kamukta Kaamdev ki Leela
10-05-2020, 12:59 PM,
#11
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
दादी के आखरी कुछ अल्फाजों से अजय का दिल जोरों से धड़क उठा और वोह सोचने लगा क्या उसके कान सही सुन रहे थे या मन में कोई वहम हुआ। उसने अपने जांघ पर रखे दादी के हाथ पर अपना हाथ रखकर मलने लगा। जवाब में यशोधा देवी मुस्कुराई।

अजय : में कुछ समझ नही दड़ीमा!

यशोधा देवी को जैसे डायबाएतिस होने चला था अपने पोते के मासूमियत पर। उन्होंने फिर से उसके दूसरे गाल को भी चूम लिए और सोफे में से ऊपर उठती हुई अपने पोते को अपने कमरे में आने का इशारा किया।

जल्द ही अजय अपने दादिमा के पीछे पीछे उनके कमरे की और जाने लगा। क्योंकि रामधीर भी इस वक्त लाइब्रेरी वाले कमरे में किताब ने मगन था, प्राइवेसी में कोई प्रॉब्लम नहीं था। अजय और यशोधा देवी कमरे में पहुंच जाते है और यशोधा देवी सारे खिड़कियां और पर्दे बंद करने लगी। अजय सोच में पड़ गया।

यशोधा देवी : अजय, तुझे कुछ बचपन के मजेदार किस्से सुनता हूं! लेकिन जब तक मै ना ख़तम करू, कोई सवाल मत करना, समझा? (प्यार से)

अजय : (मुस्कुराकर) दादी! कहानी आप से सुने हुए बरसो हो गए! बचपन की बात ही अलग थी। (अपने दाड़ीमा के मोटे मोटे सारी में लिपटी जांघों पर सर रखता हुआ लेट गया)

यशोधा देवी : एक बार तो किया हुआ अजय! (थोड़ा शरमके) हाए मुझे शरम आती है बोलने में! (पुरानी अंदाज़ में पल्लू को मूह पर रखती हुई) एक बार....

अजय : (अपने दादी के पल्लू से खेलने लगा) अब बोलिए भी तो! मेरी प्यारी दाडिमा!

यशोधा देवी : अरे मेरे बच्चा! (गाल को सहलाती हुई) एक बार जब तू बहुत छोटा सा था, हमारे घर पे एक छोटे छोटे बच्चो की फांसी ड्रेस एग्जीबिशन हुए थी, फंक्शन के दौरान तुझे एक बार मैंने और तेरी मा ने मिलके एक मस्त मीठी सी लाल रंग की फ्रॉक पहना दी थी। (शर्मीली अंदाज़ में खिखिला उठी)

अजय : (हैरान) क्या???? सच??

यशोधा देवी : अरे हां! तेरा बाप बहुत नाराज़ हो गया था! लेकिन हाय!!! कितना प्यारा लग रहा था तू! ऐसा लगा जैसे राहुल को एक और बहन मिल गया हो! (ना जाने क्यों वह यह सब पुरानी बातों में खी गई थी)

अजय : दादी आज अचानक यह सा.....

यशिधा देवी अपने पोते के लबों पर हाथ रख देती है और एक अजीब कामुक अंदाज़ में अपने दांतो तले लबों को मसल दिया। उसके मन में कहीं अनकही उमंगे जग उठी और अपने पोते को उठा के वह खुद उसके रूबरू बैठ गई और उसके चेहरे को अपनी हाथ में थाम ली । अजय के धड़कन कुछ ज़्यादा तेज़ हो गया, कुछ तो था जो उसकी दादी कहना चाहती थी बरी बेसब्री से!

यशिधा देवी : अजय बेटा! तुझे कल के प्रोग्राम में देखा तो मुझे अपने जवानी का आलम नजर अगाई! ईश!! यह में क्या क्या कह बैठी!

यशिधा को इस बात का पता ही नहीं थी के उसी कमरे में खुद गाजिधरी खड़ी थी हो मन ही मन कुछ मीठी मिठी मंत्र जप रही थी। उसकी आंखों में शैतानी वाली शरारत थी, लेकिन सूरत पे अप्सराओं वह वाली भोलापन! अजय को अपने दादी की कहीं गई हर एक बात बेहद अजीब लग रहा था! लेकिन जिस्म में एक हुलचुल हो रहा था! एक गुदगुदी जैसा!

यशोधा देवी : मेरा बच्चा! एक दिन हसान करदे इस बुढ़िया पे! बस एक बार मुझे अपने ही जवानी का प्रतिबिंब दिखा दे!!!! (लज्जा के मारे जिस्म में एक हलचल सी होने लगी)

अजय : (थोड़ा परेशान होता) म मतलब??? आप चाहती क्या है दादी??

यशोधा उठके अपनी अलमारी से एक पुरानी मस्त हरा रंग की साड़ी और ब्लाउस के आती हुई बड़ी अदा के साथ अजय के हाथो में थाम दिया। उस सारी के स्पर्श से अजय का जिस्म कांप उठा, ना चाहते हुए भी उसके लिंग में कुछ हलचल सी होने लगी। आंखे नम होने लगा शर्म के मारे!

अजय : दादी! में...... कैसे.... में...

यासिधा देवी अपनी हाथ को उसके जांघ पर रखने के चक्कर में उसके जागृत होता लिंग को स्पर्श कर लिया। एक करेंट दौड़ गई उस बूढ़ी औरत के जिस्म पे। लेकिन यह क्या, एक मज़ाक से की गई बात सर उसका पोता इतना उत्तेजित क्यों ही गया?

दादी पोता एक दूसरे को देखते रहे और यशोधा नाराज़ होती हुई घुस्से से बोल उठी "यह क्या अजय!!!!!! उठ यहां से!! बेशरम!!"

अजय घबरा गया और हाथ में सारी और ब्लाउस लिए खड़ा हो गया। लेकिन पैंट में लिंग है कि कोई भी समझौता नहीं की थी! वोह तो बस......

अजय का चेहरा सफेद हो गया और यशोधा घुस्से से बोल परी "क्या तुझे यह सब अच्छा लगता है????? हाई दैया!!!!"। वोह इस नई खेल में एक रोमांच की अनुभव करने लगी और एक दरोगा कि तरह अपने पोते को डांट ने लगी।

अजय : दादी! में!! दरअसल.....

याशिधा देवी : चुप हो जा!! अगर तू चाहता है के मेरा घुस्सा कम हो, तो निकल जा मेरे कमरे से!!!

अजय : नहीं दादी! आप जो देखना चाहती है, में दिखाऊंगा!! (अपने हाथ में थामे सारी और ब्लाउस लिए वॉशरूम भाग गया)

यशोदा देवी अपनी नजर अपने आइने की और देखने लगी जिसमें गजीधरी प्रकट हो चुकी थी। दोनों औरतें एक दूसरे को देखे कामुक अदा से मुस्कुरा उठी। जी हां! दोस्तों, गहिधरी की मुलाकात हो चुकी थी यशोधा से!

यशोधा देवी : (बरी अदा के साथ) हाए राम! मोरे मईया! मेरा तो संसार भ्रष्ट हो गया री!! (झूठी घुस्से में) यह आज कल के लोंदे लौंडिया बनना चाहती है!!!!! हाय!!!

गहोधरी : बेचारे को लिपस्टिक और पाउडर में दे देते! कैसी दादी है आप!! (नाटक करती हुई) अपने ही पोते को लौंडिया बना दिया!

यशोधा : हाय!!! (उंगली को दांतो तकर काटते) बहुत बुरी हूं में!!

