Incest Kahani एक अनोखा बंधन
05-07-2020, 02:18 PM,
#11
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--6

गतान्क से आगे.....................

आदित्य को एक बार भी ये ख्याल नही आया की ज़रीना शायद होटेल गयी हो. क्योंकि वो पूरा दिन और पूरी रात वेट करता रहा था ज़रीना का इश्लीए शायद उसे ये ख्याल ही नही आया.

अब वो किसी का दरवाजा खड़का कर पूछे भी तो क्या पूछे. क्या ये पूछे कि ज़रीना की मौसी का घर कहा है. ज़रीना की मौसी का नाम पता होता तो शायद बात बन जाती. और ये भी पता नही था कि उसके साथ बर्ताव क्या होगा अगर ज़रीना की मौसी का घर मिल भी गया तो.

“बस समझ ले अदित्य उसे तेरी कोई कदर नही है. ये प्यार ख़तम हो चुका है. कुछ नही बचा अब.” आदित्य ने सोचा.

आदित्य भारी मन से गली से बाहर की ओर चल दिया.

दुर्भाग्य की बात ये थी कि इधर अदित्य गली से निकल रहा था और उधर गली के दूसरी तरफ से ज़रीना आ रही थी ऑटो में बैठ कर. दोनो एक दूसरे को ढूंड रहे थे लेकिन ना जाने क्यों मुलाकात नही हो पाई.

आदित्य ने गली से बाहर आकर ऑटो पकड़ा. इधर अदित्य ऑटो में बैठा, उधर ज़रीना ऑटो से उतर कर मौसी के घर में वापिस आ गयी.

“मैं ही बेवकूफ़ थी जो निकल पड़ी सुबह सुबह उसके लिए जो मुझे छोड़ कर जा चुका है. इतना बेदर्दी निकलेगा ये अदित्य मैने सोचा नही था. ये प्यार मेरी जींदगी की सबसे बड़ी ग़लती है.” ज़रीना सोचते हुवे चल रही थी.

“ज़रीना बेटा कहा गयी थी तू इतनी सुबह सवेरे हमें तो चिंता हो रही थी.” ज़रीना की मौसी ने कहा.

“कही नही मौसी यही पास में ही गयी थी.”

“बेटा कुछ तो बात ज़रूर है जो तू छिपा रही है.”

“कुछ नही है मौसी आपको वेहम हो रहा है.”

“जब तेरा मन हो बता देना बेटा, मुझे तो तेरी बहुत चिंता हो रही है. चल कुछ खा ले.”

खाने का मन तो अब भी नही था ज़रीना का लेकिन फिर भी मौसी का दिल रखने के लिए उसने कुछ खा लिया.

आदित्य सीधा रेलवे स्टेशन पहुँचा और किसी तरह से गुजरात की ट्रेन की टिकेट का इंटेज़ाम किया. उसे रात की ट्रेन की टिकेट मिली किसी तरह से जुगाड़ करके. बहुत बेचैन हो रहा था देल्ही छोड़ने के ख्याल से. वाहा उसकी ज़रीना जो थी. पर उसे लग रहा था कि प्यार व्यार ख़तम हो चुका है और अब वापिस चलने में ही भलाई है. जब ट्रेन प्लॅटफॉर्म पर पहुँची तो वो बड़े भारी मन से ट्रेन में चढ़ा.

उस वक्त ज़रीना अपने हाथ की लकीरो को देख रही थी. “शायद किश्मत में तुम्हारा साथ नही लिखा था अदित्य. या फिर शायद साथ लिखा था पर हम निभा नही पाए. जो भी हो तुम मुझे यू छोड़ कर चले जाओगे मैने सोचा नही था. आइ हेट यू.” और ज़रीना की आँखे फिर से बहने लगी.

आदित्य पहुँच तो गया घर वापिस गुजरात. लेकिन घर की तरफ जाते वक्त उसके पाँव ही नही बढ़ रहे थे आगे. वो जानता था कि ज़रीना के बिना उस घर में रहना कितना मुश्किल होगा उसके लिए. जब वो घर में घुसा तो वो मंज़र उसकी आँखो में घूम गया जब वो ज़रीना को साथ लेकर घर से निकल रहा था रेलवे स्टेशन के लिए.

आदित्य ने बेग एक तरफ पटका और सोफे पर गिर गया. वक्त जैसे थम सा गया था और जीवन की खुशियाँ जैसे साथ छोड़ गयी थी. दुनिया ही उजड़ गयी थी अदित्य की.

यही हाल कुछ ज़रीना का था. ज़रीना भी उस वक्त अपने रूम में बिस्तर पर पड़ी थी. उसका भी ऐसा ही हाल था जैसे कि सब कुछ उजड़ गया हो उसका.

जब मौसी कमरे में घुसी तो वो फ़ौरन उठ कर बैठ गयी. “मौसी आप…सलाम आलेकम.”

“सलाम आलेकम बेटा, कुछ तो बता सब खैरीयत तो है. तुम तो हमसे कुछ बोल ही नही रही हो. जब से आई हो कमरे में पड़ी रहती हो बस.”

अब ज़रीना बताए भी तो कैसे. उसकी तकलीफ़ का कारण अदित्य का प्यार था और उस प्यार को कोई नही समझ सकता था. मौसी को टालने के लिए उसने कहा, “कारण तो आप जानती ही हैं मौसी. सब कुछ खो दिया है मैने.”

“अल्लाह रहम करे मेरी बच्ची पर. बहुत कुछ सहा है तुमने ज़रीना. तुम्हे ज़ींदा देख कर जो ख़ुसी हमें मिली थी वो हम लफ़ज़ो में बयान नही कर सकते. अब यही दुवा है कि अल्लाह का फ़ज़ल हो तुम पर.”

“अल्लाह शायद हम से रूठ गये हैं मौसी. सब कुछ बीखर गया है.” ज़रीना ने कहा.

मौसी ज़रीना को गले लगा लेती है. “वक्त करवट लेगा बेटी. वक्त हमेसा एक सा नही रहता…आओ थोड़ा बाहर घूम फिर लो. बंद कमरे में घुटन हो जाती है बैठे बैठे.”

“ठीक है मौसी आप चलिए मैं आती हूँ.” ज़रीना ने कहा.

बहुत कोशिस की ज़रीना ने अदित्य को भुलाने की और उसे अपनी यादों से हटाने की. लेकिन जब कोई दिल में बस जाता है उसे इतनी आसानी से निकाला नही जा सकता.

कोशिस आदित्य भी कर रहा था ज़रीना को भुलाने की. लेकिन घर के हर कोने में ज़रीना की यादें बसी थी. वो घर में जहा भी देखता उसे ज़रीना का ही अहसास रहता. हर कोने में बस ज़रीना ही बसी थी जैसे. और ना चाहते हुवे भी उसकी आँखे नम हो जाती थी.

भुलाने की कोशिस में एक हफ़्ता बीत गया लेकिन कुछ फ़ायडा हुवा नही. प्यार की तड़प, कसक और मीठी सी बेचैनी हर वक्त बरकरार थी. धीरे धीरे वो दोनो ही ये बात समझने लगे थे कि वो दोनो प्यार के अनोखे बंधन में बँध चुके हैं जिसे वो चाह कर भी नही तौड सकते. उनकी हर कोशिस बेकार जो हो रही थी.

और फिर एक ऐसी तड़प उठी प्यार की जिसने उनके प्यार को और ज़्यादा महका दिया. एक रात ऐसी आई जिसमे दोनो काग़ज़ और कलाम लेकर बैठ गये और कुछ लिखने की ठान ली. ज़रीना को तो अदित्य का अड्रेस पता ही था. अदित्य ने भी घूम फिर कर किसी तरह ज़रीना की मौसी का अड्रेस ढूंड ही लिया. दो चिट्ठियाँ लीखी जा रही थी रात के वक्त एक साथ. देल्ही में ज़रीना लिख रही थी और गुजरात में आदित्य लिख रहा था. हां थोड़ा वक्त का अंतर था. ज़रीना रात के 12 बजे लिखने बैठी थी और अदित्य रात के 2 बजे लिखने बैठा था.

अगले दिन चुपके से दोनो ने अपनी अपनी चत्तियाँ पोस्ट कर दी. पहुँचने में 4 दिन लग गये. दोनो बेचैन थे अपनी चिट्ठी का जवाब पाने की लिए. लेकिन उन्हे नही पता था कि दोनो ने एक साथ चिट्ठी लिखी है और दोनो जल्द ही एक दूसरे की चिट्ठी पढ़ने वाले हैं.
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05-07-2020, 02:19 PM,
#12
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
पहले आदित्य को चिट्ठी मिली ज़रीना की. घर में बैठा था चुपचाप मूह लटकाए हुवे जब डाकिये ने बेल बजाई घर की.

“आदित्य पांडे आप ही का नाम है.” डाकिये ने पूछा.

“जी हां बिल्कुल.” आदित्य ने कहा.

“यहा साइन कर दीजिए, स्पीड पोस्ट आई है आपके नाम.”

आदित्य ने साइन किए और डाकिये ने चिट्ठी अदित्य को पकड़ा दी. जब अदित्य ने चिट्ठी के पीछे भेजने वाले का नाम देखा तो आँखो में वो रोनक आ गयी उसके की वो ज़ोर से चिल्लाया “ज़रीना!”

डाकिये के भी कान फॅट गये. वो सर हिलाता हुवा चला गया.

