Indian Sex Kahani डार्क नाइट
10-08-2020, 12:32 PM,
#51
RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
प्रिया की फ्लाइट शाम की थी। कबीर, प्रिया को लेने हीथ्रो एअरपोर्ट पहुँचा। माया, बाकी के इंत़जाम करने के लिए घर पर ही रुकी। बोझ उसके मन पर भी था, मगर कबीर के मन के बोझ सा नहीं था। उसे समझ आ रहा था, कि यदि कबीर उससे प्रेम करता था, तो प्रिया उसके साथ खुश कैसे रह सकती थी। प्रिया से एक बार धोखा करना, उसे जीवन भर धोखे में रखने से बेहतर था।

प्रिया, कबीर से मिलते ही उससे लिपट गई। पब्लिक में किस करना ब्रिटेन की परंपरा है। भारत में चार हफ्ते गु़जारने के बाद भी प्रिया इस परंपरा को नहीं भूली। उसने कबीर के होठों पर अपने होंठ रखकर उसे तब तक चूमा, जब तक कि उसके बेली बटन के पीछे थिरक उठी तितली का नृत्य थम नहीं गया। उत्तेजना कबीर को भी हुई, मगर कहीं थोड़ा फर्क आ गया था; लेकिन अपनी स्वयं की उत्तेजना को शांत करने की लगन में शायद प्रिया ने उसे महसूस नहीं किया।

‘‘हे कबीर, आई मिस्ड यू सो बैड।’’

‘‘आई मिस्ड यू टू प्रिया... कैसी हो?’’

‘‘अच्छी हूँ; तुम?’’

‘‘अच्छा हूँ।’’

कबीर ने प्रिया से अधिक बातें नहीं कीं। प्रिया ने भी महसूस किया कि हँसमुख और नटखट कबीर कहीं गुम था।

घर पहुँचकर प्रिया, माया से भी उसी गर्मजोशी से मिली...चहकते हुए।

‘‘हाय माया! कैसी हो? कबीर ने तुम्हें तंग तो नहीं किया न?’’

माया सि़र्फ मुस्कुराकर रह गई।

प्रिया ने अपने अपार्टमेंट का मुआयना किया। अपार्टमेंट की सजावट और रंगत बदली हुई थी। प्रिया को अच्छा लगा। माया, उसके अपार्टमेंट को अपना घर समझकर रह रही थी, उसकी देख-रेख कर रही थी।

‘‘माया, तुमने मेरे घर को तो अपना घर बना लिया है, कहीं मेरे बॉयफ्रेंड को भी...।’’ प्रिया ने शरारत से मुस्कुराकर कहा।

कबीर को घबराहट सी हुई। कहीं प्रिया को अभी से उन पर शक तो नहीं हो गया। उसने अपनी ऩजरें झुका लीं। माया ने भी बस एक बेबस सी मुस्कान बिखेरी।

‘‘क्या बात है, तुम दोनों बहुत चुप चुप से हो; झगड़ा हुआ है क्या?’’ प्रिया ने कबीर और माया की चुप्पी को तोड़ना चाहा।

‘‘नहीं प्रिया; काम से लौटे हैं न, इसलिए थके हुए हैं।’’ माया ने सफाई दी।

‘‘कबीर कब से काम करने लगा?’’ प्रिया ने आश्चर्य में डूबी हँसी से कहा, ‘‘हेलो कबीर, तुम ठीक तो हो न?’’

‘‘प्रिया, देर सबेर जॉब तो करनी ही थी; अच्छा ऑ़फर मिला तो ज्वाइन कर लिया।’’ कबीर ने माया की ओर देखते हुए प्रिया को जवाब दिया।

‘‘हूँ, कन्ग्रैचलेशऩ्ज कबीर; कहाँ ज्वाइन किया है?’’

कबीर ने एक बार फिर माया की ओर देखा।

‘‘हमारी फ़र्म में कबीर के लिए एक सूटेबल रोल था, तो मैंने रिकमेंड कर दिया।’’ माया ने जवाब दिया।

‘‘वाओ! लेट्स सेलिब्रेट इट देन... कबीर की पहली जॉब।’’ प्रिया ने चहकते हुए कहा।

प्रिया, वाइन रैक से रेड वाइन की बोतल निकालकर वाइन के गिलास भरने लगी। माया ने खाना लगाना शुरू किया।

‘‘सो कबीर, इ़ज माया योर बॉस एट वर्क?’’ प्रिया ने वाइन का घूँट भरते हुए शरारत से पूछा।

‘‘बॉस तो नहीं, मगर तुम्हारी फ्रेंड बॉसी बहुत है।’’ कबीर, माया की ओर देखकर मुस्कुराया।
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10-08-2020, 12:33 PM,
#52
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‘‘सो कबीर, इ़ज माया योर बॉस एट वर्क?’’ प्रिया ने वाइन का घूँट भरते हुए शरारत से पूछा।

‘‘बॉस तो नहीं, मगर तुम्हारी फ्रेंड बॉसी बहुत है।’’ कबीर, माया की ओर देखकर मुस्कुराया।

‘‘तुम्हारी शिकायत हो रही है माया; खबरदार, आइंदा मेरे बॉयफ्रेंड पर रोब जमाया तो।’’ प्रिया ने कबीर के गले में बाँहें डालते हुए शरारत से माया को बनावटी गुस्सा दिखाया।

‘‘तुम्हारे बॉयफ्रेंड को ख़ुद पर रोब जमाया जाना पसंद है।’’ माया ने कबीर की ओर उसी शरारत से मुस्कुराकर देखा।

कबीर ने माया को गुस्से से देखा। उसका गुस्सा बनावटी नहीं था। उसे माया का वह म़जाक उस वक्त पसंद नहीं आया।

‘‘अच्छा प्रिया, अब मैं चलता हूँ।’’ खाना खत्म कर कबीर ने प्रिया से कहा।

‘‘आज यहीं रुक जाओ कबीर।’’ प्रिया ने आग्रह किया।

‘‘नहीं प्रिया; तुम थकी होगी, आराम करो।’’

‘‘आराम तो मैं तुम्हारे साथ भी कर सकती हूँ।’’ प्रिया ने एक बार फिर कबीर के गले में बाँहें डालीं।

कबीर ने बेचैनी से माया की ओर देखा।

‘‘प्रिया, कबीर के साथ तुम कल आराम कर लेना; कितने दिनों के बाद हम मिले हैं, आज तो तुम मुझे वक्त दो।’’ माया ने प्रिया से कहा।

‘‘ओके माया; आज की रात दोस्ती पर प्यार कुर्बान।’’ प्रिया ने कबीर के गले में बाँहें जकडीं और उसके होंठों पर अपने होंठ रखते हुए उसे एक लम्बा किस किया, ‘‘बाय कबीर।’’

मगर इस बार प्रिया ने महसूस किया कि कबीर में वैसी उत्तेजना नहीं थी, जैसी होनी चाहिए थी। उसके होंठ फैलने की जगह सिकुड़ रहे थे।

उस रात माया से बातें करते हुए भी प्रिया, कबीर के बदले व्यवहार पर चिंता करती रही। कबीर पहले जैसा नहीं था... कहीं कुछ ठीक नहीं था।

‘‘कबीर! तुम प्रिया से कब कहोगे?’’ अगले दिन ऑफिस में माया ने कबीर से पूछा।

‘‘क्या माया?’’

‘‘हमारा सच, और क्या।’’ माया ने झुँझलाते हुए कहा।

‘‘मुझे कुछ वक्त दो माया; तुम्हें पता है, प्रिया को ये जानकार कितना बुरा लगेगा?’’

‘‘और जो मुझे बुरा लग रहा है वह? कबीर, प्रिया का तुमसे लिपटना, तुम्हें किस करना, तुम्हारे साथ रात बिताने की बातें करना; तुम्हें क्या लगता है, मुझे ये सब अच्छा लगता है?’’
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10-08-2020, 12:33 PM,
#53
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‘‘मैं समझता हूँ माया... तुम कहती हो तो मैं कुछ दिन प्रिया से नहीं मिलता, धीरे-धीरे उसे ख़ुद समझ आने लगेगा।’’

‘‘तुम्हें जो ठीक लगता है करो कबीर; मगर मैं तुम्हें पहले भी कह चुकी हूँ, मैं अपना बॉयफ्रेंड किसी के साथ शेयर नहीं कर सकती... प्रिया के साथ भी नहीं।’’ माया ने सा़फ शब्दों में कबीर को चेतावनी दी।

अगले दिन कबीर के पास प्रिया का फ़ोन आया।

‘‘हाय कबीर!’’

