kamukta Kaamdev ki Leela
10-05-2020, 01:31 PM,
#71
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
राहुल के हाथ अब रेवती की सर को जकड़ लिया और उसके चेहरे को आगे आने का बरवा देने लगा। लिंग के आकार को निहारते हुए रेवती अब अपनी नाक को आगे करने लगी और अपने भइया का मर्दाना सुगंध लेने लगी। अपनी बहन कि प्रक्रिया देखकर, राहुल उसके बालो को सहलाते हुए बोला "क्यों! अच्छी लगी कि नहीं?" जवाब में वोह केवल उपर देखकर एक बिल्ली समान मुंह बनाने लगी और ना जाने क्यों उसके मुंह से एक नटखट अंदाज़ में मीऊ निकल गई। ऐसी हरकत से राहुल अपने लिंग में और उठाव महसूस किया।

बाहर, की होल से रिमी यह सारा का सारा कायकरम देखी जा रही थी, और नमिता को आंखो देखी हाल कमेंट्री के अंदाज में बता रही थी। नमिता बिचारी और क्या करती, बस कान और स्कर्ट के ज़िप, दोनों के दोनों खुली रखी थी और बस आंखे मूंदे!

रिमी : बड़ी कामिनी निकली रेवती दी!

नमिता : (दो दो उंगलियां स्कर्ट के अन्दर) क्या कर रही है वोह???

रिमी : बिल्ली की तरह मियो मिओ कर रही है! और उफ़! भइया के लिंग की तरफ मुंह भी कर ली!! (रहा नहीं गई, बस खुद भी अपनी मुनिया स्कर्ट पे से दबा देती है)

दोनों का हालत यह थीं, के वहीं दरवाज़े पे झांके, झांके नंगी भी पूरी हो जा ती! लेकिन थोड़ी काबू करनी अभी भी जरूरी थी। खैर, दोनों के दोनों अब आगे आगे देखते गए।

अंदर, रेवती गौर से राहुल के लिंग की और खौफ और उत्तेजित नज़रों से देखने लगी थी, के तभी सुपाड़े से एक हल्की बूंद टपक परी नीचे की और। पता नहीं क्यों, लेकिन इस दृश्य को देखकर रेवती की होंठ में भी और लालिमा अाई, जिसे वोह लगातार अपनी जीभ से फिरा रही थी। लिंग का गंध और मौजूदगी, दोनों उसे पागल बना रही थी। कुछ करना ज़रूरी थी, वरना कहीं सांप ने खुद से ही दस लिया, तो कहीं वोह घायल ना हो जाए! कुछ ऐसी विचार थी रेवती की मन में।

अब राहुल का हाथ उसके सर को आगे आगे करता गया "कुछ कर रेव! और रहा नहीं जाता मुझसे और तू भी तो चाहती है, है ना??" यह राहुल की नहीं, एक बेचैन मर्द का हुंकार था! और रेवती की अंदर की नारी को यह समझ में आ चुकी थी, अब पूरी हिम्मत जुटा कर, वोह अपनी हाथो से उस मस्त फूले हुए लिंग को जकड़ लेती है और प्यार से गोटियों के करीब, नीचे से लेकर उपर तक एक लम्बी ज़ुबान फिराने लगी, खुले रसीले होंठ और ज़ुबान से सने लिंग की चमरी देखकर, राहुल और उत्तेजित हो गया। अब यह उपर से नीचे, और नीचे से उपर ज़ुबान का कारवां चलाती गई रेवती।

राहुल अपने आंखे को बन्द किए हुए ही खड़ा था, के तभी लिंग की चारो और एक गरमाहट सा महसूस हुआ। आंखे खोलते ही, उसने एक मधुर दृश्य का सामना किया! रेवती अब सुपाड़े को अपनी अपनी मूह में ले चुकी थी और हल्के हल्के चूसने लगी।

राहुल ने फिर से मज़े से आंखे मूंद लिया मज़े से, और बाहर रिमी पूरी के पूरी हाल सुनाने लगी अपने दीदी को जो पहले से ही हस्तमैथुन में व्यस्त थी।

रिमी : ओह वाउ! दी ने तो बजी मारदी!

नमिता : (एक और उंगली तैयार करती हुई) किस बात पे?

रिमी : (नटखट अंदाज़ में) मुंह में ले ही ली!

इस बात पे उत्तेजित होके नमिता एक और उंगली घुसा देती है स्कर्ट के अंदर! रेवती की इस तरक्की पे वोह बहुत खुश थी, और अब वोह दिन भी दूर नहीं, जब तीनों के तीनों बहने एक ही सीरत के होंगे और कामुकता के मिसाल बनके उठेंगे घर पे! इसी सोच के साथ नमिता और र ज़्यादा उंगली चलाने लगी, तो उसपे रिमी धीमे से वाली "अरे दीदी! आराम से, अभी तो बहुत कुछ देखनी बाकी हैं!"। नमिता भी भीगी बिल्ली बनी, उंगली को नियंत्रण में रखने की कोशिश की, मन ही मन रिमी को कोसने लगी "बीच!"

खैर, वहा दूसरे और रेवती प्यार से लिंग को चूसे जा रही थी, एक अशलील सी आवाज़ पूरी कमरे में छा गई, चुसाई के कारण और यह काम रेवती बड़ी मज़े उठकर कर रही थी। राहुल के किया स्वर्ग का रास्ता धीरे धीरे खुलने लागा, और इतना ही नहीं, मन ही मन अब वोह रेवती की निपुर्णता को अपने बाकी दो बहनों से करने लगा, खुशी उसे इस बात का था के तीनों के तीनों पास हो चुके थे! उससे रहा नहीं गया, और प्यार से रेवती की बलो को सहलाते हुए बोल परा "ओह!!!!! तू तो अपने बहनों से भी अच्छा चूसती है! ओह!!!"। इस वाक्य से रेवती की आंखे चौड़ी हो गई और चुसाई बन्द करके उपर राहुल की और देखने कहीं, हाला की लिंग अभी भी मुंह में ही थी।

अपनी बहन के आंखो में सवाल और उत्तेजना, बहुत कुछ देखा राहुल ने, क्या यह बुरा मान गई इस बात से? क्या वोह मुझसे अब सवाल करेगी? यह सब खयाल राहुल के मन में सामने लगा। नॉरमल परिस्थितियों में घबराकर लिंग थोड़ा सिकुड़ जाता, लेकिन रेवती अभी भी जिस अंदाज़ में लिंग को मुंह में समय हुए थी, राहुल का नरम होना मुश्किल था।

लेकिन रेवती के मन की बात तो हमने जाना ही नहीं! मन ही मन, वोह सोचने लगी के "यह दोनों तो चुडैल निकली!! खैर, में भी दिखा दूंगी के किसी हिस्से में, में इनसे कम नहीं हू!" फिर कछ पल के बाद वोह वापस चूसना चालू कर दिया, जिससे अब राहुल को भी राहत मिला। बाहर रिमी की हालत भी बुरी होने लगी, खुद को उंगली करती गई और नमिता से (बरी मुश्किल से) बाते करती गई।

रिमी : यह तो काफी चूस रही है दीदी! बरी खिलाड़ी निकली रेवती दी!

नमिता : आखिर क्यों नहीं चुसेगी! (तीन तीन उंगलियां करकरार) हमारी ही बहना है!

रिमी : (नीचे की और देखकर) आराम से दीदी! कहीं मुट्ठी ही ना घुस जाए अंदर!

नमिता : शट अप! आगे आगे देखकर बता!

रिमी आगे का हाल देखने लगी, और हर लम्हे में उसकी आंखे और चौड़ी होती गई।

अब पासा पलट चुका था, और इस बार रेवती बिस्तर पर लेट चुकी थी, और उसकी पैंट नीचे तक खींची गई थी, जिससे उसका नग्न योनि पूरी तरह दिखाई दी गई। राहुल से और रहा नहीं गया, औ वोह अपने ज़बान को होंठो की चारो और फिराने लगा, जिससे रेवती कांप उठी, बेचारे टेडी और तकिया, दो दो तरफ उसके हाथो के जकड़ में थी, जिनका बुरी हालत हो चुकी थी। राहुल अपने ज़ुबान को जांघो से लेकर योनि के इर्द गिर्द चूमता गया और रेवती बचारी सिसकियों पे सिसकियां देती गई।
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10-05-2020, 01:31 PM,
#72
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
अब रेवती और कस के राहुल का सर को जकड़ लेती है, और फिर प्यार से सहलाने लगी। दूसरे तरफ नीचे राहुल अपने शुभ काम में मगन था, योनि के इर्द गिर्द और क्लिट को चूमता गया पागलों की तरह, वहा उपर अब रेवती से रहा नहीं जा रही थी! उसने खुद ही राहुल को उपर के तरफ खींच ली और फिर एक बार होंठ से होंठ जोड़ दी। राहुल उसका इशारा समझ चुका था।

बिना किसी विलंब के वोह अपने सुपाड़े को योनि के होंठो तक ले आया और रगड़ने लगा ऐसी अंदाज़ में के रेवती की नस नस फूल उठी, लेकिन क्योंकि यह पहली बार होने चली थी उसके साथ, एक घबराहट लाजमी थी! "भइया आराम से करना! प्लीज" उसकी बेचैनी बड़ गई और उसने तुरन्त ही अपनी पैरो को अपने भाई के कमर पर पसर ली। हिम्मत की दाद देते हुए राहुल फिर एक बार उसे चूम लेता है और अब बिना किसी झिझक के अपने लिंग को रास्ता दिखाने लगा योनि के अंदर। जैसी जैसे वोह डंडा हंडी में घुसता गया, वैसे वैसे रेवती की आंखे मूंद गई।

बाहर रिमी सारे के सारे आंखो देखी मुश्किल से नमिता को बोल पा रही थी, बेचारी बोलती भी कैसे, आखिर उसकी भी हालत ऐसी चुकी थी के अब हाथ पैंट के अंदर से बाहर निकल ही नहीं पा रही थी और वहीं हाल नमिता की भी थी, जिसके हाथ मानो चिपक चुके थे स्कर्ट के अंदर। दोनों बहने पसीने से लथपथ और फिर भी रिमी आगे आगे देखती गई, भला ऐसी लाइव कयकरम कौन मिस करना चाहेगा!

अब चोदने का गति बढ़ाने लगा राहुल, दोनों हाथो से रेवती को बाहों में समाए और आंखो से आंखे मिलाए। दोनों के दोनों अब पसीने से नहाने चले थे तकरीबन, और बिस्तर की स्प्रिंग के हिलने के साथ साथ अब रेवती की मुंह से सिसकारियां भी जुगल बंदी करने लगी "ओह भइया!!! यह कैसी एहसास है! आप मार ही डालोगे क्या?? ओह!"। उसके सिसकियां से लुफ्त उठाता गया राहुल और आगे आगे खुद को धकेलता गया।

फिर, कुछ ही पल के बाद रेवती अपने आप को रोक नहीं पाई झरने से, और राहुल भी अब नज़दीक आने लगा अपने बरसात पे। यह बेड का हिलना और सिसकियां का सिलसिला चलता रहा कुछ देर और, फिर राहुल अपने चरम सीमा पर आखिर पहुंच ही जाता है। एक लम्बी हुंकार के साथ ओह अब लिंग को आगे आगे उसके अंदर धकेलने लगा और "ओह रेव!!!!! तैयार हो जा!! ओह!!!" इतना कहके अपना लावा घूंट घूंट के भरने लगा रेवती की बच्चेदानी में। पहली बरसात को अपने खेत में पाकर रेवती खुशी से गदगद हो उठी! एक तिनका आंसू खुशी के छलक परी उसकी आंख से और राहुल ने वोह भीगे हुए गाल चूम लिया।

दोनों के दोनों, नए नए प्रेमी एक दूसरे के बाहों में गिरफ्त होके, वहीं के वहीं लेटे रहे और बाहर रिमी और नमिता ने अपने अपने हिस्से के टाइल्स भी भीगो दी! जहां बदन पसीने से चकनाचूर! वहा नीचे दो दो पैंटी भी पूरी के पूरी भीगी योन रस से। रिमी की मुंह से पूरी के पूरी सेशन को एक कामुक कहानी की तरह सुनके नमिता को भी अलग ही आराम मिली। कुछ पल वहीं ठहरे, दोनों के दोनों एक अलग कमरे की और जाने लगी, आखिर थकावट के कारण दोनों बहनों को भी कस के नींद आ चुकी थी।

......

वहा दूसरे और, आशा नहाने का आज एक अलग ही मज़ा ले रही थी। अपनी सुडौल सा जिस्म के इर्द गिर्द साबुन को मलते मलते बार बार अपनी बेटे के हरकते याद कर रही थी। मोटे मोटे स्तन पर साबुन की झाग से जैसी रंगोली बना रही थी और खास करके निप्पलों को प्यार से सहला रही थी। आज सच में नहाने में वोह बरी मस्त महसूस कर रही थी! या तो पानी कुछ नशीली सी थी, या तो फिर पूरी जिस्म में एक खुमारी सा छाने लगी थी। साबुन को जिस्म के हर गड्राये अंगो में मलते मलते वोह अपने आप ही बर्बिरा रही थी "राहुल! राहुल, ऐसा नहीं करते मा के साथ! राहुल छोर से दे मझे!", अनजाने में ही कुछ ऐसी कलपना करने लगी के मानो शॉवर का बौछार नहीं, बल्कि उसका खुद का बेटा उसे बाहों में लिए, उसे सता रहा था।

नहाने के बाद, वोह अपनी सुडौल सी जिस्म में अपनी टॉवेल लपेट लेती है और सीधे जाकर आइने के सामने खड़ी हो जाती है। आज आशा की मन नॉरमल स्तिथि में नहीं थी। बस टॉवेल लपटे, वोह एक बेजान गुड़िया की तरह खड़ी रही, और बार बार पानी के बूंद से छलके अपने जिस्म को निहारने लग गाई। "क्या सचमुच राहुल मेरी और आकर्षित हो रहा है? क्या हमारे टकराना सिर्फ एक इत्तेफाक है या कुछ भाग्य का लेखन?, क्या में खुद अपने बेटे की और...." एक तेज़ लहर गुजर गई उसकी जिस्म में से, जैसे ही राहुल का खयाल उसकी मन में आती गई। ना चाहते हुए भी, वोह अपनी एक मोटी स्तन को मसल देती है टॉवेल के उपर से ही। उत्तेजित तो वोह हो ही उठी, लेकिन जैसे ही मन से एक आवाज़ बाहर अाई के काश वोह हाथ राहुल का होता, तो एक तेज़ लहर गुज़र गई उसके अंदर से।

अपनी सोच को कोसती हुई, वोह अपनी सारी ब्लाउस पहनने में व्यस्त हो गई। बाहर दरवाजे के कोने से अपने बहू को बड़ी गौर से देख रही थी यशोधा देवी। "बहू तेरी मन में क्या है, मुझे पता है!" एक कातिल मुस्कुराहट के साथ वोह वहीं दरवाज़े पर दस्तक देने लगी, जिससे आशा , जो अभी अभी बस ब्लाउस और पेटिकोट ही पहनी थी, एकदम से घबरा जाती है। झट से जैसे तैसे सारी को लपेटे, वोह दरवाजा खोल देती है और अपनी सास को देखकर हैरान रह गई "माजी आप इस समय?"

