Kamukta Story कांटों का उपहार
06-09-2020, 01:28 PM,
#11
RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
दिन पर दिन बीते और साप्ताह पर साप्ताह. लगभग 2 वर्ष बीतने को आए. राधा का बेटा कमाल अब अपने नन्हे पंजो पर चलना भी सीख गया. चौं, मौ करते करते 'मा-मा' करने लगा. वह जब मुस्कुराता तो उसका चेहरा कमल की ही तरह खिल जाता. उसे कोई भी देखता तो मन करता उसे गोद में उठा ले. उसके रूप में शाही बड़प्पन की झलक थी. राधा उसे देखती तो देखती ही रह जाती.

इन 2 वर्षो के अंदर राधा की आर्थिक स्थिति भी सम्भल गयी. उसकी तबीयत में भी निखार आया. बाबा की सेहत पर भी काफ़ी प्रभाव पड़ा. यही नही उसके मोहल्ले की हालत भी सुधर गयी. सूरजभान ने महानगर पालिका से भेंट करके कच्ची सड़कों को बनवा दिया. पानी की व्यवस्था करवा दी. नयी नयी दुकाने बनवा दी ताकि राधा को खरीदारी के लिए अधिक दूर ना जाना पड़े. उसका बच्चा स्कूल जाना शुरू करे तो उसे कीचड़ से ना गुज़रना पड़े.

इन दो वर्षो के अंदर राजेश (सूरजभान) राधा के घर हर पंद्रह दिन मे तो ज़रूर ही आता रहा. आते ही वह बच्चे को गोद में उठा लेता. उसे प्यार करता. उसके लिए हमेशा कुच्छ ना कुच्छ ज़रूर लाता. शुरू में राधा को यह बात उचित नही लगी थी परंतु बाद में वह इन्हे लेने पर मजबूर हो गयी. सूरजभान ने बच्चे को खिलोने और सुंदर वस्त्रों से भर दिया. बच्चा राजेश को देखते ही उसकी गोद में जाने को नन्हे - नन्हे हाथ फैला देता था.

इन दो वर्षो में बाबा ने लगभग पचास - मूर्तियाँ बनाई. राजेश ने उसकी मूर्तियों के दाम 500 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक दिए. बाबा हरीदयाल को विश्वाश था कि उसकी बनाई मूर्तियाँ विदेश में खूब नाम कमा रही है. वह अपने गून से बहुत सन्तुस्त था, खुश था. अब उसका विचार था कि वह अपनी एक दुकान खोल लेगा.

एक शाम सूरजभान ने अपनी टॅक्सी राधा के घर के बाहर सड़क पर रुकवाई. अपनी गाड़ी का उपयोग उन्होने शुरू से ही नही किया था. ऐसा ना हो कि उनकी गाड़ी पर लगा 'रामगढ़ स्टेट' पढ़ कर लोगों को और राधा को उनकी वास्तविकता मालूम हो जाए. उन्होने टॅक्सी वाले को पैसे दिए और कमल के लिए लाए गिफ्ट को उठा कर दरवाज़े की तरफ बढ़े. फिर उन्होने दरवाज़ा खट्ट-खाटाया. दरवाज़ा खुला तो उन्होने अंदर परवेश किया. राधा पिछे हट गयी. उन्होने राधा को देखा, आज वह कुच्छ अधिक ही उदास और परेशान थी. और दिनो की तरह उन्हे देख कर मुस्कुराइ भी नही.

"क्या बात है राधा देवी?" उन्होने पुछा.

"एक साप्ताह पहले बाबा का निधन हो गया." राधा का गला भर आया.

सूरजभान चीखते चीखते रह गये. गिफ्ट का पॅककिट हाथ से छूट-ते - छूट-ते बचा. - "कैसे...?" उन्होने बड़ी मुश्किल से अपनी भावनाओ पर काबू पाकर पुछा.

"सामने बानिए की दुकान पर वह कुच्छ सामान लेने गये थे कि किसी ने कुच्छ कह दिया."

"क्या?"

"यही कि...कि..." राधा की आँखें छलक आई. कहने में उसे शर्म आ रही थी. उसने बड़ी कठिनाई से कहा, -"यही कि तुम्हारी मूर्तियाँ कोई पचास रुपये में भी नही खरीदेगा. पाँच सौ, हज़ार देकर खरीदने वाला केवल तुम्हारी बेटी के कारण ही..." राधा फुट - फुट कर रो पड़ी.

सूरजभान की मुठियाँ भिच गयीं. होठों को चबा कर उन्होने बाहर देखा. दरवाज़े के उस पार, बनिया उन्हे देखते हुए अपनी मुच्छों को ताव दे रहा था. सूरजभान बल खाकर रह गये.

"इसी बात पर बाबा को गुस्सा आ गया." राधा ने खुद को संभाल कर कहा - "बात इतनी बढ़ी कि सारा मोहल्ला ही जमा हो गया. सभी ने उस बानिए का साथ दिया. कुच्छ ने तो यहाँ तक कह दिया कि आप बाबा की गैर-मौजूदगी में आते हैं और घंटे भर तक घर में घुसे रहते हैं. बाबा यह अपमान सहन नही कर सके. घर आकर मुझ पर ही बरस पड़े. मैं निर्दोष थी पर अपने बचाव में कुच्छ भी ना कह पाई. गुस्से में बोलते - बोलते अचानक ही बाबा की छाती में बहुत सख़्त दर्द उठा. होंठ भिच गये. आँखें पलटने लगी और तभी ज़मीन पर गिर कर हमेशा के लिए खामोश हो गये. मैने फादर को कुच्छ भी नही बताया परंतु एक ना एक दिन उन्हे बाबा की मृत्यु का कारण तो पता चल ही जाएगा. वह उन्ही की कृपा थी कि बाबा का अंतिम संस्कार हो गया वरना इस मोहल्ले के लोग तो अब हमे देखना भी पसंद नही करते हैं."

सूरजभान कुच्छ नही बोले. मन ही मन यहाँ के मोहल्ले पर झल्लाने लगे. यह उन्ही की कृपा थी के यहाँ का नक़्शा बदला हुआ था.

"राजेश बाबू..." अचानक ही राधा ने भीगे स्वर में कहा, - "एक निवेदन करूँ, बुरा मत मानीएगा."

"नही राधा देवी, कभी नही." उन्होनी बिना सोचे - समझे कहा. - "आप बे-झिझक कहिए. आपकी इच्छा पूरी करना मैं अपना भाग्य समझता हूँ."

"आपको मेरे कमल की सौगंध, कृपया आप अब यहाँ आना हमेशा के लिए बंद कर दीजिए." राधा ने अपना मूह दूसरी ओर फेर कर कहा.

"राधा देवी !" सूरजभान तड़प उठे. मानो मोहल्ले के लोगों ने उनकी छाती पर छुरा मार दिया हो.

परंतु राधा उसी प्रकार बिना उनकी ओर देखे बोली, - "जब तक बाबा जीवित थे, आपके आने पर हम ने कभी ऐतराज़ नही किया. मोहल्ले वालों ने पहले भी कयि बार मुझ पर कीचड़ उच्छालना चाहा परंतु मैं आपके दिल को ठेस नही पहुचाना चाहती थी. अब बाबा नही रहे इसलिए मूर्तियाँ भी नही रहेंगी. इस वजह से अब आपका यहाँ आना भी अकारण होगा. आपने हमारे लिए बहुत कुच्छ किया. मेरे बच्चे को सुंदर खिलोने दिए, इसलिए हम आपके अभारी हैं. अब आप हमे क्षमा कीजिए. मैं नही चाहती मेरा लड़का बड़ा होकर मेरे प्रति ग़लत बातों का शिकार हो."

सूरजभान की आँखें भर आई. उन्होने कुच्छ कहना चाहा परंतु फिर खामोश हो गये. उन्होने सोचा - राधा ठीक ही कहती है. जब मूर्तियाँ ही नही रहीं तो उनके यहाँ आने का कारण ही क्या? वे तो केवल मूर्तियाँ ही खरीदने आते थे. उनकी इच्छा हुई कि वे राधा को सब कुच्छ बता दें. पर साहस नही कर सके. बात और भी हास्यपद हो सकती थी. राधा का दिल अभी इतना प्रभावित नही हुआ है वह सूरजभन को क्षमा कर दे, वह उनसे अब भी घृणा करती है. नफ़रत से कोस्ती है. थोड़ी सी भली, चन्द सुविधाएँ तथा रुपया देकर कोई अपने पापों की क्षमा थोड़े ही पा सकता है. राधा उसे इतनी आसानी से क्षमा नही करेगी. सूरजभान सिंग ने तो इसकी आत्मा तक कुचल कर रख दी है.

सहसा अंदर कमल के रोने का स्वर उठा. शायद वह सोते से जाग गया था. उनका मन हुआ अंदर जाकर उसे गोद में उठा ले. उसे चूमें, उसे प्यार करें. पर साहस नही हुआ. राधा अंदर चली गयी. सूरजभान हाथों में गिफ्ट पॅकेट को थामे राधा के बाहर आने की प्रतीक्षा करते रहे. जब काफ़ी देर तक राधा बाहर नही आई तो उन्होने निराश होकर गिफ्ट को बरामदे में रख कर वापस पलट कर बाहर निकल गये.

बाहर निकलने पर उन्होने देखा, बानिए की दुकान पर अनगिनत औरतों और पुरुषो का जमघट लगा था. वह सीधे बानिए की दुकान के पास जाकर खड़े हो गये. उन्हे देख कर बानिए की सिट्टी - पिटी गुम हो गयी. उन्होने बानिए को घूर कर देखा. उनका जी चाहा बानिए का गला दबा दें. परंतु कुच्छ सोच कर अपने रास्ते बढ़ गये. उन्हे इस बात का बेहद दुख था कि अब वे राधा से नही मिल सकेंगे. परंतु उन्होने तय कर लिया कि राधा के प्यार की खातिर वह अपना सब कुच्छ पहले से अधिक लुटाते रहेंगे.

