07-19-2017, 10:30 AM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
आधी से अधिक रात्री बीत चुकी थी. ओरात की साँसे उखाड़'ने लगी थी. तब कोका ने बहुत ही शान्ती के साथ उस'की योनि मैं अप'ना लिंग प्रवेश किया. वह ताबाद तोड़ चुदाई के मूड मैं कतई न था. वह लंड को घूमा फिराकार उस'की चूत के अंदर की हर जगह को छ्छू रहा था, उस'की चूत की हर दीवार का घर्सन कर रहा था. जब भी ओरात अप'नी चूत से लंड को कस के निचोड़ना चाह'ती. कोका लंड बाहर निकाल लेता और आसान बदल लेता. उस रात कोका ने 64 बार आसान बद'ले जो काम सुत्र मैं वर्णित हैं. उस'ने हर आसान से उस'की शान्ती पूर्वक चुदाई की. जेसे ही भोर होने को हुआ वह ओरात पूरी तरह से पस्त हो चुकी थी. अब उस मैं हिल'ने डुल'ने की भी ताक़त नहीं बची थी. बहुत ही धीमी आवाज़ मैं वह कह रही थी,
"हे पंडित मेरी जिंद'गी मैं तुम पह'ले आद'मी हो जिस'ने मुझे पूर्ण रूप से तृप्त किया है. किसी ने भी मेरे साथ इस तरह नहीं किया जेसा तुम'ने किया. और तुम्हारी चुदाई हा'य क्या कह'ना. इत'ने तरीकों से भी किसी ओरात को चोदा जा सक'ता है मैं अभी तक आश्चयचकित हूँ. तुम'ने सच कहा था ओरात को सन्तुश्ट कर'ने के लिए बड़े लंड की दर'कार नहीं बल्कि तरीका आना चाहिए. पंडित मैं तुम'से हार गई हूँ और आज से मैं तुम्हारी दासी हूँ. तुम मेरे मालिक हो और इस दासी पर तुम्हारा पूर्ण अधिकार है."
यह सुन'कर कोका ने उसे नित्य कर्म से निवृत हो स्नान कर आने को कहा.
कुच्छ सम'य बाद कोका और वह कम'रे मैं फिर आम'ने साम'ने थे. कोका ने उसे आप'ने पास बैठाया. उसके पाओं मैं पाजेब पहनाई, हाथों मैं चूरियाँ पहनाई फिर सुंदर सी सारी और अंगिया दी. जब वह अच्छी तरह से वस्त्र पहन आई तब कोका ने अप'ने हाथों से उस'का शृंगार कर'ना प्रारंभ किया. हाथों मैं मेहंदी रचाई, पाँव मैं आल'ता, आँखों मैं काजल और फिर हर अंग के आभुश्ण. फिर कोका ने कहा,
"जो ओरात नंगी रहती है वह एक नंगे छोटे बच्चे के समान है, काम के सुख से सर्वथा अन्भिग्य. तुम नंगी होके सारी दुनिया मैं फिर'ती रही, और तुम्हारे अंदर की नारी समाप्त हो गई. तुम्हारे काम अंगों की सर'सराहट ख़त्म हो गई. अब जो भी तुम्हारी चुदाई कर'ता तुम सन्तुश्ट नहीं होती थी. ओरात वस्त्रा केवल अप'ने अंगों को ढक'ने के लिए नहीं पहन'ती बल्कि अच्छे वस्त्र पहन के बनाव शृंगार कर'के वह अप'नी काम क्षम'ता को बढाती है. इस'से पुरुश उस'की ओर आकर्शित होते हैं. यह बात नारी बहुत अच्छी तरह से समझ'ती है कि वह आकर्शण दे रही है. और इसी मनोस्थिति मैं नारी जब स्वयं आकर्शित होके किसी पुरुश को अप'ना देह सौंप'ती है तभी उसे सच्ची संतुष्टि मिल'ती है."
"आप'ने आज मेरी आँखें खोल दी. पह'ले तो लोग मुझे खिलौना समझ'ते थे. मेरी जेसी अकेली नारी को जिस'ने चाहा जेसे चाहा आप'ने नीचे सुलाया. बात यहाँ तक पाहूंछ गई क़ी मैं स्वयं अप'नी चूत मैं हरदम लंड चाह'ने लगी. जब मैं इस'के लिए आगे बढ़ी तो जो पह'ले जिस काम के लिए मुझे बहलाते फूस'लाते थे वही मुझे देख कर दूर भाग'ने लगे. इस'से मैं विद्रोह'नी हो गई और उस'का चर्म राज'सभा तक पहून्च कर हुआ."
फिर वे दोनों राजसभा मैं पहून्चे. राजा और दर'बारी उसे सजी धजी और लज्जा की प्रतिमूरती बनी देख द्न्ग रह गये. कल की नंगी घूम'ने वाली बेशर्म रन्डी आज एक सभ्रान्त महिला नज़र आ रही थी. तब कोका ने उसे बोल'ने के लिए इशारा किया,
"महाराज मैं अप'नी हार स्वीकार कर'ती हूँ. जिस ब्राह्मण का सब उप'हास उड़ा रहे थे उसी ने मुझे जीवन का सब'से आद'भूत काम सुख दिया है." उस'ने सर पर पल्लू ठीक कर'ते हुए कहा. इस पर राजा ने कोका पंडित को आदर मान देते हुए कहा,
"इस दर'बार की मान मर्यादा बचाने के लिए आप'का बहुत बहुत धन्यवाद. फिर भी मेरी उत्सुक'ता यह जान'ने के लिए बढ़ी जा रही है कि जिसे हट्टे कट्टे राजपूत नहीं कर सके वो आप किस तरह कर पाए."
"राजन यह कार्य मैने अप'ने काम शास्त्रा के ग्यान के आधार पर पूरा किया. पर राजन उन सब'का इस सभा मैं एसे वर्णन कर'ना शिश्टाचार के विरुद्ध होगा."
तब राजा ने एकांत की व्यवस्था कर दी और कोका पंडित ने विस्तार से कई दिनों मैं राजा के सम्मुख उस'का वर्णन किया. तब राजा ने आग्या दी की वह इस'को एक ग्रंथ का रूप दे. तब कोका पंडित अप'ने कार्य मैं जुट गये और परिणाम एक महान ग्रंथ "रतिरहस्य" या "कोक-शास्त्र" के रूप मैं दुनिया के समक्ष आया.
एंड
|
|
07-19-2017, 10:31 AM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
ज़ोर का झटका धीरे से
मैं जब कॉलेज मे पढ़ती थी, तो हमारा सात लड़कियों का ग्रूप था. लेकिन उन सब मे पल्लवी मेरी खास सहेली थी. वो एक छ्होटे गाओं से आई थी. इस शहर मे पेयिंग गेस्ट बन के रहती थी. ऊम्र के हिसाब से हमको भी रोमॅन्स और सेक्स की बातें अच्च्ची लगती थी. हम लड़कों को देखते थे थे और उनके बारे मे बात किया करते थे. दिन मस्ती से गुज़र रहे थे. लेकिन हमेशा समय एक सा नही रहता.
जब हमारा कॉलेज का पहला साल पूरा हो रहा था, तो पल्लवी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया. वैसे भी वो लोग ग़रीब थे. अब तो कॉलेज की पढ़ाई करना तो दूर रहा, घर चलना मुश्किल हो गया. उसके छ्होटे भाई बहन भी थे. मैं भी सहेली होने के नाते चिंतित थी, पर उसे पैसों की मदद करनेकी स्थिति हमारी ही नही थी. मुझे लगा, हमारा साथ च्छुत जाएगा. वो पढ़ नही पाएगी. लेकिन भाग्या को कुछ और मंज़ूर था. उसकी परिस्थिति से वाकिफ़ किसी दलाल ने उसे संपर्क किया और वो कॉल गर्ल बन गयी. उसकी मा को पता था. पर वो भी क्या करती ?
वो दिन मे कॉलेज अटेंड करती और रात को अपना काम करती. फिर तो वो अपने तरह तरह के अनुभव हमे सुनती थी. शुरू मे उसके दिल मे ग़लत काम का डंख रहता था, पर बाद मे वो सब निकल गया. उल्टा उसे मज़ा आने लगा. वो इतने रोचक ढंग से अपने अनुभव मुझे सुनती की मुझे भी उसकी तरह कॉल गर्ल बनने का जी कर जाता था. पर मैं ऐसा ना कर पाई. मुझे लगता था मैं जीवन की उन खुशियों को मिस कर रही हूँ, जिसे पल्लवी पा रही है. इसी तरह हमने पढ़ाई पूरी कर दी. सब बिखर गये. पल्लवी मुंबई चली गयी. वहाँ ज़्यादा स्कोप था उसके लिए.
मेरी मँगनी हो गयी. वो दूसरे गाओं से थे. तो मँगनी के बाद मुलाकात कम हुई. हां, हम लव लेटर और मैल से संपर्क मे थे.
