RE: kamukta Kaamdev ki Leela
एक सूबह हमेशा की तरह गौरव अपने जोग वयम मे व्यस्त था के तभी सामने आसन पर बैठ जाता है अजय। अपने बेटे को बैठे देख गौरव कुछ कहा नहीं, बस कसरत में डायन लगाए रेखा। क्योंकि गर्मी का मौसम था, कोई भी अधिक वस्त्र पहनना गौरव उजित नहीं समझा। वह केवल एक बनियान और पजामा पहना अपने काम में लगा रहा।
उस रात के कामुक सेशन के बाद गौरव अभी अभी कामुक यादों से खुद को बाहर नहीं निकल पाया था, रमोला और उसके बीच इतना बढ़िया संभोग हुआ था के शब्दो में बयां करना शायद मुश्किल हो, और यह मुमकिन हुआ था अजय के की गई हरकत के वजह से। एक मामूली सा क्रोसद्रेस इतना कामुकता जगा सकता है अपने ही पिता में, यह बात अभी भी अजय को हजम नहीं हुआ था।
दादी से वर्तालब के बाद उसके मन में काफी उथल पुथल हो चला था। फिर भी हिम्मत जुटाए वोह अपने पिता के नज़दीक बैठे उन्हें निहारने लगा। यह पहली बार ऐसा हुआ के वोह अपने पिता के बलिष्ट और कसरती जिस्म की और नजर गड़ाए बैठा रहा। बेटे के मौजूदगी से शायद पहले कभी गौरव को फर्क nahi पड़ता, लेकिन जबसे उसका बेटा के यह अजीब शौक का खुलासा हुआ, तो नॉरमल रहना शायद थोड़ा मुश्किल था।
अजय : (धीरे से) डैड! उस दिन आप नाराज़ हो गए थे! आई एम सॉरी!
गौरव : (डंबेल उठाके) कहना किया चाहता है?? क्या वोह सही था?? अपनी यह शौक अपने तक ही रखना!! (सास में एक बेचैनी था) इसका असर बुरा हो सकता है परिवार पर!! और (थोड़ा रुककर) वैसे भी जब शादी वादी हो जाएगा, तब यह सब तुझे रोकना ही परेगा!
इस आखरी के कुछ वाक्य ने अजय को और मायूस कर दिया। वोह कुछ भी बोला नहीं।
दरअसल बात यह थी के उस रात के संभोग का विषय ही अजय था! इस बात को हजम करना रात को एक बात थी, लेकिन दिन के उजाले में, यूं अजय के एकदम निकट बैठे उस सच को कुबूल करना काफी मुश्किल था। खैर अनजाने में ही सही लेकिन दुंबेल से खेलते खेलते गौरव की नजर अपने बेटे के कमर पर यूहीं टिक गया।
क्योंकि अजय बिल्कुल गिरा चिठ्ठा था अपनी मा की तरह, उसके कमर काफी लचीला था इत्तेफाक से। उसे वोह वाला घटना याद आगता जब बचपन में अजय को एक फ्रॉक पहना गया था और वोह बिलकुल रेवती की बहन लग रही थी। उस समय गौरव को बहुत नाराजगी तो हुआ था लेकिन बचपन आखिर बचपन होता है।
अब की बार मामला संगीन था, क्योंकि अजय अब जवान हो चुका था और उसे अब कुछ ज़रूरी निर्णय भी लेने थे ज़िन्दगी के बारे में। कमर की और नजर गड़े रखना मुश्किल हो रहा था क्योंकि उसका नतीजा यह था के उसके पजामे के अन्दर सिहरन होने लगा था। उसने फिर ऊपर अपने बेटे के मुंह के और देखा और समझ गया के उसके मन में कुछ था जो उसने अभी तक अपने ज़बान के दहलीज पर नहीं रखा था।
गौरव : (दंबेल रखता हुआ) तू कुछ कहना चाहता है?
अजय : यस डैड! एक्चुअली! आप को कुछ बताना था। (संकोच करता हुआ)
गौरव : जो भी है बता दो!
अजय : डैड! क्या आप और मा खुश है?
गौरव : यह कैसा सवाल है???? हां हम खुश है! इसमें क्या बरी बात है!