सूरजभान ने कमल की आयु की माँग के अनुसार उन स्कूल में फंड खोल दिए जहाँ कहीं भी उसने परवेश लिया. ऐसी प्रतियोगिताएँ उन्होने आरंभ की जिसमे उनके लड़के को रूचि थी. और कमल ने अनगिनत इनाम बचपन से ही जीतने आरंभ कर दिए. खूब नाम कमाया. स्कूल से पढ़ कर कॉलेज में आ गया. परंतु वह ये ना जान सका कि उसकी सफलता के पिछे किसी और का हाथ है. राधा अपने बेटे पर गर्व करती कि बहुत होनहार है. कॉलेज उस पर मेहरबान है. प्रिन्सिपल उसके बच्चे को बहुत मानते हैं.

कमल बढ़ता गया. सफलता पर सफलता पाता गया. उसने लंडन से आर्किटेक्ट की पढ़ाई पूरी की. लंडन में ही उसकी मुलाक़ात सरोज नाम की लड़की से हुई. वह भी भारत से थी. दोनो में नज़दीकियाँ बढ़ी और एक दूसरे से प्यार कर बैठे. भारत लौटने पर कमल ने मा को सरोज के बारे में बताया. राधा ने सरोज के माता - पिता से मिल कर दोनो के रिश्ते की बात की. उसके माता - पिता ने कोई आपत्ति नही जताई. वे खुले दिल के लोग थे. उन्होने राधा से कमल के पिता के बारे में अधिक प्रश्न नही पुछा. राधा ने उन्हे सिर्फ़ इतना बताया कि कमल के पिता की मृत्यु कमल के पैदा होने के कुच्छ ही दिन बाद हो गयी थी. यही बात उसने कमल को भी बताई थी.

कमल और सरोज की शादी हो गयी. सरोज के आने के बाद राधा अत्यंत खुश रहने लगी थी. कमल के प्रति उसकी सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी हो चुकी थी. अब उसकी एक तमन्ना शेष रह गयी थी. अपने जीते जी कमल के संतान को देख ले. उसे गोद में खिला ले.
क्रमशः..........................................................................................
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06-09-2020, 01:28 PM,
#12
RE: Kamukta Story कांटों का उपहार

सुबह के 10 बजे थे. राधा और कमल आँगन में बैठे बातें कर रहे थे. सरोज रसोई की कामो में उलझी थी. तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई. कमल ने उठकर दरवाज़ा खोला. सामने पोस्टमॅन खड़ा था, उसके नाम एक रेजिस्ट्री लिए. कमाल ने रेजिस्ट्री लेकर उलट पुलट कर देखा. रेजिस्ट्री ठेकेदार बर्मन & कंपनी से आई थी. बर्मन & कंपनी सरकारी ठेकेदार थे जिन्होने देश की अच्छी-अच्छी कॉलोनी तथा बड़े - बड़े कारखानों का निर्माण किया था. कमल का दिल ज़ोर - ज़ोर से धड़कने लगा. उसने झट हस्ताक्षर किए और रेजिस्ट्री खोलते हुए मा की तरफ बढ़ा. पत्र पढ़ा तो खुशी से चीख उठा, - "मा मुझे कांट्रॅक्ट मिल गया."

"कैसा कांट्रॅक्ट? राधा ने पुछा, - "वोही जिसके लिए तूने लिखा पढ़ी की थी?"

"हां मा वोही." कमल उसके समीप ही बैठता हुआ बोला और काग़ज़ों को खोल कर घुटनो पर फैला लिया. काफ़ी देर तक बड़ी गंभीरता के साथ काग़ज़ों को देखता रहा. काग़ज़ों का निरीक्षण करते हुए उसके माथे पर बाल पड़ गये थे. चिंता की लकीरे माथे पर खींच गयी थी.

"क्या बात है बेटा?" राधा ने उसे परेशान देखा तो पुच्छे बिना ना रह सकी.

"कुच्छ नही मा बस एक शहर बसाने का काम मिला है. पर कम्बख़्त कांट्रॅक्ट भी मिला तो ऐसा कठिन कि कुच्छ समझ में नही आ रहा है."

"क्यों? क्या हो गया?" राधा चींतीत हुई.

"रामगढ़ इलाक़े के बीच यह हवेली जाने कहाँ से टपक आई." कमाल ने लापरवाही से खिसियाकर कहा.

"रामगढ़...?" राधा का दिल बहुत ज़ोर से धड़का.

"हां मा..." कमल उसी प्रकार काग़ज़ों को देखता हुआ बोला, - "लखनऊ शहर से लगभग 25 मील दूर रामगढ़ नामक एक बहुत बड़ा इलाक़ा था जो कभी किसी राजा की जागीर थी. यह इलाक़ा पिच्छले 10 वर्षो से उजड़ा पड़ा है . सर्वेयर की रेप्पोर्ट के अनुसार लगभग दस वर्ष पहले तीन साल तक लगातार बाढ़ आने की वजह से यह इलाक़ा तबाह हो गया था. यहाँ के निवासी गाओं छोड़ कर सदा के लिए चले गये थे. केवल एक हवेली ही बची थी. जिसका अंतिम वारिस राजा सूरजभान का कहीं कोई पता नही. फिर भी सरकार एक माह का नोटीस देकर इस हवेली के वारिस का पता चलाने का प्रयत्न करेगी. अन्यथा इसे नीलाम करने, तोड़ने या किसी दूसरे काम में लाने का अधिकार सरकार के पास सुरक्षित होगा. कंपनी चाहती है कि नयी कोल्लोनी के नक़्शे में इस हवेली का प्रभाव ज़रा भी नही पड़ना चाहिए. क्योंकि नक़्शा पास होने के बाद यदि इस हवेली का कोई वारिस निकल आया तो कॉलनी के निर्माण के समय बाधा पड़ सकती है."

राधा ने उसे आश्चर्य से देखा. आवाज़ हलक से निकलते निकलते रह गयी. रामगढ़ की वर्तमान स्थिति के बारे में जान कर उसके दिल को एक अज़ीब से धक्के का एहसास हुआ जिसे वह खुद नही समझ सकी. उसके अंदर की एक नारी जाग उठी. वह नारी जिसका उसने पहले कभी अनुभव नही किया था. नारी क्या चाहती है वह खुद नही जानती. नारी कभी - कभी उसके लिए भी तड़प उठती है जिससे वह सख़्त घृणा करती है. इस समय राधा के जीवन में भी यह मोड़ अचानक ही आ गया था. सूरजभान की वास्तविकता जान कर उसके मंन में सख़्त पीड़ा उठी. सहानुभूति से उसका दिल भर गया. उदासी की चादर उसके मुखड़े पर फैल गयी. उसने मन ही मन खुद को धिक्कारा. ज़रूर यह उसकी 'आह' का ही फल है जिस-से सूरजभान का सब कुच्छ लूट गया. कुच्छ भी तो नही बचा...ना यश, ना धन, ना मान-मर्यादा और ना जीवन.
"क्या बात है मा?" कमाल ने अपनी मा को उदास देखा तो घबराकर पुछा.

"कोई खाश बात नही बेटा. बस कुच्छ याद आ गया था." राधा ने अपनी स्थिति संभाली.

"मुझे जानने का अधिकार है?"

"बेटा, रामगढ़ तुम्हारा ननिहाल था. मेरा बचपन उसी गाओं में गुज़रा है. तुम्हारे पिता की कयि यादें जुड़ी है उस जगह से. आज तुम्हारे मूह से उस इलाक़े की सचाई जान कर दिल भर आया था." राधा ने वास्तविकता छिपा ली.

कमल को मा की बातों पर आश्चर्य हुआ. साथ ही दुख भी. उसने मा के हाथों को अपने हाथ में लेकर उसे दिलाषा दिया.

"क्या मैं तुम्हारे साथ चल सकती हूँ?" राधा ने विनती भरे लहजे में पुछा.

कमल ने मा की दशा का अनुमान कर हामी भर दिया.

