RE: kamukta Kaamdev ki Leela
अब उसकी नाज़ुक सी हाथ आगे गई और उंगलियां धीरे धीरे सोए हुए सुपाड़े की आस पास छुने लगी, मानो कोई नई सी वस्तु का मोइना कर रहे हो। सुपाड़े पर चमरी को टटोलने लगी उंगलियां भी सोच में पर गई की आखिर इस चीज का क्या किया जाए! आशा की सासें इतनी तेज़ हो गई के उसकी आवाज़ कमरे कि चारो और फेल गई। दृश्य बरा ही मनमोहक थी पूरी कमरे में, जहा एक औरत की उंगलियों एक मर्द के लिंग का मोयना कर रही थी और खिड़की से हल्की हल्की रोशनी जैसे सीधे उस जगह पर रुक गई हो जहा हाथ और लिंग का मिलन हो रहा था।
आशा धीरे धीरे अपनी उंगलियों को आदेश दी के आगे बढ़ो और लिंग के इर्द गिर्द आविष्कार करो! जैसे वोह कोई कोच थी और उसकी उंगलियां, खिलाडियों का टीम! मगर पूरे मैदान में मादारी थी उसका मन! जिसके सामने वोह खुद भी जमुरा थी। जैसे जैसे मन बेहके जा रही थी, वैसे वैसे वोह बेहक रही थीं। हाथो के स्पर्श से मानो लिंग में अब थोड़े से हलचल हो रहे थे और अब आशा को एक खास किस्म का मज़ा आ रही थी। उसने अपनी उंगलियों को आदेश दी के सुपाड़े से लेकर सीधा नीचे गोटियो तक स्पर्श करे! आखिर वोह कोच थी।
जैसे उंगलियां गोटियों तक पहुंची, तो बड़ी हल्के से चारो और दबा दबा के उन थैलियों को टटोलने लगी। उनमें जमे वीर्य का आगाज़ होते ही वोह बुरी तरह शर्मा गई और एक लम्बी सांस लेती हुई सीधा उन गोटियों से जैसे खेलने लगी। मानो वोह बचपन में जैसे चली गई हो और अपनी पहली गुड़िया से खेल रही हो! इस सोच से शर्माकर वोह अब गोटियों को ऐसे दबाती गई जिससे अब रामधीर को अपनी जिस्म में हलचल मेहसुर हुई। उनका विचलित मन को यह पता था के लिंग को स्पर्श मिल रहा था किसिका। लेकिन फिर शांत रहकर खेल मज़ा लेने में ही समझदारी थी।
आशा अब नीचे झुंक गई घुटनों पर, ओर गौर से अपनी नज़रों को लिंग के आमना सामना ले आई। कुछ इस तरह के उसे केवल और केवल वोह काला लिंग ही दिखे जो अब पूरी तरह से उसकी मन में हावी हो गई थी। गोटियों से हटके लिंग की चारो और उंगलियां ऐसे मसाज करने लगी जैसे मानो कोई नर्स और मरीज का संबंध हो। "बाप री!! यह सोया हुआ शेर अगर इतनी देहाशत फैला सकता है! तो यह जागेगा तो कहीं खा ना जाए मुझे!!!! नहीं नहीं! में कोई मामूली गीदर नहीं हूं! बड़ी बहू जो ठहरी!"।
लेकिन कमबख्त मन को कौन समझाए! कौन वासना और होश में लकीर खिंचे?
आशा अब पूरी मगन थी उस लिंग को और ज़्यादा मसाज करने में, कुछ इतना कि उसमें खून घोलने लगा अब! और इस बात का पूरा एहसास था रामधीर को, लेकिन मज़े लेने में वोह भी अटल था। आशा को चोरी नज़रें से तो वोह देख ही चुका था, लेकिन सोने का नाटक चालू रखा। मन में अब उनके लट्टू फूटने लगे और शरीर में से खून सीधे लिंग में घोलने लग गया, जिससे नतीजा यह हुआ के लिंग सीधा उठ खड़ा होना लगा, सलामी देते हुए। इस बार आशा घबरा गई और फिर हाथ को पीछे करने ही वाली थी के उसकी उंगलियों को जकड़ लेता है रामधीर की उंगलियां।
इसे हरकत से आशा पूर्ण घबरा गई और माथे से पसीना पूरी बदन तक जाने लगी। "आप??? किया के कर रहे है?!!! जाने दीजिए मुझे!!"
