Incest Kahani एक अनोखा बंधन
05-07-2020, 02:23 PM,
#21
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--11

गतान्क से आगे.....................

मैने 2 दिन बाद का टिकेट करवा दिया ज़रीना का किसी को बोल कर. एमरान कही गया हुवा था इश्लीए उस से वो खत नही ले पाई मैं. पता नही कैसे उसे भनक लग गयी की ज़रीना गुजरात जा रही है और वो उस दिन सुबह आ धमका यहाँ जिस दिन ज़रीना को दोपहर को निकलना था.

“खाला ये सब क्या हो रहा है मेरी पीठ पीछे.”

“क्या हुवा एमरान मैं कुछ समझी नही.”

“हमें पता चला है कि ज़रीना आज गुजरात जा रही है. क्या मैं पूछ सकता हूँ कि मेरी होने वाली बीवी मुझसे पूछे बिना गुजरात क्यों जा रही है.”

मुझे बहुत गुस्सा आया उसके ऐसे बर्ताव पर, मैं बोली, “अभी वो बीवी हुई नही है तुम्हारी एमरान. और मैने ये शादी ना करने का फ़ैसला लिया है. ज़रीना को तुम पसंद नही हो.”

“हां-हां उसे तो वो काफ़िर पसंद है. ये हमारे प्यार की बेज़्जती है खाला और हम ये कतयि बर्दास्त नही करेंगे.”

मैने पहली बार एमरान को ऐसे रूप में देखा था. वो मुझसे पूछे बिना ही सीधा ज़रीना के कमरे की तरफ चल दिया.

मैने उसे टोका, “एमरान रूको कहा जा रहे हो.”

“आप बीच में ना पड़े खाला ये मेरे और ज़रीना के बीच की बात है.”

“रूको यही…तुम होते कौन हो ऐसा बोलने वाले.” मैं चिल्लाई

पर एमरान पहुँच गया ज़रीना के पास और जब मैं वाहा पहुँची तो उसने ज़रीना के बाल पकड़ रखे थे. दर्द से कराह रही थी मेरी बच्ची. एमरान उस वक्त एक शैतान लग रहा था मुझे.

मैने छुड़ाने की कोशिस की पर मुझे धक्का दे दिया एमरान ने. सर पर मेरे बहुत गहरी चोट लगी. ये तो ज़रीना ने हिम्मत दीखाई. उसके हाथ के करीब ही एक आइरन रखी थी. उसने उठा कर वो एमरान के सर पर दे मारी. एमरान गिर गया नीचे. हम दोनो तुरंत बाहर आ गये और बाहर से कुण्डी लगा दी.

“ज़रीना तुम अभी निकल जाओ यहा से. शमीम और उसके अब्बा को पता चल गया तो और ज़्यादा मुसीबत हो जाएगी. तुझे तो पता ही है कि किस तरह से सलमा को काट डाला था उन दोनो ने. इस से पहले कि बात और ज़्यादा बिगड़े तुम चली जाओ यहा से और अपनी जींदगी में खुस रहो.

“मेरा वो खत खाला.”

“खत से ज़्यादा ज़रूरी तुम्हारा यहा से निकलना है. ये एमरान दरवाजा तौड देगा जल्दी ही. तुम जाओ मेरी बच्ची और खुश रहो. बस यही दुवा कर सकती हूँ मैं तुम्हारे लिए. इस से ज़्यादा और कुछ नही कर सकती तुम्हारे लिए.”

मैने ज़रीना को पैसे भी दे दिए ताकि सफ़र में कोई दिक्कत ना हो.

मगर ज़रीना को निकले अभी 10 मिनिट ही हुवे थे कि एमरान भी दरवाजा तौड कर बाहर आ गया.

“खाला आपने ये अछा नही किया. हम आपको कभी माफ़ नही करेंगे. मैं भी देखता हूँ कि कैसे पहुँचती है ज़रीना गुजरात. अगर वो मेरी नही हुई तो किसी की भी नही होगी.” एमरान निकल गया घर से अनाप सनाप बकते हुवे. उसका सही चरित्र तो मुझे उस दिन ही पता चला था. अछा हुवा जो मैने अपनी भूल सुधार ली.

मगर बेटा उस दिन के बाद ना ज़रीना का कुछ पता है ना एमरान का. उस दिन से आज तक कुछ खबर नही है ज़रीना की. ना ही एमरान का कुछ आता पता है.

“हे भगवान इतना कुछ हो गया ज़रीना के साथ और मैं वाहा पड़ा हुवा सोता रहा. इस से अछा तो भगवान मुझे मार ही देते.”

“अल्लाह रहम करे तुम दोनो की महोब्बत पर. मुझसे जो बन पड़ा मैने किया. इस से ज़्यादा कुछ नही कर सकती थी मैं.”

मौसी की बाते सुन कर आदित्या तो बिखर सा गया. समझ नही पा रहा था कि कैसे रिक्ट करे. ज़रीना के साथ क्या बीती होगी ये सोच-सोच कर उसका दिमाग़ घूम रहा था.

“क्या आपने पोलीस में कंप्लेंट की ज़रीना की गुमशुदगी की?” आदित्य ने भावुक आवाज़ में पूछा.

“की थी बेटा की थी. पर कुछ फ़ायडा नही हुवा. मैं गुजरात भी गयी थी उसे ढूँडने. मुझे लगा था कि वो गुजरात में ही होगी तुम्हारे साथ. पर तुम्हारे घर तो ताला लगा था. हमारी जान-पहचान के जो लोग हैं वाहा सब से मिली मैं. पता नही क्यों यही अंदेसा होता है कि कुछ अनहोनी हुई है उसके साथ.”

“नही…नही ऐसा नही हो सकता. मेरी ज़रीना को कुछ नही हो सकता. भगवान इतने निर्दयी नही हो सकते.” आदित्य पागलो की तरह बोला. बात ही कुछ ऐसी थी.

“हां बेटा उम्मीद तो मैं भी यही रखती हूँ कि ज़रीना ठीक होगी ज़हा भी होगी.”

“बहुत…बहुत धन्यवाद आपका जो आपने इतना कुछ किया ज़रीना के लिए. क्या आप एमरान के घर का पता बता सकती हैं.” आदित्य ने भावुक हो कर कहा.

“वाहा मत जाना और यहा आस पास किसी से बात भी मत करना. तुम्हारी जान पे बन आएगी. चुपचाप यहा से जाओ बेटा. यहा तुम दोनो के प्यार को कोई नही समझ सकता.” मौसी ने कहा.

“फिर भी बता दीजिए, क्या पता कोई सुराग मिल जाए ज़रीना के बारे में.”

“ठीक है बेटा, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.” मौसी ने कहा.
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05-07-2020, 02:24 PM,
#22
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
ज़रीना की मौसी ने आदित्य को एमरान का अड्रेस बता दिया और बोली, “संभाल कर रहना बेटा. तुमसे कोई नाता नही है..फिर भी पता नही क्यों तुम्हारी चिंता हो रही है.”

“यही इंसानियत है…आप नेक दिल हैं इश्लीए.. मुझे ज़रीना को तलास करना है. मुझे यकीन है कि वो जहा भी होगी सही-सलामत होगी. भगवान ऐसा अनर्थ नही कर सकते हमारे साथ. धन्यवाद आपका जो आपने हमारे लिए इतना कुछ किया.”

“काश कुछ और भी कर पाती बेटा. जाओ अपना ख्याल रखना.”

आदित्य ने मौसी के पाँव छुवे और चल दिया भारी मन से वाहा से. बहुत ही व्यथित था मन उसका.

आदित्य मौसी के घर से सीधा एमरान के घर पहुँचा. उसने घर का दरवाजा खड़काया तो एक लड़की ने दरवाजा खोला. “क्या एमरान का घर यही है.”

“जी हां कहिए…क्या काम है.” लड़की ने कहा. लड़की का नाम समीना था. वो एमरान की छोटी बहन थी.

“देखो मैं घुमा फिरा कर बात नही करूँगा.”

“किसी ने कहा भी नही जनाब आपसे कि घुमा-फिरा कर कहें. क्या काम है जल्दी बतायें. बहुत काम रहते हैं मुझे” समीना ने कहा.

“मेरा नाम आदित्य है. मैं ज़रीना की तलास कर रहा हूँ. उसी सिलसिले में आया हूँ यहा.” आदित्य ने कहा.

समीना को तो गुस्सा आ गया ये सुन के, “तो तुम हो आदित्य.” समीना ने गला पकड़ लिया आदित्य का. “बताओ मेरे भैया कहा हैं वरना जान से मार दूँगी.”

“कौन है समीना…किसके साथ लड़ रही हो.” अंदर से समीना की अम्मी ने आवाज़ दी.

“देखो…मुझे कुछ नही पता एमरान के बारे में. मगर अगर तुम्हे पता है तो बता दो वरना.” आदित्य ने कहा.

“वरना क्या कर लोगे तुम…तुम्हे जिंदा नही छोड़ूँगी मैं. बताओ कहा हैं मेरे भाई.”

“छ्चोड़ो मुझे…पागल हो गयी हो क्या…छ्चोड़ो.” समीना ने आदित्य के गले को कस के पकड़ रखा था. जब समीना नही मानी तो ठक हार कर आदित्य को उशे धक्का देना पड़ा और वो दूर ज़मीन पर जा कर गिरी. उसका सर ज़मीन से टकराने के कारण हल्का सा खून निकल आया उसके माथे से.

आदित्य ये देख कर विचलित हो गया और आगे बढ़ कर समीना को उठाया, “माफ़ करना…मैं यहा लड़ाई करने नही आया हूँ. ज़रीना को ढूंड रहा हूँ मैं. अपनी ज़रीना को. मुझे नही पता एमरान कहा है. मैं ज़रीना की तलास में यहा आया हूँ. वैसे तुम मुझे कैसे जानती हो.”

