RE: Muslim Sex Stories सलीम जावेद की रंगीन दुन�...
मुहल्लेदारी से रिश्तेदारी तक
भाग -6
बेला देखने गई मेला
उसने अपना हलव्वी लण्ड मेरी पावरोटी सी चूत के मुहाने पर रखा फिर उसने मेरे चूतड़ों को थोड़ा सा उठा कर अपने लण्ड को मेरी बेकरार चूत में कुछ इस तरह से चांपा आधे से ज़्यादा लण्ड मेरी चूत में घुस गया था. मैं तड़प उठी, चीख उठी और चिल्ला उठी “उई माँ , हायईईईईई मैं मरीईई अहहााआ”
तभी उसने इतनी ज़ोर से ठाप मारा कि उसका पूरा लण्ड मेरी चूत में घुस गया.
“उईईईई माँ अरे जालिम कुछ तो मेरी चूत का ख्याल कर”
मैं दर्द से कराह रही थी। वो मेरे नंगे बदन पर लेट गया और मेरी एक चूची को मुँह मैं लेकर चूसने लगा. धीरे धीरे मजा बढ़ने पर मैं अपने चूतड़ों को ऊपर उछालने लगी, तभी वो मेरी चूचियों को छोड़ दोनो हाथ ज़मीन पर टेक कर लण्ड को चूत से टोपा तक खींच कर इतनी ज़ोर से ठाप मारा कि पूरा लण्ड जड़ तक हमारी चूत में समा गया
ओफफ्फ़ उफफफफफफ्फ़
और मुझे बाहों में भर कर वो ज़ोर-ज़ोर से ठप लगा रहा था. धीरे धीरे मेरी चूत का स्प्रिंग ढीला हो मेरा मज़ा बढ़ने लगा और मैं भी अपने चूतड़ उच्छाल-उच्छाल कर गपागप लण्ड अंदर करवाने लगी. और कह रहीथी
'और ज़ोर से रज़्ज़ा और ज़ोर से पूरा पेलो, और डालो अपना लण्ड' वो आदमी मेरी चूत पर घमासान धक्के मारे जा रहा था. वो जब उठ कर मेरी चूत से अपना लण्ड ठांसता था तो मैं अपने चूतड़ उचका कर उसके लण्ड को पूरी तरह से अपनी चूत मैं लेने की कोशिश करती.और जब उसका लण्ड मेरी चूत की जड़ से टकराता तो मुझे लगता मानो मैं स्वर्ग मैं उड़ रही हूँ. अब वो आदमी ज़मीन से दोनो हाथ उठा कर मेरी दोनो चूचियों को पकड़ कर हमे घपघाप पेल रहा था. यह मेरे बर्दाश्त के बाहर था और मैंने खुद ही अपना मुँह उठा कर उसके मुँह के करीब किया तो वो मेरे मुँह से अपना मुँह भिड़ा कर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल कर अंदर बाहर करने लगा.इधर जीभ अंदर बाहर हो रही थी और नीचे चूत में लण्ड अंदर बाहर हो रहा था . इस दोहरे मज़े के कारण में तुरंत ही स्खलित हो गयी और लगभग उसी समय उसके लण्ड ने इतनी फोर्स से वीर्यपात किया की मैं उसकी छाती से चिपक उठी. उसने भी पूर्ण ताक़त के साथ मुझे अपनी सीने से चिपका लिया जिससे मेरी बड़े बड़े बेलों जैसी छातियाँ उसके सीने से दब गईं।
तूफान शांत हो गया. उसने मेरी कमर से हाथ खींच कर बंधन ढीला किया और मुझे कुछ राहत मिली, लेकिन मैं मदहोशी मे पड़ी रही. वो उठ बैठा और अपने साथी के पास गया और बोला ' यार ऐसा ग़ज़ब का माल है प्यारे मज़ा आ जाएगा. ऐसा माल बड़ी मुश्किल से मिलता है.