आशा हैरान थीं, और यशोधा खुशी खुशी अंदर प्रवेश की "हा! बस सोचा तुझसे कुछ बात किया जाए!"। यशोधा फौरन बिस्तर पर बैठ जाती है, और एक नजर आशा को उपर से नीचे तक देखने लगी, सचमुच ब बरी मस्त लग रही थी वोह, मदमस्त जिस्म पे अभी भी पानी की बूंद छलक रहे थे। आशा खड़ी के खड़ी रह गई, और टॉवेल से अपनी बलो को पोछने लगी "कहिए माजी! कैसे आना हुआ?"। एक नज़र उसने भी अपने सास की और देने लगी, और गौर किया के काफी निखरी निखरी लग रही थी इस उम्र में भी। शायद कोई फेसियल क्रीम का असर हो? क्या पता थी आशा को!

यशोधा : बहू, तेरा रूखापन नहीं देखी जाती मुझसे!

आशा : मतलब?

यशोधा : बात तो बिल्कुल साफ है, तू खुश बिल्कुल नहीं है!

आशा : माजी, साफ साफ कहिए!

यशोधा : आ बैठ पहले! आजा (आशा अपने सास के बाजू बैठ जाती है, सच पूछिए तो उसकी बदन से भीनी भीनी खुशबू यशोधा को मोहित कर रही थी उसके तरफ)

यशोधा : मै जानती हूं बहू! मेरी पति के स्पर्श को तुझे आज भी ख़यालो में सताती होगी! है ना? (बहू के भीगे गेसुओं में हाथ फिराने लगी)

आशा : माजी! आज इतने दिनों के बाद इस विषय को क्यों ला रहे है आप??

यशोधा : (बूंदों से घेरे बाजुओं को मसलने लगी) ज़रूरी है बहू! तेरी यह तन्हाई, मुझसे देखी नहीं जा रही है! मुझे मालूम है के महेश भी अपने व्यापार में व्यस्त है! वोह क्या तुझे खुश रखेगा! ****** कहीं का!

आशा : (हैरानी से) हाय माजी! आप अपने बेटे के बारे में ऐसी बात कर रही हो! (ना जाने क्यों शर्म महसूस हुई उसे)

यशोधा : जो बोली हूं, सही बोली हूं! लेकिन मेरी पति की कमी अगर कोई पूरा कर सकता है, तो वोह बस मेरा नवासा!

सास की मुंह से यह सब सीधे सीधे शब्दों को सुनके आशा हैरान रह गई, एक कम्पन सी गुज़र गई उसकी जिस्म से, जैसे ही उसे एहसास हुई के बात राहुल की हो रही थी। "माजी आप! क्या बेहूदा बाते कर रही है आप???" अब उसकी बेचैनी बहुत ज़्यादा बढ़ने लगी। यशोधा उसे संभालती हुई बोली "देख, यह बुढ़िया बड़ा चरा के कभी कुछ नहीं बोलती है! में (बहुत शेमकर) अपने अनुभव से बोल रही हूं!"। आशा की आंखे चौड़ी हो गई, और गौर से अपनी सास की और देखने लगी, जो उंगली तले होंठ दबाए, नीचे देख रही थी। हरकते एकदम चाड़ती जवानी समान, भाई यह तो होना ही था! राहुल के तेले भोगे जाने से, उनकी जवानी जो लौट आई थी।

यशोधा अपने बहू के हाथो को अपनी हाथो में थाम लेती है "बहू! तुझसे झूठ नहीं बोलूंगी, लेकिन सच कहूं तो is उम्र में भी कामवासना उत्पन्न हो ही जाती है!" एक नज़र आशा की हैरान अवस्था की और देखकर, वोह फिर बोल परी "जो बात तेरे ससुर में है! ना जाने क्यों उतना ही उत्साह और जोश मैंने राहुल में भी देखी है बहू!"। आशा जीते जागते कोई सपना देख रही थी मानो, ना जाने उसके कान बज रहे थे या सचमुच कुछ अजीब सा सच का सामना वोह असल में कर रही थी, वोह उठ जाती है और सीधे अंदाज़ में पूछ ली "माजी!! क्या आप यह कहना चाहती के......."। "हा बहू! राहुल मेरे साथ भी!" बेशरम बुढ़िया बोल ही दिया अपनी दास्तां! शब्दो को ख़तम करते ही, फिर बेश्नमो की तरह अपनी उंगली दबा दी।

"माजी!!!!!!!!!" घुस्से में आशा आग बबूला हो उठी "कमीनों चुडैल कहीं की!!!" अपने अंदर की आग को वोह रोक नहीं पाई!

यशोधा भी शर्म से गदगद हो उठी, लेकिन किसी भीगी बिल्ली की तरह बरताव करने लगी। आशा घुस्से से अपने सास की और देखे जा रही थीं, अब उनके निखरता की राज उसके आंखो के सामने फाश हो चुकी थीं। मन ही मन राहुल और अपनी सास की एक कामुक छवि बनाने लगी, और आशा की तापमान बहुत बड़ जाती है। यशोधा आगे आगे देखना चाहती थी के उसकी बहू के ईश विषय में क्या प्रक्रिया होती है। मन ही मन वोह मुस्कुरा उठी "फिकर मत कर! तुझमें में भी खुजली पैदा कर के ही रहूंगी!"।

आशा हैरान परेशान, बैठ जाती है वापस, के तभी कमरे में प्रवेश करती है रमोला! जिसे देख आशा सोच में पर गई, और कुछ बोलने ही वाली थी के तभी "दीदी! माजी तो सच ही कह रही है!" यह शब्द रमोला के मुंह से उसकी कान तक आ पहुंची, तो आशा की मुंह खुला का खुला रह जाती है, उसे रमोला और राहुल के बारे में तो पता थी, लेकिन अपनी सास के बारे में यह जानकर बहुत दुखी हुई, और हैरान तो इससे भी ज़्यादा!

रमोला : (आशा के दूसरे बाजू बैठ जाती है) दीदी, यह सच है! माजी भी अपनी बिस्तर गरम कर चुकी है राहुल के साथ! (जांघ को सहलाती हुई)

यशोधा : (दूसरे जांघ को सहलाते हुए) बहू! अब ना जाने क्यों, ऐसा लग रहा हूं, के पूरी घर में अब तू ही तृप्त नहीं हो पा रही हो! अपने जज्बात पे काबू और मत करो! उसे बहने दो! छोर दो!

आशा इन दो औरतों के बातों से पागल हो जा रही थी। फिर, खुद की आग पे काबू करती हुई, वोह मन ही मन बोल परी खुद से "इन बेशरम औरतों से मै क्या कहूं! अब यह मुझे भी उकसा रहे है!!! नहीं नहीं, खुद के ही बेटे के साथ! नहीं, यह मुझसे नहीं होगा!" यशोधा उसकी बलो को मानो सुलझा रही थी "बहू, तू कुछ कहती क्यों नहीं??"।

रमोला : यह क्या कहेगी माजी!

यशोधा : ऐसा क्या हुआ?

रमोला : (नखरे दिखाती) क्या होगा? अरे जब से इसने मुझे राहुल के साथ खेलते हुए देख लिया बिस्तर पर, तब से बिचारी!!"

आशा रमोला के बाते सुनके, बहुत क्रोधित हो उठी। लेकिन इस बात को यशोधा हंसी में उदा दी "अरे आशा, यह तो होना ही था! सांड को तो हर घरी गाय की जरूरत होती है! लेकिन हा! तू अपने यौवन में भी वापस जा सकती है! देख मुझे देख! उफ़! कितनी खिली खिली हो गई हूं में! मुझे तो ६० के उपर जाना ही नहीं है! बल्कि मुझे तो अपनी उम्र कम करवानी है!" एक सास में यशोधा बोल परी, जिससे आशा हैरानी से उनकी और देखने लगी "माजी!! बस कीजिए! शर्म आनी चाहिए आपको!"

रमोला भी मैदान में अहायी "इसमें शर्म कैसा! आगर माजी अभी भी खेल सकती है, तो क्यों नहीं!"। दोनों औरतें आशा को ऐसी डोमिनेट करने लगी, के आशा बिल्कुल घबरा जाती है और जिस्म पर पानी के बूंद कम और पसीने के बूंद ज़्यादा आ जाती है।
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10-05-2020, 01:32 PM,
#73
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
आशा : आप सब जाओ यहां से! मुझे अकेली रहने दो!

यशोधा : अरे पगली! अब खुद को क्यों रोक्के रखी है! अभी भी समय है, एक बार सोच ले इस बात पर! मेरे दो दो बेटे, एकदम अलसी और निकम्मे निकले! (इस बात पे रमोला भी मुंह फेर लेती है) अगर सच में मेरे पतिदेव का आशीर्वाद किसी में है, तो वोह है मेरा नवासा राहुल! बस!

आज एक सास और उनके दो बहुएं नहीं बैठी थी, बल्कि तीन औरते बैठी थी, एक विषय साथ में लिए! अब जो आग बरसाना दोनों ने शुरू की, इससे आशा अब खुद से काबू खोने की अवस्था में आने लगी धीरे धीरे।

रमोला : (कामुक सवर में) माजी! आपको राहुल ने कैसे और....

यशोधा : (शर्माकर लाल लाल होके) हाय!!! मत याद दिला मुझे! उफ़!

रमोला : (अब हाथ को आगे बढ़ाकर उनकी जांघ को दबाती हुई) माजी!!! बताइए ना!

यशोधा : देख!!!! मुझे शर्म आ रही है!

रमोला : तो में ही शुरू कर देती हूं! दीदी! (आशा की और देखकर) सच कहूं तो आपका बेटा एकदम हीरा है! मसल मसल के मेरी हालत ही खराब कर दी!

यशोधा : इतनी भाव मत खा बहू! वोह मुझे भी कहां बक्ष दी है! अरे मुझ जैसी बुढ़िया को भी नहीं छोरा उसने!

रमोला : देख रही है में! कटनी निखर गई है आप! और तो और यह बदन आपका (उपर से नीचे देखकर) उफ़! आपकी त्वचा भी मानो चमक रही हो!

यशोधा : (शर्माकर, अपनी चेहरा छुपाती हुई) उफ़! तू क्या मुझे मार ही डालेगी क्या!

रमोला : और सबसे बड़ी बात! माजी! वोह प्यारी सी हंडी मलाई से भरी! (होंठ गीली करती हुई)

यशोधा : (दिल की धड़कन तेज़ महसूस करती हुई) देख! मेरी मु मत खुलवा!! बहुत मारूंगी तुझे में! कलमुही कहीं की!! (झूठी घुस्से में)

रमोला : अब आप जो भी बोले माजी! लेकिन सच तो यह है के उस मलाई को मै भी चक चुकी हूं! और (आंख मारती हुई) आपने भी तो की!

आखरी के कुछ शब्द सुनके आशा की नस नस आग से उगल उठी! यह सब क्या सुन रही थी वोह। उसे खुद यकीन नहीं हो रही थीं। "मलाई??? क्या बोल रहे हो आप लोग??" उससे रहा नहीं गई, मन उसकी बेचैन और विचलित हो रही थी। रमोला और यशोधा अब अपने हो अंदाज़ में मुस्कुरा रहे थे और यशोधा आशा की पीठ सहलाती हुई बोली "अरे पगली! अब तुझे क्या खुल के बतानी पड़ेगी मुझे!" रमोला भी हंस देती है "वैसे दीदी, काफी अच्छी एक्टिंग कर लेती हो!"।

यशोधा अपनी होंठो को अब आशा की कान तक लेके अती है "बहू! एक बार वोह मलाई लेके देख! तू पूरी के पूरी निखर जाएगी! बात मान मेरी!"। इतना कहना था के रमोला और वोह उठ जाती है, और अपने अपने दिशा की और जाने लगे, कमरे से बाहर निकलते ही।

बेचारी आशा वहीं के वही स्तब्ध बैठी रही! आंखो में क्रोध थे लेकिन दोनों के दोनों जांघ योन रस से गीले थे। अब तो अपने आदर्शों पर भी यकीन नहीं रही आशा को।

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10-05-2020, 01:32 PM,
#74
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
शाम को आशा बेसब्री से बरामदे में ही यहां से वहा और वहा से यहां घूमने लगी। कुछ तो शायद कमी मेहसूस हो रही थी उसे। ना जाने क्यों ऐसा लग रहा था के महेश के होते हुए भी आज वोह सम्पूर्ण औरत होने का एहसास नहीं कर रही थी। रेलिंग को कस के जकड़ती हुई वोह उपर आसमां की और गौर से देखने लगी। वोह खो ही चुकी थी के अचानक, एक हाथ उसके हाथ पर थम जाता है। एक घबराहट की सिसकी देती हूं, जब आशा पीछे मुड़ी, तो एक मुस्कुराहट लिए राहुल खड़ा हुए था वहा। मा बेटे के नज़रे मिल गई और आशा बेचैन होके, बस उसे ही देखती गई "क्या चाहिए बेटा?" बड़ी मुश्किल से अब वोह राहुल से नज़रे मिला पा रही थी।

राहुल ने अपने हाथ को और जमा दी मा के हाथ पर "यहां अकेली क्या कर रही हो मा?" एक तेज़ लहर उमंग की गुज़र गई आशा की बदन पे, जब राहुल ने वहीं के वही खड़े, अपने मा का हाथ थाम लिया। बेचारी आशा नज़रे मिलाए तो भी कैसे मिलाए! अपने सास और रमोला की मुंह से जो जो बाते वोह सुन चुकी थी, उसे यह समझ नहीं आ रही थी के कैसे सामना करे अपने बेटे का। बार बार उसकी हाथ रेलिंग को जकड़ रही थीं, और साथ साथ राहुल के हाथ भी अपनी गिरफ्त बड़ा चुका था।

एक लहर खामोशी दौड़ गई इस लम्हे में और समय मानो बही के वहीं रुक गया। "मा! तुम क्या,.... क्या तुम सब जान चूक....."। "इस विषय मै कोई बाते नहीं होगी! चला जा यहां से" आशा के गले में क्रोध थी, लेकिन एक कम्पन भी साथ साथ समाई हुई थी, बेटे के मौजूदगी से उसे कुछ कुछ तो हो ही रही थीं। "में जाने के लिए नहीं आया हूं! मुझे जवाब चाहिए!" राहुल अटल था अपने इरादों में, और वहीं के वहीं जमा रहा। फिर आशा की मुंह से कुछ ऐसे शब्द निकल आए, जिसे सुनके राहुल भी हैरान रह गया।

