खेत पर सुनीता उससे मिलने आई थी. सुनीता दिखने में सीधी थी पर थी पक्की रांड़. किसी ना किसी बहाने से चंदर को अपना शरीर का कोई ना कोई हिस्सा दिखती रहती थी. कभी उसके सामने झुक कर अपनी चुचियाँ दिखाती तो कभी गांद मटका मटका कर चंदर के सामने से गुज़र जाती.

और फिर उस दिन तो हद ही हो गयी थी. वो चंदर के सामने ही ट्यूबिवेल में बैठी नहाने लगी. कपड़े उसने यूँ तो पहेन रखे थे पर उनका होना ना होना एक बराबर ही था. उसका एक एक अंग कपड़ो के उपेर उभर आया था और चंदर का अपने आपको रोकना मुश्किल हो गया था. उसका लंड तन कर टाइट खड़ा हो गया था और वो कुच्छ करने की सोच ही रहा था के वहाँ बिंदिया आ गयी.

उस दिन घर आकर बिंदिया के सो जाने के बाद चंदर घर के पिछे जाकर अपना लंड हिलाने लगा ताकि ठंडा हो सके. सुनीता को देखने के बाद उसके तन मंन में आग सी लगी हुई थी. तभी जाने कैसे बिंदिया उठकर सीधा झोपड़ी के पिछे आ गयी.

चंदर हड़बड़ा कर उठ खड़ा हुआ और फिर पाजामा उपेर कर ही रहा था के उसको एहसास हुआ के बिंदिया उसके लंड की और ही देख रही थी और एकटूक देखे जा रही थी.

और उसी पल चंदर समझ गया था के उसको क्या करना है.

ये औरत बिस्तर पर जाने कितने सालों से गरम थी. वो बिना झिझके बिंदिया की तरफ बढ़ा. उसको लगा था के बिंदिया मना करेगी पर ऐसा हुआ नही. वो किसी पक्की रंडी की तरह बिस्तर पर चुदी.

अगर चंदर ने अपने और उस औरत के बीच के रिश्ते की कोई कदर नही की तो बिंदिया ने भी उस रिश्ते को दिल दिमाग़ से पूरा निकाल दिया था.

उस दिन से वो दिन में तो माँ बेटे की तरह होते थे पर रात में दोनो मिलकर चारपाई तोड़ते थे.

और चंदर समझ गया था के जब तक वो इस भूखी शेरनी को बिस्तर पर मास डालता रहेगा वो चंदर को अपने साथ रखेगी. और ऐसा हुआ भी. कुच्छ रातों बाद बिंदिया ने कह दिया के वो ठाकुर साहब से ज़िद करके उसे भी अपने साथ हवेली ले जाएगी क्यूंकी अब चंदर के बिना उसे नींद आएगी नही.

चंदर को अपना प्लान सफल होता नज़र आ रहा था.

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:09 PM,
#16
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --16 

गतान्क से आगे........................

वो अपनी सोच में ही गुम था के अपने लंड पर उसे एक आठ महसूस हुआ. हाथ बिंदिया का था. वो जाग गयी थी. चंदर के उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा.

"क्या हुआ?" उसने इशारे से पुच्छा "क्या चाहिए?"

"तेरा लंड" बिंदिया ने कहा और पूरी चंदर के उपेर चढ़ गयी.

चंदर अपनी सोच में ही गुम था के अपने लंड पर उसे एक हाथ महसूस हुआ. हाथ बिंदिया का था. वो जाग गयी थी. चंदर के उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा.

"क्या हुआ?" उसने इशारे से पुछा "क्या चाहिए?"

"तेरा लंड" बिंदिया ने कहा और पूरी चंदर के उपेर चढ़ गयी.

पर चंदर बिंदिया को तड़पाने के मूड में था. जैसे ही बिंदिया उसके उपेर आई, उसने उसके कंधे पकड़े और फिर बिस्तर पर गिरा दिया और खुद उसके उपेर आ गया.

"क्या चाहिए?" उसने फिर इशारे पुछा

"तेरा लंड" बिंदिया ने जवाब दिया. वो पूरी तरह से नंगी पड़ी थी.

"कहाँ चाहिए?" चंदर ने फिर इशारा किया.

"अर्रे तू जहाँ चाहे डाल दे. एक विधवा औरत को बिस्तर पे गरम करके पुछ्ता है के कहाँ घुसाना है? तू जहाँ चाहे घुसा दे" बिंदिया बेसब्री होती हुई बोली.

उसने एक हाथ अपने और चंदर के बीच में घुसाके उसका लंड पकड़ लिया. खुद वो बिस्तर पर अपनी कमर पर लेटी हुई. टांगे दोनो फेली हुई और टाँगो के बीच चंदर बैठा था. चादर कबकि सरक कर बिस्तर से नीचे गिर चुकी थी.

बिंदिया ने लंड पकड़ कर उपेर उपेर से ही अपनी चूत पर रगड़ा.

"म्‍म्म्मम, और तू बता, तुझे क्या चाहिए?" वो मुस्कुराइ.

चंदर ने उसकी चूत की तरफ इशारा किया

"तो डाल ना अंदर. रुका क्यूँ है," बिंदिया चंदर को अपनी बाहों में खींचती हुई बोली. उसने अपनी टांगे और खोली और गांद थोड़ी हवा में उठाई ताकि चंदर पूरी तरह से उसकी चूत में समा सके

"तेरा जब दिल करे तब आके घुसा ले, मैं रोकूंगी नही." बिंदिया मदहोश सी आवाज़ में बोली

उसने अपने दोनो हाथों से चंदर की गांद को जाकड़ लिया.अपने घुटने को अच्छी तरह फेलते हुए मोड़ा और अपने चूत को लंड पर दबाया. लंड का अगला हिस्सा बड़ी आसानी से चूत में घुसता चला गया.

"आआहह" बिंदिया ने आह भरी और अपनी आँखें बंद कर ली.

चंदर उपेर से बिंदिया की तरफ देख कर मुस्कुराया. बिंदिया पूरी तरह उसके वश में थी. वो जो चाहता, वही करती.

बिंदिया ने चंदर का चेहरा पकड़ा और अपनी छातियो की तरफ खींचा. उसका एक हाथ चंदर के सर पर था और दूसरा हाथ उसकी गांद पर.

"आधी रात को फिर से गरम कर दिया तूने मुझे" बिंदिया बड़बड़ाई, नीचे से वो अपनी गांद हिलकर अपनी चूत चंदर के लंड और टट्टो पर रगड़ रही थी.

और फिर कमरे में वाशना का तूफान सा आ गया. दोनो में से किसी को होश नही था के नीचे ज़मीन पर एक 10-12 साल की बच्ची पायल सो रही थी. चंदर ने लंड चूत में तेज़ी के साथ अंदर बाहर करना शुरू कर दिया और बिंदिया ने अपनी दोनो टांगे कसकर उसकी कमर पर मोड़ ली. उपेर से आते चंदर के हर धक्के का जवाब वो नीचे से अपनी गांद उठाकर दे रही थी. अपनी दोनो पैर उसने चंदर की गांद पर अड़ा रखे थे. वो थोड़ी देर पहले ही चंदर से चुदवा कर सोई थी पर चंदर समझ चुका था के इस औरत को वो जितना चाहे चोदे, उसको कभी भी पूरा नही पड़ेगा.

नीचे से बिंदिया पागल की तरह कराहती हुई अपनी गांद हिला रही थी. लंड चूत में पूरा अंदर बाहर हो रहा था. चोदते चोद्ते चंदर ने उसकी एक चूची अपने मुँह में ले ली और निपल चूसने लगा. कभी वो निपल को होंठो में दबाके छूता, कभी जीभ फिराता और कभी दाँत से काट देता. नीचे से बिंदिया की आती आवाज़ को सुनकर वो जानता था के उसके नीचे जो औरत थी, वो बिस्तर पर किसी रंडी से कम नही थी.

"म्‍म्म्मम, ज़ोर से, ज़ोर से , चंदर!" बिंदिया जैसे चिल्ला उठी. "ओह्ह्ह्ह, चंदर, चोद मुझे! ह, बहुत मज़ा आ रहा है, पूरा अंदर घुसा.... हां ऐसे ही ... आअहह!"

चंदर पूरी ताक़त से लंड चूत में अंदर बाहर करने लगा.

"चोद बेटा, चोद मुझे!" नीचे पड़ी बिंदिया उसको और उकसा रही थी. "अपनी माँ को ही चोद रहा है तू ....आआहह ... मर्द की तरह चोद, बच्चे की तरह क्या चोद रहा है ... और ज़ोर से ... और ज़ोर से!"

चंदर ने अपने दोनो हाथों से बिंदिया की गांद को पकड़ा हुआ था और रगड़ रहा था. उसकी एक अंगुली गांद पर सरकते सरकते सीधी बिंदिया के गांद के बीच आआए.

"आआअहह!" बिंदिया तड़प उठी. "ये क्या कर रहा है ... यहाँ भी घुसाएगा क्या?!"

उसकी आवाज़ सुनते ही चंदर ने भी बिना रुके अपनी अंगुली थोड़ी सी बिंदिया की गांद के अंदर कर दी और पूरी तेज़ी से लंड अंदर बाहर करने लगा.

गांद में अंगुली जाते ही बिंदिया किसी नागिन की तरह फूंकारने की आवाज़ करने लगी. चंदर की आँखों में देखते हुए वो उसकी अंगुली पर अपनी गांद सिकोड़ने लगी और अचानक आगे को होकर उसका निचला होंठ चूसने लगी. चूसने क्या वो तो जैसे उसका होंठ चबा रही थी. चंदर को एक पल के लिए लगा के मज़े के कारण कहीं ये औरत बिस्तर पर मर ही ना जाए.

"ऊओ! ह, ज़ोर से, ज़ोर से!" को चिल्लाई. "पूरा मर्द हो गया है रे तू तो! सोचा भी नही था मैने के जिस ज़रा से बच्चे को अपने घर लेके आ रही हूँ वहीं एक दिन बिस्तर पर मुझे रगड़ेगा. कब इतना बड़ा हो गया रे तू के अपनी माँ के बराबर की औरत को चोद रहा है?"

