RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
" मदन बाबू ने फिर जोर से बसन्ती की एक चुची को एक हाथ में थाम लिया और दूसरी हाथ की हथेली को सीधा उसकी दोनो जांघो के बीच रख के पूरी मुठ्ठी में उसकी चूत को भर लिया और फुसफुसाते हुए बोले,
' हाय दिखा दे एक बार, चखा दे अपनी लालमुनीया को बस एक बार रानी फिर देख मैं इस बार मेले में तुझे सबसे महंगा लहंगा खरीद दुँगा, बस एक बार चखा दे रानी॑.' , इतनी जोर से चुची दबवाने पर साली को दर्द भी हो रहा होगा मगर साली की हिम्मत देखो एक बार भी मदन बाबू के हाथ को हटाने की उसने कोशिश नही की, खाली मुंह से बोल रही थी,
' हाय छोड़ दो मालिक. छोड़ दो मालिक. '
मगर मदन बाबू हाथ आई मुर्गी को कहाँ छोड़ने वाले थे। "
ये सब सुनकर माया देवी की चूत भी पसीज रही थी उसके मन में एक अजीब तरह का कौतुहल भरा हुआ था। बेला भी अपनी मालकिन के मन को खूब समझ रही थी इसलिये वो और नमक मिर्च लगा कर मदन की करतुतों की कहानी सुनाये जा रही थी।
" फिर मालकिन मदन बाबू ने उसके गाल का चुम्मा लिया और बोले, ' बहुत मजा आयेगा रानी बस एक बार चखा दो, हाय जब तुम चूतड़ मटका के चलती हो तो क्या बताये कसम से कलेजे पर छूरी चल जाती है, बसन्ती बस एक बार चखा दो॑. ' बसन्ती शरमाते हुए बोली,
' नही मालिक आपका बहुत मोटा है, मेरी फट जायेगी॑, '
इस पर मदन बाबू ने कहा,
' हाथ से पकड़ने पर तो मोटा लगता ही है, जब चूत में जायेगा तो पता भी नही चलेगा॑. '
फिर उन्होंने बसन्ती का हाथ अपनी नीकर से निकाल, अपनी नीकर उतार, झट से अपना लण्ड बसन्ती के हाथ में दे दिया, हाय मालकिन क्या बताऊँ कलेजा धक-से मुंह को आ गया, बसन्ती तो चीख कर एक कदम पीछे हट गई, क्या भयंकर लण्ड था मालिक का एक दम से काले सांप की तरह, लपलपाता हुआ, मोटा मोटा पहाड़ी आलु के जैसा गुलाबी सुपाड़ा और मालकिन सच कह रही हु कम से कम १० इंच लम्बा और कम से कम २.५ इंच मोटा लण्ड होगा मदन बाबू का, उफफ ऐसा जबरदस्त औजार मैंने आज तक नही देखा था, बसन्ती अगर उस समय कोशिश भी करती तो चुदवा नही पाती, वहीं खेत में ही बेहोश हो के मर जाती साली मगर मदन बाबू का लण्ड उसकी चूत में नही जाता."
