Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
10-18-2020, 06:44 PM,
#71
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“ठीक है । मैं ही करता हूं ये काम । मिस्टर बालपाण्डे, आपने परसों शाम पूना से यहां अपनी बीवी को फोन किया था । ठीक ?”
“जी हां ।” - बालपाण्डे बोला - “वो अकेली यहां आयी थी । उसका हालचाल जानते रहना मेरा फर्ज था ।”
“कबूल । लेकिन फोन पर आपकी अपनी बीवी से बात नहीं हुई थी । वो फोन पर तत्काल उपलब्ध नहीं थी इसलिये आपको ये सन्देशा छोड़कर, कि आपने फोन किया था, लाइन काट देनी पड़ी थी । फिर आपकी फोनकाल के जवाब में उस रात को आपकी बीवी ने आपको पूना फोन लगाया था तो आपके नौकर ने जवाब दिया था कि साहब घर पर नहीं थे, वो एकाएक किसी जरूरी बिजनेस ट्रिप पर निकल गये थे ।”
बालपाण्डे ने हौरानी से उसकी तरफ देखा ।
“फोन को इस्तेमाल करना हमें भी आता है, मिस्टर बालपाण्डे ।”
“क्यों नहीं ?” - बालपाण्डे अनमने भाव से बोला - “क्यों नहीं ?”
“बहरहाल आपकी बीवी तभी समझ गयी थी कि बिजनेस ट्रिप के नाम पर असल में आप कहां गये होंगे । आप यहां आये थे, मिस्टर बालपाण्डे । यहां, पायल से मिलने ।”
“ये कैसे हो सकता है ?” - आलोका बोली - “इन्हें क्या पता था कि पायल यहां थी । मैंने तो बताया नहीं था । फिर...”
“जाहिर है कि आपने नहीं बताया था । आप कैसे बतातीं ? आपसे तो इनकी फोन पर बात हो ही नहीं पायी थी । मैडम, ये बात इन्हें उस शख्स से मालूम हुई थी जिसने कि आपकी गैर-हाजिरी में इनकी काल रिसीव की थी और इनका आपके लिये सन्देश लिया था ?”
“कि... किसने ?”
“आयशा ने । आयशा ने ही इन्हें पायल की आइलैंड पर मौजूदगी की बाबत बताया था । मिस्टर सतीश की कुक रोजमेरी ने बाई चांस वो बातचीत सुनी थी । फिर आयशा से जब आपको सन्देशा मिला था तो जरूर उसने आपको ये भी बताया था कि उसने आपके पति से पायल की आइलैंड पर मौजूदगी का जिक्र किया था । इस बात ने आपको फिक्रमन्द किया था और इसीलये रात को आपने अपने पति को पूना फोन किया था । उसके पूना में मौजूद ने होने का, किसी बिजनेस ट्रिप पर निकल गया होने का आपने ये मतलब लगाया था कि आपका पति यहां आइलैंड पर पहुंच गया था और अब वो पायल के साथ ईस्टएण्ड पर कहीं था । इस बात ने आपको इतना हलकान किया था कि रात को आपने मिस्टर सतीश की कोन्टेसा निकाली थी और अपने पति और पायल की तलाश की नीयत से ईस्टएण्ड रवाना हो गयी थीं । उस घड़ी आपकी जेहनी हालत ठीक नहीं थी इसलिये झुंझलाहट, बौखलाहट में आपने गाड़ी को कहां दे मारा था जिसकी वजह से उसका अगला बम्फर दाईं तरफ से पिचक गया था । इसीलिये गाड़ी में गिर गये अपने रुमाल की आपको खबर न हुई थी । इस बात ने आपको खौफजदा कर दिया था कि आपकी लापरवाही से पराई कार डैमेज हो गयी थी । लिहाजा आप वापिस लौट आयी थीं । ठीक ?”
आलोका ने जवाब न दिया । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“तब इरादा क्या था आपका ?” - सोलंकी ने पूछा - “आप ईस्ट एण्ड पर अपने पति को तलाश करने में कामयाब हो गयी होतीं और आपने पायल को उसके साथ पाया होता तो क्या करतीं आप ?”
बालपाण्डे ने बड़े प्रदर्शनकारी ढंग से आलोका को अपनी एक बांह में घेरे में समेट लिया और सख्ती से बोला - “आप बरायमेहरबानी मेरी बीवी को हलकान न करें । इससे बेजा सवाल न करें ।”
“कोई बेजा सवाल नहीं किया जा रहा इनसे । अगर ऐसा है तो ये बताये कौन-सा सवाल बेजा है । मिसेज बालपाण्डे, जवाब दीजिये ।”
“कोई नहीं ।” - आलोका रूआंसी-सी बोला - “आपने जो कहा है, ठीक कहा है । डार्लिंग” - वो अपने पति से सम्बोधित हुई - “आई एम सारी कि मैंने तुम पर शक किया लेकिन तब इस ख्याल से ही मेरे तन-बदन में आग लग गयी थी कि... कि तुम पायल के साथ हो सकते थे । फिर मुझ पर मिस्टर सतीश की काकटेल्स भी हावी थीं । डार्लिंग, मैंने उस रात जो किया जुनून में किया, वर्ना आधी रात को नशे की हालत में, गुस्से की हालत में गाड़ी लेकर सुनसान सड़कों पर निकल पड़ना क्या कोई समझदारी का काम था !”
“आई अन्डरस्टैण्ड, हनी । लेकिन तुम ऐसा क्यों समझती हो कि मैं अभी भी पायल की फिराक में हूं ?”
“तुम हो । हमेशा रहोगे ।”
“ये खामख्याली है तुम्हारी ।”
“तुम यहां क्यों आये ? उससे मिलने की नीयत से ही तो ! फिर छुप के आये । मुझे खबर न की ।”
“तुम्हें खबर करता तो तुम आगबबूला हो उठतीं ।”
“लेकिन आये तो सही पायल के पीछे ?”
“वो मेरी पुरानी फ्रेंड थी । मैं सिर्फ ये जानना चाहता था कि वो ठीक-ठाक थी ।”
“ठीक-ठाक को उसका क्या होना था ? ढाई करोड़ रुपये की मालकिन बनने वाली थी वो । अब उसने ठीक-ठाक ही होना था । अब उसकी क्या प्राब्लम होतीं !”
“मुझे उसके दौलत से ताल्लुक रखते नये रुतबे से कुछ लेना-देना नहीं था । मैं सिर्फ इस बात की तसदीक करना चाहता था कि वो अदरवाइज राजी-खुशी थी, वो वैसी नहीं थी जैसी कि मुझे सूरत में मिली थी या कहीं उससे भी ज्यादा फटेहाल हो गयी थी ।”
“होती फटेहाल वो तो तुम क्या करते ? उसे अडाप्ट कर लेते ? उसकी हालत सुधारने का बीड़ा अपने सिर उठा लेते ? क्या करते ?”
“मैं उसे सिर्फ ये राय देता कि अपने उस खस्ताहाल में वो तुम लोगों से न मिले, वो मिस्टर सतीश की ग्लैमरस रीयूनियन पार्टी में शरीक होने का ख्याल छोड़ दे ।”
“वो मिली आपको ?” - सोलंकी ने पूछा ।
“नहीं मिली । बहुत खाक छानी ईस्टएण्ड की लेकिन नहीं मिली ।”
“आपने बस उसी रात उसे तलाश करने की कोशिश की । अगले रोज भी ऐसी कोई कोशिश जारी न रखी ?”
“नो, सर । अगले रोज उसे तलाश करने की कोशिश करना बेमानी थी । अगले रोज तक तो उसे यहां पहुंच गया होना था, जिस काम से मैं उसे रोकना चहता था, तब तक वो उसने पहले ही कर चुकी होना था ।”
“फिर आप पूना वापिस लौट गये ?”
“नो, सर । इतनी रात गये पूना लौटना तो सम्भव नहीं था । अलबत्ता मैं पणजी लौट गया जहां से कि मैंने पूना के लिये अर्ली मार्निंग फ्लाइट पकड़ ली थी ।”
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10-18-2020, 06:44 PM,
#72
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“पायल के पीछे इतनी दूर भाग चले आये ।” - आलोका ने शिकवा किया ।
“सिर्फ दोस्ती की खातिर । उसके वैलफेयर की खातिर ।”
“मुझ से छुपाकर रखा ।”
“तुम्हारी खातिर मैं तुम्हारे दिल को ठेस नहीं लगाना चाहता था ।”
“वो तो लग चुकी ।”
“तुम पागल हो । नादान हो । मेरी जिन्दगी में जो रोल तुम्हारा है वो किसी दूसरी औरत का नहीं हो सकता । पायल का भी नहीं । मेरे दिल में कभी पायल के लिये कुछ था तो उसे तुम कब का रुख्सत कर चुकी हो । बस ! यही हकीकत है ।”
“सब लिफाफेबाजी है । जिसमें कि हर मर्द प्रवीण होता है ।”
“अब तो मुझे तुम्हारी सूरत वाली कहानी पर भी विश्वास नहीं । तुम जरूर वहां उसके साथ गुलछर्रे उड़ाते रहे थे । असलियत कुछ और ही है और कह दिया कि सिनेमा पर थोड़ी देर को मिली थी और अगले रोज लंच अप्वायन्टमैंट पर नहीं आयी थी ।”
“तौबा !”
“मैं पूछती हूं तुम सिनेमा पर क्या कर रहे थे ?”
“बड़ी देर से पूछना सूझा ! कल तो ऐसा कोई सवाल तुम्हारी जुबान पर नहीं आया था ।”
“अकेले सिनेमा देखने जाने का शौक कब से हो गया तुम्हें ?”
“मैं सिनेमा देखने नहीं गया था । मैं तो सिनेमा के आगे से गुजर रहा था जबकि इत्तफाक से ही वो मुझे लॉबी में दिखाई दे गयी थी ।”
“झूठ ! बिल्कुल झूठ !”
