Hindi Sex Kahani ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
06-08-2020, 12:12 PM,
#51
RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
शीतल को घर छोड़े हुए 7 महीने हो गये थे। राज के लिए तो जैसे आज ही वो घर छोड़ कर गयी थी। राज को खुद से ज़्यादा गौरी की फ़िक्र थी अभी कुछ दिन पहले अचानक गौरी की तबीयत बहुत ज़्यादा खराब हो गयी थी। डॉक्टर ने बताया कि उसके दिल में छेद है। ज़रूरत पड़ने पर ओपरेशन भी करना पड़ सकता है। उसे देखभाल की बहुत ज़्यादा ज़रूरत थी। ऐसे में राज के लिए शीतल का ना होना और भी दुख दे रहा था। उसके दिल में आता –“क्या शीतल, गौरी के लिए भी घर वापस नही आएगी पर शीतल को गौरी के बारे में पता कैसे चलेगा?”राज ज़्यादातर समय घर पर ही रहता ताकि गौरी का ध्यान अच्छे रख सके अच्छे से अच्छे डॉक्टर तो थे पर उस मासूम की माँ उसके साथ नही थी। कई बार गौरी राज से पूछती थी-“पापा,मेरी मम्मी कहाँ है?सबकी मम्मी होती हैं पर मेरी क्यों नही है?”

राज के पास उसके इस मासूमियत भरे सवाल का कोई जवाब नही होता। इतने दिनों में गौरी शीतल को भूल गयी थी पर दूसरों की मम्मी को देखकर वो ज़िद करने लगती थी।

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11.

रात के 8 बज रहे थे, राज गौरी को सुलाने के बाद टी.वी. देख रहा था। तभी फोन की बेल बजी।

“हैलो,”राज ने फोन रिसीव करते हुए बोला।

“हैलो,”दूसरी ओर से शीतल की आवाज़ आई।

“शीतल………तुम,” राज ने चौंकाते हुए कहा।

“मुझे कुछ पैसों की ज़रूरत है।”

“तुम हो कहाँ?”

“आगरा में।”

“वापस आ जाओ।”

‘मैं ज़्यादा बात नही कर सकती। पैसे कब तक दे दोगे।”

“कल………। हम मिलेंगे कहाँ?”

“रेलवे स्टेशन के पास।”

“मैं अपनी कार से रहूँगा।”

“तो क्या हुआ?”शीतल ने कहा और फोन रख दिया।

राज ने फिर फोन किया पर किसी ने रिसीव नही किया।

अगले दिन राज गौरी को अपने घर छोड़ कर आगरा चला गया। रेलवे स्टेशन के पास बताई जगह पर शीतल पहले से ही खड़ी थी। हरे-लाल रंग का सूट पहना हुआ था उसने। बहुत साधारण सी लग रही थी,पहले जैसी सुंदरता नही दिख रही थी। हल्की-हल्की ठंडक थी फिर भी शीतल ने कोई गर्म कपड़े नही पहने।

“कैसे हो?” शीतल ने राज के कार से बाहर निकलते ही पूछा।

“अच्छा हूँ और तुम?”

“मैं भी………………। मेरी नन्ह-सी जान कैसी है?”

“वो भी अच्छी है………। तुम्हे बहुत याद करती है,” राज ने कहा।

कुछ देर दोनों शांत रहे शायद वो आपस में बात करने के लिए शब्द ढूँढ रहे थे।

“अपने घर नही ले चलोगी।”

“क्यों नही?” शीतल ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा।

दोनों कार से चल दिए। राज कार चला रहा था और शीतल उसके बगल में बैठी थी। राज ने अपना एक हाथ शीतल के हाथ पर रख दिया,शीतल ने देखा और फिर नज़रें हटा लीं।

“तुम कुछ बोल क्यों नही रही हो?” राज ने पूछा।

शीतल ने राज की ओर देखा फिर गहरी सांस भारती हुई बोली-“घर पहुँच कर बात करते हैं।”

“तुम्हारे बच्चे का क्या हुआ?” राज ने पूछा।

“गिर गया।”

“गिर…………। कैसे?”