दोनों औरतें हंस देते है धीरे से और गाहिधरी मन में सोचने लगी "अरे मादा तो श्री कृष्ण भी हुए थे गोपियों के हसी मज़ाक में! और यह आजकल के लोंदे!" इतना सोचना था कि वोह आइने में से गायब हो गई। कुछ ही पलों के बाद वॉशरूम का दरवाजा खुल गया और यशोधा की सासें तेज़ हो गई।

वहा दूसरे और ससुर के पसीने से नहके आशा जैसे तरो ताज़ा हो गई, वह एक साधारण सी सारी पहने रसोई में घुसी तो सामने आके खड़ी हुई नमिता! बदन में से पसीने के बू वोह भी ताज़ा ताज़ा! दरअसल उसे सुबह सुबह से नित्य योग करने की आदत थी, नतीजा यह थी के उसकी बदन सुडौल और फुर्तीला थी! लेकिन अब तो कल की घटना के बाद उसके बदन को अब अपने ही पसीने का चस्का लग गई थी।

मा बेटी दोनों पसीने के स्पर्श के बाद सामने सामने खड़े रहे! फर्क यह था के एक अपने ससुर के नमक में भीगी हुई थी, तो दूसरी अपने है नमक की दीवानी हो गई थी। बेटी की पसीने के बू से आशा थोड़ी परेशान दिखी, लेकिन अपनी की गई हरकत को याद करके कुछ ना बोली!

नमिता : मा! भूख लगी है! हलवा बना दो ना प्लीज़!!

आशा : हा बेटा! ज़रूर! (मज़ाक में) बेटी यह कौनसी साबुन इस्तेमाल कर ली तूने! एकदम नमक जैसी गंध आ रही है!

नमिता : (शरारत में) मा! आपका भी बुरा नहीं है! (मा के करीब जाकर सोंघती हुई) हम! मजेदार लगता है!

आशा भी अपनी बेटी को सोंघने लगी! "तेरा तो कुछ ज़्यादा ही है! लेकिन काफी नमकीन लग रहा है!" अपने मा के कथन से नमिता को एक शरारत सुझी और वोह बरी अदा से अपने मा के गर्दन से ताजी तजी नमकीन पानी को अपने मस्त गुलाबी लबों से चख ली! ऐसे अनुभव से आशा की बदन में एक सिहरन उठी।

नमिता : आप चाहो तो मेरा भी चख्के देख सकती हो मा!

आशा की दिल ज़ोर से धड़क उठी और शर्म के मारे वहा से चल परी हलवा बनाने के लिए।

जो उन दोनों को मालूम नहीं थी, वह यह था के इनके हरकत को एक शक्स बरी शिधक्त से देख रहा था थोड़े ही दूर से।

.......

वहा यशोधा अपने कमरे में बेचैनी से सामने देखने लगी के एक बेहद हसीन यूविका हरी रंग के सारी और ब्लाउस पहने खड़ी थी, बाल बांधा हुआ और अदाएं शर्मीली! यह बलखाती जवानी और कोई नहीं बल्कि अजय थी। एक बात तो तैर थी के दो चीजों से यह सजधज सफ्ल हुआ था। पहली बात अजय के लंबे बाल, हो हमेशा स्टाइल से वोह पोनी में रखता था और दूसरा उसका चेहरा करीब काफी हद तक अपने दादी से मिलता जुलता था।

अजय के इस हुलिया को देखकर यशोधा के मुंह से निकल गई "हाय! में मर जाओ! वारि वारी ही गई! आ अजय! यह पास बैठ मेरे!"

अजय भावुक होके : दादी! आपका दिल रखना मेरा स्वाबहग्य है!

यशोधा (पोते की गले लगती हुई) हाय मा!! एक दम मेरी प्रतिबिंब है तू!!!!! उफ्फ!

दूर से ऐसे लगा मानो एक औरत एक और औरत के गले लग रही हो। अजय थोरा गुदगुदाने लगा इस पोषक में और मन में यह दर था के कहीं झट से कमरे में कहीं उसके दादाजी ना टपक परे! उसके दिल की धड़कन तेज हो गई "दादी! के क्या में वापस बदल...... "

इससे पहले वोह कुछ केह पाता, यशोधा उसके होंठों की अपने उंगली से शांत कर देती है! "नहीं मेरा बच्चा! अपनी लाडली दादी के और एक बात मानले! (शर्मा के) ऐसे ही कुछ देर रह जा!!"

इस वाक्य से अजय का दिल ही नहीं धरका, बल्कि उसके लिंग सीधा टेंट की तरह खड़ा हो गया जिसका सारी में भी अनुमान लगाया जा सकता था ।

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10-05-2020, 12:59 PM,
#12
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
शर्म के मारे अजय पानी पानी हो रहा था और यशोधा उसे उस्काने में मगन थी। फिर कहीं दिल के कोने से एक आवाज़ निकली के दादी के विरूद्ध जाना शायद ठीक नहीं होगा। लेकिन एक चीज जो उसके मन को खटक रहा था।

अजय : (अपने पल्लू से खेलता हुआ) दादी, आप ने यह क्यों कहा के इससे मेरे मोम और डैड को मज़ा आ सकता है! (भोला सूरत लेके) मुझे कुछ खास समझ नहीं आया!

यशोधा : (उसके गाल खेंच ती हुई, जैसे कोई नवेली दुल्हन हो) अरे मेरा बच्चा! में इसलिए बोल रही थी क्योंकि मैंने खुद कल शाम के फंक्शन में तेरे अपने बाप को तुझे तारते हुए देखी थी! (बिना लज्जा के बोल दी)

अजय का दिल जोरों से धड़क उठा। मानो किसी ने मीठी खंजर झोंक दिया हो सीने में। उसका अपना बाप???? लेकिन वोह तो केवल एक आइटम नंबर था, एक मामूली मनोरंजन! लेकिन असर तो होना ही था। घर में कामुकता का माहौल जो था!

यशीधा : में तो कहती हूं के (पल्लू पकड़ कर शर्मा के) अपने बाप से जरा बचके रहना! कहीं कुछ..... (अपनी ही कहीं बातों से वोह लज्जित हो गई और चुप हो गई)

अजय : (शर्म के मारे लाल हुआ) क्या दादी!! कुछ भी कह देते हो! धत्त!

यशोधा : बेटा! हो सके तो इस आदत को थोड़ा नियंत्रण में रखना! तू जानता है ना में तुझसे कितना प्यार करती हूं!

दादी पोते में ऐसे ही बातें चलती गई के तभी किसी के आने का आहट आयि दोनों को और अजय बिना कुछ कहे शर्माकर झट से बाथरूम घुस गया और फ्रेश होके अपने नॉरमल अवस्था में वापस आगया और देखा कमरे में उसके दादा रामधीर प्रवेश कर चुके थे। पति से नज़रें हटके अपने पोते की तरफ देख यशोधा खिलखिला उठी और गले लगा दी "अरे मेरे लाल! दादी को थोड़ा अब आराम करने दे!"

अजय बिना कुछ बोले, एक अजीब मुस्कुराहट लेके कमरे में से निकल परा। उसे निकल देख यशोधा फिर मुस्कुरा उठी। अपने पोते को जाके देख रामधीर : यह दादी पोते में क्या गुल खिल राहा था?

यशोधा मुस्कुराई "एजी! कुछ खास नहीं! अयिये आपका थोड़ा मुंह मीठा करू!" कहके अपने पल्लू को नीचे गिरा दी और रामधीर को अपने विशाल मोटे स्तन से चिपका दिया। रामधीर ब्लाउस के उपर से ही अपनी पत्नी की धके हुए निप्पलों का रसपान करने लगा।

रामधीर : (स्तन को मसलता हुआ) कहो तो इनमें दूध का बंदोबस्त फिर से करू?

