Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
01-02-2020, 12:51 PM,
#41
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जब मनिका को पता चला कि आज फाइनली उसकी और उसके पिता की मुलाक़ात होने वाली है, तो वो तो ख़ुशी के मारे फूलि ना समाई, उसकी आँखों के सामने उस रात का मंज़र आ गया जब उसके पापा और उसके बीच सब कुछ होने ही वाला था, उस रात को याद कर मनिका गर्म होने लगी

"अरे मणि कहाँ खो गयी बेटी, आज तो आखिर तेरी मुलाकात हो ही जाएगी तेरे पापा से" मधु मनिका को टोकते हुए बोली

"जी मम्मी....." मनिका थोड़ी सकपकाते हुए बोली और फिर तुरन्त अपने कमरे की तरफ चल
दी


मनिका ने कमरे में आकर अंदर से कमरे को बंद किया और फिर सीधा बेड पर आकर गिर गई, पापा के आने की खुशि से उसकी सांसे भारी होने लगी, उसका रोम रोम रोमांचित हो उठा,
"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़…ओह्ह पापाआआआ, अब जाकर मेरी तमन्ना पूरी होगी, 1 साल बाद आपको देखूंगी, हाय कैसा होगा वो पल " मनिका अपने पापा से मिलने के सपने संजोते हुए अपने आपको आईने में देख सजने संवरने लगी, ऐसा लग रहा था जैसे वो अपने पापा से नही अपने लवर से मिलने वाली हो,

इधर जयसिंह अब घर जाने के लिए रवाना हो गया, उसके मन मे हल्का हल्का डर तो था पर उसके पास और कोई विकल्प भी नहीं था, आज नहीं तो कल उसे मनिका का सामना करना ही पड़ेगा, इसी उधेड़बुन में लगा जयसिंह जल्दी ही अपने घर पहुंच गया, उसने अपनी गाड़ी गेराज में खड़ी की ओर घर के अंदर आ गया,

जैसे ही मनिका ने घर के बाहर गाड़ी की आवाज़ सुनी, उसका दिल जोरो से धड़कने लगा, उसके शरीर मे हज़ारो चींटिया सी रेंगने लगी, वो धड़कते दिल के साथ अपने कमरे से बाहर निकली, और सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए हॉल की तरफ बढ़ने लगी,

जयसिंह सोफे पर दूसरी तरफ मुंह करके बैठा था, उसकी पीठ मनिका की तरफ थी, इसलिए वो मनीका को आते हुए नही देख पा रहा था, कनिका और हितेश अपने पापा के साथ बैठकर अपनी स्कूल की बाते बता रहे थे,

मनिका शर्म के मारे आंखे झुकाए हुए स्लो मोशन में ऐसे आगे बढ़ रही थी कि मानो वो अपनी सुहागरात की सेज की तरफ बढ़ रही हो, जैसे जैसे वो नज़दीक जा रही थी उसे अपनी सांसे भारी होती महसूस हो रही थी,
अब वो सोफे के बिल्कुल पास आ गई थी


"पापाआआआ.............." मनिका ने कांपते होठों से जयसिंह को पुकारा

जयसिंह ने जैसे ही नज़रें घुमाई, उनके सामने मनिका अपनी पलके झुकाए खड़ी थी,
"शहर जाकर उसकी सुंदरता में चार चांद लग गए थे, उसकी काली झील जैसी आंखे , तीखे नैन नक्श, पतले गुलाबी होंठ जिनका जयसिंह दीवाना हुआ करता था, वो ऐसे खड़ी थी मानो अजंता की कोई मूरत " जयसिंह ने जब उसे देखा तो देखता ही रह गया, उसके मुंह से शब्द ही नही निकल रहे थे,अभी थोड़ी देर पहले जिस मनिका से वो दूर रहने की सोच रहे थे, उसके चांदी जैसे खूबसूरत बदन को देखकर जयसिंह का मन एक पल के लिए डोल गया पर दूसरे पल ही उन्हें अपने से किया हुआ वादा याद आ गया कि अब वो मनिका से जितना दूर हो सके रहेंगे, और उन्होंने तुरंत अपनी धोखेबाज़ नज़रो को उस पर से हटा लिया,

"पापाआआआ......आप कैसे हो............???? " मनिका ने दोबारा अपनी पलके झुकाए ही पूछा

"ममम्मम मैं......ठीक हूँ.... मणि......तुम्म्म्म्म कैसी हो....." जयसिंह ने अपनी पूरी हिम्मत समेटकर पूछा

"मैं भी ठिक्क हूं... पापा" मनिका ने जवाब दिया

"तुम्म्म्म्म बैठो, मैं थोड़ा हाथ...मुंह धोकर आता हूँ मणि......." जयसिंह ने कांपते हुए कहा और बिना नज़रे फेरे ही सीधा अपने रूम में चले गए

अंदर आकर वो सीधा बाथरूम में घुस गए.....और हथेलियों से पानी अपने मुंह पर मारने लगे, उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था मानो कहीं दूर से भागकर आ रहे हो, उनकी हार्ट बीट तेज़ हो गई थी, उन्हें पसीना आने लगा, उन्होंने तुरंत अपने कपड़े निकाले और शावर के नीचे आकर खड़े हो गए


शावर से निकलती पानी की बूंदे जब उनके शरीर को भिगोने लगी तो उनको कुछ रिलैक्स महसूस होने लगा

" चिंता मत कर जयसिंह, सब ठीक हो जाएगा.... देख उसने खुद तेरे से आकर बात की, इसका मतलब शायद वो तुझे माफ कर चुकी है...... हो सकता है समय के साथ उसकी नफरत कम हो गई हो........तू बस उससे आराम से बात कर...... जितना कम हो सके उतनी ही बात कर ....हो सकता है वो तुझे एक और मौका दे दे अपनी गलती सुधारने का.....नहीं नहीं वो हमेशा से गुस्सेल रही है.... वो मुझे कभी माफ नही करेगी.....अगर उसने मधु को बता दिया तो........नहीं वो मधु को नही बताएगी....अगर बताना होता तो अब तक बता चुकी होगी.....शायद वो तुझे सुधरने का एक मौका दे रही है....इस मौके को मत गंवाना ....." जयसिंह अपने अन्तर्मन से बाते कर रहा था
नहाने के बाद उसने अपना पजामा पहना ओर ऊपर टीशर्ट डालकर वापस हॉल की तरफ बढ़ने लगा, मधु ने अब तक खाना लगा दिया था, सभी लोग जयसिंह का ही इंतेज़ार कर रहे थे,

जयसिंह आकर सीधा अपनी कुर्सी पर बैठ गया ( जहाँ अक्सर घर का मुखिया बैठता है ) उसके एक तरफ मधु और कनिका थी तो दूसरी तरफ मनिका और हितेश

मधु ने सबकी प्लेट्स में खाना सर्व किया, सबने खाना खाना शुरू कर दिया....मनिका और जयसिंह दोनों ही बिल्कुल धीरे धीरे खाना खा रहे थे, जयसिंह के तो निवाला बड़ी मुश्किल से गले से नीचे उतर रहा था...

इधर मनिका अपने पापा के इतने पास बैठकर उनके जिस्म से निकलती गर्मी को महसूस करने की कोशिश कर रही थी, जयसिंह को आज इतने दिनों बाद अपने नज़दीक पाकर उसके बदन में हल्की हल्की चिंगारियां सी फुट रही थी ...वो प्यासी निगाहों से अपने पापा को देख रही थी,

अजीब सी विडंबना थी कि ठीक 1 साल पहले उसके पापा उसको प्यासी निगाहों से देखते थे और वो बचने की कोशिश करती थी पर आज मनिका उन्हें प्यासी निगाहों से देख रही थी और जयसिंह बचने की कोशिश कर रहे थे,
सही बात ही है " जैसा बाप वैसी बेटी"

"अरे तुम दोनों इतने चुप क्यों हो, कोई झगड़ा हुआ है क्या तुम दोनों का" मधु ने जयसिंह और मनिका को इशारा करते हुए कहा

" नहीं....तो मम्म्म्ममी..... ऐसी तो कोई बात नही" मनिका झिझकते हुए बोली

"हां मधु ऐसी कोई बात नही है" जयसिंह भी लगभग मनिका के साथ ही बोल पड़ा

"तो फिर इतनी चुप्पी क्यों है , पहले तो आप लोगो की चपर चपर बन्द ही नही होती थी और अब देखो जैसे एक दूसरे को जानते ही नही हो" मधु ने उन्हें चिढ़ाते हुए कहा

जयसिंह तो बिल्कुल सुन्न हो चुका था, उसे समझ नही आ रहा था कि क्या बोले, पर इससे पहले की वो कुछ बोले, मनिका बीच मे बोल पड़ी


" अरे मम्मी, हम लोग तो वैसे भी हमेशा फ़ोन पर काफी बात कर लेते है, ओर वैसे भी खाते टाइम ज्यादा बात नहीं करनी चाहिए, आप चिंता मत करो, मैं पापा को इतना सताऊंगी, इतनी बाते करूंगी कि इन्हें खुद मुझे चुप कराना पड़ेगा" मनिका ने बात सम्भालते हुए बड़े ही शातिर तरीके से जवाब दिया और जयसिंह की तरफ तिरछी नज़रो से देखने लगी

मनिका की बात सुनकर बाकी लोग तो हसने लगे पर जयसिंह की हालत खराब हो गई, उसे समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे इसलिए वो भी बेमन से थोड़ा सा मुस्कुरा दिया, पर उसके माथे पर शिकन की लकीरें उभर आई,
अब जयसिंह ने खाना खा लिया था, ऐसे भी वो अक्सर कम ही खाता था, सो वो उठकर किचन की तरफ हाथ धोने बढ़ा, पर इससे पहले की वो आगे बढ़े मनिका ने भी उठकर बोला कि उसका खाना हो गया है और वो तेज़ तेज़ कदमों से चलते हुए जयसिंह से पहले ही किचन में घुस गई,

उसे किचन में जाता देख एक बार तो जयसिंह ठिठका पर उसे हाथ तो धोने ही थे सो वो अंदर की ओर चल पड़ा,

मनिका किचन में हाथ धो रही थी, जयसिंह उससे थोड़ा दूर जाकर ही खड़ा हो गया
मनिका ने वाशबेसिन में हाथ धोने से पहले अपनी कुर्ती को चुपके से साइड में कर लिया था, जिससे उसकी सुंदर सी गांड उभरकर सामने आ रही थी, जयसिंह की धोकेबाज़ नज़रे तुरंत उसकी ठुमकती गांड की तरफ उठ गई, उस पर जैसे बिजली सी गिर पड़ी,
उधर मनिका जान बूझकर हाथ धोते समय अपनी कमर और गांड को होले होले हिला रही थी,

जयसिंह ने तुरंत अपनी नज़रे दूसरी तरफ फेरनी चाही पर इससे पहले की वो अपना चेहरा घुमा पाता, उस पर एक और गाज गिर पड़ी, मनिका ने जानबुझकर अपना रुमाल नीचे गिरा दिया था और अब वो उसे हटाने के लिए झुकी हुई थी


उसकी पतली सी लिंगरी उसकी मांसल जांघो से बिल्कुल चिपक गयी थी, और स्ट्रेच होने की वजह से लिंगरी हल्की सी पारदर्शी हो गयी थी, जिसमे से उसकी ब्लू कलर की छोटी सी खूबसूरत पैंटी जयसिंह की आंखों के सामने आ गयी, उसकी मोटी सी मांसल गदरायी गांड पर उस छोटी सी पैंटी को देखकर जयसिंह की सांसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गयी, उसका चेहरा गरम होने लगा, उसे अपने लन्ड में तनाव महसूस होने लगा,और जल्द ही उसने विकराल रूप ले लिया जिससे उसके पाजामे में उभार बन गया, मनिका जानबुझकर रुमाल उठाने में ज्यादा वक्त लग रही थी, उसने कनखियों से जयसिंह की ओर देखा तो पाजामे में उसके लन्ड का उभार उसकी आँखों से छुप नहीं पाया, उसके चेहरे पर एक शातिर हंसी आ गयी

जयसिंह से अब ओर ज्यादा बर्दास्त नही हो रहा था, उसका लन्ड पूरा उफान पर आ चुका था पर वो ये जनता था कि अगर मनिका ने उसे इस हालत में देख लिया तो गज़ब हो जाएगा, उसकी नफरत जो थोड़ी बहुत कम हुई है वो दोबारा बढ़ जाएगी, इसलिए इससे पहले की मनिका उसे देखे जयसिंह तुरन्त वहां से हटा और अपने उभार को छुपाते हुए अपने कमरे की तरफ चल पड़ा
कमरे में आते ही वो सीधा बाथरूम में घुस गया, और जल्दी जल्दी अपने हाथ धोने लगा
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01-02-2020, 12:52 PM,
#42
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
"तू पागल है क्या जयसिंह, एक बार जो गलती की थी अभी तक उसकी सजा भुगत रहा है और अब दोबारा वही गलती करने जा रहा था, अगर वो तुझे देख लेती तो" जयसिंह के अन्तर्मन से आवाज़ आई

अब डर के मारे जयसिंह का खड़ा हुआ लन्ड वापस बैठने लगा पर आज मनिका के इस गांड दर्शन ने उसके अंदर के मर्द को दोबारा जगा दिया था,

इधर बाकी लोगों ने भी खाना खा लिया था और अपने अपने रूम में चले गए, मधु ने बर्तन साफ किये और बाकी छोटा मोटा काम खत्म करके रूम में आ गयी,


आज जयसिंह की महीनों से दबी वासना बाहर निकल चुकी थी और वो जनता था कि अगर ये वासना शांत न कि तो दोबारा कहीं वो कुछ गलत न कर दे,

मधु ने कमरे के अंदर आकर अपनी साड़ी उतारी और नाइटी पहनने लगी, वो अक्सर सोते समय अपनी ब्रा उतार देती थी सो उसने अपनी ब्रा भी निकाल दी और टीशर्ट पहन ली

वैसे तो मधु लगभग 42 साल की थी पर उसने अपने आपको बिल्कुल मेंटेन किया हुआ था, दिखने में लगभग 30-32 साल की महिला ही लगती थी, कसा हुआ बदन, तीखे नैन नक्श, कजरारी आंखे, सांचे में ढली हुई कमर, भारी नितम्ब और सुडौल जाँघे , जिन्हें देखकर कोई भी दीवाना हो जाये
"आज बहुत खूबसूरत लग रही हो तुम" जयसिंह ने उसकी ओर देखकर कहा

"मैं तो हमेशा जैसी लगती हूं वैसी ही हूँ" मधु ने जवाब दिया

"पर आज तुम कुछ अलग सी लग रही हो" जयसिंह ने मादक आवाज़ में कहा

"हम्म्म्म, चलो कभी तो आपने ध्यान दिया, वैसे आज क्या अलग रह है आपको मुझमे" मधु ने इठलाते हुए कहा और आकर जयसिंह के साथ बेड पर लेट गयी

"पता नहीं पर आज तुम्हें देखकर मन में अजीब से ख्याल आ रहे है" जयसिंह ने ट्यूबलाइट के स्विच बन्द करते हुए कहा...अब सिर्फ उसके टेबल लैंप की हल्की हल्की रोशनी हो रही थी

"और वो अजीब से ख्याल क्या हैं भला" मधु भी अब जयसिंह की मंशा समझ चुकी थी और सच पूछो तो वो तो कई दिनों से इसके लिए तड़फ रही थी पर कभी उससे बोलने की हिम्मत ही नही हुई और कभी हिम्मत होती तो जयसिंह की नीरसता देखकर मन मार लेती, पर आज जयसिंह के बदले मूड को देखकर उसके शरीर मे चींटिया सी रेंगने लगी

"मुझे ऐसा लग रहा है कि तुम्हे कच्चा ही खा जाऊं, क्योंकि आज तुम बहुत सुंदर लग रही हो" जयसिंह ने मधु की टीशर्ट के अंदर हाथ डालते हुए कहा

"अच्छा अगर हिम्मत है तो खाकर दिखाइए " मधु ने इतराकर जवाब दिया

अब जयसिंह ने टीशर्ट के अंदर से ही उसकी खरबूजे जैसी चुंचियो को अपने हाथों में भर लिया और तुरंत उसके ऊपर आकर उसके होठों को चूमने लगा, महीनों बाद अपने पति के स्पर्श से मधु एकदम से उत्तेजित हो गयी, उसके निप्पल हार्ड होकर तन गए जयसिंह बीच बीच में अपनी अंगुलियों से उसके निप्पलों को कुरेद देता जिससे मधु के शरीर मे आनन्द की एक लहर सी दौड़ जाती, अब वो दोनों पागलो की तरह एक दूसरे को चूम रहे थे, जयसिंह अपने मुंह से मधु की जीभ को पकड़कर चूसता ओर मधु भी ठीक वैसा ही करती,

जयसिंह का लन्ड अब तनकर बिल्कुल खड़ा हो गया था जो मधु की जांघो के बीच आ रहा था
जयसिंह को अब बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था ,,
,
उसने पलक झपकते ही मधु की टीशर्ट और नाइटी को उसके शरीर की गिरफ्त से आज़ाद कर दिया , अब मधु एक छोटी सी पैंटी में थी जिसमे उसके भारी भरकम नितम्ब बड़ी मुश्किल से समय हुए थे, जयसिंह ने उसकी पैंटी की इलास्टिक में अपनी अंगुलिया फ़साई और एक झटके में उसे निकालकर फेंक दिया, आज महिनों के बाद जयसिंह ने उसकी चुत के दीदार किये थे

मधु हमेशा अपने शरीर की साफ सफाई करती थी, हालांकि उसे चुदाई किये हुए काफी वक्त हो गया था पर फिर भी वो रेगुलरली अपनी चुत के बालों की सफाई करती रहती थी।

जयसिंह ने जब उसकी गुलाबी चुत को देखा तो उसके सब्र का बांध टूट गया, वो उस प्यारी सी चुत पर पागलो की तरह टूट पड़ा और उसे अपने मुंह मे भरकर चूसने लगा, मधु की चुत से निकलती मादक खुसबू उसके नथुनों में भर गई,


इतने दिनों बाद अपनी चुत पर जयसिंह के होठों का स्पर्श पाते ही मधु के शरीर मे सिहरन सी दौड़ गयी, जयसिंह ने अपना मुंह मधु की चुत में घुसा रखा था और अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों चुचियों को मसल रहा था, इस दोतफ हमले के सामने मधु ज्यादा देर न टिक पायी और एक जोरदार अँगड़ाई के साथ उसकी चुत ने पानी छोड़ दिया, जयसिंह सारे पानी को अपनी जीभ से चाट गया, अब जयसिंह ने अपनी जीभ को गोल करके मधु की चुत की गहराइयों में घुसाना शुरू किया, मधु तो जैसे जन्नत की सैर कर रही थी, उसने अपने दोनों हाथों से जयसिंह के सर को पकड़ा और उसे अपनी चुत की तरफ धकेलने लगी, लगभग 10 मिनट के अंदर ही वो दोबारा झड़ गई,