‘‘हाय प्रिया! कैसी हो?’’

‘‘अच्छी हूँ; आज शाम डिनर पर आ रहे हो न?’’ प्रिया ने उत्साह से पूछा।

‘‘सॉरी प्रिया, आज कुछ ज़्यादा काम है; काम पर देर तक रुकना होगा।’’ कबीर ने बहाना बनाया।

‘‘जब काम खत्म हो जाए तब आ जाना; घर ही तो है, कोई रेस्टोरेंट थोड़े ही है।’’ प्रिया को कबीर का बहाना अच्छा नहीं लगा।

‘‘प्रिया, तुम्हें बेकार ही मेरे लिए वेट करना पड़ेगा; ऐसा करते हैं, कल जल्दी काम निपटाकर आता हूँ।’’ कबीर ने प्रिया को आश्वस्त करना चाहा।

‘‘ओके कबीर; मगर कल कोई बहाना नहीं चलेगा।’’ प्रिया ने थोड़े मायूस स्वर में कहा।

‘‘बहाना नहीं बना रहा प्रिया, प्ली़ज अंडरस्टैंड मी।’

‘‘ओके फाइन, लव यू कबीर।’’

‘‘आई लव यू टू।’’ कहते हुए कबीर ने फ़ोन काट दिया।

प्रिया को कबीर का व्यवहार एक बार फिर विचित्र लगा। कबीर में उससे मिलने की कोई व्यग्रता न देख प्रिया की चिंता बढ़ गई।

अगले दिन भी कबीर ने व्यस्तता का बहाना बनाया। कबीर का रवैया प्रिया की बर्दाश्त से बाहर होने लगा। उसका कबीर पर शक पुख्ता हो गया।
दो दिनों बाद प्रिया ने कबीर को फ़ोन किया,

‘‘कबीर, अगर तुम मुझसे मिलने नहीं आ सकते, तो मैं ही तुमसे मिलने आ जाती हूँ।’’ प्रिया ने गुस्से से कहा।

‘‘आई एम वेरी सॉरी प्रिया; क्या तुम लंच पर बॉम्बे स्पाइस पहुँच सकती हो? मैं भी वहीं पहुँचता हूँ।’’

‘‘ओके, वन ओक्लॉक?’’ प्रिया ने खुश होते हुए कहा।

‘‘येह, दैट्स फाइन, सी यू प्रिया।’’

एक बजे प्रिया और कबीर, बॉम्बे स्पाइस रेस्टोरेंट पहुँचे। रेस्टोरेंट के भीतर माहौल अच्छा था, मगर भीड़ कम थी। इंडियन करी रेस्टोरेंट में भीड़ शाम को ही अधिक होती है। लंच में फ़ास्ट़फूड की माँग अधिक होती है।

कबीर ने खाना ऑर्डर किया। प्रिया की अधिक दिलचस्पी कबीर से बात करने में थी।

‘‘कबीर, क्या हो गया है तुमको? तुम्हारे पास मुझसे मिलने का समय भी नहीं है।’’ प्रिया ने नारा़जगी दिखाई।

‘‘आई एम रियली वेरी सॉरी प्रिया, मगर अब तो आ गया हूँ।’’ कबीर ने बहुत विनम्रता से कहा।

‘‘कबीर, तुम्हें यह जॉब करने की क्या ज़रूरत है?’’

‘‘प्रिया, क्या कह रही हो! मुझे अपना करियर तो बनाना है न? कोई न कोई जॉब तो करनी ही होगी।’’

‘‘मैं भी वही कह रही हूँ, यही जॉब क्यों?’’

‘‘इस जॉब में बुराई क्या है प्रिया? अभी कुछ ज़्यादा काम है, कुछ दिनों में नॉर्मल हो जाएगा।’’

‘‘कबीर, तुम डैड की फ़र्म क्यों नहीं ज्वाइन कर लेते? इस छोटी सी जॉब में तुम्हें क्या मिलता होगा! डैड तुम्हें बहुत अच्छी पो़जीशन और पैकेज दे सकते हैं।’’

‘‘प्रिया, तुम्हें मेरी पो़जीशन से दिक्कत हो रही है?’’

‘‘मुझे तुम्हारे समय न देने से दिक्कत हो रही है; और तुम्हें डैड की फ़र्म ज्वाइन करने में क्या दिक्कत है?’’

‘‘पहले मुझे किसी बड़ी पो़जीशन के लायक तो बनने दो; तुम्हारी सिफारिश से मुझे पो़जीशन तो बड़ी मिल जाएगी, मगर उसे सँभालना तो मुझे ही होगा।’’

‘‘कबीर, ये जॉब भी तो तुम्हें माया की सिफारिश पर ही मिली है...।’’
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10-08-2020, 12:33 PM,
#54
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‘‘पहले मुझे किसी बड़ी पो़जीशन के लायक तो बनने दो; तुम्हारी सिफारिश से मुझे पो़जीशन तो बड़ी मिल जाएगी, मगर उसे सँभालना तो मुझे ही होगा।’’

‘‘कबीर, ये जॉब भी तो तुम्हें माया की सिफारिश पर ही मिली है...।’’

‘‘प्रिया, कहना क्या चाहती हो? क्या मैं इस जॉब के लायक नहीं हूँ? क्या मुझमें कोई काबिलियत ही नहीं है?’’

‘‘कबीर मैंने ऐसा नहीं कहा, तुम ग़लत समझ रहे हो।’’

‘‘प्रिया तुम्हारी दिक्कत क्या है! मैं छोटी जॉब कर रहा हूँ, या मैं माया के साथ जॉब कर रहा हूँ?’’

‘‘मेरी दिक्कत ये है कि तुम मुझसे ज़्यादा वक्त माया को दे रहे हो।’’

‘‘तो सा़फ-सा़फ कहो न, कि तुम्हें माया से जलन हो रही है।’’

‘‘हाँ कबीर, मुझे माया से जलन हो रही है। माया में ऐसा क्या है; क्या वह मुझसे ज़्यादा हॉट है? मुझसे ज़्यादा सेक्सी है? मुझसे ज़्यादा सुंदर है? मुझसे ज़्यादा रिच है? क्या है ऐसा माया के पास, कि तुम मुझे धोखा देकर उसके पास जा रहे हो।’’ प्रिया चीख उठी।

‘‘प्रिया, ये रेस्टोरेंट है घर नहीं; हम ये बात कहीं और भी कर सकते हैं।’’ कबीर ने प्रिया को शांत कराना चाहा।

‘‘मुझे अब तुमसे कोई और बात नहीं करनी कबीर; फैसला तुम्हें करना है... तुम्हारा जो भी फैसला हो मुझे बता देना, मैं तुम्हें रोकूँगी नहीं।’’ प्रिया ने गुस्से से कहा, और फिर अपना बैग उठाकर उसमें से उसने एक ख़ूबसूरती से रैप किया हुआ गिफ्ट निकाला, ‘‘और हाँ, ये मैं तुम्हारे लिए इंडिया से लाई थी, तुम्हें पसंद हो तो रख लेना।’’

कबीर को गिफ्ट देकर, प्रिया अपना बैग उठाकर रेस्टोरेंट से बाहर निकल गई। कबीर, प्रिया को जाते हुए देखता रहा। ये वही प्रिया थी, जिसकी अल्हड़ चाल पर वो फ़िदा था, जिसकी आँखों के तिलिस्म में वह खो जाना चाहता था। प्रिया की चाल अब भी उसे लुभाती थी; प्रिया की आँखें अब भी उसे, उनमें डूब जाने का आमन्त्रण देती थीं। कुछ ख़ास तो नहीं बदला था; बस उन दोनों के बीच माया आ खड़ी हुए थी। नहीं; दरअसल माया उनके बीच नहीं आई थी; माया को तो कबीर ने ख़ुद अपने और प्रिया के बीच लाकर बैठाया था, और उसके सम्मोहन के आगे समर्पण कर दिया था। माया में ऐसा क्या था जो प्रिया में नहीं था? प्रिया में सब कुछ था, मगर यदि कबीर किसी के सम्मोहन की दासता स्वीकार कर सकता था, तो वह माया का था, प्रिया का नहीं। यदि कबीर ख़ुद को चार्ली की तरह किसी के सामने सिर झुकाए देख सकता था, तो वह माया थी, प्रिया नहीं।

कबीर ने गिफ्ट रैप खोला। भीतर डायमंड और रो़ज गोल्ड की खूबसूरत सी पर्सनलाइज्ड रिस्ट वॉच थी। इतनी महँगी वाच पहनने की कबीर की हैसियत नहीं थी। हैसियत तो कबीर की, प्रिया का जीवनसाथी बनने की भी नहीं थी।

उस शाम प्रिया, माया से खिंची-खिंची सी रही, जिसका अहसास और अपराधबोध दोनों ही था माया को; मगर माया ने अपना रास्ता तय कर लिया था। वह कबीर की तरह दुविधा में जीने वालों में नहीं थी।

अगले दिन ऑफिस में माया, गुस्से से कबीर की डेस्क पर पहुँची। ‘‘यह क्या है कबीर; तुमने रि़जाइन कैसे किया?’’

