MmsBee कोई तो रोक लो
09-09-2020, 01:03 PM,
#51
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मैं नाश्ता करके नीचे आया तो मेहुल छोटी माँ से बात कर रहा था. मुझे आता देख वो उठ कर खड़ा हो गया. मैने उसे खड़ा होते देख कहा.

मैं बोला "मुझे देख कर खड़ा क्यों हो गया. बैठ ना."

मेहुल बोला "अब साहब आएँगे तो नौकर चाकर तो उठ कर खड़े ही होगे."

मैं बोला "इतना गुस्सा क्यों हो रहा है. मैने क्या कर दिया."

मेहुल बोला "तुझे नही मालूम कि मैं गुस्सा क्यों हो रहा हूँ."

मैं बोला "जब तू बताएगा नही तो फिर मुझे कैसे पता चलेगा. अब कुछ बोल भी क्या हुआ."

मेहुल बोला "कल तुझे कितने कॉल किए. तूने फोन उठाया क्यों नही."

मैं बोला "मेरी नींद लग गयी थी इसलिए देख नही सका."

मेहुल बोला "जब तू रात को सो गया था तो फिर अभी 9 बजे तुझे क्यों उठाना पड़ा."

मैं बोला "यार रात को ये निमी अचानक रोने लगी इसलिए फिर रात को सो नही पाया. अब तू ये फालतू की बात छोड़ और ये बता चलने की सब तैयारी हो गयी या नही."

मेहुल बोला "मेरी तो सारी तैयारी हो गयी मगर यहाँ आने पर पता चला कि तेरी अभी तक कोई तैयारी नही है."

मैं बोला "मुझे क्या तैयारी करना. मुझे तो बस अपने कपड़े पॅक करना है. उनमे तो 15 मिनिट लगना है. तू कहे तो अभी तेरे साथ चल चलता हूँ."

मेहुल बोला "नही अभी चलने की ज़रूरत नही है मगर आंटी के साथ 5 बजे के पहले ज़रूर आ जाना."

मैं बोला "ठीक है. अब तू जा."

मेहुल बोला "मैं क्यों जाउ. तू जा और जाकर अपनी तैयारी कर."

मैं उसे पकड़ कर अपने साथ बाहर लाया और पूछा.

मैं बोला "तू शिल्पा से मिला."

मेहुल बोला "नही."

मैं बोला "क्यों नही मिला. क्या उसे बताया नही कि तू मुंबई जा रहा है."

मेहुल बोला "मैने सब बता दिया."

मैं बोला "तो उसने मिलने का नही बोला."

मेहुल बोला "बोला था मगर मैने मना कर दिया. मैने कह दिया कि जब मैं लौट कर आउन्गा तभी उससे मिलुगा."

मैं बोला "कभी कभी तू बिल्कुल पागलपन वाली हरकत करता है. अगर उस से मिल लेता तो तेरा क्या जाएगा."

मेहुल बोला "यार मेरा मन अभी पापा के सिवा कही नही लग रहा."

मैं बोला "देख बात तेरी ठीक है पर ज़रा उसके बारे मे भी तो सोच. उसे इतने दिन तेरे बिना कैसा लगेगा. क्या पता तुझे उधर जाकर उस से बात करने का टाइम कब मिटा है. इसलिए कह रहा हूँ उसे बेकार मे परेशान मत कर और उस से एक बार मिल ले. अब कोई भी बेकार की बात मत कर और जाकर उस से मिल."

मेहुल बोला "ठीक है तू कहता है तो मिल लेता हूँ. तू अपनी तैयारी कर मैं उस से मिल कर तुझे घर मे ही मिलुगा."

ये कहकर मेहुल चला गया और मैने वापस आकर अपनी पॅकिंग करना शुरू कर दिया. इस सब के साथ साथ मैं हर घंटे पर कीर्ति को किस भी देता रहा. मेरे लिए ये किस करना एक अलग ही अनुभव था. ऐसा शायद किसी और समय होता तो शायद मैं उसे किस करने का इंतजार करता रहता. लेकिन इस समय उसके किस से मेरी हालत पतली हो रही थी. ऐसा नही था कि मुझे खुशी नही हो रही थी. खुशी तो हो रही थी मगर उस से कही ज़्यादा, ये डर भी लग रहा था कि कोई देख ना ले. इसलिए मैं कीर्ति से बचता हुआ फिर रहा था. लेकिन वो हर घंटे पर मुझे ढूँढ कर मेरे सामने आ ही जाती थी.

मैं अपने कमरे मे ही था और लगभग मेरी सारी पॅकिंग हो चुकी थी. अब मैं मेहुल के घर जाने को तैयार हो रहा था. 3 बजे तक तो सब ठीक तक चलता रहा मगर फिर मेरे जाने का टाइम करीब हो गया तो अब अमि निमी मेरे आस पास ही रह रही थी.

मेरी जाने की सारी तैयारियाँ तो हो चुकी थी मगर अमि निमी की तैयारियाँ अभी भी ख़तम होने का नाम नही ले रही थी. वो बार बार पूछ रही थी. भैया ये समान रख लिया. भैया वो समान रख लिया. कही कुछ रखने को ले आती तो कही कुछ रखने को ले आती. मुझे मेरे डियो की खुश्बू तो आ रही थी मगर वो कहीं दिख नही रहा था तो मैने अमि से पूछा.

मैं बोला "मेरा देव इधर ही रखा था मगर अब इधर नही दिख रहा. तुम दोनो मे से किसी ने उठाया तो नही.."

अमि बोली "वो तो निमी ने स्प्रे कर दिया."

मैं बोला "कहाँ."

अमि बोली "आपके बॅग से बदबू सी आ रही थी तो, उसने पहले बॅग पर स्प्रे किया और फिर उसे, आपके कमरे से भी बदबू आती समझ मे आई तो बाकी का आपके रूम मे स्प्रे कर दिया."

मैं बोला "कुछ तो बचा होगा."

निमी बोली "उसमे था ही कहाँ. आपके आधे ही रूम मे हो पाया तभी तो इतनी कम खुसबु आ रही है."

मैं बोला "तुझे इतना भी नही मालूम कि रूम स्प्रे और बॉडी स्प्रे मे अंतर होता है. वो रूम स्प्रे नही था, बॉडी स्प्रे था. जिसे तूने अपनी बॉडी को छोड़ कर सब जगह कर दिया."

निमी बोली "मुझे मालूम है पर आपका डियो गंदा था. उसकी खुसबु अच्छी नही थी, इसलिए मैने उसे ख़तम कर दिया ताकि आप अच्छा वाला डियो ले लो."

मुझे मालूम था कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर निमी अपनी ग़लती नही मानेगी. मैने खुद ही चुप हो जाने मे अपनी भलाई समझी और मैं तैयार होने लगा. ऐसा ही चलते चलते 4 बज गये और अब कीर्ति के आख़िरी किस करने की बारी भी आ गयी. लेकिन अब मेरे साथ अमि निमी चिपकी हुई थी, और कीर्ति 4 बजने के बाद भी मेरे सामने नही आई थी.

सुबह से ऐसा पहली बार हुआ था कि उसे किस करने का समय हो और वो सामने ना आई हो. मैने अमि से कहा कि वो जाकर कीर्ति को देख कर आए. अमि उसे देखने गयी और उसने आकर बताया कि कीर्ति दीदी नही है. वो अपनी सहेली नितिका के घर चली गयी है, और बोल गयी है कि वो आपसे मेहुल भैया के घर ही मिल लेगी.

ये सुनते ही मुझे बहुत ज़ोर का झटका लगा. ना चाहते हुए भी मैं तड़प उठा. ये तड़प कीर्ति को किस ना कर पाने की नही थी. बल्कि ये तड़प अपने जाने के पहले, कुछ पल कीर्ति के साथ ना बिता पाने की थी. मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि कीर्ति के लिए मेरे जज्बातों की कोई अहमियत नही है. उसे ये भी नही लगा कि मैं जा रहा हूँ तो, कम से कम मेरे पास तो रहे और यदि उसका जाना इतना ही ज़रूरी था तो कम से कम मुझसे बोलकर तो जा सकती थी. इस से तो यही लगता है कि, उसे मेरे जाने का ज़रा भी दुख नही है. इस आख़िरी समय पर कीर्ति के मेरे सामने ना आने से, मुझे बहुत बुरा लग रहा था.

मुझे कीर्ति की ये हरकत ज़रा भी पसंद नही आई थी. मैं मन ही मन उस से नाराज़ था. मेरी इस नाराज़गी ने मुझे उदास भी कर दिया. मैं इतना उदास था कि यदि कोई और समय होता तो, मैं अपना जाना ही टाल देता. लेकिन अभी ऐसा कर पाना संभव ही नही था. मैने बेमन से अपना समान उठाया और नीचे आ गया.

नीचे आने पर छोटी माँ भी तैयार मिली. उन्होने ड्राइवर से मेरा समान गाड़ी मे रखने कहा. छोटी माँ और अमि निमी मेरे साथ मेहुल के घर तक जा रही थी. समान रख जाने के बाद हम लोग मेहुल के घर के लिए निकल लिए और 5 बजे के पहले ही पहुच गये.

वहाँ पहुचते ही सबसे पहले मेरी नज़र कीर्ति की स्कूटी पर पड़ी. वो नितिका के घर से मेहुल के यहाँ आ चुकी थी. लेकिन अब मेरा मन उस से, बात करने का नही था. मैं सीधा अंदर पहुच गया. कीर्ति और नितिका मिलकर आंटी के साथ सारा समान रखवा रही थी. मुझे देख कर कीर्ति मुस्कुराइ, पर मैं उसे अनदेखा करते हुए सीधा मेहुल के कमरे मे चला गया. मेहुल भी अपना समान पॅक कर रहा था. मैने उस से कहा.

मैं बोला "सुबह तो तू बोल रहा था कि, तेरी सब तैयारी हो चुकी है, पर यहाँ तो अभी तक तेरी पॅकिंग ही चल रही है."

मेहुल बोला "अबे तैयारी भी सब थी और पॅकिंग भी थी, लेकिन अभी अभी कीर्ति ने कुछ समान लाकर दिया तो उसे ही पॅक कर रहा हूँ."

कीर्ति का नाम आते ही मेरा फिर दिमाग़ खराब हो गया. मैं सोचने लगा मेरे लिए तो, कुछ लाई नही है और ना जाने इसे क्या लाकर दे दिया. अरे मुझे कुछ ना देती पर, कम से कम आख़िरी मे मिलने का कुछ समय तो दे देती. अभी ये हाल है तो मेरे मुंबई जाने के बाद तो, ये मुझे भूल ही जाएगी. मुझे यू खोया देख कर मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला "अबे क्या ख़यालों मे ही मुंबई पहुच गया है. चल समान बाहर ले चलने मे मेरी मदद कर."

मैं बोला "मैने अपना समान रखने मे खुद अपनी मदद की है. तू भी अपनी मदद खुद कर ले. मुझे थोडा आराम करने दे."

मेहुल बोला "चल रहने दे. तुझ जैसे नाज़ुक आदमी से ये होगा भी नही, पर तुझे आते ही आराम की ज़रूरत क्या है. घर से ही तो इधर तक आया है, और थक गया. तो फिर तेरी इधर से मुंबई तक के सफ़र मे क्या हालत होगी."

मैं बोला "फालतू की बकवास बंद करके अपना काम कर, और मुझे तब तक आराम करने दे."

मेहुल बोला "अबे तुझे हुआ क्या है. भड़क तो ऐसा रहा है. जैसे कोई तेरी महबूबा को भगा कर ले गया हो."

मैं बोला "मेरी महबूबा को कोई भगा कर नही ले गया. वो खुद ही मुझे छोड़ कर भाग गयी."

मेहुल बोला "मुझे लगता है तू मुंबई जाने के नाम से सठिया गया है. तू आराम ही कर तो अच्छा है, नही तो अपने साथ साथ मेरा भी दिमाग़ खराब कर देगा."

ये बोल कर मेहुल एक एक करके समान बाहर ले जाने लगा, और मैं उसके बेड पर लेट कर अपने दिमाग़ को शांत करने की कोसिस करने लगा. लेकिन मेरे दिमाग़ को कुछ हुआ होता तो वो शांत होता. हुआ तो मेरे दिल को था. मेरा दिल कीर्ति की एक छोटी सी बात से इतना दुखी हो गया था कि, अब मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था. यहाँ तक की कीर्ति ने आते समय मुझे देख कर जो मुस्कुराया था. वो मुस्कुराहट भी मेरे सीने मे चुभ रही थी.

मुझे कीर्ति का यू हँसना ज़रा भी सहन नही हुआ. मैं तो बस यही मान कर चल रहा था कि कीर्ति को मेरे जाने का कोई दुख नही है. इसमे जो थोड़ी बहुत कसर बाकी थी वो मेहुल ने ये बता कर पूरी कर दी थी कि, कीर्ति कुछ लेकर आई है. जो मुझे ये सोचने पर मजबूर कर रही थी कि, कीर्ति को उसकी फिकर तो है मगर मेरी फिकर नही है. मुझे मेहुल से जलन तो नही थी पर कीर्ति का मुझे छोड़ कर उसकी फिकर करना मैं सह नही पाया.

मगर अभी मेरे दिल का जलना और बाकी था. कीर्ति के साथ साथ शिल्पा भी उस रूम मे मेरे लिए चाय लेकर आई. तीनो हंस हंस कर आपस मे बात कर रही थी, और उनकी हँसी मुझे चुभ रही थी. मेरा दिमाग़ मेरे नियंत्रण मे नही था. उन्हो ने मुहे चाय देना चाही तो मैने मना कहा मुझे नही पीना, और तीनो वैसे ही बात करती हुई वापस भी चली गयी.

इससे मेरा गुस्सा और भी बढ़ गया. मैं सोचने लगा कि, कम से कम ये तो पूछ सकती थी कि, मैं चाय क्यों नही पी रहा. इसे तो मेरी ज़रा भी परवाह नही है. मैं भी अब मुंबई जाकर रिया के साथ खूब मस्ती करूगा और इसे फोन भी नही लगाउन्गा, पर क्या पता इसे मुझसे बात करने का टाइम भी मिलता है या नही और मेरे बात करने या ना करने से इसे क्या असर पड़ेगा. इसे तो 3 दिनो मे मेरे से बिना बात किए रहने की आदत हो गयी है. रात को कैसे मुझे समझा रही थी और अब एक बार मेरी तरफ देख तक नही रही है.

मैं जो भी मेरे मन मे, उल्टा सीधा आ रहा था, बस सोचे जा रहा था और मन ही मन कीर्ति को कोसे जा रहा था. मेरे सीने मे एक अजीब सी आग जल रही थी. जो मुझे अंदर ही अंदर जलाए जा रही थी. मेरा दिल अंदर ही अंदर रो रहा था. उसे कीर्ति के इस बर्ताव से बहुत ही ठेस पहुचि थी. जिस वजह से मैं अपने आपको बहुत ही अकेला महसूस कर रहा था. ऐसा लग रहा था मान लो मेरे सीने मे दिल तो हो पर उसमे धड़कन ना हो. मुझे कीर्ति से अपने साथ ऐसे बर्ताव की उम्मीद कभी नही थी.

मैं अभी अपनी सोचो मे गुम ही था कि तभी मेरे कमरे मे शिल्पा आई. मैं समझा कि वो किसी काम से आई है. लेकिन वो मुझसे ही मिलने आई थी. मैं बेड पर लेटा हुआ था लेकिन उसे अपने पास आते देख कर मैं उठ कर बैठ गया. वो मेरे पास ही आकर खड़ी हो गयी. उसे यू खड़ा देख कर मैने उस से पूछा.

मैं बोला "क्या हुआ. क्या कोई काम है."

शिल्पा बोली "नही कोई काम नही है. बस तुमको सॉरी और थॅंक्स बोलना था."

मैं बोला "थॅंक्स तुमको क्यों बोलना है. ये तो मेरी समझ मे आ रहा है. लेकिन ये सॉरी किसलिए.? मेरी नज़र मे तो तुमने ऐसा कुछ भी नही किया. जिसके लिए तुम्हे सॉरी बोलना पड़े."

ये सुनकर शिल्पा ने अपना सर झुकाते हुए कहा.

शिल्पा बोली "तुम्हारी नज़र मे तो नही मगर मेरी नज़र मे मैने बहुत ग़लत किया है. मैं हमेशा तुम्हारे बारे मे ग़लत ही रही."

मैं बोला "मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा कि तुम क्या बोल रही हो."

शिल्पा बोली "मैं मन ही मन तुम्हारे लिए जलन रखती थी."

मैं बोला "मुझे मालूम है. लेकिन ये तुम्हारा घर है और इस पर कोई बाहर वाला अपना हक़ जताकर, तुम्हारे किसी का हक़ छीनेगा तो, उस से तुम्हे जलन होना स्वाभाविक ही है. मुझे इसमे कोई बुराई नज़र नही आती."

शिल्पा बोली "तुम चाहे कुछ भी कहो पर मैं ग़लत थी. जो तुम्हे हमेशा बाहर वाला समझती रही. तुमने अंकल आंटी को कभी खुद से अलग नही समझा और अंकल आंटी ने भी तुम्हे मेहुल से कम नही समझा. एक मैं ही थी जो ये सोचती रही कि तुम मेहुल का हक़ छीन रहे हो. जो सब अंकल आंटी से मेहुल को मिलना चाहिए. उस पर तुम डाका डाल रहे हो."

मैं बोला "ठीक है. जो हुआ उसे भूल जाओ, पर एक बात बताओ. आज अचानक तुम्हे इस बात का अहसास कैसे हो गया."

शिल्पा बोली "मेहुल तो मुझसे मिलना ही नही चाहता था, मगर तुमने जबरजस्ती उसे मेरे पास भेजा. मेहुल तो मुझे घर भी नही लाना चाहता था. लेकिन तुमने कीर्ति से मुझे, यहाँ बुलवा कर, मुझे इस घड़ी सब के साथ शामिल होने का मौका दिया. इन सब बातों ने मेरी तुम्हारे बारे मे, जो भी बुरी सोच थी उसे ख़तम कर दिया."

मैं बोला "अब तो तुम मुझे अपने परिवार का एक हिस्सा समझती हो."

शिल्पा बोली "हाँ."

मैं बोला "तो फिर सॉरी और थॅंक्स की कोई ज़रूरत नही है."

अभी मेरी बात पूरी भी नही हुई थी कि, तभी कीर्ति अंदर आ गयी. उसने आते ही शिल्पा से कहा.

कीर्ति बोली "अब तेरा सॉरी और थॅंक्स कहना हो गया हो तो, तू ज़रा नितिका के घर चली जा. वो तैयार होने गयी है. उसे जल्दी से तैयार करवा कर ला. नही तो पता चले कि इधर सबके जाने का टाइम हो जाए और वो तैयार ही होती रहे."

कीर्ति की बात सुनकर शिल्पा बाहर जाने लगी. उसके साथ साथ कीर्ति भी दरवाजे के बाहर तक गयी लेकिन शिल्पा के दूर होते ही, वो तुरंत वापस पलटी और मेरे पास आकर बैठ गयी और कहा.

कीर्ति बोली "मेरे किस का टाइम हो गया है. मेरा किस दो."

मैं बोला "चल ज़्यादा नाटक मत कर. देख लिया तेरा किस और तेरा प्यार."

कीर्ति बोली "देख तू मुझे जो चाहे वो बोल लेकिन मेरे प्यार को कुछ मत बोलना."

मैं बोला "बोलुगा. एक बार नही सौ बार बोलुगा. तू जा यहाँ से."

कीर्ति गुस्से मे उठी और बाहर चली गयी. लेकिन उसके जाने के बाद फिर मुझे खराब लगा. मैं सोचने लगा. अरे गुस्सा तो मैं था तो क्या मुझे मना नही सकती थी. अभी मैं आगे कुछ सोच पता तभी कीर्ति मुझे वापस आती दिखी. अब मुझे तो उस से कुछ कहना ही नही था और कहना तो उसे भी कुछ नही था. वो तेज कदमो से चलती हुई मेरे पास आई और इस से पहले की मैं कुछ सोचने समझने की कोसिस कर पता. उस से पहले ही कीर्ति ने अपना काम कर दिया.

उसने आते ही मेरे चेहरे को पकड़ा और अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिए. मैने उस से खुद को छुड़ाने की कोसिस की मगर सारी कोसिस बेकार थी. वो कसकर मुझे पकड़े हुए थी और मेरे होंठ चूसे जा रही थी और इधर मेरी हालत इस डर से खराब हुई जा रही थी कि कही कोई आ ना जाए. कुछ देर बाद मैं भी उसे किस करने लगा. किस करते करते मेरा सारा गुस्सा शांत हो चुका था.

मुझे उसका यू किस करना बहुत अच्छा लग रहा था.

लेकिन फिर भी कुछ देर बाद मैने बड़े प्यार से उस से खुद को छुड़ाया तो उसने मुझे छोड़ दिया. मैने उस से कहा.

मैं बोला "ये क्या पागलपन था. अभी कोई आ जाता तो."

कीर्ति बोली "कोई आ जाता तो आ जाता. मुझे मेरा किस चाहिए था और वो मैने ले लिया."

मैं बोला "यदि ऐसी ही किस वाली थी तो इसके पहले का किस लेना क्यों भूल गयी. क्या मुझसे मिल कर नही आ सकती थी."

कीर्ति बोली "वो इसलिए क्योंकि मेरे दिमाग़ मे कुछ और ही चल रहा था."

मैं बोला "क्या चल रहा था."

कीर्ति बोली "पहले तू बता. तूने क्या सोच रखा था."

मैं बोला "मैने तो यही सोचा था कि हम घर मे ही अच्छे से एक दूसरे से मिल लेगे. अब इतनी भीड़ भाड़ मे ऐसे मिलना ठीक नही रहता."

कीर्ति बोली "मुझे मालूम था कि, तू अपने जाने के बहुत पहले ही मुझसे पीछा छुड़ा लेगा. लेकिन मैं तेरा पीछा इतनी आसानी से छोड़ने वाली नही हूँ. मैं तो तुझसे जाते जाते भी किस लुगी."

मैं बोला "पागल है क्या. अभी अच्छा था कि कोई नही आया मगर अब इसके बाद कुछ मत करना. ज़रूरी नही कि हर बार कोई ना आए."

कीर्ति बोली "कोई कैसे आता. मैं सब को काम मे फसा कर आई थी और आगे भी ऐसा ही होगा."

मैं बोला "आगे ऐसा कुछ नही होगा. क्योंकि अब सब हमारे साथ ही होंगे."

कीर्ति बोली "तू भी बच्चों वाली बात करता है. मैं ऐसे ही घर से जल्दी नही निकली थी. मैंने सब सोच रखा है. अब तू ज़्यादा सवाल मत कर और चुप चाप मेरे साथ चल."

मैं बोला "कहा."

कीर्ति बोली "कहा ना कोई सवाल मत कर."

ये कह कर उसने मुझे पकड़ कर खिचा और मैं उठ कर उसके पीछे पीछे चलने लगा. बाहर निकल कर उसने आंटी से कहा.

कीर्ति बोली "आंटी हम लोग वही पहुच जाएगे. आप लोग आने मे देर मत करना."

आंटी बोली "तू चिंता मत कर हम लोग समय पर पहुच जाएगे."

मेरी तो कुछ समझ मे नही आ रहा था. कोई भी ये नही पूछ रहा था कि तुम लोग कहाँ जा रहे हो. ना जाने कीर्ति ने सब लोगों को कौन सी घुट्टी घोंट कर पिला दी. मुझे बस इतना ही समझ मे आ रहा था कि इसने ज़रूर इन लोगों को कोई पट्टी पढ़ा दी है. तभी सब हाँ हाँ किए जा रहे है. कोई कुछ सवाल नही कर रहा है. मैं बिना ये जाने कि, हम कहाँ जा रहे है, चुप चाप उसके पीछे पीछे चला जा रहा था.
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09-09-2020, 01:03 PM,
#52
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
बाहर आकर कीर्ति ने मुझसे अपनी स्कूटी चलाने को कहा. मैने स्कूटी स्टार्ट की और उस ने बैठते हुए कहा रेलवे स्टेशन की तरफ ले लो. मैने बिना कुछ कहे स्कूटी आगे बढ़ा दी. मुझे मालूम नही था की ये अभी से स्टेशन क्यों जा रही है फिर भी मैं उस से बिन कुछ पूछे आगे बढ़े जा रहा था. स्टेशन से थोड़े पहले ही पड़ने वाले पार्क के पास ही कीर्ति ने स्कूटी रुकवा दी और गाड़ी पार्क करने को बोलने लगी. मेरा तो दिमाग़ ही चकरा गया. अब मैं उस से बिना पूछे ना रह पाया.

मैं बोला "क्या तू सबको वहाँ पर ये बोल कर आ रही है कि, हम यहा पार्क मैं बैठे मिलेगे."

कीर्ति बोली "तू हमेशा बुद्धू का बुद्धू ही रहेगा. पहले स्कूटी पार्क कर अंदर चल फिर तुझे सब बताती हूँ."

ये बोलकर वो पार्क की टिकेट्स लेने लगी और मैं गाड़ी पार्क करने लगा. मैने जब तक गाड़ी पार्क की वो भी टिकेट्स ले आई थी. हम लोग पार्क के अंदर आ गये. अंदर इस समय सभी जोड़े ही नज़र आ रहे थे और सब अपने अपने मे मस्त थे.

कीर्ति आगे आगे चली जा रही थी और मैं उसके पीछे पीछे चल रहा था. वो पार्क का चक्कर लगाए जा रही थी. जब मुझ से नही रहा गया तो मैं बोल पड़ा.

मैं बोला "क्या कर रही है. पूरे पार्क का चक्कर क्यों लगा रही है. क्या यहाँ पर ईव्निंग वॉक करवाने लाई है."

कीर्ति बोली "चुपचाप चलता रह."

