RE: MmsBee कोई तो रोक लो
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उसके खाने मे उबले आलू, पालक का सूप और चपाती थी. वो खाने की बहुत शौकीन थी और इस सब खाने को देखते ही, उसकी जान निकलने लगती थी. ऐसे मे उसे ये सब खाते देख कर, मेरी भूख ही मर गयी.
मैने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखों मे नमी को आने से रोका. लेकिन फिर मैं चाह कर भी, दोबारा अपने खाने को हाथ नही लगा पाया. मुझे एक बार फिर खाना ना खाते देख, कीर्ति फिर इशारे से इसकी वजह पुछने लगी.
लेकिन मैने मुस्कुराते हुए, ना मे सर हिलाया और फिर उसके सामने रखी आलू और चपाती उठाने लगा. वो शायद मेरे ऐसा करने का मतलब समझ गयी थी. इसलिए उसने मुझे ऐसा करने से रोकने के लिए मेरा हाथ पकड़ लिया.
उसके मेरा हाथ पकड़ते ही, मैने उसे गुस्से मे घूर कर देखा. मेरे घूर कर देखते ही, उसने मूह बनाते हुए, मेरा हाथ छोड़ दिया. उसके मेरा हाथ छोड़ते ही, मैं आलू और चपाती अपनी प्लेट मे रख कर खाने लगा.
कीर्ति को शायद मेरा ये सब खाना अच्छा नही लग रहा था और वो मूह बना कर बैठी थी. मैने उसे अपने हाथ की कोहनी मार कर, खाना खाने का इशारा किया तो, वो बुरा सा मूह बना कर खाना खाने लगी.
इस समय मैं तीन चार काम एक साथ कर रहा था. सबसे पहले तो मैं इस समय खाना खा रहा था और बरखा दीदी से फोन पर बात भी कर रहा था. इसके अलावा मैं अपने आस पास सब पर नज़र रखते हुए, कीर्ति को तंग करने मे भी लगा हुआ था.
मैं अपने आस पास के सभी लोगों पर नज़र रखे हुए था. लेकिन मेरी नज़र, मेरे बगल मे बैठी, अमि पर ज़रा भी नही थी. अचानक ही अमि पर कीर्ति की नज़र पड़ी और उसने मुझे अमि की तरफ देखने का इशारा किया.
कीर्ति का इशारा समझ मे आते ही, मैने पलट कर अमि की तरफ देखा तो, वो बड़े गौर से मुझे आलू और चपाती खाते देख रही थी. उसे इस तरह हैरान देख कर, मैने उस से कहा.
मैं बोला “क्या हुआ बेटू, तू खाना क्यो नही खा रही है.”
मेरी बात सुनकर, अमि ने आलू और चपाती की तरफ इशारा करते हुए कहा.
अमि बोली “भैया, मुझे भी ये खाना है.”
उसकी इस बात के जबाब मे मैने उसको समझाते हुए उस से कहा.
मैं बोला “बेटू, ये कीर्ति का खाना है. इस मे मिर्च मसाला कुछ भी नही है. इसे तू नही खा पाएगी.”
लेकिन अमि ने मेरी बात को काट कर ज़िद करते हुए कहा.
अमि बोली “नही, जब आप इसे खा सकते हो, तो मैं भी खा सकती हूँ. मुझे भी ये ही खाना है.”
उसकी बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए, आलू और चपाती उठा कर उसकी प्लेट मे डाल दिए. अमि को आलू चपाती खाते देख, निमी भी पिछे ना रही और वो भी खाने की ज़िद करने लगी.
आख़िर मे मुझे उसे भी वो सब देना पड़ गया. सब अमि निमी को ये सब खाते देख रहे थे. सब को अपनी तरफ देखते पाकर, निमी ने अपनी आदत के अनुसार, खाने की तारीफ करते हुए छोटी माँ से कहा.
निमी बोली “वा मम्मी, आप कितने टेस्टी आलू बनाती है. ये तो बिल्कुल गुलाब जामुन की तरह टेस्टी लग रहे है.”
