Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
10-11-2019, 01:15 PM,
#11
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
"भोंसड़ चुदी! तू खुद ही तो अपनी मर्ज़ी से आयी थी ना चुदने के लिये... हम कोई ज़बरदस्ती नहीं लाये तुझे यहाँ पे...!" दूसरा लड़का बोला।

कुल्दीप ने इतने में अचानक से ज़ोर का झटका मारते हुए अपना तमामतर लौड़ा मेरी चूत में इतनी गहरायी तक पेल दिया जहाँ तक आज से पहले कोई चीज़ दाखिल नहीं हुई थी। इस अचानक हमले से मेरी ज़ोर से चींख निकल गयी, "आआआआईईईईई कुऽऽऽलद़ीऽऽऽप नहींऽऽऽ अळ्ळाऽऽहऽऽऽऽ रहम....!"

वो थोड़ी देर रुका तो मुझे दर्द थोड़ा कम होता महसूस हुआ लेकिन फिर उसने जब लौड़ा बाहर निकालना शुरु किया तो दर्द फिर शुरू हो गय। फिर वो अपने लौड़े को मेरी चूत में अंदर-बाहर करने लगा। कब मेरा दर्द खतम हुआ और कब मेरी दर्द भरी चींखें, गरम आहों और मस्ती भरी सिसकियों में तब्दील हो गयीं और कब मेरी छटपटाती टाँगें और बाँहें खुद-ब-खुद उसकी कमर में लिपट गयीं मुझे इसका पता भी नहीं चला। जैसा कि उन्होंने कहा था, थोड़े दर्द के बाद मुझे इस कदर मज़ा आने लगा कि दिल कर रहा था कि ये चुदाई खतम ही ना हो। वैसे भी कमबख्त ये चुदाई खतम भी कहाँ हो रही थी। वो मेरे स्कूल का सबसे ताकतवर और बिगड़ा हुआ स्टूडेंट था और आसानी से कहाँ थकने वाला था। अब तो मैं खुद भी मस्ती में सिसकती हुई अपने चूतड़ उठा-उठा कर चुदवा रही थी। मैं कभी सोच भी नहीं सकती थी कि मेरे जैसी पाक और परहेज़गार और स्ट्रिक्ट टीचर एक दिन इस तरह शराब पी कर बिल्कुल नंगी होकर सूखी घास के ढेर पे सिर्फ़ ऊँची हील के सैंडल पहने अपने ही स्टूडेंट के नीचे लेटी हुई उसके लंड से पुर-जोश अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर चुदवा रही होगी।

पता नहीं कितनी दफ़ा मेरा जिस्म अकड़ा... पर जब भी मेरा जिस्म अकड़ता तो मेरी टाँगें और बाँहें उसकी कमर पर ज़ोर कस जाती और फिर जब मैं झड़ जाती तो मेरी टाँगें और बाँहें भी कुलद़ीप की कमर पे ढीली पड़ जाती। लेकिन वो कमबख्त काफी देर बाद झड़ा और झड़ा भी मेरी चूत में कहीं दूर अंदर तक। मुझे मेरी चूत के गहराइयों में कहीं गरम-गरम फुव्वारा छूटता महसूस हुआ। वो हाँफते हुए मेरे ऊपर गिर पड़ा लेकिन फिर संभल कर मुझे थोड़ी देर किस करने के बाद मेरे ऊपर से हटा।

मैंने देखा की मेरी गाँड के नीचे और आसपास की सुखी घास मेरी चूत से कईं दफ़ा खारिज़ हुए पानी से भीग चुकी थी। इतनी दफ़ा झड़ने के बावजूद मेरा जोश कम नहीं हुआ था क्योंकि कुल्दीप के मूसल जैसे लौड़े से चुदने के बाद मुझे चूत में बेहद खालीपन महसूस हो रहा था और चूत में लंड लेने की तलब बरकरार थी। इसके अलावा मुझे पता था कि अभी तो शुरुआत है। अभी तो तीन और लौड़े मेरी चूत चोदने के लिये बेताब थे। कुल्दीप हटा तो मेरा दूसरा बिगड़ा स्टूडेंट संज़य जिसे पता नहीं क्यों मैं पहले सबसे ज्यादा नफ़रत करती थी और जिसकी सबसे ज्यादा और खतरनाक पिटाई करती थी वो मेरे ऊपर आ गया और मेरे गालों और होंठों को चूमते हुए बोला, "मेरी प्यारी अखतर मैडम... अब मेरी बारी है... आज मुझे कुछ पढ़ाओगी नहीं! ओह सॉरी मैं तो भूल ही गया था... आज तो मैंने आपको सिखाना है कि अपने प्यारे स्टूडेंट की रंडी कैसे बनते हैं!" और वो मेरे होंठों को ज़ोर से चूमने लगा।

वो मुझे चूम भी रहा था और एक हाथ से मेरी छाती मसल रहा था और एक हाथ से मेरी कमर की साइड को सहलाते हुए मेरी बाँह सहला रहा था। उसका लौड़ा भी करीब-करीब कुळ्दी़प के लौड़े के मुकाबले का ही था और मुझे वो अपनी चूत और रानों के बीच में रगड़ता हुआ महसूस हो रहा था। मैं मस्त हो गयी थी और मेरी हवस फिर से भड़क उठी थी। मुझसे रहा नहीं गया और मैं उससे लिपट गयी और उसे किस करने लगी। "ऊँहह... संजेऽऽय तुम मेरे सबसे अज़ीज़ स्टूडेंट हो गये हो आज!" हवस और शराब के नशे में पता नहीं कहाँ से मेरे मुँह से निकला। मैंने उसकी छाती को किस किया तो उसने मुझे मेरे सिर के बालों से पकड़ कर पीछे खींचा और मेरी गर्दन पर किस करने लगा। फिर मुझे उलटा करके मेरी कमर और मेरी गर्दन को पीछे से किस करने लगा और मेरे कान में बोला, "त़बस्सुम़ मैडम जी! कुल्दीप ने तो आपकी चूत मारी लेकिन मैं तो आपकी गाँड मारुँगा!"

ऐसा कह कर उसने मुझे मेरी कमर से पकड़ कर मेरे चूतड़ ऊपर उठा दिये। अब मैं अपना सिर आगे झुका कर सूखी घास के ढेर पर टिकाये और कुहनियों और घुटनों के बल कुत्तिया बनी हुई थी। मेरी गाँड हवा में उठी हुई थी। उसने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ पकड़ कर उन्हें खोला और एक उंगली को थूक लगा कर मेरी गाँड पे रगड़ा। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। क्या वो वही करने जा रहा था जो मैं सोच रही थी। मैं बेहद डर गयी। मेरे धड़कने बढ़ गयीं और पसीना आ गया। मैंने अपनी टाँगों के बीच में से अपनी गाँड के पीछे लटक रहे उसके टट्टों को देखा और उसके तने हुए लौड़े को देखा जो कमज़-कम दस इंच का था। उसने मेरी कमर को दोनो हाथों से पकड़ा और अपना लौड़ा मेरी गाँड के मुँह पर रखा तो मैं खौफ़ज़दा होकर गिड़गिड़ाते हुए बोली, "नहीं संजय! अल्लाह् के लिये ये ज़ुल्म ना करो... मैंने वहाँ कभी नहीं करवाया पहले.... मैं वहाँ पे तुम्हारा लौड़ा बर्दाश्त नहीं कर सकुँगी! प्लीज़ वहाँ नहीं...!" पिछली कुछ दो घंटों में उनकी सोहबत का मेरे ऊपर इतना असर हुआ कि ज़िंदगी में पहली दफ़ा मैंने "लौड़ा" जैसे गंदे और फ़ाहिश अल्फ़ाज़ का इस्तेमाल किया और उस वक़्त तो मुझे इस बात का एहसास तक भी नहीं हुआ।
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10-11-2019, 01:15 PM,
#12
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
लेकिन उसने मेरी एक नहीं सुनी और मुझे अपनी जानिब खींचते हुए अपना लौड़ा मेरी गाँड के छेद में ढकेल दिया। दर्द के मारे मेरी चींखें निकल गयी, "आआआआईईईईई सऽऽन्जयऽऽऽ मरररऽऽऽ गयीऽऽऽऽऽ मैं... अळ्ळाहहहऽऽऽ नहींऽऽऽ!" उसके लौड़े का सुपाड़ा अभी आधा इंच भी अंदर नहीं गया था कि मेरी गाँड फट के हाथ में आ रही थी। मेरी आँखों में आँसू आ गये और मैं चींखे जा रही थी। मैंने कुहनियों के बल आगे भागने की कोशिश की पर उसकी मजबूत बाँहों ने मुझे कमर से जकड़ कर अपनी तरफ़ खींच लिया। "कहाँ जा रही है तब्बूमैडम मेरी जान... बड़ा दुख दिया है तूने क्लॉस में... आज मेरी बारी है... चल इधर आ जा मेरी तब़्बूजान!" वो बोला।

उसने और जोर लगाया तो मुझे उसके लौड़े से अपनी गाँड चीरती हुई महसूस हुई। उसका लौड़ा आहिस्ता-आहिस्ता गाँड के अंदर सरकने लगा। मैं रोते हुए दर्द से छटपटाती हुई ज़ोर-ज़ोर से चींख रही थी "आआऊ... आआऊ... नहीं.... प्लीऽऽ... आआऊ... अल्ल्ल्लाहहह... आआऊ... मर गयीऽऽऽ... संजेऽऽयऽऽ बाहर... बाहर निकाल ले ज़ालिम... ऊऊऊऊहहह अल्ल्लाहऽऽऽ चीर दिया मुझे!" मेरी गाँड बुरी तरह फैल गयी थी और बे-इंतेहा दर्द बर्दाश्त के बाहर था। तीन-चार मिनट ही लगे होंगे उसे अपना तमाम लौड़ा मेरी सूखी गाँड में घुसाने में लेकिन मुझे लगा जैसे कि बर्सों लग गये हों। दर्द के मारे मैं करीब-करीब बेहोश ही हो गयी थी।

