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RE: Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)
"बेकार में......उूउउफफफफ्फ़.........मेरी जगह तू होता तो तुझे मालूम चलता.....अभी भी कितना दुख रहा है....,धीरे कर" रेखा बोली।
"माँ अब तो चला गया है ना पूरा अंदर.......बस कुछ पलों की देर है देखना तू खुद अपनी गान्ड मेरे लौडे पर मारेगी" विजय अपनी की माँ की पीठ चूमता बोला.
"धीरे पेल बेटा.......हाए बहुत दुख रही है मेरी गान्ड......." रेखा सिसिया रही थी.उसकी माँ का तेल वाला सुझाव वाकई मे बड़ा समझदारी वाला था. तेल से लंड आराम से अंदर बाहर फिसलने लगा था. जहाँ पहले इतना ज़ोर लगाना पड़ रहा था लंड को थोड़ी सी भी गति देने के लिए अब वो उतनी ही आसानी से अंदर बाहर होने लगा था. हालाँकि माँ ने विजय को धीरे धीरे धक्के लगाने के लिए कहा था मगर पिछले आधे घंटे से किए सबर का बाँध टूट गया और विजय ना चाहता हुआ भी माँ की गान्ड को कस कस कर चोदने लगा.
"हाए उउउफफफफफफफ्फ़.........आआआहज्ज्ज्ज मार...डााअल्ल्लीीगगगघाा क्या आआअ......हीईीईईईई.....ओह माआआअ.......,,हे भगवान......मेरी गान्ड....,उफफफफफफफ़फ्ग"
रेखा चीख रही थी, चिल्ला रही थी मगर अपने बेटे को रुकने के लिए नही कह रही थी. सॉफ था उसे इस बेदर्दी में भी मज़ा आ रहा था. अगर रूम साउंड प्रूफ नहीं होता तो पड़ोसी ज़रूर उसकी चिल्लाते हुए सुन लेते.वैसे भी माँ रोकती तो भी विजय रुकने वाला नही था. दाँत भींचे विजय माँ की गान्ड में पेलता जा रहा था और वो पेलवाती जा रही थी.
"हाए अब बोल साली कुतिया......मज़ा आ रहा है ना गान्ड मरवाने में....."विजय अपनी माँ की गांड पर थप्पड़ मारते हुए बोला।
"आ रहा है....हाए बहुत मज़ा आ रहा है....ऐसे ही ज़ोर लगा कर चोदता रह.......हाए मार अपनी माँ की गान्ड"
फाड़ डाल मेरे बेटे।रेखा बोली।
"ले साली कुतिया .....ले....यह ले.........मेरा लॉडा अपनी गान्ड में" विजय पूरी रफ़्तार पकड़ते हुए अपनी माँ के चुतड़ों पर तड़ तड़ चान्टे मारने शुरू कर दिए.
