Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
10-18-2020, 06:43 PM,
#61
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“क्या आप लेडीज के सामने बड़े समार्ट बनकर दिखा रहे हैं । लाकअप में बन्द होंगे तो आपकी स्मार्टनैस देखने वाला वहां कोई नहीं होगा । अब जल्दी फैसला कीजिये कि आप एक कत्ल की पुलिस इंक्वायरी से यहीं दो-चार होंगे या मैं आपको चौकी तक घसीटता हुआ ले के चलूं ?”
“विकी !” - ज्योति चेतावनीभरे स्वर में बोली - “फार गॉड सेक, बिहेव ।”
“ओके !” - निगम बोला - “ओके । आई एम विद यू, बॉस ।”
“दैट्स बैटर ।” - सोलंकी बोला - “नाओ पे अटेंशन टु वाट आई से ।”
“यस, सर ।”
“यहां रीयूनियन पार्टी में शामिल लोगों का कहना है कि इनमें से किसी ने भी पिछले सात साल से पायल पाटिल को नहीं देखा था - सिवाय आपकी बीवी के जो कि कल बहुत सुबह-सवेरे तब पायल से मिली थी जबकि वो चोरों की तरह चुपचाप यहां से खिसक रही थी । मेरा आपसे सवाल ये है कि क्या आप पिछले सात सालों में कभी पायल से मिले थे ?”
नहीं ।”
“वाकिफ तो आप थे न उससे ?”
“हां, वाकिफ तो था । जिन दिनों सतीश की बुलबुलों ने फारेन गारमैंट्स के फैशन शोज के जरिये सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी, उन दिनों ज्योति ने ही मुझे उससे इन्ट्रोड्यूस कराया था ।”
“वो इन्ट्रोडक्शन दोस्ती में या गहरी दोस्ती में तब्दील हो पायी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“कोतवाल साहब” - उसने अपनी बीवी की ओर संकेत किया - “की वजह से ।”
“यानी कि ये वजह न होतीं तो आप तो काफी आगे बढ गये होते ।”
“ये भी कोई कहने की बात है ! तब मैं पायल के साथ ही क्यों, बाकी बुलबुलों के साथ भी काफी आगे बढ गया होता । ज्योति ने आखिर मुझे सबसे इन्ट्रोड्यूस कराया था ।”
ज्योति के माथे पर बल पड़े, फिर वो जबरन मुस्कराती हुई बोली - “मजाक कर रहे हैं ।”
“सात साल पहले की उस पार्टी में, जिसमें कि दुर्घटनावश नाडकर्णी अपनी जान खो बैठा था, अपनी बीवी के साथ आप भी शामिल थे ?”
“हां । लेकिन तब अभी ज्योति मेरी बीवी नहीं बनी थी । हमारी शादी उस पार्टी के बाद सर्दियों में हुई थी ।”
“उस पार्टी में आप पायल से मिले थे ?”
“हां । जाहिर है ।”
“और वो पायल से आपकी आखिरी मुलाकात थी ? तब से आज तक आपने पायल की सूरत नहीं देखी ? राइट ?”
“राइट ।” - निगम बोला, फिर एकाएक वो एक अबोध बालक की तरह मुस्कराया । एक उस मुस्कराहट से ही उसकी सारी शख्सियत में ऐसी इंकलाबी तब्दीली आयी कि राज भी उससे प्रभावित हुए बिना न रह सका । शायद अपनी ऐसी ही खूबियों से पिछले सात साल से वो अपनी बीवी को मन्त्रमुग्ध किये था - “अब आप अगर इजाजत दें तो मैं बाहर जाकर टयोटा-टयोटा खेल आऊं ?”
जवाब में सोलंकी ने उसकी तरफ से मुंह फेर लिया और रोशन बालपाण्डे की तरफ आकर्षित हुआ ।
“मिस्टर बालपाण्डे, आप बताइये, आप वाकिफ थे पायल से ?”
“हां ।” - वो सावधान स्वर में बोला ।
“बाकी लड़कियों से भी ?”
“हां । बाकी लड़कियों से भी ।”
“कहां मिले थे ?”
“खण्डाला में । वहां हमारी फैमिली लॉज है जो उन दिनों खाली पड़ी थी । लड़कियां पूना में शो के लिये इकट्ठी हुई थीं । मैंने सबको ओवरनाइट पार्टी के लिये खण्डाला अपनी लॉज पर इनवाइट किया था ।”
“आपने इनवाइट किया था ! मालदार आदमी हैं आप ?”
“हमारा कपड़े का सौ साल पुराना बिजनेस है ।” - वो गर्व से बोला - “पूना, अहमदाबाद और सूरत में मिलें हैं ।”
“तभी तो आप अपनी कम-उम्री में भी हिल स्टेशन पर ग्रैंड पार्टियां देना अफोर्ड कर सकते थे ।”
“मिस्टर सतीश जितनी ग्रैंड नहीं ।” - उसने तारीफी निगाहों से खामोश बैठे सतीश की तरफ देखा - “ही इज पास्टमास्टर ऑन सच थिंग्स । इनसे बढिया पार्टी तो कोई तेल के कुओं का मालिक अरबी सुलतान ही दे सकता है ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।” - सतीश बड़े शिष्ट भाव से मुस्कराता हुआ बोला ।
“बात तो ऐसी ही है लेकिन ये आपका बड़प्पन है कि आप कह रहे हैं कि ऐसी कोई बात नहीं ।”
“क्या पार्टी थी वो भी !” - शशिबाला स्वप्निल स्वर में बोली ।
“तब हम” - ज्योति बोली - “सब ताजी-ताजी बालिग हुई थीं और ग्लैमर की चकाचौंध से हमारा वास्ता बस पड़ा ही था, इसलिये भी वो पार्टी यादगार थी ।”
“नौजवानी भी” - फौजिया आह-सी भरकर बोली - “क्या दिलफरेब चीज होती है ! एक बार चली जाये तो लौटकर नहीं आती ।”
“काश !” - डॉली बोली - “हम सब फिर षोडषी बालायें बन सकें ।”
“सत्तरह तक भी चलेगा ।” - आलोका बोली ।
“लैट्स कम टु दि प्वायन्ट ।” - सोलंकी वार्तालाप का सूत्र फिर अपने हाथ में लेता हुआ बोला - “मिस्टर बालपाण्डे, क्योंकि सतीश की बुलबुलें कहलाने वाली लड़कियों में से ही एक से आपने शादी की थी इसलिये बाद में भी आपका बाकी लड़कियों से सम्पर्क बना रहा होगा ?”
“हां ।”
“पायल से भी ?”
“हां । वो क्या है कि तब तक अभी मेरा आलोका में कोई स्पेशल इन्टरेस्ट नहीं बना था ।”
“क्योंकि” - आलोका व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “मैंने तुम्हें जरा देर से देखा था, पायल ने तुम्हें पहले देख लिया था ।”
“वो बात नहीं । बहरहाल ये हकीकत है कि पूना वाले शो के बाद जब शो बम्बई मूव कर गया था तो वहां मेरी पायल से चन्द मुलाकातें हुई थीं लेकिन उसने मेरे में कोई खास दिलचस्पी नहीं ली थी । फिर तभी बड़ा खलीफा श्याम नाडकर्णी बीच में आ टपका था और फिर मेरे जैसे कॉलेज के नातजुर्बेकार छोकरे के लिये उसकी जिन्दगी में कोई जगह नहीं रही थी ।”
“आप मिस्टर सतीश की उस पार्टी में शामिल थे, जिसमें कि नाडकर्णी की मौत हुई थी ?”
“नहीं ।”
“तो फिर आलोका आपको दोबारा कब मिली थी ?”
“शुरुआती मुलाकात के तीन साल बाद । बम्बई में । वहीं मैंने इससे शादी की थी और फिर पूना जाकर अपने बिजनेस में सैटल हो गया था ।”
“जैसे इत्तफाक से तीन साल बाद आपकी आलोका से दोबारा मुलाकात हो गयी, वैसी कभी पायल से न हुई ?”
“हुई । एक बार हुई ।”
“कब ? कहां ?”
“कोई तीन साल पहले । आलोका से मेरी शादी के कुछ ही महीने बाद । सूरत में मिली थी वो मुझे जहां कि मैं अपने बिजनेस के सिलसिले में गया था ।”
उस रहस्योद्घाटन से तमाम श्रोताओं में उत्तेजना की लहर दौड़ गई ।
“तो” - सतीश मन्त्रमुग्ध-सा बोला - “आखिरकार किसी को पायल मिली थी ।”
“हां ।” - बालपाण्डे ने दोहराया - “मुझे मिली थी । बोला न ।”
“जरूर ये बात तुमने अपनी बीवी से छुपाकर रखी होगी ?”
“नहीं तो । मैंने तो पूना से लौटते ही इसे बताया था कि सूरत में मुझे पायल मिली थी ।”
“माई हनी चाइल्ड ।” - सतीश सख्त शिकायत-भरे लहजे में आलोका से सम्बोधित हुआ - “तुमने इतनी अहम बात हमसे छुपाकर रखी । हम हर रीयूनियन पार्टी में पायल के बारे में सोचते रहे, बातें करते रहे, फिक्रमन्द होते रहे, इस फानी दुनिया में उसकी सलामती की दुआयें मांगते रहे फिर भी तुमने कभी ये नहीं बताया कि तुम्हारा हसबैंड पायल से मिला था ?”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?” - आलोका बोली - “मैंने जरूर बताया होगा ।”
“नहीं बताया, हनी । बताया होता तो ये क्या कोई भूलने वाली बात थी ।” - फिर वो बालपाण्डे की तरफ घूमा और बड़े व्यग्र भाव से बोला - “तो वो तुम्हें सूरत में मिली थी ?”
“हां । वहां वैशाली सिनेमा की लॉबी में इत्तफाक से वो मुझे दिखाई दे गयी थी ।”
“वो वहां क्या कर रही थी ?”
“जाहिर है कि” - डॉली बोली - “सिनेमा देखने जा रही थी ।”
“डॉली !” - ज्योति बोली - “चुप रह । रोशन को अपनी बात कहने दे ।”
“मैं बस जरा-सी देर के लिये उससे मिला था ।” - रोशन बालपाण्डे बोला - “कोई खास बात तो हो नहीं पायी थी । बस, पूरा वक्फा वो तुम लोगों की बाबत ही सवाल करती रही थी ।”
“तुमने उससे कोई सवाल नहीं किया था” - सतीश बोला - “कि इतने सालों से वो कहां गायब थी ?”
