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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
उस वक्त बेताल कहां गया। होश में आने के बाद मैंने अपने को सीखचों वाले कोठरी में पाया … मैंने बेताल को बहुत याद किया पर उसकी उपस्थिति का कोई आभास नहीं मिला। न हीं मैंने उसकी आवाज सुनी।
मैंने महसूस किया कि मेरी टांगों की शक्ति नष्ट हो गई है और मैं फिर से पंगुल हो गया हूं। फिर लोगों की भीड़ मुझे देखने आई…. फिर मेरी शिनाख्त करने वाले आते रहे…. उसके बाद पुलिस के डंडो का सामना करना पड़ा…. मैंने अपने सारे अपराध स्वीकार कर लिये थे।
इस समय मुझे विनीता और सेठ निरंजन दास दिखाई दिये।
इंस्पेक्टर ने जब मुझे उनके सामने पेश किया तो विनीता चीख पड़ी।
“नहीं… यह नहीं हो सकता… यह झूठ है…. तुम लोगों ने एक महात्मा को पकड़ लिया है….. नहीं….. नहीं….. मैं अपने बेटे का खून किसी देवता के सिर नहीं मढ सकती। इंस्पेक्टर इन्हें तुरंत छोड़ दीजिए।”
“क्या आप इसे जानती हैं ?”
“इन्हें कौन नहीं जानता…. देखिए इंस्पेक्टर…. आप इन्हें छोड़ दीजिए… और अगर आप अपने सिर यह आप पाप मढना ही चाहते हैं तो मेरा दामन पाक-साफ रहने दीजिए….।”
मैं खामोश रहा।
इंस्पेक्टर ने तुरंत मुझे हवालात में भेज दिया। उसके बाद एक बार विनीता मुझसे क्षमा मांगने आई। मैं आश्चर्य के भंवर में डूबा था। उसे अब भी मुझ पर विश्वास था कि मैंने खून नहीं किया - और वह मुझसे पूछना चाहती थी कि मैं चुप क्यों हूं - पर उन दिनों मैंने मौन साध लिया था। मैं कुछ भी नहीं बोलता था। अब मैंने अपने आपको ईश्वर के हवाले छोड़ दिया था।
उसके बाद मुझे जेल की हवालात में भेज दिया गया। वहां मैं असहाय कालकोठरी में पड़ा रहा। फिर अचानक मेरी टांगों की डॉक्टरी परीक्षा हुई। डॉक्टरों ने रिपोर्ट दे दी कि यह कब से बेकार है।
अदालत में पहली पेशी हुई और मेरी टांगों की डॉक्टरी ने मुझे बचा लिया। अदालत में विनीता की तरफ से एक याचिका दर्ज थी की पुलिस ने गलत आदमी को गिरफ्तार किया है और उसकी टांगे तोड़ दी है। इस पर पुलिस ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी के पहले उसे अचानक लकवा मार गया था। डॉक्टरी रिपोर्ट सबसे निराली थी, उसके अनुसार मेरी टांगे लकवे से नहीं किसी चोट से बेकार हुई है और यह चोट गिरफ्तारी से लगभग एक महीना पूर्व की है। और यह सिद्ध हो गया कि पुलिस के सारे गवाह झूठे हैं - जब मेरी टांगें पहले से इस योग्य नहीं थी कि मैं चल फिर सकूं तो मैं उतनी दूर जाकर बच्चे का अपहरण करके उसे कैसे जंगल में काट सकता था। मेरे बयानों से पहले की अदालत ने मुकदमा झूठा करार दे दिया।
परंतु पुलिस के पास मेरे खिलाफ दूसरे केस भी थे, यह मुकदमें सूरजगढ़ से संबंधित थे। इंस्पेक्टर ने वह रिपोर्ट ही दिखाई जिसमें मैंने कभी ठाकुर प्रताप पर आरोप लगाया था। यह वही इंस्पेक्टर था जिसने मुझे ठाकुर से दूर रहने की सलाह दी थी।
इसी रिपोर्ट को उसने दुश्मनी का मुद्दा प्रकट किया।
सूरजगढ़ के मुकदमे भी चले। सारे गवाह भी आते रहे - अपने बयान देते रहे, परंतु किसी ने भी यह बात नहीं कही की उन घटनाओं के पीछे मेरा हाथ था। यहां तक कि कमलाबाई नामक वेश्या ने भी मुझे पहचानने से इंकार कर दिया। पुलिस को आश्चर्य था कि सारे गवाह कैसे टूट गए। और मैं जो फांसी की सजा का इंतजार कर रहा था - मुझे भी कम अचरज ना हुआ।
विनीता ने मेरे लिये बकायदा वकील की व्यवस्था की थी और वह हर पेशी पर अदालत में मौजूद होती। उसे देख देख कर आत्मग्लानि हो उठती। वह मेरे लिये उपहार लाती और उसी आदर स्वर में बात करती। तब तक मैं भी मौन धारण किए था। उसका ख्याल था कि पुलिस ने मुझे पंगु बनाया है।
फिर वह दिन भी आ गया जब मुझे रिहा कर दिया गया।
गांव वासी सामूहिक रुप से मुझे पुष्पमालाएं डालकर जुलुस बना कर ले गए। उन अभागों की नजर में मैं ईश्वर का अवतार था। बिक्रमगंज की सड़कों से गुजरता रहा। मैंने अपना मौन अभी तक नहीं तोड़ा था।
मुझे उसी बस्ती में ले जाया गया।
