RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
चैप्टर 20
‘‘सो हाउ विल यू प्ली़ज योर मिस्ट्रेस टुडे?’’ अगली सुबह माया ने अपनी बगल में लेटे कबीर से शरारत से पूछा।
‘‘ए़ज यू कमांड मिस्ट्रेस।’’ कबीर ने तुरंत उठकर शरारत से सिर झुकाते हुए कहा।
‘‘हूँ... इम्प्रेसिव; फर्स्ट मेक मी ए कप ऑ़फ टी।’’ माया ने लेटे-लेटे अँगड़ाई ली।
कबीर उठकर किचन में गया, और थोड़ी देर में एक ट्रे में टी पॉट, दूध, शक्कर और चाय के कप लिए लौटा। माया के सामने घुटनों के बल बैठते हुए उसने चाय का कप तैयार किया, और उसे अदब से माया को पेश किया।
‘‘वेरी इम्प्रेसिव... लगता है तुमने कहीं से सर्विट्यूड का कोर्स किया है।’’ माया ने चाय की चुस्की ली।
‘‘गॉडेस माया का सौन्दर्य देवताओं को भी दास बना ले, फिर मैं तो अदना सा भक्त कबीरदास हूँ।’’ कबीर ने फिर शरारत की।
‘‘हम्म..वेरीफनी, बट लेट मी टेल यू वन थिंग।’’
‘‘यस मिस्ट्रेस।’’
‘‘मुझे तुम्हारा प्यार चाहिए, भक्ति नहीं; चलो अब उठकर यहाँ बिस्तर पर बैठो।’’ माया ने कबीर को शरारत से डाँटते हुए कहा।
‘‘ए़ज यू कमांड मिस्ट्रेस।’’ कबीर उठकर बेड पर माया के पास बैठा। उसका सिर अब भी झुका हुआ था।
‘‘कबीर, बंद करो ये शरारत अब।’’ माया की शरारती आँखों ने एक बार फिर कबीर को झिड़का।
‘‘शरारत आपने शुरू की थी गॉडेस माया, और अब आप ही इसे खत्म करें।’’
‘‘हूँ, वह कैसे?’’
‘‘मेरे लिए एक कप चाय बनाकर।’’
माया ने अपना चाय का कप साइड टेबल पर रखा, और कबीर के लिए चाय का कप तैयार करने लगी। माया को चाय बनाता देख, कबीर को अचानक पुरानी यादों ने घेर लिया। वही बेड, वही साइड टेबल, वही ट्रे, वही बोन चाइना का टी-सेट...बस, आज प्रिया की जगह माया थी।
‘‘हेलो! किसके ख्यालों में खो गए?’’ कबीर की ओर चाय का कप बढ़ाते हुए माया ने पूछा।
वही सवाल।
‘‘कुछ नहीं माया, थैंक्स फॉर द टी।’’ कबीर ने माया से आँखें चुराते हुए कहा।
माया ने जवाब में कुछ नहीं कहा। शायद उस वक्त कुछ कहना ज़रूरी नहीं था।
कबीर का मोबाइल फ़ोन बजा, ‘प्रिया कॉलिंग।’ कबीर ने फ़ोन उठाया।
‘‘हे कबीर!’’ प्रिया की चहकती हुई आवा़ज आई।
‘‘हाय प्रिया! हाउ आर यू?’’ कबीर चाहकर भी उत्साह नहीं जता सका।
‘‘आई एम गुड; तुम कैसे हो कबीर?’’
‘‘अच्छा हूँ प्रिया, तुम्हारी मॉम कैसी हैं अब?’’
‘‘मॉम अब ठीक हैं।’’
‘‘वाओ! दैट्स ए गुड न्यू़ज।’’
‘‘एक और गुड न्यू़ज है।’’ प्रिया ने चहकते हुए कहा।
‘क्या?’
‘‘अरे बुद्धू, मैं वापस आ रही हूँ।’’
कबीर को यह सुनकर ख़ुशी ही हुई। प्रिया के लौट आने की खबर ने उसे राहत ही दी। प्रिया की गैरमौजूदगी में उसे घुटन सी महसूस हो रही थी; मन पर एक बोझ सा था, जैसे प्रिया से उसका सब कुछ छीन लिया गया हो; उसका प्रेम, उसकी दोस्त, उसका घर। जुर्म का इकबाल कर लेने से उसका बोझ कम हो जाता है। कबीर को भी यही लगा कि प्रिया पर असलियत ज़ाहिर कर, वह अपने मन का बोझ कम कर सकता था।
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