"अरे भोंसड़ी की तऽऽब्बू मैडम... सब्र कर ज़राऽऽ... अभी अच्छा लगने लगेगा तुझे!" वो बोला और फिर उसने भी अपना लौड़ा अंदर बाहर करना शुरू किया। मैं सुबकते हुए जोर-जोर से कराह रही थी "ओहहह आआऊ... ओहह अल्लाआहहह... आआउ... आआह...." लेकिन कुछ देर बाद दर्द कम होने लगा और मुझे अजीब से मज़े का एहसास होने लगा... दर्द और मज़े का मिलाजुला एहसास। मैं वैसे ही कराहती रही लेकिन अब दर्द के साथ बेहद मज़ा भी आ रहा था और मैं नीचे से एक हाथ पीछे ले जाकर अपनी चूत रगड़ने लगी। जब उसने मेरी गाँड में अपनी मनी इखराज़ की तब तक मैं दो-तीन दफ़ा झड़ गयी।

वो उतरा तो मैं घूम के घास के ढेर पे पीठ के बल लेट गयी। गाँड में हल्का सा दर्द का एहसास अभी भी था तो मैं हाथ से अपनी गाँड का मुआयना करने लगी। चारों लड़के हंसते हुए बोले, "चिंता ना करो तबस़्सुम़ मैडम... कुछ नहीं हुआ... बिल्कुल ठीक है तुम्हारी गाँड... देखो कैसे फैल के खुल गयी है... लगता है और लंड माँग रही है ये!"

संज़य ने मेरी गाँड मार के मुझे मुख्तलिफ़ मज़े से वाक़िफ़ करवाया था लेकिन फिर भी चूत में खालीपन का एहसास और उसमें लंड लेने की बेकरारी बरकरार थी। मुझे पता था बाकी दोनों लड़के भी बेकरार हो रहे थे मुझे चोदने के लिये। मैं बस यही दुआ कर रही थी कि वो दोनों मेरी गाँड ना मारें और बस मेरी चूत की धुंआधार चुदाई कर दें। तीसरे लड़के सुरेंदर ने ज्यादा वक़्त ज़ाया नहीं किया और मेरे ऊपर आ गया। उसका लंड पहले दोनों लड़कों से लंबाई में ज़रा कमतर ज़रूर था लेकिन फिर भी तकरीबन आठ-नौ इंच लंबा था और उसके लंड की खासियत ये थी कि चारों लड़कों में सबसे ज्यादा मोटा था। चूसते वक़्त भी उसकी गैर-मामूली मोटाई की वजह से मुझे सुरिंदऱ का लंड मुँह लेने में सबसे ज्यादा तकलीफ हुई थी।

सुरिंदर ने मेरे ऊपर आते ही लौड़े की टोपी चूत के लबों के दर्मियान दबाते हुए एक ही धक्के में अपना तमाम लौड़ा ज़ोर से मेरी भभकती चूत में पेल दिया। इस तरह अचानक हमले से मेरी ज़ोरदार चींख निकल गयी। उसका मोटा लंड लेने के लिये मेरी चूत की दीवारों को फ़ैलाते हुए एक दफ़ा तो हद्द से ज्यादा खिंचाव बर्दाश्त करना पड़ा लेकिन उसका लंड मेरी रसीली चूत में दाखिल होने के बाद फिर तकलीफ कम हो गयी। मेरी चूत अब उसके लौड़े से ठसाठस भर गयी थी। मस्ती में मैंने अपनी टाँगें उसकी कमर पे लपेट कर कैंची की तरह कस दीं और वो पागलों की तरह मुझे वहशियाना तरीके से दनादन चोदनए लगा। "ऊँऊँह सुऽऽऽरिंदऱऽऽऽ आँआह..." मैं अलमस्त होकर सिसकने और आहें भरने लगी। मुझे चोदते हुए वो मेरे मम्मों पे झुका हुआ मेरे निप्पल और मम्मे मुँह में लेकर चूसने और काटने लगा। कुछ ही देर में मेरा जिस्म अकड़ा और चूत ने पानी छोड़ दिया लेकिन उसने मुझे चोदना ज़ारी रखा।

इतने में चौथा लड़का अनिल बोला, "जल्दी करो यार... मुझसे अब और इंतज़ार नहीं हो रहा!" तो सुरिंदर ने मेरी चूत में दो-तीन ज़ोरदार धक्के मारे और मेरी कमर में बाँहें डाल कर अपना लौड़ा मेरी चूत में गहरायी तक घुसाये हुए ही घूम कर पलट गया जिससे कि अब मैं उसके ऊपर आ गयी। मैं इस कदर मस्ती के आलम में थी कि उसके ऊपर आगे झुकी हुई मैं उसके लौड़े पे ऊपर-नीचे उछलने लगी। वो भी नीचे से अपने चूतड़ उछाल-उछाल कर मेरी चुत में लंड ठोक रह था। इतने में सुरेंदर हाँफते हुए बोला, "आजा अनि़ल! साथ में चोदते हैं इस माँ की लौड़ी तबससुम मैडम को!"
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10-11-2019, 01:15 PM,
#13
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
सुरिंदर की बात मुझे समझ नहीं आयी कि दोनों कैसे एक साथ मुझे चोद सकते हैं। पिछले तीन-चार दिनों में इंटरनेट पे जो मैंने कुछ-एक ब्लू-फिल्में और गंदी तसवीरें देखी थी तो उनके हिसाब से तो मुझे लगा शायद अनिल मेरे मुँह में लंड डाल कर चुसवायेगा। लेकिन जब मुझे उसके हाथ पीछे अपने चूतड़ों पे महसूस हुए और फिर अगले ही लम्हे उसके लंड का सुपाड़ा अपनी गाँड के छेद पे महसूस हुआ तो मेरी साँसें हलक़ में ही अटक गयीं। "हाय अल्लाह! ये कैसे मुमकिन है!" मैं तो ख्वाब में भी इस तरह की चुदाई का तसव्वुर नहीं कर सकती थी।

इससे पहले कि मैं कुछ रद्दे-अमल कर पाती, अनि़ळ ने एक ही धक्के में बेहद बेरहमी से आठ-नौ इंच लंबा अपना तमाम बे-ख़तना लौड़ा मेरी गाँड में अंदर तक पेल दिया। कुछ देर पहले संजय के लौड़े से चुदने के बाद मेरी गाँड खुल तो गयी थी लेकिन अनिल ने जिस बेरहमी से अपना लंड एक बार में पेला और फिर चूत में भी सुरिंदर का मोटा लौड़ा मौजूद होने के वजह से मैं दर्द के मारे ज़ोर से चींख पड़ी, "नहींईईंईंईंईं अऽऽनिलऽऽऽ.... रुक जाओ ओ ओ ओ ओ.... मर गयीईईई...! एक दफ़ा फिर मेरी आँखों में आँसू आ गये। मेरे दोनों स्टूडेंट मिलकर मेरी चूत और गाँड एक साथ चोदने लगे और मैं सुबकती हुई कराहने और चींखने लगी। चारों लड़के कुछ-कुछ तबसीरे कर रहे थे।

गनिमत है कि इस दफ़ा दो-तीन मिनट में ही दर्द का एहसास कम होना शुरू हो गया। मैं सिसकते हुए बोली, "हाय अल्लाह़! तुम लड़कों का दिमाग खराब हो गया क्या... आहहह.... ऊम्म्म ये क्या कर रहे हो... ऐसे भी कोई करता है क्या... ऊँहहह!" इस दोहरी चुदाई में मुझे अजीब सा मज़ा आने लगा था। एक लंड पीछे खिसकता तो दूसरा लंड अंदर फिसलता। गाँड और चूत के दर्मियान की झिल्ली पे मुझे उन दोनों लड़कों के लौड़े आपस में रगड़ते हुए महसूस हो रहे थे। दोनो लड़के वहशियाना जुनून में अपने लौड़े मेरे दोनों छेदों में बेहद तालमेल के साथ चोद रहे थे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि मेरी चूत और गाँड एक हो गयी थीं जिसमें दो अज़ीम लौड़े एक साथ अंदर-बाहर चोद रहे थे। मेरे जिस्म के रोम-रोम में हवस के शोले भड़क रहे थे और बिजली का करंट दौड़ता हुआ महसूस हो रहा था। मेरी मस्ती भरी कराहें उस छोटे से कमरे में गूँजने लगी। ज़िंदगी में मैंने कभी इस कदर लुत्फ़ महसूस नहीं किया था। मेरी चूत ने इस दौरान तीन-चार दफ़ा पानी छोड़ा और फिर दोनों लड़कों ने भी तकरीबन साथ-साथ ही मेरी चूत और गाँड में अपनी-अपनी मनी भर दी।

उसके बाद एक दफ़ा फिर चारों ने अपने-अपने लौड़े मुझसे चुसवाये। उस वक़्त शराब के सुरूर और जिस्मानी लुत्फ़ और सुकून की कैफ़ियत में मैंने अपनी चूत और गाँड में से निकले उनके बेहद नाजिस लौड़े भी खूब शौक़ से मज़े ले कर चूसे। इस दफ़ा चारों ने अपना-अपना रस मेरे मुँह में और चेहरे पर इखराज़ किया।

तब तक शाम हो चुकी थी और मैं बेखुद सी होकर ऊँची ऐड़ी के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी घास के ढेर पे लेटी थी। मैं उनके लौड़ों के रस से भर चुकी थी। लिहाजा अब मुझसे सुबह वाली पर्फ़्यूम की खुशबू नहीं बल्कि शराब और उनके लौड़ों के रस की मस्तानी सी महक आ रही थी। मैं उठ कर अपनी सलवार और कमीज़ की जानिब जाने लगी तो थकान और नशे में ठीक से चल भी नहीं पा रही थी।

