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RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
अपडेट - 5
चाँदनी: थैंक यू बेटा अब तू जल्दी से घर आज बस। तूने तो मेरी सारी परेशानियां ही दूर कर दी। भगवान ने मुझे दो बहुएं दी है दोनों की दोनों ऐसे है कि मुझे लगता है जैसे पिछले जन्म के चारों तीर्थों का पुण्य मुझे इस जन्म में बहुओं के रूप में मिला है।
सरिता शर्मा जाती है। कुछ देर इधर उधर की बातें होती है और फिर फ़ोन काट देते है। उधर राज आज घर जल्दी आ गया था। अभी दोपहर के 3 ही बजे होंगे मुश्किल से और राज घर पर । ये तो सरिता के लिए भी सरप्राइज था।
अब आगे....
सरिता दरवाजे को खोलते ही जैसे ही राज को सामने पाती एकदम से चोंक जाती है। सरिता के लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज था। हो भी क्यों नहीं जो आदमी अपने काम को ज्यादा महत्व देता हो वो आज काम से जल्दी कैसे? कोई गवर्मेंट जॉब तो है नही की हाफ डे था और घर लौट आये।
सरिता: अरे आप? इस वक़्त? यहां? कैसे?
राज: अरे कब ? क्यूँ? कहां? कैसे? बाद में पूछना पहले मुझे अंदर तो आने दो। किसी पराये मर्द की तरह मुझे बाहर ही सारे क्वेश्चन पूछ लोगों क्या?
सरिता को अपनी भूल का एहसास होता है कि उसने राज को सरप्राइज के चक्कर मे अंदर आने को भी नहीं कहा।
सरिता: ओह सॉरी सॉरी सॉरी ( शर्मिंदा होते हुए) आईये। मैं पानी लाती हूँ।
राज: अरे यार छोड़ो ये फालतू की फॉर्मेलिटी
( राज इतना बोलकर सरिता के हाथ को पकड़ कर अपनी और खींचता है और अपने सीने से लगा लेता है।
सरिता: आउच... क्या कर रहे हो कोई देख लेगा।
(राज जल्दी से सरिता को छोड़ ते हुए)
राज: यहां ? अपने घर मे? यहां कौन देखेगा?
सरिता: इश्ssssssss ( बच्चों की तरह सरिता राज की तरफ जीभ निकालते हुए ) जब मालूम है घर में कोई नहीं देखेगा तो फिर छोड़ा क्यों?
राज: क्या? मतलब मेरे साथ ही नाटक?
सरिता राज की तरफ जीभ निकाल कर भागने लगती है। वहीं राज भी सरिता की मासूमियत और नादानी पर खुद भी बच्चा हो जाता है और सरिता के पीछे भागने लगता है। लेकिन सरिता तो पल भर में राज के पास से उड़न छू हो जाती है। पतली बपखाती कमर, हिरनी सी चाल , कजरारी आंखें, मलमली होंठ, दूध से रंग अप्सराओं सा योवन इतनी जल्दी हाथ भी कैसे आता । आखिर में राज थक कर गिरने का नाटक करते हुए नीचे गिर जाता है। सरिता राज को गिरता देख कर जल्दी से राज की तरफ भागती है और राज तुरंत सरिता को लपक कर गले लगा लेता है।
सरिता : अरे अरे गिर जाओगे! आपको कहीं लगी तो नहीं?
राज: ( सरिता की आंखों में देखते हुए) अब तो मैंने तुम्हें पकड़ लिया! अब तो नही जाने दूंगा।
सरिता राज की चालाकी अब समझ जाती है। सरिता अपनी नाजुक कलाईयों से राज के सीने में मारते हुए बोलती है।
सरिता: चीटिंग, चीटिंग की आपने वरना आप मुझे नही पकड़ पाते।
राज: अच्छा भला क्या चीटिंग की मैंने?