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06-09-2020, 01:28 PM,
#13
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सूर्यास्त होने में अभी देरी थी. रामगढ़ में आकर एक एक बस, दो ट्रक और दो जीप रुकी. ट्रक के ट्रेलर पर काफ़ी सामान लदा हुआ था. मजदूर गाड़ियों से उतरे. कमल और सरोज अंतिम जीप से उतरे तो राधा भी दूसरी तरफ से बाहर चली आई. उसके मुखड़े पर दुख की छाया विराजमान थी. उसने अपनी दृष्टि सबसे पहले हवेली पर दौड़ाई. पूरे इलाक़े में बस यही एक हवेली बची थी जो अंतिम साँसे ले रही थी. हवेली के उस पार दूर ताड़ के पेड़ दिखाई पड़ रहे थे जहाँ कुच्छ गिद्ध चुप-चाप बैठे अपने आहार की आस लगाए प्रतीक्षा कर रहे थे. इस इलाक़े में किसी जानवर का भटक कर आ जाना और भूख - प्यास से दम तोड़ देना एक साधारण सी बात थी. हवेली की दीवारें काली हो रही थी. राधा के होठों से एक आह निकल गयी. उसने देखा हवेली के सामने वाला वह पेड़ अब भी खड़ा है परंतु पूरी तरह से सुख चला है. चबूतरा उबड़ - खाबड़ लग रहा था. वहाँ भी उसकी बेहन तथा पिता की यादें जीवित थी. वह कैसे इन बातों को भूल सकती थी. सहसा हवा का एक झौंका पिछे से आया और उसके बदन से लिपटे शॉवल को हिला कर चला गया. वह पिछे पलटी. उसने दूर दूर तक दृष्टि दौड़ाई. उसे बबूल का वह पेड़ दिखाई दिया जिसके नीचे उसका अपना घर था. छोटा सा साधारण सा. और उसके पास अपने खेत थे. उसी खेत के समीप वाले खलिहान पर भोला ने जीवन भर उसका साथ देने का वादा किया था लेकिन कम्बख़्त चाँदी के चन्द सिक्को की खातिर कितनी जल्दी उसे भूल गया था. पता नही इस वक़्त कहाँ कुदाल चला रहा होगा? और वह जो टूटी फूटी दीवार दिखाई पड़ रही है वहाँ उसकी सहेली चंपा रहती थी. उस बेल के पेड़ की नीचे रामदीन काका रहते थे. और यह नीम का पेड़ पहले बहुत छोटा था, अब कितना बड़ा हो गया है. राधा देख रही थी...देखती रही, एक एक वस्तु को बहुत ध्यान से. उसका मन करता था गाओं के पिच्छले दिन फिर लौट आए, वे लोग, वह वक़्त फिर वापस आ जाए तो वह अपनी सहेलियों के साथ इस नीम के पेड़ पर झूला डाल लेगी. लंबी - लंबी पींगे मार कर वह आकाश को छुने लगेगी और फिर इधर से गाओं के छैल - छबिले नवयुवक गुज़रेंगे और पहले की भाँति उसे च्छेड़ेंगे. और तभी उसने देखा गाओं का वह भुला बिसरा समय फिर से लौट आया है. हरे - भरे खेत, खलिहान, बड़े बड़े पेड़ जाग उठे हैं. उन्ही में से एक पेड़ पर उसका झूला टंगा है. और वह अपनी सहेलियों के साथ पींगे मार रही है. उसका आँचल हवा से लहराकार बादलों की तरह आकाश को छु लेना चाहता है. और तभी उस ओर से कुच्छ छैल - छबिले युवक गुज़रे. उनमे भोला भी था. भोला उसे देखते ही रुक गया था.

"अरे इतनी लंबी - लंबी पींगे मत मारा कर वरना भगवान कृष्ण अपना हाथ बढ़ा कर तुम्हे अपने पास खींच लेंगे." भोला ने ज़ोर से कहा था.

भोला की बात सुनकर उसकी सहेलियाँ खिलखिला कर हंस पड़ी. परंतु राधा झेंप गयी है. उसकी पलकें लाज से झुक गयी है. राधा भोला की उपस्थिति के कारण सहेलियों से कुच्छ नही कह पा रही है, वरना एक एक की चोटी खींच कर बताती. उसने देखा अब उसका झूला रुक गया है. भोला मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया है. तभी राधा को उसकी एक सहेली ये विश्वाश दिला रही है कि भोला उससे प्यार नही करता. वह तो केवल उसकी सुंदरता से प्यार करता है. उसके उस धन और जेवर से प्यार करता है. जो तुम्हारी शादी के बाद सब कुच्छ उसका हो जाने वाला है. परंतु राधा को अपनी सहेली की इस बात पर ज़रा भी यकीन नही है. उसे विश्वाश है कि भोला उसे दिल की गहराई से प्यार करता है और उसके लिए अकेले सारी दुनिया से लड़ सकता है.

"मा..." सहसा कमल ने कहा. मा को इतनी देर तक विचारों में डूबा देख कर वह घबरा गया था.

राधा चौंक कर सपने से जागी. और तब उसे एहसास हुआ एक युग बीत चुका है. वह इस इलाक़े से लगभग 22 वर्ष दूर आ चुकी है, जहाँ अब कभी फिर से नही पहुँचा जा सकता. उसने पलट कर देखा शाम की लालिमा में हवेली खून की तरह झलक रही थी. जाने क्यों...उसकी आँखे छलक आई.

"क्या हुआ मा?" कमल उसके पास आकर पुछा. सरोज भी साथ थी.

"कुच्छ नही बेटा. कुच्छ भी नही." राधा अपनी आँखों के आँसू पोछती हुई बोली - "यहाँ आकर बीते हुए जीवन-काल की तस्वीर में डूब गयी थी."

कमाल खामोश हो गया. मा की पीड़ा का वह अनुमान लगा सकता था.

"कमल मेरी इच्छा हवेली देखने की है. क्या तुम चलोगे मेरे साथ?" राधा ने बहुत आशा से कहा.

कमाल ने एक बार अपने साथियों की तरफ देखा. नौकर चाकर फोल्डिंग पलंग लगाने में व्यस्त थे. इंजिनियर आदि कपड़े बदल कर अब खड़े खड़े दूर से ही हवेली का जायज़ा ले रहे थे. कमल ने टॉर्च उठाई और राधा तथा सरोज को साथ लेकर हवेली की ओर बढ़ गया. हवेली के समीप पहुँच कर उन तीनो ने देखा कि बाहरी दीवार का प्लास्टर उखड़ा हुआ है और अंदर से झाँकती हुई एक किसी ग़रीब के शरीर की हड्डियों की तरह झलक रही है.

कमल ने गेट खोलकर ज्यों ही लॉन में पावं रखा, दुब्के हुए सियार और गीदड़ अपने स्थानो से निकल कर दूसरी ओर भाग खड़े हुए. कमाल और सरोज के दिल की धड़कने तेज़ हो गयीं. परंतु दिल की जली राधा एक उड़ान में हवेली पहुँच जाना चाहती थी. उबड़ - खाबड़ रास्ता था, परंतु वे इस पर चलकर तुरंत ही बरामदे तक पहुँच गये. बरामदे में ही कमरे के दोनो किनारों से उपर की और सीढ़ियाँ जाती थी. राधा ने झट एक ओर से सीढ़ियाँ चढ़ती चली गयी. कमल उसके साहस पर आश्चर्य-चकित था.

हर मंज़िल पर चौड़ी बालकनी थी जहाँ बीच के कमरे के किनारों से अगली मंज़िल की सीढ़ियाँ चढ़ती थी. राधा आगे बढ़ती गयी. उनकी आहट पाकर सीढ़ियों के कोनो पर छीपे चमगादड़ और उल्लू फड़फड़ाकर उनके सिर के उपर सेनिकल जाते थे. परंतु राधा पर इसका प्रभाव ज़रा भी नही पड़ा. वह सबसे उँची मंज़िल पर पहुँची जहाँ खुला आकाश था. ठंडी - ठंडी हवाएँ उसके मुखड़े को छु गयी. राधा ने दूर दूर तक निगाह की उसी जगह खड़े होकर जहाँ कभी जीवन में पहली बार उसने रामगढ़ का पूरा नक़्शा अपनी आँखों से देखा था. किंतु आज का दृश्य बदल चुका था. वह देखती रही दूर दूर तक. जहाँ कभी खेत खलिहान हुआ करते थे अब वहाँ कंटीली झाड़ियाँ और जंगली घास के अतिरिक्त कुच्छ भी ना था.

"मा अब वापस चलो. सूर्यास्त हो चला है. फिर कभी दिन के वक़्त इस हवेली को देखेंगे." कमाल ने मा को कमर से थाम कर कहा.

राधा स्वीकृति में सिर हिलाकर सीढ़ियों की तरफ मूड गयी.
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06-09-2020, 01:28 PM,
#14
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रात के दो बजे थे. कॅंप में पलंग पर लेटे - लेटे राधा ने अपनी आँखों को कयि बार बंद करना चाहा था, परंतु नींद कोसो दूर थी. एक पल के लिए भी उसे चैन नही मिला. बार - बार वह सोचती रही, यह सब क्या हो गया? कैसे हो गया? क्यों हो गया? क्या वास्तव में एक अबला की आहों में इतनी शक्ति होती है? इतने बड़े राजा की बर्बादी यूँ एकदम से तो नही हो सकती.

कमल बगल के पलंग पर सो रहा था. उसी के समीप ही सरोज अलग पलंग पर लेटी हुई थी. वे दोनो बिल्कुल बेख़बर...निश्चिंत होकर सो रहे थे. राधा के दिल में उठते तूफान से बहुत दूर होकर. राधा ने अपने पलंग से उठकर कयि बार कमल को सोते हुए देखा था. बहुत गौर से. बहुत प्यार से. उसके बालों पर हाथ फेर-कर उसका मस्तक भी चूम लिया था. हू ब हू राजा सूरजभान सिंग अपने पिता का प्रतिबिंब था वह.

सहसा उसके कानों में कॅंप के बाहर किसी के कदमो की छाप सुनाई पड़ी. उसने करवट बदली. इधर - उधर देखा. कमल और सरोज उसी प्रकार निश्चिंत सो रहे थे. कदमों की छाप कॅंप की ओर बढ़ रही थी. एक अग्यात भय के कारण वह उठकर बैठ गयी. छाप और समीप आई तो राधा कॅंप की खिड़की के पास दबे पावं चली आई. बहुत धीमे से झुक-कर उसने खिड़की का परदा उपर उठाया और बाहर झाँका. बाहर घना अंधेरा था. परंतु तभी वह चौंक गयी. अंधेरे में भी उसने अपनी ओर बढ़ते एक छाया देख ली. उसका दिल बुरी तरह धड़कने लगा. छाया लंबी चौड़ी थी, परंतु झुकी - झुकी सी थी. उसे यह अनुमान लगाना कठिन हो गया कि वह जो कुच्छ देख रही है यह सच है या कोई सपना. एक ही नज़र में वह इस छाया को पहचान गयी थी. उसे अपने होठों पर काबू पाना असंभव हो गया. उसकी चीख निकल गयी. - "नही...!"

और उसका स्वर सुनकर कमल और सरोज जाग गये. अगाल - बगल लगे कॅंप में शोर मच गया.