"अरे तब्बू मैडम... इतना ज़ोर मत दो... कमर लचक जायेगी... इस हालत में घर कैसे जाओगी... आओ पहले नहला दें तुम्हें!" एक लड़का बोला और मुझे नंगी को ही गोद में उठा के कमरे के बाहर पानी की मोटर के सामने पानी से भरी हौज़ में फेंक दिया। मुझे सैंडल उतारने का मौका भी नहीं दिया उन्होंने। सूरज डूबने से अंधेरा होने लगा था लेकिन आसमान में हल्की सी लाली अभी भी थी। फिर चारों लड़के खुद भी हौज़ में मेरे साथ कूद गये और हम पाँचों दस-पंद्रह मिनट एक दूसरे के साथ छेड़छाड़ करते हुए पानी में नहाते रहे।

जब हम हौद में से नहा कर निकले तो थकान और नशा भी पहले से कम महसूस हो रहा था। चारों लड़कों ने अपने साथ-साथ मेरा जिस्म भी एक तौलिये से पौंछा। उन्होंने खुद अपने कपड़े तो पहन लिये लेकिन मुझे उन्होंने कपड़े पहनने नहीं दिये। मैं खुले खेत में ऊँची पेंसिल हील की सैंडल पहने बिल्कुल नंगी खड़ी थी और हैरत की बात है मुझे ज़रा सी भी शरम महसूस नहीं हो रही थी।

अपने कपड़े पहनने के बाद उनमें से एक लड़का मुझे चूमते हुए बोला, "चलो तबस़्सुम मैडम... अब तुम्हें घर छोड़ दें!" फिर उसने मुझे नंगी को ही गोद में उठा लिया और टाटा सफ़ारी में ले गया। मैंने देखा कि एक लड़का मेरा पर्स और सारे कपड़े इकट्ठे करके ले आया। सब कार में बैठ गये और मेरे घर की जानिब चल पड़े। करीब आधे घंटे का ही रास्ता था। रास्ते में चारों लड़कों ने बारी-बारी अपनी सीट और ड्राइवर बदल-बदल के मुझे खूब चूमा और मसला। मेरी शर्म-ओ-हया तो बिल्कुल काफ़ूर हो ही चुकी थी और मैं सरगर्मी से उनका पूरा साथ दे रही थी और मज़े ले रही थी। उनमें से कोई मेरे गुदाज़ रसीले मम्मों का ज्यादा दिवाना था तो कोई मेरी हसीन गाँड को ज्यादा तवज्जो दे रहा था। एक दिलचस्प बात ये थी कि ऊँची पेन्सिल हील की सैंडल में मेरे खूबसूरत पैरों पे चारों लड़के फ़िदा थे और चारों ने मेरे सैंडलों और पैरों को काफ़ी चूमा चाटा। इस दौरान थोड़ी सी शराब जो बोतल में बाकी रह गयी थी वो भी उन्होंने बातों-बातों में मुझे ही पिला दी।
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10-11-2019, 01:15 PM,
#14
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
रास्ते में एक केमिस्ट की दुकान के करीब कार रोक के एक लड़का उतर कर जल्दी से मेरे लिये 'आई-पिल' की गोली ले आया और बोला कि घर जाते ही मैं वो गोली ले लूँ ताकि प्रेगनन्सी की कोई गुंजाईश ना रहे। उन्होंने मेरे घर से थोड़ी दूर पे कार रोकी और सलवार-कमीज़ पहनने में मेरी मदद की। लेकिन उन नामाकूलों ने मेरी ब्रा और पैंटी नहीं लौटायी। उनमें से एक लड़का बोला, "अरे तब़्बू मैडम जी! ये तो हमारे पास निशानी रहेगी कि हमने हमारी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत, गोरी-चिट्टी और हमारे स्कूल की सबसे स्ट्रिक्ट टीचर तब़स्सुमअख़तर मैडम को जमकर चोदा था! उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुरा दी और फिर अपना दुपट्टा और पर्स लेकर बड़ी बेदिली से कार से उतरी क्योंकि उनके चूमने चाटने और मसलने की वजह से मैं एक दफ़ा फिर बेहद गरम हो चुकी थी।

नशे की हालत में झूमती हुई बड़ी मुश्किल से ऊँची ऐड़ी की सैंडल में चलती हुई मैं घर तक पहुँची। अगर अंधेरा ना हुआ होता और कोई मुझे इस तरह चलते हुए देख लेता तो झट सारा माजरा समझ जाता। हमारे घर 'आख्तर-हाऊज़' के गेट पे एक सिक्युरिटी गार्ड अपनी चौंकी में मौजूद होता है लेकिन किस्मत से उस वक़्त वो शायद खाना खाने चला गया था। घर के अंदर भी एक नौकरानी के अलावा कोई नहीं था और वो भी अपने कमरे में मौजूद थी। घर आते ही मैं एक दफ़ा फिर नहाने के लिये बाथरूम में घुस गयी और फिर कपड़े बदल कर उसे खाना लगाने के लिये आवाज़ दी। खाना खा कर मैंने वो आई-पिल की गोली भी ली। बाद में अपने बेडरूम में लेटी हुई मैं सोचने लगी कि कैसे मेरे लुच्चे कमीने स्टूडेंट्स ने अपनी पिटाई का बदला लेने के लिये अपनी टीचर ही चोद डाली। उनका भी क्या कसूर... जब मैं खुद भी तो अपनी हवस की आग की चपेत में अपने तमाम इखलाक़ भूल कर अपनी इज़्ज़त-आबरू और स्टेटस की भी परवाह किये बिना एक ही दिन में एक साथ कितनी ही हरामकारियों में शामिल हो गयी। मुझे तो ज़िनाकारी और शराब के नाम से भी नफ़रत थी और आज मैंने खुद अपनी रज़ामंदी से शराब के नशे में मस्त हो कर चार-चार नौजवान स्टूडेंट्स के साथ हर किस्म की चुदाई का लुत्फ़ उठाया। लेकिन फिर भी मुझे गुनाह या गिल्ट का ज़रा भी एहसास नहीं हो रहा था बल्कि निहायत सुकून और खुशनुदी महसूस हो रही थी। यही सब सोचते-सोचते मेरी आँख लग गयी। उस रात जैसी गहरी और अच्छी नींद मुझे पहले कभी नही आयी।

उस दिन के बाद तो मेरी ज़िंदगी का रुख ही बदल गया... मेरा जीने का अंदाज़... मेरा नज़रिया बिल्कुल बदल गया और मेरे कदम बस बहकते ही चले गये और मैं निहायत ही चुदक्कड़ और ऐय्याश बन गयी। शराब और सिगरेट भी मामूलन पीने लगी। अगले सात दिन मैं घर में अकेली थी क्योंकि अम्मी और अब्बू अजमेर गये हुए थे। उनकी गैर-मौजूदगी का फ़ायदा उठा कर मैं हर रोज़ स्कूल के बाद शाम के वक़्त चारों स्टूडेंट्स को अपने ही घर पे बुला लेती और कईं घंटों तक उनके साथ शराब के नशे में दिल खोल कर ऐयाशी करती। चारों मिलकर मेरी चूत और जिस्म चूमते चाटते और मुझे खूब मसलते। मैं भी उनके लौड़े मुँह में ले कर चूसती और कभी वो एक-एक करके मेरी चूत चोदते या गाँड मारते और कभी एक साथ दो तो कभी तीन लड़के मेरी चूत और गाँड और मुँह में एक साथ अपने लौड़े डाल कर चोदते। मुझे भी सबसे ज्यादा मज़ा अपनी गाँड और चूत एक साथ दो लौड़ों से चुदवाने में आने लगा। प्रेग्नेन्सी से बचने के लिये मैंने कान्ट्रासेप्टिव पिल्स लेना भी शुरू कर दिया।

वो एक हफ़्ता तो रोज़ शाम को खूब दिल खोल के ऐय्याशी की लेकिन मेरे अम्मी और अब्बू के लौटने के बाद तो हर रोज़ शाम को इस तरह अपने स्टूडेंट्स से मिलना मुमकिन नहीं था। मुझे तो चुदवाने का शद्दीद चस्का लग चुका था। मैं स्कूल की बस से स्कूल जाने की बजाय अब फिर से अपनी स्कोरपियो ड्राइव करके जाने लगी। छुट्टी के बाद चारों लड़के मेरे साथ मेरी स्कोरपियो में घर जाते लेकिन उससे पहले रास्ते में हाइवे से एक सुनसान कच्चे रास्ते से होते हुए हम एक पुरानी खंडहर बनी फैक्ट्री के पीछे कार रोकते और कार में ही मैं नंगी होकर उनसे चुदवाती। हफ़्ते के पाँच दिन इस ज़ल्दबाज़ी की चुदाई के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। शाम को फोन पे उनके सैक्सी मेसेज आते तो मैं भी वैसे ही जवाब दे देती। रात को सोने से पहले इंटरनेट पे पोर्न वेबसाइट देखती या फोन पे उन चारों स्टूडेंट्स के साथ गरम-गरम शहवत-अंगेज़ बातें करते हुए मोटे केले या लंबे बैंगन से खुद-लज़्ज़ती का लुत्फ़ उठाती। उनकी टीचर होते हुए भी उन चारों नालायकों की इंगलिश तो मैं ज्यादा सुधार नहीं सकी लेकिन मैं उनसे गंदी-गंदी गालियाँ और फ़ाहिशी गंदी ज़ुबान ज़रूर सीख गयी। उनके साथ गंदे अल्फ़ाज़ों में बात करने में अजीब-सा लुत्फ़ महसूस होता था और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मेरी ज़ुबान में भी गालियाँ और गंदे अल्फ़ाज़ इस तरह शामिल हो गये कि अब तो किसी से आमतौर पे बातचीत के दौरान मुझे एहतियात बरतनी पड़ती है।