सरिता: नाटक किया आपने? अगर आप गिरने का नाटक नही करते तो आप मुझे पकड़ ही नही पाते।
राज एक पल की प्यार भरी मुस्कुराहट के साथ सरिता की आंखों में देखते हुए बोलता है।
राज: अच्छा ऐसी बात है तो लो छोड़ दिया तुम्हे! ( राज अपनी बाहों के घेरे को सरिता की कमर से ढीला कर देता है।) जाओ जहां जाना चाहती हो! लेकिन मेरी बाहों से निकलने के लिए पहले नाटक तो तुमने किया था याद है ना "कोई देख लेगा"। (हंसते हुए)
अब सरिता राज की आंखों में प्यार से देखते हुए राज की कमर को जकड़ लेती है।
सरिता: नाम तो मैं आपको छोडूंगी ना आपको छोड़ने दूंगी। चुपचाप पकड़ लो मुझे।
राज एक बार फिर से सरिता को अपनी बाहों में जकड़ लेता है और सरिता की आंखों में देखते हुए सरिता पर झुकता चला जाता है। जैसे जैसे राज सरिता पर झुकता जाता है वैसे वैसे सरिता की आंखें मदहोश होते हुए बन्द होती जाती है और होंठ। किसी कली की तरह ! जैसे कोई कली खिल रही हो। ठीक उसी तरह सरिता के होंठ फड़फड़ाते हुए खुलने लगते है। और राज के होंठ होले होल सरिता की गर्म साँसों को महसूस करते हुए सरिता के होंठों से जा मिलते है।
दोनों इतना मादक किश कर रहे थे कि रति और काम देव भी इस समय होते तो रति क्रिया में लीन हो जाते। लग भग दो या ढाई मिनेट तक चले किश को दरवाजे की एक बेल ने तोड़ा। अगर ये दरवाजे की बेल ना बजती तो शायद दोनों युगों युगों तक एक दूसरे में लीन रहते।
दरवाजे की बेल बजते ही दोनों हड़बड़ाते हुए एक दूसरे से अलग हुए । सरिता जैसे ही हड़बड़ा कर दरवाजे की तरफ जाने लगी तो सरिता का मंगलसूत्र राज की शर्ट के बटन मैं उलझ गया। सरिता तुरंत मंगल सूत्र को सुलझानें में लग गयी जिसे सुलझाने में करीब 2-3 मिनट लग गए। और राज अपनी जगह खड़े खड़े सरिता को मुस्कुराते हुए देखता रहा।
मंगल सूत्र के निकलते ही सरिता जल्दी से दरवाजा खोलती है। दरवाजा खुलते ही सरिता सामने देखती है कि वहां पर फरिहा और दो तीन लड़कियां खड़ी है। दर असल सरिता के पड़ोस में ही गर्ल्स पी जी है जहां कई सारी लड़कियां रहती है। उनमें से फरिहा काफी पुरानी लड़की है। फरिहा यहां राज और सरिता के आने से पहले से है। फरिहा पी.एच्. डी. कर रही है। इसलिए राज और सरिता फरिहा को अच्छी तरह से जानती है। फरिहा की शादी को तीन साल हो गए। खेर ये सब बाद में फिलहाल उसके आने के कारण को जान ले।
सरिता: फरिहा ? तुम यहाँ? इस वक़्त?
फरिहा: (शैतानी मुस्कुराहट के साथ) क्यूँ दीदी गलत टाइम पर आ गयी क्या?
सरिता: ( झेंपते हुए) अरे नही नहीं ऐसी कोई बात नहीं।
फरिहा: ( सरिता के कान के पास आते हुए) लेकिन दीदी आपके इन नाजुक होंटों के पास मैं फैली हुई लिपस्टिक तो कुछ और ही बोल रही हूं।
सरिता: (तुरंत साड़ी के पल्लू से अपने होंटों को साफ करते हुए) अरे नही कुछ नहीं ये तो बस ऐसे ही
फरिहा: (सरिता को छेड़ते हुए) अरे बताओ ना दीदी प्रॉमिस हम किसी से नहीं कहेंगी। भैया परेशान करने के मूड में है क्या? चाहो तो हम बाद में आ जाते है?
सरिता: धत्त बेशर्म ( मजाक में फरिहा के कंधे पर मारते हुए) फालतू की बात छोड़ और ये बता कैसे आना हुआ?
फरिहा: ओह हो तो अब हमें जल्दी से भगाने की फिराक में हो आप? अच्छा तो ठीक है। हम तो आपसे थोड़ी सी चीनी और दूध लेने आये थे। दर असल हमारे एग्जाम है। और बाहर दुकान बंद है। और अगर दूर भी गए तो शाम को 5 बजे पहले दूध शायद ही किसी के पास मिले इस लिए आप से लेने आ गये।
सरिता: अच्छा किया। रुको मैं लाती हूँ।
करीब पांच मिनट बाद सरिता फरिहा को एक दूध का पैकेट और थोड़ी सी चीनी देकर विदा कर देती है। फरिहा के जाने के बाद सरिता मन ही मन मुस्कुराते हुए फरिहा की छेड़खानी को याद करती है।
सरिता: पागल,
राज: (ठीक सरिता के पीछे धीरे धीरे आ रहा होता है) क्या कहा? पागल? अरे भाई अब तो हमे सब पागल ही कहेंगे । महोबत मैं कौनसा इंसान समझदार होता है।
सरिता सरिता तुरंत पीछे पलट जाती है)अरे नहीं नहीं आपको नही वो तो मैं उस फरिहा को खेर जाने दो ये सब लेकिन आपने अभी तक ये नहीं बताया कि आज आप जल्दी कैसे?
