Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
05-16-2020, 02:21 PM,
#51
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
कमाण्डर करण सक्सेना आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ चट्टान से नीचे उतर गया ।
वो सावधान था ।
वो जानता था, अब तक हिटमैन ने दोबारा अपनी राइफल को लोड कर लिया होगा । ऐसा नहीं हो सकता था कि उस जैसा अचूक निशानेबाज गोलियों की सिर्फ एक ही मैगजीन अपने साथ लेकर चले ।
दुनिया के एक बेहद खतरनाक निशानेबाज से अब उसका मुकाबला होने वाला था ।
कमाण्डर वापस झाड़ियों में छिप गया और फिर बहुत धीरे-धीरे सरसराता हुआ चट्टान के पीछे से निकलकर सामने की तरफ बढ़ा ।
अभी कमाण्डर ने थोड़ा ही फासला तय किया होगा, तभी एकाएक उसने अपने पीछे सरसराहट सी अनुभव की ।
उसने आहिस्ता से गर्दन घुमाकर देखा ।
अगले पल उसके शरीर में खौफ की तेज लहर दौड़ गयी ।
उसके पीछे हिटमैन मौजूद था, जो बस कुछ ही फासले पर था । वह न जाने कब उसके पीछे पहुँच गया था ।
कमाण्डर एकदम फिरकनी की तरह उसकी तरफ घूम गया और जम्प लेकर खड़ा हुआ ।
हिटमैन भी फुर्ती के साथ सीधा खड़ा हो गया ।
दो यौद्धा !
दो बेहद खतरनाक योद्धा अब आमने-सामने थे ।
“तुम अब मेरे हाथों से बचोगे नहीं कमाण्डर करण सक्सेना ।” हिटमैन काले नाग की तरह फुंफकारा- “एक जंगली जानवर का शिकार मैं कर चुका हूँ, जबकि दूसरा शिकार मैंने अब तुम्हारा करना है ।”
“देखते हैं, कौन किसका शिकार करता है ।”
उसी पल हिटमैन ने अपनी राइफल का ट्रेगर दबा दिया ।
मगर कमाण्डर अपनी जगह से एक इंच भी न हिला ।
न ही उसने अपनी स्टेनगन का ट्रेगर दबाया ।
वो जानता था, ऐसे प्रशिक्षित कमाण्डोज अपनी गन लोड करने के बाद पहला फायर हमेशा खाली करते हैं, ताकि दुश्मन इस धोखे में रहे कि उसकी गन में गोलियां नहीं हैं ।
वही हुआ !
हिटमैन के ट्रेगर की हल्की ‘पिट’ की ध्वनि गूंजी ।
परन्तु वो फौरन ही अपनी राइफल का दोबारा ट्रेगर दबाने में कामयाब हो पाता, उससे पहले ही कमाण्डर भी लाइट मशीनगन का ट्रेगर दबा चुका था ।
हिटमैन की मर्मभेदी चीख गूंज उठी ।
उसके नेत्र घोर आश्चर्य तथा अचम्भे से फटे के फटे रह गये । गोली ठीक उसके माथे के बीचों-बीच वहाँ जाकर लगी, जहाँ औरतें बिंदी लगाया करती हैं । पहले हिटमैन की राइफल उसके हाथ से छूटी, फिर वो खुद भी आँखें फाड़े-फाड़े नीचे गिरकर ढेर हो गया ।
“फैसला हो चुका है हिटमैन ।” कमाण्डर करण सक्सेना गुर्राकर बोला- “हममें से कौन असली शिकारी था और कौन शिकार ! दरअसल जो चाल तुम कमाण्डर करण सक्सेना के खिलाफ चलने वाले थे, कमाण्डर ऐसी ही चालों के बीच पलकर बड़ा हुआ है । गुड बाय एण्ड गुड लक ।”
फिर कमाण्डर ने उन तीनों के हथियारों को नष्ट किया ।
उनके दिल में स्प्रिंग ब्लेड पेवस्त किये और उसके बाद ‘चीता चाल’ में दौड़ता हुआ वापस झाड़ियों की तरफ बढ़ गया ।
☐☐☐
जंगल में गोलियां चलने की वह आवाज मास्कमैन और डायमोक के कानों तक भी पहुंची ।
“यह कैसी आवाजें हैं ?”
“लगता है ?” डायमोक बोला- “तुम्हारे भाई ने किसी हिरन को खोज निकाला है और अब उसी के ऊपर यह सब गोलियां बरसायी जा रही हैं ।”
“नहीं ।” मास्कमैन बड़बड़ाया- “किसी एक हिरन के ऊपर इस कदर धुआंधार फायरिंग नहीं हो सकती । जरूर कुछ और चक्कर है ।”
“कैसा चक्कर ?”
“क...कहीं कमाण्डर तो हिटमैन से नहीं टकरा गया है ?”
“न... नहीं ।”
सब डर गये ।
उस आशंका ने सबको भयभीत कर दिया ।
“अगर ऐसा है दोस्त !” डायमोक शुष्क स्वर में बोला- “तो यह सचमुच बहुत खतरनाक बात है ।”
“मुझे लगता है, जरूर यही बात है । हमें फौरन उसी तरफ चलना चाहिये, जिधर हिटमैन जीप लेकर गया है ।”
“चलो, तो फिर जल्दी चलो ।”
दोनों योद्धाओं के आदेश की देर थी, तुरंत गार्डों का वह पूरा काफिला उसी दिशा में बढ़ गया, जिधर हिटमैन गया था ।
थोड़ी ही देर में वह सब उस जगह पहुँच गये, जहाँ हिटमैन और दोनों गार्डों की लाशें पड़ी थीं ।
“ओह माई गॉड ।” डायमोक के मुंह से तेज सिसकारी छूट गयी- “कमाण्डर करण सक्सेना ने इन्हें भी मार डाला ।”
तमाम हथियारबंद गार्ड सकते में रह गये ।
भौचक्के !
अपने भाई की खून से लथपथ लाश देखकर मास्कमैन की आँखों में भी आंसू आ गये । वह फौरन उसकी लाश से जा चिपका, उस क्षण यही शुक्र था, जो वह बच्चों की तरह रोने नहीं लगा ।
उन दोनों भाइयों में बेहद प्यार था ।
हालांकि दोनों खतरनाक अपराधी थे, लेकिन दोनों ही एक-दूसरे के ऊपर जान छिड़कते थे ।
एक-दूसरे के सुख-दुख में सहभागी थे ।
“कहता था, आप मेरी चिंता न करो भाई ।” मास्कमैन फफकते हुए बोला- “मुझे कुछ नहीं होगा । लेकिन उसकी जरा सी जिद उसे ले डूबी, कमाण्डर करण सक्सेना ने मेरे भाई को मार डाला ।”
“अब हौसला रखो दोस्त ।” डायमोक ने उसकी पीठ थपथपाई ।
लेकिन मास्कमैन रोता रहा ।
उसकी आँखों से झर-झर आँसू निकलकर उसके रबड़ के काले मास्क पर बहते रहे ।
“जो होना था, वह अब हो चुका है दोस्त ।”
“नहीं ।” मास्कमैन गुर्रा उठा- “नहीं, अभी सब कुछ नहीं हुआ है दोस्त ! अभी इस जंगल में एक लाश और गिरेगी, कमाण्डर करण सक्सेना की लाश ! मैं अब उस हरामजादे को किसी हालत में नहीं बख्शूंगा ।”
उसकी आवाज उस क्षण गुस्से में बुरी तरह भभकी हुई थी ।
“अभी वो हरामजादा जंगल में यहीं कहीं आसपास होगा ।” मास्कमैन पुनः भभके स्वर में बोला- “हमें उसे फौरन ढूंढना चाहिये बल्कि फौरन से भी पेश्तर ।”
“हाँ, हम उसे अभी ढूंढते हैं ।” डायमोक बोला- “परन्तु उससे पहल हमें एक और ज्यादा जरूरी काम करना है ।”
“क्या ?”
“हमें पहले इन प्रियजनों का अंतिम संस्कार करना है, वरना यहाँ थोड़ी बहुत देर में गिद्ध मंडराने लगेंगे । चलो, खड़े हो जाओ ।”
मास्कमैन धीरे-धीरे अपने आँसू साफ करता हुआ लाश के पास से खड़ा हो गया ।
माहौल बहुत गमज़दा हो गया था ।
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05-16-2020, 02:21 PM,
#52
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
अंतिम संस्कार के बाद वो पूरा काफिला कमाण्डर करण सक्सेना को ढूंढने के लिए फिर आगे बढ़ा ।
उस क्षण मास्कमैन इतना ज्यादा गुस्से में था कि अगर कमाण्डर उसके सामने आ जाता, तो वह उसकी बोटी-बोटी छितरा डालता ।
लेकिन काश उन दोनों योद्धाओं को मालूम होता कि जिस कमाण्डर करण सक्सेना को वह बर्मा के उन खौफनाक जंगलों में ढूंढते फिर रहे हैं, वो कमाण्डर उन लोगों के पास वहीं झाड़ियों में छिपा था और उस वक्त उन सबकी एक-एक हरकत पर पैनी निगाह रखे हुए था । उनकी तमाम बातें कमाण्डर ने अपने कानों से सुनी थीं और उनके सारे कार्यकलाप अपनी आँखों से देखें ।
इतना ही नहीं उसने उन योद्धाओं को भी साफ पहचाना ।
मास्कमैन !
एक आला दर्जे का बम एक्सपर्ट ।
दूसरा डायमोक ।
स्पेन का एक जबरदस्त बुलफाइटर ! कमाण्डर ने मिशन पर रवाना होने से पहले डायमोक की भी पूरी फाइल पढ़ी थी । स्पेन देश जो अपनी बुलफाइटिंग (साण्डों की लड़ाई) के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, डायमोक उसी स्पेन का एक जबरदस्त बुलफाइटर था । बचपन से ही डायमोक बहुत खतरनाक था । उसके मसल्लस काफी मजबूत थे, जब डायमोक सिर्फ पांच साल का था, तभी वह अपने से कहीं ज्यादा बड़े बच्चों को बुरी तरह धुन डालता था । इंसानी खून बहते देखने में उसे खूब मजा आता था । बचपन से ही उसका वह लड़ाका स्वभाव उसे बुलफाइटिंग के धंधे में ले आया, जहाँ अच्छा खासा पैसा था । डायमोक रिंग के अंदर खतरनाक साण्डों के सामने तलवार लेकर इस तरह खड़ा हो जाता था, जैसे मौत का उसे कोई खौफ न हो । रिंग के चारों तरफ खड़े दर्शक गला फाड़-फाड़कर चिल्लाते रहते, शोर मचाते रहते । और डायमोक मौत का फरिश्ता बना खूंखार साण्ड की अपनी तलवार से धज्जियां बिखेर डालता ।
बाद में डायमोक स्पने के ही एक आतंकवादी संगठन में शामिल हो गया । वहाँ भी उसने बुलफाइटरों वाली तलवार से ही अनेक आदमियों को कत्ल कर डाला ।
डायमोक आज भी वही तलवार अपने पास रखता था ।
बहरहाल अंतिम संस्कार करने के बाद वह सब लोग आगे बढ़े, तो कमाण्डर करण सक्सेना ने भी झाड़ियों में सरसराते हुए उनका पीछा करना शुरू कर दिया ।
अब उल्टा काम हो रहा था ।
वह पीछे था, योद्धा आगे !