“अगर मेरे मन में कोई मैल होता तो मैं पूना लौटकर तुम्हें बताता ही क्यों कि सूरत में मुझे पायल मिली थी ?”
“उसकी भी होगी कोई वजह ।” - आलोका ढिठाई के साथ बोली ।
“लानत ! हजार बार लानत ! तुम औरतों को तो...”
“मिस्टर बालपाण्डे” - सोलंकी बेसब्रेपन से बोला - “आप जरा इधर मेरी तरफ तवज्जो दीजिये ।”
“यस, सर ।”
“आपने कहा था कि सूरत में वो आपको बहुत उजड़ी हुई-सी, किसी बुलन्द इमारत के खण्डर जैसी लगी थी । आपको फिक्र ये थी कि ऐसी ही हालत में वो यहां मिस्टर सतीश की पार्टी में न पहुंच गयी होती ?”
“हां । इतनी शानदार लड़की के लिये उसकी वो खस्ता हालत भारी जिल्लत और रुसवाई का बायस बन सकती थी ।”
“आपको इस बात से इतमीनान होना चाहिये, तसल्ली महसूस होनी चाहिये कि आखिरकार वो अपनी पुरानी ग्लोरी, पुरानी शानो-शौकत पर लौट आयी थी । परसों सुबह मिसेज ज्योति निगम ने उसे वैसी ही जगमग-जगमग देखा था जैसी कि वो सात साल पहले थी ।”
ज्योति का सिर स्वयंमेव ही सहमति में हिला ।
“तब उसकी शानो-शौकत में, ग्लैमर में कोई कमी नहीं थी ।” - वो बोली - “कोई कमी थी तो उसके उस वक्त के मूड में । मैं पहले ही बता चुकी हूं कि बहुत परेशान, बहुत फिक्रमन्द लग रही थी ।”
“वो एक जुदा मसला है । मूड कभी भी किसी का भी तब्दील हो सकता है । लेकिन वो एक वक्ती बात होती है । बहरहाल हकीकत ये है कि पायल की बाबत मिस्टर बालपाण्डे की फिक्र बेमानी थी, बेबुनियाद थी और इतनी शिद्दत और जहमत के काबिल नहीं थी जितनी कि इन्होंने पूना टु गोवा में अप डाउन करके उठाई । अब आप बरायमेहरबानी मुझे ये बताइये कि असल बात क्या थी ?”
“असल बात ?” - वो सकपकाया ।
“जी हां । असल बात । वो बात जिसका कल जिक्र करना आपने मुनासिब न समझा । और ये कहने से काम नहीं चलेगा कि ऐसी कोई बात नहीं ।”
“माई डियर, सर । जिस बात का जिक्र कल मुनासिब नहीं था, वो आज कैसे मुनासिब हो जायेगा ?”
“क्या मतलब ?”
“उस बात से आपको कुछ होने वाला नहीं है । ऊपर से उसका यहां इतने लोगों के सामने” - उसकी निगाह पैन होती हुई तमाम सूरतों पर घूमी - “जिक्र करना पायल के साथ ज्यादती होगी ।”
सोलंकी कुछ क्षण सोचता रहा, फिर उसने आगे बढकर बालपाण्डे की बांह थामी और उसे अपने साथ चलाता हुआ स्विमिंग पूल के सिरे पर ले गया । सबके चेहरे पर गहन उत्सुकता के भाव प्रकट हुए, सब कान खड़े करके कुछ सुनने की कोशिश करने लगे । सिवाय डॉली के ।
उसकी इस बात में कतई कोई दिलचस्पी नहीं मालूम होती थी कि बालपाण्डे पायल के बारे में क्या नया रहस्योद्घाटन करने जा रहा था ।
जोकि राज के लिये हैरानी की बात थी ।
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10-18-2020, 06:44 PM,
#73
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सफेद टयोटा उन्हें गैरेज में खड़ी मिली ।
“ये तो राइट हैण्ड ड्राइव है ।” - राज बोला - “स्टियरिंग दाईं तरफ है । हमारे यहां की कारों की तरह ही ।”
डॉली ने सहमति में सिर हिलाया और बोली - “अब इसका क्या मतलब हुआ ?”
“इसका मतलब यह हुआ कि इस कार को चलाते हुए इसके मालिक कौशल निगम की बाई बांह धूप में नहीं झुलस सकती । इसका आगे मतलब ये हुआ कि कार को निगम नहीं चला रहा था, वो ड्राइवर के साथ बायें, पैसंजर सीट पर था । इसी वजह से तीखी धूप ने उसकी बायीं बांह पर असर किया था, उसकी बायीं बांह सनबर्न का शिकार हुई थी ।”
“यानी कि अपनी कार पर निगम यहां आइलैंड पर अकेला नहीं पहुंचा था ।”
“ये तो पक्की बात है कि सफर में कोई उसके साथ था । लेकिन जरूरी नहीं कि वो पूरे सफर में ही उसके साथ रहा हो । मुमकिन है आगरा से रवाना होने के बाद उसने किसी को पिक किया हो और पणजी या उससे पहले कहीं उसे उतार दिया हो ।”
“किसी को लिफ्ट दी होगी उसने ?”
“हो सकता है ।”
“कैसे हो सकता है ? कोई किसी को लिफ्ट देता है तो क्या गाड़ी उसे चलाने को कहता है ?”
“ये भी ठीक है ।”
“ऊपर से तुम एक बात भूल रहे हो । निगम जब अपनी कार पर यहां पहुंचा था तो उसने इस बात पर विशेष जोर दिया था कि आगरे से लेकर यहां तक का उन्नीस घण्टे का लम्बा और बोर सफर उसे अकेले - आई रिपीट, अकेले - काटना पड़ा था । अब जरा सोचो कि अगर उसने रास्ते में किसी को लिफ्ट दी होती तो क्या वो ऐसा कहता ?”
“नहीं, तब तो वो कहता कि उसने किसी को लिफ्ट दी ही इसी वजह से थी कि उसे अकेले बोर न होना पड़ता ।”
“सो, देअर यू आर ।”
“लेकिन कोई उसके साथ था जरूर । उसकी झुलसी हुई बायीं बांह इस बात की साफ चुगली कर रही है कि उसके साथ कोई था जो उसकी जगह गाड़ी चला रहा था, जो लिफ्ट नहीं था, जिसकी अपने साथ मौजूदगी को वो छुपाकर रखना चाहता था और जो, कोई बड़ी बात नहीं कि, आइलैंड तक उसके साथ आया था ।”
“यहां तक ?”
“हां । पुलिस ने भी इस बात पर शक जाहिर किया था । तभी तो वो इंस्पेक्टर सोलंकी बार-बार उससे पूछ रहा था कि क्या पिछली रात उसके साथ कार में कोई था ।”
“ये कोई कौन होगा ?”
“तुम बताओ ।”
“मैं क्या बताऊं ?”
“शर्तिया कोई लड़की थी ।”
वो एक नयी आवाज थी जिसने दोनों को चौंकाया । दोनों ने एक साथ घूमकर पीछे देखा तो गैरेज के फाटक की ओट से उन्हें शशिबाला निकलती दिखाई दी ।
“हल्लो !” - वो करीब आकर बोली ।
“छुप-छुपके किसी की बातें सुनना” - डॉली भुनभुनाई - “तहजीब के खिलाफ होता है ।”
“ये तहजीब वालों के सोचने की बातें हैं, मेरी जान, हमने ऐसी बातों से क्या लेना-देना है !”
डॉली ने बुरा-सा मुंह बनाया ।
“और फिर ऊचा-ऊंचा तो तुम लोग बोल रहे थे ।”
“ऊंचा तो नहीं बोल रहे थे हम ।” - राज बोला ।
“जरूर इस गैरेज में आवाज गूंजती होगी ।”
“ये गैरेज है” - डॉली बोली - “मकबरा नहीं है ।”
शशिबाला हंसी ।
“तो” - राज बोला - “आपका ख्याल है कि कौशल निगम के साथ कोई लड़की थी ?”
“हां ।” - शशिबाला बोली ।
“कैसे कह सकती हैं, आप ?”
“भई तुम विकी को नहीं जानते, मैं जानती हूं । उन्नीस घण्टे बोर होते गुजारने वाली किस्म का आदमी नहीं है वो ।”
“लेकिन लड़की...”
“ही इज ए लेडीज मैन । मर्दों में दिल नहीं लगता उसका ।”
“हनी” - एकाएक डॉली बोली - “अगर तुम चाहती हो कि राज तुम्हारी बात ठीक से सुन समझ सके तो बाइस्कोप बन्द कर लो ।”
“बाईस्कोप !” - शशिबाला सकपकाई ।
“हां ।”
तब उसकी तवज्जो अपने साड़ी के ढलके हुए पल्लू की तरफ गयी । उसने पल्लू को अपने उन्नत वक्ष पर व्यवस्थित किया और मुस्कराती हुई राज से बोली - “अब ठीक सुनाई दे रहा है ?”
“हां ।” - राज बोला - “बात विकी की हो रही थी ।”
“हां । डॉली, तुम तो विकी को मेरे से बेहतर जानती हो, तुम्हीं ने इसे अपने विकी की खूबियां बतायी होतीं । इसे समझाया होता कि कोई हसीना ही हो सकती थी गाड़ी में विकी के साथ । ज्योति उसे विलायती कार ले के देती है जो कि विकी का खिलौना है, जिसके साथ कि वो ‘टयोटा टयोटा’ खेलता है । अपने खिलौने को वो अपने जैसे किसी के हवाले भला कैसे कर सकता है ? लेकिन किसी नन्ही मुन्नी गुड़िया को वो अपने खिलौने से खेलने दे सकता है । किसी नौजवान, हसीन, दिलफरेब, तौबाशिकन लड़की को अपनी कार चलाने दे सकता है वो ।”
“मैं तुम्हारे जितना नहीं जानती विकी को लेकिन तुम्हारी बात ठीक है । कोई लड़की ही होगी उसके साथ । लेकिन होगी कौन वो ?”