“भैया की पॅंट की जेब से मिला था खत तुम्हारा जो कि तुमने ज़रीना के लिए लिखा था. तुम दोनो का प्यार अछा लगा मगर तुम दोनो के प्यार के कारण मेरे भैया ला-पता हैं. मुझे तुम दोनो का ही हाथ लगता था इस सब में. इश्लीए गुस्सा कर रही थी तुम्हारे उपर.”

“कल होश आया था मुझे. कोमा में था मैं एक साल से. ज़रीना को लेने नही आ सका था इस कारण. आज उसकी मौसी के घर गया तो पता चला कि वो गायब है एक साल से. पूछो मत क्या गुज़री है दिल पे. मुझे ज़रीना की मौसी ने बताया की एमरान भी उसी दिन से गायब है. वो गया भी था ज़रीना के पीछे ही. बस अपनी ज़रीना को ढूंड रहा हूँ मैं. उसी की तलास मुझे यहा ले आई. माफ़ करना मुझे…मेरा कोई इरादा नही था आपको चोट पहुँचाने का.”

“आप भी मुझे माफ़ कर दीजिए. बहुत दुखी हूँ अपने भाई जान के कारण. इश्लीए आप पर बरस पड़ी. जब से भैया लापता हुवे हैं, इस घर में मातम है. अम्मी बिस्तर पर पड़ी है…अब्बा भी गुजर गये 6 महीने पहले. सब कुछ बिखर गया हमारा. तभी गुस्सा था मुझे तुम दोनो से. मन होता था कि मिल जाओ तुम दोनो एक बार, तो वो हाल करूँ तुम दोनो का की भूल जाओगे सब कुछ.”

“मैं समझ सकता हूँ तुम्हारे ज़ज्बात.” आदित्य ने भावुक हो कर कहा

“क्या नाम है तुम्हारा?”

“समीना…”

“समीना…क्या कुछ भी ऐसा बता सकती हो जो कि मुझे काम आ सके.”

“मुझे खुद कुछ नही पता. जितना आपको पता है उतना ही मुझे पता है. तुम ज़रीना को ढूंड रहे हो.अगर मेरे भैया की भी कुछ खबर लगे तो हमें बता देना. बहुत मेहरबानी होगी आपकी.”

“बिल्कुल ये भी क्या कहने की बात है. चलता हूँ मैं….”

“चाय पी कर जायें आप तो अछा होगा.”

“नही ..नही तकल्लूफ की कोई ज़रूरत नही है.” आदित्य ने कहा.

“जिस दिन वो खत मिला मुझे भैया की जेब से तो समझाना चाहती थी उन्हे. मुझे लग गया था कि उनकी और ज़रीना की शादी ठीक नही रहेगी. मगर उस दिन लौटे ही नही घर भैया. और आज तक उनका कुछ आता-पता नही है.” रो पड़ी समीना बोलते-बोलते.

“मैं समझ रहा हूँ तुम्हारे दुख को. मैं भी ज़रीना के लिए उतना ही परेशान हूँ, जितना की तुम एमरान के लिए.”

“तुम रूको मैं चाय लाती हूँ.”

“चाय की जगह अगर वो खत दे दो तो महरबानी होगी. ज़रीना के लिए है वो. बस उसी का हक़ है उस पर.”

“ला ही रही थी मैं. मैं उसे रख कर क्या करूँगी.” समीना ने कहा.

समीना चाय के साथ-साथ आदित्य का लिखा हुवा खत भी ले आई.

“शुक्रिया आपका इस खत के लिए. चाय नही पी पाउन्गा. कुछ मन नही है अभी. प्लीज़ बुरा मत मान-ना.” आदित्य ने कहा.

“मैं टूट पड़ी थी आप पर जैसे ही आप आए. अगर चाय पी कर जाएँगे तो दिल को शुकून मिलेगा की आपने मुझे माफ़ कर दिया.” समीना के कहा.

“ठीक है आपकी खातिर पी लेता हूँ.” आदित्या ने कहा और चाय का कप उठा लिया ट्रे से.

आदित्य ने चुपचाप चाय पी और समीना का शुक्रिया करके वाहा से चल दिया. उशे कुछ समझ नही आ रहा था कि आख़िर कहा गायब हो गये ज़रीना और एमरान.

आदित्य पूरा दिन वही आस पास घूमता रहा. होटेल जाने का मन ही नही हुवा उसका.

शाम को वापिस आकर बिस्तर पर गिर गया वो. “हे भगवान ये कैसी सज़ा दी है आपने हमें. क्या हम दोनो के साथ ऐसा करना ज़रूरी था. एक बार क्या बीछड़े दुबारा मिलना नामुमकिन सा लग रहा है. अगर हमें प्यार के रिश्ते में बाँधने के बाद यही सब करना था तो इस से अछा यही होता की आप हमें मार डालते. अब कहा ढूंडू ज़रीना को. ” आँखे भर आई आँसुओ से ये बोलते हुवे आदित्य की.

क्रमशः...............................
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05-07-2020, 02:24 PM,
#23
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--12

गतान्क से आगे.....................

आदित्य को वो दिन याद आ गया जब वो ज़रीना के साथ उसी रूम में रुका था. कितने खुश थे वो दोनो. वो प्यार और तकरार उसे बार-बार याद आ रहा था. ज़रीना का बिस्तर को हथियाना अनायास ही उसके होंटो पर मुश्कान बिखेर गया और और वो हंसते हंसते रो पड़ा, “कहा हो तुम ज़रीना…कहा हो. ”

आदित्य उठा फ़ौरन और उसने अपने घर चलने का फ़ैसला किया. होटेल से चेक आउट करके वो सीधा देल्ही के एरपोर्ट पहुँचा और गुजरात के लिए टिकेट खरीदी. रात 10 बजे की फ्लाइट थी. वो 12 बजे पहुँच गया वापिस अपने सहर. बहुत ही दुखी मन से बढ़ रहा था अपने घर की तरफ. एरपोर्ट से उसने एक टॅक्सी ले ली थी. जब टॅक्सी ने उसे उसके घर के बाहर छ्चोड़ा तो वो भावुक हो गया, “कैसे जाउ इस घर में, तुम्हारे बिना, ज़रीना…कहा हो तुम.”

आदित्य टॅक्सी वाले को भाड़ा देना भी भूल गया. टॅक्सी से उतर कर घर की तरफ चल दिया.

“सर 200 रुपये हुवे.”

“ओह हां…मैं भूल गया सॉरी.” आदित्य ने 200 रुपये निकाल कर टॅक्सी वाले को दे दिए.

“आदित्य ने दरवाजा खोल कर लाइट जलाई तो हैरान रह गया. दरवाजे के पास ही बहुत सारे खत पड़े थे. उसने तुरंर एक खत उठाया…खत ज़रीना का था. आदित्य की आँखे चमक उठी ज़रीना का खत देख कर. उसने सारे खत देखे उठा के. हर खत के पीछे एक ही नाम लिखा था, ज़रीना.

22.04.2003

आदित्य ने सारे खत डेट वाइज़ सेट किए और बैठ गया सोफे पर. घर में हर तरफ धूल मिट्टी बिखरी पड़ी थी. मगर उसका ध्यान सिर्फ़ ज़रीना की चिट्ठियो पर था. उसने सोफे को आछे से झाड़ कर खत रख दिए और पहला खत पढ़ना शुरू किया. खत 8 एप्रिल 2002 की डेट का था.

“मेरे प्यारे आदित्य,

तुम नही आ पाए देल्ही मुझे लेने. क्या पूछ सकती हूँ कि क्यों नही आ पाए. चलो छोड़ो कोई लड़ाई नही करना चाहती तुमसे. एक लड़ाई के बाद ही ये हाल है दूसरी लड़ाई हुई तो पता नही क्या होगा. कोई बात नही मेरे आदित्य. मैं खुद आ गयी हूँ गुजरात. पर ये क्या आदित्य तुम्हारा कुछ आता-पता ही नही है. कहा हो तुम आदित्य. क्या मुझसे कोई भूल हो गयी है जो की मुझे अकेला तड़पने को छ्चोड़ गये हो.

तुम्हे नही पता किन मुश्किलों का सामना करके पहुँची हूँ मैं गुजरात. और यहाँ कुछ समझ नही आ रहा कि कहाँ जाउ. तुम्हारे सिवा कोई भी तो नही है मेरा. अब क्या करूँ आदित्य कुछ समझ नही आ रहा.

परेशान हूँ तुम्हारे लिए. कुछ तो बात ज़रूर होगी वरना तुम मुझे लेने ज़रूर आते. मैं अकेली आई हूँ और बहुत मुश्किल से आई हूँ. तुम मिलोगे तो तुम्हे बताउन्गि. अभी तुम्हे ढूंड रही हूँ हर तरफ. पर तुम्हारा कुछ पता नही चल रहा. तुम्हारे घर के आस पास कुछ पूछने की हिम्मत नही हुई. सुना है कि माहॉल अभी भी तनाव भरा है. मुझे डर लग रहा है आदित्य.

मगर सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि कहा जाउ अब. तुम्हारे घर ताला लगा है. चाबी होती मेरे पास तो घुस जाती खोल कर चुपचाप. वो घर मेरा ही तो है ना आदित्य. हमारा घर है..जहा हम एक महीना साथ रहे थे. वहीं तो हमारे दिलों में प्यार जागा था. हम दोनो का प्यारा घर है वो, प्यार की यादों में डूबा हुवा घर.