कमाण्डर बस किसी मुनासिब मौके की इंतजार में था कि कब उसको जिबह किया जाये । हालांकि उन सबसे एक साथ निपटना कोई आसान काम न था । उसके लिए कमाण्डर को कोई ऐसी युक्ति सोचनी थी, जो वह अकेला ही उन सब पर भारी पड़ता ।
जंगल में चलते-चलते उन्हें फिर रात होने लगी ।
“कमाल है ।” डायमोक थके-हारे और बहुत हैरानीपूर्वक अंदाज में बोला- “यह कमाण्डर करण सक्सेना कत्लोगारत करने के बाद एकाएक कहाँ गायब हो जाता है ।”
“समझ में नहीं आता ।” एक गार्ड बोला- “क्या चक्कर है ।”
“मुझे तो लगता है साहब, वह कोई छलावा वगैरा है ।” वो एक अन्य गार्ड की आवाज थी- “या फिर कोई ऐसा आदमी है, जिसके ऊपर जिन्न वगैरा का साया है ।”
“बेकार की बात मत करो ।” डायमोक गुर्रा उठा- “यह मजाक का वक्त नहीं है ।”
“मैं मजाक कहाँ कर रहा हूँ साहब, मैं तो सच्चाई बयान कर रहा हूँ । जरा सोचो, अगर वो आदमी सचमुच में ही छलावा नहीं है, तो फिर जंगल में एकाएक किधर गायब हो जाता है ।”
“अब अपनी चोच बंद रखो ।”
गार्ड खामोश हो गया ।
कमाण्डर उस वक्त उन सबसे मुश्किल से पांच गज के फासले पर था और दम साधे झाड़ियों में छिपा था ।
तब तक जंगल में अंधेरा बहुत घिर चुका था और अब आगे बढ़ने में भी उन्हें काफी मुश्किल पेश आ रही थी ।
“अब क्या करना है ?” एक गार्ड बोला- “क्या रात भर इसी तरह जंगल में भटकते रहेंगे ?”
“नहीं, मैं समझता हूँ कि अब हमें यहाँ आराम करना चाहिये ।” डायमोक बोला ।
“मुझे तो भूख भी लग रही है साहब ।”
“कोई बात नहीं, भूख का इंतजाम भी अभी करते हैं ।”
जीप में ही खाने का काफी सारा सामान था ।
डायमोक के कहने पर दो गार्डों ने खाने का वह सामान निकाल लिया ।
फिर उन सबने वहीं जंगल में बैठकर खाना खाया ।
परन्तु मास्कमैन भूखा रहा । आखिर उनका जान से भी ज्यादा प्यारा भाई मारा गया था ।
मास्कमैन ने कुछ न खाया, तो डायमोक ने भी कुछ न खाया ।
उसके बाद उन्होंने वहीं जंगल के अंदर रात गुजारने की तैयारी शुरू कर दी ।
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05-16-2020, 02:21 PM,
#53
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कमाण्डर करण सक्सेना अभी झाड़ियों में छिपा बैठा था ।
रात्रि का दूसरा पहर शुरू हो चुका था ।
अब उसके सामने दो तम्बू गड़े हुए थे । एक काफी बड़ा तम्बू था, जिसमें सारे हथियारबंद गार्ड जाकर सो गये थे । जबकि उससे थोड़ा फासले पर एक छोटा सा तम्बू गाड़ा गया था, जिसमें दोनों योद्धा जाकर सोये ।
दो गार्ड उन तम्बुओं के बाहर पहरे पर थे, जो अपने साथियों की रखवाली कर रहे थे ।
कमाण्डर का दिमाग काफी तेजी से चलने लगा और वह कोई ऐसी युक्ति सोचने लगा, जिससे उन सबसे एक साथ निपटा जाये ।
जल्द ही उसके दिमाग में ऐसी एक युक्ति आ गयी ।
वह थोड़ी रात और गुजरने का इंतजार करने लगा, ताकि यह बात कन्फर्म हो जाये कि वह सब लोग सो चुके हैं ।
तभी उसे अपने पीछे हल्की सरसराहट सी अनुभव हुई ।
कमाण्डर एकदम झटके से पलटा ।
उसके पीछे एक हरा सांप था, जो बड़ी तेजी से झाड़ियों में सरसराता हुआ उसी की तरफ आ रहा था ।
कमाण्डर ने झपटकर अपना स्प्रिंग ब्लेड निकाल लिया ।
उसी क्षण सांप भी कमाण्डर के ऊपर झपटा ।
कमाण्डर ने फौरन सांप को मुंह के पास से पकड़ लिया और इससे पहले कि सांप कुछ हरकत दिखा पाता, उसने सांप के दो टुकड़े कर दिये तथा उसे दूर उछाल दिया ।
कुछ देर सांप झाड़ियों में पड़ा छटपटाता रहा और फिर ठण्डा पड़ गया ।
कमाण्डर ने फिर सामने तम्बूओं की तरफ देखा ।
वहाँ पहले जैसा ही सन्नाटा था ।
घोर सन्नाटा !
दोनो गार्ड राइफल संभाले खामोशी से इधर-उधर टहल रहे थे ।
वक्त पहले की तरह ही गुजरने लगा ।
रात के दो बज गये ।
कमाण्डर को पूरी उम्मीद थी कि तम्बुओं में मौजूद लोग अब गहरी नींद सो चुके होंगे । वैसे भी वो सारा दिन के थके-हारे थे ।
तभी कमाण्डर करण सक्सेना ने अपने मुंह से जंगली गुरिल्ले जैसी आवाज निकाली ।
चक ! चक ! ! चक ! ! !
किर ! किर ! ! किर ! ! !
पहरा देते गार्ड चौंके ।
“यह कैसी आवाजें हैं ?” एक गार्ड बड़े स्तब्ध भाव से बोला- “किसी जंगली गुरिल्ले की आवाज मालूम होती है ।”
“जंगली गुरिल्ला ।”
“हाँ, वही ऐसी आवाज निकालता है ।”
दोनों गार्ड अब और ज्यादा स्तब्ध होकर उन आवाजों को सुनने की कोशिश करने लगे ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने फिर अपने मुंह से जंगली गुरिल्ले की चक-चक जैसी आवाज निकाली । इस तरह की आवाज जंगली गुरिल्ला अपनी छाती पीटते हुए निकालता है ।
दोनों गार्डों के जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा हो गया ।
“उस्ताद, यह तो सचमुच में ही जंगली गुरिल्ला है ।” दूसरा गार्ड भी शुष्क स्वर में बोला- “कहीं यह तम्बूओं में गहरी नींद सोते हमारे साथियों पर हमला न बोल दे, उससे पहले ही हमें कुछ करना चाहिये ।”
“लेकिन यह जंगली गुरिल्ला है किधर ?”
“चक-चक की आवाज तो उस तरफ से आ रही है ।” एक गार्ड ने सामने वाली झाड़ियों की तरफ इशारा किया ।
“नहीं, उस तरफ से आ रही है ।” एक गार्ड ने सामने वाली झाड़ियों की तरफ इशारा किया ।
“नही, उस तरफ से आ रही है ।” दूसरे गार्ड ने एक अन्य दिशा की तरफ अंगुली उठाई ।
“ठीक है । तुम उस तरफ जाकर देखो, मैं दूसरी तरफ देखता हूँ और गुरिल्ले से थोड़ा सावधान रहना, वह एकदम से हमला बोलता है ।”
“बेफिक्र रहो ।”
दोनो गार्ड अलग-अलग दिशा में झाड़ियों की तरफ बढ़े ।
एक गार्ड बिल्कुल कमाण्डर की तरफ दबे पांव चला आ रहा था ।
कमाण्डर करण सक्सेना चौंकन्ना हो उठा ।
गार्ड जैसे ही झाड़ियों के करीब आया और उसने आँखें फाड़-फाड़कर अंधेरे में झाड़ियों के अंदर झांकना शुरू किया, कमाण्डर फौरन चीते की तरह गार्ड के ऊपर झपट पड़ा ।
गार्ड ने चिल्लाने के लिए मुंह खोला, लेकिन उससे पहले ही उसकी हथेली कुकर के ढक्कन की तरह गार्ड के मुंह पर जाकर जकड़ चुकी थी । फिर कमाण्डर के हाथ में स्प्रिंग ब्लेड नमुदार हुआ और उसने झटके के साथ गार्ड की गर्दन काट डाली ।
गार्ड थोड़ी ही देर में छटपटाकर शांत हो गया ।
फिर कमाण्डर करण सक्सेना ने दूसरे गार्ड की तरफ देखा ।
वह उस समय उससे काफी फासले पर था और घनी झाड़ियों के अंदर कुछ झांक-झांककर देख रहा था । शायद वो जंगली गुरिल्ले की तलाश में था ।
कमाण्डर करण सक्सेना फौरन झाड़ियों के अंदर-ही-अंदर सर्प की तरह सरसराता हुआ तेजी से उसकी तरफ बढ़ा ।
“कौन है ?” झाड़ियों में हल्की सरसराहट की आवाज सुनकर गार्ड चौंका- “कौन है उधर ?”
