RE: Indian XXX नेहा बह के कारनामे
अब नेहा को लेकर प्रवींद्र के फैंटेसी बढ़ती जा रही थी। वो नेहा को किसी से भी कुछ भी करते देखना चाहता था। और प्रवींद्र उस वक्त जानबूझकर लाउंज से निकल गया, अपने पिता को आसानी से नेहा के साथ एंजाय करने के लिए। अब प्रवींद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि कहाँ से उन दोनों को देखे?
उसने सोचा एक ही तरीका है उनको देखने को, वो था बाहर से। वो बाहर गया लाउंज में झाँकने के लिए मगर परदा खींचा हआ था तो कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, तो वो फिर से अंदर आ गया, मगर उस सोफे पर नहीं बैठा, किसी दूसरी जगह बैठा जो खिड़की के पास थी, फिर उसने धीरे से पर्दे को जरा सा खींचा बस एक पतली सी झिरी बनाने के लिए ताकी उसको बाहर से अंदर दिख सके।
फिर उसने कहा कि अब वो सोने जा रहा है। तब प्रवींद्र बाहर गया और उस झिरी से लाउंज के अंदर देखना शुरू किया। अब वो अपने पिता को अपनी भाभी के साथ एंजाय करते हुए बहुत अच्छी तरह से देख सकता था, जो
छोटी सी जगह बनाया था खिड़की के पर्दे को हटाकर बिल्कुल ठीक था उन दोनों को देखने के लिए।
और लाउंज में जब पिता ने सुना कि प्रवींद्र सोने चला तो वो अपना मुँह नेहा की ड्रेस के अंदर डाल चुका था, उसके जांघों को चाटने के लिए। नेहा की नर्म, मुलायम जांघे जिसकी हल्की गर्मी से ससुर को गाल से दबाते हुए बहुत मजा आ रहा था। यही दिखा प्रवींद्र को बाहर से जब वो वहाँ पहुँचा तो। उसके पिता का सर नहीं दिख रहा था उसे, क्योंकी सर नेहा के गोद में उसके ड्रेस के नीचे था।
ये देखकर प्रवींद्र का लण्ड बिल्कुल खड़ा हो गया और उसने अपने हाथ को अपने लण्ड पर रखा अंदर का खेल देखते हुए। प्रवींद्र के पिता ने नेहा की दोनों टाँगों के थोड़ा फैलाया और उसकी चूत को, पैंटी के ऊपर से ही होंठों में दबाते हुए चूमने लगा। तब तक गरम स्पॉट पर नेहा की पैंटी पर एक भीगा हुआ धब्बा आ गया था। फिर
ससुर ने अपनी बहू की चूत को चूमते हुए, पैंटी को धीरे-धीरे नीचे करना शुरू किया। घुटनों तक पैंटी को खींच दिया था।
तो नेहा बोली- “यहीं तक रहने दो पिताजी कहीं प्रवींद्र वापस ना आ जाये। अगर आएगा तो मैं जल्दी से ऊपर खींच पाऊँगी पैंटी को..."
तो पैंटी को वहीं घुटनों तक छोड़ा और चाटते हुए ससुर उसकी चूत का रस पीने लगा। नेहा के हाथ में ससुर का मोटा लण्ड था जिस पर वो हाथ चला रही थी बिल्कुल जैसे मूठ मारते वक्त चलाते हैं। नेहा अनुभवी हो गई थी, उसको मर्दो को खुश करना आ गया था इतने दिनों में, 5 महीनों में।
ससुर जितना उसकी चूत के संवेदनशील हिस्सों को जीभ लगा रहा था उतना ही जोरों से नेहा लण्ड रगड़ रही थी अपने हाथ में। यह सब देखकर प्रवींद्र को भी मूठ मारने का मन कर रहा था, उसका जमके बिल्कुल खड़ा था। नेहा ने झुक कर ससुर के गले को चाटा और दाँत काटा। नेहा के वैसा करने से ससुर की उत्तेजना दोगुना हो गई। फिर एक पल बाद ससुर ने नेहा को अपनी गोद में बिठाया, और अपने लण्ड को उसकी चूत में डाला। आखिरकार, पैंटी निकाल दी गई और नेहा को लण्ड के ऊपर उठक बैठक करना पड़ा, जो चूत के अंदर था। ससुर ने नेहा की कमर को पकड़ा और उसकी चूचियों को चूसने के लिए उसकी चूचियों पर अपना मुँह डाला, जो ब्रा में नहीं थे, बस वैसे लटके हुए थे ड्रेस के अंदर।