याशीधा शरमा गई लाल लाल होके "धत्त!! कुछ भी बोलते ही आप! मेरा दौड़ तो गुजर चुकी है! कोई और ही खोज लीजिए आप!! बाबा! मुझसे तो नहीं होगा!

बात तो कहीं गई थी मज़ाक में, लेकिन रामधीर के मन में सिर्फ और सिर्फ आशा की तस्वीर आने लगी।

...........

अब तकरीबन लंच का समय ही गया था, सारे सदस्य बैठ चुके थे, सिवाय आशा और रमोला के जिन्हें परोसने की आदत थी पहले। रामधीर के आने तक किसी की भी हिम्मत नहीं हुई शुरवात करने की, क्योंकि नॉर्मली रामधीर ही श्री गणेश करते थे। आज माहौल कुछ अजीव था इस परिवार में। तीखे नज़रें एक दूसरे को तार रहे थे, तो कहीं शर्म के परदा हट रहे थे।

एक तरफ नमिता अपने भाई से नज़रें चुरा रही थी और जवाब में राहुल भी नटखट अंदाज़ से अपने दीदी को देख रहा था। राहुल के नज़रें दीदी पे थी तो वहा दूसरे और आशा सब्जी परोसने के चक्कर में जानबूझ के अपनी मोटे मोटे स्तन के दरार कि नुमाइश करती गई, जो झुकने ने के वजह से ब्लाउस में से झांक रहे थे।

उसे बखूबी मालूम थी के उसकी गुब्बारों पर उसकी ससुर रामधीर की नज़रें ज़रूर होगी और सच भी तो थी यह बात, क्योंकि रामधीर भी सब्जी मांगने के चक्कर में एक बढ़िया सा फिल्म ट्रेलर देखने को मिला जो था! आशा को भी इस बात से भी ऐतराज़ नहीं थी, बल्कि उसे अन्दर ही अन्दर बहुत मीठी मीठी एहसास हो रही थी और दिल में उसकी एक ही आवाज़ गूंज उठी, के काश महेश भी ऐसे ही तीखी नज़रों से उसे देखता।

एक तरफ यह सब थे तो दूसरे तरफ एक अजीब माहौल समा हुआ था, गौरव बार बार अपने ही बेटे से नज़रें झुकता गया और रमोला थी के बार बार अपने पति और बेटे के तरफ ही देखती गई। कुछ सोच रही थी शायद पर क्या यह तो समय ही बताएगा, लेकिन माथे पे शिकन ज़रूर थी।

रेवती (अपनी मा की और) मम्मी क्या हुआ? ऑल ओके?

रमोला : (मन में) अब इस नकचरी को कैसे समझाऊं के मेरे मन में क्या क्या चल रहा है!! (अपने पति की तरफ) इनको लेके में क्या करू! कहीं कोई कांड ना कर दे!

वह कुछ बोली नहीं बस रेवती को देखकर मुस्कुराई और बरी ममता से बोल परी "कुछ चाहिए बेटी? दाल वगैरा?" फिर अपने पति की और "आप को?"

गौरव : वोह मटन थोड़ा पास कर दो! (एक लेग पीस हाथ में लिए जानवर की तरह टूट परा)

खाने का माहौल तो कुछ संगीन था लेकिन फिर सभी अपने अपने कमरे में प्रस्थान करने लगे। आखरी में जब राहुल उठा तो बेसिन के सामने नमिता खड़ी मिली। नज़रें तीखी और अपने लट को उंगलियों तले खेलनी लगी। राहुल भी नटखट अंदाज़ से देखने लगा।
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10-05-2020, 01:17 PM,
#13
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
नमिता : साफ होके ऊपर छत के स्टोर रूम में मिल! (उसके कान में फुसफुसाआई) तेरा इंतज़ार करूंगी!

नमिता इतना कहके चल देती है और बरी ठुमक ठुमक के चल रही थी ऊपर के तरफ। राहुल हाथ को टॉवेल से साफ करता हुआ अपने दीदी की मदमस्त मोटी मोटी नितम्ब में खोया हुआ था के अचानक सीढ़ियों पे ही वह रुक गई और पीछे मुड़कर अपने भाई को देखकर मुस्कुराई।

अपने दीदी के उपर चले जाने के बाद राहुल से रहा नहीं गया और झट से ऊपर की तरफ चल परा लेकिन फिर स्टोर रूम के अंदर पहुंचते ही एक खामोशी महसूस होने लगा उसे। यह वहा देखने लगा लेकिन नमिता कहीं नजर नहीं आई। संकोच भरे मन और उभरता हुए लिंग लिए वह यहां वहां देखने लगा। कमरा काफी हरा भरा था, के तभी उसे घुंगरू की आवाज़ आने लगा, सामने एक युवती की मनमोहक पेंटिंग थी, जो गंव की लिबाज़ में थी, हाथ में मटकी और पैरों में पायल थी, और वस्त्र के नाम पे केवल एक सारी लिपटी हुई थी बदन पर!

कुछ थी पेंटिंग में जिसके वजह से राहुल उस चित्र के और करीब जाने लगा। जैसे ही वोह रुका तो पेंटिंग में चेहरा मुर्कुराई और पूरी कमरे में एक तेज़ रोशनी फेल गई। रोशनी धीमे धीमे ख़तम होता गया और राहुल हैरान रह गया सामने का दृश्य देखकर!

सामने खड़ी थी नमिता, बिल्कुल उसी पोषक में जो पेंटिंग में थी। हाथ में मटका लिए बरी अदा से मुस्कुरा रही थी। मज़े की बात थी के उसकी जिस्म बिल्कुल वहीं पेंटिंग वाली की तरह ही हरी भारी थी और केवल साड़ी में लिपटी पपीते बहुत मनमोहक लग रही थी। उसकी होंठों पे काफी लालिमा आ गई थी, मानो चूस जाने को बेताब हो रहे हो। राहुल का सब्र तब टूटा जब अचानक ही उसके दीदी के मुंह से निकाल गई "अये साहब! आइए ना!" और अपनी होंटो की काटने लगी।

राहुल के अंदर हैवानियत जाग उठा और अपने दीदी को अपने बाहों में जकड़ लेता है और उसके प्यासे होठ पर अपने होठ रख दिया और रस भरे अधेरो को जी भर के चूसने लगा। साथ साथ अपने सारे कपड़े उतारे हुए अपने दीदी के लबों का रसपान करने में व्यस्त हो गया एक बेचैन भाई और उसकी प्यारी मनचली दिदी भी उसका साथ दे रही थी।

*पुयुच पूउच एमएमएम प्यूच* की मनमोहक आवाज़ पूरे स्टोर रूम में गूंजने लगी। मज़े की बात यह थी के बिना कोई विरोध के नमिता अपने भाई की वासना को प्रोत्साहित भी कर रही थी और साथ साथ अपने आप को उसके लिए उकसा भी रही थी। रूम में यूं तो खिड़की नहीं थी, लेकिन हल्के हल्के दीवार के वेंटिलेटर में से धीमी रोशनी कमरे को एक अलग ही आकर्षण दे रही थी, जिसका फायदा उठा रहे थे यह दो भाई बहन जी पूरे नंगन अवस्था में अब आ चुके थे अब!