आदित्य ने फ़ौरन चिट्ठी को लीफाफ़े से निकाला और सोफे पर बैठ कर पढ़ने लगा. चिट्ठी इस प्रकार थी :-

“मेरे प्यारे आदित्य,

तुम चले गये ज़रा सी बात पर मुझे छोड़ कर. क्यों किया ऐसा तुमने. किस हाल में हूँ मैं यहा क्या तुम्हे खबर भी है. कोई दिन ऐसा नही जाता जब तुम्हारे लिए आँसू नही बहाती. हर पल तुम्हारे लिए तड़पति रहती हूँ. तुम तो शायद मुझे भूल गये होंगे. मैं तुम्हारे लिए पापी जो हूँ. तुमने एक मोका भी नही दिया मुझे कुछ कहने का और चले गये. दिल पर क्या बीती है कह नही सकती. ये चिट्ठी तुम्हे लिख रही हूँ क्योंकि अपने दिल के हाथो मजबूर हो गयी हूँ. उस दिन लड़ाई के बाद मैं भी फ़ौरन खाना खाए बिना बाहर आ गयी थी. बहुत ढूँढा तुम्हे पर तुम तो जा चुके थे. क्या यही प्यार था तुम्हारा. मैं क्या करती, मौसी के घर आना पड़ा मुझे. अगले दिन भी मैं सुबह सुबह जैसे-तैसे ऑटो लेकर होटेल पहुँची. लेकिन तुम वाहा से भी निकल गये चेक आउट करके. मेरा इंतेज़ार भी नही किया तुमने. खून के आँसू रोई हूँ मैं तुम समझ नही सकते. बड़ी मुश्किल से वापिस आई थी मौसी के घर. मन तो कर रहा था कि मर जाउ कही जाकर पर इस उम्मीद में वापिस आ गयी कि क्या पता तुम मिल जाओ कही. तुम्हे तो दिखाई थी मौसी की गली मैने. अगर प्यार करते मुझसे तो मुझे ढूंड ही लेते. पर नही तुम्हे तो मुझे छोड़ कर भागने की पड़ी थी. चले गये चुपचाप मुझे छोड़ कर, सोचा भी नही की कैसे जीऊंगी मैं तुम्हारे बिना.

और हां मैने नोन-वेज खाना छोड़ दिया है बिल्कुल. आगे से कभी देखूँगी भी नही नोन-वेज को, खाने की तो दूर की बात है. मुझे अहसास हो गया है कि तुम ठीक थे. पेड़-पोधो और जीव जंतुओ में कुछ तो फरक रहता ही है. चिकन में जीवन ज़्यादा है एक हरी सब्जी के मुक़ाबले. मैं ये बात समझ गयी खुद ही. तुमने तो बहुत बुरे तरीके से समझाने की कोशिस की थी. मुझे आराम से कहते तो मैं ख़ुसी ख़ुसी तुम्हारे लिए कुछ भी छोड़ देती. नोन-वेज तो बहुत छोटी चीज़ है आदित्य.

अब ये बताओ कि अपनी ज़रीना को कब ले जाओगे यहा से. मैं खुद आ जाती पर अकेले सफ़र करते हुवे डर लगता है मुझे. कभी अकेले गयी नही कही. बहुत घबराती हूँ मैं ट्रेन में. अगर नही आओगे तो मुझे आना तो पड़ेगा ही. दिल के हाथो मजबूर जो हूँ. इन दीनो में यही जाना है आदित्य कि बहुत प्यार करती हूँ मैं तुम्हे और तुम्हारे बिना नही जी सकती. आ जाओ आदित्य मैं आँखे बिछाए तुम्हारा इंतेज़ार कर रही हूँ. ले जाओ अपनी ज़रीना को अपने साथ और जैसे जी चाहे वैसे रखो.

तुम्हारी ज़रीना.”

आदित्य की हालत बहुत नाज़ुक हो गयी पढ़ते-पढ़ते. आँसू टपक रहे थे ज़रीना के एक-एक बोल पर. बार बार पढ़ा उसने एक एक लाइन को. दिल में प्यार की मीठी मीठी चुभन हो रही थी. कुछ बोल ही नही पा रहा था आदित्य, लिखा ही कुछ ऐसा था ज़रीना ने. उसने वो चिट्ठी सीने से लगा ली और सोफे पर लेट गया.

ज़रीना को आदित्य की चित्ति अगले दिन मिली. वो तो सोई थी कमरे में जब मौसी ने आवाज़ दी.

“ज़रीना बेटा तुम्हारा खत आया है.”

ज़रीना ये सुनते ही बिस्तर से उठ गयी. “मेरे लिए खत कौन भेज सकता है. कही आदित्य ने तो नही भेजा. पर उसे तो यहा का अड्रेस भी नही पता होगा.”

ज़रीना तुरंत भाग कर बाहर आई. उसने साइन करके चिट्ठी ले ली. पीछे आदित्य का नाम था. वो तो झूम उठी ख़ुसी के मारे. पर मौसी के कारण अपनी ख़ुसी को दबा लिया किसी तरह.

“किसका खत है बेटा.” मौसी ने पूछा.

“है एक सहेली का मौसी मैं आराम से रूम में बैठ कर पढ़ूंगी.”

“ठीक है पढ़ ले. पहली बार तेरी आँखो में चमक देख रही हूँ. शायद ये खत कुछ शुकून देगा तुझे. जा पढ़ले अपनी सहेली का खत आराम से.”

“शुक्रिया मौसी.” ज़रीना फ़ौरन रूम में वापिस आ गयी. रूम में आते ही उसने कुण्डी बंद कर ली. उसका दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था. ख़ुसी ही कुछ ऐसी थी फ़िज़ा में. बहुत फुर्ती से उसने लीफाफा खोला और चिट्ठी निकाल कर बिस्तर पर बैठ गयी. आदित्य की चित्ति कुछ इस प्रकार थी.

क्रमशः...............................
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05-07-2020, 02:19 PM,
#13
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--7

गतान्क से आगे.....................

“मेरी प्यारी ज़रीना,

कैसी हो तुम. बहुत मुश्किल से मिला अड्रेस तुम्हारी मौसी का मुझे. अड्रेस मिलते ही आज ये चिट्ठी लिख रहा हूँ. एक बात पूछनी थी तुमसे. क्यों चली गयी थी तुम रेस्टोरेंट से बिना बताए. खाना खाकर रफू चक्कर हो गयी मुझे छोड़ कर. क्या बस इतना ही प्यार था तुम्हारा. तुम्हे नही लगता कि तुमने कुछ ग़लत किया है. मैं ढून्दता रहा तुम्हे वाहा लेकिन तुम कही नही मिली. बताओ क्यों किया तुमने ऐसा.

थक हार कर मैं होटेल वापिस आ गया था. उम्मीद थी कि तुम होटेल में ही मिलॉगी मुझे. पर ये क्या तुम तो वाहा भी नही थी. ऐसा कौन सा तूफान आ गया था कि तुम अचानक मुझे छोड़ कर चली गयी. क्या एक बार भी नही सोचा तुमने की मैं कैसे जीऊँगा. क्या तुम्हे ज़रा भी चिंता नही हुई मेरी.अगले दिन तुम्हारी मौसी की गली में भी घुमा मैं काफ़ी देर. लेकिन तुम तो शायद मुझे भूल कर मज़े की नींद ले रही थी. बहुत बेदर्द हो तुम.

दिल से मजबूर हो कर लिख रहा हूँ ये चित्ति मैं. बहुत कोशिस की तुम्हे भुलाने की पर भुला नही सका. क्या करू प्यार ही इतना करने लगा हूँ तुम्हे. पर तुम्हे क्या, तुम्हे तो मिल गया होगा शुकून मुझे तडपा के.

एक बात और कहनी थी. आज मैने तुम्हारी खातिर वो किया जो मैं कभी नही कर सकता था. आज तुम्हारी फेवोवरिट डिश चिकन कढ़ाई खाई मैने. इतनी बुरी भी नही लगी जितना मैं समझता था.मुश्किल हुई पर खा ही ली. अब जो चीज़ मेरी ज़रीना की फेवोवरिट है उसे तो चखना ही था. अब हमारे बीच कोई भी दिक्कत नही होगी इस बात को लेकर. अब मैं भी नोन-वेज बन गया हूँ. तुम ठीक ही थी ज़रीना. मैने बहुत सोचा और इसी नतीजे पर पहुँचा कि जीवन तो कण-कण में है. यही तो हमारे हिंदू धरम की मान्यता भी है. तुम्हारे भोजन का यू अपमान करना ग़लत था. ये बात अब मैं समझ गया हूँ. अब ये छोटी सी बात हमारे बीच नही आएगी. आ जाओ वापिस मेरी जिंदगी में ज़रीना. तुम्हारे बिना बहुत अकेला महसूस कर रहा हूँ मैं. सब कुछ बिखर गया है.

तुम्हे लेने आ रहा हूँ ज़रीना इस रविवार को मैं. तैयार रहना. कोई बहाना नही चलेगा. तुम सिर्फ़ मेरी हो और मेरी रहोगी. बहुत प्यार करूँगा तुम्हे मैं ज़रीना. तैयार रहना तुम मैं आ रहा हूँ तुम्हे लेने.

तुम्हारा आदित्य”

मैं तो तैयार खड़ी हूँ आदित्य तुम आओ तो सही. आँखे बंद करके चल पड़ूँगी तुम्हारे साथ. जहा चाहे वाहा ले जाना तुम मुझे. आइ लव यू.” बोलते बोलते ज़रीना की आँखे भर आई लेकिन इस बार आँसू कुछ और ही रंगत लिए थे.

