Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
12-09-2019, 12:14 PM,
#1
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प्रस्तुत कहानी के सभी पात्र एवं घटनाक्रम काल्पनिक है। यदि किसी पात्र और घटना का किसी भी प्रकार से किसी वास्तविकता से संबंध पाया जाता है तो इसे मात्र एक संयोग कहा जायेगा। इस कहानी के माध्यम से मेरा एक लेखक के तौर पर किसी जाति , धर्म या सम्प्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई उद्देश्य नहीं है अपितु इस कहानी के माध्यम से मैं एक लेखक के तौर पर आप सभी पाठकों का अपनी कहानी के माध्यम से मनोरंजन करने की मंशा रखता हूँ। आशा करता हूँ आपको कहानी पसन्द आएगी।



अपडेट - 1


बड़ी सुख शांति से कट रहे जीवन में एक ऐसा तूफान आया कि घर परिवार और सारी सुख शांति गर्मी से भाप बन कर उड़ गई। कुछ समझ ही नही आ रहा था कि इस तूफान को रोक जा सकता था या ये तूफान खुद हमारा ही चुनाव था।

सरिता: 25 साल की नव विवाहिता खूबसूरत योवन से परिपूर्ण । मॉडर्न होने के साथ साथ संस्कारी बहु।


राज:25 साल का एक लड़का मॉडर्न लेकिन संस्कारी। पढ़ने में होशियार था इस लिए लंदन से एम बी ए करके अपने पिता का बिज़नेस संभाल रहा था।

राज और सरिता दोनों बनारस के है लेकिन बिज़नेस के सिलसिले में दोनों पिछले 2 साल से दिल्ली रह रहे है।

सरिता के परिवार में चार सदस्य है। सरिता की माँ सरला सरिता के पिता जगमोहन सरिता की छोटी बहन रीता।


वहीं राज के परिवार में सदस्य संख्या थोड़ी ज्यादा है। राज के परिवार में राज की माँ चाँदनी ,

राज के बड़े भैया सुरेश और उनकी पत्नी श्रीमति चंचल और राज की छोटी बहन पूजा और आरती।

सब कुछ सही चल रहा था। हंसी मजाक चारों तरफ खुशियां ही खुशियां । बस राज के पिता नहीं होने से घर मे थोड़ी सी मायुशी थी लेकिन वो सब भी राज की पत्नी सरिता के आने के बाद कहीं गुम हो गयी थी।

राज के बड़े भाई सुरेश का विवाह राज से कुछ तीन साल पहले हुआ था। इसलिए राज की माँ थोड़ा सा परेशान रहने लगी । क्योंकि अब सुरेश के विवाह को करीब पांच साल होने को आये है और चाँदनी अभी तक अपने बड़े बेटे से पोते पोती की खुशियों की गुहार लगा रही है। चाँदनी ने कई बार चंचल से भी कहा कि अब तो मुझे पोते पोती के दर्शन कर लेने दो बड़ी बहू।

दरअसल जब चंचल विवाह करके घर आई थी तो उसने सुरेश से कहा था कि वो शादी के पांच सालों तक कोई बच्चा नही चाहती। अपनी सास की अब पांच साल के बाद कि गयी मांग चंचल के लिए भी नाजायज नहीं थी। लेकिन चंचल करे भी तो क्या करे । पिछले पांच सालों से चंचल गर्भ निरोधक गोलियाँ खा रही थी। लेकिन पिछले तीन चार महीनों से उसने वो भी बंद कर दी थी। सुरेश के सारे प्रयाश असफल हो रहे थे। चंचल को बच्चा नही हो पा रहा था। उसका एक सबसे बड़ा कारण ये था कि सुरेश एक तो काम मे बहुत व्यस्त रहता था दूसरा गर्भनिरोधक के चलते चंचल के गर्भ मैं भी शिथिलता आ गयी थी जो कि दवाओं से चंचल ने दूर कर लिया लेकिन अब सुरेश उस मात्रा में वीर्य नहीं दे पा रहा था जिस से बच्चा ठहर सके।

धीरे धीरे परिवार में मायूसी छाने लगी थी। संस्कारी घर होने के कारण चाँदनी चंचल और सुरेश को दूसरे विवाह के लिए मजबूर भी नही कर सकती थी। इसलिए उसने सब कुछ ऊपरवाले के भरोसे छोड़ दिया।

वहीं राज अपनी पत्नी सरिता के साथ दिल्ली रह रहा था। इन दोनों भाइयों ने अपने पिता के बिज़नेस के दो भाग बना लिए थे । एक बनारस में संभाल रहा था तो दूसरा दिल्ली में उसकी नींव डाल रहा था ।

जब राज ने सरिता से बच्चे के बारे में पूछा तो सरिता ने शर्मा कर कहा कि दीदी (जेठानी चंचल) ने भी तो पांच साल का परहेज किया है तो मुझे भी पांच साल दो न। राज सरिता की बात पर मुस्कुरा उठा लेकिन कुछ कहा नहीं।
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12-09-2019, 12:14 PM,
#2
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अपडेट - 2

जब राज ने सरिता से बच्चे के बारे में पूछा तो सरिता ने शर्मा कर कहा कि दीदी (जेठानी चंचल) ने भी तो पांच साल का परहेज किया है तो मुझे भी पांच साल दो न। राज सरिता की बात पर मुस्कुरा उठा।


अब आगे...


राज भली भांति जानता था कि सरिता को बच्चे से कोई परहेज नही है लेकिन फिलहाल ये मेरे साथ जीवन और जवानी दोनो का आनन्द लेना चाहती है। और फिर राज खुद भी नहीं चाहता था कि इतनी जल्दी घर गृहस्थी से बच्चों में उलझ जाए।

वहीं दूसरी और चाँदनी कई बाबाओं के आश्रम के चक्कर लगा रही थी। कभी कोई बाबा तो कभी कोई बाबा ,कभी किसी आश्रम से प्रसाद और कभी किसी आश्रम से कोई उपाय। चंचल इन सब से परेशान हो चुकी थी।

चंचल: (मन ही मन) अब सासु माँ को कौन समझाए की बच्चा प्रसाद और उपायों से नही ताबड़ तोड़ चुदाई और वीर्य से होता है। जितने उपाय में कर रही हूं यदि डॉक्टर को दिखाने का उपाय सुरेश कर ले तो सासु माँ की हर इच्छा पूरी हो जाये।

चाँदनी: चंचल किन सोचों में गुम हों। जैसा बाबा ने कहा है वैसा ही करना देखना जल्द ही तुम्हारी गौद में इस घर का वारिश किलकारियां मारने लगेगा।

चंचल ने मुस्कान के साथ मुह बनाते हुए चाँदनी के कहे अनुसार उपाय पूरा किया। लेकिन पिछले छ: सात महीनों के उपायों के बावजूद भी चंचल को उल्टी नही हुई तो चाँदनी उदास होने लगी।

एक दिन ऐसे ही चाँदनी बाहर हॉल में बैठे-बैठे भगवान से अपने घर के चिराग के लिए प्रार्थना कर रही थी कि कोई साधु चाँदनी के घर के दरवाजे के पास आकर जोर से चिल्लाता है।

साधु: अलख निरंजन। बम भोले शिव शम्भू... अरे कोई है घर में साधु को भिक्षा दे दो। भगवान तुम्हारे हर मनोरथ पूरे करे। अलख निरंजन।

चाँदनी साधु की आवाज सुनकर जल्दी से दरवाजे तक भागी- भागी जाती है और साधु को अंदर आने का निमंत्रण देती है लेकिन साधु चाँदनी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है।

चाँदनी: क्या हुआ बाबा? घर मे पधारिये।

साधु: देवी हम आपका सत्कार स्वीकार नहीं कर सकते। हम ब्राह्मण है। केवल पांच घर मे भिक्षा मांग कर खाते है। किंतु किसी का सत्कार नहीं लेते।

चाँदनी: ठीक है बाबा आपके तप और संकल्प को भन्ग करने का तो मैं विचार भी नहीं कर सकती। अच्छा तो आप यहीं रुकिए मैं खाने के लिए लाती हूँ।

चाँदनी रसोई घर में जाकर घी से चुपड़ी रोटियां सब्जी और कुछ मिठाईयां लाकर साधु को देती हूं।

साधु: देवी ये तो बहुत ज्यादा है मेरे घर मे केवल हम चार प्राणी है जिनके लिए ये बहुत है।

चाँदनी: बाबा मेरे घर में भी ये खाना ज्यादा है। आप अपने बच्चों को ये खाना देंगे तो मैंरे यहां अन्न का अनादर भी नही होगा और फिर मेरे कोई पोता नही है तो उसी के लिए में ये धर्म कर्म भी करना चाहती हूँ।
खुश किस्मती से वो साधु एक महान आत्मा थे। उन्होंने चाँदनी के चेहरे पर उसका भविष्य जान लिया था जिससे वो थोड़े चिंतित थे लेकिन फिर भी उन्होंने चाँदनी से इशारे में पूछा।

साधु: देवी आपको पोता चाहिए या घर का वारिश।

चाँदनी साधु की बात समझ नहीं सकी। और चाँदनी ने कहा बाबा पोता होगा तो वो ही वारिश होगा ना।

साधु ने तीन बार पूछा और ये भी बोला कि देवी विचार करके बताओ तुम्हे जो चाहिए वो अवश्य मिलेगा मेरे इस भोजन के मूल्य के रूप में लेकिन....

(चाँदनी महात्मा की बात काटते हुए)

चाँदनी: नहीं महाराज मुझे तो बस पोता चाहिए जो मेरे पति के नाम को आगे बढ़ाए। हमारे वंश के नाम को आगे बढ़ाए।

साधु: तथास्तु देवी किन्तु आपको अपने पोते की प्राप्ति उस समय होगी जब आप अपने घर मे नहीं होंगी।

चाँदनी: अर्थात महाराज । आप कहना क्या चाहते है। मेरे घर मे नहीं होने पोते का क्या संबंध?

साधु: देवी आपने हमे भोजन उस वक़्त प्रदान किया है जब आपके घर मे कोई नहीं था केवल आप ही थी। हमने आपके घर मे किसी और के होने का आभास तक नहीं किया। और अगर कोई है भी तो आपका पोता ऐसी अवस्था मे होगा जिसके भान घर के किसी सदस्य को नही होगा।

साधु: देवी आपको अब तीर्थ यात्रा पर जाना चाहिए । चारों धामों की यात्रा। एक माह तक एक धाम पर रुकना। और उनसे पौत्र मांगना। और याद रहे इन चार महीनों में केवल अपनी छोटी वधू से ही बात करना अन्य किसी भी पारिवारिक सदस्य से मत करना वरना परिणाम की तुम स्वयं जिम्मेदार रहोगी। ईस्वर ने चाहा तो चार संतान होंगी।

चाँदनी बाबा की बातों को सोच रही थी और समझ रही थी लेकिन जब कुछ समझ नही आया तो बाबा को पूछने के लिए गर्दन उठा कर देखा तो बाबा जा चुके थे। चाँदनी घर के बाहर आकर भी ढूंढा लेकिन बाबा कहीं भी नज़र नही आए।
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12-09-2019, 12:14 PM,
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चाँदनी बाबा की बातों को सोच रही थी और समझ रही थी लेकिन जब कुछ समझ नही आया तो बाबा को पूछने के लिए गर्दन उठा कर देखा तो बाबा जा चुके थे। चाँदनी घर के बाहर आकर भी ढूंढा लेकिन बाबा कहीं भी नज़र नही आए।


अब आगे.....