“सीढ़ियों से फिसल गयी थी,पैर में भी चोट तभी लगी थी,” शीतल ने कहा।

राज का ध्यान उसके पैर की ओर गया,पट्टी बँधी थी और हल्की सूजन भी थी। तब तक घर आ गया।

“तुम बैठो यहाँ बैठो,मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ,” शीतल ने ज़मीन पर एक चादर बिछाते हुए कहा।

“तुम ऐसी जगह रहती हो,” राज ने घर की हालत देखते हुए कहा।

“क्यों क्या हुआ है?”

“कुछ नही,” राज ने कहा और एक किनारे दीवारा का सहारा लेकर बैठ गया।

“तुम्हारा बिजनेस कैसा चल रहा है?” शीतल ने चाय पकड़ाते हुए पूछा।

“बहुत अच्छा…………………अब मैं पार्ट्नरशिप में नही हूँ,” राज ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।

“मैंने तुम्हे पैसों के लिए फोन किया था,मुझे 2000 रुपयों की ज़रूरत है।”

“क्यों?ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गयी जो मुझ से……………।”

“जहाँ काम करती हूँ,वहाँ मुझसे कुछ समान टूट गया है बस उसी लिए………………। मैं तुमसे कहती ना पर मेरी तबीयत नही ठीक है और मैं ज़्यादा काम नही कर सकती हूँ इसलिए कहा। वो मुझे कोई ग़लती होने पर बहुत बुरा-भला कहती हैं कई बार तो तुम्हारे बारे में भी कहने लगती जो मुझे अच्छा नही लगता है।”

“वहाँ काम क्यों नही छोड़ देती?”

“काम कम रहता है और पैसा भी ठीक मिल जाता है………फिर इतनी जल्दी कहीं और काम भी तो नही मिल जाएगा।”

“तुम्हे ये सब करने की ज़रूरत ही क्या है?पढ़ी-लिखी हो किसी भी जगह रिसेप्सनिस्ट…की जॉब मिल जाएगी तुम्हें,तुम कर भी चुकी हो फिर क्यों इस तरह से अपनी जिंदगी जी रही हो?”राज ने कहा।

“शायद मेरी जिंदगी में यही सब लिखा है।”

“पागलों जैसी बात क्यों कर रही हो……………। तुम्हें खुद पता है की तुम अकेले भी अपनी जिंदगी को बेहतर ढंग से जी सकती हो।”

शीतल कुछ नही कह सकी,वो अपनी नज़रें राज से चुराने की कोशिश करने लगी।

“इधर आकर बैठो,” राज ने अपने बगल में बैठने का इशारा करते हुए कहा।

शीतल राज के बगल में पर उससे कुछ दूर हटकर,दीवार के सहारे बैठ गयी। राज हल्का-सा मुस्कुरा दिया।

“क्या हुआ?तुम हँसे क्यों?”

“कुछ नही।”

“फिर क्यों हँसे?”

“तुम्हारी हरकत पर।”

“क्या किया मैंने?”

“कुछ नही…………। कभी मुझसे सटकर बैठने की कोशिश करती रहती थी और आज मुझसे दूर बैठने की।”

शीतल राज से सटकर बैठ गयी। दोनों ने एक-दूसरे को एक पल के लिए देखा और फिर मुस्कुरा दिए। शीतल ने अपना सिर राज एक कंधे पर रख दिया। राज उसके बालों में अपना हाथ फेरने लगा। अपनी उंगलियों में उसके बालों की लटों को लपेटने की कोशिश करता।

“अब भी तुम्हारा दिल पहले की तरह बाहर घूमने का करता है।”

“नही।”

“क्यों?पहले मुझसे बाहर चलने के लिए कितना ज़िद करती थी। अब क्या हुआ?”

