RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
ये शायद पहली बार इस घर मे हुआ था कि खाला को अम्मा ने जाने के लिए कहा था. खाला भी बिल्कुल ना रुकी और
बस मेरे सर पर हाथ फेर कर अपने घर को चलती बनी. शाम को जब बाबा आए तो अम्मा ने खाला के आने
के बारे मे बताया. अम्मा की बात सुनकर जैसे बाबा किसी अंगारा के जलने की तरहा बिफर पड़े
"तुम्हारी बड़ी बहेन ने पहले तो हम को बर्बाद किया अब इतनी भी शर्म नही है कि कम से कम हमारे ज़ख़्मो का
मखौल तो ना उड़ायें, उनसे कह देना अगर उस मनहूस घर ही हिमायत करना है तो हमारे दरवाज़े पर ना
आए, ये तुमने अच्छा किया जो उनको जाने के लिए कह दिया"
मेरा भाई जो इस मसले पर कुछ ना बोला था अब वो भी बाबा को देख कर बोल पड़ा
"ये आग उनकी नही आप लोगों की लगाई हैं जब मैं लड़के के बारे मे आपको बताता था तो आप लोग मुझे ही उल्टी
दो चार सुना दिया करते थे और अब खाला को इल्ज़ाम दे रहे हैं, वाह क्या खूब घर है मेरे"
भाई की बात सुनकर बाबा और अम्मा खामोश हो गये. भाई इतने दिनो बाद कुछ बोला था. वो भी मेरी हालत पर
आँसू बहाया करता था.
एक दिन कुछ औरतें आई और उनके साथ हमारी पड़ोसन थी. ये पड़ोसन हमेशा हमारी चुगली और इधर की
उधर वाली आदत से मजबूर थी.
अम्मा उसे देख कर थोड़ा चौंक गयी क्यूंकी वो कभी हमारी खैर ख्वाह नही रही थी.
अम्मा ने उन सबको बिठाया. पहले तो वो सब इधर उधर की बात करती रही , फिर मेरी हालत पर अफ़सोस ज़ाहिर करती
रही, फिर मुद्दे की बात पर आ गयी. ये औरतें मेरे रिश्ते के ताल्लुक से आई थी. मेरी मा थोड़ा सुकून मे लग ही
रही थी कि एक बात के जवाब ने उनको सकते मे डाल दिया. हुआ ये कि मेरी मा ने सब कुछ पूछने के बाद
लड़के की उमर पूछी. जिसके जवाब मे वो औरतें कहने लगी कि लड़के की ये दूसरी शादी होगी, उसकी उमर 45 साल
है. इतना सुनते ही मेरी मा ने उनको चलता किया. वो औरतें भी दरवाज़े तक उल्टा सीधा बकती ही गयी.
"कमाल देखो चुड़ेलो का, कमीनी कहती हैं कि 45 साल का लड़का है, कम्बख़्त कहीं की शर्म नही आती
मुन्हूसो को"
इसी तरहा ना जाने कितने दिन बीत गये. मैने हर खुशी की उम्मीद छोड़ दी थी, अब इसी तरहा के रिश्ते आया करते
थे. मेरा बाबा और अम्मा अब इस तरहा के रिश्तो से उकता चुके थे. अब वो खामोश रहना चाहते थे. मेरे बाबा
की तबीयत खराब रहने लगी और अम्मा जो दिल की मरीज़ थी वो भी कुछ बेहतर ना थीं.
अब मैने रोना धोना बिल्कुल छोड़ दिया था.
एक शाम को मेरी खाला फिर आई और इस दफ़ा उनके साथ खलू भी थे. अम्मा ने उन्हे बिठाया और खाने के लिए
रोक लिया. सब लोग बातो मे मसगूल थे.
मेरी खाला कुछ हिचक सी रही थी कुछ बोलने मे लेकिन फिर अपनी आदत के मुताबिक बोल ही पड़ी
खाला: "मैने सुना है कि आरा के लिए रिश्ते आ रहे हैं"
बाबा: "अर्रे ऐसे रिश्तो पर खाक डालो"
खाला: "तो कैसे रिश्तो की तलाश है आपको, क्या कोई बिन ब्याहा लड़का चाहिए आपको"
बाबा: "हां, तो इसमे बुराई क्या है"
खाला: "भाई साहब, ज़रा अपनी आँखें खोलें, अब हक़ीक़त को देखें, आरा अब तलाक़शुदा है,ये नही जानते क्या
आप"
अम्मा: "तो इसमे उसकी क्या ग़लती है"
खलू: "लेकिन ग़लती तो हमारे यहाँ हमेशा लड़की की ही होती है"
अम्मा: "तो अब क्या करें भाई साहब"
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