‘‘माया, किसी कमरे में चलें? यहाँ आसपास लोग हैं।’’ कबीर ने माया के तमतमाए चेहरे को देखकर धीमी आवा़ज में कहा।

माया झटपट मुड़ी, और पास ही बने एक मीटिंग रूम की ओर बढ़ी। कबीर भी उसके पीछे मीटिंग रूम में पहुँचा। माया ने रूम का दरवा़जा बंद करते हुए एक बार फिर कबीर को तमतमाकर देखा।

‘‘माया, मुझे कुछ वक्त चाहिए; और तब तक मैं प्रिया और तुमसे, दोनों से ही दूर रहना चाहता हूँ।’’ कबीर ने कहा।

‘‘कबीर, अब तुम हम दोनों से ही दूर भागना चाहते हो? अब तक प्रिया से मुँह छुपा रहे थे, अब मुझसे भी मुँह छुपाओगे? तुम हिम्मत करके सिचुएशन को फेस क्यों नहीं करते?’’

‘‘माया, ऐसा नहीं है।’’

‘‘ऐसा ही है कबीर! प्रिया से धोखा तो तुम कर ही चुके हो, अब क्या तुम मुझे भी धोखा दोगे?’’

‘‘माया, मैं तुम्हें धोखा नहीं दे रहा, बस थोड़ा सा वक्त माँग रहा हूँ।’’
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10-08-2020, 12:33 PM,
#55
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‘‘तीन दिन देती हूँ तुम्हें; इन तीन दिनों में अगर तुमने प्रिया से नहीं कहा, तो मैं ख़ुद कह दूँगी; और हाँ, तुम्हारा रेजिग्नेशन एक्सेप्ट नहीं होगा; चुपचाप यहीं काम करो।’’ माया आज फिर अपने पूरे बॉसी अंदा़ज में थी। माया के इसी अंदा़ज पर तो कबीर मर-मिटा था।

उस शाम माया भी प्रिया से खिंची-खिंची रही। वैसे भी कुछ दिनों से उनके बीच गैर-ज़रूरी बातें बंद थीं। कभी साथ बैठकर खाना खा लेते, तो कभी ‘बाहर से खा आई हूँ’ या ‘आज भूख नहीं है’, कहकर अपने-अपने कमरों में सिमट जाते। कबीर का भी कोई ज़िक्र उनके बीच कभी न होता। माया को प्रिया के अपार्टमेंट में रहना एक ज़बरदस्ती लिया जाने वाला अहसान लगने लगा था। रात का खाना खाते हुए माया ने प्रिया से कहा,

‘‘प्रिया! आजकल ऑफिस में काम बहुत है; यहाँ से आने-जाने में का़फी समय लग जाता है... ऑफिस के पास ही रेंट पर एक अपार्टमेंट देखा है, सोचती हूँ वहीं शिफ्ट हो जाऊँ।’’

‘‘कबीर को भी साथ ले जाओगी माया?’’ एक छोटे से मौन के बाद प्रिया ने कहा।

माया थोड़ा चौंकी, मगर उसने कुछ नहीं कहा, बस सिर झुकाकर खाना खाती रही।

‘‘क्यों माया, जवाब क्यों नहीं देती? कबीर को भी साथ ले जाओगी? क्यों ले जा रही हो कबीर को मुझसे दूर? क्या बिगाड़ा है मैंने तुम्हारा?’’ प्रिया चीख उठी।

‘‘सॉरी प्रिया; मैंने कुछ नहीं किया है... ये कबीर का फ़ैसला है; कबीर तुम्हें छोड़कर मेरे पास आना चाहता है।’’

‘‘ऐसा क्या जादू किया है तुमने कबीर पर! ऐसा क्या है तुम्हारे पास, कि वह मुझे ही नहीं, बल्कि मेरी करोड़ों की दौलत को भी ठुकराकर तुम्हारा होना चाहता है?’’ प्रिया की आँखों में, हैरत में लिपटा रोष था।

‘‘इस सवाल का जवाब तुम कबीर से ही पूछो तो बेहतर होगा।’’ माया ने रूखा सा उत्तर दिया।

उसके बाद प्रिया और माया की कोई बात नहीं हुई। अगले दिन माया प्रिया के अपार्टमेंट से चली गई।

माया के जाने के बाद कबीर प्रिया से मिलने पहुँचा।

‘‘हाय कबीर! कैसे हो?’’ प्रिया ने दूर से ही पूछा।

‘‘ठीक हूँ प्रिया, तुम कैसी हो?’’

‘‘ठीक हूँ, बैठो; क्या लोगे?’’

‘‘कुछ नहीं।’’ सो़फे पर बैठते हुए कबीर ने लिविंग रूम में ऩजर घुमाई। माया की सारी निशानियाँ वहाँ से जा चुकी थीं। अपार्टमेंट एक बार फिर, सि़र्फ और सि़र्फ प्रिया का लग रहा था।

‘‘प्रिया! एक पेग व्हिस्की का मिलेगा?’’ कबीर ने अचानक कहा।

‘‘हाँ, कौन सी लोगे?’’

‘‘कोई भी।’’

प्रिया, कबीर के लिए हैण्डकट क्रिस्टल के गिलास में स्कॉच व्हिस्की का एक बड़ा पेग बना लाई। उसे पता था, कबीर को उसकी ज़रूरत थी। कबीर ने व्हिस्की का गिलास उठाकर एक घूँट में ही खत्म कर दिया। अब जाकर उसमें प्रिया से बात करने की हिम्मत आई।

‘‘प्रिया! पता है तुम लड़कियों की प्रॉब्लम क्या है? तुम एक ऐसा आवारा आशिक चाहती हो, जिसकी आवारगी तुम्हारी अपनी दहली़ज से ही लिपटी रहे।’’

कबीर ने नशे में बात तो कुछ गहरी ही कह दी, मगर उसे ख़ुद अपनी बात का मकसद समझ नहीं आया था।

‘‘कबीर, तुम्हारी आवारगी तो मेरी दहली़ज के भीतर ही किसी और से लिपटती रही।’’

प्रिया के शब्द कबीर को चुभ गए, उसका गला कुछ भर आया।

‘‘प्रिया, तुम्हें माया को मेरे हवाले करके नहीं जाना चाहिए था।’’

‘‘मैंने तुम्हारी नीयत पर भरोसा किया था कबीर!’’