“अब ज़िद करने के लिए तुम नही हो…………………………। तुम मुझसे अब भी प्यार करते हो या कोई और पसंद आ गयी है?”
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06-08-2020, 12:12 PM,
#52
RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“मुझे कोई पसंद नही आया पर तुम्हारा दिल ज़रूर किसी ना किसी पर आ गया होगा ,हर बार की तरह,” राज ने कहा।

शीतल हँस दी-“क्या मैं इतनी बुरी हूँ?”

“मैंने बुरा नही कहा…………। मेरा मतलब था की तुम्हारा कोई दोस्त बन गया होगा।”

“इशारा कुछ ऐसा ही था………। अब कोई दोस्त नही है मेरा ना कोई लड़की ना ही लड़का।” शीतल ने अपने हाथों की उंगलियों को राज की उंगलियों में जकड़ते हुए कहा। -“इन हाथों में सिर्फ़ तुम्हारा हाथ ही अच्छा लगता है। ”

“अफ़सोस की ये हाथ कभी मिलते ही नही,” राज ने कहा।

दोनों खामोश हो गये,नज़रें एक-दूसरे से चुराने की कोशिश कर रहे थे। पर हाथों की पकड़ मजबूत हो गयी थी।

राज ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा-“लौट क्यों नही चलती मेरे साथ। ”

“किसी का खून किया है……। ,नही चल सकती हूँ आख़िर सज़ा भी तो मिलनी है पुलिस से ना सही किस्मत से ही।”

“जय जैसे का खून करने में कोई गुनाह नही है।”

“फिर भी मैं नही चल सकती हूँ………। मुझसे वपास लौटने के लिए मत कहो।”

“ठीक है,नही कहूँगा……………………। एक गिलास पानी मिलेगा।”

“नही मिलेगा,” शीतल ने हँसते हुए कहा और पानी लेने के लिए उठ गयी।

“7 बज गये हैं,खाना नही बनाओगी,” राज ने कहा।

शीतल ने पानी देते हुए बोला-“तुम थोड़ी देर आराम करो तब तक मैं बना देती हूँ। ”

“आराम क्यों?मैं भी तुम्हारा साथ दूँगा,जैसे पहले देता था।”

“शीतल,जब जय ने तुम्हारे साथ ऐसा कुछ किया था तो फिर वो बाद में शादी क्यों करना चाह रहा था?” राज ने पूछा।

“शायद उसे डर था की कहीं मैं उसके खिलाफ कुछ करूँ ना,” शीतल ने कहा।

दोनों ने मिलकर खाना बनाया और फिर एक साथ खाया। इस बीच दोनों की आपस में कई बार बहस हुई कभी सब्जी को काटने को लेकर तो कभी बनाने को लेकर।

शीतल ने सोने के लिए ज़मीन पर एक चादर बिछाई। उसके पास दो चादर थीं एक वो ओढती थी,एक बिछाती।

उसने राज के लिए एक चादर बिछा दी थी और दूसरी उसे ओढ़ने के लिए दे दी। वो खुद अपने दुपट्टे को ज़मीन पर बिछा कर लेट गयी। वो किन हालत में जी रही थी इसका अंदाज़ा लगाना राज के लिए कठिन नही था।

राज ने शीतल को अपने पास लेटने के लिए कहा। पहले तो शीतल कुछ हिचकिचाई फिर उसी चादर पर वो भी लेट गयी,राज के हाथ को तकिया बना कर।

“तुम इतनी ग़रीबी में यहाँ जी कैसे रही हो?” राज ने पूछा।

“हम दोनों ऐसी जिंदगी पहले भी जी चुके हैं।”

“तब मजबूरी थी,आज कौन सी मजबूरी है?”

“कोई नही।”
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06-08-2020, 12:13 PM,
#53
RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“फिर क्यों?”

“बस ऐसे ही।”

“पागल हो,जो दिल में आया वो करने लगती हो।”

“हाँ,” शीतल ने हल्का मुस्कुराते हुए कहा।

“तुमने दिल्ली क्यों छोड़ा?”