“वो जल्दी में थी और...”
“फिल्म देखने की जल्दी में थी ?” - डॉली बोली ।
“और क्या ?” - ज्योति उत्सुक भाव से बोली ।
“सच बात ये है कि वो मेरे से मिलकर कोई खास राजी नहीं हुई थी । मुझे तो ये तक महसूस हुआ था कि मुझे देखकर उसने लॉबी की भीड़ में गुम हो जाने की कोशिश की थी । वो तो मैं ही जोश में लपककर उसके सामने जा खड़ा हुआ था । मेरे किसी भी सवाल का जवाब उसने अगले रोज लंच पर मिलने का वादा करके टाल दिया था । हमने ‘ओयसिस’ में लंच अप्वायन्टमेंट फिक्स की थी लेकिन अगले रोज वो वहां पहुंची ही नहीं थी ।”
“धोखा दे गयी ?”
“यही समझ लो । तब मुझे लगा था कि असल में उसकी मेरे से दोबारा मिलने की कोई मर्जी थी ही नहीं । उसने महज मेरे से पीछा छुड़ाने के लिये उस अप्वायन्टमैंट के लिये हामी भर दी थी ।”
Reply
10-18-2020, 06:43 PM,
#62
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“ओह !”
“मेरे जेहन में बहुत सवाल थे जो मैं उससे पूछना चाहता था लेकिन नौबत ही न आयी तरीके से कुछ पूछने की । वहां ‘वैशाली’ की लॉबी में मैं उसकी बाबत उससे एक सवाल पूछता था तो उसका जवाब देने की जगह वो बदले में मेरे से तीन सवाल मेरी और आलोका की बाबत कर देती थी, आप लोगों की बाबत कर देती थी ।”
“फिर क्या फायदा हुआ उस मुलाकात का ?” - ब्राण्डो बड़बड़ाया ।
“कोई फायदा न हुआ ।” - बालपाण्डे ने कबूल किया - “उसने तो मुझे ये तक न बताया कि वो वहां सूरत में कर क्या रही थी ? फिर भी जिद करके पूछा तो वही कह दिया जो अभी डॉली ने कहा था ।”
“सिनेमा देखने जा रही थी’ ?” - डॉली बोली ।
“हां ।”
“कमाल है ।”
“अच्छा, ये तो बताओ” - शशिबाला बोली - “कि तब देखने में कैसी लगती थी वो ?”
“अब क्या बताऊं ?” - बालपाण्डे हिचकिचाता-सा बोला ।
“क्यों ? क्या हुआ ?”
“एक फिकरे में कहूं तो उजड़ी हुई लग रही थी । इसीलिये एकबारगी तो मैंने उसे पहचाना भी नहीं था ।”
“क्या कह रहे हो !” - शशिबाला अविश्वासपूर्ण स्वर में बोली ।
“मैं ठीक कह रहा हूं ।”
“लेकिन अभी कल सुबह जब ज्योति ने उसे देखा था तो... ज्योति तू ही बता न ?”
“मैं पहले ही बता चुकी हूं ।” - ज्योति बोली - “मुझे तो कल सुबह वो ऐन वैसी ही लगी थी जैसी वो सात साल पहले थी । बल्कि पहले से ज्यादा हसीन, ज्यादा दिलकश लगी थी । फर के सफेद कोट में तो वो कोई महारानी लग रही थी ।”
“हसीन वो तब भी लग रही थी” - बालपाण्डे बोला - “दिलकश भी लग रही थी लेकिन वैसे ही जैसे किसी राजमहल का खंडहर लगता है ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ? तुम जरूर बात को बढा-चढाकर कह रहे हो ।”
“या तुम पायल से मिले ही नही थे ।” - फौजिया बोली - “तुम किसी और ही से मिले थे जिसे कि तुम पायल समझ बैठे थे ।”
“वॉट नानसेंस ! कोई और मुझे कैसे जानती हो सकती थी ? मिस्टर सतीश को कैसे जानती हो सकती थी ? तुम सबको कैसे जानती हो सकती थी ? तुम में से एक-एक का नाम कैसे जानती हो सकती थी ?”
फौजिया से जवाब देते न बना । वो तत्काल परे देखने लगी ।
“कहीं वो बीमार तो नहीं थी ?” - डॉली बोली ।
“बीमार ?”
“कैंसर । लाइक जया भादुड़ी इन मिली । ऑर राजेश खन्ना इन आनन्द ! नो ?”
“नो ।” - जवाब पुरजोर लहजे में ज्योति ने दिया - “जो लड़की कल सुबह ताजे खिले गुलाब जैसी तरोताजा यहां मौजूद थी, उसे कैंसर नहीं हो सकता । होता तो वो अब तक कब की ऊपर पहुंच चुकी होती ।”
“तो क्या बात थी ?”
“वो बीमार नहीं लग रही थी ।” - बालपाण्डे बोला - “वो तो... वो तो बस थकी-हारी, हलकान, हैरान-परेशान, बुझी-बुझी-सी लग रही थी । कितनी सज-धज के साथ रहने की आदी थी वो लड़की ! उम्दा पोशाक ! बढिया जेवर ! लेटेस्ट हेयर स्टाइल ! पर्फेक्ट मेकअप । कितना ज्यादा ख्याल रखा करती थी वो अपनी अपीयरेंस का ! लेकिन तब ? तब वो ऐसी लग रही थी जैसे अभी सो के उठी हो और सीधे बिस्तर से निकल कर चली आयी हो ! कोई परवाह ही नहीं मालूम होती थी उसे अपनी शक्ल-सूरत की या पोशाक की ।”
“अपने आपसे इतनी लापरवाह क्योंकर हो हयी वो ?” - शशिबाला बोली ।
“हम लोग एक बात भूल रहे हैं ।” - सतीश बोला ।
सबकी निगाहें सतीश की तरफ उठ गयीं ।
“वो विधवा थी ।”
“तो क्या हुआ ! ये कोई मानने वाली बात है कि इतने सालों बाद तक भी वो अपने स्वर्गवासी पति का मातम ही मना रही थी ?”
“ऐसी बातों से बाज लड़कियों का दिल बुझ जाता है ।”
“वो बाज लड़की नहीं थी । वो खास लड़की थी । वो हममें से एक थी । वो हम जैसी थी । जैसे हम अपने आपको जानती हैं, वैसे हम पायल को जानती थीं ।”
“हां ।” - फौजिया बोली - “तीन साल से भी ऊपर हो चुकने तक वो अपने जन्नतनशीन खाविन्द के लिये सोगवार हो, ये पायल की फितरत से मेल नहीं खाता ।”
Reply
10-18-2020, 06:43 PM,
#63
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“और सौ बातों की एक बात ।” - ज्योति बोली - “कल जब मैंने उसे देखा था, तब वो ऐसी नहीं थी । सात साल पहले की अपनी ट्रेजेडी को वो जरूर नहीं भूली थी, उस बाबत जज्बाती भी वो बहुत हुई थी लेकिन डैडियो, उसके लिये तुम्हारे सोचे विधवा वाले रोल में वो कहीं फिट नहीं हो रही थी । उसकी उस घड़ी की चमक-दमक तो ऐसी थी कि अच्छी-भली औरत उसके पहलू में खड़ी होती तो वो विधवा लगने लगती । उसने हम लोगों के जज्बात का ख्याल किया जो यहां आ कर भी चुपचाप चली गयी, वो अपनी जिन्दगी में अपने-आपको आदर्श भारतीय नारी के अन्दाज से परम्परागत विधवा कबूल कर चुकी होती तो इधर का रुख ही न करती । आखिर पिछली छः बार से भी तो वो तुम्हारे रीयूनियन पार्टी के न्योते को नजरअन्दाज कर रही है ।”
“तुम एक बात भूल रही हो ।” - शशिबाला बोली - “वो सिर्फ रीयूनियन पार्टी में शामिल होने के लिये ही यहां नहीं आयी थी, बकौल सतीश, उसे यहां और भी काम था, कोई और ऐसा जरूरी काम था जिसे करने में उसके बारह-तेरह घण्टे खर्च हुए थे ।”
“हां ।” - सतीश बोला - “क्या काम होगा उसे ? क्यों साहबान ?” - वो दोनों पुलिस अधिकारियों से सम्बोधित हुआ - “ईस्ट एण्ड से कुछ जाना आपने ? आप वहां पायल की बाबत तफ्तीश करने वाले थे ?”
“ये अभी तक यहीं हैं ?” - डॉली बोली ।
“हां ।” - ज्योति बोली - “और हम सब इनके सामने अन्धाधुन्ध मुंह फाड़ रहे हैं । पता नहीं क्या कुछ कह दिया हम लोगों ने जो ये गांठ बांध चुके होंगे ।”
“हमारा पुलिस से कोई छुपाव नहीं है ।” - सतीश बोला - “हम इनकी तरफ हैं । कातिल को पकड़वाने के मामले में हम इनकी हर मुमकिन मदद करने को तैयार हैं ।”
“वुई एप्रीशियेट द स्पिरिट, सर ।” - सोलंकी बोला ।
“लेकिन मुझे मेरे सवाल का जवाब नहीं मिला । कल आप कह रहे थे कि आप सब मालूम कर लेंगे कि पायल को ईस्टएण्ड पर कहां काम था, किससे काम था, कितनी देर तक काम था वगैरह...”
“हमें उस लाइन पर तफ्तीश करने का अभी मौका नहीं मिला ।” - सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा बोला - “हमारे पास स्टाफ की कमी है ।”
“तो और स्टाफ मंगाओ, भई । आखिर पणजी से ये इंस्पेक्टर साहब भी तो आये हैं ।”
“हम करेंगे कुछ इस बाबत ।” - सोलंकी बोला ।
“अभी तो आपको पायल की लाश तलाश करने के लिये भी आदमी चाहियें । फिर...”