बिंदिया बड़बदाए जा रही थी

चंदर का पूरा ध्यान अपने लंड की तरफ था जिसे वो बिंदिया के चूत में अंदर बाहर होता देख रहा था. बिंदिया की चूत कितनी गीली हो रखी थी और कितनी आसानी से उसका लंड ले रही थी.

अचानक बिंदिया का पूरा शरीर जैसे थर्रा उठा. उसने अपनी गांद हवा में जितना हो सका उठा दी और लंड चूत में पूरा का पूरा ले लिया. उसकी साँस जैसे अटकने लगी थी. चंदर के हर धक्के पर उसकी चूचियाँ हिल रही थी जिन्हें बिंदिया ने अपने दोनो हाथों में जाकड़ लिया.

"मेरा निकलने वाला है चंदर!" वो बोली. "अब रुकना मत ... रुकना मत! हे भगवान! हन ऐसे ही ... करता रह !ज़ोर से, ज़ोर से! ज़ोर से चोद, चंदर! मार मेरी चूत! घुसा दे अंदर, और अंदर, और तेज़!"

चंदर ने ठीक उसी पल अपनी अंगुली तकरीबन आधी बिंदिया की गांद के अंदर कर दी. और इसी के साथ बिंदिया ने उसको बुरी तरह जाकड़ लिया, अपने दाँत उसके कंधे पर गढ़ा दिए.

"आआहह!" बिंदिया चिल्लाई. "मर गयी मैं!"

चंदर भी पूरी तेज़ी से अपने लंड चूत में अंदर बाहर करने लगा. वो लंड पूरा बाहर निकाल लेता और फिर से अंदर घुसाता. और फिर उसके गले से एक भारी आवाज़ निकली और लंड से वीर्य छ्होट पड़ा और बिंदीय की चूत को भरने लगा.

बिंदिया को चूत में भरते हुए चंदर के पानी का एहसास हुआ तो वो एक बार फिर चिल्ला उठी.

ठकुराइन सरिता देवी डरी सहमी एक तरफ खड़ी थी. उनकी गाड़ी के पास ही उनके ड्राइवर की लाश पड़ी थी जिसका गला काट कर जान ले ली गयी थी. हत्यारे उनके सामने ही खड़े थी.

वो राजन के लोग थे ये बात वो समझती थी. राजन उस इलाक़े का एक जाना माना डकेट था जो रात को सड़क से गुज़रते मुसाफिरो को लूटने के लिए मश-हूर था. इस वक़्त उनके गिरोह ने ठकुराइन की गाड़ी को रोक कर उन्हें घेरा हुआ था.

अपनी बहेन के घर से निकलते वक़्त ही ठकुराइन को लग गया था के वो ठीक नही कर रही हैं. वो अपनी छ्होटी बहेन से मिलने पास के गाओं आई हुई थी.

साथ में एक ड्राइवर था और वो 17-18 साल का लड़का. उनका इरादा तो रात को रुक कर अगले दिन जाने का था और ठाकुर साहब से भी वो यही कह कर आई थी पर उस लड़के की ज़िद पर वो शाम को ही निकल पड़ी.

वो जब अपने घर के लिए वापिस निकली तो शाम के तकरीबन 5 बज रहे थे. यूँ तो रास्ता सिर्फ़ 3 घंटे का था और ठकुराइन जानती थी के अंधेरा होते होते वो वापिस हवेली पहुँच जाएँगी पर उस दिन किस्मत ही धोखा दे गयी.

रास्ते में पहले तो गाड़ी पंक्चर हुई और फिर खराब जिसका नतीजा ये निकला के अब वो अकेली 6 लोगों से घिरी खड़ी थी और ड्राइवर की लाश नीचे ज़मीन पर पड़ी थी.

अंधेरा फेल चुका था. रात के यूँ तो सिर्फ़ 9 ही बजे थे पर ये गाओं का इलाक़ा था, शहर का नही. यहाँ लोग शाम के 7 बजते बजते अपने घरों में घुस जाते हैं और 9 बजते बजते तो सो जाते हैं. सरिता देवी जानती थी के इस रास्ते पर अब कोई नही आएगा जो उनकी मदद कर सके. और कोई अगर भूले भटके आ भी गया तो उसका भी वही हाल होना है जो उनके ड्राइवर का हुआ.

"ठकुराइन सरिता देवी जी" अंधेरे से एक भारी आवाज़ आई "बंदा आपको झुक कर सात सलाम ठोकता है"

आवाज़ के साथ ही आवाज़ का मालिक अंधेरे से निकल कर बाहर आया. बाकी के 6 लोगों ने अपने चेहरे पर कपड़ा डाल रखा था, बस एक वही था जिसके चेहरे पर को नकाब नही थी. ठकुराइन उसको देखते ही पहचान गयी. उसकी तस्वीर कई बार अख़बार में देखी थी.

"राजन" उन्होने धीमी आवाज़ में कहा

"भाई कमाल हो गये" राजन हस्कर बोला "आप तो पहचान गयी हमें"

"ये तुम ठीक नही कर रहे राजन" ठकुराइन ने धमकी देने की कोशिश की "अगर ठाकुर साहब को पता चला तो ..."

"तो क्या?" उनकी बात बीच में ही काट कर राजन ज़ोर से चिल्लाया "तो क्या?"

कहते ही अचानक वो बहुत तेज़ी से सरिता देवी के करीब आया और उनके चेहरे के बिल्कुल करीब आकर रुक गया.

"तो क्या ठकुराइन?" उसने फिर सवाल किया. सरिता देवी के मुँह से जवाब ना निकला.

राजन धीरे से मुस्कुराया और उस लड़के की तरफ गया. उसके 2 आदमी लड़के को दोनो तरफ से पकड़े खड़े थे. राजन उसके करीब आया और लड़के के सर पर प्यार से हाथ फेरा.

"बेटा है आपका?" उसने ठकुराइन से पलट कर पुछा

सरिता देवी ने जवाब नही दिया.

"मार दो लड़के को" उसने अपने एक आदमी से कहा

"नही" सरिता देवी फ़ौरन चिल्लाई.

राजन एक भारी डील डौल का आदमी था. कद 6"4 से कम नही था और उसपर वो हाढ़ चौड़ा था. चेहरे पर बड़ी बड़ी मूँछछ और रंग एकदम काला. रात के अंधेरे में ऐसा लग रहा था जैसे खुद यमराज उतर आए हों.

"क्यूँ क्या हुआ?" राजन ने पुछा "अभी जब मैने पुछा के क्या आपका बेटा है तो आपने कोई जवाब नही दिया. मुझे लगा के नौकर है कोई. वैसे हुलिए से नौकर ही लग रहा है"

"उसको कुच्छ मत करना" सरिता देवी ने कहा

"चलिए फिर पुछ्ता हूँ" राजन बोला "क्यूँ? बेटा है आपका?"

सरिता देवी ने हां में सर हिलाया.

"नाम क्या है बेटा तुम्हारा?" उसने लड़के से पुछा

लड़के ने कोई जवाब नही दिया. राजन ने फिर पुचछा पर फिर भी वो लड़का चुप चाप खड़ा उसको देखता रहा.

"अबे बोलता क्यूँ नही? मुँह में ज़ुबान नही है? गूंगा है?" राजन ने अचानक उस लड़के के बाल पकड़ कर खींचे.

लड़का फिर भी कुच्छ नही बोला. बस डरा सहमा सा राजन को देखता रहा.

"लगता है गूंगा ही है सरदार" राजन का एक आदमी पिछे से बोला.

"ठाकुर खानदान में गूंगे पैदा होने लगे? ऐसे कैसे चलेगा?" राजन ज़ोर से हसा. उसके पिछे पिछे उसके आदमी भी हस्ने लगे.

"तुम्हें जो चाहिए ले लो राजन" सरिता देवी हिम्मत करके बोली "हमें जाने दो"

राजन पलटकर उनके करीब आया.

"मुझे जो चाहिए ले लूँ?" उसने मुस्कुराते हुए पुचछा "जो भी चाहिए ले लूँ? आपका पता भी है के मुझे क्या चाहिए?"

कहते हुए उसने सरिता देवी पर उपेर से नीचे तक नज़र फिराई. सर से पावं तक ऐसा जायज़ा लिया जैसे उन्हें आँखो आँखो में नाप रहा हो. नज़र एक पल के लिए ठकुराइन की चूचियों पर रुकी और फिर उनके चेहरे पर. वो धीरे से मुस्कुराया.

ठकुराइन इशारा समझ गयी.

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:09 PM,
#17
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --17

गतान्क से आगे........................

"हिम्मत भी मत करना नीच आदमी" अचानक उनके अंदर का ठाकुर खून जाग उठा "तुझ जैसे को मैं अपनी जूती तले रखती हूँ. मेरे साथ कुच्छ करने का सोचना भी मत"

राजन के चेहरे के रंग बदलते चले गये. वो आगे बढ़ा और ठकुराइन के चेरहे पर एक ज़ोरदार थप्पड़ मारा और दूसरे हाथ से उनकी सारी का पल्लू खींच दिया.

सरिता देवी हक्की बक्की रह गयी. थप्पड़ इतनी ज़ोर से था के उन्हें लगा जैसे रात में ही सूरज निकल आया हो. वो गिरते गिरते बची और फ़ौरन अपनी सारी पकड़ी.

"मैं तुझे बताता हूँ के तेरी औकात क्या है. जब यहाँ ये मेरे 6 आदमी तुझपर चढ़कर उतरेंगे तो पता चल जाएगा तुझे" कहते हुए उसने ठकुराइन को वापिस गाड़ी की पिच्छली सीट पर धकेलना शुरू किया.