एक बड़ी अजीब सी अदा के साथ, आशा मुंह को दूसरे दिशा पे फेरती हुई बोलीं "मुझे मालूम नहीं थी, के तुझे औरतों में ही इतनी खास दिलचस्पी है, वैसे भी तुझे कमी किस बात की? जो तू मेरे पास आया है!"। राहुल भी मन ही मन खुश हुआ के आखिर मा भी उसके पास आही रही थी, लेकिन साथ साथ उसे यह भी मालूम था के जल्दबाजी किसी भी काम में ठीक नहीं! अगर अपने मा को उसे अपने बाहों में समेट ना ही है, तो वोह उसकी रजामंदी लेके ही होगा। खैर, अब राहुल अपने होंठ को आशा के कान तक लाता है "तो मा! क्या तुम्हे इस बात से जलन होने लगी??" ना जाने क्यों, राहुल को यह मौका दिखा, एक हल्की सी चुम्मी उसकी कंधो को देने की, और तो और उसने दे भी दिया।

कंधे में बेटे के होंठ का स्पर्श से आशा सिहर गई और रेलिंग को इस बार और कस के जकड़ ली "मुझे क्यों जलन होने लगी भला?? तू जा यहां से! बहुत शैतान होगया है तू!" आशा की बुनियाद अब कमजोर हो रही थी, पैरो तले जमीन अब धीरे धीरे पिघलने लगीं। राहुल और पीछे पीछे सन गया अपने मा से, कुछ इस कदर के उसका सोया हुए लिंग अब उत्तेजित होकर सीधे सामने के सुडौल गांड़ पर दस्तक देने लगा था और आशा वोह मेहसूस भी करने लगी थी। राहुल के बदमाशी को अब वोह और बढ़ावा दे या फिर उसे कामुकता की चिन्न माने! यह उसे समझ में नहीं आ रही थी।

लेकिन राहुल ठहरा आशिक़ मिज़ाज! वोह क्यों रुकता भला, वोह अब धीरे धीरे मा के कंधो को बड़ी अदा के साथ चूमता गया और साथ साथ आशा भी सिसकियों पे सिसकियां देने लगी अब, लेकिन धीमे स्वर में। लेकिन, राहुल ने यह भांप लिया था। शाम का समय था और बरामदे में से आसमान नीले रेंग में खुद को समेट चुका था। आशा गौर से आसमां की और देखने लगी, और राहुल उसके कंधो को प्यार से यहां वहा चूमता गया। बड़ी अदा के साथ अब राहुल अपने हाथ उसकी सुडौल उभरे हुए पेट तक ले आया और प्यार से सहलाने लगा। नरम मास पे बेटे के हाथ लगते ही एक खुमारी सी छा गई आशा में।

पेट को सहलाते हुए, राहुल अपने होंठ को फिर एक बार आशा की कान तक लाता है "वैसे मा! तुम उन सब औरतों से एकदम मस्त दिखती हों!, सच में!" यह शब्द मीठे मीठे शहद की तरह उसकी कान में घुलने लगी और वैसे वैसे आशा सिसक उठी एकदम से। एक तेज़ लहर दौड़ रही थी उसकी जिस्म के अंदर ही अंदर, बार बार दिमाग कह रही थी के अब बेटे के हाथ को रोका जाए, लेकिन दिल के भीतर से वोह यह सब का आनंद ले रही थी। हैरांजनाक उसकी मन के भीतर से यही आवाज़ आ रही थी के "ओह! और दबा इस पेट को! ज़ाहिर करदे अपना प्यार मुजपे!"।

अपने विचारों से वोह खुद बहुत शरमा गई, और सोचने लगी के क्यों ना बस इस हल्के हलके मसाज का आनंद लिया जाए। राहुल भी अपने मा का रजामंदी समझ चुका था और पेट को सहलाना बरकरार रखा। इस दौरान आशा और उसके बीच कुछ वार्तलाब भी चालू हो गया, कुछ बाते भी साफ होती गई!

आशा : तू सच में कब इतना बड़ा हो गया, पता भी नहीं चली!

राहुल : (सहलाते हुए) तुम नहीं देख पाई मा! लेकिन दादी और चाची ने देख ली मा!

आशा (धर्कन तेज़ होती हुई) : तू बहुत शैतान हो गया है!

राहुल : इतना ही नहीं मा! बल्कि......

आशा : बल्कि क्या????

राहुल : (पूरी हिम्मत जुटा के) रिमी, रेवती और नमिता दीदी भी इस में शामिल है!

इतना सुनना था कि आशा की आंखे बड़ी हो गई और उसकी मोटी मोटी स्तन और गति से उपर नीचे होने लगी। हा यह सच थीं के उसने अपने बेटियों में कुछ ताज़गी और निखरता देखी थी, लेकिन अब इसमें भी राहुल को शामिल होते देख, वोह बहुत हैरान थी, पर गुस्से भी हैरानी की बात यह थी, के इन सब सोच से उसकी खुद की योनि में अब गीलापन छाने लगी।

राहुल ने यह सब बता के, अपना हाथ का जकड़ पेट पर थोड़ा ढीला कर लेता है, और धीमे सवर में "मा, कहीं तुम नाराज़ तो......"। लेकिन आशा खुद एक मदहोशी के आलम में गुम थी! बार बार सोचने लगी के "मै कौन हूं पाप या पूर्ण का विचार करने! में तो खुद तेरे दादाजी के साथ भोग कर चुकी हूं, एक रखेल की तरह! अब अगर तू ने यह सब कर ही लिया! तो कौन सी अघटन हो गई!" एक तेज़ सास लेती हुई, वोह मन ही मन बोल परी।

फिर कुछ पल के बाद, आशा पीछे मुड़ी अपनी बेटे की और, फिर एक मीठी सवर में बोल परी "सहलाते जा! अच्छा सहलाता है तू!" एक नटखट अंदाज़ थी चेहरे पर, जिसे देख राहुल भांप लेता है के अब पत्थर पिघलने की फिराक में थी। बड़े अदा के साथ वोह पेट को सहलाता गया और इस बार बिना झिझक के, अपने होंठ को आशा से मिला देता है। कहीं दूर एक तेज़ लहर सुनाई दी समुंदर मे, जैसे ही इन दोनों के होंठ मिले!

राहुल अपने मा के मीठे मीठे रस को चखता गया और जवाब में आशा भी बेटे का पूरा साथ दे रही थी। मा बेटा ऐसे मिले, जैसे बरसो से बिछरी हुई प्रेमी थे मानो। चूमने के साथ साथ अब राहुल का हाथ उसके पीठ पर चलता गया और एक हाथ अब पेट, तो दूसरा पीठ की और। लम्हा वहीं रुक गया और यह दोनों चूमते गए एक दूसरे को।

कुछ पल के बाद, लाली के चिपकने के साथ साथ जब होंठ अलग हुए, तो आशा और राहुल फिर एक बार आंख से आंख मिलाए और प्यार से एक दूसरे को देखने लगे। नज़रे चार हो ही चुके थे के अचानक आशा की फोन बज उठी और दोनों का तांद्र टूट सी जाति है।
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10-05-2020, 01:32 PM,
#75
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
आशा बरामदे के उस पार चली जाती है अपनी कॉल लिए हुए। फोन महेश का था, जो काफी खुश लग रहा था।

महेश : डार्लिग! आज में बहुत खुश हूं!

आशा : (बेटे से नज़रे फिराकर) जी, बताइए! ऐसी क्या बात हुई, के आप ने मुझे कॉल किए! (महेश बहुत कम चीज़े अपने पत्नी के साथ शेयर करता था)

महेश : अरे, तुम्हे नहीं बताऊंगा! तो फिर किसे! एक गोआ कि पार्टी है, जिसने मेरा प्रोजेक्ट अप्रूव किया है! और मज़े की बात यह है, के इस खुशी में गोआ हम घूम भी लेंगे! और कुछ काम बाम भी हो जाएगा!

महेश के मुंह से आज बहुत दिन बाद कुछ ताजी खुश खबरी मिली थी आशा को। अपने पति के लिए वोह काफी खुश होने लगी। बात गोआ की नहीं थी! लेकिन एक नए वातावरण का अनुभव करने के लिए आशा खुद बहुत उतावला थी। इससे पहले वोह कुछ बोल पति, महेश अपने धुन में लगा हुआ था! "ओके डार्लिग! रखता हूं! और हां! सामन वामान तैर कर लेना! और बच्चो को भी बता देना! बाई!"
फोन कट हो जाता है और आशा के चेहरे पर एक असीम मुस्कुराहट देखकर राहुल उसकी और आने लगा।

राहुल : क्या बात है मा? पापा थे क्या?

आशा : हा! तेरे पापा थे, (कुछ रुककर) एक खुश खबरी है! उनके प्रोजेक्ट के सिलसिले में, वोह गोआ जा रहे हैं! (राहुल मा को लेकर अकेला होने के लिए खुश हो ही रहा था के) लेकिन.... हम सब भी जा रहे है!

राहुल : (कुछ सोच के) ओह! ....... फिर भी काफी बड़िया न्यूज है मा! इस बहाने गोआ भी हम सब घूम आयेंगे!

आशा : हा! क्यों नहीं, वैसे नमिता तो जा नहीं पाएगी! उसकी एमबीबीएस का परीक्षा भी इसी महीने है! लेकिन हा! यह खबर रिमी और रेवती को ज़रूर दे देना!

राहुल : (नमिता के ना होने के दुख से ज़्यादा, रिमी और रेवती की बारे में सोचकर) बिल्कुल! मा, बिल्कुल!

..........

गोआ जाने की खबर सबसे पहले तीन बहनों को पता चलती है और एक नमिता को छोड़कर, सब खुश थे!

रिमी : वाओ!!!! कूल! बड़ा मज़ा आयेगा!

रेवती : (रिमी की खुशी से उछलने को करन, इसकी हिलती हुई आमो को देखकर) क्यों! नंगी घूमने का इरादा है क्या बीच पर??

रिमी : ओह फ*** ऑफ! कुछ भी मत बोल!! तू भी तो उछलने के लिए बेताब हो रही है!

राहुल : तुम दोनों बस भी करों! प्यार तो में तुम दोनों से बराबर करूंगा! फिक्र मत करो!

इतना कहना होता है के, दोनों रेवती और रिमी, एक एक बाजू में आजाते है और बारी बारी राहुल को चूमने लगते है। राहुल भी वही के वही दोनों के सुडौल गांड़ पर एक एक पंजा लगाए, उन्हें प्यार से चूमने लगे और दो दो जोड़े प्यासे होंठ पाकर तो राहुल जन्नत पहुंच गया मानो! प्यार से होंठ के लाली को चूसते चूसते, राहुल उन दोनों के गांड़ को सहलाता गया, के तभी नमिता उन तीनों को देखकर एक खांसी की नाटक करने लगी "अःह्हम! तुम तीनों को बहुत प्राइवेसी की जरूरत है, मेरे हिसाब से!"।

चूमने का सिलसिला तोड़ के, राहुल और वोह दोनों नमिता की और देखने लगे और एक साथ बोल परे "सोरी! नो वन कैन इट जस्ट वन!"

नमिता खुद भी बही के बही अपने भाई के आगोश में शामिल होना चाहती थी, लेकिन इस समय उसे अपने एग्जाम्स में भी ध्यान देनी थी। उसका उत्रा हुआ चेहरा देखकर, राहुल उसके पास जाने लगा और एक कस के झप्पी देने लगा, झप्पी से मुक्त होकर, एक हल्की सी चुम्बन अपने दीदी के होंठ पर बरसाकर, वोह उसकी आंखो में आंखे मिलने लगा "दीदी! तुम अगर आती, तो बहुत खुशी होती मुझे! आखिर वासना के पहले पहले कदम में तुमने मेरा साथ दी थी!"। नमिता अपने भाई के क्यूट बरताव पर हस देती है और उसके सर पर एक थपकी मारने लगी "पागल कहीं का! में हमेशा तेरे साथ हूं! तू जा और जाके एन्जॉय करना! और हा! मा का खास दौर से खयाल रखना" इस कथन के अंत में नमिता उसे आंख मार देती है, जिससे राहुल उसका इशारा समझ जाता है, और धीमे से बोलता है "यू नॉटी गर्ल!"

.....

राहुल अब खुशी खुशी कमरे से बाहर निकलकर सीधा अपने चाची से मिलने गया और गौर से देखा के बरामदे में पौधों को पानी डाल रही थी रमोला, और झुकी होने के करन, उसकी भारी सुडौल गांड़ बहुत उभर के आ रही थी सारी में। बिना किसी झिझक के राहुल उसकी पीठ से चिपक जाता है और रमोला समझ जाती है के भवरा आ ही गया!। लेकिन इस बार भवरे के कांटे के गांड़ के फंखो के बीच हल्ला मचा रहा था, जिससे रमोला अब सिसकने लगीं। अब वोह पुधो को छोड़कर, सीधा होके, खुद राहुल के हाथो को पकड़कर अपने पेट पे रख देती है, जिससे वोह भी अब अपने चाची के पीठ से और ज़्यादा चिपक जाता है।

राहुल एक कस के चुम्बन उसकी पीठ पर थाम देता है और कान में फुसफुसाने लगा "गोआ की वादियों में तो आपको जी भरके चोदूंगा चाची!" और होंठ से कान को चूमने लगा। एक तो हसीन वातावरण और उपर से राहुल के पीठ से चिपकने से रमोला कामुक हो उठी, इतना के, हाथ से पानी का पोट भी गीर जाती है। कुछ देर तक राहुल गाल से लेकर गले तक चूमता गया और तभी रमोला उससे आज़ाद होक, उसके और मूड गई "सपने कुछ कम देखा कर!"