कमाण्डर तुरंत उसके ऊपर भी चीते की तरह झपट पड़ा और इससे पहले कि गार्ड संभल पाता, उसकी गर्दन कटी हुई झाड़ियों में पड़ी थी ।
कमाण्डर अब झाड़ियों से बाहर निकल आया ।
उसके बाद वो बेहद दबे पांव उस बड़े तम्बू की तरफ बढ़ा, जिसमें तमाम हथियारबंद गार्ड मौजूद थे ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने धीरे से तम्बू के अंदर झांककर देखा, वहाँ मौजूद तमाम गार्ड गहरी नींद में सो रहे थे । कमाण्डर ने अब अपने हैवरसेक बैग में से क्लोरोफार्म की एक काफी बड़ी शीशी निकाली और फिर उस क्लोरोफार्म को धीरे-धीरे उन सब गार्डों की नाक के पास स्प्रे करना शुरू कर दिया ।
जल्द ही वह सब नींद में ही बेहोश हो गये ।
उसके बाद कमाण्डर करण सक्सेना ने अपने स्प्रिंग ब्लेड से उन सबकी गर्दनें काटनी शुरू कर दीं ।
सारा काम वो बड़े इत्मीनान से कर रहा था ।
सकून के साथ ।
वह पचास के करीब हथियारबंद गार्ड थे, जल्द ही कमाण्डर ने उन सबको गहरी नींद सुला दिया ।
तभी घटना घटी ।
जैसे ही वो अंतिम गार्ड की गर्दन काटने के लिए उसके नजदीक पहुँचा, तभी न जाने कैसे उस गार्ड की आँख खुल गयी और अपने आसपास का मंजर देखकर उसके नेत्र दहशत से उबल पड़े ।
“बचाओ-बचाओ ।” वह एकाएक गला फाड़कर चिल्लाता हुआ तम्बू से बाहर की तरफ झपटा- “बचाओ ।”
कमाण्डर तीर की तरह उसके पीछे दौड़ा ।
परन्तु तब तक गार्ड उस तम्बू से बाहर निकल चुका था और अब तूफानी गति से उस छोटे तम्बू की तरफ भागा जा रहा था, जिसमें मास्कमैन और डायमोक सोये हुए थे ।
ज्यादा वक्त नहीं था ।
जल्दी कुछ करना था ।
तुरंत कमाण्डर के दिमाग की मांस-पेशियों ने हरकत दिखा दी और पलक झपकते ही उसके क्लेंसी हैट की ग्लिप में फंसी कोल्ट रिवॉल्वर निकलकर कमाण्डर के हाथ में आ गयी ।
रिवॉल्वर हाथ में आते ही उंगलियों के गिर्द फिरकनी की तरह घूमी और ट्रेगर दबा ।
बेतहाशा भागता हुआ गार्ड और भी ज्यादा जोर से गला फाड़कर चीख उठा ।
गोली ठीक उसकी पीठ में जाकर लगी ।
वह लहराता हुआ गिरा और तम्बू के पास ही ढेर हो गया ।
कमाण्डर दौड़ता हुआ वापस झाड़ियों में जा छिपा और सांस रोककर अब आगामी हलचल की प्रतीक्षा करने लगा ।
वो जानता था, गार्ड के बुरी तरह चीखने और गोली चलने की उस आवाज ने दोनों योद्धाओं को जरूर उठा दिया होगा । वही हुआ, कुछ सैकण्ड भी न गुजरे कि तभी मास्कमैन और डायमोक बहुत घबराई हुई सी स्थिति में अपने-अपने तम्बू से बाहर निकले ।
“कोई गोली चलने जैसी आवाज थी ।” मास्कमैन बोला ।
“कोई चीखा भी था ।”
तभी उन दोनों की नजर गार्ड की लाश पर पड़ी ।
“माई गॉड !” डायमोक के मुंह से तेज सिसकारी छूटी- “यह तो किसी ने हमारे आदमी को मार डाला ।”
“यह दूसरा गार्ड कहाँ है?”
“मालूम नहीं कहाँ है ।” डायमोक की गर्दन इधर-उधर घूमी- “हमें तम्बू के अंदर चलकर देखना चाहिये, कहीं वहाँ तो कुछ गड़बड़ नहीं हो गयी ।”
दोनों योद्धा तेजी से बड़े तम्बू की तरफ बढ़े और उसके अंदर घुसते ही उन दोनों के नेत्र दहशत से फटे के फटे रह गये ।
मास्कमैन ने झटके के साथ राइफल अपने हाथ में ले ली ।
जबकि डायमोक के हाथ में अपनी बुलफाइटरों वाली तलवार नजर आने लगी थी ।
उन दोनों के सामने लाशों का ढेर लगा था ।
“जरूर कमाण्डर यहीं कहीं आसपास है ।” मास्कमैन गुर्राया- “उसे फौरन तलाश करना होगा, फौरन !”
दोनों यौद्धा दौड़ते हुए तम्बू से बाहर निकल आये ।
उनके हथियार तने हुए थे, तम्बू से बाहर आते ही उन्होंने एक-दूसरे से कोई पचास गज का फासला बना लिया ।
वह ‘शेडो वारफेयर’ (छाया युद्ध) की पोजिशन थी ।
जिसमें यौद्धा एक-दूसरे से काफी फासला बनाकर बेहद ख़ास स्टाइल में अपने दुश्मन को तलाश करते हैं ।
फासला वह इसलिए बनाते हैं, ताकि अगर दुश्मन अटेक की पोजिशन में आये, तो वह किसी एक यौद्धा पर ही आक्रमण कर सके ।
दोनों योद्धाओं के बीच फिर वो फासला धीरे-धीरे बढ़ने लगता है और सौ मीटर तक पहुँच जाता है, उसके बाद वो एक निश्चित प्वाइंट पर पहुँचकर आपस में मिलते हैं तथा वहाँ तक घटी तमाम घटनाओं की जानकारी एक-दूसरे को देते हैं, उसके बाद पीछे चल रहा योद्धा आगे चला जाता है और आगे चल रहा योद्धा पीछे चलता है । इस तरह वो शैडो वारफेयर की सेकण्ड पोजिशन होती है । फिर वो इसी प्रकार क्रम अनुसार आगे-पीछे चलते हुए जंगल को छानते हैं और दुश्मन को तलाश करते हैं ।
कमाण्डर झाड़ियों के अंदर-ही-अंदर निःशब्द अंदाज में चलता हुआ आगे बढ़ने लगा ।
वो जानता था, अगर वो वहीं झाड़ियों में छिपा रहा, तो अभी उन योद्धाओं की निगाह में आ जायेगा ।
डायमोक फिलहाल आगे चल रहा था ।
उसके हाथ में तलवार थी ।
कमाण्डर ने अनुमान लगाया- जिस स्पीड से डायमोक चल रहा है, अगर वो उसी स्पीड से चलता रहा, तो बहुत जल्द मास्कमैन और डायमोक के बीच एक बड़ा फासला हो जायेगा ।
वही हुआ ।
पन्द्रह मिनट के अंदर उन दोनों योद्धाओं के बीच एक बड़ा फासला हो गया ।
कमाण्डर के लिए वही एक गोल्डन चांस था ।
वह फौरन झाड़ियों के अंदर से निकलकर डायमोक के सामने आ खड़ा हुआ ।
“त... तुम !” डायमोक उसे देखकर बुरी तरह चिहुंका ।
“क्यों, मुझे देखकर हैरानी हो रही है ?”
“नहीं, कोई हैरानी नहीं हो रही ।” डायमोक बोला- “बल्कि खुशी हो रही है कि अब तुम्हारा मेरे से मुकाबला होने वाला है । वैसे भी मेरी तलवार की प्यास बहुत दिनों से किसी के खून से नहीं बुझी ।”
कमाण्डर ने फौरन अपना स्प्रिंग ब्लेड बाहर निकाल लिया ।
वह गोली चलाकर पीछे-पीछे आ रहे मास्कमैन को सचेत नहीं करना चाहता था ।
तभी डायमोक नीचे को झुका और उसकी तलवार बड़ी तेजी के साथ उरेकान की मुद्रा में कमाण्डर की तरफ झपटी ।
मगर कमाण्डर उससे कहीं ज्यादा अलर्ट था ।
वह फौरन रेत के ढेर की तरह नीचे गिर गया । डायमोक की तलवार सर्राटे के साथ उसके सिर के ऊपर से गुजरी ।
कमाण्डर ने तुरंत कराटे की हिजागिरी का एक्शन दिखाया ।
उसका घुटना अपने पूरे वेग के साथ डायमोक के गुप्तांग पर पड़ा ।
चीख उठा डायमोक ।
वह संभल पाता, उससे पहले ही कमाण्डर ने राउण्ड किक जड़ी ।
डायमोक चीखता हुआ नीचे गिरा ।
मगर नीचे गिरते ही वो फिर जम्प लेकर खड़ा हो गया था । एक बार फिर उसकी तलवार बुलफाइटिंग के एक बड़े सधे हुए अंदाज में घूमी और कमाण्डर की तरफ झपटी ।
कमाण्डर ने फौरन अपना स्प्रिंग ब्लेड उसके सीने की तरफ खींच मारा ।
“न... नहीं ।” जोर से चीखा डायमोक ।
उसकी उठी हुई तलवार उठी रह गयी ।
फिर वह दोनों हाथों के बीच में-से निकलकर टन्न की आवाज करती हुई नीचे गिरी ।
कमाण्डर ने तुरंत झपटकर उसकी बुलफाइटरों वाली तलवार उठा ली और इससे पहले कि डायमोक अपने बचाव के लिए कुछ कर पाता, उसने वो तलवार डायमोक के दिल में घुसा दी ।
“सचमुच तुम्हारी तलवार की प्यास बहुत दिन से नहीं बुझी थी डायमोक ।” कमाण्डर फुंफकार कर बोला- “लेकिन आज उसकी वो इच्छा भी पूरी हो गयी । अलविदा मेरे दोस्त ।”
डायमोक की आँखें फटी की फटी रह गयीं ।
वो धड़ाम से नीचे जा गिरा ।
फिर कमाण्डर ने पीछे आ रहे मास्कमैन की स्पीड को केलकुलेट किया । वह मुश्किल से दो मिनट बाद ही वहाँ पहुँचने वाला था ।
कमाण्डर ने आनन-फानन कुछ काम किये ।
सबसे पहले उसने डायमोक के सीने में धंसा अपना स्प्रिंग ब्लेड निकालकर वापस खांचे में फिट किया और फिर अपने हैवरसेक बैग में-से आरडीएक्स (अत्यंत विध्वंसक पदार्थ) का एक गोला निकाला ।
आरडीएक्स के गोले में-से उसने थोड़ा सा आरडीएक्स तोड़ा, उसे जांघ पर रखकर गोलाई में बेला और फिर उसे एक कागज में फोल्ड कर दिया ।
उसके बाद कमाण्डर ने एक डिटोनेटर पैंसिल निकाली ।
उस डिटोनेटर पेंसिल की यह खासियत थी कि उसमें दो सेकण्ड से लेकर चौबीस घंटे तक का टाइम फिक्स किया जा सकता था । कमाण्डर ने उसमें तीन मिनट बाद का टाइम फिक्स किया और फिर वह डिटोनेटर पैंसिल उस आरडीएक्स के अंदर लगा दी ।
अब बेहद खतरनाक टाइम बम तैयार था ।
“मैंने सुना है मास्कमैन ।” कमाण्डर बोला- “कि तुम टाइम-बम के बड़े जबरदस्त विशेषज्ञ थे । टाइम-बम बनाने से लेकर उन्हें डिस्कनेक्ट करने तक में तुम्हें महारथ हासिल है । अब देखना है, तुम्हारी विशेषज्ञता तुम्हारे कितने काम आती है ।”
कमाण्डर ने आरडीएक्स का वह टाइम बम डायमोक की लाश के नीचे छुपा दिया और फिर वो द्रुतगति के साथ वहाँ से भाग खड़ा हुआ ।
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05-16-2020, 02:22 PM,
#54
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
ठीक दो मिनट बाद मास्कमैन वहाँ पहुँचा ।
डायमोक की लाश देखते ही उसकी आँखों में दहशत के भाव तैर गये ।
वो डर गया ।
फिर वह अपनी राइफल संभाले बड़ी तेजी के साथ इधर-उधर घुमा, लेकिन कमाण्डर उसे कहीं नजर नहीं आया ।
उसने झाड़ियों में देखा ।
आसपास के पेड़ों पर देखा ।
कमाण्डर का कहीं कुछ पता न था ।
तब मास्कमैन वापस डायमोक की लाश के करीब पहुँचा और उसने लाश को इधर-उधर पलटकर देखा ।
“यह क्या !” तुरन्त उसकी आँखें दहशत के कारण फटी-की-फटी रह गयीं- “बम !”