राज : अरे बात ही खुशी की थी तो जल्दी आना ही था। दर असल मेरे पास कुछ देर पहले सुरेश भैया का कॉल आया था। उन्होंने बिज़नेस मैं हुए प्रॉफिट और हमारे बिज़नेस मैं होने वाली हेल्प के बारे में बताया तो तुमसे मिलकर बताने का दिल किया सो आ गया। और वैसे भी मैं कौनसा गवर्नमेंट जॉब मैं हूँ जो अपनी मर्जी से आ जा भी नहीं सकता।
सरिता: जी ऐसा तो मैंने नहीं कहा बस आपका जल्दी आना थोड़ा सा मेरे लिए सरप्राइज सा था।
राज : अच्छा जी।
सरिता : जी... और हां एक बात और माँ जी और चंचल दीदी का कॉल आया था। दोनों ने मुझे आज ही बुलाया है। तो शाम की ट्रेन कर ली मैंने।
राज: हम्म मुझे सुरेश भैया ने भी बोला था कि कुछ दिन के लिए तुम्हे चंचल के साथ रहने दूँ।
सरिता : वो क्यों?
राज: क्यों की सुरेश भैया अपने बिज़नेस को अपने पार्टनर्स के साथ फॉरेन मैं ले जाएंगे। और उनके पार्टनर्स आज रात को फॉरेन जा रहे है और वो भैया को भी साथ ले जा रहे है। जिसके लिए उन्होंने भैया का टिकट बिना भैया को बताए ही बुक करवा लिया ।
सरिता : व्हाट? तो क्या इस बात का अभी तक माँ जी और चंचल दीदी दोनों को पता नहीं।
राज: हाँ अभी तक तो नहीं है। यार तुम तो जानती हो बाबाओं के चक्कर ने माँ को साइको बना दिया है। जब देखो तब आज दिन सही नहीं, अभी मुहूर्त नहीं वगैरा वगैरा। और फिर मुहूर्त और इन सब मैं कोई भी इंसान इतना अच्छा मौका थोड़े ही छोड़ सकता है।
सरिता: (थोड़ा सोचते हुए) हाँ ये भी ठीक है लेकिन फिर भी कम से कम चंचल दीदी को तो?
राज : (सरिता की बात काटते हुए) अब कोई लेकिन वेकीन नहीं। तुम भी ये बात माँ और भाभी को नहीं बताओगी। भैया अपने मन से बताये तो अच्छा है और नहीं बताये तो ये भी उन पर छोड़ दो। हम दोनों अच्छे से जानते है भैया माँ और भाभी दोनो को बहुत चाहते है। अगर वो नही बात रहें है तो सोचो कितनी बड़ी मुश्किल में होंगे।
सरिता : ओके बाबा, खुश, अब इतना स्ट्रेस में मत रहो! आप बिलकुल भी अच्छे नहीं लगते स्ट्रेस में।
राज: अच्छा , तो फिर मेरा स्ट्रेस दूर कर दो ना।
सरिता : मैं कैसे दूर करूँगी आपका स्ट्रेस ? ( सोचते हुए)
राज : ( सरिता को बाहों में लेते हुए) मेरी जान मेरे साथ आज शाम तक डेट पर चलकर। जब तक तुम्हारी ट्रैन नहीं आती तब तक तुम्हारी खुशबू मैं अपने आप में बसा लेना चाहता हूँ।
सरिता : (राज को बाहों में जकड़ते हुए) अच्छा तो शादी के बाद भी जनाब को डेट पर जाना है। अपनी ही बीवी को गर्लफ्रैंड की तरह घुमाना है। ह्म्म्म तो जनाब आप छोड़ेंगे तभी तो तैयार हो पाऊंगी ना डेट के लिए।
राज: ना दिल नही कर रहा
सरिता : तो ठीक है शाम तक ऐसे ही रहते है।
राज: तुम ना नहीं सुधरोगी ( सरिता को बाहों के बंधन से मुक्त करते हुए) जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ। और हां कॉलेज गर्ल टाइप बनना। मेरा मतलब साड़ी मत पहनना वेस्टर्न कुछ पहनना । आज मैं मेरी बीवी और गर्लफ्रैंड दोनों से मिलना चाहता हूं।
सरिता शर्माते हुए टॉवल उठा कर चली जाती है।
वहीं दूसरी और सुरेश बेहद परेशान था। सुरेश को समझ नही आ रहा था कि क्या करे और क्या ना करे। सुरेश इतना परेशान था कि उसे आफिस में ही इमरजेंसी के लिए डॉक्टर को बुलाना पड़ गया।