"हाई....उूुुउउफफफ्फ़...,मार ..,हरामी....मार अपनी माँ की गान्ड....मार अपनी माँ की गान्ड.......,हाए मार मार कर फाड़ डाल इसे...,उफफ़गगगगगग...हे भगवान..........ले ले मेरी गान्ड.......ले ले मेरे लाल...," रेखा अब पूरी गरम हो चुकी थी।
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RE: Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)
विजय कइ थप्पड़ों से उसकी माँ के चुतड लाल सुर्ख होने लगे. उधर फटक फटक विजय का लौडा भी अपनी माँ कई गान्ड फाड़ने पर तुला हुआ था. उसकी माँ तो लगता था जैसे ऐसी चुदाई की भूखी थी, यह उसका विजय ने नया रूप देखा था. उसकी इच्छाएँ इतने समय तक दबी रहने के कारण हिंसक रूप धारण कर चुकी थी. उसे चुदाई में गालियाँ अच्छी लग रही थी।
आह साली तू तो रंडियो की तरह चिल्ला रही है । साली कुतिया की तरह गांड मरवा रही है।कैसा लग रहा है तुझे अपने बेटे का लंड।कितनी गरम और टाइट गांड है तेरी माँ।विजय बोला।
बहुत मज़ा आ रहा बेटे और जोर जोर से पेल मेरी गांड में। तेरा लंड कितना मज़ा दे रहा है।जी चाहता है तेरे लंड को चूम लूँ। रेखा नशीले अंदाज़ में बोली।
ये सुनकर विजय ने अपना लंड कुतिया बनी अपनी की गांड से निकाल लिया।विजय के लंड पर उसकी माँ के गांड का पीला रस लगा हुआ था। विजय ने जल्दी से अपनी माँ के मुँह में अपना गन्दा लंड पेल दिया।जिसे उसकी माँ चाट चाट के साफ करने लगी।वासना के नशे में विजय की माँ सच में एक कुतिया बन गई थी।
जब विजय का लंड पूरा साफ हो गया तो उसने फिर से कुतिया बनी अपनी माँ के गांड में एक झटके में ही पूरा 9 इंच का लंड पेल दिया।उसकी माँ दर्द से चिल्लाने लगी।
आह बेटे तुझे जरा भी सबर नहीं है आराम से नहीं पेल सकता क्या। आखिर मैं तेरी माँ हूँ मेरे लाल।
विजय ने अपनी माँ के गांड पर जोर से थप्पड़ मारकर बोला। चुप साली रंडी तू मेरी कुतिया है तुझे तो मैं किसी कुत्ते से चुदवाऊँगा।तब तू असली कुतिया बनेगी साली रंडी ।
विजय ने 1 घंटे तक अपनी माँ को किसी कुतिया की तरह चोदा। रेखा 4 बार झड़ चुकी थी।फिर जब विजय
झड़ने को हुआ तो उसने अपना लंड अपनी माँ की गांड से निकाला और अपना सारा वीर्य अपनी माँ के मुँह पर गिराने लगा।जिसे उसकी माँ उंगलियो में लेकर चाटने लगी।उसकी माँ वीर्य में भीगी हुई पोर्नस्टार के जैसी दिख रही थी।
उसकी माँ की गाँड फट गई थी।चूत भी सूज गई थी।मुँह का तो बुरा हाल था। चूतड़ों पर थप्पड़ों के निशान पड़ चुके थे।विजय ने अपनी माँ के निप्पल और चूचियों पर भी दांत के निशान बना दिए थे।
अब उसे विजय की मार भी अच्छी लग रही थी, विजय का उससे जानवरों की तरह पेश आना अच्छा लगता था. बल्कि जितना विजय बेदरद हो जाता उतना ही उसका आनंद बढ़ जाता, इस बात को जान कर विजय उसके साथ कोई नर्मी नहीं बरत रहा था, तब भी जब विजय उसकी गान्ड मार रहा था या तब जब रात के आख़िरी पहर के समय में विजय उसे छत पर रेलिंग के साथ घोड़ी बनाकर चोद रहा था । ना आने वाले दिनो में जब कभी विजय उसे किचन में, तो कभी घर में अपने पिता के बेड पर अपनी माँ को अलग अलग आसनो मे चोदता. वो हर वार विजय का पूरा साथ देती और चुदाई के समय विजय की किसी बात पर एतराज ना करती।