उन लोगों ने मेरे चरणों को धोकर चरणामृत का पान किया। मुझे उन लोगों के भोलेपन पर तरस आ रहा था, जो मुझ पापी को ईश्वर का अवतार मान बैठे थे। परंतु कभी-कभी ऐसा भी होता है, जब किसी पापी को समाज इतनी प्रतिष्ठा दे देता है तो उसके मन से आप ही पाप की छाया निरंतर दूर हटती चली जाती है और वह ईश्वर से अपने गुनाहों की क्षमा मांग कर ईश्वर की भक्ति में लीन हो जाता है।
विनीता कितनी भोली थी।
मैं कशमकश के द्वार पर जूझ रहा था। घृणा, पाप और पुण्य का संघर्ष निरंतर जारी था। शाम हो रही थी और धुंधलके में मुझे अंधेरे के अज्ञात भय का आभास हो रहा था। वृक्षों के साये लंबे होकर लालिमा में बदलते जा रहे थे। जुलूस उसी मंदिर में समाप्त हुआ।
सारे गांव वासी वहां एकत्रित हो गए। बच्चे बूढ़े जवान सभी मुझे देख रहे थे। मुझे प्रणाम कर रहे थे, आशीर्वाद ग्रहण कर रहे थे। अचानक मेरी निगाह इन सब के पीछे खड़े भय की प्रतिमा अगिया वेताल पर पड़ी। क्रोधित नजर आता था। मेरा दिल बैठने लगा, क्या मैं उसी जाल में फंसता जा रहा हूं, क्या बेताल मेरा पीछा नहीं छोड़ेगा। मैंने हिम्मत बटोरी और तय किया कि उसके आगे नहीं झुकूंगा।
“विनीता मुझे मंदिर की सीढ़ियों पर ले चलो।” मेरे मुंह से निकला।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
आज सब कुछ मिट कर रहेगा। आज मैं बेताल से पीछा छुड़ा लूंगा। आज मैं अधर्म त्याग दूंगा और ईश्वर की आराधना में लीन हो जाऊंगा। आज के बाद वैतालिक छाया मेरा पीछा नहीं करेंगी।
अंधेरा हो गया था - दीपक जला दिये गए थे। मंदिर प्रकाश पुंज में स्नान कर रहा था। उन लोगों ने मुझे उठाया और मंदिर की पैड़ियों की और बढे…. मैं एक डोली में बैठा था। अचानक बेताल लगभग उड़ता हुआ डोली पर झपटा और डोली पर इतनी जोर से झटका लगा कि वह उन लोगों के हाथों से निकल गई। मैं काफी दूर चीखता हुआ गिरा।
मैं एक अंधेरे हिस्से में गिरा था और मेरे चारों तरफ आग का शोला चक्कर काट रहा था। ऐसा लगता था जैसे वह भी मुझ पर गिर पड़ेगा और मैं राख की ढेरी में बदल जाऊंगा।
“मैंने आपको कारागार से छुड़ाया। उन सब गवाहों को परेशान किया और उनकी गलत बयानी के कारण आपको रिहा कर दिया गया।” बेताल का स्वर मेरे कानों में पड़ा - “इसलिये नहीं कि आप मंदिर में शरण ले लें।”
“बेताल तू चाहे तो मुझे जान से मार दे। मुझे अपनी जिंदगी से मोह नहीं लेकिन मेरा पीछा छोड़ दे। मैं इस घृणित जीवन से उकता गया हूं। मैं इस नाटकीय जीवन से मुक्ति चाहता हूं। क्या मैंने तुझे इसलिये साधा था कि तू मुझे ही आतंकित करें।”
“मैं आपको आतंकित करना नहीं चाहता, बल्कि आपके भले की बात कह रहा हूं। क्या आप जिंदगी भर बिना टांगों के रहना चाहते हैं - क्या आप चाहते हैं कि इस मंदिर को अपवित्र कर के अपने सिर पाप लें… याद रखिए एक बार वहां कदम रखने के बाद आपकी सारी शक्ति खत्म हो जाएगी और मैं कभी भी आपकी पुकार पर नहीं आऊंगा। आपको बेहद कष्ट पहुंचेगा, आपको वे प्रेतात्माएं तंग करेंगी , जो आप के कारण भटक रही है और मेरी वजह से आपके पास भी नहीं फटकती।”
“चाहे जो हो - मैं सब सहने के लिये तैयार हूं। मैं इस घिनौने जीवन से मुक्ति पाने के लिये हर संघर्ष करने के लिये तैयार हूं।”
“विनीता को नुकसान पहुंच सकता है आका।”
“मैं ईश्वर भक्ति से उसका जीवन हरा-भरा कर दूंगा।”
“ठीक है आका! यदि आपको दुखों से ही गुजारना है तो शौक से जाइए उन सीढ़ियों पर… बेताल अब कभी आपके पास नहीं आएगा।”
“तुमने मेरा यहां तक साथ दिया है बेताल इसके लिये धन्यवाद।”
बेताल उदासी में डूब गया और उसके बाद जैसे ही लोगों ने मुझे पुनः उठाया, वह ओझल हो गया। अब मुझे मंदिर में ले जाया जा रहा था। मुझ में ईश्वर के प्रति आस्था थी और मैं अपने पाप कर्मों को धोने के लिये बढ़ चुका था। यूं तो ईश्वर कण-कण में समाया है, परंतु जिस स्थान को लोग पवित्र मानकर पूजते हैं। वह ईश्वर का स्थान स्वतः बन जाता है।
मेरे जीवन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आ चुका था और मुझे उस आसन पर बिठा दिया गया, जो पुजारियों के लिये था। पंडितों ने होम किया, सारा मंदिर खुशबू से महक उठा। ईश्वर की आराधना करने वाले रातभर भक्ति गान और कीर्तन करते रहे - और मैं सारी रात टकटकी लगाए उस त्रिकालदर्शी की प्रतिमा को निहारता रहा।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