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RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
अपडेट - 9
सरिता और चंचल दोनो जा कर एक टेबल पर बैठ गयी। और खाने का आर्डर करने लगी। तभी वो आदमी वहां से जल्दी से बाहर निकल गया। वो आदमी कुछ सोचता रहा । फिर मुस्कुराते हुए वहां से चला गया।
थोड़ी देर बाद चंचल और सरिता खाना खा कर रेस्टॉरेंट से घर की और जाने लगी। जब सरिता कार निकाल कर ड्राइव करते हुए चंचल के साथ जा रही थी। उस वक़्त भी एक पेड़ के पीछे से चिप कर कोई उन्हें देख रहा था।वो कोई और नहीं बल्कि वही व्यक्ति था जो उन्हें रेस्टॉरेंट में भी देख कर चोंक पड़ा था।
अब आगे...
सरिता और चंचल इस बात से पूरी तरह से बेखबर थी की कोई उन पर नज़र रख रहा है। वहीं वो व्यक्ति किसी सोच में डूब गया था। तभी उस व्यक्ति के पास एक कॉल आया। जब उस व्यक्ति ने कॉल उठाया तो थोड़ा सा परेशान हुआ फिर थोड़ा सा गुस्सा आया। लेकिन अगले ही पल उसका गुस्सा और परेशानी दोनो एक हो गए। मेरा मतलब उसके आव भाव से किसी साज़िश मैं फंसे होने का किसी को भी भान हो जाये। या फिर हो सकता है वो किसी मुसीबत में हो? या फिर किसी मुसीबत की कश्ती का मांझी हो। खेर वो आदमी फोन कॉल के कट होने के बात कब वह से फ़ुर्र हुआ और कहां गया कोई कह नही सकता।
सरिता और चंचल घर पहुंच कर....
चंचल: चल यार घर का दरवाजा खोलते है और अंदर चल कर आराम करते है।
सरिता : दीदी आप तो ऐसे बोल रही है जैसे आप आज पहली बार घर में प्रवेश कर रही हो?
चंचल: अरे यार सुरेश के बिना अकेले तो मैं आज पहली बार ही आ रही हूं इस घर में..।
चंचल और सरिता दोनो सरिता की इस बात पर हंस पड़ती है। सरिता गेट का ताला खोलती है और दोनों साथ में घर मे घुसती है।
चंचल अपने बैडरूम में जाकर चेंज करने लगती है वहीं सरिता राज के पुराने कमरे में जहां राज शादी से पहले रहता था, वह शिफ्ट हो जाती है और अपने कपड़े बदलने लगती है।
करीब आधा घंटे बाद....
एक फ़ोन कॉल आता है।
चंचल: हेलो.....सुरेश?
सुरेश: हेलो चंचल? तुम सुन पा रही हो ना मुझे..?
चंचल: हाँ सुरेश लाउड एंड क्लियर। तुम ठीक हो ना। क्या तुम पहुंच गए।
सुरेश : नहीं सरिता । एक्चुअली हुम् लोग फिलहाल कैनडा है। कल सुबह यहां से पेरिस का है।
चंचल: ओक जान ई मिस यु अलॉट।
सुरेश: मी टू जानू, ओके लिसेन , तुम्हे काल आफिस जाना है। सीधे मेरे केबिन में। देखो तुमने कई बार जॉब करने के किये कहा। जबकि हमारे पास काफी पैसे थे फिर भी क्योंकि तुम घर पर बोर हो जाती थी। अब तुम्हे मौका मिल रहा है बॉस बनने का। घर के साथ साथ आफिस का बॉस भी अब तुम ही रहोगी।
चंचल: वो सब तो ठीक है सुरेश लेकिन बॉस तो आप ही रहेंगे ।
सुरेश: थैंक यू आका, साहेब... हा हा हा हा, अच्छा सुनो मैंने रघुनाथ को बोल दिया है कि वो तुम्हे सारा काम समझा दे। एक बात का ध्यान रखना जान हमारा कोई भी पार्टनर और नई टेंडर वाले , या फिर कोई नई क्लाइंट कोई भी नाराज ना हो। क्योंकि इसका बुरा असर हमारे बिज़नेस पर पड़ेगा। और कोई ज्यादा दिक्कत हो तो मुझे कॉल करना।
चंचल: ओके जान, कल 10 बजे तक मैं आफिस में चली जाउंगी।
सुरेश: ओके, और सरिता आ गयी?