“होगी कोई हमनशीं, हमसफर, दिलनवाज ।”
“पायल ।” - राज धीरे से बोला ।
“क्या !”
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10-18-2020, 06:45 PM,
#74
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“क्या पता पायल उसके साथ आइलैंड पर आई हो !”
“ये कैसे हो सकता है ?” - डॉली बोली - “सतीश कहता है कि पायल तो परसों दोपहर से आइलैंड पर थी जबकि विकी तो कल आया था ।”
“कहां कल आया था ? सतीश की एस्टेट पर । वो आइलैंड पर कब से था, इसका हमें क्या पता ?”
“सुनो, सुनो ।” - शशिबाला बोली - “सतीश कहता था कि पायल ने दोपहर के करीब उसे पायर से फोन किया था और उसे बताया कि देर रात गये तक उसे ईस्टएण्ड पर काम था । हममें से हर किसी के लिये ये बात एक पहेली है कि आखिर पायल को क्या काम था ईस्टएण्ड पर जिससे कि वो रात दो बजे तक फारिग नहीं होने वाली थी ! जो बातें विकी को लेकर हम लोगों के बीच हो रही हैं, उनकी रू में अब वो काम समझ में आता है । वो काम था कामदेव का अवतार लगने वाले मिस्टर ज्योति निगम उर्फ कौशल निगम उर्फ विकी बाबा के साथ ऐश लूटना । ऐसा ही जादूगर है अपना विकी बाबा । चन्द घड़ियां कोई लड़की उसके साथ गुजार ले तो वो नशे की तरह उस पर हवी हो जाता है । सुध-बुध भुला देता है । टयोटा में सफर के दौरान जरूर पायल भी उस जादू की गिरफ्त में आ गयी होगी ।”
“ओह !”
“पायल ने सतीश को ये भी कहा था कि अगले रोज दोपहर तक उसने वापिस चले जाना था । जरूर उसका वापिसी का सफर भी विकी के साथ उसको टयोटा पर ही होने वाला था । यहां एस्टेट पर हाउसकीपर के कत्ल के साथ हंगामा न खड़ा हो गया होता और पायल को अपनी जान बचाने के लिये एकाएक मुंह-अन्धेरे यहां से भागना न पड़ गया होता तो किसी को भनक भी नह लगती विकी की आइलैंड पर मौजूदगी की या उसकी मोहनी से किसी जुगलबन्दी की ।”
तभी ज्योति वहां पहुंची जिसे देखते ही शशिबाला खामोश हो गयी ।
“मेरे हसबैंड की क्या बात हो रही थी ?” - वो सशंक भाव से बोली ।
“कुछ नहीं ।” - शशिबाला विचलित भाव से बोली ।
“कुछ कैसे नहीं ! पायल से कैसे रिश्ता जोड़ रही थीं तुम उसका ?”
“ज्योति, क्या बात है, तू तो हर वक्त लड़ने को तैयार रहती है ?”
“विकी पर इलजाम लगाकर तू अपनी जान सांसत से नहीं छुड़ा सकती । समझ गयी ।”
“मेरी जान ! सांसत !”
“अब जबकि स्थापित हो चुका है कि पायल की वापिसी तेरे पूरे वजूद के लिये खतरा बन सकती थी तो तू चाहती है कि शक की सूई किसी और पर जाकर टिक जाए और तू...”
“तू... तू पागल है ।”
“मैं पागल हूं !” - ज्योति आंखें निकालकर बोली - “तू ये कहने का हौसला कर सकती है कि पायल की वापिसी से तुझे कोई खतरा नहीं है ?”
“इसमें हौसला कर सकने वाली कोई बात नहीं । ये हकीकत है ।”
“क्या हकीकत है ?”
“वही जो मैं पहले भी कह चुकी हूं । ढाई करोड़ रुपये की मोटी रकम की मालकिन बनने को तैयार पायल अब आनन-फानन फिल्म कान्ट्रैक्ट की तरफ नहीं भागने वाली थी । न ही वो अधिकारी को ओब्लाइज करने के लिये, उसे पांच लाख रुपये का बोनस कमाने का मौका देने के लिये, कॉन्ट्रैक्ट साइन करने वाली थी । और ये न भूल, देसाई उसका दीवना था, वो देसाई की दीवानी नहीं थी । होती तो उसकी पेशकश कब की कबूल कर चुकी होती । मेरी बन्नो, ये तेरी खुशफहमी है, उन पुलिस वालों की भी खुशफहमी है, कि मैंने पायल का कत्ल इसलिये किया हो सकता है क्योंकि उसकी वापसी से मेरे फिल्मी कैरियर को खतरा था । तीन-चौथाई बन चुकी बिग बजट फिल्म में से हिरोइन को एकाएक निकाल बाहर करना कोई हंसी-खेल नहीं होता । इतना नुकसान कोई नहीं झेल सकता, भेल ही वो ग्रेट दिलीप देसाई हो । और फिर ये न भूल कि ऐसे मामलों के लिये कोर्ट के दरवाजे भी खुले हैं । मेरा इस स्टेज पर ‘हार-जीत’ से बाहर होने का मतलब ये होगा कि सात जन्म वो फिल्म पूरी नहीं होने वाली ।”
“हल्लो, ऐवरीबाडी ।” - एकाएक धर्मेन्द्र अधिकारी वहां प्रकट हुआ - “भई, ‘हार-जीत’ की क्या बात चल रही हैं यहां ? और हमारी हीरोइन तमतमाई हुई क्यों दिखाई दे रही है ? कोई बखेड़े वाली बात है तो अब फिक्र न करना, शशि बेबी । मैं आ गया हूं ।”
फिर उस पिद्दी से आदमी ने यूं शान से छाती फुलाई जैसे वो सुपरमैन हो ।
“ले, आ गया तेरा सैक्रेट्री ।” - ज्योति बोली - “अब इसे बोल कि एक अच्छे बच्चे की तरह कत्ल का इलजाम ये अपने सर ले ले ताकि तेरी जान छूटे ।”
“भई, क्या हो रहा है यहां ?” - अधिकारी बोला ।
“रेवड़ी बंट रही है कत्ल के इलजाम की ।” - डॉली बोली - “तुम्हें भी चाहियें !”
“मैंने तो नहीं लगाया किसी पर कत्ल का इल्जाम ।” - शशिबाला बोली - “मेरा मतलब है अभी तक ।”
“अब आगे क्या मर्जी है ?” - ज्योति बोली ।
“सुनना चाहती है, मेरी बन्नो ?”
“जैसे मेरे इनकार करने से तू बाज आ जायेगी ।”
“नहीं, अब तो बाज नहीं आने वाली मैं । अब तो मेरे खामोश होने से तू और पसर जायेगी ।”
“क्या कहना चाहती है ?”
“वही जो तेरा दिल जानता है । और अब दुनिया भी जानेगी । तू पायल का जिन्दा रहना अफोर्ड नहीं कर सकती थी ?”
“क्यों ? अफोर्ड नहीं कर सकती थी ?”
“क्योंकि पायल तेरा पति, तेरा खास खिलौना, तेरा स्टेटस सिम्बल तेरा विकी बाबा तेरे से छीन सकती थी । नौजवानी और खूबसूरती में तो वो तेरे सक इक्कीस थी ही, ऊपर से वो ढाई करोड़ रुपये की मोटी रकम की मालकिन बनने वाली थी । और ऊपर से विकी शुरु से, पायल का दीवाना था । हर घड़ी कुत्ते की तरह उसके लिये लार टपकाता रहता था । पणजी की वो पार्टी तू भूली नहीं होगी जिसमें नशे में विकी ने पायल को अपनी बांहों में ले लिया था । तब लोगों के बीच-बचाव से ही विकी की जानबख्शी हो पायी थी वर्ना श्याम नाडकर्णी ने तो उसकी उस करतूत की वजह से उसके हाथ-पांव तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ।”
“मुझे याद है वो घटना ।” - अधिकारी बोला - “लेकिन कोई मेरे से पूछे तो मेरा जवाब आज भी ये ही होगा कि उस घटना से सारा कसूर पायल का था ।”
“पायल का था ?” - राज हैरानी से बोला ।
“सरासर पायल का था । ऐसी बला की हसीन लग रही थी उस रोज कि पीर-पैगम्बरों का ईमान डोल सकता था उस पर । अपना विकी तो बेचारा न पीर था, न पैगम्बर । मैं तो कहता हूं कि किसी औरत को इतना हसीन-तरीन दिखने का अख्तियार होना ही नहीं चाहिये कि...”
“ओह, शटअप ।” - डॉली मुंह बिगाड़कर बोली ।
“शटअप तो मैं हो जाता हूं लेकिन हकीकत यही है कि उस रात उस पार्टी में विकी ने वही किया था जो कि वहां मौजूद हर मर्द करना चाहता था । मैं भी ।”
“तुम मर्द हो ?”
“आजमा के देखा तो पता चले ।”
“आजमाने लायक कुछ दिखाई दे तो आजमा के देखूं न ! जितने तुम टोटल हो, उतना तो मैं ब्रेकफास्ट करती हूं । तुम तो मैं” - उसने गाल फुलाकर जोर से फूंक मारने का एक्शन किया - “फूंक मारूंगी तो उड़ जाओगे ।”
“वहम है तुम्हारा । डॉली डार्लिंग, तुम जानती नहीं हो कि वो ‘देखन में छोटो लगत घाव करत गंभीर’ इस खाकसार की बाबत ही कहा गया है ।”
“ओह, शटअप आलरेडी । विकी ने उस पार्टी में पायल के साथ वो हरकत महज ज्योति को जलाने के लिये की थी । क्या भूल गये कि उन दिनों हम ज्योति को कितना छेड़ा करते थे कि वो तो मीराबाई की तरह विकी की प्रेमदीवानी बनी हुई थी ।”
“विकी बेरोजगार था ।” - शशिबाला बोली - “लेकिन बदकिस्मती से नहीं, बदनीयती से । वो कामचोर बेरोजगार था जिसका काम करने का कभी कोई इरादा ही नहीं था । इसीलिये उसने कमाने वाली बीवी पटाई । लोग कहते थे कि ये महज इत्तफाक था कि विकी ने ज्योति से तब शादी की थी जब कि इसके हाथ अपने एक बेऔलाद मामा का दिल्ली में जमा-जमाया बिजनेस लग गया था - ये ‘एशियन एयरवेज’ की मालिक बन गई थी लेकिन हकीकत ये है कि विकी ने इससे शादी की ही तब थी जबकि अपने मामा का वो जमा-जमाया बिजनेस इसके हाथ लगा था ।”
“गलत । बिल्कुल गलत । विकी को पैसे की परवाह नहीं थी । वो पैसे के पीछे नहीं भगता था ।”
“वो क्यों भागता ? जबकि पैसा उसके पीछे भागता था । तू दौड़ाती थी पैसे को उसके पीछे । आज भी दौड़ाती है । वैसी खिदमत करती है तू विकी की जैसी मर्द लोग अपनी किसी रखैल की करते हैं । उसकी हर ख्वाहिश पूरी करती है तू । उसे कीमती खिलौने ले के देती है । मेरी बन्नो, एक बार विकी की अपनी इस खिदमत से हाथ खींच और फिर देख कि तू कहां और विकी कहां !”