चाँदनी : (मन ही मन) है ईस्वर ये बाबा का आशीर्वाद था या शाप। कहीं बाबा किसी बात का बुरा तो नहीं मान गए। नहीं- नहीं बाबा ने तो तो आशीर्वाद ही दिया है। लेकिन मेरे यहाँ नही होने से ही पोता होगा। नहीं चार संतान होंगी। मतलब मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा। खेर जो भी हो कम से कम हमारा वंश तो आगे बढ़ सकेगा ना।

तभी घर के अंदर से चंचल आती है।

चंचल: माँ जी बधाई हो। आपको बहुत बहुत बधाई हो।

चाँदनी: अरे अरे पगली पैर तो जमीन पर रख। ऐसा क्या मिल गया जिसकी बधाई देते हुए और पगलाए जा रही हो।

चंचल: माँ जी सुरेश को बिज़नेस में बहुत फायदा हुआ है। उनका बनारस में प्रॉफिट सैंतीस करोड़ पैंसठ लाख तक हुआ है। जिस से दिल्ली में राज हमारे बिज़नेस को और भी मजबूती से चला सकता है। और दूसरी बात सुरेश ने बनारस के बिज़नेस का नया मालिक मुझे बना दिया है क्योंकि हमारे बिज़नेस पार्टनर हमारे बिज़नेस को आपसी सम्मति से एक नया रूप दे रहे है। जिसके मालिक सुरेश होंगे। ये बिज़नेस का हमारा दूसरा हेड आफिस होगा जो दुबई में होगा। अब माँ जी ना तो मुझे कहीं पर जॉब ढूंढने की ज़रूरत होगी ना ही कोई प्रॉब्लम। मैं अब खुद सुरेश की जगह आफिस में जाउंगी।

चाँदनी ने जब ये खुश खबरी सुनी तो खुशी से झूम उठी। चाँदनी ने तुरंत चंचल को गले से लगा लिया।

चाँदनी : ( मन ही मन) बाबा के आ जाने से कितनी सारी खुशियाँ एक साथ हमारे घर मे आयी है। ज़रूर बाबा का कहा हर वचन सच साबित होगा। मुझे अगर पोता चाहिए तो जल्द से जल्द तीर्थ यात्रा पर निकलना होगा। इस से पहले की सुरेश विदेश यात्रा पर निकल पड़े। सुरेश अगर विदेश चला गया तो पोता कैसे होगा। फिर पता नही वो कब आये। और फिर मैं भी तो और ज्यादा इंतजार नही कर सकती । मैं आज ही सुरेश से बात करूँगी।

चंचल चाँदनी को गले लगा कर दूर करती है और बोलती है।

चंचल: माँ जी मैं अभी ये खुश खबरी सरिता और राज को भी देती हूं।

चाँदनी: चंचल के गाल पर प्यार से हाथ फेरते हुए) हाँ बेटा ये तो सच मे खुशखबरी है। जाओ उन्हें जल्दी से फ़ोन करके खुशखबरी सुना दो। और हां अगर हो सके तो सरिता को कुछ दिनों के लिए यहां बुला लो।

चंचल तुरंत अपने कमरे में जाति है और सरिता को फ़ोन मिला देती है। सरिता और चंचल में बात होने लगती है। दोनों खुशी से झूम रही थी।

चंचल: अच्छा सुनो सरिता! वो माँ जी ने तुम्हे यहां बनारस बुलाया है।

सरिता: मुझे? पर क्यों?

चंचल: पर क्यों? लगता है राज के घर मे जल्दी घर बना लिया बन्नो। तो क्या अपनी दीदी के पास भी नहीं आओगी।

सरिता: नहीं नही दीदी ऐसी बात नही है। आप तो जिठानी है मेरी। लेकिन राज कैसे आएंगे मेरे साथ? वो तो बिज़नेस.....

चंचल: पगली इसीलिए तो सिर्फ तुझे बुलाया है। अब जल्दी से ट्रेन में बैठ और आज।
सरिता: लेकिन दीदी...
चंचल: लेकिन वेकीन कुछ नहीं तू जल्दी आज बस।
सरिता : हा हा हा जी दीदी। बिल्कुल मैं करती हूँ राज से बात और फिर आपको बताती हूँ।

चंचल: अच्छा ठीक है। और सुन कुछ दिनों की कसर निकाल कर आना। यहां राज के बिना रहना पड़ेगा।

सरिता: (लजाते , शर्माते) धत्त दीदी...

चंचल: (हंसते हुए) चल रखती हूँ फ़ोन जल्दी आना और हाँ ध्यान से आना। अपना ख्याल रखना।

सरिता : जी दीदी बाय..
दोनों अपने अपने हाथ मे फ़ोन लिए कुछ सोचती है और फिर मुस्कुराकर अपने अपने काम मे लग जाती है। वहीं दूसरी और चाँदनी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए सामान जमाने लगती है। चाँदनी की तीर्थ यात्रा की तैयारी जोर शोर में थी।
पूरा परिवार खुशियों से झूम रहा था लेकिन ये खुशियां उस हवा की तरह थी। जो तूफान का संकेत देती है। पहले हल्की हल्की चलती है फिर अचानक से इतनी तेज आती है कि सब कुछ बर्बाद कर देती है। इस बात का एहसास अभी तक पूरे घर में किसी को भी नहीं था। चलता भी कैसे सब कुछ बहोत आराम से खुशी खुशी हो रहा था।
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12-09-2019, 12:15 PM,
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चंचल: (हंसते हुए) चल रखती हूँ फ़ोन जल्दी आना और हाँ ध्यान से आना। अपना ख्याल रखना।

सरिता : जी दीदी बाय..
दोनों अपने अपने हाथ मे फ़ोन लिए कुछ सोचती है और फिर मुस्कुराकर अपने अपने काम मे लग जाती है। वहीं दूसरी और चाँदनी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए सामान जमाने लगती है। चाँदनी की तीर्थ यात्रा की तैयारी जोर शोर में थी।
पूरा परिवार खुशियों से झूम रहा था लेकिन ये खुशियां उस हवा की तरह थी। जो तूफान का संकेत देती है। पहले हल्की हल्की चलती है फिर अचानक से इतनी तेज आती है कि सब कुछ बर्बाद कर देती है। इस बात का एहसास अभी तक पूरे घर में किसी को भी नहीं था। चलता भी कैसे सब कुछ बहोत आराम से खुशी खुशी हो रहा था।




अब आगे.....



चाँदनी ये भली भांति जानती थी कि उसके बड़े बेटे यानी कि सुरेश को ये तन्त्र-मन्त्र और बाबाओं पर शुरू से ही भरोसा और विश्वास कम था। तो चाँदनी ये सीधे सीधे तो सुरेश को बोल नहीं सकती थी कि वो तीर्थ यात्रा पर एक बाबा के कहने पर जा रही है जिन्होंने आस्वासन दिया है कि उनके तीर्थ यात्रा पूरी होने पर ही चाँदनी के घर मे पोता होगा जो उनके वंश को आगे बढ़ाएगा।


इसलिए चाँदनी के लिए समस्या ये नही थी कि सुरेश से बोलकर तीर्थ यात्रा पर जाए। वैसे सुरेश चाँदनी का बड़ा ही आज्ञाकारी बेटा है। यदि चाँदनी उसे तीर्थ यात्रा के लिए बोले तो वो खुद उन्हें तीर्थ यात्रा करवा लाये। लेकिन यदि वो ऐसा करेगा तो पोता कैसे होगा? इसलिए चाँदनी चाहती थी कि बाबा और उनकी बात सुरेश से छिपी रहे और वो अकेले तीर्थ यात्रा पर भी निकल सके। चाँदनी इसी बात पर परेशान थी। यहाँ तक कि चाँदनी ये बात न तो सुरेश को बोल सकती थी और ना ही चंचल को। तभी चाँदनी के मन मे ख्याल आया कि जब भी बात करनी हो इस विषय पर तो अपनी छोटी बहू से पूछना। चाँदनी के लिए अब केवल और केवल सरिता ही एक मात्र ज़रिया रह चुकी थी।

चाँदनी चंचल के कमरे को नॉक करके चंचल से बोलती है कि वो उनकी बात सरिता से करवाये।

चंचल तुरंत अपनी सास के कहे अनुसार सरिता को फ़ोन लगा देती है। चाँदनी फ़ोन लेकर अपने कमरे में चली जाती है और दरवाजा अंदर से बंद करके अपनी छोटी बहू सरिता से बात करने लगती है।

चाँदनी:


हेलो बहू! कैसी हो? सब कुशल से तो है ना।

सरिता:



माँ जी प्रणाम !जी माँ जी सब कुशल से तो है ?आप कैसी है?

चाँदनी: क्या बताऊँ बहू थोड़ी सी परेशान हूँ!

सरिता: परेशान? इतनी बड़ी खुशी का मौका है सासु माँ और आप परेशान हो? लेकिन क्यूँ?

चाँदनी: चुप कर ! तू भी न कुछ भी सोच लेती है। सुरेश की तरक्की के लिए तो में बहुत खुश हूँ। लेकिन मैं इस लिए परेशान हूँ क्योंकि मैं तीर्थ यात्रा पर जाना चाहती हूँ। लेकिन मैं सुरेश या राज में से किसी को लेकर नहीं जाना चाहती और चंचल सुरेश का यहां बनारस में काम संभालेगी तो कम से कम तुम ही तो रहोगी घर और रहने के लिए।

सरिता: इसमे परेशानई क्या है? आप खुद भी तो जाकर आ सकती है ना माँ जी!

चाँदनी: अरे पगली जाने को तो मैं धरती के सात चक्कर काट ने जा सकती हूँ। लेकिन ये सुरेश है ना ये मुझे अकेले कहीं जाने ही नहीं देता। पता नही मुझे तीर्थ यात्रा पर भी जाने देगा कि नहीं। इसलिए सोचा कि तेरी मदद ले लूँ। लेकिन तू तो कुछ समझ ही नहीं रही!

सरिता: वह तो ये बात है मतलब आपकी परेशानी कुछ भी नही है बस इतनी सी है कि आपके साथ जाने वाला कोई चाहिए ताकि जेठ जी को आपको अकेले भेजने में कोई तकलीफ ना हो। यही ना?

चाँदनी: हाँ! यही है। लेकिन ये छोटी सी नहीं बहुत बड़ी समस्या है।

सरिता: मा जी आप मेरी मम्मी से बात क्यों नही करती? दरअसल क्या है ना कि मेरी मम्मी और पापा दोनो मेरी शादी हो जाने के बाद तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते थे। लेकिन उनको वो मौका कभी लगा ही नहीं। तो आप अगर उनको अपने साथ ले जाएगी तो सारी समस्या का हल अपने आप ही हो जाएगा।

चाँदनी: सच्च बहू! क्या ये हो सकता है?