कमल लपक कर राधा के समीप पहुँचा. सरोज भी आँखें मलते हुए उनके समीप पहुँच गयी. राधा खिड़की के सामने उसी अवस्था में खड़ी बुरी तरह काँप रही थी.

"मा." कमल ने झुक-कर राधा की बाहें थमी. आश्चर्य से बाहर झाँका. फिर उसके परेशान मुखड़े को देखा, - "क्या बात है मा?"

"बेटा, वह...वह...!" राधा काँपते स्वर में बोली, - वह आए थे."

"कौन मा...वह कौन?"

"राजा सूरजभान सिंग." राधा के मूह से अचानक ही निकल गया. सरोज भी चौंके बिना ना रह सकी.

"राजा सूरजभान सिंग." कमल को विश्वाश ही नही हुआ.

"हां बेटा, यह उन्ही की आत्मा थी."

"मा." कमल को मा की स्थिति पर तरस आया, उसे तसल्ली देता हुआ बोला, - "यह तुम कैसी बातें कर रही हो? ज़रूर तुमने कोई सपना देखा है."

"नही बेटा." राधा बोली - "यह सपना नही हक़ीक़त है. मैने अपनी आँखों से उन्हे इधर आते देखा है."

"ओह्ह मा, आजकल तुम्हे क्या हो जा रहा है." कमल ने उसे पलंग पर बिठाया और प्यार से बोला, - "भला राजा सूरजभान सिंग की आत्मा तुम्हारे पास क्यों आने लगी?"

राधा इस सवाल पर चौंक पड़ी. वह नि-उत्तर हो गयी. वह कमाल को किसी भी परिस्थिति में अपनी सच्चाई नही बताना चाहती थी.

तभी बाहर कुच्छ एक नौकर - मजदूर एकट्ठा हो गये.

"क्या बात है साहब?" एक मजदूर पुछ रहा था.

"कुच्छ नही, कुच्छ नही." कमल ने कहा, - "मा शायद कोई सपना देख कर डर गयी है."

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06-09-2020, 01:28 PM,
#15
RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
राधा ने उसे बेबस दृष्टि से देखा. मानो उसकी बात पर विश्वाश ना कर के कमल ने उसका दिल तोड़ दिया हो. कमल मन ही मन लज्जित हो उठा. फिर वही से उँची आवाज़ में पुछा, - "किसी आदमी को तो बाहर नही देखा. मेरा मतलब किसी बाहरी आदमी को?"

"इधर तो कोई नही है." बाहर के नौकर ने हैरानी से उत्तर दिया.

कमल ने कोई उत्तर नही दिया. उसने राधा को देखा. अब वह संभाल चुकी थी. राजा सूरजभान के प्रति उठता प्यार घृणा में बदल चुका था.

"मा अब सो जाओ." कमल अपना पलंग मा के पलंग के और समीप खींच लिया. लालटेन थोड़ी तेज़ कर दी ताकि मा का मन नही घबराए. फिर बोला, - "कल सुबह ही मैं तुम्हे और सरोज को घर पहुँचा दूँगा. वरना यहाँ रहते हुए अपनी बीती याद करके तुम्हारी तबीयत और बिगड़ सकती है."

राधा कुच्छ नही बोली. पलंग पर लेटकर सोचने लगी. यहाँ से जाने के बाद वह कमाल को फिर यहाँ नही आने देगी. हो ना हो सूरजभान सिंग की आत्मा उनसे अपनी तबाही का बदला लेना चाहती है.

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केयी दिन बीत गये. रामगढ़ की सरहद पर एक बोर्ड लगा था...पटेल नगर का निर्माण. सरकार ने इसका नया नाम पटेल नगर रख कर ही इसका कॉंट्रॅक्ट्स बर्मन & कंपनी को शहर बनाने की अनुमति दी थी. कमल का बनाया हुआ नक़्शा सरकार ने सराहते हुए मंजूर कर लिया था.

रामगढ़ में काम जारी था. ट्रकों पर इट और पत्थर, तथा चुना, सेमेंट के बोरे तथा छड़े, लोहे की सीखचियाँ तथा रेती आने लगे थे. जगह - जगह कॅंप लगे थे. मजदूरों की गिनती बढ़ती ही जाती थी. हवेली को यहाँ काम करने वालों ने पहले दूसरे दिन ही देखकर संतोष कर लिया था. सभी की अपनी - अपनी राय थी, परंतु किसी को हवेली के कमरों का ताला तोड़कर आंतरिक भाग देखने की इज़ाज़त नही थी क्योंकि इसकी ज़िम्मेदारी कमल के ही उपर थी. तीन माह का नोटीस पूरा होने के बाद जब इसका कोई वारिस नही होगा तब सरकार खुद इसकी नीलामी अपनी देख -रेख में करेगी.

कमल का कॅंप हवेली से कुच्छ ही दूर स्थित था. राधा और सरोज को उसने देल्ही में ही छोड़ दिया था. राधा ने अपने दिल में बसे भय के कारण उसे रोकना भी चाहा था. परंतु कमल उसे समझा बुझा कर वापस रामगढ़ चला आया था.

एक शाम उसे किसी काम से लखनऊ जाना पड़ा. वापसी के समय उसकी गाड़ी का आक्सिडेंट हो गया. गाड़ी में तीन लोग थे. कमल, एक सहयोगी इंजिनियर और ड्राइवर. ड्राइवर को मामूली चोटें आई थी किंतु सहयोगी इंजिनियर मौक़े पर ही दम तोड़ चुका था और कमल को गंभीर हालत में अस्पताल पहुँचाया गया था.

इसकी सूचना सबसे पहले सरोज के घर वालों को दी गयी. सरोज के पिता ठाकुर धीरेन्द्र सिंग ने राधा को कमल की गंभीर स्थिति के बारे में ना बताकर सिर्फ़ इतना कहा कि कमल का आक्सिडेंट हुआ है और उसे हल्की - फुल्की चोटें आईं हैं. राधा इतने में ही घबराकर तुरंत ही रामगढ़ जाने की ज़िद कर बैठी थी.

जल्द से जल्द लखनऊ पहुचने के लिए ठाकुर धीरेन्द्र सिंग को अपनी गाड़ी पर ही विश्वाश करना पड़ा था, क्योंकि हवाई जहाज़ का तुरंत मिलना असंभव था और रैल्गाड़ी मिल भी जाती तो उसका लेट चलना हमारे देश में साधारण सी बात है. उनका ड्राइवर निपुण तथा अनुभवी था. इसलिए उनके हाथ में स्टियरिंग देकर वह निश्चिंत हो गये थे. वह आगे बैठे हुए थे तथा पिछे राधा और सरोज थी.
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06-09-2020, 01:28 PM,
#16
RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
ठाकुर धीरेन्द्र सिंग की कार ठीक मेडिकल कॉलेज के अस्पताल के सामने रुक गयी. राधा ने आश्चर्य से सरोज को देखा, फिर ठाकुर धीरेन्द्र सिंग को. ठाकुर धीरेन्द्र सिंग ने उसे ये कहकर लाया था कि कमाल को मामूली चोटें आई है और वे लोग उसे देखने रामगढ़ जा रहे हैं.

गाड़ी रुकते ही ठाकुर धीरेन्द्र सिंग गेट खोल कर बाहर निकल आए थे. घड़ी देखी तो तीन बज रहे थे.

"आओ बेहन...!" उन्होने बहुत गंभीर होकर राधा से कहा मानो किसी भेद पर परदा डाल रहा हो.

राधा का दिल बहुत ज़ोरों से धड़का. सरोज अपनी और का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकल चुकी थी इसलिए वह भी उनके पिछे पिछे बाहर आ गयी. उसकी बेचैनी भी बढ़ चली थी.

"क्या बात है सरोज?" अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयास करते हुए राधा ने पुछा, - "यह तुम लोग मुझे कहाँ ले आए?"

सरोज ने लाचारी से अपने पिता को देखा.

"घबराओ नही बेहन, सब ठीक हो जाएगा." ठाकुर धीरेन्द्र सिंग की समझ में नही आ रहा था कि वह कैसे उनके आगे कमल की वास्तविकता ज़ाहिर करे.

"क्या ठीक हो जाएगा?" राधा की आवाज़ काँप गयी. वह बोली, - "ज़रूर आप लोग मुझसे कुच्छ छिपा रहे हैं. कहीं मेरे लाल को तो कुच्छ नही हो गया है? आख़िर रामगढ़ जाते - जाते आप लोग मुझे यहाँ क्यों ले आए? कहाँ है मेरा कमल?"

सरोज सब्र ना कर सकी, तड़प कर रो पड़ी. राधा को ऐसा लगा मानो उसका दिल ही बैठ जाएगा. परंतु तभी एक डॉक्टर बरामदे की सीढ़ियाँ उतर कर उनके पास खड़ा हो गया था. गाड़ी का नंबर प्लेट पढ़ा फिर उनकी तरफ पलटा.

"क्या आप ही लोग इस गाड़ी से आए हैं?" उसने पुछा.

"जी हां." ठाकुर धीरेन्द्र सिंग ने झट उत्तर दिया.

"यह कमल की माताजी हैं?" उसने राधा की ओर इशारा करके पुछा.

"जी हां...जी हां." धीरेन्द्र सिंग बोले - "कमल कैसा है डॉक्टर?"

"वह ख़तरे से बाहर है लेकिन अभी बेहोश है. आप चाहें तो उन्हे दूर से देख सकते हैं. अभी - अभी उन्हे खून दिया गया है इसलिए उसे डिस्टर्ब ना करें. वॉर्ड नंबर 16 सामने ही है."

"खून !" राधा से नही रहा गया तो उसने आश्चर्य से पुछा. - "लेकिन कमल को हुआ क्या है?"