‘‘मगर मेरी नीयत, मेरी आवारा फ़ितरत को सँभाल नहीं पायी; आवारगी की लौ में न जाने कब माया से प्रॉमिस कर बैठा। प्रिया, तुमसे तो धोखा कर ही चुका हूँ, अब माया से भी धोखा करने की हिम्मत नहीं होती।’’ कबीर का गला अब भी भरा हुआ था।

‘‘तुम्हें माया को धोखा देने की ज़रूरत नहीं है कबीर; माया को भी तुम्हें आ़जमा लेने दो। देखना चाहती हूँ कि माया कब तक तुम्हारी आवारगी को काबू रख पाती है... अगर तुम माया के काबू में रहे, तो समझ लूँगी कि कमी मुझमें ही है।’’ प्रिया की आँखें भर आई थीं।

‘‘कमी मुझमें है प्रिया; कभी मैं प्रेम पाने के लायक ही नहीं था; फिर प्रेम पाना तो सीख लिया, मगर प्रेम को सँभालना नहीं सीख पाया... कोशिश करूँगा कि अबकी डार्क नाइट में प्रेम सँभालना भी सीख लूँ।’’

‘‘डार्क नाइट?’’ प्रिया ने आश्चर्य से पूछा।

‘‘डार्क नाइट को डार्क नाइट से गु़जरकर ही समझा जा सकता है प्रिया। मैं उस दर्द को भूल गया था, अच्छा हुआ याद आ गया।’’ कबीर की आँखें भी भर आर्इं, ‘‘अच्छा चलता हूँ; और हाँ, ये घड़ी मैं तुम्हें वापस नहीं करूँगा; मेरे पास रहेगी, तुम्हारी याद बनकर।’’ कबीर ने अपनी कलाई पर बँधी प्रिया की दी हुई रिस्ट वॉच की ओर इशारा किया।

प्रिया ने उठकर, कबीर को गले लगाकर कहा, ‘‘गुडबाय कबीर, आई विल मिस यू।’’

‘‘मैं भी तुम्हें मिस करूँगा प्रिया।’’ कबीर ने भरे गले से कहा।
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10-08-2020, 12:33 PM,
#56
RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
चैप्टर 21

माया, प्रिया से अलग, अपने किराये के अपार्टमेंट में रहने लगी। कबीर का माया के अपार्टमेंट में आना-जाना लगा रहता। कबीर, अब प्रेम को सँभालना भी सीखने लगा था। वह माया को खुश रखने की हर संभव कोशिश करता। माया खुश थी, कि कबीर के रूप में उसे एक समर्पित प्रेमी मिला था। कबीर खुश था, कि माया ने उसके समर्पण को स्वीकार किया था। प्रिया के साथ किए विश्वासघात का उसे दुःख था, मगर वह उसके अपने जीवन में की गई गलतियों की लम्बी शृंखला में एक और कड़ी ही था। वह खुश था कि उसकी प्रेम की तलाश माया पर पहुँचकर पूरी हो गई थी।

‘‘कबीर, इस अपार्टमेंट का मालिक अपार्टमेंट बेचना चाहता है; सोच रही हूँ मैं ही खरीद लूँ।’’ एक दिन माया ने कबीर से कहा।

‘‘इतनी जल्दी भी क्या है माया; किराये पर कोई और अपार्टमेंट मिल जाएगा।’’ कबीर ने कहा।

‘‘कबीर, दिस इ़ज ए गुड टाइम टू बाय प्रॉपर्टी; इंटरेस्ट रेट कम है, प्रॉपर्टी प्राइस बढ़ रहे हैं। इस समय रेंट करना तो पैसों की बर्बादी है; और फिर ख़ुद का अपार्टमेंट हो, तो उसे अपने तरीके से रखा जा सकता है। तुम्हीं ने तो कहा था, कि जिस घर में माया रहे, वह घर माया का ही लगना चाहिए।’’
‘‘हाँ, मगर इतने पैसे कहाँ से लाओगी?’’

‘‘कुछ सेविंग है, और बाकी का लोन मिल जाएगा; मैंने पता किया है, बैंक चार लाख पौंड का लोन देने को तैयार है।’’

‘‘चार लाख पौंड? कुछ ज़्यादा नहीं है माया? तुम कहो तो मैं भी कुछ कंट्रीब्यूट कर सकता हूँ।’’ कबीर ने चिंता जताई।

‘‘अभी तुम कमाते ही कितना हो कबीर; जब कुछ ठीक-ठाक कमाने लगो तब कहना।’’ माया ने हँसते हुए कहा।

माया ने बात शायद म़जाक में ही कही, मगर कबीर को अच्छा नहीं लगा। अचानक ही वह ख़ुद को माया के सामने छोटा महसूस करने लगा। प्रेम में तो उसने माया की हुकूमत स्वीकार कर ली थी, मगर दुनियावी मामले दिल के मामलों से अलग होते हैं। कबीर ने सोचा कि अगर वह माया के सामने ख़ुद को इतना छोटा महसूस कर रहा था, तो प्रिया के सामने कितना छोटा महसूस करता। बस यही सोचते हुए उसने माया की बात को झटक कर मन से बाहर किया।

माया ने बैंक से लोन लेकर अपार्टमेंट खरीद लिया। माया के पास समय कम होता; वह ज़्यादा वक्त अपने करियर को देती। सफलता और समृद्धि को पाने की लपट एक बार फिर उसके भीतर सुलग उठी थी। माया के अपार्टमेंट को माया की पसंद का घर बनाने की ज़िम्मेदारी कबीर पर आ पड़ी।
कबीर का म़जाक सच ही हो गया था, कि माया ने उसे घर पर भी नौकर रख लिया था।

माया ने हाउस वार्मिंग पार्टी की। ऑफिस के कुछ लोगों को घर, डिनर पर बुलाया। भोजन और ड्रिंक्स की कैटरिंग का इंत़जाम बाहर से किया गया था। घर की लगभग पूरी सजावट कबीर ने कर ही रखी थी; माया की पसंद के अनुरूप ही।

शाम का वक्त था। हवा में जास्मिन की खुशबू बिखरी हुई थी, बैकग्राउंड में हल्का जा़ज संगीत बज रहा था। मेहमान आने शुरू हुए, और साथ ही शुरू हुआ ड्रिंक्स का दौर।

‘‘वाह माया, तुम्हारा फ्लैट तो बहुत सुन्दर है; और तुमने डेकोरेशन भी कितना बढ़िया किया है; इतना समय कैसे निकालती हो घर के लिए?’’ निशा ने अपार्टमेंट की सजावट पर ऩजरें फेरते हुए कहा।

‘‘ये सारी सजावट कबीर ने की है।’’ माया ने एक प्रशंसा भरी निगाह कबीर पर डाली।

‘‘लगता है कबीर हमारी फ़र्म की कम, और माया की नौकरी अधिक करता है।’’ मि.सिंग ने हँसते हुए कहा।

कबीर को मि.सिंग का म़जाक कुछ पसंद नहीं आया। उसने शिकायत भरे अंदा़ज में माया की ओर देखा।

‘‘ये कबीर का फ्लैट भी है; वी आर टूगेदर नाउ।’’ माया ने कबीर के गले में बाँहें डालीं।

‘‘कबीर, यू आर वेरी लकी टू हैव ए गर्लफ्रेंड लाइक माया; मेरी बात लिख लो... एक दिन इस लड़की की तस्वीर बि़जनेस टाइम्स के फ्रट कवर पर होगी।’’ मि.सिंग ने व्हिस्की का एक लम्बा घूँट भरकर कहा।

निशा ने कबीर के चेहरे पर ऩजर डाली। उसे लगा कि कबीर को मिस्टर सिंग द्वारा माया के सामने यूँ छोटा साबित करना पसंद नहीं आ रहा था। उसने सामने दीवार पर सजी एक सुनहरी पेंटिंग को देखते हुए कहा, ‘‘वाओ! गुस्ताव क्लिम्ट की ‘दि किस’... ये तो पक्का कबीर की ही चॉइस होगी!’’

‘‘कबीर इ़ज वेरी रोमांटिक।’’ माया ने एक रोमांटिक अंदा़ज से कबीर को देखा।

‘‘माया, यू आर वेरी लकी टु हैव ए बॉयफ्रेंड लाइक कबीर; काश, मुझे भी ऐसा ही कोई रोमांटिक बॉयफ्रेंड मिल जाता, जो दिल से लेकर घर तक सब कुछ सँभाल लेता।’’ निशा ने माया के रोमांटिक अंदा़ज को दुहराया।

माया को निशा की कही बात याद आ गई, ‘ही विल वरशिप द फ्लोर यू वाक ऑन।’ कबीर ऐसा ही समर्पित प्रेमी था।

पार्टी चलती रही, शराब के दौर भी चलते रहे। मेहमानों का साथ देते- देते माया ने शराब भी खूब पी ली। फिर पार्टी खत्म हुई, मेहमान जाने लगे। मेहमानों के जाने के बाद माया, थकान और नशे में निढाल होकर सो़फे में जा धँसी।

‘‘कबीर, तुम मुझसे कितना प्यार करते हो?’’ माया ने पास बैठे कबीर के गले में बाँहें डालते हुए पूछा।

‘‘माया, प्यार का कोई पैमाना नहीं होता कि उसे नापा जा सके।’’ कबीर ने भी माया के गले में बाँहें डालीं।

‘‘डू यू वरशिप द फ्लोर आई वाक ऑन?’’

