Mastram Kahani काले जादू की दुनिया
08-19-2018, 03:05 PM,
#12
RE: Mastram Kahani काले जादू की दुनिया
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Re: काले जादू की दुनिया
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JemsbondSuper memberPosts: 4730Joined: 18 Dec 2014 12:09
Re: काले जादू की दुनिया

Unread post by Jemsbond » 27 Oct 2015 06:11

9 A


“यह सब जो भी है वो हमारे सपने से जुड़ा हुआ है...तो क्यू ना हम बहुत पहुचे हुए आचार्य श्री सत्य प्रकाश जी के पास चले...वो इस बारे मे ज़्यादा जानकारी रखते है...” अर्जुन सोफे पर से उठते हुए बोला.

“यह सत्य प्रकाश कौन है भैया.....इनका कभी नाम नही सुना..” काजल बोली.

“वो बहुत पहुचे हुए और सिद्ध पुरुष है...पब्लिसिटी और फेम से उनका कोई लेना देना नही है...वो तो बस यहाँ से दूर एक छोटे से गाओं मे अपने आश्रम मे रहते है....बहुत कम ही लोग है जो उनके बारे मे जानते है..” अर्जुन बोला.

“पर भैया क्या आपको पक्का पता है कि यह बाबा जी हमारी मदद कर सकते है..?”

“हाँ काजल....मुझे पूरा विश्वास है क्यूकी मुझे याद है जब मैं छोटा था तो माँ मुझे इनके पास इनका आशीर्वाद दिलाने ले जाती थी....”

यह सब सुन कर करण ने कहा, “अगर यह आचार्य हमारी मदद कर सकते है तो हमे इनसे ज़रूर मिलना चाहिए...”

“ठीक है भैया आप लोग के साथ मैं भी चालूंगी...” काजल बोली.

“छुटकी...इस सफ़र मे बहुत से ख़तरे हो सकते है और हम नही चाहते कि तुम ख़तरो मे पडो....तू यही रह कर पढ़ाई कर...मैं और करण देख के आते है कि इन सपनो का चक्कर क्या है....” अर्जुन बोला.

इस बात पे काजल भड़क गयी, उसने कमर पर हाथ रखते हुए अर्जुन को घूर घूर के देखा, “अर्जुन भैया शायद आप भूल रहे हो कि जिस औरत की तलाश मे आप दोनो जा रहे हो वो मेरी भी माँ है....तो मेरा आना भी बनता है...हो सकता है मैं आपके कुछ काम आ सकु...”

“काजल तू हमारी क्या मदद करेगी...बल्कि हमे ही हर वक़्त तेरी सुरक्षा की चिंता लगी रहेगी...” करण ने काजल को समझाते हुए बताया.

“आप तो अर्जुन भैया से और ना ही वो आपसे कभी खुल के बात करेंगे....तो आपस मे मिलकर क्या खाक काम करोगे.....अगर मैं चलूं तो आप दोनो की मन की बात आप लोगो को बता सकती हू....” काजल के इस बात का जवाब ना ही अर्जुन के पास था और ना ही करण के पास.

दोपहर तक तीनो तय्यार थे. ज़रूरत का सारा समान ले लिया था उन्होने. अर्जुन ने अपनी स्कॉर्पियो गाड़ी निकाली और जेब मे अपने बिना लाइसेन्स वाले दो देसी कट्टे (रेवोल्वेर/पिस्टल) रख लिए कि पता नही कब उनकी ज़रूरत पड़ जाए. वो तीनो सफ़र पर निकल पड़े.

“पर हम जाएँगे कहाँ....अर्जुन भैया क्या आपको आचार्य जी के आश्रम का पता मालूम भी है या हम बस ऐसे ही चलते जा रहे है...” काजल बोली, वो बगल की सीट पर बैठी हुई थी.

“मुझे सब कुछ याद है...बचपन की कुछ बातें जल्दी नही भूलती...इन्ही यादो मे से एक है आचार्य का आश्रम जहाँ माँ मुझे ले जाया करती थी...” अर्जुन गाड़ी चलाते हुए बोला.

रात हो चली थी. सुनसान सड़क को चीरती हुई उनकी स्कॉर्पियो चली जा रही थी. बारिश ऐसी जो थमने का नाम ही नही ले रही थी. तेज़ हवायें ऐसी जो मानो पेड़ो को जड़ से उखाड़ देना चाहती हो. ऐसे ही खराब मौसम के बीच करीब 6 घंटे गाड़ी चलाने के बाद हाइवे से नीचे उतर कर एक गाँव आया.

अर्जुन ने गाड़ी नीचे उतार ली. गाँव बहुत ही छ्होटा सा था. घर नाम मात्र के थे और उनमे आपस की दूरी भी बहुत थी. खेतो मे बारिश की वजह से कीचड़ हो गयी थी जिसपे स्कॉर्पियो धीरे धीरे हिचकोले खाती चली आ रही थी.

आख़िरकार गाड़ी एक छोटे से आश्रम के बाहर रुकी. रात काफ़ी हो गयी थी और उपर से तेज़ बारिश हो रही थी इसलिए हर तरफ सन्नाटा पसरा था.

“यही है वो आश्रम....चलो अंदर चलते है...” अर्जुन ने गाड़ी से उतरते हुए कहा.

तीनो लोग आश्रम के अंदर आ गये. बाहर ही आचार्य मानो उनका इंतेज़ार ही कर रहे थे.

“आओ बेटा आओ....ना जाने कितने साल हो गये तुम्हे देखे बिना...” आचार्य ने तीनो को आश्रम के अंदर बुलाया. आचार्य का बालिश्ट शरीर, केसरी रंग की धोती, लंबी सफेद दाढ़ी और चेहरे पर एक तेज था. अंदर के महॉल मे मन को जो शांति मिल रही थी वो तीनो भी महसूस कर सकते थे.

“क्या करू आचार्य जी जबसे माँ का स्वरगवास हुआ है तब से यहाँ वापस आने का मौका ही नही मिला...” अर्जुन ने आचार्य के पाँव छुए और चारपाई पर बैठ गया.

“कोई बात नही बेटा...सब उपर वाले की महिमा है....वैसे मुझे पहले से ही आभास हो गया था कि तुम आने वाले हो.....पर यह बाकी लोग कौन है..”

“आचार्य क्या आप इसे भूल गये...यही तो है छुटकी....मेरी प्यारी बहन काजल..एक दो बार यह भी आश्रम आ चुकी है पर उस समय यह बहुत छोटी थी...” अर्जुन ने आचार्य को अतीत याद करवाया.

“अरे याद आया...काजल बेटी...अरे देखो तो कितनी बड़ी हो गयी है...बिल्कुल अपनी माँ पर गयी है....” आचार्य ने प्यार से काजल के सर पर हाथ फेरते हुए कहा जिसके उपरांत काजल ने उनके पाँव छु लिए.

“और यह महाशय कॉन है....” आचार्य करण की तरफ इशारा करते हुए बोले.

“आप इनको नही जानते होंगे....यह कभी आश्रम मे नही आए...” अर्जुन ने आचार्य को बीच मे ही रोकते हुए बोला.

“प्रणाम आचार्य मैं इन दोनो का दोस्त हू....” झूट बोलते हुए कारण ने भी आचार्य के पैर छू कर आशीर्वाद लिया. वो नही चाहता था कि आचार्य को पता चले कि वो उसकी माँ की नाजायज़ औलाद है.

टू बी कंटिन्यूड...
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