हफ़्ते भर मैं फ्राइडे का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी क्योंकि अगले दो दिन स्कूल की छुट्टी होती थी और फ्राइडे को हम पूरी रात ऐयाशी करते। मैंने अपने घर पे कह दिया था कि हर फ्राइडे को मैं अपनी एक सहेली के घर रुक कर एम-ए की पढ़ाई करती हूँ और वो चारों लड़के तो थे ही आवारा किस्म के। वो भी अपने घरों में कोई ना कोई बहाना बना देते थे। फिर हम संजय के खेत के उसी कमरे में या कुल्दीप के फार्म-हाउज़ पे जहाँ कहीं भी मुनासिब होता वहाँ रात गुज़ारते। मैं शराब पी कर नशे में बदमस्त होकर देर रात तक घंटों उनसे चुदवाती। इन मौकों पर वो मज़दूरों और दूसरे नौकरों को पहले ही फ़ारिग कर देते थे।

इतना चुदवाने के बावजूद मेरी हवस की आग दिन-ब-दिन और ज्यादा बुलंद होती जा रही थी। हर वक़्त मेरे ज़हन में फ़ाहिश और शहवत अंगेज़ तसव्वुरात रहने लगे। स्कूल में भी अपने कमरे में हर रोज़ एक-दो दफ़ा सलवार औए पैंटी नीचे खिसका कर उंगलियों या केले के ज़रिये खुद-लज़्ज़ती कर लेती। अब तब़स्सुम़ अखतर पहले वाली स्ट्रिक्ट टीचर नहीं थी और स्टूडेंट्स की पिटाई करना भी कम कर दिया था। उन चारों लड़कों के लिए तो अब मैं अख़तर मैडम से आमतौर पे भी तब्बू मैम हो गयी थी और अकेले में तो तब्बु जान के अलावा तब्ससुम रंडी... तब्बू डार्लिंग और भी बहोत कुछ नामों से बुलाई जाती। जब उन चारों लड़्कों की क्लास में जाती तो बाकी स्टूडेंट्स से छुपा कर उनके साथ इशारेबाजी करती और दोहरे माइने वाले अल्फाज़ों के ज़रिये उनके साथ मज़ाक और छेड़छाड़ करती थी। आहिस्ता-आहिस्ता मेरी हिम्मत बढ़ने लगी तो बाज़ दफ़ा जब अपनी चुदास पे काबू नहीं रहता तो स्कूल में ही उन चारों में से किसी एक को अपने कमरे में बुला कर चुदवाने का खतरा भी लेना शुरू कर दिया।

अगले दो-ढाई महीने तो ये ही सिलसिला चला। फिर मुझे एक तदबीर नज़र आयी जिससे मैं रोज़ अपने घर में भी शाम को इन लड़कों के साथ चुदाई का मज़ा ले सकूँ। मैंने घर में बताया कि मैं पढ़ाई में कमज़ोर तीन-चार स्टूडेंट्स की मदद करने के लिये उन्हें शाम को घर पे एक-दो घंटे मुफ़्त में ट्यूशन देना चाहती हूँ तो उम्मीद के मुताबिक मेरे अम्मी और अब्बू ने कोई ऐतराज़ नहीं किया और खुशी-खुशी मंज़ूरी दे दी। हमारा बंगला काफी बड़ा है और घर के पीछे वाले लॉन के एक तरफ़ एक छोटा सा बिल्कुल फर्निश्ड गेस्ट-हाऊज़ भी है जिसमें हॉल और एक बेडरूम और अटैचड बाथरूम भी है। ये गेस्ट हॉऊज़ ज्यादातर बंद रहता है और उस तरफ़ कोई जाता भी नहीं है इसलिये अपने स्टूडेंट्स के साथ बिला-परेशानी ऐयाशी करने के लिये वो गेस्ट हाऊज़ सबसे मुनासिब जगह थी।
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10-11-2019, 01:15 PM,
#15
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
शाम को चार से छः बजे के बीच में मैं उन चारों लड़्कों को हर रोज़ ट्यूशन पढ़ाने के बहाने घर पे बुलाने लगी। उस वक़्त आम-तौर पे मेरे वाल्दैन घर पे मौजूद भी नहीं होते हैं और वैसे भी वो मेरे साथ बिल्कुल भी दखल अंदाज़ी नहीं करते हैं। एहतियात के तौर पे नौकरों को भी मैंने हिदायत दे दी कि उस वक़्त कोई मुझे गेस्ट हाऊज़ में डिस्टर्ब ना करे। अब हर रोज़ किसी सुनसान जगह पे कार में जल्दबाज़ी में चुदवाना नहीं पड़ता था और उस गेस्ट-हाऊज़ में मैं उन चारों से हर रोज़ तसल्ली से चुदवाने लगी।

एक दिन स्कूल में सुहाना और फ़ातिमा मेरे कमरे में आयी और बोलीं, "तब़्बू मैडम हमें आपसे शिकायत करनी है!" मैंने तंज़िया अंदाज़ में उन्हें कहा, "अब ये कौनसा नया नाटक है तुम दोनों का... मुझे सब खबर है तुम दोनों क्या-क्या गुल खिलाती हो!"

फ़ातिमा बेबाकी से बोली, "आप भी तो वही सब गुल खिला रही हो तब्बस्सुम मैडम! और हम आपके पास आपकी ही शिकायत ले कर आयी हैं!" फात़िमा का उल्टा तंज़िया जवाब कर सुनकर मेरे गाल सुर्ख हो गये लेकिन मैंने फिर कड़कते हुए पूछा, "तमीज़ में रहो तुम दोनों और अपने काम से काम रखो! जो भी मसला है जल्दी बोलो... मेरे पास वक़्त नहीं है ज्यादा!"

सुहाना बोली, "मैडम मसला ये है कि इन दिनों आपके पास उन लड़कों के लिये कुछ ज्यादा ही वक़्त है... पता नहीं आपने उन पर क्या जादू कर दिया है कि हमें तो तवज्जो ही नहीं देते वो चारों!"

मैं तुनकते हुए बोली, "तो मैं इसमें क्या कर सकती हूँ? मुझसे क्या चाहती हो तुम दोनों!" इस दौरान दोनों लड़कियाँ जो मेज के दूसरी तरफ़ खड़ी थीं अब मेरी कुर्सी के करीब आ गयी थीं। फति़मा झुक कर मेरे कान के नीचे चूमते हुए बोली, "हमें भी अपने साथ शामिल कर लो ना त़बस्सूम मैडम! आप अकेली ही उन चारों के लौड़ों से चुदवा कर ऐश करती हो... ये तो गलत बात है ना!" दूसरी तरफ़ से सुह़ाना भी मेरा गाल चूमते हुए बोली, "हाँ तब़्बु मैडम! मिल कर चुदाई करेंगे तो ज्यादा मज़ा आयेगा और हमारा दिल तो आप पर भी आ गया है... यू आर सो सैक्सी!" उसने मेरे कान को हल्के से अपने दाँतों से कुतरते हुए मेरे मम्मे को अपने हाथ में भरके दबाया तो मेरे होंठों से सिसकी निकल गयी।

आहिस्ता-आहिस्ता दोनों लड़कियाँ जबरदस्ती मेरे होंठ और गर्दन चूमती हुई मेरे कपड़ों के ऊपर से ही मेरा जिस्म मसलने लगीं। उनकी हरकतों से मुझ पे भी हवस का नशा छाने लगा और मैं उन्हें रोकने की कोई कोशिश नहीं की। उन दोनों ने मेरे कपड़े उतार दिये और खुद भी अपनी यूनिफॉर्म उतार कर नंगी हो गयी और फ़ातिमा नीचे बैठ कर मेरी चूत चूमने और चाटने लगी और सुहाना मेरे मम्मों को मसलते हुए उन्हें चूमने लगी। अगले आधे घंटे उन दोनों लड़कियों ने लेस्बियन चुदाई के मुखतलिफ़ और बेइंतेहा लुत्फ़ से वाकिफ़ करवाया। उस दिन के बाद सुह़ाना और फातिमा भी हफ़्ते में एक-आध दफ़ा मेरे साथ मिलकर उन लड़कों से चुदवाने लगी। इसके अलावा उनके साथ लेस्बियन चुदाई में भी मुझे बेहद मज़ा आता था।

इससे पहले मैंने हमेशा इन दोनों को स्कूल युनिफॉर्म में ही देखा था लेकिन जब वो स्कूल के बाहर फेशनेबल कपड़े और सैंडल पहन के और मेक-अप करके आती तो बेहद सैक्सी और ज्यादा मच्योर भी नज़र आती थी। दोनों अमीर घरानों की बेहद बिगड़ी हुई लड़कियाँ थीं और उन से ही मुझे पता चला कि दोनों का एक-एक दफ़ा अबॉर्शन तक हो चुका था। अब तो वो मेरी स्टूडेंट्स कम और सहेलियाँ और मेरी राज़दार ज्यादा बन गयी थीं।