मैने मुड़ कर भाभी की तरफ देखा. आगे वाला आदमी भाभी के ऊपर चढ़ा हुआ था और उनकी चूचियाँ भोंपू की तरह दबा दबाकर उनपर मुँह मारते हुए उनकी फ़ूली हुई पावरोटी सी चूत में अपना फ़ौलादी लण्ड ठोंक रहा था । भाभी भी किलकारी भरते हुए बोल रही थी
“हाय राजा ज़रा ज़ोर से चोद और ज़ोर से दबा चूचियाँ ज़रा कस कर दबा आ~ह उईईईई मैं बस झड़ने ही वाली हूँ।”
भाभी अपने चूतड़ों को धड़ाधड़ ऊपर नीचे पटक रही थी.
“अम्म्म्ह~ह मैं गयी राजा”
कह कर उन्होने दोनो जाँघें फैला दीं। तभी वो आदमी भी भाभी की चूचियाँ पकड़ कर गाल चूसते हुए बोला
' आ~ह उईईईई अम्म्म्ह~ह ”
और उसने भी अपना पानी छोड़ दिया.कुछ देर बाद वो भी उठा और अपने कपड़े पहन कर साइड मैं लेट गया. भाभी उस आदमी के हटने के बाद भी आँखे बंद किए लेटी थी और मैने देखा कि भाभी की चूत से वीर्य और रज बह कर चूतड़ों तक आ पहुँच रहा था.
चुदाई का दौर पूरा होने के बाद हमने अपने कपड़े पहने और वो लोग हमें अपनी कार में वापस मेले के मेन गाउंड तक ले आए. उन्होने रास्ते मे फिर से हमे धमकाया कि यदि हमने उनकी इस हरकत के बारे मे किसी से कुछ मत कहना इस पर हमने भी उनसे वादा किया कि हम किसी को कुछ नही बताएँगे । जब हम लोग मेले के ग्राउंड पर पहुँचे तो सुना कि वहाँ पर हमारा नाम अनाउन्स कराया जा रहा था और हमारे चन्दू मामा-मामी मंडप मे हमारा इंतजार कर रहे थे. वो चारों आदमी हमे लेकर मंडप तक पहुँचे. हमारे चन्दू मामा हमे देख कर बिफर पड़े कि कहाँ थे तुम लोग अब तक , हम 2 घंटे से तुम्हे खोज़ रहे थे. इस पर हमारे कुछ बोलने से पहले ही उन दोनों मे से एक ने कहा आप लोग बेकार ही नाराज़ हो रहें है, यह दोनो तो आप लोगों को ही खोज रही थी और आपके ना मिलने पर एक जगह बैठी रो रही थी, तभी इन्होने हमे अपना नाम बताया तो मैने इन्हे बताया कि तुम्हारे नाम का अनाउन्स्मेंट हो रहा है और तुमहरे चन्दू मामा मामी मंडप मे खड़े है. और इन्हे लेकर यहाँ आया हूँ । तब हमारे चन्दू मामा बहुत खुश हुए ऐसे शरीफ {?} लोगों पर और उन्होने उन अजन्बियो का शुक्रिया अदा किया. इस पर उन दोनो ने हमे अपनी गाड़ी पर हमारे घर तक छोड़ने की पेशकश की जो हमारे चन्दू मामा-मामी ने तुरंत ही कबूल कर ली. हम लोग कार में बैठे और घर को चल दिए. जैसे ही हम घर पहुँचे कि विश्वनाथजी बाहर आए हमसे मिलने के लिए. संयोग की बात यह थी कि यह लोग विश्वनाथजी की पहचान वाले थे. इसलिए जैसे ही उन्होने विश्वनाथजी को देखा तो तुरंत ही घबरा कर पूछा ' अरे विश्वनाथजी आप, यह क्या आपकी फॅमिली है तो विश्वनाथजी ने कहा अरे नही भाई फॅमिली तो नही पर हमारे परम मित्र के ही गाँव के दोस्त और उनका परिवार है यह ।” फिर विश्वनाथजी ने उन लोगों को चाय पीने के लिए बुलाया और वो सब लोग हमारे साथ ही अंदर आ गये. वो चारों बैठ गये और विश्वनाथजी चाय बनाने के लिए किचन की तरफ़ पहुँचे तभी मेरे चन्दू मामाजी ने कहा