मैं मंदिर में ही पड़ा रहता, मेरी सेवा भक्तगण किया करते, वे ही मुझे नहलाते, धुलाते और जोगिया वस्त्र पहनाते। मैं जोगी हो गया था, परंतु चल फिर नहीं सकता था। मैं वही गीता और रामायण पढ़ा करता। पूरे एक सप्ताह तक मैंने व्रत रखा… फिर हल्की सब्जियों का सेवन करने लगा। मेरी वह शक्ति नष्ट हो चुकी थी और मैं दिन प्रतिदिन कमजोर पड़ता जा रहा था। विनीता मेरे लिये बैसाखियां ले आई थी, अब उस के सहारे चलने-फिरने का प्रयास करने लगा। धीरे-धीरे मैं बेहद कमजोरी के बाद भी सीढ़ियां उतरने और चढ़ने में सफल होने लगा।
शाकाहारी भोजन मुझे अच्छा नहीं लगता था, बार-बार मांस खाने को मन करता और कभी-कभी मैं भूखा होने के कारण विचलित हो उठता परंतु मैंने अपने आप को संभाले रखा। मंदिर से बाहर निकलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हो पा रहा था।
एक दिन शाम ढलते वक्त में धूप बत्तियां जलाकर रामायण का पाठ कर रहा था। तभी सेठ निरंजन दास मंदिर में आए और मेरे कदमों में गिर पड़े। उसके चेहरे से हवाइयान उड़ रही थी। आंखों में पानी उमड़ रहा था और हालत अस्त-व्यस्त थी।
“महाराज मुझे बचा लीजिए…. मेरी बेटी को बचा लीजिए…. मुझ पर घोर संकट आ गया है महाराज - मेरी इकलौती बेटी।”
“क्या हुआ आपकी बेटी को….।”
“महाराज क्या बताऊं - तीन रोज से उस पर दौरे पड़ रहे हैं - और न जाने क्या-क्या बकती रहती है - तीन रोज में ही आधी हो गई - रात को घर से निकल भागती है - वह पागल हो जाएगी महाराज -।”
मुझे याद आया कि तीन रोज से विनीता मंदिर नहीं आई।
“लोग तरह तरह की बातें करने लगे हैं महाराज - मगर मैं जानता हूं मेरी बेटी चरित्रहीन नहीं है - किसी ने उस पर जादू-टोना कर दिया है। आप ही कुछ कीजिए महाराज - मेरी बेटी की रक्षा करो स्वामी जी।”
“आप उसे यहां ले आयें।”
“अच्छा महाराज मैं अभी लेकर आता हूं।”
“आधे घंटे बाद ही निरंजन दास विनीता को ले आए। मंदिर की चौखट पर आते ही विनीता बेहोश हो गई। उस वक्त उसे चार आदमी थामे थे और उसकी हालत एक पागल स्त्री के समान थी, परंतु मंदिर में आते ही वह अकड़ सी गई। मैंने उसे पूजाग्रह में लिटाया और चेहरे पर गंगाजल का छिड़काव किया। कुछ समय उपरांत ही उसे होश आ गया। अब वह सामान्य स्थिति में थी। अपने आप को मंदिर के पूजागृह में पाकर उसने बेहद आश्चर्य प्रकट किया। मैंने उससे कुछ प्रश्न पूछे - जिनका जवाब उसने सामान्य रूप से दिया। उसे उस समय की बातें बिल्कुल याद नहीं थी, जब वह पागलपन की स्थिति में होती थी। निरंजन दास ने बताया कि कभी-कभी वह समान नहीं रहती है, फिर दौरा पड़ता है और उसके बाद वह उठ खड़ी होती है, दौरा पड़ने के बाद वह अपनी वास्तविकता भूल जाती है।
अब यह ठीक है, आप इसे ले जाइए। यदि दौरा पड़े तो मुझे बताएं।
विनीता प्रसाद ग्रहण करके चली गई, मुझे उसके जाने के बाद ध्यान आया कि बेताल ने मुझे विनीता के बारे में चेतावनी दी थी। तो क्या विनीता का जीवन संकट में पड़ गया है। वह किसी प्रकार का नाटक नहीं कर सकती थी।
आधी रात के वक्त वे लोग पुनः आ गए। मैं तब तक जाग रहा था। निरंजन दास ने बताया कि घर जाते ही उसे फिर से दौरा पड़ गया। मंदिर के पूजा गृह में आने के बाद यह हुआ एक बार फिर बेहोश हुई और जब होश में आई तो सामान्य थी, मेरी समझ में कुछ भी नहीं आया कि उसे हो क्या रहा है।
मुझे एक ही बात सुझाई दी।
“निरंजन दास जी, आप विनीता को यही छोड़ दे - मुझे ऐसा लगता है कोई दुष्ट आत्मा इसका पीछा कर रही है। आप भी यहीं रुक जाइए। विनीता पूजागृह में ही रहेगी। यहां कोई दुष्टात्मा नहीं आएगी।”
“लेकिन कब तक ?”
“जब तक दुष्टात्मा विनीता का पीछा नहीं छोड़ देती।”
“ठीक है महाराज ! जैसा आप हुकुम करें।” निरंजन दास ने मुरझाए स्वर में कहा - “मेरी बेटी को ठीक कर दीजिए, अन्यथा मैं मुंह दिखाने योग्य नहीं रहूंगा। न जाने भगवान मुझसे क्यों रुठ गए हैं ?”