अब जयसिंह ने उसकी चुत पर से अपना मुंह उठाया और अपना पाजामे और टीशर्ट उतारना लगा, पाजामे उतरते ही उसका लम्बे लन्ड स्पंज की भांति उछलकर मधु के चेहरे के सामने आ गया, मधु ने जब लंड को इस तरह ठुमकते हुए देखा तो उससे बर्दास्त न हुआ और उसने लपककर लंड को अपने मुंह मे भर लिया और अंदर ही अंदर उसके सुपाडे पर अपनी जीभ फेरने लगी, जयसिंह को अपने लन्ड के इर्द गिर्द इतनी गर्माहट पाकर असीम आनन्द की अनुभूति होने लगी, वो मधु का सर पकड़कर अपने लंड को और अंदर घुसाने लगा, अब मधु का मुंह पूरी तरीके से जयसिंह के लन्ड से भरा हुआ था,

थोड़ी देर इसी तरह लंड चुसवाने के बाद जयसिंह ने अपना लन्ड बाहर निकाला और मधु की चुत के मुहाने पर सेट करके एक जोरदार धक्का दिया जिससे उसका आधा लन्ड चुत के अंदर घुस चुका था, महीनों से अनचुदी चुत में जब लन्ड का प्रवेश हुआ तो मधु के बदन में एक टिश सी उठी पर उसने अपने होंठों को बंद करके अपनी आवाज़ बाहर नही निकलने दी

जयसिंह ने दोबारा अपने लैंड को थोड़ा बाहर निकाला और इस बार पूरी ताकत के साथ दोबारा चुत में घुसा दिया, उसका पूरा का पूरा लंड चुत में घुस चुका था, इस बार मधु सम्भाल न सकी और उसके मुंह से हल्की सी चीख निकल गयी,

जयसिंह ने अब ताबड़तोड़ धक्के लगाना शुरू कर दिया था, हर धक्के में उसका लन्ड मधु की बच्चेदानी से टकरा रहा था,

मधु तो मजे के मारे दोहरी हो गयी, उसके मुंह से हल्की हल्की आवाज़े निकलनी शुरू हो गई,
उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह कितना तड़पाया है आपने........ओह्हहहहहह ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़

लगभग 20 मिनट के घमासान के बाद जयसिंह और मधु साथ साथ झाड़ गए, उनके पानी का मिश्रण मधु की चुत से होता हुआ बेडशीट के ऊपर टपक रहा था, दोनों अभी भी बुरी तरह हांफ रहे थे, और जयसिंह का लंड अभी भी मधु की चुत में ही घुस था, पर अब दोनो की वासना सन्तुष्ट हो चुकी थी, इसलिए वो दोनों नंगे ही चुत में लंड घुसे हुए एक दूर की बाहों में मजे से सो गए।
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01-02-2020, 12:56 PM,
#43
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
लगभग 20 मिनट के घमासान के बाद जयसिंह और मधु साथ साथ झाड़ गए, उनके पानी का मिश्रण मधु की चुत से होता हुआ बेडशीट के ऊपर टपक रहा था, दोनों अभी भी बुरी तरह हांफ रहे थे, और जयसिंह का लंड अभी भी मधु की चुत में ही घुस था, पर अब दोनो की वासना सन्तुष्ट हो चुकी थी, इसलिए वो दोनों नंगे ही चुत में लंड घुसे हुए एक दूर की बाहों में मजे से सो गए।
आज साल भर बाद मधु और जयसिंह ने सम्भोग किया था, मधु तो इस असीम आंनद को पाकर गहरी नींद के आगोश में चली गई थी, पर जयसिंह में मन मे अब भी उथल पुथल मची हुई थी,जयसिंह ने सोचा था कि उसके मधु के साथ सम्भोग करने से उसका मन और लोडा दोनों शांत हो जायेगे पर वो कहते है ना सेक्स वो आग है जो एक बार करने से बुझती नही बल्कि भड़क जाती है, और यही जयसिंह के साथ भी हो रहा था ,उसके दिमाग के घोड़े लगातार दौड़े जा रहे थे और हर बार उसे एक ही मंज़िल पर लेकर जाते - " मनिका " ,जयसिंह तुरंत अपने दिमाग को झटकता ताकि मनिका का ख्याल उसके दिमाग से निकल जाए पर हर बार उसकी आँखों के सामने आज शाम का नज़ारा घूम जाता, आखिर किसी तरह अपने मन को शांत करके वो नींद लेने की कोशिश करने लगा


इधर रात में मनिका अपने पापा को अपने करीब लाने कि योजना सोच रही थी, उसे एक बात तो बिल्कुल साफ हो गयी थी कि उसके पापा जानबूझकर उसके सामने आने में और उससे बाते झिझक रहे हैं, ओर इसलिए मनिका ने इरादा बना लिया था कि सबसे पहले उसे अपने पापा की झिझक खत्म करनी होगी, उन्हें यकीन दिलाना होगा कि वो उनसे नाराज़ नहीं है और ये करने के लिए उसे अपने पापा के साथ थोड़ा खुलना होगा, उनसे प्यार से आराम से बात करनी होगी,मनिका रात भर इसी उधेड़बुन में लगी रही और फाइनली अपनी योजना को सफल बनाने के लिए उसने तीन पॉइंट डिसाइड किये
पहला कि अपने पापा से खुलकर बात करना ताकि उनकी झिझक खत्म हो
दूसरा उन्हें मेरे बदन की झलकियाँ दिखाकर उनके होश उड़ाना
तीसरा की उन्हें पूरी तरह काबू में लाकर वो सब हासिल करना जो पहले वो चाहते थे पर अब मैं चाहती हूं,

मनिका जानती थी कि उसे ये सब करने के लिए बड़ी मेहनत करनी होगी और थोड़ा धैर्य रखना होगा वरना बात बिगड़ सकती है, इसी तरह अपनी प्लानिंग करते करते उसे नींद आ गयी थी।

कहते है सेक्स के बाद बड़ी अच्छी नींद आती है और इसीलिए सुबह जयसिंह की आंख खुली तो घड़ी की सुई 8 बजा रही थी, उसने अपने आस पास नज़र दौड़ाई तो मधु वहां से जा चुकी थी, जयसिंह फ्रेश होने के लिए बाथरूम में गया और लगभग 1 घण्टे में आफिस जाने के लिए बिल्कुल रेडी हो गया ,अब सिर्फ नाश्ता करना ही बाकी रह गया था।

वो ब्रेकफास्ट करने के लिए हॉल में गया तो वहां का नज़ारा देख उसके माथे पर शिकन की लकीरें उभर आई...मनिका पहले से ही वहाँ पर बैठी नाश्ता कर रही थी ...मनिका ने आज जानबूझकर स्कर्ट पहन रखी थी जो उसके उसके घुटने से थोड़ी सी ही ऊपर थी ...उसकी पीठ जयसिंह की तरफ थी.....जयसिंह ने सोचा कि मनिका की नज़र बचाकर सीधा ऑफिस के लिए निकल लेता हूँ इसलिए वो दबे पांव दरवाज़े की ओर बढ़ने लगा

"अरे, आप कहाँ जा रहे है, नाश्ता तो कर लीजिए" मधु किचन से निकलती हुई जयसिंह को बाहर जाता देख बोली

"अम्ममम्मम .......मधु......वो वो....म.....ऑफिस में ही कर लूंगा नाश्ता......तुमम्म चिंता मत करो" जयसिंह घबराता हुआ बोला

"नहीं कोई जरूरत नही है आफिस में नाश्ता करने की , आप यही नाश्ता करके जाओ, बाहर की चीज़ें ज्यादा नही खानी चाहिए वरना बीमार पड़ जाओगे, चलिए आइए इधर, मैं अभी आपके लिए प्लेट लगाती हूँ....." मधु ने लगभग आर्डर देते हुए अंदाज़ में कहा

अब जयसिंह के पास भी कोई चारा नहीं था.... इसलिए वो हारकर वापस टेबल की तरफ बढ़ने लगा......एक बार फिर उसका दिल धक धक करने लगा..... उसके हाथ पांव फूलने लगे......वो धीरे धीरे चलता हुआ टेबल की तरफ आया और जाकर अपनी सीट पर बैठ गया......उसकी नज़र अभी भी नीचे की ओर झुकी हुई थी......

दूसरी तरफ मनिका ठीक उसके साइड वाली सीट पर बैठी थी, आज उसने पहले से ही डिसाइड कर रखा था कि सुबह अपने पापा के आफिस जाने से पहले उनका दीदार जरूर करेगी, और इसीलिए वो सुबह 6 बजे ही जग गयी थी ,

जयसिंह को अपने पास बैठा देखकर मनिका के होठों पर कुटिल मुस्कान उभर आई,

"गुडमार्निंग पापा..." मनिका बड़ी सी मुस्कान अपने चेहरे पे बिखेरते हुए बोली, वो अपनी पहली चाल पर आगे बढ़ने लगी थी

"अम्म गुड़....मॉर्निंग....मणि.. बेटी...."
जयसिंह ने बिल्कुल सकपकाते हुए नज़रे झुकाकर ही उत्तर दिया,

पर इधर मनिका को अपने लिए बेटी शब्द सुनकर जाने क्यों बिल्कुल भी अच्छा नही लग रहा था , उसे तो मणि सुनना भी पसंद नही था, मनिका तो चाहती थी कि उसके पापा उसे दोबारा मनिका कहकर बुलाये, पर अभी मधु के रहते ऐसा करना उसे ठीक नही लगा,


"आप ऑफिस जा रहे है क्या पापा" मनिका ने जयसिंह के चेहरे पर नज़र गड़ाते हुए पूछा

"हां मणि.....वो.... ऑफिस में काफी काम है ..." जयसिंह ने थोड़ा झिझकते हुए जवाब दिया

"आपका बिज़नेस कैसा चल रहा है" मनिका ने बात आगे बढ़ते हुए कहा

" मम्मम बिज़नेस तो...अच्छा ..ही चल रहा है " जयसिंह ने भी जवाब दिया

"मम्मी तो बोल रही थी कि अब आपका बिज़नेस बड़ा अच्छा चलने लगा है और अब आपको पहले से ज्यादा प्रॉफिट होता है" मनिका ने कहा
" हाँ... वो तो है, अब बिज़नेस थोड़ा एक्सपैंड हो गया है ना इसलिए...थोड़ा मम्मम ज्यादा ध्यान देना पड़ता है" जयसिंह ने सम्भलकर जवाब देते हुए कहा, उनसे अब भी मनिका से नज़रे नही मिलाई थी

कुछ देर दोनों के बीच थोडी शांती रही जिसे मनिका ने अपने सवाल से तोड़ते हुए जयसिंह से पूछा" पापा.....आप मेरी पढ़ाई के बारे में नही पूछोगे क्या....मम्मी तो जब से मैं आयी हूँ यही पूछती रहती है, पर आपने तो एक बार भी नही पूछा.....आप मुझसे नाराज है क्या" मनिका ने अपनी चाल में हुक्म का इक्का चल दिया था, उसे पता था कि नाराज़गी की बात सुनकर जयसिंह तुरंत उसकी बात का जवाब देगा और हुआ भी ठीक वैसा ही,

जयसिंह ने तुरन्त मनिका की ओर देखते हुए कहा "नाराज़, नहीं तो , मैं भला तुमसे नाराज़ क्यों होने लगा, वो तो बस मुझे थोड़ा टाइम नही मिला इसलिए मैं तुमसे नही पूछ पाया "

मनिका के घर आने के बाद ये पहली बार था जब जयसिंह ने उससे आँखे उठाकर बात की थी, मनिका ने इसे अपनी छोटी सी जीत की तरह लिया पर उसे भी पता था कि मंज़िल अभी बहुत दूर है पर उसे इस बात की खुशि थी कि उसकी पहली चाल बिल्कुल सही दिशा में कामयाबी की ओर जा रही है,

"तो आप मुझसे बातें क्यों नही करते, हमेशा कटे कटे से रहते हैं, मम्मी भी आपकी शिकायत कर रही थी कि आप घर पर कम टाइम स्पेंड करने लगे है" मनिका लगातार जयसिंह को बातों में लगाये रखना चाहती थी ताकि जयसिंह की झिझक कम हो जाये

" नहीं मणि, ऐसी तो कोई बात नही, वो तो बस थोड़ा काम ज्यादा होने की वजह से कभी कभी घर लेट आना होता है वरना तो...... " जयसिंह ने अपना बचाव करते हुए कहा

"वरना तो क्या, मम्मी ने मुझे सब बताया है कि आप कभी कभी नही बल्कि हमेशा ही लेट आते है, खाना भी बाहर ही कहते हो,बोलो मैं सही बोल रही हूं या नहीं" मनिका ने चहकते हुए कहा

" नहीं तो , मैं तो ज्यादातर घर ही खाता हूं खाना" जयसिंह अब मनिका से अपनी पुराने तनाव को भूलकर अपना बचाव करने में लगे थे

"आप ऐसे नही मानोगे मैं अभी मम्मी को बुलाकर पूछती हूँ........मम्मी......ओ...मम्मी.....जरा इधर तो आना" मनिका अब जोर जोर अपनी मम्मी मम्मी को आवाज़ लगाने लगी

"आ रही हु बाबा, ऐसे क्यों चिल्ला रही है, ये लड़की भी न बस" मधु जल्दी ही नाश्ता लेते हुए आयी और खुद भी वहीं बैठ गयी

"क्या है ,क्यों जोर जोर से चिल्ला रही थी " मधु ने हल्का सा गुस्सा करते हुए पूछा और साथ ही जयसिंह की प्लेट में नाश्ता सर्व करने लगी

"मम्मी, पापा बोल रहे हैं कि वो रोज़ाना घर पर टाइम से आते है और हमेशा घर पर ही खाना खाते है, आप बोलो की ये सच है या झुठ" मनिका ने मधु की ओर देखकर कहा
"अरे वाह, आप तो अब झूठ भी बोलने लगे हो, मनिका ये हमेशा लेट ही आते है, और खाना भी अक्सर बाहर ही खाते हैं, कितनी बार समझाया कि घर जल्दी आया करो पर इनके कानो पर तो जूं तक नही रेंगती, अब तू ही इन्हें समझा" मधु ने लगभग शिकायत के अंदाज़ में जयसिंह की तरफ देखकर कहा

"अच्छा ....तो पापा अब आप मुझसे झूट भी बोलने लगे....हम्म्म्म....." मनिका ने हंसते हुए बड़ी बड़ी आंखे निकालकर जयसिंह से कहा

"अम्म वो वो मणि..... अब मैं क्या बोलू? " जयसिंह थोड़ा सा घबराकर बोला

उसके इस तरह डरने से मधु और मनिका को भी हंसी आने लगी , और उनको इस तरह हसता देख जयसिंह भी थोड़ा मुस्कुरा दिया
,
"आज कितने दिनों बाद आपको हसता देखा है, वरना तो मनिका के जाने के बाद जैसे आपकी हंसी भी चली गयी थी" मधु ने जयसिंह को मुस्काता देख कहा

"आप चिंता मत कीजिये मम्मी, मेरे जाने की वजह से ये हसना भूल गए थे पर अब मैं आ गयी हूँ ना, तो अब मैं इनको बिल्कुल पहले जैसा बना दूंगी" मनिका ने 'पहले' शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर दिया
था

धीरे धीरे जयसिंह भी मनिका से थोड़ा खुलता जा रहा था और धीरे धीरे उसकी झिझक कम होती जा रही थी,उसे यकीन होता जा रहा था कि मनिका शायद दिल्ली वाली घटना को भुलाकर उसे एक ओर मौका देना चाहती है, क्योंकि मनिका ने घर आने के बाद से उससे हमेशा ठीक से ही बात की थी, इससे जयसिंह को थोड़ा थोड़ा यकीन होने लगा था कि शायद मनिका ने उसे माफ कर दिया है, इसलिए जयसिंह को भी अब उससे बातें करने में कम झिझक हो रही थी

वो सब अभी बाते कर रहे थे कि मनिका ने अपनी अपनी चाल का अगला हिस्सा चला

"मम्मी मेरी वो पुरानी 12th की बुक्स कहाँ है, मुझे उनमे से एक बुक चाहये थी, मेरी स्टडी के लिए" मनिका ने तिरछी नज़रो से जयसिंह के चेहरे को देखते हुए मधु से पूछा

"मणि.... वो तो स्टोर रूम में ऊपर टांड पर रखी है, तेरे कॉलेज जाने के बाद मैंने उन्हें एक बॉक्स में रखकर वहां रखवा दिया था, पर वो तो बहुत ऊपर हैं तेरे हाथ कैसे आएगी, मैं एक काम करती हूं , शाम तक किसी से उतरवा दूंगी, " मधु ने कॉफी पीते हुए ही कहा

"पर मम्मी मुझे तो अभी ही चाहिए , मुझे उनमे से कुछ जरूरी नोट्स बनाने है" मनिका ने बड़ा ही मासूम से चेहरा बनाते हुए कहा

"चल तो फिर तेरे पापा ही तेरी हेल्प कर देंगे उन्हें उतरवाने में" मधु ने बड़े ही सामान्य तरीके से जवाब दिया

"पर....मधु.....मुझे तो ऑफिस जाना है.....लेट हो रहा है...." जयसिंह ने कहा

"क्या ऑफिस..... थोड़ा लेट चले जाओगे तो पहाड़ नही टूट जाएगा....बच्ची यहां पढ़ने के लिए बुक्स मांग रही है और आप हो कि 5 मिनट ऑफिस लेट नही जा सकते...."
मधु ने तल्खी से जवाब देते हुए कहा

"पर मधु मेरी बात तो सुनो" जयसिंह ने एक बार और कोशिश करते हुए मधु से कहा

"पर वर कुछ नहीं, आप बुक्स उतारोगे तो उतारोगे, मुझे ओर कुछ नहीं सुनना" मधु ने आर्डर करते हुए जयसिंह से कहा

"चलो ठीक है, उतारता हूँ मैं बुक्स" जयसिंह ने निराश होते हुए कहा, उसे भी पता था कि मधु को ज़िद के आगे उसकी नहीं चलने वाली है

उसने फटाफट बाकी नाश्ता किया और हाथ धोकर स्टोर रूम की तरफ जाने लगा,


"रुकिए पापा, मैं भी आती हूँ" मनिका ने जयसिंह को रोकते हुए कहा

"तुम्म्म्म्म..... क्या करोगी....मणि.... मम्मम मैं...उतारता हूँ ना" जयसिंह घबराते हुए बोला

