kamukta Kaamdev ki Leela
10-05-2020, 01:22 PM,
#31
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
इस एहसास से दादी पोते में एक नई उमंग जाग उठी और फिर वोह हुआ जिससे सहलाब भी शरमा जाए! लिंग को होठ दुआरा मुंह के अंदर प्रवेश कर देती है यशोधा, जिसके हाथ भी साथ साथ अपने पोते के जांघो को भी सहला रही थी। उत्तेजना से भरपूर राहुल अपनी दादी की केश कस के थाम लेता है और इस उत्साह में वोह राहुल को और अंदर लेने लगी।

चम चूम चम चूसने की आवाज़ से कमरा भरफुर कामुक हो उठा और फिर बिना विलंब किए राहुल सारे शर्मिंदगी को त्याग करके सीधे अपने दादी के मुंह के अंदर ही अपना मलाई ऊधेल दिया। हैरान परेशान यशोधा को घिन अगयी और सारी मलाई थूक दी बाहर "हाय राम!!! यह में क्या कर बैठी!!" लेकिन राहुल के दिल में उमंगे ही उमंगे जाग रहा था, उसने फौरन अपने दादी को बाहों में लेलिया और अपने होंठ उनके होंठ से जोर दिया।

लेकिन समय के कामुकता की गति ऐसी थी के
यशोधा देवी शर्मिंदगी से वहा कमरे में से भाग गई! दादी को कमरे में से जाते देख राहुल हक्काबक्का वहीं खड़ा रहा। ना जाने क्या क्या हो रहा था उसके साथ पिछले कुछ दिनों से। कामदेव के तीर से कहीं निशाने बान चुके थे उसके पीठ पर।

सोते सोते वोह अपने मा और दादाजी के बारे में सोचने लगी, लेकिन फिर नींद की आगोश में चला गया
___________
Reply
10-05-2020, 01:22 PM,
#32
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
राहुल से की गई हरकत से यशोधा इतनी खुश मिज़ाज हो गई थी के उसकी अंग अंग जैसे खिलनी लगी थी। इस अनोखे एहसास से खुश होकर आज वोह खुद रसोई में खाना बनाने गई। उनकी मौजूदगी देखकर आशा और रमोला दोनों हैरान रह गई। हैरांजांक बात यह भी थी के आज यशोधा एक रंग बिरंगी सारी पहनी हुई थी। हरी रेंग की सारी के साथ लाल हाफ स्लीव ब्लाउस पहनकर वोह किसी कयामत से कम नहीं लग रही थी।

बड़ी प्यार से अपनी बहुओं के साथ साथ मसाले और तेल इत्यादि बटोरने लगी, जैसे खुद कोई नई नवेली बधू हो।

यशोधा : अरे ऐसी क्या देख रही हो! आज ज़रा मूड अच्छा है! (मसाला पिस्ती हुई)

आशा : नहीं माजी! दरअसल बात यह है के आज कुछ ज़्यादा ही खिली खिली लग रही है आप!

रमोला : सच कह रही हो दीदी! माजी तो! (अचानक ही रुक जाती है और यशोधा की के पास चली जाती है)

रमोला गौर से देखती है के उसकी सांस की गले और गालों पे कुछ ऐसी निशाने थी, मानो किसी के चूमने और काटने की सबूत हो। "माजी यह??" उसकी वाक्य के ख़तम होने से पहले ही यशोधा चौकन्ना हो गई और हंस दी "अरे बहू! यह तो.... दरअसल मच्छर बहुत हो गए है कमरे में!" शर्माकर फुसफुसाई यशोधा और इस बात पर दोनों बहुएं उनके पीछे पड़ गए।

आशा : अरे रुक ज़रा में भी देखूं तो! (गाल पर गौर करती हुई) ऊऊई मा! माजी! काफी तगड़ा मच्छर होगा!

रमोला : वहीं तो! देखो तो कैसी काटी है! इतना कसा हुआ धब्बा! उफ़! यह आज कल के मच्छर! लगता है जैसे कुश्ती कर बैठे आप के गाल के साथ! (सांस के तरफ)

आशा : (सब्जी काटकर) माजी! इस निशान को साफ़ कर दीजिए! पता नहीं आपके पोते पोतियों क्या कहेगी! (शर्माके)

रमोला : हा माजी! बिल्कुल। (दीदी के तरफ देखकर)

यशोधा : (नाटकीय अंदाज में) देखो!!! इतना भी बुरा नहीं है!! (राहुल के दुअरा गाल के काटने को याद करती हुई) आखिर कर मेरे गाल है ही काटने लायक!!

इस वाक्य से दोनों बहुएं हैरानी से उन्हें देखने लगी। वाक्य के हर बोल इतनी कामुकता से कही गई थी के मानो दिल में से सीधे मूह तक कोई बात आई हो। इस कथन को कहती हुई खुद यशोधा की जिस्म में एक लहर दौड़ गई। यहां तक के वोह अपनी गले की लव बाइट पर थोड़ी उंगलियां भी सहलाई। वोह बही खड़ी खड़ी मज़े से रसोई में बहुओ की सहायता करने लगीं। आशा के कान पे फिर रमोला चुपके से बोल परी "दीदी! लगता है के ससुरजी ही वोह मच्छर थे!"

जवाब में आशा शर्मा गई और आंखो में फिर से रामधीर की तस्वीरें सजाने लगी। काफी दिनों से अब वोह कहीं बार जोग वयम के बाद अपने ससुर को नाश्ता पानी देती रही और उनकी कपड़े भी धोने देती रही और सच कहें तो काफी दिनों से वोह अपनी मन में अपनी ससुर की प्रति कहीं अनकही भावनाए जागृत कर चुकी थी। उनका कसिला बदन बार बार उसे साताने लगी। फिर अपनी सांस की गाल पे निशान देखकर जल उठी। सब्जियों को एक के बाद एक ऐसी काटती गई जैसे कि कहीं क्रोध के भावनाए निकाल रही हो अंदर से।

वहा दूसरे और रामधीर भी कहीं ना कहीं आशा के प्रति उत्सुका से भरपूर हो गए थे। एक दो मर्तबा जब भी कपड़े देते वक्त या दूध का गिलास लेते वक्त उनके हाथो का स्पर्श हो जाता था तो उनके जिस्म में भी कहीं उमंगे जाग उठते गए और कहीं बार तो खुद यशोधा की भी आशा समझ के जड़करा था। खैर फिलहाल वोह घर पर ठहल रहे थे के अचानक उनके नज़रें राहुल के कमरे और आ गई। दरवाज़े के कोने से कमरे के अंदर का नज़ारा देखकर वोह खुद बहुत हैरान हो गए और कदम वहीं के वहीं रुक गए।

अंदर अजय एक पूर्ण नारी की भांति सज धज के आइने के सामने खुद को निहार रहा था। उसके यह हुलिया देखकर रामधीर हैरान हो गया और क्रोध से हृदय भर गया मानो, लेकिन कुछ अजीब सी कशिश थी इस नजारे में, के उसके नज़रें उसके पोते के और जैसे चुम्बक के भांति के चिपक गए हो। "सजना है मुझे सजना के लिए......." गुनगुनाए हुए अजय खुद को निहारने में इतने मगन था के उसे एहसास ही नहीं हुआ के उसके दादा खुद अपनी पजामे से धके उभर को मसलने लग गया था।