“आप फिक्र न कीजिए।”
विनीता पूजा कक्ष में ही रह गई। निरंजन दास बाहर के कमरे में लेट गए। प्रारंभ में तो मैं विनीता के रुप पर ही गया था परंतु अब मैं अपने को काफी हल्का महसूस करता था और मेरे भीतर किसी नारी के रूप की कशिश समाप्त होती जा रही थी, मेरा मन सांसारिक बातों से दूर भगवान की उपासना में लगा रहता। विनीता के प्रति मेरे मन में जो भावना पहले उत्पन्न हुई थी, वह अब धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही थी, परंतु पूजा कक्ष मैं उसे अपने इतने समीप देख एक बार फिर मन डोल उठा। उसकी मदभरी आंखों में ना जाने कैसा नशा था जो बड़े से बड़े शरीर योगी धर्मात्मा का मन डोल जाए।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
वह पूजा कक्ष में सो गई और मैं पूजा कक्ष से बाहर तख़्त पर लेट गया, भीतर दीपक की लौ चमक रही थी और लेटे-लेटे मुझे विनीता का सौंदर्य एक अलाव की तरह महसूस होता। मैंने अपनी भावनाओं पर काबू पाया और सोने का प्रयास करने लगा।
किसी तरह मैं सो गया। उस रात के बाद विनीता वहीं रहने लगी। वह ईश्वर भक्ति में इतनी लीन होने लगी कि उसने अपने पिता से साफ साफ कह दिया कि अब वह मंदिर में ही रहेगी, एक भैरवी के रूप में। विनीता भैरवी बनती जा रही थी और मैं अपने आप को संभाले हुए था। विनीता को मुझसे अत्यंत लगाव था और मैं कभी-कभी दुविधा में फंस जाता था। मुझे लगता, वह मुझसे प्यार करने लगी है, परंतु यह विचार आते ही मेरी आत्मा मुझे झकझोर देती।
इसी प्रकार चार महीने बीत गए, विनीता पूरी तरह भैरवी बन चुकी थी। वह जोगिया धोती पहना करती थी और माथे पर चंदन का टीका लगाती थी। बालों का श्रृंगार उसने छोड़ दिया था। कभी-कभी उसके पिता निरंजन दास उस का हाल जानने आ जाया करते थे। इस मंदिर में अब दूर दूर के भक्तगण आया करते थे।
अचानक एक दिन विनीता की तबीयत बिगड़ गई और लगातार उल्टियां होने के बाद उसे मूर्छा आ गई। और घबराहट में मुझे यह ध्यान हीनहीं रहा कि मैं स्वयं भी डॉक्टरी जानता हूं। मैंने तुरंत एक भक्त को दौड़ाया और नजदीक से ही एक वैद्य को ले आया, तब तक मैं विनीता के पास बैठा रहा।
वैद्य ने विनीता की जांच की - उसके मुंह में दवा डाली और फिर एकाएक उसके चेहरे पर परेशानी के भाव आ गए। वैद्य हम दोनों को भली प्रकार जानता था।
वह उठ खड़ा हुआ और मुझे अलग ले जाकर गंभीर स्वर में बोला।
“यह भैरवी विधवा है ना।”
“हां…. उसके पति को मरे हुए एक अरसा हो गया।”
“और यह मंदिर में कब से रह रही है।”
“कोई चार महीने से…..।”
वैद्य के चेहरे पर नफरत के भाव आ गए। उसने घूर कर देखते हुए कहा - “भैरवी गर्भवती है।”
इतना कहकर वह चलता बना। मैंने उसे रोकना चाहा परंतु वह नहीं रुका… और मुझे ऐसा लगा जैसे पांवो के नीचे से जमीन सरक गई है। मेरे हाथ पांव कांपने लगे। आखिर विनीता गर्भवती कैसे हो गई है - हे भगवान या वैद्य मुझे इस प्रकार नफरत भरी दृष्टि से देखकर क्यों गया - क्या उसे ठाकुर पर संदेह है। ओह - अगर लोगों को इसका पता चल गया तो क्या होगा। हर कोई मुझ पर संदेह करेगा। परंतु विनीता….. आखिर विनीता का संपर्क किससे है ..।
मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
मैंने जल्दी से विनीता के पास पहुंचना चाहा परंतु बैसाखियां हाथ से फिसल गई और मैं वहीं गिर पड़ा। किसी प्रकार अपने आप को संभाल कर मैं भीतर पहुंचा। विनीता को होश आ गया था।
“मुझे क्या हो गया है ?”
मैं स्तब्ध खड़ा उसे घूरता रहा।
“आप बोलते क्यों नहीं ?”
“तुम नर्क की भागीदार बन गई हो विनीता…. और मुझे अपना दामन बचाना है।”
“क्या…. आप क्या कह रहे हैं ?”
“सच-सच बताओ विनीता…. तुम्हारा संपर्क किस पुरुष से है?”
“आप… यह सब…।”
“हां…. हां…. मैं यह सब कह रहा हूं। इसलिये कह रहा हूं कि तुम गर्भवती हो… इसलिये कह रहा हूं कि तुम्हारे पेट में किसी का पाप पल रहा है। बोलो कौन है वह….।”
“नहीं….।” वह चौंक पड़ी “आप झूठ बोल रहे हैं। मैं कलंकिनी नहीं हूं - यह कभी नहीं हो सकता।”
“विनीता - यह हो चुका है। अब तुम्हारा भला इसी में है कि सच्चाई उगल दो --।”
“हे भगवान - या आप क्या कह रहे हैं ?” उसकी आंखों में मोटे मोटे आंसू आ गए।
“ठीक है तुम नहीं बताना चाहती तो कोई बात नहीं। लेकिन तुमने इस मंदिर पर कलंक का टीका लगा दिया है - और मेरी तपस्या खत्म कर दी। अब मुझे यहां से जाना ही पड़ेगा - अन्यथा लोग यही समझेंगे कि पापी मैं हूं - मैं पाखंडी हूं - मैं शैतान हूं - हकीकत यह है कि मैं सब कुछ था, परंतु अब नहीं -। अब मैं इंसान हूं इंसान।”
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
मैं तेजी के साथ उस कमरे से बाहर निकल गया।
मैंने अपना सामान समेटा।
अचानक मुझे ख्याल आया - अगर मैं भाग गया तो लोग इसे सच मान लेंगे - मेरे पास सच्चाई है - और सच्चाई की हमेशा जीत होती है।
“भाग जा बेवकूफ - तेरी सच्चाई कोई नहीं सुनेगा - लोग तुझे जान से मार देंगे - अगर जान बचानी है तो भाग जा।
“नहीं - मुझे सामना करना चाहिए - अगर मरना ही है तो क्यों ना सच्चाई के पथ पर अडिग रहकर मरू।”
मेरे अंतर्मन ने मुझे बुरी तरह झकझोर दिया और मैं समान लेकर पूजागृह में पहुंचा, भगवान के समक्ष खड़े हो कर मैंने कहा - “अगर तू ही मेरी परीक्षा लेना चाहता है तो मैं तैयार हूं। मेरी मृत्यु अब तेरे ही दरबार में होगी।”
कुछ देर बाद यह खबर जंगल की आग के समान सारी बस्ती में फैल गई और लोग एकत्रित होकर मंदिर की तरफ लाठियां, भाले लिये चल पड़े। निरंजन दास को भी पता चल गया और वह भी दौड़ पड़े।
मंदिर के बाहर शोर उमड़ने लगा था। आवाजें उठ रही थी - वे लोग मुझे बाहर बुला रहे थे। सारा वातावरण मेरे विरुद्ध था।
मैं बैसाखियां संभाल कर बाहर निकला और मंदिर की चौखट पर खड़ा हो गया।
“क्या बात है… आप लोग क्यों आए हैं ?”