मैं फिर से चुप चाप उसके पीछे पीछे चलने लगा. कुछ दूर चलने के बाद वो एक पेड़ के पास जाकर रुक गयी. उसने वहीं बैठने को बोला और फिर उस पेड़ से टिक कर पैर फैला कर बैठ गयी. मैं भी उसके पास ही पेड़ से टिक कर बैठा लेकिन मेरा बैठना और लेटना एक बराबर ही था. मैं पेड़ से टिका अढ़लेटी अवस्था मे था और मेरे दोनो घुटने मुड़े हुए थे. मुझे यू बैठा देख कर कीर्ति गुस्से से होने लगी.

कीर्ति बोली "ऐसे बैठा जाता है."

मैने अपने आपको देखा और बोला "क्यों क्या हुआ. अच्छे से तो बैठा हूँ. ऐसे बैठने से आराम मिल रहा है."

कीर्ति बोली "तुझे आराम करना है तो ऐसे मत कर."

मैं बोला "तो कैसे करूँ."

कीर्ति बोली "वो देख. वैसे आराम किया जाता है."

मैने उस तरफ देखा जिस तरफ कीर्ति ने उंगली दिखाई थी. वहाँ एक लड़की की गोद मे लड़का सर रख कर लेटा हुआ था. ये देख मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "वो तो साला पागल है. इतनी सुंदर लड़की सामने है और वो आराम से आँख बाद करके लेटा हुआ है. मैं होता तो......"

इतना कह कर मैं रुक गया.

कीर्ति बोली "रुक क्यों गया. बता तू होता तो, तू क्या करता."

मैं बोला "मैं होता तो......."

ये कहकर मैने अपना बायां हाथ कीर्ति की कमर मे डाल कर उसे अपने पास खिसकाया और फिर अपने बाँये हाथ को उसकी बाहों के नीचे लगा कर अपनी तरफ खिचा तो कीर्ति की पीठ मेरे सीने से लग गयी. ऐसा करने से कीर्ति के पैर खुद ही दूसरी तरफ मूड गये. मैने उसके दोनो पैरों को पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया तो कीर्ति घूम कर मेरे सामने आ गयी. उसे कुछ समझ मे नही आ रहा था कि मैं ये क्या कर रहा हूँ पर जब मैने उसके कंधों को पकड़ कर उसकी पीठ को अपने मुड़े हुए पैरों पर टिका दिया और दोनो पैरों को खीच कर अपने पास किया तो, हम दोनो के चेहरे एक दूसरे के सामने थे.

अब कीर्ति की पीठ मेरे पैरो पर टिकी हुई थी और हम दोनो एक दूसरे के आमने सामने थे. मैं उसे बड़े गौर से देखने लगा. कीर्ति मेरी हरकत से हँसने लगी और मैं भी उसे देख कर मुस्कुरा रहा था. मैं प्यार से उसके बालों मे हाथ फेरने लगा. कीर्ति ने हँसते हुए कहा.

कीर्ति बोली "ये क्या तरीका था. मुझे तो पूरा गोल गोल घुमा कर रख दिया. बोल नही सकता था कि ऐसे बैठ जा."

मैं बोला "तू ही तो बोल रही थी कि रुक क्यों गया बता, तो मैने कर के बता दिया."

कीर्ति हँसने लगी. मैने उसके गालों और होंठो पर हाथ फेरते हुए कहा.

मैं बोला "तू कितनी कोमल है. तेरे ये होंठ तो और भी ज़्यादा कोमल और रसीले है."

कीर्ति बोली "बहुत बातें बनाना सीख गया है. जा मैं तुझसे बात नही करती."

ये कहते हुए उसने अपना चेहरा नीचे झुका लिया. मैने अपने हाथ से उसके चेहरे को उपर उठाया और पूछा.

मैं बोला "अब क्या हुआ. अब क्यों गुस्सा हो रही है. मेरा ऐसा करना तुझे अच्छा नही लगा क्या."

कीर्ति बोली "तू कुछ भी कर मुझे बुरा नही लगता लेकिन तू जो ज़रा ज़रा सी बात पर गुस्सा हो जाता है. ये मुझे ज़रा भी पसंद नही है."

मैं बोला "तेरे लिए ये ज़रा सी बात होगी पर मेरे बारे मे भी तो सोच. मैं ना जाने कितने दिन के लिए जा रहा हूँ और ऐसे मे तू आख़िरी समय पर बिना कुछ बताए, बिना मुझसे मिली चली गयी तो मुझे बुरा नही लगेगा क्या."

कीर्ति बोली "नही मैं चाहे कुछ भी करूँ पर तुझे बुरा नही लगना चाहिए."

मैं बोला "ये कैसे हो सकता है. मैं तेरे बिना एक पल भी नही रह सकता और तू मुझे अनदेखा करे ये तो मैं सह ही नही सकता."

कीर्ति बोली "मैं तुझे कहाँ अनदेखा कर रही थी. मैं तो जो भी कर रही थी तुझसे मिलने के लिए ही कर रही थी."

मैं बोला "मुझे बता कर भी तो ये सब कर सकती थी. क्या मैं तुझे कुछ भी करने से मना करता. सोच अगर मैं तेरे साथ ऐसा करता तो तुझे कैसा लगता."

कीर्ति बोली "देख मुझसे अपनी बराबरी मत कर. मैं एक लड़की हूँ मेरा एमोशनल होना चल जाएगा पर तू एक लड़का है तेरा इतना एमोशनल होना नही चलेगा."

मैं बोला "लड़का हूँ तो क्या हुआ. क्या मेरे पास दिल नही है. क्या मुझे दर्द नही होता. बड़ी आई समझने वाली. जब किसी दिन तेरी इन हरकतों से मैं मर जाउ तब बैठी मेरी लाश को समझाती रहना."

मैं अपनी धुन मे बक ही रहा था कि तभी चटाआआअक की आवाज़ से मेरी बोलती बंद हो गयी और मेरे हाथ अपने गाल पर चले गये. ये कीर्ति के मेरे गाल पर पड़े तमाचे की आवाज़ थी. जो उसने अभी अभी मेरे गाल पर जड़ा था. मैं अपने गाल पर हाथ रखे उसे एक टक देखे ही जा रहा था. मेरे गाल पर चाँटा मारने के साथ ही उसकी आँख भी भर आई थी. उसने अपने भरे हुए गले से कहा.

कीर्ति बोली "मैं तुझसे बोल चुकी हूँ. मेरे सामने कभी अपने मरने की बात मत किया कर फिर भी तू बार बार उसी बात को करता है. तुझे बहुत मज़ा आता है मुझे रुलाने मे."

मगर चोट तो मेरे दिल पर भी लगी थी. मैं ना जाने कितनी देर उसके लिए तडपा था. मैं कैसे भूल जाता उस सब को, भले ही उसने वो सब मेरी खुशी के लिए ही किया हो. मैने उसका हाथ अपने हाथ मे पकड़ा और खुद उसके हाथों से अपने गाल पर थप्पड़ मारते हुए कहा.

मैं बोला "तुझे मारना है तू मुझे और मार, लेकिन तू मारते मारते थक जाएगी पर मैं कहते कहते नही थकुन्गा कि, अब यदि तूने कभी मेरे साथ ऐसा किया. चाहे वो मेरी खुशी के लिए ही क्यों ना हो. मैं तुझे बिना कुछ कहने का मौका दिए खुद को ख़तम कर दूँगा. तू नही जानती इस 1 घंटे मे मैने तुझे कितना नही कोसा. मन ही मन मैं कितना जला हूँ, तुझे इस बात का ज़रा भी अहसास नही है."

कीर्ति की आँखों मे अभी भी आँसू थे पर उनमे अब खुशी की चमक थी. उसने अपना हाथ छुड़ाया और मुझे अपने गले से लगाते हुए कहा.

कीर्ति बोली "मैं नही जानती थी कि, तू मुझे इतना प्यार करता है. मैं कसम खाकर कहती हूँ. आज के बाद कभी ऐसा नही करूगी. जो भी करूगी, तुझे बता कर ही करूगी पर तू भी मेरी कसम खाकर बोल कि आज के बाद तू कभी मरने की बात नही करेगा."

मैं बोला "नही करूगा. कभी नही करूगा लेकिन तू अच्छे से जानती है मैं कितना एमोशनल हूँ. मेरे लिए छोटी से छोटी बात बहुत बड़ी हो जाती है. खास कर वो बात जो मेरे दिल से जुड़ी हो. जब मैने तुझसे कुछ नही कहा था, तब मैं तेरे बिना नही रह पाया तो फिर आज जब सब कुछ तुझे बता दिया है तो, फिर तेरे बिना कैसे रह सकता हूँ. क्या तुझे अब भी लगता है कि मैं ग़लत हूँ."

कीर्ति ने बड़ी मासूमियत से अपने दोनो कान पकड़े और कहा.

कीर्ति बोली "सॉरी बाबा. ये देख मैने अपने कान पकड़ लिए अब तो माफ़ कर दे."

उसकी ये हरकत देख कर मैं अपनी हँसी नही रोक सका. मैने उसके हाथ उसके कानो से अलग कर कहा.

मैं बोला "चल अब अपनी नौटंकी बंद कर और ये बता कि, ये सब क्या है और तूने सबको क्या घुट्टी पिला दी जो किसी ने तुझसे कुछ नही पूछा कि तू कहाँ जा रही है और ये शिल्पा वाला क्या चक्कर है."

कीर्ति बोली "अरे बस कर एक ही सांस मे सब पूछे जा रहा है. एक एक कर सब बताती हूँ."

मैं बोला "तो शुरू कर."

कीर्ति बोली "कल जब मैं आई तो तेरे पास आई थी कि तुझसे मिल कर वापस चली जाउन्गी. मगर जब तूने दरवाजा नही खोला तो मैं नीचे ही बैठी रही पर तू नीचे नही आया तो मौसी ने मुझे बताया कि तू आज नीचे नही आएगा और तूने किसी को भी कमरे मे आने से मना किया है. तब मैने घर मे बोल दिया कि आज मैं मौसी के घर ही रुक रही हूँ. रात को मौसा जी ने मुझे तुम लोगों के रिज़र्वेशन टिकेट्स दिए थे. जो मेरे पास है तेरे सिवा सबको पता था."

"सुबह जब तू मेहुल को लेकर बाहर आया था. तब मैं भी तेरे पीछे आई थी और तेरी बात सुनी थी. मुझे तेरा शिल्पा के लिए ये सब सोचना अच्छा नही लगा क्योंकि मुझे नितिका ने बताया था कि, उस दिन जब तू आंटी के हाथ से खाना खा रहा था तो शिल्पा ने क्या कहा था. मैं समझ गयी थी कि उसके मन मे तेरे लिए जलन है. मेरे मन मे उसको तेरे सामने झुकाने का ख़याल आया, पर तू इस सब के लिए कभी तैयार नही होता इसलिए मैने तुझे नही बताया."

"जब तू नीचे समान को पॅक करने की तैयारी कर रहा था तो तूने अमि निमी को बॅग लेने कमरे मे भेजा तब मैं उपर अपने कमरे से आ रही थी तो देखा कि उसने तेरा पूरा डियो ख़तम कर दिया, और फिर जब तू उपर जाकर अपना समान पॅक करने लगा. तब मैने नितिका को फोन लगा कर कहा देख शिल्पा पुन्नू के बारे मे कितना ग़लत सोचती है. आज पुन्नू ने मेहुल को उस से मिलने के लिए भेजा है और अब मुझे भेज रहा है कि, मैं शिल्पा को लेकर मेहुल के घर आ जाउ. तब नितिका बोली कि हमे शिल्पा को सबक सिखाना चाहिए, तो मैने कहा पुन्नू गुस्सा करेगा. तब नितिका बोली तू ऐसा कर उसे पहले मेरे घर लेकर आ बाकी मैं संभाल लुगी."

"इसके बाद मैने मौसी से नितिका के यहाँ का बोल कर शिल्पा के घर चली गयी. मैने शिल्पा से कहा कि मुझे तूने लेने के लिए भेजा है क्योंकि तू चाहता है कि ऐसे समय पर तू मेहुल के मम्मी पापा के पास रहे और इसके बाद मैं उसे नितिका के घर लेकर गयी और फिर नितिका ने उसे बहुत खरी खोटी सुनाई. जिसके बाद उसे उसकी ग़लती का अहसास हुआ और वो तुझसे माफी माँगने की बात करने लगी. तब उसे नितिका ने ही कहा कि तू अभी मेहुल के घर आएगा. हम लोग तेरे माफी माँगने का जुगाड़ कर देंगे बाकी तेरे उपर है."

"फिर हम लोग मेहुल के घर पहुचे और तेरे आने के बाद हम लोगों ने शिल्पा से तुझसे माफी मगवाई फिर मैने आंटी से कहा कि टिकेट्स तो मैं घर मे ही भूल आई हूँ. मैं टिकेट्स लेने घर जा रही हूँ और उन्हे लेकर सीधे स्टेशन ही पहुच जाउन्गी. बस इतनी सी कहानी है."

मैं बोला "तो फिर तूने मेहुल को क्या लाकर दिया था."

कीर्ति हँसती हुई बोली "क्यों तुझे जलन हो रही है क्या."

मैं बोला "मुझे क्यों जलन होगी. मैं तो यू ही पूछ रहा हूँ."

कीर्ति बोली "चल अब तुझे परेशान नही करूगी. वो तेरा डियो ख़तम हो गया था. उसे खरीदने गयी थी तो वही से पाउडर, क्रीम, फेस वॉश, रूमाल और मोबाइल रीचार्ज कूपन ले आई. नही तो तू वहाँ ऐसे ही घूमता रहता."

मैं बोला "इस सब की क्या ज़रूरत थी. मैं वहाँ कौन सा घूमने जा रहा हूँ. अब यदि ऐसे बन ठन कर रहूँगा तो हो सकता है क़ि मुझे कोई लड़की पसंद कर ले. फिर तो तेरी हो गयी छुट्टी."

कीर्ति बोली "मैने कहा कि तुझे कोई लड़की पसंद ना करे. मैं भी तो यही चाहती हूँ कि तू वहाँ बन ठन के रहे."

मैं बोला "और मान ले मुझे कोई लड़की पसंद आ गयी. फिर क्या करेगी."

कीर्ति बोली "जिसमे तेरी खुशी है. उसमे मेरी खुशी है पर मैं जानती हूँ ऐसा नही होगा."

मैं बोला "ये तू इतना यकीन से कैसे कह सकती है."

कीर्ति बोली "जिसमे एक दूसरे के लिए विस्वास नही है. वो कुछ भी हो पर मेरी नज़र मे प्यार नही. मुझे अपने प्यार पर खुद से भी ज़्यादा विस्वास है और फिर मैं तो खुद तुझ से बोल चुकी हूँ कि, तुझे जो भी लड़की पसंद हो. तू उस से शादी कर लेना. मुझे कोई परेसानी नही. मुझे सिर्फ़ तेरा प्यार चाहिए और कुछ नही चाहिए."

कीर्ति की बात सुनकर मैने कीर्ति को अपने पास खींचा और उसे अपनी बाँहों मे भर लिया. हम दोनो एक दूसरे को अपनी बाँहों मे यूँ जकड़ते चले गये. जैसे एक दूसरे के शरीर मे समा जाना चाहते हो. हम दोनो खामोश थे. मगर ना हमारी साँसे खामोश थी और ना ही हमारे दिल की धड़कने खामोश थी. हम एक दूसरे की बाँहों मे सब कुछ भूल गये थे. हम एक दूसरे मे इतने समा गये थे कि कीर्ति की धड़कनो की बढ़ती रफ़्तार मुझे और मेरी धड़कनो की बढ़ती रफ़्तार उसे सुनाई दे रही थी. जिसे सुनकर हम एक दूसरे को और भीचते जा रहे थे और हमारी धड़कनो की रफ़्तार के साथ हमारी मदहोशी भी बढ़ती जा रही थी.

इस मदहोशी के आलम मे.. मैं अपने गालों को.. कीर्ति के गालों से रगड़ने लगा.. उसके बालों मे से आने वाली.. मोहक सुंगंध.. और उसके बदन की महक.. मेरी नाक के अंदर समा कर.. मुझे और भी.. मदहोश कर रही थी..

मैं अपनी नाक को.. उसकी गर्दन पर.. और अपने होठों को.. उसके गालों पर रगड़ने लगा.. कीर्ति के मूह से उन्न्ह उन्न्ह की.. आवाज़ निकल.. रही थी.. मैने उसका चेहरा.. अपने सामने किया.. और उसे देखा.. उसकी आँखे बंद थी.. उस के उपर इस मदहोशी का शुरूर.. बहुत ज़्यादा चढ़ा हुआ था.. मैं उसके चेहरे का भोलापन.. देखता ही रह गया..

जब कीर्ति ने.. मुझे कुछ करते नही देखा.. तब उसने पल भर के लिए.. अपनी नशीली.. आँखो को खोल कर.. मुझे देखा.. और फिर अपनी आँखे बंद कर ली.. मगर इस एक पल मे ही.. मुझे उसकी आँखों मे.. एक अलग ही नशे का शुरूर नज़र आया.. उसकी नशीली आँखों को देख कर.. मुझे भी एक अलग से जुनून ने घेर लिया..

मैं उसके चेहरे को.. अपने होंठों के करीब लाया.. फिर मैने अपने होंठों को.. उसके गुलाबी.. रसीले.. होंठो पर रख.. उनका रस चूसने लगा.. उसकी मदहोशी ने.. मेरे इस अहसास को.. और भी मधुर बना दिया.. मैं मस्ती मे उसके होंठ चूसे जा रहा था.. कीर्ति भी मदहोशी की हालत मे मेरे सीने पर हाथ फेर रही थी.. मैं इन कुछ पलों के चुंबन से.. स्वर्ग मे पहुच गया था..

कीर्ति के अधरों का मर्दन करते करते भी.. मेरे अंदर की प्यास शांत नही हुई थी.. मेरे हाथ खुद ही.. उसके कुरती से छुपे स्तनों पर जा पहुचे.. मैं उसके स्तनों को आहिस्ता आहिस्ता.. अपने हाथों से मसल्ने लगा.. मेरे ऐसा करने से कीर्ति के मूह से.. कामुक आवाज़े निकलने लगी.. जिन्हे सुनकर मैं और भी.. सख्ती से उन्हे मसलने लगा.. लेकिन वो मेरे हाथों से उसके स्तनों पर.. काम-उतेजक प्रहारों को ज़्यादा देर तक नही सह पाई.. उसने नशे के शुरूर की हालत मे.. अपने शरीर का सारा भार.. मेरी बाँहों मे छोड़ दिया.. और इस मदहोशी की हालत मे.. किसी शराबी की तरह.. मेरी बाँहों मे झूल गयी..

मैने चुंबन को रोक दिया.. और उसको देखा.. वो बेसूध सी मेरी बाँहो मे थी.. अब मुझसे कीर्ति की ये मदहोशी.. देखी नही जा रही थी.. या यूँ कहा जाए कि.. उसकी ऐसी हालत देख कर.. मैं डर गया था.. मेरा मन व्याकुल हो उठा.. मेरी तेज चलती धड़कने.. कीर्ति का ये रूप देख कर.. खुद ही थम गयी थी.. ऐसा क्या हो गया उसे.. मैं इसके जबाब से अंजान था..

मैं नही जानता था कि.. ये कामदेव का छोड़ा गया.. काम बान है.. जिसकी आग मे कीर्ति जल रही थी.. मेरी समझ मे कुछ नही आ रहा था.. मैने उसे अपनी बाहों मे समेट लिया.. और बड़े ही प्यार से उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा.. मगर वो कुछ नही बोल रही थी.. वो बिकुल निढाल सी.. मेरी बाहों मे पड़ी रही.. मैने उसके सर को अपनी गोद मे रखा.. और अपने हाथों से.. उसके गालों को थपथपाने लगा..

मेरा ऐसा करने से.. कीर्ति अपनी आँखों को खोलने की कोशिश करने लगी.. लेकिन उसकी पलकें तो हिल रही थी.. पर आँखे नही खुल रही थी.. उसके होंठ ऐसे फड्फाडा रहे थे.. जैसे कुछ बोलना चाह रहे हो.. मगर बहुत कोसिस करने के बाद भी बोल ना पा रहे हो.. जब मेरे कुछ समझ ना आया तो.. मैं बस प्यार से उसके बालों पर हाथ फेरने लगा.. मैं अंदर ही अंदर खुद से नाराज़ भी था.. क्योंकि उसकी इस हालत का ज़िम्मेदार.. मैं खुद था.. मगर मन ही मन बस उसके जल्दी से ठीक होने की दुआ भी माँग रहा था..
Reply
09-09-2020, 01:04 PM,
#53
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरी दुआ काम कर गयी.. कीर्ति के होंठ धीरे धीरे यूँ चलने लगे.. जैसे कि वो बहुत प्यासी हो.. और अपने होंठो से कुछ चूस रही हो.. उसे ऐसा करते देख मेरे चेहरे पर कुछ रोनक आई.. मैने उसे वापस अपने सीने से लगा लिया.. और उसकी पीठ पर बड़े धीरे धीरे हाथ फेरने लगा.. कुछ देर बाद वो ठीक हुई तो.. उसने मुझे कस कर दबोच लिया.. उसे ठीक देख मैने राहत की सांस ली..

मैं :- "तुम्हे क्या हो गया था.. तुमने तो मुझे डरा ही दिया था."

कीर्ति :- "मुझे कुछ मालूम नही.. मुझे क्या हुआ था.. बस इतना याद है कि.. मुझे तुम पर बहुत प्यार आ रहा था.."

मैं :- "चल अब चलते है.. बहुत देर हो गयी है.."

कीर्ति :- "नही.. पहले मुझे एक क़िस्सी चाहिए.."

मैं :- "तुम्हारी क़िस्सी के चक्कर मे ही.. ये सब हुआ है.. अब कोई क़िस्सी विस्सि नही.. "

कीर्ति :- "मुझे बेवकूफ़ मत समझ.. ये सब मेरे क़िस्सी के चक्कर मे नही.. बल्कि तुम्हारी ग़लत हरकत की वजह से हुआ है.."

मैं :- "ऐसी क्या ग़लत हरकत की मैने.. सिर्फ़ किस ही तो ले रहा था.."

कीर्ति :- "तो सिर्फ़ किस ही लेना था.. तुमसे इनको दबाने को किसने कहा था.."

मैं :- "मेरा मन करता है.. उनको दबाने का.. मुझे अच्छा लगता है.. इसलिए दबाता हूँ.."

कीर्ति :- "मुझे दर्द होता होगा.. तुम्हे ये नही लगता.."

मैं :- "अच्छा अब ना तो उन्हे दबाउन्गा.. और ना ही तुम्हे किस करूगा.. अब तुम चलो.."

कीर्ति :- "किस तो तुम्हे करना होगा.. हाँ मगर अब मैं इन्हे तुमको नही दबाने दुगी.."

मैं :- "जाओ मैं नही करता किस.. क्या कर लोगि तुम.. क्या कोई ज़बरदस्ती है.."

कीर्ति :- "बच्चू.. मैं क्या कर सकती हूँ.. ये अब तुम भी देख लो.."

कीर्ति मेरे होंठों को चूमने आगे बढ़ी.. मगर मैं उस से बचने का नाटक करने लगा.. उसने मेरे दोनो हाथ पकड़ लिए.. और अपने होंठो को.. मेरे होंठों पर रखने की कोशिस करने लगी.. लेकिन मैं उसे ऐसा.. ना करने देने के लिए.. अपने चेहरे को इधर उधर घुमाने लगा.. मेरे ऐसा करने से.. उसके होंठ कभी मेरे इस गाल को चूमते.. तो कभी उस गाल को चूमते..

जब वो चाह कर भी.. मेरे होंठों पर.. किस नही कर पाई तो.. फिर वो अपने दोनो पैर.. मेरे अगल बगल कर.. मेरी गोद मे बैठ गयी.. उसके बाद उसने अपने दोनो हाथों से.. मेरे हाथ पकड़े पकड़े.. अपने गालों को.. मेरे गालों से सटा दिया.. और धीरे धीरे अपने होंठो को.. मेरे होंठो की तरफ बढ़ाने लगी.. आख़िर मे जीत कीर्ति की ही हुई..

उसने अपने होंठ मेरे होंठो पर रख दिए.. और उन्हे चूसने लगी.. कुछ देर बाद मैं भी उसके होंठो को चूसने लगा.. अब हम दोनो एक दूसरे को पकड़े.. बस चूमे जा रहे थे.. हम बहुत देर तक.. यूँ ही इक दूसरे को किस करते रहे.. और फिर ये हसीन लम्हा.. मेरी जिंदगी का.. वो यादगार लम्हा बन गया.. जो हमेशा के लिए.. मेरी आँखों मे क़ैद होकर रह गया..
_________________

किस कर लेने के बाद कीर्ति हँसने लगी. मैने उसे झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा.

मैं बोला "तू अभी यहाँ बैठी हँसती रह. बाद मे जब सब लोग तुझसे टिकेट्स के बारे मे पूछेगे, तब क्या करेगी."

कीर्ति बोली "तू तो सच मे बुद्धू का बुद्धू ही है. अरे मैं सच मे टिकेट्स थोड़ी भूली हूँ. टिकेट्स तो मेरी स्कूटी मे रखी है."

मैं बोला "तब तो तूने ट्रेन भी यहीं बुलवा ली होगी, या फिर उसके लिए हमें स्टेशन जाना होगा."

कीर्ति बोली "मैं कब स्टेशन चलने से मना कर रही हू. तू ही यहाँ आराम से बैठा बेकार की बात कर रहा है. मैं तो कब से चलने के लिए कह रही हूँ."

ये सुनकर मैने उसकी तरफ गुस्से से देखा तो वो हँसने लगी. फिर वो खड़ी हुई और हाथ पकड़ कर मुझे उठाने लगी. कुछ देर बाद हम लोग पार्क से स्टेशन पहुच गये. सब लोग आ चुके थे. बस हम दोनो ही आख़िरी मे आए थे. मैने वहाँ पहुच कर मेहुल से पूछा.