यह बात से तो आप सब वाकिफ है के अजय के सूरत उसके सड़ से काफी मिलती जुलती थी, इसलिए इस बात का भी कसाव रामधीर के उभर में गुजरते खून पे परी! वोह चुपके से अपने पोते को निहार रहा था। एक मर्द के प्रति वासना तो नहीं कहा का सकता था क्योंकि अजय इस वक़्त पूर्ण नारी की भांति सज धाजी हुई बस उसी समान व्यवहार कर रहा था। अपने पिता को पहले ही मोहित करता हुआ यह लड़का अब अपने दादाजी को भी दीवाना बनाने लगा।

रामधीर को अब डर था के उसके नजरिया अपने पोते को लेकर कहीं बदल ना जाए। लेकिन उस तने हुआ उभर का क्या करे जो पजामे के अंदर सलामी दे रहा था। उसे तो मसलना ही था, और जी में तो आया के वहीं जाके या तो अजय को खूब डांट लगाए या फिर उसे बाहों में भर के जकड़ ले।
Reply
10-05-2020, 01:22 PM,
#33
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
अब नौबद यह आगाई थी के उनको आखिर्कर वहीं के वहीं अपने लिंग को मसल मसल के अपनी विर्याओ को वहीं पजामे में ही उधेलना परा। उफ़! इस एहसास से वोह शर्मा गए थे और वहा से निकल गए। उन्हें यह भी एहसास नहीं हुआ के उनकी यह हरकत का गवाह खुद गौरव था जो थोड़ी ही दूरी से यह सब देख रहा था। शर्म से नाराज़ होने लगा वोह जब एहसास हुआ के उसके पिता और बेटे के कारण उसके अपने लिंग उभर के आने लगा उपर। वोह तो था ही होमोफोबिया का शिकार और ना जाने ऐसी भावनाए क्यों जाग रहा था उसके अंदर।

अब डर की बात यह थी में ऐसी भावनाए कहीं उससे कुछ अनाब शनाब कर ना बिठाए। एक होमोसेक्सुअलिटी की भावनाए प्रकट होने लगा उसमें, ना जाने यह कहा रुकने वाला था।

आग लग चुका था, बस फैलना बाकी था।

________
Reply
10-05-2020, 01:23 PM,
#34
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
उपर स्वर्ग में :

कामदेव अपनी तीर को निहार रहे थे के उसके नज़रों के सामने गाजोधरी प्रकट हो जाती है। उसकी चेहरे पे एक असीम खुशी और होंठो पर एक चहकती मुस्कान। सारे के अप्सराएं भी उसकी खुशनुमा चेहरा देखने लगे।

कामदेव : बहुत खुश लग रही हो! क्या हो राहा है नीचे धरती पर?

गाजोधरी : क्या बताऊं प्रभु! इस परिवार की कामुकता को देखकर में बहुत प्रसन्न हो गया हूं! और आप भी हो जाते! उफ़! इतनी वासना और इतनी चाहत!

कामदेव : (मुस्कुराके) सुनके अच्छा लगा गाजोधरी! और उपर से तुमने ज़रूर आग को और बड़काया होगा! खैर, आओ थोड़ा भोजन कर लेते है, फिर तुम वापस चली जाना नीचे!

रती का प्रवेश होती है तभी। गाल गोल और नज़रें तीखे। अपनी सुडौल कमर को मतकाए अपने प्रेमी के पास खड़ी हो जाती है।

रती : यह क्या बाते हो रही है गुरु शिष्य में? (मुस्कुराए)

कामदेव : गाजोधरी को फिर से एक कामुक परिवार से पाला परा है! लेकिन इस बार तो कामुकता की हद हो गई क्यों? (गाजोधरी की तरफ मुस्कुराके)

गाजोधरी : जी देवी! (रती की तरफ)

कामदेव : चलो हम सब अब भोजन कर लेते है, और दुआ करते है के इस परिवार की यह प्रेम लीला चलती रहे!

रती : आप भी ना! बस।

तीनों हंस परे और सोमरस का प्रबन्ध होता है भोजन के साथ साथ।

.......

वहा नीचे धरती पर :

रात के करीब ११ बजे थे और रामधीर अपनी पत्नी यशोधा के ऊपर लेटे संभोग विलास में व्यस्त था। पति के आगोश की दीवानी यशोधा कुछ खास खुश नहीं हो रही थी अभी। ना, यह बात नहीं थी के रामधीर से कुछ कम विलास मिल रही थी, बल्कि सच तो यह है के रामधीर आज भी उतना ही निपुण था जितना पहले, लेकिन बात यह थी के अपने पोते से सुख के प्राप्ति के बाद वोह कुछ बदल बदल सी गई थी। दूसरे और रामधीर भी अपनी मन में आशा की आशा लिए बेचैन रहता था।

यशोधा को कुछ हद तक चोदने के बाद वोह खुद बाजू में हटकर लेट जाता है। यशोधा कामुकता से उनकी छाती के सफेद काले बाल पर अपनी उंगलियां फिराने लगी। इस अंदाज़ की तो रामधीर पहले से ही कायल था और वोह और फिर अपने हाथ को पीछे लिए यशोधा की सर को अपनी नज़दीक लेके एक चुम्बन देने वाले थे के अचानक उसके होठों पर उंगलियां रखी जाती है "नहीं! इतनी भी जल्दी मत कीजिए!"। "लेकिन हुआ क्या भाग्यवान!" रामधीर बेचैन हो उठा।

यशोधा : (पति के सिकुड़े गए लिंग को सहलाते हुए) इसको जागने का एक और तरकीब है!

रामधीर : क्या?? कौनसा?

यशोधा : (धीरे से) हमारी बहू आशा!

रामधीर घबरा जाता है और अपनी कोहनी को तकिए पे लगाए थोड़ा सा उठ के बैठते है "यह क्या कह रही हो तुम??? अरे कुछ तो सोचा करो!". "अब ज़्यादा नाटक मत कीजिए, अगर बहू को यही पे अभी बुलाऊ, तो आप अब के अब उसे कच्चा खा जाओगे!" बोलके यशोधा उनकी लिंग पर एक प्यारी सी चिकोटी काट देती है। उत्साह और चिकोटि से रामधीर का लिंग हिचकोले मारने लगा "अरे भाग्य..... । "चुप भी हो जाइए आप! आप को क्या लगा के मुझे कुछ नहीं मालूम! सब देख सकती हूं में! सब समझती हूं में! बहू को आप किस नज़र से देखते है!" यशोधा क्रोध और छिपी हुई वासना मिलाकर बाते कर रही थी।

रामधीर एक चोरी करते पकड़े गए चिर की तरह चुप चाप लेटा रहा और फिर खुद अपनी पत्नी की गद्राए देह को सहलाने लगा फिर से "हा भाग्यवान! सही कह रही हो तुम!! उफ्फ क्या चाल है उसकी! कयामत कहना भी कम परे! हमारा महेश तो खुश नसीब है ही, लेकिन शायद कद्रदान नहीं!" फिर अपनी सर को यशोधा की मोटे मोटे स्तन पर रखकर उसे तकिए की तरह इस्तेमाल करने लगा "सच कह रहा हूं में यशोधा! अगर एक बार उसकी चाहत मुझे मिल जाए तो बस! ज़िन्दगी सफल!"