निमी की ये बात सुनते ही, सब लोग हँसने लगे. लेकिन कीर्ति को ज़ोर का ठन्सका लग गया. मैने उसे उठा कर पानी दिया तो, उसने पानी पीते हुए, धीरे से मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “ये दोनो कितनी नौटंकी करती है. कल तक मेरा यही खाना देख कर, दोनो नाक मूह बनाया करती थी और आज देखो कैसे मज़े ले लेकर खा रही है. जैसे इस से ज़्यादा स्वादिष्ट कुछ हो ही ना.”
कीर्ति की बात सुनकर, मैने मुस्कुराते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तू कहाँ इनकी बातों मे आती है. मैं जो कुछ भी खाउन्गा, वो खाना अमि की आदत है और अमि की नकल करना निमी की आदत है. लेकिन निमी की आदत ये भी है कि, वो हमेशा इस बात को छुपाने की कोसिस करती है कि, वो अमि की देखा निमी ऐसा कर रही है.”
“इसलिए वो जब कभी भी ऐसा कोई काम करती है तो, वो उस काम की दिल खोल कर तारीफ करती है और तारीफ करने मे ज़रा भी कंजूसी नही करती है. ताकि सबको ऐसा लगे कि, ये काम निमी को बहुत पसंद है और वो अमि की नकल नही कर रही है. अब ये बात अलग है कि, उसकी की गयी तारीफ किसी को हजम नही होती है.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति खिलखिलाने लगी. इसी तरह आपस मे हँसी मज़ाक करते करते हम सब का खाना हो गया. खाने के बाद, मैने बरखा दीदी का कॉल रखा और फिर वाणी को उसका ब्लूटूथ हेडफोन्स वापस करने लगा.
लेकिन वाणी ने मुझसे अपना हेडफोन्स वापस लेने से मना कर दिया. वाणी को मुझसे अपना हेडफोन्स वापस लेते ना देख कर, कीर्ति उसे अपना हेडफोन्स वापस लेने के लिए भड़काने लगी.
मगर वाणी ने ये कह कर, मुझसे हेडफोन्स वापस लेने से मना कर दिया कि, वो हेडफोन्स का इस्तेमाल नही करती है. मैं कीर्ति की इस हरकत का मतलब अच्छे से समझ रहा था. वाणी के उसके पास से हटते ही, मैने कीर्ति को छेड़ते हुए कहा.
मैं बोला “खुद तो, हेडफोन्स लगा कर बात करती रहती है और अब यदि वाणी दीदी ने मुझे भी हेडफोन्स दे दिया है तो, जल जल कर आधी हुई जा रही है. अब तो मैं भी हेडफोन्स लगा कर ही बात किया करूगा.”
मेरी इस बात को सुनकर, कीर्ति ने गुस्से मे, मेरे हाथ से ज़बरदस्ती हेडफोन्स छीन लिया और मुझे धमकाते हुए कहा.
कीर्ति बोली “इस हेडफोन्स को मैं आग लगा दुगी, लेकिन तुमको वापस नही करूगी. जब मैने एक बार कह दिया कि, तुम मुझसे हेडफोन्स लगा कर बात नही करोगे तो, मतलब नही करोगे.”
ये कह कर, वो मुझ पर बड़बड़ाते हुए, नितिका और शिल्पा के पास चली गयी. उसकी इस हरकत पर मैं मुस्कुरा कर रह गया. इसके बाद, हम लोगों ने अंकल आंटी से विदा ली और अपने घर के लिए निकल पड़े.
रात को 11:00 बजे हम अपने घर पहुच गये. घर मे चंदा मौसी बड़ी बेसब्री से हमारे आने का इंतजार कर रही थी. वैसे तो उनकी आदत रोज 11 बजे के पहले ही सो जाने की थी.
लेकिन आज शायद मेरे घर वापस आने की वजह से वो अभी तक जाग रही थी. मैने उनको देखते ही, उनके पास जाकर उनके पैर छुये तो, उन्हो ने मेरी बालाएँ लेते हुए, मुझे अपने गले से लगा लिया.