"चल आज इसी गाड़ी में तेरे साथ सुहाग रात मना लेता हूँ"

"राजन छ्चोड़ दे मुझे. ठाकुर तेरे टुकड़े टुकड़े करवा देंगे. मेरे साथ यहाँ जो तू करेगा वो तो यहीं ख़तम हो जाएगा पर फिर तेरे साथ क्या होगा ये सोच ले" ठकुराइन हिम्मत करके बोली. उन्हें खुद हैरत थी के अपनी इज़्ज़त की गुहार लगाने के बजाय वो खुद राजन को धमकी दे रही थी.

और शायद धमकी असर कर गयी. राजा रुक गया और कुच्छ पल के लिए चुप होकर सोचने लगा.

"सही कह रही हो आप" वो थोड़ी देर बाद बोला "यहाँ जो होगा वो तो यहीं ख़तम हो जाएगा. आप अबला नारी बन जाओगी और हम दरिंदे. तो चलिए खेल एक दूसरी तरह से खेलते हैं. इस तरह से के आज की रात ठाकुर खानदान में आने वाले कई सालों तक याद की जाए. इस तरह से के आज की रात हवेली में रहने वालो का हवेली में रहना मुश्किल कर दे"

सब चुप खड़े उसकी बात सुन रहे थे.

"इस लड़के को इधर लाओ ओये" राजन ने अपने आदमियों से कहा. वो लड़के को पकड़कर करीब ले आए.

"तो ठकुराइन जी" राजन सरिता देवी से बोला "अब मैं तो ठहरा गंदा खून जो आपको हाथ भी नही लगा सकता पर आपका बेटा तो ठाकुरों का खून है ना. तो ऐसा करते हैं के आपके साथ आज सुहाग रात मैं नही, आपका अपना बेटा मनाएगा."

सरिता देवी का मुँह हैरत से खुला रह गया.

"क्यूँ क्या हुआ ठकुराइन?" राजन हस्ता हुआ बोला "हम गंदा खून हैं पर आपका अपना बेटा तो नही"

वो लड़का हैरत से खड़ा कभी सरिता देवी की तरफ देखता तो कभी राजन की तरफ.

"चल ओये आगे बढ़ और अपनी माँ के कपड़े उतार" राजन उसको धकेलटा हुआ बोला.

"नही" सरिता देवी लगभग चीख उठी "भगवान का ख़ौफ्फ खा राजन. ऐसा पाप करने से पहले सोच ले. इस ज़मीन पर ठाकुर और उपेर आसमान में भगवान तेरा क्या हाशर करेंगे एक बार सोच"

"सोचा तो मैने कभी ज़िंदगी में नही ठकुराइन" राजन ने कहा "सोचा होता तो आज डाकू थोड़े ही होता. आप लोगों की तरफ पढ़ा लिखा शरीफ आदमी होता"

उसकी बात सुनकर उसके सारे आदमी हस पड़े.

"चल ओये आगे बढ़" राजन ने फिर उस लड़के को धकेला पर वो अपनी जगह पर ही खड़ा रहा. उसका पूरा शरीर पत्ते की तरह काँप रहा था.

"सरदार ये गूंगा क्या करेगा" राजन का एक आदमी बोला "इसकी हालत देखो. लगता है यहीं खड़े खड़े मूत देगा"

राजन ने लड़के को गौर से देखा.

"बात तो सही है ठकुराइन" वो सरिता देवी से बोला "ये ज़रा सा बच्चा क्या करेगा आपके साथ. एक काम करते हैं. आप खुद क्यूँ नही सिखाती अपने बेटे को कुच्छ?"

सरिता देवी कुच्छ नही बोली. चुप चाप खड़ी रही.

"आगे बढ़ो ठकुराइन और शुरू करो. मैं बेसबरा हो रहा हूँ कुच्छ खेल तमाशा देखने को" राजन ने कहा

"तुम्हें जो करना है मेरे साथ कर लो. पर ये मत कर्वाओ मुझसे" सरिता देवी ने एक आखरी कोशिश की.

जवाब में राजन ने एक लंबा सा च्छुरा निकाला और उस आदमी के हाथ में दिया जो उस लड़के को पकड़े खड़ा था.

"अगर अगले एक मिनिट के अंदर अंदर ठकुराइन ने काम शुरू नही किया तो लड़के की गर्दन उड़ा देना"

"नही" सरिता देवी लगभग चीख उठी "मैं करती हूँ"

"शाबाश" राजन बोला "तो चलिए अब जैसा जैसा मैं करता हूँ वैसा वैसा करती जाओ"

सब खामोशी से सरिता देवी की तरफ देख रहे थे.

"और सुन ओये" राजन अपने आदमी से बोला "अगर ठकुराइन मेरी बात मानने में ज़रा भी आना कानी करें तो फ़ौरन लड़के का सर धड़ से अलग कर देना"

उसके आदमी ने दाँत दिखाते हुए हां में सर हिला दिया.

"शाबाश ठकुराइन जी" राजन बोला "तो चलिए शुरू करते हैं आपको नंगी देखने से. अब एक एक करके अपने कपड़े उतारिये ज़रा. हम भी तो देखें के ठाकुर खानदान की औरतें अंदर से कैसी होती हैं"

सरिता देवी शरम से गढ़ गयी. आज तक उनकी पूरी ज़िंदगी में उनेह्न उनके अपने पति के सिवा किसी और ने बेपर्दा नही देखा था. और आज 7 मर्द और एक 17-18 साल के लड़के के सामने उन्हें नंगी होने पर मजबूर किया जा रहा था.

"काट दे गर्दन" राजन ने जब देखा के ठकुराइन कुच्छ नही कर रही तो उसने अपने आदमी को इशारा किया.

सरिता देवी ने फ़ौरन अपनी सारी का पल्लू अपने कंधे से हटाया और सारी खोलनी शुरू कर दी. सबकी नज़रें उनके जिस्म पर आकर चिपक गयी.

सारी खोलकर सरिता देवी ने नीचे गिरा दी और हाथ बाँधकर खड़ी हो गयी.

"ब्लाउस" राजन ने इशारा किया

सरिता देवी एक पल को झिझकी और फिर अपना ब्लाउस खोलने लगी. थोड़ी ही देर बाद वो सिर्फ़ ब्रा और पेटिकट में खड़ी थी. ब्लाउस के नीच गिरते ही किसी आदमी के मुँह से आह निकली, तो किसी ने सीटी बजाई.

सरिता देवी फिर रुक गयी.

"ठकुराइन मैने आपको पूरी नंगी होने को कहा है" राजन बोला "अगर अगली बार पूरी नंगी होने से पहले रुकी तो कसम से इस लौंदे की लाश यहीं पड़ी होगी"

आसमान में पूरा चाँद था और बस वही एक रोशनी उस वक़्त उस रास्ते पर थे. हर चीज़ चाँद की रोशनी में चमक रही थी और चमक रहा था सरिता देवी का जिस्म जो अब उन सब के बीच पूरी तरह नंगी खड़ी थी. उन्होने दोनो टांगे सिकोड रखी थी और एक हाथ से अपनी चूत और दूसरे से अपनी चूचियाँ जितनी हो सकें ढक रखी थी.

"क्या बात है" राजन ने कहा "भगवान ने क्या खूब बनाया है आपको ठकुराइन"

हर कोई उस वक़्त नंगी खड़ी ठकुराइन के बेदाग जिस्म को देख रहा था. बड़ी बड़ी चूचियाँ, गोरा चितता रंग, शरीर पर कहीं कोई दाग या धब्बा नही, बिल्कुल सपाट पेट, कहीं कोई चारभी का निशान नही, लंबी सुडोल टाँग.

"अपने बाल खोल दीजिए ठकुराइन" राजन ने हुकुम दिया.

सरिता देवी एक पल को झिझकी. बाल खोलना मतलब एक हाथ चूत या चूचियो पर से हटाना. वो शरम से गढ़ी जा रहीं थी. इतनी बे-इज़्ज़त वो अपनी पूरी ज़िंदगी में कभी नही हुई थी.

"हे भगवान!" उन्होने मंन ही मंन में सोचा "ये दिन दिखाने से पहले मुझे उठा क्यूँ नही लिया"

"मार दो लड़के को" राजन की फिर आवाज़ आई तो वो जैसे एक सपने से जागी और फ़ौरन अपनी छातियो वाला हाथ उपेर किया, बाल खोले और फिर अपनी चूचियाँ ढक ली.

उनकी बड़ी बड़ी चूचियाँ एक पल को खुली और हर किसी के मुँह से एक ठंडी आह निकल पड़ी.

"सीधी खड़ी हो जाइए ठकुराइन" राजन ने कहा "अपने हाथ हटाइए"

सरिता देवी जानती थी के अगर उन्होने हाथ नही हटाए तो आगे क्या होगा" धीरे धीरे झिझकते हुए उन्होने अपने दोनो हाथ साइड में गिरा दिए.

अब वो पूरी तरह से नंगी, पूरी खुली हुई खड़ी थी.

किसी की नज़र उनकी चूचियो से चिपक कर रह गयी तो किसी की नज़र उनकी चूत पर और कोई उनके पूरे शरीर को उपेर से नीचे तक देख रहा था.

"कमाल हैं कसम से" राजन सरिता देवी के चारों तरफ गोल घूम रहा था और उन्हें उपेर से नीचे तक देख रहा था "बहुत नंगी औरतें देखी हैं ज़िंदगी में ठकुराइन पर कोई आपके जैसी नही देखी. दिल तो करता है के आपको यहीं गिराकर रगड़ दूँ पर वादे का पक्का है राजन. वादा किया के कोई कुच्छ नही करेगा आपके साथ तो कोई नही करेगा, सिवाय आपके बेटे के"

उसकी बात सुनकर ठकुराइन को उस लड़के की याद आई. वो तो जैसे भूल ही गयी थी उसके बारे में. उन्होने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो अपनी नज़र नीची किए खड़ा था और अब भी काँप रहा था.

"चलिए ठकुराइन" राजन ने कहा "आगे बढ़िए. सिखाइए अपने बेटे को के औरत के जिस्म के साथ कैसे खेला जाता है"

ठकुराइन की टाँगें काँप उठी और उनका रोना छूट पड़ा. अब तक उन्होने एक भी ऐसी हरकत नही की थी जिससे राजन को ये लगे के वो डर रही हैं उससे पर आख़िर थी तो एक औरत ही. कब तक बर्दाश्त करती.