चुदाई के बाद दोनों फिर से अपने पुराने रूप मे आ जाते जिसमे वो विजय की माँ होती और वह उसका बेटा. हालाँकि उन दोनो को चुदाई में बेहद आनंद आता था मगर फिर भी उनके बीच रोजाना चुदाई नही होती थी. सप्ताह में एक दो बार, ज़्यादा से ज़्यादा. विजय ने अपना ध्यान कभी भी पढाई से भटकने नही दिया था और उसकी माँ भी इस बात का पूरा ख़याल रखती थी।समय मिलने पर वह कोमल की भी चुदाई कर लेता था ।इधर कंचन अपने पिता और दादा के साथ बीजी थी।
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RE: Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)
कुछ दिन बाद की बात है आज संडे था तो सभी की छुटी थी।सभी ने नाश्ता किया और अपने अपने रूम में चले गए।रेखा को कल से ही मासिक शुरू हो गया था इसलिए मुकेश को चुदाई करने को नहीं मिला था।उसने अपनी बीबी से कंचन को चोदने की परमिसन ले लिया था।
जब सभी सोने चले गए तो मुकेश भी धीरे से कंचन के रूम में घुस गया।कंचन लेटी हुई थी।अपने पिताजी को अपने रूम में घुसकर दरवाजा बंद करते देखकर वह समझ गई की उसके पिताजी उसे चोदने के लिए ही आये है।
मुकेश धीरे से बेड पर अपनी बेटी कंचन के पास लेट गया और अपनी बेटी को बाहों में भरने लगा।
जब मुकेश ने कंचन के रसीले होंठो को चूसना शुरू किया तो कंचन भी अपने पिताजी का साथ देने लगी क्योंकि वह भी कई दिनों से प्यासी थी।क्योंकि विजय अब ज्यादा ध्यान कोमल पर ही दे रहा था।
मुकेश ने जल्दी जल्दी अपनी बेटी के सभी कपडे निकाल दिए और अपने कपडे भी निकाल दिए।अब कंचन पूरी नंगी थी।
मुकेश-आह मेरी गुड़िया।कितनी सुन्दर है तू।तेरे होंठ कितने रसीले है।जी चाहता है इनका सारा रस चूस लूँ और दिन रात तेरी चूत चोदता रहूँ।
फिर कंचन ने अपने पिताजी से कहा– पिताजी, अपनी मासूम बच्ची को चोद दो, फक मी प्लीज! आज बना लो अपनी बेटी को अपनी रखैल!
उसके पिता यह सुन कर पागल हो गए और कंचन को पकड़ लिया और उसके होंठों पर चुम्बन करने लगे।
किस करते करते वो कंचन के बूब्स दबा रहे थे।
काफ़ी देर तक दोनों की किसिंग चलती रही तब उसके पिता ने बोला– चल अब मेरा लंड चूस बेटी।
बाप बेटी दोनों 69 की पोजीशन में आ गए और एक दूसरे को चूसने लगे। चूसते चूसते काफी टाइम हो गया तो कंचन ने अपने पापा से बोला– पिताजी, अपनी बेटी को चोदो अब… प्लीज फक मी, अब और कण्ट्रोल नहीं हो रहा है मुझसे!
उसके पिता भी कम चालाक नहीं थे, वो कंचन को खूब तड़पा रहे थे और उसकी चिकनी गीली चूत में उंगली पेल रहे थे। कंचन से तो रहा ही नहीं जा रहा था, वह जोर जोर से सिसकारियाँ ले रही थी और बोल रही थी- आहाहह अहह अहहः अहहाह उऔ औऔऔअ उईईईइ फक मी प्लीज अहहहः अहहाह प्लीज अब तो लंड डाल दो… प्लीज… फक मी हार्ड… मेरी चूत बहुत प्यासी है पिताजी… प्लीज … और मत तड़पाओ…
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RE: Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)
‘पिताजी चोदो मुझे… जैसे मेरी मम्मी को रंडी की तरह चोदते हो!’ कंचन कुछ भी बक रही थी, उसकी चूत में आग सी लगी हुई थी।
पिताजी ने अपना 7 इंच का लंड का टोपा कंचन की चूत पर रखा और एक जोरदार झटका मारा और उनका टोपा अन्दर चला गया।
‘ले मादरचोद रंडी की औलाद… ले मेरे लंड को अन्दर तक ले!’ कहते हुए मुकेश ने एक और जोरदार झटका मारा और इस बार उसका आधा लंड कंचन की चूत के अन्दर घुस गया।
कंचन की तो मज़े से हालत ख़राब हो गई थी… उसे बहुत जबरदस्त मज़ा आ रहा था, कंचन ने अपने पिता से कहा– पापा, प्लीज इसी तरह पेलो… मैं जल्दी ही झड़ जाऊँगी… बहुत मज़ा आ रहा है मुझे!
