Kamukta kahani अनौखा जाल
06-13-2021, 09:40 PM,
#51
RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
(09-12-2020, 12:41 PM)desiaks Wrote: भाग १०)

किचेन में कॉफ़ी बनाते हुए कुछेक बार देखा चाची की ओर.. चाची टीवी देखते हुए बीच बीच में साड़ी के ऊपर से अपने चूचियों पर हलके से हाथ फेर रही थी... जैसे ही चूचियों पर हाथ रखती उनका चेहरा ऐसा हो जाता मानो उनको बहुत दर्द हो रहा है | इतना ही नहीं, वो अपने पेट और जाँघों के अंदरूनी हिस्से पर भी हल्के तरीके से सहला रही थी | वक्ष, पेट या जांघ में से किसी पर भी हाथ रखते ही उनके चेहरे पर दर्द वाली एक टीस सी छा जाती | शायद आँखों के किनारों में आँसू थे उनके ..... उनकी ये हालत देख कर वाकई बुरा लगा मुझे पर उनकी इस हालत का ज़िम्मेदार कोई और है या वो खुद.. जब तक ये पता ना चले... मैंने अपने भावनाओं पर नियंत्रण रखने की ठान रखी थी |

कुछ ही देर में मैं स्कूटर लिए तेज़ गति से एक ओर चले जा रहा था | एक लड़के से मिलना था मुझे... मेरा ही स्टूडेंट है ... वो मेरी कुछ मदद कर सकता है ... |

घर पर ही मिल गया वो..

“गुड इवनिंग सर, सर .. आप यहाँ ?? मुझे बुलाया होता..|”

“वो तो मैं कर सकता था जफ़र... पर बात ही अर्जेंट वाली है... |”

“क्या हुआ सर...?” जफ़र का कौतुहल बढ़ा ..

“जफ़र... देखो.. ये कुछ सेंटेंस लिखे हुए हैं ... क्या तुम हेल्प कर सकते हो... आई थिंक ये उर्दू ज़बान में है...|” मैंने सिगरेट वाला पैकेट उसकी ओर बढाते हुए कहा..|

ज़फर ने पैकेट हाथ में लेकर करीब से देखा और देखते ही तपाक से बोल उठा, “सर.. माफ़ कीजियेगा .. ये अरबी भाषा में है..|”

ये सुनते ही चौंका मैं.. बहुत ताज्जुब वाली बात नहीं थी पर मैं इस बात के लिए तैयार नहीं था ; पर अब थोड़ा परेशान सा हो उठा | स्वर में बेचैनी लिए बोला, “तो तुम इसे ट्रांसलेट नहीं कर सकते?”

“कर लूँगा... शायद... पर थोड़ा टाइम लगेगा सर..|” जफ़र ने सिर खुजाते हुए कहा..

“कितना टाइम लगेगा..??”

“यही कोई दस-पंद्रह मिनट |”

“ठीक है... मैं बैठता हूँ... तुम जल्दी ट्रांसलेट करो...|”

जफ़र एक पन्ना और कलम ले कर बैठा और लगा माथा पच्ची कर के उन वाक्यों ट्रांसलेट करने | मैं वहीँ बैठकर एक मैगज़ीन को आगे पीछे पढ़ते हुए बेसब्री से इंतज़ार करने लगा | सामने वाल क्लोक के कांटे के हरेक हरकत के साथ मेरी बेचैनी भी बढती जाती थी | खैर, ऊपर वाले का शुक्र है की जफ़र ने ज़्यादा समय ना लेते हुए सभी वाक्यों के ट्रांसलेशन कर दिए | सभी ट्रांसलेशन कुछ ऐसे थे ...

kayf kan yawmak (आज का दिन कैसा रहा )
kanat jayida (अच्छा था)
hal sataemal (क्या वो काम करेगी?)
biaaltakid (बिल्कुल)
kayf kan hdha albund (वैसे माल कैसी थी)
raiye.... eazim (वाओ... ज़बरदस्त)

