RE: Maa ki Chudai माँ का दुलारा
अशोक अंकल के गालों को अपने पैरों के अंगूठे से सहलाते हुए मा ने बड़ी
शोखी से पूछा "सच मे मेरी गान्ड के दीवाने हो तुम अशोक? वैसे मुझे
मराना ज़्यादा अच्छा नही लगता, मेरा बेटा भी मारता है तो मुझे दुखता
है थोड़ा, काफ़ी टाइट है ना मेरा छेद, पर वह मुझे इतना प्यार करता है कि
उसके दिल की हर बात मैं पूरी करती हू. अब तुम मेरे पति बनाने वाले हो तो
तुम्हे भी प्यासा नही रखूँगी. पर एक बात कहे देती हू, पूरी गुलामी करवाउन्गि,
जो कहूँगी करना पड़ेगा, मेरी हर बात मानना पड़ेगी"
मा के तलवे चाटते हुए अशोक अंकल भाव विभोर होकर बोले "मम्मी, आंटी,
रीमाजी, मुझसे जो चाहे गुलामी करवा लो, बस इस खूबसूरत गान्ड को मुझे दे
दो"
मेरे मूह मे अपने पैरों की उंगलिया घुसेड़ते हुए शशिकला बोली "ले चूस
अनिल, ठीक से चूस, फिर न कहना कि दीदी ने स्वाद नही लेने दिया. पर मम्मी,
तुम्हारे इस टाइट छेद को खोल कर घुसने के लिए लंड मे मस्त ताक़त होनी
चाहिए, डॅडी के ऐसे आधे खड़े लंड के बस की बात नही है यह. अनिल, तेरा भी
ठीक से खड़ा करना पड़ेगा, नही तो मेरी गान्ड मे ये ऐसे ही पक पक करेगा,
तुझे भी मज़ा नही आएगा और मुझे भी नही."
मा भी बोली "बात ठीक है बेटी पर अब क्या करे, बेचारे दोनों ने बहुत
मेहनत की है कल रात से. चलो इन्हे रात भर आराम कर लेने दो, सुबह
देखेंगे. वैसे अगर अशोक को मेरी मारनी है तो अभी मार ले, मुझे ज़रा आराम
मिलेगा, ऐसे नरम लंड से मुझे ज़्यादा तकलीफ़ भी नही होगी"
"सुबह क्यो दीदी, अभी आज रात मज़ा लेंगे हम. और गान्ड मारने का असली मज़ा
तो तभी है जब लंड कस के खड़ा हो. आख़िर तुम्हारी कुँवारी गान्ड है, बस अनिल
के इस प्यारे लंड से मरवाई हुई. मेरी मम्मी की गान्ड मारने वाला लंड पूरा
तना होना चाहिए. तकलीफ़ तो होगी मम्मी पर मज़ा भी आएगा. मुझे याद है
जब डॅडी ने मेरी मारी थी मा की मदद से, और तब मैं कितनी छोटी थी, मुझे
ऐसा लगा था जैसे लंड नही हाथ डाल दिया हो किसीने अंदर. मैं तो भाग जाती पर
मा ने पकड़ कर रखा था. मैं तो बेहोश हो गयी थी" शशिकला ने मा की
चूंची दबाते हुए कहा. वह अब काफ़ी मस्ती मे थी. मा की गान्ड मे अपने
डॅडी का मतवाला सोंटा घुसता देखने को वह बेताब थी.
मा घबरा रही थी पर उत्तेजित भी थी. होंठों पर जीभ फेरते हुए अशोक अंकल
के लंड को देख रही थी और कल्पना कर रही थी कि कैसा लगेगा जब वह अंदर
जाएगा. उसने एक बार और टालने की कोशिश की "पर बेटी, मैं यह चीज़ अशोक को
सुहागरात मे देना चाहती हू. आख़िर मेरा पति बनने वाला है और उसे कोई तो
कुँवारी चीज़ देनी चाहिए मुझे. चूत तो चोद चोद कर उसने अभी से ढीली
कर दी है."
"उसकी फिकर मत करो दीदी. सुहागरात को नयी नयी करने जैसे बहुत सी बाते
होंगी" मेरी ओर कनखियों से देखकर शरारत से हँसती हुई वह बोली. "अब सब
नहाने चलो, ताजे तवाने हो जाओ. फिर मैं बताती हू कि कैसे इन दोनों को मस्त किया
जाए. इन जैसे मस्ताने छोरो को गरम करना कोई मुश्किल काम नही है,
मुझे अचूक नुस्ख़ा मालूम है"
नहा कर हम जब बाहर आए तो शशिकला ने हम दोनों को बाहर सोफे पर
बैठकर इंतजार करने को कहा. खुद वह मा को अंदर बेडरूम मे ले गयी.
हम दोनों उनकी रह देखने लगे. अंकल तो बेताब हो रहे थे "अनिल यार, मैं तो
इस कल्पना से ही मरने को आ जाता हू कि तुम्हारी मा के उन गोरे चित्ते पहाड़
से चूतडो के बीच अपना लंड गाढ रहा हू. पर शशि की बात ठीक है, काश
मेरा लंड वैसा खड़ा हो जाए जैसा कल रात था. तुम्हारी मा को भी ज़रा फील होना
चाहिए कि उनकी गान्ड की सेवा एक हलब्बी लंड कर रहा है, कोई छोटा मोटा
नही"
मैं चुप था. मा की गान्ड आज दूसरा पुरुष मेरे सामने मारेगा इस विचार से
ही मैं मस्त हो रहा था. शशिकला की उस सुंदर गान्ड मे लंड डालने को मिलेगा
यह विचार भी मुझे मुग्ध कर रहा था.
मा और शशिकला जब बीस मिनिट बाद बाहर आए तो हम देखते रह गये. दोनों
बला की खूबसूरत लग रही थी. उन्होने बाल जुड़े मे बाँध लिए थे और मेकअप कर
लिया था. लाल लिपस्टिक लगाकर दोनों का रूप निखार आया था. पर असली मारू बात थी
उनका अर्धनग्न रूप. दोनों ब्रा और पैंटी मे थी और दोनों ने उँची ऐईडी की
सॅंडल पहन रखी थी.
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