मास्कमैन ने झपटकर आरडीएक्स बम उठा लिया ।
उसने टाइम देखा ।
बम बस फटने वाला था ।
मास्कमैन ने बेपनाह फुर्ती के साथ डिटोनेटर पैंसिल, आरडीएक्स के अंदर से निकाल देनी चाही ।
मगर !
उसी क्षण भीषण धमाके के साथ बम फट पड़ा ।
मास्कमैन के मुंह से वीभत्स चीख निकल गयी । वह दहाड़ता हुआ किसी हल्के खिलौने की तरह हवा में उछला और दूर झाड़ियों में जाकर गिरा ।
उसका एक हाथ पूरा-का-पूरा उड़ गया ।
जिस्म खून में लथपथ हो गया ।
मास्कमैन ने वहीं झाड़ियों में पड़े-पड़े अपनी जेब से एक बहुत छोटा पोर्टेबल टेपरिकॉडर जैसा यंत्र निकाला ।
फिर उस पोर्टेबल टेपरिकॉडर को खोला और कुछ बटन दबाकर हैडक्वार्टर से उसका सम्पर्क स्थापित किया ।
उसके बाद वो जल्दी-जल्दी उस टेपरिकॉर्डर पर कुछ टाइप करने लगा ।
“जैक क्रेमर साहब, जल्दी कुछ कीजिये । सपोर्ट ग्रुप के तमाम छः योद्धा मारे जा चुके हैं । मेरी भी सिर्फ कुछ ही सांसे बची हैं और उन्ही उखड़ती सांसों के बीच मैं आपको अपना यह आखिर संदेश भेज रहा हूँ । कमाण्डर करण सक्सेना का अभी तक हम कुछ नहीं बिगाड़ सके हैं । वह न सिर्फ जिंदा है बल्कि पूरे जंगल में किसी शेर की तरह घूम रहा है । जंगल उसे न सिर्फ छिपने के लिये जगह मुहैया करा रहा है, बल्कि यहाँ उसे कैसी भी कोई मुश्किल पेश नहीं आ रही है । अगर जल्द ही कमाण्डर करण सक्सेना का कुछ इंतजाम न किया गया, तो वह दिन दूर नहीं है, जब कमाण्डर करण सक्सेना बाकी बचे हुए छः योद्धाओं को भी खत्म कर डालेगा ।”
आपका मास्कमैन !
उस समय मास्कमैन उस टेपरिकॉर्डर जैसे यंत्र पर जो कुछ टाइप कर रहा था, वह फौरन दूसरी तरफ फैक्स मशीन के जरिये हैडक्वार्टर में निकल रहा था ।
हैडक्वार्टर में वो संदेश भेजते ही मास्कमैन भी वहीं झाड़ियों में ढेर हो गया ।
वो मर गया ।
तभी कमाण्डर वापस दौड़ता हुआ वहाँ आ पहुँचा और उसने मास्कमैन की हार्टबीट चैक की । उसकी नब्ज टटोली । यह देखकर उसे राहत मिली कि अब उसमें जीवन का कोई चिन्ह शेष नहीं था ।
फिर कमाण्डर ने टेपरिकॉर्डर पर टाइप किये गये उस अंतिम संदेश को पढ़ा, जिसे मास्कमैन ने हैडक्वार्टर में भेजा था ।
संदेश पढ़कर उसके होंठों पर मुस्कान तैर गयी ।
उसके बाद कमाण्डर ने मास्कमैन की राइफल तोड़ी । डायमोक के दिल में अपना स्प्रिंग ब्लेड पेवस्त किया और फिर जंगल में आगे बढ़ा ।
☐☐☐
दिन निकल आया ।
सूर्य की प्रकाश-रश्मियां जंगल में पुनः चारों तरफ फैल गयी । चलते-चलते कमाण्डर करण सक्सेना अब काफी थकान महसूस करने लगा था ।
रात वो एक पल के लिये भी नहीं सोया था ।
वो जानता था, छः योद्धा मारे जा चुके हैं ।
लेकिन !
अभी छः योद्धा जीवित हैं ।
और वो बचे हुए छः योद्धा पहले छः योद्धाओं से कहीं ज्यादा खतरनाक थे । उनसे मुकाबला करना कोई आसान काम न था ।
कमाण्डर ने इरावती नदी के किनारे पहुँचकर स्नान किया, जिससे उसके शरीर में ताजगी की लहर दौड़ी ।
उसके बाद उसने मिल्क पाउडर का भी सेवन किया ।
पिछले कुछ दिनों से चूंकि उसका कोई भी काम नियमित रूप से नहीं हो रहा था, इसलिये वो अपने शरीर में कुछ कमजोरी महसूस करने लगा था और थकान भी उसे काफी जल्दी हो जाती थी ।
तभी कमाण्डर की निगाह एक गुफा पर पड़ी ।
वह बड़ी अजीबोगरीब-सी गुफा थी और उस गुफा को देखकर ऐसा लगता था, जैसे कुछ महीने पहले ही किसी ने उस गुफा का निर्माण किया है ।
गुफा बहुत साफ-सुथरी बनी हुई नजर आ रही थी और ऐसा बिल्कुल नहीं लगता था, जैसे उस गुफा में कोई जंगली जानवर रहता है ।
कमाण्डर गुफा के अंदर दाखिल हुआ ।
उसमें सचमुच कोई जानवर नहीं था । इतना ही नहीं, गुफा भी अंदर से काफी अंधेरी थी और लम्बी थी ।
कमाण्डर करण सक्सेना गुफा में आगे बढ़ता चला गया ।
गुफा के बिल्कुल अंतिम छोर पर जाकर उसके नेत्र और फटे ।
वहाँ कुछ संकरी-सी सीढ़ियां बनी हुई थीं, जो नीचे कहीं चली गयी थीं ।
कमाण्डर उन सीढ़ियों पर उतरता चला गया ।
थोड़ी ही देर बाद वो एक काफी लम्बी सुरंग में खड़ा था ।
उस सुरंग को देखकर कमाण्डर करण सक्सेना की हैरानी और बढ़ी । सुरंग में जगह-जगह कुछ कमरे भी बने हुए थे ।
कमाण्डर ने रिवॉल्वर निकालकर सावधानीपूर्वक अपने हाथ में ले ली ।
उसके बाद वो तेज-तेज कदमों से एक कमरे की तरफ बढ़ा ।
कमरे का बाहर से ताला खोल डाला ।
ताला खोलकर वह कमरे के अंदर घुसा ।
उस पूरे कमरे में लकड़ी की बड़ी-बड़ी पेटियां रखी हुई थीं । कमाण्डर ने एक पेटी का फट्टा हटाकर देखा, तो उसमें हशीश भरी थी ।
दूसरी पेटी का फट्टा हटाकर देखा, उसमें स्मैक थी ।
कुल मिलाकर वह नशीले पदार्थों का गोदाम था ।
कमाण्डर ने अब अपने हैवरसेक बैग में से एक टाइम-बम निकाला और लकड़ी की उन पेटियों के बीच में फिट कर दिया ।
फिर वो उसे कमरे से निकालकर बड़ी तेजी के साथ सुरंग में आगे की तरफ भागा ।
काफी आगे एक कमरा और बना हुआ था ।
कमाण्डर बेतहाशा दौड़ता हुआ जैसे ही उस दूसरे कमरे तक पहुँचा, तभी पिछले कमरे में बहुत धमाकाखेज आवाज के साथ टाइम-बम फटा ।
बम बहुत शक्तिशाली था । उसके फटने से न सिर्फ उस पूरे कमरे की धज्जियां बिखर गयीं बल्कि उन सीढ़ियों के भी परखच्चे उड़ गये, जो ऊपर से नीचे तक आने का रास्ता था । सुरंग का वह हिस्सा लगभग पूरी तरह ध्वस्त हो गया ।
कमाण्डर ने परवाह न की ।
उसने तांबे के तार से ही दूसरे कमरे का ताला खोला और फिर उसके अंदर दाखिल हुआ ।
वहाँ भी ढेरों पेटियां थीं ।
नशीले पदार्थों का बड़ा स्टाक था ।
सचमुच उन योद्धाओं ने नारिकाटिक्स का अच्छा खासा साम्राज्य वहाँ जंगल में फैला रखा था ।
कमाण्डर ने उस कमरे के अंदर भी एक टाइम बम रखा और वहाँ से भी भागा । उसके बाद वो सुरंग में भागता रहा और जगह-जगह टाइम बम रखता रहा ।
सुरंग में भीषण धमाके गूंजते रहे ।
सुरंग तबाह होती रही ।
भागते-भागते कमाण्डर एकाएक ठिठका ।
उसे सुरंग में सामने की तरफ से अब कुछ आदमियों के दौड़ने की आवाज सुनायी दे रही थीं, जो बड़ी तेजी से दौड़ते हुए उसी तरफ आ रहे थे ।
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05-16-2020, 02:22 PM,
#55
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
कमाण्डर रिवॉल्वर हाथ में लेकर वहीं सुरंग के एक कोने में छिप गया और दौड़ते हुए कदमों की आवाज ध्यान से सुनने लगा ।
वह कई आदमियों के दौड़ने की आवाज थी, जो धमाके सुनकर उसी तरफ भागे चले जा रहे थे ।
कमाण्डर ने अपनी रिवॉल्वर का चैम्बर खोलकर देखा ।
उसमें सिर्फ तीन गोलियां थीं ।
कमाण्डर ने चैम्बर वापस बंद कर दिया ।
भागते हुए कदमों की आवाज अब काफी नजदीक आ चुकी थी । जैसे ही वह दोनों मोड़ के करीब पहुंचे, कमाण्डर फौरन चीते की तरह जम्प लेकर उन दोनों के सामने खड़ा हो गया ।
उन दोनों के हाथ में भी राइफलें थीं, मगर उस वक्त दोनों राइफलों के मुंह छत की तरफ थे ।
“क... कौन हो तुम ?” कमाण्डर को देखते ही वो हड़बड़ाये ।
“फिलहाल तुम मुझे अपनी मौत समझो ।”
रिवॉल्वर फौरन कमाण्डर की उंगली के गिर्द फिरकनी की तरह घूमी और ट्रेगर दबा ।
उनमें से एक गार्ड तो तभी चीखता हुआ वहीं ढेर हो गया ।
जबकि दूसरे गार्ड ने फौरन अपनी राइफल की नाल कमाण्डर की तरफ ताननी चाही, परन्तु उससे पहले ही एक फ्लाइंग किक उसके चेहरे पर पड़ी ।
गार्ड के हाथ से राइफल छूट गयी ।
वो दहाड़ता हुआ पीछे सुरंग की दीवार से जाकर टकराया ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने झपटकर उसका गिरेहबान पकड़ लिया और रिवॉल्वर की नाल उसके गले की घण्टी पर रख दी ।
गार्ड ने जोर से थूक सटकी ।
खौफ के मारे उसके जिस्म का एक-एक रोआं खड़ा हो गया ।
“क... क्या चाहते हो तुम ?”