अजय : नहीं, बात दरअसल यह है के (अचानक से अपने पिता के हाथ को पकड़ता हुआ) डैड! केके क्या में भी आपको खुश कर सकता हूं?
गौरव जो पहले से ही कामुकता की नदी में तैर रहा था, अचानक अंदर से सिहर उठा आर उत्तेजना में ही सही लेकिन झट से हाथ हटा दिया अपना। अजय सफेद दिल लिए वहीं बैठा रहा।
गौरव : यह ठीक नहीं है बेटा!! जाओ यहां से!
अजय : डैड! में अपने आप से तो नहीं भाग सकता! यह भला कहा का नियम है के नर और मादा ही प्रेम कर सकते है!
दरअसल दोस्तों, पिछले रात को अजय ने एक सपना देखा था जहां वोह एक पुराने जैन मंदिर की सैर कर रहा था, और ऐसे में उसे कुछ पुराने ग्रंत और कागज़ मिले, जहां समलैंगिक संभोग का भी ज़िक्र था! मज़े की बात यह थी के यह सब कुछ लिखा गया था जैन मुनियों के धरवा। और दिलचस्प बात यह था के उसे यह सब एक अंजना महिला पढ़ के सुना रही थी।
कहीं ना कहीं उस महिला की आवाज़ में एक मधुरता थी जो अजय को अपनी और कहीं दूर ले चली थी।
खैर, वास्तव की और चलते है जहां अजय अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था और गौरव था के अब संकट में आ चुका था, उसे धर्मसंकट केह लीजिए या होमोसंकट! बात तो परेशानी की थी के अगर किया जाए तो क्या किया जाए। अजय बिना संकोच किए अपने पिता के हाथ को लेके अपने हाथो में मलने लगा और उनके खुदरे हाथों के स्पर्श से ही उसका जिस्म में लेहरो पे लेहरे दौड़ गई।
गौरव : बेटा! (कमजोर आवाज़ में) ऐसा मत कर!! देख मैं संभाल नहीं पाऊंगा खुद को!
अजय : आपको मेरा डांस अच्छा लगा ना डैड??
गौरव : शट अप!! अजय (घुस्से और वासना से भरे आवाज़ में)
अजय : प्लीज डैड! सच कहीए!!!!!! देखिए, मुझे मालूम है आपका नजर कैसे मुझे तार रहा था उस दिन!
गौरव नाराज़ होके अपने बेटे को धकेलने ही वाला था के अजय अपने होंठ अपने पिता के होंठो पर झट से लगा देता है और फिर क्या! एक समुंदर के तेज़ लहर गुजर जाता है दोनों के जिस्म में से। ना चाहते हुए भी गौरव का हाथ अपने बेटे के पीठ पर घूमने लगा और अजय भी कस के अपने पिता को जकड़ लेता है।
गौरव के दारी और मूछ की चुभन कुछ अजीब सी एहसास दे रहा था अजय को और वोह भी अपने बेटे को लेके अब शारीरिक दौर से भावुक होने लगा। आज एक तेज़ पानी की झोंक से एक पहाड़ पिघलने लगा था। अजय अब धीरे से अपने होंठ को अलग करने लगा और निचले होंठ पे लगे पिता के लाली को खुद चूस गया। उसके मुंह से बस "सोरी डैड!" निकल गया और बिना कुछ और कहे वहा से निकल परा।
गौरव के दिल अभी भी जोरों से धड़क रहा था। पुरुष स्पर्श का यह पहला पहला अनुभव था और बहुत अजीब सी कशिश थी इसमें।
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दूसरे और रिमी बहुत उत्तेजित थी उस दरवाज़े की हादसे के बाद, उसे अब यकीन हो चली थी के उसके प्यारे से राहुल भइया अब उसे किसी और नजर से ज़रूर देखेगा। यह सोचना भी उसकी कुछ हद तक सच भी थी क्योंकि राहुल के नजर में अब नमिता के साथ साथ रिमी भी दिल में सामने लगी।
यहां तक के राहुल एक थ्रीसम के सपने भी देखने लगा और उसे अब मौका तलाशने थी रिमी को आगे पटाने की। रिमी की आखरी कुछ शब्दो ने उसे दीवाना बना दिया था और जिस अंदाज़ से उसने उसके एक एक कतरे को अपनी उंगलियों से चूसा था, वोह पागल बानाने के लिए काफी था।
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