शादी तय हो जाती है तो लड़कियों को सहेलियाँ ज़्यादा याद आती है. मुझे भी पल्लवी याद आई. अब कॉलेज को ही एक अरसा हो गया था. मैने मुंबई आने का फ़ैसला किया और पिताजी से रज़ा ले कर निकल पड़ी.
लंबे समय के बाद मैं आज उसे मिल रही थी. दोनो ने बहोट बाते की. दिनभर हम बात करते थे. रात होते वो अपने धंधे पर चली जाती थी. उसके चार एजेंट थे, जो उसके लिए बुकिंग किया करते थे. अब तो वो अलग अपना फ्लॅट ले कर रहती थी.
एक शाम हम बातें कर रहे थे की एक फोन आया. फोन पर बात कर के वो चिंतित हो गयी.
मैने पुचछा ; “क्या हुआ ? कोई समस्या ?”
उसके चेहरे पर उलज़ान नज़र आई. फिर उसने कहा ; “हां, समस्या तो है. लेकिन तू कुछ नही कर सकती.”
मैने कहा ; “फिर भी, बता तो सही.”
वो बोली ; “मेरा आज रात का होटेल गौरव का बुकिंग था. उसका 5000 नक्की हुआ है. लेकिन अभी जो फोन आया, वो दूसरे एजेंट का था. वो फुल नाइट, तीन आदमी का ऑफर लाया है.”
मैने कहा ; “तू अगर तीन आदमी पूरी रात नही सह सकती तो ना कर दे उसे. इस मे क्या उलज़ान है ?”
वो मुझ पर बिगड़ी ; “अर्रे तू कुछ समज़ाती नही है. पैसे मिलते हो तो मैं तीन क्या पाँच को भी ज़ेल लूँ. और यहाँ तो 25000 मिल रहे है.”
अब मुझे उलझन हुई, मैने कहा ; “तो स्वीकार कर ले.”
वो मूह नाचते मेरी नकल करते बोली ; “वा वा, स्वीकार कर ले, अच्च्ची सलाह दी. फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?”
अब मैं बात समझी. इनके धंधे मे हां करनेके बाद ना नही कर सकते. नही तो वो एजेंट साथ छ्चोड़ देगा. पल्लवी को यह 25000 चाहिए थे, लेकिन 5000 वाला काम ले कर फाँसी थी.
पर उसके आखरी सवाल - “फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?” – से मैं चौंकी ? उसने तो गुस्से मे ही कह दिया था. मगर मुझे कॉलेज के वो दिन याद आ गये जब उसके रोचक अनुभव सुन के मेरा भी कॉल गर्ल बनाने का जी करता था. आज मौका पाते ही वो पुरानी इच्च्छा प्रबल हो उठी, और मैने कह दिया ; “ हां, मैं जौंगी वहाँ, बस?”
वो आश्चर्या से मेरी और देखती ही रह गयी. उसकी नज़र मे सवाल था. बिना कुछ कहे वो मेरी और प्रश्ना भारी निगाह से देखती रही. मैं क्या जवाब दूं ? खुद मैं भी हैरान थी. वो पुरानी इच्च्छा का बीज इस तरह बड़ा हो के मेरे सामने आएगा, मैने कभी सोचा भी ना था. लेकिन वो भी मेरी अंतरंग सहेली थी. मेरी राग राग से वाकिफ़ थी. मेरे चेहरे पर बदलते रंगो को देख कर बोली ; “ ठीक है, पर बाद मे पचहताएगी तो नही ?” मैने नकार मे सिर हिलाया.
फिर तो उसने मुझे सारी सलाह दी. समय होते उसने एजेंट से कन्फर्मेशन भिजवा दिया की हू समय से पहुँच रही है. मुझे पल्लवी बनकर ही जाना था. ग्राहक नया था, तो वो उसे पहचानता नही था. पल्लवी मुझे होटेल पर छ्चोड़ गयी.
मैं लिफ्ट से रूम पर पहुँची. गाभहारते हुए लॉबी पसार की. रूम खोजा और डोर बेल बजाने जा रही थी की देखा की दरवाज़ा खुला है. मैं हल्के से अंदर दाखिल हुई और दरवाज़ा बाँध कर लिया. अंदर गयी, तो कोई नज़र नही आया… फिर ख़याल आया, बातरूम से आवाज़ आ रहा है, कोई नहा रहा है. मैं सोफा पर बैठी, इंतेज़ार करने के लिए. समय पसार करने के लिए कोई मॅगज़ीन धहोँढने के लिए नज़र दौड़ाई तो सेंटर टेबल पर पड़ी चित्ति पर ध्यान गया, लिखा था , “पल्लवी, ई गॉट कन्फर्मेशन फ्रॉम एजेंट तट योउ अरे रीचिंग इन टाइम. अनड्रेस युवरसेल्फ आंड जाय्न मे इन बात. “ मैं स्तब्ध हो गयी. मैं पल्लवी की जगह आ तो गयी, लेकिन वास्तविकता अब मेरे सामने थी. ये जनाब तो अंदर मेरा इंतेज़ार कर रहे है. मैने हिम्मत बटोरी, और अपने सारे कपड़े निकल दिए. पूरी नंगी हो कर धीरे से मैं ने बाथरूम का दरवाज़ा खोला.
वो नहा रहा था. शवर बाँध था, पर वो उसके नीचे खड़ा था. उसकी पीठ मेरी और थी. पूरे बदन पर साबुन लगा चक्का था. मूह पर भी साबुन था. वो मुझे देख नही पा रहा था. मैने राहत की साँस ली. मैं नज़दीक गयी और उसको पिच्चे से ही लिपट गयी. मेरे बूब्स उसकी पीठ पर टच हुए. दोनो को मानो करेंट लगा. मैने अपने हाथ उसकी च्चती पर फिराए, और उसकी पीठ पर अपने गाल घिसने लगी. (किस करने जैसी तो बिना साबुन की कोई जगह ही नही बची थी) उसने भी अपने हाथ पिच्चे फैलाए और मेरी जाँघो पर फिरने लगा. कोई कुछ बोल नही रहा था. मान-वुमन मॅजिक अपना कम कर रहा था. च्चती पार्स मैने हाथ नीचे सरकए. इन सारे वक्त मेरे बूब्स तो उसकी पीठ पर ही चिपके हुए थे. मेरे हाथ नीचे सरकते उसके कॉक तक पहुँच गये. मैं पहली बार, किसी मर्द के इस भाग को छ्छू रही थी. कॉक कड़क होने लगा. मैं उसे सहलाती रही, दबाती रही. वो “श, श” करने लगा. मैं अब तक जो पीठ पर बूब्स चिपका के गाल घिस रही थी, धीरे से नीचे की और सर्की. मैं बूब्स उसकी पीठ पर घिसते हुए नीचे जा रही थी. उसके हिप्स को अपने बूब्स से दबाती हुई मैं और नीचे उतार गयी. उसके हिप्स पर गाल घिसे. फिर मैं वहाँ से आयेज की और आई और उसका लंड मूह मे लिया. उसके हाथ मेरे सिर पर आ गये थे. मैं ने उसे पानी से साफ करके चूसना और चारों औरसे किस करना शुरू किया. साथ मे मैं उसके बॉल्स से भी खेल रही थी. दोनो के बादन मे आग लग चुकी थी. जब जी भरा तो मैं उपर उठी. अपने बूब्स उसके आयेज के बदन पर घिसती हुई मैं उपर उठी. मैने उसके होठ पर किस करना चाहा. पर वहाँ भी साबुन था. तो मैने शवर चालू किया. फुल फोर्स मे पानी बहना शुरू हुआ. मूह साफ हो गया, उसने आँखे खोली और हम दोनो चौंके……….दोनो के मूह से एक साथ एक ही शब्द निकला, “ तुम ???????? ” वो मेरा मंगेतर था !!!!!!!!!!!!!