मेरी हवस और चुदाई-परस्ती में रोज़-बरोज़ इज़ाफ़ा होता चला गया। हालत ये हो गयी कि हर वक़्त लुत्फ़े-चुदाई की मुस्तक़िल तलब रहने लगी और मैं निहायत सैक्साहोलिक बन गयी। चुदाई से मेरा दिल ही नहीं भरता और हर वक़्त ज़हन में और जिस्म पे शहूत सवार रहने लगी। कुछ ही महीनों में मेरी ऐय्याशियों का दायरा भी तेज़ी से बढ़ने लगा। उन चारों लड़कों ने स्कूल में और दुसरे तीन-चार जूनियर स्टूडेंट्स से मेरी जान-पहचान करवायी जिन्हें पहले चुदाई का तजुर्बा भी नहीं था। इन लड़कों को चुदाई का सबक सिखा कर उनके कुंवारे वर्जिन लौड़ों से चुदने में इस कदर बे-इंतेहा मज़ा आया कि मैं बयान नहीं कर सकती।
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10-11-2019, 01:15 PM,
#16
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
फिर वो चारों लुच्चे लड़के और वो दोनों चुदैल लड़कियाँ भी साल भर पहले मेरी नाजायज़ मदद से जैसे तैसे बारहवीं क्लास पास कर ही गये। उसके बाद अपने सबसे अज़ीज़ इन चारों लड़कों से रोज़-रोज़ चुदवाने का सिलसिला खतम हो गया। सन्जय और कुलद़ीप ने तो करीब ही गाज़ियाबाद के एक प्राइवेट आर्ट्स कॉलेज में दाखिला ले लिया जिस वजह से रोज़-रोज़ ना सही लेकिन कमज़-कम हर फ्राईडे को तो पहले की तरह उनके खेत या फिर फार्महाउज़ पे सारी-सारी रात उन दोनों के साथ चुदाई और ऐय्याशियाँ ज़ारी रही। बाकी दोनों लड़कों में से एक रोहतक और दूसरा कानपूर चला गया इसलिये इन दोनों से चुदवाने का सबब तो तभी हो पाता है जब कभी ये किसी वीकेन्ड या छुट्टियों में घर आते हैं। फ़तिमा और सुह़ाना से तो ताल्लुकात बिल्कुल खतम हो गये क्योंकि एक भोपाल में है और दूसरी बरेली में।

खैर मैं तो निहायत लंडखोर बन चुकी थी तो मैंने दसवीं से बारहवीं क्लास के नये-नये लड़कों को अपने हुस्न और अदाओं से फुसला कर उनके वर्जिन लौड़ों से चुदवाना शुरू कर दिया। शुरू-शुरू में तो नये लड़कों को यकीन ही नहीं होता कि ऊपर से इतनी शरीफ और मुतमद्दिन या सफिस्टिकेटिड नज़र आने वाली उनकी इंगलिश की टीचर 'तबस्सुम अखतर' हकीकत में दो टके की रंडियों की तरह गंदी-गंदी गालियाँ बकने वाली और बेहद फ़ाहिश ज़ुबान में बोलने वाली पियक्कड़ और बेहद ऐय्याश और चुदक्कड़ औरत है। वक़्त के साथ-साथ मैं नये-नये लड़्कों को फुसला कर उन्हें इब्तेदायी शर्म और खौफ़ या झिझक से निज़ात दिलाने में भी बेहद माहिर हो गयी।

उन चार लड़कों के अलावा अब तक करीब पच्चीस-छब्बीस वर्जिन स्टूडेंट्स को मैं हवस का शिकार बना कर अपने हुस्न का गुलाम बना चुकी हूँ। इन सभी नौजवान लड़कों को उनकी ज़िंदगी में चुदाई के लुत्फ़ से मैंने ही वाकिफ़ करवाया है। एक किस्म से मैंने इन स्टूडेंट्स के ज़रिये अपने लिये पर्सनल हरम बना रखा है और किसी मल्लिका की तरह मैं अपनी बेइम्तेहा जिन्सी हवस की तस्कीन के लिये इन लड़कों का हर तरह से इस्तेमाल करती हूँ। इन लड़कों पे मेरा पूरा इख्तियार है और मैं जब और जहाँ और जैसे भी चाहती हूँ ये मेरे हुक्म की तामिल करते हुए मुझे चोदने के लिये तैयार रहते हैं।

अब तो आमतौर पे दिन भर में कईं - कईं लड़कों से चुदवाये बगैर मुझे करार नहीं होता। स्कूल में जो मेरे तीन-चार खाली पीरियड्स होते हैं और लंच टाइम में भी मैं हमेशा अपने कमरे में किसी ना किसी स्टूडेंट से अपनी चूत या गाँड चुदवाना शुरू कर दिया। फिर स्कूल की छुट्टी के बाद भी किसी मुनासिब सुनसान जगह पे अपनी स्कोर्पियो की पिछली सीट पे एक-दो स्टूडेंट्स से चुदवाने के बाद ही घर जाने लगी। फिर हर रोज़ शाम को मैं पाँच-छः लड़कों के ग्रुप को ट्यूशन के बहाने घर पे बुलाकर उनसे गेस्ट हाऊज़ में दो-दो घंटे चुदवाने का सिलसिला शुरू हो गया। इन में से किसी भी लड़के का लंड जसामत में तो उन चारों के लौड़ों के मुकाबले का नहीं है लेकिन ये कमी इन कम्सिन लड़कों की तादाद और इनके जोश-ओ-जुनून से पूरी हो जाती है। हर रोज़ मुख्तलिफ पाँच-छः स्टूडेंट्स का एक ग्रुप मुझसे चुदाई की ट्यूशन पढ़ने आता है। घर के पीछे वो गेस्ट हाऊज़ मेरी ऐय्याशियों का अड्डा... मेरी ऐश-गाह ही बन गया है जहाँ मैं बिला रोकटोक के शराब पी कर खूब मस्ती में इन लड़कों से ग्रुप में चुदवाती हूँ। इस दौरान पिछले दस-बारह महीनों से मेरे अब्बू की पॉलीटिक्स में मसरूफ़ियत ज्यादा बढ़ने की वजह से अब्बू और अम्मी का लखनऊ आना-जाना काफी बढ़ गया है जिससे अब मैं अक्सर घर पे अकेली होती हूँ। ।

प्रेग्नेन्सी से बचने के लिये शुरू-शुरू में तो पिल्स लेती थी लेकिन अब दिल्ली में अपनी गाइनकालजिस्ट से हर तीसरे महीने कोन्ट्रासेप्टिव का इंजेक्शन लगवा लेती हूँ। इस इंजेक्शन का एक और अहम फायदा ये भी हुआ कि अब पीरियड्स हर महीने की जगह साल में तीन-चार दफ़ा ही आते हैं। इंजेक्शन लगवाने के साथ-साथ गाइनकालजिस्ट से बाकी चेक अप भी बाकायदा हो जाता है जिस वजह से उन्हें भी मेरी गैर-मामूली तौर पे फआल चुदास ज़िंदगी का इल्म है।

फति़मा और सुह़ाना की खासतौर पे कमी महसूस होती है क्योंकि उनके जाने के बाद लेस्बियन लज़्ज़त का मुनासिब और माकूल ज़रिया मुझे नहीं मिला। बारहवीं क्लास की जवान और बड़ी दिखनी वाली दो-तीन खूबसूरत लड़कियों को अपने रौब के दम पर उन्हें फुसला कर उनके साथ तीन-चार दफ़ा लेस्बियान चुदाई की तो सही लेकिन मुझे वैसी लज़्ज़त महसूस नहीं हुई जैसी फात़िमा और सूहाना के साथ लेस्बियन चुदाई में होती थी। एक तो इन लड़कियों में कुछ खास जोशो-खरोश नहीं था और मुझे महसूस हुआ कि जैसे ये लड़कियाँ महज़ मेरे दबाव में मेरे साथ लेस्बियन चुदाई में शरीक हुई थीं। दूसरे ये कि मुझे खुद को भी ज़रा मच्योर और पुर-शबाब लड़कियाँ ज्यादा पसंद हैं जबकि लड़कों के मामले में इससे मुख्तलिफ़ मैं कम्सिन लड़कों की दिवानी हूँ। खैर अपनी लेस्बियन हसरतें पूरी करने के लिये फिलहाल मैंने दूसरा ज़रिया ढूँढ लिया है। हर महीने एक-आध मर्तबा जब भी शॉपिंग वगैरह के लिये मैं दिल्ली जाती हूँ तो वहाँ की एक एस्कॉर्ट एजन्सी के ज़रिये होटल के कमरे में रात भर लेस्बियन कॉल गर्ल्स के साथ ऐयाशी कर लेती हूँ। दस से बीस हज़र रुपये में रात भर के लिये देसी या परदेसी हाई-क्लॉस कॉल गर्ल्स मिल जाती हैं।
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10-11-2019, 01:15 PM,
#17
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
शराब सिगरेट भी खूब पीने लगी हूँ। दिन भर में छुपछुपा के स्कूल में और अपने घर में भी कमज़ कम पंद्रह सिगरेट और रोज़ाना शाम को दो-तीन घंटों में लड़कों के साथ चुदाई के दौरान एक पव्वा तो अमूमन पी जाती हूँ। दरसल मुझे नशा जल्दी चढ़ जाता है लेकिन एक पव्वे में बदमस्त सी खुमारी के बावजूद भी मैं इतने होशो हवास में तो रहती हूँ कि ऊपर से नॉर्मल नज़र आती हूँ। वैसे जब मैं फ्राइडे रात को घर से बाहर ऐयाशी करती हूँ या फिर कईं दफ़ा जब कभी अम्मी और अब्बू शहर से बाहर होते हैं तो जरूर दिल खोल के खूब शराब पीती हूँ। ऐसे मौकों पे ज्यादा शराब पी कर कईं दफ़ा तो बेहद टुन्न भी हो जाती हूँ और कईं दफ़ा अगले दिन सुबह सिर भी दुखता है लेकिन मेरी एक खासियत ये है कि मैं कितनी भी शराब पी लूँ लेकिन अल्लाह़ का फज़ल है कि उसकी वजह से कभी भी उल्टी वगैरह आज तक नहीं हुई।