राधा की उँची आवाज़ सुनकर एक बूढ़ा वॉर्ड से बाहर निकल आया था और खंभे की आड़ लेकर छिप गया था. छिप कर वह यह देखना चाहता था कि राधा ने उसे क्षमा कर दिया है या नही. कान लगा कर वह बहुत ध्यान से उनकी बातें सुनने लगा.

डॉक्टर कह रहा था, - "कार आक्सिडेंट में वा बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गया था. अगर राजा सूरजभान सिंग ने अपना खून..."

डॉक्टर की बात पूरी भी ना हो पाई थी कि राधा चीख पड़ी - "उफ्फ ! मेरे भगवान यह क्या हो गया...?" राधा घृणा से दाँत पीसकर अपनी छाती पीटने लगी. पूरी बात जाने बिना ही बोली - "यह क्या गजब हो गया? आख़िर मेरे लाल पर उस पापी की छाया पड़ ही गयी. मुझे मालूम होता कि वह ज़ालिम अब तक ज़िंदा है तो मैं अपने बेटे को रामगढ़ जाने ही नही देती. मैं उसका मूह नोच लूँगी."

खंभे की आड़ में खड़ी छाया के शरीर में कंपन पैदा हुई. आँखों में आँसू छलक आए. उसका गला सुख गया और दिल बैठने लगा. उसके प्यार का इतना बुरा परिणाम ! उसके जीवन भर की तपस्या का ऐसा घृणित फल. अब इसी नफ़रत की सौगात लिए उसका दम निकलेगा. राधा उसे कभी क्षमा नही करेगी. उसने इतना अधिक अत्याचार किया है कि जिसका कोई प्रय्श्चित नही ! उसे अपने ही नही, अपने बाप - दादो के पापों की सज़ा भी भुगतनी होगी. यह तो प्रकृति का नियम है. बोता कोई है, काट-ता कोई. उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसका दम घुट जाएगा. आँसू गालों से धूलक कर दाढ़ी तथा मुच्छों में उलझ गया. दिल का दर्द बढ़ने लगा. जब उसने अनुभव किया कि उसके पैर काँप रहे थे, वह गिर पड़ेगा. तो सख्ती से अपने होंठों को काटा और अपनी जाती हुई साँसों को समेटा, फिर दबे पावं वहाँ से हटकर सीढ़ियों से नीचे उतर गया. राधा की चीखें उसे अब भी सुनाई पड़ रही थी. सीढ़ियाँ उतर कर आगे बढ़ते हुए वह अपनी निराश कामनाओं के संसार में खो गया.

बरामदे में राधा अब तक चीख रही थी - "सारी ज़िंदगी उसने मुझे तडपाया है, मेरा जीवन नार्क़ बना दिया. मेरा और मेरे बच्चे का जीना कठिन कर दिया. इसीलिए भगवान ने उसका सब कुच्छ छीन लिया और इसीलिए उसने मुझसे यह बदला लिया है."

"राधा देवी..." डॉक्टर ने उसे टोका - "मैं नही जानता राजा सूरजभान सिंग ने आपके साथ क्या क्या ज़ुल्म किया है. पर इस वक़्त आप उनके बारे में ग़लत सोच रही हैं. उन्होने आपके बेटे की जान नही लेनी चाही है, बल्कि उन्होने तो अपना खून देकर आपके बेटे को नया जीवन दिया है."

राधा कुच्छ कहते - कहते रुक गयी. ज़ुबान तालू से चिपक गयी. होंठ खुले के खुले रह गये.

"हां राधा देवी." डॉक्टर ने उसकी चुप्पी से अवसर पाकर आगे बोला - "यह तो भगवान का शुक्रा मनाइए कि राजा सूरजभान सिंग का खून आपके बेटे कमल के ब्लड ग्रूप से मिल गया. वरना स्थिति काफ़ी गंभीर हो सकती थी. सूरजभान सिंग शरीर से कमज़ोर और अस्वस्थ थे फिर भी उन्होने अपना खून देने में कोई कमी नही की. हम ने उनकी अवस्था का ध्यान करके उनके शरीर से इतना ही खून लिया जितने से कि आपके बेटे की ज़िंदगी बचाई जा सके."

राधा का दिल धक होकर रह गया. उसे अपनी कानों पर विश्वाश ही नही हो रहा था. फटी - फटी आँखों से डॉक्टर को देखने लगी.

सहसा एक नर्स तेज़ी से उनके समीप आई और डॉक्टर से बोली - "सर वॉर्ड नंबर 16 के जिस मरीज को खून चढ़ाया गया था वह होश में आ गया है."

नर्स की बात सुनकर डॉक्टर वॉर्ड की तरफ बढ़ गया. उसके पिछे राधा, सरोज और ठाकुर धीरेन्द्र सिंग भी वॉर्ड के दरवाज़े तक गये. कुच्छ ही देर में डॉक्टर ने वॉर्ड से बाहर आकर उन्हे बताया कि कमल को होश आ गया है और आप लोग उससे मिल सकते हैं. राधा वॉर्ड में दाखिल हो गयी. कमल के समीप जाकर आँसू बहाती हुई उसका माथा चूम लिया. सहसा उसे कुच्छ याद आया और फिर वह तेज़ी से वॉर्ड से बाहर निकल गयी. राधा को बाहर निकलते देख ठाकुर धीरेन्द्र सिंग भी उसके पिछे पिछे वॉर्ड से बाहर आ गये.

राधा तेज़ पगो से चलती हुई डॉक्टर के कॅबिन तक पहुँची और डॉक्टर से बोली - "डॉक्टर साहब इस वक़्त राजा साहब कहाँ है? मैं अंजाने में उन्हे बहुत बुरा भला कह गयी. मैं उनसे मिलकर क्षमा माँगना चाहती हूँ."

"बगल वाले वॉर्ड में." डॉक्टर ने उत्तर दिया - "खून देने के बाद उनकी अवस्था और कमज़ोर हो गयी है. हम ने उन्हे इंजेक्षन देकर आराम करने को कहा है."

राधा के दिल को चोट पहुँची. मन ही मन उसने खुद को धिक्कारा. अपने आँसू पोछ कर उसने एक गहरी साँस ली और बगल के वॉर्ड के तरफ बढ़ गयी.

जब राधा बगल के वॉर्ड में पहुँची तो पलंग खाली था. राधा ने चारों और नज़र दौड़ाई परंतु सूरजभान सिंग का कहीं कोई पता नही था. वह पिछे पलटी तो धीरेन्द्र सिंग भी उनके पास ही खड़े थे. उन्होने भी अपनी नज़रे इधर उधर दौड़ाई फिर राधा को देखा. उसकी आँख से आँसुओं का झरना जारी था.

"मैं जानती हूँ वह कहाँ होंगे." राधा ने आँसू पीने का प्रयत्न करते हुए कहा - "मैं उनके पास जाउन्गि और सब कुच्छ भुला कर उनसे क्षमा मागुंगी. उन्होने मेरे बेटे को नया जीवन दिया है."

"बेहन जी इस वक़्त..." धीरेन्द्र सिंग ने कुच्छ कहना चाहा.

"रामगढ़ है ही कितनी दूर. मेरा दिल कहता है अब कमल को कुच्छ नही होगा. वह ज़रूर बच जाएगा. उसे देखने के लिए आप लोग ही काफ़ी हैं. मेरे लौट आने तक आप लोग कमल के साथ रहिएगा." राधा ने कहा, और फिर बिना किसी उत्तर की प्रतीक्षा किए वह सीढ़ियाँ उतर कर कार की तरफ बढ़ गयी.

ठाकुर धीरेन्द्र सिंग ने ड्राइवर को इशारे से कह दिया कि वह जहाँ जाना चाहती है उन्हे ले जाए.
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06-09-2020, 01:29 PM,
#17
RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
चार बजे थे कि राधा की गाड़ी गार्ड उड़ती हुई रामगढ़ की सीमा में परविष्ट होकर ठीक हवेली के गेट के सामने जा रुकी. दूर खड़े काम करने वाले मजदूरों ने एक बार अपनी दृष्टि उस पर उठाई और काम में व्यस्त हो गये. अफ़सरान कमल को देखने के बहाने छुट्टी पर चले गये थे. छोटे मोटे काम करने वाले सहायक ही यहाँ रह गये थे.

राधा ने उपर दृष्टि उठाई. आकाश पर लालिमा छाने में अभी देर थी, लेकिन फिर भी हवेली पर भायानकपन छाया हुआ था. राधा ने ड्राइवर को प्रतीक्षा करने की आग्या दी और हवेली का गेट खोल कर अंदर परविष्ट हो गयी. फिर तेज़ कदमों से बरामदे में पहुँची. सीढ़ियाँ पार की और कोठे में पहुँची. परंतु वहाँ कोई नही था. वह सीढ़ियाँ उतर कर सीधे बैठक में पहुँची जहाँ राजा विजयभान सिंग तथा कुच्छ वर्षों तक सूर्यभान सिंग ने भी बैठकर रामगढ़ की प्रजा की फरियाद सुनी थी. वहाँ भी उसे निराशा मिली. पुरानी कुर्सी धूल धूसरित होकर अपने समय के महत्व की याद दिला रही थी. राधा लपक कर हवेली के पिच्छले भाग में गयी, फिर जल्दी जल्दी उसने दूसरे चप्पे छान मारे. परंतु निराशा वहाँ भी उसका इंतेज़ार कर रही थी. फिर भी उसने उम्मीद का दामन नही छोड़ा.वह जानती थी कि उनका यहाँ रहना निश्चिंत है. उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो वह यहीं कहीं छीपे बैठे हैं. सहसा बड़े हॉल के दरवाज़े पर ताला लगा देख कर वह ठिठकि. उससे सब्र ना हो सका. बगल से वह सीढ़ियाँ उपर चढ़ि तो एक बड़ी सी शीशे की खिड़की के समीप से गुज़री. लेकिन उसके पट्ट अंदर से बंद थे. उसने एक इट उठाई और इस पर दे मारी. एक छनाका हुआ और शीशा टूट गया. बढ़कर उसने अंदर हाथ डाल कर खिड़की खोल ली. अंदर कूदी तो सूर्य की किरणों से काफ़ी प्रकाश छाया हुआ था. उसने देखा, हवेली के पुराने घिसे - पिटे फर्निचरर्स बरसों से धूल की परत में बिछि हुई थी. फर्श की मोटी कालीन पर इतनी मोटी गर्द की परत थी कि उसके कदमों के गहरे गहरे निशान बनते चले गये. उसने चारों ओर दृष्टि डाली. शायद...शायद वह यहीं कहीं मिल जाए. परंतु भारी - भारी फर्निचर के अतिरिक्त यहाँ कुच्छ भी नही बचा था.

