RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
माया प्रिया की फ्रेंड थी। ग्लासगो में किसी एसेट मैनेजमेंट फ़र्म में कंसलटेंट थी। प्रिया के विपरीत माया बहुत ऐम्बिशस थी। माया के जीवन का लक्ष्य आर्थिक प्रतिष्ठा के उस शिखर पर पहुँचना था, जो प्रिया को धरोहर में मिला हुआ था। अपने लक्ष्य को पाने के लिए माया मेहनत भी बहुत करती थी। प्रेम के लिए उसके पास अधिक वक्त नहीं था। उसे तलाश थी एक ऐसे जीवनसाथी की, जो उसकी तरह ही महत्त्वाकांक्षी हो; जो अमीर तो हो, मगर उसकी सम्पन्नता और समृद्धि की भूख शांत न हुई हो।
प्रिया, उत्सुकता से माया का इंत़जार करने लगी। पराये देश में किसी का साथ हो, और ख़ासतौर पर किसी करीबी दोस्त का; तो घर और देश से दूरी उतनी नहीं खलती। कबीर के प्रेम के बाद माया का साथ... प्रिया के दिन और रातें दोनों ही अच्छे होने चले थे, मगर जब सब कुछ अच्छा होने लगे, तो नियति को उपेक्षा सी महसूस होने लगती है, और वह रूठने लगती है। प्रिया के साथ भी ऐसा ही हुआ। दो दिन बाद उसके घर से फ़ोन आया कि उसकी माँ की तबियत खराब है।
‘कबीर!’ प्रिया ने कबीर को फ़ोन लगाया।
‘‘हाय प्रिया!’’ कबीर का जवाब आया।
‘‘कबीर, मॉम इस नॉट वेल, मुझे इंडिया जाना होगा।’’
‘‘ओह, सॉरी टू हियर प्रिया, क्या हुआ मॉम को?’’
‘‘नथिंग टू सीरियस, बट शी नीड्स मी।’’
‘‘ओके प्रिया, प्ली़ज लेट मी नो, इफ आई कैन बी एनी हेल्प।’’
‘‘इसीलिए तो फ़ोन किया है कबीर।’’
‘‘यस, प्ली़ज टेल मी।’’
‘‘कबीर, सैटरडे को माया आ रही है ग्लासगो से; कैन यू प्ली़ज रिसीव हर।’’
‘‘ओह या, श्योर!’’
‘‘ठीक है, आई विल ड्राप माइ अपार्टमेंट्स की एट योर प्लेस।’’
‘‘डोंट वरी, आई विल कम एंड कलेक्ट।’’
कबीर, माया को लेने एअरपोर्ट पहुँचा। प्रिया ने माया की फ़ोटो कबीर को मैसेज कर दी थी, ताकि वह माया को पहचान सके; मगर कबीर अपने साथ माया के नाम की तख्ती भी ले गया था, कि कहीं कोई ग़लती न हो। तख्ती पर लगी स़फेद काग़ज की शीट पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था, ‘माया मदान’ ग्लासगो से आने वाली फ्लाइट लंदन सिटी एअरपोर्ट पहुँच चुकी थी। कबीर, माया के नाम की तख्ती पकड़े मीटिंग पॉइंट पर उसका इंत़जार कर रहा था, तभी उसे अपनी ओर एक लम्बी, गोरी और खूबसूरत लड़की आती दिखाई दी। लड़की का बदन यूँ तो शेप में था, मगर अपनी लम्बाई की वजह से वह दुबली और छरहरी लग रही थी। लम्बे गोरे चेहरे पर उसने रे-बैन के डार्क ब्राउन पायलट शेप सनग्लास पहने हुए थे। स्ट्रेट किए हुए भूरे बालों की लटें चेहरे को दोनों ओर से घेरे हुए थीं। सनग्लास और बालों के घेर से झाँकते चेहरे को पहचानना आसान नहीं था, फिर भी कबीर को वह माया ही लगी। भूरे रंग के बूटकट क्रॉप ट्राउ़जर्ज, के ऊपर उसने डस्की पिंक कलर का बॉक्सी टॉप पहना था, गले में गहरे लाल रंग का पॉपी प्रिंट फ्लोरल स्का़र्फ और पैरों में ब्राउन फ्लैट स्लाइडर्स। कुल मिलाकर उसका पहनावा का़फी स्टाइलिश और व्यक्तित्व का़फी आकर्षक था। सैंडलवुड कलर के ट्राली सूटकेस को खींचते उसकी सुघड़ चाल से ऊर्जा की एक लपट सी उठती दिख रही थी, जो बिखरने से कहीं ज़्यादा समेटने की चाहत रखती मालूम हो रही थी।
‘‘हाय माया!’’ कबीर के पास पहुँचकर माया ने तपाक से अपना दाहिना हाथ बढ़ाया।
‘‘हाय कबीर!’’ माया से हाथ मिलाते हुए कबीर ने मुस्कुराकर कहा, ‘‘सॉरी, प्रिया को अचानक इंडिया जाना पड़ा, इसलिए...’’
‘‘आई नो; प्रिया ने मुझे बताया था।’’ कबीर का वाक्य पूरा होने से पहले ही माया ने कहा।
‘‘ओके लेट्स गो; ये सूटकेस मुझे दे दें।’’ कबीर ने माया के हाथ में थमे सूटकेस की ओर इशारा किया।
‘‘नो प्ली़ज डोंट वरी, आई एम फाइन टू कैरी दिस।’’ माया ने बेझिझक कहा।
‘‘बट आई डोंट फील फाइन विद दिस; आप इस शहर में हमारी मेहमान हैं।’’ कबीर ने सूटकेस थामने के लिए हाथ आगे बढ़ाया। माया ने सूटकेस पर अपनी पकड़ ढीली करते हुए उसे कबीर के हाथों में जाने दिया।
‘‘स़फर कैसा रहा?’’ शार्ट स्टे कार पार्क की ओर बढ़ते हुए कबीर ने पूछा।
‘‘डेढ़ घंटे का स़फर था, एक मैग़जीन पढ़ते हुए कट गया।’’
‘‘ओह, किस तरह की मैग़जीन पढ़ती हैं आप?’’
‘बि़जनेस।’
कबीर की रुचि बि़जनेस में कम ही थी, इसलिए उसने आगे उस टॉपिक पर कोई बात नहीं की।
‘‘प्ली़ज कम इन।’’ प्रिया के अपार्टमेंट का दरवा़जा खोलते हुए कबीर ने माया से कहा, ‘‘प्रिया दस बारह दिन में लौट आएगी, तब तक यह अपार्टमेंट सि़र्फ आपके हवाले है।’’
‘‘हूँ... नाइस अपार्टमेंट; आप कहाँ रहते हैं कबीर?’’ माया ने करीने से सजे लाउन्ज पर ऩजर फेरते हुए कहा।
‘‘यहीं, ईस्ट लंदन में, ज़्यादा दूर नहीं; आप मेरा मोबाइल नंबर ले लें, किसी भी ची़ज की ज़रूरत हो तो फ़ोन करने से हिचकिचाइएगा नहीं।’’
‘थैंक्स।’ कबीर का मोबाइल नंबर नोट करते हुए माया ने कहा।
‘‘आज शाम का क्या प्लान है? अगर प्रâी हों तो बाहर डिनर पर चलें?’’
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