सैक्साहोलिक होने के साथ-साथ मैं बेहद पर्वर्टिड भी हो गयी हूँ। हर मुख्तलिफ़ किस्म की वाहियात और फ़ासिद चुदाई का लुत्फ़ आज़माने के लिये हमेशा तैयार रहती हूँ। मिसाल के तौर पे शराब पी कर एक साथ कईं-कईं लड़कों के साथ ग्रुप-सेक्स करना और अपनी चूत और गाँड में एक साथ दो-दो लौड़ों से चुदते हुए तीसरा लंड मुँह में लेकर चूसना या आम खुली पब्लिक जगहों पे चुदाई करना और चुदाई के दौरान अलग-अलग किस्म के किरदार निभाना (रोल-प्ले करना) और लड़कों के साथ अपने गुलामों जैसा सुलूक करना और उनसे अपने सैंडल चटवाने जैसी हरकतों के अलावा लड़कों के पेशाब में भीगना और उनका पेशाब पीना, लड़कों की गंदी गाँड चाटना वगैरह मेरी बदकारियों के बेहद मामूली और अदना से अक़साम हैं। दर असल मैं जिन्सी बेराहरवियों में इस कदर हद से ज्यादा मुब्तिला हो चुकी हूँ कि अब तो मैं जानवरों तक से बाकायदा चुदवाने लगी हूँ और पिछले एक साल से मैं कुत्ते, बकरे, गधे, बैल और घोड़ों से चुदवाने का शदीद मज़ा ले रही हूँ।

करीब एक साल पहले का वाकिया है। मैं हफ़्ता-वार फ्राइडे रात को कुलद़ीप के आलीशान फ़ार्महाउज़ पे उन ही चारों लुच्चे लड़कों के साथ खूब ऐयाशी कर रही थी। इत्तेफ़ाक से उस दिन संजेय की सालगिरह भी थी। आधी रात तक मैं उन चारों के लौड़ों को कमज़-कम तीन-तीन दफ़ा अपनी चूत या मुँह या गाँड में बिल्कुल निचोड़ कर उन्हें पस्त कर चुकी थी और मज़ीद एक-दो घंटे तो उनसे चुदाई की कोई उम्मीद नहीं थी। मैं खुद भी उनसे चुदाई के दौरान ना मालूम कितनी दफ़ा झड़ते हुए लुत्फ़ अंदोज़ हो चुकी थी लेकिन मेरी शहूत कम नहीं हुई थी और मेरी बदकार चूत मज़ीद चुदाई की मुशताक़ थी। वो चारों लडके बड़े हॉल में ही एक तरफ़ सोफ़े पे आधे नंगे बैठे टीवी पे कोई मैच देखने लगे जबकि मैं कालीन पे महज़ ऊँची पेन्सिल हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी पसरी हुई उन लड़कों के लौड़े जल्दी ताज़ादम होने की उम्मीद में अपनी चूत सहला रही थी। मैं शराब के नशे में भी बेहद मस्त थी और मदहोशी और हवस के आलम में मुझे अपनी शहूत पूरी करने के अलावा किसी बात का होश या फ़िक्र नही थी। बस ये ही आरज़ू थी कि फिर से मेरी चुदाई शुरू हो जाये और मैं तमाम रात मुसलसल चुदती रहूँ। इसी फ्रस्ट्रेशन और तड़प में मैं अपनी चूत सहलाती हुई उन नामुराद स्टूडेंट्स को बीच-बीच में बड़बड़ा कर ताने और गालियाँ बक देती थी लेकिन उन नामाकूलों को मेरी हालत पे ज़रा भी तरस नहीं आ रहा था। बल्कि वो तो हंसते हुए बोले कि, "अरे चूतमरानी तब़्बू मैडम! साली तेरा दिल कभी चुदाई से भरता है कि नहीं है... हमें क्या चुदाई की मशीन समझ रखा है... थोड़ी देर सब्र कर चुदासी कुत्तिया... खूब चोदेंगे तुझे तब़्बू जान लेकिन दम तो लेने दे हमें!"

"भाड़ में जाओ साले मादरचोदों!" मैंने भी ज़रा चिढ़ते हुए उन्हें गाली दी और अपनी बेकरार चूत के लुत्फ़ो-सुकून के लिये मुश्त ज़नी ज़ारी रखी। इसी तरह एक हाथ से अपने फूले हुए बाज़र (क्लिट) को इश्तिआल करती हुई मैं मस्ती में दूसरे हाथ की दो उंगलियाँ अपनी चूत में ज़ोर से अंदर-बाहर कर रही थी और झड़ने के करीब ही थी जब मुझे अपने नज़दीक कुछ हरकत महसूस हुई। मैंने आँखें खोल के देखा तो कुळदीप का पालतू डॉबरमैन कुत़्ता, प्रिंस मेरे इर्द गिर्द मंडरा रहा था। मुझे उससे कोई खौफ़ नहीं था क्योंकि वो अक्सर फार्महाउज़ पे मौजूद होता था और वो भी मुझसे वाक़िफ़ था। उसकी मौजूदगी को नज़र-अंदाज़ करते हुए मैंने खुद-लज़्ज़ती ज़ारी रखी लेकिन कुछ ही लम्हों में मुझे अपनी चूत पे उसकी गरम साँसें महसूस हुई तो मैंने फिर आँखें खोल के उसे देखा। "या अल़्लाह! इस कुत्ते को भी मेरी चूत चहिये क्या!" मैंने मज़ाक में अपने दिल में सोचा लेकिन अगले ही पल जो हुआ उसने तो मुझे बेहद चुदक्कड़ और हवस-परस्त होने के बावजूद भी बदहवास कर दिया। उस कुत्ते़ ने अपनी लंबी सी ज़ुबान मेरी चूत के लबों पे फिरा दी। उसकी ज़ुबान का लम्स महसूस करते ही एक पल के लिये तो मेरी साँस ही रुक गयी... किसी खौफ़ या नफ़रत की वजह से नहीं बल्कि इसलिये कि ये बेहद लुत्फ़ अंदोज़ एहसास था। उसने फिर से अपनी ज़ुबान तीन-चार मर्तबा मेरी चूत पे फिरायी तो मेरी चूत ने वहीं पानी छोड़ दिया।
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10-11-2019, 01:16 PM,
#18
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
प्रिंस ने मेरी चूत चाटना ज़ारी रखा और मेरी चूत उसके एहसास से बिलबिलाने लगी। नशे और मस्ती में मेरी टाँगें खुद-ब-खुद उसकी काबिल ज़ुबान का और ज्यादा मज़ा लेने की तलब में फैल गयीं। वो भी अब पूरे जोश में अपनी ज़ुबान मेरी चूत में घुसा-घुसा कर चाटने लगा। उसकी ज़ुबान की लम्बाई का मुकाबला किसी मर्द के लिये मुमकिन नहीं था। उस कुत्ते की ज़ुबान मेरी चूत के अंदर उन हिस्सों तक दाखिल हो रही थी जहाँ पहले कभी किसी भी ज़ुबान का लम्स नहीं हुआ था। मैं बेहद मुश्तैल हो चुकी थी और मेरी साँसें बे-रब्त होने लगी। जब उसकी ज़ुबान खून से लबालब फुले हुए मेरे बाज़र पे सरकती तो साँस हलक़ में अटक जाती। थोड़ी सी देर में मेरी चूत इस कदर लुत्फ़-अंदोज़ हो के झड़ने लगी कि मैं बयान नहीं कर सकती। मैं इतनी ज़ोर से चींखी कि मेरे चारों स्टूडेंट्स मैच छोड़ कर हैरत से मेरी जानिब देखने लगे।

चारों लड़के दूर सोफ़े से उठ कर मेरे नज़दीक आ गये और मेरा मज़ाक बनाने लगे। "वाह तब़स्सुम मैडम जी! और कोई तरीका नहीं मिला जो कुत्ते से ही चूत चटवाने का मज़ा लेने लगी!" "साली ठरकी तब़्बू मैडम... तुमने तो हद ही कर दी!" "कमाल की चुदक्कड़ी छिनाल है हमारी मैडम!" वो कुत्ता अभी भी मेरी चूत चाटने में लगा हुआ था और मैं कालीन पे टाँगें फैलाये नंगी पसरी हुई झड़ने की बेखुदी के एहसास का मज़ा ले रही थी। मैंने अपने स्टूडेंट्स की तंज़िया बातों का ज़रा भी बुरा नही मनाया। मेरा उनसे रिश्ता था ही ऐसा कि आपस में इस तरह के मज़ाक और गंदी गालियाँ आम बात थी। मुझे सिर्फ़ उनकी कभी-कभार मज़हबी गालियाँ पसंद नहीं थी। मैंने भी पलट कर जवाबे-तल्ख दिया, "भोसड़ी के चूतियों... साले तुम मादरचोदों से तो ये कुत्ता बेहतर है... हारामखोरों... तुम चारों लौड़ू तो बीच में ही मैदान छोड़ कर भाग गये मुझे तड़पते हुए छोड़ के... तब इस कुत्ते ने मेरे अपनी ज़ुबान से मेरी चूत चाट कर मुझे बेइंतेहा लुत्फ़-अंदोज़ किया... ही इज़ द रियल स्टड!"

"इतना ही प्यार आ रहा है प्रिंस पर तो त़ब्बू मैडम जी इसी से चुदवा भी क्यों नहीं लेती!" कुलद़ीप मुझे ललकारते हुए बोला तो बाकी तीनों ने भी अपने दोस्त की हिमायत की। अब तक ये बात मेरे ज़हन में आयी नहीं थी। मैंने एक नज़र कुत्ते की जानिब देखा जो अभी भी मेरी चूत पे जीभ फिराते हुए उसमें से इखराज हुआ पानी चाट रहा था। पहली दफ़ा मेरी नज़र कुत्ते के लंड पे पड़ी। सुर्ख रंग की गाजर जैसा लंड काले खोल में से आधा निकला हुआ बेहद दिलकश और हवस अंगेज़ था। इतने में उन लड़कों ने फिर हंसते हुए कहा, "क्या हुआ भोंसड़ी की मादरजात मैडम... क्या सोच रही है... फट गयी ना गाँड... बोल है हिम्मत प्रिंस से चुदवाने की... उसकी कुत्तिया बनने की!"