सरिता: रुकिये माँ जी ! मैं खुद उन्हें आपके साथ जाने को बोल देती हूँ।

चाँदनी: थैंक यू बेटा ! अब तेरी मदद से मेरी तीर्थ यात्रा ज़रूर सफ़ल होगी।

सरिता चाँदनी की बातें सुनकर शर्मा जाती है।

सरिता: क्या माँ जी आप भी ना। रुकिये मैं मम्मी पापा स बात करती हूँ
चाँदनी और सरिता का फ़ोन काट जाता है। करीब पंद्रह मिनट बाद सरिता का कॉल आता है जिसमे सरिता चाँदनी को बोलती है कि
सरिता: हेलो माँ जी! मुबारक़ हो मम्मी और पापा कल ही अपना सामान लेकर अपने बनारस वाले घर आ रहे है। और कल मैं भी बनारस पहुंच जाउंगी। आज रात को ट्रेन में बैठ जाउंगी। हो सका तो मैं भी जेठ जी को समझाने का प्रयास कर लूँगी।

चाँदनी: थैंक यू बेटा अब तू जल्दी से घर आज बस। तूने तो मेरी सारी परेशानियां ही दूर कर दी। भगवान ने मुझे दो बहुएं दी है दोनों की दोनों ऐसे है कि मुझे लगता है जैसे पिछले जन्म के चारों तीर्थों का पुण्य मुझे इस जन्म में बहुओं के रूप में मिला है।

सरिता शर्मा जाती है। कुछ देर इधर उधर की बातें होती है और फिर फ़ोन काट देते है। उधर राज आज घर जल्दी आ गया था। अभी दोपहर के 3 ही बजे होंगे मुश्किल से और राज घर पर । ये तो सरिता के लिए भी सरप्राइज था।
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12-09-2019, 12:15 PM,
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चाँदनी: थैंक यू बेटा अब तू जल्दी से घर आज बस। तूने तो मेरी सारी परेशानियां ही दूर कर दी। भगवान ने मुझे दो बहुएं दी है दोनों की दोनों ऐसे है कि मुझे लगता है जैसे पिछले जन्म के चारों तीर्थों का पुण्य मुझे इस जन्म में बहुओं के रूप में मिला है।

सरिता शर्मा जाती है। कुछ देर इधर उधर की बातें होती है और फिर फ़ोन काट देते है। उधर राज आज घर जल्दी आ गया था। अभी दोपहर के 3 ही बजे होंगे मुश्किल से और राज घर पर । ये तो सरिता के लिए भी सरप्राइज था।


अब आगे....


सरिता दरवाजे को खोलते ही जैसे ही राज को सामने पाती एकदम से चोंक जाती है। सरिता के लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज था। हो भी क्यों नहीं जो आदमी अपने काम को ज्यादा महत्व देता हो वो आज काम से जल्दी कैसे? कोई गवर्मेंट जॉब तो है नही की हाफ डे था और घर लौट आये।

सरिता: अरे आप? इस वक़्त? यहां? कैसे?

राज: अरे कब ? क्यूँ? कहां? कैसे? बाद में पूछना पहले मुझे अंदर तो आने दो। किसी पराये मर्द की तरह मुझे बाहर ही सारे क्वेश्चन पूछ लोगों क्या?

सरिता को अपनी भूल का एहसास होता है कि उसने राज को सरप्राइज के चक्कर मे अंदर आने को भी नहीं कहा।

सरिता: ओह सॉरी सॉरी सॉरी ( शर्मिंदा होते हुए) आईये। मैं पानी लाती हूँ।

राज: अरे यार छोड़ो ये फालतू की फॉर्मेलिटी

( राज इतना बोलकर सरिता के हाथ को पकड़ कर अपनी और खींचता है और अपने सीने से लगा लेता है।

सरिता: आउच... क्या कर रहे हो कोई देख लेगा।

(राज जल्दी से सरिता को छोड़ ते हुए)

राज: यहां ? अपने घर मे? यहां कौन देखेगा?

सरिता: इश्ssssssss ( बच्चों की तरह सरिता राज की तरफ जीभ निकालते हुए ) जब मालूम है घर में कोई नहीं देखेगा तो फिर छोड़ा क्यों?

राज: क्या? मतलब मेरे साथ ही नाटक?

सरिता राज की तरफ जीभ निकाल कर भागने लगती है। वहीं राज भी सरिता की मासूमियत और नादानी पर खुद भी बच्चा हो जाता है और सरिता के पीछे भागने लगता है। लेकिन सरिता तो पल भर में राज के पास से उड़न छू हो जाती है। पतली बपखाती कमर, हिरनी सी चाल , कजरारी आंखें, मलमली होंठ, दूध से रंग अप्सराओं सा योवन इतनी जल्दी हाथ भी कैसे आता । आखिर में राज थक कर गिरने का नाटक करते हुए नीचे गिर जाता है। सरिता राज को गिरता देख कर जल्दी से राज की तरफ भागती है और राज तुरंत सरिता को लपक कर गले लगा लेता है।

सरिता : अरे अरे गिर जाओगे! आपको कहीं लगी तो नहीं?

राज: ( सरिता की आंखों में देखते हुए) अब तो मैंने तुम्हें पकड़ लिया! अब तो नही जाने दूंगा।

सरिता राज की चालाकी अब समझ जाती है। सरिता अपनी नाजुक कलाईयों से राज के सीने में मारते हुए बोलती है।

सरिता: चीटिंग, चीटिंग की आपने वरना आप मुझे नही पकड़ पाते।

राज: अच्छा भला क्या चीटिंग की मैंने?

सरिता: नाटक किया आपने? अगर आप गिरने का नाटक नही करते तो आप मुझे पकड़ ही नही पाते।

राज एक पल की प्यार भरी मुस्कुराहट के साथ सरिता की आंखों में देखते हुए बोलता है।

राज: अच्छा ऐसी बात है तो लो छोड़ दिया तुम्हे! ( राज अपनी बाहों के घेरे को सरिता की कमर से ढीला कर देता है।) जाओ जहां जाना चाहती हो! लेकिन मेरी बाहों से निकलने के लिए पहले नाटक तो तुमने किया था याद है ना "कोई देख लेगा"। (हंसते हुए)

अब सरिता राज की आंखों में प्यार से देखते हुए राज की कमर को जकड़ लेती है।

सरिता: नाम तो मैं आपको छोडूंगी ना आपको छोड़ने दूंगी। चुपचाप पकड़ लो मुझे।

राज एक बार फिर से सरिता को अपनी बाहों में जकड़ लेता है और सरिता की आंखों में देखते हुए सरिता पर झुकता चला जाता है। जैसे जैसे राज सरिता पर झुकता जाता है वैसे वैसे सरिता की आंखें मदहोश होते हुए बन्द होती जाती है और होंठ। किसी कली की तरह ! जैसे कोई कली खिल रही हो। ठीक उसी तरह सरिता के होंठ फड़फड़ाते हुए खुलने लगते है। और राज के होंठ होले होल सरिता की गर्म साँसों को महसूस करते हुए सरिता के होंठों से जा मिलते है।

दोनों इतना मादक किश कर रहे थे कि रति और काम देव भी इस समय होते तो रति क्रिया में लीन हो जाते। लग भग दो या ढाई मिनेट तक चले किश को दरवाजे की एक बेल ने तोड़ा। अगर ये दरवाजे की बेल ना बजती तो शायद दोनों युगों युगों तक एक दूसरे में लीन रहते।

दरवाजे की बेल बजते ही दोनों हड़बड़ाते हुए एक दूसरे से अलग हुए । सरिता जैसे ही हड़बड़ा कर दरवाजे की तरफ जाने लगी तो सरिता का मंगलसूत्र राज की शर्ट के बटन मैं उलझ गया। सरिता तुरंत मंगल सूत्र को सुलझानें में लग गयी जिसे सुलझाने में करीब 2-3 मिनट लग गए। और राज अपनी जगह खड़े खड़े सरिता को मुस्कुराते हुए देखता रहा।

मंगल सूत्र के निकलते ही सरिता जल्दी से दरवाजा खोलती है। दरवाजा खुलते ही सरिता सामने देखती है कि वहां पर फरिहा और दो तीन लड़कियां खड़ी है। दर असल सरिता के पड़ोस में ही गर्ल्स पी जी है जहां कई सारी लड़कियां रहती है। उनमें से फरिहा काफी पुरानी लड़की है। फरिहा यहां राज और सरिता के आने से पहले से है। फरिहा पी.एच्. डी. कर रही है। इसलिए राज और सरिता फरिहा को अच्छी तरह से जानती है। फरिहा की शादी को तीन साल हो गए। खेर ये सब बाद में फिलहाल उसके आने के कारण को जान ले।

सरिता: फरिहा ? तुम यहाँ? इस वक़्त?

फरिहा: (शैतानी मुस्कुराहट के साथ) क्यूँ दीदी गलत टाइम पर आ गयी क्या?

सरिता: ( झेंपते हुए) अरे नही नहीं ऐसी कोई बात नहीं।

फरिहा: ( सरिता के कान के पास आते हुए) लेकिन दीदी आपके इन नाजुक होंटों के पास मैं फैली हुई लिपस्टिक तो कुछ और ही बोल रही हूं।

सरिता: (तुरंत साड़ी के पल्लू से अपने होंटों को साफ करते हुए) अरे नही कुछ नहीं ये तो बस ऐसे ही

फरिहा: (सरिता को छेड़ते हुए) अरे बताओ ना दीदी प्रॉमिस हम किसी से नहीं कहेंगी। भैया परेशान करने के मूड में है क्या? चाहो तो हम बाद में आ जाते है?

सरिता: धत्त बेशर्म ( मजाक में फरिहा के कंधे पर मारते हुए) फालतू की बात छोड़ और ये बता कैसे आना हुआ?

फरिहा: ओह हो तो अब हमें जल्दी से भगाने की फिराक में हो आप? अच्छा तो ठीक है। हम तो आपसे थोड़ी सी चीनी और दूध लेने आये थे। दर असल हमारे एग्जाम है। और बाहर दुकान बंद है। और अगर दूर भी गए तो शाम को 5 बजे पहले दूध शायद ही किसी के पास मिले इस लिए आप से लेने आ गये।

सरिता: अच्छा किया। रुको मैं लाती हूँ।

करीब पांच मिनट बाद सरिता फरिहा को एक दूध का पैकेट और थोड़ी सी चीनी देकर विदा कर देती है। फरिहा के जाने के बाद सरिता मन ही मन मुस्कुराते हुए फरिहा की छेड़खानी को याद करती है।

सरिता: पागल,

राज: (ठीक सरिता के पीछे धीरे धीरे आ रहा होता है) क्या कहा? पागल? अरे भाई अब तो हमे सब पागल ही कहेंगे । महोबत मैं कौनसा इंसान समझदार होता है।

सरिताSad सरिता तुरंत पीछे पलट जाती है)अरे नहीं नहीं आपको नही वो तो मैं उस फरिहा को खेर जाने दो ये सब लेकिन आपने अभी तक ये नहीं बताया कि आज आप जल्दी कैसे?


राज : अरे बात ही खुशी की थी तो जल्दी आना ही था। दर असल मेरे पास कुछ देर पहले सुरेश भैया का कॉल आया था। उन्होंने बिज़नेस मैं हुए प्रॉफिट और हमारे बिज़नेस मैं होने वाली हेल्प के बारे में बताया तो तुमसे मिलकर बताने का दिल किया सो आ गया। और वैसे भी मैं कौनसा गवर्नमेंट जॉब मैं हूँ जो अपनी मर्जी से आ जा भी नहीं सकता।

सरिता: जी ऐसा तो मैंने नहीं कहा बस आपका जल्दी आना थोड़ा सा मेरे लिए सरप्राइज सा था।

राज : अच्छा जी।

सरिता : जी... और हां एक बात और माँ जी और चंचल दीदी का कॉल आया था। दोनों ने मुझे आज ही बुलाया है। तो शाम की ट्रेन कर ली मैंने।

राज: हम्म मुझे सुरेश भैया ने भी बोला था कि कुछ दिन के लिए तुम्हे चंचल के साथ रहने दूँ।

सरिता : वो क्यों?