दोनो के चेहरे पर एक साथ तरह तरह के भाव ज़लाक रहे थे ; शॉक, डिसबिलीफ, अंगेर, रिपेंटेन्स…..आंड वॉट नोट ?
|
|
07-19-2017, 10:31 AM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
वो अगले दिन अपनी ससुराल नही गयी तो मुझे फिर शक होने लगा के यह चाहती है के इस का भाई इसे चोदे और यह मा बने, लेकिन में उन्हें मौका नही देना चाहती थी. रात को वो बातें करते करते सो गयी लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी. रात को देखा के मेरा पति चुप चाप आया और उसी चारपाई पर लेट गया जिस पर उसके बेहन लेटी थी. मैं जान बूझ कर चुप रह कर तमाशा देखना चाहती थी के वो जाग कर चुदाई करवाए गी या सोते हुए उसका भाई अंजाने में उस की चुदाई करता है. मैने देखा के मेरे पति ने उस का ब्लाउस खोला और उसके मम्मे पहले हाथ में लेकर दबाने लगा फिर मुँह में लेकर चूसने लगा. वो चुप चाप लेटी हुई थी अभी पता नही लग रहा था के वो सोई हुई है या उसे पता ही नही. थोड़ी देर बाद उसके भाई ने उस का लहंगा उपर किया और उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा तो उसने अंगड़ाई ली. मुझे लगा के वो मज़ा ले रही है और जानबूझ कर चुप है. फिर भी आज मुझे सच्चाई को जानना था इसलिए बड़े ध्यान से देख रही थी के कैसे छ्होटे भाई से बड़ी बेहन चुदाई करवा रही है. जब उसने चूत हिलानी शुरू की तो मेरे पति उसके भाई ने अपना लंड उसकी चूत पर रख दिया. वो अपनी चूत को उपर उच्छालने लगी और उसके भाई ने अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और फिर ज़ोर ज़ोर से झटके मार कर चुदाई करने लगा. अब यह भगवान जाने या वो दोनो के वो अंजाने में एक दूसरे से चुदाई करवा रहे थे या जानते हुए मज़े ले रहे थे. चुदाई के मज़े लेते हुए उन्होने मुँह से मुँह मिला कर एक दूसरी के होंठों का रस पीना शुरू किया तो मैं सोचने लगी के क्या इतना कुच्छ हो जाए और औरत को पता भी ना लगे ऐसा संभव है. लेकिन मुझे चाहे अपने पति का लंड दूसरी चूत में जाते अच्छा नहीं लग रहा था वो भी उसकी अपनी बेहन की चूत में लेकिन मेने सोच लिया था के मैं आज सच्चाई जान कर ही रहूंगी.अच्चानक मेने सुना के वो कह रही है ' भाई तेरी बेहन बहुत दिनो की प्यासी थी और तुझे कुच्छ कह भी नही सकती थी, लेकिन पिच्छली बार तुमने अपनी बीवी समझ कर जब मेरी चुदाई की तो मुझे पहली बार चुदाई का मज़ा आया था और उसके बाद बच्चा होने से तो मैं तेरे लंड की दीवानी हो गयी थी. तुझे आज बताउ के तेरे जीजा का लंड बिल्कुल छ्होटा है और मेरी क्या किसी भी औरत की तसल्ली नही कर सकता. कल तू नही आया तो मुझे नींद ही नही आई और मुझे एक दिन सिर्फ़ तेरा लंड लेने के लिए रुकना पड़ा.'' बोल मत मेरी पत्नी ने सुन लिया तो गड़बड़ हो जाएगी. यह तो ठीक है के पिच्छली बार मैं अपनी पत्नी के पास ही आया था और मुझे नहीं पता था के उसकी चारपाई पर तू सोई हुई है. लेकिन जब हो ही गया तो भगवान की मर्ज़ी समझ कर चुप करने में ही भलाई समझी'.'यह तो ठीक है होता है वोही जो मंज़ुरे खुदा होता है, लेकिन ऐसे कब तक चोरी चोरी मिलते रहेंगे और कब तक यह भेद बना रहेगा. पहले की बात दूसरी थी, जब तक तेरे लंड का स्वाद नही लिया था में तेरे जीजा के छ्होटे से लंड से ही गुज़ारा चला रही थी लेकिन अब तेरे लंड का स्वाद चखने के बाद इसके बिना रहा नहीं सकती.'' ऐसा कर कुच्छ दिन के लिए तू यही रह जा, फिर आगे की सोचेंगे.'सुबह मैने अपनी ननंद से पूछा ' रात को कोई सपना आया या नही'' रात बड़ा हसीन सपना आया, मज़ा आ गया, तेरी चारपाई में तो कोई जादू है. मेरे पति का लंड जो घर में छ्होटा लगता है यहाँ पर पता नही कैसे इतना बड़ा हो जाता है.'मैं सोचने लगी के इसे अभी यह बताउ के नहीं के मेने इनकी रात की बातें सुन ली है. फिर मैं यह सोच कर के अगर इन्हे यह कह दिया के मेने इनकी बातें सुन ली हैं तो इनका आगे का नाटक देखने का मज़ा नही मिलेगा. सच यह था के अब मुझे इनके झूठ की कहानी सुनने में मज़ा आने लगा था. अभी तो मेने अपने पति से इस बारे में ज़यादा बात ही नही की थी और मैं उस से बात करने की बजाए उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी. रात को मेरे बहुत कहने के बावज़ूद मेरी ननंद उसी चारपाई पर सोई और मैं रात भर भाई बेहन की चुदाई के मज़े लेती रही. एक बार दिल में आया के उठ कर उन्हें उस समय पकड़ लूँ जब भाई का लंड बेहन की चूत में होगा, लेकिन ना जाने क्यो मेने उनके मज़े में खलल डालना पसंद नही किया और चुप चाप भाई बेहन की चुदाई देखती रही. वो इस बार काफ़ी दिन रुकी और दोनो हर रात मेरे सामने ही खूब मज़े लेते रहे. अब कई साल हो गये हैं उसका एक और बच्चा भी हो गया है और वो ज़्यादा अब यहीं रहती है. मैने भी उन दोनो का राज ना तो कभी खोला खोलने की कोशिश की
तो दोस्तो कैसी लगी ये कहानी आपको ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
|
|
07-19-2017, 10:31 AM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
गंगा स्नान
----------
मैं गंगा स्नान के लिए त्रिवेणी घाट ऋषिकेश गई थी. बहुत भीड़ थी. समझ
नही आरहा था कि अपना बॅग कहाँ रखूं और कैसे नहाऊ? सीढ़ियों पर एक
अधेड़ उमर का जोड़ा (हज़्बेंड वाइफ बैठे थे उनके साथ उनकी एक बेटी जिसकी एज
10-11 के लगभग होगी. मुझे वो लोग सारीफ़ से लगे और मैने उस औरत से रिक्वेस्ट
की कि प्लीज़ आप मेरे बॅग का ध्यान रखेंगे और उनके हां कहने के बाद मैने
सब लोगों की तरह अपनी साडी उतरी और पेटिकोट का नाडा खोलकर अपने चुचो के
उपर तक खींच कर फिर से गाँठ मार दी, फिर मैने सीधी पर बैठ कर
पेटिकोट के अंदर अपने हाथ घुसेड कर अपना ब्लाउस और ब्रा खोलने के बाद पॅंटी
भी उतारी और बॅग मे डाल दी. अब मेरे बदन पर मेरे चुचो के उपर से लेकर
घुटनों तक केवल मेरा पेटिकोट था.
उस औरत ने सलवार कमीज़ पहनी थी, उसने भी झट से पहले अपनी कमीज़ और फिर
ब्रा उतारकर मॅक्सी पहनी और फिर सलवार भी उतार दी. उसके हज़्बेंड ने शर्ट पॅंट
और बनियान उतारकर कछे मे नहाने के लिए तैयार हो गया.
सबसे पहले वो आदमी पानी मे घुसा उसके साथ साथ उसकी वाइफ भी उसके पास
गयी और सॅफ्टी चैन पकड़ कर पानी मे गर्दन तक डुबकी मारने लगी. मैं भी
उनसे 4-5 फीट उपर की साइड सॅफ्टी चैन पकड़ कर डुबकी मारने लगी, जैसे ही मैं
डुबकी मारती मेरा पेटिकोट उपर उठकर पानी के उपर तैरने लगता और मेरे हिप्स
नंगे हो जाते. एक दो बार मैने एक हाथ से ही अपने पेटिकोट को खींचकर अपनी
दोनो थैएस को चिपकाकर उनके बीच मे फासकार डुबकी मारती मगर पानी के तेज
बहाओ मे फिर से पेटिकोट छिटक जाता और पानी के उपर आ जाता. पता नही वहाँ
पर हज़ारो मर्दो के बीच मे कितने मर्दों ने मेरा अग्वाडा और पिच्छवाड़ा देखा
होगा.
एक बार पानी से बाहर सीढ़ी पर आकर मैं अपने हाथों और पैरों को रगड़
रही थी कि मेरी निगाह उसी आदमी पर पड़ी जिनके पास मैने अपने बॅग रखा था,
वो चोरी चोरी मेरे बदन को निहार रहा था, उसका ध्यान अपनी वाइफ की तरफ कम
और मेरी तरफ ज़्यादा था.
मैं फिर से पानी घुसी और एक हाथ से सॅफ्टी चैन पकड़ कर डुबकी मारने लगी.
अबकी बार मैने एक हाथ से अपनी नाक बंदकर जैसे ही पूरा सर पानी मे डुबोया,
अचानक मेरे मूह मे खूब सारा पानी घुसने के कारण मेरी साँस अटक गयी और
हड़बड़ाहट मे मेरा सॅफ्टी चैन वाला हाथ छूट गया और मैं बहते हुए ज़ोर से
बचाआआआओ चिल्ला पड़ी और बेहोसी जैसी हालत मे पानी के अंदर डूब कर बहने
लगी. अचानक मैने पानी के अंदर ही महसूस किया कि कुच्छ हाथों ने मेरी
गर्दन को पकड़ कर पानी से बाहर खींचा अभी मेरा सर पानी से बाहर आया ही
था कि किसी ने गच्छ एक उंगली मेरी चूत मे घुसेड कर मुझे पानी से बाहर
निकालने की कोसिस करने लगा और मैं अपनी जान बचाने की लिए अपने हाथ से उसकी
टाँगो को पकड़ने की कोसिस करने लगी कि पहले तो उसके कछे के बाहर से ही
उसका लॅंड मेरे हाथ मे आया पर मैने झट से हाथ हटाया और अबकी बार उसके
कछे का लस्टिक मेरे हाथ मे आया. मेरा कमर से उपर की हिस्सा पानी के बाहर
आ चुका था आँख खुलने पर मैने पाया कि मेरा पेटिकोट नीचे के बजाई पूरा
का पूरा उपर की तरफ उठ गया था और सर पेटिकोट से ढक था.