अभी और भी पढ़ता .. पर तभी... जफ़र ने टोकते हुए कहा की “सर, कुछ शब्द ऐसे भी हैं जो मैंने टूटे फूटे अंदाज़ में लिखे हैं.. मेरी ज़बान उर्दू है... अरबी नहीं.. पर .. थोड़ा बहुत समझता हूँ.. पर और जितने भी लिखे हैं वो कितने सही और कितने गलत होंगे... ये मैं नहीं जानता... सॉरी सर...|” चेहरे पर विनम्रता और स्वर में विवशता लिए वो बोला था | वो मदद करना चाहता था... पर बेबस था बेचारा.. | मैंने उन शब्दों के ओर नज़र डाले जिन्हें उसने किसी तरह ट्रांसलेट किये थे :-

१)योर होटल

२)दोपहर से शाम

३)ये माल और वो माल

४)चरस और गांजा

५)आटोमेटिक गन

६)गोला बारूद

७)जो बोलूँगा वो करेगी

८)मालिक/बॉस के मज़े

९)शादी शुदा ... नाम दीप्ति ...|

ये सभी शब्द पढ़ते हुए मेरे हैरानी का लेवल बढ़ता जा रहा था और अंतिम शब्द या यूं कहूँ की अंतिम शब्दों ने तो मेरे धड़कन ही बढ़ा दिए थे... ‘शादी शुदा... नाम दीप्ति...!!’

जफ़र से जितना हो सका उसने किया... मेरा काम अभी के लिए पूरा हो गया था.. | जफ़र को धन्यवाद बोल कर मैं स्कूटी से अपने घर रवाना हुआ | रास्ते भर यही सोचता जा रहा था की आखिर इन सभी बातों का चक्कर क्या हो सकता है.. होटल योर... दोपहर से शाम... चरस और गांजा.. गोला बारूद.. जो बोलूँगा वो करेगी... शादी शुदा... नाम दीप्ति... ओफ्फ्फ़ ... लगता है शुरू से सोचना पड़ेगा...| इन्ही बातों को सोचते सोचते घर के पास पहुँच गया.. | देखा गली के पास एक स्कूटर पार्क किया हुआ है ... शक के पंखों ने फिर अंगड़ाई ली..| मैंने अपना स्कूटर अँधेरे में एक तरफ़ लगाया और गली के मुहाने के पास इंतज़ार करने लगा | अँधेरे में जाने का रिस्क नहीं लेना चाहता था मैं --- और इतनी सारी बातों के उजागर होने के बाद से तो बिल्कुल भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था |

गली से कोई आवाज़ नहीं आ रही थी..

खड़े खड़े पंद्रह मिनट से ऊपर हो गए...

मैंने सिगरेट सुलगाया और बगल के दीवार से सट कर धुंआ छोड़ने लगा.. तीन सिगरेट के ख़त्म होने और लगभग बीस से पच्चीस मिनट गुजरने के बाद अचानक गली से एक हल्की सी आवाज़ आई | शायद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ थी वो .. मैं चौकन्ना हुआ.. ध्यान दिया.. दो जोड़ी जूतों की आवाज़ इधर ही बढती आ रही थी | मैं तैयार हुआ.. पता नहीं क्या करने वाला था.. बस उनका गली के मुहाने पर आने का इंतज़ार करने लगा... और जैसे ही वो दोनों मुहाने पर पहुँच कर आगे बढ़े ... मैं अनजान और जल्दबाजी में होने का नाटक करता हुआ उन दोनों से टकरा गया |

“अरे अरे... सॉरी भैया... आपको लगी तो नहीं ...” मैंने हमदर्दी जताते हुए पूछा.. पर जिससे पूछा.. वो ना बोल कर उसका साथी बोल पड़ा, “जी कोई बात नहीं... अँधेरे में होता है ऐसा...|”

मैंने फिर पहले वाले से पूछा, “आप ठीक हैं?” इस बार फिर दूसरे शख्स ने कहा, “जी... आप फ़िक्र न करे... हम ठीक है...|” ऐसा कह कर उसने पहले वाले की ओर देखा और बोला, “चलिए जनाब..” दोनों अपने स्कूटर की ओर बढ़ गए थे और जल्द ही स्टार्ट कर वहाँ से चले गए...| मैं उन्हें तब तक देखता रहा जब तक की दोनों आँखों से ओझल नहीं हो गए | उनके ओझल होते ही मैं नीचे ज़मीन पर देखने लगा .....