कंचन को बहुत ज्यादा मज़ा आ रहा था।
उसके पापा अब किस करने लगे और कुछ देर रुक गए, उनका आधा लंड ही कंचन की चूत में था।
कुछ देर बाद कंचन को और मज़ा आने लगा और कंचन का शरीर शांत सा हुआ, मुकेश ने फिर से एक और जोर का झटका मार दिया और उनका पूरा लंड कंचन की चूत में घुसता चला गया… इस बार कंचन के मुख से हल्की सी चीख निकली और उसे थोडा दर्द होने लगा लेकिन इस बार उसके पापा नहीं सुन रहे थे, वो अपने लंड को दनादन अपनी बेटी की चूत में पेले जा रहे थे।
कुछ देर बाद कंचन को भी मज़ा आने लगा और वह भी गांड उठाकर अपने पिता का साथ देने लगी थी, पूरे कमरे में दोनों की चुदाई की खच खच फच फच की आवाज़ें आ रही थी।
करीब पंद्रह मिनट के बाद, मुकेश झड़ने जा रहा था और कंचन तब तक दो बार झड़ चुकी थी।
फिर कंचन ने अपने पिता से कहा– बाहर ही झड़ना पिताजी नहीं तो मैं प्रेग्नेंट हो जाऊँगी।
लेकिन मुकेश ने अपने लंड का माल कंचन के मुँह में डाल दिया जिसे कंचन धीरे धीरे चाट गई और बाप बेटी दोनों वहीं बिस्तर पर लेट गए।
आधे घंटे बाद दोनों फिर से तैयार हो गए थे।
कंचन के पापा के हाथ फिर से उसके चिकने गोरे चूतड़ों पर फ़िसलने लगे।
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RE: Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)
उसके पिताजी धीरे से कंचन की पीठ से चिपक कर लेट गये… उनका लंड खड़ा था… उसका स्पर्श कंचन की चूतड़ों की दरार पर हो रहा था, उसके सुपारे का चिकनापन कंचन को बड़ा प्यारा लग रहा था।
मुकेश कंचन की चूचियों को इतनी कसकर मसल रहे थे जैसे उखाड़ ही लेंगे। वह कंचन की चूचियों को मसलते हुए बोले- बेबी, कोल्ड क्रीम और टॉवल तो लेकर आ!
‘पिताजी, क्रीम क्यों?’
‘अरे लेकर आ… तब बताऊँगा!’
कंचन क्रीम और टॉवल ले बैडरूम में पहुंची, कंचन बहुत खुश थी, जानती थी कि उसके पिता ने क्रीम क्यों मंगाई है।
कमरे में पहुंची तो पिताजी बोले- आओ बेटी।
कंचन गुदगुदाते मन से अपने पिता के पास बैठ गई, पिताजी कंचन के पीछे आये और अपने दोनों हाथ उसकी कड़ी चूचियों पर लाये और दोनों को प्यार से
दबाने लगे। अपने पिताजी के हाथ से चूचियों को दबवाने में कंचन को बड़ा मजा आ रहा था।
मुकेश अपनी बेटी कंचन की कड़ी चूचियों को मुट्ठी में भरकर दबा रहे थे साथ ही दोनों घुंडियों को भी मसल रहे थे, कंचन मस्ती से भरी मजा ले रही थी।
तभी उसके पिताजी ने पूछा- बेटी, तुमको अच्छा लग रहा है?