हमारे घर के पास जो मार्केट है वही गुजराती रेस्टोरेंट में बैठ कर लिख रही हूँ ये सब. समझ नही आ रहा कि कहा जाउ अब. तुम अगर वापिस आओ तो मेरा खत पढ़ कर तुरंत अपने कॉलेज आ जाना. वही कॅंटीन में मिलूंगी मैं. इंतेज़ार करूँगी तुम्हारा प्लीज़ जल्दी आना…मुझे और कितना तद्पाओगे तुम. खुद तो नही आए मुझे लेने अब मैं आ गयी हूँ तो पता नही कहा हो. तुम मिलो एक बार खूब लड़ूँगी तुमसे. पर इस बार लड़ाई करके दूर नही जाउन्गि तुमसे. बहुत भूल हुई थी मुझसे उष दिन. बिना सोचे समझे मौसी के घर आ गयी थी. मुझे होटेल जाना चाहिए था. उस एक ग़लती की वजह से आज तक हम मिल नही पाए. अब और पता नही कितना इंतेज़ार करना पड़ेगा. खत मिलते ही आ जाना कॉलेज देर मत करना बहुत बेचैन हूँ मैं तुमसे मिलने के लिए. इतनी बेचैन की तुम अंदाज़ा भी नही लगा सकते. जल्दी आना प्लीज़………..

तुम्हारे इंतेज़ार में

तुम्हारी ज़रीना.”

ज़रीना के लिखे हर बोल से आदित्य के तन-बदन में हलचल हो रही थी. आँखे छलक उठती थी उसकी हर एक बोल को पढ़ कर. उस खत से एक बार फिर ये बात क्लियर हो रही थी उसे कि ज़रीना जितना प्यार कोई नही कर सकता उसे.

“ओह…ज़रीना, कितना अनमोल प्यार है तुम्हारा मेरे लिए. तुम्हारा गुनहगार बन गया हूँ. जिस वक्त तुम्हे मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी मैं यहा नही था. मैं कितना बेकार फील कर रहा हूँ कह नही सकता. काश मैं होता यहा उस दिन तो अपनी पलके बिछा कर स्वागत करता तुम्हारा. बहुत बेबस महसूस कर रहा हूँ मैं ये सब पढ़ कर. देखता हूँ अगले खत में क्या है.” आदित्य ने अपने आँसुओ को पोंछते हुवे कहा.
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05-07-2020, 02:24 PM,
#24
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
आदित्य ने अगला खत उठाया. खत 9 एप्रिल 2002 को लिखा गया था.

“ज़रीना ने खुद यहा आकर ये खत डाले हैं. पोस्ट ऑफीस की कोई स्टंप या टिकेट नही है. देखता हूँ इसमे क्या लिखा है ज़रीना ने.” आदित्य ने कहा और पढ़ना शुरू किया.

“मेरे प्यारे आदित्य,

आख़िर बात क्या है आदित्य. कुछ समझ में नही आ रहा. तुम ठीक तो हो ना. कही से भी कोई खबर नही मिल रही तुम्हारी. सारा दिन मैं बैठी रही कॉलेज की कॅंटीन में तुम्हारे इंतेज़ार में. आख़िर क्यों तडपा रहे हो मुझे इतना तुम. तुम्हारे कुछ दोस्तो से भी बात की मैने. पर किसी को कुछ नही पता तुम्हारे बारे में.

तुम कितने निर्दयी निकले आदित्य. अगर कही जाना ही था तुम्हे तो कम से कम कोई मेसेज तो छोड़ जाते मेरे लिए. मैने लिखा था ना तुम्हे कि अगर तुम नही आए मुझे लेने तो मैं खुद आ जाउन्गि. आ गयी हूँ मैं खुद ही. पर अब आ कर सर छुपाने के लिए जगह को तरस रही हूँ. कॉलेज में हॉस्टिल भी नही मिल रहा. मेरे पास कोई भी सबूत नही है कि मैं इस कॉलेज की स्टूडेंट हूँ. सब कुछ तो जल चुका है दंगो में. अब कैसे सम्झाउ इन लोगो को. एक दिन के लिए भी कोई कमरा देने को तैयार नही है. अब कहा जाउ आदित्या कुछ समझ नही आ रहा. मुझे बहुत डर लग रहा है. कल भी कॉलेज में ही मिलूंगी तुम्हे यही कॅंटीन में. देखती हूँ कुछ आज की कहा रुकु. अजीब मुसीबत में डाल दिया है तुमने मुझे. मन तो कर रहा है की ताला तोड़ कर घुस जाउ मैं घर में. मेरा भी हक़ है उस पर. पर वाहा माहॉल ठीक नही है और लोगो ने देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी. वैसे भी तुम्हारे बिना मुझे वाहा डर ही लगेगा.

वैसे कितनी अजीब बात हो रही है. कभी मैं तुम्हे देखना भी पसंद नही करती थी इस कॉलेज में और आज आँखे बस तुम्हे ही खोज रही हैं. और इसी बात का फ़ायडा उठा कर तुम मुझे सता रहे हो. मज़ाक कर रही हूँ. मज़ाक में दर्द भी है थोड़ा सा. परेशान जो हूँ. मुझे पता है ज़रूर कोई मजबूरी होगी तुम्हारी आदित्य वरना तुम ज़रूर आते. ये चिट्ठी भी डाल दूँगी तुम्हारे घर में. डर लगता है वाहा जाते हुवे. अपने जले हुवे घर को देख कर अम्मी, अब्बा और फ़ातिमा की याद आती है बहुत. डर लगता है बहुत जब अपने घर को देखती हूँ. पर कोई चारा भी तो नही. ये खत खुद ही डालना होगा तुम्हारे घर में. जहा भी हो जल्दी आ जाओ और देखो की मैं किस हाल में हूँ.

तुम्हारी ज़रीना.”

आदित्या फूट पड़ा इस बार. रोकना मुश्किल हो रहा था, “क्यों मेरे भगवान क्यों किया ऐसा हमारे साथ. प्यार करने वालो के साथ ऐसा हरगिज़ नही होना चाहिए. मैं क्यों नही था यहा…..देखता हूँ आगे क्या किया ज़रीना ने.”

आदित्य ने तीसरा खत उठाया. “16 एप्रिल 2002, पूरे एक हफ्ते बाद लिखी ज़रीना ने ये.” आदित्य हैरत में पड़ गया कि क्या हुवा होगा ज़रीना के साथ इस एक हफ्ते के दौरान. आदित्य ने पढ़ना शुरू किया.

“मेरे प्यारे आदित्य,

मिल गया है आसरा मुझे चिंता की कोई बात नही है. चिंता की बात बस ये है कि तुम्हारा अभी भी कुछ आता-पता नही है. रोज एक बार ज़रूर जाती हूँ घर तुम्हारे. वही मनहूस ताला टंगा रहता है. तुम्हारी फॅक्टरी भी गयी थी मैं तुम्हे ढूँडने. बड़ी मुश्किल से पता किया था अड्रेस उसका. मगर वाहा अच्छा व्यवहार नही हुवा मेरे साथ. कुछ लोग मुझे छेड़ने लगे वाहा. मैने एक व्यक्ति से पूछा भी तुम्हारे बारे में मगर उसे भी कुछ नही पता था. ज़्यादा देर नही रुक पाई वाहा. बहुत ही बेकार माहॉल है आदित्य वाहा. कुछ करना इस बारे में तुम. जिस तरह से लोग घूर रहे थे मुझे, मुझे बहुत ही डर लग रहा था. एक उम्मीद ले कर गयी थी फॅक्टरी तुम्हारी और भयबीत हो कर लौटी वाहा से.

मैं अब एक छोटे से स्कूल में पढ़ा रही हूँ. उस दिन कॉलेज से तुम्हारे घर आई शाम को तो अहमद चाचा मिल गये मुझे. तुमने भी देखा होगा उन्हे कयि बार हमारे घर आते-जाते हुवे. उन्होने भी अपना सब कुछ खो दिया दंगो में. उनकी दो बेटियों की इज़्ज़त लूटी गयी उन्ही के सामने और उनके बेटे का सर काट दिया गया उन्ही के सामने. उन्हे भी मार डालते वो लोग शुकर है पोलीस आ गयी थी वक्त पर.

अहमद चाचा एक स्कूल चला रहे हैं जिसमे की अनाथ बच्चो को शिक्षा दी जा रही है. बहुत बच्चे अनाथ किए इन दंगो ने आदित्य. कोई 50 बच्चे हैं स्कूल में. मुझे देख कर अहमद चाचा ने मुझे रिक्वेस्ट की, कि मैं उनके साथ जुड़ जाउ क्योंकि उन्हे टीचर की ज़रूरत है. मेरे लिए इस से अछी बात नही हो सकती थी. स्कूल में ही रहने को कमरा मिल गया. और एक नेक काम करने का मोका दिया अल्लाह ने मुझे. बहुत अछा लगा मुझे इस स्कूल से जुड़ कर. मगर अब एक ही चिंता है. तुम पता नही कहा हो, किस हाल में हो. समझ में नही आ रहा कि किस से पता करूँ. जो भी कर सकती थी सब किया मैने, मगर कही भी कुछ पता नही चल रहा तुम्हारे बारे में. अब बहुत ही ज़्यादा चिंता हो रही है तुम्हारी. अगर घर आओ तो सीधे स्कूल आ जाना. मैं वही मिलूंगी. स्कूल बिल्कुल बस स्टॅंड के पास जो मस्ज़िद है उसके पास है. किसी से भी पूछ लेना की अहमद चाचा का स्कूल कौन सा है…सब बता देंगे.