"पर मुझे जो बुक चाहिए वो मैं निकाल लूँगी, बाकी बुक्स आप दोबारा रख देना" मनिका बड़े ही आराम से बोली

"ठीक है जैसा तुम बोलो" जयसिंह ने भी बेमन से जवाब दे दिया

अब मनिका ने तुरंत हाथ धो लिए और जयसिंह के साथ स्टोररूम की तरफ चल पड़ी जो फर्स्ट फ्लोर पर था।
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01-02-2020, 12:56 PM,
#44
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका सीढ़ियों पर चलते वक्त जान बूझकर जयसिंह के बिल्कुल पास पास चल रही थी, सो अचानक बिना सोचे-समझे इस तरह करीब आ जाने पर जयसिंह कुछ पल के लिए थोडा असहज हो गया था, और उससे कुछ कहते नहीं बन रहा था. मनिका के परफ्यूम की भीनी-भीनी खुशबू ने उन्हें और अधिक परेशान कर दिया था, जल्दी ही दोनों स्टोररूम के सामने खड़े थे

स्टोररूम काफी दिनों से बंद पड़ा था,
जब जयसिंह ने स्टोर रूम खोला तो देखा की वहां पर काफी दिनों से सफाई नहीं हुई थी, बुक्स जिस जगह पडी थी वो काफी ऊपर थी , जय सिंह ने आसपास देखा तो उसे एक लकड़ी की सीढ़ी दिखाई दी, पर उस पर काफी धूल मिट्टी जमा थी।

"पापा यहां पर तो काफी गंदगी है, आपके कपड़े ना खराब हो जाए" मनिका ने कहा


"कोई बात नहीं मैं दूसरे कपड़े पहन लूंगा " जयसिंह ने बिना मनिका की तरफ देखे ही कहा और सीढी को लेकर उस जगह के पास लगाने लगा जहां बुक्स पड़ी थी

जैसे ही जयसिंह ने ऊपर चढ़ने के लिए अपना पांव आगे बढ़ाया सीढ़ी में से चरमराने की आवाज़ आयी, चूंकि सीढ़ी काफी पुरानी थी इसलिए ज्यादा वजन झेल नही सकती थी

"पापा आप मत चढ़िए, वरना सीढ़ी टूट जाएगी, आपका वजन थोड़ा ज्यादा है इस सीढ़ी के लिए" मनिका ने कहा

"पर सीढ़ी के बिना इतनी ऊपर कैसे पहुँच पाऊंगा" जयसिंह ने थोड़ा परेशान होकर कहा

"एक तरीका है" मनिका के चेहरे पर एक शातिर मुस्कुराहट आ चुकी थी

"कोनसा तरीका" जयसिंह ने बसकी तरफ देखकर पूछा

" आप एक काम कीजिये , सीधी को नीचे से पकड़ लीजिये, मैं इस पर चढ़कर बुक्स उतार लेती हूं" मनिका बोली

"चलो ठीक है, तुम चढ़ जाओ पर जरा ध्यान से" जयसिंह ने कहा

"पापा, मैं चढ़ तो जाऊंगी पर आप मुझे सम्भाल तो लोगे ना" मनिका ने बेहद ही मादक अंदाज़ में द्विअर्थी शब्दों में कहा

"तुम चिंता मत करो मणि, मैं अच्छे से पकड़ कर रखूंगा,बिल्कुल गिरने नही दूंगा" जयसिंह ने सामान्य तरीके से जवाब दिया

"ठीक है तो पापा मैं चढ़ रही हूं, आप सम्भालना" ये कहते हुए मनिका ने अपना पांव सीधी के पहले कदम पर रखा और फिर धीरे धीरे ऊपर चढ़ने लगी।

मनिका ने ये सब कुछ पहले से ही सोच रखा था इसीलिए आज उसने जानबूझकर स्कर्ट पहनी थी, मनिका धीरे धीरे ऊपर चढ़ी जा रही थी , जयसिंह ने सीढ़ी को मजबूती से पकड़ा हुआ था, मनिका को अपने इतने पास पाकर जयसिंह का ध्यान विचलित होता जा रहा था,

जैसे ही मनिका सीढ़ी पर थोड़ी ऊपर पहुंची , जयसिंह ने अपनी नज़रे उठाकर ऊपर की ओर देखा, उस पर जैसे बिजली गिर गयी हो, जयसिंह का चेहरा बिल्कुल गर्म हो गया, उसे ऐसा लग रहा था जैसे इसे बहुत तेज़ बुखार हो, उसे अपनी सांसे रुकती हुई सी महसूस होने लगी और उसका दिल जोरों से धड़कने लगा,

ट्यूबलाइट की तेज़ रौशनी में मनिका की स्कर्ट में से झलकती पूरी तरह नंगी दूध सी सफ़ेद जांघें चमक रहीं थी, उसकी स्कर्ट में से उसकी नीले कलर की छोटी सी कच्छी उसकी बड़ी सी गांड की दरारों में फंसी साफ दिखाई पड़ रही थी,उसकी भींची हुई टांगों के बीच योनि की 'V' आकृति उसे बिल्कुल साफ साफ नज़र आ रही थी.

जयसिंह का लंड खड़ा होकर अब उसे तकलीफ देने लगा था, उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि अगर उसने जल्दी से अपने लंड को आज़ाद नही किया तो कहीं उसकी नसे ना फट जाए, इस नज़ारे को देखकर उसके बदन में हज़ारों ज्वालामुखी फूटने लगे,
जयसिंह ने अब तक जो प्रतिज्ञा की थी कि वो अपनी बेटी से दूर रहेंगे वो सब उसे एक पल में ही मिट्टी में मिलती हुई नजर आने लगी, उसका दिमाग उसे नज़रे नीचे करने को कह रहा था पर उसका दिल इस नज़ारे को अपनी आंखों में कैद करने की बात कह रहा था,

" मनिका...मेरी बेटी है...हाय्य अब भी कितनी छोटी-छोटी कच्छियाँ पहनती है...उफ़ पर वो मेरी बेटी...साली का जिस्म ओह्ह..दिल्ली जाकर मस्त हो गयी है बिल्कुल आहहहहहह, नहीं नहीं वो मेरी बेटी है" जयसिंह का दिमाग अब अब बुरी तरह फंस चुका था,

इधर मनीज भी जानबूझकर ज्यादा टाइम लगा रही थी, बीच बीच मे वो अपनी सुंदर गांड को मटका देती जिससे जयसिंह के दिल पर हज़ारों वर हो जाते,

"पापाआआआ.... आपने ठीक से तो पकड़ा है ना, अगर आपने गिरा दिया तो मैं दोबारा कभी नहिं चढूंगी" मनिका ने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए कहा


"तुम चिंता मत करो मणि, मैं बहुत अच्छे से पकडटा हूँ, जिसे चढ़ाता हूँ उसे कभी नही छोड़ता" जयसिंह भी अब धीरे धीरे इस खेल में बढ़ रहा था हालांकि उसके दिल मे अभी भी काफी डर था पर फिलहाल तो मनिका की कच्छी ने उसके दिमाग का फ्यूज़ उड़ा रखा था,

" ह्म्म्म , मुझे बुक मिल गयी है पापा, अब मैं नीचे उतर रही हूं" मनिका ने कनखियों से जयसिंह की ओर देखा तो वो अभी भी अपनी नज़रे उसकी स्कर्ट के अंदर गड़ाए था

"अरे इतनी जल्दी मिल गयी, अगर कोई और बुक हो तो वो भी निकल लो वरना बार बार चढ़ना पड़ेगा" जयसिंह की आंखों में वासना के दौरे तैरने लगे, और उसका लंड तो बस उसकी पैंट को फाड़कर बाहर आने को तैयार था

"नहीं पापा अभी मुझे यही बुक चाहिए, अगर जरूरत पड़ेगी तो दोबारा चढ़ जाऊंगी, वैसे भी आप काफी अच्छे से चढ़ाते है" मनिका ने अपने चेहरे पर शरारती मुस्कान लाते हुए कहा

"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" जयसिंह बड़े बेमन से बोला,

धीरे धीरे मनिका अपनी गांड को मटकती हुई नीचे उतरने लगी, जैसे ही वो लास्ट कदम उतरने वाली थी उसने जानबूझकर गिरने का बहाना बनाया और गिरते हुए जयसिंह की बाहों में समा गई

जयसिंह ने आज साल भर बाद मनिका के कोमल शरीर को छुआ था,वो तो उसकी मादक गन्ध से मदहोश ही हो गया था ,उसे ये एहसास बहुत अच्छा लग रहा था, इधर मनिका को भी जयसिंह की बाहों में उतेजना सी महसूस हो रही था, जिसकी गवाही उसकी चुत से निकली पानी की कुछ बूंदे थी जो उसकी पैंटी से होते हुए जांघो से स्पर्श करके उसे ठंडक का एहसास करवा रही थी,

पर जयसिंह के मन मे ये डर भी था कि अगर मनिका को ये आभास हो गया कि उसकी वजह से मैं उत्तेजित हो रहा हूँ तो इस बार तो वो मुझे मार ही डालेगी, इसलिए जयसिंह तुरंत होश में आया और बोला
"अरे आराम से मणि, अभी गिर जाती तो"


मनिका भी अब थोड़ी सम्भली और जयसिंह की बाहों की कैद से खुद को न चाहते हुए भी आज़ाद किया,

"चलो मणि, अब नीचे चलते है, मुझे ऑफिस भी जाना है" जयसिंह ने अपनी बिखरी सांसे समेटते हुए कहा

"ठीक है पापा" कहते हुए मनिका अपने पापा के साथ नीचे आ गयी, जयसिंह ने मनिका से नज़र बचाकर अपने लन्ड को पैंट में एडजस्ट किया

जयसिंह अब आफिस जाने के लिए दरवाज़े की ओर जाने लगा कि मनिका ने पीछे से उससे कहा - " पापा जल्दी घर आना , मैं आपका वेट करूंगी"

"यस ऑफकोर्स मैं कोशिश करूंगा जल्दी आने की" जयसिंह ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया
ये बोलकर जयसिंह ऑफिस के लिए अपनी कार में रवाना हो गया, उसे इस बात की बहुत खुशी हो रही थी कि उसकी अपनी बेटी से दोबारा दोस्ती हो गई थी और इधर मनिका को अपनी पहली चाल कामयाब होने पर खुशी थी,

जयसिंह तो सीधा आफिस के लिए निकल गया पर आज के इस घटनाक्रम ने मनिका और जयसिंह दोनों के दिलों में आग सी लगा दी थी

अपने पापा के जाने के बाद मनिका दौड़कर अपने रूम में आ गई, उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, उत्तेजना चरम पर थी, उसका मन खुशियों के सागर में हिलोरे मार रहा था, उसने दरवाज़े की कुंडी बन्द की और भागकर अपने पलँग पर पेट के बल आ गिरी,

मनिका ने अभी की घटना को याद करके एक बहुत ही मदहोश सी अंगड़ाई ली , मनिका की इस अंगड़ाई से उसकी छोटी सी कसी हुई ब्रा में क़ैद खरबूजे जैसे मम्मे बाहर की तरफ छलक पड़े और उसके निप्पल बिस्तर से रगड़ खाकर कड़क हो गए थे, उसकी पतली स्कर्ट उस की मोटी गुदाज गान्ड पर इस तरह कसी हुई थी कि उसमेें से मनिका की भारी गान्ड की पहाड़ियाँ साफ तौर पर नज़र आ रही थी, पेट के बल इस तरह लेटने की वजह से मनिका के चूतड़ो का उभार बहुत ही जान लेवा हो चला था,


आज साल भर बाद अपने पापा के जिस्म को छूने की वजह से उसका रोम रोम रोमांचित हो उठा था, उसके सारे शरीर मे मीठी मीठी टीस सी उठ रही थी,अब उससे और बर्दास्त करना बहुत मुश्किल हो गया था, उसने तुरंत अपनी टीशर्ट और स्कर्ट को अपने हाथों से पकड़ा और पल भर में उतार कर फेंक दिया, अब उसने होले होले अपनी ब्रा के हुक खोलने शुरू कर दिए, थोड़ी ही देर बाद उसके बदन पर कपड़े के नाम पर सिर्फ नीले रंग की एक छोटी सी कच्छी थी जो उसके बड़ी सी गांड की दरारों में ओझल सी हो गयी थी, अब वो धीरे से पलटी और पीठ के बल लेट गयी, उसने अपनी अंगुलियो को अपनी पैंटी से छुआ तो उसके गीलेपन के अहसास ने उसे शरम और वासना की अनुभूति से भर दिया, उसने अपनी अंगुलियो को अपनी पैंटी के इलास्टिक में फंसाया, और अपने शरीर को ढके उस आखिरी कपड़े को भी अपने जिस्म से आज़ाद कर दिया,अब वो अपने बिस्तर पर पूरी तरह नंगी होकर आहें भर रही थी,
खिड़की से आती सूरज की हल्की हल्की रोशनी में उसकी खूबसूरत चिकनी चूत सोने की तरह चमक रही थी, और उसमें से आती खुसबू कमरे में धीरे धीरे फैलकर उसकी मादकता को और भी ज्यादा जानलेवा बना रही थी,

मनिका ने अपने एक हाथ को अपनी टांगो के बीच रखा और दूसरे हाथ से अपने कसे हुए मम्मों को मसलना शुरू कर दिया, उसकी चुत गर्म आग की भट्टी की तरह सुलग रही थी,

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस
ओह्हहहहहह पापाआआआ.... चोद दो मुझे.....बुझा दो इस चुत की प्यास......ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…..पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…". कहते हुए मनिका ने अपनी चूत के दाने को मसलते हुए अपने हाथ की एक उंगली को चूत में घुपप्प्प से घुसा दिया ,
“हाआआआआअ” अपनी चूत में उंगली को जाता हुआ महसूस कर के मनिका के मुँह से सिसकारी निकली,उसकी गरम आहें अब लगातार बढ़ती ही जा रही थी, लगातार अंदर बाहर होती उसकी उंगली उसकी चुत की आग को ओर भड़का रही थी, उसका बदन सर्दी के मौसम में भी पसीने से तर बतर होने लगा, उसके गरम जिस्म से निकली आग किसी को भी झुलसाने के लिए काफी थी, अपने दूसरे हाथ से वो वो बीच बीच मे अपने निप्पल को कुरेद देती जिसकी वजह से उसके निपल बड़ी शान से खड़े होकर तन गए थे, आहिस्ता आहिस्ता उसकी उत्तेजना चरम पर पहुंचती जा रही रही थी, उसकी उंगलियों की रफ्तार तेज़ी से बढ़ती जा रही थी, अचानक मनिका के मुँह से एक सिसकारी उभरी और उस की फूली हुई गुलाबी फांकों वाली चूत से रस की एक बूँद टपक कर बिस्तर की चादर को गिला कर गयी, उसके मस्त बदन में हज़ारों चींटियाँ एक साथ रेंगने लगी,फिर एक दम से मनिका का शरीर अकड गया और झटके मारने गया, उसकी चुत से पानी एक फव्वारे की शकल में निकल कर बहने लगा, उसका इतना पानी आज तक नहीं निकला था, उसके शरीर मे मजे की लहर दौड़ गयी
"ऊऊऊऊ….आआआआहह….उूुऊउगगगगगघह!!!!!" की आवाज़ें अब भी उसके मुंह से निकल रही थी ,

थोड़ी देर बाद उसने अपनी बिखरी हुई सांसो को समेटा और नहाने के लिए बाथरूम में घुस गई,

इधर जयसिंह का भी कमोबेश यही हाल था, रह रहकर उसकी आँखों के सामने मनिका की उभरी हुई गांड का मंजर आ जाता, वो बार बार कोशिश करता कि उसके दिमाग से ये ख्याल निकल जाए पर जितनी वो आग बुझाने की कोशिश करता उतनी ही उसकी आग और भड़क जाती, बड़ी मुश्किल से कार चलाते हुए वो अपने आफिस के केबिन में पहुंचा, उसने अपना ध्यान आफिस के कामो में लगाने की कोशिश की पर उसकी हर कोशिश बेकार साबित हो रही थी, वो जब जब अपनी पलकें झपकाता, उस की जवान बेटी के खूबसूरत जिस्म का ख्याल उस की आँखों के सामने आ कर उसके होश उड़ा देता,

उस ने अपने दिल और दिमाग़ को समझाने की लाख कोशिश की कि इस तरह मनिका के बारे में सोचना गलत है क्योंकि वो पहले भी इस गलती की सजा भुगत चुका है,मगर वो कहते हैं ना कि लंड है कि मानता ही नहीं, इसीलिए उस का लंड भी आज उसके काबू में नही रहा था.

सुबह के घटनाक्रम के बाद जयसिंह के लंड में ऐसा जोश आ गया था जो कम होने का नाम ही नही ले रहा था ,खास तौर पर मनिका की उभरी हुई मांसल गांड के बारे में सोचकर को तो उसका लंड बुरी तरह फनफना उठा था.