ज़रीना ने प्यार की खातिर नोन-वेज छोड़ दिया और आदित्य ने प्यार की खातिर नोन-वेज शुरू कर दिया. वैसे तो बहुत छोटी सी बाते लगती हैं ये. लेकिन ये करना इतना आसान नही होता. अपने अहम यानी कि ईगो को मारना पड़ता है. जो अपनी ईगो को ख़तम कर पाता है वही प्यार की गहराई में उतार पाता है. आदित्या और ज़रीना फैल तो ज़रूर हुवे थे प्यार के इम्तिहान में लेकिन अब उन्होने वो पाया था अपने जीवन में जो की बहुत अनमोल था. प्यार में एक दूसरे के लिए झुकना सीख गये थे वो दोनो. जो कि प्यार के लंबे सफ़र पर जाने के लिए ज़रूरी है.

अब इसे अनोखा बंधन ना कहु तो क्या कहु मैं. ये अनोखा बंधन बहुत प्यारा और सुंदर है जिसमे कि इंसानी जींदगी की वो खुब्शुरती छुपी है जिसे शब्दो में नही कहा जा सकता. बस समझा जा सकता है. बस समझा जा सकता है…………………………

प्यार के दुश्मन हज़ार होते हैं. प्यार को दुनिया की नज़र भी लग जाती है. बहुत खुस थे ज़रीना और आदित्य एक दूसरे का प्यार भरा खत पा कर. ज़रीना के पाँव ज़मीन पर नही थम रहे थे. आदित्य भी ख़ुसी से झूम रहा था.

सनडे को लेने जाना था आदित्य को ज़रीना को. आने जाने की टिकेट उसने बुक करा ली थी. अभी 2 दिन बाकी थे. उसने सोचा क्यों ना ज़रीना के आने से पहले अपने पापा के कारोबार को संभाल लिया जाए. वही बचा था अब इक लौता वारिस उसे ही सब संभालना था. ज़रीना की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए ये ज़रूरी भी था.

बहुत बड़ा कपड़े का व्यापार था आदित्य के पापा दीना नाथ पांडे का. बिना देख रेख के वो यू ही नुकसान में जा रहा था. दंगो के बाद आदित्य ने सुध ही नही ली व्यापार की. लेकिन अब उसे ज़िम्मेदारी का अहसास हो चला था. ज़रीना की खातिर उसे उस बीखरे हुवे व्यापार को फिर से खड़ा करना था. प्यार काई बार ज़िम्मेदारी भी सीखा देता है.

आदित्य सुबह सवेरे ही घर से निकल पड़ा. सभी करम्चारी आदित्य को देख कर बहुत खुस हुवे. सभी परेशान थे कि फॅक्टरी अगर यू ही चलती रही तो जल्दी बंद हो जाएगी और उनका रोज़गार छिन जाएगा. आदित्य ने सभी को भरोसा दिलाया कि वो फिर से फॅक्टरी को पहले वाली स्तिथि में ले आएगा.

पूरा दिन आदित्य ने फॅक्टरी में ही बिताया. किसी बिगड़े काम को ठीक करने के लिए अक्सर एक सच्चे पर्यास की ज़रूरत होती है. उसके बाद सब कुछ खुद-ब-खुद ठीक होता चला जाता है. ऐसा ही कुछ हो रहा था दीना नाथ पांडे की उस फॅक्टरी में. आदित्य के आने से उम्मीद की एक किरण जाग उठी थी सभी के मन में. जो कि एक बहुत बड़ी बात होती है.

काफ़ी दिनो बाद कुछ काम हुवा फॅक्टरी में. आदित्य बहुत खुस था. फॅक्टरी में रहा आदित्य मगर हर वक्त उसके जहन में ज़रीना का चेहरा घूमता रहा.

शाम को वो ख़ुसी ख़ुसी घर लौट रहा था. अंजान था कि काई बार ख़ुसी को किसी की नज़र भी लग जाती है. जब वो अपने घर पहुँचा तो पाया कि कुछ गुंडे टाइप के लोग ज़रीना के टूटे-फूटे घर के बाहर खड़े हैं. वो उन्हे इग्नोर करके अपने घर में घुसने लगता है. मगर उसे कुछ ऐसा सुनाई देता है कि उसके कदम घर के बाहर ही थम जाते हैं.

“यार जो भी हो. क्या मस्त आइटम थी वो ज़रीना. मैं तो दंगो के दौरान बस उसे ही ढूंड रहा था. एक से एक लड़की को ठोका उस दौरान पर ज़रीना जैसी कोई नही थी उनमे. पता नही कहा छुप गयी थी साली. उसकी छोटी बहन की तो अच्छे से ली थी हमने.”

“हो सकता है वो घर पर ना हो कही बाहर गयी हो.”

“हो सकता है? पर यार उसकी लेने की तम्माना दिल में ही रह गयी. अफ क्या चीज़ थी साली. ऐसे दंगो में ही तो ऐसा माल हाथ आता है. वो भी निकल गया हाथ से.”

आदित्य तो आग बाबूला हो गया ये सुन कर. प्रेमी कभी अपनी प्रेमिका के खिलाफ ऐसी बाते नही सुन सकता. भिड़ गया आदित्य उन लोगो से बीना सोचे समझे. जो आदमी सबसे ज़्यादा बोल रहा था वो उस पर टूट पड़ा.

“बहुत बकवास कर रहा है. तेरी हिम्मत कैसे हुई ऐसी बाते करने की” आदित्य ने उसे ज़मीन पर गिरा कर उस पर घूँसो की बोचार कर दी. मगर वो 5 थे और आदित्य अकेला था. जल्दी ही उसे काबू कर लिया गया. ये कोई हिन्दी मूवी का सीन नही था जहा कि हीरो 5 तो क्या 10 लोगो को भी धूल चटा देता है. ये रियल लाइफ का द्रिश्य था.

2 लोगो ने आदित्य को पकड़ लिया और एक ने चाकू निकाल कर कहा, “क्यों बे ज़्यादा चर्बी चढ़ि है तुझे. हम कौन सा तेरी मा बहन के बारे में बोल रहे थे. उन लोगो के बारे में बोल रहे थे जो हमारे दुश्मन हैं. हिंदू हो कर हिंदू पर ही हाथ उठाते हो वो भी हमारे दुश्मनो की खातिर. तुम्हारे जैसे लोगो ने ही हिंदू धरम को कायर बना रखा है.”

“कायरता खुद करते हो और पाठ मुझे पढ़ा रहे हो. छोड़ो मुझे और एक-एक करके सामने आओ. खून पी जाउन्गा मैं तुम लोगो का.”

“ जग्गू मार साले के पेट में चाकू और चीर दे पेट साले का. ज़रूर इसी ने छुपाया होगा ज़रीना को. इसके घर में देखते हैं. क्या पता जो दंगो के दौरान नही मिली अब मिल जाए…हे…हे.”

“उसके बारे में एक शब्द भी और कहा तो मुझसे बुरा कोई नही होगा.” आदित्य छटपटाया. मगर 2 लोगो ने उसे मजबूती से पकड़ रखा था.
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05-07-2020, 02:19 PM,
#14
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
किसी तरह से आदित्य ने दोनो को एक तरफ धकेला और टूट पड़ा उस गुंडे पर जिसके हाथ में चाकू था. होश खो बैठा था आदित्य. होता है प्यार में ऐसा भी कभी. मगर ये ज़्यादा देर नही चला. फिर से उसे जाकड़ लिया गया.

और फिर वो हुवा जिसके बारे में आदित्य ने सोचा भी नही था. चाकू के इतने वार हुवे उसके पेट पर की खून की नादिया बह गयी वाहा. आदित्य को तड़प्ता छोड़ वो गुंडे भाग गये वाहा से.

आदित्य की फॅक्टरी का एक करम्चारी, रमेश आदित्य से कुछ पेपर्स पर साइन लेने उसके घर पहुँचा तो उसने आदित्य को वाहा खून से लटपथ पाया. तुरंत किसी तरह आंब्युलेन्स बुलाई उसने और आदित्य को हॉस्पिटल ले जाया गया.

बहुत सीरीयस हालत में था वो. ऑपरेशन किया डॉक्टर्स ने मगर बचने की उम्मीद कम ही बता रहे थे. खून बहुत बह गया था. चाकू के इतने वार हुवे थे कि पेट छलनी छलनी हो रखा था उसका. बड़ी देर लगी ऑपरेशन में भी. ऑपरेशन के बाद आदित्य को आइक्यू में रख दिया गया. उसे होश नही आया था. सनडे आ गया मगर अभी भी वो कोमा में ही था. आदित्य के बारे में सुन कर मुंबई से उसके चाचा, चाची मिलने आए. दीना नाथ पांडे की मौत के वक्त नही आ पाए थे वो क्योंकि माहॉल ठीक नही था. चाचा का नाम था रघु नाथ पांडे और चाची का नाम था विमला देवी.

“डॉक्टर साहिब कब तक रहेगा कोमा में आदित्य.” रघु नाथ ने पूछा.

“कुछ नही कह सकते. हम जो कर सकते थे हमने किया. अब सब भगवान के उपर है.” डॉक्टर कह कर चला गया.

आज के दिन आदित्य को ज़रीना को लेने देल्ही जाना था. मगर वो तो कोमा में पड़ा था. उशे होश ही नही था कि ज़रीना तड़प रही होगी आदित्य के लिए. या फिर होश था उसे मगर कुछ कर नही सकता था. कोमा चीज़ ही कुछ ऐसी है. बेसहाय बना देती है इंसान को.

