Maa ki Chudai माँ का चैकअप
08-07-2018, 10:56 PM,
#31
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"बोलो ना मा! क्या वे तुम्हारे गुप्तांगो को मुझसे अधिक प्यार करते थे ?" ऋषभ ने पुनः पुच्छा और इस बार उसका सवाल, सवाल ना हो कर पिता-पुत्र की अग्यात तुलनात्मक श्रेणी में परिवर्तित हो चुका था ताकि उसकी मा को सोचने का ज़्यादा वक़्त ना मिल सके और उनके दरमियाँ अचानक आई इस स्थिरता को भी दोबारा गति मिल जाए, तत-पश्चात वह अपनी उंगलियों से अपनी मा की उंगलियों को पकड़ कर उसके हाथ को उसकी चूत से हटाते हुवे उसके चूतडो की दरार के बीचो-बीच खींच लाता है.

"मैं नही जानती कि तू अपने पापा से क्यों नाराज़ है मगर इतना अवश्य पता है कि वो मुझसे कहीं ज़्यादा तुझसे प्यार करते हैं" ममता प्रश्न बदलने के उद्देश्य से बोली, वह बहुत हैरान थी और परेशान भी. उसके पुत्र की अश्लील हरक़तो के चलते उसका सैयम अब टूटने की कगार के बेहद करीब पहुँच चुका था, चूत भभक्ते अंगार समान सुलगती ही जा रही थी और जिसकी अगन को अब सिर्फ़ और सिर्फ़ एक मर्द के गाढ़े वीर्य से ही शांत किया जा सकता था. उसके हाथो में भरी हुई लाल चूड़ियों की खनक! पैरो में बँधी पाजेब के घूंघुरूओ की छनक! कभी घुटि तो कभी ना रोक सकने योग्य सिसकियों की मनमोहक ध्वनि और चूत से निरंतर बहते कामरस की मादक सुगंध, पल प्रति पल ऋषभ पूर्व से कहीं ज़्यादा हिंसक बनने पर विवश होता जा रहा था.

"तुम नही बताना चाहती तो ना सही मगर झूठ का सहारा मत लो मा" आवेश के स्वर में कहते हुवे ऋषभ ने अपनी मा के अंगूठे को उसके खुद के गुदा-द्वार से सटा दिया और हौले-हौले अंगूठे के नाख़ून से छिद्र की दानेदार सतह को कुरेदने लगता है.

"उफफफफफ्फ़! नाराज़ क्यों होता है, जब तू मुझसे झूठ बोल सकता है तो मैं क्यों नही" ममता अपने दूसरे हाथ की उंगलियों से अपने बाएँ चूचक को उमेठति हुवी बुदबुदाई. आज से पहले उसने असन्ख्य बार अपनी गान्ड के छेद का स्पर्श किया था परंतु जितना आनंद वह इस वक़्त महसूस कर रही थी, कल्पना से परे था. उसका पुत्र स्वयं उसके अंगूठे को नियंत्रित कर रहा था, जब! जहाँ! जैसे-चाहे वह अंगूठे को चलायमान कर देता और ममता का बदन बुरी तरह से काँपने लगता.

"मैने क्या झूठ बोला मा ? ज़रा मुझे भी तो पता चले" ऋषभ को वाद-विवाद की नयी दिशा मिल रही थी, मौके को भुनाने हेतु उसने फॉरन पुछा.

"बहुत से झूठ बोले हैं तूने" ममता ने विचार्मग्न होने से पहले हल्का सा संकेत किया और तत-पश्चात सोचने लगी कि कहाँ से शुरूवात करना उचित रहेगी. आमतौर पर मारियादित रिश्तों के बीच अमर्यादित सम्वादो का आदान-प्रदान बड़ा असहज होता है लेकिन ममता-ऋषभ अब इस धारणा से बिल्कुल मुक्त हो चले थे, वे खुल कर देशी अति-उत्तेजनात्मक शब्दो का प्रयोग कर रहे थे, एक- दोसरे के गुप्तांगो की चर्चा तो मानो उनके दरमियाँ बेहद सहज हो चुकी थी.

"हे हे हे हे! कहीं तुम्हारा इशारा तुम्हारे मम्मो और चूतड़ो की तरफ तो नही मा .. मुझे तो यही लगता है" ऋषभ ने निर्लज्जता पूर्ण ढंग से हँसते हुए बताया और इसके उपरांत ही वह अपनी मा के अंगूठे को छोड़ देता है.

"तेरा अनुभव वाकाई प्रशन्शा के काबिल है रेशू! औरतो के मन को पढ़ना तुझे बखूबी आता है" अपने पुत्र के कयास को जान कर ममता भी मुस्कुराए बगैर नही रह सकी और बेशर्मी के साथ उसे अपनी प्रतियक्रिया से अवगत करवाती है.

"मा! तुम्हारे मम्मो की अत्यधिक कसावट, उनका प्राकृतिक आकार, निप्पलो की कामुक रंगत और उनका तनाव किसी नपुंसक को भी उत्तेजित कर देने में सक्षम है" कह कर ऋषभ अपने दोनो हाथो को अपनी मा के चूतड़ो की दरार से घुमाते हुए उन्हे उसके उभरे पेट पर ले आता है, उसके पंजे ममता के पसीने से लथपथ बदन की चिकनी चमड़ी पर बेहद चिपक कर फिसल रहे थे. इसके उपरांत वह उन्हे अपनी मा के मम्मो की दिशा में ऊपर की ओर सरकाने लगा और कुच्छ ही छनो के विलंब के पस्चात उसकी मा के गोल मटोल मम्मे उसके विशाल पंजो की मजबूत जाकड़ में क़ैद हो जाते हैं.

"अहह सीईईईई .. रेशूउऊ! मेरे मम्मो की जाँच तो तू पहले ही कर चुका है" ममता ने सिस्कार्ते हुए कहा.

"फिर दोबारा क्यों बेटे ?" उसने शंकित स्वर में सवाल किया.

"हां मा! मैं इनकी जाँच कर चुका हूँ मगर तब इनसे प्यार नही कर पाया था! उफफफफफ्फ़ .. कितने फूले हुवे मम्मे हैं तुम्हारे" आह भरते हुवे ऋषभ अपनी मा के मम्मो का बेरहेमी से मर्दन करना आरंभ कर देता है, जिसे वह प्यार की झुटि संगया दे रहा था वह मात्र हवस के कुच्छ और ना थी. ममता की अनियंत्रित सांसो का उतार-चढ़ाव से पल प्रति पल उसके पुत्र के पंजे उसके मम्मो को आसानीपूर्वक गूँथने लगते. अपनी मा की पीठ पर धीरे-धीरे वह अपने शरीर का संपूर्ण भार भी डालता जा रहा था, जिसके नतीजन अपने आप ही उसका विकराल लंड उसकी मा की नंगी पीठ से टकराने लगता है.

क्रमशः............................................
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08-07-2018, 10:56 PM,
#32
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
माँ का चैकअप--13

"अब तू जवान हो चुका है रेशू! इस अवस्था के तेहेत तुझे अपनी मा के मम्मो से प्यार करना कतयि सोभा नही देता बेटे" ममता ने नैतिकता का बखान किया परंतु अपनी चूत के रिसाव को कैसे नज़रअंदाज़ कर पाती. लगातार बहते हुवे उसके गाढ़े कामरस से उसकी काली घनी झान्टे अत्यंत चिपचिपी हो चली थी, पूर्व से फूला हुआ उसका संवेदनशील भांगूर अब तीव्रता से फड़कने लगा था.

"काश कि मेरा बचपन वापस लौट आए मा! जैसे उस वक़्त मैं तुम्हारे इन सुंदर निप्पलो को चूसा करता था, अपनी नन्ही उंगलियों से इन्हे सहलाया करता था, तुम्हारे यही निपल मेरा सबसे पसंदीदा खिलोना हुआ करते थे और यक़ीनन तुम्हे भी इन्हे मेरे सुपुर्द करने में आनंद की प्राप्ति होती होगी क्यों कि तुम्हारे अमूल्य दूध से ही तुम्हारे बेटे को सुरक्षित भावी जीवन मिलना था. मैं सच कह रहा हूँ ना मा ?" अपनी मा के तने चूचकों को बलपूर्वक उमैठते हुवे ऋषभ ने कहा.

"ओह्ह्ह्ह .. हां रेशू! मुझे बहुत खुशी होती थी, किस मा को नही होती होगी ? आख़िरकार मैं तेरी जनम्दात्रि थी, कैसे तुझे तेरे हक़ से विंचित रख पाती ? मगर अब तू वो नन्हा रेशू नही रहा और मेरे मम्मो का दूध भी सूख चुका है" बोलते हुवे ममता का रोम-रोम पुलकित हो रहा था, बीते उन यादगार पलो को सोचते हुवे बरसो बाद उसकी कोख अचानक से कुलबुला उठी थी.

"बड़ा हो गया हूँ तो क्या हुआ मा! अब भी तुहमे मुझे रोकने का कोई हक़ नही" ऋषभ ने निप्पलो को निचोड़ना ज़ारी रखते हुवे कहा और साथ ही साथ अपने खुश्क होंठो से अब वह ममता की गर्दन चूमने लगता है, हलाकी बजाए चुंबन के वह उसकी गर्दन को चाटना चाहता था मगर अपनी मा के प्रति उसका झूठा लाड कहीं उसकी असल वासना का भेद ना खोल दे, अपने सैयम को अंत तक बचा कर रखना उसकी पहली और अंतिम प्राथमिकता बन गयी थी.