शराब का नशा और शहूत मेरे ऊपर इस कदर परवान चढ़ी हुई थी कि उस वक़्त मैं किसी से भी चुदवाने को तैयार थी। मुझे तो लंड से मतलब था जो मुझे जम कर चोद सके... फिर वो चाहे इंसान का लंड हो या किसी जानवर का। वैसे भी मुझे इंटरनेट पे पोर्न वेबसाईट देखने का बेहद शौक लग चुका था जिसकी बदौलत मैंने जानवरों के साथ औरतों की चुदाई की तस्वीरें देख रखी थीं और किस्से-कहानियाँ भी पढ़ रखी थीं। कईं दफ़ा मैंने खुद-लज़्ज़ती के वक़्त जानवरों से चुदवाने का तसव्वुर भी किया था और आज तो खुदा ने मुझे हकीकत में ये नायाब वहशी चुदाई का बेहतरीन मौका बख्शा था तो इसे गंवाने का तो सवाल ही मुमकिन नहीं था। इसके अलावा मैं उन लड़कों को भी हैरत-अंगेज़ कर देना चाहती थी। अपनी टीचर की कुत्ते से चुदाई पर उनका क्या रद्दे-अमल होगा... ये ख्याल भी मेरी शहूत और ज्यादा बढ़ा रहा था।

"ऊँऊँहह हाँऽऽऽ भैन के लौड़ों.... आआहऽऽऽ देखो कैसे ये मेरी चूत चाटे जा रहा अपनी मस्त ज़ुबान से.... मैं तो बेकरार हूँ इसके लंड से चुदवाने को! देखो मादरचोदों ... तुम्हारी छिनाल चुदैल टीचर कैसे रात भर इस कुत्ते से चुदाई का मज़ा लेती है...!" ये बोलते हुए मैं नीचे हाथ बढ़ा कर प्रिंस का सिर सहलाने लगी।

"जोश-जोश में कोई काँड ना कर बैठना मैडम जी! सोच लो फिर से... हम तो मज़ाक कर रहे थे!" मुझे कुत्ते से चुदाई के लिये आमादा देख कर संज़य मुझे आगाह करते हुए बोला। चारों लड़कों को मुतरद्दिद हालत में देख कर मुझे बेहद मज़ा आया।

"क्यों मादरचोदों... फट गयी ना गाँड... लेकिन मैं तुम चूतियों की तरह मज़ाक नहीं कर रही... ऑय एम सीरियस... मैं इसका लंड भी चूसुँगी... और फिर इससे अपनी चूत भी चुदवाऊँगी... लेकिन पहले मुझे एक सिगरेट और पैग तो पिलाओ और फिर देखो कुत्ते से मेरी शानदार चुदाई के मस्त जलवे!"

एक लड़के ने गिलास में शराब और सोडा डाल कर तगड़ा पैग बना कर मुझे दिया और दूसरे ने सिगरेट दी। मैं दिवार के सहारे पीठ टिका कर बैठ के सिगरेट के कश लगाते हुए पैग पीने लगी। वो कुत्ता अभी भी कभी मेरी रानों के बीच में मुँह घुसेड़ कर भीगी चूत चाटने लगता तो कभी रिरियाते हुए मेरी टाँगों और सैंडलों को अपनी ज़ुबान से चाटने लगता। काले खोल में से लिपस्टिक की तरह निकले हुए उसके दिलफ़रेब नोकीले सुर्ख लंड को देख कर उससे चुदने की तवक्को में मेरे तमाम जिस्म में सिहरन सी दौड़ रही थी और चूत में भी चुलचुलाहट उठ रही थी। मैंने जल्दी से शराब और सिगरेट ख़तम की और आगे झुक कर बड़े प्यार से उसकी पीठ सहलाते हुए अपना हाथ नीचले हिस्से पे ले जाकर उसका पेट सहलाने लगी। वो चारों लड़के सामने सोफ़े और कुर्सियों पे बैठे अपनी टीचर को बदकारियों की तमाम हद्दें पार करते हुए देख रहे थे लेकिन मुझे इस वक़्त उनमें ज़रा भी दिल्चस्पी और गरज़ नहीं थी।
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10-11-2019, 01:16 PM,
#19
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
मैं अपने नर्म हाथों से उसके लंड के खोल को और उसमें से निकली हुई गाजर को आहिस्ता-आहिस्ता सहलाने लगी जिससे उसकी सुर्ख गजार ज्यादा लंबी और फूलने लगी। कुत्ते के लंड को इश्तिआल करते-करते मेरी खुद की चुदास भी परवान हुई जा रही थी। मैंने गौर किया कि उसके लंड को मुश्तैल करने से उसमें से मुसलसल लेसदार रक़ीक़ पानी निकल रहा था। मुझे एहसास था कि ये उसकी मज़ी है लेकिन उसकी मिक़दार से लग रहा था जैसे कि बे-मियादी सप्लाई हो। मैं जितना उसके लंड को मुश्तैल करती वो लंड उतना ही बड़ा होता जा रहा था। जल्दी ही वो करीब आठ-नौ इंच लंबा हो गया और उसकी जड़ में एक गोल गाँठ सी बनने लगी थी। कुत्ते के फूले हुए लंड में से अब भी लेसदार मज़ी निकल कर बह रही थी जिसे देख कर मेरे मुँह में पानी आ गया और मैंने नीचे झुक कर आहिस्ता से उसका लंड अपने मुँह में ले लिया। शायद अपनी फ़ितरत-ए-अमल की वजह से... लेकिन वो कुत्ता फ़ौरन अपना लंड मेरे मुँह में आगे-पीछे चोदने लगा। उसकी रक़ीक़ मज़ी मेरे मुँह में मुसलसल रिस रही थी जिसका तल्ख-शीरीन सा मुख्तलिफ़ ज़ायका बेहद लज़्ज़त-अमेज़ था।


मेरी खुद की चूत में हवस के शोले दहक रहे थे और खुद के रस में बुरी तरह भीग गयी थी। मुझे अपनी चूत में से रस निकल कर रानों पे बहता हुआ महसूस हो रहा था। अगरचे उसका लंड चूसने में मुझे निहायत मज़ा आ रहा था लेकिन मेरी चूत के सब्र की भी हद हो गयी थी और मेरा बाज़र (क्लिट) भी फूल कर बिल्कुल सख्त हो गया था। मैं अब उसका लंड अपनी चूत में लेने के लिये बेहद बेकरार हो चुकी थी।

उसका लज़ीज़ लंड अपने मुँह से निकाल कर मैं फौरन अपने घुटने और हाथों के बल कुत्तिया की तरह झुक गयी और उसकी जानिब गर्दन घुमा कर बेकरारी से अपने चूतड़ हिलाते हुए बोली, "ऊँह कम ऑन प्रिंस.... आ जल्दी से चोद दे मुझे....बुझा दे मेरी चूत की आग अपने बेमिसाल लौड़े से!"

वो भी इशारा समझ गया और लपक कर मेरे पीछे आ गया और मेरी चूत सूँघने और चाटने लगा। इस दौरान मैंने एक नज़र उन चारों लड़कों पे डाली जो हैरान-कुन और बड़ी दिल्चस्पी से अपनी हवसखोर चुदक्कड़ टीचर की लुच्ची हर्कतों का तमाशा देख रहे थे जो शराब और हवस के नशे में चूर हो कर महज़ हाई हील के सैंडल पहने बिल्कुल नंगी कुत्तिया की तरह झुकी हुई एक कुत्ते से अपनी चूत चोदने के लिये मिन्नतें कर रही थी। सच कहूँ तो उस वक़्त मुझे ज़रा सी भी शर्मिंदगी महसूस नहीं हो रही थी और उस कुत्ते से चुदने का फ़ितूर सा सवार था। मैं उन चारों से मुखातिब होकर उन्हें लानत भेजते हुए बोली, "देखो मादरचोदों... अब मैं तुम्हारे नामाकूल लौड़ों की मोहताज़ नहीं हूँ... तुम चारों से तो अब ये कुत्ता बेहतर चोदेगा मुझे...!" फिर बेसब्री से अपने चूतड़ जोर से हिलाते हुए कुत्ते से बोली, "आ जा चोद दे अपनी कुत्तिया को... मेरी चूत बेकरार है तेरे लौड़े से चुदने के लिये... कम बेबी... फक एंड सैटिस्फाइ मॉय पुस्सी!"

मेरी भीगी चूत को तीन-चार दफ़ा अपनी ज़ुबान से चाटने के बाद उसने कूद कर मेरी कमर पे सवार होने की कोशिश की लेकिन अपने ऊँचे कद की वजह से नाकामयाब रहा। उसके कद की बराबरी के लिये मैंने अपनी कमर और गाँड ज़रा ऊपर उठा दिये तो वो दूसरी छलाँग में अपनी अगली टाँगें मेरे कंधों पे डाल कर मेरी कमर पे बखूबी सवार हो गया और फ़ौरन फ़ितरती तौर पे अपनी मंज़िले-मक़सूद ढूँढने के लिये मेरी रानों के दर्मियान बे-इख्तियार लंड आगे पीछे ठेलने लगा। उसके लंड की सख्ती और हरारत महसूस करते ही मेरी रानें थरथरा गयीं और पूरे जिस्म में मस्ती भरी लहर दौड़ गयी। उसकी लेसदार मज़ी मुसलसल मेरी रानों और चूतड़ों पे छलक रही थी। वो अपना लंड मेरी चूत में घुसेड़ने के लिये ज़ोर-ज़ोर आगे-पीछे ठेल रहा था लेकिन हर दफ़ा चूक जाता था। उसके लंड की सख्त हड्डी मेरी रानों और चूतड़ों पे जोर से ठोकर मार-मार के गढ़ रही थी। उनमें से कुछ ठोकरें दर्दनाक भी महसूस हो रही थीं और मेरे सब्र की भी इंतेहा हो गयी थी।
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10-11-2019, 01:16 PM,
#20
RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
मेरी चूत बेहद बेकरार थी चुदने के लिये और मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने अपना हाथ अपनी रानों के दर्मियान पीछे ले जा कर उसका गर्म फ़ड़फड़ाता लंड पकड़ लिया। उसके लंड के कुछ ही पलों में अपनी चूत में घुसने की उम्मीद में मेरा जिस्म उसकी तलब की मस्ती में थरथराने लगा। मैंने अपने हाथ से उसके लंड की मक़सूद जगह रहनुमायी कर दी जहाँ मुझे उसकी निहायत ज़रूरत थी और वो भी जहाँ पहुँचने की तलब में फड़फड़ा रहा था। मैंने अपनी चूत के लबों के दर्मियाँ उसका लंड ज़रा सा अंदर घुसेड़ कर छोड़ दिया। अपने लंड पर मेरी चूत की तपिश और गीलापन महसूस होते ही वो फोरन समझ गया कि उसे क्या करना है। उसने दो-तीन धक्कों में पूरा लंड मेरी चूत में ठेल दिया।