"अर्रे अर्रे सरदार" उन्हें रोता देखकर एक आदमी बोला "बेचारी ठकुराइन खुद अपने बेटे को ये सब कैसे सीखा सकती हैं. आप क्यूँ नही मदद करते ये बताकर के ठकुराइन को क्या करना चाहिए"

"हां बिल्कुल ठीक बात है" राजन हस्ता हुआ बोला "तो चलिए मैं आपकी मदद करता हूँ ठकुराइन" मैं बताता हूँ और आप करती जाइए. और याद रखना, अगर आप रुकी तो लड़के की गर्दन कटी. अब आप आगे बढ़िए और अपने बेटे के पास जाइए"

सरिता देवी अपना रोना दबाते हुए लड़के के करीब पहुँची.

"अब जैसा की आप देख सकती हैं के आपका बेटा काफ़ी डरा हुआ है. इस वक़्त जोश में नही हैं इसलिए कुच्छ भी कर नही पाएगा. तो एक माँ होने के नाते आपका फ़र्ज़ है के अपने बेटे का डर डोर कीजिए और उसको जोश में लाइए"

सरिता देवी को राजन की बात समझ नही आई.

"ओह्ह आप समझी नही?" राजन उनकी शकल की तरफ देखता हुआ बोला "अर्रे मेरा मतलब वही था, अँग्रेज़ी स्टाइल. आप अपने घुटनो पर बैठ जाइए"

सरिता देवी समझ गयी के वो क्या चाह रहा था पर ना बोलने का अंजाम भी वो जानती थी. चुप चाप अपने घुटनो पर बैठ गयी.

उनके अपने सामने बैठे ही लड़के ने पिच्चे हटने की कोशिश की पर पिछे से उसके एक आदमी पकड़े खड़ा था इसलिए कामयाब ना हो सका.

"आप जानती हैं के आपको क्या करना है" राजन बोला

सरिता देवी ने किसी हलाल होती मुर्गी की तरह राजन की तरफ देखा, ये सोचकर के शायद वो तरस खा ले पर राजन के चेहरे के भाव ज़रा भी नही बदले.

"शुरू हो जाइए वरना च्छुरा चल जाएगा"

सरिता देवी ने काँपते हाथों से लड़के के पाजामे का नाडा खोला. लड़के के पिछे खड़े आदमी ने उसका कुर्ता उठाकर उपर पकड़ लिया. नडा खुलते ही पाजामा नीचे आ गिरा.

"शाबाश" पाजामा खुलते ही राजन बोला "अब ज़रा अपने मुँह का कमाल दिखाइए"

सरिता देवी की आँखें भर आई थी. जो काम राजन उन्हें करने को कह रहा था वो करना उनको बहुत पसंद था, पर अपनी मर्ज़ी से और अपने पति के साथ. सामने खड़े अपने बेटे की उमर के लड़के के साथ नही, वो भी मर्ज़ी के खिलाफ.

"ठकुराइन" पीछे से राजन की आवाज़ आई.

सरिता देवी ने अपने आपको किस्मत पर छ्चोड़ा और आँखें बंद कर ली. अपने कमरे में अपने पति के साथ वो ये काम हमेशा आँखें खोलकर करती थी ताकि ठाकुर के चेहरे पर गुज़रते भाव देख सकते. वो जब भी ठाकुर का चूस्ति, तो ठाकुर मज़े से कराह उठता था और उस हालत में उसको देखना सरिता देवी को बहुत पसंद था. पर इस उन्होने अपनी आँखें बंद करके अपना मुँह खोला.

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:10 PM,
#18
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --18

गतान्क से आगे........................

उनके सामने उस लड़के का लंड था जो उस वक़्त डर के मारे सिकुड कर मुश्किल से 1 इंच का भी नही था. उस वक़्त उसके टट्टो और लंड में कोई ख़ास फरक नही लग रहा था.

"सरदार वैसे यहाँ ठकुराइन के लिए कुच्छ ख़ास है नही. इतने से इनका क्या होगा?" लड़के के पिछे खड़ा आदमी उसके लंड को देख कर बोला और सब ज़ोर ज़ोर से हस पड़े.

"क्या ठकुराइन" राजन की आवाज़ फिर आई "ऐसे नमर्द पैदा हो रहे हैं ठाकुर खानदान में? एक तो गूंगा और उपेर से इतना सा लंड? ऐसे कैसे चलेगा?"

दोबारा हसी की आवाज़ गूँज उठी.

सरिता देवी ने आँखें बंद किए हुए अपने खुला मुँह लड़के के लंड की तरफ बढ़ाया. उस वक़्त वो लड़का और सरिता देवी दोनो ही बुरी तरह काँप रहे थे. राजन के पूरे खानदान को दिल ही दिल में कोसते हुए सरिता देवी ने लंड मुँह में ले लिया.

उस लड़का का जिस्म लंड मुँह में जाते ही ऐसा हिला जैसे 1000 वॉट का करेंट दौड़ गया हो.

"अबे खड़ा रह आराम से" उसको पकड़ने वाले ने कहा "तेरी मान तेरा लंड चूस रही है. ऐसा नसीब किसी किसी को ही नसीब होता है बेटा. सरदार का एहसान मान और मज़े ले"

फिर से एक हसी की आवाज़ गूँजी.

नीचे सरिता देवी अपने मुँह में लंड लिए बैठी थी. उनको समझ नही आ रहा था के क्या करे. वो अपने घुटनो के बल उकड़ूं बैठी आगे को झुकी हुई थी और उस लड़के का ज़रा सा लंड उनके पूरा उनके मुँह में समाया हुआ था. उन्होने आँखें खोलकर एक नज़र लड़के की तरफ उठाई. वो आँखें बंद किए खड़ा था पर उसकी आँखों से बहता पानी सरिता देवी देख चुकी थी.

"वाह क्या सीन है" राजन बोला "एक कॅमरा होता मेरे पास तो कसम से एक फोटो तो ज़रूर लेता"

फिर से हसी की आवाज़ उठी.

सरिता देवी अपने मुँह में लंड लिए वैसे ही बैठी रही. उन्होने कोई हरकत नही की. अपने पति के साथ जब लंड उनके मुँह में होता तो अपने मुँह, जीभ और हाथ का ऐसा ताल मेल बिठाकर वो चूसा करती थी के ठाकुर उनके मुँह में ही झड़ने को आ जाते थे. पर इस वक़्त वो सिर्फ़ मुँह में लंड लिए बैठी रही. ना अपनी जीभ चलाई, ना मुँह आगे पिछे किया और ना ही अपने हाथ उपेर उठाए. वो बस इस लम्हे को किसी बुरे सपने की तरह पूरा हो देना चाहती थी.

पर तभी उनके मुँह में हरकत हुई और उनकी आँखें हैरत से खुल गयी.

उस लड़के का लंड उनके मुँह में खड़ा हो रहा था.

"नही" उनका दिमाग़ ने जैसे एक चीख मारी "ये ग़लत है"

पर वो खुद भी जानती थी के इसमें उस लड़के की कोई ग़लती नही थी. भले उनके साथ उसका कोई भी रिश्ता हो पर वो एक औरत भी थी जो उस वक़्त उसका लंड अपने मुँह में लिए बैठी थी. खड़ा तो होना ही था.

धीरे धीरे लंड मुँह में बड़ा होता चला गया और सरिता देवी एक अजीब दुविधा में पड़ गयी.

अगर वो लंड मुँह से निकालती तो सब देखते के लड़के का लंड खड़ा हो गया है और हस्ते. फिर ये किसी से ना च्छूपा रहता के जो हो रहा था, उसमें उस लड़के को मज़ा आ रहा था.

दूसरा ये के लंड खड़ा होने के बाद उसको मुँह से निकाल कर ठकुराइन के अंदर कहीं और से डाला जाएगा. सरिता देवी भले ही लंड मुँह में लिए बैठी थी पर उस लड़के को अपने उपेर, अपनी टाँगो के बीच सोचकर ही उनका कलेजा दहल गया.

"नही !!" उन्होने सोचा "जो हुआ सो हुआ, इससे आगे नही"

वो अपने दिल ही दिल में ठान चुकी थी के उनको क्या करना है. और फिर जो काम वो इस वक़्त कर रही थी, ये काम करना तो बिस्तर पर वो काफ़ी अच्छी तरह से कर लेती थी.

लकड़े के खड़े होते लंड को सरिता देवी ने अपने मुँह में ही रखा. वो खड़ा होकर उनका मुँह भरता चला गया और उनके गले के अंदर तक पहुँच गया पर सरिता देवी ने ज़रा भी अपने मुँह से बाहर ना निकलने दिया.

"सरदार" एक आदमी ने कहा "ये लड़का तो नमार्द भी है शायद"

फिर से हसी की आवाज़ गूँजी.

सरिता देवी जानती थी के उनको जो करना था जल्दी ही करना था. लंड अपने मुँह में रखे रखे उन्होने अपनी जीभ लंड पर रगड़ी शुरू कर दी. वो मुँह बंद किए अंदर ही अंदर जीभ ऐसे हिला रही थी जैसे लंड को धीरे धीरे सहला रही थी.

लड़का कच्चा था, किसी औरत के साथ पहली बार था. ठकुराइन बिस्तर पर खेली खाई थी. मुश्किल से आधे मिनिट में उनकी जीभ ने काम कर दिखाया.

राजन कुच्छ सोचकर उस लड़के की तरफ बढ़ा ही था के लड़का का पूरा शरीर काँपा और उसी पल सरिता देवी ने उसका लंड मुँह से निकाल दिया. लंड से वीर्य छूट रहा था जो आधा सरिता देवी के मुँह में था और बाकी निकलकर सीधा उनके चेहरे पर जा गिरा.