चौधराइन साँस रोके ये सब सुन रही थी। बेला को चुप देख कर उस से रहा नही गया और वो पूछ बैठी,
"आगे क्या हुआ। "
बेला ने फिर हँसते हुए बताया, " अरे मालकिन होना क्या था, तभी अचानक झाड़ियों में सुरसुराहट हुई, मदन बाबू तो कुछ समझ नही पाये मगर बसन्ती तो चालु है, मालकिन, साली झट से लहंगा समेट कर पीछे की ओर भागी और गायब हो गई। और मदन बाबू जब तक सम्भलते तब तक उनके सामने बसन्ती की भाभी मुटल्ली लाजवन्ती जिसे लाजो भी कहते हैं अपने घड़े जैसे चूतड़ हिलाती आ के खड़ी हो गई। अब आप तो जानती ही हो की इस साली लाजवन्ती ठीक अपने नाम की उलट बिना किसी लाज शरम की औरत है। जब साली और नई नई शादी हो के गांव में आई थी तो बसन्ती की उमर की थी तब से उसने २ साल में गांव के सारे जवान मर्दों के लण्ड का पानी चख लिया था। अभी भी हरामजादी ने अपने आप को बना संवार के रखा हुआ है।" इतना बता कर आया फिर से चुप हो गई।
" फिर क्या हुआ, लाजवन्ती तो खूब गुस्सा हुई होगी. "
"अरे नही मालकिन, उसे कहाँ पता चला की अभी अभी २ सेकंड पहले मदन बाबू अपना लण्ड उसकी ननद को दिखा रहे थे। वो साली तो खुद अपने चक्कर में आई हुई थी। उसने जब मदन बाबू का बलिश्त भर का खड़ा मुसलण्ड देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया और मदन बाबू को पटाने के इरादे से बोली यहां क्या कर रहे है मदन बाबू आप कब से हम गरीबों की तरह यहाँ खुले में दिशा करने लगे॑। मदन बाबू तो बेचारे हक्के बक्के से खड़े थे, उनकी समझ में नही आ रहा था की क्या करें, एक दम देखने लायक नजारा था। हाफ पैन्ट घुटनो तक उतरी हुइ थी और शर्ट मोड़ के पेट पर चढ़ा रखी थी, दोनो जांघो के बीच एक दम काला भुजंग मुसल लहरा रहा था ।"
" मदन बाबू तो बस. ' अरे वो आ मैं तो' कर के रह गये। तब तक लाजवन्ती मदन बाबू के एक दम पास पहुंच गई और बिना किसी झिझक या शरम के उनके हथियार को अप्नी गोरी गुदाज हथेली में धर दबोचा और बोली,
'क्या मालिक कुछ ।गड़बड तो नही कर रहे थे पूरा खड़ा कर के रखा हुआ है। इतना क्यों फनफना रहा है आपका औजार, कहीं कुछ देख तो नही लिया॑।"
इतना कह कर हँसने लगी । मदन बाबू के चेहरे की रंगत देखने लायक थी। एक दम हक्के-बक्के से लाजवन्ती का मुंह ताके जा राहे थे। अपना हाफ पैन्ट भी उन्होंने अभी तक नही उठाया था। लाजवन्ती ने सीधा उनके मुसल को अपने हाथों में थाम रखा था और मुस्कुराती हुइ बोली
“क्या मालिक औरतन को हगते हुए देखने आये थे क्या॑”
कह कर खी खी कर के हँसते हुए साली ने मदन बाबू के औजार को अपनी गुदाज हथेली से कस के दबा दिया।
उस अन्धेरे में भी मालिक का लाल लाल मोटे पहाड़ी आलु जैसा सुपाड़ा एक दम से चमक गया जैसे की उसमें बहुत सारा खून भर गया हो और लण्ड और फनफना के लहरा उठा।”
“बड़ी हरामखोर है ये लाजवन्ती, साली को जरा भी शरम नही है क्या”
“जिसने सारे गांव के लौंडो क लण्ड अपने अन्दर करवाये हो वो क्या शरम करेगी”
“फिर क्या हुआ, मेरा मदन तो जरुर भाग गया होगा वहां से बेचारा”