जयसिंह अपनी कुर्सी पर बैठ बैचैन होने लगा था, उसने एक बार खुद से वादा किया था कि वो जब तक मनिका को भोग नही लेता मुठ नही मारेगा, पर परिस्थितियां काफी बदल चुकी थी, और अब उसे ये यकीन था कि उसका वो सपना कभी पूरा नही होने वाला, इसलिए उसने अपनी इस प्रतिज्ञा को भूल जाना ही ठीक समझा, उसने सोचा कि शायद मुठ मारने के बाद उसके दिल से मनिका का ख्याल निकल जाए

और यही सोचकर वो अपनी सीट से उठा और सीधा अपने केबिन में बने बाथरूम में घुस गया, उसकी वासना उसके काबू से बाहर होने लगी थी इसलिए हारकर उसने अपने लंड को पैंट की जिप से बाहर निकाल लिया,
जयसिंह का लंड लोहे की रोड की तरह सख़्त हो गया था, उसकी आँखे बंद थीं और उस की आँखों के सामने मनिका का सुडौल मांसल बदन घूमने लगा और वो मनिका के मोटे मोटे मम्मे और उभरी हुई गान्ड को याद कर के अपने हाथ तेज़ी से लंड पर चलाने लगा

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"
ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह मनिकाऽऽऽऽऽऽऽ…आहऽऽऽऽऽऽऽ…कितनी खूबसूरत हो गई है हाय्य…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो क्या सूंदर चौड़ी गांड हो गयी है उसकी…...ह्म्म्म"
जयसिंह के हाथ पिस्टन की तरह अपने लन्ड के ऊपर खचाखच चले जा रहे थे, थोड़ी देर बाद ही मूठ मारते मारते अचानक जयसिंह के लंड ने एक जोरदार झटका लिया और फिर दूसरे ही लम्हे वो “मनिकाअअअअअस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स” कहते हुए बुरी तरह झड़ने लगा, जयसिंह के लंड ने इतना पानी छोड़ा कि वो खुद हैरान हो गया, आज से पहले जयसिंह कभी इतनी जल्दी ना तो झड़ा था और ना ही उस के लंड से इतना ज़्यादा वीर्य निकला था, आज पहली बार जयसिंह ने अपना वादा तोड़कर मनिका के बारे में सोचते हुए मूठ लगाई थी, मूठ मारने के बाद धीरे धीरे जयसिंह की चेतना वापस लौटने लगी, उसे वापस अहसास होने लगा था कि उसकी कल्पना सिर्फ कल्पना तक ही सीमित रहे तो अच्छा है वरना इसका बुरा अंजाम भुगतना पड़ सकता है, कई महीनों के बाद उसकी अपनी बेटी से दोबारा बातचीत शुरू हुई है, इसे वो अपनी बेवकूफी से गंवाना नही चाहता था, इसलिए उसने फटाफट अपनी सफाई की और वापस आकर काम मे ध्यान लगाने लगा,
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01-02-2020, 12:56 PM,
#45
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
अभी थोड़ी देर ही हुई थी कि किसी ने उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया,

"मे आई कम इन सर" सारिका ने चहकते हुए जयसिंह से अंदर आने की इजाज़त माँगी,

"यस कम इन" जयसिंह ने सारिका को अंदर आने के लिए कहा

"गुड मॉर्निंग सर, वो मैने आपके सिंगापुर जाने का सारा इंतेज़ाम कर दिया है, ये रही टिकेट्स, आपकी फ्लाइट 3 दिन बाद 6 दिसम्बर की है " सारिका ने लगभग एक ही सांस में सब कुछ बोल दिया था

"ओके, ई विल सी इट, यू केन गो नाउ" जयसिंह ने कहा

"सर वो एक और बात है, हमें सिंगापुर के इवेंट आर्गेनाइजर ने फ़ोन किया था , उन्होंने बताया है कि आप अपनी फैमिली मेंबर्स को भी ला सकते है, वो लोग आपका रहने खाने का सारा इंतेज़ाम खुद ही करेंगे, इसलिए अगर आप बोले तो मैं आपकी वाइफ की भी टिकट करा दूं ,क्योंकि वहां पर ज्यादातर लोग अपनी वाइफ के साथ ही आएंगे"
सारिका ने जयसिंह से पूछते हुए कहा

"मैं पहले अपनी वाइफ से पूछुंगा, उसके बाद जो भी बात होगी तुम्हे बता दूंगा " जयसिंह ने बड़े नार्मल तरीके से जवाब देते हुए कहा

"ओके सर, एज यू विश" सारिका ने कहा और केबिन से बाहर चली गई

दिनभर जयसिंह ओफिस के कामों में बिजी रहा, और उधर मनिका भी अपनी अगली चाल के बारे में सोचती रही,

शाम के लगभग 7:00 बजने वाले थे, जयसिंह को मनिका से कही हुई बात याद आने लगी कि वो उसका वेट करेगी, इसलिए जयसिंह ने भी फटाफट अपना बाकी काम निपटाया और घर की तरफ चल पड़ा

घर पहुंचते ही जयसिंह ने देखा कि कनिका और हितेश हॉल में बैठे हुए टीवी देख रहे है जबकि मधु किचन में काम कर रही थी,पर जयसिंह की धोखेबाज़ आंखे तो बस मनिका का दीदार करने के लिए तड़प रही थी, लेकिन मनिका शायद अपने रूम में थी, यही सोचकर जयसिंह मन मारता हुआ अपने रूम की तरफ बढ़ने लगा,
थोड़ी देर में फ्रेश होने के बाद जयसिंह भी हॉल में आकर बच्चो के साथ बैठकर बातें करने लगा

"कनिका, हितेश तुम दोनों की स्कूल कैसी चल रही हैं" जयसिंह ने प्यार से उनके सर पर हाथ फेरते हुए पूछा

" अच्छी चल रही है पापा, अभी कुछ दिनों बाद 10 तारीख से हमारी हाफ इअर्ली एग्जाम शुरू होने वाली हैं " कनिका ने उत्साहित होते हुए जवाब दिया


"तो फिर कैसी तैयारी है तुम दोनों की" जयसिंह ने उनसे पूछा

"तैयारी तो ठीक ही है पापा, पर पता नहीं पेपर कैसे आएंगे" हितेश थोड़ी टेंसन में आकर बोला

"अरे बेटा, चिंता करने की कोई बात नहीं है, तुम दोनों बस जमकर पढ़ो, मुझे तुम दोनों पर पक्का यकीन है कि तुम पास होकर दिखाओगे" जयसिंह उनका जोश बढ़ते हुए बोला

"थैंक्स पापा, हम बिल्कुल अच्छे से पढ़ाई करेंगे, आप बिलकुल चिंता न करे" दोनों बच्चे एक साथ बोल पड़े

"ये हुई न बात, अगर तुम दोनों पास हो गए तो मैं तुम्हे तुम्हारी पसंद का गिफ्ट लाकर दूंगा" जयसिंह बोला


"ओह वाव, मुझे तो एक नया मोबाइल चाहिए पापा " कनिका खुशि से उछलती हुई बोली

"हां हां जरूर, अगर तुम पास हुई तो मैं तुम्हे तुम्हारी पसन्द का मोबाइल लेकर दूंगा" जयसिंह ने कहा

"ओह थैंक यू पापा" कनिका उछलते हुए जयसिंह की गोद मे आकर बैठ गयी और अपने दोनों हाथों को उसकी गर्दन के दोनों ओर लपेट लिया

इस तरह अचानक और बेपरवाह होकर जयसिंह से भूरपूर तरीके से चिपटने से कनिका के मम्मे उसके पापा की छाती से जा टकराये, कनिका के इस तरह गोद मे बैठने की वजह से जयसिंह थोड़ा असहज हो गया था पर उसके जिस्म में सर से ले कर पैर तक एक अजीब सी मस्ती की लहर दौड़ गई, ऊपर से कनिका के जवान जिस्म से आती मादक गंध ने तो उसके होश ही उड़ा दिए, आज जयसिंह ने पहली बार कनिका के जवान होते बदन पर नज़र डाली थी, कनिका लगभग इसी साल 18 की हुई थी, दिखने में वो मनिका की तरह ही खूबसूरत थी, वही तीखे नैन नक्श, दमकता गोरा चिट्टा चेहरा और गुलाबी रसीले होंठ, छोटे छोटे अमरूद जैसी सुंदर सुंदर चुचियाँ, पतली गोरी कमर, उभरी हुई गांड, भरी मांसल जाँघे और उसके कच्चे यौवन की मादक खुशबू जयसिंह को धीरे धीरे उत्तेजित करने लगी थी, उसका फनफनाता लंड उसकी पैंट में सर उठाने लगा था, कनिका की छोटी सी कैपरी से झांकती उसकी खूबसूरत पिंडलियों ने तो जयसिंह के दिमाग का फ्यूज़ ही उड़ा कर रख दिया था, जयसिंह अपनी भावनाओं पर काबू करने की नाकाम सी कोशिश कर रहा था, पर उसका लंड तो बस जवान जिस्म का सामीप्य पाकर उसके आपे से बाहर होने लगा था,

"अच्छा तुम्हे क्या चाहिए हितेश" जयसिंह ने ध्यान बटाने के लिए हितेश की ओर देखकर पूछा

"मुझे तो नया प्ले स्टेशन चाहिए पापा" हितेश खुश होता हुआ बोला

"ज़रूर तुम्हे भी तुम्हारा गिफ्ट मिलेगा, पर पास होने के बाद" जयसिंह बोला

जयसिंह लगातार अपना ध्यान बटाने की कोशिश कर रहा था पर उसका लंड तो आज मनमानी पर उतर आया था, कनिका भी नासमझी में अपनी गांड को हिला हिलाकर उनसे बाते किये जा रही थी, इसका नतीजा ये हुआ कि अचानक कनिका की छोटी सी चुत सीधा जयसिंह के उठे हुए लंड से थोड़ा सा रगड़ गई, अपनी चुत पर लंड के इस अहसास से कनिका की हल्की सी आह निकल गई पर इसने उसे जयसिंह पर ज़ाहिर नही होने दिया, आज पहली बार किसी लंड को अपनी अनछुई छोटी सी चुत के इतने नज़दीक पाकर कनिका के बदन में एक मीठी सी टीस उठ पड़ी,
जरासल पिछले 1 साल में कनिका की दोस्ती कुछ ऐसी लड़कियों से हो गयी थी जो अक्सर उसे चुदाई के बारे में बताया करती, शुरू शुरू में तो उसे बड़ा अज़ीब लगता था पर बाद में उसे धीरे धीरे मज़ा आने लगा था, वो स्कूल में घण्टो अपनी सहेलियों के साथ चुदाई की बाते किया करती थी, कभी कभी तो वो सब मिलकर चुदाई की कहानियां भी पढ़ा करते थे, उसकी एक दोस्त ने उसे एक बार ब्लू फिल्म भी दिखाई थी जिसे देखकर वो कई दिनों तक ढंग से सो भी नही पायी, और फिर धीरे धीरे उसने मुठ मारना भी सिख लिया था, पहली बार जब उसका पानी निकला था तो उसे लगा जैसे दुनिया मे इससे ज्यादा सुख कहीं नहीं और उसके बाद से ही वो दिन में 1 बार तो अक्सर उंगली कर ही लेती थी, वो अपने ख्यालो में सोचती की जब उंगली करने से ही उसे इतना मज़ा आता है तो जब उसकी चुत में किसी का लंड जाएगा तो क्या होगा, और ये सोचकर वो मजे से सिहर जाती, वो ब्लू फिल्म्स देख देखकर लंड के बारे में सोचती तो थी पर आज तक उसने कभी भी अपनी सीमा नही लांघी थी, न ही कभी कोई गलत कदम उठाया पर आज पहली बार अपने ही पापा के लंड के बारे सोचकर उसके बदन में लाखों चीटियां एक साथ रेंगने लगी, वो चाहती तो जयसिंह की गोद से उतर जाती पर अब उसे मज़ा आने लगा था, वो जान बूझकर बहाने से अपनी गांड को हिलाती जिससे उसकी चुत जयसिंह के लंड के थोड़ा और करीब आ जाती,

कनिका के इस तरह हिलने से बार बार जयसिंह का लंड कनिका की चुत से कैपरी के ऊपर से ही रगड़ खा रहा था, जयसिंह बार बार अपने लंड को एडजस्ट करने की कोशिश करता ताकि कनिका को उसके खड़े लंड का आभास ना हो पर बार बार उसका लंड होले से उसकी चुत पर रगड़ जाता, कनिका तो अब मजे के मारे हल्की हल्की आहें भर रही थी, अचानक उसने अपनी गांड को कुछ ज्यादा ही झटका दिया जिसकी वजह से जयसिंह का लंड सीधा जाकर उसकी चुत के मुहाने पर कैपरी के ऊपर से ही अटक गया, अगर आज उनके कपड़े न होते तो जयसिंह का लंड सीधा उसकी चुत में घुस चुका होता, कनिका इस मजे को सह नही पायी और उसकी चुत से कामरस की बूंदे निकलकर उसकी कच्छी को भिगोने लगी

***************


इधर मनिका काफी देर से अपने रूम में ही बैठी सज संवर रही थी, आज उसने एक टाइट जींस पहनी थी जिसमे से उसकी गांड की वादियों की भरपूर नुमाइश हो रही थी, जीन्स का कपड़ा उसकी टांगो से इस कदर चिपका हुआ था कि उसमें से मनिका की गांड से लेकर नीचे तक कि पूरी आकृति साफ साफ महसूस की जा सकती थी, ऊपर उसने एक बहुत ही महीन कपड़े की गहरे गले की टीशर्ट पहनी थी जो उसकी नाभि से भी ऊपर तक थी, उस टीशर्ट में से उसके भारी कलश गोल गोल ख़रबूज़े जैसे दिखाई दे रहे थे और साथ ही थोड़ा ऊपर से देखने पर उसके मम्मों के बीच की गहरी लाइन साफ देखी जा सकती थी, उसने जब अपने पापा की गाड़ी की आवाज़ सुनी थी तभी से वो जयसिंह पर कहर ढाने के लिए अपने शरीर को सजा रही थी, जब उसे लगा कि वो अब पूरी तरह तैयार है तो धीरे से उठी और कमरे से बाहर निकलकर सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगी,


जब उसकी नज़र नीचे हॉल में बैठे अपने पापा की तरफ गयी तो कनिका को उनकी गोद मे देखकर तो जैसे उसके तन बदन में आग सी लग गयी, उसे कनिका से जलन सी महसूस होने लगी,

" उफ़्फ़ ये कनिका की बच्ची कैसे पापा की गोद मे जमकर बैठी है, हाय कितना मज़ा आ रहा होगा इसको पापा को छूने पर, काश इसकी जगह मैं होती, हाय्य मैं तो अपनी गांड की गोलाइयों को उनके लन्ड से सटा देती , उन्हें अपने शरीर की खुशबू से पागल ही बना देती, उफ़्फ़ क्या मादक नज़ारा होता वो, मैं अपने प्यारे पापा की गोद मे बैठकर उनके तने हुए लंड पर अपनी गांड मटकाती और वो अपने हाथों से मेरे इन प्यासे मम्मों को जी भरकर मसलते, इससस्स मैं तो मजे से पागल ही हो जाती, पर अब तो ये कनिका की बच्ची ने मेरी जगह हथिया ली है, नहीं नहीं वो सिर्फ मेरी जगह है, वहां बैठने का हक़ सिर्फ मुझे ही है" मनिका अपने मन ही मन में सोचती हुई नीचे की तरफ बढ़ती जा रही थी

"ए कनिका की बच्ची, पापा की गोद में क्यों बैठी है तू, देखती नहीं अभी अभी ऑफिस से आये हैं, थके हुए हैं और तू बेअक्ल सीधा उनकी गोद मे जाकर उन्हें और परेशान कर रही है, चल नीचे उतर जल्दी से" मनिका ने थोड़े गुस्से में आकर कनिका को कहा

कनिका ने जब मनिका को इतने गुस्से में देखा तो वो थोड़ा डर गई, वो उसके गुस्से से भली भांति परिचित थी, इसलिए उसने नीचे उतरना में ही अपनी भलाई समझी, ऊपर से वो नही चाहती थी कि उसकी गीली पैंटी का आभास जयसिंह को हो जाये ,इसलिए वो बेमन से अपने पापा की गोद से नीचे उतरी और साइड में जाकर बैठ गई, पर वो अभी भी हैरानी से मनिका को देख रही थी

इधर कनिका के गोद से उतरने पर जयसिंह के पैंट में बना उभर पूरी तरह से देखा जा सकता था, इसलिए उसने तुरंत अपने एक पैर पर दूसरे पैर को रख लिया, पर इससे पहले की वो ये सब कर पाता कनिका ने कनखियों से उनके लंड के उभार को देख लिया था, उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान आ गई थी,

"ओह माई गॉड, पापा का डिक कितना बड़ा है....... कितना बड़ा उभर बना हुआ था .......इसस्ससस ये मैं क्या सोच रही हूं......ये गलत है......पर....पर वो उत्तेजित क्यों हो गए......कहीं वो मुझे......नहीं नहीं ....ये मेरी गलती है......मुझे ऐसे उनकी गोद मे नहीं बैठना चाहिए था......पर हाय्य कितना मज़ा आ रहा था.......उनका बड़ा सा डिक कैसे मेरी पुसी को टच कर रहा था......उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ...........मुझे इतना अच्छा क्यों लग रहा है........हाय्य काश थोड़ी देर बैठ जाती ......अम्मममम कितना मज़ा आ रहा था......उम्ह्ह्ह्ह्ह मेरी चुत से पानी भी निकलने लगा है.....हाय ये मैं क्या सोच रही हूं......पर मुझे पापा की गोद में बैठकर इतना अच्छा क्यों लग रहा था....काश मैं उनकी गोद मे हमेशा बैठी रहूं....पर ....
दीदी ने आकर सारा काम बिगड़ दिया......" कनिका अपने मन मे मची उथल पुथल से परेशान थी

"अरे महारानी अब इतनी चुप क्यों हो गयी" मनिका ने कनिका को चुप देखकर पूछा

"वो.....वो...कुछ नहीं दीदी....वो तो मैं ऐसे ही एग्जाम के बारे में सोच रही थी....10 से हमारे एग्जाम शुरू हैं ना" कनिका ने सफाई से अपना बचाव करते हुए कहा

"अरे वाह, तू कब से पढ़ाई की चिंता करने लगी" मनिका ने मजाक करते हुए कहा

मनिका की बात सुनकर सारे लोग हंस पड़े और कनिका के होठों पर भी हल्की से मुस्कान आ गयी

**********


" हे भगवान, बाल बाल बच गया, अगर किसी ने मेरा पैंट का उभार देख लिया होता तो बवाल मच जाता, ये लंड भी ना...पहले से ही एक के चक्कर मे ज़िन्दगी झंड हुई पड़ी है और अब ये दूसरी को देखकर लार टपक रहा है, अगर उसे थोड़ा सा भी आभास हो जाता तो न जाने क्या हो जाता"
इधर जयसिंह के मन मे मचा तूफान थमने का नाम ही नही ले रहा था
Reply
01-02-2020, 01:06 PM,
#46
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
" हे भगवान, बाल बाल बच गया, अगर किसी ने मेरा पैंट का उभार देख लिया होता तो बवाल मच जाता, ये लंड भी ना...पहले से ही एक के चक्कर मे ज़िन्दगी झंड हुई पड़ी है और अब ये दूसरी को देखकर लार टपक रहा है, अगर उसे थोड़ा सा भी आभास हो जाता तो न जाने क्या हो जाता"
इधर जयसिंह के मन मे मचा तूफान थमने का नाम ही नही ले रहा था

थोड़ी देर ही हुई थी कि मधु ने किचन के अंदर से आवाज़ लगाई " खाना बन गया है, सारे लोग टेबल पर बैठ जाओ"
मधु की आवाज़ सुनकर सभी टेबल पर आ बैठे, हेड चेयर पर जयसिंह बैठा था , और उसके दोनों तरफ उसकी खूबसूरत जवान लड़कियां, हितेश सबसे लास्ट में बैठा था, तभी मधु अंदर से खाने के बर्तन वगरैह ले आयी और उसने सबकी प्लेट्स में खाना सर्व किया
और खुद भी वहीं बैठकर खाना शुरू कर दिया