"सीईईईईई आहह! तुझे रुकना ही होगा रेशू .. नही तो! नही तो मैं ....." कहते हुवे ममता की गर्दन अकड़ गयी, उसका मूँह खुल जाता है. अपने मम्मो पर वह क्या कम आघात झेल रही थी जो अब ऋषभ उसे चूमने भी लगा था.

"आज के बाद मैं इन्हे कभी नही देख पाउन्गा मा! कम से कम तुम कुच्छ देर तो सहेन कर ही सकती हो" ऋषभ आग्रह के स्वर में फुसफुसाया, उसके नथुओ से बाहर निकलती गरम हवा सीधे उसकी मा के बाएँ कान के भीतर प्रवेश कर रही थी और होंठो से उसकी गर्दन चूमने की गति भी रफ़्तार पकड़ चुकी थी. वह जानबूझ कर अपनी लार को अधिक मात्रा में गर्दन पर उगलता जाता ताकि चटाई ना सही चुसाई का सुख तो मिलता ही रहे. कोई शरम नही! ना ही कोई डर! वासना की प्रचूरता में वह बेहद निर्भीक हो चला था. पहली बार अपनी मा के छर्हरे नंगे बदन को इतने करीब से महसूस कर रहा था, जिसकी तपिश ने उसके सोचने-समझने की सारी क्षमता को पूरी तरह से क्षीण कर दिया था.

"रेशू .. उफफफ्फ़! मान जा बेटे .. ओह्ह्ह! मैं बहेक जाउन्गि" ममता ने सिहरते हुवे कहा, उसके पुत्र की लार उसकी गर्दन से नीचे बह कर उसकी पीठ को भिगोने लगी थी. कुच्छ ही क्षणो के पश्चात उसने अपने दोनो हाथ अपने पुत्र के हाथो पर रख दिए और स्वयं भी शक्तीपूवक अपने मम्मो को भिचना आरंभ कर देती है.

"अहह रहुउऊउउ" उसकी चीख से कॅबिन गूँज उठा, उसके पुत्र ने अपने नुकीले दाँत उसकी गर्दन पर गढ़ा दिए थे. उसके लंड की कठोरता का एहसास ममता को पथ भ्रष्ट हो जाने के लिए उकसाने लगा था, जिसके प्रभाव से वह तीव्रता के साथ अपने निचले धड़ को हिलाने लगती है.

"ओह्ह्ह्ह मा! कितना अच्छा लग रहा है, कभी ना मिल सका ऐसा मज़ा आ रहा था" ऋषभ बेहद उद्विग्न लहजे में बोला, उसकी कमर भी अब उसकी मा के निच्छले धड़ का पूरा समर्थन कर रही थी. यदि उसके शरीर की लंबाई कम होती तो यक़ीनन उसका लंड ममता की पीठ की बजाए उसके चूतड़ो की दरार के भीतर रगड़ का रहा होता.

"यह .. यह ठीक नही रेशू! मैं तेरी मा हूँ" अपने पुत्र की हरक़तो में अचानक से आए बदलाव के मद्देनज़र ममता ने घबराते हुवे कहा, माना उसे रोकने के स्थान पर अपने पापी किर्यकलापो के ज़रिए वह खुद उसकी उत्तेजना को बढ़ाती जा रही थी मगर उसका ममत्व निरंतर उसे झकझोर रहा था, कचोट रहा था कि उसे अपनी उमर और मा होने के गौरव को तुरंत नष्ट होने से बचा लेना चाहिए.

"मुझे पता था मा कि तुम पापा को मुझसे ज़्यादा चाहती हो वरना मुझे कभी खुद से दूर ना करती" ऋषभ क्रोधित स्वर में बोला, उसकी मा के कथन से उसका डगमगाता सैयम पुनः उसके क़ब्ज़े में लौट आया था.

"अगर तुम वाकई मुझे नही चाहती तो मैं तुम्हे विवश नही करूँगा" अपनी मा के मम्मो को छोड़ कर उनसे ममता के हाथो को भी झटक दिया, उसकी नाटकीय छवि तो जैसे उसका सबसे बड़ा हथियार थी.

"नही रेशू" ममता ने फॉरन उसके हाथो को थाम कर कहा और दोबारा उन्हे अपने मम्मो के ऊपर रखने का प्रयत्न करने लगती है.

"तू नही जानता कि मैं इस वक़्त क्या झेल रही हूँ! खेर अभी मेरा तुझे रोकने का कारण कुच्छ और ही है बेटे" वह ऋषभ के हाथो से स्वयं अपने मम्मो का मर्दन करते हुवे बोली.

"वो क्या भला ?" ऋषभ ने व्याकुलतापूर्वक पुछा और अपनी मा के अगले कपकापाते अल्फ़ाज़ सुन कर तुरंत उसके होंठो पर शरारती मुस्कान व्याप्त हो जाती है.
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08-07-2018, 10:56 PM,
#33
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मेरे वहाँ .. मेरे पिछे! पिछे मुझे बहुत दर्द हो रहा है" भूलवश ममता ने अपना कथन तो पूरा कर लिया मगर साथ ही साथ खुद के लिए गर्त का भी इंतज़ाम कर बैठी. अपने मम्मो पर अपने पुत्र के विशाल पंजो की मसलन की सीधी चोट को वह अपनी चूत के अन्द्रूनि हिस्से में महसूस कर रही थी, संकरे मार्ग पर आकस्मात अत्यधिक स्पंदन होने लगा था मानो जल्द ही उसका सामना एक ऐसे अनियंत्रित स्खलन से होने वाला हो, जिसके उपरांत निश्चित ही वह ऋषभ की नज़रों में पूरी तरह से गिर जाती और उसी से बचने के उद्देश्य से उसे अत्यंत निर्लज्जतापूर्णा ढंग से अपने गुदा-द्वार में उठती पीड़ा का झूठा स्वांग रचना पड़ा था.

"तो क्या तुम पहले नही बता सकती थीं ? अब तक तो मैं तुम्हारी गान्ड के छेद की जाँच कबकि पूरी कर चुका होता मा" ऋषभ ने हल्की सी नाराज़गी जताई मगर अपने हाथो को ममता के मम्मो से हटाने का कोई प्रयत्न नही करता, हलाकी मम्मे चूसने की उसकी अभिलाषा अब तक बरकरार थी और उसकी गान्ड के छेद से खेलना शुरू करने से पूर्व वह इक अंतिम प्रयास करने के विषय में ही विचार कर रहा था.

"कैसे कहती रेशू ? क्या मैं बेशरम बन जाती ?" ममता ने फुसफुसाते हुए पुछा, जब कि अब तक उसके स्वयं के हाथ ज़बरदस्ती उसके पुत्र के पंजों द्वारा उसके मम्मो को निचोड़ रहे थे. वह अच्छे से जानती थी कि जिस नैसर्गिक सुख का लाभ वह वर्तमान में उठा रही है, भविश्य में सदा के लिए उससे वंचित रह जाना था.

"ओफफ्फ़ ओह्ह्ह मा! तुम बे-वजह कितना सोचती हो" कहते हुवे ऋषभ पुनः अपने होंठ अपनी मा की गर्दन से सटा देता है मगर इस बार उसने दिशा और अपने बीते कार्य में परिवर्तन कर लिया था.

"पिच्छले आधे घंटे से नंगी हो. तुम्हारी सहजता की खातिर मैने भरकस प्रायस किए हैं, इसके बावजूद अब तक तुम्हारी शरम का अंत नही हुआ" बोल कर वह बिना किसी अतिरिक्त झिझक के ममता की गर्दन को चाटना शुरू कर देता है. झुर्रियों रहित अत्यंत कड़क! चिकनी चमड़ी, ऊपर से नमकीन पसीने से सराबोर. उस मादक स्वाद को चखने के उपरांत ऋषभ के लंड में अचानक से कठोरता का वास हो जाता है, जिसकी असहनीय रगड़ के कारण तत्काल ममता अपनी नग्न पीठ के छिल जाने का एहसास करने लगती है.

"ओन्णन्न् सीईईईईईई रेशू! लगता है, वहाँ अचानक से दर्द बढ़ गया है .. तू कुच्छ करता क्यों नही" कमान्ध ममता कराहते स्वर में चीखी और अपने निचले धड़ को तीव्रता से मेज़ पर पटकने लगती है. उसके हाथ थे जो रुकने का नाम नही ले रहे थे, अपने पुत्र के पंजों को बलपूर्वक अपने मम्मो पर दबाती हुवी वह उसकी लप्लपाति जिह्वा के आनंद में किसी दूसरी दुनियाँ में पहुँच चुकी थी, जहाँ सिवाए रोमांच के कुच्छ और शेष ना था.

"आह्ह्ह्ह मा! मेरे हाथो को छोड़ॉगी तब ना मैं तुम्हारी पीड़ा का निदान कर सकूँगा" प्रत्युत्तर में ऋषभ भी सीत्कार उठा, चुस्त फ्रेंची की जाकड़ में क़ैद उसका विशाल लंड अब टूट कर बिखर जाने की स्थिति में परिवर्तन हो चला था. अनाचार की परिभाषा इतनी अधिक उत्तेजक होती होगी, दोनो के ही तंन और मन इस बात को स्वीकार कर बुरी तरह सिहरने लगे थे.