“जवाब दो विनीता के पेट में किसका बच्चा है ?”
“इसका जवाब आप लोग भैरवी से ही पूछ सकते हैं।”
“उसे बाहर निकालो -।” आवाजें तेज होने लगी।
“मैं अभी लेकर आता हूं।”
मैं भीतर गया। मेरा दिल तेज-तेज धड़क रहा था। न जाने विनीता का क्या हाल होने वाला है। अगर उसने अपनी जान बचाने के लिये मुझे दोषी बता दिया तो - यदि वह बताती है तो कोई बात नहीं। मैं इसके लिये भी तैयार हूं।
एक रोज पहले ही मुझे पता चला था कि बस्ती में प्लेग फैल गया है, कुछ लोग तो बस्ती छोड़कर जाने की तैयारी कर रहे थे।
मैं विनीता के कमरे में पहुंचा। परंतु वह कमरे में नहीं थी। मैंने दूसरे कमरे में देखा। वह कहीं भी नहीं थी। ना जाने कहां गायब हो गई थी। शायद पिछले रास्ते से निकल गई थी। अब मेरे हाथों से तोते उड़ गए। मैं घबराया से बाहर निकला, मैंने भीड़ को संबोधित किया कि विनीता कहीं चली गई है।
इस पर भीड़ उत्तेजित हो गई।
मुझे पाखंडी पापी और ना जाने किन किन अश्लील शब्दों से शोभित करने लगी।
“इसे बाहर खींच लो -।” एक ने कहा।
“भागने ना पाए --।”
पत्थर उड़ते हुए मुझ से टकराए। मैं वहीं खड़ा रहा। उसके बाद सबसे पहले मुझे निरंजन दास ने खींचा। वैसाखी हाथ से निकलते ही मैं सीढ़ियों पर लुढ़कता चला गया और भीड़ मुझ पर टूट पड़ी। मैं अपनी सफाई भी ना दे सका - भीड़ ने मुझे नंगा करके कालिख पोत दी - मेरी जटाएं काट डाली और भीड़ को उत्तेजित करने वाला वही महंत था, जिसे एक बार मैंने हवा में लटका दिया था। उसके साथ में ब्राह्मण भी थे, जिनका मैंने अपमान कर दिया था। अब मैं असहाय था - मेरे पास न तो बेताल था और न मेरी शक्ति –।
वह लोग मेरा जुलूस निकाल रहे थे और मुझे पीट रहे थे। इसी बीच मैं बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया तो निपट अंधेरा छा गया था। मेरा सारा शरीर भयानक पीड़ा से गुजर रहा था और मेरे होठों से कराह भी नहीं निकल पा रही थी। एक खड्ड में पड़ा था। मेरे शरीर पर कीचड़ जमी थी। मैं थोड़ी देर तक आंखें खोले उसी स्थिति में पड़ा रहा।
उसके बाद मैं धीरे-धीरे खड्ड से बाहर निकला। मेरी आंखें अब अंधेरे में थोड़ा बहुत देखने योग्य हो गई थी। किसी अधमरे जानवर की तरह मैं आगे रेंग रहा था। बस्ती में विचित्र सी खामोशी छाई थी। ऐसा जान पड़ता जैसे बस्ती भूतों का डेरा बन गई है। खामोशी और गहरी खामोशी।
अचानक टप - टप - बूंदे गिरने लगी, आसमान स्याह हो गया था और अंधेरा और भी जहरीला हो गया था। वर्षा के साथ-साथ हवा भी सांय-सांय कर रही थी।
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
क्या हो गया अब बस्ती वालों को। कहीं कोई रोशनी नहीं, कहीं आदमी का चिन्ह भी नहीं। इतना गहरा सन्नाटा क्यों छाया है ? बूंदें और तेज हो गई। बूंदों से बचने के लिये मैं एक मकान की चौखट पर जा पहुंचा। दरवाजा किसी कब्रिस्तान की भांति खुला था, वह चरमरा कर रोया और मैं भीतर रह गया। कहीं कोई आहट नहीं थी - मैं रेंगता रेंगता एक कोने में दुबक गया। जोरों के साथ खिड़की के पट झनझना गए और बिजली चमक उठी, मकान का भीतरी भाग प्रकाश से नहा गया। मुझे एक लैंप और दिया सलाई नजर आई। मकान में कोई नहीं था। सारा सामान इस प्रकार अस्त-व्यस्त पड़ा था, जैसे अभी अभी डाका पड़ा हो।
मैं लैंप के पास पहुंचा - फिर मैंने लैंप जला दिया। अंधेरा भाग गया। हवा के झोंकों से लैंप धप-धप कर रहा था। मैं एक हाथ में लैंप थामें दूसरे कमरों की ओर रेंगा। कहीं कोई नहीं था। मैं उसी कमरे में लौट गया। लैंप यथास्थान रखकर मैं खिड़की की तरफ़ रेंग गया। हवा की तेजी के कारण लैंप बुझ सकता था। ज्यों ही मैं खिड़की के पास पहुंचा बिजली एक बार फिर चमकी और उसी चमक में मैंने एक स्त्री को नग्नावस्था में दौड़ते देखा। निश्चित रूप से वह विनीता थी। वह हंस रही थी. जोर जोर से कहकहे लगा रही थी। फिर एक शोला चला गया। विनीता एक मकान में समा गई। उसकी हंसी अब भी गूंज रही थी।
विनीता इस हाल में –।
वह उस मकान में क्यों गई है… कौन है वहां ?