………………………………………………………………

ज़रीना तो सुबह से ही बेचैन थी. बेसब्री से इंतेज़ार कर रही थी आदित्य का. उसे मौसी को बिना कुछ कहे घर से निकलना था, आदित्य के पीछे पीछे. बस एक बार दिख जाए आदित्य गली में. आँखे बिछाए बैठी थी वो. छत की बाल्कनी में खड़ी हो गयी सुबह सवेरे ही.

“क्या बात है बेटा आज सुबह जल्दी उठ गयी.” मौसी ने आवाज़ लगाई ज़रीना को.

ज़रीना मौसी की आवाज़ सुन कर चौंक गयी, “सलाम आलेकम मौसी.”

“सलाम आलेकम बेटा. क्या बात है आज सुबह सुबह यहा खड़ी हो. सब ख़ैरियत तो है.”

“हां मौसी सब ख़ैरियत है. बस वैसे ही खड़ी थी.”

“तुमसे कोई मिलने आ रहा है आज.” मौसी ने कहा.

“कौन?”

“एमरान नाम है उसका. यही पड़ोस में रहता है. अछा लड़का है. तेरे बारे में बताया मैने उसे. बहुत दुख हुवा उसे सुन कर तुम्हारे बारे में.

मिलना चाहता है तुम से. आ जाओ नीचे वो आता ही होगा. बहुत अहसान है उसके हम पर. उस से मिलॉगी तो अछा लगेगा हमें.”

“ठीक है मौसी मैं आती हूँ आप चलिए.” ज़रीना ने कहा.

मौसी सोच में पड़ गयी कि आख़िर क्या है बाल्कनी में ऐसा आज जो ज़रीना वाहा से हटना नही चाहती. मौसी के जाने के बाद ज़रीना ने फिर से झाँक कर देखा गली में मगर उसे कोई दीखाई नही दिया. “शायद बाद में आएगा आदित्य. अभी तो सारा दिन पड़ा है. मिल आती हूँ पहले इस एमरान से.”

ज़रीना जब सीढ़ियाँ उतर कर आई तो उसने पाया की एमरान उसका इंतेज़ार कर रहा था.

“तो आप हैं ज़रीना शेख. खुदा कसम बहुत खूबसूरत हैं आप. हमारी नज़र ना लग जाए आपको.” एमरान ने ज़रीना को देखते ही कहा.

“आओ बेटी बैठो. यही है एमरान. बहुत काबिल लड़का है. जब भी कोई काम बोलती हूँ इसे वो ये झट से कर देता है.”

“ये तो आपकी जर्रा नवाज़ी है खाला. हम इतने काबिल भी नही हैं. सब खुदा की रहम है.”

“नही एमरान तुम सच में बहुत काबिल हो. अछा तुम दोनो बाते करो मैं चाय लेकर आती हूँ.”

ज़रीना मौसी को रोकना चाहती थी पर कुछ कह नही पाई.

“लगता है आपको ख़ुसी नही हुई हमसे मिल कर. आप कहें तो हम चले जाते हैं.” एमरान ने कहा.

“जी नही आप हमें ग़लत ना समझे. हम थोड़ा परेशान हैं.” ज़रीना ने कहा.

“समझ सकते हैं हम आपकी परेशानी. हम बेख़बर नही हैं आपकी परेशानी से. खाला हमें सब कुछ बता चुकी हैं. हम यहा आपका गम बाटने आयें हैं.” एमरान ने कहा.

“बहुत बहुत शुक्रिया आपका मगर हम उस बारे में बात नही करना चाहते.”

“समझ सकते हैं हम. गुज़रे दौर की बाते जख़्मो को और हवा ही देती हैं. हम आपसे माफी चाहेंगे अगर हमने आपके जख़्मो को कुरेद दिया हो तो. हमें ज़रा भी इल्म नही था कि इन बातो का जिकर नही होना चाहिए. हम तो बस आपका गम हल्का करना चाहते थे.”

“आपसे इज़ाज़त चाहूँगी. मुझे जाना होगा.”

“रोकेंगे नही आपको. मगर आप बैठेंगी तो हमें अछा लगेगा. आपसे ही मिलने आयें हैं हम.”

क्रमशः...............................
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05-07-2020, 02:19 PM,
#15
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--8

गतान्क से आगे.....................

ज़रीना बहुत बेचैन हो रही थी ये जान-ने के लिए कि आदित्य आया की नही. उसके चेहरे पर ये बेचैनी सॉफ झलक रही थी.

“आप हमें कुछ बेचैन सी लग रही हैं. सब ख़ैरियत तो है.” एमरान ने कहा.

“सब ख़ैरियत है आप हमारी फिकर ना करें.” ज़रीना थोड़ा गुस्से में बोल गयी.

तभी मौसी चाय ले आई. ज़रीना वाहा से उठी और बोली, “मौसी मैं अभी आती हूँ.”

“चाय ठंडी हो जाएगी बेटा.”

ज़रीना को कुछ नही सुन-ना था. उसे तो बस उपर आ कर बाल्कनी से झाँक कर देखना था कि आदित्य आया है कि नही. दौड़ कर आई वो उपर और दिल में आदित्य को देखने की बेचैनी लिए उसने चारो तरफ देखा गली में. मगर उसे कोई नज़र नही आया. थक हार कर वो वापिस आ गयी.

“चाय ठंडी हो गयी, ऐसा क्या ज़रूरी काम था उपर.” मौसी ने पूछा.

“शायद ज़रीना को चाय पसंद नही है.” एमरान ने कहा.

“बहुत पसंद है इसे चाय. पता नही आजकल क्या हो गया है इसे.”

“खाला ज़रीना गम के ऐसे दौर से गुज़री है कि इंसान की रूह काँप जाए. इंसान का खो जाना लाजमी है. अब इज़ाज़त चाहूँगा खाला. कुछ ज़रूरी काम है मुझे. फिर मिलेंगे. खुदा हाफ़िज़!”

“खुदा हाफ़िज़ बेटा. आते रहना.”

“खुदा हाफ़िज़ ज़रीना जी. हम फिर मिलेंगे.” एमरान ने मुश्कूराते हुवे कहा.

“खुदा हाफ़िज़…” ज़रीना ने जवाब दिया.

“हमारी यही दुवा है कि अल्ला का रहम हो आप पर और आप इस गम के दौर से जल्द निकल आयें बाहर. हम इस खुब्शुरत से चेहरे पर जल्द से जल्द मुश्कान देखना चाहते हैं.” एमरान ने कहा.

ज़रीना ने कुछ नही कहा. उष्का ध्यान ही नही था एमरान की बात पर. वो तो आदित्य के ख़यालो में खोई थी.

“ज़रीना जी हम आपको दुवा दे रहें हैं और आप कबूल नही कर रहीं. क्या हमसे कोई गुस्ताख़ी हुई है.”

ज़रीना को होश आया और वो झट से बोली, “शुक्रिया आपका. बहुत बहुत शुक्रिया.”

एमरान चला गया वाहा से. एमरान के जाने के बाद मौसी बोली, “अछा लड़का है. बहुत मेहनती है. बहुत अहसान है इसके हम पर. बहुत पसंद आई तुम उसे. जब तुम उपर गयी थी तो तुम्हारा हाथ माँग रहा था. एमरान से अछा शोहार नही मिलेगा तुम्हे.”

“मौसी आप सोच भी कैसे सकती हैं ऐसा.” ज़रीना के ये बात ना-गवारा गुज़री.

“बेटा तेरे अब्बा और अम्मी के बाद अब मैं ही हूँ तेरी अपनी. इतना सोचने का हक़ तो शायद मुझे है ही. तुझे ये सुझाव पसंद नही तो ना सही मगर फिर भी गौर करना इस पर. एमरान बहुत ही अछा लड़का है. आछे से जानती हूँ मैं उसे. तुम्हारे लिए उस से बेहतर शोहार नही मिल सकता. उसे तुम पसंद भी आ गयी हो. बाकी तुम्हारी मर्ज़ी है. तुम्हारा निकाह तुम्हारी मर्ज़ी से ही होगा.”

ज़रीना ने कुछ नही कहा और आ गयी सीढ़ियाँ चढ़ कर उपर बाल्कनी में. आदित्य वाहा हो तो दीखे. आँखे नम हो गयी इस बार उसकी.

“क्यों तडपा रहे हो मुझे आदित्य. मर जाउन्गि मैं इस तड़प में. प्लीज़ जल्दी आ जाओ. मैं और इंतेज़ार नही कर सकती.”

सुबह से दोपहर हुई और दोपहर से शाम. शाम से रात भी हो गयी. ज़रीना की आँखे पथरा गयी राह देखते-देखते. बहुत रोई वो बार-बार. आँखे लाल हो गयी उष्की. उसे क्या पता था कि जिसे वो ढूंड रही है वो इस वक्त कोमा में है और शायद गहरी नींद में उसे अपने पास बुला रहा है.

