RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग २२)
थाना... पुलिस थाना... अपनी कुर्सी पर बैठे इंस्पेक्टर विनय भंडारी गहरी सोच में डूबा था | सामने टेबल पर रखी चाय पड़े पड़े ही ठंडी हो चुकी थी और टेबल के दूसरे तरफ़ की कुर्सियों पर चाचा और चाची गहरी चिंता और उम्मीदों की आस लिए इंस्पेक्टर विनय भंडारी की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं | कमरे में एक भय और चिंतायुक्त सन्नाटा वाला माहौल था |
“ह्म्म्म.. आपका भतीजा पिछले दो दिन से घर से गायब है.. तो आप ये तीसरे दिन आकर रिपोर्ट क्यों कर रहे हैं? दूसरे ही दिन क्यों नहीं आ गए? क्या आपको ये उम्मीद था कि वो दूसरे दिन आ जाएगा?” – चुप्पी तोड़ते हुए इंस्पेक्टर विनय पहले बोला |
“दरअसल इससे पहले कभी उसने ऐसा नहीं किया और ना हुआ.. कुछ बताया भी नहीं था उसने.. अगर कोई परेशानी थी या कोई काम था जिसके तहत उसे बाहर कहीं जाना था तो वो हमें ज़रूर बताता |” – बड़े ही चिंतित स्वर में चाचा ने उत्तर दिया |
“मिस्टर आलोक.. क्या आपको ये उम्मीद था कि वो दूसरे दिन आ जाएगा?” – इंस्पेक्टर विनय ने चाचा के आँखों में गहराई से झाँकते हुए अपने प्रश्न को दोहराया और खास जोर भी दिया इस प्रश्न पर |
अपने चश्मे को ठीक करते हुए चाचा ने थोड़े सकपकाए अंदाज़ में उत्तर देने का प्रयास किया,
“ज..ज.....जी, ब... बताया ना, इस....इससे पहले अभय ने ऐसा कभी नहीं किया .. इसलिए थोड़ी सी उम्मीद थी कहीं न कहीं.. हमें लग रहा था की अभय की कोई न कोई खबर हमें मिल जाएगी... य...या..या शायद वो खुद ही हमें ख़बर कर देगा... इ..इस.. इसलिए............”
“ये सही कह रहे हैं इंस्पेक्टर साहब...” – इतनी देर में पहली बार मुँह खोला चाची ने, जो अब तक चुप बैठी थी |
चाची के इतना कहते ही इंस्पेक्टर विनय की नज़रें चाची की तरफ़ घूमी और नज़रें उन्ही पर जम गई ... सच कहा जाए तो नज़रें चाची पर भी नहीं, वरन उनके यौवन पर केन्द्रित हो गई थीं | रेशमी साड़ी, गर्मी के दिन के कारण; पसीने से जगह जगह से भीग जाने के कारण उनके गदराये जिस्म से चिपक गई थी |
जिस्म का एक एक कटाव और उभार साफ़ साफ़ नज़र आ रहा था |
पारदर्शी वस्त्र में; संगमरमर की प्रतिमा सी नज़र आ रही थी चाची इस वक़्त |
ब्लाउज झीना था, कुछ जगहों से भीगा हुआ भी |
यहाँ तक की ब्रा का डिज़ाइन भी साफ़ नज़र आ रहा था |
चाची ने इंस्पेक्टर विनय की तरफ़ एक बार देखा ;
और फिर उसकी नज़रों को भांपते हुए अपने पल्लू को दुरुस्त किया .. पर इंस्पेक्टर विनय की नज़रें अभी भी उस पारदर्शी पल्लू के अन्दर से साफ़ नज़र आ रही करीब तीन इंच की सुन्दर क्लीवेज पर टिकी हुई थी |
इंस्पेक्टर विनय की नज़रों में एक जानी पहचानी सी आकांक्षा देख कर चाची परेशान हो उठी,
‘उफ्फ्फ़....
ये तो ऐसे देख रहा है मुझे जैसे मेरे पल्लू से होते हुए ब्लाउज और ब्रा तक को चीर देना चाहता है | क्या ये मेरी बातें सुन भी रहा है?’ मन ही मन सोची चाची |
“आं...हाँ... हाँ.... वो तो मैं सुन ही रहा हूँ...| ” खुद को संभालने की कोशिश करते हुए बोला वह पर नज़रें अभी भी चाची के उभार और उनके बीच की दरार पर थी |
बेचैन-परेशान चाची को एकाएक अपने रूप सौंदर्य का आभास हुआ...