उसके अजीबो-गरीब जसीम लौड़े को मेरी चूत में दाखिल होने में कोई खास तकलीफ नहीं हुई। वैसे भी मैं तो खूब चुदी-चुदाई थी और कुल्दीप और संजेय के दस-ग्यारह इंच लंबे और मोटे लौड़े लेने की आदी थी। एक दफ़ा अपना लंड अंदर ठेल कर फिर तो उस कुत्ते ने पुरजोश तुफ़ानी रफ़्तार से मेरी चूत में लंड पेलना शुरू कर दिया। कुत्ते की चुदाई में मुख्तलीफ़ बात ये थी कि मेरी चूत में घुसते ही उसके लंड ने मेरी चूत के अंदर मुसलसल गरम लेसदार मज़ी छिड़कनी शुरू कर दी थी जो आग में घी के जैसे मेरी चुदास और ज्यादा भड़का रही थी। वो हुमच-हुमच कर पूरी शिद्दत से मुझे चोद रहा था। मैं भी मस्ती में चूर जोर-जोर से "आँहह... ऊँहह... चोद... आँहह" करती हुई मुसलसल सिसकने लगी। इतने में मुझे एहसास हुआ कि उसका लौड़ा इस दौरान आहिस्ता-आहिस्ता मेरी चूत में पहले से भी ज्यादा फूलता जा रहा था। मुझे अपनी चूत मुकम्मल तौर पे उसके लंड से बुरी तरह ठसाठस भरी हुई महसूस होने लगी। इस दौरान ज़रा सी देर में ही मैं एक के बाद एक इतनी शदीद तरह से दो दफ़ा झड़ते हुए लुत्फ़-अंदोज़ हुई कि मैं अलफ़ाज़ों में बयान नही कर सकती।

अपनी वहशियाना हवस में वो बेहद जुनूनी ताल में मुझे अपनी कुत्तिया बना कर चोदे जा रहा था। उसके लंड की जड़ में फूली हुई गाँठ अब मेरी चूत पे कुछ ज्यादा ही जोर-जोर से टकरा रही थी लेकिन लज़्ज़त की बेखुदी के आलम में मुझे वो हल्का दर्द भी लज़्ज़त-अमेज़ ही महसूस हो रहा था और मेरी शहूत में इज़ाफ़ा कर रहा था। फिर उसके लंड की लट्टू-नुमा गाँठ की ठोकरें और ज्यादा जारेहाना होने लगीं तो मुझे एहसास हुआ कि वो कुत्ता उस गाँठ को मेरी चूत में ठेलने की पूरी शिद्दत से कोशिश कर रहा था। उसकी मोटी गाँठ मेरी चूत पे बेहद दबाव डाल रही थी और कुत्ते की काफी मुशक्कत के बावजूद भी वो मोटी फूली हुई गाँठ मेरी चुदी-चुदाई चूत में भी घुसने में कामयाब नहीं हो पा रही थी। मैं खुद भी अपनी चूत में उसके लंड की गाँठ लेने के लिये बेहद तलबग़ार थी। आखिरकार साबित कदम वहशियाना धक्के मारते हुए उसने अपने लंड की मोटी लट्टू-नुमा गाँठ मेरी चूत को बड़ी बेदर्दी से फैलाते हुए अंदर ठेल ही दी। "आआआईईईऽऽऽ याल्लाऽऽहऽऽऽऽ आँआँहहह...." दर्द के मारे छटपटाते हुए मेरी जोर से चींख निकल गयी। मेरे जैसी तजुर्बेकार चुदक्कड़ की चूत भी कुत्ते के लंड की गाँठ जैसी मोटी चीज़ के लिये शायद तैयार नहीं थी।

बेपनाह दर्द के बावजूद मेरी शहूत ज़रा भी कम नहीं हुई थी बल्कि मेरी चुदास में और इज़ाफ़ा ही हुआ था। मेरे ज़हन में कुत्ते के लंड की वो मोटी गाँठ अपनी चूत में ले पाने की खुशनुदी और मस्ती की कैफ़ियत थी। अगरचे मेरी दर्द के मारे चींख निकल गयी थी लेकिन चुदासी हवस में मुझे किसी दर्द या किसी भी दूसरी बात की कतई परवाह नहीं थी। उस वक़्त अगर उस कुत्ते से चुदवाते हुए मेरी जान भी निकल जाती तो मुझे अफ़सोस नहीं होता। मुझे अपनी चूत लंड से इस कदर ठसाठस भरी हुई पहले कभी महसूस नही हुई। अपने लंड की गाँठ मेरी चूत में महफ़ूज़ ठूँसने के बाद उसने चुदाई ज़ारी रखी लेकिन अब उसके धक्कों की रफ़्तार पहले से धीमी हो गयी थी। मेरे मुँह से मुसलसल निकल रही मस्ती भरी सिसकारियों से पूरा हॉल गूँज रहा था। उसके लंड की तरह उसकी गाँठ भी मेरी चूत में दाखिल होने के बाद और ज्यादा फूलती महसूस होने लगी। मेरी चूत फैल कर बेहद चौड़ी हो गयी थी और फूलती हुई गाँठ का दबाव मेरे 'जी-स्पॉट' पे पड़ते ही मेरी चूत में लज़्ज़त का सैलाब उमड़ पड़ा और मेरा जिस्म बुरी तरह से थरथराने लगा और मैं लज़्ज़त और मस्ती में जोर से चींखते हुए एक दफ़ा फिर निहायत ज़बरदस्त तरीके से झड़ कर लुत्फ़-अंदोज़ हो गयी।

हालांकि उसके धक्कों की रफ़्तार पहले के मुकाबले कमतर हो गयी थी लेकिन उस कुत्ते ने अपना फूला हुआ लंड उतनी ही ताकत से मेरी चूत की गहराई और बच्चेदानी पे कूटना ज़ारी रखा जबकि उसकी फूली हुई गाँठ ने मेरी चूत को ठसाठस फैला रखा था और मेरे 'जी-स्पॉट' पे भी उसका दबाव कायम था। लिहाजा मेरी चूत मुसलसल तौर पे पानी छोड़ के बार-बार झड़े जा रही थी और मैं मस्ती में जोर-जोर से कराहती-सिसकती और चींखती हुई लुत्फ़-अंदोज़ी का बार-बार निहायत मज़ा ले रही थी। उसके लंड से मुसलसल बहती रक़ीक मज़ी भी मुझे अपनी चूत में गहरायी तक धड़कती हुई महसूस हो रही थी जिसका मज़ेदार गरम-गरम मुख्तलिफ़ सा एहसास मेरी लज़्ज़त में इज़ाफ़ा कर रहा था। इस दौरान मैंने एक नज़र स्टूडेंट्स की जानिब देखा तो चारों नामाकूल लड़के अपने लौड़े हिला रहे थे और मुझे यानी कि अपनी हवसखोर टीचर को कुत्ते से चुदवाते हुए... एक जानवर के साथ अपनी शहूत पूरी करते हुए देख रहे थे।

इतने में मुझे अपनी कमर पे उसका जिस्म अकड़ता हुआ महसूस हुआ और उसकी अगली टाँगें भी मेरे इर्दगिर्द जोर से जकड़ गयीं। तभी जोर से एक करारा सा धक्का मार कर अपना लंड मेरी चूत में जोर से बच्चे दानी तक अंदर गड़ा कर वो साकिन हो गया और उसके लंड की गाँठ पहले से भी ज्यादा फूल गयी। मुझे एहसास हो गया कि अब वो कुत्ता मेरी चूत में मनी इखराज़ करने को तैयार था। मेरी चूत तो पहले से ही उसके लंड से मुसलसल बहते गरम मज़ी से निहाल थी और अगले ही पल उसके लंड ने तीन-चार दफ़ा बेहद ज़ोर से झटका खाया और उसमें से गरम और गाढ़ी मनी की तेज़ धारें एक के बाद एक मेरी चूत में फूट-फूट कर इखराज़ होने लगीं। उसकी मनी की मिकदार मेरे लिये नाकाबिले यकीन और हैरान कुन तो थी ही और इसके अलावा मैं अपनी चूत में उसकी रवानी दर हक़ीकत महसूस भी कर पा रही थी। इसके सबब से मेरी चूत में फिर एक जोर का धमाका सा हुआ और तमाम जिस्म में लज़्ज़त भरे शोले भड़क उठे। मेरी आँखें ज़ोर से भींच गयीं और जिस्म थरथराते हुए बेतहाशा झटके खाने लगा। "आँआँहह याल्लाआहहह.... आआआआआ ऊँऊँऊँऊँ... ज़न्नत काऽऽऽ मज़ाऽऽऽ.... निहाऽऽल हो गयीऽऽ साऽऽऽलीऽऽ तऽऽबस्सुउउउउम तूऽऽऽऽ तो आऽऽऽऽज...." लज़्ज़त की शिद्दत में मैं बेहद ज़ोर से चींखी और मेरी चूत भरभराते हुए फिर पानी छोड़ने लगी।
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