‘‘ऑफकोर्स माया।’’ कबीर ने माया के गले से बाँहें निकालकर उसकी कमर जकड़ी।

‘‘मैंने कभी देखा नहीं।’’ माया ने कबीर पर शरारती निगाह डाली।

‘‘तुम्हें मेरे प्यार पर शक है?’’

‘‘हाँ, कर के दिखाओ, वरशिप द फ्लोर आई वाक ऑन।’’ कहते हुए माया की नशे में डूबी आवा़ज और भी नशीली हो गयी।

‘‘पहले सो़फे से उठकर, चलकर तो दिखाओ।’’ कबीर ने हँसते हुए कहा।

‘‘ठीक है, छोड़ो मुझे।’’ माया ने अपनी कमर से कबीर की बाँहें हटाईं।

सो़फे से उठकर माया चलने लगी, मगर नशे की हालत में और हाई हील में उससे ज़्यादा दूर चला न गया। तीन-चार क़दम चलते ही वह लड़खड़ाने लगी। कबीर ने उठकर उसे अपनी बाँहों में लपेटा।

‘‘मुझे छोड़ो, वरशिप द फ्लोर।’’ माया ने हँसते हुए कहा।

‘‘माया, लेट मी वरशिप योर फीट; फिर जिन जिन रास्तों पर चलोगी, सभी पर मेरी बंदगी के निशां होंगे।’’ कबीर ने मुस्कुराते हुए माया की कमर को ट्विस्ट किया और उसे सो़फे पर लेटाकर उसके पैर पर अपने होंठ रख दिए। कबीर को वह पल याद आ गया, जब उसके होंठ नेहा के पैरों के पास जाकर घबराकर काँप उठे थे। तब से अब तक कितना समय गु़जर गया, कितना कुछ बदल गया। तब, जब वह किसी लड़की के सामने अपना प्रेम अभिव्यक्त करने से घबराता था; और अब, जब वह पूरे आत्मविश्वास से किसी लड़की पर अपना प्रेम ज़ाहिर कर सकता है, उसे आसानी से अपनी ओर आकर्षित कर अपने बिस्तर तक ला सकता है। मगर इस पूरे आत्मविश्वास के बावजूद वह एक ऐसी लड़की ही ढूँढ़ता रहा, जिसके सामने वह स्वयं समर्पण कर दे; जो उस पर शासन करे। तब लड़कियाँ उसके लिए चुनौती थीं; फिर वह लड़कियों में चुनौती ढूँढ़ने लगा। क्या उसने प्रिया को सि़र्फ इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि प्रिया ने बहुत आसानी से उसके आगे समर्पण कर दिया था? प्रिया उसके लिए कभी चुनौती नहीं रही, जबकि माया हर पल उसके लिए चुनौती है; जिसकी रफ्तार से रफ्तार मिलाकर चलना उसे कठिन लगता है। इन्सान जो भी चाहे, जब तक वह उसके लिए चुनौती न हो, उसका पीछा करने में आनंद नहीं आता।
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10-08-2020, 12:33 PM,
#57
RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘सि़र्फ पूजा से काम नहीं चलेगा भक्त; देवी को भोग की भी आवश्यकता है।’’ सोच में डूबे कबीर की ठुड्डी में पैर अड़ाते हुए माया ने शरारत से हँसकर कहा।

कबीर ने ऩजरें उठाकर माया की शरारत से चमकती आँखों को देखा। उसकी अपनी आँखों में भी शरारत चमक उठी। कबीर के होंठ माया की टाँग पर सरकने लगे। माया की टाँगें लम्बी और स्कर्ट छोटी थी; फिर भी कबीर के अधीर होंठों को उसकी स्कर्ट के भीतर पहुँचने में समय नहीं लगा। कबीर के हाथ भी माया की टाँगों पर सरकते हुए उसकी जाँघों पर पहुँचे, और फिर कुछ और ऊपर सरककर माया के कूल्हे जकड़ लिए। माया की नशे में भीगी साँसें कुछ और बहक उठीं। उसने स्कर्ट की ज़िप खोलकर उसे नीचे सरकाया। स्कर्ट, कबीर के कन्धों पर जा लिपटी। माया ने अपनी टाँगें कबीर की कमर पर लपेटीं और उसकी गर्दन को जकड़कर उसका चेहरा ऊपर खींचा। कबीर अब पूरी तरह उसकी क़ैद में था। कबीर के अधीर होंठों और उसकी बेसब्र क्रॉच के बीच अब सि़र्फ सिल्क की महीन पैंटी थी। माया के बेसब्र हाथों ने उसे भी खींचकर नीचे जाँघों पर सरका दिया। माया और कबीर की बेसब्री कुछ पलों के लिए ठहर गई।

कुछ वक्त बस यूँ ही बीता, फिर कबीर के प्रेम की तरह ही उसकी जॉब भी स्थाई हो गई।

‘‘कबीर, कन्ग्रैचलेशन्स! तुम्हारा प्रोबेशन कम्पलीट हो गया और जॉब परमानेंट हो गई है।’’ माया ने कबीर को खुशखबरी दी।

‘‘थैंक्स माया।’’ कबीर ने माया को गले लगाकर कहा।

‘‘मगर कबीर, तुम्हारी अप्रे़जल रेटिंग सि़र्फ गुड है, एंड दिस इ़ज नॉट सो गुड।’’

‘‘ओह, तो बॉस के लिए अच्छा होना अच्छा नहीं है।’’ कबीर ने म़जाक किया।

‘‘बी सीरियस कबीर; ये फाइनेंशियल मार्केट की दुनिया है; यहाँ अच्छा नहीं, बल्कि बहुत बहुत अच्छा होना पड़ता है।’’

‘‘माया, तुम्हें पता है कि मुझे रैट रेस पसंद नहीं है; मैं अपने ख़ुद के काम से खुश हूँ, और मेरे लिए इतना ही का़फी है।’’

‘‘कबीर, अगर तुम्हें मेरे साथ रहना है तो मेरी ऱफ्तार से ही दौड़ना होगा।’’ माया ने रोब झाड़ा।

‘‘ओके माया, आई विल ट्राई।’’

‘‘यू मस्ट।’’ माया ने उसी रोब से कहा।

कबीर एक विचित्र सी दुविधा में था। माया की लगाम उस पर कसती जा रही थी। कबीर, जो खुले आसमान में स्वच्छंद होकर उड़ना चाहता था, वह माया के बताए रास्ते पर दौड़ रहा था। माया का बॉसी रवैया उससे वह सब करा रहा था, जो वह करना नहीं चाहता था... मगर माया का यही अंदा़ज तो उसे पसंद था। वह चाहकर भी माया के तिलिस्म को तोड़ नहीं पा रहा था।

कुछ वक्त और बीता। प्रिया की पढ़ाई पूरी हुई। उसने अपने डैड की फ़र्म ज्वाइन कर ली, यूरोप में मार्वेâटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन की हेड बनकर। माया की पकड़ भी अपनी फ़र्म पर मजबूत होती गई। माया की रफ्तार ते़ज थी; कबीर के लिए उसकी रफ्तार से रफ्तार मिलाना मुश्किल था, मगर उसने तय कर लिया था, चलना तो उसे माया के साथ ही था; क़दम से क़दम मिलाकर, या पीछे-पीछे।

‘‘हे कबीर! एक अच्छी खबर है।’’ माया ने अपने सामने बैठे कबीर से कहा।

‘‘हूँ... प्रमोशन मिला है, सैलरी हाइक मिला है या बोनस?’’ कबीर ने म़जाक के अंदाज में पूछा।

‘‘ऑ़फर मिला है, फ़र्म में पार्टनर बनने का।’’ माया का चेहरा गर्व से चमक रहा था।

‘‘वाओ! ग्रेट... तो अब तुम ऑफिशियली मेरी बॉस बन जाओगी; माया मेमसाब।’’ कबीर ने म़जाक किया, ‘‘मगर तुम्हें फ़र्म में इन्वेस्ट करना होगा?’’