यशोधा अपनी पति के सर को दबा देती है अपनी छाती पर "उफ्फ!! इतनी वासना कहा से इख्ट्टा करते है आप इस उम्र में, के महेश की बीवी को भी नहीं बकश रहे है! हाए राम!! यह पति मेरे! इनका में क्या करू!!" दोनों मिया बीवी एक दूसरे को उकसाते रहे और तभी रामधीर ने वोह किस्सा छेड़ दिया जिसे यशोधा अपनी मन में दबाई हुई थी।

रामधीर : (पत्नी से लिपटा हुआ) अरे तुम भी किसी को पटा दो ना! किसने रोका है!!!

यशोधा : आप ने तो मुंह की बात कह दी मेरी! (राहुल के साथ संगम को याद करती हुई) क्या बताऊं आपको! मैने तो पहले ही पहल कर दी!

रामधीर का लिंग टनटन होने लगा इस कथन से "क्या????? क्या कह रही हो तुम??? अरे इस बूढ़े पे रेहम करो, क्या ऐटैक दोगी मुझे???" मज़ाक में वोह यशोधा से लिपटे कह परा। यशोधा भी नाटक करती हुई "देखिए!! एटेक आ भी गया तो फिक्र मर कीजिए! (होंठ दबाई) वोह मुआ मुझे संभाल लेगा!" इस बात को कहते वक्त उसकी मन में केवल राहुल के बाहों में सोते हुए तरंगों को याद करने लगी। सोचते सोचते फिर उसकी जिस्म की आग भड़क उठी और अपनी पति को और कस ली।

रामधीर : लेकिन वो मुआ है कौन????

यशोधा : रहने दीजिए!!! आप सेह नहीं पाएंगे! (होंठ दबाए)

रामधीर : बताओ तो सही!!!!! देखो तड़पाओ मत!

यशोधा : वोह आता ही होगा! खुद देख लीजिए!

इतना केहना था के घड़ी में १२ बाज गए और कुछ ही पल में एक लड़का केवल रोब पहने अंदर आजाता है। रोब रामधीर का था और यह देखकर वोह हैरान रह गया "के कौन हो तुम??? और यह मेरा रोब......." उसके लवज वहीं के वहीं रुक गए और धड़कन तेज़ हो गया। सामने खड़ा था राहुल, अपने ही दादाजी के रोब पहना हुआ। उसे देख यशोधा एक नए नवेली की तरह शर्मा गई। रामधीर का खून खोल उठा "यह क्या है राहुल??? तुम यहां???"

राहुल कुछ ना बोला और धीमे क़दमों में आगे आता गया, उसके आंखे अभी भी शर्म से नीचे, लेकिन वासना भी उतना ही अधिक था आंखे में। रामधीर को कुछ समझ नहीं आ रहा था, इससे पहले वोह कुछ बोलता, यशोधा उनके हाथो को जकड़ लेती "ए जी सुनिए, यही है वोह!!!" कहके उंगली तले दांत दबा दी जैसे कोई अपनी पहले प्यार का इजहार कर रही हो। रामधीर की आत्मा कांप उठी "क्या कहा????"।

दादी की ऐसी बातों से राहुल का खून उबल उठा और गाउन के ऊपर से ही उसने तुरंत अपने लिंग को मसल दिया। लेकिन आज अपने ही दादा के सामने यह सब करते हुए उसे अजब लग रहा था, मानो उसके कामुकता पे और हवा आगयो हो। यशोधा अपनी पोते की बेचैनी भांप लेती है और प्यार से आदेश देती है "अरे आजाओ मेरे लाल! यह (पति को देखकर) कुछ नहीं केहगें!" कहते हुए वोह ऐसी शरमाई के राहुल और उत्कुख हो गया। बिना लाज शर्म के वोह अपना रोब नीचे फेंक देता है, जिससे उसका पूर्ण नग्न जिस्म केवल एक कच्चे में रामधीर और यशोधा के नज़रों के सामने आ जाता है।

रामधीर के आंखे अब अपने पोते के उभर को जैसे नाप रहा था। यशोधा की तो पहले ही सांसे तेज़ हो चुकी थी।

राहुल : दादाजी! माफ करना मुझे! आज में आपका पोता नहीं हूं! मुझे कामदेव का स्वरूप समझ लीजिए! (लिंग को कच्चे पे मसलते हुए)

यशोधा : और में रती! हाय में मर जाऊ!! (शर्माकर चेहरा छुपाए)

रामधीर अपने पोते और पत्नी की वासना देखकर पागल होने लगा, इस बात का गवाह दे रहा था उसका अपना उठता हुआ लिंग, जो पूर्ण नग्न अवस्था पे राहुल को भी दिख राहा था। "उफ्फ दादाजी!!! अजब दृश्य है आपका यह " कहके सामने जाके रामधीर की लिंग की सुपाड़े को हल्का सा छुने लगा। इस स्पर्श सर रामधीर और उकसा गया और लिंग और सीधा हो गया। वोह क्या करता, उनके अपने नज़रे अपने पोते के लिंग पर टिके थे "तेरा भी तो!"।

यशोधा दोनों को देखे हैरान रहती है "अरे आप लोग क्या अब एक दूसरे को निहारते रहोगे! अरे मुझ बुढ़िया को देखो!!" देखने तो लायक थी ही यशोधा देवी, जो पूर्ण नग्न अवस्था में केवल एक तकिया अपनी योनि की और दबाए बिस्तर पर बैठी हुई थी। आंखो में उत्सुकता और होंठ प्यासे, मानो रसपान के लिए इतेंजार कर रही थी।
Reply
10-05-2020, 01:23 PM,
#35
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
राहुल अब बिना विलंब किए यशोधा के तरफ मुड़ गया और उसे अपने ही दादा के सामने से अपने बाहों में ले लिया। उफ़! लहरों पे लहर गुजर ने लगी धरती कर हर एक तालाब और नदी में मानो, और एक तेज़ धड़क गुजर गई दोनों दादी पोते की धड़कन पे से और इन्हे दंग नज़रों से देखता गया रामधीर।

राहुल जो अपने दादी को जकड़े हुए थे, फौरन अपने आपे में आग़या "दादी मुझसे!! शायद ना हो.." दादाजी के मौजूदगी में उसका रूह कांप रहा था अपने वासना को वायां करने में, लेकिन तभी यशोधा अपने पोते को संतुलन देने लगी "फिक्र मत कर बेटे! तेरे दादा में भी एक हैवान छुपा हुए है!!!" उसकी तेज़ नज़रों और शब्दो से दोनों दादा पोते हैरान चकित रह गए। "यशोधा तुम यह क्या???"। "अजी रहने भी दीजिए! आप भी ना!" नटखट आंदाज से यशोधा मुस्कुराई और अपनी पोते के कान पर अपनी होंठ ले अयी "राहुल बेटे! तू जानता है तेरा यह ठर्की दादा किसपे फ़िदा है??? तेरी अपनी मा पर!" कहके कान को प्यार से काट लिया।

राहुल का दुनिया ही मानो हिल गया था, अपने कानो पर ज़रा सा भी विश्वास नहीं हो रहा था। वहा दोनों के बाजू बैठे रामधीर भी शर्म से से झुका लिए, आशा के प्रति आकर्षत वाली बात राहुल को पता चल जाएगा, यह उसे मालूम नहीं था, लेकिन आज जिस परिस्थिति में उसे यह बात पता चली थी, वोह तो बस हजम करने काबिल भी नहीं था। यशोधा अपने पोते को अब कस के जकड़ लिया बाहों में और मानो जैसे आदेश देने लगी "राहुल! प्यार कर मुझे!! उस दिन की तरह! यह मेरी आदेश है! दिखा दे रामधीर सिंह को, तू उन्हीं का पोता है!!!"।