ये सब कुच्छ इतनी जल्दी घट गया कि पता ही नही चला. किसी की उंगली अभी भी
मेरी चूत के अंदर थी और जैसे ही मुझे बाहर निकालने की कोसिस करते-करते
झटके से और अंदर घुसेड देता. किसी तरह उनलोगों ने मुझे खींच कर सीढ़ी
पर बिठाया और पता नही किस ने मेरा पेटिकोट मेरे सर से नीचे किया तो मैने
देखा मेरे चारों तरफ भीड़ खड़ी थी, जिनमे ज़्यादातर मर्द थे. मेरा शरम
के मारे बुरा हाल था, गर्दन उपर नही उठा पा रही थी, कई आवाज़े आ
रही थी, कोई पूच्छ रहा था "मेडम ठीक हो" कोई कहता "बहन जी घबराओ मत
भगवान ने बचा लिया" और ना जाने क्या क्या. वो औरत मेरा बॅग लेकर मेरे पास
ही लेकर आई और बोली "दीदी भगवान का सूकर है कि आप बच गयी हैं", अब
कपड़े पहनलो और मंदिर मे सवा 5 रुपये का परसाद चढ़ा कर घर जाना. मैने
बदहवासी मे टॉवल से सर पोंच्छा और दूसरा पेटिकोट सर के उपर से डालकर चुचो
के उपर अटककार गीले पेटिकोट का नाडा खोलकर नीचे सरकया और फिर साडी का एक
कोना कंधों पर ओढकर बिना ब्रा के ब्लाउस पहना. मुझे वहाँ से जाने की जल्दी
थी इसलिए फटाफट कपड़े पहन कर त्रिवेणी घाट से निकलकर मार्केट मे पहुँच
कर साँस ली.
अब मेरे दिमाग़ मे उथलपुथल होने लगी कि उन 10-11 मर्दों, जो मुझे घेरे हुए
थे, मे से किस मर्द ने मेरी चूत मे उंगली घुसेदी होगी, अंजाने मे घुसी होगी या
उसने जान बुझ कर घुसेदी होगी. चूँकि मेरा पेटिकोट नीचे के बजाई मेरे सर
के उपर पलटा हुवा था तो क्या इतने सारे लोगों ने मेरी 2 महीने से बिना सेव
की हुई चूत को देखा होगा?. अजीब हालत हो रही थी एक तरफ घबराहट के मारे
बदन काँप रहा था और दूसरी तरफ दिमाग़ मे उंगली का ख़याल आते ही चूत के
अंदर गीलापन महसूस होने लगा.
आअप लोग क्या बोलते हैं कि उस आदमी ने मेरी चूत मे उंगली अंजाने मे घुसेदी
होगी या अंजाने मे.
|
|
07-19-2017, 10:31 AM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
हिंदी सेक्सी कहानियाँ
मासूम--1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी मासूम लेकर हाजिर हूँ
वो सर पर अपना पल्लू डाले घर से निकली. बाहर गर्मी बहुत ज़्यादा थी और
धूप काफ़ी तेज़ जबकि ये सिर्फ़ एप्रिल का महीना था. उसने टी.वी पर भी
सुना था के ये साल पिच्छले 50 सालों में सबसे गरम होगा.
दोपहर के वक़्त गाओं की सड़कें अक्सर सुनसान ही रहती थी. 1 बजने तक लोग
अपने अपने घर में घुस जाते
थे और शाम 4 या 5 बजे से पहले नही निकलते थे.
खाली सड़कों पर तेज़ कदम बढ़ाती वो गाओं से थोड़ा बाहर बने चर्च की तरफ बढ़ी.
पीछे से एक कार के आने की आवाज़ सुनकर वो सड़क के किनारे हो गयी. वो
जानती थी के कार किसकी है. रोज़ाना ये कार इसी वक़्त यहाँ से गुज़रती थी.
पर आज पीछे से आती कार तेज़ी के साथ गुज़री नही बल्कि उसके पास पहुँच कर
धीमी हो गयी.
"कैसी हो सिरिशा?" मेरसेडीज का शीशा नीचे हुआ
उसने रुक कर कार की तरफ देखा और दिल की धड़कन जैसे अपने आप तेज़ होने लगी.
विट्ठल पर गाओं की हर लड़की फिदा थी, उसकी अपनी दोनो बड़ी बहने भी. वो
देखने में था ही ऐसा. लंबा, चौड़ा ...... वो क्या कहते हैं अँग्रेज़ी में
.... हां, टॉल डार्क आंड हॅंडसम. वो हमेशा महेंगे कपड़े पेहेन्ता था,
महेंगी गाड़ियाँ चलाता था. उसने तो ये भी सुना था के विट्ठल के पापा का
इंडिया के हर
बड़े शहर में एक घर था.
"आपको मेरा नाम कैसे पता विट्ठल साहिब" वो खिड़की के थोड़ा करीब होते हुए बोली
"तुम्हें मेरा नाम कैसे पता?" विट्ठल ने मुस्कुराते हुए सवाल के बदले सवाल किया
"कैसी बात करते हैं. आपको तो हर कोई जानता है" वो थोड़ा शरमाते हुए बोली
"ह्म्म्म्मम" विट्ठल मुस्कुराया "कहाँ जा रही हो?"
"चर्च तक"
"चर्च? सिरिशा पर तुम तो एक ब्रामिन हो........"
"मुझे वहाँ जाके अकेले बैठना अच्छा लगता है, इसलिए इस वक़्त जाती हूँ.
कोई नही होता चर्च में,
एकदम शांति, आराम से बैठ के भगवान को याद किया जा सकता है" सिरिशा एक
साँस में बोल गयी
"आअराम से, शांति से मंदिर में भी बैठा जा सकता है. या मंदिर के पुजारी
तुम्हें पसंद नही आते उस
गोरे फादर के सामने?"
फादर पीटर का नाम इस तरह सुनकर सिरिशा और भी शर्मा उठी. वो बाहर किसी देश
के थे, कौन सा पता नही पर यहाँ इंडिया में वो क्रिस्चियन धरम फेलाने के
लिए आए थे. वो अपने आपको एक मिशनरी कहते थे. जब वो चर्च में खड़े होकर
बोलते थे तो सिरिशा के दिल को एक अजीब सा सुकून मिलता था. कितना ठहराव था
उनकी बातों में, उनकी आवाज़ में.
जो भी बात कभी सिरिशा को परेशान करती, वो अक्सर कन्फेशन बॉक्स में बैठ कर
फादर पीटर से कह देती थी. यूँ चर्च में उनके सामने सब कुच्छ कन्फेस कर
लेना उसे बहुत पसंद था.
"तुम्हें पता है ये लोग यहाँ ग़रीब लोगों को पैसा देकर क्रिस्चियन बनाते
हैं?" वो अभी अपनी सोच में ही गुम थी के विट्ठल बोला
उसकी बात सुनकर एक अजीब तरह का गुस्सा सिरिशा के दिल में भर गया. उसने
विट्ठल की बात का जवाब देना ज़रूरी नही समझा और कार से हटकर आगे की तरफ
चल पड़ी.
"अर्रे इतनी गर्मी में कहाँ जा रही हो? आओ मैं छ्चोड़ देता हूँ" पीछे से
विट्ठल चिल्लाया उसकी बात सुनकर सिरिशा एक पल के लिए सोचने पर मजबूर हो
गयी.
चर्च अभी थोड़ा दूर था और आज
गर्मी कुच्छ ज़्यादा ही थी. वो चर्च तक पहुँचते पहुँचते पसीना पसीना हो
जाएगी और इस हालत में
चर्च जाना उसे अच्छा नही लगता था.
"गाड़ी में ए.सी. चल रहा है. मैं छ्चोड़ दूँगा तुम्हें" कहते हुए विट्ठल
ने गाड़ी का दरवाज़ा खोला.
सिरिशा ने पल्लू अपने सर से हटाया और गाड़ी में पिछे की सीट पर जाकर बैठ
गयी. पर उस वक़्त चर्च जाने का उस वक़्त विट्ठल का शायद कोई इरादा नही
था.