‘‘हाँ, लगभग दो लाख पौंड।’’ माया ने एक बेपरवाह मुस्कान बिखेरी।

‘‘माया, तुम्हारे पास पैसे हैं? तुम पर पहले ही इस अपार्टमेंट का लोन है।’’ कबीर ने चिंता जताई।

‘‘कबीर, मैंने सही समय पर अपार्टमेंट खरीद लिया था। अपार्टमेंट का प्राइस बढ़ गया है, और दो लाख पौंड की मेरी इक्विटी बढ़ गई है; इस इक्विटी के अगेंस्ट लोन लेकर मैं फ़र्म में इन्वेस्ट कर सकती हूँ।’’ अपनी व्यवसाय कुशलता पर हो रहा गर्व, माया की मुस्कान को और भी मोहक बना रहा था।

‘‘माया, पता नहीं क्यों, मगर मुझे तुम्हारी रफ्तार से डर लगता है... तुम्हें नहीं लगता कि तुम इतना ज़्यादा लोन लेकर रिस्क ले रही हो?’’

‘‘रिस्क किस बात का है? मैं अपनी ही इक्विटी के अगेंस्ट लोन ले रही हूँ; अपार्टमेंट का प्राइस बढ़ा है, तो वह मेरा ही पैसा तो हुआ।’’

‘‘मगर अपार्टमेंट का प्राइस कम भी तो हो सकता है?’’ कबीर ने फिर चिंता जताई।
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10-08-2020, 12:33 PM,
#58
RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘कबीर, अब तुम यह मिडिल क्लास की मेंटालिटी छोड़ो... बी आप्टमिस्टिक... क्या गाना है वह.. ल, ला, ल, ला।’’ माया ने गाने की धुन याद करनी चाही।

‘‘कौन सा गाना माया?’’

‘‘वही..’’ गाना याद करते हुए माया ने कहा, ‘‘हाँ, तू मेरे साथ-साथ आसमां से आगे चल...देखा, तुम्हारे साथ रहकर मैं हिंदी गाने भी सुनने लगी हूँ।’’
कबीर, आसमां से आगे तो जाना चाहता था, मगर माया के बताए हुए रास्ते पर चलकर नहीं।

‘‘मैं ड्रिंक्स बनाती हूँ, तुम गिटार लेकर यह गाना तो बजाओ कबीर; लेट्स सेलिब्रेट।’’ माया चहक रही थी।

कबीर ने वैसा ही किया, जैसा कि माया ने उसे कहा। गिटार लेकर वह गाने की धुन छेड़ने लगा।

माया, फ़र्म में पार्टनर बन गई। उसका रोब और रुतबा और बढ़ गया। उसे अपना प्राइवेट ग्लास चैम्बर मिल गया।

‘‘तो कैसा लग रहा है यह प्राइवेट चैम्बर?’’ माया ने होंठों पर दर्प लपेटे हुए कबीर से पूछा।

‘‘हूँ... गुड।’’ कबीर ने माया की रिवॉल्विंग चेयर पर बैठते हुए उसे घुमाया।

‘‘मिस्टर कबीर, आप ये न भूलें कि आप इस फ़र्म में सि़र्फ एक असिस्टेंट हैं; पार्टनर की चेयर पर बैठने की गुस्ताखी न करें।’’ माया ने शरारत से कहा।

‘‘ओह, सॉरी मैडम।’’ कबीर ने झटपट कुर्सी से उठते हुए शरारत से सिर झुकाया।

‘‘वैसे अगर आप बॉस को खुश रखें तो आपकी जल्दी तरक्की हो सकती है।’’ माया ने चेयर पर बैठते हुए बैकरेस्ट पर आराम से पीठ टिकाई, ‘‘हूँ... तो कहो, हाउ विल यू प्ली़ज योर बॉस?’’

‘‘मैडम, आपको याद है, जब आप नई-नई लंदन आई थीं; तब एक बेरो़जगार लड़का आपको लंदन की सैर पर ले गया था, जिससे खुश होकर आपने उसकी नौकरी लगवाई थी।’’

‘‘हाँ,दैट वा़ज ए गुड फन।’’

‘‘तो इस बार आपको लंदन की सैर का एक नया एक्सपीरियंस दिया जाए?’’

‘‘किस तरह का एक्सपीरियंस?’’

‘‘रिक्शे की सवारी का।’’

‘‘रिक्शे में तो इंडिया में बहुत घूमे हैं, उसमें क्या फ़न है?’’

‘‘मगर आपने कभी रिक्शेवाले से प्यार नहीं किया होगा।’’ कबीर ने शरारत से माया को देखा।

‘‘क्या मतलब? तुम चलाओगे रिक्शा?’’ माया ने चौंकते हुए कहा। कहते हुए उसके होंठों से हँसी भी छलक पड़ी।

‘‘हाँ मेमसाब।’’ कबीर ने फिर शरारत से सिर झुकाया।

शाम को कबीर ने माया को घर पहुँचकर तैयार रहने को कहा। सर्दियों के दिन थे। शाम जल्दी ढल चुकी थी। आसमान में अँधेरा था। हवा में कड़कती ठंढ थी। माया, सिल्क की लांग ड्रेस के ऊपर फ्लीस का मोटा पुलओवर जैकेट पहनकर तैयार थी। कबीर, खूबसूरत सा साइकिल रिक्शा लेकर पहुँचा। रिक्शे की सवारी सीट सामने की ओर से छोड़कर बाकी सभी ओर से पीले रंग की पॉलिथीन की मोटी शीट से घिरी थी। पॉलिथीन की शीट पर पीछे की ओर, ब्रिटेन का फ्लैग, यूनियन जैक बना हुआ था। साइकिल के हैंडल, प्लास्टिक के लाल और पीले फूलों से सजे हुए थे।

‘‘इतना सुंदर रिक्शा कहाँ से ले आए?’’ माया ने चहकते हुए पूछा।

‘‘अपना जुगाड़ है मेमसाब।’’ कबीर ने ठेठ देसी अंदा़ज में कहा।

‘‘अच्छा, पिकेडिली सर्कस का क्या लोगे भैया।’’ माया ने शरारत से पूछा।

‘‘जो वाजिब लगे दे देना मेमसाब; रात का ब़खत है और ठंढ भी बहुत है।’’ कबीर ने हाथ रगड़ते हुए माया पर शरारती ऩजर डाली।

‘‘एक थप्पड़ पड़ेगा तो सारी ठंढ निकल जाएगी; चलो रिक्शा चलाओ।’’ माया ने रिक्शे पर बैठते हुए हँसकर कहा।

कबीर ने रिक्शा चलाना शुरू किया। लंदन में साइकिल रिक्शे बहुत कम चलते हैं। बस थोड़े बहुत सेंट्रल लंदन में ही चलते हैं... जो, लोग अपने शौक के लिए इस्तेमाल करते हैं। माया के लिए ये अलग किस्म का और बेहद रोमांटिक अनुभव था। कबीर, धीमी ऱफ्तार से गुनगुनाते हुए, रिक्शा खींच रहा था। बीच-बीच में वह मुड़कर माया को देखता। माया के चेहरे का एक्साइटमेंट उसे अच्छा लग रहा था।
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10-08-2020, 12:34 PM,
#59
RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
‘‘भैया, थोड़ा ते़ज चलाओ; इतना धीरे क्यों चला रहे हो? लगता है कुछ खाते नहीं हो, सारा पैसा दारू में उड़ा देते हो।’’ माया ने फिर से शरारत की।

‘‘मेमसाब, जल्दी चलाऊँगा तो हम जल्दी पहुँच जाएँगे; इतनी सुंदर सवारी हो तो उसके साथ ज्यादा से ज्यादा ब़खत बिताने का मन करता है।’’ कबीर ने भी वैसी ही शरारत की।

‘‘हाय राम, बहुत बेशर्म रिक्शेवाले हो; ऐसे भी कोई बात करता है लेडी़ज सवारी के साथ?’’