राहुल के जिस्म इस कथन को जप्त कर ली और तुरंत अपने कच्चे से आज़ाद हो गया। उसके नस नस फूले हुए लिंग के दर्शन करके ना जाने क्यों रामधीर को गर्व हुआ! आखिर था तो उसी का पोता। उनके अपने लिंग और दिल, दोनों में हलचल हुआ अपने पोते और पत्नी की लीला देखकर। फिर कुछ यूं हुआ के यशोधा अपनी हाथो के नाखून अपने पोते के पीठ पर गड़ा दी, जिससे राहुल एकदम उत्सुख हो उठा और दादी की केश को प्यार से सहलाकर बोल पड़ा "यशोधा देवी! आज आप मेरी हो!!!! चाहे दुनिया को आग क्यों मा लग जाए!!!!" और फिर क्या! अपने तपते लबों को अपने दादी की होंठो से जोड़ दिया।

धीरे धीरे चुम्बन गहरा होता गया और राहुल अपने आपे से बाहर आता गया, वासना के दीवारें चीरता गया। यशोधा भी ब्रपुर साथ देने लगी अपनी पोते का और रामधीर बस हैरानी से देखता गया। आज वातावरण बड़ी कामुकता से उबल रहा था और दादी पोते में प्यार उभर कर आ रहा था। राहुल का फुदकता हुआ लिंग अपनी दादी की योनि पर दस्तक देने लगा। उफ़ इस केवल छुअन से यशोधा सिसक उठी। रामधीर का मानो खून खोल उठा, लेकिन फिर सामने का दृश्य भी था मनमोहक।

यशोधा और राहुल अब लीला मैदान में मगन थे, सारे रस्में और बंदिश भूल चुके थे। फिर कुछ ऐसा हुआ के दोनों राहुल और यशोधा चौंक गए। अपने सुपाड़े को भीतर की तरफ प्रवेश करवाने ही वाला था राहुल के तभी उसके दादाजी के कड़क आवाज़ गरज परा "रुक जा! यह शुभ काम में खुद अपने हाथो से करूंगा।" इतना कहना था के रामधीर ने अपने हाथ आगे किए और अपने पोते के लिंग को बेझिझक कस के थाम लेता है।

एक तेज़ धक्का राहुल के जिस्म से गुज़र जाता है। उकसा लिंग मानो दो गुने ज़्यादा खून से अपने नस नस को और फूला चुका हो "उफ़ दादाजी!!!!!!!" अपने लंबे लिंग को दादा के हाथ के डुआरा पकड़े जाने पर जैसे अपना संतुलन खोने चला था। पति के इस हरकत पर तो खुद यशोधा भी हैरान हो गई।

वाकई में वक़्त बदल रहा था चारो और!

खैर, लिंग को हल्का हल्का मसाज करने लगा रामधीर और राहुल हल्का हल्का आहे लेने लगा। पोते के बेचैनी देखेर उन्होंने बिना विलंब किए अब अपनी पत्नी को दुआर प पर रगड़ने लगा, जिससे नतीजा यह हुआ के यशोधा की उत्सुकता अब क्रोध में तब्दील होने लगी।

"अगर आप ऐसा करने से नहीं चूके, तो में आप को जान से मर्दुंगी!!!!!"
Reply
10-05-2020, 01:23 PM,
#36
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
एक वासना और क्रोध के मिश्रण आवाज़ से ऐसी शब्द ही शायद निकलता है। इस कथन से कामुक होके रामधीर खुद ही पोते के लिंग को अंदर की और धकेल देता है जिससे राहुल आराम से अन्दर की और प्रवेश कर लेता है और जवाब में यशोधा अपने मटके जैसे कूल्हों को आगे की और धकेलती है, नतीजा यह हुई के लिंग और योनि की मिलन हो जाती है।

फिर एक बार सहलब उबल उठा हर नदी और समुंदर में!

अब बिना रुके दोनों रती कामदेव के अवतार अपने प्रेम लीला में मगन हो गए, और दर्शक बने रामधीर केवल उन्हें निहारता रहा। सच में आज उसका पोता बड़ा हो गया था, और इस बात की और क्या सबूत मांगा जाए, जब यह साफ नज़र आ रहा था के वोह नौजवान अपने ही दादी को भोग रहा था। समय का खेल था यह के ऐसा भी मुमकिन हो रहा था आज। "आह!!!! दादी!!! आह!!!!" "बेटा राहुल!!! ख़तम कर दे मुझे!!!! आज" सिसकियों का युद्ध चल रहा था और रामधीर थोड़ी ही दूरी पे बैठा अपने लिंग को मसल राहा था यह सब देखते हुए।

रग्राई और कुटाई चलती रही और फिर बिना किसी विलंब के राहुल अपने दादी के पहले ही भीगी दुआर पे अपना मलाई ऊधेल देता है। वातावरण के कामुकता के कारण उस के जिस्म में धक्के पे धक्का आता गया और जवाब में यशोधा भी भरपूर साथ दे रही थी। थका हुआ राहुल अपने दादी पे लेटा रहा और
यशोधा भी खुद सुकून और सुख से भरी हुई, अपने पोते को बाहों में लेके ही नींद की आगोश में चली जाती है।

तूफान रुक चुका था और दादी पोते की लीला कयक्रम देखकर रामधीर को पता ही नहीं चला के कब वोह खुद ही अपने प्रेम रस को अपने जांघो की और छीरक चुका था। अपने वीर्य के मात्रा से वोह खुद हैरान था।

सच में कहते है के वासना का कोई सीमा नहीं होती है।

____________
Reply
10-05-2020, 01:23 PM,
#37
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
राहुल वहीं के वही लेटा राहा अपनी दादी के ऊपर, और दूसरे और रामधीर इस दृश्य से अभी भी हैरान हुए दोनों को देखे जा रहा था। बेहद मनमोहक दृश्य था, अजीब सी कशिश थी दोनों के मुद्रा और उम्र के फर्क में। रामधीर अपने सिकुड़े हुए लिंग को फिर एक बार टटोलने लगा, अपने कमुकुता को फिर जागृत करने लगा। वाकई में उनके परिवार ने सारी हदें पार कर दी थी। अब कोई चाहे भी तो उसे अपने बही आशा की और आकर्षित होने से नहीं रोक सकता था।

राहुल को देखकर उन्हें कुछ पल तक तो ऐसा लगा जैसे उनके जवानी के दिन वापस लौट आया हो। एक सुकून कि नींद लिए वोह फिर लेट गए। पूरी रात यूहीं गुजर गया और राहुल बी बेशर्मी से वहीं अपने दादी पे लेटा रहा। अनजाने में ही सही लेकिन यशोधा की हाथ अब अपने पोते के पीठ की और कस के जकड़े हुए थे। मानो उसे अपनी आगोश में ज़प्त करके रखी हो। राहुल के चेहरे पर भी बीहमार मुस्कान था।

सुबह सुबह कुछ तकरीबन चार बजे के आसपास, गेजोधरी कमरे में प्रवेश की ओर राहुल को जगाने लगी। हरबड़ी में वोह उठा तो सामने एक बेहद हसीन औरत को देखकर हैरान हो उठा "आप????" । "हां मेरे शेर! में हूं! अब उठ जाओ और अपने कमरे कि और रवाना हो जाओ! कहीं किसी ने आपको पूजनीय यशोधा देवी के उपर यू देख लिया तो खैर नहीं!!" एक मुस्कुराई हुई चेहरे पे असीम चंचलता थी। राहुल भी एक चोर कि तरह चुपचाप कपड़े समेत कमरे में से निकल गया।

