RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
भाग ३५)
कुछ बातें चाची से फ़िर कर लेना बहुत ज़रूरी था.. फ़िर मतलब... दोबारा! .. कुछ नई बातें और कुछ पुरानी .. काफ़ी दिनों बाद आज बहुत बढ़िया मौका मिला..
क्या है कि जिस विषय पर बात होनी है उसके लिए चाची का एक अलग मूड होना भी उतना ही ज़रूरी है... मतलब, आशिकमिजाजी, हल्का और ऊपर से आज दिन भी खुशनुमा ...
चाची हमेशा की ही तरह किचेन का काम निपटा कर टीवी देखने बैठी.. मैं भी सोफ़े पर उनके बगल में आकर बैठ गया ... कुछ देर टीवी देखने के बाद आख़िरकार मैंने निश्चय किया बात शुरू करने का ...
“चाची..”
“हाँ अभय..बोलो”
“अमम्म...एक बात करनी है आपसे..”
“तो करो.” लापरवाही से बोली चाची.
दो मिनट चुप रहा ... फ़िर बोला,
“बात आपके कमरे में चल कर करें?”
“क्यों... मेरे कमरे में क्यों... ? पूरे घर में हम दोनों ही हैं सिर्फ़... यहीं बोलो... ..(थोड़ा रुक कर मेरी ओर शरारती मुस्कान और आँखों में चमक लिए)... कहीं ऐसा तो नहीं कि मेरे कमरे में ही तुम्हें नए आइडियाज आते हैं...?!”
बात ही ऐसी कर दी चाची ने की मैं झेंप गया...
मेरे शर्म को देख चाची ज़ोर से हँस पड़ी,
और मेरे दाएँ गाल पर चिकोटी काटते हुए हँसते हुए बोली,
“ओए होए... शर्मा रहा है मेरा भतीजा... इतने काण्ड करने के बाद भी..”
सुनते ही मैं चौंक कर उनकी ओर देखा ...
मुझे चौंकते देख शायद उन्हें और भी मज़ा आया और उसी हँसते अंदाज़ में बोली,
“क्या गलत कहा मैंने... अकेला पाते ही तू मेरे साथ काण्ड नहीं करने लगता है क्या...?!”
“ओ.....” मैंने चैन की साँस ली..
“क्यों ... क्या हुआ.... तूने कोई और काण्ड समझा क्या?” चाची ने तुनक कर पूछा..
मैं भी तुरंत डिफेन्स में आया,
“नहीं... मैं और क्या समझूंगा ... पर सुनो न चाची.. इट्स वैरी इम्पोर्टेन्ट... चलो , जल्दी चलो...”
“ओके.. चल...”
चाची तो थी ही असमंजस में... मेरे बॉडी लैंग्वेज ने उन्हें और भी टेंशन में डाल दिया..
पर मैंने नार्मल दिखने का दिखावा करते रहना उचित समझा..
इससे चाची जितना हल्के मूड में रहेगी, उतना ही मेरे लिए अच्छा होगा.
मैं पहले ही उनके कमरे में आ पहुँचा और सीधे उनके बिस्तर के एक साइड पर जा बैठा...
टीवी बंद कर सीढ़ियाँ चढ़ते हुए चाची को थोड़ा टाइम लगा...
रूम में घुसते ही मुझे बेड पर बैठे देखा .. शायद उनके मन में कोई और ही विचार आ गया होगा, जिस कारण वो फ़िर एक शरारत सी मुस्कान दे बैठी...
पर मैं यथावत गम्भीर मुद्रा में बैठे रहा..
और ये बात उन्हें अजीब लगा..
इससे पहले तो हमेशा कमरे में उनके आते ही उनसे लिपट जाता था.. पर आज मेरा यूँ शांत और गंभीर बैठे रहना उन्हें स्पष्ठ रूप से किसी अनहोनी का आभास दिलाने लगा..
आ कर पास बैठी,
दाएँ कंधे पर हाथ रखते हुए पूछी,
“क्या हुआ अभय... इतने सीरियस क्यों? क्या बात हुई?”