अनोखा बंधन था ये सच में. प्यार इस जानम का नही बल्कि काई जन्मों का लग रहा था. रात तो हो गयी थी पर पता नही क्यों उम्मीद नही छोड़ी थी ज़रीना ने. प्यार हमेसा उम्मीद की किरण जगाए रखता है इंसान में. रात को भी वो काईं बार आई बाल्कनी में चुपचाप दबे पाँव. मगर हर बार निरासा ही हाथ लगी. बहुत मुश्किल से जाती थी वो वापिस अपने कमरे में. मन करता नही था उसका बाल्कनी से हटने का मगर वो वाहा ज़्यादा देर नही रुक सकती थी. दिन में मौसी काई बार पूछ चुकी थी कि क्या कर रही हो बार बार बाल्कनी में. ज़रीना नही चाहती थी कि किसी को भी पता चले उसके और आदित्य के बारे में. उनका प्यार जितना गुमनाम रहे उतना ही अछा. जितना लोगो को पता चलेगा उतनी ही मुसीबत बढ़ेगी. आदित्य की चिट्ठी उसने बहुत ध्यान से छुपा कर रखी थी. फाड़ नही सकती थी उसको. अनमोल प्यार जो था उस चिट्ठी में. ऐसा प्यार जो कि उसे अपनी जींदगी से भी ज़्यादा प्यारा था. होता है ऐसा भी. प्यार अपनी जींदगी से भी ज़्यादा अनमोल हो जाता है.

ज़रीना वापिस आकर गिर गयी अपने बिस्तर पर. थाम नही पाई अपनी आँखो को और वो बह गयी फिर से.

“कहा रह गये तुम आदित्य. क्यों नही आ पाए तुम. ऐसा क्या हो गया कि तुमने मुझे यू तड़प्ता छ्चोड़ दिया. अगर मैं मर गयी तड़प-तड़प कर तो देखना बहुत पछताओगे तुम. मेरे जितना प्यार कोई नही कर सकता तुम्हे. क्यों आदित्य क्यों…….क्यों नही आ पाए तुम.” और बोलते बोलते रो पड़ी ज़रीना फिर से.

“कभी कितनी नफ़रत करती थी तुमसे और आज ये हालत है तुम्हारे कारण. एक पल भी जीना नही चाहती तुम्हारे बिना. याद है तुम्हे वो दिन जब तुम कीचड़ उछाल कर चले गये थे मेरे उपर.

मैं कॉलेज से मार्केट चली गयी थी सुमन और प्रिया के साथ. वापसी में बारिस शुरू हो गयी. शुक्र है छाता था मेरे पास. बचते-बचाते चल रही थी पानी की बूँदो से. नयी जीन्स पहन रखी थी मैने. घर के नज़दीक ही थी मैं. तुम ना जाने कहा से आए अचानक बाइक पर और कीचड़ उछाल दिया मेरे उपर. जीन्स तो मिट्टी से लथपथ हुई ही, मेरे चेहरे पर भी कीचड़ के छींटे डाल दिए तुमने.

तुम रुक गये ये देख कर. तुम्हे लगा कोई और है. छाते के कारण शायद तुम मुझे पहचान नही पाए थे. आए बाइक खड़ी करके नज़रे झुकाए हुवे. मैने तो तुम्हे पहचान ही लिया था. मन कर रहा था कि ईंट उठा कर मारु तुम्हारे सर पर.

“मिस्टर आदित्य क्या समझते हो तुम खुद को. देख कर नही चल सकते क्या. मेरी नयी जीन्स खराब कर दी तुमने.” मैने गुस्से में रिक्ट किया.
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05-07-2020, 02:19 PM,
#16
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
तुम तो मुझे देखते ही मूड गये वापिस. इतनी कौटेसी भी नही दीखाई की कम से कम सॉरी ही बोल दो. चल दिए मूह फेर कर जैसे कि सब मेरी ही ग़लती हो. अपनी बाइक पर बैठ गये जा कर और किक मार कर बोले, “मेरी मम्मी से पैसे ले लेना. नयी खरीद लेना. ज़्यादा बकवास करने की ज़रूरत नही है.”

“अपने पैसे अपने पास रखो मिस्टर. पैसो की कमी नही है मुझे. स्टुपिड…...” मैं चिल्ला कर बोली.

“तो खरीद लो ना नयी जा कर. मेरा दिमाग़ क्यों खा रही हो.” चले गये तुम बोल कर.

बहुत गुस्सा आया था तुम्हारे उपर. मन कर रहा था कि तुम्हारी जान ले लूँ. और आज ये दिन है कि तुम्हारे लिए अपनी जान दे सकती हूँ. कितना अजीब होता है प्यार. हम दोनो ऐसे अनमोल प्यार के बंधन में बँध जाएँगे सोचा भी नही था मैने. आ जाओ आदित्य और मेरे लिए एक नयी जीन्स लेते आना. ड्यू है तुम्हारे उपर. वही पहन कर चलूंगी मैं तुम्हारे साथ. बदल लूँगी टाय्लेट में जाकर. तुम बस लेते आओ. या फिर रहने दो जीन्स को….तुम आ जाओ आदित्या प्लीज़….मैं बीखर गयी हूँ पूरी तरह. एक तुम ही तो हो जिसके लिए जीना चाहती हूँ. तुम भी इस तरह तड़पावगे तो क्या होगा मेरा. प्लीज़ आ जाओ.”

ज़रीना से रहा नही गया और वो फिर से उठ कर चल दी बाल्कनी की तरफ. रात के 3 बज रहे थे. मगर उसकी उम्मीद टूटी नही थी अभी. चारो तरफ देखा ज़रीना ने बाल्कनी से झाँक कर. गली में कुत्ते भोंक रहे थे. “ये कुत्ते कही और क्यों नही चले जाते. आदित्य को ना काट लें कहीं ये.”

आदित्य का कही आता पता नही था पर ज़रीना आदित्य के लिए कुत्तो से परेशान हो रही थी. बहुत परवाह रहती है प्यार में एक दूसरे की.

वापिस आना ही पड़ा ज़रीना को. “क्या पता कल आए आदित्य. क्या पता ट्रेन लेट हो गयी हो. या फिर हो सकता है कोई ज़रूरी काम आन पड़ा हो. वो आएगा ज़रूर मुझे यकीन है. बस जल्दी आ जाए तो अछा है वरना पता नही जी पाउन्गि या नही.”

दुबारा नही उठी ज़रीना बाल्कनी में जाने के लिए. थक हार कर उसकी आँख लग गयी थी. सो गयी बेचारी तड़प-तड़प कर. आँखे भारी हो रखी थी. नींद आना लाज़मी था.

…………………………………………………………………..

आदित्य अभी भी कोमा में था. आस पास क्या हो रहा था उसे कुछ नही पता था. लेकिन प्यार का कुछ ऐसा चमत्कार था कि वो थोड़ा-थोड़ा सोच पा रहा था. कुछ केसस हुवे हैं ऐसे कोमा के जिनमे इंसान सोच पाता है. मगर ये थिंकिंग दिमाग़ की बहुत गहराई में होती है. प्यार भी तो कही गहरा छुपा रहता है इंसान के अंदर. शायद वही ये सोचने समझने की ताक़त छुपी रहती है.

“ज़रीना मैं आ रहा हूँ तैयार रहना.” ये विचार खुद-ब-खुद आ गया आदित्य के दिमाग़ में. शायद ज़रीना से मिलने की तड़प बहुत गहराई तक समा गयी थी उसके अस्तित्व में.

आदित्य को पता भी नही था कि सनडे बीत चुका है और ज़रीना का उसके इंतेज़ार में बुरा हाल है. कोमा में था आदित्य जान नही सकता था ये बात. उसका अस्तित्व दिन दुनिया से बहुत परे था जहा टाइम और दिन नही होता. एक गहरी नींद होती है कोमा जहा कुछ उभर आता है अचानक. जैसे की ज़रीना के लिए जीन्स ले जाने का विचार अचानक ही आ गया. पता नही कैसे.

शायद प्यार में बहुत गहराई से जुड़े थे ज़रीना और आदित्य वरना आदित्य को जीन्स का ख्याल आना मुमकिन नही था. आदित्य मन ही मन मुश्कुरआया, “बहुत चिल्लाई थी तुम उस दिन. पूरी जीन्स कीचड़ के रंग में रंग गयी थी. कितना गुस्सा था तुम्हारे चेहरे पर. ला दूँगा नयी जीन्स. मुझे पता है कि ड्यू है जीन्स मुझ पर.”

“ज़रीना! उठो…आज इतनी देर तक कैसे सो रही हो.” मौसी ने आवाज़ लगाई. खूब दरवाजा पीटा उन्होने. पर ज़रीना का कोई जवाब नही आया.

मौसी की आवाज़ सुन कर उनका बेटा शमीम वाहा आ गया और बोला, “अम्मी क्या हुवा?”

“11 बज गये हैं और ये लड़की उठी नही अभी तक.” मौसी ने कहा.

“सोने दो ना अम्मी तुम हमेसा दूसरो की नींद खराब करती हो.” शमीम ने कहा

“ज़रीना इतनी देर तक कभी नही सोती. कल कुछ ज़्यादा ही परेशान लग रही थी. मुझे तो चिंता हो रही है.”

“क्या हुवा शमीम की अम्मी. इतना हंगामा क्यों मचा रखा है.” शमीम के अब्बा ने पूछा. उनका नाम इक़बाल था.

“ज़रीना दरवाजा नही खोल रही. पता नही क्या बात है.” मौसी ने चिंता जनक शब्दो में कहा.

एमरान किसी काम से घर आया था. वो भी उन लोगो की बाते सुन कर वाहा आ गया और बोला, “खाला क्या बात है. सब ख़ैरियत तो है.”

“पता नही एमरान बेटा. ज़रीना दरवाजा नही खोल रही. 11 बज रहे हैं. मुझे तो चिंता हो रही है. कल बहुत बेचैन सी लग रही थी. बार-बार बाल्कनी के चक्कर लगा रही थी. पता नही क्या बात है. कुछ बताती भी तो नही है. अपने आप में खोई रहती है.”