चंचल: हाँ लेकिनsss....
सुरेश: लेकिन क्या?
चंचल: सुरेश जब मैं आफिस चली जाउंगी तब सरिता अकेली नही पड़ जाएगी यहां घर पर?
सुरेश: हैं सो तो है, पर क्या करें।
चंचल: सुरेश क्यों ना इस एक महीने के किये कोई काम करने वाली को देख ले।
सुरेश: तुम्हारा दिमाग खराब है, अगर माँ को पता लगा तो...?
चंचल: कम ऑन सुरेश , अगर माँ को और बातों का पता लगा तो ज्यादा मुसीबत होगी एक नोकरानी से कौनसा पहाड़ टूट पड़ेगा।
सुरेश को चंचल के शब्द एक पल को ब्लैकमेलर जैसे लगे लेकिन अगले ही पल सुरेश को भी एक नौकरानी की कमी महसूस हो गयी।
सुरेश: ठीक है चंचल , लेकिन सिर्फ एक महीने के लिए। और माँ से रेगुलर टच में रहना।
चंचल: (खुश होते हुए) स्योर सुरेश यु डोंट वरि अबाउट देट।
सुरेश : ओक बाय जान, आई लव यू।
चंचल: मूssssवाह ,लव यू टू
फ़ोन कट
दोनो आने वाले कल से बेफिक्र नींद के आगोश में चली जाती है।
सुबह जल्दी चंचल की आंख खुल जाती है। चंचल सरिता को बहुत चाहती है। सरिता चंचल के लिए एक देवरानी मात्र नहीं बल्कि उसकी एक छोटी बहन और एक सहेली की तरह है। चंचल को मालूम था कि आज उसे आफिस जाना है। इसलिए जल्दी उठ कर फटाफट घर का काम करने में लग गयी। और फिर सोचने लगी कि आखिर नौकरानी के लिए किस से बात करे? तभी उसके दिमाग मे अपनी पड़ोसन की याद आती है। उड़के घर रोज सुबह और शाम को काम वाली आती है। लेकिन एक ही प्रॉब्लम है जो आती है वो घरों की बातें इधर की उधर मिर्च मसाला लगा कर जड़ती है। चंचल कुछ देर सोच विचार करके फिर एक निर्णय लेती है।
करीब आधे घण्टे मैं चंचल ने घर का काम निपटा दिया। हालांकि घर बहुत बड़ा था लेकिन चंचल को सिर्फ वही काम करना था जहां पर वो लोग रहते है। इसलिए काम जल्दी खत्म हो गया। चंचल फटाफट काम खत्म करके दो कॉफ़ी बनाती है और सरिता के रूम की और जाने लगती है।
चंचल सरिता के रूम के पास जाकर डोर नॉक करती हैं और साथ ही सरिता को आवाज भी देती है।
चंचल : सरिता...... सरिता।।।। कॉफ़ी लेलो ।।
सरिता के कानों में जैसे ही चंचल के शब्द गूंजते है तुरंत उठ खड़ी होती है। सरिता बहूत ही मीठी नींद में थी। सरिता जल्दी से दरवाजा खोलती है और कॉफ़ी लेते हुए।
सरिता : दीदी आप क्यों परेशान हो रही है। मैं कर लुंगी ये सब।
चंचल: हाँ हाँ पता है तू कर लेगी। हा हा हा हा
सरिता भी चंचल के इस तरह बोलने पर हंस पड़ती है। दोनों साथ कॉफ़ी पीते हुए नौकरानी और आफिस की बातें करती है। साथ ही चंचल सरिता को बताती है कि नाश्ता तैयार है। खाना बाहर खाये तो अलग बात है वरना खाना फिलहाल तो सरिता को बनाना पड़ेगा। और नौकरानी के लिए पड़ोस में आंटी को चंचल बोल देंगी। और काफी बातें चंचल सरिता को बता रही थी जिसे सरिता सुने जा रही थी। कुछ समझ रही थी तो कुछ ऊपर से जा रही थी। तभी बातों बातों में घड़ी में 9 बजने का घंटा बजा। जिसके साथ ही चंचल भी आफिस के लिए रवाना हो गयी। ऑफिस दूर है थोड़ा सा तो जल्दी जाना ही बेहतर था। और फिर आज पहले दिन ही लेट होना अच्छा नहीं हैं ना। इसलियर सरिता ने किसी को फ़ोन किया। करीब 15 मिनट के बाद एक आदमी आकर खड़ा हो गया। ये एक ड्राइवर था।जो पहले सुरेश के लिए काम करता था। लेकिन फिर किसी कारण से इसने काम छोड़ दिया था। अब ये वापस कैसे आया ये तो बाद कि बात है। फिलहाल तो चंचल उसके साथ कार में बैठ कर आफिस जा रही है।