मैं बोला "क्या हुआ.? तू तो कह रहा था कि ट्रेन का टाइम 6 बजे का है. फिर ट्रेन अभी तक क्यों नही लगी."

मेहुल बोला "ट्रेन का टाइम 7 बजे का है. मुझे मालूम नही था कि ट्रेन का टाइम टॅबिल बदल चुका है."

कीर्ति बोली "मैने भी अभी ही टिकेट पर देखा. तब मुझे पता चला कि ट्रेन का टाइम 7 बजे का है."

ये कहते हुए उसने मेहुल को टिकेट्स पकड़ा दिए. लेकिन उसकी बात सुनकर मैं उसकी तरफ देखने लगा. मुझे अपनी तरफ घूरते देख कर कीर्ति ने पहले सबको देखा कि किसी का ध्यान उसकी तरफ तो नही है और जब उसे लगा कि कोई उसे नही देख रहा तो उसने धीरे से मुझे आँख मार दी. उसकी इस हरकत से मुझे भी हँसी आ गयी. उसने फिर सब से कहा.

कीर्ति बोली "आप लोग बैठो. हम कॅंटीन से चाय लेकर आते है."

फिर वो बिना किसी के जबाब को सुने ही मेरा हाथ खिचते हुए मुझे वहाँ से अपने साथ ले आई. मैने उस से कहा.

मैं बोला "तो तुझे पहले से मालूम था कि ट्रेन का टाइम 7 बजे से है."

कीर्ति बोली "मालूम था तभी तो तेरे साथ इतनी देर तक पार्क मे बैठी रही. नही तो तुझे पहले ही यहाँ लेकर ना आ जाती."

मैं बोला "पर इन सबको क्यों नही बताया."

कीर्ति बोली "यदि बता देती तो हो सकता था कि मैं तेरे साथ इतना वक्त ही ना बिता पाती."

मैं बोला "तो तूने सबको जानबूझ कर परेशान किया है."

कीर्ति बोली "तेरे जाने के बाद जो परेशानी मुझे होने वाली है. उसके सामने तो इन लोगों की, ये परेशानी कुछ भी नही है. अब जब मैं परेशान होने वाली हूँ तो थोड़ा सा इनको परेशान कर लिया तो क्या हो गया."

मैं बोला "तू कभी नही सुधर सकती."

कीर्ति बोली "तू सच मे चाहता है कि मैं सुधर जाउ."

मैं कुछ नही बोला क्योंकि उसकी इस बात का मेरे पास कोई जबाब ही नही था. उसने फिर पूछा.

कीर्ति बोली "बोल ना. क्या तू सच मे चाहता है मैं सुधर जाउ."

मैं बोला "नही. तू जैसी है. मेरे लिए वैसी ही अच्छी है."

मेरी बात सुनकर कीर्ति हँसने लगी और फिर हम लोग कुछ देर बाद चाय लेकर वापस सबके पास आ गये. लेकिन सबको चाय देने के बाद कीर्ति मुझे फिर दूसरी तरफ खीच कर ले गयी. मैने कहा.

मैं बोला "ये क्या कर रही है. सब देख रहे हैं ना."

कीर्ति बोली "क्या मैं तुझे पकड़ कर किस कर रही हूँ. जो तुझे सबके देखने का डर लग रहा है. वो लोग देखेगे भी तो यही कहेगे, कि देख लो दोनो भाई बहन मे कितना प्यार है."

मैं बोला "क्या बकवास कर रही है. दोबारा मेरे सामने ऐसी बात मत करना."

कीर्ति बोली "अच्छा बाबा नही करूगी. पर अब तू अपना मूह मत फूला लेना. नही तो मैं रो रो कर पागल हो जाउन्गी."

मैं बोला "चल ठीक है पर अब हमें सब के साथ ही चल कर खड़े होना चाहिए."

कीर्ति बोली "नही जब तक ट्रेन नही आ जाती. तू मेरे पास से एक पल के लिए भी हिलेगा नही. जिसे बात करनी होगी वो यहीं आकर कर लेगा."

मैं बोला "इतनी देर मेरे साथ अकेली रही फिर भी तेरा दिल नही भरा."

कीर्ति बोली "दिल भरने की बात ही मत कर. यदि मेरा बस चलता तो मैं तेरे साथ साथ ही मुंबई चली जाती."

मैं बोला "मन तो मेरा भी तुझसे दूर जाने का नही है पर क्या करूँ जाना भी तो ज़रूरी है."

कीर्ति बोली "ज़्यादा एमोशनल मत हो. मैं तो मज़ाक कर रही थी. अब तेरे जाने से मुझे कुछ दिन आराम मिल जाएगा. रोज रोज तुझे परेशान करने के तरीके जो नही ढूँढने पड़ेंगे. इस दिमाग़ को भी तो कभी कभी काम से आराम देना चाहिए."

मैं बोला "तो तुझे मेरे जाने से खुशी हो रही है ना."

कीर्ति बोली "खुशी तो नही हो रही है मगर दुख भी नही हो रहा है. अब तू जाने से पहले जाने की बात करना बंद कर नही तो मैं सच मे रो दूँगी."

उसकी आँखों मे सच मूच ही आँसू झिलमिला गये. मेरी आँखों मे भी नमी छाने लगी तो मैने अपने चेहरे को दूसरी तरफ घुमा लिया. कुछ देर कीर्ति चुप रही लेकिन मुझे यू उदास देख कर उसने फिर मुस्कुराते हुए कहा.

कीर्ति बोली "अच्छा ये बता. मेरे लिए मुंबई से क्या लाएगा."

मैं बोला "तू बोल तुझे क्या चाहिए."

कीर्ति बोली "मैं क्या बोलू. मैं मुंबई थोड़ी गयी हूँ जो मुझे मालूम हो कि मुंबई मे क्या अलग मिलता है."

मैं बोला "गया तो मैं भी नही हूँ. फिर भी तेरे लिए वहाँ से कोई अच्छी सी चीज़ ले आउन्गा पर इसके बदले तुझे मेरा एक काम करना पड़ेगा."

कीर्ति बोली "तू कुछ ना भी लाए. तब भी मैं तेरा काम कर दूँगी. तू बता क्या काम करना है."

मैं बोला "बड़ी आई बिना कुछ लिए काम करने वाली. भूल गयी कि तूने घर मे रुकने के लिए कितनी शर्त रखी है."

कीर्ति बोली "तुझे क्या लगता है कि तू यदि मेरी शर्त नही मानता तो क्या मैं घर मे नही रुकती. मैं घर मे सिर्फ़ अपनी शर्तों की वजह से रुक रही हूँ."

मैं बोला "नही, मुझे ऐसा कुछ भी नही लगता. मैं जानता हूँ कि ये सब सिर्फ़ तेरी शरारत थी और मैं भी तेरी इन शरारत का मज़ा ही ले रहा था."

कीर्ति बोली "तो फिर अपना काम बता. क्या काम करना है मुझे."

मैं बोला "जब तक मैं वापस ना आ जाउ. तुझे मेरी जान का ख़याल रखना है. उसे समय पर खिलना, पिलाना, सुलाना है और कभी रोने नही देना है."

कीर्ति बोली "किसे.? निमी को.?"

मैं बोला "नही. तुझको."

ये सुनकर कीर्ति की आँखों मे फिर आँसू आ गये और वो बिना किसी की परवाह किए, मेरे सीने से लिपट गयी. इस बार मैने भी किसी की कोई परवाह नही की और उसके सर पर हाथ फेरने लगा. लेकिन कीर्ति को इस तरह मुझसे लिपटा देख कर छोटी माँ आ गयी. उनने कीर्ति के सर पर हाथ फेरा और कहा.

छोटी माँ बोली "पगली रोती क्यों है. कुछ दिनो की ही तो बात है."

मगर छोटी माँ के ऐसा कहने का असर कीर्ति पर उल्टा ही पड़ा. अभी जहाँ उसकी आँखों मे आँसू झिलमिला रहे थे वही अब वहाँ से आँसुओं की नादिया बह निकली. तभी बाकी लोग भी वहीं आ गये. आंटी ने कीर्ति को मेरे सीने से अलग कर अपने सीने से लगा लिया और उसके सर पर हाथ फेरती हुई समझाने लगी.

आंटी बोली "अरे बेटी, दिन भर से तो तू हम सब को समझा रही थी और अब खुद ना समझ बन रही है. आज ये सब कुछ जो भी हो पा रहा है. उस सब की वजह तू ही तो है. यदि तू ना होती तो शायद ये सब भी नही हो पाता. तू तो हम सब की ताक़त है, हिम्मत है. यदि तू ही ऐसा करेगी तो फिर सोच बाकी सब का क्या होगा."

आंटी की बातों को सुनकर कीर्ति ने रोना बंद कर दिया. कुछ देर बाद वो पूरी तरह से शांत हो चुकी थी पर अब उसके चेहरे से मुस्कुराहट गायब हो चुकी थी. उसका चेहरा किसी पत्थर की तरह सख़्त हो गया था, जिसका कारण शायद वहाँ सब की मौजूदगी थी. लेकिन उसकी आँखो मे आँसुओं की झिलमिलाहट साफ नज़र आ रही थी. जिसे देख कर साफ लग रहा था कि वो बहुत कोशिस कर उन्हे बहने से रोक रही है.

इसके बाद कीर्ति एक किनारे जो बैठी तो फिर उधर से उठी नही. उसे देख देख कर मेरा भी दिल रो रहा था. लेकिन मैं चाह कर भी कुछ कर नही सकता. मैं उसे समझाता भी तो कैसे. जब मैं खुद अपने आपको ही नही समझा पा रहा था. फिर भी मैं उसके पास ही जाकर खड़ा हो गया. ना उसने कुछ बोला और ना ही मैने कुछ बोला.

कुछ देर बाद ट्रेन आ गयी. सब ट्रेन मे समान रखने लगे. लेकिन मैं वही पत्थर का बुत बने खड़ा रहा. जब कीर्ति ने मुझे वहाँ से हिलते ना देखा तो उसने दोनो हाथ अपने चेहरे पर फेरे और अपने आपको मजबूत करके खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर कहा.

कीर्ति बोली "चलो ट्रेन आ गयी है. चल कर ट्रेन मे बैठो. मैं ठीक हूँ."

मैं बोला "मेरा काम याद है ना. मेरा काम ज़रूर पूरा करना."

ये कहकर हम दोनो ट्रेन के पास आ गये. मैने छोटी माँ और आंटी के पैर छुये और ट्रेन मे चढ़ गया. कुछ देर बाद ट्रेन छूटी और सब हम देख कर हाथ हिलाते रहे. मैं भी तब तक हाथ हिलाता रहा, जब तक सब नज़र आना बंद नही हो गये. उसके बाद मैं काफ़ी देर तक वही खड़े ट्रेन को अपने शहर से बाहर जाते देखता रहा. मेरी आँखों मे बार बार छोटी माँ, आंटी, अमि, निमी, शिल्पा, नितिका का चेहरा आ रहा था. जो हमें वहाँ छोड़ने आए थे. मगर जहाँ जाकर मेरी नज़र रुक जा रही थी. वो था कीर्ति का चेहरा. जो मुझे बार बार उदास कर जा रहा था. मुझे लग रहा था कि, मैं अभी ट्रेन से उतर कर उसके पास पहुच जाउ.

कीर्ति ने भी मुहे जाते देख कर हाथ हिलाया था. उसके होंठों पर उस समय एक मुस्कान भी थी मगर उसकी इस मुस्कान का दर्द उसकी बुझी हुई आँखे कह रही थी. जिनमे आँसुओं की नमी मुझे अभी भी महसूस हो रही थी. मेरी ट्रेन रफ़्तार पकड़ चुकी थी और मेन गेट पर ही खड़े खड़े अपनी आँखों के सामने से गुज़रते अपने शहर की गलियों, मकानो और लोगों को देख रहा था. ये सब देख कर मुझे लग रहा था कि ये सब मेरा है जो मुझसे छूट रहा है.

बस मैं इसी सोच मे गुम था और फिर मेरे शहर के गलियों, मकानो और लोगों को छोड़ कर ट्रेन खेत खलियानो और बड़े बड़े मैदानो से गुजरने लगी. मेरा शहर अब बहुत पीछे छूट चुका था मगर मेरा उदास मन अब भी उदास था. इस बीच मेहुल मुझे दो तीन बार बुलाने आया लेकिन मैं कहता रहा तू चल मैं आता हूँ. मैं अपने शहर की सीमा से बाहर निकलने के पहले खुद को उधर से हटाने की ताक़त ही नही जुटा पा रहा था.

मगर अब तो मेरे शहर की सीमा भी पीछे छूट चुकी थी फिर भी मैं ना जाने किस जंजीर से बँधा खुद को वहाँ से अलग नही कर पा रहा था. मुझे वहाँ खड़े 1 घंटे से ज़्यादा का समय हो चुका था. मेहुल फिर मेरे पास आया और कहने लगा.

मेहुल बोला "कब तक यूँ ही खड़ा रहेगा. मुझे मालूम है तू पहली बार सबसे दूर हो रहा है इसलिए तुझे अच्छा नही लग रहा. लेकिन पहली पहली बार सबसे दूर होने मे ऐसा ही लगता है. अब चल और चल कर हमारे साथ बैठ."

मैं बोला "तू चल मैं अभी आता हूँ."

मेहुल बोला "पिछले 1 घंटे मे मैं तुझसे ये बात 10 बार सुन चुका हूँ. अब मैं तेरी एक भी नही सुनुगा. तू चल मेरे साथ."

मैं बोला "तुझे मेरी इतनी ही फिकर है तो तू भी मेरे साथ इधर ही खड़ा हो जा. मुझे क्यों वहाँ बुला रहा है."

मेहुल बोला "अबे तू फिर बहकी बहकी बात करने लगा. मैं तो इसलिए बोल रहा हूँ कि अब अगला स्टेशन आने वाला है. लोग चडेगे उतरेगे तो तेरे खड़े रहने से उन्हे परेसानी होगी."

मैं बोला "चल ठीक है अगला स्टेटन आने दे. मैं अलग हो जाउन्गा."

मेहुल बोला "जैसी तेरी मर्ज़ी. तेरे को समझाना कीर्ति के सिवा किसी के बस की बात नही है. मैं तो चला. तू जब खड़ा खड़ा थक जाए तो आ जाना."
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09-09-2020, 01:04 PM,
#54
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
ये बोल कर मेहुल तो चला गया मगर मेरे जले मे नमक छिड़क गया. मैं फिर कीर्ति के बारे मे सोचने लगा कि अब वो क्या कर रही होगी. उसका उदास चेहरा अब ठीक हुआ होगा या नही. तभी अगला स्टेशन आ गया. मैं ट्रेन से नीचे उतर कर प्लटफार्म पर आ गया. थोड़ी देर बाद मेहुल भी ट्रेन से उतर आया. उसने चाय का पूछा तो मैने मना कर दिया फिर वो अपने और अंकल के लिए चाय लेकर वापस ट्रेन मे चढ़ गया.

तभी मेरा मोबाइल बजने लगा. मैने देखा कीर्ति का फोन आ रहा था. मैने तुरंत कॉल उठाया.

मैं बोला "तू घर पहुच गयी."

कीर्ति बोली "मैं तो कब की घर पहुच गयी हूँ. तुझे कॉल लगा रही थी पर कॉल ही नही लग रहा था. शायद नेटवर्क नही मिल रहा था."

मैं बोला "हाँ ऐसा ही होगा. ट्रेन मे था ना इसलिए नेटवर्क नही मिल रहे होंगे. अभी एक स्टेशन आया है तभी नेटवर्क मिला होगा."

कीर्ति बोली "तूने कुछ खाया पिया या नही."

मैं बोला "नही मेरा मन नही है."

कीर्ति बोली "तू इतना उदास क्यों है. देख जिस काम के लिए जा रहा है उसकी चिंता कर. मेरे या किसी के बारे मे चिंता करने की कोई ज़रूरत नही है. तूने बोला है ना कि मैं तेरी जान का ख़याल रखू, तो मैं तेरी जान का ख़याल रख रही हूँ. मगर तू यदि मेरी जान को इस तरह उदास रखेगा तो फिर मैं भी तेरी जान को खुश नही रख सकुगी."

मैं बोला "नही ऐसा मत करना. मैं तेरी जान का अब पूरा ख़याल रखुगा पर तू मेरी जान को ज़रा भी उदास मत होने देना. वरना मैं यहा कुछ भी नही कर पाउन्गा."

कीर्ति बोली "अब आया ना रास्ते पर. अब बेकार की बात बंद कर और जल्दी से कुछ खा ले."

मैं बोला "अभी भूक नही है, बाद मे खा लूँगा."

कीर्ति बोली "तू फिर शुरू हो गया ना. देख यदि तू कुछ नही खाएगा तो मैं भी कुछ नही खाउन्गी. अब ये तेरे उपर है कि मैं कुछ खाऊ या ना खाऊ."

मैं बोला "तू बेकार की ज़िद कर रही है. मुझे सच मे भूक नही है. जैसे ही मुझे भूक लगेगी मैं खा लूँगा. मगर तू बेकार मे खाना पीना बंद मत करना. तुझे तो मालूम है कि मैं देर से खाना ख़ाता हूँ."

कीर्ति बोली "मुझे सब मालूम है पर जब तक तू मेरे सामने नही है तब तक तुझे जल्दी खाना खाना पड़ेगा. तभी मैं खाना खाउन्गि. अब तुझे मालूम है कि यहा सब रात को 9:30 बजे के बाद खाना खाने बैठते है इसलिए अब से तू 9:30 बजे के पहले खाना खाएगा और फिर मुझे बताएगा कि तूने खाना खा लिया है तभी मैं खाना खाउन्गि."

मैं बोला "पर तू समझती क्यों नही है. अभी मैं ट्रेन मे हूँ और यहाँ सिग्नल भी नही मिल रहे है. ऐसे मे यदि मैं चाहूं भी तो तुझे कॉल नही कर सकता. अब यदि मैं खाना खा भी लेता हूँ तो तुझे कैसे बताउन्गा कि मैने खाना खा लिया है. मैं 9:30 बजे के पहले खाना ज़रूर खा लुगा पर तू मेरे बताने तक रुकने की ज़िद मत कर."

कीर्ति बोली "ठीक है लेकिन अभी तू स्टेशन पर है तो एक कप चाय ले और मेरे सामने पी तभी मेरा दिल कुछ खाने का करेगा नही तो मैं चाहते हुए भी कुछ नही खा पाउन्गी."

मैं बोला "ठीक है."

ये बोल कर मैने तुरंत एक टी-स्टाल से एक कप चाय ली और कीर्ति से बात करते हुए चाय पीने लगा.

कीर्ति बोली "देख तू यहाँ किसी की भी चिंता मत करना और मेरे बारे मे भी ज़्यादा सोच कर परेशान मत होना. तेरा जब भी मुझसे बात करने का मन हो तू मुझे कॉल कर लेना. मैं अपना मोबाइल हमेशा ही अपने पास रखुगी."

मैं बोला "अच्छा, जब मेरा मन तुझसे बात करने का होगा, तो मैं तो तुझे कॉल कर लूँ और तेरा मन नही होगा तुझे मुझसे बात करने का. क्या तुझे मेरी याद नही आएगी."

कीर्ति बोली "याद तो आएगी और मन भी बहुत होगा पर अब तेरे साथ हमेशा मेहुल और अंकल होंगे. मुझे क्या पता कि तू कब अकेला है और कब नही है. इसलिए अब मैं कॉल नही करूगी. जब तुझे टाइम मिले तू खुद कॉल कर लेना. लेकिन रात मे एक बार ज़रूर कॉल कर लेना."

मैं बोला "तू कॉल ना करके मुझसे पीछा छुड़ाना चाहती है."

कीर्ति बोली "तुझसे पीछा छुड़ाना चाहती तो, तुझे कॉल करने को मना करती. मैं तो तुझे जब चाहे तब कॉल करने की छूट दे रही हूँ. जब तेरा कॉल ना उठाऊ तब बोलना कि मैं पीछा छुड़ाना चाहती हूँ."

मैं बोला "तो इसका मतलब तो ये हुआ कि, तूने मेरा पीछा छोड़ दिया. अब मैं जो चाहूं वो कर सकता हूँ. मुझे तेरा कोई डर नही होगा."

कीर्ति बोली "तुझे ज़्यादा उछल्ने की ज़रूरत नही है. मैने सिर्फ़ ये कहा है कि मैं कॉल नही करूगी, पर इसका मतलब ये नही कि मैं तेरा पिछा इतनी आसानी से छोड़ दूँगी. मैं सिर्फ़ कॉल ही तो नही कर सकती लेकिन एसएमएस करने से तो मुझे कोई नही रोक सकता. मैं तुझे एसएमएस करके परेशान करती रहूगी और एक पल के लिए भी ये नही भूलने दुगी, कि तेरे साथ मैं जुड़ी हुई हूँ."

मैं बोला "ठीक है मैं भी यही चाहता हूँ कि, तू मुझे 24 घंटे परेशन करती रहे लेकिन अब कॉल रख क्योंकि एल्लवो सिग्नल हो चुका है और ट्रेन छूटने वाली है."

कीर्ति बोली "ठीक है पर तू याद से समय पर खाना खा लेना और यदि रात को कॉल कर सके तो कॉल भी लगा लेना. अब जल्दी से एक प्यारी से पप्पी दे ताकि मैं फ़ोन रख सकूँ."

मैं बोला "ये मेरी जान के प्यारे प्यारे होंठों पर मेरी प्यारी सी क़िस्सी मुउहह."

कीर्ति बोली "ये मेरी जान के होंठों पर मुऊऊुुुउऊहह."

इसके बाद कीर्ति ने कॉल रख दिया और मेरी सारी उदासी इस कॉल के साथ ही समाप्त हो गयी थी. मेरे दिल और दिमाग़ का सारा तनाव मिट गया था. तब तक ट्रेन का ग्रीन सिग्नल भी हो गया और मैं वापस ट्रेन मे चढ़ गया. मेरे चढ़ते ही ट्रेन एक बार फिर चल पड़ी.

अब मैं हर तनाव से मुक्त होकर मेहुल और अंकल के पास बैठा उनसे बात कर रहा था. बात करते करते काफ़ी समय हो चुका था. कुछ देर बाद कीर्ति का एसएमएस आ गया. मैने पहले टाइम देखा तो 9:00 बज चुका था. मैने एसएमएस खोला.

कीर्ति का एसएमएस "
उदास लम्हो का भी ना कोई मलाल रखना.
तूफ़ानो मे भी अपना हौसला संभाल रखना.
मेरे लिए शर्त आए जिंदगानी हो तुम.
इसी खातिर ही सही खुद का ख़याल रखना.

कीर्ति का एसएमएस पढ़ कर मुझे बहुत खुशी महसूस हुई. मैं भी उसे ऐसा ही कोई एसएमएस करना चाहता था पर मुझे शायरी का शौक कभी था ही नही. मेरे कोई ऐसे खास दोस्त भी नही थे जो मुझे शायरी भेजते. दोस्तों के नाम पर सिर्फ़ एक मेहुल ही था जिसने मुझे एक दो बार शायरी वाला एसएमएस भेजा भी तो मैने उसे गुस्सा कर दिया था कि, मुझे फालतू मे कोई शायरी ना भेजा करे. मुझे ये सब पढ़ कर गुस्सा आता है. उसके बाद से मेहुल ने भी मुझे शायरी वाले एसएमएस भेजना बंद कर दिए थे.

मगर जब से कीर्ति के पास मोबाइल आया था तब से वह जब भी मुझे एसएमएस करती थी. शायरी मे ही अपने दिल की बात कहा करती थी. लेकिन मैने कभी उसे कोई एसएमएस नही किया था और यदि कभी किया भी था तो सीधे सीधे लफ़जो मे अपनी बात कह दी थी.

लेकिन आज मेरी उसे कॉल ना लगा पाने की मजबूरी ने मुझे, एसएमएस करने के लिए मजबूर कर दिया था. मेरा मन उसकी शायरी का जबाब शायरी मे ही देने को कर रहा था. मैने अपने मोबाइल के सारे मेसेज देखे कि शायद कोई शायरी वाला एसएमएस हो मगर कीर्ति के मेसेज के सिवा किसी के भी मेसेज मे शायरी नही थी.

तब मेरे सामने एक ही रास्ता बचा था और मैने वही रास्ता चुना. मैने मेहुल से उसका मोबाइल लिया और उनके पास से उठकर अपनी वाली बर्थ पर जाकर लेट गया. मैने मेहुल के मोबाइल के एसएमएस देखे और मुझे एक अच्छी शायरी भी मिल गयी. मैने उस शायरी मे कुछ फेर बदल किया और फिर अपने मोबाइल मे टाइप कर उसे कीर्ति को भेज दिया.

मेरा एसएमएस
"दिल से तुम्हारी याद को जुदा तो नही किया.
रखा जो तुमको याद कोई बुरा तो नही किया.
हम तो कर रहे है तुम्हारी जान की हिफ़ाज़त.
तुमने हमारी जान को खफा तो नही किया."

मैने एसएमएस भेज तो दिया पर कुछ अजीब सा लग रहा था क्योंकि आज से पहले कभी मैने, उसे इस तरह का एसएमएस नही किया था. मैं ये जानने के लिए बेताब था कि कीर्ति को मेरा एसएमएस कैसा लगा, और क्या वो मेरी शायरी का मतलब समझ गयी है.
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09-09-2020, 01:04 PM,
#55
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मैं उसके एसएमएस का इंतजार कर ही रहा था कि उसका एसएमएस भी आ गया. मैने तुरंत उसका एसएमएस खोला और पड़ने लगा.

कीर्ति का एसएमएस
"ओये बल्ले बल्ले. हाए मार दिया रे जान तुमने.
मेरा तो मन डिस्को करने का कर रहा है.
देखो मैं सच मे डिस्को कर रही हूँ.