"तू मुझे क्यों दोष दे रहा है ? तेरे हाथ हैं, क्या तू खुद इन्हे नही छुड़वा सकता ?" ममता ने खिसियाते हुवे पुछा, बल्कि उसकी चाह थी कि वक़्त वहीं थम जाए और वह जी भर कर अपने पुत्र के मजबूत हाथो द्वारा अपने मम्मो की मसलन का लुफ्ट उठाती रहे. ऋषभ की गीली खुरदूरी जीभ का स्पर्श उसे बेहद गुदगुदा रहा था, पति राजेश संग की गयी सभी रतिक्रियाओं से अधिक श्रेष्ठकर ! अधिक कामुक और उससे भी कहीं अधिक रोमांचकारी.

"तुम्हारी इक्षाओ के विरुद्ध कैसे जाउ मा ? कितने लंबे अरसे बाद तो तुम्हे पा सका हूँ, मानो इस बीच मैने कयि जनम ले लिए हों और हर जनम तुम्हे पाने की चाह में सिर्फ़ तड़प कर बिताया हो" कहने के पश्चात ही ऋषभ ममता के मन्गल्सूत्र के स्‍वर्ण कुंडे को अपने नुकीले दांतो से बलपूर्वक चबाने लगा, यक़ीनन वह अपनी मा के मश्तिश्क से उसके पतिव्रता होने के गौरव को खंडित कर देने पर आमदा हो चला था.

"उफफफ्फ़ तेरी बातें रेशू! जाने सुन कर मुझे क्या होता जा रहा है ? क्या मेरे रोग का इलाज वाकयि संभव है ?" अपने इस विचित्र प्रश्न के ज़रिए ममता ने अपनी हार सुनिश्चित कर दी, अपने पुत्र के साथ अमर्यादित संसर्ग स्थापित करने के अलावा उसके पास अब कोई अन्य विकल्प मौजूद ना था.

"है मा! संभव है! मैं वादा करता हूँ कि कॅबिन छोड़ने से पूर्व तुम्हारे चेहरे की सारी उदासीनता को हर लूँगा, तुम्हारे रोग की पूर्णरूप से समाप्ति कर दूँगा" अपनी मा को सांत्वना दे कर तुरंत ऋषभ ने उसके हाथो से अपने हाथ छुआ लिए, अथक प्रयास के उपरांत मन्गल्सूत्र के कुंडे की मजबूती को भी उसने काफ़ी हद्द तक कमज़ोर कर देने में सफलता अर्जित कर ली थी और अब वक़्त आ चुका था जब उसे अपने सबसे पसंदीदा खेल को अंजाम देना था. शुरूवात से ही औरतो के गुदा-द्वार में उसकी रूचि चूत से कहीं अधिक रही थी और मेज़ पर नंगी बैठी उस औरत का उसकी मा होना उसकी कामोत्तजना की पराकाष्ठा का सूचक था.

"मा! तो फिर खोलो अपने चूतड़ो की दरार को. मैं देखता हूँ, तुम्हारी गान्ड के छेद में क्या दिक्कत है" आनंदित स्वर में अपने अश्लील कथन को पूरा कर ऋषभ अपने ठीक पिछे रखी कुर्सी पर विराजमान हो जाता है, तत-पश्चात उसकी वासनामई आँखें फॉरन उसकी मा के लंबे! स्याह बालो से निच्चे की ओर फिसलने लगी. उसकी सुनहली रंगत की पीठ कॅबिन के प्रकाश में बेहद चमकती प्रतीत हो रही थी और चूतड़ो के दोनो पाट परस्पर उसके तलवो पर टिके होने के कारण अधिकांश पूर्व से ही फैले हुए थे मानो किसी गोल मटके को लंबवत आकार में काट कर, दोनो भागो को इस तरह मेज़ की सपाट सतह पर खड़ा कर दिया गया हो जिनके द्वारा हृष्ट-पुष्ट चूतड़ो के सर्वाधिक सुंदर आकार को पारदर्शित किया जा सके. चूतड़ो की दरार की अत्यधिक गहराई के नतीजन उसके भीतर उगी घुँगराली झांतों की अधिकता देख ऋषभ बौखला सा जाता है.
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08-07-2018, 10:56 PM,
#34
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मैं! नही नही .. तुझे जो करना है तू खुद कर, मुझ में इतना सामर्थ्य नही रेशू" ममता ने हकलाते हुवे कहा. वह अब तक बगैर हीले-दुले एकदम सीधी, तंन कर मेज़ पर बैठी थी.

"तुम बहुत नौटंकी करती हो मा! अगर मैं खुद ही तुम्हारे चूतड़ो की दरार को खोलूँगा तो तुम्हारी गान्ड के छेद की जाँच कौन करेगा ? हे हे हे हे! मैं कोई राक्षस तो हूँ नही जो मेरे 4-4 हाथ हों" ऋषभ ने चटकारा लिया, उसकी बेढंगी सी हँसी ममता के कानो में रस घोल देती है.

"तू ना! तू बहुत ज़ालिम है और बेशरम भी" ममता बे जवाब में कहा. उसके कथन में उसकी मुस्कुराहट व्याप्त थी, जिसे ऋषभ फॉरन ताड़ जाता है.

"ज़ालिम तो नही मा मगर बेशरम ज़रूर हूँ और मेरी यह बेशर्मी औरतो को ख़ासी पसंद भी आती है, जैसे तुम खुद अभी चोरी-छिपे मुस्कुरा रही हो" ऋषभ पुनः उसे छेड़ते हुवे बोला. अपनी जिस संकोची मा से पिच्छले कयि सालो तक उसने नाम मात्र का वार्तालाप नही किया था, वर्तमान में कितनी सुगमतापूर्वक कर रहा था और सबसे ख़ास कि उसका हर संवाद उनके मर्यादित रिश्ते पर सिवाए कलंक के कुच्छ और ना था.

"धात! मैं क्यों मुस्कुराउन्गि, मैं कोई आम औरत थोड़ी हूँ .. मैं तेरी मा हूँ रेशू! तेरी सग़ी मा" कहते हुवे ममता के गाल सुर्ख हो उठे, अपनी नंगी अवस्था के तेहेत अपने पुत्र के समक्ष बार-बार उनके पवित्र रिश्ते का उल्लेख करना उसे अत्यधिक सिहरन से भरता जा रहा था, एक अजीब सी चाह थी जो इस वक़्त उसके संपूर्ण बदन को झुल्साती ही जा रही थी.

"यदि मुझे तेरी बेशर्मी का हल्का सा भी भान होता तो कब की तेरी अक़ल ठिकाने लगा चुकी होती" ममता की मुस्कुराहट ज़ारी रही, चूत का सकुचना गति पकड़ चुका था.

"मुझे बहुत खुशी होगी मा! मैं तुम्हे तुम्हारे इस रोग से निजात दिला देता हूँ और बदले में तुम मेरी बेशर्मी का ख़ात्मा कर देना, इसलिए अब देर मत करो! तुम्हे घर भी जाना है" ऋषभ ने अपनी आँखों को अपनी मा के चूतड़ो की दरार के शुरूवाती मुहाने पर गढ़ाते हुवे कहा ताकि ज्यों ही ममता अपने निचले धड़ को ऊपर की दिशा में उठाना आरंभ करे, उस अदभुत द्रश्य का लम्हा-लम्हा वह अपनी आँखों में क़ैद कर पाए.

"मैं तेरी बेशर्मी का ख़ात्मा क्या करूँगी भला ? तेरी मा तो तुझसे भी कहीं अधिक बेशरम बन चुकी है रेशू" बोलने के उपरांत ही ममता ने अपनी पलकें मूंद ली और अपने हाथो के दोनो पंजों को मेज़ पर टिका लेती है, जिस कारण जहाँ उसका ऊपरी धड़ हल्का सा नीचे को झुक गया वहीं उसके चूतड़ पूर्व से कहीं ज़्यादा उभर जाते हैं.

"नही! मुझसे नही होगा" वह शरम से बिलबिला उठी, मात्रित्व की कचॉटना अब भी उसके मार्ग को बाधित कर रही थी.

"मा! तुमसे पहले जो औरत यहाँ आई थी, उसके साथ उसका पति भी था और उसी ने अपनी पत्नी के चूतड़ो की दरार को खोला था ताकि मुझे उसकी पत्नी की गान्ड के छेद की जाँच करने में दिक्कत का सामना नही करना पड़े. अब तुम अकेली हो और पापा यहाँ आ नही सकते! तुम ही बताओ मैं क्या करूँ ?" जाने अचानक से ऋषभ को क्या सूझता है, अपने नीच कथन में अपने पिता की भूमिका को बाँध कर वह अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो जाता है.

"तुम्हे कोई हल समझ आए तो मुझे बता देना, तब तक मैं पानी पी लेता हूँ" उसने खुद को चलायमान करते हुवे कहा, उसके कदमो की चाप सुन अत्यंत तुरंत ममता की चूत कुलबुला उठती है. फ्रिड्ज ठीक उसके चेहरे के सामने स्थापित था और घुटनो के बल बैठी होने की वजह से उसकी चूत पूरी तरह से उजागर हो रही थी. हलाकी उसके पुत्र ने अब तक उसकी चूत की महज उपेक्षा ही की थी परंतु किसी कारणवश यदि वह उसकी तरफ अपनी नज़रे घुमा लेता तो सरलतापूर्वक उसे अपनी मा की चूत के दर्शन हो जाते. कुच्छ ही पलो के सोच-विचार के उपरांत ममता ने अपनी बंद पलकों को पुनः खोल दिया और तीव्रता के साथ अपने घुटनो को विपरीत दिशा की ओर फैलाना आरंभ कर देती है. एक ऐसा विध्वंशक काल्पनिक द्रश्य उसकी आँखों के सामने नृत्य करने लगा था जिसमें रीमा की जगह वह स्वयं ले चुकी थी और उसका असहाय पति उसके चूतड़ो की दरार को खोले खड़ा, ऋषभ को उसकी सग़ी मा एवं अपनी पत्नी के गुदा-द्वार का अवलोकन करने में सहायता प्रदान कर रहा था.

