RE: Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है
मैं:"हां, बिल्कुल अगर तुमको यकीन नही हो रहा तो उसको फोन करके पूछ लो"
इनायत:"चलो ठीक है लेकिन पता कैसे चलेगा कि वो वाकई ताबू की चूत मार रहा है"
मैं:"हाआँ ये तो है, वो फोन पर बात करते वक़्त रुक जाएगा, मैने ताबू को पूँछ लेती हूँ, वो मुझे शायद बता दे"
इनायत:"मैं चाहता हूँ कि मेरा लंड तुम्हारी चूत मे हो तब तुम उससे बात करो"
मैं:"इससे क्या होगा"
इनायत:"इससे ताबू को भी मालूम हो जाएगा कि मैं तुम्हारी चूत मार रहा हूँ"
मैं:"गुड आइडिया"
मैने शौकत को फोन लगाया और स्पीकर ऑन कर दिया, इस वक़्त मैं पीठ के बल लेती थी और शौकत मेरी टांगे हवा मे उठाए मेरी चूत मार रहा था.मेरी मूह से हाफने की आवाज़ आ रही थी.
शौकत ने फोन उठाया.
शौकत:"हेलो, आरा क्या बात है सब ठीक तो है"
मैं:"उम्म हाआँ सब्बब्ब उम्म ठीक है"
शौकत:"तुम हाँफ क्यूँ रही हो क्या बात है"
मैं:"उफ्फ शौकत कुछ नही सब ठीक है, तुम क्या कर रहे हो"
शौकत:"कुछ नही सो रहा था"
मैं:"अच्छा और ताबू वो भी सो रही है क्या"
शौकत:"नही वो मॅगज़ीन पढ़ रही है"
मैं:"उम्म्म अककच्छाअ..... तुम बदल गये हो "
शौकत:"क्यूँ"
मैं:"बरसात के मौसम मे सोने लग गये हो, मुझे यकीन नही होता"
शौकत:"तुम्हे जब मालूम है तो पूंछ क्यू रही हो"
मैं:"मैने सोचा हम दोस्त हैं और दोस्त किसी से कोई बात नही छिपाते
शौकत:"और तुम क्या कर रही हो"
मैं:"वही जो तुम कर रहे हो, बरसात के मज़े ले रही हूँ वो भी गहराई से उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ इनायत धीरे"
मेरे मूह से ये निकल गया अब शौकत को यकीन हो गया कि मैं क्या कर रही हूँ वो थोड़ी देर चुप रहा फिर बोला
शौकत:"आज भी तुम्हे धीरे धीरे पसंद है क्यूँ"
मैं:"नही मुझे फास्ट पसंद है लेकिन इतना फास्ट भी,, नही पसंद की उम्म्म आआवाआज़ भी उम्म्म ना पहुँचे"
शौअकत:"अच्छा बोलो क्यूँ फोन किया"
मैं:"ताबू से बात करनी है"
उसने फोन ताबू को दे दिया, ताबू भी शायद समझ चुकी थी क्यूंकी शौकत ने फोन स्पीकर पे डाला था, वाय्स थोड़ी कट सी हो रही थी, मैने अंदाज़ा लगाया.
ताबू:"हेलो, यार कभी टाइम देख लिया करो"
मैं:"अच्छा, चूत मे जब लंड हो तो किसी से बात करना मना है क्या ,हाहाआहा"
ताबू:"तुम्हे कैसे मालूम"
मैं:"तुम्हारे मिया कभी मेरी भी बरसात मे चूत लिया करते थे इसलिए अंदाज़ा लगाया"
ताबू:"अच्छा , जब मालूम है तो फोन काटो ना, क्यूँ कबाब मे हड्डी बन रही हो"
मैं:"मेरी जान तुम्हारी चड्डी मे हड्डी नही गोश्त का टुकड़ा है , हहहाहहाहा"
ताबू:"बड़ी बेशर्म हो, और तुम्हारी चूत मे क्या है"
मैं:"मेरे मिया का लॉडा और क्या"
ताबू:"तो एंजाय करो, अपने मिया का मोड़ा लॉडा"
मैं:"क्यूँ तुम्हे भी चाहिए क्या मोटा लॉडा"
ताबू:"नही मेरे लिए मेरे मिया का ही काफ़ी है,अच्छा फोन कट करो, बेस्ट ऑफ लक"
मैं:"बेस्ट ऑफ लक किस लिए"
ताबू:"इसलिए कि ऑर्गॅज़म तक पहुँच जाओ"
मैं:"ठीक है बाइ"
मैने फोन कट कर दिया, उस शाम इनायत ने मुझे कई बार चोदा और देर रात को जब हम केफे मे मिले तो ताबू आज कुछ कॉन्फिडेंट लग रही थी. आज लगता था जैसे कुछ पी कर आई है.