इट'स दा टाइम टू डिस्को
समझो ज़रा तुम इसको
इट'स दा टाइम टू डिस्को"

उसका एसएमएस पढ़ कर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कि वो सच मे मेरे सामने नाच रही हो और ये सोच कर मेरे चेहरे पर उसकी हरकतों के बारे मे सोच कर मुस्कुराहट आ गयी तभी उसका दूसरा एसएमएस भी आ गया. मैं उसे भी पढ़ने लगा.

कीर्ति का एसएमएस
"जान आज सच मे तुमने मेरा दिल खुश कर दिया.
तुम सामने नही हो नही तो तुम्हे एक जादू की झप्पी देती.
अब जादू की झप्पी नही दे सकती हूँ तो क्या हुआ.
ये लो एक जादू की प्यारी सी पप्पी मुउउहह.

लो जान मैने तो तुम्हारा मूह मीठा करा दिया.
मगर तुम अभी तक मेरी जान को भूका रखे हो.
देखो 9:15 बज गये, अब जल्दी से खाना खा लो ना.
प्लस्सस्स्सस्स प्लस्सस्स्सस्स प्लस्सस्स्सस्स. अब कोई मेसेज नही.
अब बसस्सस्स खनाआअ खनाआअ खनाआअ."

कीर्ति का ये एसएमएस पढ़ कर भी मुझे बहुत खुशी हुई. मुझे इन दोनो बातों मे एक खास बात ये भी नज़र आई कि आज पहली बार उसकी बातों मे मेरे लिए तू की जगह तुम और जान आ रहा था. ये अच्छी बात थी या बुरी मैं नही जानता पर अब मुझे उसकी हर बात पर प्यार आ रहा था और शायद यही वजह थी कि मैं उसकी हर बात सर झुका कर मानता जा रहा था और अभी भी मैने यही किया.

मैं अपनी बर्थ से उठ कर मेहुल और अंकल के पास आ कर बैठ गया. मैने अंकल से कहा.

मैं बोला "अंकल 9:15 बज गये है. अब हमें खाना खा लेना चाहिए."

मेहुल बोला "लेकिन तू तो देर से खाना ख़ाता है फिर आज तुझे इतनी जल्दी भूक कैसे लग आई."

मैं बोला "वो इसलिए क्योंकि आज मैं दिन मे अच्छे से खाना नही खा पाया था. तुझे नही खाना तो तू मत खा. मैं और अंकल खा लेते है."

मेहुल बोला "अबे मुझे तो कब से भूक लगी है. मैं तो तेरे लिए बैठा था. मुझे तेरी तरह देर से खाने की बुरी आदत नही है. मुझे तो 8 बजते ही भूक लगने लगती है."

उसकी बातें सुनकर अंकल ने मेहुल को चुप कराया और उसे खाना निकालने को बोला. मेहुल ने खाना निकाला और हम लोग खाना खाने लगे पर मैं बार बार घड़ी मे टाइम भी देख रहा था. इसे देख कर मेहुल ने कहा.

मेहुल बोला "तू सीधे खाना क्यों नही खा रहा. ये बार बार घड़ी क्यों देख रहा है. अब हमे कल से पहले कहीं नही उतरना है और ना ही हम स्टेशन पर है कि हमारी गाड़ी छूट रही है. ये बार बार टाइम देखना बंद कर और चुप चाप खाना खा."

मेहुल की बात सुनकर मैने उसे घूर कर देखा तो वो हँसने लगा मगर अंकल हम दोनो को ही देख रहे थे इसलिए मैं चुपचाप खाना खाने लगा. कोई और समय होता या फिर अंकल ना होते तो मैं ज़रूर एक दो तो उसको जमा ही देता पर उस समय मैने चुपचाप खाना खाने मे ही अपनी भलाई समझी.

मैने जल्दी जल्दी खाना खाया और फिर से मेहुल का मोबाइल लेकर अपनी बर्थ पर जाकर बैठ गया. मैने एक शायरी ढूंढी और उसमे फेर बदल करके अपने मोबाइल से कीर्ति को भेज दी.

मेरा एसएमएस
"याद आने वाले याद आए जा रहे है.
ख़यालों मे वो हमारे छाए जा रहे है.
हम ने तो वादा अपना कर दिया है पूरा.
अब उनके इंतजार मे पलके बिच्छाए जा रहे है."

मेरे एसएमएस के काफ़ी देर बाद तक जब कीर्ति का एसएमएस नही आया. तब मैं समझ गया कि वो अभी खाना खाने सब के साथ बैठ चुकी है. मैं भी अब फ़ुर्सत ही था तो मैं मेहुल के मोबाइल की अच्छी अच्छी शायरी अपने मोबाइल मे सेव करने लगा. ये सब करते करते मुझे तो वक्त का कुछ पता ही नही चला मगर जब मेहुल ने मुझसे कहा कहा कि वो अब सो रहा है तो मैने टाइम देखा. अब 11:15 बज चुके थे.

मैने मेहुल को उसका मोबाइल दिया और मैं भी लेट गया. मैं समझ गया कि हो ना हो उसके एसएमएस ना आने मे निमी का ही कोई हाथ होगा. वो मेरे बिना आज से पहले कभी नही रही थी. ये बात दिमाग़ मे आते ही मेरा मन निमी से बात करने के लिए मचलने लगा. मैने जैसे ही कॉल करने के मोबाइल हाथ मे लिया वैसे ही कीर्ति का एसएमएस आ गया.

कीर्ति का एसएम
"यादों मे जो अपनी हम को बसाए है.
ख़यालों मे जिनके हम ही हम छाये है.
ए खुदा पूरा हो उन आँखों का हर सपना.
जो हमारे इंतजार मे अपनी पलके बिछाये है."

मैने एसएमएस पढ़ने के बाद तुरंत कीर्ति को कॉल लगा दिया. कुछ देर बाद कीर्ति ने कॉल उठाया.

मैं बोला "क्या हुआ. क्या निमी परेशान कर रही है."

कीर्ति बोली "हाँ बड़ी मुस्किल मे उसको अभी सुलाया है. जब से उपर आई थी बस रोए जा रही थी. कह रही थी मुझे भैया के पास जाना है. मैने तुम्हे कॉल भी लगाने की कोसिस की मगर कॉल भी नही लग रहा था."

मैं बोला "फिर कैसे सोई."

कीर्ति बोली "मैं और अमि उसे बहलाते रहे तब जाकर बहुत देर बाद वो सोई है."

मैं बोला "उसे मेरे कमरे मे ले जाती. वो उधर आराम से सो जाती."

कीर्ति बोली "वही तो किया है. उसे तुम्हारे कमरे मे लेकर आए और फिर तुम्हारी बातों से बहला कर उसे सुला दिया."

मैं बोला "ये लड़की भी बिल्कुल तुम्हारी तरह ही है. एक पल भी मुझसे दूर नही रह सकती."

कीर्ति बोली "तुम्हे तो खुश होना चाहिए कि तुम्हे इतना चाहने वाले एक नही दो दो लोग है."

मैं बोला "खुश तो हूँ पर उन से दूर होने का दुख भी तो होता है."

कीर्ति बोली "चलो अब ज़्यादा दुख मत करो. बस कुछ दिन की ही तो बात है. ये दिन भी देखते देखते ही निकल जाएगे. ये बताओ कि खाना खा लिया ना."

मैं बोला "हाँ खाना भी खा लिया और दवाई भी खा ली."

कीर्ति बोली "दवाई.? क्यों तुम्हे क्या हुआ."

मैं बोला "मुझे कुछ नही हुआ. मैं उस दवाई की बात कर रहा हूँ जो तुमने अपने एसएमएस मे भेजी थी."

कीर्ति बोली :तुम बहुत बदमाश होते जा रहे हो."

मैं बोला "और तुम बहुत शरीफ होती जा रही हो."

कीर्ति बोली "वो तो मैं शुरू से ही हूँ."

मैं बोला "तो मैं भी शुरू से ही बदमाश हूँ."

बस इसी तरह हमारी हमारी एक दूसरे से बात चलती रही. बीच बीच मे नेटवर्क ना मिलने से हमारी बात बंद हो जाती और नेटवर्क मिलते ही फिर हमारी बात शुरू हो जाती. ये सिलसिला रात को 1 बजे तक चला और फिर इसके बाद हम दोनो ने एक दूसरे को गुड नाइट कहा और सो गये. दूसरे दिन हमारी दिनभर एसएमएस से बात होती रही और बीच बीच मे मैं कॉल भी लगाता रहा. उस दिन भी हमारी देर रात तक बात हुई और फिर अगले दिन हम लोग 11 बजे मुंबई पहुच गये.

मुंबई मे हमें लेने के लिए स्टेशन पर राज और रिया मिले. नितिका ने उन्हे फोन कर बता दिया था कि हम किस गाड़ी से आ रहे है. उन दोनो ने हम लोगों से हमारा हाल चाल पूछा और फिर हम से अपने घर चलने की ज़िद करने लगे. हम ने मना भी किया कि हम किसी होटेल मे रह लेगे मगर वो दोनो नही माने. आख़िर मे हमे उनके साथ ही जाना पड़ा. राज ने एक टेक्सी की और फिर हम लोग उनके साथ उनके घर के लिए निकल पड़े.

राज लोगों के साथ चलने से पहले मैने कीर्ति को एसएमएस किया कि हम लोग पहुच गये है. राज और रिया हमें लेने आए है. हम उनके साथ ही उनके घर जा रहे है. मैं फ़ुर्सत होते ही तुमसे बात करूगा. कीर्ति ने भी मेरा एसएमएस मिलते ही ओके लिख कर भेजा दिया.

राज और रिया रास्ते मे हमारे यहाँ के सभी लोगों का हाल चाल पूछते रहे. मेहुल उन्हे सभी के बारे मे बताता रहा. मैं बस टॅक्सी से बाहर का माहौल देखता रहा. बस कोई कुछ पूछता तो उसे छोटा सा जबाब दे देता. ना जाने क्यों मुझे राज और रिया के घर जाना पसंद नही आ रहा था. लेकिन दोनो इतने प्यार से लेने आए थे इसलिए मजबूरी मे जाना पड़ रहा था. जैसे तैसे बात करते करते हम लोग राज और रिया के घर पहुच गये.

राज और रिया का घर भी हमारी तरह ही बड़ा था. उनके दादा जी और मम्मी हमारे आने का ही इंतजार कर रहे थे. राज ने हम लोगों का उनसे परिचय करवाया. सब का आपस मे परिचय होने के बाद राज के दादा जी ने कहा.

दादा जी बोले "बच्चो आप लोगों के रुकने का इंतज़ाम गेस्ट रूम मे करवा दिया गया है. आप लोग अब जब तक मुंबई मे है हमारे साथ ही रहेगे."

अंकल बोले "आप लोग बेकार मे परेशान ना हो. हम पहले भी मुंबई आ चुके है. हमें यहाँ कुछ ज़्यादा टाइम भी लग सकता है और फिर हमारा आना जाना भी वक्त बेवक्त का रहेगा. इस से आप लोगो को तकलीफ़ होगी. वो तो इन बच्हों ने ज़िद की थी, जिसकी वजह से हमें यहाँ तक आना पड़ा लेकिन हम यहाँ नही रुक सकते. यहाँ मेरी परिचित की एक होटेल है हम वही रुक जाएगे."

दादा जी बोले "आप ये कैसी बात कर रहे है. माना कि हम आपस मे कोई रिश्तेदार नही है मगर आप वहाँ हमारे बेटे के पड़ोसी है. इस नाते से तो आप हमारे भी पड़ोसी लगे. इसलिए ये बेकार की ज़िद छोड़िए और अब अपना समान वग़ैरह गेस्ट रूम मे ले जाइए. आज से आप हमारे साथ ही रहेगे."

अंकल बोले "आप हमारे बुजुर्ग है. आप हर बात को मुझसे बेहतर समझते है इसलिए मैने ये बात आप से कही."

दादा जी बोले "हमें अपना बुजुर्ग मानते हो तो फिर हमारी बात भी मानो. आप किसी भी बात की चिंता मत करो. आपको यहाँ किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नही होगी और ना ही आपके किसी भी टाइम आने जाने से हमें कोई परेशानी है. आप इसे अपना ही घर समझ कर रहो और किसी भी बात के लिए ज़रा भी संकोच मत करो."

अंकल बोले "जैसा आप ठीक समझे."

दादा जी बोले "ठीक है अभी तो हमारे घर के बाकी सदस्य नही है पर रात के खाने पर सभी लोग होंगे. उस समय हम आपका परिचय उन से भी करवा देगे. अभी आप खाने के बाद कहीं जाना चाहे तो राज आपको ले जाएगा. अभी तो आप जाकर फ्रेश हो जाइए फिर हम सब एक साथ खाना खाएगे."
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09-09-2020, 01:05 PM,
#56
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
इसके बाद दादा जी ने राज को हमे गेस्टरूम मे ले जाने को कहा. राज ने एक रूम मे मुझे और मेहुल को रुकवा दिया और एक रूम मे अंकल को इसके बाद वो चला गया. कुछ देर मैं और मेहुल बात करते रहे और फिर मेहुल फ्रेश होने चला गया. मेहुल के जाने के बाद मैने कीर्ति को कॉल लगाया. कीर्ति ने तुरंत कॉल उठाया. जैसे कि वो मेरे ही कॉल आने के इंतजार मे बैठी हो.

मैं बोला "क्या हुआ. तुझे कोई काम धाम नही है. जो तू मोबाइल पकड़ कर ही बैठी रहती है."

कीर्ति बोली "काम ही तो कर रही हूँ."

मैं बोला "मोबाइल पकड़ कर बैठना कौन सा काम है."

कीर्ति बोली "तुम्हारे ना रहने पर मेरे पास यही तो एक काम बचा है कि तुम्हारे कॉल आने का इंतजार करती रहूं. ये बताओ वहाँ पर सब कुछ कैसा चल रहा है."

मैं बोला "अभी तो हम लोग रिया के घर पर ही है. उनके दादा जी और मम्मी से मिले. दोनो ही बहुत अच्छे है. उन्हो ने हमे होटेल मे जाने ही नही दिया. ज़िद करके अपने ही घर मे रोक लिया है."

कीर्ति बोली "ये तो अच्छी बात है पर एक बात है पर तुम अपना ख़याल रखना. खाना पीना समय पर खाते रहना."

मैं बोला "ये तुझे हुआ क्या है. जब से घर से निकला हूँ. तेरे मूह से सिर्फ़ एक ही बात सुनते आ रहा हूँ कि खाना पीना समय पर खाते रहना. अरे मेरे साथ अंकल और मेहुल भी तो है. वो मुझे क्या भूका रखेगे."

कीर्ति बोली "सॉरी. मेरा ऐसा करना तुम्हे बुरा लगा तो अब आगे से ऐसा नही करूगी मगर क्या करूँ."

मैं बोला "तुझे सॉरी बोलने की कोई ज़रूरत नही है. मैं तो ये बात इसलिए कह रहा था कि मुझे तेरी बात याद है. मैं खाना समय पर ही ख़ाता रहुगा पर तू इसके सिवा भी तो कोई बात कर सकती है. मैं तेरी बातें सुनने के लिए तरस गया हूँ."

कीर्ति बोली "तरस तो मैं भी गयी हूँ. यू लग रहा है जैसे मैने तुम्हे बरसो से ना देखा हो."

मैं बोला "मुझे भी ऐसा ही लग रहा है. अच्छा ये बता. घर मे सब ठीक है ना. निमी का क्या हाल है. आज तो ज़रूर वो अपना स्कूल गोल कर गयी होगी."

कीर्ति बोली "यहाँ सब ठीक है. अमि निमी भी अच्छी है और दोनो स्कूल गयी है. निमी ज़रूर स्कूल ना जाने की ज़िद कर रही थी मगर मैने उसे समझा कर स्कूल भेज दिया है. आंटी मम्मी के पास ही है और उनने कहा था कि जब मेरी तुम लोगो से बात हो तो मैं उनको खबर दे दूं."

मैं बोला "ये सब होने से तेरे उपर बहुत बोझ पड़ गया है. तुझे एक ही समय मे उधर सबको संभालना पड़ रहा है और इधर मेरी भी चिंता करनी पड़ रहा है."

कीर्ति बोली "ऐसा कुछ नही है. मेरे उपर इधर किसी तरह का कोई बोझ नही है. तुम मेरी चिंता बिल्कुल भी मत करो. सिर्फ़ उधर अंकल के इलाज की फिकर करो. मैं तो यहाँ बहुत मस्ती कर रही हूँ. तुम चाहो तो तुम भी वहाँ मस्ती कर सकते हो."

मैं बोला "हाँ वो तो मैं जानता हूँ कि तू वहाँ कितनी मस्ती कर रही है. तभी तो मेरी कॉल की पहली ही रिंग पर कॉल उठ गया."

कीर्ति बोली "तुम क्यों ये सब बात सोच रहे हो. मैं जो कुछ भी कर रही हूँ उसमे मुझे खुशी है क्योंकि इसी बहाने से मैं कम से कम तुम्हारी जबाब्दारी निभाने मे तुम्हारा साथ तो दे पा रही हूँ. अब ये सब छोड़ो ये बताओ खाना कब खाओगे."

मैं बोला "यार तू किस मिट्टी की बनी है. घूम फिर कर फिर से खाने पे आकर ही अटक गयी है."

कीर्ति बोली "मुझे कुछ नही सुनना. जो पूछ रही हूँ उसका सीधा सीधा जबाब दो. खाना कब खाओगे."

मैं बोला "बस तुझसे बात होने के बाद मैं फ्रेश होने जाउन्गा और उसके बाद खाना खाने."

कीर्ति बोली "तो ठीक है. अब फोन रखो और अभी फ्रेश होने जाओ. बाकी की बात हम खाना खाने के बाद कर लेगे."

मैं बोला "तू कुछ देर बात कर फिर मैं चला जाउन्गा."

कीर्ति बोली "बिल्कुल नही. मैने अभी बोला तो इसका मतलब है अभी."

मैं बोला "तू कभी नही सुधरेगी. जब देखो अपनी ही चलाती रहती है. मेरी तो कुछ सुनती ही नही है."

कीर्ति बोली "मुझे सुधरना भी नही है. यदि मैं सुधर गयी तो फिर तुम बिगड़ जाओगे. अब मुझे जल्दी से एक मीठी सी क़िस्सी दो और कॉल रखो."

मैं बोला "ओके मुऊऊऊहह"

कीर्ति बोली "मुउउहह"

इसके बाद उसने फोन रख दिया और तब तक मेहुल भी फ्रेश होकर आ चुका था. मैने उस से आंटी को फोन करने को कहा और फिर मैं फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होने के बाद मैं तैयार हुआ और मेहुल से बात करता रहा. अंकल भी तैयार होकर हमारे कमरे मे ही आ गये थे. वो हमें बता रहे थे कि अब हम लोगों को कहाँ कहाँ जाना है. कुछ देर बाद राज हम लोगो को खाने के लिए बुलाने आ गया. हम लोग राज के साथ डाइनिंग रूम मे आ गये.

डाइनिंग रूम मे दादा जी और रिया पहले से ही थे. हम भी उनके साथ बैठ गये. खाना खाते खाते दादा जी की अंकल से बातें होती रही. खाने के बाद कुछ देर और यू ही बातें चलती रही. उसके बाद अंकल ने उनसे हॉस्पिटल मे 3 बजे डॉक्टर. से मिलने जाने की बात बताई. फिर हम लोग 2 बजे के बाद राज के साथ हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े.

करीब 3 बजे हम लोग हॉस्पिटल पहुच गये. वहाँ हमें डॉक्टर. से मिलने मे ज़्यादा टाइम नही लगा. डॉक्टर. ने अंकल को आज ही अड्मिट होने को कहा और दूसरे दिन उनका ऑपरेशन करने की बात कही. हम ने हॉस्पिटल की बाकी फ़ॉर्मलटी पूरी कर शाम तक अंकल को अड्मिट कर दिया. अंकल को अड्मिट करने के बाद भी हम लोग हॉस्पिटल मे ही रहे.

फिर 7:30 बजे अंकल ने हम लोगों को जाने को बोला तो हम ने मना कर दिया. तब अंकल ने कहा कि ऑपरेशन तो सुबह 8 बजे होना है. तुम लोग बेकार मे रात भर यहा परेशान होगे. वैसे भी यहाँ एक व्यक्ति को रुकने मिलेगा और वो भी सो नही पाएगा. क्योंकि यहाँ सिर्फ़ बैठने के लिए ये चेयर ही है. इसी मे बैठे बैठे ही सोना पड़ेगा. तुम दोनो ही सफ़र से थके हुए हो इसलिए रात को जाकर आराम कर लो सुबह जल्दी आ जाना. राज ने भी अंकल की बात का समर्थन किया. आख़िर मे हमें ना चाहते हुए भी वहाँ से वापस आना पड़ा.

राज इस दौरान पूरे समय हम लोगों के ही साथ था. उसने भी हमारे साथ बहुत दौड़ धूप की थी. उसके साथ होने से हमें यहाँ बहुत हेल्प मिली थी. इस सब के बाद भी मुझे राज का साथ ज़रा भी पसंद नही आ रहा था. जिसकी वजह थी रिया और राज का एक दूसरे से सेक्स करना. इसलिए मेरी राज से अभी भी कोई ज़्यादा बात नही हो रही थी.

हम लोग 8:30 बजे राज के घर पहुच गये. दादा जी हम लोगों का ही रास्ता देख रहे थे. राज ने उन्हे दिन भर की सारी बातें बताई फिर दादा जी ने हम लोगों से मूह हाथ धोकर खाने पर आने को कहा तो हम लोग मूह हाथ धोने चले गये. मूह हाथ धोने के बाद मैने कीर्ति को कॉल करके सारी बात बताई और कहा कि मैं खाना खाने जा रहा हूँ. बाकी की बातें रात को करूँगा. इसके बाद हम लोग डाइनिंग रूम मे आ गये.

डाइनिंग रूम मे पहुचते ही मेरी नज़र डाइनिंग टेबल पर बैठे लोगों पर पड़ी. उन मे से एक पर जाकर मेरी नज़र ठहर गयी और मैं वही के वही रुक गया. एक पल के लिए तो मेरी साँसे ही थम गयी मगर ये सिर्फ़ मेरा अकेला ही हाल नही था. ऐसा ही कुछ हाल मेहुल का भी था. हम दोनो ने एक दूसरे की तरफ देखा. दोनो के मन मे एक ही सवाल था. लेकिन उस सवाल का जबाब हम दोनो मे से किसी के भी पास नही था. हम दोनो के ही कदम वही के वही रुके हुए थे.

हम दोनो की नज़र डाइनिंग टेबल पर बैठी एक लड़की पर टिकी हुई थी. जो ब्लू सलवार सूट पहने एक और लड़की के साथ वहाँ बैठी थी. देखने मे वह वहाँ बैठी सभी लड़कियों से सुंदर लग रही थी. लेकिन इस सब से बढ़कर जो बात हमें उसकी तरफ खिच रही थी. वो ये थी कि वो लड़की हू-ब-हू कीर्ति की तरह लग रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो कीर्ति की जुड़वा बहन हो. उसे देख कर हम लोगों को अपनी आँखों पर विस्वास ही नही हो रहा था. हम ये सब देख कर कुछ पल के लिए अपनी ही जगह पर खड़े रहे.

रिया ने हमारी ऐसी हालत देखी तो वो हँसने लगी. बाकी के सभी लोग भी रिया की हँसी मे साथ दे रहे थे. उस लड़की के चेहरे पर भी हमारी हालत देख कर हँसी थिरक उठी. मैं और मेहुल सबको इस तरह हंसते देख झेप गये मगर अभी भी अपनी ही जगह पर ही खड़े रहे. तब दादा जी ने सबको चुप कराया और हम से कहा.

दादा जी बोले "बच्चो ऐसे कब तक खड़े रहोगे. यहाँ आकर बैठ जाओ."

दादा जी की बात सुनकर हम लोग राज के पास वाली खाली चेयर पर बैठ गये पर अब हमारी नज़र उस लड़की पर ना होकर दादा जी की तरफ थी. दादा जी ने हमारी हालत का अनुमान लगाते हुए कहा.

दादा जी बोले "तुम्हे तुम्हारे मन मे उठ रहे हर सवाल का जबाब मिल जाएगा. रिया ने हमें तुम्हारी कज़िन के बारे मे सब कुछ बता दिया था मगर हमें यकीन ही नही हो रहा था कि एक ही शकल के दो लोग बिना आपस मे किसी रिश्ते के भी हो सकते है. तब रिया ने हमें तुम्हारी कज़िन की तस्वीर दिखाई तो हमें यकीन करना पड़ा. आज यही सच तुम्हारी आँखों के सामने भी है. जिसे देख कर तुम्हे भी अपनी आँखों पर यकीन नही आ रहा होगा."

"राज और रिया को तो तुम पहले से ही जानते हो. हम से और राज की मम्मी से भी तुम सुबह मिल चुके हो. अब हम यहाँ बैठे बाकी के लोगों से भी तुम्हारा परिचय करवा देते है. ये हमारा बेटा अजय है और ये मेरी छोटी पोती प्रिया है. प्रिया 11थ मे पढ़ रही है और रिया से एक साल छोटी है. ये दूसरी लड़की,जिसे तुम देख कर इस तरह से चौक गये थे. ये प्रिया की सहेली निकिता है. ये अजय के बचपन के दोस्त रायपुर के जागीरदार जगत बहादुर सिंग की बेटी है और यहाँ बोर्डिंग मे पड़ती है. जब कभी इसकी छुट्टियाँ पड़ती है तो ये अपनी छुट्टियां हमारे साथ ही बिताती है. अब बताओ क्या सच मे इसकी सकल तुम्हारी कज़िन से मिलती है और दोनो मे कोई फ़र्क नही है."

मेहुल बोला "जी अंकल. यदि कुछ बातों को छोड़ दिया जाए तो ये हू-ब-हू कीर्ति से मिलती है."

अजय अंकल बोले "कौन सी बातें."