दरअसल, जब मैं उनसे टकराया था तब उनमें से किसी एक के पॉकेट या कमर या कहीं और से कोई चीज़ नीचे गिरी थी जिसे या तो उन्होंने जान बुझ कर नहीं उठाई या फिर अचानक मेरे सामने आ जाने से उनको इस बात का ध्यान ही नहीं रहा या वाकई पता नहीं चला होगा | ढूँढ़ते ढूँढ़ते मेरे पैर से कुछ टकराया | तुरंत उठा कर देखा | समझ में नहीं आया... तो मैंने स्कूटर के लाइट को ऑन कर के उस चीज़ को हाथ में लेकर देखा और देखने के साथ ही मारे डर के छोड़ दिया | कंपकंपी छूट गई मेरी... वो दरअसल एक पिस्तौल थी !! मैंने जल्दी से लाइट ऑफ किया और पैर से मार कर पिस्तौल को उसी जगह पर ठोकर मार कर रख दिया जहाँ वो था | इतने ही देर में दूर से रोशनी के आने का आभास हुआ और साथ में स्कूटर की भी | मैं दौड़ कर गली में घुसा और एकदम आखिरी छोड़ तक चला गया |

वे दोनों आ कर स्कूटर खड़ी कर इधर उधर ज़मीन पर देखने लगे | उनके हाथ में टॉर्च था ... जला कर तुरंत ढून्ढ लेने में कोई दिक्कत नहीं हुई उन्हें.. उठा कर स्कूटर में बैठे और चलते बने | जैसे वो चाहते ही नहीं थे की कोई उन्हें देखे..| कुछ देर वहाँ रुकने के बाद मैंने गली से निकलने का फैसला किया ... आगे बढ़ते हुए गली के दरवाज़े तक पहुँच ही था की उस पार से किसी की आवाज़ आई | दरवाज़े के दरारों से देखने का कोई फायदा नहीं था क्यूंकि उस तरफ़ पूरा अँधेरा था ----

पॉवर कट के कारण .. मैंने किसी तरह कोशिश करके दीवारों में जहां तहां बने दरारों पे पैर रख कर थोड़ा ऊपर चढ़ा और सिर ऊँचा कर के उस पार देखा... और जो देखा उसे देख कर अपनी आँखों पर यकीं करना शत प्रतिशत मुश्किल था... पूर्णिमा वाले रात के दो-तीन बाद वाले रात के चांदनी रोशनी में देखा की सामने ज़मीन पर मेरी चाची नंग धरंग हालत में पड़ी है !! उनके सारे कपड़े साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट, ब्रा और पैंटी ज़मीन के चारों ओर बिखरे पड़े हैं और चाची पेट के बल लेटी खुद को ज़मीन से रगड़ते हुए उठाने की कोशिश कर रही थी ..................

क्रमशः

Reply
08-14-2021, 12:00 PM,
#52
RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
(09-12-2020, 12:40 PM)Itna sochna ki dekha ya nahin dekha, samajh nahin aaya, kya writer isme koi twist layega?   Dekhte hain aage padh kar desiaks Wrote: Huh Big Grin



भाग ५)

मैं काफ़ी परेशान सा था |

पता नहीं मुझे परेशान होना चाहिए था या नहीं पर जिनके साथ मैं रहता हूँ, खाना पीना, उठाना बैठना लगा रहता है... उनके प्रति थोड़ा बहुत चिंतित होना तो स्वाभाविक है |

सवालों के उधेड़बुन में फंसा था ---

क्या करूँ या क्या करना चाहिए... कुछ समझ नहीं आ रहा था ... बात कुछ ऐसी भी नहीं थी की मैं सीधे जा कर चाची से कुछ पूछ सकूँ |