“तू पागल है । वो ऐसा नहीं है ।”
“किसे बहका रही है । कोई नहीं बहकने वाला । सिवाय तेरे । मेरी जान, बकौल तेरे अगर पायल पहले से भी ज्यादा हसीन लग रही थी तो वो तेरे लिये पहले से भी ज्यादा खतरा थी क्योंकि खुद तेरे बारे में तो नहीं कहा जा सकता कि तू पहले से ज्यादा हसीन है आज की तारीख में । ऊपर से तुझे तो पायल की तरह ढाई करोड़ की रकम से कोई नहीं नवाजने वाला । अब इन तमाम बातों पर गौर करके ईमानदारी से जवाब दे कि अगर पायल तेरा विकी नाम का खिलौना तेरे से छीन लेना चाहती तो वो कामयाब होती या नहीं ?”
“यूं” - अधिकारी ने चुटकी बजायी - “कामयाब होती ।”
“और तू क्या अपना खिलौना, अपना नाजों से पाला स्टडबुल, छिन जाने देती ? नहीं छिन जाने देती तो तू क्या करती ?”
“ये” - अधिकारी नेत्र फैलाता हुआ बोला - “पायल का खून कर देती । वो कहते नहीं है कि न रहे बांस न बजे बांसुरी । यानी की न रहे सौत न निकसें बलमा ।”
“अब, मेरी रसभरी, तू ये साबित करके दिखा कि जो कुछ मैंने कहा है, वो गलत है ।”
ज्योति के मुंह से बोल न फूटा ।
“देखा !” - अधिकारी हर्षित भाव से बोला - “देखा मेरी पट्ठी का कमाल !”
“देखा” - ज्योति रूआंसी-सी बोली - “उल्लू की पट्ठी का कमाल ।”
“अरे !” - अधिकारी बड़बड़ाया - “मुझे उल्लू कहती है ।”
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10-18-2020, 06:45 PM,
#75
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“जिसने जितना भौंकना है, भौंक ले लेकिन मैं जानती हूं कि विकी सिर्फ मुझसे प्यार करता है । वो मेरे सिवाय किसी का नहीं हो सकता ।”
“हा हा हा ।” - शशिबाला ने बड़े नाटकीय अन्दाज से अट्टाहास किया ।
ज्योति एकाएक घूमी और पांव पटकती हुई वहां से रुख्सत हुई ।
फिर शशिबाला भी बड़ी शाइस्तगी से वापिस चली तो फुदकता-सा अधिकारी भी उसके पीछे हो लिया ।
“आओ, हम भी चलें ।” - राज बोला ।
“जरा रुको ।”
“क्यों ? क्या हुआ ?”
“मुझे एक बात सूझी है ।”
“क्या ?”
“हम बार-बार कौशल निगम की झुलसी बांह का जिक्र करते हैं लेकिन हमने एक बार भी इस बात का ख्याल नहीं किया कि जैसे पैसेन्जर सीट पर बैठे-बैठे उसकी बाईं बांह सनबर्न से झुलसी थी, वैसे कार चलाते ड्राइवर की दाई बांह भी तो झुलसी होगी । नहीं ?”
“हां ।”
“अभी-अभी शशिबाला ये दावा करके गई है कि कौशल के साथ होगी तो कोई लड़की ही होगी ।”
“मैंने बोला तो था कि वो लड़की पायल हो सकती है ।”
“मुझे कोई और कैण्डीडेट सूझ रहा है ।”
“कौन ?”
“फौजिया ।”
“फौजिया ?”
“जरा उसकी पोशाकों को याद करने की कोशिश करो । अपनी यहां मौजूदगी के दौरान उसे जब भी, जो भी पोशाक पहनी, है भले ही वो जीन हो, स्कर्ट हो, साड़ी हो, शलवार-कमीज हो, उसकी स्कीवी या ब्लाउज या कमीज की आस्तीन कलाई तक आने वाली थी । अभी भी स्कर्ट के साथ जो कालर वाली कमीज वो पहने थी, वो सामने से तो नाभि तक खुली मालूम होती थी लेकिन उसकी आस्तीनें बटनों द्वारा कलाई के करीब बन्द थीं ।”
“तो ?”
“तो क्या ? समझो ।”
“वो सनबर्न छुपाने के लिये लम्बी आस्तीन वाली शर्ट वगैरह पहन रही है ?”
“क्या नहीं हो सकता ?”
“हो तो सकता है लेकिन इस बात की तसदीक कैसे हो ?”
“कैसे हो ?”
“तुम लड़की हो । उसकी सखी हो । फैलो बुलबुल हो । तुम्हीं कोई ताक-झांक करने की कोशिश करो ।”
“एक आसान तरीका भी है ।”
“क्या ?”
“मैं किसी बहाने से उसकी दाई बांह थाम लेती हूं । मेरे ऐसा करने पर अगर वो भी वैसे तड़पती है जैसे सतीश के बांह पकडने पर कौशल तड़पा था तो इसका साफ मतलब ये होगा कि सतीश की बाई बांह की तरह उसकी दाई बांह धूप में झुलसी हुई है और ये कि वो ही उसकी लम्बें सफर की संगिनी थी ।”
“ठीक है । तुम करना कुछ ऐसा ।”
डॉली ने सहमती में सिर हिलाया । फिर वे वापिस लौटे ।
Chapter 4
इस बार लाउन्ज में एक नया आदमी मौजूद था । लगता था कि वो तभी वहां पहुंचा था क्योंकि तब सोलंकी उपस्थित लोगों को उसका परिचय दे रहा था ।
“ये इंस्पेक्टर आरलेंडो है । पणजी से आये हैं । नारकाटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो से हैं ।”
“नारकाटिक्स कन्ट्रोल ब्यूरो से !” - ब्रान्डी हड़बड़ाकर बोला - “इनका यहां क्या काम ?”
“मालूम पड़ जायेगा । अभी बाम्बे से एन.सी.बी. के एक डिप्टी डायरेक्टर भी यहां पहुंचने वाले हैं ।”
“यहां !”
“आइलैंड पर ।”
“क्या कोई बड़ा केस पकड़ में आ गया है ?”
“अभी पता चल जायेगा । फिलहाल आप जरा ये देखिये क्या है ?”
उसने मेज पर पड़ी कार्ड-बोर्ड की पेटी में से एक छुरी बरामद की । छ: इंच के करीब लम्बे फल वाली छुरी सूरत से ही निहायत तीखी लगी रही थी ।
“कोई इस छुरी को पहचानता है ?” - उसने पूछा ।
“मैं पहचानता हूं ।” - तत्काल सतीश बोला - “ये छुरी उस कटलरी का हिस्सा है जो कुछ साल पहले मैं इंगलैंड से लाया था । इसके फल और हैंडल दोनों पर ताज का मोनोग्राम बना हुआ है ।”
“यानी ये छुरी आपकी मिल्कियत है ?”
“हां ।”
“इसके जोड़ीदार बाकी के छुरी-कांटे-चम्मच वगैरह कहां पाये जाते हैं ?”
“किचन के एक दराज में ।”
“जिसको ताला लगाने में तो कोई मतलब ही नहीं ।”
“माई डियर सर, किचन दराजों को कौन ताला लगाता है ?”
“लगाने वाले लगाते हैं लेकिन आप नहीं लगाते । आपके यहां किसी चीज को ताले में बन्द करके रखने का रिवाज नहीं मालूम होता । मेहमानों की बेइज्जती होती है । आपकी मेहमाननवाजी पर हर्फ आता है । नो ?”
सतीश ने जोर से थूक निगली और फिर अटकता-सा बोला - “आप क्या कहना चाहते हैं ? क्या ये छूरी इस वक्त जिक्र के काबिल है ?”
“ये आलायेकत्ल है । मर्डर वैपन है ये । ये टेलीफोन बूथ से बरामद हुई आयशा की लाश की छाती में पैवस्त पायी गयी थी ।”
“ओह !”
“यानी कि जैसे पहले कत्ल का हथियार आपके शस्त्रागार से सप्लाई हुआ था, वैसे ही दूसरे कत्ल का हथियार आपकी किचन से सप्लाई हुआ है । दूसरा कत्ल किसी फायरआर्म से इसलिये नहीं हुआ क्योंकि पुलिस की राय पर अमल करते हुए आपने कल शास्त्रागार को ताला लगा दिया था ।”
“लेकिन” - राज बोला - “पहले कत्ल का हथियार वो अड़तीस कैलीबर की स्मिथ एण्ड वैसन रिवॉल्वर अभी बरामद तो हुई नहीं ? क्या इसका मतलब ये नहीं कि वो रिवॉल्वर अभी भी कातिल के पास थी ।”
“हमें निश्चित रूप से मालूम है कि कल रात दूसरे कत्ल की नौबत आने से पहले कातिल उस रिवॉल्वर को कहीं ठिकाने लगा चुका था ।”
“कहीं कहां ?”