“सिर्फ मेरे एक सवाल का जवाब दो ?”
“पूछो ।”
“यह सुरंग कहाँ जाकर खत्म होती है ?”
गार्ड ने फौरन सख्ती से अपने होंठ भींच लिये ।
तुरंत कमाण्डर का एक प्रचण्ड प्रहार उसके पेट में पड़ा । गार्ड के मुंह से इस तरह हवा निकली, जैसे किसी गुब्बारे में से निकली हो ।
तभी कमाण्डर करण सक्सेना ने रिवॉल्वर की बैरल को जोर से खींचकर उसकी कनपटी पर मारा ।
गार्ड के मुंह से तेज सिसकारी छूटी । उसकी कनपटी से खून बहने लगा ।
“जल्दी बताओ ।” रिवॉल्वर कमाण्डर की उंगलियों के गिर्द फिरकनी की तरह घूमी और दोबारा उसके गले की घण्टी पर जा टिकी- “यह सुरंग किस जगह पहुँचकर खत्म होती है ?”
“ह... हैडक्वार्टर !”
“क्या हैडक्वार्टर ?”
“य... यह हमारे हैडक्वार्टर पहुँचकर खत्म होती है ।”
कमाण्डर ने रिवॉल्वर का ट्रेगर दबा दिया ।
गार्ड की खोपड़ी इस तरह फटी, जैसे उसके अंदर रखा कोई बम फटा हो ।
उसकी खोपड़ी में से ढेर सारा खून निकलकर दीवार पर फैल गया ।
फिर कमाण्डर ने उन गार्डों की राइफलें बेकार कीं । उनकी गोलियां अपने हैवरसेक बैग में भरीं और उसके बाद वह मौत का कालदूत बना सुरंग में आगे की तरफ बढ़ा ।
पहले की तरह ही कमाण्डर उसके पीछे टाइम-बम फिट करता जा रहा था ।
सुरंग की धज्जियां उड़ाता जा रहा था ।
बर्मा के खौफनाक जंगलों में उन बारह योद्धाओं ने कोई इतनी बड़ी सुरंग भी बनायी हुई है, इस बात की जानकारी कमाण्डर को पहले से नहीं थी ।
अलबत्ता उस सुरंग को देखकर वो प्रभावित जरूर हुआ ।
वाकई यह उसी सुरंग का कमाल था, जो यह योद्धा उस पूरे जंगल को अपनी मुटठी में कैद किए हुए थे ।
जो वहाँ उनका एकमात्र राज चल रहा था ।
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05-16-2020, 02:22 PM,
#56
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
‘सपोर्ट ग्रुप’ के सभी छः यौद्धाओं के मारे जाने की खबर जैसे ही हैडक्वार्टर पहुंची, वहाँ हड़कम्प मच गया ।
जैक क्रेमर, हवाम, मास्टर, अब निदाल, माइक और रोनी- तुरंत उन बाकी बचे हुए छः योद्धाओं की एक एमरजेंसी मीटिंग हुई ।
“यह मास्कमैन का वो आखिरी संदेश है ।” जैक क्रेमर एक कागज को उन योद्धाओं के सामने लहराते हुए कहा रहा था- “जिसे उसने मरने से पहले फैक्स मशीन पर हमारे लिए भेजा है । हमारे ‘सपोर्ट ग्रुप’ के सभी छः यौद्धा मारे जा चुके हैं, अब सिर्फ हम बचे हैं और इससे भी बड़े अफसोस की बात यह है कि हमारी ज्यादातर फौजों को भी कमाण्डर करण सक्सेना ने ठिकाने लगा दिया है ।”
“वाकई उस एक आदमी का आतंक हर पल बढ़ता जा रहा है ।” अबू निदाल बोला- “उसने जहाँ जंगल में इतनी तबाही बरपा करके रख दी है, वहीं हम अभी तक उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके ।”
“सबसे बड़े आश्चर्य की बात तो ये है सर !” मास्टर बोला- “कि बर्मा के इन खौफनाक जंगलों में आने के दो दिन के अंदर ही जहाँ किसी आदमी के होश ठिकाने लग जाते हैं, वहीं कमाण्डर करण सक्सेना को अभी तक कुछ नहीं हुआ है । जंगल उसे पूरी तरह रास आ चुका है ।”
“फिलहाल हमें यह सोचना चाहिये ।” माइक ने कहा- “कि कमाण्डर करण सक्सेना को मार डालने के लिए अब हमारा अगला कदम क्या हो ?”
“यही तो समझ नहीं आ रहा ।” जैक क्रेमर बोला ।
“सचमुच बड़ा मुश्किल सवाल है ।” हवाम ने भी कबूल किया- “क्योंकि कमाण्डर करण सक्सेना को मारने के लिए जितने भी प्रयास हो सकते थे, वो हम पहले ही करके देख चुके हैं ।”
कई घण्टे तक उन योद्धाओं के बीच वो मीटिंग चलती रही ।
वो सोच विचार करते रहे ।
मगर फिर भी कमाण्डर को मार डालने के किसी आखिरी फैसले पर नहीं पहुँच सके ।
तभी उन्हें बाहर हैडक्वार्टर में तेज शोर-शराबे की आवाज सुनायी दी ।
वह ऐसी आवाज थी, जैसे भगदड़ मच रही हो ।
जैसे लोग चिल्ला रहे हों ।
“यह कैसी आवाज हैं ?” योद्धा चौंका ।
“लगता है, हैडक्वार्टर में कुछ गड़बड़ हो गयी है ।”?
“मैं जाकर देखता हूँ ।” रोनी झटके के साथ कुर्सी छोड़कर खड़ा हुआ ।
उसी क्षण भड़ाक की तेज आवाज के साथ कमरे का दरवाजा खुला और दो गार्ड दनदनाते हुए अंदर घुसे चले आये ।
उन दोनों के चेहरे पीले जर्द थे ।
पूरा शरीर पसीनों में लथपथ ।
“क्या हुआ ?” जैक क्रेमर ने आश्चर्यपूर्वक पूछा ।
“बहुत भयानक गड़बड़ हो गयी है सर ! कमाण्डर करण सक्सेना ने हमारी सारी सुरंग तबाह कर डाली है ।”
“क्या कह रहे हो ?”
तमाम यौद्धा झटके के साथ इस तरह अपनी-अपनी कुर्सियां छोड़कर खड़े हुए, जैसे वह जलते हुए गरम तवे में परिवर्तित हो गयी हों ।
“इतना ही नहीं सर !” दूसरे गार्ड ने और भी ज्यादा भीषण विस्फोट किया- “कमाण्डर करण सक्सेना सुरंग के रास्ते से ही अब हमारे हैडक्वार्टर में भी घुस आया है । लेकिन हमें फिलहाल यह मालूम नहीं है कि वो यहाँ किस जगह मौजूद है ।”
“कमाण्डर करण सक्सेना हैडक्वार्टर में है ?”
“यस सर !”
तमाम यौद्धाओं के बीच दहशत फैल गयी ।
जैक क्रेमर शीघ्रतापूर्वक मेज के पीछे से निकलकर बाहर आ गया ।
“अगर कमाण्डर करण सक्सेना इस समय हैडक्वार्टर में है, तो यह हमारे लिए एक गोल्डन चांस है ।” वह जल्दी से बोला- “हम उसें यहीं खत्म कर सकते हैं । उसे जल्दी ढूंढो-जल्दी ।”
“सचमुच वो यहाँ से बचकर नहीं निकलना चाहिये ।” अबू निदाल भी चिल्लाया- “अगर वो यहाँ से बचकर भाग गया, तो यह हमारी एक बड़ी हार होगी ।
तमाम यौद्धा कमरे से निकलकर तेजी से बाहर की तरफ दौड़े ।
हैडक्वार्टर में हड़कम्प मचा हुआ था ।
हर कोई कमाण्डर को खोज रहा था ।
☐☐☐
और वह कमाण्डर करण सक्सेना, जिसके नाम ने पूरे हैडक्वार्टर में भूकम्प मचा दिया था, जिसकी वजह से तमाम योद्धाओं और गार्डो का सुख चैन तक उजड़ चुका था ।
वो बड़ी ही खामोशी के साथ चोरी-छिपे वहाँ पहुँचा था । उसने अपना हैवरसेक बैग खोलकर देखा, उसमें से बमों को जखीरा लगभग पूरी तरह समाप्त हो चुका था ।
कमाण्डर ने वहीं बने ऐमीनेशन रूम में से कुछ हैंडग्रेनेड बम, कुछ टाइम बम और कुछ डायनामाइट की छड़े उठाकर अपने हैवरसेक बैग में भर लीं ।
अब वो दोबारा हमले के लिए तैयार था ।
फिर उसने बड़ी ही खामोशी के साथ ऐमीनेशन रूम का दरवाजा खोला और उसमें से थोड़ी झिरी पैदा करके बाहर गलियारे में झांका ।
वहाँ उस वक्त खामोशी थी ।
सन्नाटा ।
कमाण्डर अपनी कोल्ट रिवॉल्वर हाथ में कसकर पकड़े बाहर गलियारे में आ गया ।
लाइट मशीनगन उसके कंधे पर टंगी हुई थी ।
हैवरसेक बैग पीठ पर था ।
वह पूरी तरह एक खूंखार यौद्धा नजर आ रहा था ।
कमाण्डर उस वक्त हैडक्वार्टर के पहले माले पर था । उस हैडक्वार्टर के दो ही फ्लोर बने हुए थे ।
ग्राउण्ड फ्लोर !