मेहुल बोला "एक तो इनके बाल बहुत छोटे है और कीर्ति के बाल कमर तक आते है. ये कुछ शांत स्वाभाव की लग रही जबकि कीर्ति दिन भर बक बक करती रहती है."

अजय अंकल बोले "इसके अलावा और कोई बात है."

मेहुल बोला "नही अंकल बस ये ही दो बातें है."

मेहुल की बात सुनकर ना जाने मुझे कैसा महसूस हुआ. जैसे सब उस लड़की से कीर्ति की बराबरी कर कीर्ति का मज़ाक बना रहे हो. मैं अपने आपको ना रोक सका और बोल पड़ा.

मैं बोला "नही अंकल अभी और भी बहुत सी बातें है. जैसे ये सलवार सूट पहने हुई है. हमारी कीर्ति को सलवार सूट पहनना ज़रा भी पसंद नही है. वो सिर्फ़ जीन्स टी-शर्ट और स्कर्ट टॉप ही पहनना पसंद करती है. इनका सूट ब्लू कलर का है जबकि कीर्ति को ब्लू कलर ज़रा भी पसंद नही है. इनके हाथो मे चूड़िया है जबकि कीर्ति को चूड़ीयाँ पहनना ज़रा भी पसंद नही है. वो अपने हाथ मे ब्रेसलेट पहनती है. इनके बाल छोटे है फिर भी ये बालों को बाँधे हुए है जबकि कीर्ति हमेशा ही बालों को खुला रखती है. ज्यदा से ज़्यादा वो बालों को फोल्ड कर लेती है. इनके माथे पर बिंदी नही है लेकिन कीर्ति हमेशा एक छोटी सी बिंदी अपने माथे पर लगाए रहती है. कीर्ति का रंग भी इनके मुक़ाबले ज़्यादा गोरा है. ये हँसने मे कंजूसी करती है पर कीर्ति हर बात पर दिल खोल कर हँसती है."

मेरी बातें सुनकर निक्की को लगा कि मैं वेवजह उसकी बुराई कर रहा हूँ. उस से अपनी ये बुराई सहन नही हुई और फिर उसने मेरी बातों को बीच मे ही काट कर कहा.

निक्की बोली "ये सारी खूबियाँ मुझमे भी है. मैं तो सलवार सूट पहन कर सिर्फ़ इसलिए आई थी क्योंकि दादा जी को ये पहनावा पसंद है. हाँ बाल मेरे छोटे ज़रूर है पर वो इसलिए है क्योंकि यहाँ प्रदूषण इतना है कि बड़े बालों की देख भाल कर पाना मुस्किल हो जाता है. आपके यहाँ पर इतना प्रदूषण नही होगा."

मैं बोला "आपका सिटी महानगर है तो इसका मतलब ये नही कि हमारी सिटी कोई गाँव या कस्बा है. हमारी सिटी भी देश के चार महानगरों मे से एक है और वहाँ इस से भी ज़्यादा आबादी और प्रदूषण है फिर भी हमारी कीर्ति अपने बालों का ख़याल रखती है और उसे ऐसा करना अच्छा लगता है."

हमारे बीच की बहस का मज़ा थोड़ी देर तो सब लेते रहे मगर फिर दादा जी ने देखा कि ये बहस कोई दूसरा ही रूप लेने लगी है तो दादा जी ने हम दोनो को रोकते हुए कहा.

दादा जी बोले "अरे तुम लोग अभी अपनी बहस बंद कर खाना खाओ. ना तो तुम अभी कहीं भागे जा रहे हो और ना ही निक्की कहीं भागी जा रही है. खाने के बाद तुम लोगों को जितनी भी बहस करना हो कर लेना मगर अभी तो खाना खाना शुरू करो."

दादा जी की बात सुनकर हम सब ने खाना खाना शुरू कर दिया पर निक्की बीच बीच मे मुझे खाना खाते खाते गुस्से से घूर कर देख रही थी. मेरी एक दो बार उस पर नज़र पड़ी और उसे अपनी तरफ घूरते देख कर मैने भी लापरवाही मे सर को झटका और फिर खाना खाने लगा. वो शायद मेरे इस बर्ताव से नाराज़ हो गयी थी. मगर मैं भी क्या करता. मेरा इरादा निक्की को नाराज़ करने का नही था पर मैं अपनी कीर्ति की किसी से बराबरी करना सहन नही कर पाया था और उसे निक्की से अच्छा साबित करने के लिए निक्की को छोटा दिखा रहा था.

हम लोगों ने खाना खाया और फिर कल अंकल के ऑपरेशन को लेकर बात चलती रही. लेकिन फिर ना तो मैं कुछ बोला और ना ही निक्की ही कुछ बोली. हम दोनो शांति से सिर्फ़ बात सबकी बात सुनते रहे. ये बात ख़तम होने के बाद हम लोग अपने अपने कमरे मे आ गये.

कमरे मे आने के बाद मेरे और मेहुल के बीच मे कुछ देर बात होती रही. फिर मेहुल बोला तू जल्दी सो जा सुबह उठना है. मैं पापा के कमरे मे जा रहा हूँ क्योंकि मैं अभी कुछ देर शिल्पा से बात करूगा. ये कहकर मेहुल अंकल वाले कमरे मे चला गया. निक्की से मिलने के बाद से ना जाने क्यों मेरा मूड कुछ ठीक नही था. मैने टाइम देखा तो 11 बज चुके थे. मैने तुरंत कीर्ति को कॉल लगाया.

मैं बोला "और सुना वहाँ का क्या हाल चाल है."

कीर्ति बोली "यहाँ सब ठीक है. तुम बताओ कल सुबह हॉस्पिटल के लिए यहाँ से कितने बजे निकलोगे."

मैं बोला "डॉक्टर. ने तो सुबह 8 बजे ऑपरेशन करने को कहा है पर हम लोग सुबह 6 बजे यहाँ से निकलेगे."

कीर्ति बोली "तब तो तुम्हे अभी जल्दी सो जाना चाहिए. वरना सुबह उठने मे परेशानी होगी."

मैं बोला "हाँ सो जाउन्गा. तुझसे बात करने के बाद तो सोना ही है."

कीर्ति बोली "तुम्हे क्या हुआ है. तुम्हारा मूड उखड़ा उखड़ा क्यों है. क्या डॉक्टर. ने अंकल के बारे मे कोई बात की है."

मैं बोला "नही ऐसी कोई बात नही है. डॉक्टर. ने तो कहा है कि उसे 99% ऑपरेशन के सफल होने की उम्मीद है."

कीर्ति बोली "तो फिर क्या बात है. तुम्हारा मूड इतना उखड़ा क्यों है."

मैं बोला "कुछ तो नही. बस ऐसे ही थक गया हूँ."

कीर्ति बोली "नही बताना तो मत बताओ पर मुझसे झूठ मत बोलो. मैं जानती हूँ कि वहाँ कुछ ना कुछ बात ज़रूर हुई है. जिसका तुम्हे बुरा लगा है. सच सच बोलो तुम्हे किसने क्या बोला है."

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. बस आज एक लड़की मिली है. उससे ही मिलकर दिमाग़ खराब हो गया है."

कीर्ति बोली "कौन लड़की.? उसने तुम्हे क्या कह दिया जो तुम्हारा इतना मूड खराब हो गया."

मैं बोला "वो लड़की रिया की बहन प्रिया की सहेली है. वो बिल्कुल तेरे जैसी दिखती है."

कीर्ति बोली "अरे तो इसमे बुरा मानने की क्या बात है. ये तो अच्छी बात है. कम से कम इसी बहाने तुम्हे मेरी सूरत तो देखने को मिलेगी."

मैं बोला "ज़्यादा मत बोल. कोई किसी लड़की से तेरी बराबरी करे ये मुझसे सहन नही होगा."

कीर्ति बोली "अरे बाबा इसमे इतना नाराज़ होने की क्या ज़रूरत है. मुझे तो पहले से ही मालूम है कि प्रिया की किसी सहेली की सकल मुझसे मिलती है."

मैं बोला "तुझे कैसे मालूम है."

कीर्ति बोली "उस दिन मैं और राज जब वॉटरफॉल मे घूम रहे थे. तब राज मुझे इसी बारे मे बता रहा था. मैं तुमसे ये बात बताना चाहती थी पर तुम राज को लेकर इतना नाराज़ थे कि कुछ सुनना ही नही चाहते थे."

मैं बोला "कुछ भी हो पर वो .लड़की तेरे जैसी बिल्कुल भी नही है. सिर्फ़ शकल मिल जाने बस से कोई किसी के जैसे नही बन जाता."

कीर्ति बोली "चलो मैं मान लेती हूँ कि वो मेरे जैसी बिल्कुल भी नही है. अब अपना मूड सही करके बात करो ना. नही तो मुझे सारी रात नींद नही आएगी."

मैं बोला "सॉरी. मैने किसी और का गुस्सा तुम पर उतार दिया."

कीर्ति बोली "कोई बात नही. तुम्हारा गुस्सा हो या प्यार मुझे सब प्यारे है. लोग जिसे ज़्यादा प्यार करते है अपना गुस्सा भी उसी पर उतारते है. अब मैं एक बात बोलूं."

मैं बोला " हाँ बोलो."

कीर्ति बोली "आइ लव यू."

मैं बोला "ठीक है."

कीर्ति बोली "नही ऐसे नही. तुम भी बोलो."

मैं बोला "तुझे तो मालूम ही है फिर बोलने का क्या फ़ायदा."

कीर्ति बोली "नही मुझे सुनना है."

मैं बोला "आइ लव यू."

कीर्ति बोली "नही ऐसे नही. प्यार से बोलो. ज़रा मुस्कुरा कर बोलो."

कीर्ति की बात सुनकर मेरे चेहरे पर सच मे मुस्कुराहट आ गयी.

मैं बोला "आइ लव यू जान."

कीर्ति बोली "ये हुई ना बात. अब आँख बंद करो और सो जाओ."

मैं बोला "नही अभी मुझे बात करनी है."

कीर्ति बोली "बात तो मैं भी करना चाहती हूँ जान. लेकिन कल तुम्हे जल्दी उठना है और पता नही फिर कल तुम्हे कब सोने को मिले. इसलिए मैं चाहती हूँ की आज हम ज़्यादा रात तक बात ना करे. आज तुम आराम कर लो फिर कल जितनी देर तक बात करने को कहोगे मैं करूगी."
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09-09-2020, 01:05 PM,
#57
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मैं कीर्ति से बात करना चाहता था मगर उसका कहना भी ठीक ही था फिर भी मैने बेमन से कहा.

मैं बोला "ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी. गुड नाइट."

कीर्ति बोली "हूँ हूँ. ऐसे मन छोटा करके नही. प्यार से बोलो."

मैं बोला "ओके कल हम देर तक बातें करेगे. मुऊऊऊहह गुड नाइट जान."

कीर्ति बोली "अब ठीक है. कल मैं तुम्हे जल्दी जगा दूँगी. अपना मोबाइल अपने पास ही रखना. मुऊऊुुुुउऊहह गुड नाइट जान."

ये कह कर कीर्ति ने कॉल रख दिया और मैं कीर्ति के बारे मे सोचने लगा. वो मुझसे इतनी दूर होकर भी मेरा कितना ख़याल रख रही थी. मैं उसका इतना प्यार पाकर खुद को दुनिया का सबसे खुश नसीब इंसान समझ रहा था. बस यूँ ही कीर्ति की बातें सोचते सोचते मुझे कब नींद आ गयी मुझे पता ही नही चला.

सुबह 5 बजे मेरी नींद कीर्ति के कॉल से ही खुली. मैने देखा उसके 8-10 मिस्ड कॉल है. मैने तुरंत उसका कॉल उठाया.

कीर्ति बोली "गुड मॉर्निंग जान."

मैं बोला "गुड मॉर्निंग. तू रात भर सोई भी है या फिर मुझे जगाने के चक्कर मे सारी रात जागती रही."

कीर्ति बोली "गुड मॉर्निंग टू यू जान."

मैं बोला "मैने कुछ पूछा है तुझसे."

कीर्ति बोली "छोड़ो ना जान. अब उठो जल्दी से और उस मेहुल को भी जगा दो. वो भी तुम्हारी तरह अभी तक सो ही रहा होगा."

मैं बोला "इसका मतलब है कि तू हम लोगों को सुबह जगाने के लिए रात भर जागती रही."

कीर्ति बोली "मैं कोई जानबूझ कर नही जागी. मुझे नींद ही नही आ रही थी. जागते जागते 3 बज गया था तो मैने सोचा कि अब थोड़ी देर और जाग लेती हूँ फिर तुम्हे जगा कर सो जाउन्गी."

मैं बोला "तू मुझे इतना प्यार क्यों करती है. मुझसे तेरा इतना प्यार संभाला नही जाता."

कीर्ति बोली "हर किसी को अपनी जान प्यारी होती है. यदि मैं अपनी जान को इतना प्यार करती हूँ तो इसमे बुरा क्या है."

मैं बोला "तेरा ये प्यार या तो किसी दिन तुझे पागल कर देगा या फिर मुझे पागल कर देगा."

कीर्ति बोली "जब तक मेरी जान मेरे पास है. ना मैं पागल होने वाली हूँ और ना ही अपनी जान को पागल होने दूँगी. मेरी चिंता मत करो. मैं अब सोउंगी तो सीधा 12 बजे के बाद ही उठुगी लेकिन अब तुम देर मत करो और जल्दी से उठ जाओ."

मैं बोला "ठीक है. अब मैं जाग गया हूँ. तू सो जा और 12 बजे के पहले मत उठना."

कीर्ति बोली "ओके जान. गुड नाइट. मुउउहह.

मैं बोला "ओके गुड नाइट. मुउउहह.

इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया और मैं उठ कर मेहुल को जगाने चला गया. मेहुल भी गहरी नींद मे था. उसने टाइम पूछा और जैसे ही मैने कहा 5:15 बज गया है. वो तुरंत उठ कर बैठ गया. उसे जगाने के बाद मैं अपने कमरे मे आकर फ्रेश होने चला गया. फ्रेश होकर मैं तैयार हुआ और वापस मेहुल के पास आया. मेहुल भी तैयार हो चुका था. हमें तैयार होते होते 5:45 हो गये थे. अब हम जल्दी से हॉस्पिटल पहुचना चाहते थे.

हम लोग कमरे से बाहर निकले तो बाहर हॉल मे निक्की टहल रही थी. वो इस समय ब्लॅक जीन्स और वाइट टी-शर्ट पहने थी. उसमे वो बला की खूबसूरत लग रही थी. फिर भी मैने उसे देखते ही इस तरह मूह बना लिया जैसे कोई अनचाहा मेहमान घर मे आ जाता है. निक्की ने एक नज़र मेरी तरफ डाली और मुझे मूह बनाया हुआ देख कर उसने मेहुल से कहा.

निक्की बोली "आप लोग तैयार हो गये. मैं आप लोगों को जगाने गयी थी पर देखा कि आप लोग जाग चुके हो. मैं भी आप लोगों के साथ चल रही हूँ."

मेहुल बोला "क्यों क्या राज हम लोगों के साथ नही जाएगा."

निक्की बोली "राज और बाकी सब लोग यहा देर से ही सोकर उठते है. जैसे ही उसकी नींद खुलेगी वो पहुच जाएगा. मैं जल्दी उठ जाती हूँ इसलिए मैं आप लोगों के साथ चल रही हूँ."

मैं बोला "हम लोग टॅक्सी लेकर चले जाएगे. आपको परेशान होने की कोई ज़रूरत नही है."

निक्की बोली "इसमे परेशानी वाली कोई बात नही है. उस हॉस्पिटल मे मेरी एक फ्रेंड के भाई डॉक्टर. है. मैं उन्हे भाई मानती हू. उन से आप लोगों को बहुत हेल्प हो जाएगी इसलिए मैं आपके साथ चल रही हूँ, फिर चाहे कल से आप लोग अकेले चले जाना."

मेहुल बोला "निक्की ठीक कह रही है. अब हमे बेकार की बातों मे समय बर्बाद नही करना चाहिए और जल्दी से हॉस्पिटल चलना चाहिए."

मेहुल की बात सुनकर हम तीनो बाहर आ गये और एक टॅक्सी लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े. 6:30 बजे हम लोग हॉस्पिटल पहुच गये. हम मे से किसी एक को ही हॉस्पिटल के अंदर जाने की इजाज़त थी क्योंकि हॉस्पिटल के रूल के अनुसार मरीज के साथ कोई एक अटेंडर ही रह सकता था और उसके लिए हमें एक गेट पास दिया गया था. लेकिन निक्की ने हॉस्पिटल पहुच कर अपनी सहेली के भाई को फोन लगाया. जो उस समय इतेफ़ाक से अपनी ड्यूटी पर थे. निक्की की सहेली के भाई आए तो उन्हो ने से निक्की ने हमारा परिचय करवाया. निक्की ने उनसे कहा.

निक्की बोली "भैया ये है मेरी सहेली प्रिया के रिश्तेदार है. ये है मेहुल जिनके पापा अड्मिट है और ये इनके दोस्त पुनीत."

फिर निक्की ने हम से उसका परिचय करवाया.

निक्की बोली "ये मेरे भाई अमन खन्ना है. ये इस हॉस्पिटल मे डॉक्टर. है और आपको यहाँ किसी भी तरह की परेशानी हो आप इनसे कह सकते है."

इसके बाद निक्की ने उनसे सारी बात बताई. डॉक्टर अमन खन्ना ने हमारे लिए एक और गेट पास का इंतेजाम कर दिया. फिर हम तीनो डॉक्टर अमन के साथ अंकल के पास गये. हम ने अंकल से निक्की का परिचय करवाया. डॉक्टर. अमन कुछ देर तक हमारे साथ रहे और फिर वहाँ के स्टाफ को कुछ ज़रूरी हिदायत देकर चले गये.

फिर 7:00 बजे अंकल को ऑपरेशन के लिए तैयार किया जाने लगा. डॉक्टर. ने हम लोगों से कहा आप में से एक ही यहाँ रुके बाकी के दो लोग वेटिंग लोंगे मे जाकर बैठे. तब मैं और निक्की वेटिंग लोंगे मे आ गये. लेकिन कुछ देर बाद निक्की ने कहा.

निक्की बोली "मुझे यहाँ के एसी मे बहुत ठंड लग रही है. क्या हम बाहर चल कर बैठ सकते है."

मैं बोला "हाँ क्यों नही. हम यहाँ बैठे या बाहर बैठे एक ही बात है."

ये कह कर मैने मेहुल को कॉल लगा कर कहा. हम लोग हॉस्पिटल के बाहर जा रहे है. तुझे ज़रूरत हो तो मुझे कॉल करके बुला लेना. इसके बाद मैं निक्की के साथ हॉस्पिटल से बाहर आ गया. बाहर समुंदर का किनारा था और सुबह की गुनगुनी धूप थी. हम लोग वही समुंदर के किनारे आकर बैठ गये.

सुबह का वक्त होने की वजह से वहाँ एक्का दुक्का लोग ही थे. किनारे पर आती जाती लहरों के पास ही कुछ दूरी पर कबूतरों का झुंड भी बैठा हुआ था. मेरे लिए समुंदर की ये आती जाती लहरें और कबूतरों का बैठा हुआ वो झुंड, दोनो ही मन मोहक थे. मैं कभी समुंदर की आती जाती लहरों को देखता तो कभी कबूतरों के उस झुंड मे खो जाता.

मेरे और निक्की के बीच आपस मे कोई बात नही हो रही थी. शायद निक्की मुझसे बात करने की सोच भी रही हो, पर मेरे मन मे उस से बात करने या ना करने को लेकर उस समय कोई बात नही थी. बहुत देर तक हम दोनों के बीच खामोशी रही.

फिर निक्की ने ही इस खामोशी को तोड़ते हुए कहा कि वो अभी आती है. ये कह कर वो मेरे पास से उठ गयी. मैं समुंदर की लहरों को छोड़ कर निक्की को जाते हुए देखने लगा, कि ये कहाँ जा रही है. निक्की थोड़ी दूर चलकर गयी और वहाँ बैठे एक आदमी से उसने कबूतरों का दाना खरीदा और वापस मेरे पास आकर बैठ गयी.

कबूतरों का झुंड हम लोगों के काफ़ी करीब था. निक्की बैठे बैठे उन्हे दाना चुगाने लगी. कबूतरों को दाना चुगते देख मुझे बहुत अच्छा लगा और निक्की का ये करना मुझे बहुत अच्छा लगा था. ये दृश्य देख कर मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी. जो शायद निक्की ने पहली बार मेरे चेहरे पर देखी थी.

उसने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा "बहुत आनंद आता है इन्हे दाना चुगाने मे. ये लीजिए आप भी दाना चुगाए."

मैने उस से बिना कुछ बोले दाना अपने हाथ मे ले लिया और कबूतरों को चुगाने लगा. मुझे ऐसा कर बहुत ही अच्छा लग रहा था. कबूतरों को दाना चुगाने से मुझे जिस सुख का अहसास हुआ उससे मेरे अंदर का सारा तनाव निकल गया था. मेरा मूड बदला हुआ और मुझे यू खुश देख कर निक्की ने कहा.

निक्की बोली "आप के अंदर अभी भी एक छोटा सा बच्चा है. जो ज़रा ज़रा सी बातों मे नाराज़ हो जाता है और ज़रा ज़रा सी बातों मे खुश भी हो जाता है. आप ऐसे ही बहुत अच्छे लगते है."

कुछ पल के लिए मैने निक्की की तरफ देखा. उसके चेहरे पर मुझे मनाने वाली मुस्कान थी. मैने फिर वापस कबूतरों को दाना चुगाते हुए कहा.

मैं बोला "मैं बचपन से ही ऐसा हूँ. मेरी सारी दुनिया सिर्फ़ कुछ लोगों मे ही सिमटी हुई है और मैं उसी मे खुश रहता हूँ. मुझे नये लोगों से मिलना जुलना ज़्यादा अच्छा नही लगता."

निक्की बोली "वो तो मैं आपको देख कर ही समझ गयी थी. लेकिन आप को ये नही लगता कि आप वेवजह मुझसे नाराज़गी जता रहे थे."

मैं बोला "मैं भला आपसे क्यों नाराज़गी जताउन्गा. आपने ऐसा किया ही क्या है."

निक्की बोली "अगर आप नाराज़ नही है तो फिर मेरे साथ इस तरह का रूखा बरताव क्यों कर रहे थे."

मैं बोला "अब आप इतनी भी भोली नही है कि आप इसका मतलब भी ना समझती हो."

निक्की बोली "मैं तो अच्छी तरह से जानती हूँ और आप भी ये अच्छी तरह से जानते है कि इस सब मे मेरा कोई दोष नही है. अब आपकी कजिन से मेरी शकल मिलती है तो इसमे मेरी ग़लती क्या है."

मैं बोला "आपकी कोई ग़लती नही है पर कहीं ना कहीं आपकी वजह से मेरे दिल को ठेस लगी है."

निक्की बोली "लेकिन इसमे मैं ग़लत होती तो मान भी लेती. मुझे भी किसी से मेरी बराबरी किया जाना पसंद नही है. मगर जो सच है उस से भी आँखे चुराना मेरी आदत नही है. आप खुद अपने दिल पर हाथ रख कर कहो कि मैं ग़लत हूँ. फिर भी यदि आपको मेरी वजह से ठेस लगी है तो उसके लिए मैं माफी चाहती हूँ."

मैने निक्की की तरफ गौर से देखा. उसके चेहरे पर उस समय मासूमियत और शर्मिंदगी के भाव थे. जिस वजह से वो बहुत ही प्यारी लग रही थी और मेरा मन उसकी इस मासूमियत को देख कर उसकी तरफ से साफ हो चुका था. मगर इस शर्मिंदगी के कारण उसका खिला हुआ चेहरा मुरझा गया था. मैने उसकी शर्मिंदगी दूर करने की गरज से कहा.

मैं बोला "आपको माफी माँगने की कोई ज़रूरत नही है. जो हो गया उसे भूल जाना ही बेहतर है. आप का स्वभाव मुझे अच्छा लगा. उम्मीद करूगा कि आप मेरी कही बात को दिल से नही लगाएगी."

मेरी बात सुनकर निक्की का चेहरा वापस खिल उठा. उसने चहकते हुए कहा.

निक्की बोली "यदि आपकी बात को दिल से लगाना होता तो अभी आपके साथ नही बैठी होती. मैं आपकी बात को समझ चुकी हूँ और यह भी अच्छी तरह से समझ गयी हूँ कि आप अपनी कजिन को बहुत प्यार करते है तभी आपको उससे मेरी बराबरी किए जाने पर ये ठेस लगी है."

मैं बोला "हाँ मैं उसे बहुत प्यार करता हूँ पर ऐसा करना कोई तो ग़लत नही है. सभी अपने कजिन को प्यार करते ही है."

निक्की बोली "मैं उस प्यार की बात नही कर रही. मुझे लगता है कि आप अपनी कजिन को बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड वाला प्यार करते है और इस बात को शायद आप दोनो के सिवा कोई नही जानता. वरना मेहुल ने इस बात को इतनी आसानी से नही कह दिया होता."

मैं बोला "जैसा आप सोच रही है, ऐसी कोई बात नही है."

निक्की बोली "मुझे ऐसा लगा तो मैने बोल दिया. हो सकता है कि मेरा अनुमान ग़लत हो. फिर भी आप यदि चाहे तो मुझे अपना दोस्त समझ कर अपनी फीलिंग्स शेयर कर सकते है."

मैं बोला "आपने मुझे अपना दोस्त समझा उसके लिए थॅंक्स. मुझे आपकी दोस्ती मंजूर है. मैं आपकी बात को याद रखुगा और यदि आगे शेयर करने वाली कोई बात हुई तो मैं आप से ज़रूर शेयर करूगा. अब मैं आप से एक बात पुछु."