कॉलेज छोड़ दिया है मैने आदित्य. तुम्हारे बिना वाहा जाकर करूँगी भी क्या. तुम आओगे तो फिर से जाय्न कर लेंगे हम दोनो. मगर अकेले नही जाउन्गि वाहा. अहमद चाचा कहते रहते हैं कि कॉलेज जाओ…मगर मैं हरगिज़ नही जाउन्गि. आदित्य अब इंतेहा हो चुकी है….प्लीज़ आ जाओ अब और कितना तड़पावगे तुम. मर ही ना जाउ कही मैं तुम्हारे इंतेज़ार में. प्लीज़…………….

तुम्हारी ज़रीना.”

क्रमशः...............................
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05-07-2020, 02:26 PM,
#25
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--13

गतान्क से आगे.....................

आदित्य ने आखरी खत छ्चोड़ कर सारे खत पढ़ लिए. हर खत में ज़रीना ने अपनी तड़प और बेचैनी को बखूबी लिख रखा था. वो डीटेल में स्कूल की आक्टिविटीस भी लिख रही थी. फाइनली आदित्य ने आखरी खत उठाया. वो 1.04.2003 को लिखा हुवा था. आदित्य ने वो भी पढ़ना शुरू किया.

“मेरे प्यारे आदित्य,

धीरे-धीरे एक साल बीत गया और तुम्हारा अभी भी कुछ आता-पता नही है. सच कह रही हूँ बहुत चिंता हो रही है तुम्हारी. लेकिन मैं क्या करूँ कुछ समझ में नही आ रहा. रोज की तरह आज भी गयी थी घर. वही ताला टंगा मिला आज भी. उस ताले ने मेरी जींदगी बर्बाद कर दी है आदित्य. एक साल से देख रही हूँ उस ताले को. रोज खूब भला बुरा कह कर आती हूँ उस ताले को.

वैसे बच्चो को खूब शिक्षा देती हूँ मैं कि उम्मीद का दामन नही छ्चोड़ना चाहिए, मगर खुद मैं बीखर चुकी हूँ. कोई भी उम्मीद नही है जींदगी में. अगर जिंदा हूँ तो इन बच्चो की खातिर. मन लगाए रखते हैं मेरा ये. इन्हें पढ़ाने में वक्त बीत जाता है.

इतने खत लिख दिए हैं तुम्हे, जब तुम आओगे तो पढ़ते पढ़ते थक जाओगे. हां मुझे हल्की सी उम्मीद है अभी भी कि तुम ज़रूर आओगे. ये लिखते वक्त आँसू गिर रहे हैं इस काग़ज़ पर. पढ़ते वक्त तुम्हे अक्षर कुछ धुन्द्ले लगेंगे. अपने आँसू भी भेज रही हूँ इस खत के साथ उन्हे भी पढ़ना और अंदाज़ा लगाना कि किस कदर तदपि हूँ मैं तुम्हारे लिए. बस और नही लिख पाउन्गि अब.

तुम्हारी ज़रीना”

आदित्य बेचैन हो गया अब. आँसुओ की बरसात हो रही थी उसकी आँखो से. आँसू गम और ख़ुसी दोनो रंगो में डूबे हुवे थे. गम था इस बात का कि, बहुत तदपि ज़रीना उसके लिए और ख़ुसी थी इस बात की, कि अब वो अपनी ज़रीना से मिलने जा रहा था. उनके प्यार का इंतेहाँ अब ख़तम होने जा रहा था.

खत पढ़ते-पढ़ते आधी रात हो गयी थी. वो बेचैन हो रहा था अहमद चाचा के स्कूल जाने के लिए. और वो बस बिना सोचे समझे निकलने ही वाला था कि उसकी निगाह घर की हालत पर पड़ी, “शरम करो आदित्य, देखो कितना गंदा हो रखा है घर. चारो तरफ धूल…मिट्टी बिखरी पड़ी है. ज़रीना देखेगी तो क्या कहेगी. पहले उसके स्वागत में ये घर तो चमका लो…फिर ले कर आना ज़रीना को.”

बस फिर क्या था आदित्य पागलो की तरह जुट गया घर की सफाई में. घर के हर कोने को चमकाने में लग गया वो. रात के 3 बजे लगा था सफाई में और सफाई करते-करते सुबह के 7 बज गये. एक पल को भी नही रुका आदित्य. बस लगा रहा घर को चमकाने में. आख़िर उसकी जान से प्यारी ज़रीना जो आ रही थी.

“मैं आ रहा हूँ ज़रीना आ रहा हूँ मैं. बस अब हम और नही तड़पेंगे एक दूसरे के लिए. बहुत कुछ सहा तुमने इस प्यार के लिए. मेरे लिए तो तुम ही भगवान बन गयी हो. जब प्यार ही भगवान होता है तो तुम्हे ये उपाधि दी जा सकती है क्योंकि इतना गहरा प्यार शायद ही कोई किसी को करता होगा. धन्य हो गया हूँ मैं तुम्हे अपनी ज़ींदगी में पाकर. मैं बस नहा लूँ…कही तुम कहो की बदबू आ रही है मुझसे. बस कुछ ही देर में हम मिलने वाले हैं, बहुत लंबे इंतेज़ार के बाद. मैं आ रहा हूँ ज़रीना बस आ रहा हूँ………

22.04.2003. 9:00 सुबह

अपनी प्रेमिका से मिलने के अहसास में डूब गया था आदित्य. पाँव नही टिक रहे थे उसके ज़मीन पर. तन-बदन में एक अजीब सी सेन्सेशन हो रही थी. मीठा मीठा सा अहसास हर वक्त उसे घेरे हुवे था. तड़प और बेचैनी भी उतनी ही थी.ये अहसास हर उस इंसान ने महसूस किए होंगे जिसने कभी प्यार किया होगा. अपने प्यार से मिलने की तड़प हर प्रेमी के अंदर कुछ ऐसा ही अहसास जगाती है.

आदित्य नहा कर बाहर आया तो उसे समझ नही आया की क्या पहने. बेचैनी कुछ इस कदर हावी थी उसके उपर की कुछ डिसाइड करना मुश्किल हो रहा था. उसने आल्मिरा से ब्लू जीन्स निकाली और पहन ली. उसके उपर उसने वाइट शर्ट पहन ली.

“एक बार खूब तारीफ़ की थी ज़रीना ने इस कॉंबिनेशन की. मैं नहा कर ये कपड़े पहन कर निकला था तो वो तुरंत बोली थी, ‘अरे वाह आदित्य, ब्लू जीन्स और वाइट शर्ट कितनी प्यारी लग रही है तुम्हारे उपर.’

आदित्य ने खुद को शीसे में देखा और बोला, “तुम दूर से देखते ही पहचान जाओगी मुझे इन कपड़ो में. आ रहा हूँ ज़रीना…अब और दूर नही रहेंगे हम.”

बालों को खूब ध्यान से सँवारा आदित्य ने. चेहरे पर अच्छे से क्रीम रगड़ ली. कोई कमी नही छोड़ना चाहता था. ये भी प्यार ही है. आप जिसे प्यार करते हैं उसके सामने सुंदर दीखने की चाहत सब में होती है.

“काश बाइक होती तो रात को भी आ सकता था तुम्हारे पास ज़रीना. बाइक उस दिन फॅक्टरी ही छ्चोड़ आया था. चलो कोई बात नही ज़रीना. घर की सफाई कर दी है तुम्हारे स्वागत में. अपना दिल बिछा दिया है घर के दरवाजे पर. जब तुम परवेश करोगी यहा तो घर का कोना कोना महक उठेगा. तुम्हे नही पता ज़रीना. घर के ताले के कारण तुम ही नही तदपि…बल्कि ये घर भी तडपा तुम्हारे लिए. जब मैं इस घर में घुसा तो इस घर की तड़प महसूस की तुम्हारे लिए. बिल्कुल ज़रीना तुम्हारा ही तो घर है ये. हमारा घर है जहा हर कोने में हमारा प्यार बसा है. और सुकून की बात ये है की यहा अब सुख शांति है. हम दोनो चैन से रहेंगे इश् घर में.”
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#26
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
आदित्य होंटो पर मुश्कान लिए घर से बाहर निकला. वो ऐसी मुश्कान थी जिस में प्यार ही प्यार बसा था. उसके घर के बिल्कुल सामने घनश्याम मोदी रहते थे. उन्होने आदित्य को देख लिया. तुरंत भाग कर आए उसके पास और बोले, “अरे आदित्य बेटा, कहा थे तुम. सब कुशल मंगल तो है. दीखाई नही दीए काफ़ी दिन से.”

“क्या आपको नही पता कि मुझ पर हमला हुवा था. मेरे घर के बाहर ही.”

“नही बेटा मुझे तो कुछ नही पता. कब हुवा ये सब.”

“एक साल पहले हुवा था.” आदित्य ने मोदी को पूरी बात बताई. मगर आदित्य ने जानबूझ कर ये नही बताया कि झगड़ा ज़रीना के कारण हुवा था.

“ओह बहुत दुख हुवा जान कर. दरअसल उन दिनो माहॉल बहुत खराब था बेटा. शाम ढलते ही घरो में घुस जाते थे हम सभी. तभी शायद किसी को पता नही चला तुम्हारे बारे में. शूकर है कि अब सब सुख शांति है यहा. बहुत बुरा वक्त देखा है हम सभी ने यहा वडोदरा में.”

“मुझे जल्दी कही जाना है अंकल बाद में मिलते हैं.” आदित्य ने कहा.

“हां बिल्कुल बेटा. अछा लगा तुम्हे इतने दिनो बाद देख कर. मिलते हैं तस्सली से तुम हो आओ. हां पर एक बात बतानी थी तुम्हे.”

“हां बोलिए.”