सहसा उसे कुच्छ याद आया, इसी कमरे के द्वार से वह एक बार यहाँ के रंग महल में परविष्ट हुई थी. एक और जहाँ उँचा चबूतरा बना हुआ था और जहाँ कभी शाही कुर्सी पर राजा - महाराजा विराज करते थे, उसी के पिछे एक पत्थर का दरवाज़ा भी था. उसके कदम अपने आप ही उस और उठ गये. वह चबूतरे की सीढ़ियाँ उतरी तो उसके सामने एक पत्थर का बड़ा दरवाज़ा था. वह दरवाज़ा खोल कर दूसरे कमरे में पहुँची. सूर्य की किरण अंदर तक आ रही थी फिर भी इस कमरे में काफ़ी अंधेरा था. सब कुच्छ धुँधला - धुंधला सा दिखाई पड़ रहा था. वातावरण भयावह थी. अंधेरे में ऐसा जान पड़ता था मानो कुच्छ एक जिन्नात इधर - उधर टहल रहे हों या सफेद परिया थिरक रही हों. भय से उसका दिल काँप गया. परंतु वह साहस नही छोड़ना चाहती थी. लपक कर वह पहले कमरे में फिर आई. खिड़की के समीप ही मोटी मोमबति गिरी पड़ी थी. माचिस की तिल्लियाँ पास ही बिखरी थी. सिगार के कुच्छ आध-जले टुकड़े पड़े हुए थे. उसने झट मोमबत्ती उठाई. तील्लियाँ उठाकर माचिस के बॉक्स पर रगड़ा. मोमबति का प्रकाश वहाँ चारों और फैल गया. मोमबति थामे सीढ़ियों द्वारा वह रंगमहल में उतर गयी.

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06-09-2020, 01:29 PM,
#18
RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
उसने अनुभव किया अनगिनत आँखें उसे घूर रही है. उसने सोचा शायद यह उसका भ्रम है. वह दिल कड़ा करके अंदर पहुँची तो आँखें पथरा गयी. पत्थर की अनगिनत मूर्तियाँ कतार में खड़ी उसका स्वागत कर रही थी. उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा. दिल की धड़कानों के साथ उसने अनुभव किया कि इन मूर्तियों का दिल भी चीख चीख कर ठहाका लगा रहा है, उसकी बदनसीबी पर...उसके स्वाभिमान का मज़ाक उड़ा रहा है. अट्टहास कर रहा है. गाओं की एक गोरी का एक राजा से घृणा. ऐसी घृणा जो वह कभी क्षमा नही कर सकी. आख़िर किस अभिमान में डूबकर? किस बात का गर्व है उसे? वह मूर्तियों के और समीप आई. फटी फटी आँखों से इन्हे घूर्ने लगी. यह...यह मूर्तियाँ ! यहाँ ! यहाँ पर यह मूर्तियाँ कैसे आई? इन मूर्तियों को तो बाबा ने बनाया था. अपने हाथों से...आज से लगभग 22 वर्ष पहले, इन मूर्तियॉंके तो अंग अंग से वह परिचित है. फिर भी उसे अपनी आँखों पर विश्वास नही हो रहा था. इन मूर्तियों को तो बाबा ने राजेश नाम के एक बड़े व्यापारी को बेचा था बहुत कीमती दामो में. वह मूर्तियाँ यहाँ कैसे आई. और वह व्यापारी कौन था? कौन था वह जिसका मुखड़ा हमेशा ही एक मोटे चस्मे से ढँका रहता था. जिसकी घनी मुच्छों तथा दाढ़ी के पिछे एक जानी पहचानी सी सूरत झलकती थी. कौन था वह दयालु जो रोज़ ही उसके पास आने की इच्छा रखता था? उससे बातें करता था तो खो जाता था. उसके बच्चे को इतना प्यार करता था कि कभी कभी वह खुद भी कारण ढूढ़ने पर विवश हो जाती थी. क्यों उसे देखते - देखते अचानक ही उस व्यापारी का मुखड़ा उदास हो जाता था?

राधा का दिल ज़ोरों से धड़कने लगा. उसे यूँ महसूस हुआ मानो वह चक्कर खाकर गिर पड़ेगी. वह मोमबत्ती हाथ में लिए एक एक मूर्ति को बहुत ध्यान से देखते हुए आगे बढ़ती चली गयी. सहसा वह चौंक पड़ी. अरे ! वह मूर्ती...यह भगवान कृष्ण की मूर्ती यहाँ कैसे आ गयी? इसे तो बाबा ने कृष्णा नगर में एक बूढ़े को दो रुपये में बेचा था ताकि खाने को कुच्छ मिल सके. यह यहाँ कैसे पहुँची? और यह मूर्ती...प्रभु यीशू मशीह की मूर्ती, इसे तो बाबा ने फादर फ्रांसिस को भेंट किया था, वह यहाँ कैसे आई? आख़िर यह पहेली क्या है? अचानक अगली मूर्ती के चरणों में रखी अनगिनत गहनों की चकाचौंध ने उसकी दृष्टि अपनी ओर खींच ली. उसने मोमबत्ती रख कर झट उन गहनों को उठा लिया. चाँदी के गहने? माथे का मुकुट, कानों के बड़े बड़े झुमके, गले का हार, कंगन, छल्ले, करघनी, पायल. एक ही दृष्टि में वह उन्हे पहचान गयी. यह तो उसकी सुंदरता के अंग थे. उसके यौवन के चार चाँद थे. आज से 22 वर्ष पहले उसने अपनी शादी के दिन इन गहनों को पहना था. सहसा उसे याद आया. इन गहनो में उसकी एक अंगूठी नही है...वा अंगूठी जिस पर राधा लिखा हुआ था. वा सिसक पड़ी. सिसकते हुए उसने इन गहनो को चूम लिया. फुट-फुट कर रो पड़ी. रोते हुए उसने इन गहनों को आँखों से लगा लिया. वह देख रही थी 22 साल पहले का वह पन्ना जो उसकी ज़िंदगी की पुस्तक पर लिखा गया था. सूरजभान सिंग कह रहे हैं. - "अब यह अंगूठी तभी उतरेगी जब तुम मुझे क्षमा कर दोगि. और मुझे क्षमा इसे वापस अपनी उंगली में धारण कर लोगि. तब मैं समझूंगा कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए स्थान बन चुका है. तुम्हारे बाकी गहने भी मेरे पास सुरक्षित हैं. मेरे लिए वे किसी देवी की मूर्ती से भी पवित्र हैं.

सहसा उसका ध्यान उस मूर्ती पर गया जिसके चरणों में उसके गहने रखे हुए थे. उसके दिल पर मानो किसी ने बरच्छियाँ चला दी. अपनी आँखों पर उसे विश्वास ही नही हुआ. वह मूर्ती...वह अधूरी मूर्ती जिसे बाबा पूरी तरह से बना भी नही पाए थे. जिसे सबसे पहले उस व्यापारी ने खरीदा था. उसके उपर का भाग बना नही था किंतु नीचे का भाग नारी का था. राधा को इस मूर्ती पर अपना ही प्रतिबिंब नज़र आया था. वह देख रही थी. सब कुछ फटी फटी आँखों से. और उसे विश्वाश करना पड़ रहा था एक ऐसी जीती जागती वास्तविकता पर जिससे दिल इनकार नही कर सकता था. वह फुट फुट कर रो पड़ी. यह सब कैसे हो गया? कोई इंसान कैसे किसी को इतना प्यार कर सकता है. इतना बड़ा तूफान उसके उपर से गुज़र गया और वह मछलि की तरह तह पर बैठी कुच्छ भी ना जान सकी. उसकी हिचकियाँ बँध गयी. आँसू रुकने का नाम ही नही ले रहे थे. कुच्छ पल ठहर कर गहरी - गहरी साँसों के साथ उसने रंग महल का निरीक्षण किया. जहाँ - जहाँ मोमबति की रोशनी जा सकती थी. स्पस्ट या धुध्ला सा, हर जगह दृष्टि दौड़ाई. हर तरफ खामोशी थी...सन्नाटा था. केवल अपनी ही गहरी सांसो की आवाज़ सुन रही थी. और दूसरा वहाँ कोई ना था जिसकी उसे तलाश थी. तमन्ना थी. जिसके द्वारा वह इन सारी पहेलियों को बहुत आसानी से सुलझा सकती थी.

सहसा उसने कुच्छ सोच कर वह मूर्ती वहीं रख दी और झट से प्रभु यीशू मशीह की मूर्ती उठा ली. यदि वह पहेली की तह में पहुँच सकती है तो इसी मूर्ती के द्वारा. इस मूर्ती को बाबा ने बनाकर फादर फ्रांसिस को भेंट की थी, वही बता सकते हैं कि उन्होने यह मूर्ती किसे दी थी? कब दी थी? क्यों दी? किन अवस्थाओं में दी?