ज़मीन पर कपड़े लेट गए और पास में रखा एक गंदे खटिया पर दोनों भाई बहन आस पास लेट गए, चिपके हुए। राहुल पहले गौर से अपने दीदी कि जिस्म की एक एक हिस्से को देखने में मशरूफ हो गया, उसके पपीते से लेकर उसके गहरी नाभि तक और फिर नीचे उसकी मचलती बलखाती योनि पे। योनि के ऊपर काफी घुंघराले बाल थे, लेकिन जो चीज सबसे ज़्यादा अकर्शित थी वोह थी उसकी योनि लबों के बीच का एक पतली लकिर।
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10-05-2020, 01:18 PM,
#14
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
राहुल आंखों से आंखे मिलाकर फिर एक बार और अपने दीदी के रसपान करने लगा, मुंह से मुंह मिलके और आहिस्ता आहिस्ता जिस्म आगे पीछे एक दूसरे से रगड़ने लगे। राहुल का मोटा फनफानाता लिंग अब दीदी के योनि से टकराने लगा, लेकिन कोई और गुस्ताखी नहीं की। प्रेम लीला का यह शुरवात तो ज़बरदस्त रहा और धीरे धीरे दोनों के बीच वर्तालाब वहीं शुरू हो गई।

नमिता : (गले और कान पे चूमे जाने पर) ओह राहुल! ओह!! तूने मुझे पहले क्यों नहीं थामा ऐसा! ओह!

राहुल : (चूमते चूमते) दीदी! में अंधा था अब तक! पर अब मुझे नयन मिल गया है! (चूमता गया)

नमिता : उस दिन तुझे अपने सबसे खास जगा नहीं दिखा पाई! तूने तो मुझे हटा के निकाल गया! (सिसकती गई)

राहुल : (कान को चूमकर) कौन सी जगह दीदी?? प्लीज बताओ!!!

नमिता अपने भाई को साइड पे धकेल देती है और एक कामुक अंदाज़ में अपनी हाथों को ऊपर करके अपनी बगल दिखाने लगी उसे। बगल में झांटे थे जो पसीने से भरपूर थे और बदबू की तो बात ही कुछ और थी, लेकिन राहुल की यह दृश्य मनमोहक लगा। नज़रें दीदी के चेहरे के तरफ किया तो पाया के वह तो बार बार अपनी दांतो तले लाबों को दबाए जा रही थी।

मानो अपनी बगल को भाई की और पेश कर रही थी!

नमिता : कैसा लगा तुझे?

राहुल : दीदी! तुम इन्हें क्यों छुपाती गई!!!!! उफ्फ! कैसा गंध है! क्या झांटे है! उफ्फ

नमिता : (नाटक करती हुई) हाय!! तुझे अच्छा लगा?? तो रोज़ तुझे दिखाऊंगी! सोचती थी के यह बगल के झांट कितने बड़े हो गए थे, कांट दू! लेकिन अब नहीं! में (सिसक ती हुई) चाहता हूं इसमें और पसीना आए और झांट बड़ जाए इनमें!!!!

राहुल (नाक से बगल को सुंग्ने लगा) एमएमएम उफ्फ!! इनकी बात ही कुछ और है! खबरदार जो इन्हें हटाया दीदी!! मुझसे बुरा कोई नहीं होगा! (झांटे को मुंह में लेता हुआ उन्हें चूसने लगा)

नमिता : हा!!!!! ऐसा ही चूस इन झांटे को! उफ्फ पसीने से लपलप हो गई है! उफ्फ

राहुल अब दूसरे बगल का भी वैसा ही आदर करने लगा और अब धीरे धीरे उसके होंठ दीदी के पपीतों पर टिक गया और निप्पलों से लेकर इर्द गिर्द चूमने लगा। मीठी मीठी एहसास से नमिता पागल हो उठी और अपनी भाई के चेहरे को अपने सीने से दबा दिया। स्टोर रूम का माहौल ही इतना कामुक हो उठा के मानो कोइ प्रेमलीला का मैदान हो!

लेकिन यह तो होना ही था दोस्तों! आखिर वासना को कब तक दबाए रेखा जा सकता था!

खैर, राहुल और नमिता अपने काम लीला में व्यस्त थे और ऐसे में दोनों के योनि लिंग एक दूसरे को दस्तक देने लगी, लेकिन बात इससे आगे नहीं गई। ऐसे में यह हुआ के उस खटिए के शेष भाग पे खड़ी थी गजोधरी, जिसने बिना संकोच किए राहुल के पिठ के ऊपर अपनी एक पैर को रखकर दबा दी जिससे राहुल का जिस्म आगे धकेलता हुआ अपनी दीदी से यूं चिपक गया के उसके लीग योनि की दुआर में अपना पहला हमला मोड़ लिया!

नमिता थोड़ी परेशान हो गई इससे! और भाई को दूर धकेलने लगी लेकिन मदहोशी इतनी थी के राहुल ने माना नहीं और अपने जिस्म को आगे आगे सरकार अपने दीदी के योनि में घुसता गया। और ना घुसता भी तो कैसे! गजोधरी जी अपने पैर टिका के खड़ी थी उसके पीठ पर।
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10-05-2020, 01:18 PM,
#15
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
उफ्फ!!! नमिता की जान में जैसे किसी ने और जान फूंक दी हो, बिना संकोच किए उसके भाई का लिंग धस्ता गया और अब सारे सब्र का बान टूट चुका था! भाई बहन एक दूसरे की जकड़े लीला के खेल में मगन हो गए और अमृत मंथन चालू ही गई!

एक का धकेलता तो दूसरे का कबूल करके वापस धकेलता आम बात हो गई स्टोर रूम में!

"आईआईआईआई राहुल!!!!! रुकना मत!!!!! तुझे मा की कसम!!! रुकना मत!! उफ्फ!"

"दीदी!!!! में रुका तो में अभी के अभी मर जाऊ!!!! उफ्फ दीदी!!!!!!!!!!! दीदी ओह! दीदी"

यह सिलसिला तब तक चलता गया जब तक नमिता अपने कलश जैसे नितम्ब को उछाल उछाल के अपनी योनि रस से अपनी भाई के लीग को भिगोती गई! और उसने कुछ ही पल के बाद राहुल खुद अपने नितम्ब कस के एक के बाद एक लासेसर गरमा गरम झाग उधेलता गया दीदी की योनि के अंदर!!

चरमसुख तो मिला ही था, लेकिन आत्मा तक तृप्त ही चुका था दोनों भाई बहन का। कुछ ऐसे थके हुए थे दोनों, के वही खटिए पे नींद की आगोश पे चले गए।

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10-05-2020, 01:20 PM,
#16
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
शाम का समय हो जाता है और तब जाके दोनों भाई बहन को होश आ पड़ी। झट से अपने कपड़े समेटे राहुल और नमिता रूम में से बाहर निकल परते है और एक बार फिर सीढ़ियों में ही दोनों एक गहरी चुम्बन में व्यस्त हो जाते है।

नमिता : (अलग होके) ओह राहुल! बहुत मज़ा आया!

राहुल : मज़ा तो मुझे भी आया दीदी! और साथ साथ एक गिफ्ट भी तुझे मिल गई! (दीदी के पेट को सहलाता हुआ)

नमिता शरमा के लाल लाल हो गई और मुंह में से 'धत' निकल गई। बड़े अदा के साथ दोनों नीचे आने लगे तो उन्हें देख रिमी हैरान होने लगी।

रिमी : भइया, दीदी! यह ऊपर क्या कर रहे थे आप लोग???

नमिता : अरे वोह ..... अरे हां! एक पुरानी पेंटिंग खोज रही थी में! (राहुल के और इशारा) सोचा इसका सहायता ले लूं!

इतना कहना था के नमिता साइड में से अपनी कमरे की और निकल परी! उसकी डगमगाती चाल देखकर रिमी को कुछ अजीब लगी! अपनी भईया की और संकोच से देखने लगी। अब राहुल को सितुएशन हैंडल करना था!

राहुल : (सोचकर) हां! वोह दरअसल दीदी गीर गई थी, तो ....

रिमी : तो आपने संभाला ना? या कुछ और किया?? (नटखट होके)

राहुल अब खेल खेल में नकली घुस्से से रिमी की पीछे भागने लगा 'रिमी की बाच्ची!!!!! रुक तू!". रिमी भी भागने लगी तो इस बार राहुल को उसके हिलते नितम्ब नजर आए। उफ़ अभी अभी वासना के एक एपिसोड से निकाल आया था और अब दूसरे पड़ाव पर कदम भी रखने लगा। यह कमबख्त वासना भी बस!