“तुमसे दूर होने के लिए।”

“फिर मुझे पास क्यों बुलाया?”

“मजबूरी थी,कुछ पैसों की,कुछ दिल की।”

“अब भी मुझसे प्यार है।”

शीतल ने कुछ नही बोला। लेकिन कहना तो चाहती थी-“मैं तुमसे बेपनाह प्यार करती हूँ। जितना डूब कर तुमने मुझसे प्यार किया है उतना ही मैंने भी तुमसे। पूरी तरह से टूट कर चाहा है तुम्हें,मेरे शरीर के हर रोएँ में बस तुम ही बसते हो। "पर अफ़सोस की उसके ये शब्द उसके दिल तक ही सीमित रह गये ज़ुबान से वो कुछ भी नही कह सकी।

“बोलो,क्या अब भी तुम मुझसे प्यार करती हो?”

“हाँ,…………………क्यों कि तुम बहुत अच्छे हो। कितना भी दुख हो पर तुम्हारे करीब होती हूँ तो सब भूल जाती हूँ,मैं खुद को तुम्हारे साथ सुरक्षित महसूस करती हूँ। बहुत दोस्त बने कोई अच्छा तो कोई बुरा पर तुम जैसा मुझे कोई ना मिला। खुद से ज़्यादा भरोसा है तुम पर,दुनिया में अगर किसी को दिल से पाना चाहा है तो सिर्फ़ तुम्हे। मेरे लिए एक पल भी तुम्हारे बिना रहना बहुत मुश्किल है,राज। मैं जय के साथ घूमती ज़रूर थी पर हर पल तुम्हारे बारे में सोचती थी कि काश तुम मेरे साथ होते,मुझे तुम्हारी खुशी चाहिए और कुछ भी नही। मैंने तुम्हे भी इसीलिए छोड़ा ताकि तुम अपने घर वापस लौट जाओ। जिंदगी के गम भुलाने के लिए गौरी की जिंदगी तुम्हारे साथ जोड़ दी……,” शीतल की आँख से आँसू बहने लगे,राज की आँखें भी भर आई थी।

“मैं घर वापस नही गया,मुझे आज भी तुम्हारे वापस लौटने का इंतजार है,” राज ने कहते हुए शीतल के माथे को चूम लिया। शीतल कुछ नही बोली। दोनों बाते करते-करते सो गये। उन्हे सोए हुए कुछ घंटे के बाद शीतल बार-बार करवटें बदलती कई बार उठ कर बैठ जाती फिर सो जाती उसके पेट में बहुत तेज दर्द हो रहा था। दर्द बढ़ता ही जा रहा था।

“राज,बहुत दर्द हो रहा है,” शीतल ने राज को उठाते हुए कहा।

“क्या हुआ शीतल?क्या दर्द हो रहा?”

“पेट में,बहुत तेज दर्द हो रहा,राज कुछ करो मैं बर्दाश्त नही कर सकती हूँ।”

“शीतल कुछ नही होगा,हम हॉस्पिटल चलते हैं।”

“हॉस्पिटल दूर है और मुझे कहीं नही जाना।वहाँ पेनकिलर रखी है मुझे दे दो,” शीतल ने इशारा करते हुए कहा।

राज ने उसे दवा दी। शीतल की आँखों से दर्द के कारण आँसू बहे जा रहे थे वो बच्चों की तरह रो रही थी। राज उसे खुद से लिपटाकर चुप कराने की कोशिश कर रहा था,उसे दर्द बर्दाश्त करने का हिम्मत दे रहा था। उसने उसे कस कर अपनी बाहों में ज़कड़ रखा था। शीतल की सांस बहुत तेज चल रही थी।

“राज अभी भी दर्द हो रहा,मुझ से नही सहा जा रहा है,ठंड भी लग रही है,” शीतल बड़ी मुश्किल से बोल पाई। रोने की वजह से उसकी आवाज़ साफ नही निकल रही थी।