चंदा मौसी को जब पता चला कि, मैं मेहुल के घर से खाने के बाद, बिना चाय पिए ही घर आ गया हूँ तो, वो मेरे बार बार मना करने के बाद भी, मेरे लिए चाय बनाने चली गयी.
वाणी ने चंदा मौसी से चाय के लिए मना किया और अपने लिए दूध भेजने का बोल कर, अपने कमरे मे चली गयी. चंदा मौसी ने मुझे चाय दी और फिर वाणी के लिए दूध लेकर उपर जाने लगी. लेकिन कीर्ति ने उनको रोकते हुए कहा.
कीर्ति बोली “अरे मौसी आप बेकार मे क्यो परेशान हो रही है. ये दूध मुझे दे दीजिए, मैं उपर जाउन्गी तो, दीदी को दे दूँगी.”
कीर्ति की बात सुनकर, चंदा मौसी ने दूध का गिलास कीर्ति के पास लाकर रख दिया और वो अपने कमरे मे चली गयी. चाय पीने के बाद, हम सब उपर आ गये. अमि निमी और कीर्ति मुझे गुड नाइट बोल कर, अपने अपने कमरे मे चली गयी.
उनके जाने के बाद, मैं भी अपने कमरे मे आ गया. अपने कमरे को देख कर, मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मेरे कमरे की हर चीज़ सलीके से सजी हुई रखी थी और कमरा बहुत ज़्यादा सॉफ सुथरा नज़र आ रहा था.
मैं मुस्कुराते हुए मूह हाथ धोने चला गया. मूह हाथ धोने के बाद, मैने नाइट सूट पहना और बेड पर आकर लेट गया. मेरी आँखों मे बार बार कीर्ति का चेहरा आ रहा था और मेरा मन उसके पास जाने का कर रहा था.
लेकिन वाणी के होने की वजह से, कीर्ति के पास जाने की मेरी हिम्मत नही हो रही थी. कीर्ति भी शायद इसी वजह से मुझे गुड नाइट कह कर सोने चली गयी थी और आज उसके मेरे पास सोने आने की कोई उम्मीद नही थी.
मेरा दिल इस समय कीर्ति के लिए बहुत ज़्यादा बेचैन था और मैं उसे अपने सीने से लगाने के लिए तड़प रहा था. अपनी इसी तड़प मे मैने अपना मोबाइल निकाला और कीर्ति को कॉल लगाने लगा.
लेकिन मेरे कॉल लगाने के पहले ही, कीर्ति का कॉल आने लगा. मेरे कॉल उठाते ही, उसने मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “जल्दी से दरवाजा खोलो, मैं बाहर खड़ी हूँ.”
इतना बोल कर, उसने कॉल काट दिया. उसके कॉल काटते ही, मैने मोबाइल बिस्तर पर फेका और फ़ौरन दरवाजा खोलने के लिए दौड़ लगा दी. मेरे दरवाजा खोलते ही, कीर्ति जल्दी से अंदर आई और फिर उसने खुद ही दरवाजा बंद कर दिया.
दरवाजा बंद करने के बाद, वो सीधे मुझसे आकर लिपट गयी. मैं इस एक पल के लिए, ना जाने कब से तड़प रहा था और ना जाने कब तक ऐसे ही तड़प्ता रहता. लेकिन कीर्ति ने एक ही पल मे मेरी सारी तड़प को ख़तम कर दिया था.
कीर्ति के मेरे सीने से लगते ही मेरे तन मन मे सुकून की एक लहर सी दौड़ गयी और मैने भी उसे अपनी बाहों मे ज़ोर से जाकड़ लिया. कुछ देर के लिए हम दोनो एक दूसरे की बाहों मे खो से गये.
ना तो कीर्ति कुछ बोल रही थी और ना ही मैं कुछ बोल रहा था. लेकिन ऐसे ही खड़े खड़े कीर्ति थक गयी और उसने अपना वजन मेरी बाहों मे डाल दिया. उसकी इस बात से मुझे मुझे अहसास हुआ कि, अभी उसकी तबीयत सही नही है.