रिमी : (अपने नितम्ब हिलाए) पक्कड़ो मुझे हिम्मत तो! ऊऊऊऊ!!!!! (जीब दिखती हुई)

राहुल रुक गया और ऐसे ही अपनी छोटी प्यारी बेहना की मदमस्त जिस्म को पीछे से तरता रहा। सोए हुए लिंग देवा फिर से जागृत होने चला था। जांघ सूखे वीर्य से सने हुए थे लेकिन सुपाड़े के हुंकार को कौन समझाए!

खैर, यह तो था राहुल के इरादे, चलिए ज़रा रेवती की और चलते है!

रेवती काफी दिनों से परेशान थी, कन्फ्यूज्ड भी थी के कौन सा भावना व्यक्त करे! बात दरअसल यह थी के पिछले कुछ दिनों से उसे एक लड़के से अजीब और गरीब मेसेजेस आ रहे थे। ना चाहते हुए भी उसे कहीं ना कहीं अच्छा भी लग रही थी, लेकिन दर भी कहीं ना कहीं थी। और क्यों ना हो! विह एक खिली खीली यूवती थी, उमर के इस पड़ाव में यह सब होना भी लाजमी था।

मेसेजेस में कहीं बार लिंग के अलग अलग पोज भेजे गए थे, जिसे देख रेवती को पहली दफा घिन्न तो अति रही, लेकिन फिर एक उत्तेजना दिल में समा गई थी और कहीं बार तो खुद को उंगली करने से भी नहीं चुकी! ब्लॉक करना आसान ज़रूर था, लेकिन कामुक इरादों को रोकना उतना ही मुश्किल!

लेकिन फिर एक ऐसा मेसेज था, जिसे पढ़के रेवती काफी नाराज़ हो गई। मेसेज के अनुसार जैसे उसे लिंगो की तस्वीरे भेजे गए थे, वैसे उससे उसकी योनि की एक तस्वीर मांगी गई थी! अब ज़ाहिर थी के यह बात हजम करना इतना भी आसान नहीं थी। दर और वासना ऐसे ही लड़ाई करते गए के अचानक उसके कमरे म के आइने में से तेज़ रोशनी बाहर आती गई और रेवती अपनी आंखें बंद कर लेती है आशचर्य से!

"ओह गॉड! ओह क्या है?!! क्या हो रहा!!! ओह!"

आहिस्ता आहिस्ता रोशनी सम्पत हुई और हमेशा की तरह उस फ्रेम पे आगायी गजोधरी! अपनी वहीं मचलती नटखट मुस्कुराहट लाइए। उसे देख रेवती हैरान और परेशान होके अपनी तकिए को बाहों में समेट सीधे बिस्तर पर स्तब्ध बैठ जाती है।

रेवती : केके कौन हो तुम???

गजोधरी : घबराओ मत पुत्री! कोई नुक्सान नहीं करूंगी! बस तुम्हे दर मुक्त करने आई हूं!

रेवती : में समझी नहीं!

गजोधरी : ज़्यादा भोली मत बनो! तुम्हारी उम्र में तो अप्सराएं बच्चा भी पैदा कर लेती है और भूल भी जाती है!

रेवती : ओह!! जस्ट शाट उप!! और प्लीज बताओ के तुम्हारी इरादा किया है???

गजोधरी : में तो इतना ही कहना चाहता हूं के उस मेसेज को इनकार मत करना! ना जाने कितने दीवाने तुमहरी योनि दर्शन के लिए पागल हुए जा रहे है!!!

रेवती : क्या?????!!! और एक मिनट! यह मेसेज वाली बात तुम्हे कैसे मालूम?? हूं र यू????

गजोधरी कुछ बोली नहीं लेकिन एक चुटकी बजा देती है, जिससे वही रंग बिरंगी तितलियां उड़ने लगी और सीधा रेवती को घेर लेती है! इससे पहले वोह लड़की कुछ बोल पाती, तितलियों के स्पर्श उसकी बदन के चारो और एक सिहरन पैदा कर देती है। रेवती सिसकने लगी और मचलने लगी, मानो किसी मछली को जल से कुछ पल के लिए निकला गई हो!

गजोधरी बिना कुछ कहे मुस्कुराती हुई वहा से गायब हो जाती है और आइना में रेवती को अपनी एक नई प्रतिबिंब नजर आती है! जिसमे वोह पुर्णं नग्न थी और एक आइटम गर्ल की तरह बरताव कर रही थी! होंठो को दबाए, आंखे मारती हुई और बेहकी बेहकि पोज देती हुई, और असह में उसकी मुंह से निकल जाती है "कोई चुओ ना मुझे! टच मी!!!"

इतना कहना था उस आइने में बसी रेवती की प्रतीबिम को और फिर एक धुएं कि भांति गायब हो गई। रेवती हक्का बक्का रह गई इस अजीब अनुभव से। लेकिन फिर उसकी मन में कहीं लट्टू फुट परे और एक के बाद एक उसने अपने सारे कपड़े निकाल दिए और एक दम नंगी होके खुद को आइने में जैसे उसने परखी तो उसकी दिल में उमंगे जाग उठी।

चेहरा गोल और गुलाबी! बिल्कुल अपनी मा जैसी!

स्तन पपीते समान, जिसमे निप्पल सिक्के के समान थे!

और सबसे आकर्षित अंग, उसके मस्त मोटी मोटी जांघें! जो बरी प्यार से रक्षा कर रही थी उसकी योनि की!

बिना संकोच किए उसने अपनी योनि की मुख्य दुआर में उंगलियां फिरानी शुरू की और हल्का हल्का सहलाने लगी। उफ्फ इस अनुभव का वर्णन ही किया नहीं जा सकता दोस्तो! लेकिन रेवती को आनंद तो प्राप्त हो रही थी भरपूर! उसने ऐसा करना बंद नहीं की, बल्कि और उंगलियों को भी शामिल करली!

"तू क्यों मुझे सता रही है!! उम्म?? तुझे लोग देखना चाहते है और तू है कि (खुद्रती हुई) आह!! उह!, और मत सता मुझे, प्लीज!"

यह बातें उसके मुंह से एक सिसकी के समान निकल रही थी और ताजुब की बात यह थी के वह अपनी ही धुन में इतनी मगन थी के दुनिया इधर की उधर ही जाए, लेकिन उसकी उंगलियां योनि की लबों को नहीं छोड़ सकती!

कुछ ही पलों में वोह झड़ गई और धीमे धीमे नींद की आगोश में चली गई। नींद की चंगुल में आने से पहले उसे इस बात की भी एहसास नहीं रही के वोह पूर्ण नाग्न अवस्था में थी और ऐसे समय में अन्दर प्रवेश करने लगी रमोला जिसकी आंखें बड़ी बड़ी रह गई। मूह खुला रह गया और सांसें रुक गई।

सामने उसकी बिस्तर पे लेटी थी रेवती जो पूर्ण नग्न अवस्था में और लबों पे एक चैन कि मुस्कान थी, मानो स्वरग यात्रा के अाई हो।

उसकी यह हुलिए देखकर रमोला की बोलती बंद हो गई और झट से उसके उपर चादर ओढ़ के एक चैन कि सास लेती है। "बेशरम लड़की!! यह आजकल के लौंडिया भी!" बड़बड़ाती हुई वोह कमरे में से बाहर निकल गई।

______________
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10-05-2020, 01:20 PM,
#17
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
रिमी अपनी कमरे में अपनी सेलफोन में गाने कम सुन रही थी और अपने दीदी और भइया के बारे में ज़्यादा सोच रही थी! खास करके नमिता दीदी के बारे में। उनकी चाल बार बार उसे याद आने लगी और उसे शक होने लगी के कहीं भइया और उनके बीच कुछ....