निक्की बोली "अब आपने मुझे दोस्त मान ही लिया है तो ये बात भी अच्छे से समझ लीजिए कि, दोस्तो को किसी बात को पूछने के लिए एक दूसरे से इजाज़त लेने की ज़रूरत नही होती. आप बेशक मुझसे कुछ पूछ सकते है."

मैं बोला "आप रिया और राज के घर मे कब से आ जा रही है."

निक्की बोली "मेरा तो सारा बचपन ही यही बीता है. मेरे डॅड ने मुझे बचपन मे ही बोर्डिंग मे भेज दिया था. तब से मेरा समय अपने घर मे कम और रिया के घर मे ज़्यादा बीता है. दादा जी और घर के बाकी लोग मुझे घर के किसी सदस्य की तरह ही प्यार करते है."

मैं बोला "तब तो आप घर के सभी लोगों के बारे मे अच्छे से जानती होगी."

निक्की बोली "हाँ मैं सभी को अच्छे से जानती हूँ, पर आप ऐसा क्यों पूछ रहे है."

मैं बोला "तो आपको कभी रिया और राज के रिश्ते मे कुछ अजीब सा नही लगा."

निक्की बोली "नही मुझे तो कुछ भी अजीब नही लगा. दोनो अच्छे भाई बहन की तरह रहते है और दोनो मे आपस मे बहुत प्यार है. आपको इसमे क्या अजीब लगा है."

मैं बोला "कुछ नही. बस ऐसे ही मन मे ख़याल आया तो पूछ लिया."

निक्की बोली "नही ऐसा नही हो सकता. आपको जितना मैं अभी जान पाई हूँ. उस से इतना तो समझ समझ सकती हूँ कि, आप कभी कोई फालतू की बात करना पसंद नही करते. आपने ये बात पूछी है तो ज़रूर इसमे कोई राज की बात छुपि होगी. वरना आप इस बात को हरगिज़ नही पूछते."

मैं बोला "ऐसा कुछ भी नही है. मैने तो बस यू ही पूछ लिया."

निक्की बोली "ये तो ग़लत बात है. आपने मुझे दोस्त तो कहा पर मुझे दिल से दोस्त नही माना. आपको पता होना चाहिए कि सच्चे दोस्तों से कोई बात छिपाइ नही जाती. मुझे लगता है कि आपने मुझे अपना दोस्त दिल से नही माना है वरना आप अपने दिल की बात खुल कर बोल देते."

मैं बोला "मुझसे आपकी दोस्ती हुए तो अभी कुछ ही देर हुई है जबकि आपका रिया के परिवार से रिश्ता बचपन का है. फिर मैं कैसे मान लूँ कि आप मेरी बात को अपने तक ही रखेगी. रिया लोगों तक नही जाने देगी."

निक्की बोली "दोस्ती मे नया पुराना नही देखा जाता. दोस्ती दिल से की जाती है और निभाई भी दिल से जाती है. दोस्ती का दूसरा नाम ही विस्वास है. आप यकीन रखिए कि आप जो कुछ भी कहेगे वो सिर्फ़ आपके और मेरे बीच ही रहेगा. वो बात कभी किसी तीसरे को मालूम नही होगी."

मैं बोला "आपकी मेरी दोस्ती तो सिर्फ़ तभी तक की है, जब तक मैं यहाँ हूँ. उसके बाद तो आप अपने रास्ते और मैं अपने रास्ते पर निकल जाउन्गा. लेकिन जो बात मैं बोलुगा यदि वो बात खुल जाती है तो उस से रिया और राज के परिवार मे अच्छा ख़ासा तूफान उठ सकता है."

निक्की बोली "बात तो आपकी सही है. शायद आपके जाने के बाद हमारी कभी मुलाकात भी ना हो मगर इस बात को भी नही झुठलाया जा सकता कि कुछ दोस्त चाहे थोड़े समय के लिए ही साथ क्यों ना हो, पर वो दिल मे ऐसी जगह बना लेते है कि उनकी जगह कोई नही ले सकता."

मैं बोला "तो क्या मैं ऐसे दोस्तो की कतार मे आता हूँ, जो दिल मे जगह बना लेते है."

निक्की बोली "बेशक आप ऐसे ही दोस्तो की कतार मे आते है. रिया ने हम लोगों को आपके आने के पहले ही आपके बारे मे बहुत कुछ बताया था. उसमे ये बात भी शामिल थी कि आपको मेहुल के मम्मी पापा कितना प्यार करते है और आज आपको उनके लिए ये सब करते देख मेरे दिल मे आपकी इज़्ज़त और भी बढ़ गयी है. बहुत कम दोस्त ऐसे होते है जो मुसीबत के समय अपने दोस्त के काम आते है. शायद यही वजह थी कि आपके इतना सब कहने के बाद भी मेरे मन मे आपके लिए कोई मैल नही आया."
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09-09-2020, 01:05 PM,
#58
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
निक्की की इन बातों ने सीधे मेरे दिल पर असर किया. मैं समझ नही पा रहा था कि उस से वो बात करूँ या ना करूँ. मगर फिर मैने निक्की की दोस्ती को आज़माने की गरज से बात कह देना ही ठीक समझा. मैने निक्की से बड़े ही संजीदा शब्दो मे कहा.

मैं बोला "ठीक है यदि आप मुझे सच्चा दोस्त समझती है तो, मैं भी आप से ये बात ज़रूर शेयर करूगा मगर आपको वादा करना होगा कि आप इस बात के बारे मे रिया राज या प्रिया से कुछ पूछेगी नही."

निक्की बोली "मैं वादा करती हूँ कि मैं ना तो किसी से कुछ पूछुगी और ना ही आप से हुई बात के बारे मे किसी से कोई जिकर करूगी."

मैं बोला "आपको मालूम है कि रिया और राज के बीच मे सेक्स रिलेशन्षिप है."

मेरी बात को सुनकर निक्की को एक जोरदार धक्का लगा. कुछ देर वो मेरा चेहरा देखती रही और मेरी बात को समझने की कोशिस करती रही. मैने उसे यूँ देखा तो मैने अपनी बात को आगे बढ़ाया.

मैं बोला "ये सब मैने अपनी आँखों से देखा है. ये दोनो जब मेरी सिटी आए थे और मैं इनसे नही मिला था तब मैने इन्हे एक पार्क मे एक दूसरे से सेक्स करते देखा था. उसके बाद जब मैं नितिका के घर पहुचा तब मेरी इनसे मुलाकात हुई थी. तब मुझे पता चला था कि ये दोनो भाई बहन है."

इतना कह कर मैं चुप हो गया मगर निक्की को अभी भी मेरी कही बात पर यकीन नही हो रहा था. वो अभी कुछ बोल पाती उस से पहले ही मुझे राज आता दिखाई दे गया. मैने निक्की को बताया कि राज आ रहा है. उसने अपने चेहरे के भावों को बदला और दूसरी बात करने लगी. राज ने आकर ऑपरेशन के बारे मे पूछा तो मैने कहा अभी चल रहा है और मेहुल उपर ही है. फिर मैने घड़ी मे टाइम देखा तो 9:30 बज गये थे. मैने मेहुल को कॉल लगाया और पूछा.

मैं बोला "क्या हुआ. अंकल ऑपरेशन थियेटर से बाहर आए या नही."

मेहुल बोला ".................... (अभी तो ऑपरेशन चल ही रहा है.)

मैं बोला "ठीक है. मैं उपर आता हूँ. तू कुछ देर के लिए नीचे आ जाना."

मेहुल बोला "................... (ठीक है. तू आजा.)

मैने निक्की और राज से कहा मैं उपर जा रहा हूँ. मेहुल आए तो तुम लोग उसके साथ कुछ चाय नाश्ता कर लेना. क्योंकि वो शायद अकेले ऐसे समय मे कुछ ना खाए. निक्की ने मुझे भी चाय नाश्ता करने को कहा तो मैने कहा, मैं बाद मे आकर कर लूँगा. ये कह कर मैं हॉस्पिटल के अंदर चला गया. उपर पहुच कर मैने मेहुल को नीचे भेजा और फिर मैं ऑपरेशन थियेटर के बाहर खड़ा रहा.

ऑपरेशन बड़ा था इसलिए बहुत समय लग रहा था. मेहुल बीच बीच मे मुझे कॉल करके ऑपरेशन के बारे मे पूछता रहा और मैं उसे बताता रहा कि अभी ऑपरेशन चल ही रहा है. मेहुल 12 बजे फिर मेरे पास आ गया. मैने उस से पूछा कि उसने चाय नाश्ता कर लिया तो उसने बताया कि वो राज के साथ चाय नाश्ता कर के आया है. निक्की मेरे लिए रुकी हुई है. मैं भी जाकर चाय नाश्ता कर लूँ.

मेहुल को उधर छोड़ कर मैं नीचे निक्की और राज के पास आ गया. राज ने मुझसे कहा कि वो अभी यहाँ खड़ा है. तुम और निक्की जाकर चाय नाश्ता कर आओ. फिर मैं निक्की के साथ चाय नाश्ता करने गया. नाश्ता करते समय निक्की ने फिर हमारी पहले की अधूरी छूटी बात को आगे बढ़ाते ही कहा.

निक्की बोली "क्या आपने सच मे रिया और राज को ऐसा करते देखा था."

मैं बोला "मैं झूठ क्यों बोलुगा और वो भी तब जब रिया और राज हमारी इतनी मदद कर रहे है."

निक्की बोली "हाँ ये बात तो आपकी सही है. भला कोई अपनी मदद करने वाले की वेवजह बुराई क्यों करेगा. सच कहूँ तो मुझे कभी कभी ऐसा लगता था कि, इन दोनो के बीच मे ज़रूर कुछ ना कुछ खिचड़ी पक रही है मगर ये ऐसी खिचड़ी पक रही है, इसका मुझे ज़रा भी अंदेशा नही था. मुझे तो अभी भी इस बात पर यकीन नही हो रहा है."

मैं बोला "अब यकीन करो या ना करो पर जो मैने देखा था. वो आपको सच सच बता दिया. बस मेरी ये समझ मे नही आया कि दोनो मे कोई कमी नही है. उन्हे एक से बढ़ कर एक लड़के लड़कियाँ मिल जाते. फिर उन्हे आपस मे ये सब करने की क्या ज़रूरत थी."

निक्की बोली "अब इस बात का जबाब तो वो दोनो ही दे सकते है कि, उन्हे ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी पर हम चाह कर भी ये बात उनसे पूछ नही सकते. लेकिन मैं इतना ज़रूर कहुगी कि इस बात को जान लेने के बाद मेरे दिल मे दोनो के लिए अब वो जगह नही रही जो पहले थी."

मैं बोला "देखिए मेरा आपको ये बात बताने का मतलब आप लोगों के रिश्ते मे खटास डालने का हरगिज़ नही था. मैं तो सिर्फ़ ये जानना चाहता था कि उन दोनो के बीच ये सब होने की वजह क्या थी. फिर किसी अजनबी की बातों मे आकर अपने अच्छे भले रिश्ते को यूँ मिटाना अच्छी बात नही है."

निक्की बोली "बात आपकी सही है मगर मुझे आप अजनबी नही लगते, और मुझे आपकी बात पर पूरा यकीन है. अब इस बात को छोड़िए और ये बताइए क्या आपकी कोई गर्लफ्रेंड है."

मैं बोला "है भी और नही भी."

निक्की बोली "ये कैसा जबाब हुआ."

अभी हमारी बात चल ही रही थी कि तभी डॉक्टर. अमन हमरी तरफ आते हुए दिखे. उनके साथ एक लेडी डॉक्टर. भी थी. वो हमारे पास आए तो हम दोनो उठ कर खड़े हो गये. हमें खड़ा होते देख कर उन्हो ने कहा.

अमन "अरे तुम लोग खड़े क्यों हो गये. बैठो हमें तो बस तुम लोगों का 5 मिनिट का टाइम चाहिए."

उनकी बात सुनकर हम लोग बैठ गये और वो दोनो भी हमारे साथ ही बैठ गये. हम बड़ी बेसब्री से उनके बोलने का इंतजार कर रहे थे. फिर डॉक्टर. अमन खन्ना ने मुझसे कहा.

अमन "तुम निक्की के फ्रेंड हो इस नाते तुम हमारे भी खास मेहमान हो. मेरी मजबूरी ये है कि मैं हॉस्पिटल आते ही मरीजों मे इतना उलझ जाता हूँ की चाहकर भी तुम्हे समय नही दे सकुगा, इसलिए मैं तुम्हे डॉक्टर. निशा से मिलाना चाहता हूँ. ये है डॉक्टर. निशा. अब से तुम्हे यहाँ किसी भी बात की कोई परेशानी हो तुम बेहिचक इनसे बता सकते हो. ये डॉक्टर. होने के साथ साथ तुम लोगों की होने वाली भाभी भी है."

ये सुनकर मुझसे तो कुछ कहते नही बना मगर निक्की डॉक्टर. अमन के कान खिचने लगी. उसने डॉक्टर अमन से कहा.

निक्की बोली "वाह भैया वाह. जब हम लोग पूछते थे कि क्या निशा जी ही हमारी होने वाली भाबी है, तो आप कहते थे कि हम लोगों को इसके सिवा कोई बात करना नही आती. अब खुद ही बोल रहे हो कि ये हमारी होने वाली भाभी है. आख़िर अब तक हमारी भाबी को हम से छिपा कर क्यों रखा था."

निक्की की ये बात को सुनकर डॉक्टर. अमन मुस्कुरा दिए. फिर उन्होने डॉक्टर. निशा की तरफ देखा और बोलने का इशारा किया तो डॉक्टर निशा ने निक्की से कहा.

निशा "देखो हम दोनो अपने रिश्ते को लेकर बहुत ही मुश्किल दौर से गुजर रहे थे. अमन की तरफ से तो कोई परेशानी नही थी मगर मेरे घर वाले इस रिश्ते को लेकर खुश नही थे. मेरे पिताजी अपने किसी दोस्त के डॉक्टर. बेटे से मेरा रिश्ता करना चाहते थे. मैं अमन से शादी करना तो चाहती थी मगर अपने घर वालों की मर्ज़ी के बिना नही. इसी वजह से अमन ने तुम सब से इस बात को छुपाये हुए रखा था, क्योंकि हम नही जानते थे कि हमारा रिश्ता बन भी पाएगा या नही. लेकिन अब सारी परिस्थतियाँ बदल चुकी है, और मेरे घर वाले भी इस रिश्ते के लिए तैयार हो गये है. इसलिए अब हमे इस बात को किसी से छुपाने की कोई ज़रूरत नही है."

निक्की बोली "चलो कोई बात नही. मुझे तो खुशी हो रही है कि आप दोनो लव मॅरेज कर रहे है. अब तो आप मेरी भाभी लगी. क्या अब मैं आपको भाभी कहकर पुकार सकती हूँ."

निशा बोली "हाँ. तुम्हारा दिल जो कहे तुम मुझे वो कहकर पुकार सकती हो मगर ये बात तब तक किसी को पता नही लगना चाहिए जब तक अमन खुद ही इस बात को सबको बता नही देता."

निक्की बोली "किसी को भी कुछ पता नही चलेगा पर मुझे ये बात सुनकर बहुत खुशी हुई है. अब तो आप दोनो को पार्टी देना होगी."

निशा "पार्टी भी मिलेगी मगर सब के साथ. अब तुम लोग बैठो. हम लोगों को अभी और भी मरीज देखना है."

ये कह कर डॉक्टर. अमन और निशा चले गये. मैं उनके बारे मे और भी कुछ जानना चाहता था. अभी मैं निक्की से कुछ पूछने ही वाला था कि निक्की बोल उठी.

निक्की बोली "अब सब बात छोड़िए. आपने कीर्ति की इतनी तारीफ की है और वो मेरी हम्शकल भी है. ये सब जानकर तो मेरा मन कीर्ति को देखने का कर रहा है. क्या आपके पास उसकी कोई फोटो है."

मैं बोला "मेरे पास कीर्ति की बहुत सी फोटो है मगर उसे देखने के लिए आपको मेरी एक शर्त माननी होगी."

निक्की बोली "मुझे आपकी सारी शर्त मंजूर है. अब जल्दी से कीर्ति का फोटो दिखाइए."

मैं बोला "अरे पहले शर्त तो सुन लीजिए. क्या पता मेरी शर्त आपको पसंद ना आए."

निक्की बोली "ये सब फालतू की बात मत कीजिए. मैं जानती हूँ कि आप कोई भी ऐसी शर्त नही रखेगे. जो मुझे पसंद ना आए. फिर भी आपकी जो शर्त है जल्दी से बताइए क्योंकि मैं कीर्ति को जल्द से जल्द देखना चाहती हूँ."

मैं बोला "आप कीर्ति का फोटो देखना चाहती है तो मैं भी कीर्ति को आपका फोटो दिखाना चाहता हू. मेरी शर्त ये है कि आपको इसके बदले मे अपनी भी कुछ फोटो मुझे देनी होगी."

निक्की बोली "मुझे मंजूर है. अब तो जल्दी से फोटो दिखाइए."

निक्की की बात सुनकर मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी. मैने मुस्कुराते हुए अपना मोबाइल निकाला और उसमे सेव कीर्ति की फोटो का फोल्डर खोलकर मोबाइल निक्की को पकड़ा दिया. निक्की बड़े ही आश्चर्य के साथ कीर्ति की फोटो देखने लगी. जैसे जैसे वो कीर्ति की फोटो देखती जा रही थी. वैसे वैसे ही उसके चेहरे की रंगत भी बदलती जा रही थी.

मैं बड़े गौर से निक्की के चेहरे के बदलते हुए भाव को देख रहा था और मुस्कुरा रहा था. लेकिन अचानक ही तभी कुछ ऐसा हो गया कि, मेरे चेहरे की मुस्कुराहट कही गायब हो गयी और निक्की मुझे देख कर मुस्कुराने लगी.

निक्की के हाथ मे मेरा मोबाइल था और मोबाइल की रिंग टोन बज रही थी और स्क्रीन पर नाम की जगह जान लिखा आ रहा था. जिसे देख कर निक्की की मुस्कुराहट और गहरी हो चुकी थी. उसने मोबाइल मेरे हाथ मे थमा दिया और बड़े गौर से मेरा चेहरा देखने लगी. मैने मोबाइल उसके हाथ से लिया और कॉल उठा कर कहा.

मैं बोला "क्या हुआ. बहुत जल्दी उठ गयी तू."

कीर्ति बोली "जल्दी कहाँ है. टाइम देखो 12:30 बज गये है. मौसी भी गुस्सा हो रही थी कि रोज तो 6 बजे उठ जाती है और यहाँ आते ही तेरे रंग ढंग बदल गये है."

मैं बोला "तूने अचानक कॉल कैसे कर दिया."

कीर्ति बोली "तुम्हारी चोरी पकड़ने के लिए. मेरे जासूस चारो तरफ फैले हुए है. ये तुम क्या कर रहे हो."

उसकी बात सुनकर मैं सच मुच सकपका कर रह गया. मैने अपने आपको संभालते हुए कहा.

मैं बोला "मेरी चोरी.? कौन सी चोरी की बात कर रही हो.? मैने क्या चोरी की है और यहाँ तेरे जासूस कहाँ से आ गये है.?"

कीर्ति बोली "मुझे मेहुल ने सब कुछ बता दिया है कि तू अभी क्या कर रहा है."

मैं बोला "मेहुल ने तुझे ऐसा क्या बता दिया है और तूने उसे कॉल क्यों किया था."

कीर्ति बोली "कॉल मैने नही मेहुल ने किया था."

मैं बोला "झूठ मत बोल. मेहुल तुझे कॉल क्यों करेगा. सच सच बोल तू किस चोरी की बात कर रही है."

कीर्ति बोली "अरे मैं तो बस मज़ाक कर रही थी पर तुम तो ऐसा डर रहे हो जैसे सच मे ही तुमने कोई चोरी की हो. मुझे तो लगता है ज़रूर दाल मे कुछ काला है. सच सच बोलो तुम इस समय कहाँ हो और किस के साथ हो."

मैं बोला "मैं किसी के भी साथ नही हूँ. मैं अकेला ही हूँ और अभी चाय नाश्ता करने कॅंटीन मे आया हूँ."

कीर्ति बोली "मुझसे झूठ मत बोलो. सच बताओ कौन है तुम्हारे साथ."

मैं बोला "सच मे कोई नही है. मैं अकेला ही हूँ."

कीर्ति बोली "सच बोल रहे हो ना. कही मुझसे कुछ छुपा तो नही रहे हो. कही कोई लड़की वाड्की तो तुम्हारे साथ नही है."

मैं बोला "सच मे ही मैं अकेला हूँ. यहाँ आते ही भला कहाँ से कोई लड़की मिल जाएगी."

कीर्ति बोली "क्यों क्या रिया लड़की नही है. क्या वो तुम्हारे साथ नही हो सकती."

मैं बोला "रिया मेरे साथ हो सकती थी, अगर वो हमारे साथ घर से आई होती. लेकिन जब हम लोग घर से निकले थे, तब वो सो ही रही थी. अभी कुछ देर पहले राज आया है पर वो अकेला ही आया है."

कीर्ति बोली "हाँ ये तो बहुत ही बुरा हुआ है. तुम्हे एक ही तो लड़की पसंद आई थी और वो भी तुम्हारा साथ देने नही आई."

मैं बोला "तुझे तो हर समय ही मज़ाक सूझता रहता है. मैं तो समझा था कि तू अब सुधर गयी है, मगर अब लगता है कि तू कभी नही सुधर सकती."

कीर्ति बोली "सॉरी जान गुस्सा मत हो. मैं तो तुम्हे ऐसे ही छेड़ रही थी, ताकि तुम्हारा मूड फ्रेश हो जाए, पर तुम तो मुझ पर ही गुस्सा होने लगे. क्या वहाँ जाते ही मुझे भूल गये हो."

मैं बोला "यदि तुझे भूल गया होता तो, फिर यहाँ चाय नाश्ता करने क्यों आता. क्या तूने ही नही कहा था कि समय पर खाना पीना खाते रहना."

कीर्ति बोली "पर तुम इतना कब से सुधर गये कि, अकेले चाय नाश्ता करने जाने लगे."

मैं बोला "तूने ही कहा था कि मेरी जान का ख़याल रखना. नही तो तू मेरी जान का ख़याल नही रखेगी."

बोलने को तो मैं घबराहट मे ये बात कीर्ति से बोल गया था, पर जैसे ही मेरी नज़र निक्की पर पड़ी तो मुझे अहसास हुआ कि मैं किस के सामने, क्या बोले जा रहा हूँ. निक्की बड़े मन लगा कर मेरी बात सुन रही थी, और बात करते समय मेरी पतली हालत देख कर धीरे धीरे मुस्कुरा भी रही थी, तो दूसरी तरफ कीर्ति कह रही थी.

कीर्ति बोली "गुड अच्छी बात है. तुम नाश्ता करो मैं फ्रेश होकर फिर कॉल करती हूँ."

मैं बोला "ठीक है अब तू रख."

कीर्ति बोली "अरे ऐसे कैसे रख दूं. पहले मेरी गुड मॉर्निंग क़िस्सी तो दे दो."

मैं बोला "अब कैसी मॉर्निंग. दोपहर हो गयी है. अब ज़्यादा बात मत कर और कॉल रख."

कीर्ति बोली "नही जब जागो तभी सवेरा है. मुझे किसी दो तभी मैं कॉल रखुगी."

मैं बोला "मैं इधर रेस्टौरेंट मे हूँ. सब देख रहे है."

कीर्ति बोली "देख रहे है तो देखने दो. क्या देखने वालों की कोई गर्लफ्रेंड नही होगी जो वो तुम्हारे किस करने का मतलब भी ना समझ सके. वैसे भी उधर तुम्हे कौन पहचानता है. जिस से तुम इतना डर रहे हो. किसी दो नही तो मैं फोन
नही रखुगी."

मैं बोला "तू भी हमेशा बच्चों की तरह ज़िद करती रहती है. देख अभी ज़िद मत कर, बाद मे एक साथ ले लेना."

कीर्ति बोली "नही मुझे अभी चाहिए हुन्न्ं हुन्न्ं."

मेरी कीर्ति से इस तरह बहस चलते देख शायद निक्की समझ गयी थी कि कीर्ति किस चीज़ के लिए ज़िद कर रही है, और मैं क्यों मना कर रहा हूँ. निक्की ने मुझे कीर्ति की ज़िद को पूरा करने का इशारा किया. तब मैने कीर्ति से कहा.

मैं बोला "ठीक है, तू ऐसे नही मानेगी. मुहह मुहह."

कीर्ति बोली "मुहह मुहह."

फिर कीर्ति ने कॉल काट दिया, और मैं सर झुका कर बैठ गया. मैं सोच रहा था कि मुझे निक्की को मोबाइल ही नही दिखाना चाहिए था. मैं कैसे भूल गया कि 12 बजे के बाद कभी भी कीर्ति का कॉल आ सकता है. मैं अभी ये सब सोच ही रहा था कि निक्की बोल पड़ी.

निक्की बोली "आपने कीर्ति से झूठ क्यों बोला कि आप अकेले है."

मैं बोला "आप कीर्ति को नही जानती. मैं यदि झूठ नही बोलता तो, वो बाल की खाल निकालने लगती."

देने को तो मैने निक्की की बात का जबाब एक झटके मे दे दिया था. लेकिन जबाब देने के बाद मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ कि, मैं ये बात क्यों बोल गया. मैने ये बात बोल कर, निक्की की बात पर ये मुहर लगा दी थी, कि कॉल करने वाली लड़की कीर्ति ही थी. मेरा जबाब सुनकर निक्की के चेहरे की मुस्कुराहट और भी बढ़ गयी थी. निक्की बोल पड़ी.

निक्की बोली "चलो कीर्ति ना सही पर मैने तो आपकी चोरी पकड़ ही ली. अभी आपके पास जिसका कॉल आया था. वो कीर्ति थी और उसका मोबाइल नंबर आपने जान नाम से सेव किया है. अब तो आपको मानना ही पड़ेगा कि आपकी गर्लफ्रेंड कीर्ति ही है, और आप उस से ही प्यार करते है."