राज ने अपना कोट उसे ओढा दिया,उसके उपर से चादर और फिर उसे खुद से पहले की तरह लिपटाकर उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा जैसे की बच्चों का दर्द कम करने के लिए किया जाता है। राज के लिए शीतल किसी बच्ची से कम नही थी , जितने नखरे उसकी बेटी नही दिखाती थी उससे ज़यादा शीतल दिखाती थी। थोड़ी देर में शीतल को नींद आ गयी। राज ने उसे खुद से अलग किया और उसे लिटा दिया। शीतल को अभी भी हल्की-हल्की ठंड लग रही थी,उसे हल्का बुखार भी था। राज उसके पैर के तलवों को रगड़ने लगा जिससे उसे ठंड कम लगे। कुछ देर ऐसा करने के बाद वो शीतल की ओर मुँह करके बगल में लेट गया।

सुबह दोनों देर से उठे,पहले शीतल की आँख खुली,वो उठने लगी तो राज भी जाग गया।

“अब ठीक हो?” राज ने अपनी आँख मलते हुए पूछा।

“हाँ,” शीतल ने अंगड़ाई लेते हुए कहा।

“दर्द क्यों हो रहा था?”

“अभी सो कर उठे हैं……। थोड़ी देर बाद बात करते हैं।”

राज शांत हो गया।

2 घंटे बाद शीतल राज को चाय पकड़ाते हुए बोली-“कुछ कह रहे थे। ”

“दर्द पहली बार हो रहा था या पहले भी हो चुका है।”

“पहले भी हो चुका है,………। दवा ली है , कल रात को खाना भूल गयी इसीलिए होने लगा।”

“हो क्यों रहा था?”

“बच्चा गिर गया था ,तब से कभी भी दर्द होने लगता है।”

“तुमने किसी अच्छे डॉक्टर को नही दिखाया।”

“सरकारी अस्तपाल में दिखाया है,बोल रहे थे की ऑपरेशन करना पड़ेगा।”

“तो तुमने ऑपरेशन क्यों नही कराया?तुम पागल हो गयी हो। क्या कर रही हो ?अपनी जिंदगी के साथ?” राज ने थोड़ा गुस्से से कहा।

“मुझे ऑपरेशन नही कराना है…………। मैं दवा से ठीक हो जाऊंगी।”

“पागल मत बनो,……चलो मेरे साथ किसी अच्छे डॉक्टर के पास।”

“रहने दो,मुझे कहीं नही जाना।”

“मुझे कुछ नही सुनना है,तुम मेरे साथ चल रही हो।”

“क्यों मेरे पीछे पड़े हो?मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।”

“मुझे तुम्हारी कोई भी बात नही सुननी है,तुम अपनी मनमानी कर चुकी अब जैसा मैं कह रहा हूँ वो करो।”
“तुम चले जाओ,मैं जैसी भी हूँ ठीक हूँ।”
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06-08-2020, 12:13 PM,
#54
RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
“मेरे साथ चलो।”

“नही चलना मुझे।”

राज शीतल का हाथ पकड़ के उसे घसीटते हुए बाहर लाया,बोला-“कैसे नही चलोगी?हर समय तुम्हारी मनमानी नही चलेगी।” राज ने बड़े ही गुस्से में कहा। शीतल कुछ नही बोल पाई। चुप-चाप गाड़ी में बैठ गयी।

रास्ते में दोनों ने एक-दूसरे से कोई बात नही की। राज ने एक-दो बार बात करने की कोशिश की लेकिन शीतल नही बोली।

डॉक्टर ने शीतल को कुछ टेस्ट करने को कहा।

रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर बोली-“आपका ऑपरेशन करने की अब कोई ज़रूरत नही है,मैं दवा लिख देती हूँ आपको आराम मिल जाएगा। ”

शीतल ने राज की ओर देखा जैसे कहने जा रही हो की अब कराओ ऑपरेशन,राज ने शीतल से अपनी नज़रें हटा ली। उसका शीतल पर गुस्सा करना बेकार था।

हॉस्पिटल से लौटते समय शीतल बोली-“क्या हुआ? अब नही कराना ऑपरेशन। ”

राज ने ऐसे जताया जैसे उसने बात सुनी ही नही।

“एक बार ऑपरेशन करा चुकी हूँ।”

“फिर मुझे बताया क्यों नही?”