फर्स्ट फ्लोर !
कमाण्डर करण सक्सेना रेलिंग के नजदीक पहुँचा, वहाँ चारों तरफ हड़कम्प मचा था और तमाम हथियार बंद गार्ड उसी को खोजते हुए इधर-से-उधर भागे-भागे फिर रहे थे । अभी तक उनमें से किसी को यह ख्याल भी नहीं आया था कि कमाण्डर करण सक्सेना हैडक्वार्टर के पहले माले पर भी हो सकता है ।
किसी को उसकी वहाँ उपस्थिति का आभास मिलता, उससे पहले ही कमाण्डर ने कुछ कर गुजरना था ।
वह गलियारे में दूर-दूर तक बम फैला चुका था ।
तभी उसने जोर-जोर से कुछ कदमों की आवाज़ सुनी ।
कुछ गार्ड सीढ़ियों पर दौड़ते हुए ऊपर आ रहे थे ।
कमाण्डर ने कोल्ट रिवॉल्वर वापस अपने ओवरकोट की जेब में रख ली और लाइट मशीनगन कंधे से उतरकर उसके हाथ में आ गयी ।
वो वहीं सीढ़ियों के पास छिपकर बैठ गया ।
उन गार्डों की संख्या कोई सात-आठ थी, जो ऊपर भागे चले आ रहे थे ।
सबके हाथ में राइफलें थीं ।
जैसे ही वह सब ऊपर आये, कमाण्डर करण सक्सेना एकदम जम्प लेकर उन सबके सामने जा खड़ा हुआ ।
लाइट मशीनगन उन सबकी तरफ तन गयी ।
“क... कमाण्डर करण सक्सेना !” कइयों के मुँह से एक साथ तीव्र सिसकारी छूटी ।
दहशत से उन सबके शरीर कंपकंपाये ।
“खबरदार !” कमाण्डर गरजा- “खबरदार, अपनी-अपनी राइफल नीचे फैंक दो-वरना अभी तुम सबकी खोपड़ी में झरोखे बन जायेंगे ।
सबने एक-दूसरे की तरफ देखा ।
फिर राइफलें उनके हाथ से फिसलकर नीचे जा गिरीं ।
उसी क्षण कमाण्डर ने अपनी लाइट मशीनगन का मुंह खोल दिया और बस्ट फायर कर डाले ।
रेट-रेट-रेट !
गार्डों की लाशें बिछती चली गयीं ।
तभी जोर-जोर से टाइम-बम भी फटने लगे ।
“कमाण्डर ऊपर है ।” उसी क्षण कमाण्डर के कानों में किसी योद्धा की आवाज पड़ी- “ऊपर, जल्दी से अब ऊपर की तरफ दौड़ो ।”
कमाण्डर ने अब अपने बैग में से डायनामाइट की कुछ छड़ें निकाली और उनके फलीते में आग लगाकर छड़ों को सीढ़ियों की तरफ उछाल दिया ।
उसके बाद वो खुद सरपट भागता हुआ वहीं बने एक टॉयलेट में जा छिपा ।
तभी उसे डायनामाइट फटने की प्रचण्ड आवाज सुनाई दी ।
उसी के साथ कुछ गार्डों की वीभत्स चीखें भी गूंजीं ।
कमाण्डर करण सक्सेना टॉयलेट से बाहर निकल आया और उसने सीढ़ियों की तरफ देखा ।
ऊपर आने वाली सीढ़ियां पूरी तरह तबाह हो चुकी थीं ।
इसके अलावा सीढ़ियों के मलबे में ढेर सारी लाशें भी नजर आ रही थीं ।
कुछ ऐसी ही स्थिति हैडक्वार्टर के पहले माले की थी ।
उसका आधे से ज्यादा भाग बम फटने की वजह से खण्डहर बन चुका था ।
कुछ गार्ड दौड़ते हुए नीचे सीढ़ियों के सामने आये ।
कमाण्डर ने फौरन एक हैण्डग्रेनेड बम निकाला और दांतों से उसकी पिन खींचकर गार्डों की तरफ उछाला ।
गार्ड चीखते हुए इधर-उधर भागे ।
फिर भी कुछ उस बम की चपेट में आ ही गये ।
उसके बाद कमाण्डर उन सीढ़ियों के सामने रूका नहीं । वो पहले माले के गलियारे में ही उस तरफ दौड़ा, जो गलियारा अभी सुरक्षित था ।
वो भागता रहा ।
बेतहाशा भागता रहा ।
लाइट मशीनगन उसके हाथ में थी ।
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05-16-2020, 02:22 PM,
#57
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
सभी छः योद्धा रेडियो-रूम में जमा थे, उनके बीच खलबली मची हुई थी ।
“कमाण्डर करण सक्सेना हमारे काबू में नहीं आ रहा है ।” रोनी बेहद बैचेनीपूर्वक बोला- “वह हमारा आधे से ज्यादा हैडक्वार्टर तबाह कर चुका है ।”
“वाकई !” हवाम भी बोला- “कमाण्डर की तबाही को रोकने के लिये हमें जल्दी कुछ करना होगा ।”
“लेकिन हम करें क्या ?”
जैक क्रेमर जैसे योद्धा की आवाज में ही जबदरस्त उलझन का पुट था ।
“यही तो समझ नहीं आ रहा । वह साक्षात् मौत का फरिश्ता बन चुका है ।”
सब बहुत बेचैन थे ।
बाहर से बम फटने की आवाजें निरंतर उनके कानों में पड़ रही थीं ।
जैक क्रेमर उनमें सबसे ज्यादा परेशान था ।
“लगता है, पूरे बर्मा पर कब्जा करने का हमने जो सपना देखा था, वो इस एक आदमी की वजह से ही धूल में मिलकर रहेगा ।”
“नहीं ।” अबू निदाल गुर्रा उठा- “हम इतनी आसानी से अपने सपने को धूल में नहीं मिलने देंगे सर !”
“लेकिन हम कर क्या सकते हैं ।” जैक क्रेमर झुंझलाकर बोला- “वो हमारे हैडक्वार्टर में घुसा हुआ है और तब भी हम उसका कुछ बिगाड़ने में नाकाम हैं ।”
“मैं तो कहता हूँ सर !” माइक बोला- “हमें फिलहाल बातों में वक्त बर्बाद करने की बजाय बाहर जाकर कमाण्डर करण सक्सेना का मुकाबला करना चाहिये ।”
सब योद्धा फिर अपने-अपने हथियार लेकर बुलंद हौसलों के साथ रेडियो-रूम से बाहर निकले ।
☐☐☐
कमाण्डर अभी भी पहले माले के उसी गलियारे में दौड़ा जा रहा था, जो फिलहाल कुछ सुरक्षित था ।
मगर जल्द ही वो सुरक्षित रहने वाला नहीं था ।
कमाण्डर करण सक्सेना ने वहाँ भी जगह-जगह टाइम-बम जो फिट कर दिये थे ।
वो पिछली तरफ की रेलिंग के नजदीक पहुँचकर ठिठका ।
उसने नीचे झांका, नीचे भी एक गलियारा था । मगर फिलहाल वो पूरी तरह सुनसान था ।
जितनी भी अफरा-तफरी मची थी, सब हैडक्वार्टर के अगले हिस्से में मची थी ।
कमाण्डर करण सक्सेना की निगाहें इधर-उधर दौड़ीं ।
जल्द ही उसे एक काफी बड़ी रस्सी पड़ी नजर आ गयी । कमाण्डर करण सक्सेना ने दौड़कर रस्सी उठा ली ।
उसने रस्सी खींचकर देखी ।
वो मजबूत थी ।
कमाण्डर ने रस्सी का एक सिरा रेलिंग के पाइप के साथ कसकर बांधा और दूसरा सिरा नीचे गलियारे में लटका दिया ।
फिर वो रस्सी पर धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा ।
जल्द ही उसने धम्म से नीचे गलियारे में छलांग लगायी । नीचे कूदते ही वो एकदम स्प्रिंग लगे खिलौने की भांति सीधा खड़ा हो गया और फिर रस्सी उसने वापस ऊपर रेलिंग की तरफ उछाल दी । उसके बाद वो दौड़ता हुआ नजदीक के ही एक कमरे में जा छिपा ।
सामने से पांच-छः गार्ड अपने ऐमीनेशन ब्लैक बूट बजाते हुए तेज-तेज कदमों से उसी तरफ चले आ रहे थे ।
कमाण्डर करण सक्सेना दरवाजे के दोनों पटों से पीठ लगाये स्तब्ध मुद्रा में खड़ा रहा ।
जल्द ही वह गार्ड कमरे के सामने से गुजर गये ।
कमाण्डर ने एक बेहद शक्तिशाली टाइम-बम उस कमरे के अंदर फिट किया और दरवाजे की झिरी में-से बाहर झांका ।
गलियारा सुनसान था ।
कमाण्डर बाहर निकल आया और उसके बाद गलियारे में जगह-जगह टाइम-बम फिट करता हुआ आगे की तरफ दौड़ा ।
तभी उसने फिर कुछ गार्डों के उस तरफ आने का स्वर सुना ।
कमाण्डर फौरन एक गोल स्तम्भ के पीछे छुप गया ।
गार्ड अब काफी करीब आ चुके थे । कमाण्डर करण सक्सेना ने देखा, वह तीन गार्ड थे ।
“यहाँ तो कोई नहीं है ।” उसी क्षण एक गार्ड की आवाज कमाण्डर के कानों में पड़ी ।
“किसी के तेज़ दौड़कर आने की आवाज तो इसी तरफ से आ रही थी ।”
“मुझे तो कुछ गड़बड़ लगती है ।” वह एक अन्य गार्ड की आवाज थी- “जरूर कमाण्डर यहीं-कहीं छिपा है, हमें उसे तलाश करना चाहिेये ।”
“ठीक है, देखते हैं ।”
गार्ड जो गलियारे के बीच में ही ठिठकर खड़े हो गये थे, वह अपने ऐमीनेशन ब्लैक बूट बजाते हुए फिर आगे की तरफ बढ़े ।
कमाण्डर ने अपनी लाइट मशीनगन संभाल ली ।
जैसे ही वह गार्ड उस गोल स्तम्भ के करीब आये, कमाण्डर एकदम किसी प्रेत की तरह उन तीनों के सामने जा खड़ा हुआ और वह कुछ समझ पाते, उससे पहले ही गोलियां चीखती हुई उनके जिस्म के भिन्न-भिन्न हिस्सों में जा धंसी ।
कमाण्डर फिर आगे की तरफ भागा ।
जगह-जगह टाइम-बम वो अभी भी फिट करता जा रहा था । इस बीच पीछे फिट किये गये टाइम-बमों में जोर-जोर से धमाके होने लगे ।
हैडक्वार्टर अब ताश के पत्तों की तरह ढहता हुआ नजर आया ।
सभी छः योद्धा जो कमाण्डर करण सक्सेना की तलाश में उसी तरफ दौड़े चले आ रहे थे, धमाकों की आवाज सुनकर ठिठक गये ।
“मेरी एक सलाह है ।” रोनी बोला ।
“क्या ?”