“अब्दुल शेख की जो बेटी थी ज़रीना…उसे अक्सर देखा मैने तुम्हारे घर में कुछ डालते हुवे. वैसे अछा लगा उसे जींदा देख कर. उसका पूरा परिवार तो ख़तम हो गया था. बस वही बची है. कुछ दिन पहले मैने उस से बात करनी चाही मगर वो मेरे आवाज़ देने पर भाग गयी.”

“ह्म्म वो डर गयी होगी अंकल…”

“वैसे तुम दोनो परिवारों में तो बिल्कुल नही बनती थी. उसका तुम्हारे घर में कुछ डालना मुझे अजीब लगा.”

“बाद में बात करूँगा अंकल. अभी बहुत जल्दी में हूँ.” आदित्य एक मिनिट भी रुकने को तैयार नही था. तड़प ही कुछ ऐसी थी.

आदित्य ने गली से बाहर आ कर एक ऑटो पकड़ा और चल दिया अहमद चाचा के स्कूल की तरफ. जैसे-जैसे स्कूल नज़दीक आ रहा था वैसे-वैसे उष्की बेचैनी बढ़ रही थी. “आखरी खत 1.04.2003 को लिखा था उसने. 1 से लेकर 21 तक कोई खत नही डाला उसने. नॉर्मली उसने हर हफ्ते एक खत डाला है. मेरी ज़रीना ठीक तो है ना भगवान. अब और कोई प्राब्लम नही चाहिए मुझे अपनी जींदगी में. मुझे पता है आप इतने निर्दयी नही हो सकते. मगर फिर भी ना जाने क्यों दिल घबरा रहा है” अनायास ही ख्याल आ गया था आदित्य को इन बातों का. दिल घबराने लगा था उसका.

ऑटो वाले ने उतार दिया आदित्य को मस्ज़िद के बाहर. “कितने पैसे हुवे भैया.”

“50 रुपीज़.”

आदित्य ने पर्स निकाल कर उसे 50 र्स पकड़ाए और उस से पूछा, “क्या आपको अहमद चाचा के स्कूल का पता है कि वो कहा हैं.”

“मुझे ऐसे किसी स्कूल का नही पता. किसी और से पूछ लीजिए.” ऑटो वाले ने कहा और चला गया वाहा से.

आदित्य ने चारो तरफ नज़र दौड़ाई. कोई स्कूल नज़र नही आया उसे वाहा. ना कोई स्कूल का बोर्ड था ना ही बच्चो का शोर. वह मस्ज़िद के पास गया और उसके बाहर खड़े एक व्यक्ति से पूछा, “भाई ये अहमद चाचा का स्कूल कहा है.”

“स्कूल तो मस्ज़िद के पिछली तरफ है. मगर अभी वो बंद है.”

“बंद है, क्यों बंद है भाई.”

“मुझे नही पता इस बारे में.” वो आदमी बोल कर वाहा से चला गया.

आदित्य को किसी अनहोनी की आशंका होने लगी. वो तुरंत गया मस्ज़िद के पीछे. एक मैदान था वाहा जिसके चारो तरफ चार दीवारी थी. 8 कमरे बने थे वाहा. मगर सभी पर ताले टँगे थे एक को छ्चोड़ कर.”

आदित्य तुरंत मुख्य द्वार खोल कर अंदर आया. कोई भी दीखाई नही दे रहा था. एक कमरा जो खुला था वो तुरंत उसकी और बढ़ा. अंदर एक कुर्सी पर एक बुजुर्ग बैठा था. उसके सामने एक टेबल रखी हुई थी.

“एक्सक्यूस मी क्या ये अहमद चाचा का ही स्कूल है.”

“हां बिल्कुल वही स्कूल है. क्या काम है तुम्हे बेटा.”

“मुझे ज़रीना से मिलना है…क्या आप बता सकते हैं कि वो कहा है.”

वो बुजुर्ग तुरंत अपनी कुर्सी से उठा और बोला, “कही तुम आदित्य तो नही”

“जी हां मैं आदित्य ही हूँ. आप कैसे जानते हैं मुझे.”

उस बुजुर्ग ने तुरंत आगे बढ़ कर आदित्य को गले लगा लिया और बोला, “अल्लाह का शूकर है कि तुम आ गये. बेटा बहुत ख़ुसी हुई तुम्हे देख कर. मैं ही हूँ अहमद चाचा और मैं ही चला रहा हूँ ये स्कूल.”

“ज़रीना कहा हैं…मुझे प्लीज़ उस से मिलवा दीजिए.”

“5 दिन इंतेज़ार करना होगा तुम्हे बेटा. ज़रीना मसूरी गयी हुई है बच्चो को लेकर. 20 दिन का टूर बनाया था बच्चो के लिए.”

“मसूरी!.” आदित्य उदास हो गया. मगर मन ही मन खुस था कि सब कुशल मंगल है.

“हां बेटा…5 दिन बाद लौट आएगी वाहा से. वो तो जाना ही नही चाहती थी. बड़ी मुश्किल से भेजा उसे.”

“आपने बताया नही कि आप कैसे जानते हैं मुझे.”

“ज़रीना तो गुम्सुम रहती थी बेटा. बताती नही थी कुछ. मगर रोज निकल जाती थी स्कूल से ये कह कर कि कुछ काम है. चिंता रहती थी मुझे उसकी. एक दिन गया उसके पीछे चुपचाप. गया तो पाया कि वो तुम्हारे घर जाती है चिट्ठी डालने. बहुत पूछने पर बताया उसने. बता कर बोली कि नही बताना चाहती थी क्योंकि कोई समझेगा नही. बेटा तुम दोनो के बारे में सुन कर यही लगा कि इंसानियत की मिशाल हो तुम दोनो. जो तुमने ज़रीना के लिए किया वो कोई आम इंसान नही कर सकता.”

“मसूरी में कहा रुके हैं वो लोग.” आदित्य ने पूछा

“क्या तुम जाना चाहते हो वाहा.”

“जी हां जाए बिना कोई चारा नही है. हम दोनो कुछ ऐसी हालत में हैं कि मिले बिना गुज़ारा नही है. आपको शायद ये पागल पन लगेगा मगर हमारी हालत ही कुछ ऐसी हो रही है.”

“समझ सकता हूँ बेटा. ज़रीना नही बताती मुझे तो कभी नही समझ पाता.”

अहमद चाचा ने उस जगह का अड्रेस दे दिया जहा ज़रीना बच्चो के साथ रुकी हुई थी.

“अछा मैं चलता हूँ चाचा जी. आपने मेरी अनुपस्थिति में ज़रीना के लिए जो भी किया उसके लिए बहुत आभारी हूँ.”

“कैसी बात करते हो बेटा. मैने कुछ नही किया. बल्कि उसके आने से स्कूल चलाने में बहुत मदद मिली मुझे. बच्चे उसके कंट्रोल में रहते हैं. बस उसी की सुनते हैं. बिल्कुल एक आइडीयल टीचर बन गयी है ज़रीना. बहुत मदद मिली मुझे उसके आने से.”

“ठीक है चाचा जी मैं चलता हूँ.”

“मसूरी जाओगे तुम अब.”

“जी हां और कोई चारा नही है.” आदित्य ने कहा और वाहा से चल दिया.

आदित्य स्कूल से घर आया और एक बेग पॅक किया. उसमें उसने कुछ कपड़े रख लिए. ज़रूरत का और समान भी रख लिया और निकल दिया वडोदरा एरपोर्ट के लिए. देल्ही की फ्लाइट ली उसने. शाम के 5 बजे देल्ही पहुँच गया वो. देल्ही से उसने मसूरी के लिए टॅक्सी की. रात के 2 बजे पहुँचा वो मसूरी. उस टाइम ज़रीना के पास जाने का कोई मतलब नही था. और रात को अड्रेस ढूँडने में भी दिक्कत थी. टॅक्सी वाले ने सॉफ बोल दिया था कि वो लाइब्ररी पॉइंट पर छ्चोड़ देगा. मसूरी का ज़्यादा कुछ नही पता था ड्राइवर को. लाइब्ररी पॉइंट पर बहुत सारे होटेल्स थे. रुक गया आदित्य एक होटेल में.

बहुत थक गया था लंबे सफ़र से आदित्य. कोमा से उठने के बाद वो बस इधर उधर भाग दौड़ में लगा था. आराम किया ही कहा था उसने. बिस्तर पर पड़ते ही नींद आ गयी आदित्य को.

“तुम आ गये आदित्य…कितनी देर कर दी तुमने. मैं अगर मर जाती तो” ज़रीना मुश्कुराइ.

“ज़रीना! ऐसा मत कहो” उठा गया आदित्य सपने से. उसने लाइट जलाई और देखा की सुबह के 5 बज रहे हैं.

“पहली बार सपने में आई तुम ज़रीना. धन्य हो गया मैं अपने भगवान को सपने में देख कर. अब हक़ीक़त में देखने का भी वक्त आ गया है ज़रीना. आज हम हर हाल में मिल कर रहेंगे.” आदित्य फ़ौरन उठ गया बिस्तर से.

क्रमशः...............................
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#27
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
एक अनोखा बंधन--14

गतान्क से आगे.....................

नहा धो कर सादे 6 बजे तक तैयार भी हो गया और निकल पड़ा होटेल से. उसने एक टॅक्सी पकड़ी लाइब्ररी पॉइंट से और निकल पड़ा केंप्टी फॉल्स की तरफ. उसके नज़दीक ही एक कस्बे में रुकी थी ज़रीना.

7 बजे पहुँच गया वो उस जगह पर. बच्चो के शोर से उसके दिल को तस्सल्ली मिली की वो सही जगह पहुँच गया है. बच्चो की आवाज़ गूँज रही थी हर तरफ. आवाज़ की तरफ उसके पाँव खींचे चले गये. एक बहुत बड़ा घर था, जिसके बाहर बहुत सारे बच्चे खेल रहे थे.