"पागल कहीं का! कुच्छ भी बोल देता है. अपनी मा को नही बक्श रहा तो कम से कम अपने पापा को तो बक्श दे" ऋषभ के नज़र आते ही ममता बुदबुदाई और सहसा उसकी लाचार आँखें उसके पुत्र की पॅंट में बने उसके विशाल लंड के तंबू पर चिपक कर रह जाती हैं. लाख कोशिशो के बावजूद भी उसके मूँह से दबी सिसकारी छूट पड़ी और अत्यंत कामुकता से अभिभूत वह निर्लज्ज मा अपनी चूत की अनंत गहराई में गाढ़ा कामरस उमड़ता महसूस करती है.

"तुम्हे यकीन हो या ना हो मा मगर यदि हक़ीक़त में पापा यहाँ होते तब भी मैं तुम्हारा इलाज करता" ममता के कथन से कहीं अधिक उसकी सितकार ध्वनि पर गौर कर ऋषभ फॉरन उसकी ओर पलट'ते हुवे बोला, उसकी आँखों ने जब अपनी मा के चेहरे की बदलती आकृति को देखा तो काँपते हुए खुद ब खुद उसका विकराल लंड उसकी पॅंट के भीतर ठुमकना शुरू कर देता है.

"नही ऐसा कभी नही होता रेशू! तेरे पेशे से संबंधित यह आम सी बात हो सकती है मगर मेरे लिए .. उफफफ्फ़ मैं कैसे! सोचना भी कितना ग़लत है" ममता ने अपने पुत्र के विकराल तंबू पर लगे उसके स्वयं के कामरस के सूखे दाग-धब्बो को ध्यानपूर्वक परखते हुवे कहा और कामोत्तजना से विवश तत्काल अपना दायां हाथ मेज़ से उठा कर बिना किसी लज्जा के अपनी उंगलियों से व्यग्रतापूर्वक अपनी चूत के रिस्ते मुहाने को रगड़ने लगती है. उसकी नीच इक्षा की प्रबलता उसे इतना अधिक उद्विग्न कर चली थी कि जिसके तेहेत क्षण मात्र को उसके मश्तिश्क से उसके मा होने की मर्यादित पदवी का भी स्मरण मानो मिट चुका था.

"तुम पियोगी ?" फ्रिड्ज से बॉटल निकाल कर ऋषभ ने अपनी मा के रक्त-रंजीत चेहरे को घूरते हुवे पुछा. ममता का निरंतर हिलता हुवा हाथ और हाथ में पहनी हुवी काँच की चूड़ियों की अत्यंत कामुक खनक से परिचित होने के बावजूद भी वह अपने चेहरे के सामन्य भाव को बरकरार रखता है.

"उँ हूँ" अपने पुत्र के सवाल से ममता की तंद्रा टूट गयी और इनकार की सूरत में उसने अपना सर हिला दिया. उसकी सारी कोशिश धरी की धरी रह जाती है जब ऋषभ उसे दोबारा चलता हुवा जान पड़ता है.

"शायद इसे झाँत रहित, चिकनी चूत पसंद है वरना संभव नही की मर्द, औरत की चूत को इस तरह नज़रअंदाज़ कर दे. मेरी चूत कोई आम चूत थोड़ी ना है मगर फिर भी रेशू इसकी उपेक्षा क्यों रहा है ?" ममता ने मन ही मन खुद से प्रश्न किया, जिसका उत्तर वह काफ़ी समय पूर्व से ढूँढने को प्रयासरत थी और अब तक उसे कोई संतुष्टिपूर्वक उत्तर नही मिल पाया था. वहीं ऋषभ अपने कठोर सैयम के लिए खुद को धन्यवाद दिए जा रहा था, गुदा-द्वार हो या चूत! अंत में तो सर्वस्व उसकी मा की सुंदर काया पर उसका अधिकार हो जाना तय था.

"काश कि मैने यहाँ आने से पहले अपनी इन कलमूहि झांतों को सॉफ कर लिया होता" ममता का अश्लील अफ़सोस ज़ारी रहा और अपने पिछे रखी कुर्सी के चरमराने की ध्वनि कानो में सुनाई पड़ने के उपरांत ही वह अपने तलवो पर टिके अपने मांसल चूतड़ो को ऊपर की दिशा में उठना आरंभ कर देती है. इस समय क्रोध नामक एहसास ने उसके मश्तिश्क पर पूर्णरूप से अपना क़ब्ज़ा जमाया हुआ था, जो उसके निकरष्ठ कार्य को पूरा करने हेतु उसे तीव्रता से उकसा रहा था. आकस्मात वह बीते पुराने उस स्वर्णिम वक़्त को याद करती है जब पहली बार उसने राजेश के समक्ष अपनी कुँवारी चूत को उजागर किया था और जिसे देखते ही बेचारे की घिघी बँध गयी थी, वह कितना अधीर हो उठा था मानो दीर्घ निद्रा में पहुँच गया हो वहीं इसके ठीक विपरीत उसकी वही चूत उसके पुत्र को ज़रा भी लुभा सकने में पूर्णरूप से नाकामयाब रही थी.
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08-07-2018, 10:56 PM,
#35
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"सम्हल कर मा! मेज़ छोटी है, कहीं गिर मत जाना" अपने मन में पाल रखी तमन्ना के सच होने की शुरूवात होते ही ऋषभ ने उसे टोका और बड़े गौर से ममता के चूतड़ो को ऊपर उठते हुवे देखने लगता है.

"हां रेशू! मैने हाथो से मेज़ पकड़ी हुवी है" कह कर ममता अपने सर को तेज़ी के साथ नीचे की दिशा में झुकाने लगी, साथ ही अपने घुटनो के इस्तेमाल से तत्काल उसने अपने चूतड़ो को हवा में इस कदर ताना जिसके नतीजन खुद ब खुद उसकी रीड की हड्डी धनुसाकार आकरती में ढल जाती है.

"उफफफ्फ़" ना चाहते हुवे भी ऋषभ सीत्कार उठता है, उसके टट्टो में अचानक से आए उबाल के आगे पहली बार उसका अडिग सैयम दम तोड़ता नाराज़ आया. अपने पुत्र की सिसकारी सुन कर ममता की चूत बुरी तरह पनिया गयी, जिसके प्रभाव से बाहर आती उसके गाढ़े कामरस की लिसलीसी बूँद तार बनाती हुवी मेज़ पर टपक पड़ती है.

"र .. रेशू! इतना ठीक है ना ?" ममता ने हक़लाते हुवे पुछा, अपने पुत्र की नीच माँग को स्वीकार कर वह उसके सामने घोड़ी बन चुकी थी. अति-शीघ्र उसने अपनी गर्दन को मोड़ कर ऋषभ के चेहरे के वास्तविक भाव को पढ़ना चाहा और उसके चेहरे को देखते ही उस चंचल नंगी मा के संपूर्ण बदन में उत्तेजना की कपकपि ल़हेर दौड़ जाती है. उसने प्रत्यक्षरूप से देखा कि ऋषभ की आँखें फॅट पड़ी थी! पुतलियाँ पथरा गयी थी! मूँह हैरत्वश खुला हुवा था! साँसों की गति की तीव्रता उसकी अनियंत्रित हांफ़हफी से प्रदर्शित हो रही थी! शरीर मानो मूर्छछित अवस्था को प्राप्त कर चुका था.
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08-07-2018, 10:57 PM,
#36
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
माँ का चैकअप--14

"रेशू" ममता का चेहरा खिल उठता है जब वह अपने पुत्र की एक-तक निगाहों को अपने चूतड़ो की खुली हुवी दरार के भीतर झाँकता हुआ पाती है, उसने हौले-हौले काई बार ऋषभ का नाम पुकारा मगर उसे उसकी जड़वत अवस्था से बाहर निकालने में पूर्णरूप से नाकाम रहती है. सहसा उस नयी नवेली निर्लज्ज मा के मन में संदेह का अंकुर फूट पड़ा और वह जानने को उत्सुक हो उठती है कि उसके पुत्र की वासनामयी आँखों का ठहराव उसकी गान्ड के गहरे कथ्थयि रंगत के छेद पर है या उसकी कामरस उगलती अत्यंत सूजी चूत पर. अपने पापी संदेह का उत्तर पाने हेतु शीघ्र ही ममता ने अपने पहले से फैले हुवे घुटने और अधिक फैला लिए और अपने बाएँ हाथ को मेज़ से हटा कर फॉरन अपनी उंगलियों के नुकीले नाखुनो से अपनी चूत के चिपके चीरे को खुजाने लगती है. वह खुद अपनी इस अश्लील हरक़त से हैरान थी, यक़ीनन भूल चुकी थी कि उसके उजागर वर्जित अंगो को घूर्ने वाला युवक उसका अपना सगा जवान बेटा है.

"अहह मा! हाथ .. हाथ हटाओ अपना" अपनी मा की चूड़ियों की खनक से ऋषभ की तंद्रा टूट गयी और वह क्रोधित स्वर में चीख उठता है. आवेश की प्रचूरता से सराबोर उसके थरथराते स्वर उसकी प्रबल उद्विग्न्ता को प्रदर्शित करते हैं जिसके नतीजन घबराकर तत्काल ममता अपने हाथ को अपनी चूत से हटाते हुए पुनः उसे मेज़ पर स्थापित कर लेने पर विवश हो जाती है.