इस बात का अहसास होते ही, मैने फ़ौरन कीर्ति को अपनी बाहों से आज़ाद किया और उसे बेड पर लाकर बैठा कर, मैं खुद उसके सामने ज़मीन पर बैठ गया. मैने उसका हाथ, अपने हाथ मे थामते हुए उस से कहा.
मैं बोला “ये तूने अपनी क्या हालत बना ली है. तूने तो मेरी जान निकाल कर रख दी है.”
मेरी इस बात पर कीर्ति ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा.
कीर्ति बोली “मेरी जान तो तुम हो. जब मेरी जान ही मेरे पास नही थी तो, मेरी तबीयत को खराब होना ही था. लेकिन अब तुम आ गये हो तो, देखना मेरी तबीयत भी बिल्कुल ठीक हो जाएगी.”
मैं बोला “लेकिन तूने मुझसे वादा किया था कि, तू मेरे आने तक, मेरी जान का ख़याल रखेगी. मगर तूने अपना वादा नही निभाया.”
मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने बड़े ही भोलेपन से कहा.
कीर्ति बोली “इसमे मेरी ज़रा भी ग़लती नही है.”
कीर्ति की इस बात पर मैने उस पर झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.
मैं बोला “इसमे तेरी ग़लती नही है तो, क्या इस सब मे मेरी ग़लती है.”
कीर्ति बोली “हां, ये सब तुम्हारी ही वजह से हुआ है. तुम बात बात पर मेरी झूठी कसम खाते रहते हो और फिर ज़रा सा भी गुस्सा आने पर मेरी कसम को तोड़ देते हो.”
कीर्ति की बात सुनकर, मैं हैरानी से उसको देखता रह गया. लेकिन मेरी समझ मे ये नही आ रहा था कि, अब ये कौन सी कसम ना मानने की बात कर रही है. इसलिए मैने कीर्ति से इस बात को पुछ्ते हुए कहा.
मैं बोला “तू किस कसम की बात कर रही है. अब मैने तेरी कौन सी कसम को नही माना है.”
कीर्ति बोली “क्यो इतनी जल्दी भूल गये. तुमने जाती समय मुझसे कहा था कि, तुम कभी किसी बात पर मुझ पर गुस्सा नही करोगे. लेकिन तुमने इसके बाद भी मुझ पर बार बार गुस्सा किया और यहाँ आकर मेरी कसम खाने के बाद भी, तुमने दोबारा शराब को हाथ लगाया.”
कीर्ति की ये बात सुनकर, मुझे अपनी ग़लती का अहसास हो गया. वो ग़लत नही कह रही थी. इसलिए मैने इस बात के लिए उस से माफी माँगते हुए कहा.
मैं बोला “सॉरी, मुझसे सच मे बहुत बड़ी ग़लती हुई है. लेकिन तू अपनी खुद की ग़लती क्यो नही देखती है. तू खुद ही तो, मुझे गुस्सा दिलाने वाली हरकत करती रहती है.”
मेरी इस बात को सुनकर, कीर्ति ने अपनी ग़लती से सॉफ सॉफ मुकरते हुए कहा.
कीर्ति बोली “नही, मैने तुमको गुस्सा दिलाने वाली कोई हरकत नही की है. तुम ही बेकार मे मुझ पर गुस्सा करते रहते हो.”
अपनी ग़लती से कीर्ति को सॉफ मुकरते देख कर, मैने उसको उसकी ग़लती याद दिलाते हुए कहा.
मैं बोला “तो फिर मुझसे जितने की बात पर झगड़ा करना किसने सुरू किया था. मुझे तो अभी तक, वो तेरे झूठा गुस्सा करने की बात समझ मे नही आई है.”
मेरे मूह से ये बात सुनकर, कीर्ति ने उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करते हुए कहा.
कीर्ति बोली “हां हां, मुझे कुछ समझाने की कोशिस मत करो. मैं सब समझ गयी हूँ. मैं ही हर बार ग़लत होती हूँ. तुम्हारी तो कहीं कोई ग़लती होती ही नही है. मैं ही तुमको ज़बरदस्ती कसम दिलाती हू और फिर मैं ही तुम्हे कसम तोड़ने के लिए मजबूर कर देती हूँ.”