राहुल इस बात से एकदम हक्का बक्का रह गया "भला ऐसा क्यों कह रही हो चाची?"। रमोला अपनी गांड़ का दबाव उसके लिंग पर डालके, प्यार से अपनी चेहरे को उसके तरफ फिरा दी "मेरे प्यारे बालम! मै और तुम्हारे चाचा तो चले मेरे मायके की वहा! कुछ दिनों के लिए, तब तक मेरी याद में तुम तड़पते रहो!"। राहुल भी और चिपक गाय अपने चाची से "लेकिन मयिका क्यों चाची, अचानक?"। रमोला अब उसके हाथ पर हाथ रखे, पेट को सहलाने लगी "अरे बाबा! मेरी ननद की बेटी की शादी है! अब इससे ज़्यादा मत पूछ! वैसे रेवती तो जा रही है तुम लोगो के साथ!"।

अब मन ही मन राहुल इस बात का तसल्ली करने लगा, लेकिन चाची को फिलहाल छोड़ना नहीं चाहता था, वोह अपने होंठ जोड़ देता है रमोला से, और कुछ पल तक रमोला भी साथ देती है, लेकिन फिर अलग हो जाती है "अब कुछ दिन तक, अपना मा का खयाल रख लेना!", आंख मारके, वोह वापस पौधों को पानी देने लगीं। चाची का इशारा राहुल समझ चुका था, वोह अपने कमरे की और दौड़ परा, ट्रिप की तयारी करने।

कमरे में पहुंचकर, वोह अलमीरा की और हाथ बढ़ाने ही वाला था, के उसके मन में अनेक खयाल आया, सब के सब उसके मा से जुड़े थे, समान पेक करते करते, वोह इस बात से काफी खुश था, के अब तो पूरा परिवार भी इस मिलन के लिए रजामंदी दे रहे थे।

वहा, महेश घर लौट चुका था, और अपने पत्नी से उस प्रोजेक्ट के सिलसिले में बात करने लगा, सामान पैक करते करते, लेकिन आशा की मन ही कहीं और थी। उस रात सोते सोते, आशा को बस गोआ के हसीन वादियों के सपने उसे आने लगी।
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10-05-2020, 01:32 PM,
#76
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
अगले सुबह, सब के सब तैयार हो गए ट्रिप के लिए। महेश और आशा अपने अपने सामान रेडी करके दरवाज़े की और जा ही रहे थे, के तभी महेश एक नज़र अपने बीवी की और जमा देता हैं! आज सच में आशा कयामत से कम नहीं लग रही थी। एक हरी सारी पहनी हुई थी, लाल रंग की ब्लाउस के साथ, और बाल थे एकदम खुले के खुले। महेश उपर से नीचे अपने बीवी को देखे जा रहा था और सामने आशा कुछ तारीफ सुनने के लिए बेचैन हो रही थी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, महेश वापस अपने सामान को पेक करवाने चला गया, एक मायूसी से भरी आशा को छोड़कर।

लेकिन तभी उसके कंधे पर किसी की हाथ थम जाती है। पीछे मुड़ी तो उसकी सास यशोधा देवी मुस्कुरा रही थी "में तो बस तुझे इतना आशीर्वाद दूंगी बहू, के बहा गोआ में जाके, एक नई ज़िन्दगी की दिशा की और जा, मज़े ले कुछ दिन!" एक नटखट मुस्कुराहट थीं उसकी चेहरे पर और आशा भी, पता नहीं क्यों, हौले से मुस्कुरा दी "जी माजी"। ऐसे में बच्चे भी नीचे आगए और सच में जितना हैंडसम राहुल lh रहा था, उतना ही हसीन और जवान रेवती और रिमी लग रही थी। जहां रिमी एक टॉप और टाईट सी जीन्स पहनी हुई थी, वहा दूसरे और रेवती एक बरमूडा और शोल्डर ओपन शर्ट पहनी हुईं थी। दोनों बहने कयामत से कम नहीं लग रही थी।

दोनों के होंठ हल्के हलके लिप गलोस में सने हुए थे और कंधे में अपने अपने बैग लिए, दौड़ परे गारी की और। "सच में रेवती दी! तुम आ रही हो, मुझे बहुत अच्छी लग रही है! वाउ गोआ!" डिक्की में बैग रख देती है रिमी और जवाब में रेवती भी बोल परी " सच में रिमी! बहुत मज़ा आयेगी!"। दोनों के दोनों बैठ जाते है राहुल के इर्द गिर्द, जो पहले से ही बीच में बैठा था और दोनों के बैठते ही, दो दो सुडौल जांघ राहुल के जांघ से चिपक जाते है, और वोह उन दोनों को सहलाने लगा "लगता है मुश्किल से मुझे काबू करनी पड़ेगी!"। रेवती हंस परी "भइया कंट्रोल उर्सेल्फ! मोम और पापा सामने ही है!"।

रिमी भी मैदान में आ गई "वैसे अगर पापा और मोम भी हमारे इस लीला में शामिल हो जाए तो?" धीमे से रिमी बोल परी, और दोनों रेवती और राहुल उसकी और देखने लगे। रिमी कुछ बोलने ही वाली थी के तभी महेश और आशा बैठ जाते है सामने, अपने अपने जगह पर। आशा इस क़दर बैठी थी के, उसकी स्तन की उभर साफ साफ दिख रहा था राहुल को। "सच में, क्या मस्त दिखती है मा, इस सारी में!" साथ साथ इसके, राहुल ने यह भी गौर किया था के आशा ने भी बहुत हॉकी सी गुलाबी लिप ग्लॉस लगाई हुई थीं, जिससे उसकी होंठ और रसीले दिख रहे थे। आशा भी यह बरखूबी जानती थी के उसकी पूरी के पूरी बदन पर राहुल की नज़र बरकरार है। पति नहीं तो बेटा ही सही! इस बात से वोह शरमा जाती है।

अब महेश स्टार्ट कर लेता है, और गारी रवाना हो जाती है अपने मंज़िल की और। खिड़की से राहुल, रेवती और रिमी वाई का इशारा करते है और वहा दूसरे और रमोला और यशोधा भी बाई में हाथ हिलाए, एक दूसरे की और नटखट मस्कुहट से देखने लगी। दोनों घर के भीतर चले जाते है और वहा महेश दूर अपने मंज़िल की और रवाना हो चला। वातावरण सच में बहुत रंगीन था। आज काफी दिन के बाद, घर के दहलीज के बाहर आशा ने कदम रखी थी, बाहर हलके हल्के बारिश होने लगी लगी थी और खिड़की के बाहर आशा उन बूंदों का मज़ा लेती रही अपने चेहरे पर।

ऐसी समय में महेश भी रेडियो चला देता है और शुरू हो जाता है रोमांटिक गानों का सिलसिला। उन गानों से एक खुमारी छानी लगी आशा और राहुल, दोनों में। बार बार आशा की सीट के पीछे की ओर राहुल अपना हाथ मलता गया, मानो उसकी हसीन गेसुओं को छूना चाहता हो। रिमी भी यह समझ जाती है और धीमे से गाने लगीं "कहीं पर निगाहें, कहीं पे निशाना!" राहुल यह सुन लेता है और उसके जांघ पर एक हल्का थपकी देने लगा "वैसे राजकुमारों, आप क्या प्लान बना रही है?"। रेवती, जो खिड़की के बाहर देख रही थीं, वोह भी दोनों के गाप्पो में शामिल हो जाती है।

क्योंकि गानों और न्यूज का सिलसिला चल रहा था रेडियो पे, पीछे इन तीनों की आवाज़ महेश और आशा तक नहीं पहुंच पाई।

रिमी : हा! देखो, इतनी घुट घुट के हम अब हमारे बीच यह लीला लीला नहीं खेल सकते! तो इस का एक ही इलाज है!

रेवती : अरे मैडम! वोह इलाज क्या है? बताएगी भी तू!

राहुल : रिमी, कहना क्या चाहती है तू?

रिमी : यही के, (एक नयख्ट अदा के साथ मुस्कुराकर) मोम को तुम प्टाओ भइया! और पापा को में और रेवती! क्यों, सही है ना? (खास करके राहुल की और देखने लगी)

रेवती : (मुंह पर हाथ रखे) सच में रिमी! तू किसी बीच से कम नहीं है! शैतान की साली! (कुछ सोचकर) पर हा! एक बात तो है! क्या ताऊजी पट जाएंगे आसानी से?

रिमी : (होंठ दबाती) वोह तू मुझ पर छोड़ दे! मर्द आखिर मर्द होता है! (एक अंगराई लेती हुई) क्या पता!! पापा भी भूखे हो शायद! (दोनों को देखकर, आंख मारती हुई)

राहुल : (रिमी की कान को प्यार से मादोड़ती हुई) सच में रिमी! शैतान से कम नहीं है तू! वैसे तूने मेरे दिल की बात छीन ही ली!

रिमी : (उत्सुकता से) मतलब??

रेवती भी राहुल की और देखने लगी।

राहुल : मतलब यह! के, मा भी मुझे पिछले कुछ दिनों से बहुत भाने लगी है! सच में रिमी, मा की बात ही अलग है! वोह गद्रयापन और सुडौल अंग, मुझे पागल करने लगी है। डैम!

रिमी : (उंगलियों से दो पैर बना के, राहुल के जांघ पे चलती हुई, उसके उभर पर रुक जाती है) ओह हो! बेचारे मेरे प्यारे क्यूट भइया!! देख रेवती दी, क्या हालत हो रही है जनाब की!

दोनों लड़कियां अब जीन्स पे बने उभर की और देखने लगे और बिना किसी झिझक के, दोनों नी के दोनों लड़कियां अब उस उभर को अपने अपने मेहसूस करने लगी। इस एहसास से राहुल भी सर को पीछे करके, आराम से आंखे मूंद लिया। नॉर्मली यह उसके लिए आम बात होती, लेकिन इस समाय, गारी में बैठे बैठे, जहा सामने उसके पापा और मा थे, इस सोच में ही वोह गदगद हो उठा बहुत।

रिमी अब अपनी चुदैलपनती पर आजती है और धीरे से राहुल की ज़िप को खोलने लगी "रेव दीदी! मा कितनी हसीन है ना??"। रेवती भी ज़िप को खोलने में रिमी की सहायता करने लगी "हां! यह बात तो है! ताईजी तो सच में बहुत सेक्सी है!"। अब ज़िप अपनी आखरी हद तक खुल चुका था, और ऐसा बिल्कुल नहीं के इस बात का राहुल को कोई एहसास नहीं था, बल्कि वोह बिचारा तो बस अपने दो शैतान बहनों के शरारत का आनंद ले रहा था। "तुम दोनों को नंगी करके, बीच पर घोड़िया नहीं बनाया तो, मेरा नाम राहुल नहीं!" मन ही मन वोह मुस्कुराने लगा, और फिलहाल इस मज़े का पूरा लुफ्त उठता गया।

अब कच्चे में फेस उभर और उठ गया, ज़िप के खुलने के वजह से। उस कपड़े में कैद उभर को सहलाते सहलाते रिमी और रेवती एक दूसरे से ख्ट्टी मीठी बाते करते गए। दोनों ने मिलकर आशा के इतने पुल बंधे के राहुल के उंभर का धलना अब मुश्किल था!

रिमी : आज तो आशा देवी कयामत लग रही है!

रेवती : सच में, ताईजी का जवाब नहीं! इस सारी में तो कयामत लग रही है!!

रिमी : एकदम! और होंठो की और गौर किया तूने???

रेवती : वाउ! सच प्रिटी लिप्स!! उफ़, उनके होंठो का तो जवाब नहीं। ग्लाॅस तो बहुत गजब का लगाई है ताईजी ने!

इन बातो का असर के साथ साथ हाथो का लिंग के उभर पर सहलाना, अब राहुल को बेकाबू बना रहा था। उसके आंखे अभी भी मूंद था और लिंग है के उठता ही गया कच्चे में।

वहा सामने, आशा हसीन वादियों में खोई हुई थी और हमेशा की तरह महेश गाड़ी चलाते हुए भी फोन पर लगा रहा। खिड़की से ज़रा सा ध्यान अपने पति की और देके, आशा मन ही मन खुद को बोलने लगी "ज़रा मेरी तारीफ ही कर देते, तो क्या जाता! लगे है अपने फोन पे! जैसे इस वस्तु से शादी की हो!!"

वहा पीछे, बारी बरी रेवती और रिमी उस उभर को सहलाते गए और राहुल अपने आपे से अब बाहर होने लगा। लेकिन उभर का सहलाना ही बड़ी बात नहीं थी, बड़ी बात तो यह था के यह दोनों शैतान बार बार आशा के प्रति उसे उकसा रहा था। अब धीरे धीरे बांध टूटने लगा धर्य का और जैसे ही सुपाड़े की स्थान पर एक चिकोटि काटने लगी, तो बस एक झटका देते हुए राहुल के लिंग से एक गाड़ी धार निकल गए पूरे कच्चे को भिगोने लगा। "ओह यू बीचेज!!!!" असहा में ही इसके मुंह से निकल गया और कच्चे पर भीगे पैच को देखकर दोनों रिमी और रेवती खिलखिला उठे।

.......

अब काफी किलोमीटर तक गाड़ी सफर कर चुका था, रिमी एक मासूम अंदाज़ में सामने की ओर देखती हुई बोली "पापा! भूख भी तो लग रही है!! लेट्स हैव समथिंग!!"। महेश भी अपने बेटी की और देखकर "ऑफकोर्स बेटा! भूख तो सबको लगी है, आई एम् सईयूर!" इतना कहते ही गाड़ी रुक जाती है एक धाबे के पास। पचो के पांच उतर जाते है।

चलते चलते, महेश आगे आगे जाने लागा टेबल बुक के लिए, और पीछे पीछे रेवती और रिमी! इन दोनों के पीछे पीछे चल रहे थे राहुल और आशा, जो बार बार यही मेहसूस कर रही थी अपने बेटे के उंगली से उसकी खुद की उंगलियां जुड़ रही थी और अलग हो रही थीं। चलते चलते राहुल के मुंह से आखिर निकल ही गया "मा, आज तो गजब लग रही हो तुम!"। एक सिहरन दौड़ गई आशा की जिस्म में से, मानो एक एक शब्द दिल को छूने लगी हो।

कुछ कही नहीं, बस खामोशी में ही दोनों आगे आगे चलते गए और देखते ही देखते, पांचों बैठ जाते है टेबल बुक किए।

खामोशी में आशा और राहुल आगे आगे चलते गए और देखते ही देखते, पांचों बैठ जाते है टेबल बुक किए। आशा और राहुल एक साथ बैठ जाते है और रिमी और रेवती एक साथ, और एक पचवा चैर लिए बैठ जाता है महेश, जिसके बिल्कुल करीब बैठी थी रिमी। ऐसे में बार बार महेश का नज़र ना चाहते हुए भी, अपने बेटी के स्तन की बगल के तरफ जा रहा था, जो स्लीवलेस शर्ट पहनने के वजह से थोड़ी एक्सपोज हुई थी। फिर नज़र उस बगल से लेकर सीधे स्तन की दरार तक गई, जिसे रिमी भी जान बूझकर दिखा रही थी। रेवती भी खाते खाते अपने ताऊजी पे नजर डाल रही थी और इस बात का मज़ा ले रही थी।

"सच में! यह रिमी कब जवान हो गईं, पता भी नहीं चला मुझे!" अपने जज्बात पे बहुत मुश्कल से काबू कर रहा था महेश और चमच को लिंग का चावी देके, उसे बार बार सहलाने लगा! हाला की पैंट में लिंग भी उभरने लगा था। दूसरे और रिमी भी इस बात का पूरा ध्यान देती हुई खाना खाने लगीं, शर्म के मारे अपने पापा से नज़रे तो मिला नहीं पा रही थीं, लेकिन मन ही मन एक उत्तेजित भाव मेहसूस ज़रूर कर रही थी। महेश खुद को बहुत मुश्किल से काबू रखके अपना खाना खाने लगा और फिर सब के सब उठ गए, आगे की सफर करने।

इस बार गाड़ी तक चलते वक्त महेश के आगे आगे जानबूझ के रिमी और रेवती चलने लगी। ऐसे में एक नहीं, बल्कि दो दो गांड़ के गोलियां उसे नज़र आया। एक तरफ बरमूडा में रेवती की, तो दूसरे और रिमी की टाईट सी जीन्स में। एक झलक तो रिमी ने जब मुड़कर दी अपने पापा को, तो घबराकर महेश यहां वहा देखने लग जाता है। मन ही मन मुस्कुराकर, रिमी वापस आगे देखने लगी, लेकिन फिर से महेश की नजर उसकी बलखाती चाल पर ही चला गया। अब इंसानी फितरत को कौन रिके!