गेजोधरी ने फिर से एक बार गौर से यशोधा की तरफ देखी, जिसके चेहरे पर अभी एक चरम सुखप्रप्ती की छलक थी, मानो आसमां छू लिया हो। फिर एक नजर रामधीर की तरफ देखी और हौले से खुद से बात की "अब आप की बरी है सरपंच जी!" इतना कहना था कि वोह वहा से फिर एक धुएं की भांति गायब हो गई। रामधीर अभी भी एक गहरी नींद में लेटा रहा।

राहुल के लिए अब एक नई ज़िन्दगी का शुरवात हो चला था। मस्त नहा धोकर उसने अपने और एक नजर डालने लगा, कैसे उसके जिस्म से अभी भी उसके दादी यशोधा देवी की महेक अभी भी आ रही थी, कैसे उसने अपनी गहरी से गहरी मलाई उनके अंदर उड़ेल दिया था और कैसे कैसे वातावरण भी अब बदला बदला सा लगने लगा था। एक मुस्कुराते हुए चेहरा लिए, वोह टीशर्ट और ट्रेकपांट पहने हुए कमरे में से बाहर निकलकर सीधा नमिता दीदी के कमरे की और जाने लगा।

लेकिन एक अजीब माहौल था कमरे में, रेवती अपनी बाल बना रही थी आइने की और देखकर, रिमी अपनी किताब में व्यस्त थी और नमिता लैपटॉप में काम कर रही थी। तीनों के तीनों राहुल को नजरंदाज की, ज़रा सी भी भाव नहीं दिया गया उस लड़के को। राहुल हक्कबक्का तीनों की और देखने लगा और सर को खुजाए सीधा गया रसोई की और, कहा आशा और रमोला खाना बना रहे थे। अपने बेटे को आते देख आशा कुछ कहने ही वाली थी के रमोला उसे चुप करा देती है। आशा भी चुप्पी में मुस्कुराई।

राहुल हैरानी से दोनों को देखने लगा, फिर बिना कुछ कहे कॉलेज की और निकल गया। उसे जाते देखे डिनर रमोला और और खिलखिलाई। कुछ देर बाद आशा अपने ससुर के लिए नाश्ता बनाने लगी, जब की उसकी नजर रसोई के खिड़की से बगीचे की और झांक रही थी। हैरानी की बात यह थी के अभी तक। उसने गौर किया के अभी तक रामधीर कसरत करने के लिए उठा नहीं था। परेशान होती हुई वोह अपनी ससुर की कमरे कि और जाने लगी, बिना रमोला को कुछ कहे।

कमरे के अंदर प्रवेश करते ही आशा हैरान और आश्चर्य से बिस्तर की और देखने लगी, जहा उसकी सास ससुर चैन से लेटे हुए थे, एक चादर तेले। चादर के तले दोनों नग्न अवस्था में थे, इस बात की एहसास से आशा बुरी तरह शर्मा गई "यह लोग भी ना! इस उम्र में भी कोई लाज शर्म नहीं है!" अपने आप से बारबरा रही थी के अचानक ना चाहते हुए भी उसकी नजर अपने ससुर की जिस्म की ओर चिपक गई।

इतना बलिष्ट जिस्म शायद ही उसने देखी थी। मन ही मन कल्पना करने लगी के काश एक बार हिम्मत जुटा के वोह काश चादर के भीतर झांक सके, लेकिन यह हिम्मत आए तो कैसे आए? शायद समय ही कह पाए। लेकिन फिलहाल अपनी सास ससुर की दशा देखकर वोह पसीना पसीना हो रही थी और बस मुड़कर जाने ही वाली थी के एक उबासी लेते हुए रामधीर अपने आप को पलट देता है जिससे कि चादर हटके सीधा उनके लिंग की इर्द पर रुक गया। बस! इतना ही होना था कि आशा की सांसे रुक गई वहीं के वहीं।

उसके जी में बहुत कुछ होने लगी और इच्छा यह भी हुई के काश उस नाग वसु की दर्शन थोड़ी और हो जाए। उसकी होंठो मै थरथराहट हुई और बदन पसीने में भीग उठी। अचानक से हवाओं में एक औरत की आवाज़ बेहती हुई उसकी कानो तक आने लगी "बस देखती ही रहोगी??". हवाओं के झोंके जैसे आशा के साथ खेल रही हो, उसने तुरंत फैसला किया के चाहे जो कुछ हो जाए, वोह एक झलक देख के ही रहेगी। बिना किसी विलंब के, वोह नाश्ते को मेज़ पर रखती हुई, हौले से आगे जाने लगी अपनी ससुर की और।

एक अजीब गंध आ रही थी चादर के इर्द गिर्दसे, जिसे आशा आसानी से भांप ली के सूखे विर्यो के थी, और मन ही मन मुस्कुराई। बिना सास की और देखे वोह तुरंत अपनी हाथ चादर की और ले आई और ना जाने क्यों फिर डर के मारे वापस ले ली। "नहीं नहीं! यह में क्या कर रही हूं! ईश!!!" लेकिन फिर वही मधुर आवाज़ उसकी कान में शहद की तरह घोलती चली गई "जा जाके एक बार देख तो ले! कुछ नहीं होगा!"। कमबख्त ना जाने कौन थी जो उसकी मन को भ्रष्ट कर रही थी धीरे धीरे। पूरी बदन पसीने में भीग रही थी और हाथ कांप रहे थे।

क्या कोई घरेलू औरत यह गुना कर सकती है? काश उसे पता होती के उसी कमरे में उसके अपने बेटे ने अपने ही दादी को भोग चुका था। लेकिन यह सोच एक पवित्र मन में आए तो कैसे आए! बार बार आशा नज़रे हटाने की कोशिश करती रही और बार बार उसकी मन अपनी मनमानी करती गई। कुछ था उस दृश्य मै! एक काला सा, मोटा सा नाग चुपके से चादर की तले झांक रहा था उसकी और।

अनजाने में ही, लेकिन बिना किसी झिझक के आशा अपनी होंठों को दांतो तले दबा देती है। "नहीं! कुछ नहीं होगा ज़रा आ स्पर्श से! मै पीछे नहीं हटूंगी! रामधीर सिंह की बड़ी बहू हूं आखिर!" इस अटल सोच विचार लिए वोह आगे बरी और एक थरथराते हाथ लिए चादर को एक झटके में ससुर के घुटनों तक नीचे कर दी, और जैसी ही यह हुआ, एक तेज़ किरण सीधा उसकी आंखो में झलक परी।

एक बेहद कामुक और देहशत भरा दृश्य आंखों में समा गई!

उसकी ससुर का मोटा काला नाग! पूर्ण नग्न अवस्था में!