तरह तरह के प्रश्न मेरे मन में भटकने लगे। मैंने हिम्मत बांधी और दियासलाई जेब में डालकर मकान से बाहर की तरफ रेंग गया। कुछ देर बाद ही मैं वर्षा में भीगता हुआ गली में सरक रहा था। उस मकान के दरवाजे खुले थे। मैं उसी में समा गया।
एक कमरे में रोशनी के साथ ही हंसी की गूंज उत्पन्न हो रही थी। मैं उसी कमरे की तरफ रेंग गया। मैंने धीरे-धीरे से बिना आहट किये भीतर झांक कर देखा। मुझे विनीता एक चादर में लिपटी नजर आई परंतु जो कुछ मैं देख रहा था उससे स्पष्ट लग रहा था कि चादर में कोई मर्द भी उसके साथ गड़मड़ हो रहा है। अब विनीता के कंठ से हंसी की जगह जोर जोर की सांसे और सिसकियां उभर रही थी। उसकी गोरी टांगे चादर से बाहर निकली हुई थी।
कौन है यह कमीना - जिसने मुझे मुसीबत की आग में झोंक दिया।
मैं तेजी के साथ आगे बढ़ा और एकदम चादर खींच दी। बिस्तरे पर विनीता नग्न पड़ी हांफ रही थी। अचानक वह चीख कर उठ खड़ी हुई। मुझे आश्चर्य हुआ कि वह अकेली थी। जबकि मैंने पुरुष का आभास स्पष्ट महसूस किया था। बिस्तरे पर गजरे के फूल बिखरे पड़े थे।
“तू अभी जिंदा है।” अचानक विनीता चीख कर बोली।
मुझे दूसरा झटका लगा। यह आवाज विनीता की नहीं थी, जबकि वह विनीता ही थी। वह बड़ी बेशर्मी के साथ हंसने लगी।
“नहीं पहचाना मुझे…..।” वह गुर्राई।
“विनीता….।”
“विनीता नहीं -- तेरी अम्मा चंद्रावती।”
अब मैंने चंद्रावती की आवाज अस्पष्ट पहचान ली। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। मुझे याद आया कि मैंने चंद्रावती की बलि चढ़ा दी थी।
“चंद्रा…..।”
“हां - तांत्रिक - मैं वही हूं - विनीता के शरीर में मेरा राज है। तूने मेरे बच्चे को मिटा दिया था न - मैं तभी से बच्चा पाने के लिये भटक रही हूं। जब तक तेरे पास बेताल था, मैं कुछ नहीं कर सकती थी। अब बेताल मेरा है - मेरा - तो उसे देख नहीं सकता - वह इसी कमरे में मौजूद है।”
“ले... लेकिन…. तूने विनीता को क्यों भ्रष्ट किया।”
“बच्चा पाने के लिये मुझे किसी औरत का जिस्म चाहिए था और फिर तुझसे इंतकाम भी तो लेना था। बेताल को भी विनीता की सुंदरता पसंद थी इसलिये मैंने विनीता का शरीर पहन लिया। मैं कभी भी विनीता का शरीर पहन सकती थी…. मेरे एक इशारे पर वह नींद में उठकर मंदिर से बाहर आ सकती थी…. मैंने तुझे ऐसी जगह पहुंचा ही दिया जहां से तू उठ नहीं सकता लेकिन तू बच कैसे गया ?”
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10-26-2020, 12:58 PM,
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desiaks
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
“चंद्रा… मुझे चाहे जो सजा दे ले लेकिन विनीता को छोड़ दे।”
“अब तो उसके पेट में मेरा और बेताल का बच्चा पल रहा है…. और अब मैं उसे छोड़ दूं।”
“बेताल का बच्चा।”
“अचरज क्यों हो रहा है, बेताल मुझे प्यार करता है और मैं जिस शरीर में भी जाऊंगी, बेताल उसके संपर्क में आ जाएगा। बेताल का यह बच्चा सर्वशक्तिमान होगा- जा भाग जा…. इस बस्ती में प्लेग फैल गया है। सारी बस्ती खाली हो गई है…. अब तू प्लेग से बच सकता है तो कोशिश कर…. वरना एक दो रोज में तू प्लेग से मर जाएगा।”
मेरे सामने सारी स्थिति खुल गई थी और अब मैं विनीता को चंद्रावती के प्रेत से छुटकारा दिलाने की सोच रहा था। यह स्थिति घोर संकटपूर्ण थी। मैं जानता था बेताल मुझ पर हमला नहीं करेगा और ना मेरे सामने आएगा। अब तो सिर्फ चंद्रावती को काबू करना था।
“तू इसे छोड़ दे - मैं तेरे बच्चे को पाल लूंगा।”
“नहीं - मैं तुझ पर विश्वास नहीं कर सकती - तू विश्वासघाती है।”
“चंद्रा तब मैं हैवान था - अब इंसान हूं। मैं विनीता की सौगंध खाकर यह बात कह सकता हूं।”
“मैं एक बार चोट खा चुकी हूं - मैं अपने बच्चे को नहीं छोडूंगी।”
मैं जानता था जब बेताल किसी स्त्री से संपर्क कर लेता है तो उस स्त्री को दूसरा कोई भी पुरुष नहीं भोग सकता - और यदि ऐसा हो जाता है तो बेताल उस स्त्री के पास फिर कभी नहीं आता। यह सिर्फ बेतालों के साथ होता है। बेताल चंद्रा से प्रेम करता है और चंद्रा ने विनीता का शरीर पहन लिया है। विनीता को मुक्त करने के लिये अब एक ही उपाय है। उसके बाद चंद्रा यदि बेताल से प्रेम करती रही तो वह कभी विनीता के शरीर में नहीं आएगी क्योंकि बेताल इसे पसंद नहीं करेगा।
बेताल के बारे में मुझे सभी जानकारियां थी।
“चंद्रा मैं तुझसे वादा करता हूं।”
“चला जा यहां से।”