कहीं न कहीं मुझे खुद के बेदाग़ रहने की भी फ़िक्र थी ... कहीं मैं ऐसा कुछ न कर दूं जिससे चाची को यह लगे की मैं चोरी छिपे उनकी जासूसी कर रहा हूँ या उनपर नज़र रखता हूँ | बहुत दिमागी पेंचें लगाने का बाद भी जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने ये सब चिंताएं छोड़ अपने काम पे ध्यान देने का निर्णय लिया और व्यस्त हो गया ----- |

जॉब मिल नहीं रही थी इसलिए मैंने अपना खर्चा निकालने के लिए इसी घर के एक अलग बने कमरे में ट्यूशन (कोचिंग करने) पढ़ाने लगा था | कुछ महीनो में ही कोचिंग जम गया गया था और अच्छे पैसे भी आने लगे थे | कभी कभी उन पैसों से चाची के लिए कोई कीमती साड़ी और चाचा के लिए एक अच्छी ब्रांडेड शर्ट खरीद कर ला देता ----

चाची को कपड़ो का बहुत शौक था इसलिए जब भी कोई कीमती साड़ी उन्हें लाकर देता तो वो मना तो करतीं पर साथ ही बड़ी खुश भी होती |

खैर, बहुत देर बाद चाची निकली..

अब भी थोड़ा लंगड़ा रही थीं, मैंने पूछना चाहा पर पता नहीं क्यों... चुप रहना ही श्रेष्ठ समझा ---

मुझे सामने देख कर चाची ने इधर उधर की बातें कीं --- अपने लिए थोड़ा सा खाना निकाला उन्होंने --- मेरे पूछने पर बताया की वो बाहर से ही खा कर आई है --- अपनी किसी सहेली का नाम भी बताया उन्होंने |

ठीक से खाया नहीं जा रहा था उनसे ....

बोलते समय आवाज़ काँप रही थी उनकी ....

आँखों में भी बहुत रूआंसापन था... |

मैं अन्दर ही अन्दर कन्फर्म हो गया था की यार कहीं न कहीं , कुछ न कुछ गड़बड़ है और मुझे इस गड़बड़ का कारण / जड़ का पता करना पड़ेगा | कहीं ऐसा ना हो की समय हाथ से यूँ ही निकल जाए और कोई बड़ा और गंभीर काण्ड हो जाए ... |

सोचते सोचते मेरी नज़र उनके कंधे और ऊपरी सीने पर गई ----

दोबारा चौंकने की बारी थी ....

चाची के कंधे पर हलके नीले निशान थे और सीने के ऊपरी हिस्से पर के निशान थोड़ी लालिमा लिए हुए थे !

समझते देर न लगी की चाची पर किसी चीज़ का बहुत ही प्रेशर पड़ा है ----

ये भी सुना है की अक्सर मार पड़ने से भी शरीर के हिस्सों पे नीले दाग पड़ जाते हैं .....

इसका मतलब हो सकता है कि चाची को किसी ने मारा भी हो .....?

सोचते ही मैं सिहर उठा, रूह काँप गई मेरी --- मेरी सुन्दर, मासूम सी चाची पर कौन ऐसी दरिंदगी कर सकता है भला और क्यों?

चाची खा पी कर अपने कमरे में चली गई आराम करने और इधर मैं अपने सवालों और ख्यालों के जाल में फंसा रहा ---- |

रात हुई ....

चाची ने काफ़ी नार्मल बिहेव किया चाचा के सामने ---

तब तक काफ़ी ठीक भी हो गई थी --- मैंने भी रोज़ के जैसा ही बर्ताव किया ... सब ठीक टाइम पर खाए पीये और सो गए; मुझे छोड़ के !

मैं देर रात तक जागता रहा ...