“गहरी नींद में सोई है शायद.” एमरान भी ज़ोर-ज़ोर से दरवाजा खड़काता है.

पर ज़रीना का कोई जवाब नही आता.

“खाला आप हटिए. दरवाजा तौड देते हैं.” एमरान ने कहा.

“हां एमरान भाई ठीक कहा, तौड देते हैं दरवाजा.” शमीम ने कहा.

“हां बेटा कुछ करो…मुझे तो बहुत डर लग रहा है.” मौसी घबरा रही थी.

एमरान और शमीम दरवाजे को धक्का मारते हैं. दरवाजा 2-3 धक्के मारने पर खुल जाता है.

क्रमशः...............................
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05-07-2020, 02:20 PM,
#17
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--9

गतान्क से आगे.....................

पहले मौसी अंदर आती है क्योंकि जवान लड़की थी कमरे में. मौसी अंदर आकर पाती है कि ज़रीना पाँव सीकोडे पड़ी है. वो उसे हिलाती है पर वो कुछ रेस्पॉंड नही करती. “ये तो बेहोश पड़ी है शायद.”

मौसी बाहर आती है और एमरान से कहती है, “बेटा वो तो बेहोश पड़ी है अंदर. डॉक्टर को बुलाओ जल्दी.”

एमरान फ़ौरन डॉक्टर को लेकर आता है. डॉक्टर ज़रीना को एग्ज़ॅमिन करता है और बोलता है, “सब कुछ नॉर्मल है. शायद किसी सदमें में है. क्या कुछ ऐसा हुवा है इसके साथ जिस से इसके दिल को गहरा झटका लगे.”

“हुवा तो बहुत कुछ है डॉक्टर साहिब अब क्या बतायें. आप कोई दवाई दे दीजिए.” मौसी ने कहा.

“मैं इंजेक्षन दे रहा हूँ. कुछ ही देर में इसे होश आ जाएगा. आप इन्हे खुस रखने की कोशिस करें.” डॉक्टर ने कहा.

डॉक्टर ज़रीना को इंजेक्षन दे कर चला गया. शमीम और उसके अब्बा भी वाहा से चले गये. उन्हे अपने काम के लिए निकलना था. एमरान और मौसी वही बैठ गये दो कुर्सी ले कर.

“कुछ तो है ऐसा जो ये हमसे छुपा रही है.” मौसी ने कहा.

“खाला वक्त लगेगा उसके जख़्मो को भरने में. कुछ वक्त दीजिए उसे.” एमरान ने कहा.

“वक्त तो ठीक है, पर ये हर वक्त खोई-खोई रहती है.”

“खाला आपने ज़रीना से कुछ बात की हमारे बारे में” एमरान ने पूछा.

“की थी बेटा. अभी उसने कुछ बताया नही है पर तुम फिकर ना करो ज़रीना तुम्हारी ही बीवी बनेगी. मैं हूँ ना.”

“खाला अगर ऐसा हो गया तो खुद को ख़ुसनसीब समझूंगा. पहली बार मुझे कोई पसंद आया है.” एमरान ने कहा.

“तुम्हारे बहुत अहसान हैं बेटा. इतना तो तुम्हारे लिए कर ही सकती हूँ. ज़रीना ना नही बोलेगी मुझे यकीन है इस बात का. और तुमसे अछा शोहार नही मिलेगा उसे.”

“खाला हम चाहते हैं कि जितनी जल्दी ये निकाह हो जाए अछा रहेगा. हम ज़रीना को बहुत खुस रखेंगे.” एमरान ने कहा.

“मालूम है बेटा. कोशिस करूँगी कि तुम दोनो का निकाह जल्दी हो जाए. मेरे सर से भी ज़िम्मेदारी का बोझ हटेगा. उमर हो चली है मेरी. जींदगी का क्या भरोसा. जीतनी जल्दी ज़रीना का घर बस जाए अछा है. तुम्हारे हाथ में उसका हाथ दे कर मैं भी निश्चिंत रहूंगी.” मौसी ने कहा.

डॉक्टर के इंजेक्षन के बाद कुछ ही देर में ज़रीना को होश आ गया.

“आदित्य!” ज़रीना चिल्ला कर बोली और बिस्तर पर उठ कर बैठ गयी. तब उसकी मौसी और एमरान वही थे.

एमरान और ज़रीना की मौसी तो हैरान रह गये.

“आदित्य? कौन आदित्य ज़रीना” एमरान ने हैरानी में पूछा.

ज़रीना को होश आया कि वो क्या बोल गयी. “मैं सपना देख रही थी शायद.”

ज़रीना का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा. वो अच्छे से जानती थी कि किसी को भी वाहा आदित्य और उसके बारे में पता चला तो बहुत मुसीबत हो जाएगी. शमीम के अब्बा और शमीम ने खुद सलमा को इश्लीए मार दिया था क्योंकि वो एक हिंदू लड़के से प्यार कर बैठी थी. शमीम की छोटी बहन थी सलमा. ऐसे माहॉल में ज़रीना का डरना लाजमी था. कोई नही था वाहा ऐसा जो कि ज़रीना और आदित्य के रिश्ते को समझता. इश्लीए उसे हर हाल में अपने प्यार को छुपा कर रखना था.

“क्या हुवा था बेटा…पता है तुम बेहोश पड़ी थी यहा. डॉक्टर ने इंजेक्षन दिया तुम्हे तब होश में आई तुम. ऐसी कौन सी बात है अब जो कि तुम्हे अंदर ही अंदर खाए जा रही है. कल बार बार बाल्कनी में घूम रही थी. मैने तुझे रात को भी देखा बाल्कनी में जाते हुवे. पर तुझे टोका नही. कुछ बताओगि अपनी मौसी को ताकि मैं कुछ कर पाव तुम्हारे लिए”

ज़रीना अजीब मुश्किल में पड़ गयी, बोले भी तो क्या बोले. चुप रही बस. अब कैसे कहे कि वो आदित्य को ढूंड रही थी. कुछ और कहने को उसे सूझ नही रहा था. जब दिल प्यार में डूबा हो तो दिमाग़ अक्सर कम चलता है.

“बेटा मैं कुछ पूछ रही हूँ कुछ बताओगि मुझे.” मौसी ने फिर पूछा.

“रहने दीजिए खाला. ज़रीना का जब मन होगा बता देगी.” एमरान ने कहा.

लेकिन कहते हैं कि इश्क़ और मुश्क़ छुपाए नही चूपता. ज़रीना के तकिये के पास आदित्य की चिट्ठी पड़ी थी. मौसी की नज़र पड़ गयी उस चिट्ठी पर. वो आगे बढ़ी और उठा ली वो चिट्ठी. ज़रीना का ध्यान ही नही था इस बात पर कि तकिये के पास चिट्ठी पड़ी है. प्यार में ध्यान व्यान सब गुम हो जाता है शायद. जब उसने मौसी के हाथ में आदित्य की चिट्ठी देखी तो वो चिल्लाई, “मौसी ये मेरी पर्सनल चिट्ठी है. मुझे वापिस दे दो.”

“एमरान बेटा पढ़ना ज़रा इसमे क्या लिखा है. मुझे तो पढ़ना नही आता.” मौसी ने कहा.

“नही एमरान ये मेरी पर्सनल है. कोई नही पढ़ेगा इसे.” ज़रीना ने कहा.

एमरान ने चिट्ठी पकड़ तो ली पर दुविधा में पड़ गया वो कि क्या करे क्या ना करे. मौसी कह रही थी पढ़ो और ज़रीना कह रही थी मत पढ़ो.

“पढ़ो बेटा. शायद ज़रीना की परेशानी का सबब इस चिट्ठी में मिल जाए. ये तो कुछ बताती है नही.”

एमरान ने चिट्ठी हाथ में ली और मन ही मन पढ़नी शुरू की. जब वो चिट्ठी पढ़ कर हटा तो उसके चेहरे पर तनाव था.

“मौसी बाहर आईए बहुत गंभीर बात है.” एमरान ने कहा.

“मेरा खत मुझे वापिस दे दो.” ज़रीना ने भावुक आवाज़ में कहा. वो वैसे ही आदित्य के ना आने से परेशान थी और अब ये नयी मुसीबत आन खड़ी हुई थी.

एमरान ने आदित्य का खत अपनी जेब में डाल लिया और मौसी को साथ लेकर बाहर की ओर चल दिया.

ज़रीना उठी बिस्तर से और चिल्लाई, “मेरा खत है वो कहा ले जा रहे हो. पागल हो क्या तुम. वापिस दो मुझे वो.”

एमरान ने बाहर आकर बाहर से कुण्डी लगा दी दरवाजे की. ज़रीना अंदर से दरवाजा पीट-ती रही. “मेरा खत मुझे वापिस दे दो प्लीज़…….” आँसू आ गये ज़रीना की आँखो में बोलते बोलते.

एमरान पूरा खत पढ़ कर मौसी को सुनाता है.
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05-07-2020, 02:23 PM,
#18
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
“देखा खाला ये कारण है इसकी परेशानी का. इसे अपने अम्मी, अब्बा और बहन के मरने का कोई गम नही है. बल्कि एक काफ़िर के कारण परेशान है ये. वो लेने आने वाला था कल ज़रीना को यहा. तभी ये बाल्कनी में घूम रही थी. हमें तो यकीन ही नही हो रहा. हमें लगा ये अपनो को खोने के कारण गम में है. पर नही ये तो इश्क़ फर्मा रही है वो भी एक फजीर और काफ़िर से.”