वहा, पीछे आशा और राहुल, फिर से साथ साथ चल रहे थे। एक टेंशन ज़रूर थी माहौल में चारो और, खैर बाते तो बिल्कुल नहीं हो पा रही थी दोनों में, लेकिन होंठ सिले थे तो क्या हुआ! दिल में दोनों के उमंगे बहुत थे और दोनों को ही डर सा था, के ना जाने कब दिल से किस अंदाज़ में वोह उमंगे बाहर छलक परे। लेकिन एक बात तो आशा को पूरी यकीन थी, के आज उसके सजावट से राहुल का नज़र हट ही नहीं रहा था। हर कदम पे चलते चलते उसकी स्तन सारी में ही उपर नीचे हो रही थी और राहुल का नजर भी वही के वही जमा था। ऐसे में सब के सब गारी तक पहुंच जाते हैं और अपने अपने जगह पर विराजमान हो जाते है।

फिर एक बार रेडियो चल जाता है और रोमांटिक गानों का सिलसिला शुरू हो जाते है। मज़े की बात यह थी के आशा अब उन गानों को गौर से सुन रही थीं और आंखे मूंदे बार बार राहुल का ही छवि ला रही थी मन में। शरमाने के अलावा आशा के पास और कोई चारा नहीं थी, इटना ही नहीं, बल्कि उसकी अपनी योनि में से कुछ कामरस ऐसे ही उगल परे उसकी जांघो की और, वहा सईद में महेश को अंदाज़ा भी नहीं था के पास में उसकी पत्नी बैठे बैठे बेटे के नाम की रस बहा रही थी। लेकिन, ज़रा महेश पे भी गौर किया जाए! यह भाईसाहब तो अपने बेटी रिमी और भतीजी रेवती को मन में लिए अभी भी सोच में था। सच देखा जाए तो बलखाती कम उम्र की जवानी अब महेश को भा गया था! बार बार उनके गांड़ के इर्द गिर्द हिलने को याद करते हुए उसका उभर अब साफ नजर आजता किसी की भी।

महेश कुछ घृणा करने लगा अपने सोच पर, लेखन इस खयाल से रिहाई मिलना बहुत मुश्किल था उसे, क्योंकि अब तो रेयार व्यू आइने में भी रिमी साफ दिखाई दे रहा था उसे। वहा पीछे बैठी रिमी की नजर भी अनजाने में ही अपने पिता से मिलने लगी। जैसे ही शरारती छलक का एहसास हुआ अपने बेटी की आंखो में, महेश तुरंत अपना नज़र हटा देता है, लेकिन इस लुक्का चुप्पी में एक अलग ही मज़ा आने लगा बाप बेटी को। खैर, गाड़ी चलता गया अपने मंज़िल की और। बार बार रिमी और रेवती साइड में गोआ के बोर्ड्स देख रहे थे और फैसले का अंदाज़ा लगाना लगे। बीच में बैठा राहुल अपने ही ख़यालो में खोया हुआ था।

तभी रेडियो में सागर फिल्म से सबसे रोमांचक गाना शुरू हो गया : "जाने दो ना"। इस गाने के बोल के असर अचानक से ही आशा को होने लगी, और वहीं बैठी बैठी एक बलखाती हुई अंदाज़ से खुद के पल्लू को संभालने लगी, हाला की कुछ हो नहीं रही थी! अपनी जगह पे अपनी भारी भदकम जिस्म को हिलाने से महेश उसकी और देखने लगा "आशु क्या हुआ?"। अपने आप को वापस संभाले आशा अपने पति की और देखकर, बस मुस्कुराई "नहीं, बस ऐसे ही, सारी को थोड़ी एडजस्ट कर रही थी!" अपने आप के काबू रखे आशा बोल परी। लेकिन महेश आज शरारत के मूड में था, "वैसे सारी का फिक्र छोर दो! बीच पर थोड़ी ना इसे पहनोगी!"। "धत! ना बाबा में नहीं पहनने वाली कुछ और! आप ज़रा देखकर गारी चलाइए!" दिनों पति पत्नी अपने आप ही मुस्कुराने लगे और सारी छोड़कर एक बिचसूट पहनने के खयाल से ही आशा की जिस्म में एक सिहरन दौड़ गई।

अब शाम की और दिन जाने लगा और बाहर वातावरण एक गुलाबी आसमान को लिए बहुत ही रोमांचक लगने लगा। पीछे बैठे तीनों भाई बहन गुलाबी आसमान का नज़ारा देखने लगे खिड़की के बाहर, और सामने आशा भी मन में अनेक उमंगे भरी, गुलाबी आसमान की और देखने लगी। ऐसे में अचानक राहुल पूछ परा "वैसे पापा! हम रुकेंगे कहा?"। महेश मुस्कुराकर "बेटा! मेरे दोस्त का एक रिजॉर्ट है! बहुत ही बढ़िया! वहा हम बदौर गेस्ट जा रहे है!"। "थट्स सो कूल डैड!" रिमी बहुत एक्साइटेड मेहसूस कर रही थी और रेवती भी खुशी खुशी रिमी को एक हाई फाइव करने लगी। बीच में बैठे राहुल नए नए उमंगे लिए बस अपने मंज़िल तक पहुंचने के लिए बेताब रहा।

वहा, सामने बैठी आशा की दिल भी ज़ीरो से धकड़क उठी, जैसे जैसे गारी अब गोआ की एंट्रेंस पर कदम रखी। सब के सब अब बाहर बाकी गाडियों की और भी देखने लगे। उन्हीं के तरह कुछ परिवार भी थे, और कुछ कुछ नए नए कपल!। आशा के ही नज़रों के सामने एक लड़की अपनी स्तन को अपने प्रेमी के पीठ पर पसारे बाइक पर सवार, गुज़र गए तेज़ हवा की भांति। उस दृश्य को देखकर आशा जो कुछ कामुकता मेहसूस हुई, बार बार उसे अपने और महेश के पहले दिन याद आगाये! लेकिन फिर सच का सामना तो उसे करना ही था! और सच यह थी के अब उन दोनों में वोह खींचाव ना रहा पहले जैसा।

खैर, कुछ देर बाद गारी एक पतली सी गली की और बढ़ गया, और महेश के मुंह से निकल जाता है "फाइनली!"। सब को एहसास हो गया के रिसोर्ट अब कुछ ही दूरी पे थे। "ओह! आई एम सो एक्साइटेड भइया!" रिमी बोल राहुल की और देखकर। राहुल बस मुस्कुराया और रेवती की और देखने लगा, जो खुद खुशी से उत्तेजित नजर आ रही थी।

देखते ही देखते, रिसोर्ट का मेन गेट आ गया और सिक्योरिटी उसे खोल देता है। महेश आगे जाकर गाड़ी पार्क कर लेता है और पार्किंग लोट में से सब के सब बाहर झांकने लगे एक बहुत ही सुंदर सी प्राइवेट रो हाउस की और। आस पास का माहौल भी शांत नज़र आ रहा था और रो हाउस के बिल्कुल बाजू में एक बहुत ही प्यारी सी बगीचा था! खुशी खुशी सब के सब उतर गए और सिक्योरिटी को अपने पहचान देने के बाद, महेश के हाथ पर एक चाबी थमा जाता है।

"लेट्स गो!" महेश खुशी खुशी आगे आगे गया और सब के सब भी पीछे चलते गए। चलते चलते, अपने मा के बलखाती हुई चाल को पीछे से देखकर राहुल के मन में बस एक ही खयाल आया के अब जल्द से जल्द इस हसीन वातावरण में मा को कैसे पटाया जाए। और वहा, आशा इस नए माहौल से बहुत रोमांचक मेहसूस कर रही थी।

सब के सब अब घर के अंदर चले जाते है।
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10-05-2020, 01:32 PM,
#77
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
अंदर आते ही सब अपने अपने कमरे कि और प्रस्थान हुए। रिमी काफी खुश थी और रेवती भी फूले नहीं समा पा रही थी। राहुल भी अपने लिए एक छोटे कमरे का बंदोबस्त कर लेता है, तो दूसरे और आशा और महेश अपने कमरे में पहुंचकर, अपने अपने सामान रख देते है। महेश अब बिना आशा से कुछ कहे, फ्रोरन अपने फोन पे लग जाते है। बस, फिर क्या! हो गई आशा की तन्हाई का शुरवात, अपने पति की और देखकर, मन ही मन यही सोचने लगी "क्या इसलिए लाए थे मुझे यहां, के मुझे यूहीं तन्हा तन्हा छोड़कर, बस अपने में ही रहोगे!!" लेकिन फिर शिकवा करे भी तो किस्से करे! यूहीं मायूसी को टालती हुई, वोह हॉल तक जाने लगी और सीधे अपनी मनपसंद स्थान, उर्फ बरामदे पे पहुंच जाती है।

बरामदे में से बीच का बहुत ही बडिया नज़ारा दिख रहा था उसे। क्योंकि शाम का समाय था, एक बहुत ही संगीत और पार्टी का माहौल था चारो और, ऐसे में वहा पहुंच जाता है राहुल,। जिसे देख आशा को अचानक ही कुछ ज़्यादा ही खुशी महसूस हुई। शायद मौसम का असर था!

राहुल : बहुत ही हसीन शाम है! है ना मा!

आशा : हा! वोह तो है! (बेटे के हाथ पर हाथ फेरते हुए) वैसे! क्या चल रहा है तेरे मन में?

राहुल : मा! तुम तो इस सारी मे आई हो! लेकिन माहौल के हिसाब से तुम्हे भी अपने आप को सवर्नी पड़ेगी!

आशा : (कुछ हैरानी से) क्या मतलब तेरा?

राहुल : मतलब यह के, आभी और इसी वक़्त, हम थोड़ी सी शॉपिंग करेंगे सुबह बिच जाने के लिए!

आशा : (रोमांचित होती हुई) ओह नो! नहीं मुझे नहीं पहनना कोई सूट वाहेरा! इस उम्र में!! कुछ तो सोचा कर बेटा!

राहुल : (हाथ को अपने हाथ से सहलाता हुआ) कुछ नहीं सुनना चाहता में! तुम आ रही हो बस! और वैसे भी यह सब आम बात है! फॉरेन में भी आप जैसे उम्र में भी स्विमवियर पहनकर बीच जाना नॉरमल है मा!!

आशा : (बेटे के उत्सुकता को भांप लेती है) चल ठीक है! तू तो बिल्कुल अपने दादा पे गया है! ज़िद्दी और...(रुक जाती है) खैर! चल, में अभी आई!

आशा मटक मटक के चल देती है और राहुल मन में कहीं उमंगे लिए वहीं बरामदे में से बीच का माहौल को देखने लगा। खास करके कुछ कपल्स की और, जिन्हें देखते ही उसके दिल में कहीं खयाल आने लगे। ग्रील को पकड़े वोह अपने खयालों में खोया ही था, के तभी "चले बेटा!" की आवाज़ आती है! राहुल पीछे मुड़कर अपने मा को एक सलवार कमीज़ में पाता है, जिसमे वोह काफी जच रही थी। खुशी खुशी राहुल भी अपने मा को लेकर घर से निकलने ही वाला था, के अचानक रुक जाता है "क्या पापा को बताया आपने?"। "उन्हें काम से फुर्सत मिले, तब ना! खैर, चल अब!" मा बेटा निकल लेते है घर से, और गली के सैर करने लगे।

शाम का समय, हर जगह लाइट और शौर भरा माहौल था। बीच अरिया होने के करन काफी कपल्स भी यह से वहा और वहा से यहां आते जाते नज़र आ रहे थे। हाथो पे हाथ थामे मा बेटा आगे आगे जाते गए, और सच मानिए तो कब चलते चलते उनके हाथ यूहीं मिल गए, वोह खुद उन्हें भी पता ना चला। यूहीं चलते चलते, दोनों पहुंच जाते है एक छोटी सी ड्रेस मोल में, जहा तरह तरह के बीच वियर और स्विमसूट मौजूद थे। अभी भी इस निर्णय को लिए आशा शर्म मेहसूस कर रही थी, लेकिन उत्तेजना से भरी दिल लिए, वोह बस यहां वहा रंग बिरंगी सूट्स को देख ही रही थी और तभी एक लड़की आती है, उन्हें अटेंड करने के लिए।

लड़की : जी बोलिए!

राहुल : इनके लिए एक बढ़िया सा बीच वियर चाहिए!

लड़की : ओके, वैसे मैडम, आपका बस्ट साइज़?

आशा अपने बेटे के सामने कुछ अजीब सी मेहसूस कर रही थीं, यह बोलने में, बस लड़की की और देखकर, धीमे से बोलीं "४० सी" और एक लालिमा छा जाती है गालों के और। कुछ पलो के बाद वोह लड़की कुछ सैंपल सूट्स लेकर आती है और राहुल और आशा, दोनों मिलके उन्हें बहुत गौर से देखने लगते है। शर्म के मारे बार बार आशा अपने बेटे के तरफ ही देखे जा रही थी, लेकिन बार बार राहुल भी इशारों से उसे तसल्ली दे रहा था। कुछ देर बाद राहुल एक आइटम पसंद करता है, जिसे देख आशा बहुत ही लज्जित हो गई, कुछ शर्म, तो कुछ उत्तेजना के मारे। पैकेट के कवर को देखकर ही आशा हैरानी से आंखे चौड़ी कर लेती है।

वोह पिस था एक गुलाबी रंग के सरोंग और उसके साथ एक सफेद रंग के ब्रेसियर का! उस कपड़े को पैकेट में लिपटे देख के ही आशा बहुत उत्तेजित मेहसूस कर रही थीं और जब राहुल ने खरीदने के लिए कन्फर्म किया अपने मा की और देखकर, तो आशा बस एक शर्म के मारे मीठी सी मस्कुहट देके, "हा" में इशारा की। खुशी खुशी राहुल उस सारोंग सेट को खरीदे, बाहर जाने लगा अपने मा के साथ साथ। बाहर जाते ही आशा एक थपकी देने लगा बेटे के पीठ पर "बहुत बदमाश है तू! तेरे पापा क्या सोचेंगे! अगर वोह पहनी तो??"। राहुल खुशी खशी मा के पीठ पर हाथ मलता गया "ओह मा! जस्ट चिल, तुम गजब लगोगी! ट्रस्ट मी।"

आशा उसके बातो से कुछ ज़्यादा ही उत्तेजित हो जाती है और घर के तरफ दोनों चल परे। जाते जाते एक नज़र राहुल बीच के वहा जमा दी और सोचने लगा के अगला सुबह सच में कितना रंगीन होगा!