राज: क्यों की सुरेश भैया अपने बिज़नेस को अपने पार्टनर्स के साथ फॉरेन मैं ले जाएंगे। और उनके पार्टनर्स आज रात को फॉरेन जा रहे है और वो भैया को भी साथ ले जा रहे है। जिसके लिए उन्होंने भैया का टिकट बिना भैया को बताए ही बुक करवा लिया ।

सरिता : व्हाट? तो क्या इस बात का अभी तक माँ जी और चंचल दीदी दोनों को पता नहीं।

राज: हाँ अभी तक तो नहीं है। यार तुम तो जानती हो बाबाओं के चक्कर ने माँ को साइको बना दिया है। जब देखो तब आज दिन सही नहीं, अभी मुहूर्त नहीं वगैरा वगैरा। और फिर मुहूर्त और इन सब मैं कोई भी इंसान इतना अच्छा मौका थोड़े ही छोड़ सकता है।

सरिता: (थोड़ा सोचते हुए) हाँ ये भी ठीक है लेकिन फिर भी कम से कम चंचल दीदी को तो?
राज : (सरिता की बात काटते हुए) अब कोई लेकिन वेकीन नहीं। तुम भी ये बात माँ और भाभी को नहीं बताओगी। भैया अपने मन से बताये तो अच्छा है और नहीं बताये तो ये भी उन पर छोड़ दो। हम दोनों अच्छे से जानते है भैया माँ और भाभी दोनो को बहुत चाहते है। अगर वो नही बात रहें है तो सोचो कितनी बड़ी मुश्किल में होंगे।

सरिता : ओके बाबा, खुश, अब इतना स्ट्रेस में मत रहो! आप बिलकुल भी अच्छे नहीं लगते स्ट्रेस में।

राज: अच्छा , तो फिर मेरा स्ट्रेस दूर कर दो ना।

सरिता : मैं कैसे दूर करूँगी आपका स्ट्रेस ? ( सोचते हुए)

राज : ( सरिता को बाहों में लेते हुए) मेरी जान मेरे साथ आज शाम तक डेट पर चलकर। जब तक तुम्हारी ट्रैन नहीं आती तब तक तुम्हारी खुशबू मैं अपने आप में बसा लेना चाहता हूँ।

सरिता : (राज को बाहों में जकड़ते हुए) अच्छा तो शादी के बाद भी जनाब को डेट पर जाना है। अपनी ही बीवी को गर्लफ्रैंड की तरह घुमाना है। ह्म्म्म तो जनाब आप छोड़ेंगे तभी तो तैयार हो पाऊंगी ना डेट के लिए।
राज: ना दिल नही कर रहा

सरिता : तो ठीक है शाम तक ऐसे ही रहते है।

राज: तुम ना नहीं सुधरोगी ( सरिता को बाहों के बंधन से मुक्त करते हुए) जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ। और हां कॉलेज गर्ल टाइप बनना। मेरा मतलब साड़ी मत पहनना वेस्टर्न कुछ पहनना । आज मैं मेरी बीवी और गर्लफ्रैंड दोनों से मिलना चाहता हूं।

सरिता शर्माते हुए टॉवल उठा कर चली जाती है।

वहीं दूसरी और सुरेश बेहद परेशान था। सुरेश को समझ नही आ रहा था कि क्या करे और क्या ना करे। सुरेश इतना परेशान था कि उसे आफिस में ही इमरजेंसी के लिए डॉक्टर को बुलाना पड़ गया।
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12-09-2019, 12:15 PM,
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RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
अपडेट - 6




राज: तुम ना नहीं सुधरोगी ( सरिता को बाहों के बंधन से मुक्त करते हुए) जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ। और हां कॉलेज गर्ल टाइप बनना। मेरा मतलब साड़ी मत पहनना वेस्टर्न कुछ पहनना । आज मैं मेरी बीवी और गर्लफ्रैंड दोनों से मिलना चाहता हूं।

सरिता शर्माते हुए टॉवल उठा कर चली जाती है।

वहीं दूसरी और सुरेश बेहद परेशान था। सुरेश को समझ नही आ रहा था कि क्या करे और क्या ना करे। सुरेश इतना परेशान था कि उसे आफिस में ही इमरजेंसी के लिए डॉक्टर को बुलाना पड़ गया।





अब आगे....




करीब आधे घंटे बाद सरिता एक सलवार सूट मैं बाथरूम से बाहर आती है। राज उस वक़्त हॉल में बैठा बैठा कोई मैगजीन पढ़ रहा था। सरिता बिना राज को डिस्टर्ब किये चुप चाप अपने रूम में चली जाती है और तैयार होने लगती है।



तैयार होते हुए सरिता बार बार राज के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा रही थी। सरिता सोच रही कि वो कितनी लकी है जो इतना प्यार करने वाला पति उसके नसीब में है।

सरिता राज की इच्छा के अनुसार एक वेस्टर्न ड्रेस निकालती है। दरअसल बनारस में तो साड़ी के अलावा सरिता सलवार सूट पहन सकती थी लेकिन वेस्टर्न ड्रेस वहां सख्त मना थी। लेकिन यहां दिल्ली में राज ने खुद सरिता को कहा था कि वेस्टर्न ड्रेस पहना करो। तुम्हारा पति एक बिज़नेस मैन है। अगर किसी पार्टी में हम साथ चले तो उस पार्टी की रौनक सिर्फ और सिर्फ तुम ही लगो। इस लिए सरिता ने काफी सारे महंगे और अच्छे हॉट सेक्सी वेस्टर्न ड्रेसेस ले रखे थे। उनमें से आज एक सरिता ने सेलेक्ट करके पहन लिया।



जैसे ही सरिता अपने कमरे से तैयार होकर बाहर आई तो राज की नज़र पहले सरिता पर पड़ी।नज़र क्या पड़ी राज तो सरिता को देखते ही रह गया। वेस्टर्न ड्रेस में सरिता सच में कोई कॉलेज गर्ल लग रही थी। किसी भी तरीके से कोई ये नही कह सकता था कि सरिता की शादी 2 साल पहले हो चुकी हो। राज को इस तरह से घूरते देख सरिता शर्माते हुए राज से बोलती है...

सरिता:-


ऐसे क्या देख रहे हो? प्लीज न ऐसे मत देखो मुझे शर्म आती है।

राज सरिता की आवाज सुनकर अपने ख्वाबों से बाहर आता है।

राज: देख रहा हूँ मेरी पत्नी अभी तक आयी नहीं। वैसे आप कुछ लेंगी ठंडा गर्म कुछ। आप बैठिये मैडम मैं ऊनी पत्नी को बुला कर लाता हूँ... (सरिता को आवाज देते हुए) सरिताssss सरिता तुम्हारी कोई दोस्त आयी हुई हैं।

राज ऐसा बोलते हुए नाटक करता हुआ सरिता के पास से बैडरूम मैं जाने लगता है। तभी सरिता वहां खड़े खड़े राज का हाथ पकड़ कर उसे रोक लेती है और बोलती है...

सरिता: युsssss.... तुम ना ज्यादा नाटक नही कर रहे। ऐसे बेहवे कर रहे हो जैसे मुझे पहचानते ही नहीं। अगर ऐसा है तो रुको मैं वापस जा कर चेंज करके आती हूँ।

इस बार सरिता बेडरूम की और जाने लगती है लेकिन जो हाथ कुछ देर पहले सरिता ने पकड़ा था राज उसी हाथ से सरिता को पकड़ कर अपनी और खींचता है जिस से सरिता एकदम से राज के सीने से लग जाती है।



राज: (होल से सरिता के कान में) ऐसे खूबसूरत लम्हे मेरी नज़रों से छीन लेने का अधिकार मैंने उस ऊपर वाले को भी नहीं दिया। फिर तुम तो मेरी जान हो।

सरिता राज की बात सुन कर मुस्कुरा देती है।



सरिता: फिर ये नाटक क्यों किया?

राज: क्योंकि मैं जिस सरिता को थोड़ी देर पहले मिला था वो मेरी पत्नी थी। लेकिन अभी जिसको मैंने देखा है वो मेरी पत्नी नहीं बल्कि कोई बला की खूबसूरत परी है जिसे मैं पटाना चाहता हूँ। प्रोपोज़ करके अपनी गर्लफ्रैंड बनाना चाहता हूँ। उसके साथ डेट पर चलना चाहता हूँ।

राज इतना बोलकर अपने घुटनों पर बैठ कर सरिता से बोलता है।

राज: क्या आप मेरे साथ डेट पर चलेंगी।

सरिता: नहीं

राज: (चोंकते हुए) क्यूँ?

सरिता : मैं जिसके साथ डेट पर जाउंगी वो भी तो कॉलेज का लड़का होना चाहिए ना मैं किसी बिज़नेस मैन के साथ डेट पर क्यों जाऊं। मुझे पैसे कमाने वाला नही बल्कि मेरा बॉयफ्रेंड चाहिए।

राज : अच्छा जी ये बात है तो रुको 10 मिनट में आया।

राज तुरंत अपने कमरे में जा कर तैयार हो जाता है। एक जीन्स और शर्ट ऊपर डेनिम जैकेट एक दम जैसे कॉलेज स्टूडेंट्स हो।

इस बार इम्प्रेस होने की बारी सरिता की थी।

राज: क्या अब आप मेरे साथ डेट पर चलेंगी।

सरिता: ऑफकोर्स चलूंगी बाबा..

दोनों हंसते हुए अपनी गाड़ी से शहर के पास ही के टूरिस्ट प्लेस पर चले जाते है। जहां पर बहुत से कपल थे।

दोनों एक दूसरे के हाथ में हाथ डाले टूरिस्ट प्लेस घूम रहे थे।



एक अच्छे से रेस्टॉरेंट मैं जा कर खाना खाते है।

फिर वापस आते वक्त एक खूबसूरत से प्लेस पर फोटोशूट होता देख दोनों रुक जाते है। राज सरिता को बोलता है चलो अपना भी एक फोटो तो बनता है। सरिता मुस्कुराते हुए राज के साथ चल देती है।

राज कैमेरा मैन से बात करके सरिता को गले लगाते हुए फ़ोटो खींचता है। ठीक उसी समय राज अपने पॉकेट से एक रिंग निकाल कर कैमरा मैन को दिखाते हुए पूछता है कैसी है।




कैमरा मैन इशारों में बताता है कि बहुत खूबसूरत है। और उसी सीन की फ़ोटो कैप्चर कर लेता है। उसके बाद राज घुटनों पर बैठ कर सरिता को प्रोपोज़ करता है। और सरिता से जीवन भर का साथ निभाने का पूछता है।

सरिता खुशी खुशी वो रिंग ले लेती है। लेकिन दोनों की ये खुशिया बस आज इतनी ही थी। क्यों कि सरिता के मोबाइल में एक अलार्म बज पड़ता है जिसे देख कर सरिता और राज दोनों मायूस हों जाते है क्योंकि अब जुदाई की घफी आ गयी थी। सरिता की ट्रेन का समय हो चला था।

राज सरिता को किस करता है और उसे तुरंत गाड़ी में बिठा कर घर और घर से सामान उठा कर रेलवे स्टेशन ले जाता है। जहां सरिता को रेल में बिठा कर राज सरिता को विदा करता है।

अब कहानी के दूसरी और चलते है।

सुरेश : डॉक्टर, आखिर प्रॉब्लम क्या है? ये मेरे साथ आज ही हुआ है।

डॉक्टर: देखिए सर मैं डॉक्टर हुन भगवान नहीं। इस चीज का मैं क्या दुनिया में कोई भी इलाज नहीं है। केवल और केवल आप ही खुद को ठीक कर सकते है।
सुरेश: मैं पर कैसे?

