RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
शशिकला बोली "सब करने मिलेगा. तू ऐसे स्वर्ग मे आ गया है जहा कोई भी
इच्छा पूरी होगी. चल अब बाहर, देख तेरी मम्मी क्या कर रही है, क्या औरत है,
गरम की गरम है, ठंडी ही नही होती"
वापस बाहर आया तो देखा कि अशोक अंकल सोफे पर लेटे हुए थे और मा उनपर
चढ़ि हुई थी. अंकल के लंड को अपनी चूत मे लेकर मा उन्हे चोद रही थी.
अंकल ने अपने हाथों मे मा की चुचियाँ पकड़ी हुई थी और दबा रहे थे.
मा आराम से मज़े ले लेकर चोद रही थी. उसके उपर नीचे उछलने से उसके
स्तन इधर उधर डोल रहे थे और उनके बीच की सोने की चेन भी हिल रही थी.
"ए शशि, तेरे डॅडी को अब मैं घंटा भर तो ज़रूर चोदुन्गि, कल रात को तो
खूब जोश दिखा रहे थे, आज देखती हू कितने दम मे है. अगर घंटे भर
टिक गये तो इनाम दूँगी" मा ने कहा.
"क्या इनाम देंगी मम्मी? आपके शरीर के रस से बढ़ कर क्या इनाम हो सकता
है मेरे लिए" अपने होंठों को दाँत से काट कर अपनी वासना दबाने की
कोशिश करते हुए अंकल बोले.
"खुद अपनी बुर का शहद पिलाउन्गि, ऐसे ही लिटाकर, तुम्हारे मूह पर बैठ कर.
पर है तुम्हारा लंड बहुत जानदार अशोक! अंदर लेकर लगता है कैसी मोटी
ककड़ी अंदर ले ली है. अरी शशि, मेरे बेटे को भूखा ही रखेगी या कुछ देगी
उसे?" मा ने शशि को फटकारा.
मा की वासना देख कर मैं बहुत खुश था. मा अब ऐसे लग रही थी जैसे
जनम जनम की भूखी औरत को पकवानों का भोग मिल जाए, उसे तृप्ति ही नही
हो रही थी.
शशिकला ने कहा. "अनिल, आ जा, अलग अलग मज़ा बहुत हो गया, चल हम भी
शामिल हो जाए इसमे. तूने भी मा को कल से छुआ भी नही है, आ मज़ा कर ले,
मैं डॅडी की थोड़ी खबर लेती हू" और वह जाकर सीधे अंकल के मूह पर बैठ
गयी. "डॅडी, मम्मी चखाएगी तब चखाएगी, अभी अपनी बेटी का रस चख
लीजिए. पड़े पड़े मज़ा ले रहे है, कुछ काम भी कीजिए, आपकी जीभ तो खाली
है ना, उसी से कहिए कि मेरी सेवा करे" और अपने डॅडी के सिर को जांघों मे
दबा कर शशिकला उपर नीचे होकर उनका मूह चोदने लगी.
मम्मी ने झुक कर उसे पीछे से बाहों मे भर लिया और उसका सिर अपनी ओर
घूमाकर उसका चुंबन लिया "ये अच्छा किया शशि, मेरा बहुत मन हो रहा
था कि कुछ चखने को मिले, मेरी रानी बिटिया के मूह से मीठा क्या हो सकता
है मेरे लिए" कहकर मा उसे चूमते हुए उसकी चूंचियाँ दबाने लगी.
दो औरतों को एक मर्द पर चढ़ कर इस तरह से चोदते देख कर मेरा ऐसा
खड़ा हुआ कि क्या काहु. मैं अपने आप को नही रोक सका और जाकर उन दोनों से
लिपट गया. कभी मा के स्तन दबाता कभी शशिकला के. वे एक दूसरे के मूह
को छोड़ कर बीच बीच मे मुझे चूमने लगती. मैने लंड मा की कमर पर
रगड़ना शुरू कर दिया.
शशिकला बोली "अनिल, ऐसा मत कर, आ सामने आकर खड़ा हो जा, डॅडी अगर
शहद चख रहे है तो हम भी मलाई तो खा ही सकते है" मैं तुरंत पलंग
पर चढ़ कर अंकल के दोनों ओर पैर जमाकर खड़ा हो गया. शशिकला का
चेहरा मेरी कमर के सामने था. मा से चूमा चाटी बंद करके वह मेरा
लंड चूसने लगी.
मा बोली "अकेले अकेले बेटी? मुझे भी तो चखने दे मेरे लाल को, कितना
समय हो गया. ये मिठाई मिल कर खाएँगे"
शशिकला बोली "मम्मी, कितना प्यारा है ये, मुझे तो लगता है कि चबा
चबा कर खा जाउ. तुम अच्छी आज तक अकेले इसका मज़ा लेती रही, अब ये नही
चलेगा"
मा बोली "तो तू नही अकेले अकेले अपने डॅडी के इस मतवाले सोंटे का मज़ा लेती
रही?" मीठी नोक झोंक करते करते दोनों बारी बारी मेरे लंड को चुसती
रही. जब मैं झाड़ा तो दोनों ने मेरा वीर्य पिया, शशिकला ने पूरा वीर्य मूह मे
लिया और फिर मा के मूह से मूह लगा कर आधा उसे दे दिया.
एक घंटे तक मा ने अंकल को चोदा और उन्होने भी बड़ी मस्ती से बिना झाडे
मा की चूत को पूरा तृप्त किया. जब आख़िर मा थक गयी तो वायदे के अनुसार
उसने अंकल के मूह पर बैठ कर अपनी चूत का पानी उन्हे चुसावया. अंकल
ऐसे चटखारे ले लाकर उसे पी गये जैसे अमृत पी रहे हों. शशिकला और
मा ने फिर मिल कर उनका लंड चूस डाला. शशिकला अपने डॅडी के लंड से
चुदने को बेताब थी पर मा ने नही सुना, उसे उस मतवाले लंड की मलाई की
भूख थी.
बीच मे खाना खाने और कुछ देर सोने के अलावा हम लगातार रति करते रहे.
अब सब मिलकर चुदाई कर रहे थे. झाड़ झाड़ कर हमारे लंड थक गये थे
इसलिए मुँह से चूत पूजा ज़्यादा हुई. मैं और अशोक अंकल उन दोनों औरतों की
बुर से चिपके रहे, अदल बदल कर चुसते रहे.
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