......

वहा दूसरे और महेश अपने लैपटॉप में व्यस्त था के तभी उसे किसी के गुनगुनाने की आवाज़ सुनाई दिया। झट से नज़रे उपर की तो एक टॉवेल में लिपटी रेवती नजर अाई उसे। मन किया के क्यों ना उस परी समान लड़की को और थोड़ा घुरा जाए, सो कर लिया उसने। वहा, दूसरे तरफ रेवती जान बूझकर अपने गीली बालों को वहीं सूखा रही थी अपने दूसरे टॉवेल से, जबकि पूरी के पूरी बदन एक बेहद पारदर्शी गुलाबी टॉवेल में लिपटी थीं और बदन में भी हलके हलके बूंदों की मौजूदगी साफ दिखाए दे रही थी।

कुछ पल तक तो महेश मनमुग्ध होकर अपने भतीजी को ही देखती गई। जो चीज उसे आशा की मौजूदगी में ना प्राप्त हो रहा था, वहीं एक कमसिन जवान लड़की की और हो रहा था। महेश यूहीं लैपटॉप पे टाइप करने का नाटक करते हुए बस रेवती को ही घुरे जा रहा था। एक बेचैनी सी होने लगा उसके जिस्म में जैसे रेवती अब पीठ को उसके तरफ किए, अपने टॉवेल को धिली किय अपने समाने का बदन को साफ करने लगी। बार बार महेश को यह खयाल आया के काश एक बार अगर वोह उसकी स्तन देख पाता।

रेवती की मीठी मीठी आवाज़ के साथ साथ अब महेश का लिंग भी खड़ा होने लगा। सच में, मन ही मन वोह मानने लगा इस बात को के कुछ तो कशिश थी जवान लड़कियों में! जिसे वोह आशा में हाली में बिल्कुल नहीं ढूंढ़ पा रहा था। लेकिन फिर रिमी की आवाज़ आती है "रेव दीदी!! जल्दी आना, कुछ दिखानी है आपको!" इतना सुनना था के टॉवेल लिपटी वोह अपने कमरे की और दौड़ गई। एक झटके वोह ऐसे गायब हो गई महेश के नज़रों से, के मानो कोई वहम हो!

फिर कैसे भी खुदको संभाले, महेश वापस अपने काम पर लग जाता है। कुछ ही देर बाद दरवाजा रिंग होता है और इस बार रिमी दौड़ जाती है खोलने के लिए। दरवाजा खुली और एक मा और बेटा का अंदर आना हुआ! होंठो में हसी और चेहरे पर रौनक। रिमी यह भी गौर की के आशा के हाथ पर एक ड्रेस बैग थी, जिसे देख रिमी ने अपने भाई की और इशारा की, तो राहुल ने सिर्फ आंख मार दिया। इशारा समझती हुई रिमी एक बार अपने मा को देखने लग जाती है, जो इस समाय काफी उत्तेजित नज़र आ रही थी।

.......…

उस रात को खाने के बाद, सब अपने अपने कमरों में विराजमान हुए और महेश बिस्तर पर लेटकर ही अपने पत्नी की खुशी से फूले हुए गाल को देखे जा रहा था "क्या बात है! बड़ी खुश लग रही हो?"। आशा भी कुछ नटखट स्वभाव की हो चुकी थी अब तक, अपनी नाईटी की बटन को लगाती हुई वोह उस पैकेट को अपने पति के गोद पे रख देती है "खुद ही देख लो, मेरी खुशी की करन!"। हैरान और कौटोहल से भरे मन के साथ महेश वोह पैकेट के अंदर वोह बिकिनी और सराेंग को देखता है, और उसके आंखे बड़ी के बड़ी, अचानक से मानो कोई तेज़ लहर गुज़र गया धड़कन में से "क्या यह तुम पहनोगी???"।
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10-05-2020, 01:33 PM,
#78
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
आशा भी बिना भाव खाए अपने पति की और देखने लगी "क्यों? नहीं पहन सकती?"। महेश बिना समाय ज़ाहिर किए पूछ परा "लेकिन यह तो....ओह!"। उत्तेजना के मारे महेश कुछ खास बोल नहीं पा रहा था और आशा ने भी इस पूरी बातचीत में बेटे का नाम भी ज़िक्र नहीं की, बस अपने पति की रिएक्शन को मज़े से देखी जा रही थी। चेहरा चाहे कितना भी छुपाए, लेकिन लिंग का उभर कभी भी खुट नहीं बोल सकता! और यही हुआ महेश के साथ। एक तो रेवती की अधनंगी जिस्म और उपर से अब ऐसा बीच सूट अपने पत्नी पर तसव्वुर करके पागल हो रहा था। आशा ने हौले से उसके कान तक अपनी होंठ लाई "कुछ कुछ हो रहा है क्या आपको?"। महेश के कान में हवा जाने से वोह और उत्तेजित हो उठा "सो जाओ आशु, कल उठना भी तो है!"।

लेकिन आशा कहा मानने वाली थी! धीरे से उसने अपने हाथो को अपने पति के पजामे के नारे तक ले आई और उस नारे को लूज करने लगी "यह सूट में पहन सकती हूं ना???" अचानक ही अपने चेहरे को अपने पति के चेहरे के और नज़दीक लेके आती है और हल्के से होंठ को चूम लेती है। महेश इस हरकत से हककबक्का हो उठा और सोचने लगा के आखिर क्या यह माहौल का असर तो नहीं था उसके पत्नी पे!

आशा अब नारे को लूज करके, अपने पति के तने हुए लिंग को बाहर करती है और प्यार से उसे सहलाने लगी। इस दौरान पूरे कमरे में एक खामोशी सी छाई हुई थी और महेश भी अपने आंखे मूंद लेते है पूरी उत्तेजित होकर। और आंखो को मूंदे, बार बार वोह रेवती की टॉवेल में लिपटी बदन की कल्पना करने लगा। फायदा यह हुआ के उसका लिंग और मोटा होता गया आशा के हाथो में। क्रोध और वासना महेश में समाने लगा।

महेश : (रेवती की कल्पना करते) ओह! कितना अच्छा करती हो तुम! ओह!

आशा : (आवाज़ रेवती में तब्दील हो जाती है) आपको अच्छा लग रहा है??

महेश : हा बेटी!! कैरी ऑन!

"बेटी?" आशा कुछ हैरान थी, लेकिन फिर आज इतनी खुश थीं, के अपने पति को वोह अधूरा नहीं छोड़ना चाहती थी। वोह खुशी खुशी उस लिंग को अपनी हाथो से हिलती गई। महेश वैसा वैसा और उत्तेजित होता गया और कुछ ही पलों में "ओह रेवती!!!!!" की सिसकियां देता हुआ अपने पत्नी के हाथो पे ही झर जाता है। रेवती के नाम सुनके आशा हैरानी से आपने पति की और देखने लगी। लेकिन उस सुबह होने का ज़्यादा इतजार थी। बिना कुछ कहे, वोह पास में एक रूमल से अपना हाथ साफ कर देती है और लैंप ऑफ करके सो जाती है।

मुरझे हुए लिंग पे वापस पजामा पहने, महेश को अचानक एहसास होता है के उसके मुंह से रेवती का नाम निकला भी तो कैसे! खैर, बिना कुछ और सोचे, वोह भी सो जाता है, लेकिन मन में एक बात अटल थी के क्या आशा उसे इस बारे में कुछ पूछेगी या नहीं!

अगले दिन सुबह की किरण हर खिड़की की और छलक उठी, और सब के सब एक उबासी लिए उठ गए।

महेश सबसे पहले उठ गया और सीधा लड़कियों के कमरे में आ टपका। दोनों के दोनों अंगराई लिए अभी भी अपने अपने तकिए जकड़े बैठे थे, के तभी महेश रेवती की और जाने लगा और उसके ग्लास में से कुछ चिंटे लिए, सीधे उसकी आंखो में "चलो जल्दी! रिमी तुम भी!! रेडी हो जाओ!" अपने बेटी की और एक नजर डालके, वोह चल देता है कमरे में से। रेवती फिर एक बार अंगराई लेके रिमी की और हौले हौले बोलती है "लगता है ताऊजी काफी उत्तेजित है! क्यों?"। रिमी बिस्तर से उठी और बाल बनाने लगी "ऑफकोर्स! कल तूने जो शो दिखाई! बहुत जल्द तेरे पे कूद परेंगे!"। मन में उत्तेजना लिए रेवती फटाफट अपनी बिकिनी और शोर्ट्स, लेके बाथरूम चली जाती है।

रेवती के बाद, रिमी भी तयार होने चली जाती है और वहा आशा दिल में नए नए उमंग लिए बाथरूम के आइने में खुद को उपर से नीचे देखने लगी और फिर दीवार के ग्रील पर रखे उस बीच ड्रेस की तरफ। "सच में, राहुल के पसंद की बात ही अलग है! कितना खयाल है मेरा उसे, कम से कम उसका दिल रखने के लिए तो में यह ज़रूर पहनूंगी!" मन में ठान लेती है और आगे बढ़ती है। वहा दूसरे और राहुल और महेश अपने अपने शर्ट्स में तैयार हुए बाकियों की रहा देखने लगे। राहुल के नज़रे अपने मा के लिए और महेश अपने परियो के लिए।

तभी पूरे हॉल में एक रौनक छा गई, जब दोनों रेवती और रिमी ने कदम रखें! महेश और राहुल दोनों उन दोनों को देखते ही रह गए। दोनों के मुंह से इत्तेफाक से एक साथ ही "वाउ" निकल जाते है!

रिमी एक नीले रंग की बीच बिकिनी सूट पहन हुई थी और यह बात साफ नजर आ रही थी के पिछले कुछ दिनों से वोह थोड़ी मोटी ज़रूर हो गई थी, खास करके स्तन और कमर की जगाओ पे। लेकिन यही जिस्म की निखरता काफी आकर्षित बना दी थी उसे। वहा दूसरे और सबसे कामुक और गरम रेवती लग रही थी गुलाबी बिकिनी और पैंटी में। शांत रहने वाली रेवती में भी काफी बदलाव आ चुकी थी, जिसका करन खुद राहुल ही था, जिसके साथ संभोग करके, उसके तन और मन, दोनों में एक रौनक आ चुकी थी।

उन दोनों को देखकर महेश और राहुल पागल सा होने लगा, और खास करके महेश! जिसका ध्यान उन दिनों से हट ही नहीं पा रहा था, चाहे रेवती हो या रिमी। अपने पिता के रिएक्शन देखकर रिमी प्यार से बोली "डैड!! हेल्लो!! आप ठीक तो हो ना?" दिनों लड़कियां खिलखिला उठी और महेश भी होश में आ परा "नहीं, नहीं ऐसा कुछ नहीं! वैसे रिमी! यह ड्रेस कुछ ज़्यादा ही पारदर्शी नहीं है! तुम्हे नहीं लगता???" एक बाप के हैसियत से वोह रिमी को देख रहा था, और शर्म के मारे नज़रे नहीं मिला पा रहा था।

रिमी एक पोज लिए खड़ी रही "ओह डैड!! नोट फैर! एक बार रेव दीदी की और तो देखिए!", फौरन रेवती भी नाटक करती हुई पूछ ली न "ताऊजी! आप बुरा तो नहीं माने ना??"। महेश कितना भी दिखावा कर ले, उसका लिंग के उभर को शर्ट्स में, दोनों के दोनों लड़कियां देख लेती है। हौले से दिनों अपने आप ही मुस्कुरा उठे।

उभर तो राहुल के पास भी था, लेकिन किसी और के राह देखते हुए, किसी के बेसब्री से इंतज़ार में! बेकाबू होकर उसके मुंह से अपने आप ही निकल गया "वैसे मा कहां है?? अब तक रेडी हुई की नहीं!"। रिमी अपने भाई तक गई और उसके गाल दबा दी "वेट भइया! इंतज़ार का फल मीठा होता है!!" रिमी की बातों से अब राहुल का बेचैनी और ज़्यादा बड़ने लगा। रेवती भी बिना झिझक के महेश के अजी बाजू घूमती हुई "ताऊजी, अपने यह नहीं बताया के में कैसे लग रही हूं!!"। भांजी की अधनंगी अवस्था को देखकर महेश अपने उभर को अब ज़्यादा देर काबू नहीं कर पा रहा था, बस इस मामले को यही दफा करने के लिए "नाइस बेटा! बहुत ही अच्छी आउटफिट है!" माथे पर पसीना लिए महेश अब आगे आगे अपने पत्नी की राह देखने लगा।

तभी प्रवेश होती है आशा की, और जैसे ही उसकी कदम आ गिरी हॉल में, तो महेश और राहुल, दोनों ही मनमुग्ध होकर उसे ही देखने लग गए। सच में सफेद बिकिनी और गुलाबी सरौंग में कयामत से कम नहीं लग रही थी आशा!

एक पोज लिए आशा अपने बेटी और भांजी के तरफ मटक मटक के चल देती है और रिमी एक सिटी मार देती है "वाओ मोम!!! जवाब नहीं!"। आशा मुस्कुराती है शर्मीली अंदाज़ में, और उसके बाजू खड़ी रेवती भी खुद को रोक नहीं पाई "लुक्स सो सेक्सी ताइजी!!"। आशा खुद को संभाले "अब बस भी करो! तुम दोनों भी बहुत प्यारी लग रही हो!"। महेश फिर बिना विलंब किए बोल परा "अब चलो भी सब! लेट्स गो!"। पांचों के पांच घर से बीच की और निकल लेते है, जो उस रिसोर्ट के काफी नजदीक ही था।

कुछ ही पलों के बाद वोह आखीरकर बीच पहुंच जाते है और खूबसूरत वातावरण को देखने लगे। भीड़ कुछ खास नहीं थी, और तो और। रेत और समुंदर का नज़ारा दिलकश था!

चारो और एक रंगीन माहौल बना हुआ था, कुछ परिवार थे तो कुछ दोस्तो का झुंड! कहीं तन्हाई में मस्त लोग थे तो कहीं प्रेम में घूम रहे कपल्स। रिमी और रेवती दौड़ जाते है एक साथ,, पूरी बीच के मॉइना करते हुए। महेश बस उन लड़कियों की ही घूरने लगा और उनकी बलखाती हुई गांड़ के हिलाव को ही देखता गया। इस बात को आशा ने गौर की थी के कहीं ना कहीं, शायद रेवती के प्रति उसके पति के कुछ भावनाए जागे थे, क्योंकि इस बात की आगाज़ उसे कल रात ही हो चुकी थी।

राहुल भी सैर करने लगा बीच में, और यह मिया बीवी रेत पे रैक फैलाए, बैठ परते है। आशा को इस आउटफिट मे एक अलग ही मज़ा आ रही थी।

आशा : (महेश की और इशारा किए) वैसे! आप ने कुछ खास तारीफ नहीं की मेरी?