एक बुजुर्ग बैठा था कुर्सी पर और 2 लड़कियाँ बच्चो को संभालने की कोशिस कर रही थी. एक का नाम रशिदा था और दूसरी का नाम अंजुम था. बच्चे अपने स्वाभाव के अनुसार इधर उधर भाग रहे थे. आदित्य को ज़रीना कही नज़र नही आ रही थी. आदित्य हर तरफ घूर-घूर कर देख रहा था.

रशिदा की नज़र आदित्य पर पड़ी तो वो उसके पास आई “क्या काम है आपको. कब से देख रही हूँ घूर-घूर कर देखे जा रहे हैं. बच्चो को अगवा करने का इरादा है क्या आपका.”

“नही आप मुझे ग़लत समझ रहे हैं. मैं दरअसल ज़रीना को ढूंड रहा था. कहा है वो”

“ज़रीना को ढूंड रहे थे ? क्यों ढूंड रहे थे ज़रीना को. क्या काम है उस से.”

“मेरा नाम आदित्य है और मैं गुजरात से आया हूँ. प्लीज़ जल्दी से उसे बुला दीजिए”

“तुम आदित्य हो?”

“हां क्यों? आपको कोई शक है.”

“नही…हैरान हूँ आपको देख कर. ज़रीना को बहुत तडपाया आपने.”

“क्या आप ज़रीना को बुला सकती हैं.”

“धीरे बोलो. यहा किसी और को ज़रीना और तुम्हारे बारे में नही पता. मंदिर गयी है वो आज. कुछ दिनो से सोच रही थी जाने को. कह रही थी कि मंदिर में भी फरियाद लगा दू आदित्य के लिए. क्या पता वो आ जाए वापिस मेरे पास.”

“कहा है ये मंदिर.”

“पास में ही है. आप शायद दूसरे रास्ते से आए हैं वरना ज़रीना रास्ते में ही मिल जाती आपको. बस अभी थोड़ी देर पहले ही निकली थी ज़रीना. थोड़ी देर पहले आते तो मिल ही जाती आपको.”

“रशिदा कौन है ये” उनको उस बुजुर्ग की आवाज़ आई जो कुर्सी पर बैठा था. उसका नाम रहमान था.

“जाओ तुम अब. ज़रीना से बाहर मंदिर में ही मिल लो. रहमान चाचा को पता चला तो तूफान मचा देंगे.”

“थॅंक यू वेरी मच. मैं निकलता हूँ.”

आदित्य मंदिर की तरफ दौड़ा. रास्ता समझ नही आ रहा था उसे. लोगो से पूछता-पूछता पहुँच ही गया मंदिर. भोले नाथ का मंदिर था वो. जब आदित्य वाहा पहुँचा तो ज़रीना सीढ़ियाँ चढ़ रही थी मंदिर की. आदित्य देखते ही झूम उठा ज़रीना को. इस कदर खुस हुवा कि एक आदमी से टकरा गया. “ओह सॉरी भाई…माफ़ करना.”

“क्या माफ़ करना देख कर चला करो यार, मेरा परसाद गिरा दिया.”

“माफ़ करना भाई…मगर परसाद बेकार नही जाएगा. चींटियाँ खा लेंगी उसे और इसका पुन्य आपको ही मिलेगा.”

“हां ठीक है ठीक है ज़्यादा लेक्चर मत दो मुझे.”

वो आदमी बड़बड़ाता हुवा आगे बढ़ गया. आदित्य फ़ौरन मंदिर की सीढ़ियों की तरफ दौड़ा. सीढ़ियाँ चढ़ कर वो उपर आया तो देखा कि ज़रीना कुछ असमंजस में है. वो इधर उधर देख रही थी कि क्या करे. पहली बार मंदिर आई थी वो. कैसे जान सकती थी कि मंदिर में जा कर करना क्या क्या होता है. एक लेडी ने जब मंदिर की घंटी बजाई तो उसने भी उसकी देखा देखी मंदिर की घंटी बजा दी.

आदित्य ये सब देख कर पीछे ही रुक गया. ज़रीना को देख कर मध्यम-मध्यम मुस्कुरा रहा था. ज़रीना बस उस लेडी को देख कर सब कर रही थी जिसको देख कर उसने घंटी बजाई थी. जब वो लेडी भगवान के आगे हाथ जोड़ कर आँख मीच कर खड़ी हुई तो ज़रीना भी ये देख कर आँख मीच कर हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी. आदित्य ये सब देख कर लोटपोट हो रहा था. मंदिर का पुजारी भी ज़रीना को देख कर मुश्कुरा रहा था. समझ गया था वो भी कि ये लड़की पहली बार मंदिर आई है.

मगर जब ज़रीना ने आँखे मीची तो उसे पता था कि क्या करना है. उसने मन ही मन में कहा, “हे भगवान. मुझे नहीं पता की आपकी पूजा कैसे की जाती है. कुछ भी नही जानती हूँ आपके बारे में. कुछ नही पता कि कैसे दुवा करूँ आदित्य के लिए आपके सामने. यहा बस एक फरियाद ले कर आई हूँ. अपने अल्लाह को भी ये फरियाद कर चुकी हूँ पर अभी तक कुछ हासिल नही हुवा. सोचा कि आपके आगे भी फरियाद कर दूं. आप तो आदित्य के भगवान हो. वो आपको मानता है. बहुत प्यार करती हूँ मैं आदित्य से. वो भी मुझे बहुत प्यार करता है. एक छोटी सी लड़ाई हुई थी हमारी और उसके बाद हम मिल नही पाए आज तक. आदित्य का कुछ पता भी नही चल रहा है कि वो है कहा. अगर आप उसके बारे में जानते हैं तो प्लीज़ उसे भेज दीजिए मेरे पास. मेरे लिए आदित्य के बिना जीना मुश्किल है. सच कह रही हूँ भगवान अगर आदित्य नही आया तो मैं मर जाउन्गि. और इल्ज़ाम मेरे अल्लाह पर भी आएगा और आप पर भी आएगा. हम क्यों जुदा हैं समझ नही आता जबकि बहुत प्यार करते हैं हम दोनो. कुछ कीजिएगा हमारे लिए भगवान. प्लीज़….”
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#28
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
ज़रीना ने जब आँखे खोली तो वो चोंक गयी. उसे समझ नही आया कि ये खवाब है या हक़ीक़त. आदित्य बिल्कुल उसके सामने खड़ा था हाथ जोड़ कर आँखे बंद किए हुवे. उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे.

आदित्य ने जब आँखे खोली तो ज़रीना की आँखे टपक रही थी. “तुम्हारा आदित्य तुम्हारे सामने है ज़रीना. जो सज़ा देना चाहो दे दो.”

“क्यों किया तुमने ऐसा आदित्य क्यों किया. क्या कोई करता है ऐसा जैसा तुमने किया मेरे साथ” ज़रीना फूट-फूट कर रोने लगी.

आदित्य ने ज़रीना का हाथ पकड़ा और बोला, “आओ एक तरफ चलते हैं. सुबह का वक्त है काफ़ी लोग आ रहे हैं मंदिर में.”

“मेरा हाथ छ्चोड़ो तुम. नही करनी है कोई भी बात तुमसे.” ज़रीना आदित्य का हाथ झटक कर वाहा से भाग गयी और मंदिर की सीढ़ियाँ उतर कर मंदिर के सामने बने एक पेड़ का सहारा ले कर खड़ी हो गयी. सूबक रही थी बुरी तरह.

आदित्य भी तुरंत आ गया उसके पीछे और उसके कंधे पर हाथ रख कर बोला, “क्या बिल्कुल माफ़ नही करोगी अपने आदित्य को.”

“माफ़ तो करना ही पड़ेगा तुम्हे. कोई भी चारा नही है मेरे पास. इसी बात का तो फ़ायडा उठाया तुमने.”

“बहुत गुस्से में हो...”

“गुस्सा नही आएगा क्या?”

“अछा एक काम करो…देखो सामने एक बड़ा पत्थर पड़ा है. उठाओ और दे मारो मेरे सर पर. जैसे घर पर गमला मारा था वैसे ही मारो”

“मैं मार भी सकती हूँ अभी. तुम्हे पता नही कि क्या कुछ सहा है मैने तुम्हारे पीछे. सब कुछ सहा सिर्फ़ तुम्हारे लिए. और तुम बिना बताए ना जाने कहा चले गये.”

“तुम्हे क्या लगता है कि मैं बेवजह तुम्हे अकेला छ्चोड़ कर कही चला जाउन्गा.”

“हां मानती हूँ कि कोई वजह तो ज़रूर रही होगी. पर क्या इतनी बड़ी वजह थी कि तुम एक साल से गायब हो. कोई भी नही जानता था कि तुम कहा चले गये.”

“मैं कोमा में था ज़रीना.”

“क्या कोमा में!” ज़रीना हैरान रह गयी और मूड कर आदित्य की तरफ देखा. उसे आदित्य की आँखो में आँसू दीखाई दिए.

“हां मैं कोमा में था. वरना तो कोई भी ताक़त मुझे तुमसे दूर नही रख सकती थी.”

ज़रीना लिपट गयी आदित्य से और बोली, “कैसे हुवा ये सब आदित्य. किसने किया.”

“कुछ लोग तुम्हारे बारे में भला बुरा कह रहे थे. सुना नही गया मुझसे और मैं उन लोगो से भिड़ गया.” आदित्य ने ज़रीना को पूरी बात बताई.

“बस होश आते ही निकल पड़ा मैं तुम्हारी तलाश में. देखो मसूरी की हसीन वादियों में छुपी बैठी थी मेरी ज़रीना.”