“बस ऐसे ही।”

राज ने गाड़ी एक शॉपिंग माल के सामने रोकी।

“यहाँ किस लिए?” शीतल ने पूछा।

“तुम अपने लिए कुछ कपड़े ले लो।”

शॉपिंग करने के बाद दोनों किसी होटल में गये,वहाँ खाना खाया फिर ताजमहल देखने गये,उन्होने पूरा आगरा घूमा और करीब रात 9 बजे वो वापस लौटे।

शीतल गाड़ी में ही सो गयी थी,राज ने उसे जगाया नही,वो उसे अपनी गोद में उठा कर घर के अंदर लाया और लिटा दिया। आज शीतल अच्छी लग रही थी। राज कुछ देर तक उसे ही देखता रहा फिर उसने शीतल के माथे को चूमा और खुद वहीं उसके बगल में लेट गया।

सुबह जब राज वहाँ से जाने लगा तो उसकी हिम्मत नही हो रही थी की एक बार शीतल से पूछ ले कि क्या वो उसके साथ चलेगी?जानता था शीतल कभी हाँ नही कहेगी।

“क्या हुआ?तुम बहुत खोए हुए हो,” शीतल ने पूछा।

“कुछ नही…।”

“कुछ तो………मुझे छोड़ कर जाने का दिल नही कर रहा है,” शीतल ने कहा।

“गौरी के दिल में छेद है…………उसे देखभाल की बहुत ज़रूरत है।”

“तुम हो ना उसके लिए।”

“शीतल मुझसे नही होता,…………………। मैं हर पल उसके साथ नही रह सकता हूँ…………………। मेरे साथ चलो उसे उसकी माँ चाहिए।”

“मुझे इतना कमजोर मत करो कि मैं तुम्हारे बिना टूट जाऊँ……………।”

राज ने अपने आँसू को छिपाते हुए कहा-“कमजोर तो मैं हो गया हूँ तुम्हारे बिना,अगर गौरी ना होती तो कब का खुद को ख़त्म कर लिया होता।”

“हमारी किस्मत में मिलन से ज़्यादा जुदाई लिखी है………। तो इसमें हम क्या कर सकते हैं?”

“शीतल,अब तुम यहाँ से कहीं और नही जाओगी और मुझसे वादा करो की तुम्हें कोई भी तकलीफ़ होगी तो तुम मुझे बोल दोगी,” राज ने शीतल से कहा और उसे अपना डेबिट कार्ड दे दिया। “इसे रख लो तुम्हारे काम आएगा। ”

शीतल मना तो करना चाहती थी पर राज को मना नही कर सकी। राज वापस अपने घर लौट आया। कुछ दिन तक तो शीतल के बारे में ही सोचता रहा फिर धीरे-धीरे गौरी की वजह से खुश रहने लगा। वो अब अपने काम पर ध्यान कम और गौरी पर ज़्यादा देता, उसे ज़रा भी तकलीफ़ होती तो वो परेशान हो उठता था। आगरा से वापस लौटे हुए 10 दिन हो गये थे लेकिन राज ने एक भी दिन शीतल को फोन नही किया ना ही कभी शीतल ने।
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Reply
06-08-2020, 12:13 PM,
#55
RE: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
राज और गौरी एक-दूसरे के साथ खेल रहे थे तभी किसी ने डोरबेल बजाई,गौरी जल्दी से भागती हुई गयी और दरवाजा खोला। राज भी उसके पीछे-पीछे दरवाजे तक आ गया। दरवाजे पर शीतल खड़ी थी। गौरी उसे देखती ही चिल्ला पड़ी-“पापा,पागल आई पागल………”

शीतल आश्चर्य से गौरी की ओर देखने लगी उसे हँसी भी आ गयी आख़िर गौरी उसे पागल क्यों कह रही है। राज भी गौरी की बात पर हँस दिया।

शीतल ने झुक कर गौरी को गोद में उठा लिया और पूछा-“मुझे पागल क्यों कहा?”