इतना बोल कर वो मूह फूला कर बैठ गयी. मैं तो बस उसे अपनी बात की सफाई देना चाहता था. मेरा इरादा उसे नाराज़ करने का हरगिज़ नही था. मैने उसे अपनी बात से इस तरह नाराज़ होते देखा तो, मैने उसे मनाते हुए कहा.
मैं बोला “देख, मैं तेरी किसी बात मे कोई ग़लती नही गिना रहा हूँ. मुझे पता है कि, तू जो भी करती है, मेरे लिए ही करती है. मैं ही पागल हूँ, जो तेरी किसी बात को समझ नही पाता हूँ और तुझ पर गुस्सा करने लगता हूँ.”
“लेकिन अब तू इस ज़रा सी बात को लेकर, ऐसे मूह फूला कर मत बैठ. मुझसे तेरा ऐसा उतरा हुआ चेहरा नही देखा जाता है. थोड़ी देर के लिए मिली है और उस पर भी मूह फूला कर बैठ गयी है.”
मेरी इस बात के जबाब मे कीर्ति ने मेरी बात को काटते हुए कहा.
कीर्ति बोली “थोड़ी देर के लिए नही, मैं सारी रात तुम्हारे साथ हूँ.”
मैं बोला “पागल मत बन, अभी वाणी दीदी यहाँ पर है और ऐसे मे तेरा मेरे साथ रहना ठीक नही है.”
कीर्ति बोली “तुम उनकी चिंता मत करो. मैने उनके दूध मे नींद की गोलियाँ मिला दी है. अब वो सुबह के पहले नींद से नही जागेगी.”
कीर्ति की ये बात सुनकर, मैं हँसे बिना नही रह सका. मैने हंसते हुए उस से कहा.
मैं बोला “तू नही सुधरेगी, तूने वाणी दीदी को भी नही छोड़ा.”
कीर्ति बोली “मैं ऐसा नही करती तो, वाणी दीदी रात को उठ उठ कर मुझे देखने आती रहती. मेरे पास ऐसा करने के सिवा, तुमसे मिलने का कोई दूसरा रास्ता ही नही था.”
कीर्ति की इस बात पर मैने मुस्कुराते हुए कहा.
मैं बोला “चल ठीक है, अब ये सब बेकार की बातें छोड़ और मुझे एक प्यारी सी क़िस्सी दे दे.”
ये कहते हुए, मैं कीर्ति के पास आकर, बैठ गया. लेकिन उसने मुझे किस देने से मना करते हुए कहा.
कीर्ति बोली “मेरी तबीयत खराब है और तुमको किसी लेने की पड़ी है.”
मैं बोला “अरे मैने ऐसा क्या बुरी बात कह दी है. एक क़िस्सी देने से तेरी तबीयत को कुछ नही होने वाला है.”
कीर्ति बोली “मुझे मेरी ज़रा भी फिकर नही है. लेकिन किसी देने से मेरी बीमारी तुमको लग सकती है. इसलिए जब तक मैं पूरी तरह से ठीक नही हो जाती, तब तक तुमको कोई किसी नही मिलेगी.”
कीर्ति अपनी धुन मे अपनी बात कहे जा रही थी की, मैने उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिए. लेकिन कीर्ति ने जल्दी से अपने आपको मुझसे छुड़ाया और फिर प्यार से मेरे सीने पर घूसों की बरसात करते हुए कहा.
कीर्ति बोली “तुम मुंबई जाकर बहुत गंदे हो गये हो. मेरी एक भी बात नही मानते.”
उसकी इस हरकत पर मैने हंसते हुए, उसे खीच कर, अपने सीने से लगा लिया. कीर्ति ने भी मुझे अपनी बाहों मे जाकड़ लिया. अभी हम दोनो एक दूसरे की बाहों मे थे कि, तभी किसी ने मेरा दरवाजा खटखटा दिया.
दरवाजे पर खटखटाने की आवाज़ सुनते ही, हम दोनो चौक गये और हैरानी से एक दूसरे को देखने लगे. इतने समय दरवाजे पर वाणी के अलावा किसी और के होने का सवाल ही पैदा नही होता था.