‘हाय पिताजी, बहुत मजा आ रहा है।’
मुकेश ने कंचन की चूचियाँ मसलते हुए उसे कुतिया की अवस्था में आने को कहा तो कंचन को यकीन हो गया कि आज पिताजी अब लंड उसकी गांड में घुसाएँगे।
कंचन कुतिया बन गई, पीछे से आकर उसके पिता ने कंचन के संतरे जोर से पकड़ लिए और लंड उसकी गांड की दरार पर दबा दिया।
कंचन ने लंड को गांड ढीली कर के रास्ता दे दिया और उसके पिता के लंड का सुपारा एक झटके में छेद के अन्दर था।
‘पिताजी… हाय रे… मेरी गांड मार दी… फ़ाड़ दिया मेरी पिछाड़ी को…’ कंचन के मुख से सिसकारी निकल पड़ी।
उसी समय अनिल अपने रूम से कंचन के रूम की तरफ जा रहा था।उसका मन भी कंचन को चोदने का था क्योंकि उसकी बहु को मासिक शुरू हो गया था। तभी उसे कंचन की चीख सुनाई दी।वह खिड़की दी दरार से अंदर देखने लगा।जहाँ मुकेश अपनी बेटी कंचन की गांड मार रहा था।कंचन की गांड चुदाई देखकर अनिल बहुत गरम हो गया और अपना लंड सहलाते हुए कंचन की लाइव चुदाई देखने लगा।
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RE: Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)
मुकेश का लंड अब कंचन की गांड की गहराइयों में उसकी सिसकारियों के साथ उतरता ही जा रहा था।
‘कंचन बेटी जो बात तुझमें है, तेरी मम्मी में नहीं है!’ पिताजी ने आह भरते हुए कहा।
लंड एक बार बाहर निकल कर फिर से अन्दर घुसा जा रहा था, हल्का सा दर्द हो रहा था। पर पहले भी कंचन गांड चुदवा चुकी थी।
अब मुकेश ने अपनी उंगली कंचन की चूत में घुसा दी थी और दाने के साथ उसकी चूत को भी मसल रहे थे। कंचन आनन्द से सराबोर हो गई, उसकी मन की इच्छा पूरी हो रही थी…।
‘कुछ मत बोलो पिताजी, बस चोदे जाओ… हाय कितना मज़ा आ रहा है… चोद दो अपनी बच्ची की गांड को…’ कंचन बेशर्मी पर उतर आई थी।
मुकेश का मोटा लंड तेजी से कंचन की गाँड में उतरता जा रहा था… अब मुकेश ने बिना लंड बाहर निकाले कंचन को उल्टी लेटा कर उसके भारी चूतड़ों पर सवार हो गये और हाथों के बल पर शरीर को ऊँचा उठा लिया और अपना लंड कंचन की मतवाली गाँड में पेलने लगे… उनका ये फ्री स्टाईल चोदना कंचन को बहुत भाया।
‘पिताजी, मेरी चूत का भी तो ख्याल करो या बस मेरी गांड ही मारोगे?’ कंचन ने अपने बाप से कहा।
‘मेरी मासूम बच्ची, मेरी तो शुरू से ही तुम्हारी गांड पर नजर थी… इतनी प्यारी सी गांड… उभरी हुई और इतनी गहरी… हाय मेरी जान… मेरा असल मकसद तेरी मासूम गुलाबी चूत और गांड चोदना ही था।’मुकेश ने अपनी बेटी की गांड मारते हुए कहा।
मुकेश ने लंड बाहर निकाल लिया और कंचन की चूत को अपना निशाना बनाया- जान… चूत तैयार है ना, ले ये गया मेरा लंड तेरी चूत में… हाय इतनी चिकनी और गीली…’ और उसका लंड पीछे से ही कंचन की चूत में घुस पड़ा।
एक तेज मीठी सी टीस चूत में उठी, चूत की दीवारों पर रगड़ से मेरे मुख से आनन्द की सीत्कार निकल गई।
‘हाय रे… पिताजी मर गई… मज़ा आ गया… और करो….’ उसके पिताजी का लंड गाँड मारने से बहुत ही कड़ा हो रहा था… उसके पिताजी अपने चूतड़ खूब उछाल उछाल कर कंचन की चूत चोद रहे थे।
कंचन की चूचियाँ भी बहुत कठोर हो गईं थीं, उसने पिताजी से कहा- पिताजी, मेरी चूचियाँ जोर से मसलो ना… खींच डालो!’