“बहू ज़रा मेहमानों के लिए चाय बना दे ।”
और मेरी भाभी उठ कर किचन मे चाय बनाने के लिए गयी. भाभी ने सबके लिए चाय चढ़ा दी और चाय बनाने के बाद वो उन्हे चाय देने गयी, तब तक मेरे चन्दू मामा और मामी ऊपर के कमरे में चले गये थे और नीचे के उस कमरे में उस वक़्त वो दोनो और विश्वनाथजी ही थे. कमरे में वो थी लोग बात कर रहे थे जिन्हे मैं दरवाज़े के पीछे खड़ी सुन रही थी. मैने देखा कि जब भाभी ने उन लोगों को चाय थमायी तो एक ने धीरे से विश्वनाथजी की नज़र बच्चा कर भाभी की एक चूची दबा दी. भाभी के मुँह से दबी दबी सी सिसकी निकली और वो खाली ट्रे लेकर वापस आ गयी । वो लोग चाय की चुस्की लगा रहे थे और बातें कर रहे थे.
विश्वनाथजी- आज तो आप लोग बहुत दिनों के बाद मिले हैं, क्यों भाई कहाँ चले गये थे आप लोग? क्यों भाई रमेश तुम्हारे क्या हाल चाल है.
रमेश- हाल चाल तो ठीक है, पर आप तो हम लोगों से मिलने ही नही आए, शायद आप सोचते होगे कि हमसे मिलने आएँगे तो आपका खर्चा होगा.
विश्वनाथजी- अरे खर्चे की क्या बात है.अर्रे यार कोई माल हो तो दिलाओ , खर्चे की परवाह मत करो, वैसे भी फॅमिली बाहर गयी है और बहुत दिन हो गये है किसी माल को मिले.अर्रे महेश तुम बोलो ना कब ला रहे हो कोई नया माल?
महेश - इस मामले मे तो रमेश से ही बात करो माल तो यही साला रखता है.
रमेश – क्यों झूठ बोलता है साले मेरे पास इस समय माल कहाँ? इस वक़्त तो माल इसी के पास है.
महेश _ माल तो था यार पर कल साली अपने मैके चली गयी है. पर अगर तुम खर्च करो तो कुछ सोचें.
विश्वनाथजी- खर्चे की हमने कहाँ मनाई की है. चाहे जितना खर्चा हो जाए, लेकिन कुछ मजा नहीं आ रहा यार कुछ जुगाड़ बनवओ. मैं वहीं खड़े-खड़े सब सुन रही थी मेरे पीछे भाभी भी आकर खड़ी हो गयी और वो भी उन लोगों की बातें सुन ने लगी.
रमेश- अकेले-अकेले कैसे तुम्हारे यहाँ तो सब लोग है.
विश्वनाथजी- अर्रे नही भाई यह हमारे बच्चे थोड़ी ही है, हमारे बच्चे तो गाँव गये है, यह लोग हमारे गाँव से ही मेला देखने आए है.
महेश- फिर क्या बात है. बगल मे हसीना और नगर ढिंढोरा. अगर तुम हमारी दावत करो तो इनमे से किसी को भी तुमसे चुदवा देंगे.
विश्वनाथजी- कैसे?
महेश- यार यह कैसे मत पूछो, बस पहले दावत करो।
विश्वनाथजी- लेकिन यार कहीं बात उल्टी ना पड़ जाएँ , गाँव का मामला है, बहुत फ़ज़ईता हो जाएगा.