तभी एक हवलदार वहां पहुंचा । ब्राण्डो की तरफ से तवज्जो हटाकर दोनों पुलिस अधिकारियों ने उसकी तरफ देखा ।
“साहब !” - हवलदार बोला - “कुएं से सामान निकाल लिया गया है ।”
“कुएं से ?” - ब्राण्डो हकबकाया-सा बोला - “कुएं की तलाशी आप कल ले तो चुके थे ।”
“आज फिर उसमें आदमी उतारा गया था ।” - फिगुएरा सहज भाव से बोला ।
“आज फिर क्यों ?”
फिगुएरा ने उत्तर न दिया ।
“आज क्या मिला वहां से ?” - ब्राण्डो ने पूछा ।
“पता नहीं । देखने पर पता चलेगा ।”
“तफ्तीश का सिलसिला” - सोलंकी बोला - “थोड़ी देर के लिये मुल्तवी किया जा रहा है । आप लोग बरायमेहरबानी एस्टेट में ही रहें, कहीं बाहर न जायें, कहीं दूर न निकल जायें ।”
“हम यहां गिरफ्तार हैं ?” - फौजिया बोली ।
“गिरफ्तार नहीं हैं, मैडम, लेकिन यहां से एकाएक कूच कर जाने की मंशा रखने वाले को गिरफ्तार किया जा सकता है । सो देअर ।”
फिर तत्काल दोनों पुलिस आधिकारी वहां से रुख्सत हो गये ।
***
ग्यारह बजे ब्रेकफास्ट हुआ जिसके बाद डॉली और राज टहलते हुए मैंशन के पिछवाड़े में ब्राण्डो के प्राइवेट बीच की ओर निकल गये ।
उस घड़ी कुएं के करीब कोई नहीं था ।
ⳕ”क्या बरामद हुआ होगा ?” - डॉली सस्पेंसभरे स्वर में बोली ।
“पता नहीं ।” - राज बोला - “लेकिन पता चल जायेगा ।”
“कोई खास ही चीज बरामद हुई होगी जो वो पुलसिये अभी तक खामोश हैं ।”
“या बहुत खास या निहायत मामूली । जिक्र न करने के काबिल ।”
“ये कैसे हो सकता है ? कोई आधी रात के बाद चोरों की तरह कुएं तक पहुंचा तो उसमें कोई मामूली, जिक्र न करने के काबिल, चीज फेंक कर गया ?”
“वो चीज फेंकने वाले के लिये अहम होगी, बरामद करने वाले के लिये अहम नहीं होगी । बहरहाल इस बाबत जो होगा, सामने आ जायेगा ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया और फिर बोली - “तुम्हारे ख्याल से पायल की लाश बरामद हो जायेगी ?”
“हो ही जानी चाहिये !”
“उसके हसबैंड की तो आज तक बरामद न हुई ।”
“उसकी लाश को तो तुम लोग बताते हो कि समुद्र लील गया था । लेकिन पायल के साथ तो ऐसा नहीं हुआ । आयशा ने उसकी लाश देखी थी, तभी तो उसने चौकी पर फोन किया था ।”
“उसे खबर कैसे लगी होगी पायल की लाश की ? पता कैसे लगा होगा, या सूझा कैसे होगा उसे कि फलां जगह पायल की लाश पड़ी थी ?”
“शायद पायल ने ही किसी तरीके से आयशा से सम्पर्क साधा हो और उससे कोई मदद मांगी हो और फिर उसे मुलाकात के लिये कहीं बुलाया हो । आयशा वहां लेट पहुंची होगी । वहां पायल का कत्ल पहले ही हो चुका होगा ।”
“ओह !”
“ये आयशा तुम लोगों के मुकाबले में पायल की ज्यादा सहेली थी ?”
“ऐसी तो कोई बात नहीं थी अलबत्ता आयशा में ही कोई ऐसी खूबी जरूर थी कि हममें से किसी को किसी मदद या सलाह की जरूरत होती थी तो हम उसी से बात करती थीं । इसीलिये पायल ने ऐसा किया होगा ।”
“पायल से तुम्हारी कैसी बनती थी ?”
“वैसी ही जैसी बाकी बुलबुलों की बनती थी ?”
“मुलाकात ब्राण्डो के सौजन्य से ही हुई थी या तुम पहले से एक-दूसरे से वाकिफ थीं ?”
“पहले से वाकिफ थीं । अलबत्ता जान-पहचान निहायत मामूली थी । वो क्या है कि उन दिनों हम दोनों ही कुछ बन जाने जाने की फिराक में फिल्म प्रोड्यूसरों के दफ्तरों के, स्टूडियोज के, विज्ञापन एजेन्सियों के दफ्तरों वगैरह के चक्कर लगाया करती थीं । लिहाजा कहीं-न-कहीं टकराव हो ही जाता था ।”
“ऐसे चक्कर कहां लगते थे ?”
“बम्बई में ?”
“तुम बम्बई की रहने वाली हो ?”
“हां ।”
“पायल भी ?”
“नहीं । वो बड़ोदा से थी ।”
“उसकी फैमिली के बारे में कुछ जानती हो तुम ?”
Reply
10-18-2020, 06:44 PM,
#64
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“न । कतई कुछ नहीं जानती मैं ।”
“वो कभी जिक्र नहीं करती थी अपनी फैमिली का ? मां-बाप का ? किसी भाई का ? बहन का ? किसी और करीबी रिश्तेदार का जो कि उसका वारिस होने का दावेदार बन सके ?”
“नहीं करती थी । मुझे तो लगता है कि वो कोई अनाथ लड़की थी ।”
“दख्ल दौलत का हो तो अनाथों के नाथ निकल आते हैं । जरा इस बात को आम हो लेने दो कि पायल ढाई-करोड़ की रकम की स्वामिनी बनकर मरी थी, फिर देखना ऐसे-ऐसे सगे वाले निकल आयेंगे उसके जिनका कि अपनी जिन्दगी में उसने कभी नाम भी नहीं सुना होगा ।”
“कहीं ऐसा तो नहीं कि ये खबर पहले ही आम हो चुकी थी और किसी ने पायल का वारिस बनकर इस रकम पर काबिज होने के लिये उसका खून कर दिया था ।”
“यानी कि बुलबुलों में से ही कोई उसकी करीबी या दूर-दराज की रिश्तेदार है ?”
“वो कैसे ?”
“भई कत्ल का शक तो यहां मौजूद लोगों में से ही किसी पर किया जा रहा है ।”
“ओह ! नहीं, नहीं । हमारी उससे कोई रिश्तेदारी नहीं ।”
“तुम अपने बारे में ऐसा कह सकती हो । औरों की गारण्टी कैसे कर सकती हो ?”
“ऐसा कहीं होता है ? पूरे तीन साल हमने साथ गुजारे फिर भी हमें पता न लगा हो कि हममें से कोई पायल की किसी तरीके से रिश्तेदार भी थी, ऐसा कहीं हो सकता है ? ऐसी बात कहीं छुपती है ? ऐसी बात का जिक्र तो आके रहता है किसी न किसी तरीके से ।”
“श्याम नाडकर्णी से कैसे शादी कर ली थी उसने ?”
“बस, कर ली थी ।”
“कितनी उम्र का आदमी था वो शादी के वक्त ?”
“यही कोई तीस बत्तीस का ।”
“फिर तो नौजवान ही हुआ ।”
“हां ।”
“और पायल की क्या उम्र थी तब ?”
“वो तब अभी मुश्किल से बीस की हुई थी ।”
“शक्ल-सूरत, तन्दुरुस्ती वगैरह में, पर्सनैलिटी वगैरह में कैसा था ये श्याम नाडकर्णी ?”
“मामूली ! सब मामूली ।”
“तो फिर गैर-मामूली क्या था जिसका पायल ने रोब खाया ?”
“उसका ताजा-ताजा बाप मरा था जिसकी ढेरों दौलत का वो इकलौता वारिस था ।”
“बस, यही सोल क्वालीफिकेशन थी नाडकर्णी की शादी के मामले में ?”
“हां । और वो भी यूं पैदा हुई थी जैसे लाटरी लगती है । बाप हट्टा-कट्टा तन्दुरुस्त आदमी था जिसे कभी जिन्दगी में जुकाम नहीं हुआ था, नब्बे साल तक हिलने वाला नहीं लगता था लेकिन फिर भी एकाएक मर गया । अपनी जिन्दगी में वो इतना सख्त मिजाज था कि लड़के को पूरे डिसिप्लिन में रखता था जिसकी वजह से बेटे के बागी हो जाने का अन्देशा था लेकिन वो परवाह नहीं करता था ।”
“यानी कि बाप जिन्दा होता तो रुपये-पैसे के मामले में श्याम नाडकर्णी की पेश न चलती !”
“सवाल ही नहीं पैदा होता । इस लिहाज से तो वो पूरी तरह से अपने बाप पर आश्रित था ।”
“ऊपर से सुन्दरियों की सोहबत का रसिया था ?”
“हां ।”
“फिर कैसे बीतती ।”
“बाप जिन्दा होता तो न बीतती । तभी तो बोला उसकी लाटरी लगी थी ।”
“पायल से उसकी आशनाई ये लाटरी लगने से पहले से थी या बाद में हुई थी ।”
“बाद में हुई थी ।”
“यानी कि काफी चालू लड़की थी ये पायल ?”
“हां । काफी अच्छे-भले सीधे चलते बटोही को रास्ता भटका देती थी ।”
“श्याम नाडकर्णी सीधा चलता बटोही था ?”
“हां ।”
“तुम्हें कैसे मालूम ?”
“बस, यूं ही ।”
“वो श्याम नाडकर्णी की पहली शादी थी ?”
पायल ने तुरन्त जवाब न दिया ।
“हां ।” - आखिरकार वो बोली ।
“और पायल की ?”
“अरे, उस नन्ही-सी लड़की की और क्या दसवीं शादी होती !”
“नन्ही-सी लड़की ने दोबारा शादी क्यों न की ?”
“तुम्हें वजह मालूम होनी चाहिये । कैसे वकील हो तुम ? अपने पति के कानूनी तौर पर मृत घोषित किये जाने से पहले वो दोबारा शादी करती तो क्या वो शादी गैर-कानूनी न मानी जाती ?”
“इस बिना पर कि उसके पति ने उसे त्याग दिया था और वो जानबूझकर गायब था, वो दोबारा शादी कर सकती थी ।”
“तब वो उस पति की सम्पति की, जिसने कि उसे त्याग दिया था, वारिस तो नहीं बन सकती थी ?”