ताबू:"यार तुम भी ना कभी भी फोन कर देती हो, कुछ प्राइवसी भी दिया करो"
मैं:"ओ.के. बाबा आइ आम वेरी सॉरी अबाउट दट."
ताबू:"ठीक है, इट्स ओ.के."
शौकत:"चलो कुछ ऑर्डर करते हैं"
इनायत:"हां ठीक है, तो क्या खाएगे आप लोग"
मैं:"एक काम करो, कबाब मे हड्डी ऑर्डर करो हाहाहाहाहा"
इनायत:"बस करो आरा, क्यूँ छेड़ रही हो बेचारी को"
शौकत:"जाने दो यार, दोनो एंजाय कर रही हैं"
ताबू:"हां कबाब मे हड्डी ही क्यूँ, कमीज़ मे कबूतर क्यूँ ना ऑर्डर करो, हहाहहहा"
ये बात ताबू ने आज शाम मेरी भीगी ट्रंपारेंट कमीज़ से बाहर झाँकते बूब्स(कबूतर) को देख कर कही थी.
मैं:"यार वो कबूतर नही तरबूज़ थे, क्यूँ शौकत हाआहाहाहा"
शौकत:"क्या वो मैं ,वो मैं समझा नही"
इनायत:"बस करो ना आरा तुम भी क्या बोलती रहती हो"
ताबू:"हां कबूतर तो मेरे पास हैं क्यूँ"
ये कहकर ताबू थोड़ा झेंप सी गयी अपनी ही बात पर, उसको ध्यान ही नही रहा कि बात बात मे क्या बोल गयी
मैं:"हां मुझे मालूम है, क्या खूबसूरत कबूतर हैं"
इनायत:"तुम लोग तो आज रट बातो से पेट भर लोगे"
शौकत:"हां आज इन लोगो को ज़्यादा ही मस्ती आ रही है"
ताबू:"अच्छा बाबा हम चुप हो जाते हैं बस"
शौकत:"अच्छा नाराज़ मत हो यार, चलो बोलो इसी तरहा तुम लोग"
मैं:"ताबू, अपना मूड मत खराब करो, इट्स ओके तुम्हारे कबूतर रियली मे अच्छे हैं, हीहीईहाआआ"
ताबू:"ये कॉंप्लिमेंट है या फन"
मैं:"क्यूँ तुम्हे अच्छा नही लगा, वैसे मेरे मिया आज दिन मे रेस्टोरेंट मे तुम्हारे कबूतर पर नज़र गढ़ाए हुए थे, क्यूँ इनायत"
इनायत ने मेरी तरफ थोड़े बनावटी गुस्से से देखा
ताबू:"हां और शौकत को तुम्हारे तरबूज़ की याद आ रही थी,हिहिहिहिहहिहिहहहहा"
ये कह कर ताबू ने मेरे हाथो मे ताली मारी.
मैं:"ह्म्म्मन मुझे तुम सबने देखा है, शौकत ने, इनायत ने और तुमने भी लेकिन इनायत बेचारा तुम्हारे बारे मे क्या जाने"
इनायत:"क्या बोल रही हो तुम, थोड़ा लिहाज़ तो करो यार"
मैं:"देखो मैं उन लोगो मे से नही हूँ जो अपने दोस्तो से कुछ छिपाए, हो सकता हो शौकत को ये बुरा लगता हो"
ताबू:"हां, हो सकता है, बिल्कुल"
शौकत:"जाने दो ना यार, मैने माइंड नही किया"
मैं:"रियली, सो नाइस ऑफ यू शौकत"
ताबू:"हां मैने भी माइंड नही किया"
ताबू बोल तो गयी लेकिन फिर उसने अपनी ग़लती पर अपनी लंबी ज़बान बाहर निकाली, उसके इस बर्ताव से हम सब हंस पड़े.
हम ने खाना ऑर्डर किया और फिर हम अपने रूम मे चले गये. हर दिन हम एक दूसरे से काफ़ी फ्रॅंक हो रहे थे.
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