"अरे वाह, क्या बात है, आज तो आप बिल्कुल सही टाइम पर घर आये हो, हम बुलाते है तो कभी नही आते , आज मणि ने बुलाया तो झट से दौड़े चले आये हम्म्म्म" मधु ने जयसिंह की ओर देखकर कहा

"वो....मैं.....वो" जयसिंह मधु की बात से थोड़ा घबरा गया

" अरे मम्मी, मैं पापा की सबसे प्यारी बेटी हूँ, इसीलिए तो एक बार बोलने पर भी टाइम पर आ गए" मनिका ने जयसिंह के बोलने से पहले ही जवाब दे दिया

"हां भई, ये तो है, आप सबसे ज्यादा मणि को ही प्यार करते है" मधु ने कहा

मधु की बात सुनकर मनिका को बड़ा अच्छा लगा पर जयसिंह के तो गले का निवाला वहीं का वहीं रह गया,अब वो क्या बोलता, कि अपनी इस सबसे प्यारी बेटी के लिए कभी वो दीवाना हुआ करता था और तो और आज सुबह ही उसके नाम की मुठ भी मारके आया है


इधर कनिका और मनिका दोनों ही अपने पापा के सपनो में खोई थी, मनिका अपने पापा का खोया प्यार पाने के लिए तड़प रही थी तो कनिका अभी थोड़ी देर पहले हुए घटनाक्रम के बारे सोच सोच कर गरम हो रही थी।

जैसे तैसे सभी ने अपना खाना खत्म किया, इस दौरान मनिका उससे लगातार अच्छे से बातें कर रही थी, जिससे जयसिंह थोड़ा कंम्फर्टेबल हो गया था, खाना खाने के बाद सभी लोग अपने अपने कमरों में चले गए
कनिका का जिस्म अभी भी बुरी तरीके से वासना में जल रहा था , वो कमरे में आते ही सीधा बाथरूम में घुस गई ओर पलक झपकते उसने अपने कपड़ों को अपने शरीर से आज़ाद कर दिया,
उसका संगमरमर से गोरा बदन धीमी रोशनी में चमक रहा था, उसकी चुत पर छोटे छोटे बल उग आये थे, बालो के बीच झलकती उसकी गुलाबी चुत को देखकर वो थोड़ा शर्मा सी गई

वो दौड़कर शॉवर के नीचे आकर खड़ी हो गई पर शॉवर से निकलती पानी की छोटी छोटी बूंदे उसके जिस्म पर पड़कर उसकी आग बुझाने की बजाय ओर ज्यादा भड़का रही थी,उसकी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी, उत्तेजना चरम पर थी, उसका मन जयसिंह के उभार को देखकर सिहरा जा रहा था
कनिका ने अभी की घटना को याद करके एक बहुत ही मदहोश सी अंगड़ाई ली , कनिका की इस अंगड़ाई से उसके सूंदर कड़क मम्मे बाहर की तरफ छलक पड़े और वो अपने हल्के ब्राउन कलर के निप्पलों को अपने नाखूनों से रगड़ने लगी , रगड़ कहकर उसके निप्पल कड़क हो गए थे, उसकी उभरी हुई गांड पर पानी की बूंदे गिरने से कनिका के चूतड़ो का दीदार बहुत ही जान लेवा हो चला था,

आज पहली बार अपने पापा के जिस्म को छूने की वजह से उसका रोम रोम रोमांचित हो उठा था, उसके सारे शरीर मे मीठी मीठी टीस सी उठ रही थी,अब उससे और बर्दास्त करना बहुत मुश्किल हो गया था,
कनिका ने अपने एक हाथ को अपनी टांगो के बीच रखा और दूसरे हाथ से अपने कसे हुए मम्मों को मसलना शुरू कर दिया, उसकी चुत गर्म आग की भट्टी की तरह सुलग रही थी, "उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस ओह्हहहहहहपापाआआआ .......ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस उम्ह्ह्ह्ह्ह पापाऽऽऽऽऽऽऽ…. पापाऽऽऽऽऽऽऽ…योर डिक पापा…स्स्स्स्स्स्साऽऽऽऽ सो बिग…". कहते हुए कनिका ने अपनी चूत के दाने को मसलते हुए अपने हाथ की एक उंगली को चूत में घुसा दिया ,“हाआआआआअ” अपनी चूत में उंगली को जाता हुआ महसूस कर के कनिका के मुँह से आहे निकल रही थी,उसकी गरम आहें अब लगातार बढ़ती ही जा रही थी, लगातार अंदर बाहर होती उसकी उंगली उसकी चुत की आग को ओर भड़का रही थी, अपने दूसरे हाथ से वो वो बीच बीच मे अपने निप्पल को कुरेद रही थी , आहिस्ता आहिस्ता उसकी उत्तेजना चरम पर पहुंचती जा रही रही थी, उसकी उंगलियों की रफ्तार तेज़ी से बढ़ती जा रही थी, अचानक कनिका के मुँह से एक सिसकारी उभरी और उस की फूली हुई गुलाबी फांकों वाली चूत से रस की बूंदे निकलकर बाथरूम के फर्श पर गिरने लगी, उसके मस्त बदन में हज़ारों चींटियाँ एक साथ रेंगने लगी,फिर एक दम से कनिका का शरीर अकड गया और झटके मारने गया, और अगले ही पल वो भलभला कर झड़ गयी, उसका इतना पानी आज तक नहीं निकला था, उसके शरीर मे मजे की लहर दौड़ गयी


"ऊऊऊऊ….आआआआहह….उूुऊ" की आवाज़ें अब भी उसके मुंह से निकल रही थी , थोड़ी देर जब उसके सर से वासना का भूत उतरा तो उसने अच्छे तरीके से अपने शरीर की सफाई की ओर फिर नहाकर अपने पापा के ख्यालो में खोते हुए सो गई,


इधर मनिका भी अपने रूम में अपने पापा को करीब लाने और उन्हें अपना बनाने की योजना सोच रही थी, उसे ये काम बहुत होशियारी से करना था क्योंकि इसकी भनक अगर बाकी लोगों को लग जाती तो ......

जयसिंह आज भी सुबह से हुई एक के एक घटना से परेशान था, पहले मनिका का उससे अच्छे से बाते करना, स्टोररूम में उसकी गांड का दीदार होना और फिर कनिका की चुत से उसके लंड का रगड़ जाना , इन सबकी वजह से वो हवस की आग में बुरी तरह जल रहा था, इसलिए उसने आज भी मधु की जमकर चुदाई की, पर उसके मन मे बार बार मनिका और कनिका की तस्वीर उभर रही थी

मधु की जमकर चुदाई करने के बाद जयसिंह उसके बाजू में लेट गया, तभी उसको सिंगापुर वाली बात याद आ गयी,


"मधु , एक बात तो सुनो" जयसिंह ने मधु को कडल करके उसकी चुत में अपना लंड फंसाते हुए बोला

"ओह्ह.....बोलिये, क्या बात है" मधु ने पूछा

"जरासल मुझे किसी काम से कुछ दिनों के लिए सिंगापुर जाना होगा, मुझे वहां सम्मानित किया जा रहा है" जयसिंह बोला

"अरे वाह , ये तो बड़ी अच्छी बात है, कब जाना है आपको" मधु खुश होते हुए बोली

" मुझे 6 तारीख को जाना है, और हां मैं चाहता हूं कि तुम भी मेरे साथ चलो, क्योंकि वहाँ के आर्गेनाइजर ने कहा है कि हम अपनी फैमिली में से किसी को भी साथ ले जा सकते है, सब लोग वह अपनी वाइफ के साथ आएंगे, इसलिए तुम भी मेरे साथ चलो, हम 11 को वापस आ जाएंगे, लगे हाथ हम दोबारा हनीमून भी बना लेंगे" जयसिंह ने उसके निप्पलों पर चूकोटी काटते हुए कहा
" इसस्ससस आप भी न, शादी के इतने साल बाद कोई हनीमून पे जाता है क्या, अपनी उम्र का लिहाज कीजिये" मधु शर्माते हुए बोली

"अरे क्या उम्र, अभी तो हम जवान है, ओर तुम कहो तो अभी तुम्हे दिन में तारे दिखा दे " जयसिंह ने मधु की चुत में अपने लंड को थोड़ा और घुसते हुए कहा, अब उसका लंड दोबारा तनकर तैयार हो चुका था

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़…कैसी बातें कर रहें है आप, तीन तीन बच्चो के बाप होके भी कैसे बेशर्म हुए जा रहे है" मधु को अब दोबारा मज़ा आने लगा था

" जानेमन तुम्हारे जैसे माल को देखकर कभी मैन ही नही भरता, अभी भी बिल्कुल कच्ची कली की तरह लगती हो, जी करता है कि दिन रात इसे मसलता रहूं" जयसिंह ने अब झटके लगाने शुरू कर दिए थे

"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़....ये आप कैसी बाते कर रहे है आज" मधु का बदन अब मज़े के सागर में गोते लगाने लगा था, जरासल इतने महीनों के बाद चुदने की वजह से वो भी ये चाहती थी कि अब जयसिंह उसे रोज़ाना चोदे, इतने महीनों की प्यास अब वो जमकर बुझाना चाहती थी

"ठीक ही बात कर रहा हूँ, तुम्हारी चुत अभी भी कितनी कसी हुई लगती है, दिखने में तो तुम मनिका की बड़ी बहन ही लगती हो, अबसे मैं तुम्हे रोज़ ऐसे ही चोदूंगा" जयसिंह ने झटकों की रफ्तार तेज करते हुए कहा


"ओह्ह ......आपको आज क्या हो गया है.....उन्ह्ह्ह्ह…कितना मज़ा आ रहा है.....हमेशा ऐसे ही चोदिये मुझे, इतने महीनों बाद आपसे चुद कर मैं तो मज़े से पागल हुई जा रही हूं, फाड़ दीजिये इस निगोड़ी चुत को, बुझा दीजिये इसकी महीनों की प्यास " अब मधु भी धीरे धीरे औकात में आती जा रही थी, इतने महीनों की प्यास ने उसके अंदर की हवस को बाहर आने पर मजबूर कर दिया था

जयसिंह लगातार ताबड़तोड़ धक्के लगाए जा रहा था, 20 मिनट की धमाकेदार चुदाई के बाद जयसिंह और मधु दोनों बुरी तरीके से झाड़ गए और कसकर गले लिपट गए, जयसिंह ने अब हल्के हल्के मधु के होंठों को चूसना शुरू कर दिया था, थोड़ी देर बाद जब दोनों की वासना ठंडी हुई तो जयसिंह बोला
"तो फिर तुम चलोगी न मेरे साथ सिंगापुर" जयसिंह ने मधु से पूछा

"सच पूछिए तो मेरी तो बहुत इच्छा है जाने की पर मैं चाहकर भी नही जा सकती" मधु थोड़ा दुखी होती हुई बोली

"पर क्यों नही जा सकती" जयसिंह ने हैरानी से पूछा

"आप भूल गए क्या, 11 से कनिका और हितेश के पेपर स्टार्ट हो रहे है, ऐसे में मैं कैसे जा पाऊंगी" मधु ने कहा

"हम्म्म्म बात तो तुम्हारी ठीक ही है, चलो कोई बात नही मैं अकेला ही चले जाऊंगा" जयसिंह थोड़ा सा निराश होते हुए बोला

"आप नाराज़ तो नही है ना मुझसे" मधु ने जयसिंह की आंखों में झांककर पूछा

"अरे कैसी बात कर रही हो, बच्चो से ज्यादा इम्पोर्टेन्ट और कुछ भी नही " जयसिंह ने कहा

और फिर दोनों जन एक दूसरे की बाहों में आराम से सो गए

अगले दिन जयसिंह दोबारा लेट उठा, उसकी रात की खुमारी अभी तक उतरी नही थी, वो बाथरूम में जाकर फ्रेश हुआ और तकरीबन आधे घण्टे बाद नाश्ता करने के लिए हॉल की तरफ चल पड़ा, हॉल में जाकर उसने देखा कि वहां सिर्फ और सिर्फ मधु ही बैठी चाय की चुसकियाँ ले रही थी, उसे वहां अकेला देख जयसिंह को थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि अभी 8:30 बजने को हुए थे पर कनिका ओर हितेश जो अक्सर स्कूल के लिए अब तक तैयार हो जाया करते थे, उनका कोई नामो निशान ही नज़र नहीं आ रहा था,

"अरे मधु, आज कनिका और हितेश दिखाई नहीं दे रहे, तबियत तो ठीक है उनकी, स्कूल नही जाएंगे क्या आज" जयसिंह मधु के पास ही टेबल पर बैठता हुआ पूछने लगा

"आप तो सचमुच पागल होते जा रहे है, आपको तो ये भी ध्यान नहीं कि आज संडे है, इसीलिए बच्चे आराम से सो रहे है" मधु थोड़ी हंसती हुई हुई बोली

"अरे हां, माफ करना मुझे ध्यान ही नही रहा, क्या करूँ मेरी ऑफिस तो रोजाना खुली रहती है, इसलिए पता ही नही चलता कि कब संडे है और कब मंडे" जयसिंह भी अपने कप में पास रखे हुए थर्मस से चाय डालते हुए बोला

"हां तो फिर इतना काम करने की ज़रूरत की क्या है, किसी चीज़ का ध्यान नही रखते, न सेहत का ना खाने पीने का" मधु थोड़ी तुनकती हुई बोली

"अरे यार, सेहत तो मेरी चंगी भली है, तुमने तो कल रात ही पूरी परख की है, कहो तो दोबारा दिखा दूँ कि मेरी सेहत कैसी है,ह्म्म्म" जयसिंह मधु की हथेलियों पर अपना हाथ रखते हुए बोला


"हे भगवान, आप तो बिल्कुल बेशर्म होते जा रहे है, कल रात से जी नही भर क्या जो सुबह उठते ही दोबारा चालू हो गए" मधु भी हल्के हल्के मुस्काते हुए बोली

"क्या करूँ जान, तुम चीज़ ही ऐसी हो कि जितना चखो कभी मन ही नही भरता " जयसिंह अपने होठों पर जीभ फिराता हुआ बोला

"अच्छा जी, अब मैं अच्छी हो गई, इतने महीने तो नज़र उठाकर भी नही देखा और अब बोलते हो कि एक पल भी नही रह जाता, हम्म्म्म" मधु भी अब पूरी तरह खेल में शामिल हो चुकी थी

"अरे यार, क्या बताऊँ अब, वो काम ही इतना रहता था कि बाकी चीज़ों में ध्यान ही नही गया, उस गलती के लिए मैं माफी चाहता हूं, प्लीज़ जान माफ करदो ना" जयसिंह मधु के हाथों को मसलते हुए बोला

"ऐसे कैसे माफ कर दूँ, इसकी सज़ा तो आपको मिलेगी ही" मधु अपने होठों पर मुस्कान लाते हुए बोली

"चलो भई, तुम जो सज़ा दोगी हम स्वीकार कर लेंगे" जयसिंह बोला

"ऐसे नहीं पहले वादा कीजिये कि जो मैं कहूँगी, वो आप करोगे" मधु चहकते हुए बोली

"चलो ठीक है, तुम जो कहोगी, मैं करूँगा,अब खुश" जयसिंह हँसते हुए बोला

"तो सुनिए, जब तक आप सिंगापुर नहीं जाते, आप ऑफिस से छुट्टी लेकर घर ही रहेंगे, पिछले एक साल से आपने एक दिन भी पूरा घर पर नही बिताया है" मधु बोली

"अरे पर आफिस का काम.....???" जयसिंह थोड़ा परेशान होकर बोला

"वो सब मुझे नही पता, आपने वादा किया है, अब आप मुकर नही सकते वरना मैं आपसे नाराज़ हो जाऊंगी" मधु ने नज़रे फेरते हुए कहा

"चलो भई, अब तुमने कह ही दिया है तो ठीक है, वैसे भी तुम्हारी बात टालने की हिम्मत किसमे है, इसी बहाने मैं दिन रात तुम्हारे पास रहूंगा ओर फिर........" जयसिंह ने मधु को हाथ थोड़ा जोर से दबाते हुए कहा

"ज्यादा खुश मत होइए, मैने इसके लिए आपको नहीं रोका है, मैं तो बस बच्चो की खातिर आपको रुकने के लिए बोल रही हूं ताकि आप उनके साथ अच्छा टाइम स्पेंड कर सके, और अब तो मनिका भी आ गई है " मधु ने हँसते हुए कहा

"चलो ठीक है फिर ये तय रहा, मैं 6 तारीख तक आफिस नही जाऊंगा, अब खुश" जयसिंह बोला

"बहुत खुश" मधु ने भी खुशि से जवाब दिया

जयसिंह ने तुरंत अपने आफिस में कॉल किया और बता दिया कि वो 3-4 दिन ऑफिस नही आएगा

वो दोनों अभी बाते कर ही रहे थे कि मनिका अपने कमरे से आती हुई दिखाई दी, रात भर मनिका जयसिंह के ख्यालो में खोई थी और आखिर में उसके नाम की उंगली कर आराम से सो गई थी, सुबह उठकर वो थोड़ा फ्रेश हुई और एक पतली सी पजामी और टीशर्ट डालकर सीधा नीचे आ गई

"अरे पापा, आप अभी तक ऑफिस नही गए" मनिका ने हैरान होकर पूछा

"नही मणि , वो मैंने ऑफिस से 3-4 दिन छुट्टी लेली है" जयसिंह ने सामान्य होकर जवाब दिया, अब जयसिंह की झिझक काफी हद तक कम हो चुकी थी

"अरे वाह, ये तो बड़ी अच्छी बात है, इसी बहाने मुझे आपके साथ टाइम स्पेंड करने का समय मिल जाएगा...मेरे मतलब है हमें...." मनिका के चेहरे पर खुशि साफ झलक रही थी

"चलो मणि, आकर नाश्ता कर लो,इतने में मैं हितेश और कनिका को भी उठा देती हूं" मधु ने मनिका से कहा और खिड़ कनिका के रूम की तरफ चल पड़ी