ये बात समझ मे आते ही, कीर्ति ने मेरे कान मे कुछ कहा और वो भाग कर बाथरूम मे चली गयी. उसके बाथरूम मे जाते ही, मैने उठ कर दरवाजा खोला तो, सामने वाणी ही खड़ी थी.
वाणी का चेहरा गुस्से मे लाल था. उसने एक नज़र मुझे उपर से नीचे तक देखा और फिर गुस्से मे मुझसे कहा.
वाणी बोली “मुझे अभी मेहुल से बात करना है. उसका कोई दूसरा नंबर हो तो मुझे दो.”
मैं बोला “नही दीदी, उसके पास एक ही नंबर है. आप उसी पर कॉल कर लीजिए.”
वाणी बोली “उसका वो नंबर बंद है. तुम उस से बात करने की कोसिस करो, तब तक मैं एक ज़रूरी कॉल करके आती हूँ.”
ये कह कर वाणी वापस चली गयी. मुझे समझ मे नही आ रहा था कि, वाणी इतना गुस्से मे क्यो है. वाणी के मेरे पास से जाते ही, कीर्ति बाथरूम से बाहर निकल कर आ गयी.
वो शायद मेरी और वाणी की सारी बातें सुन चुकी थी. इसलिए उसने बाहर आते ही, मुझसे सवाल करते हुए कहा.
कीर्ति बोली “क्या हुआ, वाणी दीदी इतने गुस्से मे क्यो थी.”
मैं बोला “मुझे क्या पता. उनकी बातों से तो ऐसा लगता है कि, मेहुल ने कुछ किया है और अब अपना मोबाइल बंद करके बैठ गया है. वाणी दीदी मेहुल से बात करने के चक्कर मे तेरे पास भी आ सकती है. तू उनके लौट कर आने के पहले अपने कमरे चली जा. वरना मेहुल के चक्कर मे हम लोग भी फस सकते है.”
मेरी बात सुनकर, कीर्ति जल्दी से अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी और मैं बाहर निकल कर उसे जाते हुए देखने लगा. वाणी और कीर्ति का कमरा आमने सामने था. मगर दरवाजा आमने सामने नही था.
अभी कीर्ति अपने कमरे के दरवाजे को खोल ही रही थी कि, तभी वाणी अपने कमरे से बाहर निकल आई. उसने कीर्ति को दरवाजे पर खड़ी देखा तो, वो समझ नही पाई कि, कीर्ति अपने कमरे से बाहर आ रही है या कमरे के अंदर जा रही है. इसलिए उसने कीर्ति को देख कर, उस से कहा.
वाणी बोली “क्या हुआ, तू इतनी रात को कहाँ जा रही है.”
वाणी को इस तरह से अचानक अपने सामने देख कर, एक पल के लिए कीर्ति हड़बड़ा गयी और उसने पलट कर, मेरी तरफ देखा. मैं भी वाणी के ऐसे अचानक आ जाने से हड़बड़ा गया था.
अब मुझे इस बात का पछतावा हो रहा था कि, मैने कीर्ति को बाथरूम मे ही क्यो नही रहने दिया. मैने उसे इस समय अपने कमरे मे वापस जाने के लिए क्यो बोला. मेरी वजह से वो वाणी के सामने फस चुकी थी.
लेकिन कीर्ति वाणी के इस सवाल से ज़रा भी नही घबराई. उसने वाणी की इस बात के जबाब मे मुस्कुराते हुए उस से कहा.
कीर्ति बोली “दीदी, मैने अभी किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज़ सुनी थी. मैं ये ही देखने बाहर आई थी कि, इतनी रात को कौन, किसका दरवाजा खटखटा रहा है. वो क्या है ना कि, यदि निमी नींद से जाग जाती है तो, फिर वो पूरी रात परेशान करती है.”
कीर्ति का ये जबाब सुनकर, मैने सुकून की साँस ली. वही वाणी के चेहरे से ऐसा लगा, जैसे की, उसने कोई ग़लती कर दी हो. उसने कीर्ति की बात के जबाब मे उस से कहा.
