RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
"आंटी, वह फूफकार नही रहा, मिन्नत कर रहा है अपनी मम्मी से, आंटी से की
इस मीठी अगन से छुटकारा दिलवो. प्लीज़ रीमाजी प्लीज़ ..." अशोक अंकल ने
वासना भरी आवाज़ मे कहा. मा उनका लंड सहलाती रही. लंड की नसों पर
उसकी उंगलियाँ ऐसी चल रही थी जैसे सितार के तारों पर वादक की उंगलियाँ.
अचानक झुक कर मा ने लंड को चूम लिया. अशोक अंकल ऐसे तड़पे जैसे
करेंट मार गया हो. मा मुस्कराती हुई उनके गाल को चूम कर बोली "बस एक दो
घंटे और. वैसे आप को इतना तरसाकर मैं खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी
मार रही हू, आप छूटने के बाद मेरी क्या हालत करेंगे ये मैं जानती हू"
"अब आओ भी दीदी, उनको छोड़ो, वे कहाँ जाते है बच के. ज़रा उन्हे तड़पने दो.
इस इंद्रासभा मे शामिल होने को अप्सराओं की, मेनका और उर्वशी की, मेरी और
तुम्हारी अनुमति ज़रूरी है, हम न कहे तब तक इन्हे तड़पना ही पड़ेगा. तुम अब
आओ और इसका स्वाद लो, तुम्हे मेरा हनी चखती हू फिर से. ज़रा स्वाद ले लेकर
चटाना, देखु कितना शहद निकाल पाती हों मेरी जांघों के बीच के शहद
के घड़े से" शशिकला गर्व से मा को चैलेज करती हुई बोली.
अगले आधे घंटे मे मा ने शशिकला का इतना शहद निकाला कि वह रोने को
आ गयी. मा ने उस गर्विलि लड़की की वो हालत की की मज़ा आ गया. उसे कुर्सी मे
बिठाकर उसके सामने नीचे बैठ गयी और उसे वास्ता दिया कि अगर सच मे खुद
को ऐसी रंगीली शेरनी समझती है तो अपने हाथ अलग रखे. फिर शशिकला की
जांघे फैलाकर हमे दिखा दिखा कर उसके उस रसीले गुप्ताँग का मा ने
भरपूर स्वाद लिया. बिना झड़ाए उसे इतना सताया कि आधे घंटे मे शशिकला
रोने को आ गयी. कभी उसकी बुर को पूरा चाटती, कभी उंगली से मूठ मारती
और रिसते शहद को चाट लेती, कभी क्लिट को दाँतों मे लेकर जुट जाती.
मैं और अशोक अंकल तो पागल होने को थे. मा खुद भी नही झड़ी थी, बस
अपनी जांघे आपस मे रगड़ रही थी. अंत मे जब वह खड़ी हुई तो मैने देखा
कि उसकी आँखे वासना से गुलाबी हो गयी थी. सिसकती शशिकला को उठाकर
चूमते हुए वह बोली "निकाला ना तेरा शहद? तुझे अब मेरा बेटा ही झड़ाएगा.
और तुम्हारे डॅडी मेरी सेवा करेंगे. देखती हू कि ये दोनों मर्द आख़िर
कितना प्यार करते है हमे, कितनी पूजा करते है हमारी! पर शशि, इनके ये
लंड तो देख, मूह मे पानी आ रहा है, इनमे इतना ज्यूस होगा अभी, और ये सब
हमे चोद कर हमारी चूत के अंदर बहा देंगे, सब वेस्ट हो जाएगा, इनका
स्वाद लिए बिना कैसे इन्हे छोड़ दे!"
शशिकला अब तक थोड़ी सम्भल गयी थी, अपनी झाड़ झाड़ कर लस्त हुई चूत को
सहला कर शांत कर रही थी. "मम्मी तुम कमाल करती हो, मुझे लगा था
कितनी सीधी साधी है मेरी मम्मी, तुम मेरी भी गुरु निकली."
फिर मेरे पास आकर मेरे लंड को मुठ्ठी मे पकड़कर शशिकला बोली "बात ठीक
है मम्मी, बहुत प्यारा है ये लंड, और इतनी ज़ोर का खड़ा है, कटोरी भर
मलाई होगी. चलो ऐसा करते है हम इन गन्नों को चूस लेते है, अभी ऐसे ही
बँधा रहने दो इन्हे, बाद मे छोड़ देंगे. मम्मी तुम डॅडी की ओर ध्यान
दो, आख़िर तुम्हारे गुलाम बन ही रहे है तो समझ ले कि गुलामों का क्या फ़र्ज़
है. मैं अनिल को देखती हू, इतना प्यारा चिकना लड़का है, इसे तो मैं चबा
चबा कर खा जाउन्गि. मम्मी, तुम भी डॅडी को ज़रा तड़पाओ. मज़ा ले लेकर
चूसो, एम डी साहब को ज़रा अपनी बेटी की सेक्रेटरी के आगे गिडगिडाने दो."
मम्मी बोली "बिलकुल चिंता न कर, तेरे डॅडी की मैं पूरी खबर लेती हू" मा
जाकर अशोक अंकल के पास खड़ी हो गयी. "कहिए अशोकजी, क्या सेवा करूँ आप
की?"
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