मैं बोला "हाँ ये सच है कि मेरे लिए जो कुछ भी है सिर्फ़ कीर्ति ही है. अब आप उसे जो चाहे समझ सकती है."

निक्की बोली "तो आप इस बात को क्यों नही मानते कि, कीर्ति से आपको बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड वाला प्यार है."

मैं बोला "मुझे डर लगता है. क्या पता मेरे परिवार वाले इस बात को जान कर, कहीं उसी तरह से ना सोचे, जैसा हम राज और रिया के बारे मे जानकार सोच रहे है."

निक्की बोली "बात तो सच मे सोचने की है पर, जहाँ तक मुझे पता चला है कि कीर्ति आपकी सग़ी मौसी की लड़की नही है. यदि होती भी तब भी आपके रिश्ते मे कोई ग़लत नही है. इस रिश्ते को समाज भी मान लेगा और शायद परिवार वाले भी मान ले."

मैं बोला "बात सगे और सौतेले की नही है. बात तो दिलों के रिश्तों की है. मेरी छोटी माँ ने कभी मुझे मेरी माँ की कमी का अहसास नही होने दिया. उन्हे देख कर कभी लगा ही नही कि, वो मेरी सौतेली माँ है. मेरी छोटी माँ और मेरी छोटी बहनें मुझे जान से भी ज़्यादा प्यारी है. मैं उन्हे अपनी वजह से ना तो कोई दुख पहुचाना चाहता हूँ, और ना ही उनका दिल दुखाना चाहता हूँ. काश आपकी बात सही हो जाए और कीर्ति मेरी हमेशा के लिए हो जाए तो, मैं जिंदगी भर भगवान से कुछ नही माँगूंगा."

मेरी बात सुनकर निक्की ज़ोर से हँसने लगी, और मैं उसकी तरफ हैरानी से देखने लगा. मैं सोचने लगा मैने इतनी संजीदा बात कही और ये इस तरह हंस रही है. मैने तो कोई हँसी वाली बात कही ही नही थी. निक्की ने मेरी तरफ देखा तो अपनी हँसी रोकने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा.

निक्की बोली "सॉरी मैं अपनी हँसी रोक नही पाई, पर आपने बात ही कुछ ऐसी कर दी कि मेरे लिए अपनी हँसी रोक पाना मुस्किल हो गया."

मैं बोला "क्यों मैने ऐसी क्या बात कर दी."

निक्की बोली "अभी तो आप मान नही रहे थे कि कीर्ति आपकी गर्लफ्रेंड है, और अब उसके जिंदगी भर के साथ की दुआ माँग रहे है."

मैं बोला "ये बात मेरे और कीर्ति के सिवा कोई जानता ही नही है. फिर मैं आपके सामने ये बात कैसे बोल देता."

निक्की बोली "तो फिर अब आपने ये बात क्यों बोल दी."

मैं बोला "मैने आपके सामने ये राज कहाँ खोला था. ये राज तो कीर्ति के कॉल आने से खुद आपके सामने खुल गया था."

निक्की बोली "बात तो आपकी सही है मगर फिर आपने अपने दिल की बात मुझसे क्यों बताई."

मैं बोला "पहले मुझे आप पर विस्वास नही था, लेकिन अब आप पर विस्वास भी हो गया है और अब आपको अपना दोस्त भी मानता हूँ इसलिए बोल दिया."

निक्की बोली "दोस्त तो मेहुल भी आपका है. फिर आप ने अभी तक ये बात मेहुल से क्यों छुपाई है. क्या आपको ये लगता है कि मेहुल आपका साथ नही देगा या फिर कोई और बात है."

मैं बोला "नही ऐसी कोई भी बात नही है. मेहुल मेरा हर हाल मे साथ देगा. मुझे उस पर पूरा विस्वास है मगर मुझे लगता है कि, अभी इतना सब कुछ करने की कोई ज़रूरत नही है. जब सही वक्त आएगा तो उसे ही सबसे पहले ये बात बताउन्गा."

निक्की बोली "हाँ बात तो आपकी ये भी ठीक है, मगर अपने खास दोस्त को अपनी लवर के बारे मे बता देने से बहुत हेल्प होती है. ये आप दोनो के लिए ही अच्छा होगा."

मैं बोला "आप ठीक कह रही है, मगर मैं बिना कीर्ति से पूछे कोई कदम नही उठा सकता."

निक्की बोली "अब तो मुझे सच मे कीर्ति से जलन सी होने लगी है."

मैं बोला "क्यों.? ऐसा क्या हो गया. जो आपको कीर्ति से अचानक जलन होने लगी."

निक्की बोली "अरे किसी के पास यदि कोई इतना प्यार करने वाला हो तो, उस से जलन तो होगी ही. अच्छा एक बात सच सच बताइए, मैं आपको कैसी लगती हूँ."

मैं बोला "आप बहुत अच्छी दोस्त है."

निक्की बोली "मैं ये नही पूछ रही हूँ. मेरे पूछने का मतलब ये था कि मैं देखने मे कैसी लगती हूँ."

मैं बोला "सुंदर दिखती है."

निक्की बोली "बस सुंदर दिखती हूँ और कुछ नही."

मैं बोला "क्यों, क्या ये बोलना काफ़ी नही है."

निक्की बोली "मेरी सारी सहेलियाँ तो बोलती है कि मैं बहुत सेक्सी दिखती हूँ."

मैं बोला "अब ये सब बात छोड़िए. हमे बहुत देर हो गयी है. राज हमारा इंतजार कर रहा होगा, और मेहुल भी बहुत देर से उपर है. अब हमें चलना चाहिए."

निक्की बोली "ओके पर ये मत सोचिएगा कि, ये बात यही ख़तम हो गयी. हम जब भी फ्री बैठेगे. मैं अपनी बात यही से शुरू करूगी."

मैं बोला "ठीक है कर लेना मगर अभी तो चलिए."

इसके बाद हम दोनो 1 बजे वहाँ से उठ कर वापस राज के पास आ गये. वहाँ आकर मैने मेहुल को कॉल किया तो पता चला, अभी अंकल का ऑपरेशन चल ही रहा है. मैने मेहुल को नीचे बुला लिया और मैं उपर चला गया. मेरे उपर पहुचने के बाद मेहुल और कीर्ति के कॉल बराबर आते रहे और मैं उन्हे बताता रहा कि ओप्रेशन चल ही रहा है.
Reply
09-09-2020, 01:06 PM,
#59
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
करीब 6 घंटे तक ऑपरेशन चलने के बाद, 3 बजे ऑपरेशन ख़तम हुआ. अंकल को ओटी से बाहर लाया जाने लगा तो मैने मेहुल को बोला कि, अंकल को ओटी से बाहर ला रहे है. तू जल्दी से उपर आ जा. तब मेहुल भी उपर आ गया. अंकल बेहोश थे और उन्हे रूम मे शिफ्ट किया जा रहा था.

अंकल की बेहोशी की हालत को देखते ही मेहुल मुझसे लिपट कर रो पड़ा. सुबह से पहली बार उसकी आँखे छल्कि थी. मैने मेहुल को चुप कराया मगर उसकी आँख से आँसू छलके ही जा रहे थे. मैने डॉक्टर. से ऑपरेशन के बारे मे पूछा तो डॉक्टर. ने कहा कि ऑपरेशन सफल रहा है. मेहुल अंकल को देखे जा रहा था और अपने आँसू छल्काये जा रहा था. मैने उस से कहा.

मैं बोला "देख अंकल की ऐसी हालत देख कर मुझे भी तकलीफ़ हो रही है, पर हमे अभी यहाँ बहुत समय उनकी इसी हालत के साथ गुज़ारना है. अपने आपको संभाल और यदि तुझसे अंकल की ये हालत नही देखी जा रही है तो तू नीचे चला जा. मैं यहा अंकल के पास हूँ."

मेहुल बोला "नही मैं पापा को छोड़ कर कही नही जाउन्गा. मैं उनके पास ही रहुगा."

मैं बोला "तो फिर ये रोना बंद कर. अभी अंकल बेहोश है तो, तेरा ये रोना चल गया मगर जब वो होश मे आएँगे तो, उनके सामने ये ग़लती मत करना."

मगर मेरे समझाने का उस पर कोई असर नही पड़ रहा था. वो रोते हुए बोलने लगा.

मेहुल बोला "देख मेरे भाई, पापा का कितना अच्छा चेहरा कैसा हो गया है. पापा ये सब कैसे सह पाएगे. मेरी तो ये सोच सोच कर जान ही निकली जा रही है."

उसे यूँ फफक फफक कर रोते देख, मेरी आँखों मे भी आँसू आ गये, मगर फिर मैने अपने आपको संभालते हुए, राज को कॉल किया और कहा कि मैं मेहुल को नीचे भेज रहा हूँ. तुम दोनो मे से जो भी अंकल को देखना चाहे, वो उपर आ जाए. फिर मैने मेहुल से कहा.

मैं बोला "जा अब तू नीचे जा. मैं यहाँ हूँ."

मेहुल बोला "नही मैं नही जाउन्गा. तुझे जाना है तो तू जा."

मैं जानता था कि वो ऐसे मेरी बात नही मानेगा, इसलिए मैं बात को घूमाते हुए बोला.

मैं बोला "देख अभी हम दोनो मे से कोई भी यहाँ रहे. अंकल को कोई फरक नही पड़ेगा, क्योंकि वो बेहोश है. उन्हे होश मे आने मे अभी 4-6 घंटे लगना है. मैं चाहता हूँ कि, जब उन्हे होश आए तू उनके पास रहे. अभी तू नीचे जा. निक्की और राज को भी अंकल को देख लेने दे. वो भी हमारे साथ सुबह से लगे हुए है."

मेरी इस बात का मेहुल पर असर पड़ा और वो नीचे चला गया. थोड़ी देर बाद राज उपर आया. उसने अंकल को देखा और फिर कुछ देर बाद नीचे चला गया. राज के जाने के बाद निक्की आई और कुछ देर रुक कर वो भी नीचे चली गयी.

मैं अकेला ही अंकल के पास बैठा रहा. शाम को 5 बजे रिया उपर आई मगर उसे देखते ही मुझे अजीब सी चिड छूटी. मैने उस से कहा.

मैं बोला "तुम कब आई. तुम्हे अंकल को देखने आने का बहुत जल्दी टाइम मिल गया."

रिया बोली "इसमे गुस्सा होने वाली कोई बात नही है. मैं 1 बजे की आई हुई हूँ. बस उपर अभी आ रही हूँ."

मैं बोला "1 बजे तो मैं खुद ही नीचे था. तब तुम तो नीचे नही थी."

रिया बोली "हाँ जब तुम नीचे से उपर आए हो. तभी मैं आई थी. तब से मैं नीचे ही थी. मैं उपर आना चाहती थी, मगर मेहुल जब अंकल को देख कर नीचे पहुचा था तो, बहुत रो रहा था, इसलिए मैं उसके पास ही रही और उसे समझाती रही."

मुझे रिया की ये बात सुनकर अच्छा लगा और मेरा चिड चिड़ापन अपने आप ख़तम हो गया. मैने रिया से कहा.

मैं बोला "ये तुमने बहुत अच्छा किया. अब मेहुल कैसा है."

रिया बोली "अब वो ठीक है. राज और निक्की उसे समझा रहे है. राज तुम से भी कुछ बात करना चाहता है, इसलिए तुमको नीचे बुला रहा है. तुम नीचे जाओ. तब तक मैं यहाँ अंकल के पास रुकती हूँ."

रिया की बात सुनकर मैं नीचे आ गया. राज मेहुल और निक्की मेरे नीचे आने का वेट कर रहे थे. मेरे पहुचते ही राज ने कहा.

राज बोला "अंकल का ऑपरेशन हो चुका है. जहाँ तक मेरा मानना है कि, अंकल के पास तुम दोनो को बारी बारी से रुकना चाहिए. तुम दोनो ही सुबह के जागे हुए हो. अब यदि तुम लोगों ने आराम नही किया तो, शायद रात को बहुत नींद आएगी. ऐसे मे तुम दोनो मे से एक अभी यहीं रुक जाए और दूसरा घर जाकर आराम कर ले. ताकि रात को वो अंकल के पास रुक सके."

मैं बोला "मुझे इसमे कोई परेशानी नही है. मेरी तो देर रात तक जागने की आदत ही है. हाँ मेहुल को ज़रूर रात को रुकने मे परेशानी होगी, क्योंकि ये रात को जल्दी सोता है."

राज बोला "तब ठीक है. तुम घर जाकर आराम कर लो. मैं मेहुल के साथ यही रुका हूँ. रात को तुम आ जाना तो, मेहुल घर जाकर आराम कर लेगा और सुबह मेहुल के आने के बाद तुम चले जाना. कुछ दिन तक ऐसा ही सिलसिला बनाए रखना ज़रूरी है."

मैं बोला "ठीक है. अंकल को होश आ जाए. फिर मैं घर चला जाउन्गा."

राज बोला "देखो अंकल को होश आने मे ना जाने कितना समय लग जाए. इसलिए बेहतर यही होगा कि, तुम अभी ही घर चले जाओ. रात को तो तुम्ही को अंकल के पास रहना है."

मैं बोला "नही मैं अंकल के होश मे आने से पहले, उनके पास से नही जा सकता."

मुझे राज की बात ना मानते देख कर मेहुल बोला.

मेहुल बोला "तुझे घर नही जाना है तो, मैं चला जाता हूँ. मैं रात को रुक जाउन्गा और तू अभी रुक जा."

मैं बोला "नही तू अभी घर नही जा सकता. अंकल को होश मे आने पर तेरा उनके सामने रहना बहुत ज़रूरी है. तुझे अपने सामने देख कर उन्हे बहुत खुशी होगी."

मेहुल बोला "तो फिर तू राज की बात मानकर घर चला जा, और अभी आराम कर ले. वैसे भी रिया बता रही थी कि, दादा जी और आंटी भी यहाँ पापा को देखने आने वाले है. इतने लोगों के होते हुए, मुझे कोई परेशानी नही होगी, पर रात को तो तुझे अकेले ही रहना है. ऐसे मे तेरा आराम कर लेना बहुत ज़रूरी है. रात को आराम से खाना वग़ैरह खा कर तू आएगा तो, मुझे भी तेरी कोई चिंता नही रहेगी."

मैं बोला "ठीक है. तू कहता है तो मैं चला जाता हूँ. मेरे साथ और कौन कौन जा रहा है."

राज बोला "मैं और निक्की मेहुल के साथ रुक रहे है. तुम रिया को अपने साथ ले जाओ, क्योंकि दादा जी और मम्मी भी यही आ रहे है. ऐसे मे रिया का घर मे होना ज़रूरी है. अभी मैं जाकर अंकल के पास बैठता हूँ और रिया को भेजता हूँ."

मैं बोला "क्या निक्की घर नही जाएगी."

राज बोला "एक अकेला यहाँ बैठे बैठे बोर हो जाएगा. इसलिए मैं निक्की को यहीं रोक रहा हूँ. अब मैं उपर जा रहा हूँ और रिया को भेज रहा हूँ. तुम उसके साथ घर चले जाना."

मैं बोला "ठीक है."

इसके बाद राज उपर अंकल के पास चला गया. मैने निक्की की तरफ देखा तो उसका चेहरा उतरा हुआ सा लगा. शायद उसे वहाँ रुकना अच्छा नही लग रहा था, या फिर वो मेरे साथ घर जाना चाहती थी. मैं उसके चेहरे को पढ़ने की कोशिस कर रहा था. शायद ये बात निक्की को भी समझ मे आ गयी तो, वो अपने चेहरे पर झूठी मुस्कुराहट लाती हुई बोली.

निक्की बोली "देखिए आप घर मे आराम करने जा रहे है, इसलिए जाते ही सो जाइएगा. कही ऐसा ना हो कि आप घर जाकर टीवी चालू कर के बैठ जाए, और टीवी ही देखते रहे."

मैं बोला "ऐसा कुछ नही होगा. मुझे ज़्यादा टीवी देखने का शौक नही है, और मुझे इतनी थकान हो रही है कि लेटते ही नींद आ जाएगी."

ये बोल कर मैं निक्की की इस बात का मतलब समझने की कोशिस करने लगा, मगर मुझे इसमे कोई खास बात नज़र नही आई. लेकिन अगले ही पल निक्की ने जो कहा उस बात ने मुझे और भी उलझा कर रख दिया. निक्की ने कहा.

निक्की बोली "आपको तो टीवी देखने की आदत नही है, पर रिया को ज़रूर अकेले बोरियत होती है. कहीं ऐसा ना हो कि वो आपको बातों मे लगा ले, और आप आराम ही ना कर सके."

मैं बोला "हाँ ये बात हो सकती है, क्योंकि रिया के मूह पर ताला लगाना मेरे बस की बात नही है. फिर भी मैं कोशिश यही करूगा कि, घर जाकर मैं आराम ही करूँ. ताकि रात को मुझे जागने मे कोई परेसानी ना हो."

अभी मैने अपनी बात पूरी ही की थी कि, तभी रिया आ गयी. रिया के हमारे पास आते ही निक्की ने रिया से कहा.

निक्की बोली "देख ये तेरे साथ घर आराम करने जा रहे है. इन्हे आराम करने देना. बेकार मे अपनी बातों मे मत उलझा देना."

रिया बोली "मुझे सब मालूम है. इन्हे रात को यहाँ रुकना है. मैं इन्हे अपनी बातों मे नही उलझाउंगी और इन्हे पूरा आराम करने दुगी."

निक्की बोली "गुड. पहली बार तेरे मूह से इतनी समझदारी की बात सुन रही हूँ."

रिया बोली "मुझसे इन्हे कोई शिकायत नही होगी. मैं इनके आराम का पूरा ख़याल रखुगी. अब हम लोग निकलते है."

ये कह कर हम सब उठ कर सड़क की तरफ आ गये. हम ने एक टेक्शी रुकवाई. टॅक्सी मे बैठने के बाद मैने और रिया ने सब को बाइ कहा और टेक्सी आगे बढ़ गयी.

मगर मेरी आँखो मे निक्की का चेहरा घूम रहा था. मेरी समझ मे नही आ रहा था कि, आख़िर निक्की का चेहरा इतना उतरा हुआ क्यों था. क्या उसे मेरा रिया के साथ जाना पसंद नही आ रहा था, या फिर वो भी मेरे साथ घर जाना चाहती थी. आख़िर किस बात ने निक्की जैसी हँसमुख लड़की की, मुस्कुराहट को छीन लिया था.

मैं अभी इसी सोच मे उलझा हुआ था कि, तभी मुझे मेरी जांघों पर रिया के हाथ के रखने का अहसास हुआ. मैने एक नज़र रिया के हाथ पर डाली, और दूसरी नज़र रिया के तरफ की तो, वो टेक्सी के दूसरी तरफ बाहर की ओर देख रही थी.

उसने इस समय पिंक कलर का स्लीवेलेस्स टॉप और ब्लॅक कलर की शॉर्ट जीन्स पहनी हुई थी. जिसमे वो बहुत ही सेक्सी लग रही थी. मैं थोड़ी देर तक रिया की तरफ देखता रहा. वो बड़ी बेफिक्री से बाहर की तरफ देख रही थी. मैने भी सोचा कि इसने हाथ यू ही मेरे पैरो पर रख दिया है.

मैने भी अपना दिमाग़ उस तरफ से हटाया, और मैं भी टेक्सी से बाहर की तरफ देखने लगा. मेरी आँखों मे फिर से निक्की का चेहरा घूमने लगा, और मैं एक बार फिर उसकी बातों और उदास चेहरे का मतलब ढूँढने लगा.

मैं अभी अपनी सोच मे ही गुम था. तभी मुझे फिर रिया के हाथ मे कुछ हरकत होती नज़र आई. रिया अपने हाथ की हथेली को मेरी जांघों पर धीरे धीरे रगड़ रही थी. जिस से कुछ ही देर मे मुझे जीन्स के उपर से ही, उसकी कोमल हथेली का, नरम नरम अहसास, अपनी जाँघो पर होने लगा. उसकी नरम नरम उंगलियाँ की, मेरी जांघों पर रगड़ से, मेरे लिंग मे सनसनी पैदा हो रही थी, और मेरी बेचैनी बढ़ने लगी थी.

चाहते हुए भी, मेरी हिम्मत नही हुई कि, मैं उसका हाथ अपनी जांघों से हटा सकूँ. इस से उसकी हिम्मत और बढ़ गयी. उसने मेरी जांघों को सहलाते सहलाते, अपना हाथ सीधे मेरे लिंग के उपर रख दिया. वो जीन्स के उपर से ही, मेरे लिंग पर हाथ फेरने लगी, और लिंग को सहलाने लगी. उसके कोमल हाथो के स्पर्श से, मेरे लिंग मे तनाव आना शुरू हो गया. मेरा सारा ध्यान रिया की ही हरकत पर था.

थोड़ी देर तक लिंग को सहलाने के बाद, वो उसे अपने हाथ से पकड़ने की कोसिस करने लगी, मगर जीन्स टाइट होने के कारण, लिंग उसकी पकड़ मे नही आ रहा था तो, उसने उसे अपनी उंगलियों से, उसे मसलना शुरू कर दिया. अब वो लगातार मेरे लिंग को मसले जा रही थी. जिस से मेरा लिंग विकराल रूप ले चुका था, और जीन्स को फाड़ कर बाहर निकालने के लिए फडफडा रहा था.

जीन्स टाइट होने के कारण, मुझे लिंग मे दर्द भी महसूस होने लगा था. लेकिन अब मैं पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था, और मुझ पर एक अलग सा नशा छा गया था. मुझे इस सब मे एक अजब ही मज़ा आ रहा था.

मेरा मन कर रहा था कि, मैं अपने पॅंट्स की जिप खोल कर, लिंग रिया के हाथ मे थमा दूं. मगर मेरी कुछ भी करने की, हिम्मत नही हो रही थी. रिया अभी मेरे लिंग से खेले ही जा रही थी की, तभी टॅक्सी घर के बाहर जाकर रुक गयी.

मेरा लिंग पूरे उफान मे था. अब ऐसे मे बिना पानी छोड़े, उसके शांत होने की कोई गुंजाइश भी नही थी. लेकिन घर आया देख कर, मैने उसे शांत करने की असफल कोसिस भी की, मगर वो शांत नही हुआ. तब आख़िर मे मैने टी-शर्ट को, खीच कर नीचे तक कर लिया. जिस से की कुछ हद तक, उसका उभार दिखना बंद हो गया, और मैं टॅक्सी से उतर कर बाहर आ गया.

लेकिन घर के अंदर पहुचने के पहले, मुझे अपने लिंग का तनाव कम करना है. यही सब अपने मन मे सोचते हुए. मैं टॅक्सी वाले को पैसे देने लगा. तभी टॅक्सी रुकने की आवाज़ सुन कर, प्रिया भागती हुई बाहर आई. उसे देखते ही मेरी धड़कने बढ़ गयी, और मेरा लिंग फिर से टनटना गया.

प्रिया वैसे भी रिया से ज़्यादा सुंदर और तन्दुरुस्त तो थी ही, साथ ही साथ उसका बदन भी कसा हुआ था. मगर इस वक्त मेरे लिंग के तन्तनाने की वजह प्रिया की सुंदरता नही, बल्कि उसका पहनावा था. वो अभी वाइट कलर की स्लीवेलेस्स फ्रॉक पहनी थी. जो इतने पतले कपड़े की थी कि, उसके अंदर से उसकी ब्लॅक ब्रा, अलग ही झलक रही थी, और इतनी छोटी थी कि, उसकी मंशाल जाँघो को ठीक तरह से, ढक भी नही पा रही थी. उस फ्रॉक मे से, उसके अंग का हर कटाव, अलग ही नज़र आ रहा था.

उसके इस गदराए हुए बदन को देख कर, मेरे लिंग की उत्तेजना और अधिक बढ़ गयी थी. अब मुझे अपने तने हुए लिंग को लेकर, वहाँ खड़े रह पाना मुस्किल हो रहा था. इसलिए मैं टॅक्सी के पास से हट कर, एक किनारे खड़ा हो गया, और ये देखने लगा कि, इस हालत मे प्रिया यहाँ भागी हुई, क्यों आई है. प्रिया ने आते ही रिया से कहा.

प्रिया बोली "रिया टॅक्सी मत छोड़ना. हम लोग इसी टॅक्सी मे वापस हॉस्पिटल चले जाएगे."

प्रिया की बात सुनकर रिया ने टॅक्सी वाले से कहा.

रिया बोली "भैया क्या आप हॉस्पिटल तक वापस सवारी ले जाएगे."

टेक्सी वाले ने रिया से पूछा.

टेक्सी वाला "मेम साहब, यदि आपको यहाँ से निकलने मे, ज़्यादा टाइम नही लगना है तो, मैं आपको ज़रूर ले चलुगा. नही तो आप कोई दूसरी टेक्सी देख लीजिए."

प्रिया ने कहा "नही भैया. हमें ज़्यादा टाइम नही लगेगा. सब तैयार ही है. बस मुझे कपड़े बदलने मे, मुश्किल से 10 मिनिट लगेगे."

टेक्शी वाला "तब ठीक है मेम साहब. आप लोग आ जाइए. मैं आपका इंतजार करता हूँ."

ये सुनकर प्रिया दौड़ते हुए अंदर जाने लगी. मैं उसे जाते हुए देखने लगा, और उसके इस तरह से दौड़ कर जाने से, उसकी छोटी सी फ्रॉक भी उपर नीचे उछल रही थी. जिससे मुझे उसकी ब्लॅक पैंटी की भी, एक झलक मिल गयी. अब तो मेरा और भी ज़्यादा बुरा हाल हो गया था. मेरा लिंग अब भी तना हुआ ही था. मैं मन ही मन उसे शांत हो जाने को बोल रहा था.