“कमाण्डर इस समय बहुत आक्रामक मूड में है । अगर ऐसी परिस्थिति में हमारी उससे मुठभेड़ हुई, तो इसमें कोई शक नहीं कि हममें से एक-दो योद्धा और कम हो जायेंगे और फिर भी यह गारण्टी नहीं है कि कमाण्डर करण सक्सेना मारा ही जाये ।”
“तुम कहना क्या चाहते हो रोनी ?” हवाम गुर्राया ।
“मैं सिर्फ यह कहना चाहता हूँ मिस्टर हवाम !” रोनी बोला- “कि फिलहाल हम लोगों को यहाँ से भागकर अपनी जान बचानी चाहिये और उसके बाद हमें ठण्डे और शान्त दिमाग से कोई योजना बनाकर कमाण्डर पर हमला करना होगा ।”
“यानि हम यहाँ से पीठ दिखाकर भाग खड़े हों ?” अबू निदाल की त्यौरियों पर बल पड़े- “हम कायर बन जायें ?”
“सवाल कायर बनने का नहीं है अबू निदाल ! सवाल ये है कि इस वक्त परिस्थितियां हमें किस बात की इजाजत दे रही हैं । जिस बात की परिस्थितियां इजाजत दें, वही काम करने में बुद्धिमानी है ।”
“रोनी बिल्कुल ठीक कह रहा है ।” जैक क्रेमर ने भी रोनी की बात का समर्थन किया- “फिलहाल हैडक्वार्टर छोड़कर भागने में ही हमारी भलाई है । वैसे भी यहाँ खण्डहरों के सिवाय अब कुछ शेष नहीं बचा है । हमारी वर्षों की मेहनत तबाह हो चुकी है । जल्दी भागो !”
जैक क्रेमर के आदेश की देर थी, फौरन तमाम योद्धा कमाण्डर करण सक्सेना को ढूंढ निकालने की बात भूलकर हैडक्वार्टर के पिछले हिस्से की तरफ भागे ।
वहाँ एक छोटा-सा हैलीपेड बना हुआ था और वहीं एक गहरे नीले रंग का हैलीकॉप्टर खड़ा था ।
सबसे पहले माइक दौड़कर हलीकॉप्टर में चढ़ा ।
फिर हवाम, फिर जैक क्रेमर , मास्टर, अबू निदाल और उसके बाद रोनी ।
माइक तब तक पायलेट सीट पर बैठकर हैलीकॉप्टर स्टार्ट कर चुका था ।
जैसे ही रोनी ने झटके से दरवाजा बंद किया, तभी हैलीकॉप्टर की पंखुड़ियां जोर-जोर से घूमने लगीं ।
हैलीकॉप्टर स्टार्ट होने की आवाज कमाण्डर ने भी सुनी । वह दौड़ता हुआ जब तक पिछले हिस्से में पहुँचा, तब तक हैलीकॉप्टर उड़ान भर चुका था और वह भयानक गर्जना करता हुआ दूर आकाश में उड़ा जा रहा था ।
कमाण्डर ने मशीनगन से हैलीकॉप्टर की तरफ धुआंधार फायरिंग की ।
लेकिन सब बेकार !
हैलीकॉप्टर फायरिंग रेंज से बाहर निकल चुका था ।
शीघ्र ही वो कमाण्डर की नजरों से ओझल हो गया ।
“शिट !” कमाण्डर ने जोर से अपनी जांघ पर घूंसा मारा- “आखिरकार सब बचकर भाग निकले, सब ।”
कमाण्डर के चेहरे पर हताशा घिरने लगी ।
पीछे हैडक्वार्टर में बमों के धमाके अभी भी हो रहे थे ।
लेकिन कमाण्डर पूरी तरह निराश नहीं था । वो जानता था, असॉल्ट ग्रुप के वह सभी छः योद्धा जंगल छोड़कर भागने वाले नहीं हैं ।
क्योंकि अगर उन्होंने उस जंगल से बाहर निकलने की जरा भी कोशिश की, तो उसी क्षण चारों तरफ फैली बर्मा की फौज ने उन्हें मार डालना था ।
यानि अभी कमाण्डर की जंगल में उन योद्धाओं से मुठभेड़ होनी बाकी थी ।
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05-16-2020, 02:23 PM,
#58
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
शाम धीरे-धीरे घिरने लगी ।
जंगल में डूबता हुआ सूरज बिल्कुल आग के गोले जैसा नजर आ रहा था, जिसकी घनघोर लालिमा न सिर्फ सारे आकाश में बल्कि पूरे जंगल में चारों तरफ फैली हुई थी ।
डूबता हुआ सूरज आज खून की बारिश करता महसूस हो रहा था ।
वह जंगलियों की बस्ती थी ।
शाम घिरते ही जंगलियों की उस बस्ती में भी सन्नाटा फैल गया ।
नीले रंग का हैलीकॉप्टर उस बस्ती के बीचों-बीच खड़ा था । इसके अलावा ‘असॉल्ट ग्रुप’ के सभी छः योद्धा जंगली सरदार के झोंपड़े में मौजूद थे । वह सब सींकों की एक चटाई पर गोल दायरा बनाये बैठे थे और आपस में यह मंत्रणा कर रहे थे कि कमाण्डर से अब किस प्रकार निपटा जाये ।
उन्हीं के बीच सरदार और सरदारनी भी बैठे थे ।
“मैं समझता हूँ ।” जैक क्रेमर काफी सोचने विचारने के बाद बोला- “कमाण्डर को मार डालने का अब बस हमारे पास एक ही तरीका है ।”
“क्या ?”
“हम थोड़ा सब्र से काम लें, इस मामले में कोई जल्दबाजी न करें ।”
“क्या मतलब ?” हवाम चौंका- “मैं कुछ समझा नहीं सर !”
“बिल्कुल साफ बात है ।” उनमें सबसे ज्यादा बूढे़ जैक क्रेमर ने अपने सफेद बालों को पीछे झटका दिया- “अगर सिर्फ ताकत के बलबूते पर कमाण्डर को मार डालना मुमकिन होता, तो हमारे सपोर्ट ग्रुप के पहले छः योद्धाओं ने ही उसे कब का मार डाला होता ।”
“यानि ताकत से उसे मिटाना संभव नहीं है ।”
“बिल्कुल भी नहीं ।”
“फिर हम क्या करें ?” इस बार अबू निदाल बोला ।
“हमें ताकत के साथ-साथ अब अक्ल का भी भरपूर इस्तेमाल करना होगा दोस्तों, तभी हम इस जंग में कामयाबी हासिल कर सकते हैं । तभी हमें फतेह हासिल हो सकती है । हथियारों को हम बहुत इस्तेमाल करके देख चुके हैं, हमें अब अक्ल को अपना शस्त्र बनाना होगा ।”
“अक्ल मुख्य शस्त्र कैसे बनेगी ?” मास्टर बोला ।
“उसका भी एक तरीका है ।”
“क्या ?”
सभी योद्धा गौर से जैक क्रेमर की बात सुनने लगे ।
सरदार और सरदारनी भी स्तब्ध मुद्रा में बैठे थे ।
“हमें अब आगामी पांच-छः दिन तक कमाण्डर के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लेना है ।” जैक क्रेमर ने अपनी योजना के पत्ते उन सबके सामने फैलाये- “अब हम पांच-छः दिन तक इसी बस्ती में रहेंगे और बिल्कुल खामोशी के साथ रहेंगें, इससे हमें यह फायदा होगा कि कमाण्डर जंगल में अकेला भटकता रहेगा । उसके पास खाने-पीने की जो सामग्री होगी, वो खत्म होने लगेगी और जब उसकी ताकत घटकर आधी से भी कम रह जायेगी, तब हम सब योद्धा एक साथ मिलकर उस पर हमला बोलेंगे । और तब मैं समझता हूँ, उस कमजोर कमाण्डर करण सक्सेना को मार डालना हमारे लिए काफी आसान काम होगा ।”
तमाम योद्धाओं की आँखों में एक साथ कई-कई सौ वाट के बल्ब जल उठे ।
सबकी आँखों में चमक कौंधी ।
“मेरी योजना आप लोगों को कैसी लगी ?” जैक क्रेमर बोला ।
“योजना तो वाकई आपकी बहुत अच्छी है सर ।” रोनी सहित तमाम यौद्धाओं ने कबूल किया- “यानि अब आगामी पांच छः दिन तक हमने कमाण्डर करण सक्सेना के खिलाफ कुछ नहीं करना है, हमने सिर्फ इस बस्ती में रहकर आराम करना है ।”
“बिल्कुल !”
“और अगर मान लो ।” माइक बोला- “इन पांच छः दिन तक जंगल में भटकने से भी कमाण्डर करण सक्सेना के हौंसले पस्त न हुए, तब हम क्या करेंगे ?”