लेकिन रामधीर ने कसके उसकी हाथो को जकड़ लिया और उनसे मसलवाना चालू रखा। पूर्ण मुगध होकर आशा भी अब ससुर का साथ देने लगी। इस करीय में अबे एक अलग मज़ा सा आ रहा था और यह बात रामधीर भी समझ रहा था।
फिर कुछ ऐसा हुआ के जिसका आगाज़ दोनों ससुर बहू को हो ही चुका था, पर होनी को कौन भला टाल सकता है! सुपाड़े का मुंह खुला और ताज़ा ताज़ा मलाई सीधा आशा की उंगलियों के इर्द गिर्द बहने लगी, मानो कोई शिवलिंग दूध से नहला रहा हो! घिन और आश्चर्य से आशा की तो मानो होश ही उड़ गई हो और गरमागरम तत्व जब उंगलियों को भीगो दी, तो घबराती हुई वोह अपनी हाथ को वापस ज़ोर से खींचती हुई, फौरन कमरे में से निकल गई।
मलाई की बरसात की हुई लिंग को तो आराम मिला हो था, लेकिन उससे भी ज़्यादा विचलित और खुश था रामधीर, जिसने बहू पर पहला वार कर चुका था।
शर्माती हुई आशा अपनी कमरे में भाग जाती है और एक लम्बी सांस लेती हुई, अपनी उंगलियों की और गौर से देखने लगी के कितनी गाड़ी मलाई थी वाकई में ससुरजी की। घिन से ज़्यादा उत्तेजित हो चुकी थी आशा, जिसने पहले तो वोह मीठी मीठी एहसास को अपनी नाक तक लेके सूंगने लगी, फिर हल्की सी जीव निकालकर एक उंगली को होंठो तले दबाए स्वाद लेने लगी। उफ़! मानो एक तेज़ हवा का झोंका आके उसे तरो ताज़ा करके गए हो। कुछ ऐसा एहसास हो रही थी आशा को।
"यह... यह में क्या कर बैठी????? ईश!" शर्म से पानी पानी हो चुकी आशा केवल अपने आप को कोसने लगीं इस हरकत के लिए! लेकिन फिर उसकी कानो में वहीं औरत को आवाज़ ग गूंजने लगी "मीठा मीठा, प्यारा प्यारा क्यों?" आशा नई नवेली बधू की तरह शरमा गई और खिड़की की रेलिंग पकड़े खड़ी रही चुप चाप।
"मा! मा!!! कहा हो???" नमिता की आवाज़ आशा को सुनाई दी और तुरंत अपनी उंगलियों को सारी के ऊपर ही पोच डाली "क्या हुआ बेटी???" हरबरकर वोह ऐसे खड़ी हुई जैसे मानो चोरी पकड़ी गई हो। "मा वोह...... एक मिनिट! यह क्या लगी है??" नमिता की इशारा आशा की मुंह के कोने के तरफ थी, जहा पूजनीय ससुरजी की मलाई की एक छोटी सी निशान बने हुए थे।
जब आशा ने गौर किया, तो शरमाकर तुरंत पल्लू से पोंछ दी और गहरी सांस लिए चुप चाप खड़ी रही, फिर घुस्से में "क्या चाहिए??? क्यों बुला रही थी???"। मा के घुस्से के वजह से नमिता कुछ बोली नहीं, बस चल दी वहा से "कुछ नहीं, रहने दो!"
आशा ने भले ही छुपा ली थी, लेकिन नमिता भी खेली खिलाई खिलाड़ी थी, आखिर जो अपनी भाई से ही रस लीला माना चुकी थी, उस के लिए वीर्य का छींटा का पहचानना कौन से बरी बात थी! मुस्कुराते हुए वोह लहराती, बलखाती अपनी कमरे कि और जाने लगी।
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