आशा की आंखे फटी के फटी रह गई। शुक्र इस बात की थी के लिंग सोया हुआ था, वरना शायद उसकी चीख भी निकल आती। "है राम!!!!! क्या है यह!" आशा कि रूह तक कांप गई उस वसु नाग के दर्शन में। कुछ अलग तो था ही उसके पति महेश के सावले से लिंग के मुकाबले, जो माध्यम आकार का था। लेकिन को लिंग उसकी नज़रों के सामने अब थी, वोह कुछ हद तक पूजने के लायक बन गई थी आशा की नज़रों में।
Reply
10-05-2020, 01:23 PM,
#38
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
अब उसकी नाज़ुक सी हाथ आगे गई और उंगलियां धीरे धीरे सोए हुए सुपाड़े की आस पास छुने लगी, मानो कोई नई सी वस्तु का मोइना कर रहे हो। सुपाड़े पर चमरी को टटोलने लगी उंगलियां भी सोच में पर गई की आखिर इस चीज का क्या किया जाए! आशा की सासें इतनी तेज़ हो गई के उसकी आवाज़ कमरे कि चारो और फेल गई। दृश्य बरा ही मनमोहक थी पूरी कमरे में, जहा एक औरत की उंगलियों एक मर्द के लिंग का मोयना कर रही थी और खिड़की से हल्की हल्की रोशनी जैसे सीधे उस जगह पर रुक गई हो जहा हाथ और लिंग का मिलन हो रहा था।

आशा धीरे धीरे अपनी उंगलियों को आदेश दी के आगे बढ़ो और लिंग के इर्द गिर्द आविष्कार करो! जैसे वोह कोई कोच थी और उसकी उंगलियां, खिलाडियों का टीम! मगर पूरे मैदान में मादारी थी उसका मन! जिसके सामने वोह खुद भी जमुरा थी। जैसे जैसे मन बेहके जा रही थी, वैसे वैसे वोह बेहक रही थीं। हाथो के स्पर्श से मानो लिंग में अब थोड़े से हलचल हो रहे थे और अब आशा को एक खास किस्म का मज़ा आ रही थी। उसने अपनी उंगलियों को आदेश दी के सुपाड़े से लेकर सीधा नीचे गोटियो तक स्पर्श करे! आखिर वोह कोच थी।

जैसे उंगलियां गोटियों तक पहुंची, तो बड़ी हल्के से चारो और दबा दबा के उन थैलियों को टटोलने लगी। उनमें जमे वीर्य का आगाज़ होते ही वोह बुरी तरह शर्मा गई और एक लम्बी सांस लेती हुई सीधा उन गोटियों से जैसे खेलने लगी। मानो वोह बचपन में जैसे चली गई हो और अपनी पहली गुड़िया से खेल रही हो! इस सोच से शर्माकर वोह अब गोटियों को ऐसे दबाती गई जिससे अब रामधीर को अपनी जिस्म में हलचल मेहसुर हुई। उनका विचलित मन को यह पता था के लिंग को स्पर्श मिल रहा था किसिका। लेकिन फिर शांत रहकर खेल मज़ा लेने में ही समझदारी थी।

आशा अब नीचे झुंक गई घुटनों पर, ओर गौर से अपनी नज़रों को लिंग के आमना सामना ले आई। कुछ इस तरह के उसे केवल और केवल वोह काला लिंग ही दिखे जो अब पूरी तरह से उसकी मन में हावी हो गई थी। गोटियों से हटके लिंग की चारो और उंगलियां ऐसे मसाज करने लगी जैसे मानो कोई नर्स और मरीज का संबंध हो। "बाप री!! यह सोया हुआ शेर अगर इतनी देहाशत फैला सकता है! तो यह जागेगा तो कहीं खा ना जाए मुझे!!!! नहीं नहीं! में कोई मामूली गीदर नहीं हूं! बड़ी बहू जो ठहरी!"।

लेकिन कमबख्त मन को कौन समझाए! कौन वासना और होश में लकीर खिंचे?

आशा अब पूरी मगन थी उस लिंग को और ज़्यादा मसाज करने में, कुछ इतना कि उसमें खून घोलने लगा अब! और इस बात का पूरा एहसास था रामधीर को, लेकिन मज़े लेने में वोह भी अटल था। आशा को चोरी नज़रें से तो वोह देख ही चुका था, लेकिन सोने का नाटक चालू रखा। मन में अब उनके लट्टू फूटने लगे और शरीर में से खून सीधे लिंग में घोलने लग गया, जिससे नतीजा यह हुआ के लिंग सीधा उठ खड़ा होना लगा, सलामी देते हुए। इस बार आशा घबरा गई और फिर हाथ को पीछे करने ही वाली थी के उसकी उंगलियों को जकड़ लेता है रामधीर की उंगलियां।

इसे हरकत से आशा पूर्ण घबरा गई और माथे से पसीना पूरी बदन तक जाने लगी। "आप??? किया के कर रहे है?!!! जाने दीजिए मुझे!!"

लेकिन रामधीर ने कसके उसकी हाथो को जकड़ लिया और उनसे मसलवाना चालू रखा। पूर्ण मुगध होकर आशा भी अब ससुर का साथ देने लगी। इस करीय में अबे एक अलग मज़ा सा आ रहा था और यह बात रामधीर भी समझ रहा था।

फिर कुछ ऐसा हुआ के जिसका आगाज़ दोनों ससुर बहू को हो ही चुका था, पर होनी को कौन भला टाल सकता है! सुपाड़े का मुंह खुला और ताज़ा ताज़ा मलाई सीधा आशा की उंगलियों के इर्द गिर्द बहने लगी, मानो कोई शिवलिंग दूध से नहला रहा हो! घिन और आश्चर्य से आशा की तो मानो होश ही उड़ गई हो और गरमागरम तत्व जब उंगलियों को भीगो दी, तो घबराती हुई वोह अपनी हाथ को वापस ज़ोर से खींचती हुई, फौरन कमरे में से निकल गई।

मलाई की बरसात की हुई लिंग को तो आराम मिला हो था, लेकिन उससे भी ज़्यादा विचलित और खुश था रामधीर, जिसने बहू पर पहला वार कर चुका था।

शर्माती हुई आशा अपनी कमरे में भाग जाती है और एक लम्बी सांस लेती हुई, अपनी उंगलियों की और गौर से देखने लगी के कितनी गाड़ी मलाई थी वाकई में ससुरजी की। घिन से ज़्यादा उत्तेजित हो चुकी थी आशा, जिसने पहले तो वोह मीठी मीठी एहसास को अपनी नाक तक लेके सूंगने लगी, फिर हल्की सी जीव निकालकर एक उंगली को होंठो तले दबाए स्वाद लेने लगी। उफ़! मानो एक तेज़ हवा का झोंका आके उसे तरो ताज़ा करके गए हो। कुछ ऐसा एहसास हो रही थी आशा को।

"यह... यह में क्या कर बैठी????? ईश!" शर्म से पानी पानी हो चुकी आशा केवल अपने आप को कोसने लगीं इस हरकत के लिए! लेकिन फिर उसकी कानो में वहीं औरत को आवाज़ ग गूंजने लगी "मीठा मीठा, प्यारा प्यारा क्यों?" आशा नई नवेली बधू की तरह शरमा गई और खिड़की की रेलिंग पकड़े खड़ी रही चुप चाप।

"मा! मा!!! कहा हो???" नमिता की आवाज़ आशा को सुनाई दी और तुरंत अपनी उंगलियों को सारी के ऊपर ही पोच डाली "क्या हुआ बेटी???" हरबरकर वोह ऐसे खड़ी हुई जैसे मानो चोरी पकड़ी गई हो। "मा वोह...... एक मिनिट! यह क्या लगी है??" नमिता की इशारा आशा की मुंह के कोने के तरफ थी, जहा पूजनीय ससुरजी की मलाई की एक छोटी सी निशान बने हुए थे।

जब आशा ने गौर किया, तो शरमाकर तुरंत पल्लू से पोंछ दी और गहरी सांस लिए चुप चाप खड़ी रही, फिर घुस्से में "क्या चाहिए??? क्यों बुला रही थी???"। मा के घुस्से के वजह से नमिता कुछ बोली नहीं, बस चल दी वहा से "कुछ नहीं, रहने दो!"