"माफ़ करना मा जो मैने तुम्हे डांटा मगर मैं मजबूर हूँ! तुम्हारे सुंदर चेहरे समान ही तुम्हारे गुप्ताँग इतने अधिक लुभावने हैं, जिन्हे देखने के उपरांत मैं कतयि नही चाहता कि कोई भी बाधा मेरी आँखों को मेरी मा के मंत्रमुग्ध कर देने वाले वर्जित अंगो को देखने से रोकने का प्रयत्न करे. अब यदि मुझे मौत भी आ जाए तो भी मुझे कोई गम नही होगा" इस बार ऋषभ के स्वर में नर्मी थी, उसके अल्फ़ाज़ का उदगम भले ही उसके मूँह से हुआ था मगर बाहर निकलने से पूर्व उसका कतरा-कतरा उसके हृदय को छु कर गुज़रा था, जिसे सुनकर उसकी रमणीय नंगी मा अचानक से विह्वल हो उठती है और अमर्यादित प्रेम के बहाव में बहते हुवे अपने मांसल चूतड़ो को पहले से कहीं ज़्यादा हवा में तानने को प्रयासरत हो जाती है ताकि उसका पुत्र उसके गुप्तांगो को खुल कर निहार सके. स्वयं ममता की चढ़ि साँसों और उसके दिल की बेकाबू धड़कनो का कोई परवार नही था और निरंतर वह अपनी अशील हरक़तो के तेहेत बुरी तरह से काँपति जा रही थी. उसकी दयनीय स्थिति इस बात का सूचक थी कि उसके संस्कार! संकोची स्वाभाव! दान-धरम! नैतिक भावनाओं पर अब अनाचार के रोमांच का एक-छत्र साम्राज्य हो चुका था और जिसे सिवाय न्यायोचित ठहराने के अलावा कोई अन्य विकल्प शेष ना था.

"अपनी मा के समक्ष ही अपने मरने की बात से तू क्या साबित करना चाहता है रेशू ? क्या दुनिया की कोई भी मा इस बात को से सकेगी ? नही कभी नही" जहाँ अपने पुत्र की क्रोधित वाणी में प्रेम-रूपी बदलाव आया महसूस कर ममता को बहुत सुकून प्राप्त हुआ था वहीं उसके कथन के अंतिम शब्द उसके दिल को बुरी तरह भेद गये थे, उसने पुनः अपना चेहरा पिछे मोड़ कर ऋषभ की आँखों में देखते हुवे पुछा और खुद ही अपने प्रश्न का जवाब भी देती है. उसके पुत्र की चेतना वापस लौट आई थी और ज्यों ही मतमा ने अपने कथन की समाप्ति की, तत्काल ऋषभ मुस्कुराने लगता है.

"मेरा उद्देश्य तुम्हे ठेस पहुँचना नही था! क्या मुझे माफ़ नही करोगी ?" ऋषभ ने अपने कानो को पकड़ते हुवे कहा, कॅबिन में पसरे उस अनैतिक वातावरण को सहज बनाए हेतु यह उसकी नयी पहेल थी.

"अपना प्रेम हमेशा मुझ पर बरकरार रखना मा! पहले भी बता चुका हूँ, तुम्हारे प्रेम के लिए मैं बेहद तरसा हूँ" अपने मार्मिक संवाद के ज़रिए ऋषभ पुनः ममता पर एहसासो का दबाव बनाते हुवे बोला.

"कोशिश ज़रूर करूँगी रेशू! तू चाहता था ना कि तेरी मा बे-वजह शरमाना छोड़ दे, देख मैं घोड़ी बन गयी. बोल क्या मैं अब भी शर्मा रही हूँ ?" ममता ने हौले फुसफुसाते हुवे पुछा, अपने झुटे कथन से भले ही वह अपनी व्यथा को छुपाति है मगर कहाँ संभव था कि एक मा प्रथम बार अपने पुत्र के समक्ष नंगी विचरण कर रही हो और उसकी शर्माहट का अंत हो जाए. ऋषभ जवान था, अत्यधिक बलिष्ठ शरीर का स्वामी और उसके लंड की विशालता से भी वह पूरी तरह से परिचित हो चुकी थी, जो स्वयं उसकी ही नग्नता के कारण जाग्रत हुवा था.

"हां मा! तुम घोड़ी तो बन चुकी, अब तुम्हे अपने हाथो से अपने चूतड़ो की दरार को भी खोलना होगा और तभी मैं तुम्हारी गान्ड के छेद का बारीकी से निरीक्षण कर सकूँगा" कह कर ऋषभ ने सरसरी निगाहों से कामरस उगलती अपनी असल जन्मभूमि को देखा और मन ही मन उसे प्रणाम कर अपनी आँखों का जुड़ाव ममता के गुदा-द्वार से जोड़ देता है. वह अच्छे से जानता था कि उसकी मा की चूत उसके कठोर सैयम को फॉरन डगमगा देने में सक्षम है, चुस्त फ्रेंची के भीतर क़ैद उसके विशाल लंड की फड़फाहट इस बात की गवाह थी कि चन्द लम्हों के दीदार में ही उसकी मा की चूत ने उसकी वर्तमान उद्विग्न्ता को अखंड कामोत्तजना में परिवर्तित कर दिया था.
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08-07-2018, 10:57 PM,
#37
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"रेशू! किसी सभ्य स्त्री के लिए सबसे कठिन कार्य होता है, खुद के द्वारा अपने यौन अंगो को प्रदर्शित करना. मैं तेरी मा हूँ, इक अंतिम बार तुझसे माफी माँगना चाहूँगी! हो सके तो अपनी इस पापिन मा को माफ़ कर देना" इतना कहने के उपरांत ममता ने मेज़ पर अपना संतुलन बनाते हुए अपने दोनो हाथ परस्पर अपने चूतड़ो की ओर अग्रसित कर दिए. उसकी पलकें मूंद गयी थी! जबड़े भींचते जा रहे थे! हाथो का कंपन निरंतर अत्यधिक गति पकड़ रहा था! चूत की सकुचाहत अपने चरम को पाने हेतु कुलबुला उठी थी. जहाँ उसने अपने पुत्र से अपने शमनाक कार्य को पूरा करने से पूर्व माफी माँगी थी वहीं अपने पति पर उसे बेहद क्रोध आ रहा था, यदि राजेश ने उसकी जिस्मानी ज़रूरतों का ख़याल रखा होता तो कभी वह इतनी असहाय ना होती और ना ही निर्लज्जतापूर्ण ढंग से स्वयं अपनी मर्यादों को भंग करती. आती-शीघ्र उसके हाथो के खुले पंजे उसके चूतड़ो के पाटो पर कसने लगते हैं, गद्देदार माँस में उसकी उंगलियाँ धँस जाती हैं और अत्यंत बेबसी की घुटि चीख के पश्चात ही वह अपने चूतड़ो के पाटो को बलपूर्वक विपरीत दिशा में खींचते हुवे अपने वर्जित अंग पूरी तरह से अपने सगे जवान पुत्र की आँखों के समक्ष उजागर कर देती है.

"इतना! इतना काफ़ी है ना बेटे ?" उसके कपकापाते लफ्ज़ फूट पड़े, संपूर्णा बदन सिहरन और अधभूत रोमांच से गन्गना उठता है.

"माफी की आवश्यकता नही मा! यह तो तुम्हारी हिम्मत का प्रमाण है जिसकी प्रशन्षा शब्दो में बयान करना ना-मुमकिन है. तुम्हारा अपने पुत्र के प्रति विश्वास और स्नेह का प्रतीक और जिसके लिए मैं तुम्हे कोटिक नमन करता हूँ" अपनी मा को आंतरिक बल प्रदान करने पश्चात ऋषभ अपनी कुर्सी से उठ कर खड़ा हो जाता है और बिना किसी विलंब के उसके चूतड़ो की खुली हुवी दरार के भीतरी क्षेत्र का मुआयना करने लगा. लंबी घुँगराली झांतो पर पसीने की छोटी-छोटी बूँदें ऐसा सुंदर द्रश्य दर्शा रही थी मानो घास पर जमी ओस की बूँदें और दरार के बीचों-बीच अत्यधिक स्पंदन करता हुवा उसकी मा का गहेरे कथ्थयि रंगत का गोल गुदा-द्वार, जिसकी दानेदार सतह और सतह पर सलवटों की अधिकता स्पष्ट रूप से ज़ाहिर करती है कि ममता ने अपने मल-द्वार से अब तक सिवाय मल त्याग करने के कोई अन्य कार्य नही किया होगा.

"क्या तुम्हे पता है मा कि इंसानो की रीड की हड्डी का अंतिम बीड़ू कहाँ होता है ?" पुछ कर ऋषभ ने अपना दायां हाथ अपनी मा के चूतड़ो की दरार के उभरे शुरूवाती हिस्से पर रख दिया और अपने अंगूठे को उसकी रीड की हड्डी के अंतिम छोर पर दबाने लगता है.

"हां! हां रेशू .. यहाँ हड्डी है" ममता के स्वर में थरथराहट व्याप्त थी. तत-पश्चात ऋषभ अपने अंगूठे को रगड़ के साथ नीचे की ओर फिसलाने लगा, नतीजन झाटों पर जमी पसीने की बूँदें बिखर कर उसकी मा के तीव्रता से खुलते व बंद होते गुदा-द्वार के भीतर प्रवेश करना आरंभ कर देती हैं. शीघ्र ही उसका अंगूठा दानेदार मल-छिद्र के घेराव पर टिक जाता है, जिसके व्यास ने ममता के आती-संवेदनशील गान्ड के छेद को पूर्णरूप से ढक लिया था.