"ये लो" राजन बोला "ये तो साला इतने में ही ख़तम हो गया और कहाँ हम सोच रहे थे के अब चुदाई होगी"

"सरदार" अचानक उसका एक आदमी चिल्लाया "उस तरफ"

सबने नज़र उठाकर उस तरफ देखा जहाँ वो आदमी इशारा कर रहा था. डोर कुच्छ गाड़ियों की रोशनी दिखाई दे रही थी. हेडलाइट के अंदाज़े से कहा जा सकता था के कम से कम चार गाड़ियाँ थी.

"निकलो यहाँ से" राजन ने अपने आदमियों को इशारा किया और वो सारे अगले पाले ऐसे गायब हुए जैसे गधे के सर से सींग.

ठकुराइन ने भाग कर अपने कपड़े उठाए और पहेन्ने लगी. उस लड़के ने भी अपना पाजामा उपेर करके बाँध लिया.

"किसी से कुच्छ कहने की ज़रूरत नही" सरिता देवी ने उस लड़के से कहा.

गाड़ियों की रोशनी धीरे धीरे नज़दीक आती जा रही थी.

अगले दिन सरिता देवी किसी ज़िंदा लाश से ज़्यादा नही थी. मंन में हज़ार ख्याल उठ रहे थे जिन में से एक अपने आपको मार लेने का भी था. ठाकुर गुस्से से पागल हुए जा रहे थे. हर तरफ राजन को ढूँढा जा रहा था.

पूरे गाओं में और आस पास के सारे गाओं में ये बात फेल चुकी थी के राजन ने ठकुराइन की कार को रोक कर उन्हें लूटने की कोशिश की और उनके ड्राइवर को मार दिया.

उस रात हक़ीक़त में जो हुआ था वो सरिता देवी और उस लड़के के सिवा और कोई नही जानता था. ये उनकी किस्मत ही थी के उस रात ठाकुर ने उनसे बात करने के लिए उनकी बहेन के घर फोन कर दिया. जब वहाँ से पता चला के ठकुराइन शाम के 5 बजे ही अपने गाओं के लिए निकल गयी थी तो ठाकुर परेशान हो उठे. उन्होने फ़ौरन अपनी गाड़ी निकाली और अपने कुच्छ आदमियों के साथ ठकुराइन को ढूँढने के लिए निकल पड़े. पर जब तक वो सरिता देवी तक पहुँचे, देर हो चुकी थी.

सरिता देवी ने आती गाड़ियों के देख कर अंदाज़ा लगा लिया था के ठाकुर ही उनको ढूँढते हुए आ रहे हैं. राजन के आदमी वहाँ से भाग चुके थे. ठकुराइन ने फ़ौरन अपने कपड़े पहने और अपनी हालत ठीक की. जब तक ठाकुर की गाड़ी आकर रुकी, सरिता देवी को देख कर ये कोई नही कह सकता था के अभी थोड़ी देर पहले ये औरत नंगी बैठी लंड चूस रही थी.

ठाकुर आए तो उन्होने सिर्फ़ इतना ही बताया के राजन ने उनकी गाड़ी रोकी और उन्हें लूटने की कोशिश की. जब उन्होने विरोध किया तो उनके ड्राइवर को मार दिया गया और ठकुराइन को भी थप्पड़ मारा. उनका चेहरा तब तक राजन के पड़े थप्पड़ की वजह से लाल था.

अगले 2 दिन जैसे हवेली में तूफान मचा हुआ था. कभी पोलिसेवाले आते तो कभी ठाकुर के आदमी. ठाकुर ने एलान करवा दिया था के जिसने भी राजन का पता दिया उसको 5 लाख इनाम और जिसने राजन को पकड़ कर ठाकुर के हवाले कर दिया उसको 10 लाख. आस पास के 50 गाओं में जैसे हर कोई बस एक ही काम में लगा हुआ था और वो था राजन को ढूँढना ताकि इनाम की मोटी रकम कमा सके.

कहते हैं के ढूँढने से तो भगवान भी मिल सकते हैं, भला राजन क्या चीज़ थी. ठाकुर के कहेर के आगे वो 2 दिन नही टिक सका. हर तरफ हर कोई बस उसे ही ढूँढ रहा था जिसकी वजह से उसके च्छूपने और भागने का हर रास्ता बंद हो चुका था.

दूसरे दिन की शाम सरिता देवी अपने कमरे में खोई खोई से बैठी थी. घड़ी में 8 बज रहे थे और रात के खाने का इंटेज़ाम किया जा रहा था पर उनकी भूख तो 2 दिन से जैसे उनके पास तक नही आई थी. डरी सहमी वो बस अपने कमरे में ही बैठी रहती थी. तभी बाहर एक शोर उठा और उन्हें ठाकुर साहब की गुस्से में किसी पर चिल्ला की आवाज़ आई . सरिता देवी उठकर हवेली के बाहर निकली और सामने बने लॉन में आई.

बाहर एक भीड़ सी लगी हुई थी. कुच्छ पोलिसेवाले खड़े थे और कुच्छ ठाकुर के हथियार बंद आदमी.

"यहाँ आइए" ठाकुर ने उन्हें आते देखा तो अपने करीब बुलाया. सरिता देवी बाहर निकल कर उनके करीब आई.

सामने ज़मीन पर 6 लाशें पड़ी थी.

ठकुराइन देखते ही समझ गयी के ये राजन के आदमी थे. और वहीं एक तरफ ज़मीन पर रस्सी से बँधा बैठा था खुद राजन.

सरिता देवी को अंदर उसे देखते ही एक अजीब सा एहसास हुआ. अपने गाल पर पड़े थप्पड़ का दर्द एक बार फिर उठ गया और डर का एहसास दिल में समा गया. पर अगले ही पल वो डर गुस्से और नफ़रत में बदल गया.

ठकुराइन के आते ही सब खामोश हो गये और एक अजीब सा सन्नाटा फेल गया. ठाकुर ने कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के सरिता देवी ने हाथ के इशारे से उनको चुप रहने को कह दिया.

धीमे कदमो से चलती वो राजन के करीब आई.

उनके सामने अब जो बँधा बैठा था वो एक मश-हूर डकेट नही था जिसके डर से लोग रात को सफ़र नही करते थे. उस रात का राजन जिसने सरिता देवी से अपने मंन की करवाई थी कहीं गायब हो चुका. अब जो उनके सामने था उसकी हालत किसी गली के कुत्ते से ज़्यादा नही था जिसके साथी उसकी बगल में मरे पड़े थे.

राजन को देख कर ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था के उसको बहुत बुरी तरह से मारा पीटा गया है. उसका पूरा चेहरा सूजा हुआ था. आँखें मुश्किल से खुल पा रही थी. जिस्म खून में सना हुआ था. वो अपने घुटनो पर बैठा हुआ था और उसके हाथ पावं किसी जानवर की तरह रस्सी से बँधे हुए थे.

सरिता देवी ठीक उसे सामने जा खड़ी हुई.

"क्या हुआ राजन?" उन्होने नफ़रत से भरी आवाज़ में कहा "अब हमें उठकर थप्पड़ नही मारेगा?"

उसकी हालत देख कर सरिता देवी ये कह नही सकती थी के वो उनकी बात सुन भी रहा है या नही. ठाकुर सरिता देवी के पास आए और उनके हाथ में एक पिस्टल दे दी.

"आपका मुजरिम है ये" ठाकुर ने कहा "सज़ा भी आप ही देंगी. इसलिए हमने इसे अब तक ज़िंदा रखा है ताकि आप इसकी जान निकाल सकें"

"नही" सरिता देवी ने हाथ में पिस्टल लेते हुए कहा "मौत तो आसान रास्ता है इसके लिए"

ठाकुर ने सवालिया नज़रों से उनकी तरफ देखा.

"हम चाहते हैं के ये हमारी शकल देखे और उसके बाद ज़िंदा तो रहे पर फिर और कुच्छ ना देख सके. बस हमारी शकल ही इसके दिमाग़ में आखरी नज़ारा बन कर रहे ताकि ये उमर भर तड़प्ता रहे. इसने हमसे बद-तमीज़ी की थी, हमें गाली दी थी और हम चाहते हैं के अब ये ज़िंदगी भर कुच्छ ना कह सके"

ठाकुर उनकी बात समझ गये. उन्होने अपने आदमी को इशारा किया.

कुच्छ देर बाद उनका एक आदमी एक कार की बॅटरी उठा लाया. दूसरे आदमी ने एक बड़ा सा च्छुरा निकाला.

"पहले आँखें" सरिता देवी नफ़रत से जल रही थी "ताकि जब ये दर्द से रोए चिल्लाए, रहम की भीख माँगे तो हम सुन सकें"

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:11 PM,
#19
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खूनी हवेली की वासना पार्ट --19

गतान्क से आगे........................

कार की बॅटरी से तेज़ाब निकाल कर एक ग्लास में डाला जा चुका था. वहीं खड़े पोलीस वाले खामोशी से ये तमाशा देख रहे थे.

"इसकी आँखें खोलो" ठाकुर ने अपने आदमियों को इशारा किया. 2 आदमी आगे बढ़े और ज़बरदस्ती राजन को पकड़कर उसकी सूजी हुई आँखें खोली. सरिता देवी आगे बढ़कर राजन के करीब आई और उसकी आँखों में आँखें डालकर देखा.

"देख मुझे राजन" उन्होने हल्का सा झुकते हुए कहा.

राजन की आँखों में ख़ौफ्फ उन्हें सॉफ दिखाई दे रहा था. वो डर जैसे उनके ज़ख़्म पर मलहम का काम कर था. कलेजा जैसे ठंडा हो गया.

थोड़ी ही देर बाद राजन की दर्द भरी चीखें हवेली में गूँज उठी. ग्लास से तेज़ाब खाली हो गया था और राजन की ज़ुबान कटी हुई ज़मीन पर पड़ी थी.

3 दिन की जागी सरिता देवी को उस रात बहुत आराम की नींद आई.

2 महीने गुज़र गये पर सरिता देवी उस रात को भूल नही पाई. भले ही उन्होने राजन से अपना बदला पूरा कर लिया था पर राजन की कही बात सच हो रही थी. उनका दिन रात का सुकून उड़ गया था. हर पल दिमाग़ में वही लम्हा घूमता रहता था जब वो 7 अजनबी आदमियों के बीच नंगी बैठी लंड चूस रही थी. रात को सोती तो वही पल बार बार सपने में आता.