"कहाँ जा रहे हैं हम?" गाड़ी जब एक चर्च जाने के बजाय एक दूसरे ही रास्ते
पर मूडी तो सिरिशा ने पुछा
"कहीं नही. चिंता मत करो तुम्हें चर्च छ्चोड़ दूँगा मैं" विट्ठल पिछे देख
कर मुस्कुराया.
उसके बाद जो हुआ वो सिरिशा के लिए एक सपने जैसा ही था, एक ऐसा बुरा सपना
जिसे सोचकर ही उसके दिल घबरा जाता था और गुस्सा से वो लाल हो जाती थी.
विट्ठल ने गाड़ी रोकी और उसके साथ बॅक्सीट पर आ गया था.
"छ्चोड़ दो मुझे, जाने दो" वो ज़बरदस्ती करने लगा तो सिरिशा रोते हुए बोली.
"बस एक बार .... कुच्छ नही होगा .... मज़ा आएगा तुझे भी" विट्ठल ने उसकी
सारी कमर तक उठा दी थी
"ये पाप है, तुम ऐसा नही कर सकते मेरे साथ"
"अर्रे कोई पाप वाप नही है" उसने अपनी पेंट की ज़िप खोली और नीचे को खिसकाई.
उसके बाद सिरिशा जैसे एक ज़िंदा लाश बन गयी थी. वो कार की पिच्छली सीट पर
पड़ी बाहर चिड़ियों के चहचाहने की आवाज़ें सुनती रही. उसको मालूम था के
जहाँ वो लोग रुके हुए हैं, वहाँ इस वक़्त दूर दूर तक कोई नही होता इसलिए
रोने चिल्लाने का कोई फ़ायदा नही था.
"जितनी मस्त तू उपेर से दिखती है, उससे कहीं ज़्यादा मस्त तू अंदर से है"
विट्ठल ने एक पल के लिए अपना सर उपेर उठाकर बोला और फिर से झुक कर उसकी
चूचियाँ चूसने लगा.
सिरिशा का ब्लाउस खुला था और ब्रा को विट्ठल ने खींच कर उपेर कर दिया था
ताकि उसकी दोनो चूचियो के साथ खेल सके. नीचे से उसने सारी को सिरिशा की
कमर तक चढ़ा दिया था और अपनी नंगी टाँगो के बीच विट्ठल को महसूस कर रही
थी.
"ये टाँग थोड़ी उपेर कर ना प्ल्स" विट्ठल अंदर दाखिल होने की कोशिश कर
रहा था पर अंदर जा नही पा रहा था.
सिरिशा ने बिना कुच्छ कहे उसकी बात मानती हुए अपनी एक टाँग को थोड़ा सा
हवा में उठा दिया. विट्ठल ने एक बार फिर उसके शरीर में दाखिल होने की
कोशिश की. सिरिशा पूरी तरह से बंद थी और ज़रा भी गीली नही हुई थी इसलिए
अंदर जाने की ये कोशिश विट्ठल के लिए काफ़ी तकलीफ़ से भरी महसूस हुई.
"एक काम कर ... थोड़ी देर मुँह में लेके चूस दे ना ... गीला हो जाएगा"
विट्ठल ने कहा तो सिरिशा ने गुस्से में उसकी तरफ देखा और बिना कुच्छ कहे
अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लिया.
"अर्रे नाराज़ क्यूँ होती है, मैं तो बस पुच्छ ही रहा था" विट्ठल ने नीचे
को झुक कर उसका गाल चूमा और फिर अपने हाथ पर थोड़ा सा थूक लिया और लगा कर
फिर से कोशिश की.
थोड़ी तकलीफ़ हुई पर इस बार लंड बिना रुके सिरिशा के अंदर तक दाखिल हो गया.
"आआअहह .... कितनी टाइट है तू .... आज तक चुदी नही क्या कभी?"
इस बार भी सिरिशा ने जवाब देना ज़रूरी नही समझा. दर्द के मारे उसकी चीख
निकलते निकलते रह गयी थी और आँखों में आँसू भर आए.
"मज़ा आ गया .... ओह्ह मेरी जान .... बहुत गरम है तू ... बहुत टाइट"
और भी जाने क्या क्या बकता हुआ विट्ठल अकेला ही मंज़िल की तरफ बढ़ चला.
सिरिशा की दोनो चूचियाँ उसके हाथों में थी और उसके गले को चूमता हुआ वो
धक्के पर धक्के लगा रहा था. उसके नीचे दबी सिरिशा बड़ी मुश्किल से अपने
आपको कार की सीट पर रोक पा रही थी. एक तो इतनी छ्होटी सी जगह और उसपर
विट्ठल के धीरे धीरे तेज़ होते धक्के, हर पल उसको लगता था के वो खिसक कर
नीचे गिर जाएगी.
"आआआहह" अचानक विट्ठल ने उसकी एक चूची पर अपने दाँत गढ़ाए तो उसकी चीख निकल गयी.
"सॉरी" वो दाँत दिखाता हुआ बोला "कंट्रोल नही, तेरी हैं ही ऐसी, इतनी
बड़ी और इतनी सॉफ्ट"
सिरिशा का दिल किया के मुक्का मार कर उसके दोनो दाँत तोड़ दे.
"जल्दी करो" वो पहली बार बोली
"जल्दी क्या है ... अच्छी तरह से मज़ा तो लेने दो" विट्ठल फिर धक्के लगाने लगा
"तुझे मज़ा नही आ रहा?"
सिरिशा कुच्छ नही बोली
"अर्रे बोल ना ... मज़ा नही आ रहा. कैसा लग रहा है मेरा तेरे अंदर?"
वो फिर भी कुच्छ नही बोली
"पूरी गीली हो चुकी है तू और कहती है के मज़ा नही आ रहा?"
विट्ठल ने कहा तो सिरिशा का ध्यान पहली बार इस तरफ गया. उसकी टाँगो के
बीच की जगह पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और अब विट्ठल बड़ी आसानी के साथ
उसके अंदर बाहर हो रहा था.
"मेरी कार की सीट तक गीली कर दी है तूने"
वो सही कह रहा था. खुद अपनी कमर और कूल्हो के नीचे सिरिशा को कार की गीली
सीट महसूस हो रही थी. खुद उसका अपना शरीर उसे छ्चोड़ कर विट्ठल के साथ हो
चला था और उसे पता भी नही चला था.
वो पूरी तरह से खुल चुकी थी और उसका शरीर जैसे विट्ठल के हर धक्के का
स्वागत कर रहा था.
"निकलने वाला है मेरा" विट्ठल ने कहा और किसी पागल कुत्ते की तरह हांफता
हुआ धक्के लगाने लगा.
थोड़ी देर बाद उसको चर्च के सामने छ्चोड़ कर विट्ठल चलता बना. सिरिशा ने
एक पल के लिए सामने चर्च के दरवाज़े पर नज़र डाली और फिर अंदर जाने के
बजाय पलट कर वापिस घर की तरफ चल पड़ी.
वो इस हालत में चर्च कैसे जा सकती थी?
क्रमशः.........................
|
|
07-19-2017, 10:31 AM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
हिंदी सेक्सी कहानियाँ
मासूम--2
गतान्क से आगे...................
विट्ठल ने जो भी उसके शरीर के अंदर छोड़ा था, अब वो बाहर निकल कर उसकी
टाँगो पर बहता महसूस हो
रहा था.
उस दिन जो हुआ था, उसका ज़िक्र सिरिशा ने कभी किसी से नही किया. फादर
पीटर से भी नही.
2 हफ्ते बाद ही उसे वो खबर सुनने को मिल गयी थी. गाओं में हर कोई इसी
बारे में बात कर रहा था.
विट्ठल की शादी राजलक्ष्मी से होने जा रही थी. विट्ठल की तरह ही
राजलक्ष्मी का परिवार भी आस पास के इलाक़े मे काफ़ी जाना माना था. पर
जहाँ विट्ठल के घरवाले सिर्फ़ व्यापारी थे और सिर्फ़ कपड़ो और जूतो का
धंधा करना जानते थे, वहीं राजलक्ष्मी के घरवाले पैसे के कारोबार में थे.
कर्ज़े पर पैसा देना और ब्याज़ कमाना, यही उनका काम था और पॉलिटीशियन और
बड़े बड़े लोगों के साथ उनका बहुत उठना बैठना था. ये कहना ग़लत नही होगा
के वो ताक़त और प्रतिष्ठा में विट्ठल के परिवार से 100 गुना ज़्यादा थे.
दो रईस और बड़े परिवार के बीच हो रहा ये रिश्ता जैसे उस वक़्त हर किसी की
ज़ुबान पर था.
जब सिरिशा को विट्ठल की शादी के बारे में पता चला तो वो खुद जैसे नफ़रत
के एक अंधे कुएँ में गिर गयी. धीरे धीरे नफ़रत बदला लेने की एक भारी
इच्छा में तब्दील होने लगी. उसे ऐसा लगने लगा जैसे वो विट्ठल से बदला
लेने के लिए, उसे तड़प्ता देखने के लिए कुच्छ भी करने को तैय्यार थी.