करीब 9.45 बजे चंचल आफिस पहुंचती है। सारा आफिस स्टॉफ चंचल का स्वागत करता है। चंचल इस वक़्त टिपिकल सारी लुक में थी। लेकिन थी तो बॉस। स्टॉफ की ओरी भीड़ में एक आदमी था। जो थोड़ा सा नाराज और गुस्से में था। लेकिन उसके चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान थी। मजे की बात ये है कि ये कोई और नहीं बल्कि वही आदमी है जिसने काल सरिता और चंचल को कल रेस्टॉरेंट में देखा था।
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12-09-2019, 12:17 PM,
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RE: Kamukta kahani बर्बादी को निमंत्रण
अपडेट - 10
चंचल: (खुश होते हुए) स्योर सुरेश यु डोंट वरि अबाउट देट। माँ से तो में रेगुलेट टच में रहूंगी।
सुरेश : ओके बाय जान, आई लव यू।
चंचल: मूssssवाह ,लव यू टू
फ़ोन कट
दोनो आने वाले कल से बेफिक्र नींद के आगोश में चली जाती है।
अब आगे.....
वहीं सुरेश भी कई ख्यालों में गुम था। सबसे बढ़कर सुरेश को लग रहा था कि पता नही चंचल बिज़नेस हेंडल कर भी पाएगी की नहीं।
( 2 हफ्ते मतलब 15 दिन का चंचल आफिस में )
पहला दिल सुबह:- सुबह चंचल जल्दी उठ कर तैयार होती है और आफिस के लिए निकल जाती है। सरिता भी उसे विदा करते हुए विश करती है। चंचल का सभी आफिस स्टाफ फूलों से और गुलदस्तों से स्वागत करता है। करीब दस मिनट बाद चंचल के सामने एक 6 फुट का आदमी आता है। एक जबरदस्त पर्सनालिटी का आदमी। नाम रघुनाथ। चंचल और रघुनाथ का इंट्रो होता है। इंट्रो के बाद रघुनाथ चंचल को उसका अप्पोइन्टमेन्ट लैटर और और एग्रीमेंट दोनों सौंप देता है। चंचल दोनों को साइन करके सुरेश को मेल करने को बोल देती है। करेब 4 से 5 दिन तक चंचल आफिस का काम समझने में लगते है। हालांकि चंचल एक बी ए की टॉप स्टूडेंट रह चुकी है जिससे भी उसे बिज़नेस समझने में कोई खास परेशानी नहीं हुई। इन्हीं 4-5 दिनों में कोमल ने एक नौकरानी भी घर में रख ली।जिसका नाम लता था।
लता दिखने में थोड़ी सी मासूम थी लेकिन वास्तव में वो क्या थी ये तो वही जानती थी। लता एक नशा थी। और मुसीबतों की जड़ भी।दरअसल लता का बड़ा भाई एक दलाल था। लड़कियों को इधर से उधर करने के साथ साथ उन्हीं लड़कियों से लोगो को ठगने का काम करता था। पुलिस में लाता के भाई के खिलाफ तकरीबन 20-25 केस दर्ज थे, धोखाधड़ी, बलात्कार, चोरी, जालसाजी, ब्लैकमेलिंग, किडनेप के साथ साथ उसपर ड्रग और गाँझा बेचने का भी केस चल रहा था। लाता के भाई के बारे में बाद में बताता हूँ।