“हां, दोनों काम तो नहीं हो सकते थे । नया पति और पुराने पति की दौलत दोनों तो उसे नहीं मिल सकते थे । ...उसे अपने पति की मौत का अफसोस था ?”
“जैसे उदगार कल वो ज्योति के सामने जाहिर करके गयी है, उससे तो लगता है कि था ।”
“अभी भी । पति की मौत के सात साल बाद भी ?”
“जाहिर है ।”
“तुम्हारी कभी उससे मुलाकात हुई ?”
“नहीं ।”
“कभी खोज-खबर भी न लगी ?”
“खोज-खबर तो लगी थी एक बार । उन दिनों मेरा इन्दौर की एक नाइट क्लब के साथ सिंगिंग असाइनमैंट चल रहा था जबकि वो मेरे से मिलने के लिये वहां पहुंची थी लेकिन इत्तफाक से ऐन उसी रोज मैं वहां नहीं गयी थी । वो मेरे लिये सन्देशा छोड़ गयी थी कि लौटकर आयेगी लेकिन कभी लौटी नहीं थी ।”
“क्यों ?”
“वो नाम को ही नाइट क्लब थी । असल में तो वो एक दारू का अड्डा ही था । पायल को वहां का माहौल नहीं भाया होगा, वापिस लौट के आने लायक नहीं लगा होगा । ऊंची नाक थी न उसकी ।”
Reply
10-18-2020, 06:44 PM,
#65
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“तुम अपने आपको बहुत कम करके आंकती हो, हमेशा बड़ी कमतरी के साथ अपना जिक्र करती हो । बावजूद इसके कि तुम्हारे में हर वो खूबी है जिसके लिये कि कोई नौजवान लड़की तरसती है ।”
“ऐसा ?”
“हां । लगता है जिन्दगी में कभी तुम्हें कोई राइट ब्रेक नहीं मिला, तुम जिन्दगी में वैसी तरक्की न कर पायीं जिसकी कि तुम ख्वाहिशमन्द हो, हकदार हो । इस वजह से तुम्हारे में हीन भावना घर कर गयी मालूम होती है ।”
“ऐसी कोई बात नहीं !”
“यानी कि तुम्हें वो कारोबार पसन्द है जिसमें कि तुम आजकल हो ? तुम शराबखानों में, नाइट क्लबों में गाना पसन्द करती हो ?”
“जरा भी नहीं ।”
“तो फिर क्यों करती हो वो काम ?”
“पापी पेट का” - उसने जोर से अपने पेट पर हाथ मारा - “सवाल है, बाबू ।”
“तुम मजाक कर रही हो ।”
“गम्भीर जवाब ये है कि मेरे से कम्प्रोमाइज नहीं होता । ऊंचा उठने के लिये मैं नीचे नहीं गिर सकती । दौलत की खातिर जिस-तिस की गोद में उछाला जाना कबूल नहीं कर सकती । कल भी बोला था । भूल गये ?”
“नहीं, भूला तो नहीं लेकिन...”
एकाएक उसने कसकर राज की बांह पकड़ी ।
“क्या हुआ ?” - राज सकपकाया ।
“उधर ।” - वो फुसफुसाती-सी बोली - “रेत के उस टीले के पीछे कोई है ।”
“कौन है ?” - राज गरदन निकालकर टीले की दिशा में झांकता हुआ बोला ।
“विकी ।” - डॉली बोली - “ज्योति का हसबैंड ।”
“ये यहां क्या कर रहा है चोरों की तरह छुपकर ?”
“क्या कर रहा है ?”
राज के देखते-देखते कौशल निगम ने अपनी कमीज के सामने के बटन खोले और उसे कन्धों पर पीछे को सरकाकर उसकी आस्तीन में से अपनी बायीं बांह निकाली । फिर उसने अपनी जीन की पिछली जेब में से एक चपटी बोतल निकाली ।
“घूंट लगाने की फिराक में है ।” - डॉली बोली - “रम मालूम होती है ।”
“नहीं । कोई और ही चक्कर है ।”
“क्या ?”
“चुप रहो । देखो ।”
निगम ने शीशी का ढक्कन खोलकर एक काला-सा लोशन अपनी दायीं हथेली पर पलटा और फिर उसे धीरे-धीरे अपनी बायीं बांह पर कन्धे से कलाई तक मलने लगा ।
“इसकी ये बांह” - एकाएक डॉली बोली - “लाल सुर्ख क्यों लग रही है ।”
“झुलसी हुई है ।”
“झुलसी हुई है ! आग से ?”
“नहीं । धूप से । सनबर्न है ।”
“सनबर्न ?”
“बहुत तकलीफ देने वाली आइटम है । जरा याद करो जब ये यहां पहुंचा था और सतीश ने इसके स्वागत में इसके बगलगीर होकर इसकी बायीं बांह थामी थी तो ये कैसा तड़पा था ! और एकाएक कैसे हिंसक भाव से सतीश से पेश आया था ?”
“हां, याद है । सतीश तो बेचारा हक्का-बक्का रह गया था उसके व्यवहार से ।”
“अनजाने में उसने इसकी धूप से झुलसी बांह थाम ली थी ।”
“तो वो कह देता ऐसा । ये पाखण्ड करने की क्या जरूरत थी कि उससे हाथापायी बर्दाशत नहीं होती थी !”
“जरूर वो सनबर्न की वजह छुपाना चाहता होगा ।”
“वजह ! वजह क्या होगी ?”
“खास ही होगी । छुपाने लायक ।”
“क्या ?”
राज सोचने लगा ।
“उसकी कार !” - एकाएक वो हौले-से चुटकी बजाता हुआ बोला - “उसकी सफेद टयोटा कार जिसे बस वो खरीद कर लाया ही था और बकौल उसके जिसका एयरकन्डीशनर यूनिट खराब था ।”
“कार को क्या हुआ ?”
“कार को कुछ नहीं हुआ, उसे हुआ । फारेन की लैफ्ड हैण्ड ड्राइव कार को आगरा, ग्वालियर, शिवपुरी वगैरह के रास्ते चलाते हुआ । उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आजकल दिन के वक्त काफी गर्मी पड़ती है । एयरकंडीशनर खराब होने की वजह से उसे खिड़की खोलकर कार चलानी पड़ी होगी । इसी वजह से बायें दरवाजे की खुली खिड़की पर टिकी-टिकी बांह धूप में झुलस गयी ।”
“इतनी मामूली घटना में छुपाने वाली क्या बात थी ?”
“वही तो ।”
“और उसकी कार... वो लैफ्ट हैण्ड ड्राइव है ?”
“लैफ्ट हैण्ड ड्राइव ही होगी । फारेन की कारें अक्सर होती हैं ।”
“जरूरी तो नहीं ।”
“हां, जरूरी तो नहीं ।”
“ये यहां है, इसकी कार भी यहीं होगी । क्यों न चलकर देखें ?”
“ख्याल बुरा नहीं । आओ चलें ।”
सफेद टयोटा पोर्टिको में नहीं खड़ी थी ।
“गैरेज में होगी ।” ¬ राज बोला ।
दोनों ने गैरेज की तरफ कदम बढाया ही था कि एक सिपाही वहां पहुंचा ।
“आप लोग कहां थे ?” ¬ वो बोला ।
“क्यों ?” ¬ राज बोला ¬ “क्या हुआ ?”
“साहब लोग पूछ रहे थे । आप भीतर लाउन्ज में चलिये ।”
“क्यों भई ? ये सरकारी आर्डर है ?”
“जी हां ।” ¬ वो सख्ती से बोला ।
“ठीक है फिर । हम सरकार से पंगा थोड़े ही ले सकते हैं !”
वो लाउन्ज में पहुंचे ।
वहां दोनों पुलिस अधिकारियों के अलावा सब मौजूद थे ।
Reply
10-18-2020, 06:44 PM,
#66
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“कहीं विकी को देखा ?” ¬ उनके वहां कदम रखते ही ज्योति बोली ।
“हां ।” ¬ डॉली बोली ¬ “बीच पर है ।”
“वहां क्या कर रहा है ?”
“सोलर कुकिंग सीख रहा है । रैसेपी ट्राई कर रहा है । अपनी बांह भून रहा है ।”
“क्या !”
“सारी । भून नहीं रहा, भुनी हुई को करारी कर रहा है ।”
“अरे, क्या कह रही हो ?”
“कुछ नहीं ।”
“पुलसिये कहां गये ?” ¬ राज बोला ।
“ऊपर हैं ।” ¬ सतीश ने चिन्तित भाव से जवाब दिया ¬ “एक-एक कमरे की तलाशी ले रहे हैं । कम्बख्त नहीं जानते कि वो मेरे मेहमानों के साथ कितनी ज्यादती कर रहे हैं ।”
“कुएं से क्या बरामद हुआ ?”
“पता नहीं । ये लोग कुछ बतायेंगे तो पता चलेगा न ! दोपहर हो गयी है और ये लोग...”
“ऊपर मेरे कमरे की भी तलाशी हो रही होगी ?” ¬ डॉली एकाएक बोली ।
“यस, माई डियर । जब सब के कमरों की तलाशी हो रही है तो...”
“मैं ऊपर जा रही हूं ।”
“मत जाओ । वो लोग खफा होंगे ।”
“खफा होंगे तो क्या करेंगे ? गोली मार देंगे ? मार देंगे तो मार दें । मैं खा लूंगी गोली ! मैंने सुना है कि पुलिस वालों ने किसी को रोकना होता है तो वो टांग में गोली से मारते हैं । आई डोंट माइंड । मैं सिंगर हूं, डांसर थोड़े ही हूं ! मैं गले से गाती हूं, टांग से नहीं गाती ।”
“डॉली ! बी सीरियस ! एण्ड स्टे पुट ।”
डॉली खामोश हो गई लेकिन उसके चेहरे से बेचैनी के भाव न गये ।
“तेरे कमरे से कुछ बरामद होगा ?” ¬ ज्योति शशिबाला से बोली ।
“नहीं ।” ¬ शशिबाला मुस्कराती हुई बोली ¬ “बहुत होशियार हूं मैं । मैं ‘वो चीज’ तेरे कमरे में छुपा आयी हुई हूं । अब जो कुछ बरामद होगा, तेरे कमरे से बरामद होगा ।”
“जो कुछ क्या ?”