मोमबत्ती को वहीं जलता छोड़ कर राधा सीढ़ियों की तरफ बढ़ गयी. हवेली से बाहर निकल कर अपनी कार में बैठी और ड्राइवर को लखनऊ चलने को कहा. फादर फ्रांसिस सेवा निर्वित होने के बाद पिच्छले 5 वर्षों से लखनऊ में ही रह रहे थे. राधा को उनका पता मालूम करने में अधिक समय नही लगा. उनसे मिलने के पश्चात राधा ने उन्हे प्रभु यीशू मशीह की मूर्ती दिखाया और उनसे पुछा कि यह मूर्ती उन्होने कब और किसको दी थी.

फादर फ्रांसिस ने राधा से कुच्छ भी नही छिपाया. राजा सूर्यभान सिंग के संबंध में वह जितना कुच्छ जानते थे उन्होने सब कुच्छ राधा को बता दिया.

फादर की बात सुन कर राधा सन्न रह गयी. जिस व्यक्ति के लिए वह सारी उमर घृणा पालती रही वही व्यक्ति अपना सारा जीवन उसकी खुशी के लिए उसके बच्चे के भविश्य के लिए त्याग करता रहा. उसने उसकी नफ़रत का ऐसा सिला दिया तो उसके प्यार का फल कैसा होता. काश कि उसने एक पल के लिए भी उनसे प्यार किया होता. राधा की रुलाई फुट पड़ने को तैयार थी परंतु फादर की उपस्थिति का भान करके वह खुद को बहुत कठिनाई से संभाले हुए थी.

कुच्छ देर की औपचारिक बातों के बाद राधा फादर से आशीर्वाद लेकर वहाँ से निकल गयी.
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06-09-2020, 01:29 PM,
#19
RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
दूर बहुत दूर. एक पहाड़ी इलाक़े का खामोश वातावरण. केवल हवाओं की सनसनाहट ही कभी कभी सुनाई पड़ जाती थी.

और इस इलाक़े में, एक अलग पहाड़ी पर स्थित सॅनेट्रियम के एक वॉर्ड में खाट पर लेटे राजा सूरजभान सिंग अपने जीवन की अंतिम साँसे गिन रहे थे. टी.बी ने उनके बूढ़े शरीर को और भी कमज़ोर कर दिया था. जब वह खाँसते तो उनकी छाती का उतार - चढ़ाव तेज़ हो जाता, साँसें गहरी और गहरी हो जाती, कुच्छेक खून के छींटे मूह से बाहर निकल पड़ते, होठों के किनारे लाली से भीग जाते. और तब वह अपनी खाँसी पर काबू पाने के लिए झट उठकर बैठ जाते और अपनी छाती दबाने लगते. खाँसी रुकती तो वह गहरी - गहरी साँसों के साथ अपनी आँखों में आए आँसू को पोछ्ते हुए समीप की खिड़की से बाहर बादलों की काली परतों को देखने लगते. उस वक़्त मन करता वह तुरंत ही इनसे भी उपर चले जाएँ. जीवन बोझ बन जाए तो जीने की चाह मिट जाती है. राजा सूरजभान सिंग का दिल टूटकर टुकड़े - टुकड़े हो चुका था. जब उन्हे थोड़ा आराम मिलता तो फिर से पलंग पर लेट जाते और गर्दन घुमा कर वॉर्ड के अंदर देखने लगते...बीच के दरवाज़े के उस पार दूसरे वॉर्ड में...जो इस अस्पताल का सबसे बड़ा हॉल था. उस वॉर्ड में दीवार पर एक बड़ी संगमरमर की प्लेट जड़ी हुई थी, जिस पर अंकित की हुई पंक्तियाँ उन्होने सॅनेट्रियम में भरती होने के बाद पहले ही दिन पढ़ लिया था. उस पर लिखा था.

इस संगमरमर को राजा सूरजभान सिंग, एक्स-रूलर ऑफ रामगढ़ स्टेट की असीम कृपाओं के कारण धन्यवाद के रूप में यहाँ जड़ा गया है. यदि उन्होने इस सॅनेट्रियम की सहायता ना की होती तो निश्चित है यह आर्थिक स्थिति के कारण बंद कर दिया जाता.

दिनांक - 9 मे, 1955

आज से लगभग 15 वर्ष पहले जब कुच्छ दिनो के लिए राजा सूरजभान सिंग अपने दिल की तड़प को कम करने के लिए, एक सुकून की तलाश में इस इलाक़े में आए थे तब उनकी उपस्थिति का लाभ उठाकर यहाँ के कार्यकर्ताओं ने उनके सम्मान में एक पार्टी दी थी और बदले में सॅनेट्रियम के लिए एक अच्छी ख़ासी रक़म वसूल कर ली थी. आज उन्हे कोई नही जानता था, कोई नही पहचानता था. आज भी डॉक्टर वहाँ थे जिन्होने खुले शब्दों में अस्पताल के लिए उनसे भीख माँगी थी, आज कुच्छेक नर्स तथा सिस्टर भी वहाँ थी, परंतु राजा सूरजभान सिंग अब राजा नही थे. वह एक साधारण टी.बी के रोगी थे. जिसे मानो किसी ने तरस खाकर सड़क से उठाकर यहाँ भरती करा दिया था.

उस संगमरमर की प्लेट को बार - बार देखने के बाद भी उनकी आँखें छलक पड़ती थी. प्यार ने उन्हे क्या से क्या बना दिया? पागल. दीवाना. उनका प्यार सार्थक नही हो सका. उनका प्रयास असफल रहा, तपस्या व्यर्थ गयी, पूजा रास नही आई. पता नही उनका प्रयश्चीत अभी पूरा होगा भी या नही? उनके दिल में अब कोई इरादा नही था. कोई अभिलाषा नही थी. उनसे जितना हो सका उन्होने कर दिया, कमल के लिए भी और राधा के लिए भी. परंतु दिल के अंदर एक आशा ज़रूर थी, उनका दिल कह रहा था...एक दिन जब वह नही रहेंगे तो राधा उन्हे ज़रूर क्षमा कर देगी. किंतु काश. राधा उन्हे उनके जीवन काल में ही क्षमा कर दे. एक बार ही सही...केवल एक बार ही उसके पैरों पर दम तोड़ते हुए उन्हे सदा के लिए शांति मिल जाएगी.

सॅनेट्रियम में भरती होने से पहले उन्होने अपना स्टेट बॅंक में जमा किया हुआ सारा रुपया केमल के नाम कर दिया था. सभी ज़रूरी काग़ज़ात भी लखनऊ से ही भेज दिए थे. अपने लिए उन्होने कुच्छ भी नही बचाया.

सॅनेट्रियम में आए उन्हे काफ़ी दिन हो चले थे. और ज्यों - ज्यों उनका इलाज़ होता गया उनकी अवस्था गिरती ही चली गयी. पलंग पर उठकर बैठते भी तो हाफने लगते. कुच्छ कहना चाहते तो रुक - रुक कर, मानो ज़ुबान लड़खड़ा रही हो. बात करते तो ऐसा प्रतीत होता मानों दिल बैठ जाएगा. और तब वह बहुत बेचैनी से अपना दम निकलने की प्रतीक्षा करने लगते.

उन्हे अपने वॉर्ड के मरीजों से भी कोई संपर्क नही था. सभी को देखने वाला कोई ना कोई अवश्य था. कभी किसी मरीज से मिलने उसकी मा आती तो कभी किसी का बेटा, तो कभी किसी की पत्नी या दूसरे रिश्तेदार. कोई फल लाता तो कोई जूस. परंतु सूरजभान सिंग का अपना कोई नही था. कोई नही था जो उनका हाल - चाल पुछे, उनसे मिलने आए, उनके लिए फलों का जूस लाए. मानो संसार में अकेले आए हैं और अकेले ही जाएँगे.

जब सुबह होती तो वह तड़के सूर्य की पौ फटने से पहले ही अपने बेड के समीप वाली खिड़की खोल लेते. ठंडी - ठंडी हवाएँ उन्हे सिहरा जाती फिर भी पट बंद नही करते. खिड़की से बाहर के नज़ारो को देखते हुए राधा के विचारों में गुम हो जाते.

आज उनकी तबीयत और दिनो से कुच्छ अधिक ही खराब थी. खाँसी के साथ ज्वर ने भी अपना अधिकार जमा रखा था. सूर्यास्त का समय था. उन्होने समीप की खिड़की का पट खोलकर सूर्य को देखा. डूबते हुए सूर्य को देखने में उन्हे एक विचित्र संतोष मिलता था. वह सोच रहे थे. कुच्छ देर बाद ही यह सूर्य भी अंधेरे का शिकार होकर लुप्त हो जाएगा, इसकी चमक बिल्कुल फीकी हो जाएगी. बिल्कुल उनके जीवन के समान. अपनी बेबसी पर उनकी आँखें छलक आई.

तभी अपने नियमित समय पर एक नर्स उनके पास आई. उसके हाथ में पुराने अख़बार से लिपटा हुआ एक पैकिट था. जिसे उसने पलंग के समीप ही एक छोटी मेज पर लापरवाही से रख दिया. फिर चार्ट पढ़ा और इंजेक्षन तैयार करती हुई बोली - "बाबा तुम इतने खामोश क्यों रहते हो?"

सूरजभान सिंग कुच्छ नही बोले. खामोश ही रहे. अचानक ही उनकी दृष्टि उसकी पैकिट पर ठिठक गयी.

"राधा." वह खुशी से चीख पड़े. उनकी आवाज़ सारे सॅनेट्रियम में गूँज गयी. आस - पास के सोते जागते मरीज चौंक पड़े. नर्स भी भय खाकर दो कदम पिछे हट गयी. पैकिट पर सामने ही उनकी जवानी की तस्वीर छपी थी और नीचे लिखा था.

"राजा साहब आप जहाँ कहीं भी हैं, शीघ्र ही हवेली लौट आएँ. मैं राधा आपकी प्रतीक्षा कर रही हूँ. आपसे क्षमा माँगना चाहती हूँ."