“सबसे पहले तो मैं समझता हूँ कि ऐसा होगा नहीं ।” जैक क्रेमर बोला- “और अगर इत्तेफाक से ऐसा हुआ, तो तब की तब सोचेंगे । पहले से पहले ही अंदाजे लगाकर दिमाग खराब करने से कोई फायदा नहीं ।”
“बिल्कुल ठीक बात है ।” सरदार भी बोला- “फिलहाल तो आप लोगों को सिर्फ आराम करने के बारे में सोचना चाहिये ।”
सबके चेहरों पर संतोष झलकने लगा ।
“यह बताइये !” इस मर्तबा सरदारनी बोली- “मैं आप लोगों के लिए खाना क्या बनाऊँ ?”
“जो खाना भी तुम प्यार से बना लोगी ।” मास्टर ने सरदारनी की शरबती आँखों में झांका- “वही हम सबको पसंद आ जायेगा । क्यों दोस्तों, मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा ?”
“तुम कभी कुछ गलत कहते हो ।”
सब हंसे ।
सरदारन के गाल लाज के कारण सुर्ख सेब की तरह हो गये ।
वो वहाँ से उठकर चली गयी ।
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05-16-2020, 02:23 PM,
#59
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
रात का समय था ।
तमाम योद्धा झोंपड़े के अंदर वाले हिस्से में लेटे हुए थे और अब सोने की तैयारी कर रहे थे ।
मगर !
मास्टर की आँखों में नींद नहीं थी ।
उसकी आँखों के गिर्द बार-बार सरदारनी का चेहरा चक्कर काट रहा था ।
उसकी बेहद मजबूत भुजाये उसे अपने अंदर समेट लेने के लिए आतुर थीं ।
मास्टर उस वक्त जितना सरदारनी के बारे में सोच रहा था, उतनी ही उसकी सांसे भभकती जा रही थीं ।
वाकई वो एक लाजवाब औरत थी ।
कहीं से शोला, कहीं से शबनम ।
पूरा जिस्म मानों किसी पारे से बना हुआ ।
उस वक्त वो सरदार के साथ झोंपड़ी के बाहर वाले हिस्से में लेटी हुई थी । मास्टर की निगाहें बार-बार उस पर्दे पर जाकर टिक जातीं, जो पर्दा उस झोंपड़ी को दो हिस्सों में बांटने का काम कर रहा था ।
सरदारनी के जिस्म की महक उसकी सांसों में समाती जा रही थी ।
वो उसके साथ सहवास के लिए छटपटाने लगा ।
तभी उसने पर्दे के पीछे कुछ आहट सुनी । मास्टर चौंका, उसी क्षण पर्दा एक तरफ सरकाकर सरदार वहाँ आ पहुँचा ।
“शायद इस वातावरण में आप लोगों को नींद नहीं आ रही है ?” सरदार बोला ।
“ऐसी कोई बात नहीं ।” हवाम बोला- “हमें थोड़ा देर से ही सोने की आदत है, लेकिन तुम्हारा कैसे आना हुआ ?”
“दरअसल अभी-अभी बस्ती में एक बूढ़े आदमी की मौत हो गयी है ।” सरदार ने बताया- “वह दमे का मरीज था । मुझे एकाएक वहाँ जाना पड़ रहा है, अब शायद सुबह तक ही मेरी वापसी होगी ।”
“ओह !”
“मैंने सोचा जाने से पहले इस बारे में आप लोगों को भी सूचित कर दूं ।”
“ठीक किया ।”
“अच्छा, अब मैं चलता हूँ ।”
“ओके ।”
सरदार चला गया ।
सरदार के जाते ही मास्टर के दिल की रफ्तार और तेज हो गयी ।
यह ख्याल ही उसकी सांसों को भभकाने लगा कि अब सरदारनी झोंपड़ी के बाहर वाले हिस्से में अकेली थी ।
बिल्कुल तन्हा ।
मास्टर काफी देर तक अपनी भावनाओं पर काबू किये वहीं शांत लेटा रहा । जब उसके तमाम साथी योद्धा गहरी नींद में डूब गये और उनके खर्राटे वहाँ गूंजने लगे, तब मास्टर बहुत आहिस्ता से अपना स्थान छोड़कर उठा ।
उसने एक नजर फिर अपने साथियों पर डाली ।
उनमें से कोई नहीं जाग रहा था ।
मास्टर दबे पांव चलता हुआ पर्दा हटाकर झोंपड़ी के बाहर वाले हिस्से में पहुँचा ।
अगले ही पल वो बुरी तरह चौंका ।
हैरान !
सरदानी अपने बिस्तर पर नहीं थी ।
झोंपड़ी का पूरा हिस्सा खाली पड़ा था ।
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05-16-2020, 02:23 PM,
#60
RE: Kamukta kahani मेरे हाथ मेरे हथियार
मास्टर के दिमाग में तेज चिंगारियां छूटी ।
कहाँ गयी सरदारनी ?
कहीं सरदार के साथ ही वो बूढ़े आदमी की मौत में तो नहीं चली गयी ?
नहीं-नहीं ।
सरदार तो अकेला जाने के लिए कह रहा था ।
मास्टर अब सरदारनी को तलाश करता हुआ झोंपड़ी के बाहर निकला ।
बस्ती में पहले की तरह ही सन्नाटा था ।
जरूर बूढे़ आदमी की मौत बस्ती में दूर कहीं हुई थी ।
मास्टर कुछ आगे बढ़ा ।
नजदीक में ही एक और छोटी सी झोपड़ी थी । फिलहाल उस झोंपड़ी के अंदर रोशनी हो रही थी, जैसे किसी ने मशाल जलाई हुई हो । इसके अलावा उसमें से किसी के हंसने की आवाज भी आ रही थी ।
न जाने क्यों मास्टर को हंसी की वह आवाज जानी पहचानी सी लगी ।
वह दौड़कर झोंपड़ी के नजदीक पहुँचा और उसने अंदर झांका ।
अगले ही पल उसने अंदर का जो नजारा देखा, उसे देखकर उसके नेत्र फटे के फटे रह गये ।
सरदारनी झोंपड़ी में थी और एक जंगली युवक के साथ सैक्स का तूफानी खेल खेल रही थी ।
दोनों उस समय निर्वस्त्र थे ।
शरीर पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं ।
मास्टर के देखते ही देखते उस जंगली युवक ने सरदारनी को अपनी दोनो बाहों में समेटकर किसी हल्की-फुल्की गुड़िया की तरह उठा लिया और फिर उसे बड़ी बेदर्दी के साथ वापस नीचे पटक मारा ।
सरदानी खिलखिलाकर हंसी ।
तभी उस जंगली युवक ने उसके दोनों भारी-भरकम उरोजों को अपनी हथेलियों में कसकर भींचा, कसकर झिंझोड़ा ।
सरदारनी फिर हंसी ।
उसके दोनों उरोज पत्थर की तरह सख्त हो गये ।
उनमें तनाव आ गया ।
भूरे रंग के निप्पल अब और ज्यादा कठोर चुके थे ।
“तुम सचमुच पूरी तरह जंगली हो ।” सरदारनी ने मुस्कुराते हुए उस जंगली के मैले-कुचैले बाल बुरी तरह झिंझोड़े ।
“वो तो मैं हूँ ही ।” युवक भी हंसा- “पूरी तरह जंगली ।”
“मगर तुम्हारा यह जंगलीपन मुझे पसंद है ।” सरदारनी ने उसके गाल और सीने पर चुम्बन अंकित किया ।
वह उसके ऊपर अपना बेपनाह प्यार लुटा रही थी । दोनों एक-दूसरे की बाहों में खेल रहे थे ।
आनन्द ले रहे थे ।
और !
उस बदजात औरत के उस खेल को देखकर मास्टर की खोपड़ी सुलगने लगी ।
उसका पारा हाई होने लगा ।
मास्टर को फौरन अपनी उस यहूदी प्रेमिका की याद ताजा हो आयी, जिसने उसे धोखा दिया था और किसी दूसरे युवक से शादी कर ली थी । वह सरदानी भी उसी की तरह बदजात थी ।
यारमार ।
मर्दखोर !
जिन्हें हमेशा अपने जिस्म की कामाग्नि शांत करने के लिए नये-नये मर्द चाहिये होते हैं ।
जंगली युवक ने अब सरदारनी को बिल्कुल चित कर दिया और उसके ऊपर छाता चला गया ।
उन दोनों के होंठ आपस में टकराये ।
फिर उसके हाथ सरदारनी के चिकने एवं कठोर नितम्बों के उठान और ढलाव पर आवारगी करने लगे ।
सरदानी के होठों से सिसकारियां छूटने लगी ।
नाक से भभकारे निकले ।
तभी उस जंगली युवक का हाथ सरसराता हुआ उसकी दोनों जांघों के बीच में पहुँच गया और वहाँ पहुँचते ही उसकी एक उंगुली ने बड़ी वहशियाना हरकत की ।
सरदारनी के मुंह से चीख निकली ।
उसने अपने दोनों जांघे कसकर भींची ।
“क्या कर रहे हो ?” सरदारनी कुलबुलाई ।
“क्यों ?” जंगली युवक ने प्यार से उसकी नाभि पर होंठ रखे- “क्या मेरा यह जंगलीपन पसंद नहीं ।”
“तुम सचमुच मुझे पागल कर देते हो ।” सरदानी ने बिल्कुल बच्चों की तरह उतावलापन दिखाते हुए अपने उरोज जोर-जोर से उसके चेहरे पर रगड़े ।
जंगली युवक ने अब उसकी दोनों जांघें कसकर पकड़ ली और उन्हें खोल डाला ।
दोनों जांघों के बीच में अब काफी फासला हो गया ।
वह धीरे-धीरे ‘अंत’ की तरफ बढ़ रहे थे । सरदारनी की उंगलियां भी जंगली युवक के भिन्न-भिन्न अंगों पर सरसराने लगी थीं ।
वह उसके बेतहाशा चुम्बन ले रही थी ।
जंगली युवक के शरीर का ऐसा कोई ‘अंग’ नहीं बचा, जहाँ उसने अपने प्यार की मोहर न लगायी हो ।
“सैक्स का जो बेपनाह सुख मुझे तुमसे हासिल हुआ है दोस्त, उस सुख से मैं पहले पूरी तरह अछूती थी ।”
साली !
हर्राफा !
छिनाल !
मास्टर ने उस वक्त बड़ी मुश्किल से अपनी भावनाओं पर काबू किया ।
वो उस जंगली युवक से ऐन वही बात बोल रही थी, जो उससे कहती थी ।
तभी उसने अपने दोनों टांगें पूरी तरह चालीस डिग्री के कोण पर फैला दीं और उसी क्षण वह जंगली युवक भी उसके ऊपर सवार हो गया ।
जब उससे आगे का नजारा देखना मास्टर के बसका न रहा, तो वह पीछे हट गया ।
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