“सोच !”
“डार्लिंग, कितने शर्म की बात है कि ऊपर तेरे कमरे में एक मर्द है और तू वहां नहीं है । ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ होगा, स्वीटहार्ट ।”
शशिबाला ने आग्रेय नेत्रों से ज्योति की तरफ देखा ।
“टू वन ।” ¬ डॉली बोली ¬ “सर्विस चेंज ।”
“गर्ल्स ! गर्ल्स !” ¬ सतीश ने गुहार लगायी ¬ “प्लीज बिहेव ।”
“मैं तो जा रही हूं ऊपर ।” ¬ फौजिया एकाएक उछलकर अपने पैरों पर खड़ी हुई ¬ “ये कोई तरीका है तलाशी लेने का ! तलाशी लेनी है तो मेरे सामने लें । ऐसे तो वो खुद कुछ रख के कह सकते हैं कि बरामद हुआ है ।”
वो दृढ कदमों से सीढियों की तरफ बढी ।
तभी बाल्कनी पर इंस्पेक्टर सोलंकी प्रकट हुआ !
फौजिया ठिठकी, उसने व्याकुल भाव से बाल्कनी की तरफ देखा और फिर कुछ सोचकर वापिस अपनी जगह पर बैठ गयी ।
Reply
10-18-2020, 06:44 PM,
#67
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
सीढियां उतरकर सोलंकी उन लोगों के बीच पहुंचा । उसके पीछे कार्ड-बोर्ड की एक पेटी उठाये एक सिपाही था । फिगुएरा के इशारे पर उसने पेटी को सैन्टर टेबल पर रख दिया और खुद परे हटकर खड़ा हो गया ।
“मैंडम” ¬ सोलंकी फौजिया के करीब पहुंचकर उससे सम्बोधित हुआ ¬ “फौजिया खान नाम है न आपका ?”
“हां ।” ¬ फौजिया बोली ।
“ऊपर आपका कमरा दायीं ओर से दूसरा है ?”
“हां ।”
“रात आप अपने कमरे में सोई थीं ।”
“और कहां सोती ?”
“जवाब दीजिये ।”
“जवाब ही दिया है ।”
“हां या न में जवाब दीजिये ।”
“हां ।”
“आज कमरा बदल लिया है आपने ? कहीं और मूव कर गयी हैं आप ?”
“नहीं तो ।”
“आप अभी भी अपने पहले वाले कमरे में ही हैं ? जो कि ऊपर दायीं ओर से दूसरा है ?”
“हां ।”
“वो कमरा खाली है ?”
“खाली है क्या मतलब ?”
“खाली है का मतलब नहीं समझतीं ? खाली है का मतलब खाली है । किसी भी तरह के व्यक्तिगत सामान से एकदम कोरा । कोई पोशाक नहीं, कोई नाइट ड्रैस नहीं, कोई चप्पल, सैंडल, कोई मेकअप का सामान तक नहीं । कहां गया आपका सामान ?”
“मेरे पास कोई सामान नहीं था । मैं ऐसे ही आयी थी ।”
“ऐसे कहीं होता है ?”
“मेरी जरूरत की चीजें मेरे इस हैण्ड बैग में मौजूद हैं ।”
“आप झूठ बोल रही हैं । हकीकत ये है कि आपने अपना सामान कहीं छुपा दिया है । आपने अपना सामान कहीं ऐसी जगह छुपा दिया है जहां से आप उसे उठाकर चुपचाप चलती बनेंगीं तो किसी को खबर तक नहीं होगी । मैडम, आप यहां से चुपचाप खिसक जाने की फिराक में हैं ।”
सबकी हैरानी-भरी निगाहें फौजिया की तरफ उठीं । फौजिया के एकाएक बद्हवास हो उठे चेहरे पर निगाह पड़ते ही किसी को भी शक न रहा कि इंस्पेक्टर जो कह रहा था, सच कह रहा था ।
“मैं यहां नहीं रुक सकती ।” ¬ फौजिया तीखी आवाज में बोली ¬ “यहां कत्ल-दर-कत्ल हो रहे हैं । मैं यहां एक मिनट भी नहीं रुकना चाहती । यहां मेरी अपनी जान महफूज नहीं ।”
“कहां जाने की फिराक में थीं आप ?”
“कहीं भी । इस नामुराद जजीरे से दूर कहीं भी ।”
“मैडम, आप फिलहाल आइलैंड से बाहर कदम नहीं रख सकतीं । चोरी से भी नहीं । जब तक पुलिस की इजाजत न हो, आप यहीं रहेंगी ।”
“ये धांधली है ।”
“आप यहीं रहेंगी । अब बोलिये, कहां छुपाया है आपने अपना सामान ?”
फौजिया ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“पिन्टो !”
“यस, सर ।” - परे खड़ा सिपाही बोला ।
“मैडम के साथ जाओ । जहां कहीं भी ये ले के जायें, जाओ और इनका सामान बरामद करके लाओ ।”
“यस, सर ।”
“जाइये ।”
फौजिया अपने स्थान से उठी और भारी कदमों से चलती हुई सिपाही के साथ हो ली ।
“आप” - सोलंकी राज से सम्बोधित हुआ - “अपने आफिस से मोहनी के बारे में कुछ दरयाफ्त करने वाले थे ?”
“क्या ?” - राज हड़बड़ाया-सा बोला ।
“मोहनी की किसी वसीयत की बाबत । उसके किसी सगे-सम्बन्धी की बाबत । भूल भी गये ?”
“नहीं भूला । मेरी अभी सुबह ही ट्रंककाल पर बाम्बे अपने आफिस में बात हुई थी । हमारी फर्म उसकी किसी वसीयत या उसके किसी सगे-सम्बन्धी से वाकिफ नहीं । हमें उसके किसी दूर-दराज के रिश्तेदार की भी वाकफियत नहीं ।”
“पक्की बात ?”
“जनाब ये फर्म के सीनियरमोस्ट पार्टनर नकुल बिहारी आनन्द की स्टेटमैंट है ।”
“हूं ।”
सोलंकी ने सैन्टर टेबल पर पड़ी कार्ड बोर्ड की पेटी में हाथ डाला और उसमें से यूं एक सोने का ब्रेसलेट बरामद किया जैसे कोई जादूगर हैट में हाथ डालकर खरगोश निकालता है । उसने ब्रेसलेट को बारी-बारी सबकी निगाहों के सामने किया ।
“इस पर कुछ गुदा मालूम होता है ।” - सतीश बोला - “गोद कर कुछ लिखा मालूम होता है ।”
“हां । लिखा है । लिखा है - प्रिय पायल को । सप्रेम । श्याम ।”
“आपका मतलब है” - शशिबाला बोली - “ये ब्रसलेट पायल का है ?”
“और किसका होगा ? इस पर पायल का नाम लिखा है । उसके पति का नाम लिखा है । जाहिर है कि ये ब्रेसलेट पायल को कभी उपहार के तौर पर अपने पति श्याम नाडकर्णी से प्राप्त हुआ था ।”
“ओह !”
“आपने कभी पायल को इसे पहने देखा था ?”
“नहीं ।”
“किसी और ने देखा हो ?”
“मैंने तो नहीं देखा ।” - ज्योति बोली ।
“वो एक मालदार मर्द की लाडली बीवी थी ।” - आलोका बोली - “उसके पास तो बेशुमार जेवरात थे । उनमें से एक ब्रेसलेट कहां याद रहता है !”
“आप क्या कहती हैं ?” - सोलंकी डॉली से बोला ।
डॉली का सिर इनकार में हिला ।
“जरा जुबानी बोलकर जवाब दीजिये ।”
“मैंने नही देखा पहले कभी ये ब्रेसलेट ।” - डॉली उखड़ी-सी बोली ।
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“ये आपके कमरे से बरामद हुआ है ।”
“क्या !”
“जी हां । आपके कमरे से । फिर भी आप कहती हैं कि आपने इसे पहले कभी नहीं देखा ?”
“ये मेरे कमरे से बरामद हुआ नहीं हो सकता ।”
“जो हो चुका है, उसको नहीं हो सकता कहने का क्या फायदा ? अब बोलिये कहां से आया आपके पास पायल का ये ब्रेसलेट ! क्या पायल ने दिया । दिया तो कब दिया ? आपका तो दावा है कि पिछले सात साल में आपने मेहिनी की सूरत नहीं देखी ?”
Reply
10-18-2020, 06:44 PM,
#68
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“हां । मेरा अभी भी यही दावा है । मैं अभी भी यही कहती हूं ।”
“तो फिर कब दिया पायल ने आपको ये ब्रेसलेट ? सात साल पहले ?”
“नहीं ।”
“डाक से भेजा ? किसी के हाथ भेजा ? कूरियर से भेजा ?”
“नहीं ।”
“तो फिर जाहिर है कि आपने इसे पायल से तब हासिल किया जबकि वो यहां थी ?”
“नहीं । मैंने तो यहां उसका सूरत भी नहीं देखी थी ।”
“तो फिर कैसे... कैसे ये आपके कमरे में पहुंचा ?”
“किसी ने प्लांट किया होगा ।”
“ये ब्रेसलेट आपके जेवरात के डिब्बे में था जिसको कि ताला लगा हुआ था, डिब्बा आपके सूटकेस में बन्द था और उसको भी ताला लगा हुआ था ।”
“यानी कि आपने दो ताले खोल लिये !”
“जी हां । मजबूरी थी । तलाशी ऐसे ही होती है ।”
“जो ताले आपने खोल लिये, वो कोई दूसरा भी तो खोल सकता था ।”
“खोल तो सकता था ।”
“तो फिर ?”
“कोई चुपचाप आपके कमरे में घुसा, उसने सूटकेस का ताला खोलकर उसमें से जेवरात का डिब्बा निकाला और जेवरात के डिब्बे का ताला खोलकर उसमें ये ब्रेसलेट प्लांट किया और फिर दोनों ताले बदस्तूर बन्द कर दिये !”
“जाहिर है ।”
“किसी ने ऐसा कयों किया ?”
“जाहिर है कि मुझे फंसाने के लिये ।”
“यानी कि ब्रेसलेट बरामदी के लिये ही प्लांट किया गया था ?”