“शमीम और उसके अब्बा को पता चला तो सलमा की तरह काट डालेंगे इसे भी. ये लड़की ऐसा करेगी हमने सोचा भी नही था. उन लोगो ने क़त्ले आम किया हमारी क़ौम का और ये उनसे प्यार कर रही है. शरम आनी चाहिए इसे.”

“मौसी मेरा खत मुझे वापिस दे दो. वो मेरी जींदगी है प्लीज़………” ज़रीना ने अंदर से रोते हुवे चिल्ला कर कहा.

“अगर ये आदित्य यहा आया तो हम उसे जींदा नही छोड़ेंगे खाला.” एमरान ने कहा.

“बेटा क्या तुम ये सब जान-ने के बाद भी ज़रीना से शादी करोगे.” मौसी ने पूछा.

“हम शायद मोहब्बत करने लगे हैं ज़रीना से. हम उसी से शादी करेंगे चाहे कुछ हो जाए.” एमरान ने कहा.

“बेटा तुम शादी की तैयारी करो बस अब फिर. ज़्यादा देर करनी ठीक नही है.” मौसी ने कहा.

“मैं तो तैयार हूँ खाला. आप चाहे आज करवा दो शादी.”

“ठीक है बस एक हफ्ते का वक्त दो हमें.”

“ठीक है खाला…आपको किसी भी बात की चिंता करने की ज़रूरत नही है. हम सब इंटेज़ाम कर देंगे.”

“वो तो हम जानते ही हैं.”

ज़रीना सुन रही थी सब कुछ अंदर. इतनी भावुक हो रही थी कि कुछ पूछो मत. कुछ भी नही बोल पा रही थी. गिर गयी रोते-रोते वही ज़मीन पर और बोली, “अब तो आ जाओ आदित्य. या अब भी नही आओगे. प्लीज़…………………………..”

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------------------------एक साल बाद--------------------------

आदित्य ने धीरे से आँखे खोली. कोई नही था आस पास उसके. उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो कहा है और क्यों है. कोमा से उठने के बाद अक्सर ऐसा होता है.

“ज़रीना…ज़रीना कहा है? मैं यहा कैसे.” सबसे पहले उसे यही सूझा.

आदित्य अभी गहरी नींद से जागा था. दिमाग़ एक साल तक गहरी नींद में था. वापिस नॉर्मल होने में वक्त तो लगता ही है.

आदित्य उठ कर बैठ गया बिस्तर पर. रघु नाथ पांडे ने देख लिया उसे बैठे हुवे. उनकी ख़ुसी का ठीकाना नही रहा.

“बेटा तुम्हे होश आ गया. अरे सुनती हो आदित्य को होश आ गया.” रघु नाथ पांडे ने अपनी पत्नी को आवाज़ दी. वो भागी भागी आई.

“चाचा जी आप.”

“हां बेटा. हम तुम्हे अपने साथ मुंबई ले आए थे. वाहा गुजरात में हम तुम्हे अकेला नही छोड़ सकते थे.” रघु नाथ पांडे ने कहा.

“मेरा सर बहुत भारी है.” आदित्य ने सर पर हाथ रख कर कहा.

“सर पर भी मारा था उन कमिनो ने. तुम्हे कुछ याद है कौन थे वो.”

आदित्य सोच में पड़ गया. उसे कुछ धुन्द्ला धुन्द्ला याद आ रहा था.

“चलो छोड़ो वो सब. ज़्यादा ज़ोर मत डालो दिमाग़ पर. आ जाएगा सब कुछ याद खुद ही. हम तो उम्मीद छोड़ चुके थे बेटा. तुम्हे आज होश में देख कर जो ख़ुसी मिली है उसे मैं शब्दो में नही कह सकता.” रघु नाथ पांडे ने कहा.

क्रमशः...............................
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05-07-2020, 02:23 PM,
#19
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--10

गतान्क से आगे.....................

आदित्य को ये ध्यान भी नही था कि वो एक साल बाद होश में आया है. कोमा से उठे व्यक्ति के लिए समय और वक्त का ज्ञान असंभव है. लेकिन आदित्य को इतना ध्यान ज़रूर था कि उसे सनडे को ज़रीना को लेने जाना है. उसे क्या पता था की जिस सनडे को उसे ज़रीना को लेने जाना था वो कब का बीत चुका है और जींदगी एक साल आगे बढ़ चुकी है.

"चाचा जी आज दिन क्या है"

"आज शनिवार है बेटा... क्यों."

"शनिवार... मुझे चलना होगा. मुझे कल हर हाल में देल्ही पहुँचना है." आदित्य धीरे से बड़बड़ाया और उठने की कोशिस करने लगा.

रघु नाथ पांडे समझ नही पाया कि आदित्या ने क्या कहा. उन्होने आदित्य के कंधे पर हाथ रखा और बोले, "बेटा क्या बोल रहे थे तुम. और अभी जल्दबाज़ी मत करो उठने की. एक साल बाद होश आया है तुम्हे. शरीर में जंग लग चुका है.थोड़ा वक्त दो अपने शरीर को."

ये सुनते ही आदित्य भोंचका रह गया. उसका सर घूमने लगा. उसे विश्वास नही हो रहा था अपने कानो पर.

"एक साल बाद होश आया...ये कैसे हो सकता है." आदित्य ये मान-ने के लिए बिल्कुल तैयार नही था.

"हां बेटा तुम कोमा में थे. एक साल बाद उठे हो तुम आज. भगवान का लाख लाख शूकर है कि तुम्हे होश आ गया." रघु नाथ पांडे ने कहा.

आदित्य के दिमाग़ की हालत ऐसी नही थी को वो कुछ भी समझ पाए. उसे तो बस इतना पता था कि आज अगर शनिवार है तो कल उसे ज़रीना को लेने देल्ही जाना है. वो अभी भी बीते कल में जी रहा था. मगर जींदगी उसके चारो और बहुत आगे निकल गयी थी.

आदित्य इतना स्तब्ध था कि कुछ भी नही बोल पाया. उसकी नज़र जब दीवार पर टाँगे कॅलंडर पर गयी तो उसकी आँखे भर आई. 2003 का कॅलंडर था वो.

"चाचा जी कौन सा महीना है."

"20 एप्रिल 2003 है आज बेटा. तुम परेशान मत हो, सब ठीक है. तुम्हारी फॅक्टरी ठीक चल रही है. कोई चिंता की बात नही है."

आदित्य की तो हालत खराब हो गयी. ऐसा लग रहा था जैसे की वो फिर से बेहोश हो जाएगा. "एक साल बीत गया. ज़रीना ने बहुत इंतेज़ार किया होगा मेरा. बहुत रोई होगी मेरे इंतेज़ार में वो. मैं क्यों नही जा पाया...क्यों....हे भगवान क्यों किया ऐसा हमारे साथ." आदित्य चिंता में पड़ गया.

रघु नाथ पांडे नही जानता था कि आदित्य के मन में क्या चल रहा है. आदित्य की हालत वैसे उठने लायक नही थी मगर फिर भी वो उठ गया किशी तरह बिस्तर से और बोला, “चाचा जी मुझे देल्ही जाना है तुरंत.”

प्यार की तड़प और बेचैनी शायद ताक़त भर देती है इंसान के शरीर में. वरना आदित्य नही उठ सकता था.

"क्या बात है बेटा, कुछ बताओ तो सही, तुम बहुत परेशान लग रहे हो."

"मुझे बहुत ही ज़रूरी काम है चाचा जी. मुझे हर हाल में देल्ही जाना है." आदित्य किसी को कुछ नही बताना चाहता था. बात ही कुछ ऐसी थी. वैसे भी अगर वो बताता भी तो शायद ही कोई समझ पाता उसकी बात को.

"आदित्य डॉक्टर को फोन किया है मैने वो आता ही होगा. अगर डॉक्टर सफ़र की इज़ाज़त दे तो तुम बेसक जा सकते हो." रघु नाथ पांडे ने कहा.

"डॉक्टर चाहे कुछ भी कहे मुझे जाना ही होगा." आदित्य ने कहा.

"बेटा ऐसी क्या बात है जो की तुम तुरंत जाना चाहते हो." रघु नाथ ने पूछा.

तभी डॉक्टर आ गया.

"लो डॉक्टर साहिब आ गये." रघु नाथ ने कहा.

"बड़ी ख़ुसी हुई मुझे आपको होश में देख कर मिस्टर आदित्य." डॉक्टर ने कहा.

डॉक्टर आदित्य का चेक उप करने के बाद बोला, "सब कुछ ठीक है अब. चिंता की कोई बात नही है. लेकिन अभी आराम ही कीजिए."

डॉक्टर के जाने के बाद आदित्य ने जाने की बात नही की. उसे पता था कि चाचा जी उसे नही जाने देंगे. मगर उसे हर हाल में देल्ही के लिए निकलना था. वो लेट गया वापिस बिस्तर पर चाचा जी को दीखाने के लिए. शाम घिर आई थी. आदित्य रात को आराम से निकल सकता था. उसने अपना पर्स चेक किया. ज़्यादा पैसे नही थे उसमे. शूकर है एटीम कार्ड था उसमे.