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06-09-2020, 01:29 PM,
#20
RE: Kamukta Story कांटों का उपहार
सूरजभान की आँखें खुशी से बरस पड़ी. राधा से मिलने की चाह में तड़प उठे. कुच्छ देर बाद नर्स के जाते ही उन्होने अपने समीप की रोगी से पुछा, - "भैया, क्या तुम बता सकते हो लखनऊ के लिए यहाँ से कितने बजे की ट्रेन है?"

"हां" रोगी ने कहा. - "रात के 9 बजे. क्यों किसी को जाना है क्या?"

"नही बस यूँही पुच्छ लिया." उन्होने करवट लेते हुए एक आह भारी. फिर सोचा. लखनऊ से रामगढ़ है ही कितनी दूर. उन्हे इसी वक़्त निकल जाना चाहिए. क्या पता ऐसी अवस्था में कल सुबह डॉक्टर उन्हे छुट्टी ही ना दे. जीवन की कुच्छ ही साँसे शेष रह गयी है. राधा की बाहों में उनका दम निकले उन्हे और क्या चाहिए. जीते जी उनके पापों का प्रयशचित तो हो जाएगा. राधा से मिलने के लिए उनकी बाहें फड़कने लगी. उन्होने घड़ी में समय देखा अभी 9 बजने में काफ़ी वक़्त था. बेचैनी से बार बार घड़ी की तरफ देखते हुए रात के 8 बजने का इंतेज़ार करने लगे. 8 बजते ही वह बिस्तर से उठ बैठे. सारे मरीज सो चुके थे. पहाड़ी इलाक़ा होने के कारण रात जल्दी ही घनी हो जाती थी. उन्होने अपनी नज़र दौड़ाई. एक भी नर्स वॉर्ड में नही थी. वह दबे पावं पलंग से उतरे. उनका गरम ओवर कोट और अन्य कपड़े स्टोर रूम में बंद थे. उनके बदन पर इस वक़्त अस्पताल के ही साधारण कपड़े थे. ठंड अधिक थी, ठंड से बचने के लिए उन्होने अस्पताल का ही कंबल अपने शरीर पर लपेट लिया. बाहर निकले तो ठंडी हवाएँ सुई की नोक की तरह उनके बदन पर चुभने लगी. फिर भी उन्होने रुकना उचित नही समझा. एक पल भी देर कर देने से जीवन उन्हे धोखा दे सकता था. आकाश पर रह रह कर बिजली कौंध जाती थी. तब दूर दूर की पहाड़ियाँ भी चमक उठती थी. सूरजभान अपने को संभाल कर स्टेशन की तरफ बढ़ गये. परंतु कुच्छ ही दूर चले थे कि वर्षा की तूफ़ानी झड़ी उनके उपर छा गयी. उनका शरीर ठंड से ठिठुरने लगा. परंतु वह फिर भी बढ़ते गये. स्टेशन पहुँचे तो उनके शरीर की कंपकंपी ज्वर बनकर उन पर छा चुकी थी. अपने आपको भीगे कंबल से लपेट कर वह तीसरे दर्जे के डिब्बे में बैठ गये.

गाड़ी चली तो उनके शरीर की कंपकंपी और बढ़ गयी. उनके दाँत किटकिटाने लगे. खाँसी का दौरा पड़ गया. डिब्बे पर बैठे दूसरे यात्रियों ने उन्हे बहुत घृणा से देखा और अपने नथुनो पर कपड़े रख लिए. खाँसी के साथ उनके मूह से निकले खून के छींटे कॉमपार्टमेंट के फर्श पर बिखर गये थे.

"तुमको तपेदिक है क्या?" एक यात्री ने उन्हे देखकर क्रोध से पुछा.

उन्होने बड़ी कठिनाई से हां के इशारे पर गर्दन हिला दिया.

"तुमको इसी डिब्बे में बैठना था." दूसरे यात्री ने मूह बिचका कर कहा, - "अगले स्टेशन पर उतरकर दूसरे डिब्बे में चले जाना."

"शट-अप." वह बहुत ज़ोर से चीखे. इतने ज़ोर से कि सभी आश्चर्य से उन्हे देखने लगे. जब गाड़ी लखनऊ स्टेशन पर रुकी तो रात के दो बज चुके थे. प्लतेफोर्म पर उतरे तो वर्षा ज़ोरों पर थी. कॉमपार्टमेंट के अंदर बंद रहने के कारण कंबल काफ़ी सुख चुका था. इसलिए उन्होने इसे ठीक से बदन पर लपेट लिया और बाहर निकले. बाहर निकल कर वर्षा की परवाह किए बिना ही टॅक्सी वालों की तरफ बढ़ गये. सभी अपनी कार का शीशा चढ़ाए सो रहे थे. उन्होने एक टॅक्सी पर ज़ोर की थपकी दी. ड्राइवर की आँख खुली. उसने दरवाज़े का शीशा कुच्छ नीचे किया.

"रामगढ़ ले चलो भैया." उन्होने ड्राइवर से विनती की.

"अभी." ड्राइवर ने उनकी अवस्था को गौर से देखा. - "अभी तो वर्षा के कारण उधर का रास्ता खराब होगा. उस तरफ रात में चलना ख़तरे से खाली नही है."

"तुमको जीतने भी पैसे चाहिए मैं वहाँ पहुँचते ही दे दूँगा." उन्होने फिर से विनती की, - "बस मुझे वहाँ की हवेली पहुँचा दो."

"हवेली?"

"हां, मैं राजा सूरजभान सिंग हूँ."

"राजा सूरजभन सिंग." ड्राइवर ने इस बार और भी गौर से देखा. बहुत ध्यान से उपर से नीचे तक. फिर एक ज़ोरदार ठहाका लगाया. - "हा...हा...हा... राजा सूरजभान सिंग." फिर वह थोड़ा क्रोध में आया, - "चल भाग यहाँ से. खमखा ही मेरी नींद हराम कर दी. पागल कहीं का."

सूरजभान सिंग को उस पर बहुत तेज़ गुस्सा आया. परंतु फिर अपनी वर्तमान स्थिति का ध्यान करके उन्होने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी. वह दूसरे टॅक्सी की तरफ बढ़ गये. तभी उन्हे एक तांगा खड़ा दिखाई दिया. परंतु उसका चालक कहीं दिखाई नही दिया. वह शायद तांगा खड़ा करके कहीं को चला गया था. सूरजभान ने अपनी दृष्टि चारों और घुमाई. उन्हे कोई भी दिखाई नही दिया. अचानक ही वह लपक कर तांगे में चढ़ गये. घोड़े पर चाबुक बरसाई और तांगा भगा दिया. पीछे किसी का शोर सुनाई दिया. पर उन्होने पिछे पलट कर देखा तक नही.

कुच्छ ही दूर चले थे की उनका शरीर ठंड से बेजान होने लगा. लगाम को थामे रखना मुश्किल हो गया. तूफ़ानी बारिस के थपेड़ों से उनका शरीर शिथिल हो रहा था. अचानक ही तांगे का पहिया किसी खड्डे से टकराया. उनका संतुलन बिगड़ा. वह खुद को संभाल नही पाए. कलाबाज़ियाँ खाते हुए कीचड़ पर गिरे. गिरते ही उनका शरीर सुन्न हो गया. उन्हे ऐसा प्रतीत हुआ मानो वह फिर से उठ नही पाएँगे. उनका दम निकल जाएगा. परंतु पूरी शक्ति बटोर कर फिर से खड़े हुए और पैदल ही रामगढ़ की तरफ चल दिए.

कुच्छ दूर चलते ही उनकी साँसे उखाड़ने लगी. उन्होने एक जगह खड़े होकर दम साधा और देखा - दूर बहुत दूर उनकी हवेली धुंधली धुंधली दिखाई पड़ रही है. उनके मुखड़े पर खुशी की लहर दौड़ गयी. एक ही झटके में उन्होने चाहा कि लपक कर हवेली पहुँच जाएँ. उन्होने तेज़ तेज़ कदम बढ़ाने शुरू किए. परन्तु कुच्छ ही दूर चलते ही उनके पग लड़खड़ा गये. उन्होने महसूस किया उनकी शक्ति उन्हे जवाब दे रही है. एक बार फिर उन्होने इसे समेटने का प्रयत्न किया. परंतु होंठ केवल भिच कर रह गये. वह नाकाम रहे. मानो अब उनके शरीर में गरम खून की एक बूँद भी ना बची हो. उनका गला सुख गया, दिल बैठने लगा. वह लड़खड़ाए...उन्होने एक पग आगे बढ़ाया परंतु फिर वहीं नागफनी के एक पौधे के कुछ दूर गिर पड़े. बड़ी कठिनाई से उन्होने अपनी गर्दन हवेली की ओर घुमाई. अंधेरा छाँट रहा था. हवेली की उपरी मंज़िले स्पस्ट दिखाई पड़ रही थी. उनके दिल को सख़्त ठेस लगी. नदी के किनारे आकर भी वह डूब गये. बड़ी बड़ी घनी पलकों पर आँसू छलक आए. होठ खुल गये. उन्हे गहरी गहरी साँसे आने लगी. कीचड़ से लथ-पथ प्यास से उनके होंठ सूखने लगे. आस-पास गढ्ढो में पानी होने के पश्चात भी उन्हे एक बूँद पानी देने वाला कोई नही था. और वह इसके लिए तरसते रह गये.

अचानक ही उनकी नज़रों के सामने उनकी वास्तविकता घूम गयी. शानदार हवेली...राजमहल...आगे पिछे सिपाही...पहरेदार...हरे भरे खेत - खलिहान...और इन्हे के बीच राधा से पहली मुलाक़ात...फिर दूसरी मुलाक़ात.

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