“जाहिर है ।”
“इतना तो जाहिर नहीं है । मैडम, ये ब्रेसलेट आपके जेवरात के डिब्बे की मखमल की लाइनिंग के भीतर से मिला था । लाइनिंग के भीतर ये इस चतुराई से छुपाया गया था कि करिश्मा ही था कि मुझे इसकी वहां मौजूदगी की आभास मिल गया था । जिस चीज की बरामदी की मंशा हो, उसे क्या यूं छुपाया जाता है कि वो किसी को ढूंढे न मिले ?”
डॉली के मुंह से बोल न फूटा ।
“जवाब दीजिये ।”
“म... मैं... मैं क्या जवाब दूं ?”
“कैसे हासिल किया आपने मेहिनी से ये ब्रेसलेट ? कब हासिल किया ?”
“मैंने नहीं किया । यकीन जानिये, मैंने नहीं किया ।”
“परसों रात जब वो यहां मौजूद थी तो आप उससे मिली थीं ?”
“नहीं ।”
“बाद में ?”
“बाद में कब ?”
“कल रात ! जबकि उसका कत्ल हुआ था ?”
तत्काल डॉली के चेहरे पर गहरी दहशत के भाव आये ।
“ये एक खास तोहफा है जोकि उसे अपने पति से हासिल हुआ, था । ऐसे पति से हासिल हुआ था, चन्द महीने ही जिससे उसका साथ रहा था । ये ब्रेसलेट उसके मरहूम पति की निशानी था । इसे वो सहज ही किसी को नहीं सौंप सकती थी । लोगबाग जान दे देते हैं लेकिन ऐसी किसी निशानी को अपने से जुदा नहीं होने देते ।”
“तो ?”
“तो क्या ? अब क्या खाका खींच के समझाऊं ?”
“ओह ! तो आप ये कहना चाहते हैं कि मैं कफनखसोट हूं ? मैंने ये ब्रेसलेट पायल की लाश पर से उतारा ?”
“ऐसा नहीं हुआ तो बताइये ये कैसे आपके कब्जे में आया । ये आपके जेवरों के डिब्बे में था । ये वहां ऐसी जगह था जहां कि इसे आप ही रख सकती थीं । अब आप ये बताइये कि...”
वो बोलता-बोलता रुक गया । उसने पोर्टिको की तरफ देखा जहां से सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा एक पिद्दी से आदमी की बांह दबोचे उसे जबरन अपने साथ चलाता लाउन्ज में दाखिल हो रहा था । उसके लम्बे बाल उसके सारे चेहरे पर बिखरे पड़ रहे थे और उसका बड़े-बड़े शीशों वाला काला चश्मा उसकी नाक की फुंगी पर सरका हुआ था ।
वो धर्मेन्द्र अधिकारी था ।
“ओह, नो ।” - शशिबाला के मुंह से निकला ।
“आइलैंड से खिसकने की कोशिश कर रहा था ।” - फिगुएरा बोला - “पायर पर तैनात हवलदार ने पकड़ा । वही पकड़कर यहां लाया ।”
“है कौन ये ?” - सोलंकी बोला ।
“धर्मेन्द्र अधिकारी नाम है । मुंह के कबूल करने में हुज्जत कर रहा है लेकिन इसकी जेब में मौजूद ड्राइविंग लाइसेंस पर इसका वही नाम लिखा है ।”
“ओह, माई गॉड !” - शशिबाला के मुंह से फिर निकला - “नहीं बाज आया ।”
“मैडम !” - सोलंकी बोला - “आप इस आदमी को जानती हैं ?”
“कौन आदमी ?” - शशिबाला बोला ।
“जो अभी यहां लाया गया है ! आप...”
“हम सब जानते हैं इसे ।” - ज्योति बोली ।
तब तत्काल अधिकारी के चेहरे पर एक गोल्डन जुबली मुस्कराहट आयी ।
“बांह छोड़ो, भाई ।” - वो फिगुएरा से बोला - “अब क्या उखाड़ के मानोगे ?” - फिगुएरा ने बांह छोड़ी तो उसने बड़ी अदा से आस्तीन झटककर उसमें से बल निकाले, फिर वो लड़कियों से सम्बोधित हुआ - “हल्लो, माई स्वीट स्वीट एंजल्स । हल्लो एवरीबाडी ! शशि बेबी, क्या माजरा है ?”
“सब्र नहीं हुआ ।” - शशिबाला दांत पीसती हुई बोली - “सोमवार तक सब्र नहीं हुआ । पीछे दौड़ चला ।”
“आप इसे जानाती हैं ?” - सोलंकी बोला ।
जवाब देने की जगह शशिबाला ने आग्रेय नेत्रों से अधिकारी की तरफ देखा ।
“ये” - फिगुएरा बोला - “आपका सैक्रेट्री है ?”
“था ।” - शशिबाला बोली - “अभी दो मिनट पहले तक ।”
“आपको खबर थी कि ये आइलैंड पर था ?”
“नहीं । मेरा मतलब है कल शाम से पहले नहीं जबकि डॉली ने मुझे बताया था कि ये ईस्टएण्ड पर उससे मिला था ।”
“कब पधारे आप यहां ?” - सोलंकी बोला ।
“परसों ।” - अधिकारी लापरवाही से बोला - “शाम को ।”
“शाम को कब ?”
“यही कोई चार बजे के करीब ।”
“आने का सबब ?”
“सबब क्या होना है, बॉस ! ब्यूटीफुल आइलैंड । क्यूट किटीज । बस मस्ती मारने आया । तफरीह करने आया । सैर करने आया ।”
“आने का सबब ?” - सोलंकी सख्ती से बोला ।
“अपनी हीरोइन के पीछे आया ।”
“क्यों ?”
“मेरा भी दिल कर आया था पुराने वाकिफकारों की पार्टी जायन करने का ।”
“साथ ही क्यों न चले आये ?”
“तब दिल अभी नहीं किया था । मैं मैडम को प्लेन पर चढाकर लौट रहा था तो दिल किया था । तब फिर नैक्स्ट फ्लाइट से मैं भी चला आया ।”
“तुमने यहां आइलैंड पर आकर रोमानो की कार किराये पर ली थी ?”
“साला हरामी छोकरा ! जितना किराया लिया, उतनी तो कार की कीमत नहीं होगी ।”
“देखो, तुम इस वक्त एक कत्ल की तफ्तीश में शामिल हो । ये कोई पिकनिक नहीं है । हंसी-खेल नहीं है । तुम सीधे होते हो या हम सीधा करें तुम्हें ?”
“ओह, नो, बॉस । आई एम क्वाइट सीधा ।”
“तुम हाउसकीपर से वाकिफ थे ?”
“हाउसकीपर ?”
“यहां की । मिस्टर सतीश की । वसुन्धरा पटवर्धन । जिसका सबसे पहले कत्ल हुआ था । वाकिफ थे तुम उससे ?”
“बिल्कुल भी नहीं । मैंने कभी शक्ल तक नहीं देखी थी उसकी । नाम तक नहीं सुना था ।”
“वो एक भारी-भरकम औरत थी । आंखों पर काले रंग के मोटे फ्रेम, मोटी कमानियों वाला निगाह का चश्मा लगाती थी । बाल डाई करती थी । कुछ याद आया ?”
Reply
10-18-2020, 06:44 PM,
#69
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
अधिकारी ने इनकार में सिर हिलाया ।
“परसों रात तुम यहां थे । तुम रोमानो की कार पर एस्टेट से बाहर की सड़क पर मौजूद थे । हाउसकीपर ने तुम्हें एस्टेट में तांक-झांक करता देखा हो सकता है ।”
“नो सच थिंग । और ताक-झांक कौन कर रहा था ? मैं तो ताक-झांक नहीं कर रहा था ।”
“तो और क्या कर रहे थे यहां ?”
“किसी का कत्ल नहीं कर रहा था । कब हुआ था हाउसकीपर का कत्ल ?”
“परसों रात को । साढे तीन बजे के बाद किसी वक्त ।”
“उस वक्त से तो कहीं पहले मैं वापिस ईस्टएण्ड लौट चुका था ।”
“तुम जाके फिर आ गये होगे ।”
“नो, बॉस । नैवर ।”
“या फिर गये ही नहीं होंगे । आधी रात तक तो तुम यकीनन यहीं थे जबकि मिस्टर माथुर से तुम्हारी मुलाकात हुई थी । क्यों, मिस्टर माथुर !”
“हल्लो, मिस्टर माथुर ।” - अधिकारी राज की तरफ हाथ हिलाता हुआ बोला - “सो वुई मीट अगेन ।”
“तुम” - सोलंकी सख्ती से बोला - “इधर मेरी तरफ तवज्जो दो ।”
“यस, बॉस ।”
“तुमने मिस्टर माथुर को ये कयों कहा था कि तुम कुक के इन्तजार में बाहर सड़क पर मौजूद थे ?”
“ये सवाल पूछ रहे थे । कोई तो जवाब मैंने देना ही था । कोई ऐसा जवाब देना था जिससे इनकी उत्सुकता शान्त होती । मैंने कह दिया मैं कुक का इन्तजार कर रहा था । वो जवाब इन्हें फौरन हज्म हो गया था । मैं इन्हें कहता कि मैं बाम्बे फिल्म इन्डस्ट्रीज में कई स्टार्स का सैक्रेट्री था, एजेन्ट था, टेलेन्ट स्काउट था तो क्या इन्हें मेरी बात पर यकीन आता ?”
“झाड़ियों में छुपे क्यों बैठे थे । तुम मिस शशिबाला के सैक्रेट्री थे, यहां मौजूद तमाम लड़कियों के पुराने वाकिफ थे तो भीतर जाकर उनसे क्यों न मिले ?”
अधिकारी ने बेचैनी से पहलू बदला ।
“तुमने” - फिगुएरा ने जोड़ा - “आइलैंड से चुपचाप खिसकने की कोशिश की । तुम्हारी ये भी कोशिश थी कि किसी को खबर ही न लगे कि तुम यहां मौजूद थे । तुम्हारी हर हरकत शक के काबिल है ।”
“जरूर” - सोलंकी बोला - “तुम ही कातिल हो ।”
“ओह नो ।” - वो भुनभुनाता-सा बोला ।
“तो सच बोलो, क्या किस्सा है ?”