“आदित्य दुबारा मत करना ऐसी लड़ाई किसी से. किसी के बोलने से क्या हो जाता है. देखो कितना तदपि हूँ मैं तुम्हारे लिए. अगर मैं तड़प-तड़प कर मर जाती तो. फिर तुम क्या करते.”

“चुप रहो…ऐसा नही बोलते. वैसे अछा लगा तुम्हे मंदिर में देख कर. मैं भी तुम्हारी मस्ज़िद जाउन्गा.”

“अगर पता होता कि मंदिर में फरियाद करने से तुम मिल जाओगे तो कब की चली आती यहा. कुछ दिन पहले अचानक ही ख्याल आया मंदिर जाने का. पर डर रही थी की मंदिर से कोई निकाल ना दे. मुझे पता भी नही था कि मंदिर में जा कर करना क्या है. मगर आज हिम्मत करके आ ही गयी. और देखो तुम मिल गये मंदिर में.”

“किसी इंसान के चेहरे पर नही लिखा होता कि वो किस धरम का है. भगवान का मंदिर हर किसी के लिए है.” आदित्य ने कहा

आदित्य ने अपनी जेब से एक चाबी निकाली और ज़रीना के हाथ में रख दी.

“ये क्या है आदित्य?”

“उसी मनहूस ताले की चाबी है जिसके कारण तुम अपने ही घर में नही घुस पाई. आओ घर चलते हैं ज़रीना. अपने घर चलते हैं. वो घर तड़प रहा है तुम्हारे लिए. अपने हाथ से खोलना उस मनहूस ताले को.”

ज़रीना ने अपनी आँखो के आँसू पोंछे और बोली, “थोड़ा सा वक्त दो मुझे बस. बच्चो से मिल लूँ एक बार. अचानक उनसे मिले बिना चली गयी तो खूब हल्ला करेंगे. संभाले नही संभलेंगे किसी से.”

“ठीक है तुम मिल आओ. मैं प्लेन की टिकेट बुक करा लेता हूँ.”

“वाउ…क्या हम प्लेन से जाएँगे.” ज़रीना झूम उठी. उसने कभी प्लेन से यात्रा नही की थी.

“हां बिल्कुल. तुम्हारे चक्कर में प्लेन में ही घूम रहा हूँ आजकल. कब तक आ सकती हो फ्री हो कर.”

“बस 2 घंटे दो मुझे…मैं यही आ जाउन्गि मंदिर में फिर हम साथ चलेंगे.”

“वैसे यही घूमते हम एक साथ. मगर अभी बस तुम्हारे साथ घर जा कर ढेर सारी बाते करने का मन है. फिर कभी आएँगे मसूरी में.”

“हां वैसे भी अभी यहा रहमान चाचा है साथ में. उन्होने देख लिया तो तूफान मचा देंगे. अभी यहा से चलते हैं. हमारा घर ही हमारे लिए मसूरी है…है ना आदित्य.”

“बिल्कुल मेरी जान…बिल्कुल”

“तुम्हारी जान बन गयी मैं अब?”

“और नही तो क्या. तुम्हारा प्यार ना होता तो शायद कभी नही उठ पाता कोमा से. तुम्हारे प्यार ने ही मुझे गहरी नींद से जगाया है. वरना तो कोमा में बरसो पड़े रहते हैं लोग.”

एक लंबी जुदाई के बाद जब दो प्रेमी मिलते हैं तो उन्हे अपना प्यार पहले से भी और ज़्यादा गहरा महसूस होता है. जुदाई प्रेमियों को अक्सर उनके प्यार की गहराई दीखा देती है. ऐसा क्यों होता है शायद कोई नही जानता हां पर अक्सर ऐसा होता ज़रूर है.

आदित्य और ज़रीना जुदाई में इतने तडपे थे कि उन्हे उनका प्यार समुंदर से भी ज़्यादा गहरा लग रहा था. उन दोनो के पाँव नही टिक रहे थे ज़मीन पर. होता है अक्सर ऐसा भी. प्यार इंसान को हवा में उड़ा देता है, पाँव ज़मीन पर नही टिक पाते फिर उसके.

ज़रीना वापिस पहुँची बच्चो से मिलने तो रशिदा उसका हाथ पकड़ कर एक तरफ ले गयी.

"आज बहुत रोनक है तेरे चेहरे पे?" रशिदा ने कहा.

"मेरा आदित्य, मेरे पास वापिस आ गया है. मेरी जींदगी का सबसे बड़ा दिन है आज."

"वैसे वो था कहा इतने दिन"

"आदित्य कोमा में था रशिदा और मैं बदनसीब ऐसे वक्त में उसके पास नही थी." ज़रीना उसे पूरी कहानी सुनाती है.

"ओह...कितना बुरा हुवा था उसके साथ"

"हां और मुझ अभागी को पता भी नही था" ज़रीना की आँखे नम हो गयी बोलते हुवे.

"अब क्या करने का इरादा है तुम दोनो का."

"हम साथ रहेंगे अब बस. रशिदा बस मैं बच्चो से मिलने आई हूँ. 2 घंटे बाद मुझे वापिस पहुँचना है. हम अपने घर जा रहे हैं रशिदा. वही घर जहा मैं रोज अपनी चिट्ठियाँ डाल कर आती थी."

"रहमान चाचा को क्या कहेंगे ज़रीना. सुबह से कयि बार पूछ चुके हैं तुम्हारे बारे में.

"मेरी मदद करो रशिदा. मुझे हर हाल में 2 घंटे में आदित्य से मिलना है."

"बिना शादी के ही साथ जा रही हो आदित्य के?"

ज़रीना मुश्कुराइ और बोली," उसका साथ ही मेरी जींदगी है

रशिदा. शादी भी कर लेंगे हम. पहले हम घर जाएँगे फिर तैय करेंगे कि आगे क्या करना है."

"चल तू ज़्यादा देर मत कर बच्चो से मिल और चुपचाप निकल जा. मैं रहमान चाचा को संभाल लूँगी."

आदित्य ने एक एजेंट से देल्ही से वडोदरा की टिकेट बुक करवा ली. अगले दिन सुबह 10 बजे की टिकेट मिली. मसूरी से देल्ही जाने के लिए उसने टॅक्सी का इंटेज़ाम कर लिया. सारे अरेंज्मेंट करने के बाद ठीक 2 घंटे बाद वो मंदिर पहुँच गया.

क्रमशः...............................
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#29
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
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गतान्क से आगे.....................

आदित्य थोड़ा पहले पहुँच गया. वो मंदिर के बाहर उसी पेड़ से कंधा लगा कर खड़ा हो गया जहा वो 2 घंटे पहले ज़रीना के साथ खड़ा था.

जब उसने ज़रीना को आते देखा तो एक प्यार सी हँसी बिखर गयी उसके होंटो पे. उसकी निगाहे बस ज़रीना पर ही फिक्स हो गयी.

ज़रीना आदित्य को अपनी तरफ एक-तक देखते हुवे शर्मा गयी. नज़रे झुकानी पड़ गयी उसे आदित्य के कारण. जब वो पास आई तो आदित्य से बोली, "ऐसे क्यों देख रहे थे मुझे"

"क्यों क्या मैं अपनी जान को देख नही सकता?"

"देख सकते हो पर टकटकी लगा कर देखता है क्या कोई." ज़रीना ने कहा.

"मैं तो अपनी ज़रीना को ऐसे ही देखूँगा" आदित्य ने कहा.

"इस बॅग में क्या है?" ज़रीना की नज़र आदित्य की पीठ पर टँगे बॅग पर गयी.

"है कुछ समान. हाथ आगे करो"

"क्यों क्या बात है. और तुमने क्या छुपा रखा है अपने हाथ में पीछे"

"हाथ करो ना आगे ज़रीना प्लीज़"

"अछा लो बाबा" ज़रीना ने हाथ आगे कर दिए.

आदित्य ने एक पॉलितेन बॅग ज़रीना के हाथ पर रख दिया.

"क्या है ये?"

"खोल कर देखो" आदित्य ने मुश्कूराते हुवे कहा.

"वाउ जीन्स...तुम मेरे लिए जीन्स लाए." ज़रीना की आँखे चमक उठी.

"हां, पसंद है ना तुम्हे बहुत. यही पहन कर चलना"

"लेकिन इसके उपर क्या पहनूँगी मैं."

"उसका भी इंटेज़ाम है." आदित्य ने अपनी पीठ से बॅग उतारा और उसे खोल कर एक ब्लू कलर का टॉप ज़रीना को थमा दिया.

"वाउ...तुम्हारी चाय्स तो बहुत अछी है."

"जीन्स मुंबई में खरीदी थी. टॉप यही से लिया." आदित्य ने कहा.

"पर पहनूँगी कहा ये कपड़े. कोई जगह तो होनी चाहिए."

"ओह...इस बात पर ध्यान नही दिया मैने. जीश होटेल में रुका था वाहा से चेक आउट भी कर लिया."

"चलो कोई बात नही. मुझे जल्दी ले चलो घर. मैं तड़प रही हूँ उस ताले को खोलने के लिए."

"यहा से हम देल्ही जाएँगे. एक टॅक्सी बुक करा ली है. रात देल्ही में उसी होटेल में रुकेंगे जहा पीछले साल रुके थे. कल सुबह 10 बजे की फ्लाइट है."

"ह्म्म ठीक है."

"चलें मेरी जान. लेट हो रहे हैं"

"हां चलो...पर टॅक्सी कहा है."

"टॅक्सी थोड़ी दूर खड़ी है. यहा तक नही आ सकती थी. आओ चलें." आदित्य ने ज़रीना का हाथ थाम लिया.