पर ऐसा कुच्छ ना तो वो कर पाई और ना ही उसे करने को मौका मिला. ज़िंदगी
यूँ ही धीरे धीरे आगे बढ़ती रही और वो अपने आप में कुढती रही, जलती रही.
कई बार दिल में ख्याल आया के सबको बता दे के विट्ठल ने उसके साथ क्या
किया था पर वो बखुबी जानती थी के ऐसा करना सिर्फ़ खुद उसे ही बदनाम करता.
उसकी ज़िंदगी अपनी स्कूल की किताबो और चर्च के बीच सिमट कर रह गयी थी.
"तू इतनी बड़ी भक्त कैसे बन गयी? अपनी उमर की लड़कियों को देखा है? सजने
सवरने से फ़ुर्सत नही मिलती उन्हें और तू है के बस पुजारन बनी बैठी है"
उसकी माँ ने एक दिन उसे कहा था.
"मुझे अच्छा लगता है चर्च जाना. वहाँ भगवान के सामने बैठती हूँ तो ऐसा
लगता है जैसे मेरा कुच्छ नही च्छूपा उनसे, सब देख रहे हैं वो" जवाब में
सिरिशा बस इतना ही कह पाई थी.
2 महीने गुज़र गये और उसने फिर कभी विट्ठल को नही देखा. फादर पीटर भी अब
अपने देश वापिस जा चुके थे. अब कन्फेशन बॉक्स में बैठकर उसने दिल का हाल
सुनने वाला और उसे समझने वाला कोई नही था.
और फिर बरसात का मौसम भी आ गया. पूरे अगस्त के महीने भी बारिश ने रुकने
का नाम नही लिया. बादल हर वक़्त आसमान में छाए रहते और कभी भी अचानक
बरसने लगते. गाओं की सड़कों पर हर तरफ कीचड़ जमा हो गया था और छत पर हर
वक़्त पड़ती बारिश की बूँदों की आवाज़ जैसे कभी कभी पागल
ही कर देती थी. और अगर बारिश रुकती भी थी तो हवा में इतनी नमी होती के
इंसान बैठे बैठे ही पसीने से नहा जाए और फिर बारिश की दुआ करने लगे.
और एक दिन, जबके उसका पूरा परिवार उसके छ्होटे भाई का बर्तडे मनाने के
लिए इकट्ठा हुआ था, कुच्छ ऐसा हुआ जिसका डर सिरिशा को हफ़्तो से सता रहा
था. वो अपने छ्होटे कज़िन के साथ बैठी बाल्कनी में खेल रही थी के अचानक
वो अंजान बच्चा सबके सामने बोल पड़ा.
"दीदी आप कितनी मोटी हो गयी हो. देखो आपका पेट कैसे बाहर को निकल आया है"
पूरे घर में हर किसी की नज़र सिरिशा के पेट की तरफ हो गयी थी. जैसे
सिरिशा के पेट का वो उठान देखा तो सबने था पर इंतेज़ार कर रहे थे के पहले
कौन बोलेगा.
उस दिन सिरिशा को ना स्कूल जाने दिया गया और ना चर्च.
"हमें यूँ शर्मिंदा करके तुझे क्या मिला?" उसकी माँ ने रोते हुए उससे
पुछा था "क्या कमी रह गयी थी हमारी तरफ से जो तूने हमें ये दिन दिखाया?
कौन करेगा अब तुझसे शादी? इस उमर में अपने बाप का नाम इस तरह उच्छालके
तुझे क्या हासिल हुआ? वो तो अच्छा हुआ के वो ये दिन देखने से पहले ही चल
बसे?
आज अगर वो ज़िंदा होते तो खड़े खड़े ही मर जाते"
सुबह शाम इस तरह की बातों का जैसे एक सिलसिला ही चल निकला. कभी उसकी माँ
तो कभी रिश्तेदार. हर कोई उसे यही बातें सुनाता रहता और हर किसी की
ज़ुबान पर एक ही सवाल था,
"बच्चे का बाप कौन है?"
और जब सिरिशा से और बर्दाश्त ना हुआ तो उसने हार कर उस दोपहर के बारे में
सबको बता दिया जब उसे राह चलते विट्ठल मिल गया था.
"अगर बदनाम होना ही था तो मेरी मासूम बच्ची अकेली बदनाम नही होगी. अपने
हिस्से की बदनामी विट्ठल भी उठाएगा" बात ख़तम होने पर उसकी माँ ने कहा था
और हर कोई हैरानी से उनकी तरफ देखने लगा था.
"इसको दाई के पास ले चलें? वो जानती हैं के बच्चा कैसे गिराते हैं" उसकी
बड़ी बहेन इंद्रा बोली
"तेरा दिमाग़ खराब हुआ है? उस औरत को बच्चा जानना तो आता नही, गिराएगी
क्या खाक" सिरिशा की माँ ने कहा
अगले दिन ही सिरषा अपनी माँ के साथ शहर के एक हॉस्पिटल में गयी थी.
टेस्ट्स से साबित हो गया था के वो प्रेग्नेंट थी.
"कुच्छ किया जा सकता है?" उसकी माँ ने डॉक्टर से पुछा
"जितनी जल्दी हो सके, इसकी शादी करा दीजिए" डॉक्टर ने जवाब दिया. वो उसके
पिता के एक पुराने दोस्त थे और अक्सर उनके घर आते जाते थे
"अब आप ही बताइए के इस मनहूस से शादी कौन करेगा? इस बच्चे का कुच्छ नही
हो सकता क्या?"
बाहर अब भी बारिश का मौसम था. आसमान में बदल इस कदर फेले हुए थे के दिन
में भी रात का एहसास होता था. कमरे में जल रहे बल्ब के चारो तरह अजीब
अजीब तरह के कीट पतंगे उड़ रहे थे.
"बच्चे का इंटेज़ाम मैं कर तो सकता हूँ" डॉक्टर बहुत धीमी आवाज़ में बोला
"पर पैदा होने के बाद. बच्चा इस वक़्त गिराया नही जा सकता. आपकी बेटी
वैसे ही बहुत दुबली पतली है और उपेर से 3 महीने की प्रेग्नेंट है. अगर जो
डेट्स ये हमें बता रही है वो सही हैं तो और 3 महीने में ये फुल टर्म हो
जाएगी. इस वक़्त कुच्छ भी किया तो मामला बिगड़ सकता है. बच्चे के साथ साथ
इसकी जान को भी ख़तरा हो सकता है"
"और अगर बच्चा पैदा किया" उसकी माँ ने मुँह बनाते हुए कहा "अगर पैदा किया
तो उसके बाद क्या?"
"मैं बच्चा रखना चाहती हूँ माँ" सिरिशा अचानक बोल पड़ी
"बेवकूफ़ मत बन"
"ये बच्चा मेरा है. मैं इसे पैदा करना चाहती हूँ. अपने पास रखना चाहती हूँ"
"और खर्चे कौन उठाएगा? कौन देखभाल करेगा तुम दोनो की?"
"मेरा होने वाला पति" सिरिशा ने अपनी माँ की आँख से पहली बार आँख मिलाई
"और कौन करेगा तुझसे शादी?"
"विट्ठल. मुझसे शादी वही करेगा जो मेरी इस हालत के लिए ज़िम्मेदार है"
"आपकी बेटी इतनी बेवकूफ़ है नही" डॉक्टर जो अब तक माँ बेटी की बातें सुन
रहा था बीच में बोल पड़ा.
"वैसे भी आपको इसकी शादी तो करनी है ही तो विट्ठल से ही एक बार बात चला
के देखिए. कोशिश करने में क्या हर्ज है?"
और फिर जैसा के सिरिशा चाहती थी, उसकी माँ उसे लेकर विट्ठल के घर जा
पहुँची. हैरानी सबको तब हुई जब विट्ठल ने बिना कोई ना नुकुर किए इस बात
की हामी भरी के उसने सिरिशा के साथ ज़बरदस्ती की थी. और उससे भी बड़ी
हैरानी तब हुई जब वो सिरिशा से शादी करने के लिए भी फ़ौरन तैय्यार हो
गया.
"शायद इतना बुरा ये है नही जितना मैं सोच रही थी" पहली बार सिरिशा के दिल
में विट्ठल के लिए एक नाज़ुक जगह बनी थी.
बात उड़ चुकी थी और साथ में उड़ चुका था विट्ठल के परिवार का नाम. हर तरफ
हो रही बदनामी से बचने का उनके पास अब एक ही रास्ता था और वो ये के जिस
ग़रीब लड़की का उनके बेटे ने फ़ायदा उठाया, वो उसे अपने घर की बहू बनाए.
और इसके लिए सबसे पहला कदम था राजलक्ष्मी के साथ तय हो चुकी विट्ठल की
शादी को तोड़ना.
किसी ने कहा के विट्ठल एक कायर था इसलिए शादी के लिए मान गया था.
किसी ने कहा के उसके घरवाले पोलीस के मामले में पड़ना नही चाहते थे इसलिए
शादी का ज़ोर डाला गया था.