“मालकिन आप भी ना हद करती हो अभी २ मिनट पहले आपको बताया था की आपका भतीजा बसन्ती के चुचो को दबा रहा था और आप अब भी उसको सीधा सीधा समझ रही हो, जबकी उन्होंने तो उस दिन वो सब कर दिया जिसके बारे में आपने सपने में भी नही सोचा होगा”
चौधराइन एक दम से चौंक उठी, "क्या कर दिया, बात को क्यों घुमा फिरा रही है"
"वही किया जो एक जवान मर्द करता है"
"क्यों झूठ बोलती हो, जल्दी से बताओ ना क्या किया" ,
मदन बाबू में भी पूरा जोश भरा हुआ था और ऊपर से लाजवन्ती की उकसाने वाली हरकते दोनो ने मिल कर आग में घी का काम किया। लाजवन्ती बोली
“छोरियों को पेशाब और पाखाना करते हुए देख कर हिलाने की तैय्यारी में थे क्या, या फिर किसी लौन्डिया के इन्तजार में खड़ा कर रखा है॑”
मदन बाबू क्या बोलते पर उनके चेहरे को देख से लग रहा था की उनकी सांसे तेज हो गयी है। उन्होंने भी अब की बार लाजवन्ती के हाथों को पकड़ लिया और अपने लण्ड पर और कस के चिपका दिया और बोले
“हाय भौजी मैं तो बस पेशाब करने आया था॑”
इस पर वो बोली “तो फिर खड़ा कर के क्यों बैठे हो मालिक कुछ चाहिये क्या॑”
मदन बाबू की तो बांछे खिल गई। खुल्लम खुल्ला चुदाई का निमंत्रण था। झट से बोले “चाहिये तो जरुर अगर तु दे दे तो मेले में से पायल दिलवा दुँगा।“
खुशी के मारे तो साली लाजवन्ती क चेहरा चमकने लगा, मुफ्त में मजा और माल दोनो मिलने के आसार नजर आ रहे थे। झट से वहीं पर घास पर बैठ गई और बोली, “हाय मालिक कितना बड़ा और मोटा है आपका, कहाँ कुवांरियों के पीछे पड़े रहते हो, आपका तो मेरे जैसी शादी शुदा औरतो वाला औजार है, बसन्ती तो साली पूरा ले भी नही पायेगी॑”
मदन बाबू बसन्ती का नाम सुन के चौंक उठे की इसको कैसे पता बसन्ती के बारे में। लाजवन्ती ने फिर से कहा
“कितना मोटा और लम्बा है, ऐसा लण्ड लेने की बड़ी तमन्ना थी मेरी॑”
इस पर मदन बाबू ने लाजो के टमाटर से गाल पर चुम्मा लेते हुए कहा आज तमन्ना पूरी कर ले, बस चखा दे जरा सा, बड़ी तलब लगी है॑ इस पर लाजवन्ती बोली जरा सा चखना है या पूरा मालिक॑”
तो फिर मदन बाबू बोले-
“हाय पूरा चखा दे तो मेले से तेरी पसंद की पायल दिलवा दूँगा।
बेला की बात अभी पूरी नही हुई थी की चौधराइन बीच में बोल पड़ी "ओह सदानन्द तेरी तो किस्मत ही फुट गई, बेटा रण्डियों पर पैसा लुटा रहा है, किसी को लहंगा तो किसी हरामजादी को पायल बांट रहा है।"
कह कर बेला को फिर से एक लात लगायी और थोड़े गुस्से से बोली, "हरामखोर, तु ये सारा नाटक वहां खड़ी हो के देखे जा रही थी, तुझे जरा भी पन्डितजी का खयाल नही आया, एक बार जा के दोनो को जरा सा धमका देती दोनो भाग जाते।"
बेला ने मुंह बिचकाते हुए कहा, " मेरी तो औकात नहीं है वरना मेरा बस चले तो खुद ही ऐसे गोरे चिट्टे पन्डितजी पर चढ़ बैठूँ। फ़िर मैं शेर के मुंह के आगे से निवाला छिनने की औकात कहाँ से लाती मालकिन, मैं तो बुस चुप चाप तमाशा देख रही थी।"
कह कर बेला चुप हो गई और मालिश करने लगी। चौधराइन के मन की उत्सुकता दबाये नही दब रही थी कुछ देर में खुद ही कसमसा कर बोली, " चुप क्यों हो गई आगे बता ना "
क्रमशः……………………………
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