उस रात के बाद ठाकुर के साथ बिस्तर पर भी वो पूरा साथ नही दे पाती थी. पत्नी होने के नाते अपने पति को रोक तो नही पाती थी पर बिस्तर पर जिस तरह से वो पहले पूरी तरह ठाकुर के साथ होती थी अब वो बात नही रही थी. कपड़े उतारते ही उन्हें ऐसा लगता के अब भी आस पास खड़े कई लोग उन्हें नंगी देख रहे हैं, अपने पति से चुदवाते हुए देख रहे हैं.

और सबसे मुश्किल हो गया था उस लड़के के सामने जाना. उसको अनदेखा वो कर नही सकती थी, वो नामुमकिन था पर जब भी वो सामने आता, वो शरम से नज़र नीचे झुका लेती थी. उस लड़के के साथ उनके रिश्ते में एक ऐसा बदलाव आ गया था जिसकी उन्होने कभी कल्पना भी नही की थी. कभी उन्होने सोचा भी नही था के कमरे से निकलने से पहले ये दुआ करेंगी के वो लड़का उनके सामने ना आए.

उस रात के बाद उनकी कभी उससे बात नही हुई. ना ही लड़के ने उनसे बात करने की कोशिश की, बस उसको कुच्छ चाहिए होता तो वो माँग लेता था.

सरिता देवी को डर था के कहीं ठाकुर साहब से डर के मारे कह ना दे के राजन ने ठकुराइन से क्या कराया था पर वो उसने पूरा उनका साथ दिया. बदनामी और अपने पति की नज़र में गिर जाने के डर से उन्होने किसी से कुच्छ नही कहा तो लड़के ने भी किसी से कुच्छ नही कहा.

वक़्त यूँ ही गुज़रता रहा और ठकुराइन धीरे धीरे अपनी ज़िंदगी की तरफ वापिस जाने लगी. उस रात की याद आती तो अब भी थी पर अब बस आके गुज़र जाती थी. उस रात से जुड़ा गुस्सा और दर्द धीरे धीरे कम हो रहा था.

और फिर कुच्छ ऐसा हुआ के हर याद ताज़ा हो गयी.

उस रात ठकुराइन नहाकर कमरे से निकली थी. गर्मी के दिन थे और रात को नहाए बिना उन्हें नींद नही आती थी. वो अपनी नाइटी पहने बाथरूम से बाहर निकली और शीशे के सामने खड़ी होकर बाल सूखने लगी. लाल रंग की नाइटी में सरिता देवी का गोरा रंग और भी उभरकर सामने आ रहा था.

गीले बालों से गिरते पानी ने नाइटी को उपेर से गीला कर दिया था जिसकी वजह से ठकुराइन के निपल्स सॉफ दिखाई दे रहे थे. वो रात को कभी भी ब्रा पहेनकर नही सोती थी.

बाल झाड़ते झाड़ते उनके हाथ में पकड़ी कंघी छूट कर ज़मीन पर जा गिरी. ठकुराइन उसको उठाने के लिए नीचे को झुकी ही थी के उन्हें अपनी कमर पर 2 हाथ महसूस हुए और गांद पर एक चुभन सी हुई.

वो अच्छी तरह जानती थी के गांद पर उनको क्या चुभ रहा था. वो मुस्कुराती हुई उठकर सीधी हुई और सामने शीशे में देखा. ठाकुर पिछे खड़े हुए थे और कमर से ठकुराइन को पकड़ रखा था. अपनी गांद पर होती चुभन को महसूस करके सरिता देवी जानती थी के वो नीचे से नंगे थे.

"इसके अलावा और कुच्छ सूझता है आपको?" उन्होने मुस्कुराते हुए अपने पति से पुछा

"जिसके कमरे में इतनी खूबसूरत औरत झुकी खड़ी हो, उसको अगर और कुच्छ सूझ जाए तो लोग उसको नमार्द कहेंगे" ठाकुर ने मुस्कुराते हुए कहा

"नही नमार्द तो नही हो आप" ठकुराइन धीरे से हस्ते हुए बोली "इस बात की गवाही तो मैं दे सकती हूँ"

दोनो धीरे से हस पड़े और ठाकुर ने हाथ कमर पर रखे रखे उनकी नाइटी को उपेर उठना शुरू कर दिया.

दोनो शीशे के सामने खड़े थे और नज़र एक दूसरे की नज़र से मिला रखी थी. ठाकुर के लंड का दबाव उनकी गांद पर बढ़ गया था.

ठाकुर ने नाइटी को धीरे धीरे घुटनो के उपेर तक उठा दिया. अब उनकी नज़र ठकुराइन की नज़र से हटकर शीशे में उनकी टाँगो पर थी. खुद ठकुराइन भी उनकी नज़र का पीछा करते हुए अपनी टाँगो की तरफ ही देखने लगी थी. नाइटी धीरे धीरे जाँघो के उपेर आ गयी.

सरिता देवी ने एक नज़र शीशे में डाली. आगे वो और उनके पिछे खड़े ठाकुर जिनके दोनो हाथ उनकी नाइटी को उपेर खींच रहे थे. ठकुराइन की दोनो मासल जांघे खुली हुई थी और बड़ी बड़ी चूचियाँ भीगी हुई नाइटी से सॉफ झलक रही थी. और तब ये नज़र देखकर कई दिन बाद सरिता देवी को

वो महसूस हुआ जिसके लिए वो खुद भी तरस गयी थी.

उनकी चूत धीरे धीरे गीली हो रही थी.

पिच्छले कुच्छ दिन से ठकुराइन बिस्तर पर अपने आपको तैय्यार नही कर पाती थी. जबसे राजन ने उनके साथ बद-तमीज़ी की थी, ठाकुर को उन्हें चोदने से पहले अपने लंड पर तेल लगाना पड़ता था क्यूँ सरिता देवी की चूत बिल्कुल भी गीली नही होती थी और सूखी चूत में लंड घुसने पर उन्हें तकलीफ़ होती थी. आज महीनो बाद अपने आपको शीशे में यूँ नंगी होते देख वो उन्हें अपनी चूत में गीलापन महसूस हुआ.

नाइटी अब उनकी कमर के उपेर आ चुकी थी. ठकुराइन की सफेद रंग की पॅंटी के दोनो तरफ से बाल बाहर आ रहे थे. ठाकुर ने एक हाथ पॅंटी के उपेर से ही उनकी चूत पर फिराया और धीरे से बाल पकड़कर खींचे.

ठकुराइन के मुँह से ठंडी आह निकल पड़ी.

"जानती हूँ आपको पसंद नही" उन्होने धीरे से कहा "कल काट दूँगी"

ठाकुर ने जवाब में कुच्छ नही कहा. एक हाथ से उन्होने ठकुराइन की नाइटी को कमर पर पकड़ा हुआ था और दूसरे हाथ से पॅंट को पकड़कर नीचे खींचने लगे.

"इसको पाकड़ो" उन्होने ठकुराइन से कहा

ठकुराइन ने अपने दोनो हाथों से अपनी नाइटी कमर पर पकड़ ली. ठाकुर थोड़ा पिछे को हुए और ठकुराइन के पिछे अपने घुटनो पर नीचे बैठ गये. दोनो हाथों से उन्होने पॅंटी को पकड़ा और एक झटके से नीचे घुटनो तक खींच दिया.

ठकुराइन ने एक नज़र फिर अपने आप पर शीशे में डाली.

वो अपनी नाइटी को कमर तक पकड़े खड़ी थी. पॅंटी नीचे घुटनो में फसि हुई थी और बालों से धकि चूत सॉफ दिखाई दे रही थी. ठाकुर उनके पिछे घुटनो पर बैठे हुए थे. उनका चेहरा सरिता देवी की गांद के पिछे था इसलिए वो शीशे में नज़र तो नही आ रहे थे.

ठाकुर ने नीचे बैठे बैठे ठकुराइन की दोनो जाँघो को अपने हाथों से सहलाया और हाथ धीरे से उपेर लाते हुए उनकी गांद को पकड़ा.

"मस्त गांद है आपकी" पीछे से ठाकुर की आवाज़ आई.

सरिता देवी जानती थी के बिस्तर पर ठाकुर को इस तरह से बात करना बहुत पसंद था पर वो खुद चाहकर भी कभी इस तरह की बातें नही कर पाती थी. ठाकुर ने उनको कई बार उकसाया पर ठकुराइन कभी बेशर्मी से इस तरह की बातें नही कर पाई थी.

ठाकुर ने अपने हाथों से से ठकुराइन की गांद को दोनो तरफ से पकड़ा और खोला. एक हाथ नीचे से दोनो टाँगो के बीच आया और सरिता देवी की चूत को सहलाने लगा.

"आआहह" ठकुराइन के मुँह से आह निकल पड़ी

ठाकुर ने नीचे से दोनो टाँगो के बीचे अपना हाथ पूरी तरह घुसा दिया और सरिता देवी की चूत को बुरी तरह से रगड़ना शुरू कर दिया. उनके होंठ पिछे से ठकुराइन के गांद को चूम रहे थे.

और फिर जब ठाकुर की एक अंगुली ठकुराइन की चूत में घुसी तो महीनो बाद उनकी चूत से पानी छूट पड़ा.

"आआहह" ठकुराइन की आवाज़ तेज़ हो गयी "पूरी अंदर घुसाओ"

उनके कहते ही ठाकुर ने अपनी पूरी एक अंगुली चूत के अंदर घुसाई और तेज़ी से अंदर बाहर करने लगे. गीलापन अब सरिता देवी की चूत से उनकी जाँघो तक पहुँच चुका था. वो शीशे के सामने खड़ी नज़र बाँधे अपने आपको देखे जा रही थी. ठाकुर उनके पिछे बैठे थे इसलिए उनका सिर्फ़ हाथ ही सरिता देवी को नज़र आ रहा था जो उनकी चूत को बेदर्दी से मसल रहा था.