किसी ने कहा था के सिरिशा ने विट्ठल पर रेप केस कर दिया था इसलिए शादी की
बात चला दी गयी थी.
किसी ने कहा, और जो कि खुद सिरिशा ने भी सोचा था, के विट्ठल उस बदसूरत
राजलक्ष्मी से शादी नही करना चाहता था इसलिए उसे फ़ौरन सिरिशा का हाथ थाम
लिया था. राजलक्ष्मी रईस और एक बड़े घराने से ज़रूर थी पर हर कोई जानता
था के वो देखने में सुंदर तो क्या, एक आम लड़की से भी गयी गुज़री थी,
और उपेर से कितनी मोटी भी तो थी वो. उसके मुक़ाबले मासूम सी दिखने वाली
सिरिशा तो जैसे आसमान से उतरी एक परी थी. विट्ठल ने ज़बरदस्ती राजलक्ष्मी
से हो रही अपनी शादी से बचने के लिए सिरिशा का सहारा लिया था.
मासूम--3
गतान्क से आगे...................
वजह जो भी थी, विट्ठल शादी के लिए मान गया था और उसने काफ़ी समझदार से
काम लिया था. और उससे कहीं ज़्यादा समझदारी दिखाई थी राजलक्ष्मी के
घरवालो ने. अंदर से भले ही उन्हें ही इस तरह रिश्ता तोड़ दिए जाने पर
बे-इज़्ज़ती महसूस हुई हो पर उपेर से उन्होने कुच्छ भी ज़ाहिर नही होने
दिया. और तो और, उन्होने तो विट्ठल के परिवार के साथ अपनी बोल-चाल भी
जारी रखी थी.
राजलक्ष्मी के तीनो भाइयों ने विट्ठल को अपने नये फार्म-हाउस पर आने का
नियोता तक भेज दिया ताकि दोनो परिवार के बीच जो कुच्छ भी हुआ था, वो
ख़ाता किया जा सके और वो लोग बिना दिल में कुच्छ रखे आगे बढ़ सकें.
विट्ठल भी यही चाहता था के इस सारे कांड में किसी को कोई नुकसान ना
पहुँचे इसलिए उसने फ़ौरन हां कर दी.
उसी दिन फार्म-हाउस की तरफ जाते हुए विट्ठल की कार का आक्सिडेंट हो गया
और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया था. ना तो उस ट्रक का पता चला जिससे
विट्ठल की कार की टक्कर हुई थी और ना ही उस ट्रक ड्राइवर का.
3 दिन बाद विट्ठल का क्रिया करम कर दिया गया. एक बार फिर बातों का बाज़ार
गरम हो चला था. कुच्छ को भरोसा था के विट्ठल के साथ जो कुच्छ हुआ उसमें
भगवान का हाथ था. एक मासूम लड़की के साथ किए गये उसके सलूक की सज़ा भगवान
ने उसे दी थी. भगवान नाराज़ थे और यही वजह थी के इस साल इस क़दर
बरसात हुई थी.
कुच्छ लोगों का मानना था के विट्ठल मरा नही बल्कि उसे मारा गया है.
राजलक्ष्मी के परिवार वाले इज़्ज़त और रोबदार लोग थे. अपनी बेटी की यूँ
शादी तोड़ दिए जाने से सरे-आम हुई बदनामी को वो कैसे बर्दाश्त कर सकते
थे. 3 भाइयों की वो अकेली बहेन थी. अपनी बहेन का बदला लिया था भाइयों ने.
"कुच्छ भी हो भाय्या" क्रिया करम में शामिल होने आए लोगों में से किसी ने
कहा था "हम कौन हैं बोलने वाले? पोलीस ने तो लड़के का शरीर ठंडा पड़ने से
पहले ही आक्सिडेंट बोलकर फाइल बंद कर दी थी. आक्सिडेंट कैसे हुआ, क्यूँ
हुआ ये जाने की कोशिश तक नही की गयी थी.
हैरत की बात थी के इतने दिन से लगातार हो रही बरसात उस दिन रुकी थी जिस
दिन विट्ठल की चिता को आग दी गयी.
सबको लगा था के विट्ठल की मौत का सिरिशा को बहुत सदमा होगा. आख़िर वो
उसके बच्चे का बाप था और उसका होने वाला पति. और शायद ऐसा हुआ भी. सिरिशा
पूरी तरह मातम में शामिल थी. लोगों की बात माने तो ये सदमा था या
कुच्छ और पर ड्यू डेट आई और निकल गयी पर सिरिशा को बच्चा नही हुआ.
और जब हुआ तब तक ड्यू डेट को एक पूरा महीना निकल चुका था. यानी तब सिरिशा
पूरे 10 महीने की प्रेग्नेंट थी.
हॉस्पिटल का पूरा खर्चा विट्ठल के परिवार ने उठाया. शहर के एक महेंगे
हॉस्पिटल में बच्चे को जनम दिया गया और पैदा होने से पहले ही विट्ठल के
पिता इस बात के एलान कर चुके थे के बच्चे को विट्ठल का नाम दिया जाएगा और
उसे पाल पोसने का पूरा खर्चा वो खुद उठाएँगे.
वो खुद अपने पैरवार के साथ बच्चा हो जाने के बाद सिरिशा से मिलने भी आए
थे और बच्चे का नाम-करण कर गये थे.
पूरा दिन सिरिशा को अकेले रहने का बिल्कुल मौका नही मिला. लोगों का आना
जाना लगा रहा. कोई ना कोई उससे मिलने आता रहता. तरह तरह के गिफ्ट्स कोई
नयी माँ के लिए लाता तो बच्चे के लिए.
कोई उसके घर का था तो कोई विट्ठल के घर का जिन्होने शायद तकदीर के आगे
हार मान ली थी और अपने बेटे की निशानी, उसके बच्चे को अपना लिया था.
आने वालो में कोई शकल सूरत से बच्चे को सिरिशा जैसा बताता तो कोई विट्ठल जैसा.
अगले दिन जब उसकी माँ घर से कुच्छ समान लाने के लिए गयी तो सिरिशा को
पहली बार बच्चे के साथ अकेले होने का मौका मिला. उसने प्यार से अपने
बच्चे को गोद में लिया और उसकी तरफ तूकटुकी लगाकर देखने लगी.
एक नज़र में ही उसे एहसास हो गया था के बच्चा ना तो उसके जैसा दिखता था
और ना ही विट्ठल के जैसा.
बच्चे की आँखें भूरे रंग की थी और ब्राउन आइज़ ना तो सिरिशा की थी और ना विट्ठल की.
उन दोनो की क्या, पूरे गाओं में भूरी आँखें किसी की नही थी. तो
क्या................सोचो दोस्तो सिरिशा क्या वास्तव मे मासूम थी क्या
बच्चा वास्तव विट्ठल का था या फिर....
दोस्तो कैसी लगी ये कहानी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त........
|
|
07-19-2017, 10:32 AM,
|
|
sexstories
Click Images to View in HD
|
Posts: 52,887
Threads: 4,447
Joined: May 2017
|
|
RE: Hindi Sex Stories By raj sharma
हिंदी सेक्सी कहानियाँ
चिराग
मिसेज़. शाँतिलाल को जब मैने देखा तो देखता ही रह गया. 35 साल की मिसेज़ शाँतिलाल कहीं से भी 25 से ज़्यादा की नहीं लग रही थी. गुलाबी रंगत लिए सफेद रंग, लंबा क़द बड़ी बड़ी आँखें. तराशे हुए होन्ट जैसे अभी उन मे से रस टपक पड़ेंगा.
सुरहिदार गर्दन के नीचे उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ कसी हुई ब्लाउस से साफ झलक रही थीं. पतली कमर और फिर पीछे काफ़ी उभार लिए नितंब.
"उहह...हुउऊउ..." जब मिसेज़. शाँतिलाल को लगा कि मैं जल्दी होश मे नहीं आने वाला तो उस ने अपने गला को साफ करते हुवे मेरा ध्यान भंग किया, तब मैं ह्ड्बाडा कर इधर उधर देखने लगा.
"म...म...मैं हरीश हूँ, आपकी फॅक्टरी का नया मुलाज़िम हूँ, मुझे सेठ जी ने आपके पास भेजा है."
" मैं तो प्रिया हूँ. ग्लॅड टू सी यू." उस ने अपना खूबसूरत हाथ आगे बढ़ाया और मुझे कुच्छ हरकत करता नही पाकर खुद मेरा हाथ खींच कर पकड़ लिया."ओके....पर क्या हम गेट पर ही बातें करें या अंदर चलें..." वह हँसी और मैं उसकी हँसी मे खो चुका था.
"बेटा हारीश आज तेरी खैर नहीं, तू सही सलामत निकल ले." यह सब
सोचते हुए मैं प्रिया के पिछे चल पड़ा. चलते हुए उसके नितंबों की थिरकन देख कर मेरा तो बुरा हाल था.
मेरा जूनियर मेरे अंडरवेर के अंदर उच्छल-कूद कर रहा था. उसे देख कर तो मुर्दों के भी खड़ा हो जाते, मैं तो एक तंदुरुस्त और हंडसॉम नौजवान था.