तभी रिया ने मुझसे अंदर चलने को कहा. लेकिन मैं अपने तने हुए लिंग के साथ, सबके सामने जाने की हिम्मत नही कर पा रहा था. मैने रिया से कहा, तुम अंदर चलो. जब तक सब तैयार हो रहे है, मैं इन टॅक्सी वाले भैया के साथ यही खड़ा हूँ. मेरी बात सुनकर रिया अंदर चली गयी. मैं वहीं खड़ा अपने ताने हुए लिंग के बैठने का इंतजार करने लगा.
Reply
09-09-2020, 01:06 PM,
#60
RE: MmsBee कोई तो रोक लो
मेरी हालत को शायद टॅक्सी वाला समझ चुका था. वो शकल सूरत से नेक और पढ़ा लिखा मालूम पड़ रहा था. वो मुझसे उमर मे बड़ा ज़रूर था, लेकिन कोई ज़्यादा बुजुर्ग आदमी भी नही था. उसकी उमर 35-36 साल के आस पास ही होगी. मुझे खड़ा देख कर, वो भी टॅक्सी से उतर कर बाहर आ गया, और मुझे इज़्ज़त देते हुए मुझसे बोला.

टॅक्सी वाला बोला "बाबू साहब आप किसी बाहर सहर से आए लगते हो."

मैं बोला "हाँ भाई मैं बाहर शहर से ही आया हूँ, पर आपको ऐसा क्यों लगा."

टॅक्सी वाला बोला "बस ऐसे ही बाबू साहब."

मैं बोला "ऐसे ही कैसे लग सकता है. मेरी कोई तो ऐसी बात होगी, जिस से आपको ये लगा कि मैं इस शहर का नही हूँ."

टॅक्सी वाला बोला "रहने दो बाबू साहब, आप बुरा मान जाओगे."

मैं बोला "नही भाई, जो भी बात है बोल दो. मैं आपकी किसी भी बात का बुरा नही मानूँगा."

टॅक्सी वाला बोला "जाने दीजिए ना बाबू साहब. बात ही कुछ ऐसी है की आपको बुरी ज़रूर लगेगी."

मैं बोला "अरे भाई ऐसी कोई बात नही है. आपने मुझे देख कर जो समझा होगा, वही तो आप बोलोगे. फिर इस मे बुरा मानने वाली कौन सी बात हो गयी. मैं आपकी किसी भी बात का कोई बुरा नही मानूँगा. अब जो भी बात है, आप दिल खोल कर बोल दो."

टॅक्सी वाला बोला "अब आप इतनी ज़िद कर रहे है तो सुनिए. बात ऐसी है बाबू साहब कि, मैं तो टॅक्सी मे आपकी पतली हालत को देख कर ही समझ गया था कि, आप इस शहर के नही हो. यदि इस शहर के होते तो, बहती गंगा मे हाथ ज़रूर धो चुके होते."

मैं बोला "मैं समझा नही आप क्या कहना चाह रहे है."

टॅक्सी वाला बोला "आपकी गर्लफ्रेंड आपको टॅक्सी मे गरम किए जा रही थी, और आप मोम के पुतले बने बैठे रहे. वरना यहाँ तो चलती टॅक्सी मे वो सब हो जाता है. जो छोटे शहरों मे बंद कमरे मे भी नही हो पाता. हम लोग सब देख के भी आँख बंद किए रहते है. क्योंकि ऐसे जोड़ों के बैठने से हमे पैसे कुछ ज़्यादा ही मिलते है."

मैं समझ गया कि टेक्सी मे जो कुछ भी रिया कर रही थी. उसे टॅक्सी वाले ने भी किसी तरह से देख लिया था. मैने उसकी बात को घूमाते हुए कहा.

मैं बोला "ऐसी कोई बात नही है. वो लड़की मेरी गर्लफ्रेंड नही है."

टॅक्सी वाला बोला "बाबू साहब आप भी किस जमाने की बात कर रहे है. यहाँ तो पल भर मे मिलते ही लड़के लड़कियाँ एक दूसरे के बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड बन जाते है, और रोज लड़के लड़कियाँ अपने बाय्फ्रेंड गर्लफ्रेंड बदलते रहते है."

मैं बोला "मैं जानता हूँ. मेरे शहर मे भी ये सब आम बात है, बल्कि इस से भी कहीं ज़्यादा ये सब चलता है. लेकिन मुझे ये सब पसंद नही है."

टॅक्सी वाला बोला "लगता है किसी लड़की से प्यार करते हो, और वो लड़की इस लड़की से भी ज़्यादा खूबसूरत और भली लड़की है."

मैं बोला "आपको ऐसा क्यों लगता है."

टॅक्सी वाला बोला "वो इसलिए क्योंकि भरी थाली को वो ही लात मारता है. जिसका पेट भरा हो या फिर जिसे उस से भी अच्छा खाना मिलने की उम्मीद हो. अब अभी अभी जो लड़की आपके साथ थी. उस जैसी सुंदर लड़की को भी घास ना डालना, तो यही बताता है कि, आपके जीवन मे कोई उस से भी सुंदर लड़की है."

मैं बोला " हाँ भाई बात तो आपकी सही है. मेरे जीवन मे एक लड़की है. जो बहुत सुंदर और भली होने के साथ साथ, मुझे प्यार भी बहुत करती है."

टॅक्सी वाला बोला "ये तो बड़ी अच्छी बात है बाबू साहब. जिंदगी मे यदि कोई सच्चा प्यार करने वाला साथ हो तो, जिंदगी जन्नत बन जाती है. लेकिन सच्चे प्यार को कभी बिछड़ना नही चाहिए. वरना जिंदगी जहन्नुम से भी बदतर हो जाती है."

मैं बोला "लगता है आपने भी किसी से सच्चा प्यार किया है, और आपका प्यार आपको नही मिला."

टॅक्सी वाला बोला "हाँ किया है बाबू साहब, पर ये प्यार व्यार हम जैसे ग़रीब लोगों के नसीब मे नही होता. समझ मे नही आता, जब हमारे नसीब मे उस उपर वाले ने प्यार लिखा ही नही है तो, फिर हम लोगों को प्यार भरा दिल क्यों दे दिया."

मैं बोला "ऐसी बात नही है भाई. प्यार तो सभी के लिए बना है. प्यार अमीरी ग़रीबी नही देखता. हो सकता है आपने जिस से प्यार किया हो, उसे आप से सच्चा प्यार ना हो."

टॅक्सी वाला बोला "शायद आप ठीक कह रहे है बाबू साहब. उसका प्यार ही सच्चा नही था, तो नसीब को क्या कोसना."

मैं बोला "क्या हुआ था भाई. यदि बताना चाहो तो, मुझे अपने दिल का हाल बता सकते हो."

अभी टॅक्सी वाला आगे कुछ और बोल पाता, उस से पहले ही उसे, प्रिया और बाकी के लोग घर से बाहर निकलते दिखे. उन्हे आते हुए देख कर उसने मुझसे कहा.

टॅक्सी वाला बोला "बाबू साहब आपसे मिल कर दिल का दर्द ताज़ा हो गया, पर बहुत दिन बाद किसी से दिल की बात करके कुछ सुकून भी मिला. अभी तो मेरी सवारी आ रही है, इसलिए मुझे जाना होगा, पर यदि आपसे दोबारा मुलाकात होती है तो, मैं आपको अपनी दुख भरी प्रेम कहानी ज़रूर सुनाउन्गा. वैसे भी अभी आप जब तक उस हॉस्पिटल मे हो, तब तक तो हमारी मुलाकात होती रहेगी. क्योंकि मैं अपनी टॅक्सी उसी हॉस्पिटल मे लगाता हूँ."

मैं बोला "ठीक है भाई. मुझे भी इस अंजान शहर मे, आपसे मिल कर बहुत अच्छा लगा. लेकिन मैं हॉस्पिटल मे सिर्फ़ रात को ही रुका करूगा. दिन के समय तो मेरा मिल पाना मुश्किल ही होगा."

टॅक्सी वाला बोला "ये तो और भी अच्छी बात है बाबू साहब, क्योंकि मैं रात को ही टॅक्सी चलाता हूँ, इसलिए अब आपसे ज़रूर मुलाकात होगी. वैसे मेरा नाम अजय है, पर प्यार से सब मुझे अज्जु कहते है."

मैं बोला "मेरा नाम पुनीत है, और प्यार से सब मुझे पुन्नू कहते है."

टॅक्सी वाला बोला "अच्छा बाबू साहब, अब मैं चलता हूँ. हो सका तो आज ही रात को आपसे मुलाकात होगी."

ये कह कर वो टॅक्सी मे बैठ गया. तब तक दादा जी, आंटी, रिया और प्रिया भी टॅक्सी के पास आ चुके थे. प्रिया अब रेड कलर का टॉप और ब्लॅक कलर की शॉर्ट स्कर्ट पहने थी. जो उसकी जांघों तक ही थी. जिसे देख कर मेरा लिंग फिर फडफडा उठा. मैने उसे देखा तो, देखता ही रह गया.

मैं सोचने लगा कि ये लड़की इतनी सुंदर है तो, कल मेरी नज़र इस पर क्यों नही पड़ी. शायद इसकी वजह कल इसके साथ, निक्की का होना था. जिसकी वजह से कल मेरा ध्यान, इस पर नही गया था. लेकिन ये इस तरह के कपड़े क्यों पहनती है. जिससे इसका सारा बदन दिखाई देता है. शायद इसे लड़को को तड़पाने मे मज़ा आता है, इसलिए ये अपनी जांघे दिखाती रहती है.

मैं ये सब सोच रहा था, और सब एक एक कर के टॅक्सी मे बैठ रहे थे. जब प्रिया टॅक्सी मे बैठ गयी तो, मेरी नज़र उस पर से हटी. मैने अजय की तरफ देखा तो, वो ना जाने कब से मुझे प्रिया को घूरते देख रहा था. मेरी नज़र उस पर पड़ते ही वो मुस्कुराने लगा. मैने भी अपने सर को झटका और मुस्कुरा दिया. सब टॅक्सी मैं बैठ चुके थे, इसलिए टॅक्सी आगे बढ़ गयी.

जब टॅक्सी नज़रों से ओझल हो गयी तो रिया ने मुझसे कहा.

रिया बोली "क्या हुआ. सब जा चुके है. अब घर चलो और आराम कर लो. शाम के 6:30 बज गये है. यदि नींद पूरी ना हुई तो, रात को जागने मे तकलीफ़ भी होगी."

मैं बोला "हाँ चलो. मैं भी आज बहुत थक गया हू. अब आराम करना बहुत ज़रूरी है."

फिर मैं और रिया घर के अंदर आ गये. अंदर आने के बाद रिया ने मुझसे खाने के लिए पुछा तो, मैने मना कर दिया. मैने कहा नही अब मुझे नींद आ रही है. मैं तो अब सोने जा रहा हूँ. तुम मुझे 9:30 बजे तक उठा देना. इतना बोल कर मैं अपने कमरे मे आ गया.

कमरे मे आने के बाद मैने मूह हाथ धोया, और फिर नाइट सूट पहन ने के बाद कीर्ति को कॉल किया. मेरा कॉल आया देख उसने, पहली ही रिंग पर कॉल उठा लिया, और मेरे बोलने से पहले ही बोल पड़ी.

कीर्ति बोली "अरे तुम अभी तक जाग रहे हो."

मैं बोला "तुझसे किसने बोला कि मैं सो रहा हू."

कीर्ति बोली "मैने मेहुल को कॉल किया था तो उसने बताया कि तुम घर आराम करने गये हो."

मैं बोला "मैं सोने ही वाला था पर सोचा, पहले तुझसे बात कर लू फिर सोता हूँ. लेकिन मुझे क्या पता था कि, तुम्हारा मुझसे बात करने का मन ही नही है."

कीर्ति बोली "ऐसा मत बोलो जान. मेरा मन तुमसे बात करने का कब नही होता. लेकिन आंटी ने मेहुल से बात करने की ज़िद की तो, मैने उसे कॉल किया था. उस से पता चला कि तुम रात को हॉस्पिटल मे रुकोगे, इसलिए 5:30 बजे वहाँ से आराम करने घर गये हो, और रात को 10 बजे वापस हॉस्पिटल आओगे. इस बात को सुनकर मैं खुद इस सोच मे पड़ गयी कि, भला 3-4 घंटे मे तुम्हारी नींद कैसे पूरी हो पाएगी. यही सब सोच कर मैने तुम्हे कॉल नही किया था, और तुम सोच रहे हो कि मेरा मन तुमसे बात करने का नही है."

इतनी बात के बाद कीर्ति के सिसकने की आवाज़ आने लगी. वो रोने लगी थी. उसे रोते देख मुझे खुद पर गुस्सा आया कि, मैने ये कैसा बेतुका सवाल कर लिया. मैने अपनी बात को संभालते हुए कहा.

मैं बोला "अरे तू रोने क्यों लगी. मैं तो मज़ाक कर रहा था. भला मैं ऐसा सोच भी कैसे सकता हूँ."

मगर वो सिसकते ही जा रही थी. उसकी सिसकी थमते ना देख, मैने फिर उस से कहा.

मैं बोला "देख अब तू रोकर खुद मेरी नींद को खराब कर रही है. भला तुझे रुलाने के बाद, मुझे कैसे नींद आ सकती है."

मेरी बात सुनते ही उसने रोना बंद कर दिया और बोली.

कीर्ति बोली "मैं रो कहाँ रही हूँ. तुम बेकार मे किसी बात को लेकर अपनी नींद खराब मत करना."

मैं बोला "चल झूठी. अभी तू रो नही रही थी तो, क्या कर रही थी. ये सिसकने की आवाज़ क्यों आ रही थी."

मेरी इस बात का जबाब कीर्ति ने बड़े ही भोलेपन से दिया.

कीर्ति बोली "वो तो मुझे सर्दी है, इसलिए मेरी नाक की सुरसुराने की आवाज़ थी."

मैं बोला "तुझसे बहस मे कोई नही जीत सकता. चल अब मुझे सच मे बहुत नींद आ रही है. जल्दी से मुझे एक किसी दे और कॉल रख."

कीर्ति बोली "ओये ओये मैं मर जावां. आज ये उल्टी गंगा कैसे बह निकली."

मैं बोला "क्यों क्या हो गया."

कीर्ति बोली "अभी तक तो मुझे एक क़िस्सी के लिए कितनी ज़िद करना पड़ती थी, और आज तुम खुद किसी माँग रहे हो."

मैं बोला "आज सच मे मैने दिन भर अपनी जान को बहुत मिस किया, इसलिए अब उसकी मीठी किसी लेकर, मीठी नींद मे सोना चाहता हूँ."

कीर्ति बोली "नही पहले ये बोलो कि रात को हॉस्पिटल पहुच कर कॉल करोगे."

मैं बोला "रात को हॉस्पिटल पहुचने के बाद मुझे कब टाइम मिलेगा, और कब मैं तुम्हे कॉल कर पाउन्गा. मैं इस बारे मे कुछ का नही सकता. अच्छा तो यही है कि अब हम कल सुबह ही बात करे."

कीर्ति बोली "तुम्हे रात को जब टाइम मिले तुम कॉल कर लेना, पर मुझे रात को बात करना है."

मैं बोला "नही रहने दे. बेकार मे तू मेरे कॉल के इंतजार मे जागती रहेगी."

कीर्ति बोली "प्लीज़ जान सिर्फ़ एक बार. मैं ज़्यादा देर बात नही करूगी. तुम जितनी देर चाहोगे, बस उतनी देर ही बात करूगी, मगर मुझे रात को एक बार बात करना है."

मैं बोला "ठीक है. मैं कॉल लगा लूँगा. अब जल्दी से एक क़िस्सी दे और फोन रख."

कीर्ति बोली "ऊऊ मेरे अच्छे जानू. आइ लव यू. मुहह मुहह."

मैं बोला "आइ लव यू जान. मुहह मुहह."

इसके बाद कीर्ति ने फोन रख दिया. मैने भी मोबाइल किनारे रखा और आँख बंद कर के, कीर्ति के बारे मे सोचने लगा. उससे बात करने के बाद मुझे एक अनोखी शांति मिली थी. मेरे मन मे अभी तक आ रहे, सारे बुरे ख़याल कहीं खो गये थे. मैं कीर्ति की मीठी मीठी बातों को सोचते हुए, सोने की कोसिस करने लगा.

अभी मुझे आँख बंद करके लेते कुछ ही देर हुई थी कि, तभी मुझे मेरे कमरे का दरवाजा खटखटाने की आवाज़ आई. अब घर मे मेरे और रिया के सिवा कोई नही था. इसलिए रिया के सिवा किसी और के होने की उम्मीद ही नही की जा सकती थी.

मैने उठ कर दरवाजा खोला तो रिया ही थी. वो ब्लॅक कलर का सिल्की गाउन पहने हुई थी. जिसमे वो और भी सेक्सी लग रही थी. लेकिन अब उसे इस लिबास मे देख कर भी, मेरे मन मे कोई बुरा विचार नही आया. मुझे दरवाजे पर ही खड़ा देख कर रिया ने कहा.

रिया बोली "क्या मुझे अंदर आने के लिए नही कहोगे."

उसकी बात सुनकर, मैं तुरंत दरवाजे के सामने से अलग हो गया, और रिया अंदर कमरे मे आ गयी. कमरे मे आकर वो मेरे बेड पर बैठते हुए बोली.

रिया बोली "क्या हुआ. दरवाजे पर ही क्यों खड़े हो. क्या तुम्हे मेरा आना अच्छा नही लगा."

मैं बोला "नही ऐसी बात नही है. तुम्हारा ही घर है. तुम जब चाहे, जहा चाहे, आ जा सकती हो."

रिया बोली "तुम्हारी बात सही है, मगर इस वक्त ये कमरा तुम्हारा है. यदि तुमको मेरा आना पसंद नही है तो, मैं यहा से चली जाती हूँ."

मैं रिया के आने का मकसद समझ रहा था. मगर अब मैं उसकी किसी हरकत मे, उसका साथ देना नही चाहता था. लेकिन मैं उसे नाराज़ भी करना नही चाहता था. इसलिए मैने उस से बड़े ही प्यार से कहा.

मैं बोला "भला ऐसा कैसे हो सकता है कि, मुझे तुम्हारा आना पसंद ना आए. लेकिन तुम तो जानती हो कि, मैं सुबह 5 बजे का जगा हुआ हूँ, और मुझे रात को हॉस्पिटल मे भी रुकना है. इसलिए मैं अभी सोना चाहता हूँ."

रिया बोली "मैं सब जानती हूँ. मैं तो बस ये कहने आई थी कि, तुम दरवाजा लॉक करके मत सोना. ताकि जब तुमको जगाने का टाइम हो तो, मैं तुमको जगाने आ सकूँ. अब तुम आराम से सो सकते हो. मैं तुम्हे फिर परेशान करने नही आउन्गी. बस दरवाजा लॉक मत करना."

ये कह कर रिया उठ कर जाने लगी. मुझे लगा कि उसे मेरी बात का बुरा लग गया है, इसलिए मैने उस से कहा.

मैं बोला "कहीं तुम्हे मेरी बात का बुरा तो नही लग गया."

रिया बोली "अरे इसमे बुरा मानने वाली क्या बात है. मुझे तो अच्छा लगा कि तुमने, बिना जीझक के अपनी बात कह दी. तुम ये बुरा लगने वाली बात को अपने दिमाग़ से निकाल दो, और आराम से सो जाओ. मैं तुम्हे 9:30 बजे जगा दूँगी."

इतना कह कर वो कमरे से बाहर निकल गयी. मैने दरवाजा बंद किया और वापस लेट गया. अब मेरे दिमाग़ मे कभी कीर्ति का ख़याल आ रहा था तो, कभी रिया की हरकतें घूम रही थी. मैं इसी कशमकश मे था कि, मैं रिया का क्या करूँ. वो ज़रूर मुझसे किसी ना किसी बात की उम्मीद लगाए हुए है. यही सब सोचते सोचते, कुछ देर बाद मुझे नींद आ गयी. ना जाने कितनी देर तक मैं गहरी नींद मे सोता रहा.

मेरी गहरी नींद तब टूटी, जब मुझे ये अहसास हुआ की, कोई मुझे हिला कर जगाने की कोशिस कर रहा है. मुझे इस बात का भी अहसास नही था कि, मुझे जगाने वाला कौन है. मुझे यही लगा कि रिया ही मुझे जगा रही है.

मैं बहुत गहरी नींद सोया था, इसलिए नींद टूट जाने के बाद भी, मेरी आँख नही खुल रही थी. जब बहुत कोसिस करने के बाद भी, मेरी आँख नही खुली. तब मैने एक जोरदार अंगड़ाई लेते हुए ज़मीन ली, और एक झटके मे पालती मार कर, बेड पर बैठ गया. फिर मैने धीरे धीरे अपनी आँख खोली. आँख खुलते ही जगाने वाले पर मेरी नज़र पड़ी. जिसे देखते ही मुझे अपनी आँखों पर विस्वास नही हुआ.

मैं अपने दोनो हाथो से अपनी आँखों को मलने लगा. उसके बाद फिर मैने जगाने वाले को देखा. लेकिन अब भी मेरे सामने वही सूरत थी. मैने हंसते हुए अपने सर पर एक चपत मारी और खुद से कहा "तू अभी भी नींद मे ही है, और सपना देख रहा है. चल चुप चाप से सो जा."

ये बोल कर मैं फिर से बेड पर धम्म से लेट गया, और आँख बंद कर ली. मैं अब भी उनिंदा था, इसलिए आँख बंद करते ही, मुझे फिर से नींद घेरने लगी. लेकिन जगाने वाले ने मुझे फिर से लेटते देखा तो, उसने मुझे फिर से हिलाना शुरू कर दिया.

जब मैं दो तीन बार हिलाने पर भी नही जागा और वैसे ही लेटा रहा. तब मेरे कानो मे हिलाने वाले की कड़कदार और रोबिली आवाज़ सुनाई दी. वो आवाज़ मेरे पापा की थी. पापा ने मुझे ना उठते देख कहा.

पापा बोले “पुन्नू तुम कोई सपना नही देख रहे हो. मैं तुम्हारे सामने सच मे ही हूँ. चलो अब जल्दी से उठ जाओ और फ्रेश होकर बाहर आ जाओ. सब तुम्हारा खाने पर वेट कर रहे है.

पापा की आवाज़ सुनते ही मेरी सारी नींद गायब हो गयी. मैं एक झटके मे ही उठ कर बैठ गया. मुझे अभी भी अपनी आँखों पर विस्वास नही हो रहा था कि, पापा मेरे सामने खड़े है. पापा ने मुझे इस तरह आश्चर्य चकित देखा तो उन्हो ने कहा.

पापा बोले "इतना आश्चर्य करने की कोई बात नही है. यहाँ काफ़ी समय से मेरी एक बिज़्नेस डील रुकी पड़ी है. जिसे मैं समय ना होने की वजह से पूरी नही कर पा रहा था. लेकिन आज राजेश की तबीयत की वजह से मेरा काम मे मन नही लग रहा था. इसलिए सोचा कि यहाँ आकर राजेश को भी देख लुगा और उस रुकी हुई डील को भी निपटा लुगा. बस यही सोच कर मैं शाम की फ्लाइट पकड़ कर यहाँ आ गया."

मैं बोला "क्या आप अंकल से मिल कर आ रहे है."

पापा बोए "हाँ मैं एरपोर्ट से सीधे हॉस्पिटल ही गया था. जब मैं राजेश के पास पहुचा तो उसे होश आ चुका था. उस से मिल कर लौटने पर मुझे राज रिया के दादा जी मिल गये और वो ज़िद कर के, मुझे यहाँ ले आए. अब बातों मे ज़्यादा टाइम बर्बाद मत करो और जल्दी से फ्रेश हो जाओ.”

मैं बोला “ठीक ही, आप चलिए. मैं अभी फ्रेश होकर आता हूँ."

मेरी बात सुनकर पापा चले गये और मैं सोचने लगा कि काश ये सपना ही होता तो, कितना अच्छा होता. अभी थोड़ी देर पहले जिस चेहरे को सपना समझ कर हंस रहा था. अब उसी चेहरे को हक़ीकत मे देख कर मेरे 12 बज रहे थे.

मैने घड़ी मे टाइम देखा तो अभी 9:15 ही बजा था. ये देख कर मुझे और भी चिड छूट गयी थी कि, पापा ने मुझे 9 बजे ही नींद से जगा दिया. मैं गुस्से मे बिस्तर से उठा और फ्रेश होने चला गया.

फ्रेश होने के बाद मैं तैयार होने लगा. तभी रिया आ गयी. उसे देखते ही मुझे याद आया कि, मैने रिया से जगाने के लिए कहा था. ये बात याद आते ही मैने रिया से कहा.

मैं बोला "जब मैने तुमसे जगाने के लिए कहा था, तो तुमने मुझे जगाया क्यों नही."

रिया बोली "तुमने कहा था कि तुम्हे 9:30 बजे के बाद जगाना. बस यही सोच कर मैने तुम्हे नही जगाया था. मैने ये बात अंकल को भी बताई थी. लेकिन वो नही माने और खुद ही तुम्हे जगाने आ गये."

अब रिया की इस बात के जबाब मे, मैं भला उस से क्या कहता. वो पापा की ज़िद के आगे कर भी क्या सकती थी. इसलिए फिर मैने उस से इस बारे मे कुछ नही कहा. मैं चुप चाप तैयार हुआ और तैयार होने के बाद रिया के साथ डाइनिंग रूम मे आ गया.

डाइनिंग रूम मे आते ही मैने एक नज़र सब पर डाली. डाइनिंग टेबल की बीच वाली सीट पर हमेशा की तरह दादा जी बैठे हुए थे. दादा जी के लेफ्ट वाली सीट मे रिया के पापा, मम्मी, प्रिया बैठी हुई थी. प्रया के बाद वाली सीट खाली थी. दादा जी की राइट वाली सीट मे, मेरे पापा बैठे हुए थे और उनके बाद की तीनो सीट खाली थी.
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