"उफफफफ्फ़" अपने पुत्र के अंगूठे का गुदगुदाता स्पर्श अपने नाज़ुक छिद्र पर महसूस कर ममता ना चाहते हुवे भी सिसक उठती है, जहाँ उसका शरीर उस मादक स्पर्श की तपिश मात्र से प्रज्वलित हो उठा था वहीं आगे क्या होगा, सोच-सोच कर उसकी घबराहट बढ़ती ही जा रही थी.

"मा! पापा को गुदा-मैथुन पसंद नही था ना ?" ऋषभ ने छिद्र के मुहाने पर अपने अंगूठे के नाख़ून को घिसते हुवे पुच्छा, ममता की पतिव्रता छवी के मद्देनज़र उसे यकीन था कि उसकी मा ने सदैव ही अपने पति की इच्छाओ का अनुकरण किया है और यदि उसके पिता को गुदा-मैथुन में रूचि होती तो उसकी मा की गान्ड का छिद्र इतना दानेदार व कसा हुवा नही होता.

"मैं! मैं नही बताती, तेरे इस उत्पाटांग सवाल का उत्तर देना मेरे बस में नही रेशू" एक बार पुनः पति-पत्नी की निजिता में दखलंदाज़ी करते अपने पुत्र के प्रश्न से ममता हड़बड़ा जाती है मगर सच तो यही था कि राजेश को गुदा-मैथुन से सख़्त नफ़रत थी और उसकी राह पर चलायमान उसकी पत्नी ने भी इस विषय पर कभी गौर नही किया था. अक्सर अपने पुत्र की उमर के लड़को की नज़रें वह अपने मांसल चूतड़ो पर जमी पाती थी और शरम्वश उससे विचारते भी नही बनता था कि ऐसा क्यों होता है. आज पहली बार ममता को एहसास हुआ कि वक़्त कितना बदल चुका है, समझ में आ गया था कि क्यों ऋषभ उसकी चूत से कहीं अधिक उसके चूतड़ो पर आकर्षित है. पाश्चात्य संस्कृति के बोलबाले ने गुदा-मैथुन को बहुत बढ़ावा ही नही दिया था बल्कि रोज़मर्रा की यौन क्रीड़ाओ में खुद को शामिल भी कर लिया था.

"पापा इतने पुराने ख्यालातो से संबंध रखते होंगे, जान कर हैरानी हुई मा! वरना अब तक जितनी भी स्त्रियों की गान्ड के छेद मैने देखे, शत-प्रतिशत ढीले थे" ऋषभ ने अश्लीलतापूर्वक बताया. अपनी मा के कुंवारे गुदा-द्वार को अपने अंगूठे के नाख़ून से खुजाना उसे बेहद रास आ रहा था.

"ओह्ह्ह! ढीले .. ढीले से तेरा क्या मतलब है रेशू ?" ममता ने सिसकते हुवे पुछा. अधेड़ उमर के बावजूद रति-क्रियाओं में उसकी जानकारी काफ़ी कम थी, बस उतने में ही परिपक्व थी जितना अपने पति से सीख पाई थी.

"ढीले! मतलब कि वे सभी अपने पतियों से अपनी गान्ड भी चुदवाती होंगी और इसमें बुरा क्या है मा ? चुदाई की संतुष्टि के लिए मर्द हमेशा कसे हुवे छेद की आशा रखते हैं, जिसका आनंद उन्हें चूत से कहीं अधिक औरतो के गुदा-द्वार को चोदने से मिलता है और नयेपन की उनकी चाहत भी पूरी हो जाती है" ऋषभ ने बेहद सहजता से जवाब दिया मानो मेज़ पर घोड़ी बनी बैठी, उसके कथन को सुनती वो नंगी औरत उसकी सग़ी मा ना हो कर कोई आम औरत हो.

"हॅट! क्या अपनी मा से इतनी गंदी बातें करने में तुझे तनिक भी लज्जा नही आती रेशू ?" अपने पुत्र की अश्लील भाषा प्रयोग से ममता के होश उड़ गये थे, उसने उसे डाँटने के लहजे में पुछा.

"चिकित्सको की छवि कितनी सॉफ-सुथरी होती है, उनके बात करने का ढंग मन मोह लेता है और एक तुझे देखो. सच में तू बहुत बिगड़ गया है रेशू, मुझे लगता है तेरी भी रूचि .. छि! वो जगह कितनी गंदी होती है" उसने अपनी मुंदी हुवी पलकों को खोलते हुवे कहा मगर अपने पुत्र की ओर गर्दन घुमाने का साहस नही जुटा पाती, घुमाती भी कैसे ? ऋषभ स्वयं अविलंब अपने अंगूठे के नाख़ून से उस गंदी जगह, उसकी गान्ड के अति-संवेदनशील छेद को कुरेद रहा था जिसके रोमांचक एहसास से ममता का चेहरा सुर्ख लाल हो उठा था और यदि ऐसे में वह उससे अपनी नज़रें मिलाती तो निसचीत ही वह उसकी उत्तेजना को समझ जाता.
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08-07-2018, 10:57 PM,
#38
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"तुम हर बार भूल जाती हो कि मैं एक यौन चिकित्सक हूँ, मेरे सह-क्षेत्र में गंदा कुच्छ भी नही होता और रही बात मेरी रुचियों की तो हां मा! तुम्हारे बेटे को भी औरतों की गान्ड का छेद अत्यधिक रुचिकर लगता है और यह भी पूर्णतया सच है कि तुम्हारा बेटा अब तक इस सुख को पाने से वंचित रहा है. तुम्हे गुदा-मैथुन से परहेज है क्यों कि तुमने अपने गुदा-द्वार का इस्तेमाल मात्र मल-विसर्जन हेतु ही किया है और तभी तुम खुद मेरी तरह इस अधभूत सुख से वंचित रही हो" अपने सांकेतिक कथन के ज़रिए ऋषभ ने अपनी मा को प्रस्ताव देने का प्रयास किया था और ममता को भी समझते देर ना लगी कि उसके पुत्र के इशारे की असलियत क्या है. दोनो के हालात समतर थे, एक सुख पाने को तड़प रहा था तो दूजा उस सुख का कारण खोजने पर विवश हो चला था.

"मैं! मैं नही मानती रेशू, अप्राक्रातिक विषयो को नकार देना ही उचित रहता है" ममता ने कहने में ज़्यादा वक़्त नही लिया और अपने इनकार से अपने पुत्र के प्रस्ताव को फॉरन खारिज कर देती है परंतु उसके मन में जिग्यासा का अंकुर फूट चुका था. ऋषभ के दुस्स-साहस से वह आश्चर्या में पड़ गयी थी, जिसने जान-बूचकर अपनी सग़ी मा के साथ गुदा-मैथुन करने की अमर्यादित इक्षा जताई थी, जबकि इसके ठीक विपरीत ममता ने अब तक नही सोचा था कि उसके मेडिकल चेकप का अंत क्या होना था ?

"सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है मा! खेर छोड़ो, हम क्यों बे-वजह इस विषय पर वाद-विवाद करें" अपनी मा की मीठी वाणी में अचानक से आई कठोरता के बदलाव ने ऋषभ को आगाह कर दिया कि वह उसके सांकेतिक कथन से ख़ासी खुश नही हुवी थी और तभी ऋषभ प्रेमपूवक उस विवादित विषय को वहीं समाप्त कर देने पर मजबूर हो जाता है. अब सिर्फ़ एक अंतिम कार्य ही शेष था, जिसे करने की अनुमति भी उसे अपनी मा से काफ़ी वक़्त पिछे मिल चुकी थी और अपने उसी सोचे-विचारे हुवे कार्य के तेहेत वा यह साबित करने को उत्सुक हो गया की गुदा-मैथुन का प्रारंभिक एहसास ही इतना अधिक आनंदतीरेक होता है, जिसे पाने के उपरांत दुनिया की कोई भी स्त्री अपनी गान्ड के छेद को चुदवाने से खुद को नही रोक सकती.

"मा! थोड़ा दर्द होगा मगर मैं तुम्हारी हिम्मत से परिचित हूँ. आशा करूँगा, तुम सह सकोगी" कहने के पश्चात ही ऋषभ अपने अंगूठे को छिद्र के मुहाने से हटा कर उसके स्थान पर अपने उसी हाथ की सबसे लंबी उंगली को टीका देता है और बलपूर्वक अपनी उंगली अपनी मा के कसे हुवे गुदा-द्वार के भीतर ठेलने का दुर्दांत प्रयत्न करने लगा.

"आह्ह्ह्ह रेशू! क्या तेरा ऐसा करना ज़रूरी है ?" ममता ने व्यकुल्तापूर्वक पुछा. उसके पुत्र की उंगली का अंश मात्र हिस्सा भी उसकी गान्ड के कुंवारे छेद के भीतर नही पहुँच पाया था और अभी से उसकी अनिश्चित-कालीन पीड़ा की शुरूवात हो गयी थी, यक़ीनन अग्यात भय ने उसके मष्टिशक पर पूर्णरूप अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था, जो उसकी घबराहट को भी अकारण ही बढ़ाने लगा था.

"अगर उंगली नही डालूँगा तो छेद के अन्द्रूनि विकारो को कैसे जान पाउन्गा मा ?" अपने प्रश्न के साथ ही ऋषभ ने ज़ोर लगाया और तत्काल उसकी आधी उंगली छिद्र के कसावट से भरपूर छेद को अपने व्यास-अनुसार चौड़ाती हुवी उसके भीतर घुसने में सफल हो जाती है.