आशा ने भले ही छुपा ली थी, लेकिन नमिता भी खेली खिलाई खिलाड़ी थी, आखिर जो अपनी भाई से ही रस लीला माना चुकी थी, उस के लिए वीर्य का छींटा का पहचानना कौन से बरी बात थी! मुस्कुराते हुए वोह लहराती, बलखाती अपनी कमरे कि और जाने लगी।
_______
Reply
10-05-2020, 01:23 PM,
#39
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
राहुल अपने क्लास में कुछ खास ध्यान नहीं दे पा रहा था। पिछले कुछ दिनों से उसने काफी संभोग कर लिया था, और वोह भी अपने ही परिवारवालों के साथ। यह दास्तां नमिता दीदी से शुरू हुई और सीधा अपने दादी यशोधा देवी तक रुक गई और ना जाने कौन कौन उसके प्रेम चंगुल में आने वाले थे। लेकिन सुबह सब के बर्ताव लेके वोह काफी परेशान होने लगा, आखिर कोई उससे बात क्यों नहीं कर रहे ह थे और क्या पक रहा था सब के मन में? इस उत्सुकता लिए, राहुल ने पूरी कोशिश की लेक्चर में ध्यान देने की। वोह गहरी सोच में मगन था के उसके हाथो पर एक कोमल सा हाथ थम जाती है।

नज़रे उपर की तो एक लड़की बड़ी प्यार से मुस्कुरा रही थी। यह थी मीनल, राहुल की गर्लफ्रेंड। लेकिन अब तक इनके बीच इजहार और थोड़ी तकरार के आगे कुछ हो ना सका, भले ही १ साल से एक साथ थे दोनों। "क्या हुआ राहुल??" वैसे दोस्तों! मीनल के बारे में आप सब को थोड़ा बता देता हूं! बेहद हसीन और चंचल आंखे वाली, किसी अपसरा से कम नहीं थी। सुर्ख होंठ और बलखाती लंबे बाल, सलवार कमीज़ में लिपटी हल्की सी भरी हुई जिस्म, जिसे अभी तक राहुल ने भोगा नहीं था।

मीनल की प्यारी सुरीली आवाज़ का दीवाना तो राहुल पहले से ही था "कुछ नहीं मीनल! कुछ खास नहीं!" अब वोह कहता भी क्या कहता के, उसने वोह सारे हदे पार कर दी थी जो परिवार के सीमा उलंगन में आते थे। अपने दो बहने और दादी को तो भोग भी दिया था, लेकिन अब तक मीनल को अपने प्यार के लीला में ना ला सका। इस सोच से ही राहुल को हसी आने लगी, और उसे देख मीनल मन ही मन में सोचने लगी "तुम कुछ तो छुपा रहे हो मुझसे राहुल! खैर क्लास के बाद ख़बर लूंगी! जब तुम्हारे यह होंठ मुझसे सील जाएंगे!" कामुक अंदाज में सोचकर मीनल खुद शर्मा गई और राहुल का हाथ थामे सामने बोर्ड पे देखने लगी।

दो प्रेमी साथ साथ बैठे लेक्चर पे ध्यान देने लगे। एक तीन तीन संभोग के अनुभव लिए, तो दूसरी केवल संभोग के सपने मन में सजाए हुई थी। सच कहते है के अगर मन को भांपा या पड़ा जा सकता था, तो दुनिया में तूफान ही तूफान उठ आते!

.........

दूसरे और वहा घर पे, आशा बेहद शर्मिंदगी के साथ अब चुप चाप हॉल में बैठी हुई थी, के अचानक उसकी कंधो पर कुछ तगड़े हाथ आ रुके। घबराकर वोह पीछे मुड़ी तो आंखे चौड़ी हो गई अपने ससुर रामधीर को देखकर। सुबह की घटना से अभी भी क्रोधित और मायूस आशा, कुछ कह नहीं पाई, बस नज़रे चुराए वापस मूड गई। लेकिन जिस शेर के दांतो खून लग गया हो, वोह भला कैसे चुप रहे! "बहू! तुमसे बात करनी थी? ज़रा कमरे में अजाओ!" कहके रामधीर अपने कमरे की और जाने लगा। कमरे की चौखट पर पहुंचकर फिर एक बार पीछे मुड़कर कह परे "यह मेरा हुकुम है!"।

धीमे गति में आशा उठ गई और चुपके से ससुरजी की कमरे कि और जानें लगी। वहा पहुंचकर जो उसने देखी, वोह बाय करना आसान नहीं होगा शायद। उसकी पैरो तले जमीन खिसक गई जब उसने अपने ही सास को एक कीमती सारी और गहने डाले पाई, और इतना ही नहीं, हाथ में एक पूजा की थैली थी। होंठो में भरपूर मुस्कान लिए वोह साजधज के खड़ी रही "आओ बहू! आज का दिन खास है!" एक चंचल मुस्कुराहट के साथ यशोधा आगे आईं और अचानक से आरती उतारने लगी।

आशा को कुछ समझ में नहीं आ रही थी, एक तो सुबह में वोह शर्मनाक घरी और उपर से अभी उसकी सास की अजीब सी हरकतें। यशोधा प्यार से आशा की जब्रे को ऊपर की और उसकी गाल को चूम ली "आज तेरी नई जीवन शुरू होने जा रही है बहू!" इतना कहना था कि उन्होंने एक पैकेट लिए आशा के हाथ में थमा दी "इससे रात को पहनना! एक शुभ रसम माननी है!" अपनी सास की नटखट हरकते देखकर आशा की दिमाग में कहीं सवाल खड़े होने लगे! कहीं सोच घूमने लगी। कुछ भी समझ नहीं आ रही थी उसे!

"माजी यह आप! क्या....."। "चुप हो जाओ बहू! कुछ कहने की ज़रूरत नहीं तुम्हे! देखो इसे ज़रूर पहनना तुम! इस बुढ़िया को निराश मत करो!" नाटकीय उदासी लिए यशोधा बोल परी और वहा बाजू में बिस्तर पर बैठा रामधीर अपने अखबार पड़ते हुए मुस्कुरा उठा। ना जाने उसकी सास ससुर की क्या मनसूबे थे। पैकेट हाथ में लिए जब कमरे में से निकली, तो सीधे अपने कमरे की और चली गई और पैकेट से जब एक लाल रंग की बनारसी सारी निकली तो उसकी आंखे फटी के फटी रह गई। "हाय राम यह क्या??? माजी ने यह क्या दे दी मुझे???? हाए मा!" एक विचलित, परेशान और उत्सुक मन लिए वोह सारी की और देखने लगी।

मज़े की बात यह थी के पकेट में कुछ सामान और थे। पहले, तो कुछ चूड़ियां और नथ! और एक छोटी सी चिरकुट! आशा कांपती हुई हाथ से चिरकुट को खोलकर जैसे ही लिखित शब्दो को पड़ने लगी, तो अपने आप ही उसकी धड़कन तेज़ होके रावलपिंडी भांति धड़कने लगी। लिखित शब्द कुछ इस तरह थे :

"आज तुम मेरी हो जाओगे बहू! अगर इस बूढ़े ससुर का साथ मंज़ूर है! तो इसी सारी में रात को मेरे पास अजाओं!"