मनिका सीधी आकर जयसिंह के बाजू में बैठ गयी, मनिका ने बेहद ही गहरे गले की टीशर्ट पहनी थी जिसमे से उसकी घाटी के नजारे साफ देखे जा सकते थे, मनिका ने इस बात का फायदा उढाने की चाल सोची, वो झुक कर अपने कप में चाय डालने लगी, उसके इस तरह आगे की ओर झुकने से
मनिका की छाती जयसिंह के काफी करीब आ गई और जयसिंह की नज़रे न चाहते हुए भी उसकी टीशर्ट के अंदर ब्रा में कैद मुलायम मम्मों पर अटक गई, जयसिंह को इस लग रहा था कि मनिका के मम्मे बरसों से पिंजरे में क़ैद कबूतर की तरह थे जो आज़ाद होने के लिए फडफडा रहे थे, मनिका उस रूप में सेक्स की देवी लग रही थी, उसका यौवन उसकी ब्रा में से ही कहर ढा रहा था,उसकी छतियो के बीच की घाटी जानलेवा थी,दिल थाम देने वाली 'कातिल घाटी' , उसका नव यौवन कयामत ढा रहा था ,जाने अंजाने वो जयसिंह की साँसों में उतरती जा रही थी
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01-02-2020, 01:06 PM,
#47
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
ये जानलेवा नज़ारा देख जयसिंह का रोम रोम रोमांचित हो उठा था, उसके सारे शरीर मे मीठी मीठी टीस सी उठ रही थी, अब उससे और बर्दास्त करना बहुत मुश्किल हो रहा था, ये खतरनाक मंज़र देख जयसिंह का लंड बगावत पर उतर आया, उसने तुरंत अपने दिमाग को झटक कर अपना ध्यान भटकाने की कोशिश की पर हर बार उसकी आंखें उसकी इज़ाज़त मानने से इनकार कर देती और तुरंत उस नज़ारे को खुद में समाने के लिए उसी ओर उठ पड़ती,

"क्या हुआ पापा ,आप क्या देख रहे हो" मनिका ने जानबूझकर अपने पापा को छेड़ने के लिए कहा जबकि वो खुद जानबूझकर उन्हें अपनी घाटी का दर्शन दे रही थी
"कककककक.....कुछ...भी तो नही......वो ....वो....मैं" अचानक मनिका के इस तरह पूछने जयसिंह थोड़ा सा घबरा गया पर उसने तुरंत खुद को संभाल लिया

"अच्छा पापा, वो मुझे एक और पुरानी बुक चाहिए थी स्टोररूम से , तो उस दिन की तरह आज भी आप मुझे चढ़ा लोगे क्या" मनिका ने थोड़ी मादक आवाज़ में कहा

"हाँ हाँ क्यों नही , मैं तुम्हे जरूर चढ़ा लूंगा मणि.....मेरा मतलब चढ़ा दूंगा मणि" जयसिंह ने कहा


"देख लो पापा, मुझे चढ़ाना इतना आसान नही है, कहीं आप दब न जाये" मनिका ने अपने चेहरे पर कुटिल मुस्कान लाते हुए कहा

"चिंता मत कर मणि, तू देखना मैं तुझे कितनी अच्छी तरीके से चढ़ाता हूँ" जयसिंह भी धीरे धीरे इस खेल का मज़ा लेने लगा था, वो सोच रहा था कि उसकी बेटी बड़ी भोली है वो उसके सब्दो का मतलब नही समझ रही पर उसे क्या पता था कि खेल तो उसकी बेटी ने ही शुरू किया है

"हम्म्म्म, वो तो पता लग जायेगा कि आप कैसे चढ़ाते है" मनिका ने कहा

वो दोनों अभी बातें कर ही रहे थे कि अचानक मधु तेज़ तेज़ कदमो से कनिका के रूम से निकलती हुई उनके पास आ खड़ी हुई, वो कुछ परेशान सी लग रही थी

"अरे अब तुम्हे क्या हुआ, इतनी परेशान क्यों हो? " जयसिंह ने उसे इस हालत में देखकर पूछा

"अभी जब मैं कनिका के रूम में थी तो वहां मुझे अपनी माँ का फ़ोन आया था, वो कह रही थी कि मेरे पापा की तबियत कुछ दिनों से खराब चल रही है, इसलिए वो मुझे बच्चो के साथ 2-3 दिन के लिए वहां बुला रहीं है" मधु ने थोड़ा दुखी होकर कहा

"अरे तुम चिंता क्यों करती हो, तुम्हारे पापा जल्दी ही ठीक हो जाएंगे, तुम्हे फिक्र करने की जरूरत नही " जयसिंह ने उसको हिम्मत बंधाते हुए कहा

" पर हमारे वहां जाने के बाद आपको खाना कौन बना के देगा, आपने तो छुट्टी भी ले ली अब " मधु ने परेशान होकर पूछा

"अरे तुम मेरी चिंता बिल्कुल मत करो, मैं कुछ दिन बाहर से मंगाकर कहा लूंगा, तुम तीनो बच्चो को लेकर जल्दी ही अपने गांव जाओ" जयसिंह ने कहा

"जैसा आप ठीक समझे , मैं अभी कनिका और हितेश को उठाकर तैयार करवाती हूँ, मणि तू भी जाकर तैयार होजा, हम 1 घण्टे में ही निकलेंगे, शाम तक वहां पहुंच जाएंगे" मधु ने मनिका को लगभग आदेश देते हुए कहा
इधर मनिका जो इतनी देर से उनकी बातचीत सुन रही थी, उसके दिमाग मे एक खुराफाती तरकीब बन चुकी थी

"नहीं मम्मी, मुझे गांव नही जाना है" मनिका ने उनको चोंकाते हुए कहा

"पर क्यों नही जाना, हम जल्दी ही वापस आ जाएंगे, बस 2-3 दिन की ही तो बात है" मधु ने उससे पूछा

"देखो मम्मी, तुम तो जानती ही हो जी मुझे धूल मिट्टी से एलर्जी सी है, ऊपर से गांव में बिजली भी नही आती, और पिछली बार जब मै गांव गयी थी तो कितना बीमार पड़ गयी थी मैं, इसलिए मुझे गांव नही जाना, आप लोग ही चले जाओ" मनिका ने मधु को टका से जवाब दे दिया

"पर बेटी, 2-3 दिन में भला क्या प्रॉब्लम होगी" मधु ने आखिरी बार कोशिश करते हुए पूछा

"हाँ, मणि तुम्हारी मम्मी ठीक कह रही है, यहां पर तुम अकेले बोर हो जाओगी"जयसिंह ने भी मधु का पक्ष लेते हुए कहा

"नहीं, मैन एक बार बोल दिया तो बोल दिया मुझे गांव नही जाना, और वैसे भी मैं अकेली कहाँ हूँ, आप हैं ना मेरे साथ" मनिका ने कनखियों से जयसिंह की ओर देखकर कहा, उसके चेहरे पर अजीब सी मुस्कुराहट थी जिसे जयसिंह समझ नही पा रहा था

"चल ठीक है, तुझे नही जाना तो मत जा, इसी बहाने तू यहां रुक कर अपने पापा के लिए खाना वगरैह बना देना ,ताकि इन्हें बाहर का खाना ना खाना पड़े" मधु ने हारकर मनिका से कहा और कनिका ओर हितेश को उठाने के लिए चल पड़ी

जल्दी ही मधु , दोनों बच्चो के साथ जाने के लिए बिल्कुल तैयार थी, हालांकि कनिका का मन बिल्कुल भी नही था अपने पापा से दूर जाने का, कल ही तो बेचारी को पहली बार जयसिंह के सामिप्य का सुख मिला था , पर मधु की बात टालने की उसमे हिम्मत नही थी


जयसिंह उन्हें छोड़ने के लिए बस स्टैंड तक गया और उन्हें अच्छे से बैठाकर खुद वापस अपने घर की तरफ चल पड़ा

वो अभी गाड़ी में घर की तरफ जा ही रह था कि उसके पास ऑफिस से कॉल आ गया, उसे किसी क्लाइंट से मिलने अभी जाना था , इसलिए उसने गाड़ी मोडी और सीधा क्लाइंट के घर की तरफ चल दिया, उसने मनिका को फ़ोन करके भी बता दिया कि वो शाम को लेट ही आएगा इसलिए वो दोपहर सिर्फ अपना ही खाना बनाये

मनिका मन ही मन बहुत खुश थी, उसे तो यकीन ही नही हो रहा था कि वो 2 - 3 दिन तक अपने पापा के साथ बिल्कुल अकेली रहेगी, उसने अब पक्का इरादा कर लिया था कि वो अब जल्द ही अपनी मंज़िल पे पहुंचेगी क्योंकि ऐसा मौका उसे दोबारा नही मिलने वाला था,
इधर शाम के 5:00 बजने वाले थे पर जयसिंह अभी भी अपने क्लाइंट्स के साथ बिज़ी था, आखिर एक लंबी और थकाऊ मीटिंग के बाद जयसिंह फ्री हुआ, वो अभी गाड़ी में बैठा ही था कि अचानक आसमान में काले बादल छा गए, ओर बदलो की गड़गड़ाहट के साथ ही हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई, पर मौसम को देखकर लग रहा था कि आज तो पूरी रात ही बारिश होने वाली है, जयसिंह तुरंत गाड़ी में बैठा और फर्राटे से गाड़ी को दौड़ाने लगा, घर तक पहुंचने में उसे एक लंबा सफर तय करना था, उसने सोचा कि रात का खाना बाहर से ही खरीद कर ले चलते है ताकि मनिका को इस मौसम में परेशानी न उठानी पड़ी, यही सोचकर उसने पिज़्ज़ा हट के सामने अपनी गाड़ी रोकी और जल्दी ही 3 पिज़्ज़ा ओर कुछ बाकी खाने का सामान पैक करवा लिया, उसने मनिका को फ़ोन करके भी बता दिया कि वो आज खाना ना बनाये

जयसिंह सारा सामान पैक करके निकला ही थी कि अब मूसलाधार बरसात शुरू हो गई, देखते ही देखतेपुरी सड़के पानी से तरबदतर हो गई, जयसिंह भागकर अपनी कार में पहुंचा और तुरंत गाड़ी को घर की तरफ दौड़ा दिया, रास्ते भर में चारो तरफ पानी ही पानी था, सर्दी के मौसम में कभी कभी जो बारिश होती है उसे 'मावढ' कहा जाता है, थोड़ा भीगने की वजह से जयसिंह को हल्की हल्की ठंड भी लग रही थी, पर वो लगातार गाड़ी चलाते हुए घर पहुंचने की जल्दी में था

लगभग 1 घण्टे के सफर के बाद जयसिंह घर पहुंच गया, उसने तुरंत गाड़ी गेराज में खड़ी की और भागकर दरवाज़े की बेल बजाई, जल्दी ही मनिका ने दरवाज़ा खोला तो देखा जयसिंह हाथ मे कुछ पैकेट लिए भीग रहा है, उसने तुरन्त जयसिंह से अंदर आने को कहा


जयसिंह ने अंदर आकर पैकेट मनिका को पकड़ाया ही था की मनिका की ड्रेस देखकर वो लगभग गिरते गिरते बचा था , मनिका ने आज एक छोटी सी ब्लू कलर की स्कर्ट पहनी थी जो उसके घुटने से भी काफी ऊपर थी, उसकी सुडौल गदरायी जाँघे बिल्कुल नंगी जयसिंह की आंखों के सामने चमक रही थी, ऊपर जो उसने टॉप पहना था वो बमुश्किल उसके खूबसूरत मम्मों को छिपाए था, उसके कसे हुए मम्मे उसकी टीशर्ट में कैद होकर भी अपनी शेप को बखूबी बता रहे थे, जयसिंह की पारखी नज़रों ने तुरंत ताड लिया क़ि आज मनिका ने अंदर ब्रा नही पहनी है,

ये सोचकर तो जयसिंह का दिमाग भन्ना ही गया, वो जहाँ खड़ा था वही जड़वत खड़ा रह गया, उसके माथे पर पसीने की कुछ बूंदे उभर आई जो बारिश के पानी मे मिलकर उसे गर्म और ठंडे दोनों का अहसास एक साथ दे रही थी, उसकी उत्तेजना धीरे धीरे बढ़ने लगी, शरीर गरम होने लगा, आंखे एकटक मनिका के अधखुले बदन को निहारे जा रही थी, जयसिंह के लिए तो मानो दुनिया ठहर सी गयी, वो तो इस पल को सदा सदा के लिए अपनी आंखों में कैद कर लेना चाहता था, उसके होठ सूखने लगे, बड़ी मुश्किल से उसे थूक निगलते बना, सांसे भारी भारी सी होने लगी, उसे लग रहा था कि अगर वो थोड़ी देर और इस नवयौवन को निहारता रहा तो कहीं अपना आपा न खो बैठे ,

कहीं कोई भूल न हो जाये
इसलिए उसने अपनी पूरी हिम्मत समिति और लगभग भागते हुए अपने रूम में घुस गया, भीगे कपड़े पर गरम शरीर , उसके मन मे अजीब से ख्याल आया रहे थे, जयसिंह ने तुरन्त अपने भीगे कपड़े निकाले और अपनी बेकाबू सांसो को समेटकर टॉवल से अपने शरीर को पोंछने लगा, वो बिल्कुल नंगा अपने कमरे के बीचों बीच खड़ा खुद को सुखा रहा था, उसका लोडा अभी के नजारे को देखकर बुरी तरह फनफना रहा था, लंड की नसें तनकर बिल्कुल चमक रही थी

इधर मनिका की आंखों से जयसिंह की ये हालात छुप नही पायी, दरअसल ये उसी की खुराफात थी , उसने पहले से ही जयसिंह पर कहर ढाने की तैयारी कर ली थी,

जयसिंह ने अपने शरीर को अच्छे तरह से पोंछने के बाद एक पतले कपड़े का वाइट टॉवल लिया (जैसा सांवरिया मूवी में रणवीर कपूर ने पहना था), और उसे अपनी कमर के इर्द गिर्द लपेट लिया, उसकी वासना अभी भी शांत नही हुई थी, मनिका की कातिल अदाओं को देखकर जयसिंह इतना ज्यादा उत्तेजित हो चुका था कि उसे डर था कि कहीं उसके लंड का लावा फूट ना पड़े। उसके लंड की नसों में खून का दौरा दुगनी गति से दौड़ रहा था। उसका लंड इतना ज्यादा टाइट हो चुका था कि टॉवल के दोनों छोर को जहां से बांधा हुआ था, लंड के तगड़ेपन की वजह से टॉवल का वह छोर हट गया था या युं कह सकते हैं कि लंड टॉवल फाड़कर बाहर आ गया था, बड़ी मुश्किल से जयसिंह ने अपने लंड को थोड़ा शांत किया, और फिर अपना पजामा और टीशर्ट पहनने के लिए अलमारी खोली,

अलमारी खोलते ही उसके आश्चर्य का ठिकाना ही ना रहा, उसकी अलमारी में कपड़े का नामो निशान ही नहीं था, वो इस तरह खाली थी जैसे उसमे कभी कपड़े थे ही नही, उसे समझ नही आ रहा था कि उसके कपड़े गए कहाँ, अब उसे लगा कि शायद उसे मनिका से ही पूछ लेना चाहिए, पर समस्या ये थी कि इस हालत में वो उसके सामने कैसे जाए

थोड़ी देर इसी उलझन में रहने के बाद उसकी ये समस्या अपने आप ही सुलझ गयी, दरअसल भारी बारिश के चलते पूरे कस्बे की बत्ती गुल हो गयी थी, चारों तरफ घुप्प अंधेरा छा चुका था, बारिश के बाद का ये अंधेरा इतना गहरा था कि जयसिंह की आंखे अपने हाथों को भी नही देख पा रही थी, पर उसे इस बात की खुशी थी कि वो अब आसानी से मनिका के सामने जा सकता था,

जयसिंह दबे पांव अपने कमरे से बाहर निकला, पर अंधेरे में उसे मनिका कहीं नज़र नहीं आ रही थी, हारकर इसने मनिका को आवाज़ लगाई

"मणि, कहाँ हो तुम?" जयसिंह ने हल्की आवाज़ में उसे पुकारा
"मैं यही हूँ पापा, सोफे पे बैठी हूँ" मनिका ने जवाब दिया

"मणि, वो....वो...मैं पूछ रहा था कि मेरे कपड़े कहा गए अलमारी से , वहां पर एक भी कपड़ा नही है" जयसिंह ने पूछा

"सॉरी पापा, मैन सुबह सारे कपड़े धोने को डाल दिए थे, मैन सोच आपके आने तक सभी कपड़े धोकर सूखा दूंगी, पर मुझे क्या पता था कि इतनी जोर की बारिश आ जायेगी, इसीलिए कपड़े नही सुख पाये, और कुछ कपड़े तो अभी भी छत पर ही है क्योंकि बारिश इतनी तेज हो गई थी कि मुझे उन्हें उतारने का मौका ही नही मिला, एम रियली सॉरी पापा" मनिका ने शातिर तरीके से जवाब दिया

"पर अब मैं पहनूं क्या, मेरे कपड़े तो बरिस में आते टाइम गीले हो गए" जयसिंह ने परेशान होकर कहा

"अरे पापा, अब आप कोनसा बाहर जा रहे है, कोई तौलिया लपेट लीजिये न" मनिका बोली

"अरे वो तो अभी लपेट ही है मैंने वरना कोई नंगा....मेरा मतलब ऐसे ही थोड़े खड़ा हूँ" जयसिंह बोला

"वैसे बिना कपड़े के होंगे तो भी मुझे दिखाई नही देगा, अंधेरा कितना है" मनिका ने अब अपने पूरे हथियार इस्तेमाल करने का फैसला कर लिया था

"क्या........" जयसिंह मनिका के इस बेबाक अंदाज़ से थोड़ा ठिठक गया पर उसके लंड ने एक जोरदार तुनकी ली

"कुछ नही पापा, वो मैं कह रही थी कि मैं पानी गर्म कर देती हूं, आप थोड़ी देर बाद नह लीजिये , वरना बारिश के पानी से सर्दी लग जायेगी" मनिका ने बात बदलते हुए कहा

थोड़ी देर शांति के बाद अब मनिका अपना तुरुप का पत्ता फेंकने वाली थी,

"पापाआआआ....." मनिका ने कहा

"हां, मणि" जयसिंह ने थोड़े दुलार से कहा

"पापा मुझे आपसे एक बात कहनी है" मनिका ने थोड़ी सीरियस होकर कहा

"हाँ बोलो मणि, क्या बात है" जयसिंह को समझ नही आ रहा था कि अचानक मनिका सीरियस सी क्यों हो गई है
"पापा दरअसल मुझे आपसे माफी मांगी है" मनिका ने कहा

"मांफी , किस बात की माफी मणि" जयसिंह अब थोड़ा सा घबरा से गया था

"पाप, मुझे आपसे उस दिल्ली वाली घटना के लिए माफी मांगनी है, जिसकी वजह से मैंने आपसे इतने महीनों तक बात नही की, आपको कितना परेशान किया मैन, मुझे माफ़ कर दीजिए पापा" अब मनिका थोड़ी रुआंसी हो गयी थी, उसकी आवाज़ में भारीपन आने लगा था
!
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01-02-2020, 01:07 PM,
#48
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
"मांफी , किस बात की माफी मणि" जयसिंह अब थोड़ा सा घबरा से गया था