“कुएं में ।”
“जी !”
“वो रिवॉल्वर कुएं से बरामद हुई है ।”
“ओह !”
“इसका साफ मतलब ये भी है कि रिवॉल्वर को ठिकाने लगाने के बाद तक कातिल को ये इमकान नहीं था कि बहुत जल्द, आनन-फानन उसके एक और कत्ल भी करना पड़ सकता था । वर्ना वो रिवॉल्वर को अपने से जुदा न करता । उसके रिवॉल्वर कुएं में फेंक चुकने के बाद ही ऐसे हालात पैदा हुए थे कि उसे आयशा का भी कत्ल करना पड़ा था । तब आल्टरनेट वैपन के तौर पर उसने ये लम्बे फल वाली तीखी छुरी चुनी थी जो कि यहीं किचन में सहज ही उपलब्ध थी । दूसरा कत्ल किचन में उपलब्ध छुरी से हुआ होना मेरी इस धारणा को और भी मजबूत करता है कि कातिल कोई बाहरी आदमी नहीं हो सकता । कातिल या मेहमानों में से कोई था या” - उसकी निगाह पैन होती हुई कौशल निगम, रोशन बालपाण्डे और धर्मेन्द्र अधिकारी पर फिरी - “मेहमानों के मेहमानों में से कोई था ।”
“इसके हत्थे पर से कोई फिंगर प्रिंटस वगैरह नहीं मिले ?”
“नहीं मिले । रिवॉल्वर पर से भी नहीं मिले । यानी की कातिल होशियार और खबरदार था ।”
कोई कुछ न बोला ।
सोलंकी कुछ क्षण बारी-बारी सबको घूरता रहा, फिर उसने दोबारा कार्ड-बोर्ड की पेटी में हाथ डाला । इस बार उसने पेटी से जो आइटम बरामद की वो एक एयरबैग था जोकि साफ पता चल रहा था कि खाली नहीं था ।
“कोई” - वो उसे पेटी से अलग मेज पर रखता हुआ बोला - “इसे एयरबैग को पहचानता हो !”
“मैं पहचानती हूं ।” - तत्काल ज्योति बोली - “परसों सुबह इसे मैंने तब पायल के हाथ में देखा था जबकि वो यहां से खिसक रही थी ।”
“पक्की बात ?”
“जी हां ।”
“इस किस्म के एयरबैग सब एक ही जैसे होते हैं, फिर भी आप दावे के साथ कह रही हैं, कि ये ही बैग आपने पायल के हाथ में देखा था । ऐसा क्यों ?”
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10-18-2020, 06:45 PM,
#76
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“मुझे तो ये वो ही बैग लगा था” - वो तनिक हड़बड़ाकर बोली - “अब आप कहते हैं कि ये कोई और बैग भी हो सकता है तो... वैल, यू नो बैटर ।”
“मैडम, ज्यादा सम्भावना इसके वो ही बैग होने की है ।”
“क्यों ?”
“इसके भीतर से सामान मौजूद है, वो पायल का है । बतौर पायल की मिल्कियत उसकी आप पहले ही शिनाख्त कर चुकी हैं ।”
“अच्छा ! क्या है इसमें ?”
सोलंकी के इशारे पर फिगुएरा ने बड़े नाटकीय अन्दाज से एयरबैग की जिप खोली और उसमें से निहायत शानदार, निहायत कीमती फर का सफेद कोट बरामद किया ।
“ये तो... ये तो” - ज्योति के मुंह से निकला - “पायल का कोट है ।”
“जी हां ।” - सोलंकी बोला - “तभी तो मैंने कहा कि इसकी आप पहले ही शिनाख्त कर चुकी हैं । आपके बयान के मुताबिक ये कोट यहां से रुख्सत होते वक्त पायल अपने जिस्म पर पहने थी । राइट ?”
ज्योति ने सहमति में सिर हिलाया ।
“हाजिर साहबान की जानकारी के लिये वो रिवॉल्वर भी इस कोट के साथ इस एयरबैग में थी । और ये एयरबैग कल रात साढे बारह बजे के करीब लबादा ओढे एक साये ने कुएं में फेंका था और वो साया” - एकाएक सोलंकी का स्वर अतिनाटकीय हो उठा - “मैं यकीनी तौर पर कह सकता हूं कि आप लोगों में से ही कोई था । आप लोगों में से ही कोई कल आधी रात के बाद काला लबादा ओढे यहां से बाहर निकलकर कुएं के करीब पहुंचा था और उसने अपने लाबदे में से निकालकर सामान कुएं में फेंका था ।”
“आपको कैसे मालूम ?” - सतीश भौचका-सा बोला ।
“है मालूम किसी तरीके से ।” - सोलंकी लापरवाही से बोला ।
“सामान !” - आलोका मन्त्रमुग्ध स्वर में बोली - “सामान ये एयरबैग ?”
“और ये ।”
इस बार सोलंकी ने पेटी से निकालकर जो चीज मेज पर रखी वो किसी सफेट पाउडर से भरी हई एक वाटरप्रूफ थैली थी ।
“ये क्या है ?” - राज उत्सुक भाव से बोला - “क्या है इस थैली में ?”
“हेरोइन ।” - तब पहली बार एन.सी.बी. का इंस्पेक्टर आरलेंडो बोला - “प्योर । अनकट । जांच हो चुकी है । वजन दो किलो । अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत दो करोड़ रुपये ।”
“ये भी कुएं से मिली ?” - शशिबाला बोली ।
“जी हां ।”
“कोट और रिवॉल्वर के साथ एयरबैग में से ही ?”
“नहीं ।” - सोलंकी बोला - “हेरोइन की थैली एयरबैग में नहीं थी । लेकिन एयरबैग और ये थैली कुएं में अगल-बगल पड़े थे और साफ जाहिर है कि हमारी कुएं की पहली तलाशी के बाद ही वहां फेंके गये थे ।”
“लेकिन इतनी हेरोइन !” - राज मंत्रमुग्ध स्वर में बोला - “यहां ?”
“ये बहुत सनसनीखेज बरामदी है जिसकी कि फौरन एन.सी.बी. को सूचना भिजवाई गयी थी और वजह से बम्बई से एन.सी.बी.के डिप्टी डायरेक्टर मिस्टर अचरेकर खुद यहां आ रहे हैं । साहबान, हेरोइन की ये बरामदी यहां हुए डबल मर्डर से कहीं ज्यादा सनसनीखेज वारदात है । अब हमें एक कातिल से ज्यादा एक ड्रग स्मगलर की, बल्कि एक ड्रग लार्ड की तलाश है ।”
“दोनों कोई एक ही शख्स होगा !” - सतीश बोला ।
“हो सकता है । नहीं भी हो सकता । गहरी तफ्तीश का मुद्दा है ये ।”
“कैसे हो सकता है ?” - राज बोला - “मिस्टर सतीश की कोई बुलबुल कातिल हो, ये बात तो सम्भव हो सकती है लेकिन वो कोई बड़ी नारकाटिक्स समगल हो ! ये तो हज्म होने वाली बात नहीं ।”
“वो किसी और के लिये काम करती हो सकती है ।”
“और कौन ?”
“कोई भी । बहुत लोग हैं मेरी निगाह में ।”
वहां उपस्थित तमाम मर्द एक साथ विचलित दिखाई देने लगे ।
“जैसे” - राज बोला - “ये रिवॉल्वर और ये कोट बरामद हुआ है इससे क्या ये स्थापित नहीं होता कि पायल का भी कत्ल हो चुका है ?”
“इस बात की तसदीक तो” - फिगुएरा बोला - “मरने से पहले आयशा ही फोन पर कर गयी थी । साफ तो कहा था उसने कि पायल जिन्दा नहीं थी, वो मर चुकी थी, उसका कत्ल कर दिया गया था ।”
“लेकिन आप अभी तक उसकी लाश नहीं तलाश कर पाये ।”
“कर लेंगे । महज वक्त की बात है ये । हमारे पास स्टाफ की कमी न होती तो अब तक कर भी चुके होते ।”
“जनाब, कातिल का रिवॉल्वर को कुएं में फेंकना तो समझ में आता है लेकिन कोट का ऐसा विसर्जन किसलिये ? कोट क्या तकलीफ देता था कातिल को ? पायल और भी तो कपड़े पहने होगी । ये कोट भी उसकी बाकी पोशाक के साथ उसके जिस्म पर से बरामद हो जाता तो क्या आफत आ जाती ?”
फिेगुएरा से जवाब देते न बना । उसने सोलंकी की तरफ देखा ।
“रिवॉल्वर का कत्ल से ताल्लुक था” - राज फिर बोला - “कोट का मकतूल से ताल्लुक था लेकिन हेरोइन का तो इन दोनों बातों से कोई ताल्लुक नहीं था । फिर क्यों किसी ने दो करोड़ की हेरोइन का रिश्ता खामखाह एक कत्ल से जोड़ा ? क्यों खामखाह किसी ने ऐसा पंगा लिया कि...”
“होगी कोई वजह” - सोलंकी झुंझलाकर बोला - “जो कि सामने आ जायेगी । बहरहाल...”