लता जबसे चंचल के यहां काम करने आई थी तबसे ही लता पूरे घर का जायजा लेने में लगी थी। लता हर एक चीज को बारीकी से देखती और फिर उसी हिसाब से उस घर के आव भाव भांप लेती। इन्हीं 4-5 दिनों में लता को ये बात पता चली की चंचल और सरिता दोनों अकेली रहती है। उनका परिवार उनके साथ नहीं है। लेकिन फिर भी संभाल कर काम करना ही लता ने सही समझा। लता शायद किसी जालसाजी का हिस्सा थी। जिसके तहत वो फिलहाल उस घर का और घरवालों का जायजा ले रही थी।
करीब 7 से 10 दिन बाद चंचल अपनी कंपनी के अलग अलग पार्टनर्स और टेंडेरेर से बातें करने लगी। उन्हें कन्वेंस करने लगी और कंपनी को उसी लेवल पर मेन्टेन रखा जहां सुरेश ने छोड़ा था। इन 7-10 दिनों में चंचल ने खुद ही कई इम्पोर्टेन्ट निर्णय लिए जो कि कंपनी के बेहद फायदे मंद रहे। और कंपनी के शेयर भी नीचे नहीं गिरे बल्कि 2% ज्यादा बढ़ गए।
चंचल के दिमाग और उसकी मेहनत से प्रभावित होकर सुरेश ने अपना काम चंचल के हाथों में सुनो दिया। अब चंचल हर रोज कभी किसी पार्टनर तो कभी कोई क्लाइंट तो कभी कोई टेंडरेर से मीटिंग में व्यस्त रहने लगी। इन्हीं मीटिंग के दौरान चंचल की किसी से मुलाकात हुई। ये मुलाकात साधारण थी। लेकिन चंचल उससे काफी प्रभावित थी।
दरअसल चंचल की मिस्टर अरोड़ा के साथ एक मीटिंग थी। उनकी मीटिंग होटल सात सितारा में बुक थी। इस मीटिंग के दौरान मिस्टर अरोड़ा ने पूरी होटल में पार्टी ऑर्गनाइज करवाई थी। इसी पार्टी में चंचल की मुलाकात समीर से हुई। समीर बेहद हैंडसम और मस्कलर बॉडी का मालिक। हाथ में रेड वाइन का गिलास लेकर दूर एक कुर्सी पर हल्की मुस्कान के साथ सभी को देख रहा था। वहीं चंचल की नज़र समीर पर पड़ी। लेकिन चंचल उससे अभी प्रभावित नही हुई थी। चंचल प्रभावित तब हुई जब उसकी बात समीर से हुई।
दरअसल चंचल और मिस्टर अरोड़ा की मीटिंग तकरीबन 2 -2.3० घंटे चली होगी। इस दौरान चंचल और समीर की नज़र बार बार टकरा रही थी। ये बात 100% सच है कि समीर चंचल को अच्छा लगा लेकिन इतना भी नहीं कि वो अपनी मालिकाना हैसियत को छोड़ कर उससे बात करने लगे। इसलिए चंचल बस बार बार समीर की तरफ देलहति और समीर की नज़र सीधे चंचल की नज़रों से तकराती। जब मीटिंग खत्म हुई तो चंचल और मिस्टर अरोड़ा एक दूसरे से हाथ मिलाते हुए खड़े हुए। और जाने लगे। ठीक उसी समय जब चंचल ने मिस्टर अरोड़ा को अलविदा किया सरिता का फोन चंचल के फ़ोन पर आया।
सरिता: हेलो दीदी...?
चंचल: हैं सरिता बोलो क्या हुआ?
सरिता : वो दीदी मैंने ड्राइवर को मेरे पास बुलाया है । एक्चुअली मेरी एक सहेली रेलवे स्टेशन है। वो उन्हें वह से यहाँ अपने घर छोड़ कर तुरन्त आपके पास आ जाएगा।
चंचल एक बार तो सरिता से ड्राइवर को फिर बुलाना चाहती थी । लेकिन फिर उसने सोचा कोई बात नही पूरे दिन काम कर रहें है थोड़ा रेस्ट भी हो जाएगा ।ये पार्टी एन्जॉय करते है। चंचल ने ऐसा सोच कर सरिता को बोल दिया कि ईट्स ओके।
सरिता फ़ोन रख देती है। सरिता के फ़ोन को रखते ही चंचल एक बार फिर समीर की तरफ देखती है और एक बार फिर से समीर और सरोता की नज़र एक दूसरे से टकराती है। चंचल को समीर की ये स्माइल बहुत परेशान कर रही थी। इस स्माइल से चंचल समीर से बात करने को बेचैन होने लगी। चंचल तुरंत समीर के पास जाकर....