ससुर नेहा की चूचियों को चाटता चूसता गया, उसका लण्ड नेहा की चूत के अंदर था, नेहा ऊपर-नीचे उछाल रही थी और ससुर उसकी चूचियों को चूसे जा रहा था। फिर ससुर भी अपने पंजे पर जोर देते हुए कमर को थोड़ा उठाकार धक्का देने लगा। नेहा के ऊपर-नीचे होने के साथ-साथ उसके धक्के, नेहा के उठक बैठक, लण्ड को रफ़्तार से अंदर-बाहर किए जा रहे थे। जिससे नेहा हाँफने लगी थी और उसकी सिसकारियां लाउंज में गूंजने लगी
थीं। नेहा को बाहों में जाने की जरूरत महसूस हुई तो उसने झट से अपनी दोनों बाहों को ससुर के कंधों पर लपेटा और ससुर के मुँह को अपने मुँह में लेकर उसको जबरदस्त गरमा गरम किस करने लगी, चूत में लण्ड को बराबर अंदर-बाहर लेते हुए। नीचे चूत और लण्ड के रस बह रहे थे और ऊपर दोनों एक दूसरे के मुँह के रस पी रहे थे।
बाहर प्रवींद्र से ये सब देखकर रहा नहीं गया, वो भी मूठ मारने लगा, नेहा को अपने बाप से चुदवाते हुए देखकर। नेहा अपने ससुर पर और जोरों से उछलती गई, लण्ड को अपने अंदर महसूस करते हुए और सिसकारी
और हाँफने से उसके साँसें भी फूलने लगीं, दिल की धड़कनें बढ़ने लगी और जिश्म पशीना-पशीना हो गया था दोनों के।
फिर होना क्या था नेहा चिल्लाई- “हाँ पताजी इस्स्स्स ... हाँ पिताजीईई, बहुत अच्छा लग रहा है... आआहह... इस्स्स्स ...” और अचानक हाँफते हुए नेहा शांत हो गई अपने गाल को ससुर की छाती से लगाए हुए, ससुर की दिल की धड़कनों को सुनती गई।
नीचे उसकी चूत ने पूरा पानी छोड़ दिया था साथ-साथ ससुर का वीर्य भी साथ मिल चुका था नेहा के पानी से। ससुर ने जोर से नेहा को बाहों में जकड़कर- “आआघग... उफफ्फ़..' किया, जब उसके लण्ड वीर्य छोड़ते हुए चूत से बाहर नेहा की गाण्ड के छेद पर रगड़ रहा था। फिर जल्दी से ससुर ने लण्ड को नेहा के हाथ में थमाया, बाकी के वीर्य के कतरों को नेहा से निकलवाने के लिए।
नेहा मुश्कुरा रही थी अपने ससुर के लण्ड से बाकी के पानी निचिड़ते हुए। एक-एक कतरा निकला तो नेहा ने खुद-बा-खुद अपनी जीभ को लण्ड के छेद पर हल्के से फेरा और नजरों को ऊपर उठाकर मुश्कुराते हुए ससुर के चेहरे में देखा, और एक लंबी सांस लेते हुए कहा- “लो अब मुरझाने लगा आपका जबरदस्त औजार पिताजी। हीहीहीही.."
ससुर ने कहा- “इसी लण्ड से तुम भी पैदा हुई हो बहू.."
नेहा ने होंठ को दाँत में दबाते हुए कहा- “हाँ पिताजी, सही है। पर आपने मुझे मेरे पापा की याद दिला दिया..”
जब नेहा ने यह कहा तो ससुर ने चिहुँकते हुए कहा- “क्या मेरे लण्ड ने तुमको अपने पिता की याद दिला दी?
क्या तुमने कभी उनक... लण्ड देखा है?"
नेहा ने मुश्कुराते हए जवाब दिया- “अरे नहीं पिताजी, मेरा मतलब वो नहीं था, मतलब यह कि जब आपने कहा कि इसी से मैं भी पैदा हुई हूँ, तो मैंने सोचा कि मेरे पिता ने भी इसी से मेरी माँ के साथ करके मुझको पैदा किया है। अजीब बात है ना पिताजी कि जिस चीज ने हमको पैदा किया आज बड़े होकर हम उसी चीज को इतना पसंद करते हैं? रिश्ता ही ऐसा है इस चीज से हमारा है, ना पिताजी?"
ससुर मुश्कुराया और नेहा को वापस उसकी पैंटी पहनाते हुए कहा- “सो तो है, अब मैं भी ऐसे ही एक चूत से निकला हूँ ना... और इसी को पसंद करता हूँ। बिल्कुल सही कह रही हो बेटी, अजीब बात है हमारा रिश्ता ही बना हुआ है इन चीज़ों से... एक मग्नेटिक अट्रॅक्सन जैसा है इनके बीच बहू..”
बाहर से प्रवींद्र भी उनकी सारे बातें सुन रहा था। प्रवींद्र को यकीन नहीं आया जो नेहा ने कहा अपने पिताजी के बारे में। कुछ तो बात होगी नेहा की अपने खुद के पिताजी के साथ जो उसकी याद आ गई ससुर का लण्ड हाथ में थामे हुए? प्रवींद्र सोच में डूब गया- “दाल में कुछ तो काला जरूर है?” प्रवींद्र ने सोचा।
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