अचानक मैं विनीता पर टूट पड़ा क्योंकि विनीता ने एक गुलदस्ता उठाने का प्रयास किया था - शायद वह मुझ पर हमला करना चाहती थी। और मैंने उस पर कब्ज़ा पाने के लिये पंगुल होने के बावजूद भी संपूर्ण शक्ति लगा दी। वह चीख रही थी…. नाखून… मुक्के मार रही थी, किंतु मैंने उसे इस कदर मजबूती के साथ लपेट लिया कि वह बंधन से निकलने न पायी। इस संघर्ष में हम दोनों ऊपर नीचे लुढ़क रहे थे। ना जाने मुझ में कौन सी शक्ति भर आई थी अन्यथा वह मुझ पर बहुत भारी थी। मेरे सामने विनीता के प्राणों का संकट था। और मुझे जबरन वह सब कुछ करना पड़ा जो मैं नहीं करना चाहता था। वह भयानक आवाज में चीखती रही, परंतु इस वीरान बस्ती में उसकी चीत्कार सुनने वाला कौन था।
इस बीच विनीता चेतना शून्य हो गई।
भोर की लालिमा फूटते ही विनीता को होश आ गया। मैं कमरे में बेसुध पड़ा था। उसने चारों तरफ निगाह दौराई फिर अपने अस्त-व्यस्त शरीर को देखा। मुझ पर निगाह पड़ते ही चौंक कर खड़ी हो गई।
“मैं कहां हूं…. और यह सब।”
मैंने कराह कर आंखें खोल दी।
मेरा शरीर जख्मों से भरा पड़ा था। पीड़ा अब और गहरी हो गई थी और मुझसे उठा भी नहीं जा रहा था।
“आप… यह सब क्या है, हम कहां हैं ?”
मैंने धीमे किंतु स्पष्ट स्वर में उसे सारी बात सुना दी। वह आश्चर्य से सब सुनती रही, फिर फूट फूट कर रोने लगी।
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10-26-2020, 12:58 PM,
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desiaks
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
“रोने से काम नहीं चलता विनीता … जाओ मेरी बैसाखियां खोज कर ले आओ। हम लोग उसी मंदिर में चलेंगे। और ईश्वर के उसी दरबार में विधिवत रूप से विवाह कर लेंगे। मैं तुम्हारे जीवन को बीच मझधार में नहीं छोड़ूँगा, भले ही मेरी मृत्यु हो जाए। विनीता ! यदि हम प्लेग से बच गए तो हमेशा के लिये यह स्थान छोड़ देंगे। क्या तुम मेरे साथ रहना पसंद करोगी।”
“हां….।” उसने भर्राए कंठ से कहा।
उसके बाद वह मेरे कंधे से लग कर रोने लगी।
हमने भगवान के मंदिर में सच्चाई का सामना किया। पंगुल पति को स्वीकार किया ताकि उसे कोई कलंकिनी भी ना कह सके और मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जीवन के सारे पाप धुल गए हैं।
एक रात चंद्रावती मेरे स्वप्न में आई।
उसने कहा - “तुमने वादा किया था न रोहतास, तुम भूले तो नहीं।
“नहीं….।” मैंने कहा - “मैं नहीं भूला… इसे मैं अपने बच्चे की तरह पालूंगा….. मुझे मेरे पापों के लिये क्षमा कर देना चंद्रावती और बेताल से कहना, उसके मुझ पर बहुत आसान हैं, तुम दोनों के प्रेम की निशानी ने मनुष्य चोले में कदम रखा है… वह हमेशा मेरे घर का चिराग बनकर रहेगा। जानती हो मैं उसका क्या नाम रखूंगा।”
“बताओ…..।”
“अगर लड़का हुआ तो नाम होगा चंद्र बेताल और लड़की हुई तो चंद्राबेतलाई।”
“उसे कभी तांत्रिक न बनाना रोहतास।”
“जो भूल मैं कर चुका वह मेरे खानदान में कभी नहीं दोहराई जाएगी।”
“अच्छा अलविदा - मैं लंबी यात्रा पर जा रही हूं।”
चंद्रावती की आत्मा को शांति मिल चुकी थी। ईश्वर की माया कुछ ऐसी हुई कि हम पर प्लेग का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और एक दिन हम वह नगरी छोड़कर ही चल पड़े।
जंगलों में वैरागियों की तरह भटकते रहे। मार्ग में एक साधु मिला जो हमें मठ में ले गया। यह बहुत बड़ा मठ था। और यहां साधु के अनेक स्त्री-पुरुष अनुयाई रहते थे। साधु ने मुझे बताया कि मेरे जीवन का उद्धार अब शुरू हो गया है। उसे मेरे जीवन की सभी बातें ज्ञात थी और मुझे ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाने का उपदेश दिया, पहिले विनीता के गर्भ में पल रहे शिशु को मृत्यु से बचाया जा सके और उसे इंसानी रूप दिया जा सके। साधु का कथन था कि बेताल का गर्भ किसी इंसान का रुप नहीं ले सकता। परंतु विनीता के गर्भ में पुरुष के हारमोंस का समावेश हो गया था, जिससे वह इंसान का रूप धारण कर सकता था। गर्भ में तीन माह का विलंब होना अनिवार्य था तभी वह इंसान का रूप धारण करेगा।
एक प्रकार से वह बेताल और मेरी समर्थित संतान थी।
साधु के कथनानुसार हम ईश्वर भक्ति में लीन हो गए और इस प्रकार हमारे जीवन का एक नया युग शुरू हो गया। उसी मठ में एक ऐसा भक्त भी था जिसने जड़ी बूटियों के जरिए मेरी टांगे ठीक करने का दावा किया। उसने अपना कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे समय बीतता गया…. फिर मुझे लगा जैसे टांगो की शक्ति लौट रही थी।
