RE: kamukta Kaamdev ki Leela
राहुल अपने क्लास में कुछ खास ध्यान नहीं दे पा रहा था। पिछले कुछ दिनों से उसने काफी संभोग कर लिया था, और वोह भी अपने ही परिवारवालों के साथ। यह दास्तां नमिता दीदी से शुरू हुई और सीधा अपने दादी यशोधा देवी तक रुक गई और ना जाने कौन कौन उसके प्रेम चंगुल में आने वाले थे। लेकिन सुबह सब के बर्ताव लेके वोह काफी परेशान होने लगा, आखिर कोई उससे बात क्यों नहीं कर रहे ह थे और क्या पक रहा था सब के मन में? इस उत्सुकता लिए, राहुल ने पूरी कोशिश की लेक्चर में ध्यान देने की। वोह गहरी सोच में मगन था के उसके हाथो पर एक कोमल सा हाथ थम जाती है।
नज़रे उपर की तो एक लड़की बड़ी प्यार से मुस्कुरा रही थी। यह थी मीनल, राहुल की गर्लफ्रेंड। लेकिन अब तक इनके बीच इजहार और थोड़ी तकरार के आगे कुछ हो ना सका, भले ही १ साल से एक साथ थे दोनों। "क्या हुआ राहुल??" वैसे दोस्तों! मीनल के बारे में आप सब को थोड़ा बता देता हूं! बेहद हसीन और चंचल आंखे वाली, किसी अपसरा से कम नहीं थी। सुर्ख होंठ और बलखाती लंबे बाल, सलवार कमीज़ में लिपटी हल्की सी भरी हुई जिस्म, जिसे अभी तक राहुल ने भोगा नहीं था।
मीनल की प्यारी सुरीली आवाज़ का दीवाना तो राहुल पहले से ही था "कुछ नहीं मीनल! कुछ खास नहीं!" अब वोह कहता भी क्या कहता के, उसने वोह सारे हदे पार कर दी थी जो परिवार के सीमा उलंगन में आते थे। अपने दो बहने और दादी को तो भोग भी दिया था, लेकिन अब तक मीनल को अपने प्यार के लीला में ना ला सका। इस सोच से ही राहुल को हसी आने लगी, और उसे देख मीनल मन ही मन में सोचने लगी "तुम कुछ तो छुपा रहे हो मुझसे राहुल! खैर क्लास के बाद ख़बर लूंगी! जब तुम्हारे यह होंठ मुझसे सील जाएंगे!" कामुक अंदाज में सोचकर मीनल खुद शर्मा गई और राहुल का हाथ थामे सामने बोर्ड पे देखने लगी।
दो प्रेमी साथ साथ बैठे लेक्चर पे ध्यान देने लगे। एक तीन तीन संभोग के अनुभव लिए, तो दूसरी केवल संभोग के सपने मन में सजाए हुई थी। सच कहते है के अगर मन को भांपा या पड़ा जा सकता था, तो दुनिया में तूफान ही तूफान उठ आते!
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दूसरे और वहा घर पे, आशा बेहद शर्मिंदगी के साथ अब चुप चाप हॉल में बैठी हुई थी, के अचानक उसकी कंधो पर कुछ तगड़े हाथ आ रुके। घबराकर वोह पीछे मुड़ी तो आंखे चौड़ी हो गई अपने ससुर रामधीर को देखकर। सुबह की घटना से अभी भी क्रोधित और मायूस आशा, कुछ कह नहीं पाई, बस नज़रे चुराए वापस मूड गई। लेकिन जिस शेर के दांतो खून लग गया हो, वोह भला कैसे चुप रहे! "बहू! तुमसे बात करनी थी? ज़रा कमरे में अजाओ!" कहके रामधीर अपने कमरे की और जाने लगा। कमरे की चौखट पर पहुंचकर फिर एक बार पीछे मुड़कर कह परे "यह मेरा हुकुम है!"।
धीमे गति में आशा उठ गई और चुपके से ससुरजी की कमरे कि और जानें लगी। वहा पहुंचकर जो उसने देखी, वोह बाय करना आसान नहीं होगा शायद। उसकी पैरो तले जमीन खिसक गई जब उसने अपने ही सास को एक कीमती सारी और गहने डाले पाई, और इतना ही नहीं, हाथ में एक पूजा की थैली थी। होंठो में भरपूर मुस्कान लिए वोह साजधज के खड़ी रही "आओ बहू! आज का दिन खास है!" एक चंचल मुस्कुराहट के साथ यशोधा आगे आईं और अचानक से आरती उतारने लगी।
आशा को कुछ समझ में नहीं आ रही थी, एक तो सुबह में वोह शर्मनाक घरी और उपर से अभी उसकी सास की अजीब सी हरकतें। यशोधा प्यार से आशा की जब्रे को ऊपर की और उसकी गाल को चूम ली "आज तेरी नई जीवन शुरू होने जा रही है बहू!" इतना कहना था कि उन्होंने एक पैकेट लिए आशा के हाथ में थमा दी "इससे रात को पहनना! एक शुभ रसम माननी है!" अपनी सास की नटखट हरकते देखकर आशा की दिमाग में कहीं सवाल खड़े होने लगे! कहीं सोच घूमने लगी। कुछ भी समझ नहीं आ रही थी उसे!
"माजी यह आप! क्या....."। "चुप हो जाओ बहू! कुछ कहने की ज़रूरत नहीं तुम्हे! देखो इसे ज़रूर पहनना तुम! इस बुढ़िया को निराश मत करो!" नाटकीय उदासी लिए यशोधा बोल परी और वहा बाजू में बिस्तर पर बैठा रामधीर अपने अखबार पड़ते हुए मुस्कुरा उठा। ना जाने उसकी सास ससुर की क्या मनसूबे थे। पैकेट हाथ में लिए जब कमरे में से निकली, तो सीधे अपने कमरे की और चली गई और पैकेट से जब एक लाल रंग की बनारसी सारी निकली तो उसकी आंखे फटी के फटी रह गई। "हाय राम यह क्या??? माजी ने यह क्या दे दी मुझे???? हाए मा!" एक विचलित, परेशान और उत्सुक मन लिए वोह सारी की और देखने लगी।
मज़े की बात यह थी के पकेट में कुछ सामान और थे। पहले, तो कुछ चूड़ियां और नथ! और एक छोटी सी चिरकुट! आशा कांपती हुई हाथ से चिरकुट को खोलकर जैसे ही लिखित शब्दो को पड़ने लगी, तो अपने आप ही उसकी धड़कन तेज़ होके रावलपिंडी भांति धड़कने लगी। लिखित शब्द कुछ इस तरह थे :
"आज तुम मेरी हो जाओगे बहू! अगर इस बूढ़े ससुर का साथ मंज़ूर है! तो इसी सारी में रात को मेरे पास अजाओं!"
हाथ से चिरकुट तो नीचे गिर ही गया, ऊपर से धड़कन भी तेज़ हो गई, मानो कभी भी सीने से नीचे गिर के हाथ पर थम जाए। तेज़ धड़कन लिए वोह बेसब्र रात का इंतज़ार करने लगी, लेकिन उस के लिए काफी वक्त था, क्या धीरज। रखना इतना आसान होगा? क्या थी यशोधा और रामधीर के मन में? ना चाहते हुए भी पूरी उत्साह में उसकी हाथ अपनी जी स्तन सहलाने लगी ब्लाउस के ऊपर से ही। नहीं! इस वासना को काबू करना ही पड़ेगा! आखिर घर की बड़ी बहू जो है!
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