उसके पिताजी तो चूचियाँ पहले से ही पकड़े हुए थे पर हौले-हौले से दबा रहे थे। कंचन के कहते ही उन्हें तो मज़ा आ गया, उसके पिता ने कंचन की दोनों चूचियाँ मसल के रगड़ के चोदना शुरू कर दिया।
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RE: Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)
कंचन के दोनों चूतड़ों की गोलाईयाँ उसके पापा के पेड़ू से टकरा रहीं थीं… लंड चूत में गहराई तक जा रहा था… कंचन घोड़ी बनी हुई थी । उसके पिता घोड़े की तरह धक्के मार मार कर अपनी बेटी को चोद रहे थे।
कंचन के पूरे बदन में मीठी-मीठी लहरें उठ रहीं थीं,वह अपनी आँखों को बन्द करके चुदाई का भरपूर आनन्द ले रही थी, उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी।
मुकेश के भी चोदने से लग रहा था कि मंज़िल अब दूर नहीं है, उनकी तेजी और आहें तेज होती जा रही थी… मुकेश ने अब अपनी बेटी के चूचुक जोर से खींचने चालू कर दिये थे। चूचक खिंचने और मसलने के साथ साथ मुकेश जोर जोर से अपनी बेटी को पेल रहा था।अब कंचन की चूत और गांड दोनों का छेद पूरा खुल गया था। मुकेश अब पूरा लंड बाहर निकाल लेता और कभी अपनी बेटी की गांड में तो कभी चूत में एक ही झटके में पूरा जड़ तक पेल देता। फिर कस कस के पेलने लगता।
आधे घंटे तक मुकेश अपनी बेटी को कुतिया बनाकर उसकी चूत और गांड मारता रहा।कंचन भी अपनी गांड पीछे धकेल के चुदवा रही थी।
कंचन भी अब चरम सीमा पर पहुँच रही थी, उसकी चूत ने जवाब देना शुरू कर दिया था, उसके शरीर में रह रह कर झड़ने जैसी मिठास आने लगी थी।
अब कंचन अपने आप को रोक ना सकी और अपनी चूत और ऊपर दी, बस उसके पिता के दो भरपूर लंड के झटके पड़े कि चूत बोल उठी कि बस बस… हो गया- पिताजी ऽऽऽऽऽ बस… बस… मेरा माल निकला… मैं गई… आऽऽई ऽऽऽअऽ अऽऽऽआ…
कंचन ज़ोर लगा कर अपनी चूचियाँ उनसे छुड़ा ली, बिस्तर पर अपना सर रख लिया और झड़ने का मज़ा लेने लगी।
उसके पिता का लंड भी आखिरी झटके लगा रहा था।
फिर आह… उनका कसाव कंचन के शरीर पर बढ़ता गया और उन्होंने अपना लंड बाहर खींच लिया।
झड़ने के बाद कंचन को थोड़ी तकलीफ़ होने लगी थी… थोड़ी राहत मिली… अचानक उसके चूतड़ और उसकी पीठ उसके पिताजी के लंड की फ़ुहारों से भीग उठी… उसके पिताजी झड़ रहे थे, रह रह कर कभी पीठ पर वीर्य की पिचकारी पड़ रही थी और अब कंचन के चूतड़ों पर पड़ रही थी।
उसके पिताजी लंड को मसल मसल कर अपना पूरा वीर्य निकाल रहे थे।
जब पूरा वीर्य निकल गया तो मुकेश ने पास पड़ा तौलिया उठाया और कंचन की पीठ को पौंछने लगे- कंचन बेटी, तुमने तो आज मुझे मस्त कर दिया!
पिताजी ने अपनी बेटी के चेहरे को किस करते हुए कहा।
कंचन चुदने की खुशी में कुछ नहीं बोली पर धन्यवाद के रूप में उन्हें फिर से बिस्तर पर खींच लिया और अपने पिताजी के लंड को अपने होठो में लेकर चाट चाटकर साफ करने लगी और फिर अपने पिता के होंठो को चूसने लगी।
कुछ देर सुस्ताने के बाद मुकेश कंचन के रूम से निकल कर अपने रूम में चला गया।
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