डॉक्टर: आपको क्या प्रोब्लेम है? कोई टेंशन है? किसी बात से परेशान है? कोई अन नेसेसरी स्ट्रेस है? जिसके कारण से आपको एक दौरा पड़ा था। साधारण भाषा में कहूँ तो ये घबराहट का दौरा था। जिसके कारण से आपकी दिल की धड़कने बढ़ गयी और आपको दिल के दौरे जैसा अनुभव हुआ।

सुरेश: ओके डॉक्टर! मैं समझ गया। आप जा सकते है। फिलहाल के लिए मुझे कुछ मेडिसिन दे दे।

डॉक्टर कुछ दवाईयां लिख कर सुरेश को दे देता है। सुरेश तुरंत अपने चपरासी को बोलकर दवा मंगवाता है और ले लेता है।

दर असल सुरेश को इस बात से परेशानी थी कि अगर वो अपनी मां को बताता है की वो एक महीने के लिए फॉरेन टूर पर जा रहा है तो उसकी माँ उसे इजाजत नहीं देगी। और ये प्रॉफिट सिर्फ और सिर्फ अपने पार्टनर्स के कारण मिला है । उन्होंने तो टिकट तक करवा ली। अब उन्हें माना करना उन्हें नाराज करने जैसा होगा। इसलिए सुरेश बहुत टेंशन मैं था।

शाम होते होते सुरेश ने निर्णय लिया कि आज मैं मां की नही बल्कि मा मेरी सुनेंगी । सुरेश खुद को मेंटली तैयार करके घर के लिए निकल चुका था।

वहीं घर पर चाँदनी ने भी निर्णय कर लिया था कि आज वो सुरेश की नहीं सुनेंगी बिल्कुल भी नहीं। आज सीधे सीधे वो अपना निर्णय सुरेश को सुनाएंगी और उसे इसे मानना पड़ेगा।
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12-09-2019, 12:16 PM,
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शाम होते होते सुरेश ने निर्णय लिया कि आज मैं मां की नही बल्कि माँ मेरी सुनेंगी । सुरेश खुद को मेंटली तैयार करके घर के लिए निकल चुका था।

वहीं घर पर चाँदनी ने भी निर्णय कर लिया था कि आज वो सुरेश की नहीं सुनेंगी, बिल्कुल भी नहीं। आज सीधे सीधे वो अपना निर्णय सुरेश को सुनाएंगी और उसे इसे मानना पड़ेगा।


अब आगे.....


देर शाम को सुरेश घर पहुंचा। सुरेश थोड़ा असमंजस में ज़रूर था इसलिए हिम्मत जुटा कर सुरेश ने डोर बेल बजा दी। डोर बेल के बजट ही चांदनी और चंचल दोनों को एहसास हो गया था कि सुरेश घर आया होगा। चंचल दौड़ते हुए दरवाजे तक गयींऔर दरवाजा खोल दिया। चंचल अपनी सास का लिहाज करते हुए रुक गयी वरना तो चंचल की एक्साइटमेंट से लग रहा था कि वो वही सुरेश को अपने चुम्बनों से भिगो देती। लेकिन चंचल ने खुद पर काबू पाते हुए सुरेश को अंदर बुलाया और खुद किचन में चली गयी।

चांदनी: आओ बीटा मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। बड़ी खास बात है। इसलिए मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी ।

सुरेश: माँ मुझे भी आपसे कुछ बात करनी थी अगर आप....

चांदनी: (सुरेश की बात को काटते हुए) आज तू सिर्फ मेरी सुनेगा। घर का बड़ा बेटा है तू इस लिए मैंने तुझे किसी काम से नही रोका। हमेशा अपनी माँ कि सेवा मैं लगा रहता है। इसलिए आज सिर्फ मेरी सुनेगा और बीच में कुछ नहीं बोलेगा।

सुरेश: लेकिन माँ मेरी बात तो....

चांदनी: बस बहुत हो गया अब चुप चाप सुनो। मैं कल सुबह जल्दी यहां से तीर्थ यात्रा पर निकल जाउंगी। मुझे मालूम था तू मेरे साथ जाने की जिद करेगा लेकिन फिर ये बिज़नेस कौन संभालेगा? और फिर मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम और चिंता में इनसे भी बे फ़िक़्र नहीं हूँ। सो मैंने छोटी बहू की मम्मी यानी कि मेरी समधन से भी बात की तो वो भी तैयार हो गयी तीर्थ यात्रा के लिए। इस लिए तुझे मेरी फ़िक़्र करने की ज़रूरत नहीं है। और हां ये बात मैं शिर्फ़ तुझे बात रही हूँ इसके बारे में मुझे और कुछ नहीं सुनना।

सुरेशSadमन ही मन) अगर माँ सुबह तीर्थ यात्रा पर निकल रही है मेरे बिना तो फिर मुझे उन्हें ये बताने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी कि में एक महीने के लिए विदेश यात्रा पर जा रहा हूँ। लेकिन ये कैसे पता करूँ की माँ तीर्थ यात्रा से कब तक आएंगी। बातों बातों में ही माँ से ये निकलवा लेता हूँ।

सुरेश: लेकिन माँ ऐसे कैसे आप अकेले.... और फिर हफ्ते आध हफ्ते की ही तो बात है इसमें कौनसा बिज़नेस का नुकसान होगा। मैं चलता हूँ ना आपके साथ।

चांदनी: तुझे सुनता कम है क्या? या फिर तू समझता नही है? अभी बताया तो है मैंने की मेरे साथ मेरी समधन और समधि जी भी जा रहे है। और तुझे किसने बोल दिया तीर्थ हफ्ते गया दो हफ्ते में हो जाएगा। मुझे वहां कम से कम एकबमहीन तो लगेगा ही और उसमें भी दस पन्द्रह दिन ऊपर हो सकते है।

सुरेश : (मन ही मन खुश होते हुए) अरे वाह मतलब माँ भी एक महीने के लिए जा रही है। मतलब मैं चुपचाप जाकर आ भी जाऊंगा। फिर बाद में मैं माँ को बता भी दूंगा की मुझे उनके जाने के बाद अर्जेंट विदेश निकलना पड़ा।

सुरेश: (उदासी का नाटक करते हुए) ठीक है माँ। जब तुमने मुझसे पहले ही सब कुछ सोच कर निर्णय ले लिया तो बताओ मैं और क्या कर सकता हूँ?

चांदनी: (मुस्कुराते हुए) अपनी मां की बात मान और बिज़नेस और बहुत दोनो का ध्यान रख।

तभी चंचल पानी का गिलास और खाना लेकर आ जाती है । खाने की टेबल पर इधर उधर की बात होती रहती है। और इसी बीच सुरेश को ये भी पता चलता है कि सरिता को उसकी माँ ने भी बनारस आने के लिए बोला है। जिस का मतलब ये है कि अगर वो भविष्य में अपनी माँ को अपनी विदेश यात्रा के विषय मे ना भी बताए तो उन्हें कभी पता ही नही चल पाएगा।

खाना खाने के बाद सभी अपने अपने कमरे में चले जाते हैं। चंचल सुरेश के बेडरूम में घुसते ही उसे अपनी नाजुक बाहों में जकड़ लेती है। और अपने नाजुक से होंठ सुरेश के होंठों के नज़दीक ले जाकर....

चंचल: क्या बात है हीरो। धीरे धीरे अमीर बनने की दौड़ में लंबी रेस का घोड़ा बनते जा रहे हो।

सुरेश भी चंचल की इस बात पर मुस्कुरा पड़ता है।

सुरेश: ( चंचल को गौड़ मैं उठाते हुए) जिसकी पत्नी महारानी हो उसे तो राजा बनना ही पड़ेगा ना जान।

दोनों अपनी मीठी मीठी बातों और शैतानियों मैं खोकर गले लग जाते है और हँसने लगते है।

सुरेश और चंचल का करीब 30 से 40 मिनट तक मिलान समारोह चलता रहता है। जिसकी हल्की हल्की आवाजें चाँदनी को भी सुनाई पड़ती है।

चाँदनी तो चाहती भी यही है कि दोनों बेटे बहु इतनी रास लीला करें कि उनके घर में किलकारियां गूंज उठें। बड़ी मुश्किल से चाँदनी अपने बेटे बहु से अपना ध्यान हटा कर नींद के आगोश में चली गयी।

सुबह करीब 4 -4.30 बजे....

ठक ठक ठक...... (दरवाजे पर नॉक)

चाँदनी: सुरेश ओ सुरेश...

चाँदनी की आवाज और दरवाजे पर हुई नॉक से चंचल की नींद खुल गयी। चंचल हड़बड़ा कर उठती है और दरवाजे की तरफ दौड़ती है लेकिन आधे रास्ते मे ही रुक जाती है। दरअसल चंचल रात को सुरेश के साथ काम क्रीड़ा करते करते थक कर सो गई थी। तबसे लेकर अब तक उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। चंचल ने सुरेश की तरफ नज़र उठाकर देखा तो सुरेश नींद के आगोश में था। चंचल ने तुरंत अपने कपड़े ढूंढे जो कि वास्तव इस वक़्त मिल पाना मुश्किल था। कुछ कपड़े सुरेश के नीचे दबे थे तो कुछ बिस्तर के इर्द गिर्द बिखरे थे। चंचल ने तुरंत अपनी कबड़ की और रुख किया और एक सलवार और सूट निकल कर पहन लिया। फिर चाँदनी को आवाज देते हुए....

चंचल: आयी माँ जी...

चंचल दरवाजा खोलने से पहले सुरेश को उठा कर बाहर चाँदनी के होने की खबर देती है। जिसे सुनकर सुरेश तुरंत नग्न हालत में ही बाथरूम में भाग जाता है।

चंचल दरवाजा खोलती है तो सामने चाँदनी खड़ी मिलती है।

चंचल: जी मां जी

चाँदनी: अरे क्या जी माँ जी? सुरेश कहाँ है? उसे कहो मुझे तुरंत ट्रैन मैं बिठा कर आये। मैं लाते हो रही हूं भाई।

तभी सुरेश बाथरूम से तैयार होकर आता है। दरअसल सुरेश के रात के कुर्ते पाजामे बाथरूम में थे जिनको वो सोते समय पहनता था। तो उन्हें ही पहन कर सुरेश बाहर आ गया।

सुरेश: हां माँ बस अभी चलते है।

सुरेश एक कॉल करता है और चंचल को चाय के लिए बोल देता है। चंचल किचन में जाकर चाय बनाने लगती है। तब तक सुरेश अपने आफिस सूट मैं तैयार होकर बाहर आ जाता है। चंचल चाय सुरेश की और बढ़ाते हुए।

चंचल चाँदनी से:- माँ जी आप इस तरह तैयार होकर इतनी सुबह...?

चाँदनी: हाँ बेटा मैं तीर्थ यात्रा पर जा रही हूँ। तुम्हारी देवरानी की माँ और पापा के साथ।

चंचल: लेकिन माँ यूँ अचानक.. और फिर सुरेश भी तो आज...