सुरेश- यार तुम इसकी क्यों फ़िक्र करते हो मैं उड़ती चिड़िया के पर गिन सकता हूँ ये सब तैयार पके फ़ल हैं और चिल्ला चिल्ला के कह रहे हैं कि खाने वाला चाहिये सिर्फ़ खाने वाले को खाना आना चाहिये। सब कुछ हमारे ऊपर छोड़ दो ।”
रमेश- यार एक बात है, बहूँ की जो सास {यानिकि मामीजी} है उस पर भी बड़ा जोबन है. यार मैं तो उसे किसी भी तरह चोदुन्गा.
विश्वनाथजी- अर्रे यार तुम लोग अपनी बात कर रहे या मेरे लिए बात कर रहे हो
महेश- तुम कल रात को दावत रखना और फिर जिसको चोदना चाहोगे उसी को चुदवा देंगे, चाहे सास चाहे बहूँ या फिर उसकी ननद ।
विश्वनाथजी- ठीक है फिर तुम चारों कल शाम को आ जाना.
मैने सोचा कि अब हमारी चूतों की खैर नही पीछे मुड़कर देखा तो भाभी खड़े-खड़े अपनी चूत खुज़ला रही है.
मैने कहा –क्यों भाभी चूत चुदवाने को खुज़ला रही हो.
भाभी- हाँ ननद रानी अब तुझसे क्या छुपाना, जबसे कार वाले महेश ने रगड़ के चोदा है मेरी चूत की चुदास जाग गई है. मन करता रहता है कि बस कोई मुझे पटक के चोद दे.
मैने कहा –“ पहले कहती तो किसी को रोक लेती जो तुम्हे पूरी रात चोदता रहता. खैर कोई बात नही कल शाम तक रूको चुदते चुदते तुम्हारी चूत का भोसड़ा न बन जाए तो कहना. उन तीनों के इरादे है हमे चोदने के और वो साला रमेश तो मामीज़ी को भी चोदना चाहता है.अब देखेंगे मामी को किस तरह से चोदते हैं ये लोग ।”
अगाली सुबह जब मैं सो कर उठी तो देखा कि सभी लोग सोए हुए थे सिर्फ़ भाभी ही उठी हुई थी और विश्वनाथजी का लण्ड जो की नींद में भी तना हुआ था और भाभी गौर से उनके लण्ड को ही देख रही थी. उनका लण्ड धोती के अंदर तन कर खड़ा था, करीब 10’’ लंबा और 3’’ मोटा, एकदम लोहे के राड की तरह. भाभी ने इधर-उधर देख कर अपने हाथ से उनकी धोती को लण्ड पर से हटा दिया और उनके नंगे लण्ड को देख कर अपने होंटो पर जीभ फिराने लगी. में भी बेशर्मो की तरह जाकर भाभी के पास खड़ी हो गयी और धीरे से कहा
"उइई माँ ".
भाभी मुझे देख कर शर्मा गयी और घूम कर चली गयी. में भी भाभी के पीछे चली और उनसे कहा
“देखा कैसे बेहोश सो रहे हैं ।”
भाभी- चुप रह ।”
मैं – क्यों भाभी, ज़्यादा अच्छा लग रहा है ।”
भाभी- चुप भी कर ना ।”
मैं - इसमे चुप रहने की कौन सी बात है जाओ और देखो और पकड़ कर चूत में भी ले लो उनका खड़ा लण्ड, बड़ा मज़ा आएगा.
भाभी- कुछ तो शर्म कर यूँ ही बके जा रही है ।”
मैं - तुम्हारी मर्ज़ी, वैसे ऊपर से धोती तो तुम ही ने हटाई थी।”
भाभी- अब चुप भी हो जा, कोई सुन लेगा तो क्या सोचेगा.
फिर हम लोग रोज़ की तरह काम में लग गये. करीब दस बज़े विश्वनाथजी कुछ सामान लेकर आए और हमारे चन्दू मामा के हाथ में थमा कर कहा कहा –
“आज हमारे वही तीनों दोस्त आएँगे और उनकी दावत करनी है यार इसीलिए यह सामान लाया हूँ भैया, मुझे तो आता नही है कुछ बनाना इसीलिए तुम्ही लोगों को बनाना पड़ेगा.और हां यार तुम पीते तो हो ना ?”