तभी पिन्टो नाम का सिपाही लम्बे डग भरता हुआ सोलंकी के करीब पहुंचा और जल्दी जल्दी उसके कान में कुछ फुसफुसाया जिसे सुनकर सोलंकी तत्काल उठ खड़ा हुआ ।
“साहबान” - वो बोला - “मिस्टर अचरेकर को हैलीकाप्टर हैलीपैड पर उतर चुका है । अब हमारी फौरन चौकी पर हाजिरी जरूरी है । जाने से पहले मैं एक चेतावनी देकर जाना चाहता हूं - खासतौर से उन लोगों को जिनकी आइलैंड पर मूवमेंट्स संदिग्ध हैं या जो संतोषजनक तरीके से अपनी पोजीशन साफ न कर सके या जो हमारे किन्हीं सवालों के काबिले एतबार जवाब न दे सके या जवाब ही न दे सके । मसलन मिस्टर कौशल निगम ने अभी हमें ये बताना है कि क्यों वो आधी रात को अपनी टयोटा लेकर यहां निकले थे और इसके साथ जो लड़की थी वो कौन थी... नो मिस्टर निगम, अभी जवाब देने की जरूरत नहीं । आपका अभी का जो जवाब है, वो मुझे मालूम है । वो जवाब हमें कबूल नहीं । हमारे पास गवाह है ये कहने वाला - जो हवलदार स्कूटर पर आपकी कार के पीछे लगा था, उसके अलावा गवाह है ये कहने वाला - कि कार में आपके साथ कोई लड़की थी ।”
ज्योति ने आहत भाव से अपनी पति की तरफ देखा ।
“नानसेंस !” - निगम ज्योति से निगाह चुराता हुआ बोला - “अटर नानसेंस ।”
“मिस्टर बालपाण्डे” - उसको पूरी तरह नजरअन्दाज करता सोलंकी बोला - “पायल की जो सप्लीमैंट्री स्टोरी आपने सुनाई है, उसमें दम है लेकिन अपनी बीवी को भी भुलावे में रखकर आपका चोरों की तरह आइलैंड पर आना, वापिस जाना, फिर आना अभी शक से परे नहीं । यही बात आपके बारे में भी कही जा सकती है, मिस्टर अधिकारी ।”
“बॉस” - अधिकारी बोला - “पायल मेरी पांच लाख रुपये की हुण्डी थी, मैं उसका कत्ल तो दूर, उसकी उंगली के एक नाखून को नुकसान पहुंचाना गवारा नहीं कर सकता था ।”
“मिस फौजिया खान का यहां से चुपचाप खिसक जाने को आमदा हो जाना हम अच्छी निगाहों से नहीं देखते । ऐसा ही एतराज हमें मिसेज ज्योति निगम के पायल से अपनी मुलाकात की बाबत खामोश रहने से है । मिस शशिबाला को पायल की वापसी में अपनी बर्बादी दिखाई देती थी, ये बात भी स्थापित हो चुकी है । इसके विपरीत ये बात अभी निर्विवाद रूप से स्थापित नहीं हुई है कि मिसेज आलोका बालपाण्डे अपने पति की ही तलाश में आधी रात को मिस्टर सतीश की कोन्टेसा लेकर यहां से निकली थीं । और मैडम” - केवल डॉली से वो सीधे सम्बोधित हुआ - “पायल का ब्रेसलेट आपके सामान से क्योंकर बरामद हुआ इसका कोई माकूल जवाब आप न दे पायीं तो सब से ज्यादा मुसीबत में आप अपने आपको समझियेगा ।”
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10-18-2020, 06:45 PM,
#77
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“मैं” - डॉली व्याकुल भाव से बोली - “अभी जवाब देने को तैयार हूं, बशर्ते कि आप मिस्टर बालपाण्डे की तरह मुझे भी अकेले में अपनी बात कहने का मौका दें ।”
“उसके लिये मेरे पास वक्त नहीं है । मैंने फौरन चौकी पहुंचना है । हमारी अगली मुलाकात तक आप अपना जवाब अच्छी तरह से पालिश कर लीजियेगा । मिस्टर सतीश !”
सतीश ने हड़बड़ाकर गरदन उठाई ।
“आपके मेहमान आपके हवाले हैं । हमारे लौटने तक आप इनकी ऐसी खातिर-तवज्जो कीजियेगा कि किसी को फरार हो जाने का ख्याल तक न आये ।”
सतीश ने सहमति में सिर हिलाया ।
“यही बात” - आरलेंडो बोला - “आप पर भी लागू होती है ।”
“क... क्या ?”
आरलेंडो ने उत्तर न दिया ।
फिर तीनों पुलिस अधिकारी अपने पीछे कई हकबकाये श्रोताओं को छोड़कर बड़ी अफरातफरी में वहां से रुख्सत हो गये ।
***
पांच बजने को थे जब राज के कमरे के दरवाजे पर दस्तक पड़ी ।
“कम इन !” - वो बोला ।
दरवाजा खुला । डॉली ने भीतर कदम रखा ।
“क्या कर रहे हो ?” - वो बोली ।
“कुछ नहीं ।” - राज बोला - “झक मार रहा हूं ।”
“वो... वो पुलिस वाले लौट के नहीं आये ?”
“आ जायेंगे । उन्हें हो तो हों, हमें क्या जल्दी है ?”
वो कुछ क्षण खामोश रही और फिर बड़बड़ाती सी बोली - “मेरी जान कैसे छूटे ?”
“अपनी जान तुमने खुद सांसत में डाली हुई है । तुम बता क्यों नहीं देती हो कि पायल का ब्रेसलेट तुम्हारे कब्जे में कैसे आया ।”
“वो... वो पायल का ब्रेसलेट नहीं है ।”
“क्या कहने ? यानी कि ‘प्रिय पायल को । सप्रेम । श्याम’ बेमानी ही उस पर गुदा हुआ है ।”
“कल हम जब ईस्टएण्ड गये थे तो तुम मुझे बाहर जीप में बैठा छोड़कर चौकी में गये थे । क्या करने गये थे तुम वहां ?”
“बड़ी देर से पूछना सूझा ।”
“क्या करने गये थे ?”
“उन्हें तुम्हारे धर्मेन्द्र अधिकारी की बाबत बताने गया था ।”
“तुम उन्हें ऐसी बात बताने गये थे जिसे वो होटल के रिसैप्शनिस्ट जार्जियो के जरिये पहले ही जान चुके थे ?”
“नाम नहीं जान चुके थे । पायल को पूछते फिर रहे दो आदमियों में से एक का नाम धर्मेन्द्र अधिकारी था और वो फिल्मों से जुड़ा हुआ कोई ऐसा शख्स था जो कि सतीश की तमाम बुलबुलों को जानता था, ये उन्हें मैंने जाकर बताया था ।”
“बस ?”
“और क्या ?”
“और कुछ नहीं बताया था तुमने उन्हें ?”
“अरे और क्या ?”
“मसलन मेरे बारे में कुछ !”
“तुम्हारे बारे में क्या ?”
“तुम बताओ ।”
“ये कि पायल के सन्दर्भ में तुम्हारा व्यवहार बड़ा सन्दिग्ध था ? कि उसकी आमद की खबर सुनकर तुम बदहवास हो गयी थीं और तुमने फौरन ड्रिंक्स से हाथ खींच लिया था ? कि पायल से मिलने की नीयत से तुम चोरों की तरह अपने कमरे से बाहर निकली थीं और एकाएक मेरे से सामना हो जाने पर तुमने टुन्न होने का और अभी पीने की तलब रखने का बहाना किया था ?”
“हां ।”
“नहीं, नहीं बताया था मैंने । अभी तक नहीं बताया ।”
“अच्छा किया । वर्ना ब्रेसलेट वाली बात को इन बातों से जोड़कर पुलिस जरूर-जरूर ही कोई बड़ा खतरनाक नतीजा निकाल लेती ।”
“डॉली, वो बातें कभी तो मुझे अपनी जुबान पर लानी पड़ ही सकती हैं ।”
“क्यों ? क्यों पड़ सकती हैं ?”
“क्योंकि मैं यहां तुम लोगों की तरह पिकनिक करने नहीं आया, अपनी फर्म के लिये एक निहायत जिम्मेदार काम को अन्जाम देने आया हूं । क्योंकि मैं किसी एक्स फैशन माडल का नहीं, आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का मुलाजिम हूं ।”
डॉली ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा ।
“और मेरे एम्पलायर का, मेरे वाहियात, खुन्दकी, सैडिस्ट, स्लेव ड्राइवर एम्पालायर का मेरे लिये नाजायज, नामुराद, नाकाबिले बर्दाश्त हुक्म है कि मैं पायल की लाश का पता लगाऊं और उसके कातिल का पता लगाऊं ।”
“ये तुम्हारा काम तो नहीं ।”
“यू टैल एडवोकेट नकुल बिहारी आनन्द ।”
“मुझे डर लगता है ।”
“किस बात से ? अपनी गिरफ्तारी से ?”
“उससे ज्यादा इस बात से कि कातिल हम लोगों के बीच मौजूद है और पुलिस वालों के यहां वापिस कदम नहीं पड़ रहे ।”
“तो क्या हुआ ?”
“यहां और कत्ल हो सकता है ।”
“तुम्हारा ?”
“मेरा या किसी का भी ।”
“यानी कि तुम तो कातिल नहीं हो !”
“इस बाबत हमारे बीच पहले ही फैसला नहीं हो चुका ?”
“तब मुझे पायल के ब्रेसलेट वाली बात नहीं मालूम थी ।”
“ओह, तो अब मैं भी तुम्हारे सस्पेक्ट्स की लिस्ट में आ गई हूं ।”
राज ने जवाब न दिया ।
“वकील साहब” - वो तीखे स्वर में बोली - “ये न भूलो कि कल रात को जब कोई बुलबुल कुएं में सामान फेंक रही थी, तब मैं तुम्हारे साथी थी ।”
“किसी और बुलबुल ने तुम्हारे कहने पर तुम्हारे लिये ये काम किया हो सकता है ।”
“क्यों ?”
“ताकि मैं तुम्हें गुनहगार न समझूं ।”
“तुम्हारे कुछ समझने या न समझने की क्या कीमत है ?”
राज ने जवाब न दिया ।
“और फिर कौन मेरे कहने पर ये काम करेगी और जानबूझकर शक की सुई का रुख अपनी तरफ मोड़ेगी ?”
“उसकी सूरत हम नहीं देख सके थे । फिर हो सकता है कि तुमने उसे ये न बताया हो कि कुएं की निगरानी हो रही होनी थी ।”
“तुम हेरोईन की उस थैली को भूल रहे हो जिसकी कीमत दो करोड़ रुपये बतायी गयी है । तुम मेरी कल्पना एक हेरोइन स्मगलर के तौर पर कर सकते हो ?”