कश पे कश लगाता रहा और सिगरेट पे सिगरेट ख़त्म करता रहा --- जितना सोचता उतना उलझता --- एक पॉइंट पे आ कर मुझे ये भी लगने लगा की जो भी संकट या गड़बड़ है, इसमें शायद कहीं न कहीं चाची का खुद का कोई योगदान है , अब चाहे वो जाने हो या अनजाने में ---

कश पे कश लगाते हुए ही मेरे दिमाग में एक सीन ने दस्तक दिया और दस्तक देते ही डेरा भी जमा लिया ---

सीन था वही सुबह वाला ---- चाची के ऑटोरिक्शा पे बैठ कर जाना और उनके पीछे उस लाल वैन का जाना ---- काले शीशों वाला वैन !

उफ़! न जाने क्यों दूसरी कोई भी बात सोचते या सोचने से पहले ही ये लाल वैन आ कर दिमाग में और आँखों के सामने चलायमान हो जाता है ---

सोचते सोचते ही अचानक से एक और बात ने मेरे मन में एक हुक सा प्रश्न चुभो दिया .....

क्या ये संभव है की जिस तरह मैंने उस लाल वैन को देखा, उसी तरह उस लाल वैन में मौजूद शख्स ने मुझे देखा हो? --- माना दूरी बहुत थी --- मैं शायद उनके पहचान में भी नहीं आऊँगा ; पर इतना तो संभव है ही कि उस या उन लोगों ने दरवाज़े पर किसी को खड़े रहते देखा हो ---? इतना तो देख ही सकते हैं ...

और,

तब तक तो चाची ने ऑटोरिक्शा भी पकड़ा नहीं था...

मोड़ के उस पार जा कर ही ऑटो ली थी ---

तो, अब अगर हिसाब लगाया जाए तो घर के लोहे वाले गेट से लेकर सड़क तक पहुँचने में ..... २ मिनट ....

रास्ते पे चलते हुए रास्ते के उस मोड़ पर पहुँचने तक ..... ५ मिनट ...

और फ़िर,

रास्ते को पार कर ... उस पार जाने में उन्हें लगा होगा करीबन .... मम्म.... २ मिनट... चूँकि ट्रैफिक अधिक न थी उस समय..

और ऑटो लेने में लगा होगा ... २ से ३ मिनट... म्मम्म... नहीं, २ मिनट ही लेता हूँ....

तो कुल मिलाकर हो गए,

ग्यारह मिनट !!

होली शिट मैन !!

इतना समय तो बहुत है ;

वो लोग जो भी होंगे उन्होंने मुझे देखा हो सकता है ---

ये आवश्यक नहीं की ऐसा ही हुआ हो --- परन्तु विद्वानों ने कहा है कि संभावनाओं को पूरी तरह से कभी भी अनदेखा नहीं करना चाहिए चाहे कितनी भी छोटी या बचकानी लगे ----

तो फ़िर ....??

दोनों ही पॉसिबिलिटी को ले कर चलना होगा,

१) उन्होंने देखा है...

२) उन्होंने मुझे नहीं देखा है .... क्योंकि शायद उस समय उनका ध्यान चाची पर ही रहा हो ...

पर,

एक बात और भी तो हो सकती है ;

और वो यह की चाची के ऑटो पकड़ कर जाने और ठीक तभी उस वैन का उस ऑटो के पीछे जाना महज एक संयोग भी तो हो सकता है ...?!

उफ़... सर भारी होने लगा ---

बची सिगरेट बुझाई..

ब्रश किया,

हाथ पैर धोया और ईश्वर का नाम ले कर सोने चला गया ---

साथ ही मन में इस बात को ठाने कि,

मैं अब से जितना हो सकेगा, चाची की हरेक गतिविधि पर नज़र रखूँगा .... ----

क्रमशः

*****************************
Reply
08-15-2021, 01:52 AM,
#53
RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
Isse sage bhi post kro plz


(09-12-2020, 12:40 PM)Itna sochna ki dekha ya nahin dekha, samajh nahin aaya, kya writer isme koi twist layega?   Dekhte hain aage padh kar desiaks Wrote:


भाग ५)

मैं काफ़ी परेशान सा था |

पता नहीं मुझे परेशान होना चाहिए था या नहीं पर जिनके साथ मैं रहता हूँ, खाना पीना, उठाना बैठना लगा रहता है... उनके प्रति थोड़ा बहुत चिंतित होना तो स्वाभाविक है |