"सीईईई उफफफफ्फ़" ममता ने अति-शीघ्र अपनी गान्ड के छेद को सिकोडा परंतु पीड़ा की अधिकता से अपनी सीत्कार को नही रोक पाती.

"इसे मल-द्वार का आरंभिक छल्ला कहते हैं मा, तुम्हारी तरह ही कोई भी अन्भिग्य स्त्री जब अपनी गान्ड के छेद को सिकोड़ने की ग़लती करती है तब यह छल्ला छिद्र के भीतर पहुँचने वाली वास्तु, चाहे उंगली हो या लंड! अपने प्राक्रातिक आकार को त्याग कर उसे रोकने के लिए फॉरन अपने गहराव को कम कर लेता है" ऋषभ ने अपनी उंगली को छल्ले की गोलाई पर घुमाते हुवे कहा, ममता के अपनी गान्ड के छेद को अकसामात सिकोड लेने के उपरांत उसके पुत्र की उंगली उस छल्ले के भीतर बुरी तरह से फस गयी थी.

"तो .. तो अब मुझे क्या करना चाहिए रेशू ? अजीब सा महसूस हो रहा है, दर्द तो है ही मगर ......" ममता ने उस विषम परिस्थिति से बचने हेतु पुछा, उसका कथन अधूरा हो कर भी पूरा था.

"अपने छेद को ढीला छोड़ दो मा! बस यही एक मात्र विकल्प है वरना मेरी पिच्छली मरीज़ की तरह ही तुम्हारा गुदा-दार भी चोटिल हो सकता है" ऋषभ ने उसे समझाते हुवे कहा और साथ ही अपनी नीच मंशा की पूर्ति के लिए उसे डरा भी देता है.

"अब नही सिकोडूँगी रेशू! तू ख़याल रखेगा ना अपनी मा का ? बोल रखेगा ना ?" डर से बहाल ममता अधीरतापूर्वक बोली. कुच्छ वक़्त पूर्व कॅबिन में गूँजी उस चीख पर उसका ध्यान केंद्रित हो जाता है, जिसे सुनने के उपरांत वह विज़िटर'स रूम की खिड़की से कॅबिन के भीतर झाँकने को मजबूर हो गयी थी और जो विध्वंशक द्रश्य उसने देखा था, लम्हा-लम्हा याद कर उसका शरीर काँपने लगता है.

"हां मा! तुम्हारा ख़याल तो मुझे रखना ही पड़ेगा" कह कर ऋषभ ने इंतज़ार नही किया और ममता के अपने गुदा-द्वार को ढीला छोड़ने से पहले ही वह अपनी संपूर्ण उंगली ज़बरदस्ती उस अवरुद्ध मार्ग के भीतर तक ठूंस देता है, हलाकी वह अपनी मा को दर्द नही देना चाहता था मगर आने वाली उसकी अगली क्रियाओं के मद्देनज़र जबरन उसे ऐसा करना पड़ा था.

"अहह रेशूउऊउउ! निकाल .. बाहर निकाल ले बेटे .. उफफफ्फ़" ममता की असहनीय चीख से कॅबिन गूँज उठता है. जिस परिस्थिति के विषय में सोच कर वा घबरा रही थी, उससे बचने का उपाय ढूँढ रही थी, कुच्छ भी सोचने से पूर्व ही उस परिस्थिति से उसका सामना हो गया था.

"लो मा निकाल ली" ऋषभ खुद अपनी मा की चीख से हड़बड़ा जाता है और तत्काल अपनी उंगली छेद से बाहर खींच लेता है.

"ओह्ह्ह! तू बहुत ज़ालिम है रेशू. मैं तेरी मा हूँ, इसके बावजूद भी तू मेरे साथ अन्य रोगियों की तरह ही बर्ताव कर रहा है" अपने पुत्र की उंगली अपनी गान्ड के छेद से बाहर निकालने के उपरांत ममता राहत की साँसे लेती हुवी बोली.

"माफ़ करना मा! मुझसे ग़लती हो गयी, मुझे सूखी उंगली का इस्तेमाल नही करना चाहिए था मगर मैं क्या करूँ, सारे स्टाफ के अचानक से छुट्टी पर चले जाने से मुझे जाँचो में प्रयोग होने वाली वस्तुओं के बारे में कोई जानकारी नही की वे कहाँ रखी होंगी" ऋषभ ने माफी माँगते हुवे कहा. उसके कथन की सत्यता जानने हेतु इस बार ममता अपनी गर्दन घुमा कर उसके चेहरे को घूरती है, उसने स्पष्ट रूप से देखा कि उसके पुत्र के चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव थे. तत्काल ममता के हृदय में टीस उठी, इसलिए नही कि उसका पुत्र अपने किए पर शर्मिंदा था बल्कि इसलिए कि उसकी मा हो कर भी अब तक वह उसे ठीक से पहचान नही पाई थी, जाने क्यों आज उसके पुत्र का चेहरा पहली बार उसे किसी अजनबी समतुल्य नज़र आ रहा था.

"मुझे अपनी उंगली को चिकना करना होगा मा ताकि तुम्हे दोबारा कष्ट ना पहुँचे" कह कर ऋषभ अपने दाएँ हाथ को अपने चेहरे के नज़दीक लाने लगता है, उसकी आँखे उसकी मा की हैरत से फॅट पड़ी आखों में झाँक रही थी.

"नही रेशू ऐसा ग़ज़ब मत करना बेटे" ममता उसकी मंशा को ताड़ते हुवे चीखी.
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08-07-2018, 10:57 PM,
#39
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"पहले मेरी यह उंगली सूखी थी मा मगर इसके गीले हो जाने के बाद तुम्हे ज़्यादा दर्द नही झेलना पड़ेगा" ऋषभ ने अपनी उसी उंगली को अपनी मा के समक्ष प्रदर्शित करते हुवे कहा जिसे कुच्छ वक़्त पूर्वा उसने उसके कुंवारे गुदा-द्वार के भीतर घुसाया था.

"तेरी उंगली गंदी है बेटे! मत .. मत कर" ममता ने विनय के स्वर में हकलाते हुवे कहा.

"तुम मेरी मा हो! तुमसे ही मुझे यह जीवन मिला है, तुम्हारे शरीर का कोई भी अंग मेरे लिए कतयि गंदा नही हो सकता. मेरा विश्वास करो मा! मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूँ और हमेशा करता रहूँगा" अपनी मा के प्रति अपना प्रेम दर्शाने के पश्चात ही ऋषभ अपनी गंदी उंगली को अपने मूँह के भीतर क़ैद कर लेता है, जिसके नतीजन आकस्मात वे मा और पुत्र जड़वत अवस्था में परिवर्तित हो जाते हैं. जहाँ ममता अपने पुत्र द्वारा दर्शाए गये प्रेम के हाथो विह्वल हो उठी थी, उसके प्रेम का वास्तविक अर्थ खोजने का असफल प्रयत्न करने लगी थी वहीं ऋषभ के मूँह में तीव्रता से घुलती जा रही उसकी सग़ी मा के मल-द्वार की मादक सुगंध और मंत्रमुग्ध कर देने वाले कसैले से स्वाद ने उसके लंड की कठोरता को फॉरन अपने चरम पर पहुँचा दिया था. रोमांच के अतुलनीय आनंद की पराकाष्ठा से दोनो के गुप्तांगो ने त्राहि-त्राहि की पुकार मचानी शुरू कर दी थी.

"अब तुम्हे घबराने की ज़रूरत नही मा! तुम निश्चिंत रहो" अपनी उंगली में सिमटी अपनी मा के शरीर की गंध और स्वाद को अपने गले से नीचे उतारने के बाद ऋषभ उसे अपने मूँह से बाहर निकालते हुवे बोला. उसके चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान फैल गयी थी, जिसे देख ममता भी खुद को मुस्कुराने से रोक नही पाती. यक़ीनन उस अत्यंत सुंदर मा की मुस्कान ने उसके अत्यधिक बलिष्ठ पुत्र को संकेत किया था कि उसकी बीती सभी नाराज़गी का अंत हो चुका है.

"अब नही घबराउन्गि रेशू और मुझे तुझ पर विश्वास है कि तू अपनी मा के रोग का हर संभव इलाज करेगा, उसे पूरी तरह से रोग मुक्त कर देगा" ममता की मुस्कुराहट ज़ारी रही, उसने दोबारा अपने हाथो को अपने चूतड़ के पाटो पर कस लिया और उन्हे विपरीत दिशा की ओर खींचते हुवे बोली. अपने नीच कथन और निर्लज्ज कार्य के ज़रिए उसने ऋषभ को अपनी स्वीकरती प्रदान कर दी थी कि उसे अपने रोग के उपचार हेतु अपने पुत्र की बेहद आवाश्यकता है, उसकी एक मात्र आशा अब उसके पुत्र के साथ ही जुड़ी हुवी है.

"मैं भी यही चाहता हूँ मा! मैने पहले भी वादा किया था, फिर से करता हूँ कि कॅबिन छोड़ने से पूर्व तुम्हे पूरी तरह से रोग मुक्त कर दूँगा, तुम्हारी खोई हुवी मुकसान को वापस लौटना मेरे लिए सर्वोपरि होगा" इतना कह कर ऋषभ ने स्वयं की थूक से लथपथ अपनी वही उंगली पुनः अपनी मा के स्पंदन करते गुदा-द्वार के दानेदार मुहाने पर टिका दी, तत-पश्चात अपनी मा की आँखों में देखते हुवे ही अपनी उंगली को उसके मल-छिद्र के भीतर ठेलने लगता है. ममता के चेहरे की बदलती आकृति ने उसके कार्य को बाधित करने का प्रयास अवश्य किया मगर हौले-हौले वह अपनी उंगली को गुदा के छल्ले तक घुसा देने में सफल हो जाता है.