महेश : (पत्नी की और देखकर) उफ़! बहुत ही गजब लग रही हो आशु! वैसे यह चॉइस तुम्हरा है या किसी की सिफारिश??

आशा : वैसे.…... है तो किसी दोस्त की ही सिफारिश! खैर, कल रात के बारे में बात करे? (दबी मुस्कुराहट के साथ)

महेश : (घराबकर) केके किस बारे में?? कुछ समझा नहीं में!

आशा : (टेन लोशन निकालकर खुद पे मलती हुई) : अब बनिए मत! आप साफ साफ़ रेवती की नाम ले रहे थें!!

महेश : क्या कहना चाहती हो??? (घुस्से में, उठ जाता है) ज़रा रिलैक्स भी करो! डोंट क्रॉस उर लिमिट्स!

महेश चल देता है, सच तो यह है के यह सिर्फ एक बहाना था, अपने बेटी और भांजी को फॉलो करने की। दोनों तरफ नज़रे जमाए वोह उन दोनों को धुंडने लगा और आगे आगे जाता गया। वहा दूसरे और आशा अपने पति की रवायिए से परेशान, बस अपने टवाचा पर लोशन लगता गया, के तभी अपने नज़रों के सामने एक मदमस्त मर्द की मौजूदगी से वोह सिहर जाती है।

यह कोई और नहीं, उसका बेटा राहुल था। लेकिन आज इस रंगीन बीच के माहौल में, केवल एक बीच शर्ट्स में अपने बेटे को देखकर, वोह थोड़ी उत्तेजना से भर गई अंदर ही अंदर। कैसे भी अपने नज़रे अपने बेटे के जिस्म से फिराकर वोह नज़रे नीचे झुका दी "कुछ कहना चाहता है?"। राहुल वहीं हीरो वाले पोज में खड़ा रहा और एक अंगराई लिए हुए बोला "बस मा! इस नए वातावरण का मज़ा ले रहा हूं! लेकिन... तुम बस क्या बैठी रहोगी?"। आशा लोशन को बाजू में रख देती है "तो और क्या करू बेटा?"। इस बात पे राहुल हाथ आगे करता है "लेट्स एक्सप्लोर!"

आशा अपने बेटे के प्रस्ताव से खुश होती है और खड़ी हो जाती है। राहुल फिर एक नज़र अपनी मा को उपर से नीचे देखने लगा।

बेटे के नज़रों को भांपते हुए, आशा शर्मा जाती है और हल्का सा गीलापन अपनी योनि की मुख्य दुआर पर मेहसूस करने लगी। खुद को मन ही मन कोस ली और बेटे के साथ घूमना आरंभ कर लिया। सच में सुबह सुबह बीच का माहौल की बात ही अलग था और मा बेटे दोनों समुंदर की और जाने लगे। उसके उठते गिरते लहरें काफी रोमांचक नज़ारा पेश कर रहे थे।

आशा : कितना सुंदर नज़ारा है!

राहुल : (लहरों से ज़्यादा अपने मा की और देखकर) हा मा! सच में!

......

वहा दूसरे और महेश अपने बेटियों का पीछा करते करते एक पेड़ के पास पहुंच जाता है, जहा यह दोनों छुपी छुपी बाते कर रहे थे।

रेवती : कुछ भी कह ले! ताऊजी को टीज करने में कुछ डर तो हो रही थी मुझे!!

रिमी : ओह रिलैक्स दी! जैसे राहुल ने तुमको पटाया, मुझको पटाया! वैसे ही डैड भी पट जाएंगे! आई एम सूअर!

यह बात सुनके महेश का खून उबल उठा। "यह दोनों राहुल के साथ यह सब....ओह!"। खुद के कानो पर बिल्कुल यकीन नहीं हो रहा था उसे, और वोह आगे आगे सुनता गया।

रेवती : वैसे! सच कहूं रिमी!

रिमी : म्म्म?

रेवती : ताऊजी है बड़े हॉट! मतलब यह के उनका वोह बालो से भरा जिस्म और मूछ! सौ मैनली!

रिमी : (कुछ वैसे ही मदहोशी में) हमम... बात तो सही है रेव दीदी! कभी कभी मैंने भी उन्हें इतना ही गौर की थी!

पेड़ के डाल और पीठ थामे दोनों लड़कियां महेश के ख़यालो में गुम थे और इस बात का मज़ा महेश को भी मिल रहा था। जब उसने नज़रे नीचे की तो शोर्ट्स में उभर काफी हद तक उठ गया था और वोह आगे आगे सुनता गया अपने उभर को मसलते हुए। लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ के उसने अपने ख़यालो में भी सोचा नहीं था। रेवती और रिमी अपने समलैंगिक प्रकृति में तब्दीली कर लेते है अचानक से।

रिमी : दी! मौसम इतना अच्छा है! तुम्हारे होंठ चखने का इच्छा हो रही है!

रेवती : (होंठ गीली करती हुई) तो रोका किसने! आखिर तूने ही तो मुझे इस जन्नत का सैर करवाई थी!

फिर बिना विलंब किए दोनों के होंठ मिल जाते है और इस दृश्य को उत्तेजित होकर महेश देखने लगा।

बिकिनी और पैंतीस में दिनों लड़कियां इस चुम्बन के पोज में गजब लग रहे थे और महेश अपना सुध बुध खोकर उन्हें देखता गया। लेकिन तभी कुछ ऐसा हुआ के, उसका फोन बज उठा और घरबकर वोह वहा से खिसक लेता है, इससे पहले के रेवती और रिमी उसे देख पाते।

रेवती : तुझे ऐसा नहीं लगा, कोई बिल्कुल हमारे पीछे ही था जैसे!

रिमी : ह्म्म! शायद था कोई! क्या पता!

रेवती : डैम! प्राइवेसी भी मिलना मुश्किल है!

रिमी : ओह मैडम! यह बीच है! कोई भी झांक सकता है किसी फ्री शो के खातिर!

इस बात पर दोनों हस देते है और वहा दूसरे और महेश फोन रखते हुए, बार बार उन दोनों के बातो को याद करने लगा। उसके चेहरे पर अपने आप ही एक मुस्कान आ परा।
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10-05-2020, 01:33 PM,
#79
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
लहरों की मस्ती देखते हुए राहुल के मन में भी कहीं लट्टू फुट परे। एक नज़र अपने मा की और देकर, वोह उसकी हाथ थम लेते है "चलो ना मा! लहरों की मज़े उड़ाया जाए!"। बेटे के हाथ का स्पर्श पाकर आशा की जिस्म में एक सिहरन सी दौड़ गईं! एक तो यह माहौल और उपर से अपनी पारदर्शी ड्रेस को लिए वोह काफी रोमांचित भी मेहसूस कर रही थी। ऐसे में कुछ लड़के वहा से गुज़र जाते है और आशा को उपर से नीचे देखने लगे।

"आइटम सही है बॉस!"। "सही है बॉस!" कुछ अल्फाज़ राहुल के कान तक आते है और वोह घुस्से से लाल हुए उनके और बड़ने ही वाला था के आशा उसे रोक देती है "नहीं बेटा, रहने दे!" हैरत की बात यह थी के आशा के चेहरे पर एक मुस्कान थी, नटखट सी, जिसे देख राहुल हैरानी से मा की और देखने लगा "तुम खुश हो रही हो मा?"। आशा अपने बेटे के गाल दबाए "सच कहूं तो खुश क्यों ना हू! तारीफ सुनना सिर्फ लड़कियों को नहीं, औरतों को भी पसंद है!" कहके वोह खुद शरमा जाती है। अपने मा की प्रक्रिया देखकर राहुल भी हसने लगा और खुद ही अपने मा का हाथ लिए आगे आगे जाने लगा, जब तक के वोह दोनों एकदम लहरों के नजदीक ना पहुंच जाए।

दोनों अपने अपने चप्पल पीछे छोर आते हैं, जिससे लहरों के तिनके उन्हें और मज़ा दे रहे थे। फिर हुआ यू के राहुल कुछ पानी आशा की और छिड़क देता है और आशा भी मज़े लेती हुई अपने बेटे पर छिरकने लगी, कुछ अजब सा आलम था इस समय में, के दोनों मा बेटे दोस्त समान घुल मिल गए एक दूसरे से, या फिर यूं कहिए के दोस्ती से बढ़कर कुछ और। यह सिलिसला तब तक चलता गया जब तक दोनों कुछ हद तक पूरे के पूरे भीग ही ना जाए। सच बात तो यह थी के आशा के भीगे हुए टांगो को देखकर राहुल बहुत ही उत्तेजित हो उठा और इस बात का एहसास आशा को भी थी।

शर्म के मारे वोह कैसे भी हो अपनेआप को ध्कने की कोशिश की, लेकिन काफी हद तक उसकी सारौंग भीग गई थी और उसकी टांगे को दिलकश नज़ारा दे रही थी। राहुल बस अपने मा को देखता गया और धीरे से "सोरी" बोलने लगा। लेकिन आशा यह नए वातावरण में काफी घुल गई थी। अपनी हुलिया ठीक किए और बालों को सवेरे, वोह अपने बेटे की और देखकर बोली "कोई बात नहीं! मुझे काफी मज़ा आई!"। दोनों कुछ देर तक लहरों को देखकर, वापस चले जाते है। वहा दूसरे और महेश बार बार उन लड़कियों के बारे में ही सोचे जा रहा था के तभी एक साया उसके पास के रेत को घेर लेता है।

जब नज़रे उपर किया तो रेवती को खड़ी हुई पाई। फिर एक बार उसके नज़रें उसकी मदमस्त बदन पर चला जाता है।

रेवती : ताऊजी! बहुत बोरिंग है आप! चलो ना बीच का मज़ा लेते है!

महेश : अरे नहीं बेटा! आया तो हूं काम के सिलसिले में! तुम और रिमी जाकर मज़े करो! (बातो में कुछ ठेराव सा था)

रेवती बाजू में बैठ जाती है और अपनी हाथ महेश के हाथ पर जैसे ही रखी, महेश के जिस्म में एक करंट दौड़ गया। एक प्यारी मुस्कान थी रेवती की होंठो पर, महेश उन रस भरे अद्रो को ही देखे जा रहा था।

रेवती भी यह भांप लेती है और प्यार से पूछी "कुछ सोच रहे है आप?"। महेश वापस अपने होश में आता है "ओह! नहीं ऐसी बात नहीं! वैसे रेवती, यह आऊटफिट बहुत जच रही है!"। रेवती शरमाने का ढोंग करती हुई "आप को अच्छा लगा?"। महेश भी उसके हाथ पर हाथ मलता हुआ "बहुत!"।

रेवती : वैसे ताऊजी! ऐसे मौसम में तनहाई शोभा नहीं देती!

महेश : हाम्म! सही कह रही हो!

रेवती : आप नहीं समझे ताऊजी! में समझती हूं!

महेश उसके और आश्चर्य से देखने लगा और रेवती बिना विलंब किए अपनी चेहरे को आगे ले जाती है और अपनी होंठ महेश से मिला देती है। हैरानी से महेश अपनी होंठ हटाने का प्रयत्न करने लगा, लेकिन दिल नहीं माना! पूरी होश और दिल के साथ वोह रेवती की साथ देने लगा और दोनों एक दूसरे के रस चूसते गए।

समय का पता किसी को ना चला, बस यह दोनों अपने चुम्बन लीला में खोए चले गए, के ऐसे समय में अचानक ही रेवती आंखे खोल देती है और चुम्बन से अलग हो जाती है और "सोरी" कहके भाग जाती है। लेकिन अपने होंठ पर लगे कामुक नारी रस को कौन टाल सकता है, वैसे ही महेश अपने होंठ को जीव से पूरा चाट लेटा है और रेवती की स्वाद का पूरा आनंद लेने के बाद, केवल उसी के खयालों में खोता चला गया। बातो बातो में यह भी भूल गया था के राहुल के साथ भी दोनों लड़कियों के चक्कर थे।

लेकिन एक नए रिश्ते की और भटकने लग गया था महेश, इस बात का एहसास था उसे। क्या रेवती ने यह जान बुझ के की थी? या यह बस समय का ही लीला था, किसे पता?

........

वहा दूसरे और आशा और राहुल एक जूस कॉर्नर के वह आते है और अपने अपने जूस ग्लास लिए एक कोने में बैठ जाते है। माहौल तो पहले से ही रंगीन था और। जूस के चुस्की से और भी रोमांचक हो गया था।

लहरों के लम्हे को बार बार याद किए, दोनों के दोनों, बस चुप चाप जूस पीते गए। दोनों में से किसी ने कुछ ना कहा एक दूसरे से। लेकिन खामोशी में भी एक नजाकत थी कहीं ना कहीं।
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10-05-2020, 01:33 PM,
#80
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
रेवती के खयालों में महेश खोया खोया रहने लगा और बार बार केवल दिल से यही चाह रहा था के अगर और कुछ देर तक होंठ उससे सिले रहते ते! लेकिन इस ख्याल को ध्यान में रखे हुए बार बार वोह एक गिल्ट मेहसूस कर रहा था, लेकिन इस में भी एक अलग मज़ा आने लगा था। खैर, कैसे भी हो वोह अपने काम से काम रखने लगा और वहा दूसरे और अपने अपने जूस ख़तम किए हुए आशा और राहुल वहा से निकल पड़ते है और धीरे धीरे वापस बीच का मोयना करने लगे। मज़े की बात थी के अभी भी उनके हाथ जुड़े हुए थे एक दूसरे से और एक दबी हुई सी मुस्कुराहट दोनों के होंठो पर बरकरार।

राहुल : मा, सच में मज़ा अगाया आज! तुम्हे ऐसा नहीं लगता जैसे हम एक नई दुनिया में आ गए!

आशा : बिल्कुल! राहुल, (हाथ को बेटे के हाथ पर मलती हुई) जैसा तू मेरा हाथ थामा है, मुझे ऐसी ही थामे रखना! (कुछ शांत होने के बाद) तेरे पापा तो बस!

राहुल : क्या बात है मा? कुछ छुपा रही हो तुम मुझसे!

आशा : नहीं बेटा कुछ नहीं! बस ऐसे ही

राहुल : (मा के हाथ को और कस के जकड़े हुए) बताओ मा! कुछ किया पापा ने?

आशा : तेरे पापा ने तो हद ही करदी बेटा! कल रात भर (घिंनन से) बस रेवती का नाम लिए जा रहा था!!