सवालों के उधेड़बुन में फंसा था ---

क्या करूँ या क्या करना चाहिए... कुछ समझ नहीं आ रहा था ... बात कुछ ऐसी भी नहीं थी की मैं सीधे जा कर चाची से कुछ पूछ सकूँ |

कहीं न कहीं मुझे खुद के बेदाग़ रहने की भी फ़िक्र थी ... कहीं मैं ऐसा कुछ न कर दूं जिससे चाची को यह लगे की मैं चोरी छिपे उनकी जासूसी कर रहा हूँ या उनपर नज़र रखता हूँ | बहुत दिमागी पेंचें लगाने का बाद भी जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने ये सब चिंताएं छोड़ अपने काम पे ध्यान देने का निर्णय लिया और व्यस्त हो गया ----- |

जॉब मिल नहीं रही थी इसलिए मैंने अपना खर्चा निकालने के लिए इसी घर के एक अलग बने कमरे में ट्यूशन (कोचिंग करने) पढ़ाने लगा था | कुछ महीनो में ही कोचिंग जम गया गया था और अच्छे पैसे भी आने लगे थे | कभी कभी उन पैसों से चाची के लिए कोई कीमती साड़ी और चाचा के लिए एक अच्छी ब्रांडेड शर्ट खरीद कर ला देता ----

चाची को कपड़ो का बहुत शौक था इसलिए जब भी कोई कीमती साड़ी उन्हें लाकर देता तो वो मना तो करतीं पर साथ ही बड़ी खुश भी होती |

खैर, बहुत देर बाद चाची निकली..

अब भी थोड़ा लंगड़ा रही थीं, मैंने पूछना चाहा पर पता नहीं क्यों... चुप रहना ही श्रेष्ठ समझा ---

मुझे सामने देख कर चाची ने इधर उधर की बातें कीं --- अपने लिए थोड़ा सा खाना निकाला उन्होंने --- मेरे पूछने पर बताया की वो बाहर से ही खा कर आई है --- अपनी किसी सहेली का नाम भी बताया उन्होंने |

ठीक से खाया नहीं जा रहा था उनसे ....

बोलते समय आवाज़ काँप रही थी उनकी ....

आँखों में भी बहुत रूआंसापन था... |

मैं अन्दर ही अन्दर कन्फर्म हो गया था की यार कहीं न कहीं , कुछ न कुछ गड़बड़ है और मुझे इस गड़बड़ का कारण / जड़ का पता करना पड़ेगा | कहीं ऐसा ना हो की समय हाथ से यूँ ही निकल जाए और कोई बड़ा और गंभीर काण्ड हो जाए ... |

सोचते सोचते मेरी नज़र उनके कंधे और ऊपरी सीने पर गई ----

दोबारा चौंकने की बारी थी ....

चाची के कंधे पर हलके नीले निशान थे और सीने के ऊपरी हिस्से पर के निशान थोड़ी लालिमा लिए हुए थे !

समझते देर न लगी की चाची पर किसी चीज़ का बहुत ही प्रेशर पड़ा है ----

ये भी सुना है की अक्सर मार पड़ने से भी शरीर के हिस्सों पे नीले दाग पड़ जाते हैं .....

इसका मतलब हो सकता है कि चाची को किसी ने मारा भी हो .....?

सोचते ही मैं सिहर उठा, रूह काँप गई मेरी --- मेरी सुन्दर, मासूम सी चाची पर कौन ऐसी दरिंदगी कर सकता है भला और क्यों?

चाची खा पी कर अपने कमरे में चली गई आराम करने और इधर मैं अपने सवालों और ख्यालों के जाल में फंसा रहा ---- |

रात हुई ....

चाची ने काफ़ी नार्मल बिहेव किया चाचा के सामने ---

तब तक काफ़ी ठीक भी हो गई थी --- मैंने भी रोज़ के जैसा ही बर्ताव किया ... सब ठीक टाइम पर खाए पीये और सो गए; मुझे छोड़ के !

मैं देर रात तक जागता रहा ...