"छेद को सिकोडो मत मा" अपने पुत्र की अनैतिक आग्या के समर्थन में ममता ने अपने निचले धड़ को फॉरन ढीला छोड़ दिया. अत्यंत तुरंत ऋषभ ने एक लंबी खखार ली और अपना चेहरा अपनी मा के चूतड़ो के बीचों-बीच ला कर अपने मूँह के भीतर इकट्ठा किया गाढ़ा थूक सीधे गुदा-द्वार के ऊपर उगल देता है. ममता उसकी इस शरम्नाक कार्य-वाही से दंग रह गयी थी, क्या प्यार में घिंन! गंदगी! अप्राक्रतिक विचारधारा का मेल होना ज़रूरी है ? वह सोचने पर मजबूर थी.

अपना गाढ़ा थूक छिद्र के भीतर पहुँचाने हेतु ऋषभ अपनी उंगली को तीव्रता के साथ गोलाकार आक्रति में घुमाते हुवे उसे छल्ले की अवरुद्धि के पार निकालने के भरकस प्रयास में जुट जाता है, उसकी कोशिश इतनी अधिक प्रबल थी कि कुच्छ ही लम्हो बाद उसकी संपूर्ण उंगली उसकी मा की गान्ड के छेद के भीतर पहुँच चुकी थी. लग रहा था मानो छिद्र ने उसकी उंगली को चूसना आरंभ कर दिया हो और जिसमें ना चाहते हुवे भी ममता सहायक भूमिका निभा रही थी. शरीर के कुच्छ विशेष हिस्सो पर मनुष्यों का नियंत्रण होना मुश्किल होता है, आप कितना भी प्रयत्न करो मगर अपने गुदा-द्वार को तब सिकुड़ने से कभी नही रोक सकते जब उसके भीतर कोई वास्तु घुसी हुवी हो.

"अब कैसा लग रहा है मा ?" ऋषभ ने अपनी उंगली को बलपूर्वक छेद के अंदर-बाहर करते हुवे पुछा.

"बड़ा .. बड़ा अजीब सा लग रहा है रेशू" ममता कपकापाते स्वर में बोली.

"इसे महसूस करो मा! यह वो सुखद एहसास है जिससे आज तक पापा ने तुम्हे वंचित रखा था" ऋषभ ने कहने के पश्चात ही दोबारा छिद्र पर अपना गाढ़ा थूक उगल दिया. वह अपना बायां हाथ भी दरार के भीतर पहुँचा चुका था जिसकी प्रथम उंगली के नाख़ून से अब वह अपनी मा की चूत और उसकी गान्ड के छेद के भीच की झांतों से भरी सतह को कुरेदने लगा था.

"ओह्ह्ह रेशू! यह .. यह मुझे क्या होता जा रहा है" ममता सिहरते हुवे बोली. उसके निच्छले धड़ में अपने आप कंपन होना शुरू हो गया था, चूत अचानक से उबाल पड़ी थी और निप्पलो में अत्यधिक तनाव आने लगा था.

"तुम्हारी ग़लती नही मा! तुम गुदा संबंधी रति-क्रियाओं से अन्भिग्य थी और अभी जिस अकल्पनीय आनंद की प्राप्ति तुम्हे हो रही है, सोच कर देखो मा! यह तो मात्र इसकी शुरूवात है, अंत कितना सुखद होता होगा, मैं शब्दो में कतयि बयान नही कर सकता" ऋषभ अपनी उंगली को बाहर खींच कर बोला और तत-पश्चात अपनी दूसरी उंगली को उससे जोड़ते हुवे, दोनो को एक-साथ छिद्र के भीतर ठेलने लगता है.

"उफफफ्फ़ रेशू! अब .. अब थोड़ा सा दर्द हो रहा है" अपनी गान्ड के छेद की मास-पेशियों में आकस्मात खिंचाव आता महसूस कर ममता सिसकते हुए बोली.

"मा! गुदा-मैथुन का शुरूवाती मज़ा सिर्फ़ मर्द को ही आता है, औरत तो बस अपनी जान छुडवाने के लिए अंत तक उसके साथ बनी रहती है मगर इसके उपरांत चलते-फिरते, उठते-बैठते जो मीठा-मीठा दर्द औरत को लुभाता है, खुद ब खुद पुनः वो अपनी गांद मरवाने के उपाय खोजना आरंभ कर देती है" अपने कथन का लाभ लेते हुवे ऋषभ अपनी दोनो उंगिलयों को अपनी मा के तंग मल-द्वार के भीतर पेल चुका था, उसने स्पष्ट रूप से देखा कि उसकी मा की चूत से निरंतर टपकता हुवा उसका गाढ़ा कामरस मेज़ पर इकट्ठा होता जा रहा था.

"तेरी जानकारी से तेरी मा विचलित होने लगी है रेशू! जैसे तूने मुझ पर कोई जादू सा कर दिया हो" कह कर ममता ने समय नही लिया और अपने चूतड़ो को पिछे की ओर धकेलने लगी. गुदा के भराव को भर पाना नामुमकिन होता है, लंड छोटा हो या बड़ा, सबकी हार सुनिश्चित रहती है.

"हे हे हे हे! जादू तुमने मुझ पर किया या मैने तुम पर, कहना ज़रा मुश्किल है मा" ऋषभ ने ठहाका लगाते हुवे कहा. उसे तो अब बस अपने स्थान पर खड़े ही रहना था, जो कुच्छ करना था उसकी मा स्वयं करती और यक़ीनन करने भी लगी थी. अविलंब अपने चूतड़ो को हिला रही थी, अपने पुत्र की उंगलियों को चोद रही थी.

"उम्म्म्म" अचानक से ममता ने हुंकार भरी और बलपूर्वक अपने चूतड़ो को पिछे की दिशा में धकेला, जिसके नतीजन वह मेज़ पर बनाया हुवा अपना संतुलन खो बैठती है.

"अपने हाथो से मेज़ को पकड़ लो मा वरना गिर जाओगी" ऋषभ ने फॉरन अपनी उंगलियाँ उसके गुदा-द्वार से बाहर खींच ली और अपने दोनो हाथो से उसके चूतड़ को साधते हुवे बोला. ममता पर तो जैसे कहेर सा ढह गया था. अपनी गान्ड के छेद में आए खालीपन्न से वह खिसिया जाती है, जिसका सॉफ प्रमाण ऋषभ के हाथो में क़ैद उसके चूतड़ थे जो अब भी तीव्रता के साथ आगे-पिछे होते जा रहे थे.
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08-07-2018, 10:58 PM,
#40
RE: Maa ki Chudai माँ का चैकअप
"मुझे ही कुच्छ करना होगा" ऋषभ ने मन ही मन सोचा और उस स्वर्णिम मौके को भुनाते हुवे अति-शीघ्र अपनी मा के चूतड़ो के पाट पुनः चौड़ा देता है, इसके उपरांत ही उसने अपना चेहरा उसके चूतड़ो की दरार के भीतर घुसा दिया. इतनी देर से जिस छिद्र के साथ वह अठखेलियाँ कर रहा था, उसे अपनी आँखों के नज़दीक पा कर उसकी उत्तेजना में अविश्वसनीय गति से वृद्धि होने लगी थी और ममता की परवाह किए बगैर वह अपनी लंबी जिह्वा को बिना किसी अतिरिक्त भय के अपनी मा की गान्ड के छेद से सटा देने पर विवश हो जाता है.

"उफफफफ्फ़! नही .. उंघह" आकस्मात ही ममता की आँखें चौड़ी गयी, उसके गुदा-द्वार पर टिकी हुवी वास्तु बेहद गीली व लचीली थी और जो उसके पुत्र की उंगली तो कदापि नही हो सकती थी.

"तो क्या! रेशूउऊउउ" ममता की चीख से कॅबिन गूँज उठा मगर उसकी चीख उसके पुत्र पर कोई विशेष प्रभाव नही छोड़ पाती. अब ऋषभ आनंदित था और अपनी जीभ को अपनी मा के दानेदार मल-छिद्र पर गोल-गोल घुमाना शुरू कर देता है.

"आईईई! माँ .. मान जा रेशू, वहाँ बहुत गंदा है" ममता ने दोबारा चिल्लाते हुवे कहा मगर उसके स्वर में कपकपाहट की प्रचूरता व्याप्त हो गयी थी और जिससे परिचित होते ही ऋषभ के कान खड़े हो जाते हैं, यक़ीनन उसकी जीभ का स्पर्श उसकी मा को सिहरन से भर रहा था.

"अपनी पलकें मूंद लो मा और खुद को नीचे गिरने से बचाना" कह कर ऋषभ अपनी जीभ को छिद्र से ऊपर की ओर ले जाने लगता है, पसीने से लथपथ अपनी मा की झाटें चाट कर उसकी जिह्वा नमकीन होती जा रही थी. कुछ देर तक झांतो में उलझे रहने के बाद वह पुनः नीचे की तरफ अपनी जीभ को लौटा लाता है, उसकी आँखों के ठीक सामने उसकी मा की गान्ड का अत्यंत मुलायम, गहरे कथ्थयि रंगत का छेद था. उसने सॉफ महसूस किया कि बार-बार उसकी मा तेज़ सांसो के ज़रिए अपने गुदा-द्वार को सिकोड कर अंदर की तरफ खीच रही थी और फिर स्वतः ही वह छेद अपने आप ढीला पड़ता जा रहा था.
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