“मैं अपनी स्टार के सामने नहीं बोल सकता ।”
“अब मैं तुम्हारी स्टार नहीं हूं ।” - शशिबाला बोली - “अब तुम मेरे सैक्रेट्री नहीं हो । हमारा रिश्ता टूटे पूरे पांच मिनट हो चुके हैं ।”
“बेबी” - अधिकारी आहत भाव से बोला - “यू कैंट बी सीरियस !”
“बट आई एम ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस ।”
“अब हमारे बीच में कुछ नहीं ?”
“कतई कुछ नहीं ।”
“ठीक है, फिर बोलता हूं । बॉस” - वो सोंलकी की तरफ घूमा - “मैं सिर्फ पायल की फिराक में यहां आया था । मैं नहीं चाहता था किसी को, खासतौर से मेरी क्लायन्ट को - शशिबाला को - मेरी यहां मौजूदगी की खबर लगती ।”
“क्यों ? बात को साफ करके कहो ?”
“उसके लिये मुझे सात-आठ साल पीछे जाना होगा जबकि मिस्टर सतीश की बुलबुलों के फैशन शोज ने सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी । बाम्बे की सारी फिल्म इन्डस्ट्री की इन लड़कियों पर निगाह थी और इनमें से भी एक पायल पाटिल का बुरी तरह से रोब गालिब था । मशहूर फाइनांसर प्रोड्यूसर डायरेक्टर दिलीप देसाई तो कहता था कि मधुबाला के बाद अगर उसने सही मायनों में कोई खूबसूरत औरत देखी थी तो वो पायल थी । वो ही मेरे पीछे पड़ा हुआ था कि मैं किसी भी तरह पायल से उसका कान्ट्रेक्ट कराऊं और उसे उसकी फिल्म में हिरोइन का रोल करने के लिए पटाऊं । लेकिन पायल थी कि फिल्मों में कोई दिलचस्पी ही नहीं दिखा रही थी । सच पूछो तो बाकी लड़कियों का भी यही रवैया था । उन दिनों बतौर फैशन माडल उनको इतना यश मिला था इतना मीडिया का एक्पोजर मिला था, इतना पैसा मिला था कि मूवी कान्ट्रैक्ट को ये किसी खातिर में नही नहीं लाती थीं । तब एक शशिबाला ही थी जो किसी तरह से फिल्मों में आने को राजी हो गयी थी ।”
“तुम पायल की बात करो ।”
“उसी की बात कर रहा हूं । ये भी पायल की ही बात का एक हिस्सा है । मैं यह कह रहा था कि पायल को तब मूवी कान्ट्रैक्ट मंजूर नहीं हुआ था । एक्ट्रेस बनने के मुकाबले में मिसेज श्याम नाडकर्णी बनना उसे कहीं ज्यादा चोखा सौदा लगा था । लेकिन दिलीप देसाई था कि उसपर तो जैसे पायल पाटिल का भूत सवार था । वो तो किसी भी सूरत में पायल को अपनी हीरोइन बनाना चाहता था । बॉस, मुझे पांच लाख रुपये के बोनस की आफर थी अगरचे कि मैं पायल को देसाई फिल्म्स कम्बाइन के लिए साइन करने में कामयाब हो जाता । अब आप ही सोचिये कि इस काम के लिये मैं क्यों न पायल के पीछे दिन-रात मारा-मारा फिरता ?”
“लेकिन तुम कामयाब न हुए ?”
“नहीं हुआ, बॉस । अलबत्ता शशिबाला को मैंने मना किया था जोकि पायल से किसी कदर खूबसूरत नहीं थी लेकिन देसाई का ‘पायल-पायल’ भजना फिर भी बन्द नहीं हुआ था । उसकी निगाह में हुस्न और जवानी के मुकाबले में पायल के आगे दुनिया खत्म थी । उसने शशिबाला को इस स्टाइल से साइन किया था जैसे प्लेन फ्लाइट मिस हो जाने पर कोई ट्रेन से सफर करना कबूल कर लेता है ।”
शशिबाला के चेहरे पर क्रोध के तीखे भाव आये ।
“बेबी” - अधिकारी खेदपूर्ण स्वर में बोला - “तभी तो मैंने इन पुलिस वालों को कहा था कि मैं अपनी स्टार के सामने नहीं बोल सकता था ।”
“मैं ट्रेन हूं ?” - वो आंखे निकालती हुई बोली ।
“तुम तो जैट प्लेन हो । राकेट हो । स्पेस क्राफ्ट हो । लेकिन अब देसाई को कोई कैसे समझाये जो पिछले सात साल में भी अपनी ‘पायल को लाओ । पायल को साइन करो’ की रट नहीं छोड़ पाया है ।”
“वो आज भी पायल को साइन करना चाहता है ?”
“हां । उसकी मुंह मांगी कीमत पर । और मेरे लिये वो पांच लाख का बोनस भी आज भ स्टैण्ड करता है ।”
“जबकि उसने पिछले सात साल से पायल की सूरत नहीं देखी, तुमने भी पिछले सात साल से पायल की सूरत नहीं देखी । तुम लोगों को इस बात की क्या गारन्टी है कि पायल आज भी उतनी ही हसीन होगी जितनी की वो सात साल पहले थी ।”
“मैंने देखा था उसे ।” - ज्योति बोली - “वो वैसी ही थी जैसी कि सात साल पहले थी ।”
“होगी । लेकिन कोई गारन्टी तो नहीं थी इस बात की !”
“बॉस” - अधिकारी बोला - “मेरा काम अपने प्रोड्यूसर को जिद पूरी करना था । और पांच लाख का बोनस कमाना था । आज की तारीख में देसाई को पायल से कोई नाउम्मीद होती थी तो मुझे उससे क्या लेना-देना था ? पांच लाख के बोनस की जो हड्डी देसाई ने मेरे सामने डाली हुई थी, उसके साथ ऐसी कोई शर्त नत्थी नहीं थी कि पायल के अक्षत यौवन की इंश्योरेंस भी मेरे ही जिम्मे थी ।”
“बालपाण्डे कहता है” - शशिबाला जलकर बोली - “कि तीन साल पहले वो खंडहर लगती थी ।”
“ऐसा ?” - अधिकारी सकपकाया-सा बोला ।
“लेकिन ज्योति ऐसा नहीं कहती ।” - बालपाण्डे जल्दी से बोला - “मेरे ख्याल से वो बीच में कभी कुछ बीमार-वीमार रही होगी लेकिन बाद में ठीक हो गयी होगी ।”
“ऐसी लड़की से” - सतीश धीरे-से बोला - “ईर्ष्या करने का क्या फायदा जो अब इस दुनिया में नहीं ।”
शशिबाला सकपकाई, फिर अपने आप ही उसका सिर झुक गया ।
Reply
10-18-2020, 06:44 PM,
#70
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“अगर” - सोलंकी बोला - “तुम यहां किसी तरह चुपचाप पायल तक पहुंच पाने में कामयाब हो पाते और फर्ज करो कि वो इस बार देसाई फिल्म कम्बाइन के साथ कान्ट्रैक्ट साइन करने की तुम्हारी पेशकश कबूल भी कर लेती तो इस बात से तुम्हारी इस मौजूदा हीरोइन शशिबाला को क्या फर्क पड़ता ? जवाब दो ।”
“ये मारेगी ।”
“अरे, बोला न जवाब दो ।”
“तो ये” - अधिकारी झिझकता हुआ शशिबाला को देखता दबे स्वर में बोला - “देसाई फिल्म्स कम्बाइन से बाहर होती । देसाई को पायल मिल जाती तो ये उसकी उस मल्टी-करोड़ फिल्म ‘हार-जीत’ से भी बाहर होती जो कि तीन-चौथाई बन चुकी है, भले ही इस चक्कर में देसाई का करोड़ों रुपया डूब जाता ।”
“यू !” - शशिबाला दांत किटकिटाती बोली - “यू रास्कल !”
“बट दैट्स गॉड्स ट्रुथ, बेबी ।”
“इतना दीवाना था तुम्हारा देसाई पायल का ?” - सोलंकी बोला ।
“हां ।”
“यानी कि पायल की फिल्मों में ऐन्ट्री शशिबाला को काफी भारी पड़ती ।”
“बर्बाद कर देती ।” - अधिकारी धीरे से बोला - “शी इज ग्रेट एक्ट्रेस, अवर शशिबाला । लेकिन आजकल इसके पास एक ही मेजर फिल्म है - देसाई की ‘हार-जीत’ । इसकी आइन्दा फिल्मी जिन्दगी का मुकम्मल दारोमदार उस फिल्म की कामयाबी पर है । आज की तारीख में इसका उस फिल्म से बाहर होना फिल्म इन्डस्ट्रीज से बाहर होने जैसा है ।”
शशिबाला के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे जार-जार रोने लगेगी ।
“बनती फिल्म में से” - अधिकारी बोला - “हीरोइन को निकाल दिया जाना बहुत खराब पब्लिसिटी देता है । देसाई की फिल्म से निकाला जाना तो सरासर मौत है ।”
“यह ठीक कह रहे हैं ?” - सोलंकी ने शशिबाला से पूछा - “ये पायल को तलाश करके उसको कान्ट्रेक्ट के लिये राजी कर लेते तो आपका तो किस्सा ही खत्म हो जाता, ये ठीक बात है ?”
“उसकी फिल्म कैरियर में कोई दिलचस्पी नहीं थी ।” - वो हिम्मत करके बोली - “सात साल पहले ये सात हजार बार उसको पटाने की कोशिश कर चुका था लेकिन वो नहीं मानी थी । वो फिल्मों में जाने को पहले तैयार नहीं थी तो अब क्या तैयार होती जबकि उसे विरसे में ढाई करोड़ रुपये मिलने वाले थे ?”
“मैंने कहा है अगर... अगर पायल पट जाती तो क्या ये आपके बर्बादी बायस होता ?”