तभी सुरेश बीच मे बोल पड़ता है...

सुरेश: हाँ चंचल मैंने भी माँ को बोला था कि मैं चल लेता हूँ साथ लेकिन माँ तैयार ही नही हुई।

चंचल: हाँ वो सब तो सही है लेकिन आप तो...

सुरेश तुरंत चाय का कप खाली करके नीचे रखते हुए।
सुरेश: चलो माँ देर हो रही है। गाड़ी आ गयी। और चंचल तुम ज़रा मेरा नाश्ता भी बना दो आज कुछ काम के सिलसिले में जल्दी जाना है

सुरेश इतना बोलकर चाँदनी और उसके सामान के साथ घर के बाहर आ जाता है। सुरेश और चाँदनी गाड़ी में बैठ रेल यात्रा की और बढ़ जाते है।

वहीं दूसरी और चंचल को सुरेश का व्यवहार और दिनों से कुछ अलग और अजीब लगता है। ऐसा लगता है जैसे सुरेश कुछ छिपा रहा हो।

चंचल सुरेश को कॉल करके वार्निंग देते हुए बोल देती है कि माँ जी को ट्रैन मैं बिठाते ही घर आएं। क्योंकि उसे सुरेश से बहुत से बातों को जान ना था।

सुरेश भी चंचल की अधीरता को समझ जाता है। सुरेश जानता था कि ये बात उसकी मां चाँदनी से तो छिपा सकता है लेकिन अपनी पत्नी चंचल से छिपा पाना उसके बस की बात नहीं। सुरेश चाँदनी को ट्रेन में बिठा कर घर की और रुख कर लेता है।

जैसे ही सुरेश घर पहुंचता है चंचल सुरेश पर अपने ढेर सारे सवालों को लेकर बिखर पड़ती है। सुरेश बड़े ही प्यार से चंचल को कुरसिंपर बिठा कर अपनी मजबूरी बताता है और बताता ही कि उसे किन हालात में अपनी मां से उसकी विदेश यात्रा छिपानी पड़ी है। और इस राज में वो चंचल को अपना भागीदार बना ता है।

चंचल अछि तरह से जानती थी कि सुरेश अगर अपनी माँ चाँदनी से इतनी बड़ी बात छिपा रहा है तो ज़रूर उसकी ये मजबूरी रही होगी।

करीब 7.30 या 8 बजे सुरेश अपना सामान जमा कर एयरपोर्ट पहुंच जाता है जहां से सुरेश आने एक महीने के तौर टूर पर निकल जाता है।

चंचल अकेली घर पर बोते हो रही थी कि तभी करीब 11.30 के करीब दरवाजे पर नॉक होता है। चंचल चौंक जाती है कि आखिर इस वक़्त कौन है। चंचल दरवाजा खोल कर देखती है तो ये कोई और नहीं बल्कि उसकी देवरानी सरिता थी। चंचल सरिता को देख कर बेहद खुश होती है। दोनों एक दूसरे को गले लगती है और घर मे आ जाती है।
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12-09-2019, 12:16 PM,
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RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
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करीब 7.30 या 8 बजे सुरेश अपना सामान जमा कर एयरपोर्ट पहुंच जाता है जहां से सुरेश आने एक महीने के तौर टूर पर निकल जाता है।


चंचल अकेली घर पर बोते हो रही थी कि तभी करीब 11.30 के करीब दरवाजे पर नॉक होता है। चंचल चौंक जाती है कि आखिर इस वक़्त कौन है। चंचल दरवाजा खोल कर देखती है तो ये कोई और नहीं बल्कि उसकी देवरानी सरिता थी। चंचल सरिता को देख कर बेहद खुश होती है। दोनों एक दूसरे को गले लगती है और घर मे आ जाती है।



अब आगे....



चंचल और सरिता जहाँ दोनो एक तरफ एक दूसरे से एक लंबे समय बाद मिल कर खुश हो रही थी वहीं उनके पति ग़म और टेंशन मैं खोये जा रहे थे। दरअसल सुरेश को इस बात का बहुत पछतावा हो रहा था कि वो आज पहली बार अपनी माँ चाँदनी से झूठ बोल कर इतनी दूर जा रहा था जिसके लिए उसका मन कतई तैयार नही हो पा रहा था। और राज इसलिए दुखी हो रहा था क्योंकि रोज रात को जब वो थक कर घर आता था तो अपनी प्यारी पत्नी का चेहरा देखते ही उसकी थकान दूर हो जाती थी। राज और सरिता दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार जो करते थे ।


चंचल और सरिता दोनों काफी देर तक बात करती रही। लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि बातों बातों में रात के 9 बज गए तब चंचल के मन में ख्याल आया।



चंचल :- (मन ही मन) है राम मैंने तो अभी तक सरिता को खाने के लिए पूछा ही नहीं। ऊपर से बातों बातों में और अकेले पन के ग़म में मुझे दिन में भूख नहीं लगी और अभी तक मैंने खाना भी नहीँ पकाया । अब अगर सरिता को खाने के लिए पूछ भी लिया तो उसे खिलाऊंगी क्या?


लेकिन शायद सरिता को चंचल के मनोभावों का अनुमान लग चुका था।


सरिता: दीदी? आपने अभी तक खाना तो नहीं बनाया ना।



चंचल : (एकदम से चौंकते हुए) क्या ? खाना? ओह सॉरी यार मैं तो भूल ही गयी। सच कहूँ सरिता आज पहली बार मैं घर मे सुरेश और माँ जी के बिना थी तो अकेलेपन में मुझे भूख नहीं लगी और मैंने खाना नहीं बनाया। सारी यार। चल मैं अभी खाना बना लेती हूँ। तू तो थकी हुई है इतनी दूर से सफर करके आयी है तू बैठ मैं बस 10 मिनट में आयी।( चंचल उठ कर जाने लगती है तभी)


सरिता: (चंचल का हाथ पकड़ कर) दीदी.... रुको तो... अच्छा सुनो क्यों ना आज हम बाहर से खाना खा ले। देखो आप और मैं ही है घर में तीसरा कोई है नहीं तो खाना बनाना छोड़ो ना कहीं बाहर घूम कर आते है। और वैसे भी मेरा दिल भी बदल जायेगा। अचानक से यहाँ आना मुझे नयेपन का एहसास करा रहा है जिसकी वजह से मेरा दिल नहीं लग रहा।


चंचल: (रुकते हुए) क्यूँ ? क्या तेरा दिल नही था मेरे पास आने का?


सरिता : नहीं दीदी ऐसा बिल्कुल नहीं है लेकिन जैसे आप वैसे मैं...


चंचल : क्या मतलब?


सरिता: वो दीदी क्या है ना आज से पहले मैं कभी भी राज के बिना अकेली नहीं रही। हर वक़्त हर जगह वो मेरे साथ रहते थे।


चंचल: ओहssssssss तो ऐसा कहो ना कि पतिदेव की याद सात रही है।


सरिता : धत्तsss ऐसा कुछ नहीं है।



चंचल: अच्छा अच्छा ठीक है अब इतने भी लाल गाल मत करो। देखो तो टमाटर जैसे लाल हो गये। चल तो फिर बाहर खाना खाते है। अच्छा सुन तुझे तो ड्राइव करना आता है ना?


सरिता : (झेंपते हुए) दीदी ड्राइव करना? एक्चुली दीदी कभी ज़रूरत नहीं पड़ी हमेशा तो राज ड्राइव करते थे? और घर पर भीssss उम्मsss पाप या ड्राइवर साथ होता था तो ड्राइव करना सिखा नहीं।


चंचल: ओह नो यार... ड्राइव करना तो मुझे भी नही आता। एक्चुली मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है। और फिर पहले मैंने ड्राइव सिखने की कोशिश की थी लेकिन माँ जी ने मना कर दिया।


सरिता : क्यूँ माँ जी ने क्यों?


चंचल : अरे यार उनके संस्कार। तू तो सब जानती है। यहां तक कि उन्होंने नौकर तक नहीं रखे घर में। उल्टा शादी के बाद मुझे खाना बनाना सिखाने लग गयी और अब देखो मैं उनकी ट्रेंड कुक हूँ। एक दम संस्कारी बहु।


सरिता : दीदी राज ने भी घर के काम के लिए वहां नौकर नही रखे। हर बार बोलते है यार तेरे हाथ का खाना फिर नसीब नहीं होगा। नौकर ही बना देगा। और नौकर से खाना बनवाने से बेटर तो मैं बाहर होटल में खा कर आ जाया करूँगा।


चंचल : यार वैसे तो माँ जी के विचार गलत नहीं है लेकिन अब हमारी कंपनी नेशनल नहीं बल्कि इंटर नेशनल कंपनी बनने जा रही है। तो अब हमें घर उसी के हिसाब से चलना होगा ना। अपना स्टेटस भी बरकरार रखना होगा।


सरिता : जी दीदी लेकिन माँ जी को समझायेगा कौन?


चंचल : वो मैं कर लुंगी बस एक ही प्रॉब्लम है।


सरिता : वो क्या दीदी?


चंचल: बच्चा।


सरिता: बच्चा?


चंचल: हाँ , बच्चा! हमारी सास को इस घर का चिराग चाहिए । मेरे खयाल से इसी के लिए वो तीर्थ यात्रा पर गयी होंगी। वरना अचानक तीर्थ जाने का प्लान, ऊपर से सुरेश को भी नही लेकर गयी।


सरिता: नहीं दीदी तीर्थ मेरे ख्याल से इस कारण से नही होगा। हो भी सकता है हो। अब कौन जाने माँ जी के दिमाग मे क्या चल रहा है?


चंचल: हाँ यार सो तो है । अच्छा चल जाने दे ये सब तो अभी अपन खाना खाने चलते है।


सरिता : वैसे दीदी एक बात बोलू मैंने आपसे कुछ झूट बोलै है?


चंचल: (चोंकते हुए) क्या? झूट और तुमने? मैं नही मानती । अच्छा चल बता क्या झूट बोलै है?


सरिता: वो दीदी मुझे कार चलानी आती है।


चंचल: क्याsssss? सच में? लेकिन तुमने सीखी कहाँ? और फिर इसके लिए झूट क्यूँ बोला?