राहुल मन ही मन खुश हुआ, के रेवती ने अपनी चाल चलना शुरू कर दी थी, लेकिन फिलहाल नाटक करता हुआ बोला "क्या??? पापा?"। लेकिन जब उसने गौर से अपने मा के चेहरे की और देखा, तो कुछ खास आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि आशा के चेहरे पर कुछ खास चिंतन नहीं थी। वोह केवल लहरों की तरफ देखे जा रही थी। इस मौके के फायदा लिए राहुल अब आशा के हाथ को उठकर, उसे चूम लेता है प्यार से "तो फिर पापा को भाव देना बन्द कर दो! मेरे पास रेहलो!"। बेटे के वाणी में एक मिठास थी और साथ साथ करवा सच भी! लेकिन पल पल आशा को ऐसी लगी के वोह धीरे धीरे अपने बेटे के और नज़दीक आ रही थी।

"राहुल! में.... क्या यह सही...एक्स"। उसकी होंठ पर उंगली रखकर राहुल उसे शांत कर देती है और फिर एक और करवा सच उसके मुंह से निकल जाता है "मा! मुझे यह भी मालूम है के तुमने दादाजी के साथ क्या क्या किए! और सच मानिए तो मुझे कोई ऐतराज़ नहीं! आप हो हो इतनी आकर्षित के कोई भी आपको बाहों में लिए जन्नत का सवारी कर लेगा!"। अब कहते कहते उसके हाथ आशा की पीठ की और चला jaata है और वोह बिकिनी स्टेप्स के इर्द गिर्द नग्न त्वचा को सहलाने लगा।

उफ़! आशा वहीं धसना चाहती थी उसके बाहों में। सच पूछिए तो आशा अपने बेटे के उपर से नग्न जिस्म की और काफी आकर्षित हो चुकी थी। इस बीच के माहौल में मा बेटे का प्यार एक दूसरे के लिए फुट फुट के उभर रहा था। ऐसे में बिना विलंब किए राहुल अपने मा का चेहरा थाम लेता है और प्यार से अपना होंठ उनके होंठ पर रख देता है। होंठो के मिलन होते ही एक करेंट सा दौड़ गया दोनों के जिस्म में से और आशा भी पूरा साथ देने लगी अपनी बेटे का। पहले तो प्यार से उसके बलो को सहलाती है और फिर उसके मजबूत पीठ पर नाखून फिराने लगी।

राहुल भी मौका देखकर अपने हाथ को आशा के पीठ पर थाम लेता है और पूरी पीठ पर मलने लगा। दोनों बस एक दूसरे के रस पीने में ही व्यस्त होते गए और आते जाते कुछ कपल्स भी उन्हीं को देखने लगे। तभी हुआ यू के अचानक आस पास के भीड़ का एहसास होते ही आशा कुछ शरमा जाती है और अपने आप को अलग कर देती है अपने बेटे से। "चल, कहीं और चलते है!" प्यार से आशा बोल परी और राहुल वापस उसका हाथ थामे चलने लगा। ठीक ऐसे ही समय एक महिला उनके और आने लगी। वोह औरत थी अफ्रीकन, लेकिन जैसे ही आगे आके "नमस्ते" बोली, तो दोनों मा बेटे हैरानी से उनकी और देखने लगे, खास करके राहुल, जो उस औरत को उपर से नीचे तक अपने आंखो से नापने लगा। चॉकलेट रंगत की त्वचा को चार चांद लगा रही थी उसकी भारी भरकम सी जिस्म, जो एक तरह से आशा के ही बराबर थी। उसने बहुत ही हल्की पीली रंग की शवल पहनी हुई थी, जो उसकी स्तन की दरार से लेकर नीचे घुटनों तक अाई हुई थी। चेहरे पर एक कातिलाना मुस्कुराहट और उम्र के हिसाब से आशा से बस कुछ ही छोटी थी। सबसे आकर्षित अंदाज़ थी उसकी बाल, जो एक अनानास फल के समान लिपटी हुई थी उपर के तरफ।

उन्हें देख मा और बेटा वहीं रुक जाते है और वोह महिला अपनी परिचय देती है "मेरा नाम वेरोनिका है, हैरान मत होइए, में भारत में काफी सालो से रह रही हूं!" एक प्यारी सी मुस्कुराहट के साथ वोह बोली। उन्हें देख आशा भी मुस्कराई "नमस्ते! आपका हिन्दी सच में बहुत अच्छी है!"। राहुल भी मुस्कुराए इन्हे देखे जा रहा था। फिर, वेरोनिका एक कार्ड आशा की हाथ पर थमा देती है और वापस नमस्ते कहके चलती बनी। कार्ड को हाथ में लिए आशा हैरानी से अपने बेटे की और देखने लगी, और फिर वापस कार्ड की और, जिसमे कुछ इस प्रकार लिखा हुआ था :

"लेडीज और उनके प्रेमियों के दिलकश शाम के नाम! पेश है "स्पाइसी कपल नाइट"

कार्ड के लखन को देखकर दोनों आशा और राहुल हैरान रह गए और आशा की दिल की धकन तेज़ हो गईं। राहुल कार्ड को देखते देखते अपने मा की और आवाज़ देने लगा "कहीं यह महिला हमें कोई कपल तो नहीं समझ रही है??" बार बार वोह अपने मा की और देखकर एक सवाली चेहरा पेश करने लगा और आशा बेचारी टमाटर बने शरमा जाती है। ऐसा अनुभव उसे कभी होगा, सोची भी नहीं थी उसने! खुद को और अपने बेटे को एक कपल की तरह तसव्वुर करके बहुत ज़्यादा उत्तेजित हो जाती है।

राहुल कार्ड को अपने शर्ट्स के पॉकेट में रखकर अपने उत्तेजना का ऐलान किया "हम चलेंगे मा! आज शाम को ही!"। "बेटा, लेकिन हम कैसे..." आशा की दिल की धड़कन वहा मौजूद हर किसी को सुनाई दे जा सकती थी इस समय। उस चिंतित टमाटर समान चेहरे को वापस एक बार चूम लेता है राहुल "मा! हम जाएंगे!"। उस अचानक आए हुए चुम्बन से आशा फिर गदगद हो जाती है और एक तिनका आंसू उसके गाल पर टपक परी। राहुल वोह पोंछ देता है और मा को गले लगा देता है।

सच पूछिए तो इस समाय, आशा के नज़रों में। राहुल महेश से कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो गया था।

.....

वहा दूसरे और महेश बेचैन होकर वापस अपने बेटी और भांजी को यहां वहा तलाश करने लगा। यह बेचैनी किसी बाप की नहीं थी, बल्कि एक मर्द का था! तलाश करते करते अखिर्कर उसे रेवती दिख जाती है, जो हमेशा की तरह गुलाबी बिकिनी में मस्त लग रही थी। इस समय वोह बैठी हुई समुंदर की और देखे जा रही थी। आस पास महेश ने जब दखा तो रिमी का कहीं अता पता नहीं थी। इस बात का फायदा उठाएं महेश जाकर सीधा रेवती के बाजू बैठ जाता है और अपने ताऊजी का एहसास एहसास मिलते ही रेवती भी अपनी मूह को उनके और मोड़ लेती है "अरे ताऊजी आप???"।

महेश : तुम सही कह रही हो रेवती! तन्हाई अच्छी बात नहीं!

रेवती : (नाटकीय अंदाज़ में) ताऊ, उस घटना के लिए आई एम्.....

महेश : कोई बात नहीं बेटा! इट्स ओके। मुझे कोई ऐतराज़ नहीं है इस बात से! (कुछ ठहर के) सच पूछो तो... यह गलती दुबारा हो सकता है!

रेवती शरमा जाती है और समुंदर की और देखने ही वाली थी के वापस महेश उसकी जबरे को हाथ से थामे, उसकी चेहरे को अपने और घुमा लेता है। एक बार फिर से उसके आंखे अपने भतीजी की रसीले होंठो तक चला जाता है। बिना विलंब किए वोह अपने चेहरे को और नज़दीक लेके आता है, लेकिन चूमता नहीं है, क्योंकि उसे रेवती की प्रक्रिया भी देखना था। खुशकिस्मती से रेवती भी रजामंदी देती हुई, खुद महेश के चेहरे को अपने हाथो से जकड़े अपनी होंठ उससे सिल देती है।

फिर एक बार ताऊ भतीजी एक प्रेम लीला में बन्ध जाते है। यह चुम्बन की दूसरी घरी थी, और इसलिए महेश और ज़्यादा शिद्दत के साथ चूम रहा था, मानो पिछले चुम्बन का सारा कसर पूरा कर रहा हो!

अब चुम्बन से अलग होकर महेश उठ जाता है और साथ साथ रेवती को भी उठा देता है। "कहीं और चले" अपने ताऊजी के मुंह से यह अल्फाज़ सुनके रेवती और ज़्यादा उत्तेजित हो जाती है और रजामंदी में सर को हीलाई। दोनों एक दूसरे के हाथ थामे, कुछ ही दूरी पे एक पेड़ दिख जाता है जिसके इर्द गिर्द का माहौल काफी सुनसान थी। झट से दोनों उस पेड़ की बौर भाग जाते है और सारे दुनिया रस्मो को भुला के, एक बार पिर दोनों एक दूसरे पे टूट परे। बिना किसी झिझक के महेश अपने हाथ को रेवती की स्टेप्स की तरफ लेके जाता है और जैसे ही इस बात की आगाज़ उसे होती है, तो वोह खुद पीछे हाथ ले जाकर अपनी स्टेप्स खोल देती है और महेश को पेड़ के शाखा पर धकेल देती है।

अब पीठ के बल तिरछा खड़ा हुआ महेश अपने आंखे टटोले रेवती की ब्रा से आजाद हुई आमो को देखने लगा। उफ़! क्या दिलकश नज़ारा था! नग्न स्तन पर भूरे रंग की निप्पल कमल लग रही थी और इस बार रेवती खुद मुंह से सिसकियों निकलती हुई अपनी स्तन को अपनी हाथो से मसलती गई "ओह ताऊजी! ऐसे मत देखिए मुझे!! कुछ होता है मुझे!"। प्यार से मीठी वाणी भरी शब्दो को सुनके महेश के अंदर का सांड जाग जाता है और रेवती को बाहों में लिए, उसके गाल, गर्दन और होंठ को फिर एक बार बारी बारी चूमने लगा। अपनी पूरी चेहरे और गर्दन पर गीली गिली एहसास से रेवती पागल सी होने लगी और वोह अब महेश के चेहरे को नीचे की और धकेल देती है, जिससे अब महेश उसके मीठे मीठे आमो के चारो और अपना होठ फिराता गया।

निप्पलों पे मुंह और हाथो से आम दबोचे जाने पर रेवती और सिसकने लगीं। पेड़ की छाया के तेले यह दोनों नए नए उभरे हुए प्रेमी एक दूसरे के आगोश में खोए रहे और रेवती महेश के बालो को और जकड़ती गई, जैसे जैसे महेश स्तन को चूसता गया। "सच में! बाप बेटे, दोनों के दोनों सांड की पैदाइश!" मन ही मन मुस्कुराए रेवती अपनी सोशन का आनंद लेती गई और महेश को और उकसाती गई। महेश लट्टू बना स्तन को कभी चूसता गया, मसलता गया और वापस फिर होंठ तक होंठ ले आता गया। यह रास लीला चलता गया बेझिझक और बेहया, दुनिया से बेखबर।

वहा दूसरे और रिमी यूंही बीच का सैर करते करते पहुंच जाती है अपने भाई और मा के पास। दोनों के शारीरिक भाषा को देखकर, वोह समझ जाती है के कुछ तो ज़रूर हुआ है इन दोनों के बीच में। राहुल और आशा हाथ पे हाथ धरे रिमी की और देखने लगे और रिमी एक पीक लेलेती है दोनों की "क्यूट कपल भइया!" कहते हुए आंख मार लेती है और आशा उसकी कोहनी पर एक थपकी देने लेगी "हट! बदमाश कहीं की, बहुत बोलने लगी है तू आजकल!"। राहुल भी मुस्कुरा उठा, दोनों महिलाओं के बात चित से।

रिमी : (मा को उपर से नीचे देखती हुईं) गोश मा! कयामत शब्द भी फिका लगे आपकी टिरफ में! क्यों भइया??

आशा बस शर्माकर मुस्कुराई। अब बच्चो के नज़र से अपनी कामुकता को छुपाना आसान नहीं था।

राहुल : वैसे सेक्सी तो तू भी लग रही हैं! में तो दो दो सेक्सी मालो के बीच उलझन में आ गया!

"माल???" एक साथ दोनों मा बेटी बोल परे और बारी बारी राहुल को थपकियों से मारने लगे। "सोरी सोरी लेडीज!" राहुल हसी हसी कान पकड़ लिया और ऐसे में उसकी पॉकेट से वोह कार्ड नीचे गीर जाता है, जिसे रिमी देख लेती है। कार्ड को उठकर जब रिमी गौर से देखने लगी तो राहुल कुछ खास रिएक्ट नहीं की, लेकिन आशा टमाटर हो गई फिर से। कार्ड के लेखन को पड़कर रिमी आंखे चौड़ी किए दोनों मा और भाई की तरफ देखने लगी "वाउ मा! भइया! आप दोनों तो छुपे रुस्तम निकले!"

दोनों के दोनों एक दूसरे को देखकर दबे हुए अंदाज़ में मुस्कुरा उठे और हैरानी से रिमी की और देखने लगे जब उसके मुंह से निकल जाती है के "इस क्लब में आप दोनों को ऐसिस्ट में करूंगी! मिलते है शाम को!" यूं कहके वोह मटक मटक के बीच के सैर को वापस निकल पड़ती है और बेटी के सामने अपने नए रिश्ते का खुलासा किए आशा काफी उत्तेजित हो जाती है। वैसे, यही हाल राहुल का भी था।

.......

वहा दूसरे और, ताऊ और भतीजी में प्रेम वासना इस हद तक आ चुकी थी के शाखाओं पर अपने पीठ जमाए महेश खड़ा खड़ा सिसकियां दिए जा रहा था और उसके लिंग को रेवती चूसे जा रही थी। बॉब बॉब की मिठी आवाज़ उस माहौल में चार चांद लगा रही थी और सुपाड़े से लेकर बीच के हिस्से तक रेवती चूसती गई और वैसे वैसे महेश "आह! ओह!!" करता गया। रेवती की खुले हसीन ज़ुल्फो पे हाथ फेरता हुआ महेश बार बार उसे और अपने लिंग की आगोश में लेता गया और रेवती भी अपने क्रिया में पूरी मगन होती गई।

अपने ताऊजी के बालो से घेरे जांघो को जकड़कर उसे और मज़ा आने लगी थी लिंग को चूसने में और सच में गोआ के माहौल का असली मज़ा तो अब आने लगा था महेश को।

जब सर से पानी उपर चड़ने लगा, तो एक हुंकार देते हुए महेश वहीं के वहीं रेवती के मुंह में अपना माल छिड़कने लगा और रेवती भी पूरी साथ देने लगी! हा, घिण तो अाई पहले पहले, लेकिन कुछ बात थी अपने ताऊ को उकसाने में, के वोह भी उत्तेजना से सारा का सारा माल को घटक लेती है।

दिल थामे और तृप्त होकर महेश नीचे गांड़ के बल बैठ जाता है और रेवती भी उसके बाहों में पसर जाती है। एक नए रिश्ते का आरंभ हो चुका था और बाहों में बाहें डाले इन दोनों ने वोह साबित कर दी थी!
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