“अगर किसी अनहोनी की अपेक्षा कर रही हो चाची तो निश्चिन्त रहो.. अनहोनी या अनिष्ट वाली कोई बात नहीं है |”
मेरे इतना कहते ही चाची तुरंत राहत की साँस ली,
“ओह अभय... तो फ़िर बात क्या है?”
“चाची, एक ऐसी बात है जो मैं आपसे जानना चाहता हूँ.. विस्तार से.. बिना किसी लाग लपेट के ... या काट - छांट के.. ”
“ओके... क्या पूछना है..?” संशययुक्त स्वर में चाची बोली.
“सब बताओगी ना...?”
“हाँ”
“विस्तार से?”
“हाँ बिल्कुल..”
“पक्का...?”
“उफ्फ्फ़...हाँ भई.. हाँ... अब बोलो तो ....”
“प्रॉमिस?”
“ओके.. प्रॉमिस... अब बोलो...”
“ठीक है... चाची, बात थोड़ी पुरानी है... पर बहुत नहीं... इस बारे में हम पहले भी बात कर चुके थे.. पर मुझे फ़िर से बात करनी है.. और हाँ.. ऐसा नहीं है की मुझे सुनने में मज़ा आता है इसलिए सुनना चाहता हूँ... मैं , बस जानना चाहता हूँ... अच्छे से... सविस्तार...”
“हम्म्म्म... ओके....” मेरी आँखों में आँखें डाल कर इतना ही बोली चाची... शायद उनको अब अंदाज़ा होने लगा है की मैं किस बारे में बात करना चाहता हूँ ...
एक गहरी साँस लिया, थोड़ा ठीक से बैठा,
और,
फ़िर प्रश्न किया,
“चाची... आपके साथ ये सब कब से हो रहा है और कैसे शुरू हुआ... और सबसे ज़रूरी सवाल... कब तक चलेगा??”
एक ही साँस में कह गया...
चाची धीरे से मुस्कराई और तुरंत ही पहलू बदली..
चेहरे पर मायूसी उतर आई...
होंठ काँप गए उनके..
सामने खुली खिड़की के बाहर देखने लगी..
एकबार फ़िर मुस्कराने की कोशिश की ... पर इसबार सफ़ल न हो सकी ..
धीरे से बोली,
“सब बता तो दी थी.. फ़िर क्यों पूछ रहे हो?”
“चाची प्लीज़... प्लीज़ मुझे दोबारा बताओ... मैं सुनना चाहता हूँ... प्लीज़ ... और मुझ पर भरोसा रखो.. मेरा कोई गलत मतलब नहीं है..”
चाची सिर घूमा कर मेरी ओर देखी...
बहुत उदासी छाई हुई थी...
आँखों में बहुत सी जिज्ञासाएँ लिए हुए ---
बेड के किनारे रखे उनके हाथ को उठा कर अपने दोनों हाथों में लेते हुए हल्के से दबाया और बहुत धीरे से, लगभग फुसफुसाते हुए कहा,
“प्लीज़....”
कुछ सेकंड्स मेरी ओर देखती रही वह..
शायद निर्णय न कर पा रही हो... कि उन्हें फ़िर से उस दागदार घटना के बारे में बोलना चाहिए या नहीं...
इधर उनकी चुप्पी से मैं भी थोड़ा परेशान होने लगा...
मुझे हर हाल में जानना व सुनना था...
कि चाची के साथ यह सब कब और कैसे शुरू हुआ --- और --- कितने दिनों से चल रहा है ...
पिछली बार मैं जो और जितना जाना था वो इनकी डायरी से जाना था...
चाची को डायरी लिखने का शौक है .. और आदत भी ...
रोज़ डायरी लिखती है ....
हर छोटी – बड़ी बात और घटनाओं के बारे में विस्तार से लिखती है... मानो कोई उपन्यास लिख रही हो ... या फ़िर, किसी को बहुत कुछ समझाना चाहती हो...
सुबह उठने से लेकर अपने वार्डरोब तक की बातों को लिख डालती है..
चाचा के साथ किस बात को लेकर झगड़ा हुआ --- या --- बेटियों के साथ फ़ोन पर कितनी देर बात की --- या --- मार्किट कितने बजे गई और कब लौटी --- यहाँ तक की मैंने सुबह क्या खाया और रात को डाइनिंग टेबल पर क्या क्या बात हुईं --- सब ---- सबकुछ लिखती हैं वो --- एक ‘बिंदु’ तक मिस नहीं करती ...