"पाप, मुझे आपसे उस दिल्ली वाली घटना के लिए माफी मांगनी है, जिसकी वजह से मैंने आपसे इतने महीनों तक बात नही की, आपको कितना परेशान किया मैन, मुझे माफ़ कर दीजिए पापा" अब मनिका थोड़ी रुआंसी हो गयी थी, उसकी आवाज़ में भारीपन आने लगा था

जयसिंह उसकी बात सुनकर बुरी तरह से चोंक गया, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या बोले, क्योंकि ये तो वो भी जानता था कि सारी गलती तो उसकी थी तो फिर मनिका उससे माफी क्यों मांग रही है जबकि माफी तो उसे मांगनी चाहिए, काफी देर बाद भी जब वो कुछ नही बोला तो मनिका ने ही चुप्पी तोड़ते हुए कहा

"क्या हुआ पापा, आप मुझे माफ़ नही करेंगे क्या" मनिका ने कहा

"पर......मणि...... वो...मैं.....अब क्या बोलू ........" जयसिंह हकलाते हुए बोला

"बस आप मुझे माफ़ कर दीजिए पापा, मैं दोबारा कभी भी आपको परेशान नही करूंगी" मनिका ने कहा

अब जयसिंह से भी रहा नही गया, उसने भी अपने मन मे दबे पुराने दर्द को बाहर निकालना ही मुनासिब समझा

"नहीं मणि, तुम्हे माफी मांगने की कोई जरूरत नहीं है, तुम्हारी तो कोई गलती ही नही थी, सारी गलती तो मेरी थी, मैं ही थोड़ा बहक गया था, अगर किसी को माफी मांगनी चाहिए तो वो मैं हूँ, प्लीज मणि मुझे माफ़ कर दो, मैं बहक गया था, मेरी बुद्धी भ्रष्ट हो गयी थी, तुमने तो वही किया जो उस स्थिति में सही था" अब जयसिंह भी भावुक हो उठा
था

"नहीं पापा, गलती मेरी भी थी, मुझे पता है आप मेरी वजह से ही उत्तेजित हो गए थे, आखिर आप भी तो मर्द है, आपके मन मे भी तो कुछ भावनाएं है, और मैं जाने अनजाने उन भावनाओ को भड़कती रही, जिसकी वजह से ही आप वो सब करने पर मजबूर हो गए, आपने जो किया आप उसकी पहले ही बहुत सज़ा भुगत चुके थे पर मैने इतने महीनों तक आपसे बातें नही की, आपको इतना दुख दिया, मेरी वजह से आपने ढंग से खाना पीना भी छोड़ दिया, मम्मी कह रही थी कि आप ढंग से सोते भी नही थे, मुझे पता है कि ये सब मेरी वजह से हुआ है, इसलिए आप भी मुझे माफ़ कर दीजिए पापा" अब मनिका की आंखों से थोड़े आंसू निकल आये थे

"नहीं मणि, मेरी गलती के सामने तो तुम्हारी गलती कुछ भी नही, तुम मुझे माफ कर दो " जयसिंह भावुक होकर
बोला
"ठीक है पापा,अगर आप यही चाहते है तो मैं आपको अभी माफ कर देती हूं पर आप भी मुझे माफ़ करदो" मनिका ने जयसिंह से कहा

"जरूर बेटी, मैं तो तुन्हें कभी गलत समझता ही नही था, इसलिए माफी का तो सवाल ही नही उठता पर अगर तुम यही इच्छा है तो मैं तुम्हे माफ करता हूँ मणि"

अब मनीका भागकर अपने पापा की बाहों में समा गई, दोनों बाप बेटी काफी देर तक एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले सुबकते रहे, दोनों के मन का पश्चाताप उनकी आंखों से आंसुओ के रूप में बाहर निकल चुका था ,

इसी तरह खड़े जब काफी देर हो गई तो जयसिंह ने मनिका को अपनी बाहों में से निकालने की कोशिश की, पर मनिका तो जैसे बेल की तरह उनके अधनंगे शरीर से लिपटी हुई थी, वो तो जैसे कभी जयसिंह से दूर ही नही होना चाहती थी , उसने तुरंत दोबारा जयसिंह को खींचकर अपने से जोर से चिपक लिया, इसका सीधा असर ये हुआ कि मनिका के गोल गोल खरबूजों जैसे खूबसूरत मम्मे जयसिंह की छाती में धंसते चले गए, मनिका के नरम मखमली मम्मों के स्पर्श से ही जयसिंह के बदन में एक लहर सी दौड़ गयी,

वो मनिका के नुकीले हो चुके निप्पल्स को अपनी नंगी छाती में साफ साफ महसूस कर पा रहा था, उसकी सांसे अब भारी होने लगी, उसका लंड दोबारा औकात में आने लगा, जयसिंह में लाख कोशिश की उसका ध्यान भटक जाए पर उसका लंड तो पूरी बगावत पर उतर आया, जयसिंह का लंड तोलिये की दरारों से होता हुआ सीधा मनिका की स्कर्ट से जा टकराया, जयसिंह ने अपनी कमर को थोड़ा पीछे करने की कोशिश की ताकि उसका खड़ा लंड मनिका की नज़रों से बच सके, पर तभी अचानक मनिका और ज्यादा आगे होकर जयसिंह से चिपट गयी , इस तरह अचानक आगे बढ़ने से जयसिंह का लंड सबध मनिका की छोटी सी स्कर्ट के अंदर घुसकर इसकी सुडौल जांघो से जा टकराया, मनिका तो इस आभास से रोमांचित हो उठी, अपनी नंगी जांघो पर अपने पापा के नंगे लंड का स्पर्श पाकर उसकी मदमस्त चुत से पानी की एक बूंद टपक कर बह निकली, दोनों के जिस्म भट्टी की तरह सुलग रहे थे, अब जयसिंह से बर्दास्त करना मुश्किल हो रहा था, इससे पहले की कुछ और अनहोनी होती ,जयसिंह तुरंत पीछे हट गया,


"क्या हुआ पापाआआआ....." मनिका ने जयसिंह के इस तरह पीछे हटने की वजह से हैरान होकर पूछा

"वो ....मणि... वो ....मैं....अब मैं क्या कहूँ तुमसे" जयसिंह से बोलते नही बन रहा था, उसे ये तो पक्का भरोसा हो गया था कि मनिका ने उसके लंड को अपनी जांघो पर महसूस कर लिया है

"क्या हुआ पापा, आप पीछे क्यों हैट गए, क्या मैं इतनी बुरी हूँ कि आप मुझे गले से भी नही लगा सकते" मनिका ने कहा

"नही मणि, वो बात नही है, वो मैं...अब मैं तुम्हे कैसे बताऊ" जयसिंह थोड़ा सा परेशान होकर बोला

"आप मुझे क्या बताना चाहते है वो मैं जानती हूं" मनिका ने कहा

"क्या......." जयसिंह घबरा कर बोला
"यही न कि मेरे इस तरह चिपकने से आप उत्तेजित हो गए और आपका वो...मेरा मतलब है कि.....वो मेरी जांघो से टच हो गया" मनिका अब पूरी तरह हवस की शिकार हो चुकी थी

"मुझे माफ़ करना बेटी, मैंने जानबूझकर नही किया, वो बस अपने आप हो गया, मुझे माफ़ कर दो प्लीज़" जयसिंह ने घबरा कर कहा

"आप चिंता मत कीजिये, मैं बिल्कुल भी नाराज़ नही हूँ, मैन कहा था न कि मैं आपकी भावनाओं को समझती हूं, आप बिलकुल भी मत घबराइए" मनिका ने इतने आराम से अपनी बात कही जैसे ये कोई मामूली सी बात हो

जयसिंह मनिका के इस रवैये से बिल्कुल हैरान रह गया, उसे भरोसा ही ही नही हो रहा था कि कभी छोटी छोटी बात पर गुस्सा करने वाली उसकी बेटी आज इतना कुछ होने पर भी इसे मामूली सी बात कह रही है

"क्या हुआ पापा, आप क्या सोच रहे है" मनिका ने अपनी मादक आवाज़ में कहा


" कककुछ नही मणि" जयसिंह ने कहा

"ये मणि मणि क्या लगा रखा है पापाआआआ, भूल गए आपने मुझसे वादा किया था दिल्ली में कि आप मुझे अकेले में मनिका कहकर पुकारेंगे" मनिका की आवाज़ से वासना साफ साफ झलक रही थी

" पर वो मैं ....." जयसिंह बोलते हुए हकला रहा था

"मैं कुछ नही सुनना चाहती, आप बस आज के बाद अकेले में मुझे मनिका ही कहोगे" मनिका ने चहक कर कहा

"चलो ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी मणि..... मेरा मतलब मनिका" जयसिंह ने कहा

इतने दिनों बाद अपने पापा के मुंह से अपने लिए मनिका शब्द सुनकर मनिका के जिस्म में सुरसुराहट सी दौड़ गयी

"आप थोड़ी देर बैठो पापा जब तक मैं आपके नहाने के लिए पानी गर्म कर देती हूं" ये कहकर मनिका किचन में चली गयी और गैस पर एक बर्तन पे पानी चढ़ा दिया क्योंकि बिजली न होने की वजह से गीजर नही चला सकते थे
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01-02-2020, 01:07 PM,
#49
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
मनिका अभी पानी का बर्तन गैस पर रखकर खड़ी हुई ही थी कि उसकी नज़र पास की टोकरी में पड़े बैंगनों पर चली गई,
उनमे से एक बैंगन थोड़ा ज्यादा लंबा और मोटा तगड़ा था, उस बैंगन को हथेली में लेते ही तुरंत मनिका को अपने पापा का लंड पहली बार देखने वाला दृश्य याद आ गया , यह बैंगन भी लगभग उतना ही मोटा तगड़ा था जितना की उसके पापा का लंड था, उस बैंगन को हाथ मे लेकर ही मनिका उत्तेजित हो गई और अपने पापा के लंड को याद करके उसकी बुर फुलने लगी।


मनिका की हालत अब खराब हो रही थी ,बैगन को देख देख कर उस की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी, मनिका उस मोटे तगड़े बैंगन को यूं पकड़ी थी कि मानो वो बैगन ना होकर उसके पापा का लंड हो, उत्तेजना में मनिका बैंगन को ही मुठ्ठीयाने लगी, उसे बैगन का निचला भाग बिल्कुल जयसिंह के लंड के सुपाड़े के ही तरह प्रतीत हो रहा था, जिस पर मनिका अपना अंगूठा रगड़ रही थी, थोड़ी देर पहले वाला नजारा उसकी आंखों के सामने नाच रहा था जब उसके पापा का नंगा लंड उसकी जांघो से आ टकराया था, उस पल को याद कर करके अब मनिका की चुत से पानी की बूंदे लगातार रिसने लगी थी, उसके मन में उस बैंगन को लेकर अजीब से ख्याल आये जा रहे थे, बैंगन की लंबाई और मोटाई उसे अपने पापा का खड़ा लंड याद दिला रही थी, जिसे याद करके मनिका से अब बर्दाश्त कर पाना मुश्किल हुए जा रहा था, आखिरकार उसने अपनी गर्मी को शांत करने के लिए बैंगन को पूरा उठा लिया और थोड़ा सा आगे की तरफ झुक गई, जिससे कि उसकी भरावदार बड़ी-बड़ी गांड उभरकर सामने आ गई और मनिका एक हाथ से बैंगन को लेकर स्कर्ट के ऊपर से ही बुर वाली जगह पर हल्के हल्के रगड़ने लगी, जैसे ही बैंगन का मोटा वाला हिस्सा बुर वाली जगह के बीचो-बीच स्पर्श हुआ वैसे ही तुरंत मनिका मदहोश हो गई और उसके मुख से गरम सिसकारी फूट पड़ी। थोड़ी देर बाद उसने बैंगन को साइड में रख दिया और पानी गरम करने पर अपना ध्यान लगाने लगी
,

बाहर जयसिंह अभी हुई घटना के बारे में सोच सोच कर परेशान हो रहा था ,उसे समझ ही नही आ रहा था वो इस पर कैसे रियेक्ट करे,

"मनिका का इस तरह मुझसे बेबाकी से चिपट जाना, बिना ब्रा के ही टीशर्ट पहन लेना,मुझे दिल्ली वाली घटना के लिए माफ कर देना और तो और मेरे लंड के उससे टच होने पर भी गुस्सा न होना" जयसिंह इन्ही बातो को समझने की कोशिश कर रहा था, पर साथ ही साथ उसको ये आनंद भी आ रहा था कि आज उसने अपनी बेटी के मुलायम मम्मों को महसूस किया, उसकी गोरी चिट्टी भरावदर जांघो से अपने लंड को रगड़ा,ये सोच सोच कर ही जयसिंह का लंड फूलकर कुप्पा हुआ जा रहा था, उसे ऐसा लग रहा कि उसके लंड में खून दुगुनी गति से दौड़ रहा हो, जयसिंह ने जब काफी देर मशक्कत की तो उसे भी अब हल्का हल्का शक से होने लगा
कि


"शायद मनिका दिल्ली जाकर बदल गयी है...... हो सकता है वो सेक्स के बारे में सिख गयी हो.......हो सकता है कि उसकी दोस्तो ने उसे चुदाई के बारे में बता दिया हो और शायद उनकी बातों से गरम होकर ये खुद भी सेक्स की आग में जल रही हो.....वैसे भी इसकी उम्र की लड़कियां तो चुदाई में पारंगत हो जाती है..... लगता है इसके मन मे भी चुदाई की जिज्ञासा जाग गयी और शायद बाहर किसी अंजान के डर से ये मेरे साथ ही........नहीं नहीं ये मैं क्या सोच रहा हूँ......वो मेरी बेटी है......पर वो तो खुद ही मुझे ढील दिए जा रही है......पर ये मेरी गलतवहमी भी तो हो सकती है......शायद वो बस मुझसे सारे गिले शिकवे दूर कर दोबारा बाप बेटी के रिश्ते को सामान्य करना चाह रही हो....पर अगर उसे करना होता तो वो मुझे खुद को मनिका पुकारने के लिए क्यों कहती.....क्यों वो मेरे लंड के टच होने पे भी बिल्कुल शांत रही.....इन सब बातों का कुछ न कुछ मतलब तो जरूर होगा"
जयसिंह इसी उधेड़बुन में लगा था पर उसे कुछ नही सूझ रहा था,पर साथ ही साथ वो अभी मनिका के संग गुजारे गए पल को याद करके मस्त हुआ जा रहा था, उसके पेंट का तंबू बढ़ने लगा था, और जब भी उसे मनिका की भरावदार गांड के बारे में ख्याल आता तो उस की उत्तेजना दुगनी हो जाती, वो अपने बदन की गर्मी को कैसे शांत करें इसका कोई जुगाड उसे समझ नही आ रहा था, बार बार उसकी आंखों के सामने मनिका की कसी हुई चुंचिया और भरावदार गांड की तस्वीर नाच पड़ती, हारकर जयसिंह ने सोचा कि चलकर एक गिलास ठंडा पानी ही पी लिया जाए ताकि उसका मन कुछ हद तक शांत हो


जयसिंह पानी पीने के लिए किचन की तरफ आ रहा था और जैसे ही वो किचन के दरवाजे पर पहुंचा तो सामने अपनी बेटी को झुकी हुई अवस्था में देखकर उसका लंड एक बार फिर से टनटना कर खड़ा हो गया, झुकने की वजह से उसकी छोटी सी स्कर्ट में से उसकी गुलाबी कच्छी की हल्की सी झलक उस गैस की जलने वाली आग में धुँधली सी दिखाई पड़ रही थी, जिसे देखते ही जयसिंह की आंखों में मदहोशी छाने लगी,उसकी सांसे तेज चलने लगी, जयसिंह का लोडा तनकर तौलिये से बाहर निकलने को बेकाबू हो रहा था, जयसिंह तौलिये के ऊपर से ही अपने लंड को मसलते हुए उस जानलेवा नज़ारे का आनंद उठा रहा था,
अब जयसिंह से और बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया था, वो दबे पांव धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा, मनिका अब दोबारा खड़ी हो चुकी थी, उसे बिल्कुल भी आभास नही था कि उसके पापा उसके पीछे आकर उसका चक्षुचोदन करने में लगे हुए है, इधर जयसिंह धीरे धीरे चलकर मनिका के बिल्कुल पास पहुंच गया, इतने पास की मनिका के कच्चे बदन की मादक खुशबू उसके नथूनों में घुसने लगी,

"मनिका, पानी गर्म हो गया क्या" जयसिंह ने अचानक मनिका के कान के बिल्कुल पास आकर कहा

मनिका इस अचानक हमले से डर गई और उचककर थोड़ा पीछे की ओर हो गयी, और इसी दौरान वो हो गया जिसके लिए वो दोनों ही महीनों से तड़प रहे थे, मनिका के इस तरह अचानक पीछे हटने से जयसिंह अपने आप को संभाल नही पाया और उसका लंड जो तोलिये से लगभग बाहर ही था, वो सीधा मनिका की हल्की उठी हुई स्कर्ट के अंदर होते हुए उसकी गुलाबी पैंटी से जा रगड़ा, इस रगड़ से दोनों के मुंह से एक मादक सिसकारी फुट पड़ी, लगभग 30 सेकंड्स तक वो दोनों उसी अवस्था मे रहे, अब जयसिंह ने थोड़ा पीछे हटना ही मुनासिब समझा ओर जैसे ही वो पीछे हटने को हुआ उसका लंड भरपूर तरीके से कच्छी के ऊपर से ही मनिका की छोटी सी चुत से रगड़ गया, इस घर्षण से दोनों के बदन में मस्ती की एक लहर सी उठ गई, मनिका की चुत इतनी गर्मी बर्दास्त नही कर पाई और उसकी चुत से पानी की एक हल्की सी लकीर बहकर उसकी गुलाबी कच्छी को गीली कर गयी,मनिका को अब भरपूर मजा आ रहा था , अपने पापा के लंड की चुभन उसे मदहोश बना रही थी, उसकी आंखों में खुमारी झलकने लगी थी, उसका गला सूखता जा रहा था,
वो उत्तेजना में अपनी बड़ी कटावदार गांड को गोल गोल घुमा कर अपने पापा के लंड को चुभवा रही थी, इधर जयसिंह को जल्द ही मनिका की चुत के गीलेपन का अहसास हो गया था, और अब जयसिंह का शक यकीन में बदल गया था

पर इससे पहले की जयसिंह कुछ कर पाता , मनीका ने खुद ही थोड़ी आगे खिसककर जयसिंह के लंड से अपनी छोटी सी चुत को बेमन से दूर कर लिया