रात को सबके सोने के बाद आदित्य चुपचाप घर से निकल दिया. एक टॅक्सी पकड़ी उसने एरपोर्ट के लिए. रास्ते में उसने एक एटीम से पैसे निकलवाए. एक शोरुम से उसने नये कपड़े भी खरीद लिए, क्योंकि जिन कपड़ो में वो था वो मैले लग रहे थे. ना जाने क्यों उसकी नज़र एक जीन्स पर पड़ी और वो उसने खरीद ली. “ज़रीना को पसंद आएगी ये जीन्स.” शोरुम के ट्राइयल रूम में ही उसने कपड़े चेंज कर लिए. उसने खुद जीन्स ही खरीदी थी और खूब जच रही थी उस पर.

टिकेट आसानी से मिल गयी उसे. सुबह 4 बजे की फ्लाइट थी. आदित्य बोरडिंग पास लेकर सेक्यूरिटी चेक कराने के बाद बैठ गया बोरडिंग के इंतेज़ार में.
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05-07-2020, 02:23 PM,
#20
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
“कैसी होगी मेरी ज़रीना, क्या बीती होगी उस पर उस सनडे को. काश मैं अपने गुस्से को शांत रख पाता तो ये नौबत ना आती. मगर मेरी जगह कोई भी होता तो ऐसा ही करता. मुझे माफ़ करदो ज़रीना, तुम्हारा गुनहगार हूँ मैं. आ रहा हूँ अब तुम्हारे पास. जैसे ही होश आया मुझे मैं निकल पड़ा हूँ तुम्हारे लिए. पता नही किस हाल में हो तुम. तुम ठीक तो हो ना ज़रीना ?” आँखे नम हो गयी आदित्य की ये सब सोच कर.

“अगर मैं कोमा में नही होता तो बिल्कुल आता मैं ज़रीना चाहे पत्तिया बँधी होती चारो और मेरे पर आता ज़रूर.” आदित्य बहुत भावुक हो रहा था.

स्वाभिक भी था. जब प्यार आदित्य और ज़रीना के प्यार जैसा हो तो भावुक हो जाना सावभाविक है.

बोरडिंग की अनाउन्स्मेंट हुई तो आदित्य फ़ौरन उठ गया. ये अहसास कि वो अपनी ज़रीना के पास जा रहा है उसके चेहरे पर रोनक आ गई.

2 घंटे में वो मुंबई से देल्ही पहुँच गया. मगर अभी सुबह के 6 ही बजे थे. “उसी होटेल में चलता हूँ जिसमे ज़रीना के साथ ठहरा था.”

आ गया आदित्य टॅक्सी लेकर उसी होटेल में और रिक्वेस्ट करने पर रूम नो 114 ही मिल गया उसे. सुबह के 7 बज चुके थे. फ्रेश हो कर ब्रेकफास्ट किया उसने. कब 9 बज गये पता ही नही चला. रूम से चेक आउट नही किया उसने. “एक बार यही वापिस आ कर उस दिन की लड़ाई को याद करेंगे. कितने तडपे थे हम दोनो एक दूसरे से लड़ कर.”

चल दिया आदित्य ज़रीना से मिलने की उम्मीद दिल में लेकर उसकी मौसी के घर की ओर. दिल में एक अजीब सी तड़प और बेचैनी थी उसके जिसे सब्दो में नही कहा जा सकता. प्यार करने वाले इस तड़प को बखूबी समझ सकते हैं.

आदित्य को याद था अड्रेस ज़रीना की मौसी का. ठीक 10:30 पर वो ज़रीना की मौसी के घर के बाहर था. दरवाजा खड़काया उसने. मौसी ने दरवाजा खोला.

“किस से मिलना है आपको.” मौसी ने कहा.

“मुझे ज़रीना से मिलना है, प्लीज़ बुला दीजिए उसे.”

मौसी तो हैरान रह गयी ये सुन कर, “क्या तुम आदित्य हो?”

“जी हां मैं आदित्य हूँ.”

मौसी के चेहरे पर डर के भाव उभर आए. उन्होने बाहर दायें..बायें झाँक कर देखा और आदित्य को अंदर खींच लिया.

“किसी और से तो ज़रीना के बारे में नही पूछा तुमने.”

“नही मैं सीधा यहीं आया हूँ.” आदित्य ने हैरानी में कहा.

“कितने दिनो बाद आए हो. कैसी मोहबत थी तुम्हारे दिल में ज़रीना के लिए. बहुत तड़पती थी वो तुम्हारे लिए और तुम आज आए हो, एक साल बाद.”

“ज़रीना कहा है, उशे बुला दीजिए प्लीज़.” आदित्य गिड़गिडया

मौसी कुछ बोलने की बजाए खुद फूट-फूट कर रोने लगी. “वही तो पता नही चल रहा कि कहा है मेरी बच्ची.”

“आप ये क्या कह रही हैं.”

“सच कह रही हूँ बेटा, कुछ नही पता कि वो कहा है, कैसी है, किस हाल में है.”

आदित्य तो सुन ही नही सका ये सब. बहुत बेचैन हो गया वो और बोला, “ये सब कैसे हुवा, क्या आप बताएँगी.”

“पहले तुम ये बताओ कि तुम्हे आज अचानक याद कैसे आ गयी ज़रीना की. चिट्ठी में तो तुमने उसे ले जाने को लिखा था. सारा दिन वो बाल्कनी में आ-आ कर पागलो की तरह तुम्हे ढूंड रही थी. क्यों किया तुमने ऐसा मेरी बच्ची के साथ.”

“मैं कोमा में था, नही आ सकता था..अगर होश होता मुझे तो कोई ताक़त मुझे नही रोक सकती थी यहा आने से.” आदित्य मौसी को पूरी बात सुनाता है.

“अल्लाह रहम करे तुम दोनो की महोब्बत पर. मैं तो समझ ही नही पाई थी शुरू में तुम दोनो के प्यार को. ज़बरदस्ती शादी करवा रही थी ज़रीना की एमरान से.”

“एमरान…कौन एमरान.” आदित्य ने हैरानी में पूछा.

“एमरान एक ऐसा बाहरूपिया है जिसे समझने में मैने बहुत बड़ी भूल की थी. सुनो तुम्हे सब बताती हूँ तभी तुम पूरी बात समझ पाओगे.”

“तुम्हारे बारे में पता चलने के बाद, मैने तो ज़रीना को एक कमरे में बंद कर दिया था. एक हफ्ते के अंदर शादी कर देना चाहती थी ज़रीना की एमरान के साथ. ज़रीना बहुत दरखास्त करती थी मुझसे की मेरी बात सुन लो एक बार. पर मैने उसकी एक नही सुनी. पर एक रात जब मैं उसे खाना देने गयी तो वो फूट-फूट कर रोने लगी और सुबक्ते हुवे बोली, “मौसी थोड़ा सा ज़हर दे दो मुझे. मैं जीना नही चाहती. मैं आदित्य से बहुत प्यार करती हूँ. मैं उसके सिवा किसी और से शादी नही कर सकती. मेरा शरीर और मेरी रूह आदित्य की है मौसी. अगर मेरे साथ ज़बरदस्ती की गयी तो मैं जान दे दूँगी अपनी. पर मैं किसी भी हालत में एमरान शी शादी नही करूँगी. ऐसा होने से पहले मैं अपनी जान दे दूँगी.”

मेरा तो दिल बैठ गया ये सब सुन कर. मैने दरवाजा खोला और ज़रीना के पास आकर उस से पूछा, “आख़िर क्या कारण है की तुम उस काफ़िर के लिए अपनी जान भी देने को तैयार हो.”

“प्यार करती हूँ मैं आदित्य से. वो भी मुझे बहुत प्यार करता है. उसके कारण ही जींदा हूँ मैं वरना मर जाती कब की. उसी ने मुझे दंगो से बचाया और उसी ने मुझे जीने की चाह दी. वरना मैं कब की खुद को ख़तम कर चुकी होती.” ज़रीना ने सुबक्ते हुवे पूरी कहानी सुनाई मुझे

मैने कहा, “हाई रब्बा कितना बड़ा गुनाह करने जा रहे थे हम. मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर्दे. नही होगी तुम्हारी शादी एमरान से. लेकिन ये बात अपने तक ही रखना. शमीम और उसके अब्बा को भनक भी नही लगनी चाहिए इस सब की.”

“मौसी मेरा वो खत मुझे वापिस दिलवा दो.”

“दिलवा दूँगी….एमरान अछा लड़का है वो दे देगा चुपचाप वो खत. पर एक बात बताओ तुम्हारा आदित्य तो आया नही तुम्हे लेने. उसे तो आना चाहिए था अगर इतनी महोब्बत थी तुमसे.”

“ज़रूर कोई बात रही होगी मौसी वरना आदित्य ज़रूर आता. बहुत प्यार करता है वो मुझे. मुझे जाने दो मौसी. अगर वो नही आ पाया तो मैं चली जाती हूँ. मैं नही रह सकती उसके बिना” ज़रीना रोने लगी थी ये बोलते हुवे

मुझे वो बिल्कुल दीवानी लग रही थी. मैने कहा, “तुम कैसे जाओगी अकेले और मैं साथ चल नही सकती. क्या करूँ.”

“मैं चली जाउन्गि मौसी…मुझे जाने दो…यहा मैं और रही तो घुट-घुट कर मर जाउन्गि.”

“टिकेट भी तो करवाना पड़ेगा. मैं करती हूँ कुछ. कल या परसो का टिकेट करवा देती हूँ. तुम चिंता मत करो. खाना खाओ चुपचाप मैं टिकेट का इंटेज़ाम करती हूँ.”

क्रमशः...............................
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