कश पे कश लगाता रहा और सिगरेट पे सिगरेट ख़त्म करता रहा --- जितना सोचता उतना उलझता --- एक पॉइंट पे आ कर मुझे ये भी लगने लगा की जो भी संकट या गड़बड़ है, इसमें शायद कहीं न कहीं चाची का खुद का कोई योगदान है , अब चाहे वो जाने हो या अनजाने में ---

कश पे कश लगाते हुए ही मेरे दिमाग में एक सीन ने दस्तक दिया और दस्तक देते ही डेरा भी जमा लिया ---

सीन था वही सुबह वाला ---- चाची के ऑटोरिक्शा पे बैठ कर जाना और उनके पीछे उस लाल वैन का जाना ---- काले शीशों वाला वैन !

उफ़! न जाने क्यों दूसरी कोई भी बात सोचते या सोचने से पहले ही ये लाल वैन आ कर दिमाग में और आँखों के सामने चलायमान हो जाता है ---

सोचते सोचते ही अचानक से एक और बात ने मेरे मन में एक हुक सा प्रश्न चुभो दिया .....

क्या ये संभव है की जिस तरह मैंने उस लाल वैन को देखा, उसी तरह उस लाल वैन में मौजूद शख्स ने मुझे देखा हो? --- माना दूरी बहुत थी --- मैं शायद उनके पहचान में भी नहीं आऊँगा ; पर इतना तो संभव है ही कि उस या उन लोगों ने दरवाज़े पर किसी को खड़े रहते देखा हो ---? इतना तो देख ही सकते हैं ...

और,

तब तक तो चाची ने ऑटोरिक्शा भी पकड़ा नहीं था...

मोड़ के उस पार जा कर ही ऑटो ली थी ---

तो, अब अगर हिसाब लगाया जाए तो घर के लोहे वाले गेट से लेकर सड़क तक पहुँचने में ..... २ मिनट ....

रास्ते पे चलते हुए रास्ते के उस मोड़ पर पहुँचने तक ..... ५ मिनट ...

और फ़िर,

रास्ते को पार कर ... उस पार जाने में उन्हें लगा होगा करीबन .... मम्म.... २ मिनट... चूँकि ट्रैफिक अधिक न थी उस समय..

और ऑटो लेने में लगा होगा ... २ से ३ मिनट... म्मम्म... नहीं, २ मिनट ही लेता हूँ....

तो कुल मिलाकर हो गए,

ग्यारह मिनट !!

होली शिट मैन !!

इतना समय तो बहुत है ;

वो लोग जो भी होंगे उन्होंने मुझे देखा हो सकता है ---

ये आवश्यक नहीं की ऐसा ही हुआ हो --- परन्तु विद्वानों ने कहा है कि संभावनाओं को पूरी तरह से कभी भी अनदेखा नहीं करना चाहिए चाहे कितनी भी छोटी या बचकानी लगे ----

तो फ़िर ....??

दोनों ही पॉसिबिलिटी को ले कर चलना होगा,

१) उन्होंने देखा है...

२) उन्होंने मुझे नहीं देखा है .... क्योंकि शायद उस समय उनका ध्यान चाची पर ही रहा हो ...

पर,

एक बात और भी तो हो सकती है ;

और वो यह की चाची के ऑटो पकड़ कर जाने और ठीक तभी उस वैन का उस ऑटो के पीछे जाना महज एक संयोग भी तो हो सकता है ...?!

उफ़... सर भारी होने लगा ---

बची सिगरेट बुझाई..

ब्रश किया,

हाथ पैर धोया और ईश्वर का नाम ले कर सोने चला गया ---

साथ ही मन में इस बात को ठाने कि,

मैं अब से जितना हो सकेगा, चाची की हरेक गतिविधि पर नज़र रखूँगा .... ----

क्रमशः

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Reply
08-15-2021, 04:09 PM,
#54
RE: Kamukta kahani अनौखा जाल
Badhiya thriller hai. Sahi ja raha hai.
Ab 3rd twist ki mona bhi kuch soch rahi hai, lagta hai maza aayega.
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