सेठ शाँतिलाल के ऑफीस मे आस आन अकाउंट क्लर्क मैं ने हफ्ते भर पहले जाय्न किया था. मेरे काम से सेठ काफ़ी खुश था. आज मैं जैसे ही ऑफीस पहुँचा सेठ जी ने अपने चेंबर मे बुला लिया. "हरीश, तुझे बुरा ना लगे तो क्या तुम मेरा एक घरेलू काम कर सकते हो."
सेठ जी की इंसानियत के तो मैं ने काफ़ी चर्चे सुने थे और आज सेठ की बात सुन कर मुझे यकीन हो गया.
"आप हुक्म कीजिए सर, मैं ज़रूर करूँगा."
"तुम कोठी चले जाओ. तुम्हारी मालकिन यानी मिसेज़ शाँतिलाल को कुच्छ शॉपिंग करनी है. शाम को वहीं से अपने घर चले जाना.
मैं सेठ शाँतिलाल के बेडरूम मे बैठा सॉफ्ट-ड्रिंक पीते हुए कमरे का जायेज़ा ले रहा था. सेठ जी की वाइफ प्रिया मुझे यहीं सोफे पर बिठा कर बाथरूम मे घुस चुकी थी.
"हारिस...थोड़ा टवल दे देना...सामने रखा है.''
मैं टवल लेकर बाथरूम के दरवाज़े पर पहुँचा. गेट पर हल्का हाथ रखा ही था कि वह खुल गया. गाते खुलने से मैं लड़खराया और बॅलेन्स बनाने के लिए एक कदम बाथरूम के भीतर रखा.
मगर मेरा पैर वहाँ रखे सोप पर पड़ा और मैं फिसलता हुआ सीधा बाथरूम मे घुस गया, जहाँ प्रिया मात्र एक छ्होटी सी पॅंटी मे खड़ी थी. मैं उस से टकराया और उसे लेते हुए बाथरूम की फर्श पर गिरा.
मुझे तो कोई खास चोट नहीं आई पर प्रिया को शायद काफ़ी चोटें आई थी. वो लगातार कराहे जा रही थी. उसका नंगा बदन और उसे दर्द से कराहता देख कर समझ मे नहीं आ रहा था की क्या करूँ.
"प्लीज़....मुझे उठाओ"मुझे कुच्छ करता ना देख वो कराहती हुई बोली. मैं झट से उसे उठा लिया. आ मैं उस चिकने और रेशम जैसे नर्म बदन को अपनी गोद मे उठाए हुआ था.
उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ मेरे सीने से चिपकी हुई थीं. उसका भीगा हुआ चेहरा मेरे चेहरे से आधे इंच दूर था. उसकी साँसें मेरे नथुनो से टकरा रही थीं.
मुझे ना जाने क्या हुआ कि अपने होन्ट उसके गुलाबी होंटो पर रख दिए. मैं उसकी आँखों मे देख रहा था. उसकी आँखों मे मुझे हैरत भरी खुशी दिखाई पड़ी, जबकि चंद सेकेंड पहले उसकी आँखों मे केवल तकलीफ़ दिखाई दे रही थी.
"जब काफ़ी देर बाद मैं ने अपने होन्ट अलग किए तो वह हाँफ रही थी. उसके चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कुराहट थी. मैं तो अपने होश खो ही चुका था मगर उसकी नशीली मुस्कुराहट ने मुझे हौसला दिया.
मैं भूल गया था कि वह तकलीफ़ मे है. मेरे गुस्ताख
लब जैसे ही दुबारा आगे बढ़े अचानक उसने अपना हाथ आगे लाकर मुझे रोक दिया.
"बड़े जोशीले नौजवान हो तुम....लेकिन मैं तकलीफ़ मे हूँ.''उसी जानलेवा मुस्कुराहट के बीच वह बोली. मैं खुद को बुरा भला कहने लगा. उसे बेड पर ला कर धीरे से लिटा दिया.
वह अपने कूल्हे को पकड़ कर कराह रही थी.
"प्रिया जी मैं डॉक्टर को खबर करूँ?" उसके गोल गोल ठोस उभारो से बमुश्किल नज़रें हटाकर मैने पुछा.
"ओह्ह्ह.... नहीं...हारिस...तुम थोड़ी मालिश कर सकते हो?" मैं झट से तैयार हो गया. बेड के ड्रॉयर से मूव निकाल कर मैं मालिश करने पहुँच गया.
"मेरी पॅंटी गीली है....इसे प्लीज़ निकाल दो और पहले वह चादर मुझ पर डाल दो. ओह्ह्ह.."
मैने सामने हॅंगर पर रखा बारीक सा चादर उस पर डाल दिया, तब मुझे पता चला कि उसका हाहकारी जिस्म इस नाज़ुक सी चादर मे नहीं छुप सकता.
अब मुझे उस अप्सरा की पतली कमर के नीचे विशाल चूतदों से उसकी पॅंटी खिचना. मेरे होन्ट सुख रहे थे. चादर के भीतर उस का एक एक अंग पूरी आबो ताब के साथ चमक रहा था.
मैं ने धीरे से उसकी जाँघो के पास चादर मे अपने दोनों हाथ घुसाए. वो शांत पीठ के बल लेटी मेरे एक एक हरकत को देख रही थी. उसके चेहरे पर मंद मुस्कुराहट खेल रही थी. जब मेरी नज़र उसके मुस्कुराते लबों पर पड़ी तो मैं और भी नर्वस हो गया.
मेरी हाथों की लरज़िश साफ देखी जा सकती थी. आख़िर मेरी उंगली उसकी जाँघ च्छू गयी. क्या कहूँ उस रेशमी अहसास का. मेरी पूरी हथेली और उंगलियाँ उसकी जांघों से सॅट कर बहुत ही धीरे धीरे उपर की तरफ बढ़ रहे थे.
"उफफफफ्फ़....ओह्ह्ह" उसकी आवाज़ मे तकलीफ़ कम और मस्ती ज़्यादा थी. हथेलियों का सफ़र जारी था. इसी बीच मेरे दोनो अंगूठे जांघों की जोड़ पर रुक गये. जब मेरा उधर ध्यान गया तो मैं पसीने पसीने हो गया. गीली पॅंटी उसकी योनि से चिपक गयी यही. मेरे अंगूठे उसके
उभरी हुई योनि को ढके हुए थे. प्रिया की साँसें अचानक तेज़ चलने लगी थीं.
मैं अपने हाथो को और उपर सरकाते हुए पॅंटी की एलास्टिक तक पहुँच ही गया. "हारीश...जल्दी करो ना.." अपनी उठती गिरती साँसों के बीच कराहती आवाज़ मे बोली. मैं ने दोनो तरफ से एलएस्टिक मे उंगलियाँ डाल कर पॅंटी को नीचे खिचना शुरू किया.
"पता नहीं इतनी छ्होटी पॅंटी कैसे पहनती है." बड़ी मुश्किल से मैं उसे नीचे खींच रहा था. उसने अपनी चूतड़ उठा कर पॅंटी निकालने मे मेरी मदद की.
पारदर्शी चादर से उसके शरीर का एक एक कटाव सॉफ झलक रहा था. आज मैं ज़िंदगी मे पहली बार किसी जवान औरत को सर से पैर तक नंगा देख रहा था.
मेरे लिंग का तनाव बाहर से सॉफ पता चल रहा था जिसे च्छुपाने का कोई उपाए नहीं था.
मूव हाथ मे लेकर मैं बेड पर बैठ गया. टाइट जींस के कारण मुझे बैठने मे परेशानी को देख कर उसने मुझे पॅंट उतार कर बैठने को कहा. शरमाते, झिझकते मैं अपना पॅंट उतार कर बैठ गया. तभी वह पलट कर पेट के बल हो गयी साथ साथ
चादर सिमट कर एक साइड हो गयी और पीछे से उसका पूरा शरीर खुल गया.
उस ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने नितंब पर रखा और मालिश करने को कहा. काँपते हाथों से उसके पहाड़ से उभरे, चिकने और गोरे चूतदों पर मूव की मालिश करने लगा.
मेरा 8'' का लिंग अंडरवेर से बाहर निकलने को बेताब था. एक बार जब मेरी नज़र उस के चेहरे की तरफ गयी ती उसे मेरे लिंग के उभार की तरफ देखता पाकर शर्मा गया लेकिन कोई चारा नहीं था.
तभी उसी हालत मे लेटे लेटे एक हाथ मेरे लिंग के उभार पर रख दिया. मैं तो एकदम थर्रा गया.
"क्यों तकलीफ़ दे रहे हो ऐसे, बाहर निकाल दो." वह धीरे से वहाँ हाथ फेरते हुए बोली.
मुझे तो लग रहा था कि अब च्छुटा तब च्छुटा. बड़ी मुश्किल से खुद पर काबू पाता हुआ
बोला
"ये...ये आप क्या कर रही हैं?"
|
|
|