“नहीं ।”
“किसी और बुलबुल की ?”
“किसी और बुलबुल की भी नहीं ।”
“तो फिर ?”
“तो फिर ये कि तुम्हारी इस दलील से मुझे एक बात सूझी है ।”
“क्या ?”
“हेरोइन एयरबैग में नहीं थी । यानी कि कुएं से बरामद सामान एक नग की सूरत में नहीं था । सुबूत है कि हेरोइन और एयरबैग एक ही वक्त में कुएं में फेंके गये थे ?”
“सुबूत तो कोई नहीं लेकिन तुम्हारा मतलब क्या है ?”
“तुम बात की यूं कल्पना करो कि रात के अन्धेरे में काला लाबादा ओढे एक बुलबुल आयी और कुएं में एयरबैग फेंक गयी । वो चली गयी तो हम भी चले गये । उसके बाद रास्ता साफ था और किसी के पास कुएं के जितने मर्जी फेरे लगा लेने के लिए सारी रात पड़ी थी ।”
“तुम्हारा मतलब है कि बाद मे कोई और आया और कुएं में हेरोइन की थैली फेंक गया ।”
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10-18-2020, 06:45 PM,
#78
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“हां । और वो इस बात से कतई बेखबर था कि पहले भी कोई कुछ छुपाने के लिये उस कुएं को इस्तेमाल कर चुका था । अगर उसे इस बात की भनक भी होती तो वो कुएं में हेरोइन न फेंकता ।”
“तो कहां फेंकता ?”
“समुद्र में ।”
“पहले ही वहां क्यों न फेंकी ?”
“क्योंकि वो दो करोड़ रुपये का माल था और पहले वो इतनी बड़ी रकम समुद्र में डुबो देने का तमन्नाई नहीं था । कुएं में से हेराइन की थैली वापिस निकाली जा सकती थी, समुद्र से ऐसी बरामदी मुमकिन नहीं थी ।”
“सतीश !” - डॉली एकाएक बोली ।
“क्या सतीश ?”
“वही कुंआ-कुआं भज रहा था ।”
“लेकिन वो भजन सुनने के लिये उस घड़ी कई लोग मौजूद थे । कुआं सुझाया जरूर सतीश ने था लेकिन मुमकिन है हेरोइन छुपाने के लिये उसका इस्तेमाल किसी और ने किया हो ।”
“किसने ? तुम तो फिर बुलबुलों की तरफ ही उंगली उठा रहे हो । क्योंकि बुलबुलों के आलावा तो तब वहां कोई था नहीं और तुम पहले ही हेरोइन समगलिंग को बुलबुलों के बूते से बाहर का काम तसलीम कर चुके हो ।”
“नौकर-चाकर थे वहां । यहां का कोई नौकर असल में हेरोइन स्मगलर का एजेन्ट हो सकता है जिसने कि अपने बॉस के निर्देश पर हेरोइन की थैली कुएं में फेंकी हो सकती है ।”
“बॉस कौन ?”
“यही तो वो लाख रुपये का सवाल है जिसका जवाब हमारे नहीं है ।”
“सुनो । सतीश इस मैंशन में साल के सिर्फ दो महीने रहता है । बाकी दस महीने ये मैंशन, ये सारी एस्टेट नौकरों के हवाले रहती है । एस्टेट का अपना प्राइवेट बीच है जहां कि किसी बाहरी आदमी का कदम रखना मना है । ऊपर से इस आइलैंड पर पुलिस की हाजिरी नाम मात्र को है । हेरोइन की कैसी भी ओवरसीज स्मगलिंग के लिये ये एक रेडीमेड सैटअप है जिसका किसी शातिर स्मगलर ने सतीश के स्टाफ में से किसी को, या सबको, सांठकर पूरा-पूरा फायदा उठाया हो सकता है ।”
“दम तो है तुम्हारी बात में । यानी कि उस बरामद हुई हेरोइन का मालिक आइलैंड का कोई भी बाशिन्दा हो सकता है । आइलैंड का ही क्यों, वो तो कहीं का भी कोई भी बाशिन्दा हो सकता है ।”
“हां ।”
“यानी कि हम सतीश पर बेजा शक पर रहे हैं ।”
“हां, उसका सिर्फ इतना गुनाह है कि उसने पुलिस का ध्यान कुएं की ओर आकर्षित किया था । ऐसा करने के पीछे हम उसका कोई मकसद समझ रहे थे लेकिन असल में उसने इत्तफाकन ऐसा किया हो सकता है ।”
“हेरोइन स्मगलर सतीश हो या काला चोर, मुझे इससे कुछ लेना-देना नहीं । यहां मेरा मिशन पायल को तलाश करना था । अब जबकि लग रहा है कि उसका कत्ल हो गया है तो मेरा मिशन लाश की बरामदी से भी कामयाब हो सकता है क्योंकि पायल के कत्ल की बात तभी निर्विवाद रूप से स्थापित होगी ।”
“हालात का इशारा तो साफ इस तरफ है कि वो मर चुकी है ।”
“कायदा-कानून हालात के इशारे नहीं समझता ? कानून सुबूत मांगता है । और कत्ल के केस में अहमतरीन सुबूत लाश होती है । श्याम नाडकर्णी के केस में भी हालात का इशारा साफ इस तरफ था कि वो समुद्र में डूब मरा था, फिर भी लाश की गैर-बरामदी पायल के लिये इतनी बड़ी समस्या बनी थी कि उसकी दौलत का कानूनी हकदार बनने के लिये पायल को पूरे सात साल इन्तजार करना पड़ा था । अब पायल की लाश की गैरबरामदी आगे उसके किसी वारिस के लिये ऐसी ही समस्या बन जायेगी ।”
“ओह !”
“तुम फौजिया की दाईं बांह दबोचने वाली थीं ?”
“मौका कहां लगा ? पहले मैं अपनी सफाई देती पुलिस वालो में उलझी रही । वो यहां से रुख्सत हुए तो तुमने देखा नहीं था कि कैसे फौजिया दौड़कर सीढियां चढ गयी थी ! अभी तक बन्द है अपने कमरे में । मैंने आवाज दी तो जवाब न दिया ।”
“नैवर माइन्ड । कभी तो निकलेगी बाहर ।”
डॉली ने सहमति में सिर हिलाया ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“मेरे साथ चलते हो ?” - एकाएक वो बोला ।
“कहां ?” - मकेश हड़बड़ाया ।
“ईस्टएण्ड । पुलिस चौकी ।”
“वहां किसलिये ?”
“ब्रेसलेट की बाबत पुलिस की वार्निंग का मुकाबला करने के लिये ?”
“यानी कि हथियार है तुम्हारे पास मुकाबले के लिये ?”
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10-18-2020, 06:45 PM,
#79
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
“है तो सही ।”
“क्यों न उसे पहले यहीं आजमा लें ?”
“नहीं । चलते हो तो चलो, नहीं तो साफ मना करो ।”
“चलता हूं ।”
***
इस बार भी उन्हें सतीश की जिप्सी जीप ही हासिल हुई ।
चौकी पर न सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा था, न इंस्पेक्टर सोलंकी था और न एन.सी.बी. का इंस्पेक्टर आरलेंडो था । मालूम हुआ कि वो बाम्बे से आये एन.सी.बी. के डिप्टी डायरेक्टर अचरेकर के साथ म्यूनिसपैलिटी की बिल्डिंग में थे ।
“वो कहां है ?” - डॉली बोली ।
“चर्च रोड पर ।”
“और चर्च रोड कहां है ?”
सिपाही ने उन्हें रास्ता समझाया ।
वो चर्च रोड पहुंचे ।
वहां कमेटी की बिल्डिंग में उन्हें चौकी का एक सिपाही दिखाई दे गया । उससे उन्हें मालूम हुआ कि सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और इंस्पेक्टर सोलंकी आइलैंड के दूसरे सिरे पर कहीं गये थे जहां से कि वे आधे घण्टे में लौटकर आने वाले थे ।
“ठीक है ।” - डॉली बोली - “हम आधे घण्टे में फिर यहीं आयेंगे । तुम उन्हें हमारी बाबत बोल के रखना ।”
सिपाही ने सहमति में सिर हिलाया ।
“अब आधा घन्टा क्या करें ?” - डॉली बोली ।
“कहीं चलकर एक-एक गिलास बीयर पीते हैं ।”
“नहीं । मूड नहीं है ।”
“तो आइलैंड की सैर करते हैं । यहां पायर, ईस्टएण्ड और सतीश की एस्टेट के अलावा हमने देखा ही क्या है !”
“ये ठीक है । लेकिन गाड़ी तेज चलाना । ब्रेक नैक स्पीड पर ।”
“वो किसलिये ?”
“खुशकिस्मती से शायद एक्सीडेंट ही हो जाये और जान सांसत से छूट जाये ।”
“अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जायेंगे । मर के भी चैन न पाया तो किधर जायेंगे !”
“ये भी ठीक है ।”
“मुझे सजा किसलिये ? मेरा तो नौजवानी में मरने का कोई इरादा नहीं ।”
“इरादा तो मेरा भी नहीं लेकिन... खैर, चलो अब ।”
इमारत की सीढियां उतरकर वे सड़क पर पहुंचे और उधर बढे जिधर उन्होंने जिप्सी खड़ी की थी ।
वो भीड़भरी सड़क थी और कमेटी का दफ्तर उसी पर होने की वजह से वहां पार्किंग की प्रॉब्लम थी जिसका सुबूत ये था कि उन्होंने अपनी गाड़ी अभी वहां से हटाई भी नहीं थी कि एक ओमनी वैन उसकी जगह लेने को तैयार खड़ी थी ।
जीप मंथर गति से ट्रैफिक में रास्ता बनाती आगे बढी ।
एकाएक डॉली के मुंह से एक सिसकारी निकली । वो तत्काल सीट पर नीचे को सरक गयी और उसने अपने दोनों हाथों से अपना चेहरा ढंक लिया ।
“क्या हुआ ?” - राज हकबकाया सा बोला ।
“राज” - वो बौखलाये स्वर में बोली - “वो कार... वो क्रीम कलर की फियेट.. उसके करीब न जाना ।”
“क्यों ?”