“मैं अगर-मगर नहीं समझती । जो हुआ नहीं, उस पर मैं कमैन्ट करना जरूरी नहीं समझती ।”
“वैरी वैल सैड, बेबी ।” - अधिकारी बोला - “वैरी वैल सैड ।”
“शटअप ।”
अधिकारी ने सन्दूक के ढक्कन की तरह होंठ बन्द किये ।
“मुझे उससे कोई खतरा नहीं था ।” - शशिबाला इंस्पेक्टर से बोली - “था भी तो उसका हल कत्ल नहीं था । मैंने न कत्ल किया है और न कभी कत्ल का ख्याल मेरे जेहन में आया था । न ही मुझे ये मालूम था कि आधिकारी मेरे पीछे यहां पहुंचा हुआ था जो कि मैं इसके यहां आने का मतलब समझती और पायल से खौफ खाती । यहां पहुंचने तक मुझे नहीं पता था कि पायल यहां आने वाली थी । सात साल से नहीं आयी थी वो यहां । मिस्टर सतीश ने जब बताया था कि पायल ने फोन पर खबर की थी कि वो आइलैंड पर पहुंच चुकी थी तो तभी मुझे इस बात की खबर हुई थी ।”
“सभी को” - डॉली बोली - “तभी इस बात की खबर हुई थी ।”
“तुम क्या कहते हो इस बारे में ?” - सोलंकी अधिकारी की तरफ घूमा - “तुम्हें मालूम था कि पायल यहां आने वाली थी ?”
“यहां पहुंचने तक नहीं मालूम था ।” - अधिकारी बोला - “परसों रात जब मैं पायल की ताक में एस्टेट के इर्द-गिर्द मंडरा रहा था तो एक बार हिम्मत करके मैं भीतर घुसा था । तब मैंने मिस्टर सतीश को अपनी बुलबुलों में ये घोषणा करते सुना था कि पायल आ रही थी । वो आइलैंड पर पहुंच चुकी थी लेकिन उसे पहले ईस्ट एण्ड पर कोई जरूरी काम था जिससे कि वो बहुत रात गये तक फारिग नहीं होने वाली थी । मैंने मिस्टर सतीश को ये भी कहते सुना था कि हाउसकीपर वसुन्धरा उसे पायर पर से लेने जाने वाली थी जहां कि रात के दो बजे बुकिंग आफिस के सामने उसने वसुन्धरा को मिलना था । इंस्पेक्टर साहब मैं दो बजे से पहले पायर पर पहुंच गया था और बुकिंग आफिस पर निगाहें गड़ाकर वहां बैठ गया था लेकिन पायल वहां नहीं पहुंची थी । पायल क्या, हाउसकीपर भी नहीं पहुंची थी ।”
“हाउसकीपर” - राज बोला - “रास्ते में गाड़ी पंक्चर हो जाने की वजह से लेट हो गयी थी और वो कहती है कि पायल उसके भी बाद में पायर पर पहुंची थी । यानी कि दोनों ही ढाई बजे के बाद वहां पहुंच पायी थी ।”
“तभी वो मुझे न मिली । बहरहाल मैं आधा घंण्टा इंतजार करने के बाद वहां से लौट आया था ।”
“तुम ईस्टएण्ड के होटलों में भी उसकी बाबत पूछते फिर रहे थे ?”
“हां । जब मैंने मिस्टर सतीश को ये कहते सुना था कि वो दोपहर को आइलैंड पर थी और पहले ईस्टएण्ड गयी थी तो मैं फौरन ईस्टएण्ड पहुंचा था । मैंने वहां की खूब खाक छानी थी लेकिन पायल का कोई अता-पता मुझे वहां से नहीं मिला था । लिहाजा मैं वापिस यहां लौट गया था ।”
“वापिस क्यों ?”
“यूं ही ताक-झांक करने । पहले की माफिक फिर कोई बात सुन पाने की ताक में ।”
“कुछ सुन पाये ?”
“न । उलटे मिस्टर माथुर से आमना-सामना हो गया जोकि मुझे माफिक नहीं आया था ।”
“कब तक ठहरे थे यहां ?”
“एक बजे तक ! जब तक कि पार्टी बिल्कुल ठण्डी पड़ गयी थी और मैंशन की बत्तियां बुझने लगी थीं । तब मैंने यही फैसला किया था कि यहां और रुकना बेवकूफी थी और लौट गया था ।”
“हूं ।”
“अब मैं सुन रहा हूं कि पायल का कत्ल हो गया है । अब मेरा पांच लाख रुपया मारा गया न ? अब वो साला पायल का कातिल ही मेरे हाथ में आ जाये तो कम-से-कम उसी पर अपने मन की भड़ास निकाल लूं । कमीने को ऐसी मार लगाऊं कि मजाल है कि महीना भी भर उठके पैरों पर खड़ा हो सके ।”
तभी एक युवक ने वहां कदम रखा ।
“ये तो” - डॉली फुसफुसाई - “ईस्टएण्ड के डायमंड होटल का रिसैप्शन क्लर्क जार्जियो है ।”
राज ने सहमति में सिर हिलाया ।
“ये यहां क्या कर रहा है ?”
“अभी मालूम पड़ जायेगा ।”
“आओ, जार्जियो ।” - फिगुएरा उससे बोला ।
“सर” - जर्जियो बड़े अदब से बोला - “आपका मैसेज मिलते ही मैंने जल्दी-से-जल्दी आने की कोशिश की है ।”
“थैंक्यू । तो परसों रात तुम अपने होटल में नाइट ड्यूटी पर थे ?”
“यस, सर ।”
“यहां मौजूद लोगों पर निगाह दौड़ाओ और बाताओ कि इनमें से किसी को तुमने पहले कभी देखा है ।”
“इन्हें” - वो शशिबाला की तरफ इशारा करता हुआ बोला - “फिल्मों में देखा है । और इन्हें” - उसने फौजिया की तरफ इशारा किया - “मैंने पिछले साल पणजी की एक नाइट क्लब में कैब्रे करते देखा था ।”
“जार्जियो, मेरा सवाल यहां आइलैंड की बाबत था । तुम्हारे होटल की बाबत था । परसों के रोज की बाबत था ।”
“ओह !” - फिर उसने अधिकारी की तरफ उंगली उठाई - “परसों रात नौ बजे के करीब ये साहब हमारे होटल में किसी पायल पाटिल को पूछते आए थे ।”
“वाह !” - अधिकारी उपहासपूर्ण स्वर में बोला - “क्या याददाश्त पायी है ! क्या सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया है ! क्या...”
“मिस्टर अधिकारी !” - सोलंकी सख्ती से बोला ।
अधिकारी तत्काल खामोश हो गया और एक सिग्रेट सुलगाने में मशगूल हो गया ।
“इनके अलावा” - फिगुएरा बोला - “कोई और भी आदमी था जो पायल को पूछता तुम्हारे होटल में पहुंचा था ।”
“जी हां ।” - जार्जियो बोला - “मैंने पहले ही बताया था । वो दूसरा आदमी रात ग्यारह बजे के करीब आया था ।”
“वो.. वो दूसरा आदमी इस वक्त यहां है ?”
“जी हां ।” - जार्जियो बोला, फिर उसने बड़े नाटकीय अन्दाज में रोशन बालपाण्डे की तरफ उंगली उठाई - “ये है वो आदमी ।”
“नहीं, नहीं ।” - आलोका तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोली - “ये कैसे हो सकता है ! इस आदमी से भूल हुई है । ये तो कल शाम को यहां पहुंचे थे । परसों तो ये यहां थे ही नहीं ।”
“मैंने इन्हीं को परसों रात को अपने होटल में देखा था । ये भी इन साहब की तरह” - उसने अधिकारी की तरफ उंगली उठाई - “पायल को पूछते आये थे और माकूल जवाब न मिलने पर निराश होकर चले गये थे ।”
“गलत ! बिल्कुल गलत ! तुमसे भूल हुई है इन्हें पहचानने में ?”
“मैडम” - फिगुएरा बोला - “आप एक मिनट खामोश हो जाइये !” - फिर वो जिर्जियो की तरफ घूमा - “थैंक्यू वैरी मच, जार्जियो, तुम अब जा सकते हो ।”
जार्जियो पुलसियों का अभिवादन करके और फौजिया और शशिबाला को निगाहों से ही हज्म करने की कोशिश करता वहां से विदा हो गया ।
“आप इधर मेरी तरफ देखिये ।” - फिगुएरा बालपाण्डे से बोला ।
बालपाण्डे ने हिचकिचाते हुए उसकी तरफ सिर उठाया ।
“आप परसों रात भी आइलैंड पर थे ? इनकार करने से कोई फायदा नहीं होगा । होटल क्लर्क जार्जियो अभी निर्विवाद रूप से आपकी शिनाख्त करके गया है ।”
“हां ।” - बालपाण्डे बोला ।
“परसों से ही यहां थे या जा के फिर आये थे ?”
“जा के फिर आया था । मैंने आइलैंड के दो फेरे लगाये थे । परसों रात को मैं यहां से चला गया लेकिन कल शाम को फिर वापिस लौटा था ।”
आलोका ने आहत भाव से अपने पति की तरफ देखा ।
बालपाण्डे ने मुस्कराते हुए, बड़े आश्वासनपूर्ण भाव से उसका हाथ दबाया ।
“यानी कि यहां हुए, दोनों कत्लों के दौरान आप आयलैंड पर मौजूद थे ?”
“हां ।”
“आपकी बीवी को इस बात की खबर थी ?”
“जनाब, अभी आपने सुना तो है उसकी जुबानी कि उसकी जानकारी में मैं कल शाम को ही यहां पहुंच था ।”
“मुझे याद है मैंने क्या, सुना था ।” - फिगुएरा शुष्क स्वर में बोला - “और मैं इस हकीकत से भी नावाकिफ नहीं कि भारतीय नारियां अपने मर्द की खातिर झूठ बोलने के लिये आम तैयार हो जाती हैं । अपना फर्ज मानती हैं वो उसकी खातिर झूठ बोलना ।”
“आप कहते हैं कि मेरी बीवी झूठ बोल रही है ?”
“हां ।”
“लेकिन वो मेरे यहां के पहले फेरे के बारे मे जानती नहीं हो सकती ।”
“मैडम, अपने पति की इस शंका का निवारण आप खुद करेंगी या मैं करूं ?”
आलोका ने असहाय भाव से अपने पति की तरफ देखा और फिर गरदन झुका ली ।
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,405,452 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 533,707 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,193,790 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 902,209 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,601,231 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,035,365 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,876,065 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 13,803,778 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 3,936,835 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 276,132 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 2 Guest(s)