‘‘मेमसाब! ऐसे तो रिक्शे वाले से भी बात नहीं करनी चाहिए; मजूरी करते हैं, ग़ुलामी नहीं।’’

‘‘अच्छा, तुमसे प्यार करूँ तो ग़ुलामी करोगे?’’ माया ने थोड़ा आगे झुकते हुए एक नटखट मुस्कान बिखेरी।

कबीर ने मुड़कर माया को देखा। उसके चेहरे पर बिखरी नटखट मुस्कान उसे बहुत अच्छी लग रही थी। माया को इस तरह शरारत करते हुए उसने कम ही देखा था। अपनी मंज़िल की ओर भागती माया, जिसे ते़ज ऱफ्तार पसंद थी, आज रिक्शे की धीमी सवारी में छोटी-छोटी शरारतों का म़जा लेती हुई कुछ अलग ही लग रही थी। कबीर की आँखें माया के चेहरे पर टिक गयीं।

‘‘कबीर वाच...।’’ अचानक से माया चीखी।

माया का चेहरा निहारते हुए कबीर का ध्यान, रिक्शे की दिशा पर नहीं रहा था। रिक्शे का अगला पहिया सड़क के किनारे बने फुटपाथ के कर्ब से टकराकर फुटपाथ पर चढ़ा, और रिक्शे का बैलेंस पूरी तरह बिगड़ गया। कबीर ने रिक्शे को सँभालने की कोशिश की, मगर नाकाम रहा। रिक्शा, पलटकर सड़क पर गिरा, और साथ ही कबीर और माया भी। पीछे से आती एक कार के ड्राइवर ने जोर से ब्रेक लगाया। एक चरचराहट के साथ कार के टायर सड़क पर रगड़े; मगर रुकते-रुकते भी कार रिक्शे से टकरा गयी। माया को एक ज़ोर का धक्का लगा और वह रिक्शे से छिटक कर लुढ़कती हुई सड़क पर जा गिरी।

कार ड्राइवर ने झटपट अपने मोबाइल फ़ोन से इमरजेंसी का नंबर मिलाकर एम्बुलेंस बुलाई। तीन मिनट के भीतर, सायरन बजाती एम्बुलेंस पहुँच गई। एम्बुलेंस से पैरामेडिक्स की टीम निकली। पैरामेडिक्स ने झटपट, माया और कबीर को उठाकर स्ट्रेचर पर लिटाया और उन्हें एम्बुलेंस के भीतर लेकर गए। कबीर को कम चोटें आई थीं। वह होश में था। माया को का़फी चोटें लगी थीं, वह बेहोश थी। उसके सिर से खून भी बह रहा था। एम्बुलेंस, सायरन बजाती ते़जी से सेंट थॉमस एक्सीडेंट एंड इमरजेंसी हॉस्पिटल की ओर दौड़ी।

इमरजेंसी वार्ड के बिस्तर पर लेटा कबीर, अपने पैरों में बँधी पट्टियों को देख रहा था। उसके सिर पर भी हल्की चोट आई थी, जिसे ग्लू कर दिया गया था। माया आईसीयू में थी। कबीर को अपनी लापरवाही पर गुस्सा आ रहा था। बेपरवाही तो कुछ हद तक अच्छी होती है, मगर क्या उसे इस तरह की लापरवाही करनी चाहिए, जिससे किसी की जान खतरे में आ जाए। माया को कुछ हो गया तो? कितनी दुर्घटनाओं का बोझ वह अपने ऊपर लेगा? नेहा की मौत का, प्रिया के अवसाद का, और अब माया...।

‘‘आपकी पार्टनर को मल्टीपल इन्जुरी़ज हैं; ब्रेन में ब्लड क्लॉट भी बन गया है; हम दवाइयाँ दे रहे हैं, मगर शायद ऑपरेशन करना पड़े।’’
डॉक्टर नायक ने इमरजेंसी वार्ड के बेड पर लेटे कबीर को बताया।

‘‘वो ठीक तो है न डॉक्टर? ज़्यादा सीरियस तो नहीं है?’’ कबीर ने घबराते हुए पूछा।

‘‘अभी कुछ कह नहीं सकते... कभी-कभी ब्रेन इंजुरी फेटल भी हो जाती है; दूसरे इंटरनल ऑर्गंस में भी चोट आई है... ब्लड लॉस का़फी हुआ है।’’
कबीर की घबराहट और बढ़ी। उसके पास माया के किसी रिश्तेदार का कोई कांटेक्ट नंबर भी नहीं था। ऐसे में उसे सि़र्फ प्रिया की याद आई।

‘‘डॉक्टर! एक फ़ोन कर सकता हूँ?’’ कबीर ने पूछा।

‘‘आप आराम करें; जिसे भी इन्फॉर्म करना है, बता दें, हम उन्हें फ़ोन कर देंगे।’’ डॉक्टर नायक ने कहा।

कबीर ने अपने मोबाइल फ़ोन से प्रिया का नंबर निकालकर ड्यूटी नर्स को दिया। ड्यूटीनर्स, प्रिया को फ़ोन करने वार्ड से बाहर निकल गई।

‘‘हे कबीर! क्या हुआ? कैसे हो?’’ हॉस्पिटल पहुँचते ही प्रिया ने घबराई आवा़ज में पूछा।

‘‘मैं ठीक हूँ प्रिया, मगर माया ठीक नहीं है।’’

‘‘क्या हुआ माया को? मैं मिल सकती हूँ उससे?’’ प्रिया की घबराहट कुछ और बढ़ी।

‘‘अभी नहीं प्रिया; अभी तो शायद वह होश में भी नहीं आई है; ब्रेन में ब्लड क्लॉट बन गया है, शायद ऑपरेशन भी करना पड़े।’’

‘‘ओह! यह सब कैसे हुआ?’’ प्रिया की घबराहट चिंता में बदल गई।

‘‘बताता हूँ प्रिया, मगर पहले ये बताओ, तुम्हारे पास माया के घर वालों का कांटेक्ट नंबर है? उन्हें इन्फॉर्म कर सकती हो?’’

‘‘कबीर, तुम्हें नहीं पता कि माया का कोई नहीं है?’’ प्रिया ने आश्चर्य से पूछा।

‘क्या!’ कबीर चौंक उठा।

‘‘हाँ कबीर; माया के पेरेंट्स की डेथ उसके बचपन में ही हो गई थी; उसके दादा-दादी ने उसे पाल कर बड़ा किया... अब तो वे भी नहीं रहे।’’

‘‘ओह! माया ने कभी बताया ही नहीं।’’

‘‘तुमने कभी पूछा ही नहीं होगा; तुम हो ही ऐसे लापरवाह।’’

कबीर को अब जाकर समझ आया, कि माया में सफलता और संपन्नता की इतनी ललक क्यों है... अनाथ थी... अभावों से गु़जरी रही होगी।

चैप्टर 22

अगले दिन माया को होश आया। प्रिया, माया के लिए उसके पसंदीदा स़फेद फूलों का गुलदस्ता लेकर उससे मिलने गई।

‘‘हाय माया! अब कैसी हो?’’ प्रिया ने उसे गुलदस्ता देते हुए पूछा।

‘बेटर।’ माया ने मुश्किल से कहा।

‘‘तो ये सब कबीर की करतूत है; इसी ने तुम्हें रिक्शे से गिराया था।’’ प्रिया ने कबीर पर एक व्यंग्य भरी दृष्टि डाली, ‘‘कबीर, तुम कुछ सँभाल भी पाते हो? न प्रेम सँभलता है और न ही प्रेमिका।’’

प्रिया की बात पर कबीर को का़फी झेंप महसूस हुई; उसने शरमाकर माया की ओर देखा। माया ने कुछ कहना चाहा, मगर उसके पहले ही प्रिया ने कहा, ‘‘माया, सुना है तुम अपनी फ़र्म में पार्टनर बन गई हो, कांग्रेट्स।’’

‘‘थैंक्स प्रिया।’’ माया को प्रिया का मिलनसार व्यवहार अच्छा लगा। उसे तो लगता था कि प्रिया कभी उसका चेहरा भी न देखना चाहेगी, मगर प्रिया तो ख़ुद एक नए रूप में उसके सामने थी। माया के लिए यह एक सुखद आश्चर्य था।

माया के ब्रेन का ऑपरेशन सफल रहा। उसकी दार्इं टाँग में मल्टिपल प्रâैक्चर हुए थे। हिपबोन सरक गई थी; उसे भी ऑपरेट करके जाँघ के भीतर स्टील की प्लेटें डालकर सहारा दिया गया था। पूरी टाँग पर प्लास्टर चढ़ा था। बाकी की चोटों से हुए घाव भी भरने लगे थे। इस बीच प्रिया, माया से नियमित मिलती रही। वो माया के लिए उसके पसंदीदा फूल और खाना भी ले आती। माया को ये जानकर राहत और ख़ुशी मिली, कि प्रिया के मन में उसके लिए कोई दुर्भावना नहीं रह गई थी। कुछ दिनों में माया को बेड रेस्ट और अच्छी केयर की सलाह देकर उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई।

‘‘माया, तुम मेरे घर चलो; वहाँ तुम्हारी अच्छी केयर हो जाएगी।’’ कबीर ने माया से कहा।

‘‘नहीं कबीर, माया मेरे साथ मेरे अपार्टमेंट में रहेगी।’’ प्रिया ने कहा।

तुम अपना काम करोगी या माया की केयर करोगी?’’