सरिता: दीदी वो क्या है ना कॉलेज में एक लड़का था रघु.... उसका पूरा नाम तो मुझे आज तक पता नहीं चला। वो मेरे फ्रेंड सर्किल मैं था । तो उसने मुझे कार चलाना सीखा दिया था। जब हम फाइनल ईयर में थे तब उसके पापा की डैथ हो गयो थी। उसके बात वो कभी मिला नही।


चंचल: अच्छा हुआ तूने बता दिया। वरना तो टैक्सी से चलते। चल तू सुरेश की कार चला और कोई मस्त से रेस्टोरेंट में ले चल।


सरिता: लेकिन दीदी मैं तो यहां किसी जगह को जानती ही नही।


चंचल: रुक एक मिनट कुछ दिनों पहले सुरेश मुझे कहीं घुमाने लेकर गए थे। उसका कार्ड है मेरे पास वहीं चलते है।


चंचल वो कार्ड लेकर सरिता के पास आती है और सरिता को कार्ड दिखाती है। चंच और सरिता उसका प्रॉपर एड्रेस देखती है तो चंचल को पता चल जाता है कि ये ज्यादा दूर नहीं है बल्कि घर से 2 किलोमीटर दूर ही है । दोनों बहनें तैयार वो कर रेस्टॉरेंट की और बढ़ जाती है।


जैसे ही दोनों पार्किंग में कार पार्क करके उतरती है और रेस्टॉरेंट की और बढ़ती है तब एक आदमी उस रेस्टॉरेंट से बाहर आ रहा होता है। वो आदमी रेस्टॉरेंट में सरिता और चंचल को अंदर आते देख कर वही रुक जाता है। सरिता और चंचल दोनो आपस मे बात करते हुए अंदर जा रही थी इसलिए उन्होंने उसे नोटिस नही किया।


सरिता और चंचल दोनो जा कर एक टेबल पर बैठ गयी। और खाने का आर्डर करने लगी। तभी वो आदमी वहां से जल्दी से बाहर निकल गया। वो आदमी कुछ सोचता रहा । फिर मुस्कुराते हुए वहां से चला गया।


थोड़ी देर बाद चंचल और सरिता खाना खा कर रेस्टॉरेंट से घर की और जाने लगी। जब सरिता कार निकाल कर ड्राइव करते हुए चंचल के साथ जा रही थी। उस वक़्त भी एक पेड़ के पीछे से चिप कर कोई उन्हें देख रहा था।वो कोई और नहीं बल्कि वही व्यक्ति था जो उन्हें रेस्टॉरेंट में भी देख कर चोंक पड़ा था।
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12-09-2019, 12:16 PM,
#9
RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
अपडेट - 9


सरिता और चंचल दोनो जा कर एक टेबल पर बैठ गयी। और खाने का आर्डर करने लगी। तभी वो आदमी वहां से जल्दी से बाहर निकल गया। वो आदमी कुछ सोचता रहा । फिर मुस्कुराते हुए वहां से चला गया।

थोड़ी देर बाद चंचल और सरिता खाना खा कर रेस्टॉरेंट से घर की और जाने लगी। जब सरिता कार निकाल कर ड्राइव करते हुए चंचल के साथ जा रही थी। उस वक़्त भी एक पेड़ के पीछे से चिप कर कोई उन्हें देख रहा था।वो कोई और नहीं बल्कि वही व्यक्ति था जो उन्हें रेस्टॉरेंट में भी देख कर चोंक पड़ा था।


अब आगे...


सरिता और चंचल इस बात से पूरी तरह से बेखबर थी की कोई उन पर नज़र रख रहा है। वहीं वो व्यक्ति किसी सोच में डूब गया था। तभी उस व्यक्ति के पास एक कॉल आया। जब उस व्यक्ति ने कॉल उठाया तो थोड़ा सा परेशान हुआ फिर थोड़ा सा गुस्सा आया। लेकिन अगले ही पल उसका गुस्सा और परेशानी दोनो एक हो गए। मेरा मतलब उसके आव भाव से किसी साज़िश मैं फंसे होने का किसी को भी भान हो जाये। या फिर हो सकता है वो किसी मुसीबत में हो? या फिर किसी मुसीबत की कश्ती का मांझी हो। खेर वो आदमी फोन कॉल के कट होने के बात कब वह से फ़ुर्र हुआ और कहां गया कोई कह नही सकता।

सरिता और चंचल घर पहुंच कर....

चंचल: चल यार घर का दरवाजा खोलते है और अंदर चल कर आराम करते है।

सरिता : दीदी आप तो ऐसे बोल रही है जैसे आप आज पहली बार घर में प्रवेश कर रही हो?

चंचल: अरे यार सुरेश के बिना अकेले तो मैं आज पहली बार ही आ रही हूं इस घर में..।

चंचल और सरिता दोनो सरिता की इस बात पर हंस पड़ती है। सरिता गेट का ताला खोलती है और दोनों साथ में घर मे घुसती है।

चंचल अपने बैडरूम में जाकर चेंज करने लगती है वहीं सरिता राज के पुराने कमरे में जहां राज शादी से पहले रहता था, वह शिफ्ट हो जाती है और अपने कपड़े बदलने लगती है।


करीब आधा घंटे बाद....

एक फ़ोन कॉल आता है।

चंचल: हेलो.....सुरेश?

सुरेश: हेलो चंचल? तुम सुन पा रही हो ना मुझे..?

चंचल: हाँ सुरेश लाउड एंड क्लियर। तुम ठीक हो ना। क्या तुम पहुंच गए।

सुरेश : नहीं सरिता । एक्चुअली हुम् लोग फिलहाल कैनडा है। कल सुबह यहां से पेरिस का है।

चंचल: ओक जान ई मिस यु अलॉट।

सुरेश: मी टू जानू, ओके लिसेन , तुम्हे काल आफिस जाना है। सीधे मेरे केबिन में। देखो तुमने कई बार जॉब करने के किये कहा। जबकि हमारे पास काफी पैसे थे फिर भी क्योंकि तुम घर पर बोर हो जाती थी। अब तुम्हे मौका मिल रहा है बॉस बनने का। घर के साथ साथ आफिस का बॉस भी अब तुम ही रहोगी।

चंचल: वो सब तो ठीक है सुरेश लेकिन बॉस तो आप ही रहेंगे ।

सुरेश: थैंक यू आका, साहेब... हा हा हा हा, अच्छा सुनो मैंने रघुनाथ को बोल दिया है कि वो तुम्हे सारा काम समझा दे। एक बात का ध्यान रखना जान हमारा कोई भी पार्टनर और नई टेंडर वाले , या फिर कोई नई क्लाइंट कोई भी नाराज ना हो। क्योंकि इसका बुरा असर हमारे बिज़नेस पर पड़ेगा। और कोई ज्यादा दिक्कत हो तो मुझे कॉल करना।

चंचल: ओके जान, कल 10 बजे तक मैं आफिस में चली जाउंगी।

सुरेश: ओके, और सरिता आ गयी?

चंचल: हाँ लेकिनsss....

सुरेश: लेकिन क्या?
चंचल: सुरेश जब मैं आफिस चली जाउंगी तब सरिता अकेली नही पड़ जाएगी यहां घर पर?

सुरेश: हैं सो तो है, पर क्या करें।

चंचल: सुरेश क्यों ना इस एक महीने के किये कोई काम करने वाली को देख ले।

सुरेश: तुम्हारा दिमाग खराब है, अगर माँ को पता लगा तो...?

चंचल: कम ऑन सुरेश , अगर माँ को और बातों का पता लगा तो ज्यादा मुसीबत होगी एक नोकरानी से कौनसा पहाड़ टूट पड़ेगा।

सुरेश को चंचल के शब्द एक पल को ब्लैकमेलर जैसे लगे लेकिन अगले ही पल सुरेश को भी एक नौकरानी की कमी महसूस हो गयी।

सुरेश: ठीक है चंचल , लेकिन सिर्फ एक महीने के लिए। और माँ से रेगुलर टच में रहना।

चंचल: (खुश होते हुए) स्योर सुरेश यु डोंट वरि अबाउट देट।

सुरेश : ओक बाय जान, आई लव यू।

चंचल: मूssssवाह ,लव यू टू

फ़ोन कट

दोनो आने वाले कल से बेफिक्र नींद के आगोश में चली जाती है।

सुबह जल्दी चंचल की आंख खुल जाती है। चंचल सरिता को बहुत चाहती है। सरिता चंचल के लिए एक देवरानी मात्र नहीं बल्कि उसकी एक छोटी बहन और एक सहेली की तरह है। चंचल को मालूम था कि आज उसे आफिस जाना है। इसलिए जल्दी उठ कर फटाफट घर का काम करने में लग गयी। और फिर सोचने लगी कि आखिर नौकरानी के लिए किस से बात करे? तभी उसके दिमाग मे अपनी पड़ोसन की याद आती है। उड़के घर रोज सुबह और शाम को काम वाली आती है। लेकिन एक ही प्रॉब्लम है जो आती है वो घरों की बातें इधर की उधर मिर्च मसाला लगा कर जड़ती है। चंचल कुछ देर सोच विचार करके फिर एक निर्णय लेती है।

करीब आधे घण्टे मैं चंचल ने घर का काम निपटा दिया। हालांकि घर बहुत बड़ा था लेकिन चंचल को सिर्फ वही काम करना था जहां पर वो लोग रहते है। इसलिए काम जल्दी खत्म हो गया। चंचल फटाफट काम खत्म करके दो कॉफ़ी बनाती है और सरिता के रूम की और जाने लगती है।

चंचल सरिता के रूम के पास जाकर डोर नॉक करती हैं और साथ ही सरिता को आवाज भी देती है।

चंचल : सरिता...... सरिता।।।। कॉफ़ी लेलो ।।

सरिता के कानों में जैसे ही चंचल के शब्द गूंजते है तुरंत उठ खड़ी होती है। सरिता बहूत ही मीठी नींद में थी। सरिता जल्दी से दरवाजा खोलती है और कॉफ़ी लेते हुए।

सरिता : दीदी आप क्यों परेशान हो रही है। मैं कर लुंगी ये सब।

चंचल: हाँ हाँ पता है तू कर लेगी। हा हा हा हा

सरिता भी चंचल के इस तरह बोलने पर हंस पड़ती है। दोनों साथ कॉफ़ी पीते हुए नौकरानी और आफिस की बातें करती है। साथ ही चंचल सरिता को बताती है कि नाश्ता तैयार है। खाना बाहर खाये तो अलग बात है वरना खाना फिलहाल तो सरिता को बनाना पड़ेगा। और नौकरानी के लिए पड़ोस में आंटी को चंचल बोल देंगी। और काफी बातें चंचल सरिता को बता रही थी जिसे सरिता सुने जा रही थी। कुछ समझ रही थी तो कुछ ऊपर से जा रही थी। तभी बातों बातों में घड़ी में 9 बजने का घंटा बजा। जिसके साथ ही चंचल भी आफिस के लिए रवाना हो गयी। ऑफिस दूर है थोड़ा सा तो जल्दी जाना ही बेहतर था। और फिर आज पहले दिन ही लेट होना अच्छा नहीं हैं ना। इसलियर सरिता ने किसी को फ़ोन किया। करीब 15 मिनट के बाद एक आदमी आकर खड़ा हो गया। ये एक ड्राइवर था।जो पहले सुरेश के लिए काम करता था। लेकिन फिर किसी कारण से इसने काम छोड़ दिया था। अब ये वापस कैसे आया ये तो बाद कि बात है। फिलहाल तो चंचल उसके साथ कार में बैठ कर आफिस जा रही है।

करीब 9.45 बजे चंचल आफिस पहुंचती है। सारा आफिस स्टॉफ चंचल का स्वागत करता है। चंचल इस वक़्त टिपिकल सारी लुक में थी। लेकिन थी तो बॉस। स्टॉफ की ओरी भीड़ में एक आदमी था। जो थोड़ा सा नाराज और गुस्से में था। लेकिन उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी। मजे की बात ये है कि ये कोई और नहीं बल्कि वही आदमी है जिसने काल सरिता और चंचल को कल रेस्टॉरेंट में देखा था।
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12-09-2019, 12:17 PM,
#10
RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
अपडेट - 10




चंचल: (खुश होते हुए) स्योर सुरेश यु डोंट वरि अबाउट देट। माँ से तो में रेगुलेट टच में रहूंगी।

सुरेश : ओके बाय जान, आई लव यू।

चंचल: मूssssवाह ,लव यू टू

फ़ोन कट

दोनो आने वाले कल से बेफिक्र नींद के आगोश में चली जाती है।



अब आगे.....