चूत में अंदर बाहर होती अंगुली बाहर आई और फिर पिछे को सरक कर ठकुराइन की गांद पे जा लगी.

वो जानती थी के ठाकुर क्या करने वाले हैं. शादी के बाद से ही ठाकुर ने कई बार उनकी गांद मारने की कोशिश की थी पर ठकुराइन ने कभी ऐसा करने नही दिया. जब भी ठाकुर उनकी गांद मारने की बात करते, वो हर बार टाल जाती थी. उन्हें लगता था के अगर एक अंगुली के घुसने से ही इतना दर्द होता है तो पूरा लंड घुसने पर क्या होगा?

चूत के पानी में भीगी अंगुली ने धीरे से उनकी गांद में घुसने की कोशिश की और थोड़ी से अंदर हो गयी.

"ऊऊओह मर गयी !!!!" सरिता देवी के मुँह से आवाज़ निकली.

वो जानती थी के अगर उन्होने ठाकुर को नही रोका तो ये अंगुली थोड़ी ही देर बाद पूरी गांद के अंदर होगी और फिर दूसरी अंगुली जाएगी और उसके बाद लंड घुसने की कोशिश. फिर वही गांद मारने देने की ज़िद.

ठकुराइन फ़ौरन पलटी और ठाकुर की तरफ मुँह करके खड़ी हो गयी. अब उनकी चूत सीधा ठाकुर के चेहरे की तरफ थी.

सरिता देवी ने नीचे बैठे ठाकुर की तरफ देखा और ठाकुर ने उपेर को उनकी तरफ. सरिता देवी अब भी अपनी नाइटी अपनी कमर पर पकड़े खड़ी थी और पॅंटी अब भी घुटनो में फसि हुई थी. ठाकुर ने एक पल उनसे नज़र मिलाई और फिर आगे बढ़कर अपने होंठ उनकी चूत पर रख दिए.

"आआआअहह" ठकुराइन के मुँह से इतनी ज़ोर से आवाज़ निकली के उन्हें लगा के कोई बाहर सुन ना ले. नीचे ठाकुर ने अपने दोनो होंठ उनकी चूत से मिला दिए और ज़ोर ज़ोर से घिसने लगे. वो अपने होंठ उनकी चूत पर ज़ोर ज़ोर से रगड़ रहे थे और ठकुराइन के दिल की धड़कन तेज़ होती जा रही थी.

ठाकुर एक पल को पिछे हुए और घुटनो में फसि हुई पॅंटी को पूरी तरह से उतारकर कमरे में एक तरफ उच्छाल दिया. अब ठकुराइन कमर के नीचे पूरी तरह से नंगी खड़ी थी.

सरिता देवी ने अब भी अपनी नाइटी कमर पर पकड़ रखी थी और चूत ठाकुर के चेहरे के ठीक सामने खुली हुई थी. वो एक पल को रुके और चूत को गौर से देखने लगे.

"क्या हुआ?" बेसबर होती सरिता देवी ने पुछा

"देख रहा हूँ" ठाकुर ने जवाब दिया

"क्या?"

"यही के आज पहली बार आपकी चूत पूरे बालों के साथ देखी है और सच कहूँ तो बालों के साथ और भी अच्छी लग रही है" ठाकुर मुस्कुराते हुए बोला और एक हाथ से चूत को धीरे से सहलाया.

ठकुराइन से बर्दाश्त नही हुआ और एक हाथ से उन्होने ठाकुर के सर को पकड़ कर अपनी चूत की तरफ खींचा. दूसरे हाथ से उन्होने नाइटी को अच्छे से समेट कर अपनी कमर पर पकड़ लिया ताकि वो नीचे ना गिरे.

"क्या हुआ?" जब ठकुराइन ने ठाकुर के सर को आगे को खींचा तो ठाकुर ने पुछा

"करो ना" सरिता देवी बोली

"क्या करूँ?" ठाकुर ने शरारती तरीके से मुस्कुराते हुए पुछा

ठकुराइन जानती थी के वो क्या सुनना चाह रहे थे.

क्रमशः........................................
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07-01-2018, 12:11 PM,
#20
RE: Hindi Sex Porn खूनी हवेली की वासना
खूनी हवेली की वासना पार्ट --20

गतान्क से आगे........................

"जो कर रहे हो वही करो" वो थोड़ी नाराज़गी से बोली "अब रुका नही जा रहा"

"पहले कहो के मेरी चूत चॅटो, तब करूँगा" ठाकुर ने ज़िद पर आदते हुए कहा

सरिता देवी जानती थी के वो ऐसे नही मानेंगे इसलिए वो खुद ही थोड़ा आगे हुई और अपनी चूत ठाकुर के होंठों पर लगा दी.

"आआहह !!! अब करो भी" उन्होने आहें भरते हुए कहा

ठाकुर ने भी आगे ज़िद करना ठीक नही समझा और अपने होठ फिर चूत पर रगड़ने लगे. अचानक सरिता देवी के दिल में एक ख्याल आया और ठाकुर के सर को अपने टाँगो के बीच पकड़े पकड़े ही वो गोल घूमी और अपना चेहरा शीशे के सामने कर लिया.

अब वो शीशे की तरफ मुँह किए खड़ी थी और अपने आपको देख सकती थी. ठाकुर का मुँह उनकी टाँगो के बीच उनकी तरफ था और पीठ शीशे की और. ठाकुर शीशे में सॉफ सॉफ देख सकती थी के ठाकुर किस तरह से उनकी चूत चाट रहे थे.

इस तरह ठकुराइन के घूमने से ठाकुर ने अपना मुँह चूत से हटाकर उपेर की तरफ देखा, फिर पिछे शीशे की तरफ देखा और मुस्कुरा उठे.

"देखने के दिल कर रहा है?" उन्होने पुछा

ठकुराइन ने मुस्कुराते हुए हां में सर हिला दिया.

ठाकुर ने एक बार फिर अपने होंठ चूत पर रखे पर इस बार उनकी ज़ुबान चूत के होंठ खोलती हुई अंदर जा लगी.

"ओह !!!!" जीभ को अपनी चूत के अंदर महसूस करते ही ठकुराइन का मज़ा दोगुना हो गया. ठाकुर ने उनकी दोनो जाँघो को पकड़ा और टाँगो को अच्छी तरह से फेला दिया ताकि चूत नीचे से पूरी तरह खुल जाए.

अपने आपको इस तरह आज ठकुराइन पहली बार देख रही थी. अजीब नज़ारा था शीशे में. वो अपनी नाइटी कमर पर पकड़े दोनो टाँगो को फेलाए खड़ी थी और ठाकुर टाँगो के बीचे ज़मीन पर बैठे चूत चाट रहे थे. उनकी जीभ कभी चूत को बाहरी तरफ से सहलाती तो कभी अंदर घुसाने की कोशिश करती. एक हाथ से ठाकुर ने सरिता देवी की जाँघ को पकड़ रखा था और दूसरे हाथ से उनकी गांद सहला रहे थे.

ठकुराइन को एहसास भी नही हुआ के कब खड़े खड़े ही उन्होने अपनी गांद हिलानी शुरू कर दी. उनकी कमर आगे पिछे को हिलने लगी और वो खुद भी अपनी चूत को नीचे बैठे अपनी पति के मुँह पर रगड़ने लगी. ठाकुर ने दोनो हाथों से उनकी गांद को पकड़ लिया और उनकी हिलती कमर को और ज़ोर से हिलाने लगी.

"आपकी जीभ ....... आपकी जीभ .... अंदर ... अंदर... और अंदर" उखड़ती हुई सांसो के बीच सरिता देवी बड़ी मुश्किल से इतना कह पाई.

ठाकुर के लिए इतना ही इशारा काफ़ी था. उन्होने अपनी जीभ को जितना हो सका ठकुराइन की चूत के अंदर कर दिया. सरिता देवी ने भी चूत के अंदर जीभ जाते ही अपनी कमर को और ज़ोर से हिलाना शुरू कर दिया. जैसे कोई औरत लंड चूत में लेकर अपनी कमर हिला रही हो, ठीक वैसे ही ठकुराइन ने अपनी के धक्के ठाकुर के मुँह पर मारने शुरू कर दिए.

"ऐसे ही.... ऐसे ही ... हां बस बस ... ऐसे ही ... ज़ोर से .. ऊऊहह .... हन आअष्ह" ठकुराइन की साँस उखाड़ने लगी, कमर और ज़ोर से हिलने लगी और वो जानती थी अब किसी भी पल उनकी चूत से पानी निकलने ही वाला था.

और तभी उन्हें वो खिड़की पर खड़ा दिखाई दिया.

ठकुराइन की पीठ कमरे में बनी उस खिड़की की तरफ थी जो हवेली के पिछे की तरफ खुलती थी. आम तौर पर वो खिड़की हमेशा ही बंद रहती थी पर आज गर्मी होने की वजह से खुली हुई थी. खिड़की पर परदा गिरा हुआ था इसलिए ना उन्हें ये ध्यान रहा के पर्दे के पिछे खिड़की खुली हुई है और ना ही ठाकुर को.

ठकुराइन का चेहरा शीशे की तरफ था और शीशे में उन्हें अपने पिछे खिड़की नज़र आ रही थी. परदा थोड़ा सा खिसका हुआ था और पर्दे के पिछे से वो लड़का अंदर झाँक रहा था. ठाकुर का मुँह ठकुराइन की टाँगो के बीच घुसा हुआ था इसलिए वो लड़का उन्हें नज़र नही आ सकता था.

सरिता देवी के मुँह से चीख निकलते निकलते रह गयी. वो एक पल के लिए हिली और ठाकुर को अपनी टाँगो से हटाने की कोशिश सी की. ठाकुर को लगा के वो मज़ा आने के कारण ऐसा कर रही हैं इसलिए इसका नतीजा ये हुआ के उन्होने और ज़ोर से चूत चाटनी शुरू कर दी.