इस सोच से ही वोह कांप उठी। नहीं नहीं यह भला कैसे हो सकता है? एक भाई और बहन के बीच में! यह चिंता कम थी और नाराजगी ज़्यादा थी के राहुल ने कभी ऐसे नजर से उसे क्यों नहीं देखी आज तक! अपनी बेचैन मन को लिए वोह आइने के सामने खड़ी ही गई और अपने आप को देखने लगी, वजन कुछ खास नहीं थी क्योंकि ज़्यादा खती तो थी और यह डायट वियट ने उसे ऐसा करने भी नहीं दी थी, लेकिन फिर फिर आम जैसे स्तन और उसकी पतली हेरोइन जैसे कमर किसी की भी पागल कर सकती थी।

मंजरा यह था कि उसे कॉम्प्लेक्स इस बात की थी के नमिता दीदी काफी आकर्षित लगती थी उसके मुकाबले क्योंकि उनकी स्तन, कमर और नितम्ब काफी सुडौल और लाजवाब शेप में थी। उसे यकीन होगाई थी के राहुल के लिए उसके दीदी के आकर्षित और मनमोहक होने के कहीं बजाय है!

खैर, आइने के सामने खड़ी रही और हाथों से अपनी स्तन को टीशर्ट के ऊपर से ही माप करने लगी और जैसे जैसे माप करती गई वैसे वैसे मन में अपनी और दीदी के उर्जो को तुलना करने लगी। "उफ़! मेरे तो उनके आधे भी नहीं है! यह भइया ने ज़रूर कुछ किए है उन्हें उस दिन ऊपर स्टोर रूम में!! उन्हें लगा मुझे समझ में नहीं आयेगा! यह दोनों भी ना! लेकिन हां! दीदी के उभार बारे ही मस्त है! मोटे मोटे! और उनकी नितम्ब! उफ्फ!"

इसी कॉम्प्लेक्स में मायूस होके वोह अपनी इर्द गिर्द माप करने लगी के तभी उसकी शक्ल आइने में बदलने लगी। रिमी परेशान और हैरान होने लगी और बस चिल्लाने ही वाली थी के आइने में शक्ल गजोधरी की ही जाती है ही खिलखिला उठी। उसकी हसीं देखकर रिमी हैरानी से उसकी और देखने लगी।

रिमी : कौन हो तुम?????? यह कैसे क्या...

गजोधरी : घबराओ मत, तुम्हे जो चाहिए तुम्हे मिलेगा! अपने दीदी में यूं नाराज़ ना रहो पुत्री!

रिमी : वन सेक! मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रही है!! हूं द हेल अर यू???? क्या चाहती ही आप!

गजोधरी : तुम बेफिक्र रह सकती हो! आओ मेरे नज़दीक आओ!

कुछ आकर्षन सी थी उसकी बूलाव में के रिमी अपनी चेहरा और नज़दीक लाती गई और नज़दीक आने में गजोधरी अपनी चेहरा थोड़ी और आइने से बाहर लाती हुई अपनी रसीली लबों को रिमी के लबों के साथ जोर देती है। उफ़! एक सिहरन दौड़ गई रिमी की जिस्म से जैसे ही उस औरत का रसपान हुई। यह पहली दफा थी के उसकी फूल की पांखुरी जैसे लबों को किसी ने स्पर्श की थी, और वोह भी एक औरत।

चूमती गई, चूसती गई, एक एक कतरे को पिती गई गजोधरी, और हैरांजनक रिमी भी उसकी चेहरे को अपनी हाथो में थाम लेती है और चुम्बन का साथ देने लगी। हौले हौले धीरे धीरे, जैसे दो लेहर एक दूसरे से टकराए। अगर आइने के बंदिश ना होती तो ऐसा भी होने का संभावना थी के यह दोनों एक दूसरे पे टूट भी सकती थी!

गजोधरी और रिमी दोनों अब बहुत धीरे से अलग होते है जिससे दोनो के लबों के बीच की लाली भी चिपचिपे नजर आई। आइने में से अब गजोधरी गायब हो गई लेकिन हैरान रिमी तो अब भी थी। उसने अपनी नज़रों को अपनी चेहरे की और फिराया तो देखी के उसकी होंठों की लालिमा और ज़्यादा आ गई थी और मज़े की बात यह थी के उसकी चेहरे एक दम खिल उठी।

अचानक कुछ ऐसा हुआ के उसकी स्तन के इर्द गिर्द एक अजीब दर्द होने लगी। कुछ ज़्यादा तो नहीं लेकिन कुछ अंजना सा एक छोटी हॉकी सी पैन। रिमी को थोड़ी दिक्कत होने लगी और अपनी बिस्तर पर लेट गई एक टेडी बीर को कस के जकड़ी हुई। "ओह गॉड! यह दर्द कैसा!!!" उसकी सिसकी जैसे शब्द निकल ही रही थी के अचानक उसकी टेडी बीर कुछ आगे की तरफ सरक रही थी!

रिमी की तो आंखें बरी ही गई!

सासें रुक गई!

उसकी आंखें नीचे की तरफ गई और बस!

टीशर्ट में कैद आम अब अब दुगने माप के हो चुके थे!

नहीं नहीं! यह हों नहीं सकता! यह सब कैसे!!! यह कब!! रिमी के पास अल्फजो की कमी होने लगी और कुछ भी समझ नहीं आ रही थी उसे। झट से वोह आइने के सामने खड़ी हो गई और अपनी स्तन पे नज़र डाली तो मुंह खुली के खुली रह गई। आम से परिवर्तित होक अब मधम साइज के नारियल बान चुके थे, जिस वजह से टीशर्ट भी आगे से टाईट लगने लगी।

रिमी की आंखें हैरानी से कम और चमत्कारी के एहसास से ज़्यादा बरी ही गई थी। यह किसी कुदरती चमत्कार से कम नहीं थी, और कुछ पल पहले जी भी आइने और उसके दरमियान हुआ, वोह भी कुछ अजीब ही थी! कैसे वोह अनजाने औरत ने उसे चूमा था। कैसे उसकी लबों का रसपान कर रही थी। यह एहसास से रिमी अपनी लबों पर उंगलियां फिराने लगी, इतनी लालिमा थी के मानो कोई ग्लोस लगाई ही।

अपनी आप को एक फ्लाइं किस देने लगी रिमी और खुद बा खुद खीखिला उठी। एक नया कॉन्फिडेंस आ गई थी उसमें! कुछ ऐसा के वोह खुद राहुल भइया को अपनी और आसानी से आकर्षित कर सकती थी। अपनी टाइट टीशर्ट पर गुमान करती हुई वोह गुनगुनाती हुई कमरे से बाहर निकालने सीधा अपनी भाई की कमरे कि और जाने लगी।

वहा दूसरे और राहुल के नैनो से नींद और चैन दोनों गायब था। स्टोर रूम में हुए गए हर एक लम्हा उसके मन में अभी भी उथल पुथल मचा रहा था। नमिता दीदी के जिस्म के स्पर्श से स्वार्थ दर्शन तो हुए ही! ऊपर से संभोग का पहला तजुरबा भी हुआ था। असाया उसके हाथ अपने लिंग की और जाने लगा और वहीं ट्राउजर के ऊपर से ही हिलाने लगा। उफ़ उसके दीदी की तस्वीर मन में आने लगी।
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10-05-2020, 01:20 PM,
#18
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
मन के तसव्वुर में नमिता उसे उकसाने लगी "और तेज़ मेरे भाई! और करो!" इस कथन से राहुल के हाथो के गति और बड़ गई और अब तो हाथ ट्राउजर के अंदर धस चुके थे। और रहा नहीं गया तो ट्राउजर निकाल कर फेंक दिया और अंडरवेयर घर पर पहनने की उसे खास आदत नहीं था।