चन्दू मामा- नही में तो नही पीता यार ।”
विश्वनाथजी- अर्रे यार कभी-कभी तो लेते होगे ।”
चन्दू मामा-हाँ कभी-कभार की तो कोई बात नही ।”
विश्वनाथजी- फिर ठीक है हमारे साथ तो लेना ही होगा ।”
चन्दू मामा- ठीक है देखा जाएगा ।”
हम लोगों ने सामान वग़ैरह बना कर तैय्यार कर लिया. शाम के करीब छ: सात बज़े के बीच वो लोग आ गये। मैं तो इस फिराक में लग गयी कि यह लोग क्या बातें करते है ।”
चन्दू मामा मामी और भाभी ऊपर के कमरे में बैठे थे. मैं उन तीनों की आवाज़ सुन कर नीचे उतर आई. वो तीनों लोग बाहर की तरफ बने कमरे मे बैठे थे. मैं बराबर वाले कमरे की किवाड़ों के सहारे खड़ी हो गयी और उनकी बातें सुनने लगी.
विश्वनाथजी- दावत तो तुम लोगों की करा रहा हूँ अब आगे क्या प्रोग्राम है?
पहला- यार ये तुम्हारा दोस्त दारू-वारू पीएगा कि नही?
विश्वनाथजी- वो तो मना कर रहा था पर मैने उसे पीने के लिए मना लिया है ।”
दूसरा- फिर क्या बात है समझो काम बन गया. तुम लोग ऐसा करना कि पहले सब लोग साथ बैठ कर पीएँगे फिर उसके ग्लास में कुछ ज़्यादा डाल देंगे. जब वो नशे में आ जाएगा तब किसी तरह पटा कर उसकी बीवी को भी पीला देंगे और फिर नशे में लेकर उन सालियों को पटक-पटक कर चोदेन्गे,
प्लान के मुताबिक उन्होने हमारे चन्दू मामा को आवाज़ लगाई. हमारे चन्दू मामा नीचे उतर आए और बोले रमा-रमा भैया ।”
चन्दू मामा भी उसी पंचायत में बैठ गये अब उन लोगों की गुपशुप होने लगी. थोड़ी देर बाद आवाज़ आई कि बहूँ ग्लास और पानी देना.
जब भाभी पानी और ग्लास लेकर वहाँ गयी तो मैने देखा की विश्वनाथजी की आँखे भाभी की चूचियों पर ही लगी हुई थी. उन्होने सभी ग्लास में दारू और पानी डाला पर मैने देखा कि चन्दू मामाजी के ग्लास में पानी कम और दारू ज़्यादा थी. उन्होने पानी और मँगाया तो भाभी ने लोटा मुझे देते हुए पानी लाने को कहा. जब में पानी लेने किचन में गयी तो महेश तुरंत ही मेरे पीछे-पीछे किचन मे आया और मेरी दोनो बड़ी बड़ी चूचियों को कस कर दबाते हुए बोला-
“कार में तुझे रमेश से चुदते देखने के बाद से ही मैं बेकरार हूँ अगर देर हो जाने का खतरा ना होता तो वहीं पटक के चोदता बेलारानी, अब ज़रा जल्दी पानी ला ताकि ये खानापीना निबटे और मेरे लण्ड से तेरी चूत की मुलाकात हो ।” मेरी सिसकारी निकल गयी
विश्वनाथजी ने चन्दू मामाजी से पूछा वो तुम्हारा नौकर कहाँ गया.
चन्दू मामा-वो नौकर को यहाँ उसके गाँव वाले मिल गये थे सो उन्ही के साथ गया है सुबह तक वापस आ जाएगा.