“मैंने आपकी फोटो देखी है,पापा,हर रोज मुझे आपकी फोटो दिखाते हैं और कहते है कि ये पागल की फोटो है,” गौरी ने कहा।

शीतल राज की ओर देखने लगी,बोली-“राज,इसे क्या सिखाया है?”दोनों एक साथ हँस दिए।

“हमेशा के लिए आई हो,”राज ने पूछा।

“हाँ,” शीतल ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया और अंदर आ गयी।

दिन भर घर में चहल-पहल बनी रही। गौरी की वजह से शीतल और राज आपस में बैठ कर बात नही कर सके। रात को गौरी के सोने के बाद दोनों छत पर बैठ कर बात करने लगे। शीतल राज की बाहों बाहें डालकर बैठी थी,उसके कंधे पर सिर रख कर।

“तुम आज इतनी सुंदर क्यों लग रही हो,” राज ने बोला।

“यहाँ आने से पहले पार्लर गयी थी,” शीतल ने कहा और खिलखिलाकर हँस दी।

“वापस आना था तो उसे दिन मेरे साथ क्यों नही आई?”

“खुद को पहले जैसा निखारना भी तो था,” शीतल ने कहा।

आज सच में दोनो खुश थे,उनको आज कोई भी गम नही था।

“तुम अभी आगे पढ़ाई करोगी?”

“हाँ,पढ़ाई पूरी करूँगी और साथ ही आई.ए.एस. की तैयारी भी।”

“अच्छा है,……………………। पर अगर फिर चली गयी तो।”

“नही जाऊँगी…………।”

“झूठी हो।”

“सच्ची-मुच्ची नही जाऊँगी,” शीतल ने बच्चों की तरह बोला।

“पक्का……………………वादा।”

“वादा……वादा………। वादा…………,” कहते हुए शीतल ने राज के गाल को हल्का-सा चूम लिया।

“बहुत बड़ी पागल हो,” राज ने कहा और खुद हट गया जिससे शीतल गिर गयी,शीतल राज के सहारे बैठी थी।

“आह,क्या हुआ?मुझे गिराया क्यों?”

“बस यूँ ही दिल कर रहा था।”

शीतल रोने का नाटक करने लगी,राज ने उसे उठा कर खुद से लिपटा लिया,शीतल उसकी इस हरकत पर बहुत ज़ोर से हँसी।

“तुमने मुझसे कहा था कि तुम किसी और से प्यार करती हो,कौन है वो?”राज ने पूछा।

“तुम्हारे लिए कहा था,जब से हमने शादी की है तभी से तुम्हे प्यार करती हूँ पर तुम कभी समझ ही नही पाए।”

“तुम इतना लड़ती ही थी और कुछ जय की वजह से नही लगा।”

“मैं मान भी तो जाती थी।”

“बस यही अच्छा लगता था,तुम कितना भी गुस्सा हो शांत होने पर सब भूल जाती थी।”

“और तुम हमेशा मुझे माफ़ कर देते।”

“तुम हो ही ऐसी कि......... ।”

“कैसी?”

“पागल।”

शीतल हल्‍का-सा मुस्कुरा दी।

“मैंने कुछ लिखा है हम दोनों के लिए,” शीतल ने कहा।

“क्या?”

“कभी तुम थे खफा,
तो कभी हम थे जुदा।
कभी तुम रूठे,
तो कभी हम रूठे।
लाख लिखीं मुक़द्दर ने जुदाई,
मगर हम फिर भी मिले।
क्योंकि,हम दोनों के दरमियाँ,
बस इतनी थी दूरियाँ । ”


***********The End**************
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06-08-2020, 11:06 PM,
#56
RE: Hindi Sex Kahani ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )
Sir apse ek help chahiye
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