चंचल: एक्सक्यूज़ मी... क्या मैं आपको जानती हूँ।
समीर: (मुस्कुराता हुआ) जी नहीं आप मुझे नहीं जानती।
चंचलथोड़ा उदास होते हुए) तो फिर आप मुझे कबसे देख कर स्माइल कर रहै थे। ऐसा क्यों?
समीर: (मुस्कुराता हुआ) वो क्या है ना मैं भी कब से आपको देख रहा था कि आप बार बार मुझे देख रही है शायद आप मुझे जानती हो, इस लिए स्माइल कर रहा था।
चंचल: ( मन ही मन) गधा कहीं का , कोई इसे देखेगा तो जय स्माइल देगा।
समीर: बिल्कुल गधा हुन न में।
चंचल: (चौंकते हुए) जीssss क्या मतलब,
समीररेड वाइन का एक गिलास चंचल की और बढ़ते हुए) जी आपको जाने बिना आपकी तरफ देख कर स्माइल कर दिया। बूत रीज़न आपको जानने का ही है।
चंचल: सॉरी , मैं ड्रिंक नहीं करती, और ये जानने का क्या रीज़न है।
समीर:जी मैं जानता तो नहीं हूं बूत जान तो सकता हूँ ना आपको। अगर आप की इजाजत हो तो?
चंचल: (मुस्कुरागे हुए) तो जान लीजिए।
समीर: जी जान तो लूंगा लेकिन आप बताइए कैसे जानूँ आपको, क्या मुझे आपके बारे में जानना चाहिए या आपको?
चंचल: ये कैसा सवाल है? जानना तो दोनों ही चाहिए।
समीर: जी बिज़नेस मैन हूँ। डील तो डील होती है।
चंचल: बिज़नेस मैन? (चंचल मन ही मन समीर से डील करने का एक नया तरीका सीखने का मन बनाती है, क्योंकि चंचल को समीर की हाजिर जवाबी पसंद आ रही थी)
चंचल:अच्छा चलो आपकी डील मंज़ूर, फिलहाल तो आप मेरे बारे में ही जान लीजिए।
अभी समीर और चंचल की बातें चलते हुए आधा घंटा ही हुआ था कि चंचल का ड्राइवर वापस आकर चंचल को कॉल करता है। चंचल तुरंत कॉल काट कर उठ जाती है।
चंचल: सॉरी टाइम अप, अब मेरा ड्राइवर आ गया मुझे जाना होगा और आपके जानने का टाइम भी खत्म हुआ अब।
समीर: जी इतने टाइम में तो मैंने आपमे बारे में से। जान लिया।
चंचल: अच्छा ! इंटरेस्टिंग, ऐसा क्या जान लिया।
समीर: जी जब आप मीटिंग में थी तब आपका ड्राइवर कहीं चला गया था। और आपके आने Sके पहले मिस्टर अरोड़ा किसी कंपनी की असिस्टेन्ट डायरेक्टर की बात कर रहे थे मतलब आप एक बिज़नेस वीमेन है । गले में मंगलसूत्र और माथे मैं सिंदूर मतलब शादी शुदा है। और आप साड़ी में है मतलब की आपकी कमपनी के बॉस या तो आपके पति है या आपमे ससुर।, या फिर आपके डैड।
चंचल:हाऊ? कैसे इतना सब कुछ।
समीर : अब तो ये ड्रिंक ले लीजिये हमारी दोस्ती के नाम? ये ड्रिंक नही है। और हां ये रहा मेरा कार्ड इसके पीछे मेरे पर्सनल नम्बर है। अगर दिल करे हमसे बात करने का तो कॉल करना। वैसे तुम हो बहुत खूब सूरत।
समीर चंचल से इतना बोलकर तुरंत वहां से निकल गया लेकिन चंचल वहीं खड़े खड़े समीर के बारे में सोचती रही। उसे एक और समीर से हुई ये पहली मुलाकात इंटरेस्टिंग लगी वही दूसरी और वो डर ही रही थी। ये तो खुद चंचल को भी पता नही था कि वो डर क्यों रही है। इसी डर के चलते चंचल कुछ भी समझ नहीं पा रही थी। चंचल ने समीर के दिये हुए कार्ड को फेंकने चाहा लेकिन उसी वक़्त उसके ड्राइवर का कॉल आ गया। ड्राइवर का कॉल देख कर चंचल ने तुरंत समीर का कार्ड अपने पर्स में रखा और ड्राइवर के साथ कार में बैठ कर आफिस गयी। करीब 2 घण्टे बाद चंचल आफिस से सीधे घर निकल गयी।
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