अपने नग्न लिंग को सिचता गया, मसलता गया, सहलाता गया। मन में दीदी उसकी उसे उकसाए जा रही थी और तभी हुआ कुछ ऐसा के उसके तसव्वुर में नमिता अपनी रस भरे लबों को दांत से कटी और बस, "आह आह दीदी!!!!!!!" सब्र का पुल टूट गया और सुपाड़े में से ताजी ताजी मलाई छिरक के सीधा दरवाज़े की और लपका जहा इत्तेफाक से रिमी खड़ी हुई थी।

बस! फिर होना क्या था। रिमी की टीशर्ट, नाक और गले पर मलाई फैल गई और यह दृश्य देख रिमी की जिस्म में सिहरन दौड़ गई और राहुल घबराकर झट से बिस्तर के चादर अपने आप पर लपका देता है। शर्मिंदगी की हद पार ही गई थी आज तो। "शिट!!! दमनिट!! रिमी!!! यहां क्या कर रही है तू????? शीट!!!" राहुल का वासना भरा मन क्रोध में तब्दील हो गया। लेकिन रिमी थी जी बस अपनी भईया की सूखी मलाई को परखने लगी, पहले तो अपनी नाक में से, फिर गले पर से।

उंगलियों की दरमियान चिपचिपी पद्र्थ को तोलती हुई वोह कुछ ऐसा कर बैठी के राहुल हक्का बक्का रह गया!

मीठी नमकीन पदार्थ को अपनी लबों तक ले गई और प्यार से उंगलियों को एक एक चूसने लगी। चूसते हुए उसकी नज़रें अपनी राहुल भइया से मिली और एक प्यारी मुस्कान देके बोली "काफी मीठी है भइया! दीदी को यही खिला रहे थे कल क्या?? नॉटी बोई!" फिर एक बार और चूसी और कमरे में से चली गई।

राहुल का उभर अब दुगने साइज में चलने की फिराक में था। यह सब कुछ कैसे और इतनी जल्दी हो रहा था उसके साथ के इस बात का एहसास भी नहीं हो राहा था उसे के एक साथ दो दी लड़कियों के पीछे वोह वासना लिए दौड़ पड़ा था और वह दोनों उसके अपनी ही सही बहने थी। मानो कुछ ऐसा हो गया था के कामदेव को दो दो रती मिल गई थी। फर्क यह था के एक का उद्घाटन हो चुका था तो दूसरे अब तक केवल मटके कमर में लिए केवल टीज कर रही थी।

"उसका भी मटका फोरूंगा! रिमी!!!! तूने मेरे कमरे में आके ठीक नहीं की!" कहके वापस अपने झड़े हुए लिंग को टटोलने लगा। लिंग महाराज भी ऊपर देखते हुए सोचता होगा के अपने मालिक की मन एक बार में भर नहीं सकती। और भला ऐसा क्यों ना हो! इंसंसी फितरत ही यही था के कितना भी खाना दिया जाए, भूख तो नहीं मिटने वाली थी।

अब राहुल को बस रात का इटेंजार था! मन ही मन उसके तसव्वुर में अब नमिता दीदी और रिमी दोनों बस गए थे। उसके मन में एक प्लान जागृत होने लगा।

वहा दूसरे और अपनी कमरे में रिमी झट से नहाने चली गई और बार बार पानी के सहायता से अपनी नई नई और उभारों को बार बार मसल रही थी। उफ्फ कितना मज़ा आ रहा इस कार्य में! कितनी मीठी मीठी एहसास हो रही थी उसे! अपनी निप्पलों पर पे उंगलियां फिरती हुई वोह केवल यही सोच रही थी के अगर इन माध्यम उभारों को मसलने में इतनी मज़ा आ रही है तो उसकी दीदी को नहाते वक्त कितना मज़ा अति होगी!

क्या नमिता दीदी भी अपनी पपीतों को मसलते होंगे?? धीरे धीर घर की सारी औरतो का भी तुलना उसके मन में होने लगी, अपनी दूसरे दीदी रेवती से लेके उसकी मा रमोला और फिर अपनी मा आशा से लेके अपनी दादी यशोधा देवी तक।

उफ्फ, यह क्या क्या सोच रही थी वोह आज! लेकिन स्तन तुलना में उसे बहुत मज़ा आ रही थी। उसके मन में मीठी मीठी एहसास होने लगी केवल इस बात से के क्या घर की सभी औरतें भी अपनी अपनी उभारों को ऐसे ही मसलते होंगे? उफ्फ!! उसकी बर इतनी गीली पहले कभी नहीं हुई थी! कितनी गंदी सोच थी, लेकिन कितनी कामुक भी थी!

ऐसे ही अंग अंग मसलती हुई वोह शॉवर का मज़ा लेती रही।

अब इन सब के दौरान आप लोग यह सोच रहे होंगे के नमिता की कहीं अता पता क्यों नहीं थी! तो दोस्तों, बात यह थी के नमिता टैरेस पर एक हल्की फुल्की वॉक ले रही थी। अपनी चेहरे और काफी रौनक महसूस कर रही थी और अंग अंग भी खिली खिली लग रही थी। राहुल के साथ एक एक लम्हे को याद करती हुई उसकी नैनो से अमृत टपक परी। बहुत मीठी सी एहसास हो रही थी उसकी जिस्म और मन दोनों को।

अब नाखून में खून लग चुका था! एक संभोग से मन भरना मुश्किल दिख रही थी नमिता को।
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10-05-2020, 01:20 PM,
#19
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
"राहुल! आई लव यू! मुझे फिर से एक बार और प्यार करना ऐसे ही! मेरी जिस्म को रोंध के रख़ देना इस बार! प्लीज!" फुसफुसाती हुई अपनी फोन पे अपने भाई की तस्वीर को चूमने लगी, जब त तक पूरी स्क्रीन ही गीला ना ही जाए। यह प्यार था या वासना कहना मुश्किल था। तीर तो लग चुका था अब तो बस लीला ही लीला होने चली थी!

चलते चलते नमिता को एहसास हुई के उसकी चाल अभी भी डगमगाती धुन में थी। सुपाड़े का स्वाद अभी भी उसकी बर की लबों की हो रही थी! योनि के लकीर भी अब थोड़ी खुल चुकी थी, मानो बोल रही हो के भविष्य में और खुलना चाहती हो, जिस्म भी चिल्ला के बोल रही हो के एक बार और रोंधा जाए। पहली चुदाई से अगर राहुल उसका यह हाल के बैठे तो अगला सेशन के बारे में केवल सोचकर ही नमिता की योनि गीली होने लगीं।

ना जाने यह नए नए रिश्ते क्या रेंग लाने वाली थी।
____________
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10-05-2020, 01:20 PM,
#20
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
एक सूबह हमेशा की तरह गौरव अपने जोग वयम मे व्यस्त था के तभी सामने आसन पर बैठ जाता है अजय। अपने बेटे को बैठे देख गौरव कुछ कहा नहीं, बस कसरत में डायन लगाए रेखा। क्योंकि गर्मी का मौसम था, कोई भी अधिक वस्त्र पहनना गौरव उजित नहीं समझा। वह केवल एक बनियान और पजामा पहना अपने काम में लगा रहा।

उस रात के कामुक सेशन के बाद गौरव अभी अभी कामुक यादों से खुद को बाहर नहीं निकल पाया था, रमोला और उसके बीच इतना बढ़िया संभोग हुआ था के शब्दो में बयां करना शायद मुश्किल हो, और यह मुमकिन हुआ था अजय के की गई हरकत के वजह से। एक मामूली सा क्रोसद्रेस इतना कामुकता जगा सकता है अपने ही पिता में, यह बात अभी भी अजय को हजम नहीं हुआ था।

दादी से वर्तालब के बाद उसके मन में काफी उथल पुथल हो चला था। फिर भी हिम्मत जुटाए वोह अपने पिता के नज़दीक बैठे उन्हें निहारने लगा। यह पहली बार ऐसा हुआ के वोह अपने पिता के बलिष्ट और कसरती जिस्म की और नजर गड़ाए बैठा रहा। बेटे के मौजूदगी से शायद पहले कभी गौरव को फर्क nahi पड़ता, लेकिन जबसे उसका बेटा के यह अजीब शौक का खुलासा हुआ, तो नॉरमल रहना शायद थोड़ा मुश्किल था।

अजय : (धीरे से) डैड! उस दिन आप नाराज़ हो गए थे! आई एम सॉरी!