वो ठाकुर को हटाकर उन्हें खिड़की के बारे में बताने ही वाली थी के रुक गयी. ठाकुर को अगर वो बता दें के खिड़की से खड़ा कौन देख रहा है तो वो उस लड़के को जान से मार देंगे, ये भी नही सोचेंगे को वो ठाकुर का अपना क्या लगता है.

ठकुराइन अजीब दुविधा में पड़ गयी. वो लड़का बेशर्मी से खिड़की पर खड़ा उनकी तरफ देख रहा था. देख रहा था के वो अपने कमरे में अपने पति के साथ क्या कर रही है. रिश्तों की हर मर्यादा को भूल कर वो अंदर झाँक रहा था, बिना ये सोचे के ठाकुर और ठकुराइन उसके अपने क्या लगते हैं.

इस सबके बीच ठकुराइन ये भूल ही गयी के वो अब भी नाइटी कमर पर पकड़े खड़ी थी और नीचे से पूरी तरह नंगी थी. यानी वो लड़का आराम से खिड़की पर खड़ा इतनी देर से उनकी गांद देख रहा था.

और जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ तो इस बार चीख नही रुकी.

ठकुराइन ने फ़ौरन अपनी नाइटी नीचे गिराई और पिछे को होकर खड़ी हो गयी. उन्होने खिड़की की तरफ देखा और ठीक उसी पल एक लम्हे के लिए उनकी नज़र उस लड़के से जा मिली.

"क्या हुआ?" ठाकुर ने नज़र उपेर करके पुछा. ठकुराइन ने उन्हें धक्का सा देकर अपने से दूर कर दिया था और नाइटी नीचे कर ली थी.

"वो, वो" सरिता देवी ने कुच्छ कहने की कोशिश की और नज़र खिड़की की तरफ घुमाई.

वो लड़का जा चुका था.

"खिड़की खुली हुई है" उन्होने ठाकुर से कहा "वो तो बंद कर दो पहले"

उस रात वाले इन्सिडेंट को 2 दिन चुके थे. सरिता देवी अब जानकर उस लड़के के सामने नही आती थी. वो 2 बार उन्हें नंगी देख चुका था, एक बार उनकी मर्ज़ी के खिलाफ ज़बरदस्ती पर दूसरी बार उनके कमरे में उन्हें अपने पति के साथ और ये बात उन्हें बहुत परेशान कर रही थी. वो चाह कर भी ना तो उसे खुद कुच्छ कह पाई और ना ही ठाकुर साहब से इसका ज़िक्र कर पाई.

दोपहर का वक़्त था. ठकुराइन अपने कमरे में लेटी एक किताब पढ़ रही थी. हवेली में उस वक़्त कोई नही था सिवाय उनके और कुच्छ नौकरों के. अपनी ही धुन में किताब पढ़ती सरिता देवी को जाने क्यूँ ऐसा लगा के कोई उन्हें

देख रहा है. एक नज़र उन्होने दरवाज़े पर डाली पर वो बंद था.

उनकी नज़र कमरे में लगे शीशे पर पड़ी और उन्हें फिर वो खिड़की पर खड़ा नज़र आया. वो खामोशी से वहाँ खड़ा ठकुराइन को देख रहा था.वो थोड़ा च्छुपकर खड़ा था ताकि ठकुराइन की सीधी नज़र उसपर ना पड़े पर कमरे में लगे शीशे में वो सॉफ दिखाई दे रहा है.

और इसके साथ ही ठकुराइन को ये भी नज़र आया के वो उन्हें क्यूँ देख रहा था. उन्होने एक सारी पहेन रखी थी जिसका उन्हें ख्याल ही नही था क्यूंकी वो कमरे में अकेली लेटी थी. उनकी सारी का पल्लू एक तरफ गिरा हुआ था और

सफेद रंग के ब्लाउस में उनकी छातियाँ जैसे कमरे की छत को च्छुने की कोशिश करती उपेर नीचे हो रही थी.

उन्होने अपनी एक टाँग मोड़ रखी थी जिसकी वजह से सारी खिसक कर घुटनो तक चढ़ि हुई थी.

और फिर ठकुराइन को तीसरी बात का अंदाज़ा हुआ. खिड़की पर खड़े हुआ उसका एक कंधा धीरे धीरे हिल रहा था, जो शायद उसका हाथ हिलने की वजह से था और उन्हें समझने में एक पल नही लगा के वो क्या कर रहा था.

वो उन्हें इस हालत में देख कर अपना लंड हिला रहा था.

ठकुराइन का गुस्सा पल में फ़ौरन आसमान छुने लगा. उन्होने उठकर उसको डाँटने की सोची ही थी के गुस्सा जिस तरफ चढ़ा था, एक पल में वैसे ही उतर गया और एक अजीब से एहसास ने गुस्से की जगह ले ली.

ये उनकी ज़िंदगी में पहली बार था के कोई उन्हें ऐसे चुपके चुपके देखकर अपना हिला रहा था और कहीं उनके दिल में ऐसा होता देख कर गुदगुदी सी होने लगी. वो खुद जानती थी के ये कितना ग़लत था और वो लड़का उनका क्या लगता

था पर ग़लत सही का ख्याल उस वक़्त जैसे एक तरफ हो गया.

जैसे एक नशे की सी हालत में ठकुराइन वैसे ही लेटी रही और खामोशी से शीशे में देखती रही. इस बात से अंजान के ठकुराइन ने उसको देख लिया है, वो लड़का खिड़की पर खड़ा अपना हिलाता रहा.

धीरे धीरे ठकुराइन का जिस्म गरम सा होने लगा और उनकी हैरत का कोई ठिकाना ना रहा. कहाँ तो वो 2 महीने से अपने पति से चुदवाते हुए भी गरम नही होती थी और कहाँ इस लड़के को यूँ झाँकता देखकर 2 पल में गरम हो गयी.

और फिर उनके दिल में भी शरम और हया की जगह वासना ने ले ली. उन्होने वो किया जो उनके अंदर की एक शरीफ औरत ने कभी नही किया था. धीरे से अब भी किताब पढ़ने का नाटक करते हुए उन्होने अपनी दूसरी टाँग भी मोड़

ली.

वो सीधी अपनी पीठ पर लेटी हुई थी और किताब सामने हाथों में पकड़ी हुई थी. एक टाँग उनकी पहली ही मूडी हुई थी और फिर दूसरी टाँग मोदती ही जो सारी पहले घुटने पर अटकी हुई थी अब सरक्ति हुई उनके पेट पर आ गिरी और

उनकी दोनो जांघे नंगी हो गयी.

और ये शायद उस लड़के के लिए काफ़ी ज़्यादा हो गया. उसका हाथ कुच्छ पल तेज़ी से हिला और फिर रुक गया. आँखें बंद किए उसने कुच्छ पल लंबी लंबी साँस ली और फिर एक झटके से खिड़की से हट गया.

ठकुराइन समझ गयी के उसका निकल गया था पर खुद अंदर ही अंदर वो बुरी तरह से गरम हो चुकी थी. लड़के के जाते ही फिर से वासना की जगह शरम ने ले ली और ठकुराइन को बहुत बुरा लगा के वो उस लड़के को यूँ अपना शरीर दिखा रही थी. वो लड़का जो की उनका खुद का .....

"हे भगवान !" ठकुराइन ने खुद से कहा और अपनी सारी फिर से ठीक कर ली.

उस रात जब ठाकुर ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया तो जैसे वासना का एक तूफान सा छूट पड़ा. दोपहर की गरम ठकुराइन फ़ौरन उनपर चढ़ पड़ी.

"अर्रे अर्रे "ठाकुर ने हैरत से कहा "क्या हो गया"

ठकुराइन ने कुच्छ नही कहा और उनका कुर्ता उतारने लगी

"क्या बात है" ठाकुर ने अपने हाथ उपेर किए और कुर्ता गिर जाने दिया "आज बड़े मूड में हो"

ठकुराइन ने फिर कोई जवाब नही दिया और फ़ौरन ठाकुर के सामने अपने घुटनो पर बैठ गयी. जबसे दोपहर को उन्होने उस लड़के को उन झाँकते हुए देखा था, उनके शरीर में जैसे आग सी लगी हुई थी जिसको वो जल्द से जल्द

ठंडा कर लेना चाहती थी.

उन्होने ठाकुर के पाजामे का नाडा खोला और ढीला करके नीचे खींचा. कुच्छ ही पल बाद ठाकुर कमरे में पूरे नंगे खड़े थे और ठकुराइन उनके सामने ज़मीन पर बैठी हुई थी. उन्होने धीरे से ठाकुर का लंड अपने हाथ में लिया.

"आअहह" लंड ठकुराइन के हाथ में आते ही ठाकुर के मुँह से आह निकल पड़ी

ठकुराइन ने लंड को अपने हाथ में पकड़कर थोड़ी देर हिलाया. लंड बैठा हुआ था पर ठकुराइन के हाथ में आते ही धीरे धीरे खड़ा होने लगा. ठकुराइन ने अपना मुँह खोला और जीभ निकल कर लंड के उपेर फिराने लगी.

"आपकी इस बात पे तो मैं फिदा हूँ" ठाकुर ने कहा "मस्त लंड चूस्ति हो आप"

ठाकुर थोड़ी देर तक अपनी जीभ को लंड पर उपेर नीचे फिरती रही. लंड अब तन कर पूरी तरह खड़ा हो चुका था और मुश्किल से ठकुराइन के हाथ में समा रहा था. ठकुराइन ने अपना मुँह जितना हो सका खोला और लंड को

अपने मुँह में भर लिया.

"पूरा लो" ठाकुर ने कहा "पूरा चूसो"

ठकुराइन ने लंड को थोड़े देर अपने मुँह में अंदर बाहर किया और पूरी तरह से गीला कर दिया. इस वक़्त उनको लंड चूसने से ज़्यादा दिलचस्पी छुड़वाने में थे. उनकी छूट में एक आग सी लगी हुई थी जिसको वो जल्दी से जल्दी बुझा लेना चाहती ही.

लंड को एक बार फिर अपने मुँह में लेकर उन्होने अच्छे से अपनी जीभ उसपर फिराई और उठकर खड़ी हो गयी.

क्रमशः........................................
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