हाथ से चिरकुट तो नीचे गिर ही गया, ऊपर से धड़कन भी तेज़ हो गई, मानो कभी भी सीने से नीचे गिर के हाथ पर थम जाए। तेज़ धड़कन लिए वोह बेसब्र रात का इंतज़ार करने लगी, लेकिन उस के लिए काफी वक्त था, क्या धीरज। रखना इतना आसान होगा? क्या थी यशोधा और रामधीर के मन में? ना चाहते हुए भी पूरी उत्साह में उसकी हाथ अपनी जी स्तन सहलाने लगी ब्लाउस के ऊपर से ही। नहीं! इस वासना को काबू करना ही पड़ेगा! आखिर घर की बड़ी बहू जो है!
Reply
10-05-2020, 01:23 PM,
#40
RE: kamukta Kaamdev ki Leela
शाम को कॉलेज के बाद, पास के ही खंडर में रुके, राहुल मीनल के साथ गुलचर्रे उड़ने लगा हमेशा की तरह। दोनों के होंठ आपस में रगड़ने लगे और जैसे राहुल अपने हाथ उसकी पपीतों तक लेके आया, तो फटक से मीनल उसके हाथो को वहीं के वहीं रोक देती है "में तेय्यार नहीं हूं अभी भी! सोरी डियर!" एक मासूम चेहरा लिए मीनल मुस्कुराई। राहुल ने कुछ दिल पे नहीं लिया, क्योंकि संभोग तो पिछले दिनों में काफी हो चुका था, लेकिन मज़े की बात यह थी के, मीनल के लिए प्यार दिल से था! किसी भी कीमत पे वोह मीनल को खोना नहीं चाहता था। "कोई बात नही बेबी! यह सुर्ख होंठ ही काफी है मेरे लिए!" इतना कहना था के उसके होंठ वापस जुड़ हाए मीनल से।

बेतहाशा चूमने के बाद, गीले होंठ अलग हुए एक दूसरे से और राहुल एक आखरी लाली भी तुरंत चाट लेता है। उसके हरकत से हमेशा को तरह मीनल शरमा जाती है "धत! बेशरम कहीं के!" उसकी मासूमियत पर राहुल भी मुस्कुराने लगा और घर के तरफ निकल गया, उसने गौर नहीं किया था के उसके ट्राउजर के पॉकेट में एक चिट्ठी मीनल ने चुपके से रखी थी।

खैर, जल्द से जल्द घर की चौखट पर पहिचकर, सारे के सारे खिड़कियों को अंधेरे me देखकर आश्चर्य हुआ। तुरंत वोह दरवाज़े की और गया, और जैसे ही अंदर प्रवेश हुआ तो पूरा घर अंधेरा में कायम था। "यह क्या चक्कर है!" इससे पहले उसका हाथ उपर स्विच तक पहुंच पाता, एक झटके में सारे के सारे लाइट ऑन हो जाते है और तालियों के गूंज चारो और "हैप्पी बर्थडे राहुल!!!!"। सब के सब सदस्य वहीं रुके थे, चेहरे पर मुस्कुरहट और बेशुमार खुशी।

"आजा मेरे लाल!" कहके यशोधा देवी आगे गई और पोते के माथे को चूमने लगी, फिर कान में प्यार से शहद घोल दी "इससे ज़्यादा कुछ मत मांग! सब यही है!" हस्ते हस्ते यशोधा वह वापस जा रही थी, के राहुल ने फटक से उनका हाथ पकड़कर वहीं रुका दिया "अरे दादी! जो बात अपने मुझे बताई! ज़रा सबको तो बताना!"। यशोधा देवी की कदम वहीं रुक गई, धड़कने तेज हो गई "क्या बोलूं???" क्या कह राहा है तू?"। बदमाशी के साथ राहुल वहीं खड़े खड़े, मुस्कुराते हुए ज़ोर आवाज़ में बोलने लगा "दादी ने मुझे एक अनमोल उपहार दिया है! वोह भी कल रात को ही! क्यों दादी?"

यशोधा देवी संकट में अागई, लेकिन पिछले कुछ दिनों में वोह इतनी कामुक हो गई थी, के अब खेल खेलना शौक हो चुकी थी। "तू अगर शैतान है! तो में भी तेरी दादी हूं!"। फिर हुआ यू के रमोला भी राहुल का साथ देने लगी "माजी! ऐसा क्या दिया आपने! बताइए तो!। महेश भी साथ देने लगी "अरे मा! कौन सा ऐसा गिफ्ट है, जिसके लिए आपने रात को तकलीफ़ ली??"।

वहा दूसरे और रिमी की धड़कन तेज होने लगी, और चुपके से नमिता दीदी की कान में फुसफुसाई "कहीं दादी ने भइया के साथ??" नमिता की रोंगटे खड़े हो गए "व्हाट?? नो वे! कुछ भी मत बोल!" बाजू में खड़ी रेवती ने सब सुन ली, उसकी दिल जोरो से धार्कने लगी "ओह माय गॉड! दादी? नो! नो वे!"। तीनों लड़कियों कुछ बोली नहीं बस हैरानी से देखने लगी कि किस रोमांचक अंदाज़ से अचानक यशोधा हसने लगी "ओह!!! मेरे लाल! वोह गिफ्ट?? अरे वोह तो खास तेरे लिए था!"

रात की दास्तां को याद करते हुए यशोधा वहीं सब के सामने अपनी जिस्म में मीठी मीठी एहसास महसूस हुई, वहीं के वहीं अपनी होंठ दबाई बोल परी "क्या दादी पोते को रात में कोई गिफ्ट वगैरा नहीं दे सकती!!" मासूम सजके मनमानी करके वोह बोल परी। "दादी ने मुझे वोह अनमोल टोफा दिया, जिसका मै बेसब्री से चाहता था!" कहके राहुल जाके अपने दादी का हाथ थामा ओर चूम लिया। यशोधा के जी में आई के वहीं पोते को वापस बाहों में जकड़ ले और अपने वासना का इजहार सब के सामने करले! लेकिन काश यह इतना आसान होता।

"अरे कुछ खास नहीं! वोह दरअसल....... एक पप्पी मिली थी मुझे! राहुल बेटे के तरफ से! ईश!" शर्माकर। वोह ऐसे बोल परी जैसे अपने पहले प्यार के ख़त का खुलासा हुआ हो! "नोटी दादी!!!! और क्या क्या किया भइया के साथ!" रिमी भी मैदान में अगायी। "माजी! आप इतना क्यों शरमा रही हो?" रमोला हैरानी से पूछने लगी तो यशोधा मन में बोल परी "अरे कल्मुई! मेरे पोते ने इतना कुछ किया! के मै किया किया बॉलू तुम लोगो को! हाय!!!!! सोचकर ही गीली हो रही हूं!"

राहुल मैदान में हथियार थामे खड़ा हो गया "दादी पप्पी से बरकर भी कुछ दिया था मुझे! लेकिन शर्मा रही है!" अब चाल पे चाल चलता गया राहुल और दादी तो बेचारी अब क्या करती! बता देती के कैसे रात भर बाहों में बाहों और लिंग योनि का मिलाप किया था! पसीना माथे पर थी, लेकिन गीलापन नीचे ले तरफ थी, यह दशा थी यशोधा देवी की। ।
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,296,886 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 521,950 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,149,855 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 871,170 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,540,775 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 1,985,591 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,794,540 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,507,350 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,822,838 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 265,890 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)