गौरव : (डंबेल उठाके) कहना किया चाहता है?? क्या वोह सही था?? अपनी यह शौक अपने तक ही रखना!! (सास में एक बेचैनी था) इसका असर बुरा हो सकता है परिवार पर!! और (थोड़ा रुककर) वैसे भी जब शादी वादी हो जाएगा, तब यह सब तुझे रोकना ही परेगा!

इस आखरी के कुछ वाक्य ने अजय को और मायूस कर दिया। वोह कुछ भी बोला नहीं।

दरअसल बात यह थी के उस रात के संभोग का विषय ही अजय था! इस बात को हजम करना रात को एक बात थी, लेकिन दिन के उजाले में, यूं अजय के एकदम निकट बैठे उस सच को कुबूल करना काफी मुश्किल था। खैर अनजाने में ही सही लेकिन दुंबेल से खेलते खेलते गौरव की नजर अपने बेटे के कमर पर यूहीं टिक गया।

क्योंकि अजय बिल्कुल गिरा चिठ्ठा था अपनी मा की तरह, उसके कमर काफी लचीला था इत्तेफाक से। उसे वोह वाला घटना याद आगता जब बचपन में अजय को एक फ्रॉक पहना गया था और वोह बिलकुल रेवती की बहन लग रही थी। उस समय गौरव को बहुत नाराजगी तो हुआ था लेकिन बचपन आखिर बचपन होता है।

अब की बार मामला संगीन था, क्योंकि अजय अब जवान हो चुका था और उसे अब कुछ ज़रूरी निर्णय भी लेने थे ज़िन्दगी के बारे में। कमर की और नजर गड़े रखना मुश्किल हो रहा था क्योंकि उसका नतीजा यह था के उसके पजामे के अन्दर सिहरन होने लगा था। उसने फिर ऊपर अपने बेटे के मुंह के और देखा और समझ गया के उसके मन में कुछ था जो उसने अभी तक अपने ज़बान के दहलीज पर नहीं रखा था।

गौरव : (दंबेल रखता हुआ) तू कुछ कहना चाहता है?

अजय : यस डैड! एक्चुअली! आप को कुछ बताना था। (संकोच करता हुआ)

गौरव : जो भी है बता दो!

अजय : डैड! क्या आप और मा खुश है?

गौरव : यह कैसा सवाल है???? हां हम खुश है! इसमें क्या बरी बात है!

अजय : नहीं, बात दरअसल यह है के (अचानक से अपने पिता के हाथ को पकड़ता हुआ) डैड! केके क्या में भी आपको खुश कर सकता हूं?

गौरव जो पहले से ही कामुकता की नदी में तैर रहा था, अचानक अंदर से सिहर उठा आर उत्तेजना में ही सही लेकिन झट से हाथ हटा दिया अपना। अजय सफेद दिल लिए वहीं बैठा रहा।

गौरव : यह ठीक नहीं है बेटा!! जाओ यहां से!

अजय : डैड! में अपने आप से तो नहीं भाग सकता! यह भला कहा का नियम है के नर और मादा ही प्रेम कर सकते है!

दरअसल दोस्तों, पिछले रात को अजय ने एक सपना देखा था जहां वोह एक पुराने जैन मंदिर की सैर कर रहा था, और ऐसे में उसे कुछ पुराने ग्रंत और कागज़ मिले, जहां समलैंगिक संभोग का भी ज़िक्र था! मज़े की बात यह थी के यह सब कुछ लिखा गया था जैन मुनियों के धरवा। और दिलचस्प बात यह था के उसे यह सब एक अंजना महिला पढ़ के सुना रही थी।

कहीं ना कहीं उस महिला की आवाज़ में एक मधुरता थी जो अजय को अपनी और कहीं दूर ले चली थी।

खैर, वास्तव की और चलते है जहां अजय अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था और गौरव था के अब संकट में आ चुका था, उसे धर्मसंकट केह लीजिए या होमोसंकट! बात तो परेशानी की थी के अगर किया जाए तो क्या किया जाए। अजय बिना संकोच किए अपने पिता के हाथ को लेके अपने हाथो में मलने लगा और उनके खुदरे हाथों के स्पर्श से ही उसका जिस्म में लेहरो पे लेहरे दौड़ गई।

गौरव : बेटा! (कमजोर आवाज़ में) ऐसा मत कर!! देख मैं संभाल नहीं पाऊंगा खुद को!

अजय : आपको मेरा डांस अच्छा लगा ना डैड??

गौरव : शट अप!! अजय (घुस्से और वासना से भरे आवाज़ में)

अजय : प्लीज डैड! सच कहीए!!!!!! देखिए, मुझे मालूम है आपका नजर कैसे मुझे तार रहा था उस दिन!

गौरव नाराज़ होके अपने बेटे को धकेलने ही वाला था के अजय अपने होंठ अपने पिता के होंठो पर झट से लगा देता है और फिर क्या! एक समुंदर के तेज़ लहर गुजर जाता है दोनों के जिस्म में से। ना चाहते हुए भी गौरव का हाथ अपने बेटे के पीठ पर घूमने लगा और अजय भी कस के अपने पिता को जकड़ लेता है।

गौरव के दारी और मूछ की चुभन कुछ अजीब सी एहसास दे रहा था अजय को और वोह भी अपने बेटे को लेके अब शारीरिक दौर से भावुक होने लगा। आज एक तेज़ पानी की झोंक से एक पहाड़ पिघलने लगा था। अजय अब धीरे से अपने होंठ को अलग करने लगा और निचले होंठ पे लगे पिता के लाली को खुद चूस गया। उसके मुंह से बस "सोरी डैड!" निकल गया और बिना कुछ और कहे वहा से निकल परा।

गौरव के दिल अभी भी जोरों से धड़क रहा था। पुरुष स्पर्श का यह पहला पहला अनुभव था और बहुत अजीब सी कशिश थी इसमें।

..........

दूसरे और रिमी बहुत उत्तेजित थी उस दरवाज़े की हादसे के बाद, उसे अब यकीन हो चली थी के उसके प्यारे से राहुल भइया अब उसे किसी और नजर से ज़रूर देखेगा। यह सोचना भी उसकी कुछ हद तक सच भी थी क्योंकि राहुल के नजर में अब नमिता के साथ साथ रिमी भी दिल में सामने लगी।

यहां तक के राहुल एक थ्रीसम के सपने भी देखने लगा और उसे अब मौका तलाशने थी रिमी को आगे पटाने की। रिमी की आखरी कुछ शब्दो ने उसे दीवाना बना दिया था और जिस अंदाज़ से उसने उसके एक एक कतरे को अपनी उंगलियों से चूसा था, वोह पागल बानाने के लिए काफी था।
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