“जो आदमी उसे ड्राइव कर रहा है, वो मुझे देख लेगा ।”
“तो क्या हुआ ?”
“लेकिन उसके पीछे लगे रहना ।”
“और चारा ही क्या है ? ये वन वे स्ट्रीट है और इतनी भीड़ है यहां ।”
“मेरा मतलब है वो खिसकने न पाये । वो कार निगाहों से ओझल न होने पाये ।”
“लेकिन बात क्या है ?”
“ड्राइविंग की तरफ ध्यान दो । प्लीज । उसके पीछे ही रहना । ज्यादा करीब पहुंचने की कोशिश न करना वर्ना वो मुझे देख लेगा ।”
उसने तब भी अपने हाथों से अपना चेहरा ढंका हुआ था और वो यूं दोहरी हुई बैठी थी कि फासले से तो वो सीट पर हुई कोई कपड़ों की गठड़ी ही लगती ।
अगली कार के रियर व्यू मिरर में एक बार उसे उस शख्स की सूरत दिखाई दी तो वो इतना ही जान पाया कि वो क्लीन शेव्ड था, चश्मा लगाता था और सिर पर लम्बे बाल रखता था ।
“है कौन वो ?” - वो उत्सुक भाव से बोला ।
“एक आदमी है ।” - डॉली बोली ।
“वो तो मुझे भी दिखाइं दे रहा है लेकिन है कौन ?”
“नाम याद नहीं आ रहा । फैशन शोज के टाइम से जानती हूं मैं इसे । कोई पैसे वाला आदमी था । पायल पर मरता था । हर वक्त उसके पीछे पड़ा रहता था । राज, इस आदमी की आइलैंड पर मौजूदगी महज इत्तफाक नहीं हो सकती । हमें मालूम करना चाहिये कि ये यहां क्यों है और किस फिराक में है । लेकिन” - उसने फिर अपनी चेतावनी दोहराई - “वो मुझे देखने न पाये ।”
“इतने सालों बाद वो पहचान लेगा तुम्हें ?”
“मैंने भी तो पहचाना है उसे इतने ही सालों बाद ।”
“ओह !”
“पीछा न छोड़ना उसका । खिसकने न देना ।”
आगे एक चौराहा था जिस पर से फियेट दायें घूमी । उस नयी सड़क पर पीछे चर्च रोड जैसी भीड़ नहीं थी इसलिये अब उसकी रफ्तार कदरन बढ गयी थी ।
कुछ क्षण सिलसिला यूं ही चला ।
फिर एकाएक अगली कार रुकी । ड्राइवर ने खिड़की से हाथ निकालकर उसे पास करने का इशारा किया ।
“न न ।” - तत्काल डॉली बोली - “ऐसा न करना । तुम उसकी बगल से गुजरे तो वो मुझे देख लेगा ।”
“तो क्या करूं ?”
“लैटर बॉक्स ! चिट्ठी !”
तत्काल राज ने कार को बाजू में करके उस लैटर बॉक्स के करीब रोका जिसकी तरफ कि डॉली इशारा कर रही थी । वो कार से निकला और उसके करीब पहुंचा । फिर वो फियेट की दिशा में पीठ करके लैटर बॉक्स में चिट्ठी छोड़ने का बहाना करने लगा । वहां और ठिठके रहने की नीयत से उसने नीचे झुककर वो प्लेट पढने की कोशिश की जिस पर डाक निकासी का वक्त अंकित होता था ।
तभी फियेट फिर सड़क पर चल दी ।
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10-18-2020, 06:45 PM,
#80
RE: Mastaram Kahani कत्ल की पहेली
राज भी लपककर कार में सवार हुआ और पूर्ववत उसके पीछे लग लिया ।
“वो रुका क्यों था ?” - वो बोला ।
“पता नहीं । मेरी तो सिर उठाने कि हिम्मत नहीं हो रही थी ।”
“और मेरी पीठ थी उसकी तरफ ।”
“होगी कोई वजह । तुम ड्राइविंग की तरफ ध्यान दो ।”
“और क्या कर रहा हूं ?”
दोनों कारें आगे-पीछे आईलैंड की विभिन्न सड़कों पर दौड़ती रहीं ।
वे ईस्टएण्ड के बाजार में पहुंचे तो वहां कार एक विशाल डिपार्टमैंट स्टोर के सामने रुकी । स्टोर के दरवाजे पर एक स्कर्ट और जैकेटधारी दोहरे बदन वाली महिला खड़ी जिसने अपनी खरीददारी के सुबूत के तौर पर कई पैकेट, पार्सल वगैरह सम्भाले हुए थे । तत्काल वो फियेट का घेरा काटकर पैसेंजर सीट की तरफ बढी जिसका दरवाजा ड्राइवर ने हाथ बढाकर खोल दिया था । सामान से लदी-फंदी वो फियेट में सवार हुई । ड्राइवर भुनभुनाता-सा महिला से कुछ बोला जिसका भुनभुनाता-सा ही जवाब उसे मिला ।
“बीवी होगी ।” - राज बोला ।
“हां ।” - डॉली बोली - “ऐसे एक-दूसरे से बेजार तो लम्बे अरसे से विवाहित मियां-बीवी ही होते है ।
“तुम कहती हो कभी ये आदमी पायल पर मरता था ?”
“हां ।”
“फिर भी इस आलुओ के बोरे से शादी की ?”
“पहले नहीं होगी वो आलुओं का बोरा । औरतें बाद में, गृहस्थन बनकर ऐसी हो जाती हैं ।”
“तुम भी हो जाओगी ऐसी ?”
“अरे, पहले बसे तो सही गृहस्थी । फंसे तो कोई गोला कबूतर । अभी तो हस्ती खतरे में दिखाई दे रही है । जेल में बन्द कर दी गयी तो शादी के बाद क्या, वैसे ही ऐसी हो जाऊंगी ।”
“शुभ-शुभ बोलो ।”
“ओके ।”
“आदमी को पहचानती हो, उसकी औरत को नहीं पहचानती हो ?”
“नहीं, औरत को नहीं पहचानती हूं । उसे मैंने, पहले कभी नहीं देखा... वो जा रहे हैं । पीछे चलो ।”
राज ने कार आगे बढाई ।
“लेकिन फासला रख के ।” - डॉली बोली - “पहले की तरह ।”
“डॉली, उस शख्स की तुम्हारी तरफ कोई तवज्जो नहीं मालूम होती ।”
“तवज्जो जा सकती है । तुम दूर ही रहो उससे ।”
“यूं वो हाथ से निकल जायेगा । वो मेरे से ज्यादा दक्ष ड्राइवर मालूम होता है । मैं भीड़ में इतनी तेज कार नहीं चला सकता ।”
“यू डू युअर बैस्ट । युअर बैस्ट । प्लीज ।”
“ओके । ओके ।”
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“उसे” - राज बोला - “मालूम होगा कि चर्च रोड से ही हम उसके पीछे लगे हुए हैं ।”
“हो सकता है ।”
“पीछे झांककर तो उसने एक बार भी नहीं देखा ?”
“रियर व्यू मिरर में से झांकता होगा ।”
अगली गाड़ी पायर पर पहुंची ।
“अगर ये” - राज बोला - “कार समेत स्टीमर पर सवार होकर चल दिया तो हम क्या करेंगे ।”
“हम भी वहीं करेंगे ।” - डॉली बोली ।
“हम नहीं कर पायेंगे ।”
“क्यों ?”
“वो आजाद पंछी है । हमारे ऊपर पुलिस की पाबन्दी है । हम यूं आइलैंड नहीं छोड़ सकते ।”
“शायद वो पणजी न जाये ।”
“क्या मतलब ?”
“हमारी पाबन्दी मेनलैंड से ताल्लुक रखती है जहां पहुंचकर कि आगे कहीं भी फरार हुआ जा सकता है । यहां दो आइलैंड और भी हैं जो फिगारो का ही हिस्सा माने जाते हैं । हमारे लिये वहां जाने की पाबन्दी नहीं हो सकती क्योंकि उन पर से पणजी जाने के लिये पहले यहीं फिगारो आइलैंड पर आना जरूरी होता है ।”
“आई सी ।”
“हम देखते हैं वो क्या करता है ? कहां जाता है ?”
“ठीक है ।”
वो पायर के समुद्र की ओर वाले सिरे पर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि एक बजड़ा-सा किनारा छोड़कर आगे बढ रहा था । तत्काल फियेट वाले ने जोर-जोर से हार्न बजाना शुरु कर दिया । बजड़े के ड्राइवर ने हार्न की आवाज सुनी तो वो उसे आगे बढाने की जगह वापिस किनारे पर लौटा लाया ।
फियेट उसके प्लेटफार्म पर चढ गयी ।
प्लेटफार्म पर कई बैंच लगे हुए थे जिस पर लोग बैठे हुए थे और उस घड़ी इस बात से बहुत खफा दिखाई दे रहे थे कि एक कार वाले के लिये बजड़ा किनारा छोड़ने के बाद वापिस लौटा आया था ।
बजड़े पर से किसी ने उन लोगों को इशारा किया ।
“अब क्या करें ?” - राज बोला - “हम भी चढें ।
“हां । जल्दी ।”
“वो देख लेगा ।”
“ओफ्फोह ! चलो तो ! वो हमारी वजह से रुका हुआ है । हिलोगे नहीं तो वो चल देगा ।”
राज ने कार आगे बढाई । फिर उनकी कार भी बजड़े के प्लेटफार्म पर फियेट के पहलू में जा खड़ी हुई ।
फियेट वाले ने यूं आंखें तरेरकर उसकी तरफ देखा जैसे वार्निग दे रहा हो कि उनकी कार के फियेट से छूने का अंजाम बहुत बुरा हो सकता था ।
डॉली अपनी सीट में और भी नीचे को दुबक गयी ।
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