उन पर शक होने के बाद मैंने उन पर नज़र रखना शुरू किया था.. और जल्द ही उनकी इस आदत के बारे में पता चला था..
एकदिन मौका भी मिल गया था उस डायरी को पढ़ने का..
कुछ ही वाक्य पढ़ पाया था.. की तभी चाची आ गई..
पहले उन्हें हैरानी हुई.. क्योंकि पहली बार मुझे अपने कमरे में देखा..
फ़िर थोड़ी विचलित हुई..
डायरी छीनने की कोशिश की..
नहीं सकी तो गुस्सा करने लगी --- बहुत कुछ बोली --- लगभग ऐसी कोई भी बात जो उन्हें सूझ सकती हो... जिसे बोलने पर मैं उन्हें वह डायरी दे दूँ ...
दिया भी...
और साथ ही पूछा भी...
शुरू में ना नुकुर किया ...
करना बनता भी था..
पर मुझसे सकी नहीं...
हार माननी ही पड़ी और सब कुछ बताना पड़ा...
बताते बताते रुआंसी हो उठी थी...
मैं भी इमोशनल हो गया ..
पहले उनका हाथ अपने हाथों में लेकर सान्तवना देने की कोशिश किया ...
फ़िर कन्धों को सहलाया..
फ़िर पीठ...
धीरे धीरे वो भी उतनी ही हल्की होती गई...
अपने शरीर को मुझ पर ढीला कर छोड़ती गई..
और इसी तरह हम दोनों ने ही एक दूसरे को एक दूसरे के ऊपर छोड़ते हुए सरेंडर कर गए..
उस दिन हमारा काम क्रिया काफ़ी लम्बा चला...
मेरा तो पहली बार था इसलिए मन भी नहीं भर रहा था...
और उनको भी कोई ख़ास जल्दी नहीं थी उठ कर जाने की...
उस दिन के बाद भी कुछेक दिन हमारे बीच नग्न रूप का वह अनुपम कामक्रीड़ा चला...
और जैसा की मैं पहले ही बता चुका हूँ; कि नारी देह रहा तो था वैसे मेरे लिए एक अबूझ पहेली की तरह... पर चाची की ही मेहरबानी से ये पहेली अत्यंत सरलता से सुलझ गई..
और उनके पास जो है... मुझे नहीं लगता किसी और के पास होगा.. यहाँ तक की शायद मोना के पास भी नहीं...
पर एक बात जो मुझे उस दिन से लेकर आज तक खटकती रही है ; वह यह कि शायद उस दिन चाची ने मुझे खुल कर सभी बातें न बताई हो.. यकीनी तौर पर नहीं कह सकता पर शक तो रहा ही...
और घटनाक्रमों ने कुछ ऐसे मोड़ लिए हैं कि आज मुझे एकबार फ़िर चाची के साथ उन्हीं बातों पर डिस्कस करने का मौका मिल गया ...
“क्या जानना चाहते हो अभय..?”
“सब कुछ...”
“सब कुछ..??”
“हाँ... शुरू से..”
“पर मैं तो तुम्हें सब कुछ बता चुकी थी...”
“फ़िर से जानना है मुझे, चाची... और प्लीज़... प्लीज़... बताना शुरू करो.. नो मोर क्वेश्चन्स...” मेरे स्वर में इस बार अत्यधिक उत्सुकता एवं उतावलापन था.. जिसे चाची स्पष्ठ फ़ील कर सकी..
हाँ में सिर हिलाते हुए बोली,
“ठीक है अभय... सुनो..”
उनका इतना कहना था कि मेरे कान सजग हो गए..
पूरा का पूरा ध्यान उनके मुँह से निकलने वाले शब्दों पर केन्द्रित हो गए...
मन … और शरीर का रोम रोम उत्सुकता और एक रहस्य जानने वाले रोमांच के अनुभूति से भर उठा...
इधर चाची ने भी कहना शुरू कर दिया ....
क्रमशः
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