वहीं सुरेश भी कई ख्यालों में गुम था। सबसे बढ़कर सुरेश को लग रहा था कि पता नही चंचल बिज़नेस हेंडल कर भी पाएगी की नहीं।

( 2 हफ्ते मतलब 15 दिन का चंचल आफिस में )

पहला दिल सुबह:- सुबह चंचल जल्दी उठ कर तैयार होती है और आफिस के लिए निकल जाती है। सरिता भी उसे विदा करते हुए विश करती है। चंचल का सभी आफिस स्टाफ फूलों से और गुलदस्तों से स्वागत करता है। करीब दस मिनट बाद चंचल के सामने एक 6 फुट का आदमी आता है। एक जबरदस्त पर्सनालिटी का आदमी। नाम रघुनाथ। चंचल और रघुनाथ का इंट्रो होता है। इंट्रो के बाद रघुनाथ चंचल को उसका अप्पोइन्टमेन्ट लैटर और और एग्रीमेंट दोनों सौंप देता है। चंचल दोनों को साइन करके सुरेश को मेल करने को बोल देती है। करेब 4 से 5 दिन तक चंचल आफिस का काम समझने में लगते है। हालांकि चंचल एक बी ए की टॉप स्टूडेंट रह चुकी है जिससे भी उसे बिज़नेस समझने में कोई खास परेशानी नहीं हुई। इन्हीं 4-5 दिनों में कोमल ने एक नौकरानी भी घर में रख ली।जिसका नाम लता था।

लता दिखने में थोड़ी सी मासूम थी लेकिन वास्तव में वो क्या थी ये तो वही जानती थी। लता एक नशा थी। और मुसीबतों की जड़ भी।दरअसल लता का बड़ा भाई एक दलाल था। लड़कियों को इधर से उधर करने के साथ साथ उन्हीं लड़कियों से लोगो को ठगने का काम करता था। पुलिस में लाता के भाई के खिलाफ तकरीबन 20-25 केस दर्ज थे, धोखाधड़ी, बलात्कार, चोरी, जालसाजी, ब्लैकमेलिंग, किडनेप के साथ साथ उसपर ड्रग और गाँझा बेचने का भी केस चल रहा था। लाता के भाई के बारे में बाद में बताता हूँ।


लता जबसे चंचल के यहां काम करने आई थी तबसे ही लता पूरे घर का जायजा लेने में लगी थी। लता हर एक चीज को बारीकी से देखती और फिर उसी हिसाब से उस घर के आव भाव भांप लेती। इन्हीं 4-5 दिनों में लता को ये बात पता चली की चंचल और सरिता दोनों अकेली रहती है। उनका परिवार उनके साथ नहीं है। लेकिन फिर भी संभाल कर काम करना ही लता ने सही समझा। लता शायद किसी जालसाजी का हिस्सा थी। जिसके तहत वो फिलहाल उस घर का और घरवालों का जायजा ले रही थी।

करीब 7 से 10 दिन बाद चंचल अपनी कंपनी के अलग अलग पार्टनर्स और टेंडेरेर से बातें करने लगी। उन्हें कन्वेंस करने लगी और कंपनी को उसी लेवल पर मेन्टेन रखा जहां सुरेश ने छोड़ा था। इन 7-10 दिनों में चंचल ने खुद ही कई इम्पोर्टेन्ट निर्णय लिए जो कि कंपनी के बेहद फायदे मंद रहे। और कंपनी के शेयर भी नीचे नहीं गिरे बल्कि 2% ज्यादा बढ़ गए।

चंचल के दिमाग और उसकी मेहनत से प्रभावित होकर सुरेश ने अपना काम चंचल के हाथों में सुनो दिया। अब चंचल हर रोज कभी किसी पार्टनर तो कभी कोई क्लाइंट तो कभी कोई टेंडरेर से मीटिंग में व्यस्त रहने लगी। इन्हीं मीटिंग के दौरान चंचल की किसी से मुलाकात हुई। ये मुलाकात साधारण थी। लेकिन चंचल उससे काफी प्रभावित थी।

दरअसल चंचल की मिस्टर अरोड़ा के साथ एक मीटिंग थी। उनकी मीटिंग होटल सात सितारा में बुक थी। इस मीटिंग के दौरान मिस्टर अरोड़ा ने पूरी होटल में पार्टी ऑर्गनाइज करवाई थी। इसी पार्टी में चंचल की मुलाकात समीर से हुई। समीर बेहद हैंडसम और मस्कलर बॉडी का मालिक। हाथ में रेड वाइन का गिलास लेकर दूर एक कुर्सी पर हल्की मुस्कान के साथ सभी को देख रहा था। वहीं चंचल की नज़र समीर पर पड़ी। लेकिन चंचल उससे अभी प्रभावित नही हुई थी। चंचल प्रभावित तब हुई जब उसकी बात समीर से हुई।

दरअसल चंचल और मिस्टर अरोड़ा की मीटिंग तकरीबन 2 -2.3० घंटे चली होगी। इस दौरान चंचल और समीर की नज़र बार बार टकरा रही थी। ये बात 100% सच है कि समीर चंचल को अच्छा लगा लेकिन इतना भी नहीं कि वो अपनी मालिकाना हैसियत को छोड़ कर उससे बात करने लगे। इसलिए चंचल बस बार बार समीर की तरफ देलहति और समीर की नज़र सीधे चंचल की नज़रों से तकराती। जब मीटिंग खत्म हुई तो चंचल और मिस्टर अरोड़ा एक दूसरे से हाथ मिलाते हुए खड़े हुए। और जाने लगे। ठीक उसी समय जब चंचल ने मिस्टर अरोड़ा को अलविदा किया सरिता का फोन चंचल के फ़ोन पर आया।

सरिता: हेलो दीदी...?

चंचल: हैं सरिता बोलो क्या हुआ?

सरिता : वो दीदी मैंने ड्राइवर को मेरे पास बुलाया है । एक्चुअली मेरी एक सहेली रेलवे स्टेशन है। वो उन्हें वह से यहाँ अपने घर छोड़ कर तुरन्त आपके पास आ जाएगा।

चंचल एक बार तो सरिता से ड्राइवर को फिर बुलाना चाहती थी । लेकिन फिर उसने सोचा कोई बात नही पूरे दिन काम कर रहें है थोड़ा रेस्ट भी हो जाएगा ।ये पार्टी एन्जॉय करते है। चंचल ने ऐसा सोच कर सरिता को बोल दिया कि ईट्स ओके।

सरिता फ़ोन रख देती है। सरिता के फ़ोन को रखते ही चंचल एक बार फिर समीर की तरफ देखती है और एक बार फिर से समीर और सरोता की नज़र एक दूसरे से टकराती है। चंचल को समीर की ये स्माइल बहुत परेशान कर रही थी। इस स्माइल से चंचल समीर से बात करने को बेचैन होने लगी। चंचल तुरंत समीर के पास जाकर....

चंचल: एक्सक्यूज़ मी... क्या मैं आपको जानती हूँ।

समीर: (मुस्कुराता हुआ) जी नहीं आप मुझे नहीं जानती।

चंचलSadथोड़ा उदास होते हुए) तो फिर आप मुझे कबसे देख कर स्माइल कर रहै थे। ऐसा क्यों?

समीर: (मुस्कुराता हुआ) वो क्या है ना मैं भी कब से आपको देख रहा था कि आप बार बार मुझे देख रही है शायद आप मुझे जानती हो, इस लिए स्माइल कर रहा था।

चंचल: ( मन ही मन) गधा कहीं का , कोई इसे देखेगा तो जय स्माइल देगा।

समीर: बिल्कुल गधा हुन न में।

चंचल: (चौंकते हुए) जीssss क्या मतलब,

समीरSadरेड वाइन का एक गिलास चंचल की और बढ़ते हुए) जी आपको जाने बिना आपकी तरफ देख कर स्माइल कर दिया। बूत रीज़न आपको जानने का ही है।

चंचल: सॉरी , मैं ड्रिंक नहीं करती, और ये जानने का क्या रीज़न है।

समीर:जी मैं जानता तो नहीं हूं बूत जान तो सकता हूँ ना आपको। अगर आप की इजाजत हो तो?

चंचल: (मुस्कुरागे हुए) तो जान लीजिए।

समीर: जी जान तो लूंगा लेकिन आप बताइए कैसे जानूँ आपको, क्या मुझे आपके बारे में जानना चाहिए या आपको?

चंचल: ये कैसा सवाल है? जानना तो दोनों ही चाहिए।

समीर: जी बिज़नेस मैन हूँ। डील तो डील होती है।

चंचल: बिज़नेस मैन? (चंचल मन ही मन समीर से डील करने का एक नया तरीका सीखने का मन बनाती है, क्योंकि चंचल को समीर की हाजिर जवाबी पसंद आ रही थी)

चंचल:अच्छा चलो आपकी डील मंज़ूर, फिलहाल तो आप मेरे बारे में ही जान लीजिए।

अभी समीर और चंचल की बातें चलते हुए आधा घंटा ही हुआ था कि चंचल का ड्राइवर वापस आकर चंचल को कॉल करता है। चंचल तुरंत कॉल काट कर उठ जाती है।

चंचल: सॉरी टाइम अप, अब मेरा ड्राइवर आ गया मुझे जाना होगा और आपके जानने का टाइम भी खत्म हुआ अब।

समीर: जी इतने टाइम में तो मैंने आपमे बारे में से। जान लिया।

चंचल: अच्छा ! इंटरेस्टिंग, ऐसा क्या जान लिया।

समीर: जी जब आप मीटिंग में थी तब आपका ड्राइवर कहीं चला गया था। और आपके आने Sके पहले मिस्टर अरोड़ा किसी कंपनी की असिस्टेन्ट डायरेक्टर की बात कर रहे थे मतलब आप एक बिज़नेस वीमेन है । गले में मंगलसूत्र और माथे मैं सिंदूर मतलब शादी शुदा है। और आप साड़ी में है मतलब की आपकी कमपनी के बॉस या तो आपके पति है या आपमे ससुर।, या फिर आपके डैड।

चंचल:हाऊ? कैसे इतना सब कुछ।

समीर : अब तो ये ड्रिंक ले लीजिये हमारी दोस्ती के नाम? ये ड्रिंक नही है। और हां ये रहा मेरा कार्ड इसके पीछे मेरे पर्सनल नम्बर है। अगर दिल करे हमसे बात करने का तो कॉल करना। वैसे तुम हो बहुत खूब सूरत।

समीर चंचल से इतना बोलकर तुरंत वहां से निकल गया लेकिन चंचल वहीं खड़े खड़े समीर के बारे में सोचती रही। उसे एक और समीर से हुई ये पहली मुलाकात इंटरेस्टिंग लगी वही दूसरी और वो डर ही रही थी। ये तो खुद चंचल को भी पता नही था कि वो डर क्यों रही है। इसी डर के चलते चंचल कुछ भी समझ नहीं पा रही थी। चंचल ने समीर के दिये हुए कार्ड को फेंकने चाहा लेकिन उसी वक़्त उसके ड्राइवर का कॉल आ गया। ड्राइवर का कॉल देख कर चंचल ने तुरंत समीर का कार्ड अपने पर्स में रखा और ड्राइवर के साथ कार में बैठ कर आफिस गयी। करीब 2 घण्टे बाद चंचल आफिस से सीधे घर निकल गयी।
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