"अम्म... पापाआआआ..... पानीइई तो अभी गरम नही हुआ है" मनिका ने कांपते होठों से जवाब दिया, वो कहना तो चाहतो थी कि पानी तो नही पर वो खुद जरूर गरम हो गयी पर उसकी जीभ ने उसका साथ नही दिया

"ठीक है मनिका, मैं तब तक बाहर बैठता हूँ, वैसे भी अंधेरे में कुछ दिखाई नही दे रहा है" जयसिंह बोला

"पर आप आये क्यों थे पापाआआआ" मनिका ने पूछा

"अरे, मैं तो भूल ही गया, मैं तो पानी पीने आया था" जयसिंह ने कहा

"तो मेराअअआ पानी........आई मीन पानी पी लीजिए ना पापाआआआ" मनिका ने मादक आवाज़ में कहा



"जरूर मनीका, वो तो मैं पी ही लूंगा" जयसिंह ने अंधेरे का फायदा उठाकर अपने होठों पर जुबान फेरी और फिर पानी की बोतल लेकर किचन से बाहर निकल पड़ा,

जयसिंह के जाने के बाद मनिका ने महसूस किया कि वो पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी ,उसने अपनी स्कर्ट के अंदर अपनी बुर वाली जगह टटोली तो हैरान रह गई थी क्योंकि उसके काम रस ने पेंटी को पूरी तरह गीली कर दिया था, अब उसने सोच लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाये , आज तो वो अपनी मंज़िल को पाकर ही रहेगी
"अगर पापा की जगह कोई और होता तो इतना सब कुछ होने के बाद मुझे यही पटककर चोद देता , पर शायद पापा के मन की झिझक अभी पूरी तरीके से दूर नही हुई है, पर कोई बात नहीं, मैं आज उनकी सारी हिचकिचाहट हमेशा हमेशा के लिए दूर कर दूंगी" मनिका अपने मन ही मन सोच रही थी

तभी उसके दिमाग मे एक ख्याल आया और वो गैस को कम करके बाहर हॉल की तरफ चल पड़ी, जहां जयसिंह बैठा हुआ था,

"अरे पापा, वो मैं छत पर से कपड़े लाना तो भूल ही गयी, अब तो बारिश भी कम हो गयी है, मैं अभी जाकर कपड़े लाती हूं" मनिका ने थोड़ा चिंतित होने का नाटक करते हुए कहा

"पर मनिका, तुम भीग जाओगी, अभी भी हल्की हल्की बारिश हो रही है, सीढियां भी गीली हो रखी है, अगर कहीं पैर फिसल गया तो, तुम रुको मैं भी तुम्हारे साथ चलता हूँ"जयसिंह ने जवाब दिया

जयसिंह का जवाब सुनकर मनिका के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभर आई, उसे अपने मकसद में कामयाबी मिलते दिख रही थी



पर अचानक बारिश का जोर दोबारा बढ़ता ही जा रहा था, मनिका जानती थी की छत पर जाकर कपड़े समेटने का कोई मतलब नहीं था क्योंकि सारे के सारे कपड़े गीले हो चुके ही होंगे, पर उसका मकसद तो कुछ और ही था, इसलिए वो छत की तरफ जाने लगी, जयसिंह भी उसके पीछे पीछे सीढ़ियों पर चढ़ने लगा, इस तरह सीढ़ियों पर चढ़ते हुए अपनी बेटी को देखकर उसका मन डोलने लगा था, क्योंकि जयसिंह की प्यासी आँखे उसकी बेटी की गोल गोल बड़ी गांड पर ही टीकी हुई थी, वैसे भी मन जब चुदवासा हुआ होता है तब औरत का हर एक अंग मादक लगने लगता है लेकिन यहां तो मनिका सर से लेकर पांव तक मादकता का खजाना थी, सीढ़ियों पर चढ़ते समय जब वो एक कदम ऊपर की तरफ रखती, तब उसकी भरावदार गांड और भी ज्यादा उभरकर बाहर की तरफ निकल जाती, जिसे देखकर जयसिंह के लंड में एेंठन होना शुरू हो गई थी, बस यह नजारा दो-तीन सेकंड का ही था और मनिका आगे की तरफ बढ़ गई लेकिन यह दो-तीन सेकेंड के नजारे ने ही जयसिंह के बदन को कामुकता से भर दिया, वो भी अपनी बेटी के पीछे पीछे सीढ़ियों से धीरे धीरे ऊपर चढ़ा जा रहा था, बारिश तेज हो रही थी, मनिका जानती थी की छत पर जाने पर वो भी भीग जाएगी लेकिन ना जाने क्यों आज उसका मन भीगने को ही कर रहा था, वो छत पर पहुंच चुकी थी, और बारिश की बूंदे उसके बदन को भिगोते हुए ठंडक पहुंचाने लगे,बारिश की बूंदे जब उसके बदन पर पड़ती तो मनिका के पूरे बदन में सिरहन सी दौड़ने लगती, था और ऊपर से यह बारिश का पानी उसे और ज्यादा चुदवासा बना रहा था, मनिका की पीठ जयसिंह की तरफ थी, मनिका पूरी तरह से भीग गयी थी और उसके बाल खुले हुए थे, जो कि पानी में भीगते हुए बिखर कर एक दूसरे में उलझ गए थे, मनिका के कपड़े पूरी तरह से गीले हो कर बदन से ऐसे चिपके थे कि बदन का हर भाग हर कटाव और उसका उभार साफ साफ नजर आ रहा था, जयसिंह तो यह देख कर एकदम दीवाना हो गया ,उसकी टॉवल भी तंबू की वजह से उठने लगी थी, उसको अपनी बेटी के खूबसूरत बदन का आकर्षण इस कदर बढ़ गया था कि उसके बदन में मदहोशी सी छाने लगी थी ,

उसे अब यह डर भी नहीं था कि कहीं उसकी बेटी उसकी जांघों के बीच बने हुए तंबू को ना देख ले, और शायद जयसिंह भी अब यही चाहता था कि उसकी बेटी की नजर उसके खड़े लंड पर जाए, जयसिंह भी बारिश के पानी का मजा ले रहा था लेकिन बारिश का यह ठंडा पानी उसके बदन की तपन को बुझाने की बजाय और भी ज्यादा भड़का रहीे थी, मनिका अब कपड़े समेटने की बजाय भीगने का मजा ले रही थी ,पहली बार यूँ आधी रात को वो छत पर भीेगने के लिए आई थी, शायद बारिश के ठंडे पानी से अपने बदन की तपन को बुझाना चाहतीे थी लेकिन इस बारिश के पानी से उसके मन की प्यास और भी ज्यादा भड़क रही थी, उसे पता था कि उसके पापा उसके भीगे बदन को देखकर उत्तेजित हो रहे होंगे और शायद वो भी यही चाहती थी, उत्तेजना के मारे भीगती बारिश में उसके दोनों हाथ खुद-ब-खुद उसकी चूचियों पर चले गए, जयसिंह साफ साफ तो नही देख पा रहा था पर बीच बीच मे बिजलियाँ चमकने से उसकी नज़र अपनी बेटी की इस हरकत पर चली जाती, वो आंख फाड़े अपनी बेटी की इस हरकत को देखा जा रहा था, उत्तेजना के मारे जयसिंह के लंड में अब मीठा मीठा दर्द होने लगा था, लंड की ऐंठन और
दर्द और भी ज्यादा बढ़ गया जब जयसिंह ने देखा कि मनिका की दोनों हथेलियां चूचियों पर से हटकर बारिश के पानी के साथ सरकते सरकते उसकी भारी भरकम भरावदार गांड पर चली गई और गांड पर हथेली रखते ही वो उसे जोर जोर से दबाने लगी।

अपनी बेटी की पानी में भीगी हुई मदमस्त भरावदार गांड को दबाते हुए देखकर जयसिंह से रहा नहीं गया , वो मदहोश होने लगा ,उसकी आंखों में खुमारी सी छाने लगी, एक बार तो उसके जी में आया कि पीछे से जाकर अपनी बेटी के बदन से लिपट जाए और तने हुए लंड कोें उसकी बड़ी बड़ी गांड की फांकों के बीच धंसा दे, लेकिन उसने बड़ी मुश्किल से अपने आपको रोके रखा, अपनी बेटी की कामुक अदा को देखकर जयसिंह की बर्दाश्त करने की शक्ति क्षीण होती जा रही थी, लंड में इतनी ज्यादा ऐठन होने लगी थी कि किसी भी वक्त उसका लावा फूट सकता था, अभी भी उसकी बेटी के दोनों हाथ उसकी भरावदार नितंबों पर ही टिके हुए थे,
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01-02-2020, 01:08 PM,
#50
RE: Incest Kahani बाप के रंग में रंग गई बेटी
जयसिंह वहीं उसके पीछे खड़े खड़े अपनी बेटी की इस हरकत को देख देख कर पागल हुए जा रहा था ,मनिका की हर एक अदा पर उसका लंड तुनकी मारने लगा था, जयसिंह की कामुक नजरें अपनी बेटी के मदमस्त बदन, चिकनी पीठ, गहरी कमर और उभरे हुए नितम्ब पर टिकी हुई थी

पर उसे हल्का हल्का डर भी लग रहा था कि कहीं मनिका ने पीछे मुड़कर उसे देख लिया तो वो कहीं गुस्सा ना हो जाए

जयसिंह की नजर अपनी बेटी के बदन के हर एक कोने तक पहुंच रही थी, पानी में भीगकर मनिका की टीशर्ट उसकी चूचियों से इस कदर चिपक गई थी कि उसके बिना ब्रा के मम्मे अब साफ साफ दिखाई पड़ रहे थे, जयसिंह ललचाई आंखों से पानी में भीगी हुई अपनी बेटी की चुचियों को देख रहा था ,तभी अचानक मनिका पलट गई, और उसने तुरंत अपने पापा की नजरों को भांप लिया, अपने पापा की कामुक नजरो को अपनी चूची पर घूमती हुई देखकर उसकी बुर में सुरसुराहट होने लगी, उसे मदहोशी सी छाने लगी, मनिका की नजरें एकाएक उसके पापा की नंगी छातियों पर पड़ी, जो कि अच्छी खासी चौड़ी ओर गढ़ीलि थी , अल्हड़ मस्त जवानी में ऐसे गठीले बदन को देखकर मनिका बुरी तरह उत्तेजित होने लगी ,


बारिश का जोर अब और ज्यादा बढ़ने लगा था, बिजली की चमक और बादलों की गड़गड़ाहट बढ़ने लगी थी, एक तरफ यह तूफानी बारिश थी, और दूसरी तरफ इतनी तूफानी बारिश में भी दोनों बाप बेटी एक दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करने में लगे हुए थे,


तेज बारिश में अपनी बेटी की ऊपर नीचे हो रही छातियों को जयसिंह साफ-साफ देख पा रहा था, मनिका की छोटी सी टीशर्ट में से उसका गोरा चिकना पेट और पेट पर नीचे की तरफ उसकी मदमस्त गहरी नाभि एकदम साफ दिखाई दे रही थी, जिस पर रह रहकर जयसिंह की नजरे चली जाती, मनिका ने जब अपने पापा की नजरों को अपने बदन पर नीचे की तरफ जाता देखा तो उसकी नजर भी अपने पापा की कमर से नीचे चली गई, पर जैसे ही उसने वहां का नज़ारा देखा उसका दिल धक्क से रह गया, उसकी भीगी बुर मे से भी मदन रस चू गया,


मनिका और कर भी क्या सकती थी, उसके पापा के कमर के नीचे का नजारा ही कुछ ऐसा था कि उसकी बुर पर उसका कंट्रोल ही नहीं रहा, मनिका आंख फाड़े अपने पापा को देख रही थी, बारिश के पानी मे जयसिंह का टॉवल एकदम गीला हो चुका था, टॉवल का कपड़ा भीगने की वजह से गीला होकर और ज्यादा वजनदार हो गया, लेकिन टॉवल के अंदर जयसिंह का लंड एकदम टाइट हो कर आसमान की तरफ देख रहा था, जिससे टॉवल में एक बड़ा सा तंबू बन गया था, इस नजारे को देखकर मनिका समझ गई थी कि उसके पापा का लंड उसकी अदाओं से ही खड़ा हुआ है, ये सोचकर ही उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई,

वो अच्छी तरह से जान गई थी की उसके कामुक भीगे हुए बदन को देखकर ही उसके पापा का लंड खड़ा हो गया है, ऐसी तूफानी बारिश में भी मनिका अब पुरी तरह से गर्म हो चुकी थी।

इधर अब जयसिंह भी जान गया था कि उसकी बेटी की नजर उसके खड़े हुए लंड पर पड़ चुकी है, इस पल एक दूसरे को देख कर दोनों बाप बेटी बिल्कुल चुदवासे हो चुके थे, बादलों की गड़गड़ाहट की आवाज माहौल को और गर्म कर रहा थी, अब ना तो मनिका से रहा जा रहा था और ना ही जयसिंह से , दोनों बाप बेटी अपने आप को संभाल पाने में असमर्थ साबित हो रहे थे, दोनों तैयार थे लेकिन दोनों अपनी अपनी तरफ से यह देख रहे थे कि पहल कौन करता है,

मनिका जयसिंह को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए सब कुछ कर रही थी लेकिन वो भी असली पहल करने में थोड़ी शर्मा रही थी ,


"ऐसे क्या देख रही हो मनिका? " जयसिंह अंजान बनते हुए मनिका की तरफ देखकर बोला

"कुछ नहीं पापा, मैं बस यह देख रही हूं कि मेरा साथ देने के लिए आप इतनी रात को भी छत पर भीगने चले आए , आप कितने अच्छे है पापा" मनिका चहकते हुए बोली

"अरे बेटी ये तो मेरा फ़र्ज़ है कि मेरी सबसे प्यारी बेटी की हमेशा देखभाल करूँ" जयसिंह की नजरें अब भी मनिका की भीगी हुई चुचियों पर गड़ी थी,


"उन्ह्ह्ह्ह…ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़… ये स्कर्ट भी ना" मनिका कसमसाते हुए बोली

"क्या हुआ मनिका" जयसिंह उसे ताड़ते हुए बोला

"उन्ह्ह्ह्ह.....पापा मेरी स्कर्ट पानी से पूरी तरह भीग गई है, मुझे बड़ा अजीब सा फील हो रहा है, मन कर रहा कि स्कर्ट को उतार दूँ, पर आपके सामने कैसे?" मनिका ने अपने होंठों को चबाते हुए कहा

मनिका की ये बात सुनकर तो जयसिंह के कान गर्म हो गए, उसे विश्वास ही नही हो रहा था कि उसकी बेटी उसके सामने अपनी स्कर्ट उतारना चाहती है, उसके लोडे ने तुनक कर एक ठुमकी ली, अब वो भी इस खेल में आगे बढ़ने के लिए बिल्कुल तैयार था

"कोई बात नही मनिका, अगर तुम्हें तकलीफ हो रही है तो तुम अपनी स्कर्ट उतार दो, वैसे भी इतना अंधेरा है, मुझे कुछ भी साफ दिखाई नही दे रहा" जयसिंह ने ये बात अपनी पूरी ताकत समेट कर कही थी



मनिका तो जैसे जयसिंह की हाँ का ही इंतेज़ार कर रही थी, उसके कहने के साथ ही मनिका ने जयसिंह को लुभाने के लिए अपनी उंगलियों को स्कर्ट की पट्टी में फंसाया और अगले पल ही उसे अपने पैरों की गिरफ्त से आज़ाद कर दिया, अब वो सिर्फ एक छोटी सी गुलाबी पैंटी और महीन सी टीशर्ट पहने खड़ी जयसिंह पर कहर ढा रही थी, ये जानलेवा नज़ारा देखकर जयसिंह के बदन में कामाग्नी भड़क उठी, शायद मनिका को देखकर बरसात भी उसकी दीवानी हो गई थी, इसलिए तो स्कर्ट को उतारते ही बरसात और तेज पड़ने लगी , बादलों की गड़गड़ाहट बढ़ गई, बिजली की चमक माहौल को और भी ज्यादा गर्म करने लगी, मनिका अपनी कामुक अदा से अपने ही पापा को लुभाने लगी, वो जानती थी कि उसके नाम मात्र के कपड़ो मे से उसके गोरे बदन का पोर पोर झलक रहा है और उसे देखकर उसके पापा उत्तेजित हो रहे है ,पर वो तो और ज्यादा दिखा कर अपने पापा को अपना दीवाना बना रही थी

जयसिंह भी अपनी बेटी की अदाओं को देखकर इतना ज्यादा उत्तेजित हो चुका था कि उसे डर था कि कहीं उसके लंड का लावा फूट ना पड़े। लंड की नसों में खून का दौरा दुगनी गति से दौड़ रहा था, मनिका को अधनंगी देखकर जयसिंह की सांसे बड़ी ही तेज़ गति से चलने लगी थी, वो एक टक अपनी बेटी को देखे ही जा रहा था ,


मनिका के अंदर भी ना जाने कैसी मदहोशी आ गई थी कि वो पानी में भीगते हुए लगभग नाच रही थी, मनिका के बदन में चुदासपन का उन्माद चढ़ा हुआ था, उत्तेजना और उन्माद की वजह से उस की चिकनी बुर पूरी तरह से फुल चुकी थी, पर वो तो भीगने में मस्त थी और जयसिंह उसे देखने में मस्त था,


अब तो जयसिंह को टॉवल से बाहर झांक रहे अपने लंड को वापस छुपाने की बिल्कुल भी चिंता नहीं थी बल्कि वो तो खुद यही चाह रहा था कि उसकी बेटी की नजर उसके नंगे लंड पर पड़े और उसे देख कर वो दोनों ही बहक जाएं, और हुआ भी यही, बारिश में भीगते भीगते मनिका की नजर अचानक दोबारा अपने पापा के टावल में से झांक रहे मोटे तगड़े लंड पर पड़ी और उसकी मोटाई देख कर मनिका की बुर फुलने लगी, उसके बदन में झनझनाहट सी फैल गई, सांसे भारी सी होने लगी, उसने अपनी जीभ को अपने सूखे होठों पर ऐसे फेरा जैसे उसके सामने कोई मस्त कुल्फी पड़ी हो जिसे देखकर वो ललचा गयी हो,

इधर जयसिंह अब अच्छी तरह से जान चुका था कि इस समय उसकी बेटी की नजर उस के नंगे लंड पर टिकी हुई है, और जिस मदहोशी और खुमारी के साथ मनिका लंड को देख रही थी ,जयसिंह को लगने लगा था कि आज बात जरूर बन जाएगी।
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