"मेरा हाथ क्यों पकड़ लिया. छ्चोड़ो कोई देख लेगा." ज़रीना ने कहा.

"देख लेने दो. अपनी जान का हाथ थामा है किसी गैर का नही."

"एक बात शन लो. ये जीन्स उस जीन्स के बदले में है जो तुमने मेरे उपर कीचड़ उछाल कर गंदी कर दी थी. अभी बस हिसाब बराबर हुवा है."

"पता है मुझे. उस दिन के कारण जीन्स ड्यू थी मुझ पर. तुम कहोगी तो हमारी फॅक्टरी में सिर्फ़ तुम्हारे लिए जीन्स बनेगी."

"अछा" ज़रीना ने हंसते हुवे पूछा.

"हां." आदित्य ने भी हंसते हुवे कहा.

कुछ ही देर में वो टॅक्सी तक पहुँच गये और बैठ गये एक दूसरे के साथ.

"ज़रीना एक ज़रूरी बात थी. कब से दिमाग़ में घूम रही है. पर तुमसे बाते करते हुवे इतना खो जाता हूँ कि वो बात ध्यान से निकल जाती है."

"बोलो आदित्य."

"मैं कोमा से उठ कर तुम्हारी मौसी के घर गया तो उन्होने बताया कि तुम गायब हो. एमरान का भी कुछ आता पता नही किसी को. क्या बताओगि मुझे कि क्या हुवा था उस दिन. और एमरान कहा है?"

"आदित्य घर चल कर बात करें" ज़रीना ने कहा.

आदित्य समझ गया कि ज़रीना ड्राइवर के सामने बात नही करना चाहती.

टॅक्सी प्यार में डूबे दो दीवानो को लिए देल्ही की ओर बढ़ रही थी. रास्ते में एक ढाबा दीखाई दिया तो आदित्य ने ड्राइवर से कहा," भैया रोक दो इस ढाबे पर."

ड्राइवर ने ढाबे पर कार रोक दी.

"आओ ज़रीना कुछ खा लेते हैं."

"हां बिल्कुल...मुझे बहुत भूक लगी है."

बैठ गये एक टेबल पर आदित्य और ज़रीना.

"चिकन कढ़ाई खाएँगे आज हम दोनो."

"क्या पागल हो गये हो तुम. मैं नही खाउन्गि. मैने लिखा था ना तुम्हे कि मैने नोन-वेज छ्चोड़ दिया है"

"हां तो मैने भी तो बताया था कि मैने नोन-वेज शुरू कर दिया है."

"आदित्य प्लीज़. कोई ज़रूरत नही है तुम्हे ये सब करने की. अब खाने के उपर कोई बहस नही चाहती मैं. उस दिन की लड़ाई के बाद आज मिले हैं हम. कुछ सीखना चाहिए हमें इन बातो से."

"मज़ाक कर रहा हूँ जान.हां अब हम इस बात पर लड़ाई नही करेंगे. अछा तुम ऑर्डर दो."

ज़रीना ने मिक्स वेज और दाल मखनि ऑर्डर कर दी.
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05-07-2020, 02:26 PM,
#30
RE: Incest Kahani एक अनोखा बंधन
"ज़रीना जब तक खाना आए तब तक तुम मेरे सवाल का जवाब दे सकती हो."

ज़रीना ने आस पास नज़र दौड़ाई.

"चिंता मत करो कोई नही सुनेगा हमारी बातें." आदित्य ने कहा.

"सुनो फिर" ज़रीना ने कहा.

ज़रीना के शब्दो में:-

"मैं मौसी के घर से निकल कर छुपते-छुपाते रेलवे पहुँच गयी. मुझे बहुत डर लग रहा था. मुझे एमरान का डर था. जब ट्रेन आई तो चुपचाप चढ़ गयी मैं. मुझे लगा ख़तरा टल गया है. मैं टाय्लेट करने के लिए उठी. सोचा फ्रेश हो कर आराम से सो जाउन्गि अपनी सीट पर. लेकिन जब मैं टाय्लेट पहुँची तो मेरे होश उड़ गये. एमरान खड़ा था वाहा. वो शायद दूसरे डिब्बे से आया था. मुझे देखते ही वो आग बाबूला हो गया.

"मेरी मुहब्बत को भुला कर उस काफ़िर के साथ ब्याह रचाने का प्लान है तेरा हा. तुझे जींदा नही छ्चोड़ूँगा मैं. देखता हूँ कैसे जाती है तू उस काफ़िर के पास."

उसने मेरा गला दबोच लिया आदित्य. मेरा दम घुटने लगा था. मेरी आँखो के आगे अंधेरा छाने लगा था. बिल्कुल दरवाजे के पास ही दबोच रखा था उसने मुझे. मगर आदित्य मुझे उसके हाथो मरना मंजूर नही था. मेरी जींदगी पर तो तुम्हारा हक़ है ना आदित्य.

मैने पूरा ज़ोर लगा कर उसे पीछे ढकैला. किसी को कुछ नही पता था कि वाहा क्या हो रहा है. मैं अकेली जूझ रही थी उस से.

मैने उसे पूरा ज़ोर लगा कर इतनी ज़ोर से धक्का दिया कि वो लूड़क गया और वो संभाल नही पाया. केले का छिलका पड़ा था वाहा उस पर शायद पाँव पड़ गया था उसका. वो…वो…ट्रेन से बाहर फिसल गया आदित्य. मैं बस देखती रही. सब कुछ इतना अचानक हुवा कि मैं कुछ भी नही कर पाई. जब तक मैं आगे बढ़ कर उसे संभालने की कोशिस करती तब तक वो ट्रेन से नीचे गिर चुक्का था. ट्रेन फुल स्पीड पर थी. मुझे नही पता कि क्या हुवा होगा एमरान का. शायद…शायद वो…” ज़रीना सूबक पड़ी.

“बस….बस…जो हुवा उसके लिए खुद को दोषी मत मानो. सब होनी का खेल है.”

“पर मैने उसे धक्का दिया था आदित्य.”

“तुम अपने आप को बचा रही थी. तुम्हारी जगह कोई भी होता तो ऐसा ही करता. हां मुझे भी दुख है एमरान के लिए. उसकी बहन से मिल कर आया था मैं. उसका घर बिखर गया है.”

“मैं कातिल तो नही हूँ ना?”

“पागल हो क्या. किसी और को तो नही बताई तुमने ये बात”

“नही बस आज तुम्हे बताई है. इस बात के कारण मैने मौसी को भी कोई खत नही लिखा. डर था कि कही मुझे खूनी ना करार दिया जाए.”

“भूल जाओ सब कुछ. जो होना था सो हो गया. लो खाना आ गया. आँसू पोंछ लो अपने और खाने का आनंद लो. भगवान सब भली करेंगे. वैसे तुम यहा जीन्स पहन सकती हो. लॅडीस टाय्लेट में जाओ और चेंज करके बाहर आ जाओ.”

"देखती हूँ. पहले खाना खा लूँ."

आदित्य को सब कुछ बता कर ज़रीना का मन हल्का हो गया. मगर वो अंदर ही अंदर इस बात से परेशान हो रही थी कि उसके कारण एमरान का परिवार बिखर गया.

“ज़रीना खाना ठंडा हो रहा है, छ्चोड़ो भी अब, जो होना था सो हो गया. मुझे भी दुख है…पर अब हम कर भी क्या सकते हैं.”

“मेरे कारण एमरान के घर में तबाही आ गयी. मैं पूरा साल इस बात को लेकर परेशान रही हूँ कि मेरे कारण एमरान ट्रेन से नीचे गिर गया. अब जब तुमने बताया कि एमरान गायब है उसी दिन से तो अब तो ये पक्का ही है कि वो अब इस दुनिया में नही है. मैने उसे मार दिया आदित्य. ये ठीक नही हुवा.”

“बहुत कुछ हुवा हम दोनो के साथ ज़रीना जो की ठीक नही था. मेरे पेरेंट्स गोधरा कार्नेज में मारे गये, क्या वो ठीक था. उसके बाद दंगे भड़क गये और तुमने अपने पेरेंट्स और छोटी बहन को खो दिया..क्या वो सब ठीक था.”

“वो सब तो ठीक है पर..”

“क्या पर, हम दोनो का प्यार हुवा और फिर हम छोटी सी बात पर लड़ कर जुदा हो गये…क्या वो सब ठीक था.”

“तुम नही समझ सकते आदित्य, मेरी आँखो के सामने गिरा था वो ट्रेन से नीचे और मैं कुछ भी नही कर पाई थी.”

“तो कर लेती कुछ…बचा लेती उसे…वो तुम्हारा शुक्रिया नही करता बल्कि तुम्हे मार देता. उसकी इंटेन्षन बिल्कुल ठीक नही थी. हां मैं मानता हूँ कि जो भी हुवा ग़लत हुवा. पर उस वक्त तुम कर भी क्या सकती थी. अपनी जान बचाने के लिए तुमने उसे धक्का दिया. तुम्हारी जगह कोई भी होता तो वो ऐसा ही करता. अब वो फिसल गया ट्रेन से तो इसमें तुम्हारी ग़लती नही है.”

“अछा छ्चोड़ो आदित्य चलो खाना खाते हैं…सच में ठंडा हो रहा है खाना.” ज़रीना ने मुश्कूराते हुवे कहा.

“आ गयी याद खाने की अब…” आदित्य भी मुश्कुरा दिया.

“हां चलो जल्दी खाते हैं. मेरे ख्याल से काफ़ी लंबा सफ़र बाकी है अभी.”

“हां अभी तो सारा ही सफ़र बाकी है. लेकिन खाना आराम से खाते हैं.” आदित्य ने कहा.

क्रमशः...............................
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