वाणी बोली “सॉरी, वो मैं ही पुन्नू को जगा रही थी. तू परेशान मत हो और जाकर सो जा. तेरा इतनी रात तक जागना ठीक नही है.”
कीर्ति बोली “ठीक है दीदी, मैं अभी जाकर सो जाती हूँ. लेकिन आप अभी तक क्यों जाग रही है और इतनी रात को आपको पुन्नू से क्या काम पड़ गया था. यदि मेरे लायक काम हो तो, मुझे बता दीजिए.”
वाणी बोली “नही, कोई खास काम नही है. मुझे बस मेहुल से बात करना है.”
कीर्ति बोली “लेकिन दीदी, मेहुल तो जल्दी सो जाता है और अपना मोबाइल भी बंद करके रख देता है. इतनी समय तो, आपकी उस से बात हो पाना मुश्किल है.”
कीर्ति की बात सुनकर, वाणी ने कुछ सोचा और फिर कीर्ति से कहा.
वाणी बोली “चल ठीक है. मैं कल उस से बात कर लूँगी. तुम लोग जाकर सो जाओ.”
मगर कीर्ति ने बात को कुरेदते हुए वाणी से कहा.
कीर्ति बोली “लेकिन दीदी, आप मेहुल से इतनी रात को क्यों बात करना चाहती है. क्या मेहुल से कोई ग़लती हो गयी है.”
कीर्ति का ये तीर सही निशाने पर लगा. कीर्ति की इस बात को सुनकर, वाणी ने मेहुल के उपर भन्नाते हुए कहा.
वाणी बोली “तू खुद चल कर देख ले कि, उस नालयक ने मेरे साथ क्या हरकत की है.”
ये कहते हुए वाणी कीर्ति को अपने साथ, अपने कमरे मे लेकर चली गयी. वाणी की बात से ये तो सॉफ हो गया था कि, मेहुल ने कुछ किया है और वो ही दिखाने के लिए वाणी कीर्ति को अपने साथ अपने कमरे मे लेकर गयी है.
ये बात समझ मे आ जाने के बाद भी, मेहुल के कारनामे को जानने के लिए, वाणी के कमरे मे जाने की मेरी हिम्मत नही हुई. क्योकि वाणी से ज़्यादा डर, मुझे मेहुल के दिमाग़ से लगता था.
मेहुल का दिमाग़ दो धारी तलवार था. उसके दिमाग़ मे बहुत धमाकेदार आइडिया आते थे. उसके इन धमाकेदार आइडिया से सामने वाला घायल हो या ना हो. लेकिन खुद के घायल होने की पूरी उम्मीद रहती थी.
बचपन से लेकर अभी तक, मेहुल के ये धमाकेदार आइडिया अपने धमाको मे मुझे ही उड़ाते आ रहे थे. इसलिए मैने मेहुल के किए इस नये कांड से दूर रहने मे ही अपनी भलाई समझी और मैं अपने कमरे के बाहर ही खड़ा रहा.
मैं अपने कमरे के बाहर खड़ा कीर्ति के आने का इंतजार कर रहा था. तभी मेरे मोबाइल की एसएमएस टोन बजने लगी. एसएमएस टोन सुनकर, मुझे लगा कि, कहीं कीर्ति ने कुछ कहने के लिए एसएमएस किया हो.
ये बात दिमाग़ मे आते ही, मैं फ़ौरन अपने मोबाइल के पास आ गया और मैं मोबाइल उठा कर एसएमएस देखने लगा. लेकिन ये कीर्ति का नही, प्रिया का एसएमएस आया था. मैं प्रिया का एसएमएस पढ़ने लगा.
प्रिया का एस एम एस
“वादा करके निभाना उनकी आदत हो ज़रूरी तो नही.
भूल जाना मेरी फ़ितरत हो ज़रूरी तो नही.
मेरी तनहाईयाँ करती है जिन्हे याद सदा,
उनको भी मेरी ज़रूरत हो ज़रूरी तो नही.”
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