और इसके साथ ही लाज और झेंप की सुर्खी दौड़ गई उनके चेहरे पर |
साथ ही गर्व से तन गए उनके यौवन उभार |
इंस्पेक्टर विनय ने खुद को संभालने की भरसक कोशिश करता हुआ, मन ही मन चाची के यौवन के कटावों और उभारों की ओर न देखने का दृढ़ संकल्प लेता हुआ आवाज़ में थोड़ी गंभीरता लाते हुए बोला,
“आं.. देखिये मिस्टर एंड मिसेस रॉय, मैं अपने कर्तव्य का पूर्णरूपेण पालन करूँगा और इस बात का आश्वासन देता हूँ की हमारी पुलिस डिपार्टमेंट सुबह शाम ; रात दिन एक कर के जहां से भी हो आपके भतीजे को ढूँढ निकालेगी और उसके गायब होने के पीछे के मुख्य अभियुक्तों को हरगिज़ नहीं छोड़ेगी |”
चाचा और चाची ने हाथ जोड़कर इंस्पेक्टर का अभिवादन किया, इंस्पेक्टर ने भी प्रत्युत्तर में हाथ जोड़ कर मुस्कराया | कुछेक ज़रूरी कागज़ी कार्रवाई कर के दोनों थाना से निकल गये पर इंस्पेक्टर विनय को चाची के मटकते नितम्ब उनके चले जाने के बाद भी बहुत देर तक नज़र आते रहे |
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तीन दिन बाद ---
चौथे दिन,
थाने से दूर एक दुकान के सामने खड़ा इंस्पेक्टर विनय एक हाथ में चाय का ग्लास और दूसरे में सिगरेट लिए सोच की मुद्रा में खड़ा था | उसके सामने उससे छोटे कद का एक आदमी खड़ा था जो किसी आस से विनय को लगातार देखे जा रहा था -- काफ़ी देर तक वैसे ही खड़ा रहा वह ..
अपनी सोच से तब बाहर आया जब सिगरेट सुलगता हुआ फ़िल्टर तक पहुँच गया और उसकी गर्म आंच विनय को अपनी उंगुलियों पर महसूस हुई |
एक हल्का कश लेकर सिगरेट को पैर के नीचे मसला...
और चाय की एक सिप लेता हुआ सामने खड़े आदमी से बोला,
“तुम्हें पूरा यकीन है...? जो खबर सुना रहे हो उसमें कहीं कोई भूल चूक नहीं है ना?”
“बिल्कुल सही कह रहा हूँ साहब, इस सूचना में ज़रा सा भी कोई मेल मिलावट नहीं है |” आदमी ने खैनी और पान से सड़े अपने दाँतों को भद्दे तरीके से दिखाते हुए चापलूसी अंदाज़ में अपने स्वर में मिठास लाते हुए बोला |
“ह्म्म्म... नाम क्या बताया?”
“योर होटल, सरकार ”
“वहीं पर सब होता है?”
“बिल्कुल सरकार”
“हम्म्म्म...|”
फ़िर कुछ सोचते हुए इंस्पेक्टर विनय ने पैंट के पॉकेट से सौ के दो नोट निकाल कर उस आदमी की ओर बढ़ाया; वह आदमी पहले तो खुश हुआ, फ़िर थोड़ा सहम कर कुछ बोलने का कोशिश करने ही वाला था कि तभी विनय जैसे उसके मनोभाव को पढ़ कर बोल पड़ा, “अभी के लिए ये रख ले और सुन, थोड़ा और कमाना है तो ........” कहते हुए विनय अपने पैंट के दूसरे तरफ़ के पॉकेट में हाथ डाल कर कुछ ढूँढने लगा और कुछ ही सेकंड्स में एक तीन फ़ोटो निकाल कर उस आदमी के हाथ में थमाते हुए कहा, “मुझे इन तीनों की ज़्यादा से ज़्यादा खबर चाहिए ; तीनों की तो मतलब तीनों की ही ख़बर चाहिए ... किसी एक को भी मत छोड़ना.. समझे..?”
वह आदमी तीनों फ़ोटो को जल्दी से अपने शर्ट के अन्दर के पॉकेट में रखते हुए इधर उधर देखा |
थोड़ा करीब आया...
और धीरे से बोला,
“कोई संगीन मामला है क्या सरकार?”
“ऐसा ही समझो, वैसे भी आजकल लगभग हर केस संगीन ही जान पड़ता है |” एक सिगरेट सुलगाकर लम्बा सा कश लेते हुए विनय बोला |
“ओह्ह..”
फ़िर करीब दो मिनट की शांति छाई रही |
दोनों में से किसी ने कुछ नहीं कहा |
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