‘‘और तुम अपनी जॉब करोगे या माया की केयर करोगे?’’

‘‘घर पर माँ हैं; वो केयर करेंगी माया की।’’

‘‘माँ को तकली़फ तब देना, जब माया उनकी बहू बन जाए; अभी माया को मेरे साथ ही रहने दो।’’ प्रिया ने माया की ओर एक मीठी मुस्कान बिखेरी।

प्रिया की बात से कबीर को थोड़ी से झेंप हुई। उसने झेंपते हुए, माया की ओर देखा। माया को प्रिया के शब्द छू गए। उसका यकीन मजबूत हो गया कि प्रिया ने उसे मा़फ कर दिया था।

‘‘कोई मुझसे भी पूछेगा कि मैं कहाँ रहना चाहूँगी?’’ माया ने कहा।

‘‘हाँ माया, तुम्हीं कहो प्रिया से, कि तुम मेरे घर पर आराम से रह सकोगी।’’ कबीर ने प्रिया की ओर देखते हुए माया से कहा।

‘‘ह्म्म्म...मुझे लगता है कि मैं अपनी सहेली के घर ज़्यादा आराम से रहूँगी।’’ माया ने कुछ सोचने का अभिनय करते हुए मुस्कुराकर कहा।

‘‘हूँ... नारी एकता... तुम लोगों को, मर्दों को झुकाकर ही म़जा आता है।’’ कबीर ने झुँझलाते हुए कहा।

माया ने शरारत से प्रिया को आँख मारी, और फिर दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ीं।
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10-08-2020, 12:34 PM,
#60
RE: Indian Sex Kahani डार्क नाइट
प्रिया और कबीर, माया को प्रिया के अपार्टमेंट में ले आए। प्रिया ने माया के आराम के सारे बंदोबस्त कर रखे थे। लिविंग रूम की सजावट भी माया की पसंद के अनुसार ही कर रखी थी। ब्राइट शैम्पेन रंग के पर्दे, और फ्लावर पॉट्स में जास्मिन, डे़जी और डहलिया के फूलों के गुलदस्ते। उस शाम, माया को ध्यान में रखते हुए प्रिया ने खाना भी हल्का, मगर पौष्टिक बनाया। रोस्टेड पम्पकिन और रेड पेपर का सूप, मैश्ड क्रीमी स्वीट पोटैटो, मिक्स्ड वेजिटेबल खिचड़ी, और खीरे का रायता। माया के बेड के पास ही टेबल लगाकर उसने खाना सर्व किया।

‘‘वाह, कद्दू से भी इतना टेस्टी कुछ बन सकता है, यह पता नहीं था।’’ कबीर ने सूप टेस्ट करते हुए कहा।

‘‘रेसिपी ले लो, जब चाहो तब बना लेना इतना टेस्टी।’’ प्रिया ने मुस्कुराकर ‘इतना टेस्टी’ पर ज़ोर देकर कहा।

कबीर को प्रिया से हुई पहली मुलाकात याद आ गई, जब उसने प्रिया के ‘प्ली़ज’ कहने के अंदा़ज की नकल की थी।

‘‘न बाबा, ये खाना बनाने का काम मुझसे नहीं होता।’’ कबीर ने अपना ध्यान उस पहली मुलाकात से हटाते हुए कहा।

‘‘बड़ी माँ की बिगड़ी औलाद।’’ माया ने शरारत से कहा।

अब माया से हुई मुलाकात की याद। कबीर को लगा, जैसे कि वह प्रिया और माया के बीच टेनिस की बॉल की तरह उछल रहा है। कभी प्रिया उसे माया की ओर उछाल रही है, तो कभी माया उसे प्रिया की ओर। कभी प्रिया की वजह से माया उसकी ज़िंदगी में आई थी, और अब माया की वजह से प्रिया लौट आई है। कबीर इस पिंग-पांग की हालत में थोड़ी बेचैनी महसूस कर रहा था। उसने झटपट खाना खत्म करते हुए प्रिया से कहा, ‘‘अच्छा प्रिया, अब चलता हूँ; तुम माया का ख़याल रखना।’’

‘‘कबीर, आज रात यहीं रुक जाओ।’’ माया ने अनुरोध किया।

फिर वही पुरानी याद। कभी यही अनुरोध माया की मौजूदगी में प्रिया ने किया था। कबीर ने बेचैनी से प्रिया की ओर देखा।

‘‘मेरी ओर क्या देख रहे हो; माया कह रही है तो रुक जाओ।’’ प्रिया ने कहा।

‘‘तुम्हारा घर है तो तुमसे तो पूछना पड़ेगा न।’’ कबीर ने अपनी बेचैनी छुपाने के लिए म़जाक के अंदा़ज में कहा।

‘‘कह तो ऐसे रहे हो, जैसे मुझसे पूछे बिना पहले कभी यहाँ नहीं रुके।’’

प्रिया का इरादा न जाने क्या था, मगर उसकी ये बात कबीर और माया दोनों को ही चुभ गई। कबीर ने माया की ओर देखा। उसे समझ नहीं आया कि प्रिया को क्या जवाब दे, मगर माया की भावुकता बह उठी।

‘‘प्रिया! कबीर और मुझे तुमसे मा़फी माँगनी चाहिए; तुमने मेरे लिए कितना कुछ किया और हमने..’’ कहते हुए माया की आँखें भर आर्इं।

‘‘अरे माया, इमोशनल मत हो; अच्छा तुम लोग बैठो, मैं कॉ़फी बनाकर लाती हूँ।’’ कहते हुए प्रिया किचन की ओर भागी।

कबीर को प्रिया का व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। आ़िखर प्रिया इतनी उदार क्यों हो रही थी? क्यों वह फिर से माया पर अहसान कर रही थी? वह भी प्रिया के पीछे किचन में गया।

‘‘प्रिया! यह क्यों कर रही हो?’’ कबीर ने उत्तेजित स्वर में पूछा।

‘‘क्या कर रही हूँ कबीर... कॉ़फी ही तो बना रही हूँ।’’ प्रिया ने कुछ इस अंदा़ज से कहा, जैसे कि उसने कबीर का आशय न समझा हो।

‘‘बनो मत प्रिया; माया को अपने घर पर रखकर आ़िखर क्या साबित करना चाहती हो तुम?’’ कबीर के स्वर में वही उत्तेजना थी।

‘‘मैं वही कर रही हूँ जो किसी दोस्त को करना चाहिए; माया को मेरी ज़रूरत है।’’

‘‘जिसने तुमसे तुम्हारा प्यार छीन लिया, उसी पर प्यार लुटा रही हो? सच-सच बताओ प्रिया, ये भगवान बनने का नाटक क्यों कर रही हो?’’ कबीर झुँझला उठा।

‘‘बहुत समझदार हो गए हो कबीर; बहुत जल्दी नाटक पहचान लेते हो।’’ प्रिया ने कबीर पर एक व्यंग्य भरी दृष्टि डाली, ‘‘अच्छा अब चलो, कॉ़फी तैयार हो गई है।’’

उस पूरी रात कबीर बेचैन रहा। प्रिया, आ़िखर वह सब क्यों कर रही थी? क्यों वह माया के बहाने उसे फिर से अपने करीब ले आई थी? माया बीमार थी, बिस्तर से बँधी थी; प्रिया आ़जाद थी, उपलब्ध थी... क्या इसी का फ़ायदा उठाकर वह उसे फिर से अपनी ओर आकर्षित करना चाहती थी? क्या माया को ये बात समझ नहीं आ रही थी; या माया का उस पर अटूट विश्वास बन गया था? क्या वह इतना कम़जोर था, कि वह माया का विश्वास तोड़ देगा? कबीर को प्रिया के शब्द याद आ गए, ‘माया को भी तुम्हें आ़जमा लेने दो।’ तो क्या यही है प्रिया का मकसद? उसे माया से वापस छीनना? कबीर ने निश्चय किया कि चाहे जो भी हो, वह प्रिया की चाल को कामयाब नहीं होने देगा।
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