फिर जब तक हम लोगों ने खाना लगाया तब तक उन्होने दो बॉटल खाली कर दी थी. मैने देखा कि चन्दू मामा कुछ ज़्यादा नशे में है, मैं समझ गयी कि उन्होने जान बुझ कर चन्दू मामा को ज़्यादा शराब पिलाई है. हम लोग खाना लगा ही चुके थे. मामीजी सब्ज़ी लेकर वहाँ गयी मे भी पीछे-पीछे नमकीन लेकर पहुँची तो देख की रमेश ने मामीजी का हाथ थाम कर उन्हे दारू का ग्लास पकड़ना चाहा. मामीजी ने दारू पीने से मना कर दिया. मैं यह देख कर दरवाज़े पर ही रुक गयी. जब मामीजी ने दारू पीने से मना किया तो रमेश चन्दू मामाजी से बोला- अरे यार तुम्हारी घरवाली तो हमारी बे-इज़्ज़ती कर रही है कहो ना भौजी से ।”
चन्दू मामा ने मामी से कहा –रज्जो पी ले ना क्यों लड़के की इन्सल्ट करा रही हो.
मामीज़ी ज़ी- मैं नही पीती
रमेश- भय्या यह तो नही पी रही है, अगर आप कहें तो में पीला दूँ ।”
चन्दू मामा (हँसते हुए)- ठीक है अगर नही पी रही है तो पकड़ कर पिला दे ।”
चन्दू मामाजी का इतना कहना था कि रमेश ने वहीं मामीज़ी की बगल में हाथ डाल कर दूसरे हाथ से दारू भरे ग्लास को मामीजी के मुँह से लगा दिया और मामीजी को ज़बरदस्ती दारू पीनी पड़ी. मैने देखा कि उसका जो हाथ बगल में था उसी से वो मामीजी की चूचियाँ भी दबा रहा था और जब वो इतनी बेफिक्री से मामीजी की बड़ी बड़ी चूचियाँ दबा रहा था तो बाकी सभी की नज़रें [चन्दू मामाजी को छोड़कर] उसके हाथ से दबती हुई मामीज़ी बड़ी बड़ी चूचियों पर ही थी. यहाँ तक की उनमे से एक ने तौ गंदे इशारे करते हुए वहीं पर अपना लण्ड पैंट के ऊपर से ही मसलना शुरू कर दिया था. मामीजी के मुँह में ग्लास खाली करके मामीजी को छोड़ दिया. फिर जब मामीजी किचन मे आई तो मैने जान बुझ कर मेरे हाथ मे जो सामान था वो मामीजी को पकड़ा दिया.
मामीजी ने वो सामान टेबल पर लगा दिया. फिर रमेश ने मामीजी के मना करने पर भी दूसरा ग्लास मामीजी को पीला दिया. मामीजी मना करती ही रह गयी पर रमेश दारू पीला कर ही माना.और इस बार भी वोही कहानी दोहराई गयी यानी कि एक हाथ दारू पीला रहा था और दूसरा हाथ चूचियाँ दबा रहा था और सब लोग इस नज़ारे को देख कर गरम हो रहे थे. चन्दू मामाजी की शायद किसी को परवाह ही नही थी क्योंकि वो तो वैसे भी एक दम नशे मे टुन्न हो चुके थे। नशे और नींद से उनकी आँखें हुई जा रही थीं। यह देख महेश ने चन्दू मामाजी का ग्लास भरते हुए कहा- लगता है भाईसाहब को नींद आ रही है, भाईसाहब अगर आप सोना चाहें तो औपचारिकता छोड़कर अपने कमरे में आराम करें हम लोग सब आपके भाईबन्द हैं कोई भी बुरा नहीं मानेगा। हम समझ सकते हैं कि हमारे इस हो हल्ले में आप ठीक से सो नहीं पायेंगे। सबने महेश की हाँ मे हाँ मिलायी और महेश ने एक और ग्लास उन्हें पिलाकर(ताकि वो बिलकुल ही बेहोश हो के सोयें) ऊपर उनके कमरे मे लेजाकर लिटा दिया । चन्दू मामाजी लेटते ही सो गये। महेश ने आवाज देकर ये पक्का भी कर लिया कि वे सचमुच ही सो रहे हैं।
क्रमश:…………………
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