विनीता का शिशु ठीक चल रहा था। दो स्त्रियां उसकी देखरेख करती थी।
इधर मेरी टांगों की शक्ति लौट रही थी
आखिर वह दिन भी आ गया जब विनीता ने कष्टप्रद रात्रि गुजारी - बच्चे का जन्म बड़ी कठिनाई से तीन रोज के संघर्ष के बाद हुआ - इस बीच वह मूर्छावस्था में पड़ी रही। पीड़ा के कारण कभी-कभी जोरों से चीख पड़ती।
बच्चे का जन्म हो ही गया।
विनीता को पुत्र लाभ हुआ।
उसका दामन खुशियों से भर गया।
चंद्रताल पैदा हो गया था। और मैं अब अपनी टांगों पर खड़ा होने लगा था।
समाप्त
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08-21-2023, 01:13 PM,
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kamuk219
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RE: Horror Sex Kahani अगिया बेताल
(10-26-2020, 12:58 PM)desiaks Wrote: “रोने से काम नहीं चलता विनीता … जाओ मेरी बैसाखियां खोज कर ले आओ। हम लोग उसी मंदिर में चलेंगे। और ईश्वर के उसी दरबार में विधिवत रूप से विवाह कर लेंगे। मैं तुम्हारे जीवन को बीच मझधार में नहीं छोड़ूँगा, भले ही मेरी मृत्यु हो जाए। विनीता ! यदि हम प्लेग से बच गए तो हमेशा के लिये यह स्थान छोड़ देंगे। क्या तुम मेरे साथ रहना पसंद करोगी।”
“हां….।” उसने भर्राए कंठ से कहा।
उसके बाद वह मेरे कंधे से लग कर रोने लगी।
हमने भगवान के मंदिर में सच्चाई का सामना किया। पंगुल पति को स्वीकार किया ताकि उसे कोई कलंकिनी भी ना कह सके और मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जीवन के सारे पाप धुल गए हैं।
एक रात चंद्रावती मेरे स्वप्न में आई।
उसने कहा - “तुमने वादा किया था न रोहतास, तुम भूले तो नहीं।
“नहीं….।” मैंने कहा - “मैं नहीं भूला… इसे मैं अपने बच्चे की तरह पालूंगा….. मुझे मेरे पापों के लिये क्षमा कर देना चंद्रावती और बेताल से कहना, उसके मुझ पर बहुत आसान हैं, तुम दोनों के प्रेम की निशानी ने मनुष्य चोले में कदम रखा है… वह हमेशा मेरे घर का चिराग बनकर रहेगा। जानती हो मैं उसका क्या नाम रखूंगा।”
“बताओ…..।”
“अगर लड़का हुआ तो नाम होगा चंद्र बेताल और लड़की हुई तो चंद्राबेतलाई।”
“उसे कभी तांत्रिक न बनाना रोहतास।”
“जो भूल मैं कर चुका वह मेरे खानदान में कभी नहीं दोहराई जाएगी।”
“अच्छा अलविदा - मैं लंबी यात्रा पर जा रही हूं।”
चंद्रावती की आत्मा को शांति मिल चुकी थी। ईश्वर की माया कुछ ऐसी हुई कि हम पर प्लेग का कोई प्रभाव नहीं पड़ा और एक दिन हम वह नगरी छोड़कर ही चल पड़े।
जंगलों में वैरागियों की तरह भटकते रहे। मार्ग में एक साधु मिला जो हमें मठ में ले गया। यह बहुत बड़ा मठ था। और यहां साधु के अनेक स्त्री-पुरुष अनुयाई रहते थे। साधु ने मुझे बताया कि मेरे जीवन का उद्धार अब शुरू हो गया है। उसे मेरे जीवन की सभी बातें ज्ञात थी और मुझे ईश्वर भक्ति में विलीन हो जाने का उपदेश दिया, पहिले विनीता के गर्भ में पल रहे शिशु को मृत्यु से बचाया जा सके और उसे इंसानी रूप दिया जा सके। साधु का कथन था कि बेताल का गर्भ किसी इंसान का रुप नहीं ले सकता। परंतु विनीता के गर्भ में पुरुष के हारमोंस का समावेश हो गया था, जिससे वह इंसान का रूप धारण कर सकता था। गर्भ में तीन माह का विलंब होना अनिवार्य था तभी वह इंसान का रूप धारण करेगा।
एक प्रकार से वह बेताल और मेरी समर्थित संतान थी।
साधु के कथनानुसार हम ईश्वर भक्ति में लीन हो गए और इस प्रकार हमारे जीवन का एक नया युग शुरू हो गया। उसी मठ में एक ऐसा भक्त भी था जिसने जड़ी बूटियों के जरिए मेरी टांगे ठीक करने का दावा किया। उसने अपना कार्य शुरू किया। धीरे-धीरे समय बीतता गया…. फिर मुझे लगा जैसे टांगो की शक्ति लौट रही थी।
विनीता का शिशु ठीक चल रहा था। दो स्त्रियां उसकी देखरेख करती थी।
इधर मेरी टांगों की शक्ति लौट रही थी
आखिर वह दिन भी आ गया जब विनीता ने कष्टप्रद रात्रि गुजारी - बच्चे का जन्म बड़ी कठिनाई से तीन रोज के संघर्ष के बाद हुआ - इस बीच वह मूर्छावस्था में पड़ी रही। पीड़ा के कारण कभी-कभी जोरों से चीख पड़ती।
बच्चे का जन्म हो ही गया।
विनीता को पुत्र लाभ हुआ।
उसका दामन खुशियों से भर गया।
चंद्रताल पैदा हो गया था। और मैं अब अपनी टांगों पर खड़ा होने लगा था।
समाप्त
चंद्रताल क्या क्या कर सकता है आगे जरा वह भी सोचो, उसपर भी कहानी बन सकती हैं
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